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ठाकुर साहब ने मेनका के भाई की करतूतों को उनके घरवालों के सामने बता कर बहुत ही अच्छा किया है अवधराज को भी एहसास होना चाहिए कि उसकी वजह से उसकी बहन विधवा हो गई साथ ही उसका परिवार भी बिखर गया उसके कारण उसके जीजा और बहन ने बहुत ही बड़ा गुनाह किया है
ठाकुर साहब सच को छुपाने का बहुत प्रयास कर रहे हैं लेकिन वे सच नही छुपा पा रहे हैं किसी ने सही कहा है सच ज्यादा देर तक छुप नही सकता है साथ ही उन्हें अपनो को ना बताने का दुःख भी है
रागिनी वैभव से शादी करने के लिए मान गई है
वैभव और रागिनी ने एक दूसरे से अपने दिल की बात कर ली जिससे दोनो के दिल में जो बोझ था वह हट गया है अब दोनो को इस रिश्ते को अपनाने में थोड़ी बहुत आसानी होगी
वैभव ने रूपचंद से उसकी भाभी से शादी के बारे में कहा है वह सही कहा है देखते हैं अब साहूकार क्या करते हैं
रागिनी और वैभव के बीच संवाद का जो चित्रण किया है वह बहुत ही शानदार था
कुसुम में अभी तक बचपना है वह अभी तक बचपने वाली हरकते कर रही है
वंदना और रागिनी के बीच शरारते वाली बाते बहुत ही मजेदार थी
महेंद्र सिंह का दादा ठाकुर को बुलाने का कोई प्रयोजन है या ऐसे ही है????
"आय हाय! समय नहीं है तेरे पास।" शालिनी ने आंखें फैलाई____"ज़्यादा बातें न कर मेरे सामने। मुझे पता है कि आज कल तू खाली बैठी जीजा जी के हसीन ख़यालों में ही खोई रहती है, बात करती है।"
उसकी बात सुन कर रागिनी झूठा गुस्सा दिखाते हुए उसे मारने के लिए दौड़ी तो शालिनी हंसते हुए भाग ली। उसके जाने के बाद रागिनी भी मंद मंद मुस्कुराते हुए घर के अंदर चली गई।
अब आगे....
अगले दो दिनों के भीतर ही हवेली में नात रिश्तेदार आ गए। मेरे ननिहाल वाले और चाची के मायके से भी आ गए। मेरे ननिहाल से नाना नानी और बड़े मामा मामी को छोड़ कर सभी आ गए जिनमें उनके बच्चे भी थे। उधर चाची के मायके से उनके बड़े भैया भाभी आए। उनके मझले भाई अवधराज नहीं आए। ऐसा शायद इस लिए कि जगताप चाचा को जो ज्ञान उन्होंने दिया था उसके चलते अब वो यहां किसी को अपना मुंह नहीं दिखाना चाहते थे। किंतु अपने बच्चों को ज़रूर भेज दिया था।
हवेली में एकदम भीड़ सी जमा हो गई थी। अंदर इंसान ही इंसान नज़र आने लगे थे। पिता जी के कहने पर मैंने सबके रहने की उचित व्यवस्था की जोकि इतनी बड़ी हवेली में कोई मुश्किल काम नहीं था। नीचे ऊपर के बहुत से कमरे खाली ही रहते थे। सबके आ जाने से एक अलग ही रौनक और चहल पहल नज़र आने लगी थी।
मेरे मझले मामा यानि अवधेश सिंह राणा और छोटे मामा यानि अमर सिंह राणा बैठक में पिता जी के पास बैठे हुए थे। मझले मामा का बेटा महेश सिंह राणा जोकि शादी शुदा था वो भी बैठक में ही था। इसके साथ ही चाची के बड़े भाई हेमराज सिंह भी बैठे हुए थे। उनकी पत्नी सुजाता अंदर मां लोगों के पास थीं। अमर मामा के लड़के लड़कियां भी अंदर ही थे।
छोटे मामा की दोनों बेटियां यानि सुमन और सुषमा जोकि उमर में कुसुम से क़रीब एक डेढ़ साल छोटी थीं वो अंदर कुसुम के साथ थीं और उनका छोटा किंतु इकलौता भाई विजय मां लोगों के पास बैठा हुआ था। मैं जब छोटा था तो अपने ननिहाल अक्सर जाया करता था और ज़्यादा समय तक वहीं रहता था लेकिन फिर जैसे जैसे बड़ा हुआ और मुझमें बदलाव आया तो मैंने वहां जाना कम कर दिया था।
मुझे भीड़ भाड़ वाला माहौल ज़्यादा पसंद नहीं था इस लिए मैं सबकी व्यवस्था करने के बाद चुपचाप अपने कमरे में पहुंच गया था। एकाएक ही हालात के बदलने से मेरे अंदर अजीब सा एहसास होने लगा था। बार बार यही ख़याल उभर आता कि अब बस कुछ ही दिनों में मेरा विवाह हो जाएगा और मैं भी शादी शुदा हो जाऊंगा। लोगों के एक ही बीवी होती है जबकि मेरी दो हो जाएंगी। एक तरफ रूपा और दूसरी तरफ रागिनी...हां अब तो भाभी को मुझे उनके नाम से पुकारना होगा। इस एहसास के साथ ही मेरे अंदर अजीब सी सिहरन दौड़ गई। पलक झपकते ही भाभी का खूबसूरत चेहरा आंखों के सामने उजागर हो गया।
उफ्फ! कितनी सुंदर हैं वो। जब भैया जीवित थे तब वो सुहागन थीं और सुहागन के रूप में उनकी सुंदरता देखते ही बनती थी। मैं यूं ही तो नहीं उनके सम्मोहन में फंस जाता था। मैंने अपने ख़यालों में फिर से उन्हें सुहागन के रूप में सजा हुआ देखा तो मेरे अंदर फिर से अजीब सी सिहरन दौड़ गई। बिजली की तरह ज़हन में ख़याल भी उभर आया कि सुंदरता की यही मूरत अब मेरी पत्नी बनने वाली है। विवाह के बाद मुझे उनके साथ पति की तरह ही पेश आना होगा। मैं सोचने लगा कि क्या मैं सहजता से ऐसा कर पाऊंगा? आख़िर वो अब तक मेरी भाभी थीं और उमर में भी मुझसे बड़ी थीं। आख़िर कैसे एक पति के रूप में मैं उनके साथ पेश आ पाऊंगा? रूपा के मामले में मुझे कोई फ़िक्र नहीं थी क्योंकि उसके मामले में मैं पहले से ही पूरी तरह सहज था। उसके साथ मैं पहले भी वो सब कुछ कर चुका था जो शादी के बाद पति पत्नी करते हैं लेकिन भाभी के बारे में तो मैंने कभी इस तरह की कोई कल्पना ही नहीं की थी। भाभी के रिश्ते में उनसे थोड़ा बहुत हंसी मज़ाक कर लेता था लेकिन उसमें भी मैं हमारे बीच की मर्यादा का सबसे ज़्यादा ख़याल रखता था।
मैं जैसे जैसे इस सबके बारे में सोचता जा रहा था वैसे वैसे मेरे अंदर बेचैनी और घबराहट सी पैदा होती का रही थी। मैं चाह कर भी खुद को सामान्य नहीं कर पा रहा था। ऐसा नहीं था कि मैं भाभी को अब अपनी पत्नी की नज़र से देखने और सोचने नहीं लगा था लेकिन जहां बात इसके आगे की आती थी वहां की बातें सोच कर मेरे जिस्म में सिहरन दौड़ने लगती थी और बड़ा अजीब सा लगने लगता था।
"क्या हाल है मेरे दूल्हे राजा?" अचानक कमरे में गूंज उठी किसी की आवाज़ से मैं उछल ही पड़ा। आंखें खोल कर देखा तो मेरे छोटे मामा अमर सिंह कमरे में दाख़िल हो कर मुझे ही देख रहे थे। चेहरे पर खुशी और होठों पर गहरी मुस्कान लिए जैसे वो मुझे चिढ़ाते से नज़र आए। छोटे मामा से मेरी खूब पटती थी।
"अरे! मामा ये आप हैं?" मैंने उठते हुए कहा____"अचानक से आपकी आवाज़ सुन कर मैं चौंक ही पड़ा था। आइए बैठिए।"
"वो तो मैं बैठूंगा ही।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर आ कर पलंग के किनारे पर बैठ गए। कुछ पलों तक मुझे ध्यान से देखते रहे फिर बोले____"अच्छा तो यहां अपने कमरे में अकेले पड़ा तू खुद को तैयार करने में जुटा हुआ है।"
"क...क्या मतलब है आपका?" मैं समझ तो गया लेकिन फिर भी अंजान बनते हुए पूछा।
"बेटा अच्छी तरह जानता हूं तुझे।" मामा ने घूरते हुए कहा____"मेरे सामने अंजान बनने की कोशिश मत कर। मुझे पता है कि तू आने वाले दिनों के लिए खुद को तैयार का रहा है। वैसे अच्छा ही है, तैयार करना भी चाहिए। आदमी जब एक बीवी के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश करता है तो तेरे जीवन में तो दो दो बीवियां होंगी। ऐसे में तेरा खुद को तैयार करना उचित ही है। ख़ैर तो अब तक कितना तैयार कर लिया है तूने खुद को?"
"ऐसा कुछ नहीं है मामा।" मैंने अपनी झेंप को जबरन छुपाने की कोशिश करते हुए कहा____"क्या आपको सच में लगता है कि आपके भांजे को किसी बात के लिए तैयार करने की ज़रूरत है? आप तो जानते हैं कि औरतों के मामले में मैं बहुत आगे रहा हूं।"
"बिल्कुल जानता हूं भांजे और मानता भी हूं कि इस मामल में तू बहुत आगे रहा है।" मामा ने कहा____"लेकिन बेटा तुझे ये भी समझना चाहिए कि आम औरतों में और खुद की बीवी में धरती आसमान का फ़र्क होता है। आम औरतों के साथ तू कैसा भी बर्ताव कर के अपनी जान छुड़ा सकता है लेकिन अपनी बीवी से किसी कीमत पर जान नहीं छुड़ा सकता। इसी लिए कहता हूं कि इस मामले में तेरी बयानबाज़ी से कुछ नहीं हो सकता।"
"आप तो मुझे बेवजह डरा रहे हैं मामा।" मैंने अपने अंदर झुरझुरी सी महसूस की____"मैं भला क्यों अपनी बीवियों से जान छुड़ाने का सोचूंगा? बल्कि मैं तो खुद ही ये चाहूंगा कि वो मुझसे दूर न हों।"
"अच्छा ऐसा है क्या?" मामा ने आंखें फैला कर कहा____"फिर तो ये बड़ी अच्छी बात है। कम से कम इसी बहाने अब तू भी सही रास्ते पर आ जाएगा। सच कहूं तो मुझे बहुत खुशी हुई थी ये जान कर कि तेरा ब्याह होने वाला है लेकिन ये जान कर थोड़ी हैरानी भी हुई थी कि तेरा एक नहीं दो दो लड़कियों से ब्याह होने वाला है। तेरे नाना को भी बड़ी हैरानी हुई थी लेकिन फिर जब उन्होंने मामले की गंभीरता को समझा तो फिर वो यही कहने लगे कि ये अच्छा ही हो रहा है। इस तरह से कम से कम रागिनी बहू का जीवन भी फिर से संवर जाएगा। अन्यथा विधवा के रूप में बाकी का सारा जीवन गुज़ारना उसके लिए यकीनन हद से ज़्यादा कठिन होता।"
"ये सब तो ठीक है मामा।" मैंने थोड़ा बेचैन भाव से कहा____"लेकिन सच कहूं तो भाभी से विवाह होने की बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होता है। जिस दिन से मुझे इस बारे में पता चला है उसी दिन से जाने क्या क्या सोचते हुए खुद को समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि आगे जो भी होगा उसका मैं सहजता से सामना कर लूंगा। मगर सच तो ये है कि अब तक मैं भाभी के लिए खुद को पूरी तरह से तैयार नहीं कर पाया हूं।"
"हां समझ सकता हूं।" मामा ने कहा____"लेकिन अब तो तुझे इसके लिए खुद को तैयार करना ही पड़ेगा। वैसे मैं तो यही कहूंगा कि तुझे इस बारे में ज़्यादा सोचना नहीं चाहिए। असल में कभी कभी ऐसा होता है कि हमें मौजूदा समय में किसी समस्या को सुलझाने का तरीका समझ में नहीं आता लेकिन जब वैसा समय आ जाता है तो सब कुछ बहुत ही सहजता से हो जाता है। इस लिए तू ये सब वक्त पर छोड़ दे। ये सोच कर कि जो होगा देखा जाएगा।"
"हम्म्म्म शायद आप सही कह रहे हैं।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"और वैसे भी इसके अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है। ख़ैर आप अपनी सुनाएं, मामी के साथ कैसी कट रही है जिंदगी?"
"क्या बताऊं भांजे?" मामा ने सहसा गहरी सांस ली____"बस यूं समझ ले कि किसी तरह कट ही रही है।"
"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" मैं एकदम से चौंका____"सब ठीक तो है ना?"
"क्या ख़ाक ठीक है यार।" मामा ने जैसे खीझते हुए कहा____"साला बच्चे बड़े हो जाते हैं तो हम मर्दों को जाने कैसे कैसे समझौते करने पड़ते हैं। तेरी मामी को बहुत समझाता हूं लेकिन वो मूर्ख कुछ समझती ही नहीं है। मैंने बहुत सी ऐसी औरतों को देखा है जो ज़्यादा उमर हो जाने के बाद भी संभोग सुख का मज़ा लेती रहती हैं और एक तेरी मामी है कि साली अभी से खुद को बुड्ढी कहने लगी है।"
"फिर तो ये आपके लिए बड़ी भारी समस्या हो गई है।" मैंने चकित भाव से कहा____"ख़ैर अब आप क्या करेंगे?"
"करूंगा नहीं बल्कि करने लगा हूं भांजे।" मामा ने कहा____"तू ही बता कि ऐसे में मैं इसके अलावा करता ही क्या कि अपनी भूख मिटाने के लिए बाहर किसी औरत के पास जाऊं? तेरी मामी को भी कहा था कि अगर वो इस बारे में मेरा साथ नहीं देगी तो मुझे बाहर किसी दूसरी औरत के साथ ये सब करना पड़ेगा।"
"तो क्या ये सुनने के बाद भी मामी को समझ नहीं आया?" मैंने हैरानी से पूछा।
"पहले तो गुस्सा हो रही थी।" मामा ने कहा____"कह रही थी कि मेरे अंदर ये कैसी गर्मी चढ़ी है कि मैं इतने बडे बड़े बच्चों का बाप हो जाने के बाद भी ये सब करने पर तुला हुआ हूं? मैंने उसे समझाया कि ये तो उसके लिए अच्छी बात है कि मैं अब भी उसे संभोग का सुख देना चाहता हूं वरना ऐसी भी औरतें हैं जो अपने पति से संभोग सुख पाने के लिए तरसती हैं और फिर वो मज़बूरी में ग़ैर मर्दों से संबंध बना लेती हैं।"
"फिर क्या कहा मामी ने?" मैंने उत्सकुता से पूछा।
"दो तीन दिनों तक बात ही नहीं की उसने।" मामा ने बताया____"मैं भी गुस्सा हो गया था इस लिए मैंने भी उसे मनाने का नहीं सोचा। जब उसे ही कुछ समझ नहीं आ रहा था तो मैंने भी सोच लिया कि अब उससे इस सबकी उम्मीद रखना ही बेकार है। उसके बाद मैंने वही किया जो करने का मैंने मन बना लिया था। तुझे तो पता ही है कि हमारे खेतों में काम करने वाली ऐसी औरतों की कमी नहीं है। मैंने उन्हीं में से एक को इशारा किया और फिर उसके साथ मज़ा किया। तब से यही चल रहा है।"
"और मामी को भी ये सब पता है?" मैंने बेयकीनी से पूछा।
"हां, मैंने बता दिया था उसको।" मामा ने कहा____"जब वो अपने से ही मुझसे बोलने लगी तो मैंने एक दिन उसे सब कुछ बता दिया। ये भी कहा कि अगर वो अब भी मेरे बारे में सोचेगी तो मैं बाहर की औरतों के साथ ये सब करना बंद कर दूंगा।"
"तो फिर क्या कहा मामी ने?" मैंने बड़ी उत्सुकता से पूछा।
"अभी तो कुछ नहीं कहा।" मामा ने कहा____"लेकिन लगता है कि मान जाएगी। ऐसा मैं इस लिए कह रहा हूं क्योंकि दो दिन पहले जब इस बारे में मैंने उसे बताया था तब उसने यही कहा था कि मैं बाहर ये सब करना बंद कर दूं।"
"इसका मतलब ये दो दिन पहले की बात है।" मैंने कहा____"और मामी के ऐसा कहने का शायद मतलब भी यही है कि वो अब आपका कहना मानेंगी।"
"लगता तो यही है।" मामा ने कहा____"लेकिन दो दिन से अभी तक उसने अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की है।"
"हो सकता है कि वो खुद पहल करने में शर्म महसूस करती हों।" मैंने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"एक काम कीजिए, आज रात आप यहीं पर हवेली के किसी कमरे में एक साथ सोइए। मैं आप दोनों के लिए ऐसी व्यवस्था कर दूंगा। उसके बाद कमरे में आप और मामी जम के मज़ा कीजिएगा।"
"योजना तो बढ़िया है तेरी।" मामा ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"लेकिन यहां पर अगर किसी को पता चल गया तो क्या सोचेंगे सब हम दोनों के बारे में?"
"किसी के सोचने की फ़िक्र क्यों करते हैं आप?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"सबको पता है कि मामी आपकी अपनी ज़ायदाद हैं। उनके साथ ये सब करना किसी के लिए कोई बड़ी बात कैसे हो जाएगी?"
"हां तू सही कह रहा है।" मामा का चेहरा चमक उठा था____"तो फिर ठीक है भांजे। तू आज रात हमारे लिए बढ़िया सा इंतज़ाम कर दे। मैं भी आज तेरी मामी के साथ इतने समय की पूरी कसर निकालूंगा। साली बहुत मना करती थी ना तो अब बताऊंगा उसे।"
"अपने जज़्बातों पर काबू रखिए मामा।" मैंने हंसते हुए कहा____"जो भी करना बड़े एहतियात से और बड़े प्यार से करना। ये नहीं कि आपकी करतूतों से बाकी सबको भी पता चल जाए कि ठाकुर अमर सिंह अपनी बीवी की चीखें निकाल रहे हैं।"
"मर्द को मज़ा भी तो तभी आता है भांजे।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा____"जब औरत उसके द्वारा पेले जाने से हलक फाड़ कर चीखे। रहम की भीख मांगे।"
"चीखने तक तो ठीक है मामा।" मैंने कहा____"लेकिन रहम की भीख मांगने वाली स्थिति अच्छी नहीं होती। वो स्थिति पाशविक होती है जोकि मर्दों को शोभा नहीं देती।"
"अरे वाह!" मामा ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"ये तू कह रहा है? बड़ी हैरानी की बात है ये तो। मतलब कमाल ही हो गया। हद है, तू तो सच में देव मानुष बन गया है मेरे भांजे।"
"देव मानुष तो नहीं।" मैंने जैसे संशोधन किया____"लेकिन हां एक अच्छा इंसान ज़रूर बनना चाहता हूं। अपने उस अतीत को भूल जाना चाहता हूं जिसमें मैंने जाने कैसे कैसे कुकर्म किए थे।"
"चल अच्छी बात है।" मामा ने मेरा कंधा दबाते हुए कहा____"मैं तो पहले भी तुझसे कहा करता था कि ये सब छोड़ दे लेकिन तब शायद तू ऐसी मानसिकता में ही नहीं था कि तेरे समझ में कुछ आता। ख़ैर अच्छा हुआ कि अब तेरी सोच बदल गई है और तू अच्छा इंसान बनने का सोचने लगा है। उम्मीद करता हूं कि भविष्य में तू जीजा जी से भी बड़ा इंसान बन जाएगा।"
"नहीं मामा।" मैंने अधीरता से कहा____"मैं कभी भी पिता जी से बड़ा या उनके जैसा नहीं बन पाऊंगा। ऐसा इस लिए क्योंकि उनका नाम शुरू से ही हर मामले में साफ और बेदाग़ रहा है। उन्होंने शुरू से ही हर किसी के साथ अच्छा बर्ताव किया था और सबके दुख दूर करते आए हैं। मैंने तो अपने अब तक के जीवन में ऐसे कोई नेक काम किए ही नहीं हैं बल्कि जो भी किया है बुरा ही किया है। इस लिए उनके जैसा इस जन्म में तो बन ही नहीं सकता। किंतु हां ये कोशिश ज़रूर रहेगी कि अब से जो भी करूं वो अच्छा ही करूं।"
कुछ देर और मामा से बातें हुईं उसके बाद दोपहर के खाने का समय हो गया तो हम दोनों कमरे से बाहर निकल गए। मामा से बातें कर के मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।
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दोपहर को थोड़ी देर आराम करने के बाद पिता जी और मझले मामा एक साथ किसी काम से बाहर चले गए जबकि बाकी लोग बैठक में बातें करने लगे। मैं भी बैठक में बैठा था और सबकी बातें सुन रहा था। अंदर सभी औरतें और लड़कियां काम में लगीं हुईं थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी को भी एक पल के लिए फुर्सत नहीं थी। कुछ औरतें गेंहू चावल और दाल साफ कर रहीं थी। हवेली के मुलाजिम हवेली को चमकाने में लगे हुए थे, कुछ हवेली के बाहर चारो तरफ की सफाई में लगे हुए थे।
अमर मामा दो बार मुझसे पूछ चुके थे कि आज रात मैंने उनका और मामी का हसीन मिलन कराने के लिए व्यवस्था की है या नहीं? मैंने मुस्कुराते हुए यही कहा कि वो फ़िक्र न करें। बच्चे बड़े हो रहे थे उनके फिर भी उनका अपना बचपना जैसे अभी तक नहीं गया था। मैंने उनसे कह तो दिया था कि वो फ़िक्र न करें लेकिन मैं खुद नहीं जानता था कि मैं सब कुछ करूंगा कैसे? कमरे का इंतज़ाम तो मैं बड़ी आसानी से कर सकता था लेकिन भीड़ भाड़ के माहौल में मामी को उनके पास पहुंचाना जैसे टेढ़ी खीर थी।
बहरहाल शाम तक दुनिया जहान की बातें चलती रहीं उसके बाद अंदर से एक नौकरानी सबके लिए चाय ले कर आ गई। हम सबने चाय पी। इस बीच सबने ये इच्छा जताई कि कुछ देर के लिए गांव घूम लिया जाए। मर्दों के पास फिलहाल के लिए जैसे कोई काम ही नहीं था। उधर पिता जी अभी तक नहीं आए थे।
मामा लोग गांव घूमने चले गए जबकि मैं हवेली के अंदर चला गया। मुझे समय रहते मामा का काम करना था लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि कैसे करूं? मामी के पास जा कर उनसे खुल कर कुछ कह भी नहीं सकता था। यही सब सोचते हुए मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेरे कमरे का दरवाज़ा खुला और कुसुम के साथ मामा की लड़कियां आ गईं।
"आप यहां हैं और हम आपको बैठक में ढूंढने गए थे।" कुसुम ने आते ही कहा____"चलिए उठिए आपको बड़ी मां बुला रहीं हैं।"
"आप यहां अकेले कमरे में क्या कर रहे हैं भैया?" सुमन ने मेरे क़रीब आ कर कहा____"हम सबके साथ क्यों नहीं बैठते हैं?"
"वो इस लिए मेरी प्यारी बहना क्योंकि तेरे इस भैया को भीड़ भाड़ में रहना पसंद नहीं है।" मैंने बड़े स्नेह से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"ख़ैर ये बता यहां तुम दोनों को अच्छा लग रहा है ना?"
"हां भैया।" सुषमा ने खुशी से कहा____"हमें यहां बहुत अच्छा लग रहा है। कुसुम दीदी से हमने बहुत सारी बातें की। दोनों बुआ से बातें की और हां छोटी बुआ के यहां से जो उनके भैया भाभी आए हैं उनसे भी बातें की।"
"ओह! तुम दोनों ने तो सबसे बातें कर ली और सबसे जान पहचान कर ली।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"और अपने इस भैया से बातें करने का अब ध्यान आया है तुम दोनों को, हां?"
"वो हम लोग सबके पास बैठे बातें कर रहे थे न इस लिए आपसे मिलने का समय ही नहीं मिला हमें।" सुमन ने मासूमियत से कहा____"पर अब तो हम अपने भैया के पास आ ही गए ना?"
"चलो अच्छा किया।" मैंने कहा____"अच्छा अब तुम लोग जाओ। मैं भी जा कर देखता हूं कि मां ने किस लिए बुलाया है मुझे?"
थोड़ी ही देर में हम सब नीचे आ गए। मैं मां से मिला और पूछा कि किस लिए मुझे बुलाया है उन्होंने तो मां ने कहा कि मेरी मामियां मुझे पूछ रहीं थी इस लिए बुलाया। ख़ैर मैं दोनों मामियों से मिला। बड़ी मामी ने तो कुशलता ही पूछी किंतु छोटी मामी थोड़ा मज़ाकिया अंदाज़ से मुझे छेड़ने लगीं। सबके सामने मैं शर्माने लगा तो सब हंसने लगीं। कुछ देर बाद मैंने छोटी मामी से कहा कि मुझे उनसे ज़रूरी बात करनी है इस लिए क्या वो रात में मेरे कमरे में आ सकती हैं? मामी मेरी इस बात से राज़ी हो गईं। मैं मन ही मन ये सोच कर खुश हो गया कि चलो काम बन गया।
बहरहाल समय गुज़रा और रात हो गई। पिता जी आ गए थे। हम सब उनके साथ खाना खाने बैठे। आज काफी समय बाद हवेली में इस तरह की रौनक देखने को मिल रही थी। सब खुश थे, इसी हंसी खुशी में खाना ख़त्म हुआ और फिर सब बैठक में आ गए। बैठक में थोड़ी देर इस बारे में चर्चा हुई कि कल क्या क्या करना है उसके बाद सब सोने चले गए। मैं पहले ही अपने कमरे में पहुंच गया था। थोड़ी ही देर में छोटे मामा आ गए।
"अरे! भांजे तूने कुछ किया है या नहीं?" उन्होंने आते ही अपने मतलब की बात पूछी____"देख अब तो सोने का समय भी हो गया है और तूने अब तक अपनी मामी को मेरे पास नहीं भेजा।"
"फ़िक्र मत कीजिए मामा।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने मामी को अपने कमरे में बुलाया है। वो आएंगी तो उन्हें किसी बहाने आपके पास भेज दूंगा। थोड़ा सबर कीजिए, आप तो ऐसे उतावले हो रहे हैं जैसे ये सब आप पहली बार करने वाले हैं।"
"अरे! पहली बार नहीं है मानता हूं।" मामा ने खिसियाते हुए कहा____"लेकिन साला लगता तो यही है कि तेरी मामी को पहली बार ही भोगने को मिलेगा। मुझे लगता है कि ऐसा इस लिए लग रहा है क्योंकि काफी समय हो गया उसके साथ मज़ा किए।"
"हां हां समझ गया मैं।" मैंने हल्के से हंसते हुए कहा____"अब आप जाइए। मामी खा पी कर ही आएंगी तब तक आपको इंतज़ार करना पड़ेगा।"
"अब तो इंतज़ार ही करना पड़ेगा भांजे।" मामा ने गहरी सांस ली____"बस तू बीच में धोखा मत करवा देना।"
मामा की इस बात पर मैं हंसा, जबकि वो बाहर निकल गए। मैंने ऊपर ही उनके लिए एक कमरे की व्यवस्था कर दी थी। अब बस इन्तज़ार था मामी के आने का। अगर वो मेरे कमरे में आएंगी तभी कुछ हो सकता था।
मामा मामी के चक्कर में मैं ना तो रूपा के बारे में सोच पा रहा था और ना ही रागिनी भाभी के बारे में। ज़हन में बस यही चल रहा था कि क्या मामी मेरे कमरे में आएंगी? उनका मेरे कमरे में आना इस लिए भी थोड़ा मुश्किल था क्योंकि औरतें जब सबके पास बैठ कर बातें करने में मशगूल हो जाती हैं तो फिर उन्हें बाकी किसी चीज़ का होश ही नहीं रहता है। दूसरी बात ये भी हो सकती थी कि रात के इस वक्त शायद वो सच में ही न आएं।
बहरहाल, मैं इंतज़ार ही कर सकता था। मुझे ये सोच कर भी हंसी आ रही थी कि मामा बेचारे मन में जाने कैसे कैसे ख़याली पुलाव बनाते हुए अपनी बीवी के आने की प्रतिक्षा कर रहे होंगे। अगर आज वो नहीं आईं तो यकीनन सुबह मुझे उनके गुस्से का शिकार हो जाना पड़ेगा।
क़रीब एक घंटे बाद मेरे कमरे में दस्तक हुई। रात के क़रीब ग्यारह बज रहे थे। आम दिनों की अपेक्षा ये समय ज़्यादा ही था किंतु शादी ब्याह वाले माहौल में थोड़ी देर सवेर हो ही जाती थी। खैर, दत्सक हुई तो मैं समझ गया कि ज़रूर मामी ही आई होंगी। मामी के आने के एहसास से अचानक ही मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं।
इससे पहले कि उन्हें दुबारा दस्तक देनी पड़ती मैं फ़ौरन ही दरवाज़े के पास पहुंचा और दरवाज़ा खोल दिया। बाहर सचमुच मामी ही खड़ी थीं। सुर्ख साड़ी में इस वक्त वो ग़ज़ब ही ढा रहीं थी। तीन तीन बच्चों की मां होने के बाद भी रोहिणी मामी भरपूर जवान नज़र आती थीं।
"माफ़ करना वैभव आने में देर हो गई मुझे।" मुझ पर नज़र पड़ते ही उन्होंने अपनी मधुर आवाज़ में कहा____"असल में खाना पीना करने के बाद बर्तन धुलवाने में व्यस्त हो गई थी मैं। अभी जब काम से फारिग हुई तो एकदम से याद आया कि तुमने कोई ज़रूरी बात करने के लिए मुझे बुलाया था।"
"कोई बात नहीं मामी।" मैं दरवाज़े से एक तरफ हटते हुए बोला____"आप अंदर आ जाइए।"
मेरे कहने पर मामी कमरे में आ गईं। इधर मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि अब कैसे मामी को मामा तक पहुंचाऊं?
"अब बताओ वैभव।" मैं सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में मामी की आवाज़ पड़ी____"मुझसे कौन सी ज़रूरी बात करनी थी तुम्हें?"
"वो आपको मुझे मामा के बारे में कुछ बताना था।" मैंने खुद को सम्हालते हुए बड़ी हिम्मत जुटा कर कहा____"आज मामा मुझसे मिले तो मैंने देखा कि वो बहुत परेशान थे। मेरे पूछने पर भी मुझे कुछ नहीं बताया। फिर मैंने सोचा कि इस बारे में आपसे पूछूंगा। मैं आपसे जानना चाहता हूं मामी कि मेरे मामा आख़िर किस बात से इतना परेशान हैं? आख़िर ऐसी कौन सी बात थी जिसे वो मुझको भी नहीं बता सके?"
मामी मेरी ये बातें सुन कर फ़ौरन कुछ ना बोल सकीं। उनके चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे। इधर मेरी धड़कनें धाड़ धाड़ कर के बजे जा रहीं थी। मैं खुल कर इस बारे में उनसे कुछ कह नहीं सकता था इस लिए मैंने इस तरह से उनसे बात की ताकि वो इस बात से शर्मिंदगी न महसूस करें कि मुझे उनके बीच की इतनी बड़ी बात पता है। आख़िर हमारे बीच रिश्ता ही ऐसा था जिसके चलते मुझे मर्यादा का ख़याल रखना था।
"क्या हुआ मामी?" मामी जब सोचो में ही गुम रहीं तो मैंने चिंता ज़ाहिर करते हुए उन्हें सोचो से बाहर खींचा____"आप एकदम से क्या सोचने लगीं? मुझे बताइए मामी कि आख़िर बात क्या है? मेरे मामा आख़िर किस बात से इतना ज़्यादा परेशान हैं?"
"कोई बड़ी बात नहीं है वैभव।" मामी ने थोड़ी झिझक और थोड़ा गंभीरता से कहा____"तुम उनके लिए इतनी चिंता मत करो।"
"ऐसे कैसे चिंता न करूं मामी?" मैंने फिक्रमंदी से कहा____"वो मेरे मामा हैं। मैं भला ये कैसे सहन कर लूंगा कि मेरे मामा किसी बात से परेशान रहें? मैं जानना चाहता हूं कि आख़िर उन्हें हुआ क्या है? आपको तो पता ही होगा तो बताइए ना मुझे?"
"वो असल में बात ये है वैभव कि मुझे भी इस बारे में ठीक से पता नहीं है।" मामी ने नज़रें चुराते हुए कहा____"वो कई दिनों से परेशान हैं और मैंने उनसे पूछा भी था लेकिन उन्होंने ठीक से कुछ नहीं बताया।"
"ऐसा कैसे हो सकता है मामी?" मैंने हैरानी ज़ाहिर की____"आप उनकी पत्नी हैं, आपको तो उनसे पूछना ही चाहिए था। उनकी परेशानी के बारे में जान कर आपको उनकी परेशानी भी दूर करनी चाहिए थी।"
"हां मैं समझती हूं वैभव।" मामी ने कहा____"मैं भी चाहती हूं कि उनकी परेशानी दूर हो जाए।"
"अगर आप सच में ऐसा चाहती हैं तो आपको इस बारे में बिल्कुल भी देर नहीं करनी चाहिए।" मैंने अच्छा मौका जान कर कहा____"वो आपके पति हैं और आप उनकी पत्नी इस लिए आप दोनों को एक दूसरे से अपनी अपनी परेशानी बतानी चाहिए और फिर उसको दूर करने का भी प्रयास करना चाहिए।"
"हां ये तो तुम सही कह रहे हो।" मामी ने कहा____"तुम्हारे विवाह के बाद जब हम वापस घर जाएंगे तो मैं उनसे उनकी परेशानी के बारे में ज़ोर दे कर पूछूंगी।"
"मेरा विवाह होने में अभी काफी समय है मामी।" मैंने कहा____"क्या इतने समय तक मामा को परेशानी की हालत में रखना ठीक होगा? मेरा ख़याल है कि बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा, इस लिए आपको जल्द से जल्द उनकी परेशानी दूर करने का क़दम उठाना चाहिए।"
"हां लेकिन यहां मैं उनसे कैसे बात कर सकूंगी वैभव?" मामी ने जैसे अपनी समस्या ज़ाहिर की____"तुम्हें तो पता ही है कि यहां इतने लोगों के रहते मैं इस बारे में उनसे बात नहीं कर पाऊंगी और ये उचित भी नहीं होगा।"
"बात जब समस्या वाली हो मामी तो इंसान को ना तो उचित अनुचित के बारे में सोचना चाहिए और ना ही लोगों की परवाह करनी चाहिए।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"इंसान को सिर्फ ये सोचना चाहिए कि उसकी समस्या का जल्द से जल्द निदान हो जाए। वैसे इस समय भी कोई समस्या वाली बात नहीं है। इत्तेफ़ाक से मैंने मामा के सोने का इंतज़ाम यहीं ऊपर ही एक कमरे में कर दिया था। आप एक काम कीजिए, इसी समय उनके पास जाइए और उनसे उनकी परेशानी जान कर उनकी परेशानी को दूर करने का प्रयास कीजिए।"
"ये...ये तुम क्या कह रहे हो वैभव?" मामी ने एकदम से घबराहट जैसे अंदाज़ से मेरी तरफ देखा____"यहां सबके बीच इस तरह मैं उनसे कैसे मिल सकती हूं। लोगों को पता चला तो सब क्या सोचेंगे इस बारे में?"
"फिर से वही बात।" मैंने कहा____"आप फिर लोगों के बारे में सोचने लगीं? जबकि आपको किसी की परवाह न करते हुए सिर्फ अपनी समस्याओं को दूर करने के बारे में सोचना चाहिए। वैसे भी यहां किसी को कुछ पता नहीं चलने वाला। सब दिन भर के थके हुए हैं, बिस्तर में पहुंचते ही घोड़े बेंच कर सो गए होंगे। आप बेझिझक हो कर मामा के पास जाइए और मेरे बारे में तो आपको कुछ सोचने की ज़रूरत ही नहीं है क्योंकि मैं समझता हूं कि इस समय आपके लिए यही उचित है।"
मामी मुझे अपलक देखने लगीं। जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रहीं हों। मैंने सोचा कि अगर उन्होंने इस बारे में ज़्यादा दिमाग़ लगाया तो इसी समय समझ जाएंगी कि मुझे सब कुछ पता है और इसी के चलते मैं उनको मामा के पास जाने के लिए ज़ोर दे रहा हूं। ज़ाहिर है इस बात को समझते ही उन्हें मेरे सामने शर्मिंदगी भी होगी जोकि इस वक्त मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता था।
बहरहाल मामी ने थोड़ी सी ना नुकुर की लेकिन मैंने किसी तरह उन्हें समझा बुझा कर मामा के कमरे में जाने के लिए मना ही लिया और खुद उन्हें ले कर मामा के कमरे के पास पहुंच गया। मामी मेरी वजह से बहुत ज़्यादा असहज महसूस कर रहीं थी। चेहरे पर लाज की सुर्खी भी छा गई थी। मैंने दरवाज़े पर दस्तक दी और फिर चुपचाप पलट कर अपने कमरे में आ गया। इस बीच मैंने दरवाज़ा खुलने की हल्की आवाज़ सुन ली थी। ज़ाहिर है दरवाज़े के बाहर अपनी पत्नी को खड़ा देख मामा उन्हें अंदर बुला ही लेंगे। अब इतना तो वो कर ही सकते थे।
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अगली सुबह मामा नीचे बरामदे में कुर्सी पर बैठे चाय पी रहे थे। उनके चेहरे पर खुशी की चमक दिख रही थी। कुछ दूरी पर मां चाची मामी और बाकी लड़कियां बैठी काम कर रहीं थी। मामा चाय पीते हुए बार बार मामी को देख रहे थे। मैंने जब ये देखा तो मुस्कुरा उठा।
"क्या हाल है मामा।" मैं उनके पास पहुंचते ही उनसे मुस्कुराते हुए पूछा____"इस हवेली में कल की रात कैसी गुज़री आपकी?"
मेरी बात सुनते ही मामा पहले तो सकपकाए फिर एकदम से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और धीरे से कहा____"एकदम ज़बरदस्त भांजे।"
उधर मेरी आवाज़ रोहिणी मामी के कानों में भी पड़ चुकी थी जिसके चलते उन्होंने एक झटके से गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा। इत्तेफ़ाक से मेरी नज़र भी उनकी तरफ घूम गई। मेरी और मामी की नज़र मिली। घूंघट तो किया हुआ था उन्होंने लेकिन घूंघट का पल्लू इस वक्त सिर्फ उनके सिर को ढंके हुए था। मुझसे नज़र मिलते ही उनके चेहरे पर लाज और शर्म की लाली छा गई और उन्होंने शर्मा कर झट से अपना चेहरा वापस घुमा लिया। मेरे लिए ये समझ लेना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था कि उनको पता चल गया है कि ये सारा किया धरा मेरा ही था, बल्कि ये कहना चाहिए कि ये सारी योजना ही मामा भांजे की थी।
"फिर तो अच्छी बात है मामा।" मैंने अपनी आवाज़ को सामान्य से थोड़ा ऊंचा करते हुए कहा ताकि मामी भी सुन सकें____"उम्मीद करता हूं अब से हर रोज़ इसी तरह आपकी रात ज़बरदस्त गुज़रेगी।"
"तू मेरा सबसे अच्छा भांजा है वैभव।" मामा कुछ ज़्यादा ही खुश थे इस लिए अपनी खुशी को ज़ाहिर करते हुए बोले____"और मुझे हमेशा तुझ पर नाज़ रहेगा।"
"अरे! ऐसा क्यों कहते हैं मामा?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके चलते आपको हमेशा मुझ पर नाज़ रहेगा?"
"अरे! तेरी ही वजह से तो सबको खुशियां मिली हैं।" मामा ने अपनी बात एक बहाने के रूप में कही____"वरना सबके सब खुशियों के लिए तरस ही रहे थे।"
मैंने देखा, मामी ने गर्दन घुमा कर फिर से हमारी तरफ देखा। एक बार फिर से इत्तेफ़ाकन मेरी नज़र उनसे टकरा गई और उन्होंने एकदम से शर्मा कर अपना चेहरा वापस घुमा लिया। मैं समझ गया कि इस वक्त मामी अंदर ही अंदर बुरी तरह शर्मा रही हैं और शायद वो ये सोच कर भी चकित होंगी कि हम दोनों मामा भांजे कैसे इस तरह की बातें बहाने बहाने से कर रहे हैं।
"वैसे तो इसमें मेरा कोई विशेष योगदान नहीं है मामा।" मैंने उसी मुस्कान के साथ कहा____"पर यदि आप इसके लिए मुझे ही श्रेय दे रहे हैं तो मैं आपको बता दूं कि बदले में मुझे भी आपको कुछ देना होगा। सिर्फ बातें कह देने से काम नहीं चलेगा।"
"अरे! तू बता ना भांजे कि बदले में तुझे क्या चाहिए?" मामा ने एकदम से सीना चौड़ा करते हुए कहा____"तेरा ये मामा तुझे वचन देता है कि तू जो मांगेगा मैं तुझे दूंगा।"
"अच्छा क्या सच में?" मैंने ग़ौर से उनकी तरफ देखा।
"अरे! क्या तुझे अपने मामा पर भरोसा नहीं है भांजे?" मामा ने इस तरह की शक्ल बना कर कहा जैसे मैंने उनकी तौहीन कर दी हो।
"नहीं ऐसी तो बात नहीं है मामा।" मैंने एक नज़र मामी पर डालने के बाद कहा____"मैं तो बस ये कहना चाहता था कि वचन देने से पहले आपको अच्छी तरह सोच लेना चाहिए था कि मैं जो मांगूंगा आप वो दे भी सकेंगे या नहीं?"
"देख भांजे।" मामा ने जैसे निर्णायक भाव से कहा____"अब तो मैं तुझे वचन दे चुका हूं इस लिए अब कुछ सोचने विचारने का सवाल ही पैदा नहीं होता। तू बस बेझिझक हो के मांग जो तुझे चाहिए।"
मैंने देखा मामी चकित भाव से हमारी तरफ ही देखने लगीं थी। मैं उन्हें देख मुस्कुराया और फिर मामा से कहा____"ठीक है मामा, लेकिन मैं अपने लिए आपसे कुछ नहीं मागूंगा। मैं तो सिर्फ इतना ही चाहता हूं कि जैसे कल की रात आपके लिए अच्छी गुज़री है वैसी ही हर रात आपकी गुज़रे।"
"अरे! तू तो सच में मेरा कमाल का भांजा है वैभव।" मामा पहले तो हैरान हुए फिर खुशी से मुस्कुराते हुए बोले____"अपने लिए कुछ नहीं मांगा बल्कि मेरी खुशी की चाहत रखी।"
"क्यों न रखूं मामा।" मैंने एक बार फिर से मामी की तरफ एक नज़र डाली, फिर कहा____"आप मेरे सबसे अच्छे वाले मामा हैं और मुझे पता है कि खुशियों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत आपको है। रही मेरी बात तो, आप तो अच्छी तरह जानते हैं कि मुझे मौजूदा समय में किसी से कुछ मांगने की ज़रूरत ही नहीं है।"
"तुम दोनों मामा भांजे किस बारे में बातें कर रहे हो?" अचानक मां ने गर्दन घुमा कर हमारी तरफ देखते हुए पूछा तो मैं और मामा एकदम से हड़बड़ा गए। उधर मामी के चेहरे का भी रंग उड़ता नज़र आया। मां की बात सुन कर मामा ने जल्दी से खुद को सम्हाला और संतुलित भाव से कहा____"अरे! ये हमारी आपस की बातें हैं दीदी, आप नहीं समझेंगी।"
"अच्छा।" मां के माथे पर शिकन उभरी___"ऐसी भला कौन सी बातें कर रहे हो तुम दोनों जिन्हें मैं समझ ही नहीं सकती, हां?"
"भांजे अब क्या करें यार?" मामा एकदम से चिंतित हो कर मेरी तरफ देख बोले____"दीदी को क्या जवाब दूं? तू ही जल्दी से कुछ सोच और बता उन्हें।"
"क्या हुआ कुछ बोल क्यों नहीं रहा तू?" मां ने मामा की तरफ ध्यान से देखते हुए पूछा और फिर मेरी तरफ देखने लगीं।
"क्या मां आप भी अपना काम छोड़ कर हम मामा भांजे की बातों पर ध्यान देने लगीं।" मैंने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"हम तो बस ऐसे ही बातें कर रहे हैं, है ना मामा?"
"ह...हां हां और नहीं तो क्या?" मामा एकदम से हकलाते हुए बोल पड़े____"हम तो ऐसे ही समय बिताने के लिए बातें कर रहे हैं दीदी। आप मन लगा कर अपना काम कीजिए ना।"
मैंने देखा मामी हमारी तरफ देखते हुए मुस्कुराए जा रहीं थी। इधर मामा की बात सुन कर मां ने हम दोनों को बारी बारी से घूर कर देखा और फिर पलट कर सबके साथ काम में लग गईं। कहने की ज़रूरत नहीं कि हम दोनों मामा भांजे ने राहत की लंबी सांस ली।
"तूने फंसवा दिया था हम दोनों को।" फिर मामा ने धीरे से मुझसे कहा____"क्या ज़रूरत थी ऊंची आवाज़ में बातें करने की। अच्छा हुआ कि दीदी को समझ नहीं आया वरना हम दोनों की ख़ैर नहीं थी।"
"सही कह रहे हैं आप।" मैंने कहा____"बाल बाल बचे। मैं तो बस मामी को सुनाने के चक्कर में थोड़ा ऊंची आवाज़ में बोल रहा था। मुझे नहीं पता था कि मां भी हमारी बातें सुनने लगेंगी। वैसे क्या लगता है आपको, उन्हें हमारी बातें समझ आ गई होंगी?"
"क्या पता।" मामा ने कंधे उचकाए____"लेकिन अब इतना पता है कि हमें अब यहां से खिसक लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो तेरी मामी नाराज़ हो जाए और फिर वो मुझे अपने पास आने ही न दे। अगर एसा हुआ तो समझ ही सकता है कि तेरी दुआएं और चाहतें मिट्टी में ही मिल जाएंगी।"
मैंने मुस्कुराते हुए हां में सिर हिलाया। उसके बाद हम दोनों ही अपना अपना चाय का खाली प्याला वहीं छोड़ कर बाहर की तरफ खिसक लिए। मामी मुस्कुराते हुए हमें जाता देख रहीं थी।
बाहर बैठक में बाकी सब बैठे हुए थे और आज के कार्यक्रम की रणनीति बना रहे थे। मामा भी उनके बीच जा कर बैठ गए जबकि मैं हवेली से बाहर निकल गया। कई दिनों से मैं हवेली में ही था और इस वजह से मुझे घुटन सी होने लगी थी। वैसे तो मां चाची और मामी लोगों ने भी मुझसे कहा था कि अब से मैं हवेली में ही रहूं लेकिन मेरा मन अब थोड़ा ऊब चुका था। मैं बाहर की खुली हवा लेना चाहता था इस लिए मोटर साईकिल में बैठ कर चल दिया।
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मेरी मोटर साईकिल सीधा उस जगह पर पहुंच कर रुकी जहां पर अनुराधा का विदाई स्थल था। आज वातारण में थोड़ा कोहरे जैसी धुंध छाई हुई थी जिसकी वजह से धूप के ताप का बिल्कुल भी एहसास नहीं हो रहा था। मैंने अपने बदन पर ऊन का स्वेटर पहन रखा था।
अनुराधा के विदाई स्थल के पास पहुंच कर मैं घुटनों के बल कच्ची ज़मीन पर बैठ गया। इस जगह आने से एक अलग ही अनुभूति होती थी। कुछ समय के लिए जैसे मैं सब कुछ भूल जाता था। बंद पलकों में अनुराधा के साथ बिताए हुए लम्हों की तस्वीरें देखते हुए मैं बस उन्हीं में खो जाता था। उसके बाद सामने देखते हुए उससे काफी देर तक अपने दिल की बातें करता रहता। मैं उसको सब कुछ बताता था कि आज मेरे साथ क्या क्या हुआ और आगे क्या होने वाला है। फिर एकाएक मेरा मन उससे ये कहते हुए भारी हो जाता कि काश! तुम जीवित अवस्था में मेरे पास होती तो मुझे अलग ही खुशी होती। ऊपर बैठे विधाता से उसे वापस करने की मिन्नतें करता और अनुराधा से ये कहते हुए माफियां मांगता कि मेरे कुकर्मों की वजह से आज वो इस दुनियां में नहीं है।
कुछ समय बाद मैं उठा और वहीं से सरोज काकी के घर चल पड़ा। आज कई दिनों बाद मैं उसके घर आया था। मुझे आया देख वो बड़ा खुश हुई। मैंने पहले ही उसको बता दिया था कि भाभी के साथ मेरा विवाह होने वाला है और फिर रूपा के साथ भी।
"कल मेरी बेटी रूपा भी यहां अपनी एक बहन के साथ आई थी।" सरोज काकी ने कहा____"मुझसे कह रही थी कि अब वो विवाह होने तक मेरे पास नहीं आ पाएगी। इस लिए मैं अनूप के साथ ही उसके घर पर रहूं।"
"हां तो इसमें ग़लत क्या है काकी?" मैंने अधीरता से कहा____"तुम्हें उसके विवाह तक उसके घर पर ही रहना चाहिए।"
"हां मैं समझती हूं।" सरोज काकी ने कहा____"लेकिन थोड़ा संकोच होता है, ये सोच कर कि मैं एक मामूली से किसान की औरत हूं और वो बड़े लोग हैं।"
"छोटे बड़े जैसी कोई बात नहीं है काकी।" मैंने कहा____"अगर होती तो अब तक जो कुछ हुआ है वो न हुआ होता। क्या तुमने कभी महसूस किया है कि मैंने या मेरे घर वालों ने तुम्हें छोटा होने का एहसास कराया है अथवा रूपा और उसके घर वालों ने ऐसा कभी किया है?"
"मैं मानती हूं कि ऐसा तुम में से किसी ने नहीं किया वैभव।" सरोज काकी ने कहा____"और सच कहूं तो इसके लिए मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली समझती हूं लेकिन कहीं न कहीं मुझे अपनी स्थिति का एहसास तो होता ही है कि मैं एक छोटी हैसियत वाली हूं और मुझे अपनी हद में रहना चाहिए।"
"ऐसा कह कर तुम हम सबकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रही हो काकी।" मैंने संजीदा हो कर कहा____"हम में से किसी ने भी कभी तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ नहीं सोचा है। जहां प्रेम होता है वहां हैसियत वाली बात ही नहीं होती। अनुराधा से मिलने से पहले मैं हैसियत के बारे में सोच भी सकता था लेकिन उससे मिलने के बाद और उससे प्रेम होने के बाद मेरे दिलो दिमाग़ से हैसियत संबंधित बातों का वजूद ही मिट चुका है। अगर ऐसा न होता तो अनुराधा की मौत के बाद मैं उसे अपनी दुल्हन बना कर विदा न करता। आज भी मैं उसको अपनी पहली पत्नी ही मानता हूं और उस नाते तुम मेरी सास हो, अनूप मेरा साला है। क्या अब भी तुम्हें लगता है कि इसमें हैसियत की बात है? क्या अब भी तुम्हें लगता है कि तुम हम में से किसी से छोटी हो?"
"मुझे माफ़ कर दो वैभव।" सरोज काकी की आंखें भर आईं____"मैं यही समझ बैठी थी कि मेरी बेटी अनू के जाने के बाद तुमने ये रिश्ता मिटा दिया होगा।"
"नहीं, मैं ऐसा कभी नहीं कर सकता काकी।" मैंने गंभीरता से कहा____"और ना ही कभी करूंगा। मेरा प्रेम अनुराधा के गुज़र जाने से मिट जाने वाला नहीं है। मैंने तो उसके गुज़र जाने पर ही उसको अपनी पत्नी बनाया था तो अब ये रिश्ता मरते दम तक क़ायम रहेगा। तुम ही इस रिश्ते को ना मानो तो अलग बात है।"
"नहीं नहीं।" सरोज काकी जैसे तड़प उठी____"ऐसा मत कहो। ये सच है कि अभी तक मैं इस रिश्ते को महत्व नहीं दे रही थी लेकिन तुम्हारी ये बातें सुन कर मुझे एहसास हो गया है कि मैं ग़लत थी। मेरा यकीन करो बेटा, अब से मैं भी तुमको अपना दामाद ही मानूंगी और जीवन भर मानूंगी।"
"अगर तुम सच में ऐसा मानती हो।" मैंने कहा____"तो फिर अपने दामाद की बातें भी मानों काकी। रूपा ने तुम्हें अपनी मां कहा है और तुमने भी उसको अनुराधा की तरह अपनी बेटी माना है तो फिर इस रिश्ते को पूरी ईमानदारी से और पूरी निष्ठा से निभाओ। अगर उसके घर वाले चाहते हैं कि विवाह तक तुम उनके साथ ही रहो तो तुम्हें खुशी खुशी वहीं रहना चाहिए।"
"मैं अब रहूंगी बेटा।" सरोज काकी ने दृढ़ता से कहा____"अपनी बेटी रूपा को उसी तरह तुमसे विवाह कर के विदा करूंगी जैसे मैं अनुराधा को करती।"
कुछ देर और सरोज काकी से बातें हुईं उसके बाद मैं वहां से चल पड़ा। थोड़े ही समय में मैं भुवन से मिलने अपने खेतों पर पहुंच गया। भुवन खेतों पर ही था। मैं उससे मिला और उसे बरात में चलने का निमंत्रण भी दिया। भुवन इस बात से बड़ा खुश हुआ। उसके बाद मैं हवेली निकल गया।
"आय हाय! समय नहीं है तेरे पास।" शालिनी ने आंखें फैलाई____"ज़्यादा बातें न कर मेरे सामने। मुझे पता है कि आज कल तू खाली बैठी जीजा जी के हसीन ख़यालों में ही खोई रहती है, बात करती है।"
उसकी बात सुन कर रागिनी झूठा गुस्सा दिखाते हुए उसे मारने के लिए दौड़ी तो शालिनी हंसते हुए भाग ली। उसके जाने के बाद रागिनी भी मंद मंद मुस्कुराते हुए घर के अंदर चली गई।
अब आगे....
अगले दो दिनों के भीतर ही हवेली में नात रिश्तेदार आ गए। मेरे ननिहाल वाले और चाची के मायके से भी आ गए। मेरे ननिहाल से नाना नानी और बड़े मामा मामी को छोड़ कर सभी आ गए जिनमें उनके बच्चे भी थे। उधर चाची के मायके से उनके बड़े भैया भाभी आए। उनके मझले भाई अवधराज नहीं आए। ऐसा शायद इस लिए कि जगताप चाचा को जो ज्ञान उन्होंने दिया था उसके चलते अब वो यहां किसी को अपना मुंह नहीं दिखाना चाहते थे। किंतु अपने बच्चों को ज़रूर भेज दिया था।
हवेली में एकदम भीड़ सी जमा हो गई थी। अंदर इंसान ही इंसान नज़र आने लगे थे। पिता जी के कहने पर मैंने सबके रहने की उचित व्यवस्था की जोकि इतनी बड़ी हवेली में कोई मुश्किल काम नहीं था। नीचे ऊपर के बहुत से कमरे खाली ही रहते थे। सबके आ जाने से एक अलग ही रौनक और चहल पहल नज़र आने लगी थी।
मेरे मझले मामा यानि अवधेश सिंह राणा और छोटे मामा यानि अमर सिंह राणा बैठक में पिता जी के पास बैठे हुए थे। मझले मामा का बेटा महेश सिंह राणा जोकि शादी शुदा था वो भी बैठक में ही था। इसके साथ ही चाची के बड़े भाई हेमराज सिंह भी बैठे हुए थे। उनकी पत्नी सुजाता अंदर मां लोगों के पास थीं। अमर मामा के लड़के लड़कियां भी अंदर ही थे।
छोटे मामा की दोनों बेटियां यानि सुमन और सुषमा जोकि उमर में कुसुम से क़रीब एक डेढ़ साल छोटी थीं वो अंदर कुसुम के साथ थीं और उनका छोटा किंतु इकलौता भाई विजय मां लोगों के पास बैठा हुआ था। मैं जब छोटा था तो अपने ननिहाल अक्सर जाया करता था और ज़्यादा समय तक वहीं रहता था लेकिन फिर जैसे जैसे बड़ा हुआ और मुझमें बदलाव आया तो मैंने वहां जाना कम कर दिया था।
मुझे भीड़ भाड़ वाला माहौल ज़्यादा पसंद नहीं था इस लिए मैं सबकी व्यवस्था करने के बाद चुपचाप अपने कमरे में पहुंच गया था। एकाएक ही हालात के बदलने से मेरे अंदर अजीब सा एहसास होने लगा था। बार बार यही ख़याल उभर आता कि अब बस कुछ ही दिनों में मेरा विवाह हो जाएगा और मैं भी शादी शुदा हो जाऊंगा। लोगों के एक ही बीवी होती है जबकि मेरी दो हो जाएंगी। एक तरफ रूपा और दूसरी तरफ रागिनी...हां अब तो भाभी को मुझे उनके नाम से पुकारना होगा। इस एहसास के साथ ही मेरे अंदर अजीब सी सिहरन दौड़ गई। पलक झपकते ही भाभी का खूबसूरत चेहरा आंखों के सामने उजागर हो गया।
उफ्फ! कितनी सुंदर हैं वो। जब भैया जीवित थे तब वो सुहागन थीं और सुहागन के रूप में उनकी सुंदरता देखते ही बनती थी। मैं यूं ही तो नहीं उनके सम्मोहन में फंस जाता था। मैंने अपने ख़यालों में फिर से उन्हें सुहागन के रूप में सजा हुआ देखा तो मेरे अंदर फिर से अजीब सी सिहरन दौड़ गई। बिजली की तरह ज़हन में ख़याल भी उभर आया कि सुंदरता की यही मूरत अब मेरी पत्नी बनने वाली है। विवाह के बाद मुझे उनके साथ पति की तरह ही पेश आना होगा। मैं सोचने लगा कि क्या मैं सहजता से ऐसा कर पाऊंगा? आख़िर वो अब तक मेरी भाभी थीं और उमर में भी मुझसे बड़ी थीं। आख़िर कैसे एक पति के रूप में मैं उनके साथ पेश आ पाऊंगा? रूपा के मामले में मुझे कोई फ़िक्र नहीं थी क्योंकि उसके मामले में मैं पहले से ही पूरी तरह सहज था। उसके साथ मैं पहले भी वो सब कुछ कर चुका था जो शादी के बाद पति पत्नी करते हैं लेकिन भाभी के बारे में तो मैंने कभी इस तरह की कोई कल्पना ही नहीं की थी। भाभी के रिश्ते में उनसे थोड़ा बहुत हंसी मज़ाक कर लेता था लेकिन उसमें भी मैं हमारे बीच की मर्यादा का सबसे ज़्यादा ख़याल रखता था।
मैं जैसे जैसे इस सबके बारे में सोचता जा रहा था वैसे वैसे मेरे अंदर बेचैनी और घबराहट सी पैदा होती का रही थी। मैं चाह कर भी खुद को सामान्य नहीं कर पा रहा था। ऐसा नहीं था कि मैं भाभी को अब अपनी पत्नी की नज़र से देखने और सोचने नहीं लगा था लेकिन जहां बात इसके आगे की आती थी वहां की बातें सोच कर मेरे जिस्म में सिहरन दौड़ने लगती थी और बड़ा अजीब सा लगने लगता था।
"क्या हाल है मेरे दूल्हे राजा?" अचानक कमरे में गूंज उठी किसी की आवाज़ से मैं उछल ही पड़ा। आंखें खोल कर देखा तो मेरे छोटे मामा अमर सिंह कमरे में दाख़िल हो कर मुझे ही देख रहे थे। चेहरे पर खुशी और होठों पर गहरी मुस्कान लिए जैसे वो मुझे चिढ़ाते से नज़र आए। छोटे मामा से मेरी खूब पटती थी।
"अरे! मामा ये आप हैं?" मैंने उठते हुए कहा____"अचानक से आपकी आवाज़ सुन कर मैं चौंक ही पड़ा था। आइए बैठिए।"
"वो तो मैं बैठूंगा ही।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर आ कर पलंग के किनारे पर बैठ गए। कुछ पलों तक मुझे ध्यान से देखते रहे फिर बोले____"अच्छा तो यहां अपने कमरे में अकेले पड़ा तू खुद को तैयार करने में जुटा हुआ है।"
"क...क्या मतलब है आपका?" मैं समझ तो गया लेकिन फिर भी अंजान बनते हुए पूछा।
"बेटा अच्छी तरह जानता हूं तुझे।" मामा ने घूरते हुए कहा____"मेरे सामने अंजान बनने की कोशिश मत कर। मुझे पता है कि तू आने वाले दिनों के लिए खुद को तैयार का रहा है। वैसे अच्छा ही है, तैयार करना भी चाहिए। आदमी जब एक बीवी के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश करता है तो तेरे जीवन में तो दो दो बीवियां होंगी। ऐसे में तेरा खुद को तैयार करना उचित ही है। ख़ैर तो अब तक कितना तैयार कर लिया है तूने खुद को?"
"ऐसा कुछ नहीं है मामा।" मैंने अपनी झेंप को जबरन छुपाने की कोशिश करते हुए कहा____"क्या आपको सच में लगता है कि आपके भांजे को किसी बात के लिए तैयार करने की ज़रूरत है? आप तो जानते हैं कि औरतों के मामले में मैं बहुत आगे रहा हूं।"
"बिल्कुल जानता हूं भांजे और मानता भी हूं कि इस मामल में तू बहुत आगे रहा है।" मामा ने कहा____"लेकिन बेटा तुझे ये भी समझना चाहिए कि आम औरतों में और खुद की बीवी में धरती आसमान का फ़र्क होता है। आम औरतों के साथ तू कैसा भी बर्ताव कर के अपनी जान छुड़ा सकता है लेकिन अपनी बीवी से किसी कीमत पर जान नहीं छुड़ा सकता। इसी लिए कहता हूं कि इस मामले में तेरी बयानबाज़ी से कुछ नहीं हो सकता।"
"आप तो मुझे बेवजह डरा रहे हैं मामा।" मैंने अपने अंदर झुरझुरी सी महसूस की____"मैं भला क्यों अपनी बीवियों से जान छुड़ाने का सोचूंगा? बल्कि मैं तो खुद ही ये चाहूंगा कि वो मुझसे दूर न हों।"
"अच्छा ऐसा है क्या?" मामा ने आंखें फैला कर कहा____"फिर तो ये बड़ी अच्छी बात है। कम से कम इसी बहाने अब तू भी सही रास्ते पर आ जाएगा। सच कहूं तो मुझे बहुत खुशी हुई थी ये जान कर कि तेरा ब्याह होने वाला है लेकिन ये जान कर थोड़ी हैरानी भी हुई थी कि तेरा एक नहीं दो दो लड़कियों से ब्याह होने वाला है। तेरे नाना को भी बड़ी हैरानी हुई थी लेकिन फिर जब उन्होंने मामले की गंभीरता को समझा तो फिर वो यही कहने लगे कि ये अच्छा ही हो रहा है। इस तरह से कम से कम रागिनी बहू का जीवन भी फिर से संवर जाएगा। अन्यथा विधवा के रूप में बाकी का सारा जीवन गुज़ारना उसके लिए यकीनन हद से ज़्यादा कठिन होता।"
"ये सब तो ठीक है मामा।" मैंने थोड़ा बेचैन भाव से कहा____"लेकिन सच कहूं तो भाभी से विवाह होने की बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होता है। जिस दिन से मुझे इस बारे में पता चला है उसी दिन से जाने क्या क्या सोचते हुए खुद को समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि आगे जो भी होगा उसका मैं सहजता से सामना कर लूंगा। मगर सच तो ये है कि अब तक मैं भाभी के लिए खुद को पूरी तरह से तैयार नहीं कर पाया हूं।"
"हां समझ सकता हूं।" मामा ने कहा____"लेकिन अब तो तुझे इसके लिए खुद को तैयार करना ही पड़ेगा। वैसे मैं तो यही कहूंगा कि तुझे इस बारे में ज़्यादा सोचना नहीं चाहिए। असल में कभी कभी ऐसा होता है कि हमें मौजूदा समय में किसी समस्या को सुलझाने का तरीका समझ में नहीं आता लेकिन जब वैसा समय आ जाता है तो सब कुछ बहुत ही सहजता से हो जाता है। इस लिए तू ये सब वक्त पर छोड़ दे। ये सोच कर कि जो होगा देखा जाएगा।"
"हम्म्म्म शायद आप सही कह रहे हैं।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"और वैसे भी इसके अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है। ख़ैर आप अपनी सुनाएं, मामी के साथ कैसी कट रही है जिंदगी?"
"क्या बताऊं भांजे?" मामा ने सहसा गहरी सांस ली____"बस यूं समझ ले कि किसी तरह कट ही रही है।"
"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" मैं एकदम से चौंका____"सब ठीक तो है ना?"
"क्या ख़ाक ठीक है यार।" मामा ने जैसे खीझते हुए कहा____"साला बच्चे बड़े हो जाते हैं तो हम मर्दों को जाने कैसे कैसे समझौते करने पड़ते हैं। तेरी मामी को बहुत समझाता हूं लेकिन वो मूर्ख कुछ समझती ही नहीं है। मैंने बहुत सी ऐसी औरतों को देखा है जो ज़्यादा उमर हो जाने के बाद भी संभोग सुख का मज़ा लेती रहती हैं और एक तेरी मामी है कि साली अभी से खुद को बुड्ढी कहने लगी है।"
"फिर तो ये आपके लिए बड़ी भारी समस्या हो गई है।" मैंने चकित भाव से कहा____"ख़ैर अब आप क्या करेंगे?"
"करूंगा नहीं बल्कि करने लगा हूं भांजे।" मामा ने कहा____"तू ही बता कि ऐसे में मैं इसके अलावा करता ही क्या कि अपनी भूख मिटाने के लिए बाहर किसी औरत के पास जाऊं? तेरी मामी को भी कहा था कि अगर वो इस बारे में मेरा साथ नहीं देगी तो मुझे बाहर किसी दूसरी औरत के साथ ये सब करना पड़ेगा।"
"तो क्या ये सुनने के बाद भी मामी को समझ नहीं आया?" मैंने हैरानी से पूछा।
"पहले तो गुस्सा हो रही थी।" मामा ने कहा____"कह रही थी कि मेरे अंदर ये कैसी गर्मी चढ़ी है कि मैं इतने बडे बड़े बच्चों का बाप हो जाने के बाद भी ये सब करने पर तुला हुआ हूं? मैंने उसे समझाया कि ये तो उसके लिए अच्छी बात है कि मैं अब भी उसे संभोग का सुख देना चाहता हूं वरना ऐसी भी औरतें हैं जो अपने पति से संभोग सुख पाने के लिए तरसती हैं और फिर वो मज़बूरी में ग़ैर मर्दों से संबंध बना लेती हैं।"
"फिर क्या कहा मामी ने?" मैंने उत्सकुता से पूछा।
"दो तीन दिनों तक बात ही नहीं की उसने।" मामा ने बताया____"मैं भी गुस्सा हो गया था इस लिए मैंने भी उसे मनाने का नहीं सोचा। जब उसे ही कुछ समझ नहीं आ रहा था तो मैंने भी सोच लिया कि अब उससे इस सबकी उम्मीद रखना ही बेकार है। उसके बाद मैंने वही किया जो करने का मैंने मन बना लिया था। तुझे तो पता ही है कि हमारे खेतों में काम करने वाली ऐसी औरतों की कमी नहीं है। मैंने उन्हीं में से एक को इशारा किया और फिर उसके साथ मज़ा किया। तब से यही चल रहा है।"
"और मामी को भी ये सब पता है?" मैंने बेयकीनी से पूछा।
"हां, मैंने बता दिया था उसको।" मामा ने कहा____"जब वो अपने से ही मुझसे बोलने लगी तो मैंने एक दिन उसे सब कुछ बता दिया। ये भी कहा कि अगर वो अब भी मेरे बारे में सोचेगी तो मैं बाहर की औरतों के साथ ये सब करना बंद कर दूंगा।"
"तो फिर क्या कहा मामी ने?" मैंने बड़ी उत्सुकता से पूछा।
"अभी तो कुछ नहीं कहा।" मामा ने कहा____"लेकिन लगता है कि मान जाएगी। ऐसा मैं इस लिए कह रहा हूं क्योंकि दो दिन पहले जब इस बारे में मैंने उसे बताया था तब उसने यही कहा था कि मैं बाहर ये सब करना बंद कर दूं।"
"इसका मतलब ये दो दिन पहले की बात है।" मैंने कहा____"और मामी के ऐसा कहने का शायद मतलब भी यही है कि वो अब आपका कहना मानेंगी।"
"लगता तो यही है।" मामा ने कहा____"लेकिन दो दिन से अभी तक उसने अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की है।"
"हो सकता है कि वो खुद पहल करने में शर्म महसूस करती हों।" मैंने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"एक काम कीजिए, आज रात आप यहीं पर हवेली के किसी कमरे में एक साथ सोइए। मैं आप दोनों के लिए ऐसी व्यवस्था कर दूंगा। उसके बाद कमरे में आप और मामी जम के मज़ा कीजिएगा।"
"योजना तो बढ़िया है तेरी।" मामा ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"लेकिन यहां पर अगर किसी को पता चल गया तो क्या सोचेंगे सब हम दोनों के बारे में?"
"किसी के सोचने की फ़िक्र क्यों करते हैं आप?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"सबको पता है कि मामी आपकी अपनी ज़ायदाद हैं। उनके साथ ये सब करना किसी के लिए कोई बड़ी बात कैसे हो जाएगी?"
"हां तू सही कह रहा है।" मामा का चेहरा चमक उठा था____"तो फिर ठीक है भांजे। तू आज रात हमारे लिए बढ़िया सा इंतज़ाम कर दे। मैं भी आज तेरी मामी के साथ इतने समय की पूरी कसर निकालूंगा। साली बहुत मना करती थी ना तो अब बताऊंगा उसे।"
"अपने जज़्बातों पर काबू रखिए मामा।" मैंने हंसते हुए कहा____"जो भी करना बड़े एहतियात से और बड़े प्यार से करना। ये नहीं कि आपकी करतूतों से बाकी सबको भी पता चल जाए कि ठाकुर अमर सिंह अपनी बीवी की चीखें निकाल रहे हैं।"
"मर्द को मज़ा भी तो तभी आता है भांजे।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा____"जब औरत उसके द्वारा पेले जाने से हलक फाड़ कर चीखे। रहम की भीख मांगे।"
"चीखने तक तो ठीक है मामा।" मैंने कहा____"लेकिन रहम की भीख मांगने वाली स्थिति अच्छी नहीं होती। वो स्थिति पाशविक होती है जोकि मर्दों को शोभा नहीं देती।"
"अरे वाह!" मामा ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"ये तू कह रहा है? बड़ी हैरानी की बात है ये तो। मतलब कमाल ही हो गया। हद है, तू तो सच में देव मानुष बन गया है मेरे भांजे।"
"देव मानुष तो नहीं।" मैंने जैसे संशोधन किया____"लेकिन हां एक अच्छा इंसान ज़रूर बनना चाहता हूं। अपने उस अतीत को भूल जाना चाहता हूं जिसमें मैंने जाने कैसे कैसे कुकर्म किए थे।"
"चल अच्छी बात है।" मामा ने मेरा कंधा दबाते हुए कहा____"मैं तो पहले भी तुझसे कहा करता था कि ये सब छोड़ दे लेकिन तब शायद तू ऐसी मानसिकता में ही नहीं था कि तेरे समझ में कुछ आता। ख़ैर अच्छा हुआ कि अब तेरी सोच बदल गई है और तू अच्छा इंसान बनने का सोचने लगा है। उम्मीद करता हूं कि भविष्य में तू जीजा जी से भी बड़ा इंसान बन जाएगा।"
"नहीं मामा।" मैंने अधीरता से कहा____"मैं कभी भी पिता जी से बड़ा या उनके जैसा नहीं बन पाऊंगा। ऐसा इस लिए क्योंकि उनका नाम शुरू से ही हर मामले में साफ और बेदाग़ रहा है। उन्होंने शुरू से ही हर किसी के साथ अच्छा बर्ताव किया था और सबके दुख दूर करते आए हैं। मैंने तो अपने अब तक के जीवन में ऐसे कोई नेक काम किए ही नहीं हैं बल्कि जो भी किया है बुरा ही किया है। इस लिए उनके जैसा इस जन्म में तो बन ही नहीं सकता। किंतु हां ये कोशिश ज़रूर रहेगी कि अब से जो भी करूं वो अच्छा ही करूं।"
कुछ देर और मामा से बातें हुईं उसके बाद दोपहर के खाने का समय हो गया तो हम दोनों कमरे से बाहर निकल गए। मामा से बातें कर के मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।
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दोपहर को थोड़ी देर आराम करने के बाद पिता जी और मझले मामा एक साथ किसी काम से बाहर चले गए जबकि बाकी लोग बैठक में बातें करने लगे। मैं भी बैठक में बैठा था और सबकी बातें सुन रहा था। अंदर सभी औरतें और लड़कियां काम में लगीं हुईं थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी को भी एक पल के लिए फुर्सत नहीं थी। कुछ औरतें गेंहू चावल और दाल साफ कर रहीं थी। हवेली के मुलाजिम हवेली को चमकाने में लगे हुए थे, कुछ हवेली के बाहर चारो तरफ की सफाई में लगे हुए थे।
अमर मामा दो बार मुझसे पूछ चुके थे कि आज रात मैंने उनका और मामी का हसीन मिलन कराने के लिए व्यवस्था की है या नहीं? मैंने मुस्कुराते हुए यही कहा कि वो फ़िक्र न करें। बच्चे बड़े हो रहे थे उनके फिर भी उनका अपना बचपना जैसे अभी तक नहीं गया था। मैंने उनसे कह तो दिया था कि वो फ़िक्र न करें लेकिन मैं खुद नहीं जानता था कि मैं सब कुछ करूंगा कैसे? कमरे का इंतज़ाम तो मैं बड़ी आसानी से कर सकता था लेकिन भीड़ भाड़ के माहौल में मामी को उनके पास पहुंचाना जैसे टेढ़ी खीर थी।
बहरहाल शाम तक दुनिया जहान की बातें चलती रहीं उसके बाद अंदर से एक नौकरानी सबके लिए चाय ले कर आ गई। हम सबने चाय पी। इस बीच सबने ये इच्छा जताई कि कुछ देर के लिए गांव घूम लिया जाए। मर्दों के पास फिलहाल के लिए जैसे कोई काम ही नहीं था। उधर पिता जी अभी तक नहीं आए थे।
मामा लोग गांव घूमने चले गए जबकि मैं हवेली के अंदर चला गया। मुझे समय रहते मामा का काम करना था लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि कैसे करूं? मामी के पास जा कर उनसे खुल कर कुछ कह भी नहीं सकता था। यही सब सोचते हुए मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेरे कमरे का दरवाज़ा खुला और कुसुम के साथ मामा की लड़कियां आ गईं।
"आप यहां हैं और हम आपको बैठक में ढूंढने गए थे।" कुसुम ने आते ही कहा____"चलिए उठिए आपको बड़ी मां बुला रहीं हैं।"
"आप यहां अकेले कमरे में क्या कर रहे हैं भैया?" सुमन ने मेरे क़रीब आ कर कहा____"हम सबके साथ क्यों नहीं बैठते हैं?"
"वो इस लिए मेरी प्यारी बहना क्योंकि तेरे इस भैया को भीड़ भाड़ में रहना पसंद नहीं है।" मैंने बड़े स्नेह से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"ख़ैर ये बता यहां तुम दोनों को अच्छा लग रहा है ना?"
"हां भैया।" सुषमा ने खुशी से कहा____"हमें यहां बहुत अच्छा लग रहा है। कुसुम दीदी से हमने बहुत सारी बातें की। दोनों बुआ से बातें की और हां छोटी बुआ के यहां से जो उनके भैया भाभी आए हैं उनसे भी बातें की।"
"ओह! तुम दोनों ने तो सबसे बातें कर ली और सबसे जान पहचान कर ली।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"और अपने इस भैया से बातें करने का अब ध्यान आया है तुम दोनों को, हां?"
"वो हम लोग सबके पास बैठे बातें कर रहे थे न इस लिए आपसे मिलने का समय ही नहीं मिला हमें।" सुमन ने मासूमियत से कहा____"पर अब तो हम अपने भैया के पास आ ही गए ना?"
"चलो अच्छा किया।" मैंने कहा____"अच्छा अब तुम लोग जाओ। मैं भी जा कर देखता हूं कि मां ने किस लिए बुलाया है मुझे?"
थोड़ी ही देर में हम सब नीचे आ गए। मैं मां से मिला और पूछा कि किस लिए मुझे बुलाया है उन्होंने तो मां ने कहा कि मेरी मामियां मुझे पूछ रहीं थी इस लिए बुलाया। ख़ैर मैं दोनों मामियों से मिला। बड़ी मामी ने तो कुशलता ही पूछी किंतु छोटी मामी थोड़ा मज़ाकिया अंदाज़ से मुझे छेड़ने लगीं। सबके सामने मैं शर्माने लगा तो सब हंसने लगीं। कुछ देर बाद मैंने छोटी मामी से कहा कि मुझे उनसे ज़रूरी बात करनी है इस लिए क्या वो रात में मेरे कमरे में आ सकती हैं? मामी मेरी इस बात से राज़ी हो गईं। मैं मन ही मन ये सोच कर खुश हो गया कि चलो काम बन गया।
बहरहाल समय गुज़रा और रात हो गई। पिता जी आ गए थे। हम सब उनके साथ खाना खाने बैठे। आज काफी समय बाद हवेली में इस तरह की रौनक देखने को मिल रही थी। सब खुश थे, इसी हंसी खुशी में खाना ख़त्म हुआ और फिर सब बैठक में आ गए। बैठक में थोड़ी देर इस बारे में चर्चा हुई कि कल क्या क्या करना है उसके बाद सब सोने चले गए। मैं पहले ही अपने कमरे में पहुंच गया था। थोड़ी ही देर में छोटे मामा आ गए।
"अरे! भांजे तूने कुछ किया है या नहीं?" उन्होंने आते ही अपने मतलब की बात पूछी____"देख अब तो सोने का समय भी हो गया है और तूने अब तक अपनी मामी को मेरे पास नहीं भेजा।"
"फ़िक्र मत कीजिए मामा।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने मामी को अपने कमरे में बुलाया है। वो आएंगी तो उन्हें किसी बहाने आपके पास भेज दूंगा। थोड़ा सबर कीजिए, आप तो ऐसे उतावले हो रहे हैं जैसे ये सब आप पहली बार करने वाले हैं।"
"अरे! पहली बार नहीं है मानता हूं।" मामा ने खिसियाते हुए कहा____"लेकिन साला लगता तो यही है कि तेरी मामी को पहली बार ही भोगने को मिलेगा। मुझे लगता है कि ऐसा इस लिए लग रहा है क्योंकि काफी समय हो गया उसके साथ मज़ा किए।"
"हां हां समझ गया मैं।" मैंने हल्के से हंसते हुए कहा____"अब आप जाइए। मामी खा पी कर ही आएंगी तब तक आपको इंतज़ार करना पड़ेगा।"
"अब तो इंतज़ार ही करना पड़ेगा भांजे।" मामा ने गहरी सांस ली____"बस तू बीच में धोखा मत करवा देना।"
मामा की इस बात पर मैं हंसा, जबकि वो बाहर निकल गए। मैंने ऊपर ही उनके लिए एक कमरे की व्यवस्था कर दी थी। अब बस इन्तज़ार था मामी के आने का। अगर वो मेरे कमरे में आएंगी तभी कुछ हो सकता था।
मामा मामी के चक्कर में मैं ना तो रूपा के बारे में सोच पा रहा था और ना ही रागिनी भाभी के बारे में। ज़हन में बस यही चल रहा था कि क्या मामी मेरे कमरे में आएंगी? उनका मेरे कमरे में आना इस लिए भी थोड़ा मुश्किल था क्योंकि औरतें जब सबके पास बैठ कर बातें करने में मशगूल हो जाती हैं तो फिर उन्हें बाकी किसी चीज़ का होश ही नहीं रहता है। दूसरी बात ये भी हो सकती थी कि रात के इस वक्त शायद वो सच में ही न आएं।
बहरहाल, मैं इंतज़ार ही कर सकता था। मुझे ये सोच कर भी हंसी आ रही थी कि मामा बेचारे मन में जाने कैसे कैसे ख़याली पुलाव बनाते हुए अपनी बीवी के आने की प्रतिक्षा कर रहे होंगे। अगर आज वो नहीं आईं तो यकीनन सुबह मुझे उनके गुस्से का शिकार हो जाना पड़ेगा।
क़रीब एक घंटे बाद मेरे कमरे में दस्तक हुई। रात के क़रीब ग्यारह बज रहे थे। आम दिनों की अपेक्षा ये समय ज़्यादा ही था किंतु शादी ब्याह वाले माहौल में थोड़ी देर सवेर हो ही जाती थी। खैर, दत्सक हुई तो मैं समझ गया कि ज़रूर मामी ही आई होंगी। मामी के आने के एहसास से अचानक ही मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं।
इससे पहले कि उन्हें दुबारा दस्तक देनी पड़ती मैं फ़ौरन ही दरवाज़े के पास पहुंचा और दरवाज़ा खोल दिया। बाहर सचमुच मामी ही खड़ी थीं। सुर्ख साड़ी में इस वक्त वो ग़ज़ब ही ढा रहीं थी। तीन तीन बच्चों की मां होने के बाद भी रोहिणी मामी भरपूर जवान नज़र आती थीं।
"माफ़ करना वैभव आने में देर हो गई मुझे।" मुझ पर नज़र पड़ते ही उन्होंने अपनी मधुर आवाज़ में कहा____"असल में खाना पीना करने के बाद बर्तन धुलवाने में व्यस्त हो गई थी मैं। अभी जब काम से फारिग हुई तो एकदम से याद आया कि तुमने कोई ज़रूरी बात करने के लिए मुझे बुलाया था।"
"कोई बात नहीं मामी।" मैं दरवाज़े से एक तरफ हटते हुए बोला____"आप अंदर आ जाइए।"
मेरे कहने पर मामी कमरे में आ गईं। इधर मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि अब कैसे मामी को मामा तक पहुंचाऊं?
"अब बताओ वैभव।" मैं सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में मामी की आवाज़ पड़ी____"मुझसे कौन सी ज़रूरी बात करनी थी तुम्हें?"
"वो आपको मुझे मामा के बारे में कुछ बताना था।" मैंने खुद को सम्हालते हुए बड़ी हिम्मत जुटा कर कहा____"आज मामा मुझसे मिले तो मैंने देखा कि वो बहुत परेशान थे। मेरे पूछने पर भी मुझे कुछ नहीं बताया। फिर मैंने सोचा कि इस बारे में आपसे पूछूंगा। मैं आपसे जानना चाहता हूं मामी कि मेरे मामा आख़िर किस बात से इतना परेशान हैं? आख़िर ऐसी कौन सी बात थी जिसे वो मुझको भी नहीं बता सके?"
मामी मेरी ये बातें सुन कर फ़ौरन कुछ ना बोल सकीं। उनके चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे। इधर मेरी धड़कनें धाड़ धाड़ कर के बजे जा रहीं थी। मैं खुल कर इस बारे में उनसे कुछ कह नहीं सकता था इस लिए मैंने इस तरह से उनसे बात की ताकि वो इस बात से शर्मिंदगी न महसूस करें कि मुझे उनके बीच की इतनी बड़ी बात पता है। आख़िर हमारे बीच रिश्ता ही ऐसा था जिसके चलते मुझे मर्यादा का ख़याल रखना था।
"क्या हुआ मामी?" मामी जब सोचो में ही गुम रहीं तो मैंने चिंता ज़ाहिर करते हुए उन्हें सोचो से बाहर खींचा____"आप एकदम से क्या सोचने लगीं? मुझे बताइए मामी कि आख़िर बात क्या है? मेरे मामा आख़िर किस बात से इतना ज़्यादा परेशान हैं?"
"कोई बड़ी बात नहीं है वैभव।" मामी ने थोड़ी झिझक और थोड़ा गंभीरता से कहा____"तुम उनके लिए इतनी चिंता मत करो।"
"ऐसे कैसे चिंता न करूं मामी?" मैंने फिक्रमंदी से कहा____"वो मेरे मामा हैं। मैं भला ये कैसे सहन कर लूंगा कि मेरे मामा किसी बात से परेशान रहें? मैं जानना चाहता हूं कि आख़िर उन्हें हुआ क्या है? आपको तो पता ही होगा तो बताइए ना मुझे?"
"वो असल में बात ये है वैभव कि मुझे भी इस बारे में ठीक से पता नहीं है।" मामी ने नज़रें चुराते हुए कहा____"वो कई दिनों से परेशान हैं और मैंने उनसे पूछा भी था लेकिन उन्होंने ठीक से कुछ नहीं बताया।"
"ऐसा कैसे हो सकता है मामी?" मैंने हैरानी ज़ाहिर की____"आप उनकी पत्नी हैं, आपको तो उनसे पूछना ही चाहिए था। उनकी परेशानी के बारे में जान कर आपको उनकी परेशानी भी दूर करनी चाहिए थी।"
"हां मैं समझती हूं वैभव।" मामी ने कहा____"मैं भी चाहती हूं कि उनकी परेशानी दूर हो जाए।"
"अगर आप सच में ऐसा चाहती हैं तो आपको इस बारे में बिल्कुल भी देर नहीं करनी चाहिए।" मैंने अच्छा मौका जान कर कहा____"वो आपके पति हैं और आप उनकी पत्नी इस लिए आप दोनों को एक दूसरे से अपनी अपनी परेशानी बतानी चाहिए और फिर उसको दूर करने का भी प्रयास करना चाहिए।"
"हां ये तो तुम सही कह रहे हो।" मामी ने कहा____"तुम्हारे विवाह के बाद जब हम वापस घर जाएंगे तो मैं उनसे उनकी परेशानी के बारे में ज़ोर दे कर पूछूंगी।"
"मेरा विवाह होने में अभी काफी समय है मामी।" मैंने कहा____"क्या इतने समय तक मामा को परेशानी की हालत में रखना ठीक होगा? मेरा ख़याल है कि बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा, इस लिए आपको जल्द से जल्द उनकी परेशानी दूर करने का क़दम उठाना चाहिए।"
"हां लेकिन यहां मैं उनसे कैसे बात कर सकूंगी वैभव?" मामी ने जैसे अपनी समस्या ज़ाहिर की____"तुम्हें तो पता ही है कि यहां इतने लोगों के रहते मैं इस बारे में उनसे बात नहीं कर पाऊंगी और ये उचित भी नहीं होगा।"
"बात जब समस्या वाली हो मामी तो इंसान को ना तो उचित अनुचित के बारे में सोचना चाहिए और ना ही लोगों की परवाह करनी चाहिए।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"इंसान को सिर्फ ये सोचना चाहिए कि उसकी समस्या का जल्द से जल्द निदान हो जाए। वैसे इस समय भी कोई समस्या वाली बात नहीं है। इत्तेफ़ाक से मैंने मामा के सोने का इंतज़ाम यहीं ऊपर ही एक कमरे में कर दिया था। आप एक काम कीजिए, इसी समय उनके पास जाइए और उनसे उनकी परेशानी जान कर उनकी परेशानी को दूर करने का प्रयास कीजिए।"
"ये...ये तुम क्या कह रहे हो वैभव?" मामी ने एकदम से घबराहट जैसे अंदाज़ से मेरी तरफ देखा____"यहां सबके बीच इस तरह मैं उनसे कैसे मिल सकती हूं। लोगों को पता चला तो सब क्या सोचेंगे इस बारे में?"
"फिर से वही बात।" मैंने कहा____"आप फिर लोगों के बारे में सोचने लगीं? जबकि आपको किसी की परवाह न करते हुए सिर्फ अपनी समस्याओं को दूर करने के बारे में सोचना चाहिए। वैसे भी यहां किसी को कुछ पता नहीं चलने वाला। सब दिन भर के थके हुए हैं, बिस्तर में पहुंचते ही घोड़े बेंच कर सो गए होंगे। आप बेझिझक हो कर मामा के पास जाइए और मेरे बारे में तो आपको कुछ सोचने की ज़रूरत ही नहीं है क्योंकि मैं समझता हूं कि इस समय आपके लिए यही उचित है।"
मामी मुझे अपलक देखने लगीं। जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रहीं हों। मैंने सोचा कि अगर उन्होंने इस बारे में ज़्यादा दिमाग़ लगाया तो इसी समय समझ जाएंगी कि मुझे सब कुछ पता है और इसी के चलते मैं उनको मामा के पास जाने के लिए ज़ोर दे रहा हूं। ज़ाहिर है इस बात को समझते ही उन्हें मेरे सामने शर्मिंदगी भी होगी जोकि इस वक्त मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता था।
बहरहाल मामी ने थोड़ी सी ना नुकुर की लेकिन मैंने किसी तरह उन्हें समझा बुझा कर मामा के कमरे में जाने के लिए मना ही लिया और खुद उन्हें ले कर मामा के कमरे के पास पहुंच गया। मामी मेरी वजह से बहुत ज़्यादा असहज महसूस कर रहीं थी। चेहरे पर लाज की सुर्खी भी छा गई थी। मैंने दरवाज़े पर दस्तक दी और फिर चुपचाप पलट कर अपने कमरे में आ गया। इस बीच मैंने दरवाज़ा खुलने की हल्की आवाज़ सुन ली थी। ज़ाहिर है दरवाज़े के बाहर अपनी पत्नी को खड़ा देख मामा उन्हें अंदर बुला ही लेंगे। अब इतना तो वो कर ही सकते थे।
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अगली सुबह मामा नीचे बरामदे में कुर्सी पर बैठे चाय पी रहे थे। उनके चेहरे पर खुशी की चमक दिख रही थी। कुछ दूरी पर मां चाची मामी और बाकी लड़कियां बैठी काम कर रहीं थी। मामा चाय पीते हुए बार बार मामी को देख रहे थे। मैंने जब ये देखा तो मुस्कुरा उठा।
"क्या हाल है मामा।" मैं उनके पास पहुंचते ही उनसे मुस्कुराते हुए पूछा____"इस हवेली में कल की रात कैसी गुज़री आपकी?"
मेरी बात सुनते ही मामा पहले तो सकपकाए फिर एकदम से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और धीरे से कहा____"एकदम ज़बरदस्त भांजे।"
उधर मेरी आवाज़ रोहिणी मामी के कानों में भी पड़ चुकी थी जिसके चलते उन्होंने एक झटके से गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा। इत्तेफ़ाक से मेरी नज़र भी उनकी तरफ घूम गई। मेरी और मामी की नज़र मिली। घूंघट तो किया हुआ था उन्होंने लेकिन घूंघट का पल्लू इस वक्त सिर्फ उनके सिर को ढंके हुए था। मुझसे नज़र मिलते ही उनके चेहरे पर लाज और शर्म की लाली छा गई और उन्होंने शर्मा कर झट से अपना चेहरा वापस घुमा लिया। मेरे लिए ये समझ लेना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था कि उनको पता चल गया है कि ये सारा किया धरा मेरा ही था, बल्कि ये कहना चाहिए कि ये सारी योजना ही मामा भांजे की थी।
"फिर तो अच्छी बात है मामा।" मैंने अपनी आवाज़ को सामान्य से थोड़ा ऊंचा करते हुए कहा ताकि मामी भी सुन सकें____"उम्मीद करता हूं अब से हर रोज़ इसी तरह आपकी रात ज़बरदस्त गुज़रेगी।"
"तू मेरा सबसे अच्छा भांजा है वैभव।" मामा कुछ ज़्यादा ही खुश थे इस लिए अपनी खुशी को ज़ाहिर करते हुए बोले____"और मुझे हमेशा तुझ पर नाज़ रहेगा।"
"अरे! ऐसा क्यों कहते हैं मामा?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके चलते आपको हमेशा मुझ पर नाज़ रहेगा?"
"अरे! तेरी ही वजह से तो सबको खुशियां मिली हैं।" मामा ने अपनी बात एक बहाने के रूप में कही____"वरना सबके सब खुशियों के लिए तरस ही रहे थे।"
मैंने देखा, मामी ने गर्दन घुमा कर फिर से हमारी तरफ देखा। एक बार फिर से इत्तेफ़ाकन मेरी नज़र उनसे टकरा गई और उन्होंने एकदम से शर्मा कर अपना चेहरा वापस घुमा लिया। मैं समझ गया कि इस वक्त मामी अंदर ही अंदर बुरी तरह शर्मा रही हैं और शायद वो ये सोच कर भी चकित होंगी कि हम दोनों मामा भांजे कैसे इस तरह की बातें बहाने बहाने से कर रहे हैं।
"वैसे तो इसमें मेरा कोई विशेष योगदान नहीं है मामा।" मैंने उसी मुस्कान के साथ कहा____"पर यदि आप इसके लिए मुझे ही श्रेय दे रहे हैं तो मैं आपको बता दूं कि बदले में मुझे भी आपको कुछ देना होगा। सिर्फ बातें कह देने से काम नहीं चलेगा।"
"अरे! तू बता ना भांजे कि बदले में तुझे क्या चाहिए?" मामा ने एकदम से सीना चौड़ा करते हुए कहा____"तेरा ये मामा तुझे वचन देता है कि तू जो मांगेगा मैं तुझे दूंगा।"
"अच्छा क्या सच में?" मैंने ग़ौर से उनकी तरफ देखा।
"अरे! क्या तुझे अपने मामा पर भरोसा नहीं है भांजे?" मामा ने इस तरह की शक्ल बना कर कहा जैसे मैंने उनकी तौहीन कर दी हो।
"नहीं ऐसी तो बात नहीं है मामा।" मैंने एक नज़र मामी पर डालने के बाद कहा____"मैं तो बस ये कहना चाहता था कि वचन देने से पहले आपको अच्छी तरह सोच लेना चाहिए था कि मैं जो मांगूंगा आप वो दे भी सकेंगे या नहीं?"
"देख भांजे।" मामा ने जैसे निर्णायक भाव से कहा____"अब तो मैं तुझे वचन दे चुका हूं इस लिए अब कुछ सोचने विचारने का सवाल ही पैदा नहीं होता। तू बस बेझिझक हो के मांग जो तुझे चाहिए।"
मैंने देखा मामी चकित भाव से हमारी तरफ ही देखने लगीं थी। मैं उन्हें देख मुस्कुराया और फिर मामा से कहा____"ठीक है मामा, लेकिन मैं अपने लिए आपसे कुछ नहीं मागूंगा। मैं तो सिर्फ इतना ही चाहता हूं कि जैसे कल की रात आपके लिए अच्छी गुज़री है वैसी ही हर रात आपकी गुज़रे।"
"अरे! तू तो सच में मेरा कमाल का भांजा है वैभव।" मामा पहले तो हैरान हुए फिर खुशी से मुस्कुराते हुए बोले____"अपने लिए कुछ नहीं मांगा बल्कि मेरी खुशी की चाहत रखी।"
"क्यों न रखूं मामा।" मैंने एक बार फिर से मामी की तरफ एक नज़र डाली, फिर कहा____"आप मेरे सबसे अच्छे वाले मामा हैं और मुझे पता है कि खुशियों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत आपको है। रही मेरी बात तो, आप तो अच्छी तरह जानते हैं कि मुझे मौजूदा समय में किसी से कुछ मांगने की ज़रूरत ही नहीं है।"
"तुम दोनों मामा भांजे किस बारे में बातें कर रहे हो?" अचानक मां ने गर्दन घुमा कर हमारी तरफ देखते हुए पूछा तो मैं और मामा एकदम से हड़बड़ा गए। उधर मामी के चेहरे का भी रंग उड़ता नज़र आया। मां की बात सुन कर मामा ने जल्दी से खुद को सम्हाला और संतुलित भाव से कहा____"अरे! ये हमारी आपस की बातें हैं दीदी, आप नहीं समझेंगी।"
"अच्छा।" मां के माथे पर शिकन उभरी___"ऐसी भला कौन सी बातें कर रहे हो तुम दोनों जिन्हें मैं समझ ही नहीं सकती, हां?"
"भांजे अब क्या करें यार?" मामा एकदम से चिंतित हो कर मेरी तरफ देख बोले____"दीदी को क्या जवाब दूं? तू ही जल्दी से कुछ सोच और बता उन्हें।"
"क्या हुआ कुछ बोल क्यों नहीं रहा तू?" मां ने मामा की तरफ ध्यान से देखते हुए पूछा और फिर मेरी तरफ देखने लगीं।
"क्या मां आप भी अपना काम छोड़ कर हम मामा भांजे की बातों पर ध्यान देने लगीं।" मैंने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"हम तो बस ऐसे ही बातें कर रहे हैं, है ना मामा?"
"ह...हां हां और नहीं तो क्या?" मामा एकदम से हकलाते हुए बोल पड़े____"हम तो ऐसे ही समय बिताने के लिए बातें कर रहे हैं दीदी। आप मन लगा कर अपना काम कीजिए ना।"
मैंने देखा मामी हमारी तरफ देखते हुए मुस्कुराए जा रहीं थी। इधर मामा की बात सुन कर मां ने हम दोनों को बारी बारी से घूर कर देखा और फिर पलट कर सबके साथ काम में लग गईं। कहने की ज़रूरत नहीं कि हम दोनों मामा भांजे ने राहत की लंबी सांस ली।
"तूने फंसवा दिया था हम दोनों को।" फिर मामा ने धीरे से मुझसे कहा____"क्या ज़रूरत थी ऊंची आवाज़ में बातें करने की। अच्छा हुआ कि दीदी को समझ नहीं आया वरना हम दोनों की ख़ैर नहीं थी।"
"सही कह रहे हैं आप।" मैंने कहा____"बाल बाल बचे। मैं तो बस मामी को सुनाने के चक्कर में थोड़ा ऊंची आवाज़ में बोल रहा था। मुझे नहीं पता था कि मां भी हमारी बातें सुनने लगेंगी। वैसे क्या लगता है आपको, उन्हें हमारी बातें समझ आ गई होंगी?"
"क्या पता।" मामा ने कंधे उचकाए____"लेकिन अब इतना पता है कि हमें अब यहां से खिसक लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो तेरी मामी नाराज़ हो जाए और फिर वो मुझे अपने पास आने ही न दे। अगर एसा हुआ तो समझ ही सकता है कि तेरी दुआएं और चाहतें मिट्टी में ही मिल जाएंगी।"
मैंने मुस्कुराते हुए हां में सिर हिलाया। उसके बाद हम दोनों ही अपना अपना चाय का खाली प्याला वहीं छोड़ कर बाहर की तरफ खिसक लिए। मामी मुस्कुराते हुए हमें जाता देख रहीं थी।
बाहर बैठक में बाकी सब बैठे हुए थे और आज के कार्यक्रम की रणनीति बना रहे थे। मामा भी उनके बीच जा कर बैठ गए जबकि मैं हवेली से बाहर निकल गया। कई दिनों से मैं हवेली में ही था और इस वजह से मुझे घुटन सी होने लगी थी। वैसे तो मां चाची और मामी लोगों ने भी मुझसे कहा था कि अब से मैं हवेली में ही रहूं लेकिन मेरा मन अब थोड़ा ऊब चुका था। मैं बाहर की खुली हवा लेना चाहता था इस लिए मोटर साईकिल में बैठ कर चल दिया।
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मेरी मोटर साईकिल सीधा उस जगह पर पहुंच कर रुकी जहां पर अनुराधा का विदाई स्थल था। आज वातारण में थोड़ा कोहरे जैसी धुंध छाई हुई थी जिसकी वजह से धूप के ताप का बिल्कुल भी एहसास नहीं हो रहा था। मैंने अपने बदन पर ऊन का स्वेटर पहन रखा था।
अनुराधा के विदाई स्थल के पास पहुंच कर मैं घुटनों के बल कच्ची ज़मीन पर बैठ गया। इस जगह आने से एक अलग ही अनुभूति होती थी। कुछ समय के लिए जैसे मैं सब कुछ भूल जाता था। बंद पलकों में अनुराधा के साथ बिताए हुए लम्हों की तस्वीरें देखते हुए मैं बस उन्हीं में खो जाता था। उसके बाद सामने देखते हुए उससे काफी देर तक अपने दिल की बातें करता रहता। मैं उसको सब कुछ बताता था कि आज मेरे साथ क्या क्या हुआ और आगे क्या होने वाला है। फिर एकाएक मेरा मन उससे ये कहते हुए भारी हो जाता कि काश! तुम जीवित अवस्था में मेरे पास होती तो मुझे अलग ही खुशी होती। ऊपर बैठे विधाता से उसे वापस करने की मिन्नतें करता और अनुराधा से ये कहते हुए माफियां मांगता कि मेरे कुकर्मों की वजह से आज वो इस दुनियां में नहीं है।
कुछ समय बाद मैं उठा और वहीं से सरोज काकी के घर चल पड़ा। आज कई दिनों बाद मैं उसके घर आया था। मुझे आया देख वो बड़ा खुश हुई। मैंने पहले ही उसको बता दिया था कि भाभी के साथ मेरा विवाह होने वाला है और फिर रूपा के साथ भी।
"कल मेरी बेटी रूपा भी यहां अपनी एक बहन के साथ आई थी।" सरोज काकी ने कहा____"मुझसे कह रही थी कि अब वो विवाह होने तक मेरे पास नहीं आ पाएगी। इस लिए मैं अनूप के साथ ही उसके घर पर रहूं।"
"हां तो इसमें ग़लत क्या है काकी?" मैंने अधीरता से कहा____"तुम्हें उसके विवाह तक उसके घर पर ही रहना चाहिए।"
"हां मैं समझती हूं।" सरोज काकी ने कहा____"लेकिन थोड़ा संकोच होता है, ये सोच कर कि मैं एक मामूली से किसान की औरत हूं और वो बड़े लोग हैं।"
"छोटे बड़े जैसी कोई बात नहीं है काकी।" मैंने कहा____"अगर होती तो अब तक जो कुछ हुआ है वो न हुआ होता। क्या तुमने कभी महसूस किया है कि मैंने या मेरे घर वालों ने तुम्हें छोटा होने का एहसास कराया है अथवा रूपा और उसके घर वालों ने ऐसा कभी किया है?"
"मैं मानती हूं कि ऐसा तुम में से किसी ने नहीं किया वैभव।" सरोज काकी ने कहा____"और सच कहूं तो इसके लिए मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली समझती हूं लेकिन कहीं न कहीं मुझे अपनी स्थिति का एहसास तो होता ही है कि मैं एक छोटी हैसियत वाली हूं और मुझे अपनी हद में रहना चाहिए।"
"ऐसा कह कर तुम हम सबकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रही हो काकी।" मैंने संजीदा हो कर कहा____"हम में से किसी ने भी कभी तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ नहीं सोचा है। जहां प्रेम होता है वहां हैसियत वाली बात ही नहीं होती। अनुराधा से मिलने से पहले मैं हैसियत के बारे में सोच भी सकता था लेकिन उससे मिलने के बाद और उससे प्रेम होने के बाद मेरे दिलो दिमाग़ से हैसियत संबंधित बातों का वजूद ही मिट चुका है। अगर ऐसा न होता तो अनुराधा की मौत के बाद मैं उसे अपनी दुल्हन बना कर विदा न करता। आज भी मैं उसको अपनी पहली पत्नी ही मानता हूं और उस नाते तुम मेरी सास हो, अनूप मेरा साला है। क्या अब भी तुम्हें लगता है कि इसमें हैसियत की बात है? क्या अब भी तुम्हें लगता है कि तुम हम में से किसी से छोटी हो?"
"मुझे माफ़ कर दो वैभव।" सरोज काकी की आंखें भर आईं____"मैं यही समझ बैठी थी कि मेरी बेटी अनू के जाने के बाद तुमने ये रिश्ता मिटा दिया होगा।"
"नहीं, मैं ऐसा कभी नहीं कर सकता काकी।" मैंने गंभीरता से कहा____"और ना ही कभी करूंगा। मेरा प्रेम अनुराधा के गुज़र जाने से मिट जाने वाला नहीं है। मैंने तो उसके गुज़र जाने पर ही उसको अपनी पत्नी बनाया था तो अब ये रिश्ता मरते दम तक क़ायम रहेगा। तुम ही इस रिश्ते को ना मानो तो अलग बात है।"
"नहीं नहीं।" सरोज काकी जैसे तड़प उठी____"ऐसा मत कहो। ये सच है कि अभी तक मैं इस रिश्ते को महत्व नहीं दे रही थी लेकिन तुम्हारी ये बातें सुन कर मुझे एहसास हो गया है कि मैं ग़लत थी। मेरा यकीन करो बेटा, अब से मैं भी तुमको अपना दामाद ही मानूंगी और जीवन भर मानूंगी।"
"अगर तुम सच में ऐसा मानती हो।" मैंने कहा____"तो फिर अपने दामाद की बातें भी मानों काकी। रूपा ने तुम्हें अपनी मां कहा है और तुमने भी उसको अनुराधा की तरह अपनी बेटी माना है तो फिर इस रिश्ते को पूरी ईमानदारी से और पूरी निष्ठा से निभाओ। अगर उसके घर वाले चाहते हैं कि विवाह तक तुम उनके साथ ही रहो तो तुम्हें खुशी खुशी वहीं रहना चाहिए।"
"मैं अब रहूंगी बेटा।" सरोज काकी ने दृढ़ता से कहा____"अपनी बेटी रूपा को उसी तरह तुमसे विवाह कर के विदा करूंगी जैसे मैं अनुराधा को करती।"
कुछ देर और सरोज काकी से बातें हुईं उसके बाद मैं वहां से चल पड़ा। थोड़े ही समय में मैं भुवन से मिलने अपने खेतों पर पहुंच गया। भुवन खेतों पर ही था। मैं उससे मिला और उसे बरात में चलने का निमंत्रण भी दिया। भुवन इस बात से बड़ा खुश हुआ। उसके बाद मैं हवेली निकल गया।
बहुत इंतजार के बाद आखिर अपडेट आ ही गया,खैर दोनो अपडेट मामा के नाम थे। शायद पहले वाला वैभव रहा होता तो मामा से अपनी मामी मांग लिया होता लेकिन परिवर्तन के बाद से काफी कुछ चीजें अच्छी करी है। शायद अब तक कुसुम को उसके शादी की बात नहीं बताई गई या हो सकता है जल्दबाजी में भूल गई हो but देखने लायक रहेगा की उसका reaction कैसा रहेगा। उम्दा अपडेट भाई, अगले अपडेट की प्रतीक्षा में
मामा मामी के चक्कर में मैं ना तो रूपा के बारे में सोच पा रहा था और ना ही रागिनी भाभी के बारे में। ज़हन में बस यही चल रहा था कि क्या मामी मेरे कमरे में आएंगी? उनका मेरे कमरे में आना इस लिए भी थोड़ा मुश्किल था क्योंकि औरतें जब सबके पास बैठ कर बातें करने में मशगूल हो जाती हैं तो फिर उन्हें बाकी किसी चीज़ का होश ही नहीं रहता है। दूसरी बात ये भी हो सकती थी कि रात के इस वक्त शायद वो सच में ही न आएं।
बहरहाल, मैं इंतज़ार ही कर सकता था। मुझे ये सोच कर भी हंसी आ रही थी कि मामा बेचारे मन में जाने कैसे कैसे ख़याली पुलाव बनाते हुए अपनी बीवी के आने की प्रतिक्षा कर रहे होंगे। अगर आज वो नहीं आईं तो यकीनन सुबह मुझे उनके गुस्से का शिकार हो जाना पड़ेगा।
क़रीब एक घंटे बाद मेरे कमरे में दस्तक हुई। रात के क़रीब ग्यारह बज रहे थे। आम दिनों की अपेक्षा ये समय ज़्यादा ही था किंतु शादी ब्याह वाले माहौल में थोड़ी देर सवेर हो ही जाती थी। खैर, दत्सक हुई तो मैं समझ गया कि ज़रूर मामी ही आई होंगी। मामी के आने के एहसास से अचानक ही मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं।
इससे पहले कि उन्हें दुबारा दस्तक देनी पड़ती मैं फ़ौरन ही दरवाज़े के पास पहुंचा और दरवाज़ा खोल दिया। बाहर सचमुच मामी ही खड़ी थीं। सुर्ख साड़ी में इस वक्त वो ग़ज़ब ही ढा रहीं थी। तीन तीन बच्चों की मां होने के बाद भी रोहिणी मामी भरपूर जवान नज़र आती थीं।
"माफ़ करना वैभव आने में देर हो गई मुझे।" मुझ पर नज़र पड़ते ही उन्होंने अपनी मधुर आवाज़ में कहा____"असल में खाना पीना करने के बाद बर्तन धुलवाने में व्यस्त हो गई थी मैं। अभी जब काम से फारिग हुई तो एकदम से याद आया कि तुमने कोई ज़रूरी बात करने के लिए मुझे बुलाया था।"
"कोई बात नहीं मामी।" मैं दरवाज़े से एक तरफ हटते हुए बोला____"आप अंदर आ जाइए।"
मेरे कहने पर मामी कमरे में आ गईं। इधर मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि अब कैसे मामी को मामा तक पहुंचाऊं?
"अब बताओ वैभव।" मैं सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में मामी की आवाज़ पड़ी____"मुझसे कौन सी ज़रूरी बात करनी थी तुम्हें?"
"वो आपको मुझे मामा के बारे में कुछ बताना था।" मैंने खुद को सम्हालते हुए बड़ी हिम्मत जुटा कर कहा____"आज मामा मुझसे मिले तो मैंने देखा कि वो बहुत परेशान थे। मेरे पूछने पर भी मुझे कुछ नहीं बताया। फिर मैंने सोचा कि इस बारे में आपसे पूछूंगा। मैं आपसे जानना चाहता हूं मामी कि मेरे मामा आख़िर किस बात से इतना परेशान हैं? आख़िर ऐसी कौन सी बात थी जिसे वो मुझको भी नहीं बता सके?"
मामी मेरी ये बातें सुन कर फ़ौरन कुछ ना बोल सकीं। उनके चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे। इधर मेरी धड़कनें धाड़ धाड़ कर के बजे जा रहीं थी। मैं खुल कर इस बारे में उनसे कुछ कह नहीं सकता था इस लिए मैंने इस तरह से उनसे बात की ताकि वो इस बात से शर्मिंदगी न महसूस करें कि मुझे उनके बीच की इतनी बड़ी बात पता है। आख़िर हमारे बीच रिश्ता ही ऐसा था जिसके चलते मुझे मर्यादा का ख़याल रखना था।
"क्या हुआ मामी?" मामी जब सोचो में ही गुम रहीं तो मैंने चिंता ज़ाहिर करते हुए उन्हें सोचो से बाहर खींचा____"आप एकदम से क्या सोचने लगीं? मुझे बताइए मामी कि आख़िर बात क्या है? मेरे मामा आख़िर किस बात से इतना ज़्यादा परेशान हैं?"
"कोई बड़ी बात नहीं है वैभव।" मामी ने थोड़ी झिझक और थोड़ा गंभीरता से कहा____"तुम उनके लिए इतनी चिंता मत करो।"
"ऐसे कैसे चिंता न करूं मामी?" मैंने फिक्रमंदी से कहा____"वो मेरे मामा हैं। मैं भला ये कैसे सहन कर लूंगा कि मेरे मामा किसी बात से परेशान रहें? मैं जानना चाहता हूं कि आख़िर उन्हें हुआ क्या है? आपको तो पता ही होगा तो बताइए ना मुझे?"
"वो असल में बात ये है वैभव कि मुझे भी इस बारे में ठीक से पता नहीं है।" मामी ने नज़रें चुराते हुए कहा____"वो कई दिनों से परेशान हैं और मैंने उनसे पूछा भी था लेकिन उन्होंने ठीक से कुछ नहीं बताया।"
"ऐसा कैसे हो सकता है मामी?" मैंने हैरानी ज़ाहिर की____"आप उनकी पत्नी हैं, आपको तो उनसे पूछना ही चाहिए था। उनकी परेशानी के बारे में जान कर आपको उनकी परेशानी भी दूर करनी चाहिए थी।"
"हां मैं समझती हूं वैभव।" मामी ने कहा____"मैं भी चाहती हूं कि उनकी परेशानी दूर हो जाए।"
"अगर आप सच में ऐसा चाहती हैं तो आपको इस बारे में बिल्कुल भी देर नहीं करनी चाहिए।" मैंने अच्छा मौका जान कर कहा____"वो आपके पति हैं और आप उनकी पत्नी इस लिए आप दोनों को एक दूसरे से अपनी अपनी परेशानी बतानी चाहिए और फिर उसको दूर करने का भी प्रयास करना चाहिए।"
"हां ये तो तुम सही कह रहे हो।" मामी ने कहा____"तुम्हारे विवाह के बाद जब हम वापस घर जाएंगे तो मैं उनसे उनकी परेशानी के बारे में ज़ोर दे कर पूछूंगी।"
"मेरा विवाह होने में अभी काफी समय है मामी।" मैंने कहा____"क्या इतने समय तक मामा को परेशानी की हालत में रखना ठीक होगा? मेरा ख़याल है कि बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा, इस लिए आपको जल्द से जल्द उनकी परेशानी दूर करने का क़दम उठाना चाहिए।"
"हां लेकिन यहां मैं उनसे कैसे बात कर सकूंगी वैभव?" मामी ने जैसे अपनी समस्या ज़ाहिर की____"तुम्हें तो पता ही है कि यहां इतने लोगों के रहते मैं इस बारे में उनसे बात नहीं कर पाऊंगी और ये उचित भी नहीं होगा।"
"बात जब समस्या वाली हो मामी तो इंसान को ना तो उचित अनुचित के बारे में सोचना चाहिए और ना ही लोगों की परवाह करनी चाहिए।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"इंसान को सिर्फ ये सोचना चाहिए कि उसकी समस्या का जल्द से जल्द निदान हो जाए। वैसे इस समय भी कोई समस्या वाली बात नहीं है। इत्तेफ़ाक से मैंने मामा के सोने का इंतज़ाम यहीं ऊपर ही एक कमरे में कर दिया था। आप एक काम कीजिए, इसी समय उनके पास जाइए और उनसे उनकी परेशानी जान कर उनकी परेशानी को दूर करने का प्रयास कीजिए।"
"ये...ये तुम क्या कह रहे हो वैभव?" मामी ने एकदम से घबराहट जैसे अंदाज़ से मेरी तरफ देखा____"यहां सबके बीच इस तरह मैं उनसे कैसे मिल सकती हूं। लोगों को पता चला तो सब क्या सोचेंगे इस बारे में?"
"फिर से वही बात।" मैंने कहा____"आप फिर लोगों के बारे में सोचने लगीं? जबकि आपको किसी की परवाह न करते हुए सिर्फ अपनी समस्याओं को दूर करने के बारे में सोचना चाहिए। वैसे भी यहां किसी को कुछ पता नहीं चलने वाला। सब दिन भर के थके हुए हैं, बिस्तर में पहुंचते ही घोड़े बेंच कर सो गए होंगे। आप बेझिझक हो कर मामा के पास जाइए और मेरे बारे में तो आपको कुछ सोचने की ज़रूरत ही नहीं है क्योंकि मैं समझता हूं कि इस समय आपके लिए यही उचित है।"
मामी मुझे अपलक देखने लगीं। जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रहीं हों। मैंने सोचा कि अगर उन्होंने इस बारे में ज़्यादा दिमाग़ लगाया तो इसी समय समझ जाएंगी कि मुझे सब कुछ पता है और इसी के चलते मैं उनको मामा के पास जाने के लिए ज़ोर दे रहा हूं। ज़ाहिर है इस बात को समझते ही उन्हें मेरे सामने शर्मिंदगी भी होगी जोकि इस वक्त मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता था।
बहरहाल मामी ने थोड़ी सी ना नुकुर की लेकिन मैंने किसी तरह उन्हें समझा बुझा कर मामा के कमरे में जाने के लिए मना ही लिया और खुद उन्हें ले कर मामा के कमरे के पास पहुंच गया। मामी मेरी वजह से बहुत ज़्यादा असहज महसूस कर रहीं थी। चेहरे पर लाज की सुर्खी भी छा गई थी। मैंने दरवाज़े पर दस्तक दी और फिर चुपचाप पलट कर अपने कमरे में आ गया। इस बीच मैंने दरवाज़ा खुलने की हल्की आवाज़ सुन ली थी। ज़ाहिर है दरवाज़े के बाहर अपनी पत्नी को खड़ा देख मामा उन्हें अंदर बुला ही लेंगे। अब इतना तो वो कर ही सकते थे।
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अगली सुबह मामा नीचे बरामदे में कुर्सी पर बैठे चाय पी रहे थे। उनके चेहरे पर खुशी की चमक दिख रही थी। कुछ दूरी पर मां चाची मामी और बाकी लड़कियां बैठी काम कर रहीं थी। मामा चाय पीते हुए बार बार मामी को देख रहे थे। मैंने जब ये देखा तो मुस्कुरा उठा।
"क्या हाल है मामा।" मैं उनके पास पहुंचते ही उनसे मुस्कुराते हुए पूछा____"इस हवेली में कल की रात कैसी गुज़री आपकी?"
मेरी बात सुनते ही मामा पहले तो सकपकाए फिर एकदम से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और धीरे से कहा____"एकदम ज़बरदस्त भांजे।"
उधर मेरी आवाज़ रोहिणी मामी के कानों में भी पड़ चुकी थी जिसके चलते उन्होंने एक झटके से गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा। इत्तेफ़ाक से मेरी नज़र भी उनकी तरफ घूम गई। मेरी और मामी की नज़र मिली। घूंघट तो किया हुआ था उन्होंने लेकिन घूंघट का पल्लू इस वक्त सिर्फ उनके सिर को ढंके हुए था। मुझसे नज़र मिलते ही उनके चेहरे पर लाज और शर्म की लाली छा गई और उन्होंने शर्मा कर झट से अपना चेहरा वापस घुमा लिया। मेरे लिए ये समझ लेना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था कि उनको पता चल गया है कि ये सारा किया धरा मेरा ही था, बल्कि ये कहना चाहिए कि ये सारी योजना ही मामा भांजे की थी।
"फिर तो अच्छी बात है मामा।" मैंने अपनी आवाज़ को सामान्य से थोड़ा ऊंचा करते हुए कहा ताकि मामी भी सुन सकें____"उम्मीद करता हूं अब से हर रोज़ इसी तरह आपकी रात ज़बरदस्त गुज़रेगी।"
"तू मेरा सबसे अच्छा भांजा है वैभव।" मामा कुछ ज़्यादा ही खुश थे इस लिए अपनी खुशी को ज़ाहिर करते हुए बोले____"और मुझे हमेशा तुझ पर नाज़ रहेगा।"
"अरे! ऐसा क्यों कहते हैं मामा?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके चलते आपको हमेशा मुझ पर नाज़ रहेगा?"
"अरे! तेरी ही वजह से तो सबको खुशियां मिली हैं।" मामा ने अपनी बात एक बहाने के रूप में कही____"वरना सबके सब खुशियों के लिए तरस ही रहे थे।"
मैंने देखा, मामी ने गर्दन घुमा कर फिर से हमारी तरफ देखा। एक बार फिर से इत्तेफ़ाकन मेरी नज़र उनसे टकरा गई और उन्होंने एकदम से शर्मा कर अपना चेहरा वापस घुमा लिया। मैं समझ गया कि इस वक्त मामी अंदर ही अंदर बुरी तरह शर्मा रही हैं और शायद वो ये सोच कर भी चकित होंगी कि हम दोनों मामा भांजे कैसे इस तरह की बातें बहाने बहाने से कर रहे हैं।
"वैसे तो इसमें मेरा कोई विशेष योगदान नहीं है मामा।" मैंने उसी मुस्कान के साथ कहा____"पर यदि आप इसके लिए मुझे ही श्रेय दे रहे हैं तो मैं आपको बता दूं कि बदले में मुझे भी आपको कुछ देना होगा। सिर्फ बातें कह देने से काम नहीं चलेगा।"
"अरे! तू बता ना भांजे कि बदले में तुझे क्या चाहिए?" मामा ने एकदम से सीना चौड़ा करते हुए कहा____"तेरा ये मामा तुझे वचन देता है कि तू जो मांगेगा मैं तुझे दूंगा।"
"अच्छा क्या सच में?" मैंने ग़ौर से उनकी तरफ देखा।
"अरे! क्या तुझे अपने मामा पर भरोसा नहीं है भांजे?" मामा ने इस तरह की शक्ल बना कर कहा जैसे मैंने उनकी तौहीन कर दी हो।
"नहीं ऐसी तो बात नहीं है मामा।" मैंने एक नज़र मामी पर डालने के बाद कहा____"मैं तो बस ये कहना चाहता था कि वचन देने से पहले आपको अच्छी तरह सोच लेना चाहिए था कि मैं जो मांगूंगा आप वो दे भी सकेंगे या नहीं?"
"देख भांजे।" मामा ने जैसे निर्णायक भाव से कहा____"अब तो मैं तुझे वचन दे चुका हूं इस लिए अब कुछ सोचने विचारने का सवाल ही पैदा नहीं होता। तू बस बेझिझक हो के मांग जो तुझे चाहिए।"
मैंने देखा मामी चकित भाव से हमारी तरफ ही देखने लगीं थी। मैं उन्हें देख मुस्कुराया और फिर मामा से कहा____"ठीक है मामा, लेकिन मैं अपने लिए आपसे कुछ नहीं मागूंगा। मैं तो सिर्फ इतना ही चाहता हूं कि जैसे कल की रात आपके लिए अच्छी गुज़री है वैसी ही हर रात आपकी गुज़रे।"
"अरे! तू तो सच में मेरा कमाल का भांजा है वैभव।" मामा पहले तो हैरान हुए फिर खुशी से मुस्कुराते हुए बोले____"अपने लिए कुछ नहीं मांगा बल्कि मेरी खुशी की चाहत रखी।"
"क्यों न रखूं मामा।" मैंने एक बार फिर से मामी की तरफ एक नज़र डाली, फिर कहा____"आप मेरे सबसे अच्छे वाले मामा हैं और मुझे पता है कि खुशियों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत आपको है। रही मेरी बात तो, आप तो अच्छी तरह जानते हैं कि मुझे मौजूदा समय में किसी से कुछ मांगने की ज़रूरत ही नहीं है।"
"तुम दोनों मामा भांजे किस बारे में बातें कर रहे हो?" अचानक मां ने गर्दन घुमा कर हमारी तरफ देखते हुए पूछा तो मैं और मामा एकदम से हड़बड़ा गए। उधर मामी के चेहरे का भी रंग उड़ता नज़र आया। मां की बात सुन कर मामा ने जल्दी से खुद को सम्हाला और संतुलित भाव से कहा____"अरे! ये हमारी आपस की बातें हैं दीदी, आप नहीं समझेंगी।"
"अच्छा।" मां के माथे पर शिकन उभरी___"ऐसी भला कौन सी बातें कर रहे हो तुम दोनों जिन्हें मैं समझ ही नहीं सकती, हां?"
"भांजे अब क्या करें यार?" मामा एकदम से चिंतित हो कर मेरी तरफ देख बोले____"दीदी को क्या जवाब दूं? तू ही जल्दी से कुछ सोच और बता उन्हें।"
"क्या हुआ कुछ बोल क्यों नहीं रहा तू?" मां ने मामा की तरफ ध्यान से देखते हुए पूछा और फिर मेरी तरफ देखने लगीं।
"क्या मां आप भी अपना काम छोड़ कर हम मामा भांजे की बातों पर ध्यान देने लगीं।" मैंने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"हम तो बस ऐसे ही बातें कर रहे हैं, है ना मामा?"
"ह...हां हां और नहीं तो क्या?" मामा एकदम से हकलाते हुए बोल पड़े____"हम तो ऐसे ही समय बिताने के लिए बातें कर रहे हैं दीदी। आप मन लगा कर अपना काम कीजिए ना।"
मैंने देखा मामी हमारी तरफ देखते हुए मुस्कुराए जा रहीं थी। इधर मामा की बात सुन कर मां ने हम दोनों को बारी बारी से घूर कर देखा और फिर पलट कर सबके साथ काम में लग गईं। कहने की ज़रूरत नहीं कि हम दोनों मामा भांजे ने राहत की लंबी सांस ली।
"तूने फंसवा दिया था हम दोनों को।" फिर मामा ने धीरे से मुझसे कहा____"क्या ज़रूरत थी ऊंची आवाज़ में बातें करने की। अच्छा हुआ कि दीदी को समझ नहीं आया वरना हम दोनों की ख़ैर नहीं थी।"
"सही कह रहे हैं आप।" मैंने कहा____"बाल बाल बचे। मैं तो बस मामी को सुनाने के चक्कर में थोड़ा ऊंची आवाज़ में बोल रहा था। मुझे नहीं पता था कि मां भी हमारी बातें सुनने लगेंगी। वैसे क्या लगता है आपको, उन्हें हमारी बातें समझ आ गई होंगी?"
"क्या पता।" मामा ने कंधे उचकाए____"लेकिन अब इतना पता है कि हमें अब यहां से खिसक लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो तेरी मामी नाराज़ हो जाए और फिर वो मुझे अपने पास आने ही न दे। अगर एसा हुआ तो समझ ही सकता है कि तेरी दुआएं और चाहतें मिट्टी में ही मिल जाएंगी।"
मैंने मुस्कुराते हुए हां में सिर हिलाया। उसके बाद हम दोनों ही अपना अपना चाय का खाली प्याला वहीं छोड़ कर बाहर की तरफ खिसक लिए। मामी मुस्कुराते हुए हमें जाता देख रहीं थी।
बाहर बैठक में बाकी सब बैठे हुए थे और आज के कार्यक्रम की रणनीति बना रहे थे। मामा भी उनके बीच जा कर बैठ गए जबकि मैं हवेली से बाहर निकल गया। कई दिनों से मैं हवेली में ही था और इस वजह से मुझे घुटन सी होने लगी थी। वैसे तो मां चाची और मामी लोगों ने भी मुझसे कहा था कि अब से मैं हवेली में ही रहूं लेकिन मेरा मन अब थोड़ा ऊब चुका था। मैं बाहर की खुली हवा लेना चाहता था इस लिए मोटर साईकिल में बैठ कर चल दिया।
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मेरी मोटर साईकिल सीधा उस जगह पर पहुंच कर रुकी जहां पर अनुराधा का विदाई स्थल था। आज वातारण में थोड़ा कोहरे जैसी धुंध छाई हुई थी जिसकी वजह से धूप के ताप का बिल्कुल भी एहसास नहीं हो रहा था। मैंने अपने बदन पर ऊन का स्वेटर पहन रखा था।
अनुराधा के विदाई स्थल के पास पहुंच कर मैं घुटनों के बल कच्ची ज़मीन पर बैठ गया। इस जगह आने से एक अलग ही अनुभूति होती थी। कुछ समय के लिए जैसे मैं सब कुछ भूल जाता था। बंद पलकों में अनुराधा के साथ बिताए हुए लम्हों की तस्वीरें देखते हुए मैं बस उन्हीं में खो जाता था। उसके बाद सामने देखते हुए उससे काफी देर तक अपने दिल की बातें करता रहता। मैं उसको सब कुछ बताता था कि आज मेरे साथ क्या क्या हुआ और आगे क्या होने वाला है। फिर एकाएक मेरा मन उससे ये कहते हुए भारी हो जाता कि काश! तुम जीवित अवस्था में मेरे पास होती तो मुझे अलग ही खुशी होती। ऊपर बैठे विधाता से उसे वापस करने की मिन्नतें करता और अनुराधा से ये कहते हुए माफियां मांगता कि मेरे कुकर्मों की वजह से आज वो इस दुनियां में नहीं है।
कुछ समय बाद मैं उठा और वहीं से सरोज काकी के घर चल पड़ा। आज कई दिनों बाद मैं उसके घर आया था। मुझे आया देख वो बड़ा खुश हुई। मैंने पहले ही उसको बता दिया था कि भाभी के साथ मेरा विवाह होने वाला है और फिर रूपा के साथ भी।
"कल मेरी बेटी रूपा भी यहां अपनी एक बहन के साथ आई थी।" सरोज काकी ने कहा____"मुझसे कह रही थी कि अब वो विवाह होने तक मेरे पास नहीं आ पाएगी। इस लिए मैं अनूप के साथ ही उसके घर पर रहूं।"
"हां तो इसमें ग़लत क्या है काकी?" मैंने अधीरता से कहा____"तुम्हें उसके विवाह तक उसके घर पर ही रहना चाहिए।"
"हां मैं समझती हूं।" सरोज काकी ने कहा____"लेकिन थोड़ा संकोच होता है, ये सोच कर कि मैं एक मामूली से किसान की औरत हूं और वो बड़े लोग हैं।"
"छोटे बड़े जैसी कोई बात नहीं है काकी।" मैंने कहा____"अगर होती तो अब तक जो कुछ हुआ है वो न हुआ होता। क्या तुमने कभी महसूस किया है कि मैंने या मेरे घर वालों ने तुम्हें छोटा होने का एहसास कराया है अथवा रूपा और उसके घर वालों ने ऐसा कभी किया है?"
"मैं मानती हूं कि ऐसा तुम में से किसी ने नहीं किया वैभव।" सरोज काकी ने कहा____"और सच कहूं तो इसके लिए मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली समझती हूं लेकिन कहीं न कहीं मुझे अपनी स्थिति का एहसास तो होता ही है कि मैं एक छोटी हैसियत वाली हूं और मुझे अपनी हद में रहना चाहिए।"
"ऐसा कह कर तुम हम सबकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रही हो काकी।" मैंने संजीदा हो कर कहा____"हम में से किसी ने भी कभी तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ नहीं सोचा है। जहां प्रेम होता है वहां हैसियत वाली बात ही नहीं होती। अनुराधा से मिलने से पहले मैं हैसियत के बारे में सोच भी सकता था लेकिन उससे मिलने के बाद और उससे प्रेम होने के बाद मेरे दिलो दिमाग़ से हैसियत संबंधित बातों का वजूद ही मिट चुका है। अगर ऐसा न होता तो अनुराधा की मौत के बाद मैं उसे अपनी दुल्हन बना कर विदा न करता। आज भी मैं उसको अपनी पहली पत्नी ही मानता हूं और उस नाते तुम मेरी सास हो, अनूप मेरा साला है। क्या अब भी तुम्हें लगता है कि इसमें हैसियत की बात है? क्या अब भी तुम्हें लगता है कि तुम हम में से किसी से छोटी हो?"
"मुझे माफ़ कर दो वैभव।" सरोज काकी की आंखें भर आईं____"मैं यही समझ बैठी थी कि मेरी बेटी अनू के जाने के बाद तुमने ये रिश्ता मिटा दिया होगा।"
"नहीं, मैं ऐसा कभी नहीं कर सकता काकी।" मैंने गंभीरता से कहा____"और ना ही कभी करूंगा। मेरा प्रेम अनुराधा के गुज़र जाने से मिट जाने वाला नहीं है। मैंने तो उसके गुज़र जाने पर ही उसको अपनी पत्नी बनाया था तो अब ये रिश्ता मरते दम तक क़ायम रहेगा। तुम ही इस रिश्ते को ना मानो तो अलग बात है।"
"नहीं नहीं।" सरोज काकी जैसे तड़प उठी____"ऐसा मत कहो। ये सच है कि अभी तक मैं इस रिश्ते को महत्व नहीं दे रही थी लेकिन तुम्हारी ये बातें सुन कर मुझे एहसास हो गया है कि मैं ग़लत थी। मेरा यकीन करो बेटा, अब से मैं भी तुमको अपना दामाद ही मानूंगी और जीवन भर मानूंगी।"
"अगर तुम सच में ऐसा मानती हो।" मैंने कहा____"तो फिर अपने दामाद की बातें भी मानों काकी। रूपा ने तुम्हें अपनी मां कहा है और तुमने भी उसको अनुराधा की तरह अपनी बेटी माना है तो फिर इस रिश्ते को पूरी ईमानदारी से और पूरी निष्ठा से निभाओ। अगर उसके घर वाले चाहते हैं कि विवाह तक तुम उनके साथ ही रहो तो तुम्हें खुशी खुशी वहीं रहना चाहिए।"
"मैं अब रहूंगी बेटा।" सरोज काकी ने दृढ़ता से कहा____"अपनी बेटी रूपा को उसी तरह तुमसे विवाह कर के विदा करूंगी जैसे मैं अनुराधा को करती।"
कुछ देर और सरोज काकी से बातें हुईं उसके बाद मैं वहां से चल पड़ा। थोड़े ही समय में मैं भुवन से मिलने अपने खेतों पर पहुंच गया। भुवन खेतों पर ही था। मैं उससे मिला और उसे बरात में चलने का निमंत्रण भी दिया। भुवन इस बात से बड़ा खुश हुआ। उसके बाद मैं हवेली निकल गया।