ये क्या.. छुटकी सरक ली...भोर का सपना
मैं और सास रसोई में बैठी मस्ती कर रहे थे, मैं कभी सासू के गोरे गुलाबी भरे भरे गाल मींज देती तो कभी चोली फाड़ते जोबन दबा देती, और छेड़ती
" आ रहा होगा अभी मेरा भतार, बायीं आँख फड़क रही है, आपके भोंसडे को ताल पोखर बना देगा, तैयार रहिये "
" डरती हूँ क्या मैं, " हँसते, मुझे दुलराते वो बोलीं। फिर मुझे छेड़ा,
" तू अपने मायके से चल के,... स्साली चुदवाने के लिए आयी, एकदम कच्ची कोरी, इंटर भी नहीं पास किया था, और धड़ धड़ कर के सेज पे चढ़ गयी, पूरा लम्बा मोटा घोंटने के लिए, जड़ तक, ... और मैं, जिसके भोंसडे से वो निकला है ,... जिसकी नूनी पे तेल लगा लगा के मोटा खम्भा बनाया है, वो मैं डरूंगी।
आने दे तोहरी महतारी के भतार को, वो क्या चढ़ेगा मेरे ऊपर, मैं चढूँगी उसके ऊपर और देखना तेरे सामने पूरा घोंट लूंगी, "
मेरी और मेरी सास में पक्की दोस्ती हो गयी थी, एकदम सच्ची मुच्ची वाली सहेलियों की तरह, माँ को लेकर तो वो बिना गाली के बात नहीं करती थी लेकिन अब मैं भी,...
थोड़ी देर में ये आने वाले थे, छुटकी को छोड़ने गए थे, मेरे मायके ही नहीं सीधे लखनऊ।
मेरी ननद जिस दिन अपने भैया से गाभिन हो के खुश खुश अपने ससुराल गयीं, उसी दिन शाम को छुटकी आ गयी। आ क्या गयी, उसे मैंने बुलवा भेजा, घर से माँ का फोन था, मारे ख़ुशी के उनसे बोला नहीं जा रहा था।
छुटकी का कबड्डी की स्टेट टीम में सेलेक्शन हो गया था।
अभी थोड़ी देर पहले स्कूल से खबर आयी थी, फिर लखनऊ से भी और उसके बाद तो फोन पे फ़ोन। लेकिन चक्कर ये था की दो दिन के अंदर उसे लखनऊ पहुंचना था, वहां पंद्रह दिन का कैम्प था, के डी सिंह बाबू स्टेडियम में और स्पोर्ट्स हॉस्टल में ही रहना,... खाना। और उसके बाद टीम को बंगलौर जाना था इंटर स्टेट कैम्प के लिए।
और वहां फिर इंटर स्टेट के बाद एक और सेलेक्शन होना। नहीं नहीं, नेशनल टीम का नहीं। वो लोग यंग टैलेंट्स, मतलब जिनकी एज कम हों, कभी नेशनल में न रही हों , फर्स्ट या सेकेण्ड टाईम इंटरस्टेट खेल रही हों वैसी २४ लड़कियां चुनते, और उनको ग्रूम करते। अभी नहीं, लेकिन दो चार महीने बाद पटियाला में एक दो तीन महीने की ट्रेनिंग, फिर कई मैच, मतलब वो स्पोर्ट आथारिटी की ही जिम्मेदारी में,
ये सब बात मुझे छुटकी ने बताई, वो जैसे ही आयी उसके पास भी फोन पे फोन ।
लखनऊ में एक कोई जूनियर कोच थीं, रीजनल में छुटकी से मिली थी बहुत इम्प्रेस थीं, उनका फोन था। और ये भी की इंटर स्टेट में प्रो कबड्डी लीग वालों के स्काउट भी आते हैं चुनने के लिए , और अभी लड़कियों की भी एक प्रो कबड्डी लीग चालू होने वाली है तो वो लोग भी यंग लड़कियों के चक्कर में रहेंगे, एक बार उनकी निगाह में जो चढ़ गयी तो उसे भी कॉन्ट्रेट मिल सकता है।
वो तो जोश में थी, लेकिन माँ घबड़ायी थी,
पहली बात लखनऊ अकेले कैसे जायेगी,
चलिए लखनऊ से तो सब टीम वाले, लेकिन यहाँ से लखनऊ,.... मंझली को अकेले छोड़ के माँ भी नहीं जा सकती थी। दूसरे हर माँ की तरह,.... अभी छोटी है, और मोर्चा सम्हाला छुटकी के जीजा ने ने , इन्होने।
वो बोले की देखिये, सचिन तेंदुलकर कितने साल के थे जब इण्डिया की ओर से खेले, तो अपनी छुटकी भी कब्बड्डी की सचिन बनेगी, जल्द नेशनल टीम में आएगी और जहाँ तक लखनऊ जाने का सवाल है , आप क्यों परेशान हैं, मैं हूँ न। मैं ले जाऊँगा साथ।
तो अगले दिन सुबह ये छुटकी को ले के मेरे घर और एक दिन बाद लखनऊ और अब लखनऊ से आ रहे थे , थोड़ी ही देर में पहुँचने वाले थे
सपनों में सब कुछ क्रम से तो होता नहीं,
ये पलंग पर बंधे छने, आंख पे मोटी पट्टी बंधी, काली।
मैंने इन्हे समझा रखा था, ' कच्ची कलियों की तो बहुत फाड़ा तूने, जवान फूलों का भी रस लिया, आज तुझे एक खूब रसीले भोसड़े का रस दिलवाऊंगी, है मेरी एक खास, लेकिन दो शर्त है, एक तो तुझे आँख पे पट्टी बंधवानी होगी, और दूसरे तो तुझे पहले ऊपर चढ़ के चोदेगी, पूरे दस मिनट अगर तुम झड़ गए तो समझ लेना, और अगर नहीं झड़े तो पलट के उन्हें पेल देना, लेकिन झड़ने के पहले उन्हें झाड़ना होगा। "
उनके ऐसे गब्बर मर्द के लिए तो ये कौन बड़ी बात थी, लेकिन सुन के वो छनक गए, बोले
" ले आओ भौंसड़ी वाली को,... फाड़ के चीथड़े चीथड़े न कर दिया, ...पता चलेगा किसी मरद का लौंड़ा घोंट रही है। "
और छनकने के बात ही थी, कच्ची से कच्ची कलियों को भी तीन बार झाड़ने के बाद ही झड़ते थे वो।
लेकिन मान गयी मैं अपनी सास को,
बातचीत में तो बहुत सीखा था मैंने सब मर्दों के साथ वाले दांव पेंच, और मुझे भी घमंड था ऊपर चढ़ के चोदने में मेरा मुकाबला नहीं, इनको और नन्दोई जी के तो ऊपर कितनी बार, फिर नए नए देवरों के साथ भी, लेकिन जब मैंने सास को देखा तब मैं समझी घुड़सवारी के असली गुर। कैसे घोड़े को सहला के, फुसला के कब्जे में किया जाता है, फिर चैलेन्ज, और सास की कलाई में भी अपने बेटे से कम ताकत नहीं थी।
पहले तो ललचाया, सास ने मेरी इनकी कलाई पकड़ी दोनों और बस अपने दोनों निचले होंठों से इनके फनफनाये सुपाड़े को देर तक छुअति रहीं, सहलाती रहीं,
जैसे बदमाश मरद होते हैं, सुपाड़े को रसीली भीगी फुद्दी की फांको पे रगड़ते रहते हैं, औरत को पागल करते रहे हैं पिघलाते रहते हैं लेकिन पेलते नहीं, जब तक औरत खुद चूतड़ न उचकाने लगे, सिसक के पागल न हो जाए, एकदम उसी तरह लेकिन औरतों के पास तो मर्दों से दस गुना ज्यादा हथियार होते हैं। सावन के झूले की तरह वो झोंटा मारती थीं, मजाल है की कमर जरा भी हिले लेकिन उनके बड़े बड़े कड़े जोबना मेरे मर्द की चौड़ी छाती से रगड़ जा रहे थे।
बस थोड़ी देर में उनसे नहीं रहा गया, नीचे से उन्होंने चूतड़ उछाल के धक्का मारा, मेरी सास से तो वो नहीं पार पा सकते थे लेकिन मैंने भी उन्हें कस के गरियाया,
" स्साले, तेरी माँ बहन का भोंसड़ा मारुं, क्या बोला था चुपचाप दस मिनट चुदवाने को, स्साले तेरी माँ का भोंसड़ा है क्या जो ऐसे नीचे से धक्का मार के घुस जाओगे" "
वो बेचारे, जस के तस, लेकिन माँ का दिल, मेरी सास को दया आ गयी,
जरा सी चीज के लिए बच्चे का मन, कहने को तो उनका चार चार बच्चो का निकाल चुका भोंसड़ा था, लेकिन मैं जानती थी उस गुफा की हालत, गुफा नहीं बिल थी, वो भी सांप और चूहे की नहीं, चींटी की। एकदम बढ़िया रखरखाव, कसरत के साथ बरसों से एक दो ऊँगली से ज्यादा उसमे घुसी नहीं थी, हाँ बेचारी कन्या रस से काम चलाती थीं , न जाने कितने देने बाद प्रेमगली को आहार मिला था,
तो मेरी सास ने अपने भोसड़े की दोनों फांको को ऊँगली से फैला के दुलरुवा बेटे के मोठे सुपाड़े को फंसा लिया और बस हलके हलके दबाने लगीं।
बेचारे नीचे से मचल रहे थे तड़प रहे थे और उनके ऊपर चढ़ी महतारी कभी कस के भींच के कभी ढील दे के , लेकिन अब मुझसे भी नहीं रहा गया, आखिर मरद तो मेरा ही न। मैंने अपनी सास से धीरे से कान में सिफारिश लगायी, " दे दीजिये न बेचारे को , तड़प रहे हैं "
और क्या धक्का मारा मेरी सास ने ऊपर से, अगर वो मरद होतीं तो पहली रात में नहीं पहले धक्के में ही कुँवारी कोरी कन्या की झिल्ली तोड़ के खून खच्चर कर देतीं और तब भी न रुकती।
गप्प, सुपाड़ा पूरा अंदर,
उनके ऊपर चढ़ के मैं भी विहार करती थी लेकिन कभी दो तीन धक्के से कम में अपने उनका एक बार में सुपाड़ा नहीं ले पायी , और यहाँ तो मेरी सास ने एक धक्के में गप्प कर लिए कभी वो उस सुपाड़े का रस लेती अपने भोसड़े में उसे दबा के, भींच के, कभी उस मोटू की ताकत का अंदाज लगातीं,
और नीचे से सासू का बेटा सिसक रहा था, बेटे की तो आँखे बंद थी लेकिन माँ खूब मस्ती से देख रही थी, कभी उनको तो कभी मुझको .
जैसे सास मुझे अपनी बात याद दिला रही थीं, " देख तू बेकार में घबड़ा रही थी, मैं कह रही थी चढ़ के चोदूगी इसे, अरे तूने कह दिया बस अब हम दोनों मिल के इसे स्साले को पक्का मादरचोद बना देंगी "
लेकिन अब सास से भी नहीं रहा गया और उनके धक्के की रफ़्तार तेज हो गयी, और पांच छह धक्को के अंदर वो बेटे का भाला माँ की बिल के अंदर एकदम जड़ तक,
सास के चेहरे पे मैं जो सुख इस समय देख रही थी वो मैंने आज तक नहीं देखा था, जबसे गौने उतरी थी में तबसे आज तक, जैसे कोई सूखी खेती लहलहा गयी हो, और वो एकदम रुक के बेटे के मोटे लम्बे मूसल को अंदर तक महसूस कर रही थी,
और उनसे ज्यादा किसी को मजा मिला रहा था तो वो मेरे मरद को, हर तरह के छेद का सुख वो ले रहे थे जो इस तरह का सुख होता है वो पहली बार
और सास और उनके बेटे से भी ज्यादा सुख हो रहा था, मुझे।
मेरा मरद खुश रहे, मेरी सास खुश रहे, उससे ज्यादा मुझे क्या चाहिए।
लेकिन अब टक्कर बराबर की होगयी थी, वो भी जोश में उनकी माँ भी।
भले ही मेरे मरद की आँख पे पट्टी बंधी थी लेकिन न उनके चूतड़ के जोर में कमी न न कमर के जोर में और मेरी सास भी कभी कस कस के धक्के मारतीं , तो कभी बस गोल गोल चक्की की तरह कमर घुमाती तो कभी बस दबोच के खूंटे को निचोड़तीं,
ये तो KLPD हो गया...
अब तक तो आस थी कि छुटकी का एपिसोड आगे आएगा.. सास के बाद ..
लेकिन ...
और सपने तो सपने होते हैं...
मतलब सपनों में हीं आपने करवा के...
सबकी बात रख ली...
आगे सचमुच का प्रोग्राम बनने वाला है कि....