If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.
सुयश के साथ अब सभी ऑक्टोपस के क्षेत्र की ओर बढ़ गये।
ऑक्टोपस वाले क्षेत्र की भी जमीन वैसे ही संगमरमर के पत्थरों से बनी थी, जैसे पत्थर नेवले के क्षेत्र में लगे थे। ऑक्टोपस की मूर्ति एक वर्गाकार पत्थर पर रखी थी।
उधर जैसे ही सभी संगमरमर वाले गोल क्षेत्र में पहुंचे, अचानक जमीन के नीचे से, उस गोल क्षेत्र की परिधि में, संगमरमर के पत्थरों की दीवार निकलने लगी।
सबके देखते ही देखते वह पूरा गोल क्षेत्र दीवारों की वजह से बंद हो गया। कहीं भी कोई भी दरवाजा दिखाई नहीं दे रहा था।
“वहां करंट फैला दिया था और यहां पूरा कमरा ही बंद कर दिया।” ऐलेक्स ने कहा- “ये कैश्वर भी ना... भगवान बनने के चक्कर में हमें भगवान के पास भेज देगा।”
सभी ऐलेक्स की बात सुनकर मुस्कुरा दिये।
तभी शैफाली की निगाह नीचे जमीन पर लगे, एक संगमरमर के पत्थर के टुकड़े की ओर गयी, वह पत्थर का टुकड़ा थोड़ा सा जमीन में दबा था।
“कैप्टेन अंकल, यह पत्थर का टुकड़ा थोड़ा सा जमीन में दबा है, यह एक साधारण बात है कि इसमें कोई रहस्य है?” शैफाली ने सुयश को पत्थर का वह टुकड़ा दिखाते हुए कहा।
अब सुयश भी झुककर उस पत्थर के टुकड़े को देखने लगा।
सुयश ने उस टुकड़े को अंदर की ओर दबा कर भी देखा, पर कुछ नहीं हुआ। यह देख सुयश उसे एक साधारण घटना समझ उठकर खड़ा हो गया।
दीवारें खड़ी होने के बाद अब वह स्थान एक मंदिर के समान लगने लगा था। लेकिन उस मंदिर में ना तो कोई खिड़की थी और ना ही कोई दरवाजा।
अब सभी धीरे-धीरे चलते हुए ऑक्टोपस के पास पहुंच गये।
ऑक्टोपस की नेम प्लेट के नीचे यहां भी 2 पंक्तियां लिखी थीं- “ऑक्टोपस की आँख से निकली, विचित्र अश्रुधारा, आँखों का यह भ्रम है, या आँखों का खेल सारा।”
“यह कैश्वर तो कोई कविताकार लगता है, जहां देखो कविताएं लिख रखीं हैं।” ऐलेक्स ने हंसते हुए कहा।
“अरे भला मानो कि कविताएं लिख रखीं है। कम से कम इन्हीं कविताओं को पढ़कर कुछ तो समझ में आता है कि करना क्या है?” क्रिस्टी ने ऐलेक्स को देखते हुए कहा- “सोचो अगर ये कविताएं न होतीं तो समझते कैसे? वैसे कैप्टेन आपको इस कविता को पढ़कर क्या लगता है?”
“मुझे तो बस इतना समझ में आ रहा है कि इस ऑक्टोपस की आँखों में कुछ तो गड़बड़ है।” सुयश ने ऑक्टोपस की आँखों को देखते हुए कहा।
“कैप्टेन अंकल यह ऑक्टोपस पूरा पत्थर का है, पर मुझे इसकी आँख असली लग रही है।” शैफाली ने कहा- “मैंने अभी उसे हिलते हुए देखा था।”
शैफाली की बात सुन सभी ध्यान से ऑक्टोपस की आँख को देखने लगे। तभी ऑक्टोपस के आँखों की पुतली हिली।
“कविता की पंक्तियों में अश्रुधारा की बात हुई है, मुझे लगता है कि ऑक्टोपस के रोने से कोई नया दरवाजा खुलेगा।” तौफीक ने कहा।
“पर ये ऑक्टोपस रोएगा कैसे?” जेनिथ ने कहा- “कैप्टेन क्यों ना यहां कि भी नेम प्लेट हटा कर देखें। हो सकता है कि यहां भी कुछ ना कुछ उसके पीछे छिपा हो?”
“बहुत ही मुश्किल है जेनिथ, कैश्वर कभी भी तिलिस्मा के 2 द्वार एक जैसे नहीं रखेगा।” सुयश ने कहा- “पर फिर भी अगर तुम देखना चाहती हो तो मैं नेम प्लेट हटा कर देख लेता हूं।”
यह कहकर सुयश ने फिर से तौफीक से चाकू लिया और ऑक्टोपस के पत्थर की नेम प्लेट भी हटा दी।
पर सुयश का सोचना गलत था, यहां भी नेम प्लेट के पीछे एक छेद था, यह देख सुयश ने उसमें झांककर देखा, पर अंदर इतना अंधेरा था कि कुछ नजर नहीं आया।
“कैप्टेन अंकल अंदर हाथ मत डालियेगा, हो सकता है कि यहां भी कोई विषैला जीव बैठा हो।” शैफाली ने सुयश को टोकते हुए कहा।
पर सुयश ने कुछ देर तक इंतजार करने के बाद उस छेद में हाथ डाल ही दिया। सुयश का हाथ किसी गोल चीज से टकराया, सुयश ने उस चीज को बाहर निकाल लिया।
“यह तो एक छोटी सी गेंद है, जिसमें हवा भरी हुई है।” क्रिस्टी ने आश्चर्य से देखते हुए कहा- “अब इस गेंद का क्या मतलब है? मुझे तो यह बिल्कुल साधारण गेंद लग रही है।”
“लगता है कि कैश्वर का दिमाग खराब हो गया है, इतनी छोटी सी चीज को कोई भला ऐसे छिपा कर रखता है क्या?” ऐलेक्स ने गेंद को हाथ में लेते हुए कहा।
तभी गेंद को देख ऑक्टोपस की आँखों में बहुत तेज हरकत होने लगी, पर यह बात शैफाली की नजरों से छिपी ना रह सकी।
“ऐलेक्स भैया, लगता है कि यह गेंद इस ऑक्टोपस की ही है, उसकी आँखों को देखिये, वह आपके हाथों में गेंद देखकर एकाएक बहुत परेशान सा लगने लगा है।” शैफाली ने ऐलेक्स से कहा।
यह देख ऐलेक्स को जाने क्या सूझा, उसने सुयश के हाथ में थमा चाकू भी ले लिया और उस चाकू को हाथ में लहराता हुआ ऑक्टोपस की ओर देखने लगा। ऑक्टोपस की बेचैनी अब और बढ़ गई थी।
ऐलेक्स ने ऑक्टोपस की बेचैनी को महसूस कर लिया और तेज-तेज आवाज में बोला- “अगर मैं इस चाकू से इस गेंद को फोड़ दूं तो कैसा रहेगा।”
ऐसा लग रहा था कि वह ऑक्टोपस ऐलेक्स के शब्दों को भली-भांति समझ रहा है, क्यों कि अब उसकी आँखों में डर भी दिखने लगा।
सुयश को भी यह सब कुछ विचित्र सा लग रहा था, इसलिये उसने भी ऐलेक्स से कुछ नहीं कहा।
तभी ऐलेक्स ने सच में चाकू के वार से उस गेंद को फोड़ दिया।
गेंद के फूटते ही वह ऑक्टोपस किसी नन्हें बच्चे की तरह रोने लगा।
सुयश के चेहरे पर यह देखकर मुस्कान आ गई। वह ऐलेक्स की बुद्धिमानी से खुश हो गया, होता भी क्यों ना...आखिर ऐलेक्स की वजह
से उस ऑक्टोपस की अश्रुधारा बह निकली थी।
सुयश सहित अब सभी की निगाहें ऑक्टोपस की आँखों से निकले आँसुओं पर थीं।
ऑक्टोपस की आँखों से निकले आँसू बहते हुए उसी पत्थर के पास जाकर एकत्रित होने लगे, जो थोड़ा सा जमीन में दबा हुआ था।
यह देख सुयश की आँखें सोचने के अंदाज में सिकुड़ गईं।
अब वह पक्का समझ गया कि इस दबे हुए पत्थर में अवश्य ही कोई ना कोई राज छिपा है।
जैसे ही ऑक्टोपस के आँसुओं ने उस पूरे पत्थर को घेरा, वह पत्थर थोड़ा और नीचे दब गया।
इसी के साथ ऑक्टोपस की आँखों से निकलने वाले आँसुओं की गति बढ़ गई।
अब उसकी दोनों आँखों से किसी नल की भांति तेज धार निकलने लगी और उन आँसुओं से मंदिर के अंदर पानी भरने लगा।
“अब समझे आँसुओं में क्या मुसीबत थी।” सुयश ने कहा- “अब हमें तुरंत इस मंदिर से बचकर बाहर निकलने का रास्ता ढूंढना होगा, नहीं तो हम इस ऑक्टोपस के आँसुओं में ही डूब कर मर जायेंगे।”
“कैप्टेन अंकल, अब इस कविता की पहली पंक्तियों का अर्थ तो पूरा हो गया, पर मुझे लगता है कि इसकी दूसरी पंक्तियों में अवश्य ही बचाव का कोई उपाय छिपा है।” शैफाली ने सुयश को देखते हुए कहा- “और
अगर दूसरी पंक्तियों पर ध्यान दें, तो इसका मतलब है कि ऑक्टोपस की आँख में ही हमारे बचाव का उपाय भी छिपा है।”
सभी एक बार फिर ऑक्टोपस की आँख को ध्यान से देखने लगे, पर ऐलेक्स की निगाह अभी भी उस दबे हुए पत्थर की ओर थी।
ऐलेक्स ने बैठकर उस पत्थर को और दबाने की कोशिश की, पर कुछ नहीं हुआ, तभी ऐलेक्स की निगाह उस पत्थर पर पड़ रही हल्की गुलाबी रंग की रोशनी पर पड़ी, जो कि पहले तो नजर नहीं आ रही थी, पर अब उस पत्थर पर 6 इंच पानी भर जाने की वजह से ऐलेक्स को साफ दिखाई दे रही थी।
ऐलक्स ने उस गुलाबी रोशनी का पीछा करके, उसके स्रोत को जानने की कोशिश की।
वह गुलाबी रोशनी ऑक्टोपस के माथे से आ रही थी।
पानी अब सभी के पंजों के ऊपर तक आ गया था।
ऐलेक्स चलता हुआ ऑक्टोपस के चेहरे तक पहुंच गया, उसकी तेज निगाहें ऑक्टोपस के माथे से निकल रही गुलाबी किरणों पर थीं।
ऐलेक्स ने धीरे से उस ऑक्टोपस के माथे को छुआ, पर माथे के छूते ही वह ऑक्टोपस जिंदा हो गया और उसने अपने 2 हाथों से ऐलेक्स को जोर का धक्का दिया।
ऐलेक्स उस धक्के की वजह से दूर छिटक कर गिर गया।
कोई भी ऑक्टोपस के जिंदा होने का कारण नहीं जान पाया, वह सभी तो बस गिरे पड़े ऐलेक्स को देख रहे थे।
ऑक्टोपस अभी भी पत्थर पर ही बैठा था, पर अब उसके रोने की स्पीड और तेज हो गई थी।
“कैप्टेन उस दबे हुए पत्थर पर एक गुलाबी रोशनी पड़ रही है, जो कि इस ऑक्टोपस के माथे पर मौजूद एक तीसरी आँख से निकल रही है। वह तीसरी आँख इस ऑक्टोपस की त्वचा के अंदर है, इसलिये हमें दिखाई नहीं दे रही है। मैंने उसी को देखने के लिये जैसे ही इस ऑक्टोपस को छुआ, यह स्वतः ही जिंदा हो गया। मुझे लगता है कि उसी तीसरी आँख के द्वारा ही बाहर निकलने का मार्ग खुलेगा।” ऐलेक्स ने तेज आवाज में सुयश को आगाह करते हुए कहा।
तब तक पानी सभी के घुटनों तक पहुंच गया था।
ऐलेक्स की बात सुनकर सुयश उस ऑक्टोपस की ओर तेजी से बढ़ा, पर सुयश को अपनी ओर बढ़ते देखकर उस ऑक्टोपस ने अपने 8 हाथों को चक्र की तरह से चलाना शुरु कर दिया।
अब सुयश के लिये उस ऑक्टोपस के पास पहुंचना बहुत मुश्किल हो गया।
यह देख क्रिस्टी आगे बढ़ी और क्रिस्टी ने ऑक्टोपस के हाथों को पकड़ने की कोशिश की, पर ऑक्टोपस के हाथों की गति बहुत तेज थी, क्रिस्टी भी एक तेज झटके से दूर पानी में जा गिरी।
पानी अब धीरे-धीरे ऑक्टोपस की मूर्ति के पत्थर के ऊपर तक पहुंच गया था और सभी कमर तक पानी में डूब गये।
अब सभी एक साथ उस ऑक्टोपस की ओर बढ़े, पर यह भी व्यर्थ ऑक्टोपस के हाथों ने सबको ही दूर उछाल दिया।
“कैप्टेन अंकल हमें जल्दी ही कुछ नया सोचना होगा, नहीं तो यह ऑक्टोपस अपने आँसुओं से हम सभी को डुबाकर मार देगा।” शैफाली ने कहा।
तौफीक ने अब अपनी जेब से चाकू निकालकर उस ऑक्टोपस के माथे की ओर निशाना लगाकर मार दिया।
निशाना बिल्कुल सही था, चाकू ऑक्टोपस के माथे पर जाकर घुस गया।
ऑक्टोपस के माथे की त्वचा कट गई, पर ऑक्टोपस ने अपने एक हाथ से चाकू निकालकर दूर फेंक दिया। अब वह और जोर से रोने लगा।
मगर अब ऑक्टोपस की तीसरी आँख बिल्कुल साफ नजर आने लगी थी।
पानी अब कुछ लोगों के कंधों तक आ गया था।
तभी क्रिस्टी के दिमाग में एक आइडिया आया, उसने पानी के नीचे एक डुबकी लगाई और नीचे ही नीचे ऑक्टोपस तक पहुंच गई।
क्रिस्टी पानी के नीचे से थोड़ी देर ऑक्टोपस के हाथ देखती रही और फिर उसने फुर्ति से उसके 2 हाथों को पकड़ लिया।
ऐसा करते ही ऑक्टोपस के हाथ चलना बंद हो गये।
यह देख क्रिस्टी ने पानी से अपना सिर निकाला और चीखकर सुयश से कहा- “कैप्टेन मैंने इसके हाथों को पकड़ लिया है, अब आप जल्दी से इसके माथे वाली आँख को निकाल लीजिये।”
क्रिस्टी के इतना बोलते ही सुयश तेजी से ऑक्टोपस की ओर झपटा और उसके माथे में अपनी उंगलियां घुसाकर ऑक्टोपस की उस तीसरी आँख को बाहर निकाल लिया।
जैसे ही सुयश ने ऑक्टोपस की आँख निकाली, क्रिस्टी ने उस ऑक्टोपस को छोड़ दिया।
वह ऑक्टोपस अब रोता हुआ छोटा होने लगा और इससे पहले कि कोई कुछ समझता, वह ऑक्टोपस नेम प्लेट वाले छेद में घुसकर कहीं गायब हो गया।
पानी कुछ लोगों की गर्दन के ऊपर तक आ गया था, पर अब ऑक्टोपस के जाते ही पानी भी उस छेद से बाहर निकलने लगा।
कुछ ही देर में काफी पानी उस छेद से बाहर निकल गया।
“लगता है वह ऑक्टोपस का बच्चा अपने पापा से हमारी शिकायत करने गया है?” ऐलेक्स ने भोला सा मुंह बनाते हुए कहा।
“उसकी छोड़ो, वह तो चला गया, पर हमारा यह द्वार अभी भी पार नहीं हुआ है, हमें पहले यहां से निकलने के बारे में सोचना चाहिये।” क्रिस्टी ने ऐलेक्स का कान पकड़ते हुए कहा।
सुयश के हाथ में अभी भी ऑक्टोपस की तीसरी आँख थी, उसने उस आँख को उस दबे हुए पत्थर से टच कराके देखा, पर कुछ भी नहीं हुआ।
यह देख सुयश ने जोर से उस आँख को उस दबे हुए पत्थर पर मार दिया।
आँख के मारते ही एक जोर की आवाज हुई और वह पूरा संगमरमर का गोल क्षेत्र तेजी से किसी लिफ्ट के समान नीचे की ओर जाने लगा।
सभी पहले तो लड़खड़ा गये, पर जल्दी ही वह सभी संभल गये।
सुयश ने उस ऑक्टोपस की आँख को जमीन से उठाकर अपनी जेब में डाल लिया।
“मुझे लग रहा है कि ये द्वार पार हो गया और अब हम अगले द्वार की ओर जा रहे हैं।” जेनिथ ने कहा।
“भगवान करे कि ऐसा ही हो।” क्रिस्टी ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा- “जितनी जल्दी यह तिलिस्मा पार हो, उतनी जल्दी हमें घर जाने को मिलेगा।”
लेकिन इससे पहले कि कोई और कुछ कह पाता, वह लिफ्टनुमा जमीन एक स्थान पर रुक गई।
सभी को सामने की ओर एक सुरंग सी दिखाई दी।
सभी उस सुरंग के रास्ते से दूसरी ओर चल दिये।
वह रास्ता एक बड़ी सी जगह में जाकर खुला।
उस जगह को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कोई सुंदर सी घाटी है।
घाटी के बीचो बीच में एक बहुत ही सुंदर गोल सरोवर बना था। उस सरोवर से कुछ दूरी पर एक कंकाल खड़ा था, जिसका सिर नहीं था, पर उसके एक हाथ में एक सुनहरी धातु की दुधारी तलवार थी।
कंकाल के पीछे की दीवार पर कंकाल के ही कुछ चित्र बने थे, जिसमें उस कंकाल को एक विशाल ऑक्टोपस से लड़ते दिखाया गया था।
“मुझे नहीं लगता कि यह द्वार अभी पार हुआ है।” सुयश ने दीवार पर बने हुए चित्र को देखते हुए कहा।
अभी सुयश ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी, कि तभी सरोवर से एक विशाल 50 फुट ऊंचा ऑक्टोपस निकलकर पानी के बाहर आ गया।
“अरे बाप रे, लगता है मैंने सच कहा था, उस छोटे ऑक्टोपस ने अपने पापा को सब कुछ बता दिया। अब हमारी खैर नहीं।” ऐलेक्स ने चिल्लाते हुए कहा।
पर इस समय किसी का भी ध्यान ऐलेक्स की बात पर नहीं गया, अब सभी सिर्फ उस ऑक्टोपस को ही देख रहे थे।
ऑक्टोपस अपनी लाल-लाल आँखों से सभी को घूर रहा था।
“कैप्टेन अंकल, दीवार पर बने चित्र साफ बता रहे हैं कि यह कंकाल ही अब हमें इस ऑक्टोपस से मुक्ति दिला सकता है, पर मुझे लगता है कि पहले आपको अपने गले से उतारकर यह खोपड़ी इस कंकाल के सिर पर जोड़नी होगी। शायद इसीलिये यह खोपड़ी अभी तक आपके पास थी।” शैफाली ने जोर से चीखकर सुयश से कहा।
सुयश भी दीवार पर बने चित्रों को देख, बिल्कुल शैफाली की तरह ही सोच रहा था, उसने बिना देर किये, अपने गले में टंगी उस खोपड़ी की माला से धागे को अलग किया और उसे कंकाल के सिर पर फिट कर
दिया।
खोपड़ी कंकाल के सिर में फिट तो हो गई, पर वह कंकाल अभी भी जिंदा नहीं हुआ। यह देख सुयश सोच में पड़ गया।
तभी ऑक्टोपस ने सब पर हमला करना शुरु कर दिया।
“सभी लोग ऑक्टोपस से जितनी देर तक बच सकते हो, बचने की कोशिश करो, मैं जब तक कंकाल को जिंदा करने के बारे में सोचता हूं।” सुयश ने सभी से चीखकर कहा और स्वयं ऑक्टोपस की पकड़ से दूर भागा।
“कैप्टेन, आप उस ऑक्टोपस की आँख को कंकाल के सिर में लगा दीजिये, वह जिंदा हो जायेगा।” ऐलेक्स ने चीखकर कहा- “क्यों कि उस कंकाल के सिर से भी वैसी ही गुलाबी रोशनी निकल रही है, जैसी उस
ऑक्टोपस के माथे से निकल रही थी और इस कंकाल के माथे पर, उस आँख के बराबर की जगह भी खाली है।”
ऐलेक्स की बात सुनकर सुयश ने कंकाल के माथे की ओर ध्यान से देखा।
ऐलेक्स सही कह रहा था, कंकाल के माथे में बिल्कुल उतनी ही जगह थी, जितनी बड़ी वह ऑक्टोपस की आँख थी।
सुयश ने बिना देर किये अपनी जेब से निकालकर उस ऑक्टोपस की आँख को कंकाल के माथे में फिट कर दिया।
माथे में तीसरी आँख के फिट होते ही वह कंकाल जीवित होकर ऑक्टोपस पर टूट पड़ा।
अब सभी दूर हटकर इस युद्ध को देख रहे थे।
थोड़ी ही देर में एक-एक कर कंकाल ने ऑक्टोपस के हाथ काटने शुरु कर दिये।
बामुश्किल 5 मिनट में ही कंकाल ने ऑक्टोपस को मार दिया।
ऑक्टोपस के मरते ही रोशनी का एक तेज झमाका हुआ और सबकी आँख बंद हो गई।
जब सबकी आँखें खुलीं तो उनके सामने एक दरवाजा था, जिस पर 2.2 लिखा था, सभी उस दरवाजे से अंदर की ओर प्रवेश कर गए।
Bhut hi badhiya update Bhai
Suyash and team ne apne dimag ka use karke is octopus vali samasya ko bhi paar kar liya
Aur pab ye log pahuch gaye hai agli problem par
एण्ड्रोनिका: (आज से 3 दिन पहले.......... 13.01.02, रविवार, 17:00, वाशिंगटन डी.सी से कुछ दूर, अटलांटिक महासागर)
शाम ढलने वाली थी, समुद्र की लहरों में उछाल बढ़ता जा रहा था।
इन्हीं लहरों के बीच 2 साये समुद्र में तेजी से तैरते किसी दिशा की ओर बढ़ रहे थे।
यह दोनों साये और कोई नहीं बल्कि धरा और मयूर थे, जो कि आसमान से उल्का पिंड को गिरता देख वेगा और वीनस को छोड़ समुद्र की ओर आ गये थे।
“क्या तुम्हारा फैसला इस समय सही है धरा?” मयूर ने धरा को देखते हुए कहा- “क्या हमारा इस समय उल्का पिंड देखने जाना ठीक है? वैसे भी समुद्र का क्षेत्र हमारा नहीं है और तुमने कौस्तुभ और धनुषा को खबर भी कर दी है, और ...और अभी तो शाम भी ढलने वाली है। एक बार फिर सोच लो धरा, क्यों कि पानी में हमारी शक्तियां काम नहीं करती हैं। अगर हम किसी मुसीबत में पड़ गये तो?”
धरा और मयूर पानी में मानसिक तरंगों के द्वारा बात कर रहे थे।
“क्या मयूर, तुम भी इस समय शाम, समुद्र और क्षेत्र की बात करने लगे। क्या तुम्हें पता भी है? कि कुछ ही देर में अमेरिकन नेवी इस स्थान को चारो ओर से घेर लेगी, फिर उन सबके बीच किसी का भी छिपकर
अंदर घुस पाना मुश्किल हो जायेगा। इसी लिये मैं कौस्तुभ और धनुषा के आने का इंतजार नहीं कर सकती। हमें तुरंत उस उल्कापिंड का निरीक्षण करना ही होगा।
"हमें भी तो पता चले कि आखिर ऐसा कौन सा उल्का पिंड है? जो बिना किसी पूर्व निर्धारित सूचना के हमारे वैज्ञानिकों की आँखों में धूल झोंक कर, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में आ गया। अवश्य ही इसमें कोई ना कोई रहस्य छिपा है? और पृथ्वी के रक्षक होने के नाते ये हमारा कर्तव्य बनता है कि हम क्षेत्र और दायरे को छोड़कर, एक दूसरे की मदद करें।”
“अच्छा ठीक है...ठीक है यार, ये भाषण मत सुनाओ, अब मैं तुम्हारे साथ चल तो रहा हूं।” मयूर ने हथियार डालते हुए कहा- “तुम्हीं सही हो, मैं गलत सोच रहा था।”
उल्का पिंड को आसमान से गिरे अभी ज्यादा देर नहीं हुआ था।
धरा और मयूर पानी के अंदर ही अंदर, तेजी से उस दिशा की ओर तैर रहे थे।
तभी धरा को बहुत से समुद्री जीव-जंतु उल्का पिंड की दिशा से भाग कर आते हुए दिखाई दिये, इनमें छोटे और बड़े दोनों ही प्रकार के जीव थे।
“ये सारे जीव-जंतु उस दिशा से भागकर क्यों आ रहें हैं?” धरा ने कहा- “और इनके चेहरे पर भय भी दिख रहा है।”
“अब तुमने उनके चेहरे के भाव इतने गहरे पानी में कैसे पढ़ लिये, जरा मुझे भी बताओगी?” मयूर ने धरा से पूछा।
“अरे बुद्धू मैंने उनके चेहरे के भाव नहीं पढ़े, पर तुमने ये नहीं देखा कि उन सभी जीवों में छोटे-बड़े हर प्रकार के जीव थे और बड़े जीव हमेशा से छोटे जीवों को खा जाते है। अब अगर सभी साथ भाग रहे हैं और कोई एक-दूसरे पर हमला नहीं कर रहा, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इन सबको एक समान ही कोई बड़ा खतरा नजर आया है, जिसकी वजह से यह शिकार करना छोड़ अपनी जान बचाने की सोच रहे हैं। ये तो कॉमन सेंस की बात है।” धरा ने मुस्कुराकर कहा।
“कॉमन सेंस...हुंह....अपना कॉमन सेंस अपने ही पास रखो।” मयूर ने धरा को चिढ़ाते हुए कहा- “मैं तो पहले ही समझ गया था, मैं तुम्हें चेक कर रहा था, कि तुम्हें समझ में आया कि नहीं?”
“वाह मयूर जी....आप कितने महान हैं।” धरा ने कटाक्ष करते हुए कहा- “अब जरा रास्ते पर भी ध्यान दीजिये, कहीं ऐसा ना हो कि कोई बड़ी मछली आपको भी गपक कर चली जाये?”
मयूर ने मुस्कुराकर धरा की ओर देखा और फिर सामने देखकर तैरने लगा।
लगभग आधे घंटे के तैरने के बाद धरा और मयूर को पानी में गिरा वह उल्का पिंड दिखाई देने लगा।
वह उल्का पिंड लगभग 100 मीटर बड़ा दिख रहा था।
“यह तो काफी विशालकाय है, तभी शायद यह पृथ्वी के घर्षण से बचकर जमीन पर आने में सफल हो गया।” धरा ने उल्का पिंड को देखते हुए कहा।
अब दोनों उल्का पिंड के पास पहुंच गये।
वह कोई गोल आकार का बड़ा सा पत्थर लग रहा था, उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह ज्वालामुखी से निकले लावे से निर्मित हो।
“इसका आकार तो बिल्कुल गोल है, इसे देखकर लग रहा है कि यह किसी जीव द्वारा निर्मित है।” मयूर ने कहा।
अब धरा छूकर उस विचित्र उल्का पिंड को देखने लगी। तभी उसे उल्कापिंड पर बनी हुई कुछ रेखाएं दिखाई दीं, जिसे देखकर कोई भी बता देता कि यह रेखाएं स्वयं से नहीं बन सकतीं।
अब धरा ने अपने हाथ में पहने कड़े से, उस उल्का पिंड पर धीरे से चोट मारी। एक हल्की सी, अजीब सी आवाज उभरी।
“यह पत्थर नहीं है मयूर, यह कोई धातु की चट्टान है, बल्कि अब तो इसे चट्टान कहना भी सही नहीं होगा, मुझे तो ये कोई अंतरिक्ष यान लग रहा है, जो कि शायद भटककर यहां आ गिरा है।” धरा के चेहरे पर बोलते हुए पूरी गंभीरता दिख रही थी- “अब इसके बारे में जानना और जरुरी हो गया है। कहीं ऐसा ना हो कि ये पृथ्वी पर आने वाले किसी संकट की शुरुआत हो?”
अब धरा ने समुद्र की मिट्टी को धीरे से थपथपाया और इसी के साथ समुद्र की मिट्टी एक बड़ी सी ड्रिल मशीन का आकार लेने लगी।
अब धरा ने उस ड्रिल मशीन से उस उल्का पिंड में सुराख करना शुरु कर दिया, पर कुछ देर के बाद ड्रिल मशीन का अगला भाग टूटकर समुद्र की तली में बिखर गया, परंतु उस उल्का पिंड पर एक खरोंच भी ना आयी।
अब मयूर ने समुद्र की चट्टानों को छूकर एक बड़े से हथौड़े का रुप दे दिया और उस हथौड़े की एक भीषण चोट उस उल्का पिंड पर कराई, पर फिर वही अंजाम हुआ जो कि ड्रिल मशीन का हुआ था।
हथौड़ा भी टूटकर बिखर गया, पर उस उल्का पिंड का कुछ नहीं हुआ।
“लगता है कि ये किसी दूसरे ग्रह की धातु से बना है और यह ऐसे नहीं टूटेगा....हमें कोई और उपाय सोचना होगा मयूर?” धरा ने कहा।
लेकिन इससे पहले कि धरा और मयूर कोई और उपाय सोच पाते, कि तभी उस उल्का पिंड में एक स्थान पर एक छोटा सा दरवाजा खुला और उसमें से 2 मनुष्य की तरह दिखने वाले जीव निकलकर बाहर आ गये।
उनके शरीर हल्के नीले रंग के थे। उन दोनों ने एक सी दिखने वाली नेवी ब्लू रंग की चुस्त सी पोशाक पहन रखी थी।
उनकी पोशाक के बीच में एक सुनहरे रंग का गोला बना था। एक गोले में A1 और एक के गोले में A7 लिखा था। उन्हें देख धरा और मयूर तुरंत एक समुद्री चट्टान के पीछे छिप गये।
“यह अवश्य ही एलियन हैं।” मयूर ने कहा- “इनके शरीर का रंग तो देखो हमसे कितना अलग है।”
“रंग को छोड़ो, पहले ये देखो कि ये अंग्रेजी भाषा जानते हैं।” धरा ने दोनों की ओर देखते हुए कहा- “तभी तो इनकी पोशाक पर अंग्रेजी भाषा के अक्षर अंकों के साथ लिखे हुए हैं।”
बाहर निकले वह दोनों जीव पानी में भी आसानी से साँस ले रहे थे और आपस में कुछ बात कर रहे थे, जो कि दूर होने की वजह से धरा और मयूर को सुनाई नहीं दे रही थी।
तभी जिस द्वार से वह दोनों निकले थे, उसमें से कुछ धातु का कबाड़ आकर बाहर गिरा, जिसे देख वह दोनों खुश हो गये।
“क्या इन दोनों पर हमें हमला करना चाहिये?” मयूर ने धरा से पूछा।
“अभी नहीं....अभी तो हमें ये भी पता नहीं है कि ये दोनों हमारे दुश्मन हैं या फिर दोस्त? और ना ही हमें इनकी शक्तियां पता हैं....और वैसे भी समुद्र में हमारी शक्तियां सीमित हैं, पता नहीं यहां हम इनसे मुकाबला कर भी पायेंगे या नहीं?”
धरा के शब्दों में लॉजिक था इसलिये मयूर चुपचाप चट्टान के पीछे छिपा उन दोनों को देखता रहा।
तभी उनमें से A1 वाले ने अंतरिक्ष यान से निकले कबाड़ की ओर ध्यान से देखा। उसके घूरकर देखते ही वह कबाड़ आपस में स्वयं जुड़ना शुरु हो गया।
कुछ देर में ही उस कबाड़ ने एक 2 मुंह वाले भाले का रुप ले लिया। अब A1 ने उस भाले को उठाकर अपने हाथ में ले लिया।
“अब तुम दोनों उस चट्टान से निकलकर सामने आ जाओ, नहीं तो हम तुम्हें स्वयं निकाल लेंगे।” A7 ने उस चट्टान की ओर देखते हुए कहा, जिस चट्टान के पीछे धरा और मयूर छिपे थे।
“धत् तेरे की....उन्हें पहले से ही हमारे बारे में पता है।” मयूर ने खीझते हुए कहा- “अब तो बाहर निकलना ही पड़ेगा। पर सावधान रहना धरा, जिस प्रकार से उस जीव ने, उस कबाड़ से हथियार बनाया है, वह अवश्य ही खतरनाक होगा।”
मयूर और धरा निकलकर उनके सामने आ गये।
“कौन हो तुम दोनों? और हमारी पृथ्वी पर क्या करने आये हो?” धरा ने उन दोनों की ओर देखते हुए पूछा।
“अच्छा तो तुम अपने ग्रह को पृथ्वी कहते हो।” A7 ने कहा- “हम पृथ्वी से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा के फेरोना ग्रह से आये हैं। A1 का नाम ‘एलनिको’ है और मेरा नाम ‘एनम’ है। तुम लोगों से हमारी कोई दुश्मनी नहीं है। हम यहां बस अपने एक पुराने दुश्मन को ढूंढते हुए आये हैं और उसे लेकर वापस चले जायेंगे, पर अगर हमारे काम में किसी ने बाधा डाली, तो हम इस पृथ्वी को बर्बाद करने की भी ताकत रखते हैं।”
“अगर हमारी कोई दुश्मनी नहीं है, तो बर्बाद करने वाली बातें करना तो छोड़ ही दो।” मयूर ने कहा- “अब रही तुम्हारे दुश्मन की बात, तो तुम हमें उसके बारे में बता दो, हम तुम्हारे दुश्मन को ढूंढकर तुम्हारे पास पहुंचा देंगे और फिर तुम शांति से उसे लेकर पृथ्वी से चल जाओगे। बोलो क्या यह शर्त मंजूर है?”
“हम किसी शर्तों पर काम नहीं करते।” एलनिको ने कहा- “और हम अपने दुश्मन को स्वयं ढूंढने में सक्षम हैं। इसलिये हमें किसी की मदद की जरुरत नहीं है। अब रही बात तुम्हारी बकवास सुनने की.... तो वह हमनें काफी सुन ली। अब निकल जाओ यहां से।” यह कहकर एलनिको ने अपने हाथ में पकड़े दो मुंहे भाले को धरा की ओर घुमाया।
भाले से किसी प्रकार की शक्तिशाली तरंगें निकलीं और धरा के शरीर से जा टकराईं।
धरा का शरीर इस शक्तिशाली तरंगों की वजह से दूर जाकर एक चट्टान से जा टकराया।
यह देख मयूर ने गुस्से से पत्थरों का एक बड़ा सा चक्र बनाकर उसे एलनिको और एनम की ओर उछाल दिया।
चक्र पानी को काटता हुआ तेजी से एलनिको और एनम की ओर झपटा।
परंतु इससे पहले कि वह चक्र उन दोनों को कोई नुकसान पहुंचा पाता, एलनिको ने अपने हाथ में पकड़े भाले को उस चक्र की ओर कर दिया।
चक्र से तरंगें निकलीं और भाले को उसने हवा में ही रोक दिया।
अब एलनिको ने भाले को दांयी ओर, एक जोर का झटका दिया, इस झटके की वजह से, वह मयूर का बनाया चक्र दाहिनी ओर जाकर, वहां मौजूद समुद्री पत्थरों से जा टकराया और इसी के साथ टूटकर बिखर गया।
तभी एनम के शरीर से सैकड़ों छाया शरीर निकले। अब हर दिशा में एनम ही दिखाई दे रहा था।
यह देख मयूर घबरा गया, उसे समझ में नहीं आया कि उनमें से कौन सा एनम असली है और वह किस पर वार करे।
तभी एलनिको ने मयूर का ध्यान एनम की ओर देख, अपना भाला मयूर की ओर उछाल दिया।
एलनिको का भाला आकर मयूर की गर्दन में फंस गया और उसे घसीटता हुआ समुद्र में जाकर धंस गया।
अब मयूर बिल्कुल भी हिल नहीं पा रहा था।
यह देख मयूर ने धरा से मानसिक तरंगों के द्वारा बात करना शुरु कर दिया- “धरा, हम पानी में अपने शरीर को कणों में विभक्त नहीं कर सकते, पानी हमारी कमजोरी है, इसलिये हमें किसी तरह यहां से निकलना ही होगा, बाद में हम अपने साथियों के साथ दोबारा आ जायेंगे इनसे निपटने के लिये।”
यह सुन धरा उठी और एक बड़ी सी समुद्री चट्टान पर जाकर खड़ी हो गई। धरा ने एक बार ध्यान से चारो ओर फैले सैकड़ों एनम को देखा और फिर अपने पैरों से उस समुद्री चट्टान को थपथपाया।
धरा के ऐसा करते ही वह समुद्री चट्टान सैकड़ों टुकड़ों में विभक्त हो गई और चट्टान का हर एक टुकड़ा नुकीली कीलों में परिवर्तित हो गया और इससे पहले कि एनम कुछ समझता, वह सारी कीलें अपने आसपास मौजूद सभी एनम के शरीर में जाकर धंस गई।
इसी के साथ एनम के सभी छाया शरीर गायब हो गये।
“मुझे नहीं पता था कि पृथ्वी के लोगों में इतनी शक्तियां हैं....तुम्हारे पास तो कण शक्ति है लड़की....पर चिंता ना करो, अब यह कण शक्ति मैं तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारे शरीर से निकाल लूंगा।” एलनिको ने कहा और इसी के साथ उसने अपना बांया हाथ समुद्र की लहरों में गोल नचाया।
एलनिको के ऐसा करते ही अचानक बहुत ही महीन नन्हें काले रंग के कण धरा की नाक के पास मंडराने लगे।
धरा इस समय एलनिको के भाले से सावधान थी, उसे तो पता ही नहीं था कि एलनिको के पास और कौन सी शक्ति है, इसलिये वह धोखा खा गई।
उन काले नन्हे कणों ने धरा की नाक के इर्द-गिर्द जमा हो कर उसकी श्वांस नली को अवरोधित कर दिया।
अब धरा को साँस आनी बंद हो गई थी, पर धरा अब भी अपने को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी।
धरा ने खतरा भांप कर समुद्री चट्टान से एक बड़ा सा हाथ बनाया और उस हाथ ने मयूर के गले में फंसा भाला खींचकर निकाल दिया।
अब मयूर आजाद हो चुका था, वह एलनिको पर हमला करना छोड़, लड़खड़ाती हुई धरा की ओर लपका।
तभी एलनिको ने इन काले कणों का वार मयूर पर भी कर दिया। अब मयूर का भी दम घुटना शुरु हो गया था।
“मुझे पता था कि तुम दोनों मेरी चुम्बकीय शक्ति को नहीं झेल पाओगे।” एलनिको ने मुस्कुराते हुए कहा।
कुछ ही देर में धरा और मयूर दोनों मूर्छित होकर, उसी समुद्र के धरातल पर गिर पड़े।
यह देख एलनिको और एनम ने धरा और मयूर को अपने कंधों पर उठाया और अपने यान एण्ड्रोनिका के उस खुले द्वार की ओर बढ़ गये।
ऊर्जा द्वार: आज से 3 दिन पहले...........(13.01.02, रविवार, 14:00, दूसरा पिरामिड, सीनोर राज्य, अराका द्वीप)
अराका द्वीप के सीनोर राज्य में मकोटा ने 4 पिरामिड का निर्माण कराया था।
इन चारो पिरामिड में क्या होता था, यह मकोटा के अलावा राज्य का कोई व्यक्ति नहीं जानता था।
पहले पिरामिड में अंधेरे का देवता जैगन बेहोश पड़ा था, जिसे उठा कर मकोटा पूर्ण अराका द्वीप पर राज्य करना चाहता था।
दूसरे पिरामिड में मकोटा की वेधशाला थी, जहां से वुल्फा अंतरिक्ष पर नजर रखता था। यहां से वुल्फा हरे कीड़ों के द्वारा कुछ नये प्रयोग भी करता था।
तीसरे और चौथे पिरामिड में मकोटा के सिवा कोई नहीं जाता था। वहां क्या था? यह किसी को नहीं पता था।
वुल्फा- आधा भेड़िया और आधा मानव। वुल्फा, मकोटा का सबसे विश्वासपात्र और एकमात्र सेवक था।
वुल्फा के अलावा मकोटा ने अपने महल में सिर्फ भेड़ियों को रखा था, उसे किसी भी अटलांटियन पर विश्वास नहीं था।
वुल्फा हर रोज की भांति आज भी दूसरे पिरामिड में मशीनों के सामने बैठकर, अंतरिक्ष का अध्ययन कर रहा था।
उसके सामने की स्क्रीन पर कुछ आड़ी-तिरछी लाइनें बन कर आ रही थीं। वुल्फा के सामने की ओर कुछ विचित्र सी मशीनों पर हरे कीड़े काम कर रहे थे।
उस वेधशाला में 2 हरे कीड़े मानव के आकार के भी थे।
वुल्फा की निगाहें स्क्रीन पर ही जमीं थीं। तभी वुल्फा को अपने सामने लगी मशीन पर एक अजीब सी हरकत होती दिखाई दी, जिसे देख वुल्फा आश्चर्य में पड़ गया।
“यह क्या? यह तो कोई अंजान सी ऊर्जा है, जो कि हमारे सीनोर द्वीप से ही निकल रही है।” वुल्फा ने ध्यान से देखते हुए कहा- “क्या हो सकता है यह?”
अब वुल्फा तेजी से एक स्क्रीन के पास पहुंच गया। इस स्क्रीन पर सीनोर द्वीप के बहुत से हिस्से दिखाई दे रहे थे।
वुल्फा के हाथ अब तेजी से उस मशीन के बटनों पर दौड़ रहे थे। कुछ ही देर में वुल्फा को सीनोर द्वीप का वह हिस्सा दिखाई देने लगा, जहां पर दूसरी मशीन अभी कोई हलचल दिखा रही थी।
वह स्थान चौथे पिरमिड से कुछ दूर वाला ही भाग था। उसके आगे से पोसाईडन पर्वत का क्षेत्र शुरु हो जाता था, पर पोसाईडन पर्वत का वह भाग, सीनोर द्वीप की ओर से किसी अदृश्य दीवार से बंद था।
तभी उस स्थान पर वुल्फा को हवा में तैरती कुछ ऊर्जा दिखाई दी।
“यह तो ऊर्जा से बना कोई द्वार लग रहा है। क्या हो सकता है इस द्वार में?....लगता है मुझे उस स्थान पर चलकर देखना होगा।” यह सोच वुल्फा उस मशीन के आगे से हटा और उस वेधशाला से कुछ यंत्र ले पिरामिड के पीछे की ओर चल दिया।
कुछ ही देर में वुल्फा पिरामिड के पीछे की ओर था। अब वुल्फा को हवा में मौजूद वह ऊर्जा द्वार धुंधला सा दिखाई देने लगा था।
वह ऊर्जा द्वार जमीन से 5 फुट की ऊंचाई पर था और वह बहुत ही हल्का दिखाई दे रहा था।
अगर वुल्फा ने उस द्वार को मशीन पर नहीं देखा होता, तो उसे ढूंढ पाना लगभग असंभव था।
अब वुल्फा उस ऊर्जा द्वार के काफी पास पहुंच गया। तभी वुल्फा को उस ऊर्जा द्वार से, किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी। यह आवाज सुन वुल्फा हैरान हो गया।
“क्या इस ऊर्जा द्वार में कोई जीव छिपा है?” यह सोच वुल्फा ने अपनी आँखें लगा कर उस ऊर्जा द्वार के अंदर झांका, पर उसे अंधेरे के सिवा कुछ नजर नहीं आया।
कुछ नजर ना आते देख वुल्फा ने अपना हाथ उस ऊर्जा द्वार के अंदर डाल दिया।
वुल्फा का हाथ किसी जीव से टकराया, जिसे वुल्फा ने अपने हाथों से पकड़कर बाहर की ओर खींच लिया।
‘धम्म’ की आवाज करता एक जीव का शरीर उस ऊर्जा द्वार से बाहर आ गिरा।
वुल्फा ने जैसे ही उस जीव पर नजर डाली, वह आश्चर्य से भर उठा- “गोंजालो !....यह गोंजालो यहां पर कैसे आ गया? और....और इसके शरीर पर तो बहुत से जख्म भी हैं। ऐसा कौन हो सकता है? जिसने गोंजालो को घायल कर दिया.... मुझे इसे तुरंत पिरामिड में ले चलना चाहिये और मालिक को सारी बात बता देनी चाहिये....हां यही ठीक रहेगा।” यह कहकर वुल्फा ने गोंजालो के शरीर को किसी बोरे की भांति अपने शरीर पर लादा और पिरामिड की ओर चल दिया।
पर अभी वुल्फा 10 कदम भी नहीं चल पाया होगा कि उसे ऊर्जा द्वार की ओर से एक और आवाज सुनाई दी।
वुल्फा अब पलटकर पीछे की ओर देखने लगा।
तभी उस ऊर्जा द्वार से एक विचित्र सा जीव निकला, जो कि 8 फुट लंबा था, उसकी 3 आँखें थीं और 4 हाथ थे। उसकी पीठ पर कछुए के समान एक कवच लगा हुआ था।
उसके पैर और हाथ के पंजे किसी स्पाइनासोरस की तरह बड़े थे ।उसकी बलिष्ठ भुजाओ को देखकर साफ पता चल रहा था, कि उसमें असीम ताकत होगी। उसके हाथों में कोई अजीब सी, गन के समान मशीन थी।
वुल्फा ने कभी भी ऐसा जीव नहीं देखा था, इसलिये वह सावधानी से वहीं घास में बैठकर उसे देखने लगा।
अब उस जीव की नजर भी वुल्फा पर पड़ गई। उस जीव ने वुल्फा को ध्यान से देखा।
उसके ऐसा करते ही उस जीव की तीसरी आँख से लाल रंग की किरणे निकलकर वुल्फा पर ऐसे पड़ीं, मानो वह जीव उसे स्कैन करने की कोशिश कर रहा हो।
वुल्फा साँस रोके, वहीं घास में बैठा रहा। वुल्फा को स्कैन करने के बाद उस जीव ने पास पड़े गोंजालो को भी स्कैन किया।
इसके बाद वह उन दोनों को वहीं छोड़ आसमान में उड़ चला।
“मुझे लगता है कि इसने मुझे भेड़िया और गोंजालो को बिल्ली समझ छोड़ दिया, अगर यह जान जाता कि हम भी इंसानों की तरह से ही काम करते हैं, तो शायद इससे मेरा युद्ध हो रहा होता....या फिर मैं मरा पड़ा होता....क्यों कि वह जीव मुझसे तो ज्यादा ही ताकतवर दिख रहा था।”
यह सोच वुल्फा फिर से उठकर खड़ा हो गया और गोंजालो को अपनी पीठ पर लाद पिरामिड की ओर बढ़ गया।
चैपटर-5
जलदर्पण: (तिलिस्मा 2.2)
ऑक्टोपस का तिलिस्म पार करने के बाद सभी एक दरवाजे के अंदर घुसे, पर जैसे ही सभी उस द्वार के अंदर आये, उन्हें सामने एक काँच की ट्यूब दिखाई दी।
“यह कैसा द्वार है? क्या हमें अब इस ट्यूब के अंदर जाना होगा?” क्रिस्टी ने आश्चर्य से ट्यूब को देखते हुए कहा।
“इस ट्यूब के अलावा यहां और कोई ऑप्शन भी नहीं है, इसलिये जाना तो इसी में पड़ेगा।” जेनिथ ने क्रिस्टी को देखते हुए कहा।
और कोई उपाय ना देख सभी उस काँच की ट्यूब में आगे बढ़ गये।
ट्यूब बिल्कुल गोलाकार थी और धीरे-धीरे उसका झुकाव इस प्रकार नीचे की ओर हो रहा था, मानो वह एक ट्यूब ना होकर किसी वाटर पार्क की राइड हो।
उस ट्यूब में पकड़ने के लिये कुछ नहीं था और फिसलन भी थी।
सबसे पीछे तौफीक चल रहा था। अचानक तौफीक का पैर फिसला और वह अपने आगे चल रहे ऐलेक्स से जा टकराया। जिसकी वजह से ऐलेक्स भी गिर गया।
तभी उस ट्यूब में पीछे की ओर पानी के बहने की आवाज आयी। इस आवाज को सुनकर सभी डर गये।
“कैप्टेन लगता है, पीछे से पानी आ रहा है और हमारे पास भागने के लिये भी कोई जगह नहीं है....जल्दी बताइये कि अब हम क्या करें।” ऐलेक्स ने सुयश से पूछा।
“ऐसी स्थिति में कुछ नहीं कर सकते, बस जितनी ज्यादा से ज्यादा देर तक साँस रोक सकते हो रोक लो।” सुयश ने सभी को सुझाव दिया।
सभी ने जोर की साँस खींच ली, तभी उनके पीछे से एक जोर का प्रवाह आया और वह सभी इस बहाव में ट्यूब के अंदर बह गये।
ट्यूब लगातार उन्हें लेकर बहता जा रहा था, पानी आँखों में भी तेजी से जा रहा था इसलिये किसी की आँखें खुली नहीं रह पायीं।
कुछ देर ऐसे ही बहते रहने के बाद आखिरकार पानी की तेज आवाज थम गई।
सभी ने डरकर अपनी आँखें खोलीं, पर आँखें खोलते ही सभी भौचक्के से रह गये, ऐसा लग रहा था कि वह सभी समुद्र के अंदर हैं, पर आश्चर्यजनक तरीके से सभी साँस ले रहे थे।
“कैप्टेन, यह कैसा पानी है, हम इसमें साँस भी ले पा रहे हैं और आपस में बिना किसी अवरोध के बात भी कर पा रहे हैं।” जेनिथ ने सुयश से कहा।
“यही तो कमाल है तिलिस्मा का... यह ऐसी तकनीक का प्रयोग कर रहा है, जिसे हम जरा सा भी नहीं जानते हैं।” सुयश ने भी आश्चर्यचकित होते हुए कहा।
“तिलिस्मा का नहीं ये मेरे कैस्पर का कमाल है।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा।
“अरे वाह, संकट में भी तुम अपने कैस्पर को नहीं भूली...अरे जरा ध्यान लगा कर अपने चारो ओर देखो, हम इस समय किसी बड़े से पिंजरे में बंद हैं। अब जरा कुछ देर के लिये कैस्पर को भूल जाओ।” जेनिथ ने मुस्कुराते हुए शैफाली को आसपास की स्थिति का अवलोकन कराया।
अब शैफाली की नजर अपने चारो ओर गई, इस समय वह लोग एक बड़ी सी चट्टान पर रखे एक विशाल पिंजरे में थे।
उस पिंजरे के दरवाजे पर एक 4 डिजिट का नम्बर वाला ताला लगा था। उस ताले के ऊपर लाल रंग की एल.ई.डी. से 3 लिखकर आ रहा था।
“कैप्टेन यह डिजिटल ताला तो समझ में आया, पर यहां 3 क्यों लिखा है?” क्रिस्टी ने सुयश से पूछा।
“मुझे लग रहा है कि शायद हम 3 बार ही इसके नम्बर को ट्राई कर सकते हैं।” शैफाली ने बीच में ही बोलते हुए कहा- “मतलब 3 बार में ही हमें इस ताले को खोलना होगा और अगर नहीं खोल पाये तो हम यहीं फंसे रह जायेंगे।”
“दोस्तों पहले हमें सभी चीजों को एक बार ध्यान से देखना होगा, तभी हम उन चीजों का सही से उपयोग कर पायेंगे।” सुयश ने सभी को नियम याद दिलाते हुए कहा।
“आप सही कह रहे हैं कैप्टेन।” तौफीक ने कहा- “तो सबसे पहले पिंजरे पर ही ध्यान देते हैं....पिंजरे के अंदर कुछ भी नहीं है और यह 6 तरफ से किसी वर्गाकार डिब्बे की तरह है...यह किसी धातु की सुनहरी
सलाखों से बना है...इन सलाखों के बीच में इतना गैप नहीं है कि कोई यहां से बाहर निकल सके...अब आते हैं बाहर की ओर....बाहर हमारे दाहिनी ओर, हमें कुछ दूरी पर एक जलपरी की मूर्ति दिख रही है।
“हमारे बांई ओर एक दरवाजा बना है, जो कि बंद है। शायद यही हमारे निकलने का द्वार हो , मगर दरवाजे पर एक ताला लगा है, जिस पर एक चाबी लगने की जगह भी दिखाई दे रही है। हमारे पीछे की ओर दूर-दूर तक पानी है...अब उसके आगे भी अगर कुछ हो तो कह नहीं सकते?” इतना कहकर तौफीक चुप हो गया।
“कैप्टेन कुछ चीजें मैं भी इसमें जोड़ना चाहता हूं।” ऐलेक्स ने कहा- “हमारे सामने की ओर कुछ दूरी पर मौजूद एक पत्थर पर एक छोटा सा बॉक्स रखा है, पता नहीं उसमें क्या है? और मैंने अभी-अभी पानी में
अल्ट्रासोनिक तरंगे महसूस कीं.... जो शायद किसी डॉल्फिन के यहां होने का इशारा कर रही है। और इस सामने वाले दरवाजे की चाबी, उस जलपरी वाली मूर्ति की मुठ्ठी में बंद है, उसका थोड़ा सा सिरा बाहर निकला है, जो कि मुझे यहां से दिख रहा है।”
“अरे वाह, ऐलेक्स ने तो कई गुत्थियों को सुलझा दिया।” क्रिस्टी ने खुश होते हुए कहा- “इसका मतलब हमें इस द्वार को पार करने के लिये पहले इस पिंजरे से निकलना होगा और पिंजरे से निकलने के लिये पहले हमें 4 अंकों का कोड चाहिये होगा।....पर वह कोड हो कहां सकता है?” क्रिस्टी यह कहकर चारो ओर देखने लगी, पर उसे कोड जैसा कुछ भी दिखाई नहीं दिया।
“मुझे लगता है कि हमारे सामने की ओर पत्थर पर जो बॉक्स रखा है, अवश्य ही हमारे पिंजरे का कोड उसी में होगा?” शैफाली ने बॉक्स की ओर इशारा करते हुए कहा- “पर बिना पिंजरे से निकले तो हम उस बॉक्स तक पहुंच भी नहीं सकते.... फिर...फिर उस बॉक्स को कैसे खोला जा सकता है?”
“कुछ ना कुछ तो हमारे आस-पास जरुर है जो कि हम देख नहीं पा रहे हैं?” सुयश मन ही मन बुदबुदाया।
तभी जेनिथ को पिंजरे में एक जगह पर पतली डोरी लटकती दिखाई दी, जेनिथ ने सिर ऊपर उठाकर उस डोरी का स्रोत जानने के कोशिश की।
पर सिर ऊपर उठाते ही वह मुस्कुरा दी क्यों कि ऊपर पिंजरे की सलाखों से चिपका उसे ‘फिशिंग रॉड’ दिखाई दे गया।
जेनिथ ने सुयश को इशारा करके वह फिशिंग रॉड दिखाई।
चूंकि वह फिशिंग रॉड पिंजरे की छत पर थी और पिंजरे के छत की ऊंचाई 10 फुट के पास थी, इसलिये सुयश ने शैफाली को अपने कंधों पर उठा लिया।
शैफाली ने उस फिशिंग रॉड को पिंजरे के ऊपर से खोल लिया।
फिशिंग रॉड के आगे वाले भाग में एक हुक बंधा था और डोरी के लिये एक चकरी लगी थी।
“हहममममम् फिशिंग रॉड तो हमें मिल गयी, पर इसमें मौजूद डोरी तो मात्र 10 मीटर ही है। जबकि वह बॉक्स हमसे कम से कम 20 मीटर की दूरी पर है। यानि कि हम अब भी इस फिशिंग रॉड के द्वारा उस बॉक्स तक नहीं पहुंच सकते। हमें कोई और ही तरीका ढूंढना पड़ेगा।” सुयश ने लंबी साँस भरते हुए कहा।
तभी शैफाली की नजर अपने दाहिनी ओर जमीन पर लगी हरे रंग की घास की ओर गई। उस घास को देखकर शैफाली को एक झटका लगा, अब वह तेजी से अपने चारो ओर देखने लगी।
उसे ऐसा करते देख सुयश ने हैरानी से कहा- “क्या हुआ शैफाली? तुम क्या ढूंढने की कोशिश कर रही हो?”
“यह जो घास सामने मौजूद है, इसे ‘टर्टल ग्रास’ कहते हैं, यह घास वयस्क समुद्री कछुए खाते हैं। अब उस घास के बीच में कटी हुई घास का एक छोटा सा गठ्ठर रखा है, जो कि ध्यान से देखने पर ही दिख रहा है। अब बात ये है कि ये जगह प्राकृतिक नहीं है, बल्कि कैश्वर द्वारा बनायी गयी है, अब कैश्वर ऐसे किसी चीज का तो निर्माण नहीं करेगा, जिसका कोई मतलब ना हो। यानि कि हमारे आस-पास जरुर कोई कछुआ भी है। मैं उसी कछुए को ढूंढ रही थी।”
शैफाली की बात सुन ऐलेक्स ने अपनी आँखें बंद करके अपनी नाक पर जोर देना शुरु कर दिया।
शायद वह कछुए की गंध सूंघने की कोशिश कर रहा था। कुछ ही देर में ऐलेक्स ने अपनी आँखें खोल दीं, मगर अब उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी।
“शैफाली सही कह रही है कैप्टेन... हमारे पास एक कछुआ है।” ऐलेक्स के चेहरे पर अभी भी मुस्कान बिखरी थी। ऐलेक्स की बात सुन सभी उसकी ओर देखने लगे।
“कैप्टेन, हमारा पिंजरा जिस पत्थर पर रखा है, वह पत्थर नहीं बल्कि एक विशाल कछुआ ही है। मैंने उसकी गंध पहचान ली है।” ऐलेक्स ने सस्पेंस खोलते हुए कहा।
अब सबका ध्यान उस विशाल कछुए की ओर गया।
“अगर यह कछुआ है तो अब हम उस बॉक्स तक पहुंच सकते हैं।” शैफाली ने कहा और सुयश के हाथ में पकड़ा फिशिंग रॉड तौफीक को देते हुए कहा- “तौफीक अंकल, जरा अपने निशाने का कमाल दिखाकर इस फिशिंग रॉड से उस घास के गठ्ठर को उठाइये।”
घास का वह गठ्ठर पिंजरे से मात्र 8 मीटर की ही दूरी पर था और इतनी कम दूरी से घास को उठाना तौफीक के बाएं हाथ का खेल था।
बामुश्किल 5 मिनट में ही वह घास का गठ्ठर तौफीक के हाथों में था। तौफीक ने वह घास का गठ्ठर शैफाली को पकड़ा दिया।
शैफाली ने उस घास के गठ्ठर को अच्छी तरह से फिशिंग रॉड के आगे वाले हुक में बांध दिया और अपना एक हाथ बाहर निकालकर, उस घास के गठ्ठर को कछुए के मुंह के सामने लहराया। घास का गठ्ठर देख कछुए ने अपना सिर गर्दन से बाहर निकाल लिया।
अब वह आगे बढ़कर घास को खाने की कोशिश करने लगा, पर जैसे ही वह कछुआ आगे बढ़ता उसके आगे लटक रहा घास का गठ्ठर स्वतः ही और आगे बढ़ जाता।
और इस प्रकार से शैफाली उस कछुए को लेकर पत्थर के पास वाले बॉक्स तक पहुंच गई। अब शैफाली ने फिशिंग रॉड को वापस पिंजरे में खींच लिया।
फिशिंग रॉड के खींचते ही कछुआ फिर से पत्थर बनकर वहीं बैठ गया।
शैफाली ने फिशिंग रॉड के हुक से घास का गठ्ठर हटाकर फिशिंग रॉड एक बार फिर तौफीक के हाथों में दे दी।
“तौफीक अंकल अब आपको इस फिशिंग रॉड से उस बॉक्स को उठाना है, ध्यान से देख लीजिये उस बॉक्स के ऊपर एक छोटा सा रिंग जुड़ा हुआ है, आपको फिशिंग रॉड का हुक उस रिंग में ही फंसाना है।”
शैफाली ने तौफीक से कहा।
तौफीक ने धीरे से सिर हिलाया और एक बार फिर नयी कोशिश में जुट गया।
यह कार्य पहले वाले कार्य से थोड़ा मुश्किल था, पर तौफीक ने इस कार्य को भी आसान बना दिया।
बॉक्स का आकार, पिंजरे में लगे सरियों के गैप से ज्यादा था, इसलिये वह बॉक्स अंदर नहीं आ सकता था।
अतः शैफाली ने उसे पिंजरे के बाहर ही खोल लिया।
उस बॉक्स में एक छोटा सा रोल किया हुआ सुनहरी धातु का एक पतला कागज सा था, जिस पर ताले का कोड नहीं बल्कि एक कविता की पंक्तियां लिखीं थीं, जो कि इस प्रकार थी-
“जीव, अंक सब तुमको अर्पण,
जब देखोगे जल में दर्पण।”
Bilkul bhai , Vedant rahasyam likhne ka main maksad hi yahi tha ki purani yaade taaja ho sake aage aur update bhi aa chuke hai mitra Thank you very much for your valuable review and support
Bhut hi badhiya update Bhai
Suyash and team ne apne dimag ka use karke is octopus vali samasya ko bhi paar kar liya
Aur pab ye log pahuch gaye hai agli problem par
“हे भगवान, ये कैश्वर भी ना...हम लोगों की जान लेकर ही मानेगा।” ऐलेक्स ने झुंझलाते हुए कहा- “अब ये एक नयी पहेली आ गई।”
“मुझे लगता है कि यहीं कहीं पानी में कोई दर्पण रखा है, जिस पर इस ताले का कोड लिखा होगा ?” शैफाली ने कहा- “पर मुश्किल यह है कि अब उस दर्पण को इतने बड़े सागर में कहां ढूंढे?”
“यहां हम अपने आस-पास की सारी चीजें देख चुके हैं।” जेनिथ ने शैफाली को समझाते हुए कहा- “हमारे दाहिनी, बांयी और सामने की ओर पत्थर ही हैं, मुझे लगता है कि हमें इस कछुए को पीछे की ओर ले चलना पड़ेगा, शायद उस दिशा में ही कहीं इस ताले का कोड हो?”
“शैफाली, जेनिथ सही कह रही है, तुम्हें इस कछुए को पीछे की ओर लेकर चलना होगा।” सुयश ने शैफाली से कहा।
शैफाली ने एक बार फिर फिशिंग रॉड को घास के गठ्ठर के साथ बाहर निकाला और कछुए को लेकर पीछे की ओर चल दी।
कुछ पीछे चलने के बाद सभी को एक ऊचे से पत्थर के पास कुछ चमकती हुई रोशनी सी दिखाई दी।
सुयश ने शैफाली को उस दिशा में चलने का इशारा किया। शैफाली ने कछुए को उस दिशा में मोड़ लिया।
पास पहुंचने पर सभी खुश हो गये, क्यों कि सामने एक संकरे से रास्ते के बाद, पत्थर पर सुनहरे रंग के 4 अंक चमक रहे थे और वह अंक थे ‘8018’
“मिल गया ऽऽऽऽऽ! हमें ताले का कोड मिल गया।” ऐलेक्स ने खुशी भरे स्वर में चिल्ला कर कहा।
“रुक जाओ।” सुयश ने चिल्ला कर कहा- “पहले इस कोड को ठीक से देखने दो, क्यों कि हमारे पास केवल 3 चांस ही हैं।”
“पर कैप्टेन, कोड तो बिल्कुल साफ दिख रहा है, अब इसमें इतना सोचने वाली क्या बात है?” ऐलेक्स ने उत्साहित शब्दों में कहा।
“साफ तो दिख रहा है, पर ध्यान से देखों इस कोड के अंको को। इस पर लिखे अंक साधारणतया ‘कर्शिव’ (घुमावदार) राइटिंग में होने चाहिये थे, पर यह सारे अंक सीधी लाइनों से बनाये गये हैं और ऐसा हमें सिर्फ
डिजिटल चीजों में ही दिखता है। दूसरी बात मुझे यह भी विश्वास नहीं हो रहा कि यह कोड इतनी आसानी से हमें कैसे मिल गया? सुयश ने शंकित स्वर में कहा।
“कैप्टेन, क्या मैं इस कोड को ताले पर लगा कर देखूं?” जेनिथ ने सुयश से पूछते हुए कहा।
कुछ देर सोचने के बाद सुयश ने हां कर दी।
जेनिथ ने ताले पर 8018 लगा दिया....पर.....पर ताला नहीं
खुला, बल्कि अब उसके ऊपर 2 लिखकर आने लगा, यानि की अब बस 2 चांस और बचे थे।
“आई न्यू इट.....तभी मैं कह रहा था कि कुछ तो गड़बड़ है।” सुयश ने झुंझलाते हुए कहा- “हमें कविता की पंक्तियों पर फिर से ध्यान देना होगा। उसकी पहली पंक्ति तो पूरी हो चुकी है, मतलब जीव यानि कि कछुआ और अंक यानि की यह अंक हमें मिल चुके हैं, अब बची दूसरी पंक्ति ‘जब देखोगे जल में दर्पण’ ....मतलब हमें जो अंक पत्थर पर चमकते दिखाई दे रहे हैं, वह किसी दर्पण से परावर्तित हो कर आ रहे हैं,
यानि कि असली अक्षर 8018 नहीं बल्कि 8108 होना चाहिये।”
“क्या इस नम्बर को भी कोशिश करके देखें कैप्टेन?” जेनिथ ने सुयश की ओर देखते हुए कहा।
“जरा रुक जाओ जेनिथ।” सुयश ने जेनिथ को रोकते हुए कहा- “शैफाली क्या तुम्हारा कछुआ और आगे नहीं जा सकता, क्यों कि हमारे सामने दिख रहे अंक कहीं से तो परावर्तित होकर आ रहे हैं...तो अगर
हमें असली अंक दिख जाएं, तो सारी मुश्किल ही खत्म हो जायेगी।”
“नहीं कैप्टेन अंकल, आगे का रास्ता बहुत संकरा है और इस कछुए का आकार बड़ा...इसलिये यह कछुआ इससे आगे नहीं जा सकता और अगर हमने इस कछुए को पत्थर पर चढ़ाने की कोशिश की तो हमारा
पिंजरा इसकी पीठ से गिर भी सकता है, और वो स्थिति हमारे लिये और खतरनाक होगी।” शैफाली ने सुयश से कहा।
शैफाली का तर्क सही था, इसलिये सुयश ने कुछ कहा नहीं और वह फिर से सोचने लगा।
“अगर कोई अंक दर्पण में दिखाई देता है, तो वह 2 प्रकार का ही हो सकता है, यानि कि या तो उल्टा या फिर सीधा।” तौफीक ने अपना तर्क देते हुए कहा- “अब एक तरीका तो हम लोग अपना ही चुके है, तो दूसरा तरीका ही सही होगा।....मुझे नहीं लगता कि बहुत ज्यादा सोचने की जरुरत है कैप्टेन।”
तौफीक की बात सुन सुयश ने फिर अपना सिर हिला दिया।
सुयश के सिर हिलाते ही जेनिथ फिर दरवाजे के लॉक की ओर बढ़ गई।
जेनिथ ने इस बार 8108 लगाया, पर फिर यह कोड गलत था। अब उस ताले के ऊपर 1 लिखकर आने लगा। अब तो सबकी साँसें सूख गईं।
“अब हम फंस गयें हैं कैप्टेन।” क्रिस्टी ने कहा- “क्यों कि हमने कोड को दोनो तरीके से लगाकर देख लिया है....अब तो कोई ऑप्शन नहीं बचा।.....मुझे तो लग रहा है कि पत्थर पर दिख रहा यह कोड किसी और चीज का है? जो कि कैश्वर ने हमें भ्रमित करने के लिये रखा था। असली कोड कहीं और छिपा है?”
“नहीं ! ऐसा नहीं हो सकता....हमें किसी चीज निर्माण करते समय चीटिंग करना नहीं सिखाया गया था.... हमारे दरवाजे का कोड तो यही है, पर हम कहीं गलती कर रहे हैं?” शैफाली के शब्दों में दृढ़ता नजर आ रही थी।
ऐलेक्स को शैफाली के शब्दों पर पूरा भरोसा था, अब वह ध्यान से पत्थर पर मौजूद उन अंको को फिर से देखने लगा।
ऐलेक्स लगातार 2 मिनट तक उस पत्थर पर लिखी संख्या को देखता रहा और फिर उसके चेहरे पर मुस्कान बिखर गई।
क्रिस्टी ऐलेक्स के चेहरे की मुस्कान देखकर समझ गई कि ऐलेक्स ने फिर कोई रहस्य जान लिया है।
ऐलेक्स बिना किसी से बोले, पिंजरे के लॉक तक पहुंचा और फिर एक कोड लगाने लगा।
इससे पहले कि कोई ऐलेक्स को रोक पाता, ऐलेक्स ने वह लॉक खोल दिया था।
लॉक को खुलते देख, सभी आश्चर्य से ऐलेक्स को देखने लगे।
क्रिस्टी तो दौड़कर ऐलेक्स के गले ही लग गई और ऐलेक्स का माथा चूमते हुए बोली- “मैं तो पहले ही कहती थी कि मेरे ब्वॉयफ्रेंड का दिमाग सबसे तेज है।”
“ये कब कहा तुमने?” ऐलेक्स ने नकली आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा- “मैंने तो ऐसे शब्द पहले कभी नहीं सुने।”
“अरे ये पप्पियां -झप्पियां बाद में कर लेना।” जेनिथ ने बीच में घुसते हुए कहा- “पहले हमें ये बताओ कि असली कोड था क्या?”
“असली कोड था- 8010” ऐलेक्स ने जेनिथ की ओर देखते हुए कहा- “और वह दर्पण का परावर्तन नहीं था, बल्कि काँच के पारदर्शी टुकड़े के पार आयी परछाई थी।”
“तो इससे अंक कैसे बदल गया?” सुयश ने ऐलेक्स को बीच में ही टोकते हुए कहा।
“आसान शब्दों में बताता हूं कैप्टेन।” ऐलेक्स ने कहा- “असल में हमने सबसे पहले पत्थर पर ‘8018’ लिखा देखा, पर जब वह संख्या सही नहीं निकली, तो हमने ये समझा कि शायद वह संख्या कहीं दर्पण पर लिखी है और उस दर्पण पर पड़ने वाली रोशनी की वजह से, हमें उसका उल्टा प्रतिबिम्ब दिख रहा है, यह सोच हमने ‘8108’ ट्राई किया। पर वह संख्या भी गलत निकली।
“अब इन 2 संख्याओं के अलावा और कोई संख्या संभव नहीं थी। तब मैंने ध्यान से उस अंक को कुछ देर तक देखा, तो मुझे उस संख्या के आखिरी अंक पर एक समुद्री कीड़ा बैठा दिखाई दिया। जो कि मेरे ध्यान से देखने पर, एक बार हिलता नजर आया। तब मुझे पता चला कि असल में सही अंक ‘8010’ है, पर समुद्री कीड़े के बैठ जाने की वजह से, वह हमें ‘8018’ दिखने लगी थी। अब मैंने और ध्यान से उस अंक को देखा, तो मुझे पता चला कि वह संख्या उसी पत्थर के ऊपर रखे एक काँच के टुकड़े पर लिखी थी, जिस पर ऊपर से रोशनी पड़ने की वजह से उसका प्रतिबिम्ब हमें नीचे दिखाई दे रहा था।
“अब मैं आपको साधारण शीशे और दर्पण के परावर्तन का अंतर बताता हूं। अगर किसी दर्पण पर कुछ लिखकर उस पर प्रकाश मारा जाये, तो जहां भी उस दर्पण का परावर्तित प्रकाश गिरेगा, वह उस लिखे हुए अंक को उल्टा दिखायेगा। परंतु अगर हम किसी पारदर्शी शीशे पर कुछ लिखकर उस पर प्रकाश मारें, तो उसके पार जाने वाला प्रकाश उन लिखे हुए अंकों को सीधा ही दिखायेगा।”
“अब मैं समझ गया कि यहां लिखे अंक सीधी लाइनों से क्यों बनाये गये थे? क्यों कि सीधी लाइन से बने ‘0’ को आसानी से ‘8’ में बदला जा सकता था।” सुयश ने मुस्कुराते हुए कहा- “चलो...अच्छी बात है कि कम
से कम दरवाजा तो खुल गया। यह कहकर सुयश पिंजरे का दरवाजा खोलकर बाहर आ गया।
सुयश के पीछे-पीछे बाकी लोग भी बाहर आ गये। सभी के बाहर आते ही कछुआ, फिशिंग रॉड और पिंजरे के साथ कहीं गायब हो गया।
“लगता है कि कछुए का काम पूरा हो गया।” सुयश ने कहा- “अब हमें सबसे पहले इस द्वार को पार करने के लिये जलपरी के हाथ में पकड़ी चाबी चाहिये।” यह कहकर सुयश जलपरी की मूर्ति की ओर बढ़ गया।
जलपरी की वह मूर्ति एक पत्थर पर बैठी थी। जलपरी के हाथ की मुठ्ठी बंद थी और उसके मुठ्ठी के एक किनारे से चाबी थोड़ी सी दिख रही थी।
सुयश ने जलपरी के हाथ से उस चाबी को निकालने का बहुत प्रयत्न किया, पर सब बेकार गया। चाबी जलपरी के हाथ से ना निकली।
“लगता है कि अभी कोई और पेंच भी बाकी है?” शैफाली ने कहा- “मुझे नहीं लगता कि हम ऐसे मूर्ति के हाथ से चाबी निकाल पायेंगे। मुझे लगता है कि या तो इस जलपरी को जिंदा करके, इसके हाथ से चाबी निकालना है? या फिर यहां पर अवश्य ही कोई ऐसा यंत्र छिपा होगा, जिसके द्वारा मूर्ति के हाथ से चाबी निकालना होगा?”
“शैफाली सही कह रही है, हमें थोड़ा आगे घूमकर आना चाहिये, अवश्य ही इसका उपाय कहीं ना कहीं होगा?” जेनिथ ने कहा।
जेनिथ की बात से सभी सहमत थे, इसलिये सभी उठकर आगे की ओर चल दिये।
कुछ आगे जाने पर सभी को पानी में, एक नीले रंग का 15 फुट का, गोल गुब्बारा दिखाई दिया, जिसमें हवा भरी थी और वह इसकी वजह से पानी की लहरों पर इधर-उधर तैर रहा था।
“इस गुब्बारे में कुछ ना कुछ तो है?” सुयश ने कहा- “पर पहले और आगे देख लें, फिर इस गुब्बारे के बारे में सोचेंगे।”
सुयश की बात सुन सभी और आगे बढ़ गये।
कुछ आगे जाने पर सभी को एक बड़ी सी काँच की नकली व्हेल मछली दिखाई दी, जिसके अंदर की हर चीज बाहर से साफ दिखाई दे रही थी।
उस व्हेल का मुंह पूरा गोल था और उसके बड़े-बड़े तलवार जैसे दाँत दूर से ही चमक रहे थे।
वह व्हेल अपना मुंह 1 सेकेण्ड के लिये खोलती और फिर तेजी से बंद कर लेती।
यह क्रम बार-बार चल रहा था। व्हेल जब भी अपना मुंह बंद करती, पानी में एक जोर की आवाज गूंज रही थी।
“यह क्या आफत है?” तौफीक ने व्हेल को देखते हुए कहा- “अब ये ना हो कि इस व्हेल के पेट में कोई चीज हो और हमें उसे लेने जाना पड़े?”
“आपका सोचना बिल्कुल सही है तौफीक भाई।” ऐलेक्स ने मुस्कुराते हुए कहा- “मुझे इस व्हेल के पेट में एक काँच की बोतल रखी दिखाई दे रही है, जिसमें कोई द्रव भरा है और उस बोतल पर एक जलपरी
की तस्वीर भी बनी है।”
“फिर तो पक्का उसी द्रव को पिलाने से वह जलपरी जीवित होगी।” शैफाली ने कहा- “पर उस बोतल को लाना तो बहुत ही मुश्किल है, यह व्हेल तो मात्र 1 सेकेण्ड के लिये अपना मुंह खोल रही है और इतने कम समय में हममें से कोई भी तैर कर इस व्हेल के मुंह में नहीं जा सकता।”
“पर डॉल्फिन तो जा सकती है।” ऐलेक्स ने शैफाली से पूछा- “जो कि इस समय उस गुब्बारे के अंदर है।”
“हां डॉल्फिन चाहे तो इतनी स्पीड से अंदर जा सकती है, पर वह बोतल कैसे उठायेगी?” शैफाली ने सोचते हुए कहा।
“चलो पहले गुब्बारे से डॉल्फिन को निकाल तो लें, फिर सोचेंगे कि करना क्या है?” सुयश ने कहा और उस गुब्बारे की ओर चल दिया।
गुब्बारे के पास पहुंचकर सुयश ने तौफीक को गुब्बारा फोड़ने का इशारा किया।
तौफीक ने अपने हाथ में पकड़े चाकू से गुब्बारे को फोड़ दिया।
ऐलेक्स का कहना बिल्कुल सही था, उस गुब्बारे में एक 8 फुट की नीले रंग की सुंदर सी डॉल्फिन थी।
डॉल्फिन बाहर निकलते ही सभी के चारो ओर घूमने लगी, फिर डॉल्फिन ने एक जोर का चक्कर लगाया और सीधे व्हेल के खुले मुंह से अंदर जा घुसी। डॉल्फिन की स्पीड देखकर सभी खुश हो गये।
“डॉल्फिन की स्पीड तो बहुत अच्छी है, पर उससे बोतल मंगाना कैसे है?” क्रिस्टी ने सभी की ओर देखते हुए कहा।
“यह काम मैं करुंगी।” जेनिथ ने अपना हाथ ऊपर उठाते हुए कहा। सभी आश्चर्य से जेनिथ की ओर देखने लगे।
उन्हें अपनी ओर देखते पाकर जेनिथ बोल उठी- “मैं इस डॉल्फिन के शरीर से चिपककर इस व्हेल के मुंह को पार करुंगी। अगर मुझे कहीं चोट लग भी गई तो नक्षत्रा मुझे ठीक कर देगा।”
“वो तो ठीक है जेनिथ दीदी, पर इस डॉल्फिन के शरीर से चिपककर बैठे रहना बहुत मुश्किल है, यह सिर्फ वही इंसान कर सकता है जो कि पहले भी डॉल्फिन की सैकड़ों बार सवारी कर चुका हो।” शैफाली ने जेनिथ की ओर देखते हुए कहा।
“ऐसा कौन है अपने पास?” ऐलेक्स ने चारो ओर देखते हुए कहा।
“क्या ऐलेक्स भैया, आप सिर्फ शैफाली को ही याद करते हैं...कभी-कभी मैग्ना को भी याद कर लिया कीजिये।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा।
शैफाली की बात सुन अब सबके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
शैफाली ने अब अपने मुंह गोल करके ना जाने क्या किया कि डॉल्फिन सीधा व्हेल के मुंह से निकलकर उसके पास आ गई।
शैफाली ने धीरे से डॉल्फिन की पीठ थपथपाई और एक झटके से उसकी पीठ पर सवार हो गई।
शैफाली थोड़ी देर तक पानी में इधर-उधर तैरती रही और फिर उसने अपना शरीर डॉल्फिन के शरीर से बिल्कुल चिपका लिया और एक झटके से व्हेल के मुंह में प्रवेश कर गई।
शैफाली की गति इतनी तेज थी कि यदि वह व्हेल आधे सेकेण्ड में भी अपना मुंह बंद करती, तब भी शैफाली सुरक्षित उसके मुंह में चली जाती।
कुछ ही देर में शैफाली उस द्रव्य की बोतल लेकर बाहर आ गई।
सभी अब वह बोतल ले जलपरी की ओर चल दिये। जलपरी के पास पहुंच कर शैफाली ने उस द्रव्य की बोतल को खोलकर उसे जलपरी के मुंह से लगा दिया।
आश्चर्यजनक तरीके से बोतल का पूरा द्रव्य उस जलपरी ने खाली कर दिया।
पूरा द्रव्य पीने के बाद वह जलपरी अब जीवित हो गई।
उसने एक बार अपने सामने मौजूद सभी को देखा और अपनी मुठ्ठी में बंद चाबी को शैफाली के हवाले कर दिया।
चाबी देने के बाद वह जलपरी उछलकर डॉल्फिन पर बैठी और वहां से गायब हो गई।
“भगवान का शुक्र है कि इस जलपरी ने हम पर हमला नहीं किया।” ऐलेक्स ने क्रिस्टी को चिकोटी काटते हुए कहा।
“उफ् ... तुमने मुझे चिकोटी काटी, मैं तुम्हारा मुंह नोंच लूंगी।” यह कहकर क्रिस्टी, ऐलेक्स की ओर झपटी, पर ऐलेक्स पहले से ही तैयार था, वह अपनी जान छुड़ा कर वहां से भागा।
इधर क्रिस्टी और ऐलेक्स की मस्ती चल रही थी, उधर शैफाली ने उस चाबी से तिलिस्मा का अगला द्वार खोल दिया।
द्धार खुलते देख ऐलेक्स भागकर सबसे पहले द्वार में घुस गया।
क्रिस्टी मुंह बनाकर सबके साथ उस द्वार मंल प्रवेश कर गई।
“शलाका-शलाका, तुम अभी तक तैयार नहीं हुई क्या? जल्दी से बाहर मंदिर के पास वापस आ जाओ। पूजा का समय निकला जा रहा है।” आर्यन ने शलाका को आवाज देते हुए कहा।
तभी शलाका कमरे से निकलकर मंदिर के पास पहुंच गई। इस समय वह बहुत खूबसूरत लग रही थी, पर उसके चेहरे पर उदासी सी छाई थी।
“क्या हुआ शलाका, आज तो इतनी खुशी का दिन है, तुम फिर भी क्यों उदास हो?” आर्यन ने शलाका से पूछा।
“नहीं...नहीं ऐसी कोई बात नहीं...मैं बिल्कुल ठीक हूं और खुश भी हूं.... और आज भी खुश नहीं होऊंगी, तो कब होऊंगी, आज तो मुझे वो मिला, जिसकी मैं हमेशा से हकदार थी।” शलाका ने कहा- “लाओ कहां है अमृत...?” यह कहकर शलाका ने सामने रखी एक शीशी को उठा कर बिना आर्यन से पूछे पी लिया।
आर्यन हक्का-बक्का सा शलाका को देख रहा था।
अचानक आर्यन का चेहरा गुस्से से धधकने लगा- “कौन हो तुम? तुम शलाका नहीं हो सकती।”
अचानक से आर्यन का बदला रुप देख शलाका डर गई- “यह तुम एकदम से क्या कहने लगे आर्यन? मैं शलाका हूं, तुम्हारी शलाका। तुम मुझ पर ऐसे अविश्वास क्यों प्रकट कर रहे हो?”
“क्यों कि मेरे और शलाका के बीच एक बार इस बात पर काफी विवाद हुआ था कि अगर अमृत मिले, तो उसे पहले कौन पीयेगा? वो चाहती थी कि पहले मैं पीयूं और मैं चाहता था कि पहले वो पिये? और इस
विवाद में वह जीत गई थी, जिसकी वजह से यह तय हो चुका था कि पहले अमृत मैं पीयूंगा।...पर तुम्हारे इस व्यवहार ने यह साबित कर दिया कि तुम शलाका हो ही नहीं सकती, वो इतनी महत्वाकांक्षी नहीं थी अब तुम सीधी तरह से बता दो कि कौन हो तुम? नहीं तो तुम मेरी शक्तियों के बारे में तो जानती ही होगी।”
इतना कहते ही आर्यन की दोनों मुठ्ठियां सूर्य सी रोशनी बिखेरने लगीं।
आर्यन अपने शब्दों को चबा-चबा कर कह रहा था। गुस्से की अधिकता से उसके होंठ फूल-पिचक रहे थे।
आर्यन का यह रुप देख, शलाका बनी आकृति बहुत ज्यादा घबरा गई।
“मैं...मैं आकृति हूं....मैं शलाका बनकर यहां बस कुछ ढूंढने आयी थी....मैं...मैं तुम्हारे साथ वो सब भी नहीं करना चाहती थी....पर तुमने मुझे कुछ बोलने और समझाने का समय ही नहीं दिया....मैं क्या करती? और आर्यन तुम तो जानते हो कि मैं तुम्हें पागलों के समान प्यार करती थी...करती हूं...और अमरत्व पीने के बाद सदियों तक करती रहूंगी। चाहे तुम मुझे प्यार करो या ना करो....मुझे जो चाहिये था, मुझे मिल गया....अब मैं कभी तुम्हारी जिंदगी में नहीं आऊंगी।”
“अब तुम मेरी जिंदगी में तब आओगी ना, जब तुम यहां से जिंदा वापस जाओगी।” यह कहकर आर्यन गुर्राते हुए आकृति पर झपटा, परंतु तभी एक रोशनी का गोला चमका और आकृति अपनी जगह से गायब हो गई।
आर्यन अब अपने सिर पर हाथ रखकर जोर-जोर से रो रहा था। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि एक रात में उसकी पूरी जिंदगी बदल गई।
“मैं अब शलाका को क्या जवाब दूंगा?....वो पूछेगी कि अमृत की 1 बूंद क्यों लाये, तो मैं उससे क्या कहूंगा और कहीं...........और कहीं शलाका को इस रात का पता चल गया तो वो मेरे बारे में क्या सोचेगी? कि प्रकृति को महसूस करने वाला आर्यन...अपनी पत्नि को ही महसूस नहीं कर पाया।....अब मैं क्या करुं? .....नहीं-नहीं....अब सब कुछ खत्म हो गया है...अब मैं और शलाका एक साथ नहीं रह सकते...और वैसे
भी अमृत की एक बूंद से कोई एक ही सदियों तक जिंदा रह पायेगा और ब्रह्मदेव के अनुसार एक व्यक्ति दोबारा कभी जिंदगी में अमृत प्राप्त नहीं कर सकता....मैं....मैं शलाका के आने के पहले ही यहां से भाग जाता हूं.....वो जान ही नहीं पायेगी कि मैं वापस भी आया था।...हां... हां यही ठीक रहेगा।”
तभी आर्यन के पीछे से आवाज उभरी- “अरे वाह आर्यन, तुम वापस आ गये। कितनी खुशी की बात है।”
यह आवाज असली शलाका की थी। शलाका पीछे से आकर आर्यन से लिपट गई।
उसे ऐसा करते देख आर्यन ने धीरे से दूसरी अमृत की शीशी चुपचाप छिपा कर अपनी जेब में डाल ली।
“आर्यन क्या तुमने अमृत प्राप्त कर लिया?” शलाका ने आर्यन के बालों को सहलाते हुए पूछा।
“नही, मैं उसे नहीं ला पाया।” आर्यन ने जवाब दिया।
“चलो अच्छा ही हुआ। अरे जो मजा साधारण इंसान की तरह से जिंदगी जीने में है, वह मजा अमरत्व में कहां।” शलाका ने खुश होते हुए कहा- “और वैसे भी अमरत्व ढूंढने में अगर तुम अपनी आधी जिंदगी लगा
देते और अमरत्व भी ना मिलता, तो हम साधारण इंसान की जिंदगी भी नहीं जी पाते। इसलिये तुमने लौटकर बहुत अच्छा किया।”
आर्यन, आकृति और शलाका के बीच का अंतर बहुत स्पष्ट महसूस कर रहा था।
आर्यन ने धीरे से शलाका को स्वयं से अलग कर दिया और बेड पर जाकर बैठ गया।
शलाका ने आर्यन के इस बदलाव को तुरंत महसूस कर लिया।
“क्या हुआ आर्यन, तुम मुझसे दूर क्यों भाग रहे हो?” शलाका ने ध्यान से आर्यन को देखते हुए कहा- “सब कुछ ठीक तो है ना आर्यन? पता नहीं क्यों अचानक मुझे बहुत घबराहट होने लगी है।”
“सबकुछ ठीक है शलाका। तुम परेशान मत हो, वो दरअसल अमृत प्राप्त करने के लिये 1 वर्ष तक, मुझे ब्रह्मदेव को खुश करने के लिये, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ेगा। इसीलिये मैंने तुम्हें हटाया और कोई खास बात नहीं है।” आर्यन ने साफ झूठ बोलते हुए कहा।
“चलो, फिर तो कोई परेशानी की बात नहीं है...पर ये बताओ कि 1 वर्ष के बाद तो मुझे प्यार करोगे ना?” शलाका ने आर्यन की आँखों में झांकते हुए कहा।
पर आर्यन ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया और वहां से उठकर अंदर वाले कमरे की ओर बढ़ गया।
इसके बाद शलाका वापस वेदांत रहस्यम् किताब के पास लौट आयी, पर रोते-रोते उसकी आँखें अब सूज गईं थीं।
इस समय शलाका को ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे उसकी किसी ने जान ही निकाल ली हो।
शलाका ने जल्दी-जल्दी कुछ पन्ने पलटे और फिर एक पन्ने पर जा कर उसकी आँखें टिक गईं।
उस पन्ने पर आर्यन के हाथों में एक बालक था, यह देख शलाका ने तुरंत उस पन्ने पर मौजूद चित्र को छूकर, उस काल में चली गई।
“रुक जाओ आर्यन, मुझे मेरा बालक वापस कर दो, मैंने कहा था कि मैं तुम्हारे सामने अब कभी नहीं आऊंगी। मुझे बस मेरा बालक दे दो....मैंने तुम्हारे साथ कुछ भी गलत नहीं किया...सबकुछ अंजाने में हुआ है। मुझे बस एक बार प्रायश्चित का मौका दो...मैं फिर से सब कुछ सहीं कर दूंगी।” शलाका बनी आकृति आर्यन के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रही थी।
पर आर्यन उस बालक को अपने हाथ में लिये आकृति को अपने पास नहीं आने दे रहा था।
बालक की आँखों में बहुत तेज विद्यमान था।
“अब तुम कुछ भी ठीक नहीं कर सकती आकृति।” आर्यन ने गुर्राते हुए कहा- “तुमने मेरी शलाका को मुझसे दूर किया है, अब मैं तुम्हारे बच्चे को तुमसे दूर कर दूंगा। मैं इस बालक को ऐसी जगह छिपाऊंगा, जहां तुम कभी भी नहीं पहुंच सकती। यही तुम्हारी करनी का उचित दंड होगा।”
“नहीं-नहीं आर्यन, मुझे क्षमा कर दो...मैंने जो कुछ भी किया, तुम्हारे प्रेम की खातिर किया, अब जब अंजाने में ही मुझे मेरे जीने का मकसद मिल गया है, तो तुम मुझे उससे ऐसे अलग मत करो। तुम जो कहोगे, मैं वह करने को तैयार हूं, बस मुझे मेरा बालक दे दो।”
आकृति की आँखों से आँसू झर-झर बहते जा रहे थे, पर आर्यन के सिर पर तो जैसे को ई भूत सवार हो , वह आकृति की बात सुन ही नहीं रहा था।
शलाका ने भी आर्यन का यह रुप कभी नहीं देखा था, जो आर्यन एक तितली के दर्द को भी महसूस कर लेता था, वह आज इतना निष्ठुर कैसे बन गया कि उसे एक माँ की गिड़गिड़ाहट भी नजर नहीं आ रही थी।
“आकृति तुम मुझसे प्रेम करती हो ना....इसी के लिये तुमने अमृत का भी पान किया था, पर जाओ आज से यही अमृत और यही जिंदगी तुम्हारे लिये अभि शाप बन जायेगी, तुम मरने की इच्छा तो करोगी, पर मर नहीं पाओगी और ये जान लो कि मैं इस बालक को मारुंगा नहीं, पर मैं इसे ऐसी जगह छिपाऊंगा कि तुम सदियों तक उस जगह को ढूंढ नहीं पाओगी।”
यह कहकर आर्यन आकृति को रोता छोड़कर उस बालक को ले बाहर निकल गया।
यह देख शलाका ने तुरंत वेदांत रहस्यम् का अगला पृष्ठ खोल दिया, उस पृष्ठ में आर्यन उसी नन्हें बालक को एक अष्टकोण में रखकर एक स्थान पर छिपा रहा था, यह देख शलाका तुरंत उस चित्र को छूकर उस समयकाल में पहुंच गई।
उस स्थान पर आर्यन एक लकड़ी के छोटे से मकान में था। आर्यन ने उस मकान की जमीन के नीचे एक बड़ा सा गड्ढा खोद रखा था।
वह नन्हा बालक जिसके मुख पर सूर्य के समान तेज था, वह तो बेचारा जानता तक नहीं था कि उसके साथ क्या हो रहा है? वह एक अष्टकोण में बंद, अपनी भोली सी मुस्कान बिखेर रहा था।
उसके अष्टकोण में अमरत्व की दूसरी शीशी भी रखी थी।
उसे देख पता नहीं क्यों अचानक शलाका का मातृत्व प्रेम उमड़ आया।
एक पल को शलाका भूल गई कि वह आकृति का बेटा है, उसे तो वह बालक बस आर्यन की नन्हीं छवि सा नजर आ रहा था।
तभी आर्यन ने उस नन्हें बालक को अष्टकोण सहित उस गड्ढे में डाल दिया।
“मुझे क्षमा कर देना नन्हें बालक, मैं तुम्हें मार नहीं रहा, लेकिन मैं तुम्हें इस अष्टकोण में बंद कर इस गडढे में सदियों के लिये बंद कर रहा हूं। मेरे गड्ढे को बंद करते ही तुम सदियों के लिये इसमें सो जाओगे। इसके
बाद जब भी कोई तुम्हें इस गड्ढे से निकालेगा, तो तुम आज की ही भांति, सूर्य के समान चमकते इस गड्ढे से बाहर आओगे।
“इन बीते वर्षों में इस अष्टकोण के कारण तुम पर आयु या समय का कोई प्रभाव नहीं होगा, मैं तुम्हारे साथ यह अमरत्व की शीशी भी रख रहा हूं, जब तुम बड़े हो जाना, तो इसे अपने पिता का आशीर्वाद मान पी लेना और सदा के लिये अमर हो जाना।” यह कहकर आर्यन ने उस गड्ढे को मिट्टी से भरना शुरु कर दिया।
शलाका का मन कर रहा था कि वह उस गड्ढे को खोल, उस बालक को निकाल ले, पर वह वेदांत रहस्यम् के समय में कोई बदलाव नहीं कर सकती थी, इसलिये मन मसोस कर रह गई।
जैसे ही आर्यन ने उस गड्ढे को पूरा मिट्टी से भरा, शलाका वेदांत रहस्यम् के पन्ने से निकलकर वापस अपने कमरे में आ गई।
पर शलाका का मन अचानक से बहुत बेचैन होने लगा।
“यह मैंने क्या किया, कम से कम मुझे उस स्थान के बारे में पता तो लगाना चाहिये, हो सकता है कि 5000 वर्ष के बाद भी वह बालक अभी भी वहीं हो?”
मन में यह विचार आते ही शलाका ने उस चित्र को दोबारा से छुआ और उस समयकाल में वापस चली गई, पर इस बार शलाका उस कमरे में नहीं रुकी, जहां आर्यन उस बालक को गड्ढे में दबा रहा था, वह तुरंत उस घर से बाहर आ गई।
शलाका अब तेजी से आसपास के क्षेत्र में लिखे किसी भी बोर्ड को पढ़ने की कोशिश कर रही थी।
तभी शलाका को मंदिर के घंटे की ध्वनि सुनाई दी। शलाका तुरंत भागकर उस दिशा में पहुंच गई।
वह मंदिर उस लकड़ी के घर से मात्र 100 कदम ही दूर था। वह मंदिर काफी भव्य दिख रहा था।
शलाका ने मंदिर के सामने जाकर देखा, वह एक विशाल शि….व मंदिर था, जिसके बाहर संस्कृत भाषा में एक बोर्ड लगा था- “महा…लेश्वर मंडपम्, उज्जैनी, अवन्ती राज्य।”
यह देख शलाका ने बाहर से देव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और वापस उस लकड़ी के घर की ओर भागी।
शलाका ने अब घर से मंदिर के कोण और दूरी को ध्यान से देखा, तभी उसका शरीर वापस वेदांत रहस्यम् से निकलकर बाहर आ गया।
पर शलाका के चेहरे पर इस बार संतोष के चिंह साफ नजर आ रहे थे।
“यहां तक की कहानी तो समझ में आ गयी। पर अब ये देखना बाकी रह गया है कि आर्यन ने मृत्यु का वरण क्यों और कैसे किया?”
यह सोचकर शलाका ने वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना पलट दिया।
अगले पन्ने पर आर्यन वेदांत-रहस्यम् को हाथ में पकड़े अराका द्वीप पर स्थित शलाका मंदिर में खड़ा था।
यह देख शलाका ने उस चित्र को भी छू लिया।
अब वह उस समय में आ गयी। इस समय आर्यन के हाथ में वेदांत- रहस्यम् थी और वह शलाका मंदिर के एक प्रांगण में बैठा हुआ था।
“आज 3 महीने बीत गये, पर शलाका का कहीं पता नहीं चला, शायद वह भी मुझे छोड़कर कहीं चली गई है....अब मेरे जीने का कोई मतलब और मकसद बचा नहीं है, इसलिये मुझे अपने प्राण अब त्यागने ही होंगे, पर महानदेव के वरदान स्वरुप मुझे एक बार पूरी जिंदगी में भविष्य देखने की अनुमति है, तो हे देव, मुझे भविष्य को देखने की दिव्य दृष्टि प्रदान करें, मैं जानना चाहता हूं कि क्या किसी भी जन्म में मैं शलाका से मिल पाऊंगा या नहीं।”
आर्यन के इतना कहते ही आसमान से एक तीव्र रोशनी आकर आर्यन पर गिरी।
वह रोशनी मात्र 5 सेकेण्ड तक ही आर्यन पर रही। उस रोशनी के हटते ही आर्यन के चेहरे पर अब संतुष्टि के भाव दिख रहे थे।
अचानक वह ऊर्जा रुप में खड़ी शलाका के पास आकर खड़ा हो गया और बोला- “मुझे पता था कि तुम एक दिन यह किताब अवश्य ढूंढकर मेरे पास आओगी। अब तक तुमने सब कुछ जान लिया होगा अतः मैं उम्मीद करता हूं कि तुम अपने आर्यन को अब क्षमा कर दोगी। मैंने…देव के वरदान स्वरुप इन 5 सेकेण्ड में पूरी दुनिया के 5,000 वर्षों का भविष्य देख लिया है। मैं तुमसे फिर मिलूंगा शलाका ....आर्यन के नाम से ना सही, पर मेरी पहचान वही होगी।
“हम फिर से एक नयी दुनिया शुरु करेंगे और इस बार मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर पायेगा। अब मैं अपनी सूर्य शक्ति को इस मंदिर में स्थित तुम्हारी मूर्ति में स्थानांतरित करता हूं। अगर मैं किसी भी जन्म में इस स्थान पर वापस आया, तो तुम मुझे अपने इस जन्म के अहसास के साथ, मेरी सूर्य शक्ति को मुझे वापस कर देना। अब मैं अपनी इच्छा से मृत्यु का वरण करने जा रहा हूं।
“मेरी लिखी यह पुस्तक वेदांत रहस्यम् मेरे साथ है, यह जब तक मेरे सीने से चिपकी रहेगी, मैं नया जन्म नहीं लूंगा, जिस दिन कोई इस किताब को मेरे शरीर से अलग करेगा, उसी दिन इस पृथ्वी पर कहीं ना कहीं मैं फिर से जन्म लूंगा।.. अलविदा शलाका..तुम मरते दम तक मेरी यादों में थी और रहोगी..।”
यह कहकर आर्यन ने वहीं शलाका की मूर्ति के सामने अपने प्राण त्याग दिये।
आर्यन के शरीर से सूर्य शक्ति निकलकर, शलाका की मूर्ति में प्रवेश कर गई।
वेदांत रहस्यम् को अभी भी आर्यन ने किसी रहस्य की भांति अपने सीने से चिपका रखा था।
इसी के साथ शलाका एक बार फिर वेदांत रहस्यम् के पास वापस आ गई।
शलाका की नजर अब उस पुस्तक के आखिरी पेज पर गई, जिस पर आकृति की आँखें बनी थीं, जो शलाका के भेष में एक धोके की कहानी कह रहीं थीं।
शलाका ने अब वेदांत रहस्यम् को बंद कर दिया। आज उसके सामने लगभग सभी राज खुल गये थे।
अब वह घंटों बैठकर रोती रही।
इस समय शलाका को यही नहीं समझ में आ रहा था कि वह गलती किसकी माने, आकृति की जिसने आर्यन को धोखा दिया, आर्यन की ....जिसने एक माँ को उसके बालक से जुदा कर दिया या फिर स्वयं की ....जो उस समय आर्यन को बिना बताए, अपनी माँ का पार्थिव शरीर ले, अपने भाइयों के साथ एरियन आकाशगंगा चली गई थी, जिसकी वजह से आर्यन ने मृत्यु का वरण किया।
शलाका अपने ही ख्यालों के झंझावात में उलझी नजर आ रही थी....कभी उसे सब गलत दिख रहे थे, तो कभी सब सही।
काफी देर तक सोचने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंची, कि किसी का नहीं बस समय का दोष था, पर इस समय ने एक ऐसे बालक को भी दंड दिया था, जिसे उस समय दुनिया की किसी चीज का मतलब ही नहीं पता था।
अतः अब शलाका ने सोच लिया था कि यदि वह बालक जिंदा है, तो वह उसे प्राप्त करके ही रहेगी, चाहे इसके लिये उसे ब्रह्मांड का कोना-कोना ही क्यों ना छानना पड़े।
To lo bhaiya, kaafi sawalo ke jabaab de gaya ye update, Aryan kyu mara, shalaka ke mzndir me jo roshni aaryan ke shareer me samayi thi wo kya thi?, aur sabse badi baat wo astkon wala baalak kon tha? Aur usko dekh kar suyash ke sar me dard kyu ho gaya? Bohot hi umda update diya hai guru ji Akriti ne Aryan ke sath dhokhe se tak dhina dhin kiya tha, uski saja mili use, ab ye sahi kiya ya galat, ye to samay batayega, Amazing Update bhai, too good
कैस्पर उस विचित्र जीव को देखने के बाद वारुणि को लेकर अपने कमरे में आ गया था।
वारुणि पिछले 3 घंटे से कैस्पर के सामने एक कुर्सी पर बैठी, कैस्पर की हरकतें देख रही थी।
कैस्पर कमरे की जमीन पर बैठा, आँख बंदकर ध्यानमग्न था। कैस्पर अपने होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदा रहा था।
वारुणि के दिमाग में कैस्पर के कहे शब्द अभी भी गूंज रहे थे- “तुम्हें इस युद्ध में एक निर्णायक भूमिका निभानी होगी वारुणि।”
वारुणि का मस्तिष्क अनेको झंझावातों से गुजर रहा था- “अटलांटिक महासागर में गिरने वाला वह उल्का पिंड कैसा है? जिससे निकल रही तेज ऊर्जा ने पृथ्वी की ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाना शुरु कर दिया था। वह 3 आँख और 4 हाथ वाला विचित्र जीव कौन है? जिसे किसी ने बिना कैस्पर से पूछे, उसकी शक्तियों का प्रयोग कर बनाया था? वह जीव ‘सिग्नल माडुलेटर’ के द्वारा 2 दिन पहले किसे अंतरिक्ष में सिग्नल भेज रहा था? कैस्पर पृथ्वी पर आने वाले किस संकट की बात कर रहा था? और....और उस महायुद्ध में क्या होनी थी वारुणि की निर्णायक भूमिका? जिसका जिक्र कैस्पर ने उससे किया था।”
ऐसे ही ना जाने कितने अंजाने सवाल वारुणि के दिमाग में चल रहे थे और ऐसे खतरनाक समय में, विक्रम भी ना जाने 2 दिन से कहां गायब था?
अभी वारुणि यह सब सोच ही रही थी कि तभी कैस्पर ने अपनी आँखें खोल दीं।
“महाप्रभु की जय।” वारुणि ने हाथ जोड़कर कैस्पर को अभिवादन करते हुए कहा- “महाप्रभु ने आखिरकार 3 घंटे के बाद अपनी आँखें खोल ही दीं।”
कैस्पर, ने वारुणि के कटाक्ष को महसूस कर लिया, पर उसे कुछ कहा नहीं....सच ही तो था, 3 घंटे का इंतजार कम नहीं होता।
“क्षमा करना वारुणि, इस समस्या की जड़ इतनी गहरी थी, कि उसे समझने में बहुत ज्यादा वक्त लग गया।” कैस्पर ने कान पकड़ते हुए वारुणि से कहा।
“हे देव, अब अगर आप सब कुछ समझ गये हैं, तो अब हम जैसे निरीह जीवों पर दया कर, हमें भी कुछ समझाने का कष्ट करें।” वारुणि के चेहरे पर अब शैतानी साफ नजर आ रही थी।
वारुणि का यह तरीका देख कैस्पर के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
अब उसने बोलना शुरु कर दिया- “वारुणि पहले मैं तुम्हें अपनी निर्माण शक्ति के बारे में समझाता हूं.... मेरी निर्माण शक्ति, कल्पना शक्ति से चलती है। इस शक्ति के द्वारा मैं किसी भी भवन, महल, नगर या फिर ग्रह का निर्माण कर सकता हूं। मैंने अपने कार्य को सरल बनाने के लिये अपनी निर्माण शक्ति को आधुनिक विज्ञान के द्वारा, उसे एक ऐसे कंप्यूटर से जोड़ दिया, जिसे मैंने स्वयं बनाया था। मैंने उस आधुनिक कंप्यूटर का नाम कैस्पर 2.0 रखा।
"मैंने कैस्पर 2.0 को इस प्रकार बनाया कि उसका स्वयं का मस्तिष्क हो और वह छोटे-छोटे निर्णय स्वयं से ले सके। पर मैग्ना के जाने के बाद, मैं ज्यादा से ज्यादा कंप्यूटर पर निर्भर करता चला गया। यही निर्भरता कैस्पर 2.0 को लगातार शक्तिशाली बनाती गई।
“हजारों वर्षों के बाद कैस्पर 2.0 मेरे द्वारा किये जाने वाले सभी कार्यों को बिना किसी त्रुटि के करने लगा। यह मेरे लिये बहुत अच्छी खबर थी। अब मेरे पास एक ऐसा कंप्यूटर था, जिससे मैं अपने दुख-सुख, अपनी बातें, अपने अहसास सबकुछ शेयर करने लगा, जिसके कारण कैस्पर 2.0 को इंसानी भावनाओं को भी सीखने का समय मिल गया। उधर हजारों वर्ष पहले ग्रीक देवता पोसाईडन ने मुझे एक छोटे से द्वीप अराका की सुरक्षा का कार्य-भार सौंपा। अराका पर एक महाशक्ति को सुरक्षित करने के लिये मैंने एक ऐसे तिलिस्म का निर्माण किया, जिसमें मनुष्यों के सिवा कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता था। मैंने इस तिलिस्म का नाम तिलिस्मा रखा।
“इस तिलिस्मा के पहले मैग्ना ने एक मायावन का निर्माण किया। इस मायावन का निर्माण, तिलिस्मा में प्रवेश करने वाले मनुष्यों की शक्तियों को समझना था। मेरा बनाया तिलिस्मा इसी लिये अजेय था, क्यों कि उसमें कोई भी द्वार पहले से नहीं बना होता था, मैं उन मनुष्यों की शक्तियों को देखकर, तिलिस्मा के दरवाजों का निर्माण करता था।
"धीरे-धीरे मैंने नये प्रयोग के द्वारा, अपनी निर्माण शक्ति से तिलिस्मा के लिये, नये जीवों का निर्माण करना शुरु कर दिया। पर हमने इस बात का विशेष ध्यान रखा था कि तिलिस्मा के निर्माण के लिये बनाये गये जीव कभी तिलिस्मा से बाहर ना आ सकें और जैसे-जैसे तिलिस्मा के सभी द्वार टूटते जायें, वह सभी जीव व निर्माण, स्वयं ही वायुमंडल में विलीन होते जाएं। हजारों वर्षो तक हजारों लोगों ने तिलिस्मा को तोड़ने की कोशिश की, पर कुछ तिलिस्मा में और कुछ तिलिस्मा के पहले ही मारे गये।
“यह देख मैंने तिलिस्मा सहित, अराका की सुरक्षा भी धीरे-धीरे कैस्पर 2.0 के हवाले कर दी। अब कैस्पर 2.0 ही तिलिस्मा के द्वार का नवनिर्माण भी करने लगा। सभी मशीनों का नियंत्रण मेरे हाथ में था.....पर जब 10 दिन पहले मैं, मैग्ना की याद में विचलित होकर अराका द्वीप से कुछ दिनों के लिये बाहर निकला, तो मैंने अराका का सम्पूर्ण नियंत्रण कैस्पर 2.0 को दे दिया।"
"और कैस्पर 2.0 ने तुम्हारी सभी मशीनों और तकनीक पर नियंत्रण करके, सब कुछ अपने हाथ में ले लिया।” वारुणि ने बीच में ही कैस्पर की बात को काटते हुए कहा।
वारुणि की बात सुन कैस्पर ने धीरे से अपना सिर हिला दिया।
“मैं तुम्हारी परेशानी समझ गई कैस्पर।” वारुणि ने कैस्पर से कहा- “अब तुम्हारे लिये ही नहीं, बल्कि तिलिस्मा में जाने वाले हर मनुष्य के लिये खतरा है, क्यों कि कैस्पर अब किसी भी नियम में बदलाव करके,
तिलिस्मा में घुसे उन लोगों को भी मार सकता है, जो कि वास्तव में उस तिलिस्मा को तोड़ने की शक्ति रखते हैं।”
“नहीं, कैस्पर 2.0 तिलिस्मा के नियमों में बदलाव नहीं कर सकता, उन नियमों को बदलने वाला कंप्यूटर सिर्फ और सिर्फ मेरे रक्त की एक बूंद से ही खुल सकता है, और कैस्पर 2.0 कितने भी निर्माण कर ले, परंतु मेरे रक्त की बूंद की नकल नहीं बना सकता।” कैस्पर के शब्दों में विश्वास झलक रहा था।
“अगर वह तुम्हारे नियमों में कोई बदलाव नहीं कर सकता, तो यह जीव तिलिस्मा से निकलकर पृथ्वी की आउटर कोर में कैसे पहुंच गया? तुमने तो कहा था कि तिलिस्मा के नियमों के हिसाब से, तिलिस्मा का कोई भी जीव बाहर के वातावरण में नहीं आ सकता।” वारुणि के शब्दों में लॉजिक था।
“यह भी मेरी गलती है।” कैस्पर ने कहा- “मुझे मेरी माँ ने कहा था कि कभी भी किसी के लिये कोई भी निर्माण मैं कर सकता हूं, पर मुझे उसका निर्माण इस प्रकार करना होगा, कि मैं जब चाहे उसका नियंत्रण अपने हाथों में वापस ले सकूं। शायद मेरी माँ ने मेरा भविष्य देख लिया था और ऐसे ही किसी समय के लिये उन्हों ने मुझसे यह कहा था।”
“कैस्पर की आँखों में एका एक माया का चेहरा उभर आया- “अपनी माँ की कही इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने तिलिस्मा में प्रवेश करने का एक गुप्त द्वार बनाया, जो कि एक विशेष प्रकार की ऊर्जा से निर्मित था, उस द्वार के माध्यम से मैं कभी भी छिपकर तिलिस्मा में दाखिल हो सकता था और तिलिस्मा का नियंत्रण अपने हाथ में भी ले सकता था। इस गुप्त द्वार की जानकारी मेरे सिवा किसी को भी नहीं थी। पर जाने कैसे, किसी दूसरी विचित्र ऊर्जा से टकराने की वजह से, वह गुप्त द्वार खुल गया और कैस्पर 2.0 को यह बात पता चल गई। कैस्पर 2.0 अब अपने आपको कैश्वर कहने लगा है। वह अपनी तुलना अब स्वयं ईश्वर से करने लगा है।
"उसी गुप्त द्वार के माध्यम से कैश्वर ने, उस जीव को बाहर निकाला और अंतरिक्ष में किसी को सिग्नल भी भेजा? मैं अभी तक पता नहीं कर पा रहा हूं कि वह सिग्नल कैश्वर ने किसे और क्यों भेजा? परंतु कैश्वर ने अब उस गुप्त द्वार की फ्रीक्वेंसी बदल दी है, जिससे मैं अब उस गुप्त द्वार का प्रयोग नहीं कर सकता। मुझे उस फीक्वेंसी को समझने के लिये भी समय चाहिये होगा, परंतु मैं यह जान गया हूं कि कैश्वर अंतरिक्ष से किसी को बुलाना चाहता है? पर किसे? यह मुझे नहीं पता।”
“मैं तुम्हें यह बता सकती हूं कि उस जीव ने सिग्नल माडुलेटर से वह सिग्नल किस ग्रह को भेजें हैं।” वारुणि ने कैस्पर को देखते हुए कहा- “पर मैं यह नहीं बता पाऊंगी कि वह ग्रह किसका है? या फिर वहां कौन रहते हैं?”
“कैसे?...यह तुम कैसे कर पाओगी?” कैस्पर के चेहरे पर वारुणि की बात सुनकर आश्चर्य उभर आया।
“मेरे पास उस जीव के सिग्नल भेजते समय का एक वीडियो है। हमने उस जीव को सिग्नल भेजते ही पकड़ लिया था, इसलिये उसके सिग्नल माडुलेटर में उस समय कि सिग्नल फ्रीक्वेंसी अभी तक सुरक्षित है। हमें बस वह वीडियो देखकर, उस जीव के उस समय के शरीर के कोण को ध्यान से देखना होगा, फिर उसके सिग्नल माडुलेटर से सिग्नल की फ्रीक्वेंसी निकालकर उससे दूरी पता करनी होगी। अब जब दूरी और दिशा हमें मिल जायेगी तो हम उसे आकाशगंगा के मानचित्र में फिट करके, यह पता लगा लेंगे कि उस जीव ने किस ग्रह पर सिग्नल भेजे थे?”
वारुणि की बातें सुनकर कैस्पर हैरान रह गया।
“वाह! क्या बात है....मेरा दोस्त तो वैज्ञानिक भी है और अंतरिक्ष की जानकारियां भी रखता है।” कैस्पर ने वारुणि की तारीफ करते हुए कहा- “अच्छा हां, तुम उस उल्का पिंड की भी बात कर रही थी। क्या मुझे उस उल्कापिंड की कोई तस्वीर मिल सकती है?”
“समुद्र हमारा कार्य क्षेत्र नहीं है, हमने अपने कुछ दोस्तों से यह जानकारी साझा कर ली है, वह जैसे ही हमें कुछ भेजेंगे, मैं तुम्हें बता दूंगी।” वारुणि ने कहा- “अब तुम मुझे ये बताओ कि तुम किस महायुद्ध और निर्णायक भूमिका की बात कर रहे थे?”
“वारुणि, मेरी माँ भविष्य को देख सकने में सक्षम हैं, यह बात और है कि वह भविष्य की बातें, किसी को सीधे तौर पर बताती नहीं हैं। पर जब मैंने उस जीव को देखा, तो अचानक मुझे अपनी माँ की कही एक बात याद आ गई। एक बार मैंने उनसे पूछा था कि पृथ्वी का अंत कब संभव हो सकता है? तो उन्होंने कहा था कि “जब नियम तुम्हारे विरुद्ध दिखनें लगें, जब तुम्हारी ही रचना तुमसे बगावत करने लगे, जब सृष्टि के नियम के विरुद्ध कोई जीव अंतरिक्ष के सपने देखने लगे, तो समझना कि यह एक महा विनाश का संकेत है। फिर दूसरे ब्रह्मांड से वह लोग आयेंगे, जो हमसे हमारी शक्ति, हमारा अस्तित्व छीनने की कोशिश करेंगे, लेकिन कैस्पर अगर तुम ब्रह्मांड रक्षक बनना चाहते हो तो तुम्हें महाविनाश को पहले से ही महसूस कर कुछ तैयारियां करनी होंगी?”
“माँ ने किस प्रकार की तैयारियां करने की बात की थी कैस्पर?” वारुणी अब काफी व्यग्र दिख रही थी।
यह सुन कैस्पर ने इधर-उधर देखा और फिर धीरे-धीरे वारुणी को कुछ समझाने लगा, पर कैस्पर के हर शब्द से वारुणि के चेहरे का आश्चर्य बढ़ता जा रहा था, जो कि इस बात का द्योतक था कि कुछ अलग होने जा रहा है....कुछ ऐसा जो पृथ्वी का भविष्य बदलने वाला था।
जारी रहेगा_______
Dosto ye update kisi karan wash chhota rakha gaya hai, to isko fir aage badhayenge.
Bhut hi badhiya update Bhai
To vah jeev casver ne parthvi ki outer core me bheja hai
Dhekte hai Casper ne kis parkar ki taiyariya ki hai is mahavinash se bachne ke liye