मुझे तो कमलवा की चाची का प्रसंग भी जोरदार लगा...और यह भाग, सास बहू की निकटता को उनके रिश्तों के खुलेपन को और देह से जुडी या कोई और बात हो उसे भी बिना छिपाव के कहने के संबंध को भी दिखाता है। बहू सास से छुप छुप के नहीं बल्कि लौट के रस ले ले के सास को बता रही है और सास भी मजे ले के उसे बढ़ावा दे रही है। पहले की भी कई पोस्टों में सास और बहू के इस कहानी में निकटता के प्रंसंग आये हैं जो देह के साथ आपसी समझ और मन के भी हैं
पुराना चस्का है सास को... नए लौंडो का...नहीं नही।
पश्चिम पट्टी वाली मतलब पक्षिम पट्टी वाली मुन्ना क महतारी, सास तो पूरब पट्टी वाली भी थीं और न उन्होंने कोई कमी की और न मैंने लकिने मुन्ना का महतारी हमरी सास क कुछ ख़ास हैं इसलिए उनका अलग से नाम लिया
और सिखाया भी सास ने ही था की कैसे कुप्पी को चिपका के रखना है, अपनी सहेलियों के साथ, पूरे गाँव की साल लोगों के साथ तो रात भर मेरी सास ने महिला रस लिया ही था और अब नए नए लौंडो का भी मरद रस
लगता है मेरी समझदानी थोड़ा ज्यादा रिएक्ट कर रही है....अरे कहाँ बेचारा कमल, उसकी बहन रेनू ने जो उसको मना कर दिया था तो गाँव की बाकी लड़कियों ने भी, और वो खाली घासवालियों के साथ
कमल वाली बात तो सास को खुद बतायी थी, और कमल और रेनू की माँ की तरह मेरी सास भी चाहती थीं की कमल की गाँठ अगर रेनू से बंध जाए तो उस घर में ख़ुशी लौट आये तो बस इसलिए सबसे पहले उन्हें कमल और रेनू का किस्सा बताया फिर हिना का
भाई बहन का प्यार अटूट जो ठहरा....एकदम
और चंदरवा और सुनीता की कहानी से ये शिक्षा मिलती है बहन चाहे छोटी हो या बड़ी, उसका मन रखना भाई का काम है
फिजाओं की मस्ती कुछ और हाले बयाँ कर रही है...अरे कहाँ आया सांड, आखिरी की लाइने एक बार फिर से देखिये न
लेकिन बाइक की जैसी ही रुकने की आवाज आयी, मेरा मन कुछ आशंका से भर गया,...
ये उनकी बाइक की आवाज तो नहीं थी, फिर मैंने मन को समझाया। क्या पता उनकी बाइक खराब हो गयी हो इसलिए किसी दोस्त की बाइक से या, कोई दोस्त छोड़ने आया हो,
जल्दी से मैंने और सासू जी ने अपनी साड़ी ठीक की,
लेकिन, लेकिन, ....एकदम पक्का उनकी बाइक की आवाज नहीं थी, उनके कदमो की भी नहीं, ...और सबसे बड़ी बात उनके आने की आहट से मेरी देह कसमसाने लगती थी, एकदम मस्ती सी भर जाती थी, खूब अच्छा अच्छा लगता था, पर आज, ...
कौन आया, आगे क्या होगा, कैसी खबर है सब अगले हिस्से में लेकिन सांड नहीं है ये साफ़ है
ई चिंटुआ तो सबका जान निकालने पर तुला हुआ है...भाग ९०
वह रात
१९,२४, २५९
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अबकी जो सास बोलीं तो मैं चिढ़ाते बोली " अरे अभी हमरे सास क पूत आ रहा है, नम्बरी बहनचोद, मादरचोद, झड़वा लीजियेगा न उससे जो मजा बेटे के साथ है वो बहू के साथ थोड़ी है , ... "
तबतक बाइक की आवाज सुनाई पड़ी, हल्की सी दूर से आती हुयी,
मेरी सास खिलखिलायीं, " आ गया तेरा खसम, अभी ठोकेगा मेरी समधन की बिटिया को "
"एकदम आपकी समधन ने दामाद किसलिए बनाया था उनको, इसीलिए तो लेकिन आज मेरी सास का पूत पहले मेरी सास को,... "
हँसते हुए सास की बिल में एक साथ दो ऊँगली ठेलते हुए मैंने उन्हें चिढ़ाया।
लेकिन बाइक की जैसी ही रुकने की आवाज आयी, मेरा मन कुछ आशंका से भर गया,... ये उनकी बाइक की आवाज तो नहीं थी, फिर मैंने मन को समझाया। क्या पता उनकी बाइक खराब हो गयी हो इसलिए किसी दोस्त की बाइक से या, कोई दोस्त छोड़ने आया हो,
जल्दी से मैंने और सासू जी ने अपनी साड़ी ठीक की,
सांकल की आवाज, साथ में जोर से दरवाजे को खड़काने की आवाज आयी, मैंने जाकर दरवाजा खोल दिया,नौ साढ़े नौ हो गया था, पूरे गाँव में सोता पड़ा था, और सामने मेरे,
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चिंटू इनका खास दोस्त, बगल के गांव का, एकदम बदहवास, बाल बिखरे, शर्ट की बटन भी जल्दी में उल्टी सीधी बंद,
मैं किसी अनहोनी की आशंका से घबड़ा उठी, मेरी सास के तो बोल नहीं फूट रहे थे,
" का हुआ चिंटू भैया, तोहार भैया,.... " बड़ी मुश्किल से मैं बोल पायी।
चिंटू मुझे पल भर देखता रहा, फिर बड़ी हिम्मत बटोर के रुक रुक के बोल पाया,
" भौजी,.... भैया,... अस्पताल,... पुलिस,"
मुझे तो जैसे काठ मार गया, कुछ सूझा नहीं थोड़ी देर को, लेकिन फिर हिम्मत कर के मैं बोली,
" चिंटू भैया अंदर आइये, बैठ के बात करिये, "
मेरी सास पर तो जैसे बज्र गिर गया था, मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे, बस पथराई आँखों से मुझे देख रही थीं। अब सब मुझे ही सम्हालना, अपने को भी सास को भी.
चिंटू बैठ गया था, मैं उसके लिए पानी ले आयी, और पानी पी के थोड़ी उसकी हालत ठीक हुयी। उसने बोलना शुरू किया,
" भैया,... "
" का हुआ भैया को " अब मेरी सास से रहा नहीं गया, वो बोल पड़ीं। मैंने इशारे से उन्हें चुप रहने को बोला और चिंटू के हाथ में दुबारा पानी की ग्लास पकड़ा दी।
पानी फिर पिया उसने, सांस ली और बोला,
" भैया कहलवाए हैं, ... "
और अब मेरी और मेरी सास की साँस फिर चलना शुरू हुयी। मुझे मालूम था की किसी को खाली पानी नहीं देते, झट से मैं एक प्लेट गुझिया ले आयी,
" भैया, गुझिया खा लो, अपने हाथ से बनायी हूँ, इतना दूर से आ रहे हो, पहले खा लो, फिर पानी पी के आराम से बताओ। " मैं बोली,
सास मेरी बगल रखी बसखटिया पर बैठ गयीं, मैं खड़ी ही रही और चिंटू ने बोलना शुरू किया,
कुल मिला जुला के बात यह थी की परेशानी इनकी नहीं नन्दोई जी की थी, बल्कि नन्दोई जी के एक दोस्त की, एकदम घर ऐसा दोस्त, सगे भाई से बढ़कर,
होली का मौका ... तो थोड़ा चढ़ाना तो बनता था...हादसा
शहर में नन्दोई जी को कुछ काम था तो सुबह ही वो और इनके दोस्त गए थे, शाम को दोनों लोग लौट रहे थे, अलग अलग बाइक पे, रास्ते में उनके दोस्त का ऐक्सिडेंट हो गया, इनके दोस्त की बाइक किसी को बचाने के चक्कर में किसी पेड़ से टकराई और दोस्त को काफी चोट आयी है। होश में नहीं है. उसे लेकर नन्दोई जी पास में ही एक ट्रामा सेंटर में,.. जो सड़क के बगल में ही था पहुंचे।
एडमिट तो उसने कर लिया, लेकिन एक्स रे और बाकी कुछ नहीं हो पा रहा है. लाइट नहीं है, जेनरेटर उसके पास है नहीं, और खाली एक कम्पाउंडर है , बोल रहा है डाक्टर सुबह आएंगे।
और एक चक्कर पुलिस का हो गया है,....एक कोई पुलिस वाला था वो नन्दोई जी के पीछे,
अब वो अपनी बाइक पे किसी तरह लाद के ले आये थे तो उनके भी सारे कपड़ो पे खून लगा था,
बस पुलिस वाला उनके पीछे की ये तो पुलिस केस है पहले थाने चलो, बयान होगा। उन्होंने सौ पचास दे के निबटना चाहा लेकिन पुलिस वाला लम्बा हाथ मारना चाहता था, उसने उस कम्पाउंडर को बोल के उनका भी खून निकलवाया लिया जांच के लिए , कि दारु पी के गाड़ी चला रहे थे . और थोड़ी बहुत तो उन्होंने पी रखी ही थी.
वो चाहते थे की अपने दोस्त को किसी ढंग के नर्सिंग होम में ले जाए लेकिन ट्रामा सेंटर वाला छोड़ने को नहीं तैयार, और फिर पुलिस केस एक बार हो गया तो और मुश्किल। वैसे भी बिना जान पहचान के रात में कौन नर्सिंग होम वाला सुनता है।
तो नन्दोई जी का फोन आया इनके पास, बस,
चिंटू कुछ रुक के बोला,
" भैया से ज्यादा किसकी ताकत होगी, पुलिस दरोगा, थाना तहसील, शहर में भी उनका तो नाम ले के कितने बार काम हो जाता है, तो इसलिए, ... "
कोई इनकी तारीफ़ करता है तो मेरा सीना ख़ुशी से फूल जाता है, इतना अच्छा लगता है की बस, मैंने प्लेट में से एक बड़ी सी फूली हुयी गुझिया निकाल के चिंटू को पकड़ाई,
" अरे भैया एक गुझिया और लो, अरे भौजी के हाथ से, अरे हमरे हाथ से नहीं खाये थे न "
माता जी की, मेरी सासू की चिंता दूर हो गयी थी वो भी अब अपने रंग में आ गयीं, चिंटू को चिढ़ाया, "अरे कैसे देवर हो, भौजी दे रही है और, ... "
चिंटू ने मुस्कराकर गुझिया गप कर ली, फिर आगे की बात बताई,, वो जो सुविधा नर्सिंग होम है न ,
" हाँ हाँ नाम तो हम भी सुने है बहुत बड़ा है जिला अस्पताल तो बच्चा लगता है, उसके आगे, पूरे शहर में नाम है लेकिन महंगा भी " मैंने जोड़ा,
" हां उहे लल्लू सिंह क है, लेकिन जो जो भर्ती हुआ तो दो चार बिगहा खेत तो गिरवी रखाया समझ लीजिये, लेकिन चलाते तो उनके बेटे अक्षय परताप हैं , वो भैया के जिगरी, भैया बरसते पानी में रात को कह दें तो रात भर खड़े रहें, लल्लू सिंह तो खाली, आपन राजनीति,... अबकी जिला पंचायत लड़ेंगे, "
गुझिया खाते हुए चिंटू बोला, फिर जोड़ा,
" भैया अक्षय बाबू के फोन घुमाये, स्पीकरवा ऑन था, बाबू साहेब पे तो अइसन असर हुआ, बोले, भैया आपके बहनोई हमारे बहनोई। मेहमान जी की बात है, हम अभी शहर से बाहर है नहीं तो खुदे आते, मैनेजरवा क भेजते हैं सब इंतजाम कर देगा, आप को तो जानता है अच्छी तरह से, बस फोन रखिये,
और ओकरे बाद भैया कउनो सी ओ है उनको फोन लगाए, वो तो अइसा गरियाये दरोगवा को, बोले कुल ट्रामा सेंटर से महीना बंधा है तब भी स्साले चवन्नी अठन्नी के लिए , पता करता हूँ कौन है अभी छह महीने लाइन हाजिर होगा, साहेब लोगन क मेहरारू क पेटीकोट धोय धोय के,… कुल हफ्ता वसूली भूल जाएगा, "
मैं ख़ुशी से चिंटू का मुंह देख रही थी, हलके से बोली , 'फिर,'
और एक गुझिया पकड़ा दी,
गुझिया खाते खाते चिंटू बोला,
" हम तो भैया से बोले की, भैया कुल काम तो हो गया अब आपके जाने की कौन जरूरत, तो वो बोले की नहीं जीजा बहुत परेशान है हमार जाब जरुरी है, हम समुआ के साथ जा रहे हैं तू घर जाय के अपनी भौजी और माई को बता देना नहीं तो रात भर दोनों जनी थारी लिहे अगोरीहें, न खइहें न सोइहें, यह लिए, और हम से बोले हैं की तू दो चार लौंडन के साथ एकदम भिन्सारे आ जाना, का पता खून वून देवे के पड़े, जीजा उंहा कहाँ इंतजाम करीहें और ओनके निकरे के पहले मैनेजर क फोन आ गया था की भैया,… एम्बुलेंस निकल गयी है। "
" वो जो मार बोल रहा था ट्रामा वाला की जाय न देब, एकबार हमरे यहाँ भर्ती हो गए हैं तो,… "
सासू माँ ने पूछा,
और चिंटू ने हँसते हुए गुझिया ख़त्म करते हुए, कहा, अरे लल्लू सिंह क एमबुलेंस आय रही है सुन क ससुरे क मूत सरक गया, हिम्मत पड़ती उसकी, "
लेकिन मेरे दिमाग में अब दूसरी परेशानी घूम रही थी, चिंटू से मैंने साफ़ साफ़ पूछ लिया, " भैया, तोहार भैया खाना वाना, ... "
वो हँसते हुए बोला,
" भौजी, वो हमार बात सुनते ? लेकिन माई आके खड़ी होगयी सामने, थाली लेके, खाना खाई के ही निकरे हैं उनके जाने के बाद हम चले हैं। हाँ और बोले हैं की अपनी भौजी से बोल देना परेशान एकदम मत होंगी, हस्पताल में फोनवा लगता नहीं है, वो दोपहर तक पक्का आ जाएंगे "
मैंने चैन की साँस ली।
दारू के साथ-साथ सास बहु की लेस्बियन मस्ती...सास बहू
थोड़ी देर में मैं मेरी सास और मैं हम दोनों पलंग पर थे लेकिन नींद कोसो दूर थी। मेरे मन में इन्ही को लेकर चिंता थी। मुझे पूरा मालूम था की ये एक बार पहुँच गए हैं तो सब कुछ सम्हाल लेंगे। पुलिस, हस्पताल सब. लेकिन मन का क्या करें, मन का काम परेशान होना है, वो हो रहा था. मैं अपने मरद के लिए सासू माँ अपने बेटे और दामाद दोनों के लिए.
मैंने खुद को समझाने के लिए सासू माँ को समझाना शुरू किया,
" माता जी परेशान न होइए, वो पहुंच गए होंगे कभी के, उन्होंने तो पहले ही कहलवा दिया था की वहां से फोन नहीं हो पायेगा, सब ठीक होगा, नन्दोई जी को भी कुछ नहीं होगा, "
" मालूम है मुझे लेकिन क्या करूँ मन का,... बार बार यही सोचती हूँ जब चिंटू आया था कैसी घबड़ाहट हुयी लेकिन तुमने कैसे सम्हाला, बहुत हिम्मत है तुममे "
मुझे बाँहों में भींच के बोलीं वो।
'असल में मेरी एक सास हैं इस घर में और उनके रहते मुझे मालूम है इस घर में कोई अलाय बलाय नहीं आएँगी आने के पहले वो उसकी माँ चोद देंगी, बस उन्ही सासू माँ के चलते मेरे में हिम्मत आ गयी है अब मैं किसी से भी नहीं डरती, न घबड़ाती, मेरी सासू माँ हैं न मेरे साथ "
उन्हें और कस के भींचते हुए मैंने बोला।
" तू पागल है"
ये कह के उन्होंने अपना फैसला सुना दिया, और दुलार से मेरा सर सहलाने लगीं। लेकिन फिर अपनी परेशनी सुना दी,
" पता नहीं क्यों अभी भी एक तो दिल धड़क रहा है, नींद नहीं आ रही "
मैं समझ रही थी उनका टेंशन और मेरी हालत कौन सी अच्छी थी।
" रुकिए माता जी " कह कर मैं इनकी अलमारी के पास गयी और खोला।
पीने के मामले में ये कभी कभार वाले थे लेकिन नन्दोई जी तो पीते ही थे और वो आते तो रोज बोतल खुलती भी ख़तम भी होती। और ये साथ देते ही, इसलिए इनकी अलमारी में दो चार बोतल नयी हरदम ही रहती, और मर्द तो हर घर में लेकिन औरतें भी, होली में,
मेरी इन्ही ननद ने चार पाउच, देसी वाले सीधे, होली का परसाद है कहकर, फिर इतनी चढ़ी मुझे की रंगे पुते अपने सगे समान ममेरे भाई को पटक के जबरदस्ती, देवर समझ के उसके ऊपर चढ़ के चोद दिया, वो चिंचियाता रहा और तो और फिर जब वो मेरे ऊपर चढ़ा था, तो ननदोई जी ने पीछे से उसकी गाँड़ भी मार ली, और मैं समझ रही थी, मेरा देवर है तो उनका साला लगा
अलमारी से बोतल निकाल के मैं ग्लास लेने जा रही थी तो मेरी सास ने टोका,
"कहाँ आधी रात में ग्लास लेने जा रही है , ला सीधे बोतल से ही"
और बिस्तर पर सास के बगल में बैठ के मैंने एकदम छोटी सी घूँट, हल्की सी कड़वी लगी लेकिन मैं घोंट गयी और मेरे मन में आइड्या आ गया की सासू माँ को कैसे पिलाया जाय.
मैं अपनी सास के ऊपर लेटी,
उन्होंने धीरे धीरे खींच के मेरी साड़ी उतार के नीचे और मैं क्यों छोड़ती। थोड़ी देर में सास बहु की साड़ियां एक साथ पलंग के नीचे और सास बहू पलंग पर,
और अबकी बोतल से ढेर सारा मेरे मुंह में, थोड़ी देर मुंह में गोल गोल घुमाती रही, फिर दोनों हाथों से कस के सास के गुलाबी मांसल गाल दबाया, उन्होंने खुद मुंह खोल दिया और मेरे मुंह से शुद्ध दारु, मेरी सासू के मुंह में।
और उसके बाद मेरी जीभ, सासू लंड चूसने में जरूर पक्की होंगी जिस तरह से वो मेरी जीभ चूस रही थी, क्या मस्त।
उसी समय मैंने तय कर लिया जल्द बहुत जल्द अपने सामने सासू के मुंह मोटा लौंड़ा जरूर घुसवाऊँगी, और किसका सासू के पूत का,… मस्त चूसेंगी ये।
और जब तक वो मेरी जीभ, मेरे हाथ, उनके जोबन का रस ले रहे थे, मेरी गुलाबो उनकी चमेली पर घिस्से मार रही थी,
और सिसकते हुए जब उन्होंने मेरे होंठों को छोड़ा, एक बार फिर बोतल मेरे मुंह में और दो पेग के बराबर थोड़ी देर में मेरे मुंह से होते हुए सास के मुंह में, और अबकी मैंने उनके दोनों होंठों को अपने होंठों से दबोच लिया, कस कस के चूसंती रही, जब तक एक एक बूँद दारु की सासू जी के पेट में नहीं उतर गयी।
लेकिन मेरी सास मेरी भी सास थी,
एक बार मेरी ट्रिक और चली पर चौथी बार,
पहले तो जब बोतल मेरे मुंह में लगी, मैंने पहली की तरह दारू मुंह में डाली, बस सासू जी ने मेरी कलाई पकड़ ली। उनकी पकड़ और सँड़सी मात, और गटर गटर मुंह से मेरे पेट में जाने लगा, कबतक मैं मुंह में रोक के रखती। और जो थोड़ा बहुत बचा था, मेरी सास ने अब अपने होंठ, मेरे होंठों पर चिपका दिए और मेरे मुंह से वो भी मेरे पेट में चला गया.
अब बोतल उनके हाथ और उन्होंने जो किया में सोच भी नहीं सकती थी.
जिन बड़ी बड़ी चूँचियों का दूध पीके मेरा मरद इतना तगड़ा हो गया की उसका खूंटा हाथ बाहर मोटी दीवाल में भी छेद कर दे.
बस वही मस्त चूँची बड़ी बड़ी भी कड़ी कड़ी भी, मेरे खुले होंठों के ऊपर, कभी निपल रगड़ देती कभी उठा लेती,
फिर बूँद बूँद बोतल से मदिरा और जोबन दोनों का नशा मेरे होठों से मुंह में सरकता हुआ और मेरी धमनियों शिराओं से सीधे मेरे तन मन को पागल करता,
लेकिन थोड़ी देर में मैंने बोतल सासू की माँ के हाथ से छीन ली, जवानी की ताकत, और बोली,
" आपके बेटे को ऐसे पिलाती हूँ,..."
मेरी गुलाबो सासू जी के मुंह से सटी हुयी और बोतल से बूँद बूँद पहले मेरी क्लिट को भिगोता, फिर दोनों गुलाबी फूली फूली फांको को गीली करता सासू माँ के खुले मुंह, उन्होंने खुद मुंह खोल रखा था और चुसूर चुसूर पी रही थीं, लेकिन थोड़ी देर में उनसे नहीं रहा गया, पहले तो जीभ निकाल के उन्होंने उन दारू से भीगी गुलाबी रसीली फांको को छूने की कोशिश की, फिर गरदन उठा के मेरी दोनों फांको को अपने होंठों के बीच में,
मन तो मेरा भी कर रहा था, मैंने भी अपनी रसीली चुनमुनिया रगड़नी शुरू कर दी और सासू जी ने चूसना शुरू किया,
कई बार तो मुझे लगता था की ये जो जबरदस्त चूत चटोरे हैं ये उन्होंने अपनी महतारी से खून में पाया है,
बोतल मैंने नीचे रख दी थी, आधी से ज्यादा खाली कर दी थी हम दोनों ने और हम दोनों पर अब उसका असर चढ़ गया था,
कुछ देर तक तो मैं अपनी बुर सासू जी के मुंह पे रगड़ती रही लेकिन मुझे वो सुरंग दिखी जिसमें से मेरे बालम निकले थे और रोज मेरी सुरंग में बिना नागा घुसते हैं। देख के मेरा मन ललचा गया, और मैं सासू से बोली,
" सासू माँ बहू का काम है सास की सेवा करने और मैं आप से करवा रही हूँ, पहले मैं "
बेटे की कमी बहु ने पूरी की... ये चार का परिचयसास की सेवा
और मैं सास की दोनों टांगों के बीच,
जैसे अगर आज नन्दोई जी वाला झंझट नहीं हुआ होता तो सासु का बेटा आज करता,
एकदम उसी तरह पहले उनकी टाँगे फैलायीं, फिर दोनों खूब मांसल जाँघे, दोनों हथेलिया मेरी सरसराती जाँघों को सहलाती रहीं, फिर मैंने दोनों हाथों की उँगलियों सास के भोंसडे को कस के फैलाया, चार बच्चे निकल चुके थे लेकिन अभी भी बहुत कसी थी,
मुझे एक शरारत सूझी, सास के उन खुली फांको के बीच, दारू की बोतल खोल के टप टप,
जैसे ही वो शराब की बूंदे, सासू माँ के खुले फैले भोंसडे की फांको को भिगोती रगड़ती अंदर घुसती, दरार को दरेरती, सास मेरी सिहर जातीं कांपने लगती। फिर मैंने अपनी उँगलियों से दोनों फांको को पकड़ के बंद कर दिया,
दो चार ढक्क्न भर के दारू अंदर, घुलती छनती,
जैसे मेरी सासू माँ के छोटे बेटे के पास,... सांड़ ऐसे लम्बे मोटे मूसल के अलावा भी औरत को पागल करने वाले दर्जन भर हथियार थे, उनकी जीभ, उनके होंठ, उँगलियाँ और सबसे खतरनाक तो आँखे, गौने में बिदाई करा के लौटते हुए, उन्होंने बस तिरछी निगाह से एक बार देख भर लिया और मेरी मेंहदी लगी ऊँगली से उनकी ऊँगली छू भर गयी, बस सीना मेरा ऊपर नीचे होने लगा, चोली फाड़ने लगा, कैसे जल्दी ससुराल पहुंची कब गौने की रात आये और साजन की बांहों में लिपट जाँऊ ,...
तो बस उसी तरह,... मेरी सास की बहू के तरकश में अब बहुत तीर थे ,
सास की बुर की कुप्पी में दारू भरी थी और मैंने हथेली से मसलना शुरू कर दिया और बीच बीच में अंगूठे से क्लिट को रगड़ देती,
बस सासू माँ के मोटे मोटे बड़े बड़े चूतड़ उछल पड़ते।
थोड़ी देर पहले तक तो मैं उन्हें गरम कर रही थी, लेकिन झाड़ नहीं रही थी,
ये सोच के सास का बेटा आएगा तो झाड़ेगा, मादरचोद अपनी माँ को चोद चोद के,
लेकिन वो तो टल गया,
चुदवाउंगी तो जरूर इनको अपने मरद से वो भी अपने सामने आज नहीं तो किसी और दिन.
लेकिन अब बेटा नहीं तो बहु है न, जब तक इन्हे झाड़ूंगी नहीं अच्छी नीद नहीं आएगी इन्हे, और फिर मैंने चूसना शुरू कर दिया,
शुरू से ही कस कस के और बीच बीच में कभी दो ऊँगली कभी तीन ऊँगली,... पूरी ताकत से और साथ में क्लिट भी चूसती, पांच छह मिनट में वो झड़ने के कगार पर आगयीं। लेकिन मैं रुकी नहीं
वह झड़ती रहीं, मैं चूसती रही,
वो लाख कहती रही अपनी समधन को गालियां देती रही, तोरी महतारी क भोंसडे में बाइस पुरवा क कुल मरद समाय, गदहा चोदी,
लेकिन मेरे ऊपर कुछ असर नहीं पड़ा उनकी समधन वो जो चाहे कहें उनका गरियाने का रिश्ता,... एक बार झड़ के जब वो रुकी तो मैं भी रुकी लेकिन फिर जीभ की जगह उँगलियाँ और थोड़ी देर में उसी हालत में वो।
तीन बार झाड़ के मैंने उन्हें थेथर कर दिया लेकिन वो भी
थोड़ी देर में हम दोनों 69 वाली पोजीशन में थे,
वो मेरा चूस रही थीं और मैं उनके भोसड़े से तीन बार के झड़ने के बाद बह रही चाशनी चाट रही थी और सोच रही थी यही चासनी अपने मर्द को चटाउँगी जरूर।
लेकिन जबरदस्त चटोरी थी मेरी सास,
पांच मिनट में मैं भी झड़ रही थी, दो बार झड़ने के बाद मैं भी अलग हुयी।
रात बहुत हो चुकी थी,
हम दोनों सास बहू अच्छी तरह झड़ गयी थीं,
मैंने कल रात भी इनके साथ रतजगा किया, भाई अपनी सगी बहन को गपागप चोद रहा हो, वैसा मजेदार सीन छोड़ के किस भौजाई की आँख लगेगी और आज दिन भर भी देवरों के साथ कुश्ती, अपनी सास के लिए गाँव के आठ लौंडो की मलाई अपनी कुप्पी में भर के लायी थी, लेकिन एक बात मन में फांस की तरह चुभ रही थी,
आज इनकी महतारी बच गयी बेटवा क लंड घोंटने से, बहू के सामने।
मैंने सास को कस के अपनी बाहों में भर के दबाते हुए गाल पे चुम्मा ले के कहा,
" आज तो आप बच गयी, लेकिन एक बार मेरी ननद को जाने दीजिये, मेरी सास की कसम,...इसी बिस्तर पे आपके बेटे से न चुदवाया आपको तो,... वो भी अपने सामने"
मेरी सास मुझे बीस नहीं पच्चीस थीं, मजाक और मस्ती दोनों मामले में, कस के मेरे जुबना मीजते हंस के बोली,
" अरे रंडी महतारी क जनि, तू क्या चुदवायेगी, और वो तेरी छिनार महतारी क दामाद वो क्या चोदेगा, ...मैं खुद उसे चोद दूंगी।
हाँ बात तेरी एकदम सही है एक बार अपनी ननद को ससुराल जाने दे, आज तो वो नहीं थी, कोई बात नहीं लेकिन कल से तो, … लेकिन पांच छह दिन की बात और ये बात तोहार एकदम सही है, कुछ भी है, है तो ससुरैतिन, कहीं ससुरारी में केहू के सामने मुंह खुल जाए, या यही पे हमरे तोहरे सामने, तो घबड़ा जिन।
एहमे न तोहार दोस न केहू और का, जो आज क मामला गड़बड़ाय गया,.... हमहुँ तो सब ओकरे पसंद क खाना बनाय के बैठे थे,...हमरो मन एकदम गरमाया था"
मैंने ख़ुशी से सास का मुंह फिर से चूम लिया. जो मैं सोचती थी वही मेरी सास चाहती थीं, दुनिया में ऐसी सास कहाँ मिलेगीं।
अपने बेटे की तरह मेरी सास भी मेरे जुबना की दीवानी थीं। उसे सहलाते हलके हलके दबाते बोली,
"गेंदवा तोहार एकदम तोहरी महतारी पे पड़ा है, बड़ा बड़ा कड़ा, तबे गांव क कुल लौंडा नयकी भौजी, नयकी भौजी करते रहते हैं। "
ये बात सास की मेरी एकदम सही थी और गौने आने के कुछ ही दिन बाद अपनी सास की देखादेखी मैंने ढक्क्न लगाना बंद कर दिया, चोली भी सब एकदम टाइट और लो कट वाली, और फिर इत्ते बड़े बड़े जोबन पे आँचल कहाँ टिकता है, तो सब लौंडे बस एक झलक पाने के लिए और मैं भी, भाई उनका रोज इमरती खाता था, तो देवर कम से कम मिठाई क झलक तो देख लें।
और निप पे एक चुम्मा ले के सास ने एक और बात कही,
" तोहार महतारी चाहे मायके क, बचपन क छिनार हों, खानदानी रंडी हो , जबरदस्त लंड खोर, लेकिन बिटीया तीनो मस्त पैदा कीं, सब एक से एक,... माल।"
ये चार का परिचय रह गया क्या...सास के भोंसडे को कस के फैलाया, चार बच्चे निकल चुके थे लेकिन अभी भी बहुत कसी थी,
सास तो थाल सजा के बैठी थी...हमहुँ तो सब ओकरे पसंद क खाना बनाय के बैठे थे,...हमरो मन एकदम गरमाया था"
मुन्ना का मुन्ना .. बहुत जगह की सैर कर चुका है...बूआ जी
सास की ये बात भी एकदम सही थी, मेरा मतलब उनकी समधन की बिटियों वाली बात। लेकिन सास ने जो अगली बात कही इनके बारे में तो में चौंक गयी,
" जउन अपनी दादी क बिटिया को नहीं छोड़ा, वो नानी क बिटिया को काहें छोड़ेगा "
दादी की बिटिया मतलब इनकी बूआ, मैं सकते में, क्या सच में मेरे मुंह मुंह से निकल गया और मेरी सास खिलखिलाने लगीं।
" क्यों क्या मेरा बेटा अपनी बूआ नहीं चोद सकता, अरे खाली तोहार ननद छिनार थोड़े ही हैं, हमार ननद कउनो तोहरे ननद से कम थोड़े हैं, सावन से भादों दूबर"
जोर से ठहाका लगाते वो बोलीं।
और मेरी आँख के सामने इनकी बूआ की शक्ल घूम गयी, दुबली पतली, छरहरी, लेकिन असली जगहों पर जरूरत से ज्यादा गदरायी, एकदम टनाटन, और अपनी सास और उनके बीच जो मजाक और खुलापन पहले दिन ही मैंने देखा, मेरा और मेरी ननद के बीच तो कुछ भी नहीं, ....और वो दोनों लोग बोलने से ज्यादा सीधे हाथ पे उतर आती थीं,
सुहाग रात के लिए मेरी ननदे मुझे ले जा रही थीं, कमरे में और पहले मैं सास का पैर छूने के लिए झुकी तो उनके बगल में मेरी मेरा बूआ सास, मुझसे बोलीं,
" अरे बहुत पैर नहीं पैर के बीच में छुओ जहां से तोहार मरद निकला है, उठाय लो लहंगा "
और मैं कुछ बोल तो सकती नहीं थी, हाथ भर का घूंघट काढ़े
लेकिन दिख सब रहा था, और खुद बूआ ने अपनी भौजी का मेरी सास का लहंगा एकदम ऊपर तक,
और मैं समझ गयी की इस घर में फ़ालतू में चड्ढी पहनने का रिवाज नहीं है,... सब दिख गया।
लेकिन मेरी सास कौन कम, उन्होंने अपनी ननद का, लहंगा और ऊपर तक और मुझसे बोलीं
" देख लो, एही कुंए में तोहार ससुर गोता लगाते थे "
मेरी सास की कोई गाँव की जेठानी लगती थीं शायद हिना की माँ, वो अपने देवर की ओर से बोलीं,
" काहें हमरे देवर को दोष धरती हो, यह गाँव क का, पूरे बाईसपुरवा क कुल मरद साले बहनचोद होते हैं और लड़कियां भाइचॉद तो इहो गाँव क रिवाज, "
और जब मैं चलने लगी तो बूआ बोलीं,
" अरे दुल्हन खूब लम्बा मोटा कड़ा मिलेगा, ....रात भर रगड़ के रख देगा, सबेरे दो दो ननदे जाएंगी टांग के लाने के लिए "
फिर मेरी जेठानी से पूछा ,
" तेल पानी कर दिया है न अच्छी तरह से "
बूआ जी की बात पूरी तरह सही हुयी, सुबह सच में दो ननदें टांग के ही ले आयीं, जमीन पे पैर रखते ही वो जोर की चिलख उठती थी। लेकिन अगर पहला दिन नहीं होता तो मैं शायद बूआ जी से पूछ ही लेती
" क्यों बूआ जी, अपने देखा परखा है, ....खाली पकड़ा है की घोंटा भी है।"
बुआ जी से उसी दिन से मेरी खूब अच्छी वाली दोस्ती हो गयी,
पर मैंने सोचा, मामला साफ़ कर लेना चाहिए और मैंने सास से साफ़ पूछ लिया "तो क्या बूआ जी सच में,..."
मेरी सास खिलखिलाने लगी,
" तू भी न पागल, अब ये सब चीज कोई देखता है, अगर तू कहे की मैंने तेरे मरद को उसकी बूआ की टांग उठाते,... घुसाते, पेलते देखा है.... तो नहीं, लेकिन ये सब अंदाज लग जाता है, और उसकी बूआ बचपन की लटपटिया, मुन्ना को ( मेरी सास इन्हे मुन्ना ही कहती थीं ) देख देख के, ....और ५-६ साल का ही तो फरक होगा,"
और सास मेरी घडी की सूई पीछे घुमा के इनके बचपन में पहुँच गयीं,
" जब मैं इसकी नूनी खोल के तेल लगाती थी,"
और मैं सोचने लगी ये कौन बड़ी बात है हर माँ करती हैं, जिससे सुपाड़े की चमड़ी चिपके नहीं
लेकिन जो मेरी सास ने बात बताई तो मैं समझ गयी बूआ जी को, वो बोली
तो उसी समय कहीं भी हों वो, उछल के आ जाती थीं, , और उछलता भी था बहुत वो उस समय, लेकिन थोड़ा बड़ा भी हो गया था, और मैं खूब चिढ़ाती थी,
"अरे बूआ भतीजे में तो चलता है, देख लो बड़े होने पे,..."
और वो मुन्ना को छेड़ती भी खूब थीं और वो चिढ़ता भी बहुत था, वो नौवे या दसवे में था, बूआ उसकी स्कूल से आयीं, मुन्ना नेकर पहनता था बस ऊपर से पकड़ के, चिढ़ाते हुए बोलीं,
" क्यों फड़फड़ाता है बहुत जोर से, ....सफ़ेद सफ़ेद निकलता है की नहीं "
उस समय, अरे वही गुलबिया की सास, बड़की नउनिया, मुन्ना की बूआ की तो भौजी ही लगी, ....जबरदस्त मुंहफट, बिना ननदो को गरियाये , तो वो बोली तोहरे मरद से,
" अरे भैया छोड़ा मत, बहुत तोहार बूआ छौंछियान हई, सफेदा उनके अंदर निकाला, ....अरे जेकर भाई तोहरे महतारी पे चढ़त है, ओकरी बहिन को तो जरूर पेलना चाहिए "
और ओहि साल, बूआ क बियाह हो गया। दो साल बाद, मुन्ना इंटर में था, गरमी क छुट्टी, तो यही बूआ का फोन आया की फूफा कहीं महीने भर के लिए जा रहे हैं वो अकेले रहेंगी, तो मुन्ना को भेज दूँ ।
मैंने चिढ़ाया भी उन्हें की, "ननदोई जी वाला काम करवाना है का" तो वो नंबरी छिनार बोलीं,
" हमार भतीजा,... चाहे जो करवाई। "
और गरमी क छुट्टी में कौन लड़का घर रहना चाहता है तो मैंने भेज दिया। जब वो लौट के आया तो मैंने भी चिढ़ा के पूछा, बूआ के साथ मजा आया, ख्याल रखा बूआ ने, ....तो जो शरमाया वो, "
सास की बात काट के मैं बोली,
"जैसे बिल्ली ने छींके का दही खा लिया हो."
सास मेरी मुस्करायीं बोलीं " एकदम " तो बस मैं समझ गयी।
"अच्छा चलो बहुत रात हो गयी है सो जाओ।" वो बोलीं और दुबका के मुझे कस के सो गयी और थोड़ी देर में मैं भी, ...
उसके पहले मैं सोच रही थी,
मन तो मेरा बहुत था आज ये अपनी महतारी पे, लेकिन चलिए आज नहीं तो पांच छह दिन बाद, और मेरी सास भी खुदे गर्मायी हैं हमरे भतार का लंड खाने के लिए तो इनको तो मैं मादरचोद बना के रहूंगी आज नहीं तो पांच छह दिन बाद,
असल में एक बात और थी।
होलिका माई बोलीं थीं, ... ननद हमर पांच दिन के अंदर गाभिन होंगी और हमको तो लग रहा था कल उनके भैया जस हचक के पेले हैं छह बार आपन बीज अपनी बहन की बुरिया में, ...लेकिन बात तो पांच दिन की थी, तो क्या पता कौन दिन ? अब दो दिन तो निकल गया। पहले दिन तो ननद हमर अपने सगे भैया की सेज पे और और आज तो चलिए सहेलियों के साथ तो कउनो खतरा नहीं है। लेकिन बाकी के तीन दिन भी मैं यही सोचती हूँ , कुछ भी कर के,... एक चीज तो ये जरूरी है मेरी ननद रोज अपने भैया क बीज घोंटे, तो जिस दिन भी गाभिन होने का संयोग हो, हमरे मरद के बीज से गाभिन हों,
दूसरे ये तीन दिन उन्हें ननदोई की परछाई से भी दूर रखना होगा। बस तीन दिन और खाली हमार मरद और उनकी बहिनिया, और कुल बीज बच्चेदानी में ,
जेठानी तो जिस तरह से गयीं है छुटकी ननद को लेकर ये पक्का है अब वो बम्बई वाली हो गयीं, साल दो साल में कभी दिवाली, कभी होली और ये ननद भी गाभिन हो गयी तो इनका आना जाना भी तो,... बस मैं, मेरा मरद और मेरी सास, और एक बार मेरी सास को मेरे मरद के खूंटे क स्वाद लग गया न तो,
बस पांच छह दिन और,...उसजे बाद तो फिर न य बच सकते हैं अपनी महतारी पे चढ़े बिना और इनकी महतारी तो खुदे गर्मायी हैं ।
और सास को पकड़ के मैं भी सो गयी
एक दूसरे को पकड़ के क्या माँ बेटी सोती होंगी, जिस तरह हम दोनों सोये।