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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

भाग ११२ -अगला दिन, बुच्ची और इमरतिया पृष्ठ ११४५

मेगा अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 
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komaalrani

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दोबारा रिव्यू कर रहा था तो याद आया...
वो भी एक काली रात थी जब.. गितवा-अरविंदवा के बाबूजी... बाहर के देश में फंस गए थे..
फोन पर बहुत मुश्किल से बात हो सकी थी...
और उनकी महतारी भी बहुत चिंतित हो गई थी...
चाहा तो उन्होंने भला करना.. लेकिन गाँव वाले कुछ और समझ बैठे...

यहाँ घर के दामाद पर पुलिस ने अपनी टेढ़ी नजर डाली...
लेकिन मामला सुलटते देर न लगी...
रंग बदलने में पुलिसियों ने भी गिरगिट को पीछे छोड़ दिया...
वाकई समाज का एक सही दर्पण पेश किया है...
बहुत बहुत धन्यवाद, आपके और बाकी मित्रों के बाकी कमेंट्स पर बाद में लाइक और कमेंट्स लेकिन आपकी बात से एक बात याद आ गयी,

आप ने ध्यान दिया भी होगा लेकिन कमेंट में कितनी बातें कोई लिख सकता है लेकिन मैं एक बाद फिर से इसी पोस्ट के दूसरे पार्ट ( हादसा ) की कुछ लाइनें उद्धृत कर रही हूँ,


गुझिया खाते खाते चिंटू बोला,

" हम तो भैया से बोले की, भैया कुल काम तो हो गया अब आपके जाने की कौन जरूरत, तो वो बोले की नहीं जीजा बहुत परेशान है हमार जाब जरुरी है, हम समुआ के साथ जा रहे हैं तू घर जाय के अपनी भौजी और माई को बता देना नहीं तो रात भर दोनों जनी थारी लिहे अगोरीहें, न खइहें न सोइहें, यह लिए, "

और कुछ लाइनों बाद फिर से वही खाने की बात,

लेकिन मेरे दिमाग में अब दूसरी परेशानी घूम रही थी, चिंटू से मैंने साफ़ साफ़ पूछ लिया, " भैया, तोहार भैया खाना वाना, ... "

वो हँसते हुए बोला,

" भौजी, वो हमार बात सुनते ? लेकिन माई आके खड़ी होगयी सामने, थाली लेके, खाना खाई के ही निकरे हैं, "
मैंने चैन की साँस ली।

कई बार गाँव की या परम्परा से जुडी कुछ छोटी छोटी बातें, चिंता करने की, ख्याल करने की मानव संबंधो को न सिर्फ रेखांकित करती हैं बल्कि मन के बहुत से तारों को भी छू लेती हैं और मुझे लगता है कहानी चाहे एरोटिक हो या इस जैसे की अडल्ट फोरम की भी लेकिन जो कहानी के तत्व हैं, जो उसे कहानी बनाते हाँ वो बहुत जरूरी हैं।

और जो आपने पुलिस वाली बात की वो भी दो संवादों में साफ़ हो गयी है


" हां उहे लल्लू सिंह क है, लेकिन जो जो भर्ती हुआ तो दो चार बिगहा खेत तो गिरवी रखाया समझ लीजिये, लल्लू सिंह तो खाली, आपन राजनीति,... अबकी जिला पंचायत लड़ेंगे, "

और फिर,
" वो जो मार बोल रहा था ट्रामा वाला,... की जाय न देब, एकबार हमरे यहाँ भर्ती हो गए हैं तो," सासू माँ ने पूछा


और चिंटू ने हँसते हुए गुझिया ख़त्म करते हुए, कहा, अरे लल्लू सिंह क एमबुलेंस आय रही है सुन क ससुरे क मूत सरक गया, हिम्मत पड़ती उसकी, "


पुलिस और राजनितिक सत्ता और प्राइवेट नर्सिंग होम, अभी कुछ दिन पहले एक खबर आयी थी की किसी जिले में एक प्राइवेट हॉस्पिटल ने किसी मरीज को निकलने से मना कर दिया और उसने पुलिस को फोन लगाया, वहां के एस पी और अन्य पुलिस के लोगों ने पहुँच के हस्तक्षेप किया लेकिन हॉस्पिटल के मैनेजेर ने अपने मालिक को फोन किया और उन्होंने राजनितिक हस्तियों को और अगले दिन एसपी समेत अन्य पुलिस वालों का तबादला हो गया।
इसलिए ऊपर से फोन के साथ एक जिले की राजनीतिक हस्ती का नाम,

हो सकता है की धीरे धीरे मेरी तीनो कहानियाँ में इरोटिका के साथ इस तरह के प्रसंगो या गैर एरोटिक प्रंसग बढ़ें और मैं उम्मीद करुँगी की मेरी सुधी पाठक इसे जरूर पसंद करेंगे
 
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motaalund

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बहुत बहुत धन्यवाद, आपके और बाकी मित्रों के बाकी कमेंट्स पर बाद में लाइक और कमेंट्स लेकिन आपकी बात से एक बात याद आ गयी,

आप ने ध्यान दिया भी होगा लेकिन कमेंट में कितनी बातें कोई लिख सकता है लेकिन मैं एक बाद फिर से इसी पोस्ट के दूसरे पार्ट ( हादसा ) की कुछ लाइनें उद्धृत कर रही हूँ,


गुझिया खाते खाते चिंटू बोला,

" हम तो भैया से बोले की, भैया कुल काम तो हो गया अब आपके जाने की कौन जरूरत, तो वो बोले की नहीं जीजा बहुत परेशान है हमार जाब जरुरी है, हम समुआ के साथ जा रहे हैं तू घर जाय के अपनी भौजी और माई को बता देना नहीं तो रात भर दोनों जनी थारी लिहे अगोरीहें, न खइहें न सोइहें, यह लिए, "

और कुछ लाइनों बाद फिर से वही खाने की बात,

लेकिन मेरे दिमाग में अब दूसरी परेशानी घूम रही थी, चिंटू से मैंने साफ़ साफ़ पूछ लिया, " भैया, तोहार भैया खाना वाना, ... "

वो हँसते हुए बोला,

" भौजी, वो हमार बात सुनते ? लेकिन माई आके खड़ी होगयी सामने, थाली लेके, खाना खाई के ही निकरे हैं, "
मैंने चैन की साँस ली।

कई बार गाँव की या परम्परा से जुडी कुछ छोटी छोटी बातें, चिंता करने की, ख्याल करने की मानव संबंधो को न सिर्फ रेखांकित करती हैं बल्कि मन के बहुत से तारों को भी छू लेती हैं और मुझे लगता है कहानी चाहे एरोटिक हो या इस जैसे की अडल्ट फोरम की भी लेकिन जो कहानी के तत्व हैं, जो उसे कहानी बनाते हाँ वो बहुत जरूरी हैं।

और जो आपने पुलिस वाली बात की वो भी दो संवादों में साफ़ हो गयी है


" हां उहे लल्लू सिंह क है, लेकिन जो जो भर्ती हुआ तो दो चार बिगहा खेत तो गिरवी रखाया समझ लीजिये, लल्लू सिंह तो खाली, आपन राजनीति,... अबकी जिला पंचायत लड़ेंगे, "

और फिर,
" वो जो मार बोल रहा था ट्रामा वाला,... की जाय न देब, एकबार हमरे यहाँ भर्ती हो गए हैं तो," सासू माँ ने पूछा


और चिंटू ने हँसते हुए गुझिया ख़त्म करते हुए, कहा, अरे लल्लू सिंह क एमबुलेंस आय रही है सुन क ससुरे क मूत सरक गया, हिम्मत पड़ती उसकी, "


पुलिस और राजनितिक सत्ता और प्राइवेट नर्सिंग होम, अभी कुछ दिन पहले एक खबर आयी थी की किसी जिले में एक प्राइवेट हॉस्पिटल ने किसी मरीज को निकलने से मना कर दिया और उसने पुलिस को फोन लगाया, वहां के एस पी और अन्य पुलिस के लोगों ने पहुँच के हस्तक्षेप किया लेकिन हॉस्पिटल के मैनेजेर ने अपने मालिक को फोन किया और उन्होंने राजनितिक हस्तियों को और अगले दिन एसपी समेत अन्य पुलिस वालों का तबादला हो गया।
इसलिए ऊपर से फोन के साथ एक जिले की राजनीतिक हस्ती का नाम,

हो सकता है की धीरे धीरे मेरी तीनो कहानियाँ में इरोटिका के साथ इस तरह के प्रसंगो या गैर एरोटिक प्रंसग बढ़ें और मैं उम्मीद करुँगी की मेरी सुधी पाठक इसे जरूर पसंद करेंगे
सही कहा...
मानव जीवन उतार-चढ़ाव भरा है...
इसमें सुख दुःख अपने क्रम से आते रहते हैं..
लेकिन साथ हीं अपनों की
खाने-पीने और स्वास्थ्य की चिंता...
कहीं कोई मुसीबत...
किसी अंजाने खतरे का पूर्वाभास...
यही कहानी को कहानी का रूप देते हैं...
और पात्रों से जुड़ाव भी...
आखिर कई सीरियल्स/फिल्म में भी कोई-कोई पात्र अपना एक प्रतिबिंब लगने लगता है..
और रिलीजियसली उसे फ़ॉलो करने लगते हैं..

वरना बाकी कहानियों में तो इतना मैकेनिकल हो जाता है...
दो-तीन एपिसोड के बाद तो सिर्फ चुदाई गाथा हीं बचती है...
और न केवल आपने मानवीय संबंधों और उनसे जुड़े आशंका और व्यग्रता .. दिल में उपजा कोई खटका... को बाखूबी दिखाया है...
बल्कि के पुलिस के किरदार को भी भलीभांति उकेरा है...
इसी कारण तो आपकी कहानियों को बड़े चाव से पढ़ते आ रहे हैं...

धन्यवाद सहित आभार....
 
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