• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

Well-Known Member
8,892
20,307
173
भोर का सपना



मैं और सास रसोई में बैठी मस्ती कर रहे थे, मैं कभी सासू के गोरे गुलाबी भरे भरे गाल मींज देती तो कभी चोली फाड़ते जोबन दबा देती, और छेड़ती



" आ रहा होगा अभी मेरा भतार, बायीं आँख फड़क रही है, आपके भोंसडे को ताल पोखर बना देगा, तैयार रहिये "


" डरती हूँ क्या मैं, " हँसते, मुझे दुलराते वो बोलीं। फिर मुझे छेड़ा,

" तू अपने मायके से चल के,... स्साली चुदवाने के लिए आयी, एकदम कच्ची कोरी, इंटर भी नहीं पास किया था, और धड़ धड़ कर के सेज पे चढ़ गयी, पूरा लम्बा मोटा घोंटने के लिए, जड़ तक, ... और मैं, जिसके भोंसडे से वो निकला है ,... जिसकी नूनी पे तेल लगा लगा के मोटा खम्भा बनाया है, वो मैं डरूंगी।
आने दे तोहरी महतारी के भतार को, वो क्या चढ़ेगा मेरे ऊपर, मैं चढूँगी उसके ऊपर और देखना तेरे सामने पूरा घोंट लूंगी, "


मेरी और मेरी सास में पक्की दोस्ती हो गयी थी, एकदम सच्ची मुच्ची वाली सहेलियों की तरह, माँ को लेकर तो वो बिना गाली के बात नहीं करती थी लेकिन अब मैं भी,...





थोड़ी देर में ये आने वाले थे, छुटकी को छोड़ने गए थे, मेरे मायके ही नहीं सीधे लखनऊ।



मेरी ननद जिस दिन अपने भैया से गाभिन हो के खुश खुश अपने ससुराल गयीं, उसी दिन शाम को छुटकी आ गयी। आ क्या गयी, उसे मैंने बुलवा भेजा, घर से माँ का फोन था, मारे ख़ुशी के उनसे बोला नहीं जा रहा था।



छुटकी का कबड्डी की स्टेट टीम में सेलेक्शन हो गया था।

अभी थोड़ी देर पहले स्कूल से खबर आयी थी, फिर लखनऊ से भी और उसके बाद तो फोन पे फ़ोन। लेकिन चक्कर ये था की दो दिन के अंदर उसे लखनऊ पहुंचना था, वहां पंद्रह दिन का कैम्प था, के डी सिंह बाबू स्टेडियम में और स्पोर्ट्स हॉस्टल में ही रहना,... खाना। और उसके बाद टीम को बंगलौर जाना था इंटर स्टेट कैम्प के लिए।




और वहां फिर इंटर स्टेट के बाद एक और सेलेक्शन होना। नहीं नहीं, नेशनल टीम का नहीं। वो लोग यंग टैलेंट्स, मतलब जिनकी एज कम हों, कभी नेशनल में न रही हों , फर्स्ट या सेकेण्ड टाईम इंटरस्टेट खेल रही हों वैसी २४ लड़कियां चुनते, और उनको ग्रूम करते। अभी नहीं, लेकिन दो चार महीने बाद पटियाला में एक दो तीन महीने की ट्रेनिंग, फिर कई मैच, मतलब वो स्पोर्ट आथारिटी की ही जिम्मेदारी में,


ये सब बात मुझे छुटकी ने बताई, वो जैसे ही आयी उसके पास भी फोन पे फोन ।

लखनऊ में एक कोई जूनियर कोच थीं, रीजनल में छुटकी से मिली थी बहुत इम्प्रेस थीं, उनका फोन था। और ये भी की इंटर स्टेट में प्रो कबड्डी लीग वालों के स्काउट भी आते हैं चुनने के लिए , और अभी लड़कियों की भी एक प्रो कबड्डी लीग चालू होने वाली है तो वो लोग भी यंग लड़कियों के चक्कर में रहेंगे, एक बार उनकी निगाह में जो चढ़ गयी तो उसे भी कॉन्ट्रेट मिल सकता है।

वो तो जोश में थी, लेकिन माँ घबड़ायी थी,

पहली बात लखनऊ अकेले कैसे जायेगी,

चलिए लखनऊ से तो सब टीम वाले, लेकिन यहाँ से लखनऊ,.... मंझली को अकेले छोड़ के माँ भी नहीं जा सकती थी। दूसरे हर माँ की तरह,.... अभी छोटी है, और मोर्चा सम्हाला छुटकी के जीजा ने ने , इन्होने।

वो बोले की देखिये, सचिन तेंदुलकर कितने साल के थे जब इण्डिया की ओर से खेले, तो अपनी छुटकी भी कब्बड्डी की सचिन बनेगी, जल्द नेशनल टीम में आएगी और जहाँ तक लखनऊ जाने का सवाल है , आप क्यों परेशान हैं, मैं हूँ न। मैं ले जाऊँगा साथ।



तो अगले दिन सुबह ये छुटकी को ले के मेरे घर और एक दिन बाद लखनऊ और अब लखनऊ से आ रहे थे , थोड़ी ही देर में पहुँचने वाले थे

सपनों में सब कुछ क्रम से तो होता नहीं,



ये पलंग पर बंधे छने, आंख पे मोटी पट्टी बंधी, काली।






मैंने इन्हे समझा रखा था, ' कच्ची कलियों की तो बहुत फाड़ा तूने, जवान फूलों का भी रस लिया, आज तुझे एक खूब रसीले भोसड़े का रस दिलवाऊंगी, है मेरी एक खास, लेकिन दो शर्त है, एक तो तुझे आँख पे पट्टी बंधवानी होगी, और दूसरे तो तुझे पहले ऊपर चढ़ के चोदेगी, पूरे दस मिनट अगर तुम झड़ गए तो समझ लेना, और अगर नहीं झड़े तो पलट के उन्हें पेल देना, लेकिन झड़ने के पहले उन्हें झाड़ना होगा। "



उनके ऐसे गब्बर मर्द के लिए तो ये कौन बड़ी बात थी, लेकिन सुन के वो छनक गए, बोले

" ले आओ भौंसड़ी वाली को,... फाड़ के चीथड़े चीथड़े न कर दिया, ...पता चलेगा किसी मरद का लौंड़ा घोंट रही है। "

और छनकने के बात ही थी, कच्ची से कच्ची कलियों को भी तीन बार झाड़ने के बाद ही झड़ते थे वो।

लेकिन मान गयी मैं अपनी सास को,

बातचीत में तो बहुत सीखा था मैंने सब मर्दों के साथ वाले दांव पेंच, और मुझे भी घमंड था ऊपर चढ़ के चोदने में मेरा मुकाबला नहीं, इनको और नन्दोई जी के तो ऊपर कितनी बार, फिर नए नए देवरों के साथ भी, लेकिन जब मैंने सास को देखा तब मैं समझी घुड़सवारी के असली गुर। कैसे घोड़े को सहला के, फुसला के कब्जे में किया जाता है, फिर चैलेन्ज, और सास की कलाई में भी अपने बेटे से कम ताकत नहीं थी।

पहले तो ललचाया, सास ने मेरी इनकी कलाई पकड़ी दोनों और बस अपने दोनों निचले होंठों से इनके फनफनाये सुपाड़े को देर तक छुअति रहीं, सहलाती रहीं,




जैसे बदमाश मरद होते हैं, सुपाड़े को रसीली भीगी फुद्दी की फांको पे रगड़ते रहते हैं, औरत को पागल करते रहे हैं पिघलाते रहते हैं लेकिन पेलते नहीं, जब तक औरत खुद चूतड़ न उचकाने लगे, सिसक के पागल न हो जाए, एकदम उसी तरह लेकिन औरतों के पास तो मर्दों से दस गुना ज्यादा हथियार होते हैं। सावन के झूले की तरह वो झोंटा मारती थीं, मजाल है की कमर जरा भी हिले लेकिन उनके बड़े बड़े कड़े जोबना मेरे मर्द की चौड़ी छाती से रगड़ जा रहे थे।



बस थोड़ी देर में उनसे नहीं रहा गया, नीचे से उन्होंने चूतड़ उछाल के धक्का मारा, मेरी सास से तो वो नहीं पार पा सकते थे लेकिन मैंने भी उन्हें कस के गरियाया,

" स्साले, तेरी माँ बहन का भोंसड़ा मारुं, क्या बोला था चुपचाप दस मिनट चुदवाने को, स्साले तेरी माँ का भोंसड़ा है क्या जो ऐसे नीचे से धक्का मार के घुस जाओगे" "




वो बेचारे, जस के तस, लेकिन माँ का दिल, मेरी सास को दया आ गयी,

जरा सी चीज के लिए बच्चे का मन, कहने को तो उनका चार चार बच्चो का निकाल चुका भोंसड़ा था, लेकिन मैं जानती थी उस गुफा की हालत, गुफा नहीं बिल थी, वो भी सांप और चूहे की नहीं, चींटी की। एकदम बढ़िया रखरखाव, कसरत के साथ बरसों से एक दो ऊँगली से ज्यादा उसमे घुसी नहीं थी, हाँ बेचारी कन्या रस से काम चलाती थीं , न जाने कितने देने बाद प्रेमगली को आहार मिला था,

तो मेरी सास ने अपने भोसड़े की दोनों फांको को ऊँगली से फैला के दुलरुवा बेटे के मोठे सुपाड़े को फंसा लिया और बस हलके हलके दबाने लगीं।






बेचारे नीचे से मचल रहे थे तड़प रहे थे और उनके ऊपर चढ़ी महतारी कभी कस के भींच के कभी ढील दे के , लेकिन अब मुझसे भी नहीं रहा गया, आखिर मरद तो मेरा ही न। मैंने अपनी सास से धीरे से कान में सिफारिश लगायी, " दे दीजिये न बेचारे को , तड़प रहे हैं "

और क्या धक्का मारा मेरी सास ने ऊपर से, अगर वो मरद होतीं तो पहली रात में नहीं पहले धक्के में ही कुँवारी कोरी कन्या की झिल्ली तोड़ के खून खच्चर कर देतीं और तब भी न रुकती।

गप्प, सुपाड़ा पूरा अंदर,

उनके ऊपर चढ़ के मैं भी विहार करती थी लेकिन कभी दो तीन धक्के से कम में अपने उनका एक बार में सुपाड़ा नहीं ले पायी , और यहाँ तो मेरी सास ने एक धक्के में गप्प कर लिए कभी वो उस सुपाड़े का रस लेती अपने भोसड़े में उसे दबा के, भींच के, कभी उस मोटू की ताकत का अंदाज लगातीं,

और नीचे से सासू का बेटा सिसक रहा था, बेटे की तो आँखे बंद थी लेकिन माँ खूब मस्ती से देख रही थी, कभी उनको तो कभी मुझको .

जैसे सास मुझे अपनी बात याद दिला रही थीं, " देख तू बेकार में घबड़ा रही थी, मैं कह रही थी चढ़ के चोदूगी इसे, अरे तूने कह दिया बस अब हम दोनों मिल के इसे स्साले को पक्का मादरचोद बना देंगी "

लेकिन अब सास से भी नहीं रहा गया और उनके धक्के की रफ़्तार तेज हो गयी, और पांच छह धक्को के अंदर वो बेटे का भाला माँ की बिल के अंदर एकदम जड़ तक,




सास के चेहरे पे मैं जो सुख इस समय देख रही थी वो मैंने आज तक नहीं देखा था, जबसे गौने उतरी थी में तबसे आज तक, जैसे कोई सूखी खेती लहलहा गयी हो, और वो एकदम रुक के बेटे के मोटे लम्बे मूसल को अंदर तक महसूस कर रही थी,


और उनसे ज्यादा किसी को मजा मिला रहा था तो वो मेरे मरद को, हर तरह के छेद का सुख वो ले रहे थे जो इस तरह का सुख होता है वो पहली बार


और सास और उनके बेटे से भी ज्यादा सुख हो रहा था, मुझे।

मेरा मरद खुश रहे, मेरी सास खुश रहे, उससे ज्यादा मुझे क्या चाहिए।



लेकिन अब टक्कर बराबर की होगयी थी, वो भी जोश में उनकी माँ भी।

भले ही मेरे मरद की आँख पे पट्टी बंधी थी लेकिन न उनके चूतड़ के जोर में कमी न न कमर के जोर में और मेरी सास भी कभी कस कस के धक्के मारतीं , तो कभी बस गोल गोल चक्की की तरह कमर घुमाती तो कभी बस दबोच के खूंटे को निचोड़तीं,
ये क्या.. छुटकी सरक ली...
ये तो KLPD हो गया...
अब तक तो आस थी कि छुटकी का एपिसोड आगे आएगा.. सास के बाद ..
लेकिन ...
और सपने तो सपने होते हैं...
मतलब सपनों में हीं आपने करवा के...
सबकी बात रख ली...
आगे सचमुच का प्रोग्राम बनने वाला है कि....
 

motaalund

Well-Known Member
8,892
20,307
173
सास और सास का पूत


और जैसे दस मिनट हुए मैंने इशारा किया, उन्होंने पलटी मारी और सास ने भी साथ दिया ,

सास नीचे सास का बेटा ऊपर।


और फिर तो उनको चौसठों कला आती थी। कोका पंडित ने जितने आसान बनाये थे उससे भी दो चार ज्यादा, पूरा बित्ते भर का मोटा खूंटा अपनी महतारी के बिल में घुसेड़ के जड़ तक, उन्होंने मूसल के बेस से मेरी सास के क्लिट को रगड़ना शुरू किया और अब छटपाने की सिसकने की बारी मेरी सास की थी, लेकिन वो बोल तो सकती नहीं थी, इसलिए मैं उनकी ओर से जले कटे पे नमक छिड़क रही थी।

सास के बेटे के पीछे खड़े हो के उनके पीठ पे कभी अपने जोबन रगड़ती, कभी मेरी उंगलिया जड़ तक धंसे खूंटे के बेस पे जा के बॉल्स को सहलाती और उनसे कहती

" हाँ, ऐसे ही, और जोर से रगड़ो, झाड़ दो साली को "

और जब वो कमर उचका रही थीं, उन्होंने क्या जोरदार आलमोस्ट पूरा बाहर निकाल के तीन चार धक्के ऐसे जोर से मारे की मेरी सास झड़ने लगीं, वो हिचकियाँ भर रही थी, सिसकियाँ ले रही थी , लेकिन उस समय कोई मरद सुनता है क्या ? वो तो और जोर से,




लेकिन मेरी सास भी कम नहीं थी, थोड़ी देर में फिर गरमा गयी,

इत्ते दिनों के बाद मोटे मूसल का स्वाद मिला था, अब मामला दोनों ओर से था, लेकिन दस मिनट हो रहा था ब्लाइंड फोल्ड खोलने का टाइम, मैंने सास को इशारा किया, उन्होंने हाँ भर दिया पर साथ साथ आपै दोनों टांगो से कस के मेरे मरद को भींच के पकड़ लियाऔर बुर भी एकदम टाइट, और एक बार वो टाइट कर लें तो कोई ऊँगली न निकाल पाए अंदर से यहाँ तो मोटा लंड था। मैंने भी उन्हें पीछे से दबोच रखा था, और ब्लाइंडफोल्ड खोल दिया,

वो अपने नीचे दबी अपनी माँ को देख कर एक बार सकपकाए,

लेकिन हम सास बहू की मिली पकड़,... चाह के भी नहीं निकाल सकते थे और मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन सास बड़ी थीं, मोर्चा उन्होंने अपने हाथ में ले लिया और इन्हे हड़काते हुए बोली

" अरे पूरी दुनिया में, ससुराल में , यहाँ , लौंडो को, लौंडियों को , कल की कच्ची कलियों को चोदते रहते हो और मेरी बुर में क्या कांटे लगे हैं। पेल कस के आज देखूंगी तेरी ताकत, अगर निकालने की सोचा भी न "


और सास की बात सुन के मुझे भी जोश आ गया और मैं भी इन्हे हड़काने में जुट गयी,

" निकालने की तो सोचना भी मत बाहर,.... अगर मेरी सास को नहीं चोदोगे तो मेरी भी नहीं मिलेगी, ...स्साले तेरी साली और बहन दोनों नहीं है बस अपना हिलाते रहना। अच्छा चल मेरी सास नहीं अपनी सास समझ के पेल पूरी ताकत से "

और मेरे तरकश में भी अनेक तीर थे,

बस मैंने तर्जनी सास के बेटे की पिछवाड़े की दरार पे रगड़नी शुरू कर दी

और नतीजा तुरंत सामने आया, क्या जबरदस्त धक्का सास के बेटे ने सास की बुरिया में मारा, कोई और होता तो चीड़ता फाड़ता, अंदर तक,




लेकिन मेरी सास मेरी भी सास थीं, उन्होंने तुरंत प्रेम गली को ढीला किया और उसे अँकवार में भर लिया, साथ ही खिंच के बेटे के दोनों हाथ जोबन पे



बस उसके बाद तो न कहने लायक, न लिखने लायक

दस पन्दरह मिनट बाद जब उन्होंने मलाई फेंकी तो उसी समय सास में भी किनारे लग चुकी थीं।

और उसके बाद तो अगली बार निहुरा के





लेकिन सपने में कोई नियम कायदा तो होता नहीं,



सपने में सास मेरी रसोई में झुकी हुयी चावल धो रही थी

और मेरी नींद हलकी सी खुल गयी लेकिन मैंने कस के आँख मींच ली और सपना फिर गतांक से आगे चालू हो गया


ये आये और मैंने मुस्करा के एक बार देखा और बदमाशी से सास का साडी साया ऊपर उठा दिया, बस खेल चालू



मजा तो सास को भी बहुत आ रहा था लेकिन बनावटी गुस्से से बोलीं, " अरे बहू कम से कम रसोई में तो "

" और जब आप का बेटा मुझे रसोई में दिन दहाड़े गौने के तीसरे ही दिन, और आप ने देखा भी लेकिन उलटे पैर चली गयीं " मैंने भी उसी तरह छेड़ते हुए बोला




लेकिन कोई माँ बेटे को दोष देती है क्या और वो भी बहू के सामने, तो मेरी सास ने भी सब दोष मेरे ऊपर धर दिया,

" अरे मेरी बहू है ही इतनी सुन्दर, गर्मागर्म माल, रस की कड़ाही से निकली जलेबी, ....उसे देख के मेरे बेटे का मन डोल जाता था , उस की क्या गलती "

वो मुस्कराते बोलीं और तबतक उनके बेटे ने गली के अंदर दाखिला ले लिया था , दोनों जोबन उसकी मुट्ठी में कस के

मैं कहीं और देख रही थी, इधर उधर और मुझे देसी घी वाला ही डिब्बा दिखा और हथेली पे उसे लुढ़काते हुए मैं बोली

" मेरी सास किसी से कम हैं क्या, जब चूतड़ मटकाते चलती हैं तो आदमी क्या गदहों का खड़ा हो जाता है और जित्ते लौंडो की नेकर सराक एक मारी होगी न, मेरी सास का पिछवाड़ा उससे भी टाइट है "




और सारा का सार हाथ का घी सास के गाँड़ के छेद पे, और जो थोड़ा बहुत निकल रहा था उसे भी अपनी ऊँगली में लपेट के अंदर तक, पहले एक ऊँगली और फिर उसपे चढ़ा के दूसरी ऊँगली और दो ऊँगली भी घी लगी होने पर भी मुश्किल से जा रही थी। लेकिन मेरा वाला तो गाँड़ मारने में एकदम उस्ताद, अपनी कच्ची कोरी दस में पढ़ने वाली साली की खाली थूक लगा के गाँड़ मार दी थी, तो मेरी सास तो

और जब प्रेम गली से खूंटा बाहर निकला तो बस हाथ में लगा सब घी लगा के मैंने कस कस के मुठियाया और उनके सुपाड़े को मेरी सास के पिछवाड़े, गोल छेद को चियार के सटा दिया, और बोली

" मार धक्का "

उधर सास के पिछवाड़े मेरे मरद का जोरदार धक्का पड़ा और मेरी नींद टूट गयी,



बाहर अच्छी खासी धुप निकल आयी थी, मैं बिस्तर पे एकदम उघारे, बस नीचे गिरी साड़ी लपेट ली और बाहर, जहाँ मेरी सास बैठी थीं ।
सपनों में तो कम से कम सारे अरमान पूरे हों...
बीच में हीं.. फिर से ... छन्नं से जो टूटा कोई सपना
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
21,644
54,827
259
भाग ९०

वह रात

the last part is posted on page 933, please read, enjoy, like and comment.
 

komaalrani

Well-Known Member
21,644
54,827
259
  • Like
Reactions: motaalund

komaalrani

Well-Known Member
21,644
54,827
259
  • Like
Reactions: motaalund

motaalund

Well-Known Member
8,892
20,307
173
भाग ९०

वह रात
१९,२४, २५९

--



--
अबकी जो सास बोलीं तो मैं चिढ़ाते बोली " अरे अभी हमरे सास क पूत आ रहा है, नम्बरी बहनचोद, मादरचोद, झड़वा लीजियेगा न उससे जो मजा बेटे के साथ है वो बहू के साथ थोड़ी है , ... "

तबतक बाइक की आवाज सुनाई पड़ी, हल्की सी दूर से आती हुयी,



मेरी सास खिलखिलायीं, " आ गया तेरा खसम, अभी ठोकेगा मेरी समधन की बिटिया को "

"एकदम आपकी समधन ने दामाद किसलिए बनाया था उनको, इसीलिए तो लेकिन आज मेरी सास का पूत पहले मेरी सास को,... "

हँसते हुए सास की बिल में एक साथ दो ऊँगली ठेलते हुए मैंने उन्हें चिढ़ाया।



लेकिन बाइक की जैसी ही रुकने की आवाज आयी, मेरा मन कुछ आशंका से भर गया,... ये उनकी बाइक की आवाज तो नहीं थी, फिर मैंने मन को समझाया। क्या पता उनकी बाइक खराब हो गयी हो इसलिए किसी दोस्त की बाइक से या, कोई दोस्त छोड़ने आया हो,

जल्दी से मैंने और सासू जी ने अपनी साड़ी ठीक की,

सांकल की आवाज, साथ में जोर से दरवाजे को खड़काने की आवाज आयी, मैंने जाकर दरवाजा खोल दिया,नौ साढ़े नौ हो गया था, पूरे गाँव में सोता पड़ा था, और सामने मेरे,

===

चिंटू इनका खास दोस्त, बगल के गांव का, एकदम बदहवास, बाल बिखरे, शर्ट की बटन भी जल्दी में उल्टी सीधी बंद,

मैं किसी अनहोनी की आशंका से घबड़ा उठी, मेरी सास के तो बोल नहीं फूट रहे थे,


" का हुआ चिंटू भैया, तोहार भैया,.... " बड़ी मुश्किल से मैं बोल पायी।

चिंटू मुझे पल भर देखता रहा, फिर बड़ी हिम्मत बटोर के रुक रुक के बोल पाया,

" भौजी,.... भैया,... अस्पताल,... पुलिस,"



मुझे तो जैसे काठ मार गया, कुछ सूझा नहीं थोड़ी देर को, लेकिन फिर हिम्मत कर के मैं बोली,

" चिंटू भैया अंदर आइये, बैठ के बात करिये, "

मेरी सास पर तो जैसे बज्र गिर गया था, मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे, बस पथराई आँखों से मुझे देख रही थीं। अब सब मुझे ही सम्हालना, अपने को भी सास को भी.


चिंटू बैठ गया था, मैं उसके लिए पानी ले आयी, और पानी पी के थोड़ी उसकी हालत ठीक हुयी। उसने बोलना शुरू किया,

" भैया,... "

" का हुआ भैया को " अब मेरी सास से रहा नहीं गया, वो बोल पड़ीं। मैंने इशारे से उन्हें चुप रहने को बोला और चिंटू के हाथ में दुबारा पानी की ग्लास पकड़ा दी।

पानी फिर पिया उसने, सांस ली और बोला,

" भैया कहलवाए हैं, ... "



और अब मेरी और मेरी सास की साँस फिर चलना शुरू हुयी। मुझे मालूम था की किसी को खाली पानी नहीं देते, झट से मैं एक प्लेट गुझिया ले आयी,



" भैया, गुझिया खा लो, अपने हाथ से बनायी हूँ, इतना दूर से आ रहे हो, पहले खा लो, फिर पानी पी के आराम से बताओ। " मैं बोली,

सास मेरी बगल रखी बसखटिया पर बैठ गयीं, मैं खड़ी ही रही और चिंटू ने बोलना शुरू किया,

कुल मिला जुला के बात यह थी की परेशानी इनकी नहीं नन्दोई जी की थी, बल्कि नन्दोई जी के एक दोस्त की, एकदम घर ऐसा दोस्त, सगे भाई से बढ़कर,
दोबारा रिव्यू कर रहा था तो याद आया...
वो भी एक काली रात थी जब.. गितवा-अरविंदवा के बाबूजी... बाहर के देश में फंस गए थे..
फोन पर बहुत मुश्किल से बात हो सकी थी...
और उनकी महतारी भी बहुत चिंतित हो गई थी...
चाहा तो उन्होंने भला करना.. लेकिन गाँव वाले कुछ और समझ बैठे...

यहाँ घर के दामाद पर पुलिस ने अपनी टेढ़ी नजर डाली...
लेकिन मामला सुलटते देर न लगी...
रंग बदलने में पुलिसियों ने भी गिरगिट को पीछे छोड़ दिया...
वाकई समाज का एक सही दर्पण पेश किया है...
 
  • Like
Reactions: komaalrani
Top