, सोनू ने जो कुछ भी सूरज को दिखाया था उसे देखकर सूरज के मन में हलचल सी मचने लगी थी सूरज ने आज तक इस तरह के दृश्य को कभी अपनी आंखों से देखा नहीं था और ना ही कभी देखने की कोशिश किया था क्योंकि उसे इन सब से कोई वास्ता नहीं था वह अपने आप को ही सब चीजों से दूर ही रखना चाहता था लेकिन सोनु उसका बहुत ही खास मित्र था जिसके कहने पर वह उसके पीछे-पीछे चल दिया था,,,,,, और जब वह झाड़ियों के पीछे लेकर गया और वहां से जो नजर उसने दिखाया उसे देखकर तो सूरज के होश उड़ गए थे सोनू ने उसे एक खूबसूरत औरत की बड़ी-बड़ी गांड के दर्शन कराए थे और वह औरत कोई और नहीं बल्कि उसकी चाची ही थी यह जानकर तो सूरज और ज्यादा हैरान हो गया,,,।
सूरज कभी सोचा नहीं था कि वह इस तरह से किसी औरत को नंगी देखेगा और वह भी चोरी छुपे जहां एक तरफ उसके बदन में इस तरह के नजारे को देखकर सिरहन से दौड़ रही थी वहीं दूसरी तरफ,,, उसे इस बात का डर भी था कि कहीं कोई उसे देख ना ले,,,,, कुछ देर के लिए एक औरत की नंगी गांड को देखकर और खास करके उसे पेशाब करती हुई देखकर सूरज का भी लंड खड़ा हो गया था,,, लेकिन आज तक उसने अपने लंड को मुठिया कर अपनी गर्म जवानी का रस बाहर नहीं निकला था लेकिन इसके विपरीत सोनू उसकी आंखों के सामने ही अपनी चाची की नंगी गांड देखकर अपना लंड हिला कर अपना पानी निकाल दिया था यह सब सूरज के लिए बिल्कुल नया था,,, और तो और सूरज के लिए यह भी हैरान कर देने वाला था कि वह खुद अपनी मां की चुदाई देख चुका था अपने पिताजी के साथ जो कि इस बारे में कभी सूरज सपने भी सोच नहीं सकता था लेकिन सोनू बेझिझक बेशर्मी की सारी हद पार करते हुए उसे सब कुछ बता दिया था,,,।
वहां से तो सूरज अपने घर पर आ चुका था लेकिन सोनू ने जो कुछ दिखाया था जो कुछ बताया था वह उसके दिमाग में एकदम घर कर गया था और से इस बात का भी एहसास हो गया था कि औरत को नंगी अवस्था देखने में कितना मजा आता है यह उसका पहला अनुभव था और पहला अनुभव में वह पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था,,,, इसके बाद से वह कभी कभार अपनी मां को देखने की कोशिश करता था लेकिन कभी उसे ऐसा मौका नहीं मिला जब वह अपनी मां को नग्न अवस्था में या अर्ध नग्न अवस्था में देख सके,,, हालांकि अब उसे अपनी मां की खूबसूरत बदन के अंगों का उभार समझ में आने लगा था अपनी मां की कमर पर कई हुई साड़ी के अंदर नितंबों की गोलाई का आभास उसे होने लगा था लेकिन जल्द ही वह अपने मां पर काबू कर लिया था क्योंकि वह जानता था जो कुछ भी वह कर रहा है वह गलत है इसलिए अपना मन वहां किसी और चीज में लगाकर अपने मन से इन सब बातों को निकालने की कोशिश करता था और लगभग लगभग वह इन सब बातों से आजाद भी हो चुका था,,,,।
ऐसे ही एक दिन वहां खेतों की तरफ जा रहा था तो एक तरफ मुखिया के खेतों में काम चल रहा था वही बड़े से पेड़ के नीचे मुखिया की बीवी बैठी हुई थी,,, वैसे तो सूरज मुखिया की बीवी को ठीक से जानता नहीं था बस एक दो बार ही मुलाकात हुई थी और इतना ही जानता था कि वह मुखिया की बीवी है और एक दिन रात को भी उसकी मुलाकात खेतों पर हुई थी जब वह अपने पिताजी को ढूंढते हुए खेत पर चला गया था और गन्ने के खेत में उसके पिताजी और मुखिया की बीवी कम कर रहे थे लेकिन सूरज को इस बात का जरा भी भनक तक नहीं लगा था कि गन्ने के खेत में रात के समय उसके पिताजी एक खूबसूरत औरत के साथ क्या कर रहे हैं बात आई गई हो गई थी लेकिन यहां पर अपने रास्ते से गुजरते हुए वह मुखिया की बीवी को देखकर आदर पूर्वक नमस्कार किया उसके इस व्यवहार से मुखिया की बीवी भी खुश हुई,,, और वह मुस्कुराते हुए बोली,,,।
खुश रहो यहां कहां जा रहे हो,,,
कहीं नहीं बस ऐसे ही घूमने के लिए निकल गया था,,,
तुम तो भोले के लड़के हो ना उस दिन रात को जो खेत पर मिले थे,,,,( रात को खेत पर मिलने का जिक्र करते हुए मुखिया की बीवी इधर-उधर देखकर बोल रही थी कि कहीं कोई सुन तो नहीं रहा है लेकिन उसकी इस सतर्कता को सूरज समझ नहीं पाया था और मुस्कुराते हुए बोला,,,)
हां वह मेरे पिताजी है,,,,
बहुत मेहनती है तुम्हारे पिताजी,,,, तभी तो खेतों की जिम्मेदारी मैं तुम्हारे पिताजी को शौप दी हूं,,,।
(जवाब में सूरज कुछ बोला नहीं बस खामोश खड़ा रहा सूरज के चेहरे पर बहुत ज्यादा ही भोलापन था जो की पहली मुलाकात में ही मुखिया की बीवी उससे काफी आकर्षित हुई थी क्योंकि का बदन काफी गठीला और हट्टा कट्टा था,,,, मुखिया की बीवी की नजर में सूरज को देखकर वासना साफ नजर आ रही थी लेकिन औरतों की नियत और नजरियों को पहचानने की क्षमता सूरज में बिल्कुल भी नहीं थी इसलिए मुखिया की बीवी के नजर को पहचान नहीं पा रहा था,,,, कुछ देर खामोश रहने के बाद सूरज बोला,,)
ठीक है मालकिन में अब चलता हूं,,,,
अरे कहां जा रहे हो,,,(मुखिया की बीवी इतना कहते हुए एक बार फिर से चारों तरफ नजर घूमर देखने लगी लेकिन कोई भी उसकी तरफ नहीं देख रहा था सारे मजदूर खेतों का काम कर रहे थे वह केवल अकेले ही सूरज के साथ बड़े से पेड़ के नीचे बैठी हुई थी)
कहीं नहीं बस ऐसे ही घूमते रहूंगा,,,,
कोई काम नहीं है तो यह बाल्टी और लोटा लेकर मेरे साथ चलो,,,, मै ईसे उठा नहीं पा रही हुं क्योंकि मेरी कलाई मैं थोड़ा दर्द है,,,।
(सूरज को भला इसमें क्या दिक्कत हो सकती थी इसलिए वह मुस्कुराते हुए बोला)
ठीक है मालकिन,,,,(इतना कहने के साथ ही सूरज बाल्टी को उठा लिया जिसमें थोड़ा पानी भरा हुआ था और लोटा भी उसमें था जिसे मुखिया की बीवी पास में रखी हुई थी पानी पीने के लिए लेकिन अब उसके मन में कुछ और चल रहा था,,, और सूरज अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,) लेकिन चलना कहां है,,?
चल मैं बताती हूं,,,(इतना कहने के साथ ही मुखिया की बीवी अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई और एक बार फिर से अपने चारों तरफ देखकर पास की ही छोटी सी पगडंडी के ऊपर चलने लगी जिसके दोनों तरफ खेत थे,,,, और उसके पीछे-पीछे सूरज चलने लगा,,,, मुखिया की बीवी खेली खाई थी उसे मर्दों को अपनी तरफ आकर्षित करने का हुनर अच्छी तरह से मालूम था और इस समय वह इस अपने अनोखे हुनर को सूरज के ऊपर आजमाना चाहती थी इसलिए चलते समय उसकी चाल में एक मादकता भरने लगी थी उसकी चाल में एक लक थी वह इस तरह से अपने पैर को ऊंचे नीचे पगडंडियों पर रखती की उसके नितंबों का उभार कुछ ज्यादा ही बाहर की तरफ निकल जाता था और ना चाहते हुए भी सूरज का ध्यान उसकी कमर के नीचे मटके जैसे नितंबों पर पड़ ही जाती थी जिस पर से वह अपना ध्यान बड़ी मुश्किल से हटाया था लेकिन आज मुखिया की बीवी एक बार फिर से उसके ध्यान को उसकी तपस्या को भंग करने में लगी हुई थी,,, मुखिया की बीवी अच्छी तरह से जानती थी कि वह जिस तरह से चल रही है पीछे चल रहे किसी भी मर्द का ध्यान उसकी गांड पर जरुर पड़ेगा और दुनिया में कोई ऐसा मर्द नहीं है जब औरत की मदमस्त कर देने वाली चाल और उसकी बड़ी-बड़ी गांड को देखकर आकर्षित न हो और जिसमें सूरज भी अछूता नहीं था सूरज भी बार-बार अपनी नजर को इधर-उधर घूमाकर अपना ध्यान हटाने की कोशिश करने के बावजूद भी उसकी नजर बार-बार मुखिया की बीवी की बड़ी-बड़ी गांड पर चली ही जा रही थी और वैसे भी वह अपनी कमर पर साड़ी को कुछ ज्यादा ही कस के बाद ही हुई थी जिसकी वजह से नितंबों का उभार एकदम साफ झलक रहा था,,,, जो कि साड़ी के अंदर होने के बावजूद भी नितंबों का कटाव एकदम साफ झलक रहा था जो की सूरज की आंखों में आकर्षण के साथ-साथ मादकता भी भर रहा था,,,,।
कुछ देर तक दोनों के बीच किसी भी प्रकार की वार्तालाप नहीं हो रही थी कुछ दूरी पर जाने के बाद खेतों के बीच बड़ी-बड़ी झाड़ियां और लहराने खेत की वजह से पगडंडी ढकने लगी थी,,,, और जिस जगह से दोनों गुजर रहे थे दूर-दूर तक किसी को दिखाई भी नहीं दे रहा था और ऐसे में मुखिया की बीवी अपनी चाल को आजमाने की कोशिश करने लगी और मौका देखकर फिसलने का नाटक की और पीछे की तरफ गिरने को हुई ठीक उसके पीछे चल रहा सूरज मुखिया की बीवी के पैर फिसलते हुए देखकर उसे गिरता हुआ देखकर एकदम से बाल्टी को वहीं पर छोड़ दिया और पीछे से उसे लपक लिया लेकिन लपकने की वजह से उसके दोनों हाथ उसे संभालने की कोशिश करते-करते उसके दोनों चूचियों पर आकर जम गए और वह मुखिया की बीवी को संभालने में अनजाने में ही अपनी हथेलियां का दबाव मुखिया की बीवी की चूचियों पर बढ़ा दिया और ऐसे में अनजाने में ही उसके हाथ बटेर लग गए थे,,,, अनजाने में ही वहां मुखिया की बीवी की चूची को दबा दिया था जिसका एहसास उसे तब हुआ जब वहां मुखिया की बीवी के साथ-साथ खुद नीचे जमीन पर बैठ गया था और मुखिया की बीवी उसकी गोद में आ गई थी और ऐसे हालात में जब उसने अपने हाथों की स्थिति पर गौर किया तो एकदम से हैरान रह गया,,,,। उसकी दोनों हथेली ब्लाउज के ऊपर से ही मुखिया की बीवी की चूची पर एकदम दबाव बनाए हुए थे और तब जाकर सूरज किस बात का एहसास हुआ की कठोर दिखने वाली चूंचियां अंदर से वाकई में कितनी रुई की तरह नरम-नरम होती है,,,,। पल भर में ही सूरज उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुका था उसका लंड एकदम से खड़ा हो चुका था जो की खड़ा होने के साथ ही वह मुखिया की बीवी की पीठ पर गड़ने भी लगा था,,, और जिसकी चुभन मुखिया की बीवी को अपनी पीठ पर बराबर हो रही थी,,,, खेली खाई मुखिया की बीवी को समझते देर नहीं लगी कि उसकी पीठ पर कौन सी चीज चुभ रही है वह एकदम से उत्साहित हो गई,,,,, वह पीठ पर चुभन से ही अंदाजा लगा ली थी कि सूरज का लंड कितना दमदार है,,,, उसका मन उसे पकड़ने को हो रहा था,,, जिसके लिए वह जुगाड़ बना रही थी और वह अपना हाथ पीछे लाने की जैसे ही सोची सूरज अपने आप को संभालते हुए मुखिया की बीवी को सहारा देकर उठाने लगा लेकिन सहारा देने से पहले,,, मुखिया की बीवी की चूची को दबाने की लालच को हो वह अपने अंदर दबा नहीं पाया और उसे संभाल कर उठाते हुए वहां उसकी बड़ी-बड़ी चूची पर अपनी हथेली का दबाव बढ़ाकर उसकी चूची दबाने का सुख प्राप्त कर लिया,,, और उसकी इस हरकत का एहसास मुखिया की बीवी को अच्छी तरह से हो गया और वह मन ही मन मुस्कुराने लगी,,,, सूरज मुखिया की बीवी को सहारा देकर खड़ी करते हुए बोला,,,।
अच्छा हुआ मालकिन मैं तुम्हारे पीछे था वरना तुम गिर जाती और चोट लग जाती,,, थोड़ा आराम से चला करो,,,
संभाल कर ही चल रही थी अचानक पैर फिसल गया और सच में अच्छा हुआ कि तू मेरे पीछे था वरना वाकई में मुझे चोट लग जाती,,,,,(इतना कहने के साथ ही मुखिया की बीवी चलने लगी और पीछे सूरज वापस बाल्टी को हाथ में लेकर पीछे-पीछे चलने लगा,,, लेकिन अचानक जो कुछ भी हुआ था वह सब उसके बदन में जवानी की गर्मी पैदा कर दिया था मुखिया की बीवी की चुचियों की नरमाहट उसके नरम अंग को कड़क कर दिया था,,,,,,, और ऐसा भी पहली बार हुआ था कि जब वह किसी खूबसूरत औरत को अपनी बाहों में लिया था भले ही उसे गिरने से बचाने के लिए और उसे सहारा देकर उठाने के लिए लेकिन फिर भी इससे वह मुंह नहीं मोड सकता था कि एक खूबसूरत जवान औरत उसकी बाहों में थी,,,, नितंबों का घेराव वह अपने लंड पर बड़े अच्छे से महसूस कर पाया था,,,,।
वह ज्यादा कुछ सोच पाता इससे पहले ही वहां घने खेतों के बीच हेड पंप के करीब पहुंच चुका था और उसके पास में ही एक घास की बनी हुई झोपड़ी भी थी,,,,,, हेड पंप के पास पहुंचकर सूरज को इतना तो अंदाजा लग गया था की मुखिया की बीवी यहां क्या करने आई है लेकिन फिर भी वह पूछ बैठा,,,।
यहां क्या करने के लिए आई हो मालकिन,,,,
अरे बेवकूफ इतना भी नहीं समझता नहाने के लिए आई हूं और क्या,,,,!
लेकिन नहाने के लिए तो मुझे क्यों लेकर आई,,,,
नल चलाने के लिए तुझे बोली तो थी कि मेरी कलाई में थोड़ा दर्द है ना तुम्हें बाल्टी उठा सकती हूं ना ही हैंडपंप चला सकती हूं,,,,(मुखिया की बीवी सूरज की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली,,,,)
ठीक है मालकिन कोई बात नहीं,,,,
(सूरज की बात सुनकर मुखिया की बीवी मुस्कुराते हुए एक तक सूरज के खूबसूरत चेहरे की तरफ देखे जा रही थी और अपने मन में सोच रही थी कि इसकी जगह गांव का कोई दूसरा जवान लड़का होता तो शायद उसके यहां लाने के मतलब को और उसके रास्ते में गिर जाने के मतलब को अच्छी तरह से समझ जाता और उसे पल का वह भरपूर फायदा उठा लेता,,,, वैसे तो सूरज ने भी हल्का सा फायदा उठाने की कोशिश किया था लेकिन इतना तो उसे समझ में आ ही गया था कि सूरज अभी इस खेल में पूरी तरह से नादान है उसे इस तरह से मुस्कुराता हुआ देखकर सूरज बोला,,,,)
ऐसे क्यों मुस्कुरा रही हो मालकिन,,,
मैं इसलिए मुस्कुरा रही हूं कि तू बहुत भोला है,,,, जहां एक तरफ तेरा बाप इतना चालाक और इस मामले में इतना ज्यादा अनुभव वाला है वही तो एकदम नादान है,,,
किस मामले में मालकिन,,,(सूरज आश्चर्य जताते हुए बोला)
कुछ नहीं धीरे-धीरे तुझे सब मालूम पड़ जाएगा,,, अब जल्दी से नल चला,,,,, मुझे नहाना है,,,,,।
(इतना सुनते ही,,, सूरज बाल्टी को हेड पंप के नीचे रखकर चलाना शुरु कर दिया और मुखिया की बीवी इधर-उधर नजर घूमर कुछ देख रही थी या तो फिर कुछ ढूंढ रही थी इसलिए सूरज बोला,,,)
क्या हुआ,,,?
अरे मैं तो अपने कपड़े लाना ही भूल गई,,,
ओहहहह अब क्या करोगी मालकिन रहने दो बाद में नहा लेना,,,,
नहीं नहीं मुझे बहुत गर्मी लग रही है और इतनी दूर आई हुं तो नहा कर ही जाऊंगी,,,,, मैं अपने कपड़े उतार कर रख देती हुं बाद में उसे पहन लूंगी,,,,
(इतना सुनते ही सूरज का दिल जोरो से धड़कने लगा उसके कहने का मतलब साफ था और सूरज की आंखों के सामने अपने कपड़े उतारना चाहती थी और इसीलिए सूरज के बदन में अजीब सी सुरसुराहट होने लगी थी वह भी अपने मन में यही सब सो रहा था की मुखिया की बीवी तुरंत अपने ब्लाउज का बटन खोलने लगी यह देखकर सूरज एकदम से शक पका गया और बोला,,,,)
ममममम, मालकिन मेरे सामने,,,,
तो क्या हुआ तू तो मेरे बेटे जैसा है लेकिन मेरी तरफ देखना नहीं,,,,,(मुखिया की बीवी इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि दुनिया में ऐसा भला कौन सा मर्द होगा जो आंखों के सामने इतना खूबसूरत दृश्य दिखाई दे रहा हो और वह अपनी नजरों को घूमा कर कहीं और देख रहा हो,,,, मुखिया की बीवी की बात सुनते ही वह अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमा दिया,,,, उसकी हरकत को देखकर मुखिया की बीवी मन ही मन में मुस्कुराने लगी और अपने ब्लाउज का बटन खोलने लगी वह अपनी जवानी को सूरज को दिखाना चाहती थी और देखते ही देखते वह अपने ब्लाउज के सारे बटन खोलकर अपने ब्लाउज के दोनों पल्लू को दोनों हाथों से पकड़ कर उसे उतारने की स्थिति में सूरज से बोली,,,,)
अब नल तो चला,,,,(और इतना सुनते ही सूरज नजर घुमा कर हेंड पंप की तरफ देखने की कोशिश करने लगा लेकिन उसकी नजर सीधे मुखिया की बीवी की छतिया पर चली गई और वह कमर के ऊपर पूरी तरह से निर्वस्त्र थी ब्लाउज के दोनों पट खुले हुए थे और उसकी दोनों चूचियां एकदम खरबूजे का आकार ली हुई एकदम साफ नजर आ रही थी जिस पर नजर पडते ही सूरज की नजर एकदम से गड़ गई और वह पागलों की तरह मुखिया की बीवी की चूची को देखने लगा,,,,, सूरज की प्यासी नजरों को देखकर मुखिया की बीवी मन ही मन प्रसन्न होने लगी क्योंकि यही सब तो वह दिखाना चाहती थी मुखिया की बीवी उसे बिल्कुल भी मन नहीं की बल्कि उसकी आंखों के सामने ही अपना ब्लाउज उतार कर उसे एक तरफ रख दिया और अपनी साड़ी को खोलने लगी बस उसका ध्यान थोड़ा हटाने के लिए वह बोली,,,)
Mukhiya ki bibi blouse ka button kholti huyi

अरे नल तो चला,,,(इतना सुनते ही जैसे वह होश में आया होगा तुरंत हेड पंप चलाना शुरु कर दिया और मुखिया की बीवी अपनी साड़ी उतार कर एक तरफ रख दी वह अपनी जवानी का जलवा सूरज पर गिर रही थी और सूरज चारों खाने चित हुआ जा रहा था पहली बार वह किसी औरत की चूचियों के दर्शन किया था,,,, और पहली बार चूचियों को देखकर वह पूरी तरह से मस्त हो चुका था उसके दोस्त सोनू ने तो औरत की नंगी गांड दिखाकर उसके होश उड़ा ही दिया था लेकिन आज मुखिया की बीवी ने,,, अपनी मदद मस्त चूचियों के दर्शन करा कर उसे इस बात का एहसास कर रहे थे कि वह पूरी तरह से जवान हो चुका है लंड का तनाव बढ़ता ही जा रहा था,,,,,।
वैसे तो खुली नजरों से मुखिया की बीवी की तरफ देखने में सूरज की हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन चोर नजरों से वह लगातार मुखिया की बीवी की तरफ देख रहा था मुखिया की बीवी अब तक खड़ी होकर अपने कपड़े उतार रही थी लेकिन वहां सूरज को कुछ और दिखाना चाहती थी इसलिए हैंडपंप के करीब घुटनों के बल बैठकर वह अपने पेटिकोट की डोरी को खोलना शुरू कर दी और यह देखकर सूरज की हालत और ज्यादा पतली होने लगी उसे ऐसा लग रहा था की मुखिया की बीवी अपना पेटीकोट भी उतार कर पूरी तरह से नंगी होकर उसकी आंखों के सामने ना आएगी लेकिन पहली बार में ही वह इतना बड़ा धमाका नहीं करना चाहती थी इसलिए वहां पेटिकोट की डोरी को खोलकर कमर पर उसके कसाव को कम करने लगी और उसे आगे की तरफ से पकड़कर,,, उसे और ढीली करने के लिए आगे की तरफ खींची ऐसा हुआ जानबूझकर कर रही थी क्योंकि वह उसे अपनी बुर के दर्शन कराना चाहती थी,,,, लेकिन सूरज को मुखिया की बीवी की बुरे नहीं बल्कि बुर के ऊपर के घने बाल नजर आए जिसे देखकर वह एकदम से दंग रह गया,,,, टांगों के बीच उगे हुए वह बोल सूरज के लिए किसी आश्चर्य से कब नहीं थे क्योंकि वह कभी सोच भी नहीं सकता था कि औरत के उसे अंग पर इतने सारे बाल उगते हैं उसने तो केवल कल्पना भर किया था की दोनों टांगों के बीच की वह स्थिति कैसी होगी और वह भी उसके कल्पना के पार था उसने औरतों की दोनों टांगों के बीच के अंग के बारे में सही कल्पना नहीं किया था और ना ही उसे पर कभी बाल के बारे में कल्पना किया था इसलिए वह दंग रह गया था,,,, जिस तरह से सूरज उसकी तरफ देख रहा था मुखिया की बीवी को ऐसा ही लगा कि जैसे वह उसे अपनी बुर दिखने में कामयाब हो गई है और वह पेटीकोट को अपनी छाती तक लाकर अपनी दोनों चूचियों को देखते हुए पेटिकोट की डोरी को बीच में बांध दी लेकिन फिर भी उसकी आधी चुचीया एकदम साफ नजर आ रही थी,,,।
मुखिया की बीवी के द्वारा अंग प्रदर्शन और उसे देखकर आकर्षित होने की प्रक्रिया के दौरान पानी की बाल्टी पूरी तरह से भर चुकी थी और नीचे पानी छलक रहा था जिसे देखकर सूरज बोला,,,
नहाईए मालकिन पानी बह रहा है,,,
हममम,,,(और इतना कहने के साथ ही बाल्टी में से लोटा भर कर पानी को अपने ऊपर डालने लगी और देखते ही देखे उसका खूबसूरत बदन पानी से तरबतर हो गया वह पूरी तरह से भीग गई और भीगने की वजह से उसकी पेटीकोट भी उसके बदन से एकदम से चिपक गई जिसमें से चुचीया एकदम साफ नजर आने लगी और उत्तेजना के मारे चूचियों की शोभा बढ़ा रहे छुहारे के दाने एकदम कड़क होकर पेटिकोट के ऊपर नजर आने लगे जिसे देखकर सूरज का दिल जोरो से धड़कने लगा,,,, मुखिया की बीवी खेली खाई औरत थी वह सूरज की मनो स्थिति को अच्छी तरह से समझ रही थी,,,,, वह जानती थी कि सूरज इस खेल में पूरी तरह से नादान है,,, अगर वह पहली बार में उसके साथ संबंध बनाती है तो वह सफल नहीं हो पाएगा और उसकी प्यास भी अधूरी रह जाएगी इसलिए वह सूरज को अपनी जवानी के जाल में पूरी तरह से फांस लेना चाहती थी,,, ताकि उसे तैयार करके उससे खुलकर मजा ले सके,,,।
सूरज के सामने वह खुलकर नहा रही थी वह जानती थी कि भीगने की वजह से उसकी पेटिकोट पूरी तरह से उसके बदन से चिपक गई थी जिससे उसका अंग अंग एकदम साफ झलक रहा था और वह अपने अंगों को इसी तरह से दिखाना भी चाहती थी,,, सूरज की हालात पूरी तरह से खराब हो चुकी थी उसके पजामे में तंबू बना हुआ था जिसे तिरछी नजरों से देखकर खुद मुखिया की बीवी मस्त हुई जा रही थी,,,, वह अपनी अनुभवी आंखों से इतना तो भांप ली थी कि सूरज के पैजामे में टॉप का गोल है लेकिन उसे आजमाना था कि वह कैसे और किस तरह से दुश्मन पर हमला करने के लिए तैयार है कहीं ऐसा ना हो कि युद्ध के बीच में ही उसका तोप गोला फोड़ने से पहले ही दग जाए और जहां दुश्मन को अपने हमले से ढेर करना हो वही खुद ढेर हो जाए,,,,।
मुखिया की बीवी नहा चुकी थी और वहां नहा कर एकदम से खड़ी हो गई थी और एक बार फिर से वह अपने नितंबो का आकार दिखाने के लिए सूरज की तरफ मुंह करके खड़ी हो गई और नीचे झुक कर अपना ब्लाउज उठने लगी और ऐसा करने पर उसकी भारी भरकम गोल-गोल गांड एकदम से भीगे हुए पेटीकोट में एकदम साफ नजर आने लगी जो कि एकदम चमक रही थी,,,, सूरज से रहा नहीं गया और वह पजामे के ऊपर से ही अपने लंड को दबा दिया,,,,, तभी मुखिया की बीवी को जैसे कुछ याद आया हो और वह तुरंत सूरज से बोली,,,,।
सूरज मुझे लगता है की झोपड़ी में मैं अपना पेटिकोट रखी हुई हूं जाकर देख तो है कि नहीं,,,,
(इतना सुनते ही सूरज झोपड़ी की तरफ गया और झोपड़ी में प्रवेश करके इधर-उधर देखने लगा वहां पर वाकई में मुखिया की बीवी के कपड़े रखे हुए थे लेकिन पेटिकोट के साथ-साथ उसकी साड़ी भी रखी हुई थी वह पेटीकोट को हाथ में लेकर बाहर आया और मुखिया की बीवी से बोला)
मालकिन वहां तो तुम्हारी साड़ी भी रखी हुई है,,,,
हां लेकिन वह गंदी है,,,,(बहुत चालाकी से मुखिया की बीवी बात को घुमा दी थी और सूरज के हाथ से पेटीकोट को ले ली थी,,,, सूरज जानबूझकर ठीक उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया था ताकि वह ठीक से मुखिया की बीवी को देख सके मुखिया की बीवी भी जानबूझकर उसकी तरफ पीठ करके खड़ी थी,,, वह पेटिकोट को अपने गले में डालकर भीगी हुई पेटिकोट की डोरी को खोलने लगी और डोरी को खोलकर उसे धीरे से नीचे की तरफ सरकाने लगी,,,, हालांकि अभी भी उसकी पेटिकोट गले में ही थी वह गली पेटीकोट को धीरे-धीरे अपने बदन से नीचे की तरफ ले जा रही थी और देखते-देखते वह अपनी पेटीकोट को कमर तक लेकर आ गई थी सूरज का दिल जोरो से धड़क रहा था,,,, उसकी आंखों के सामने एकदम मादकता भरा दृश्य नजर आ रहा था,,,,, और देखते ही देखते मुखिया की बीवी जानबूझकर अपनी गीली पेटीकोट को एकदम से खींचकर उसे अपनी गोरी गोरी गांड के नीचे से करते हुए उसे अपने पैरों में गिरा दी और सूरज को मुखिया की बीवी की खूबसूरत गोरी गोरी गांड एकदम नंगी देखने का मौका मिल गया और वहां मुखिया की बीवी की नशीली गांड देखकर पूरी तरह से पागल हो गया,,,, इस बात की तसल्ली करने के लिए की सूरज उसकी तरफ देख रहा है कि नहीं मुखिया की बीवी नजर को तिरछी करके सूरज की तरफ देखी तो सूरज को अपनी गांड की तरफ ही देखा हुआ पाकर वह मन ही मन एकदम से प्रसन्न हो गई और गले में अटकी हुई पेटीकोट को नीचे करके वह अपने नंगे बदन को ढंक ली और पेटिकोट की डोरी को बांध ली,,,, वही नीचे पड़े ब्लाउज को उठाकर वह पहनने लगी और थोड़ी ही देर में वह अपने कपड़े पहन कर पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी,,,, तभी एक मजदूर दौड़ता हुआ आया और बोला,,,,।
मालकिन,,, आपको मालिक ढूंढ रहे हैं,,,,
ठीक है चलो मैं आ रही हूं,,,,(इतना सुनकर वह खेत में काम करने वाला मजदूर चला गया और मुखिया की बीवी अपने मन में सोचने लगी कि अच्छा हुआ कि वहां सूरज के साथ संबंध नहीं बनाई वरना उसका मजदूर उसे देख लेता तो गजब हो जाता,,,,, तभी सूरज को खुश करने के लिए मुखिया की बीवी बोली,,,,,।
सूरज उसे तरफ देखो कद्दू के खेत है उसमें से दो चार कद्दू तोड़कर अपने घर ले जाना और सब्जी बनाकर खाना,,,,।
(इतना सुनते ही सूरज एकदम से खुश हो गया और तुरंत बगल वाले खेत की तरफ गया और दो-चार कद्दू तोड़कर ले आया लेकिन कद्दू को तोड़ते समय वह अपने मन में यही सोच रहा था कि कद्दू से भी बेहतरीन तो मालकिन के खरबूजे हैं और उसके बड़े-बड़े तरबूज,,, और अपने मन में ही इस तरह की बात करते हुए वह मुखिया की बीवी के पास आ गया और मुखिया की बीवी मुस्कुराते हुए आगे आगे चलने लगी और सूरज पीछे-पीछे,,,, चलते चलते मुखिया की बीवी बोली,,,)
जब भी बुलाऊं चले आना,,,, और इसी तरह से घर के लिए सब्जी फल लेते जाना,,,,
ठीक है मालकिन,,,,,।