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★ INDEX ★
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♡ Family Introduction ♡ |
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Last edited:
♡ Family Introduction ♡ |
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Ye hai amezing start. Dimag me ek sath kai sawal peda kar diye. Vo lash kisne feki. Seth ka plan kya hai. Sonu ikbale julm kyo kabul kar raha hai. Amezing.अपडेट 1
अंधेरे को चीरती हुई एक कार , जो की बोहोत ही तेजी से अपने गन्तव्य की ओर बढी जा रही थी।
कि अचानक कार के ब्रेक चीख पडें!!
कार के ब्रेकों के चीखने का शोर इतना तीव्र था कि अपने घोंसलों में सोते पक्षी भी फड़फड़ा कर उड़ चले ।
रात की नीरवता खण्ड-विखण्ड हो कर रह गयी ।
"क्या हुआ ?" सेठ कमलनाथ ने पूछा!
"एक आदमी गाड़ी के आगे अचानक कूद गया।
" ड्राइवर ने थर्राई आवाज में उत्तर
दिया , "मेरी कोई गलती नहीं सेठ जी ! मैंनेतो पूरी कौशिश की ।"
"अरे देखो तो , जिन्दा है या मर गया !"
ड्राइवर ने फुर्ती से दरवाजा खोला । हेडलाइट्स अभी भी ऑन थी , वह ड्राइविंग सीट से उतरकर आगे आ गया । गाड़ी के नीचे एक व्यक्ति औंधा पड़ा था , उसके जिस्म पर आगे के पहिये उतर चुके थे ।
चूँकि पहियों के बीच में अन्धेरा था ,
इसलिये कुछ ठीक से नजर नहीं आ रहा ...।"
"जी के बच्चे जो मैं कह रहा हूँ, वह कर, नहीं तो तू सीधा अन्दर होगा ।"
"लेकिन सेठ जी , कपड़े क्यों ?"
"सवाल नहीं करने का , समझे ! जो बोला वह करो।"
इस बार सेठ कमलनाथ मवालियों
जैसे अन्दाज में बोला ।
सोमू ने डरते हए कपड़े उतार डाले । इसी बीच सेठ कमलनाथ ने अपने भी कपड़े उतारे
और खुद कार की पिछली सीट पर आ गया । उसने कार में रखी एक चादर लपेट ली ।
"मेरे कपड़े लाश को पहना दे सोमू ।" सेठ कमलनाथ ने खलनायक वाले अन्दाज में कहा ।
"सोमू के कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है ? अपने मालिक का हुक्म मानते हुए उसने सेठ कमलनाथ के कपड़े लाश को पहना दिये ।
"मेरी घड़ी , मेरी अंगूठी , मेरे गले की चेन भी इसे पहना दे ।"
कमलनाथ ने अपनी घड़ी , चेन और अंगूठी भी सोमू को थमा दी ।
सोमू ने सेठ कमलनाथ को ऐसी निगाहों से देखा , जैसे सेठ पागल हो गया हो !! फिर उसने वह तीनों चीजें भी लाश को पहना दी ।
"अब कार में आजा ...।"
सोमू कार में आ गया ।
"इसका चेहरा इस तरह कुचल दे, जो पहचाना न जा सके ।"
सोमू ने यह काम भी कर दिखाया । इस बीच वह हांफने भी लगा था । चादर ओढ़े सेठ ने एक बार फिर लाश का निरीक्षण किया और फिर से गाड़ी में आ बैठा ।
"हमें किसी ने देखा तो नहीं ?"
"इतनी रात गये इस सड़क पर कौन आयेगा ।"
"हूँ !! चलो ! छुट्टी हुई, मैं मर गया ।"
"क… क्या कह रहे हैं ?"
"अबे गाड़ी चला , रास्ते में तुझे सब बता दूँगा कि सेठ कमलनाथ कैसे मरा और किसने मारा , चल बेफिक्र हो कर गाड़ी चला ।"
गाड़ी आगे बढ़ गई, इसके साथ ही सेठ कमलनाथ का कहकहा गूँज उठा ।।
इस घटना के कुछ समय बाद :
जब सेठ कमलनाथ की मौत का समाचार बासी हो चुका था , किसी को अब उस हादसे में कोई दिलचस्पी भी नहीं थी । लोगों की आदत होती है, बड़े-बड़े हादसे चंद दिन में ही भूल जाते हैं । और फिर कमलनाथ ऐसा महत्वपूर्ण व्यक्ति भी नहीं था , जो चर्चा में रहता ।
मुकदमा मुम्बई सेशन कोर्ट में पेश था ।
कटघरे में एक मुलजिम खड़ा था , नाम था सोमू !
"योर ऑनर ! यह नौजवान सोमू जो आपके सामने कटघरे में खड़ा है, एक वहशी हत्यारा है, जिसने अपने मालिक सेठ कमलनाथ का निर्दयता पूर्वक कत्ल कर डाला ।
मैं अदालत के सामने सभी सबूतों के साथ-साथ गवाहों को पेश करने की भी इजाजत चाहूँगा।"
"इजाजत है । "
जज ने अनुमति प्रदान कर दी ।
पब्लिक प्रोसिक्यूटर राजदान मिर्जा ने मुकदमे की पृष्ठभूमि से पर्दा उठाना शुरू किया ।
"उस रात सेठ कमलनाथ मुम्बई गोवा हाईवे पर सफर कर रहे थे । वह कारोबार की उगाही करके लौट रहे थे! और उनके सूटकेस में एक लाख रुपया नकद मौजूद था । रात के एक बजे जल्दी पहुंचने की गरज से ड्राइवर सोमू ने कार को एक शॉर्टकट मार्ग पर मोड़ा,
और एक सुनसान सड़क पर गाड़ी को ले गया । असल में मुजरिम का मकसद जल्दी पहुंचना नहीं था बल्कि वह तो सेठ को कभी भी घर न पहुंचने देने के लिए प्लान कर चुका था ।"
कुछ रुककर मिर्जा ने कहा ।
"योर ऑनर, सुनसान और सन्नाटेदार सड़क पर आते ही इस वफादार नौकर ने अपनी नमक हरामी का सबसे बड़ा सिला यह दिया कि सुनसान जगह कार रोककर सेठ से रुपयों का सूटकेस माँगा । सोमू उस वक्त रुपया लेकर भागजाने का इरादा रखता था , इसी लिये वह उस सुनसान सड़क पर पहुंचा , ताकि सेठ अगर चीख पुकार मचाए भी , तो कोई सुनने वाला न हो , कोई उसकी मदद के लिए न आये और यही हुआ ।
लेकिन सेठ ने जब पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने और भुगत लेने की धमकी दी , तो सोमू ने सेठ का कत्ल कर डाला ।
“जी हाँ योर ऑनर”, गाड़ी से कुचलकर उसने सेठ को मार डाला । यहाँ तक कि लाश का चेहरा ऐसा बिगाड़ दिया कि कोई पहचान भी न सके ।"
अदालत खामोश थी । लोग राजदान मिर्जा की दलीलें चुपचाप सुन रहे थे । किसी ने टोका -टाकी नहीं की ।
"लेकिन मीलार्ड, कहते हैं अपराधी चाहे कितना भी चालाक क्यों न हो, उससे कोई-न-कोई भूल तो हो ही जाती है, और कानून के लम्बे हाथ उसी भूल का फायदा उठा कर मुजरिम के गिरेबान तक जा पहुंचते हैं ।
मुलजिम सोमू ने हत्या तो कर दी , लेकिन सेठ कमलनाथ के जिस्म पर उसकी शिनाख्त की कई चीजें छोड़ गया । अंगूठी , घड़ी और पर्स तक जेब में पड़ा रह गया । जिससे न सिर्फ लाश की शिनाख्त हो गई बल्कि यह भी पता चल गया कि उस रात सेठ एक लाख रुपया लेकर मुम्बई लौट रहा था ।
इसने सेठ कमलनाथ का कत्ल किया और लाश का हुलिया बिगाड़ने के लिए पूरा चेहरा गाड़ी के पहिये से कुचल डाला ।
इसलिये भारतीय दण्ड विधान धारा 302 के तहत मुलजिम को कड़ी -से-कड़ी सजा दी जाये ।
“दैट्स आल योर ऑनर ।"
सरकारी वकील राजदान मिर्जा ने मुलजिम के विरुद्ध आरोप दाखिल किया और अपनी सीट पर आ बैठा ।
"मुलजिम सोमू "
थोड़ी देर में न्यायाधीश की आवाज कोर्ट में गूंजी ,
"तुम पर जो आरोप लगाए गये हैं, क्या वह सही हैं ?"
मुलजिम सोमू कटघरे में निर्भीक खड़ा था । उसने एक नजर अदालत में बैठे लोगों पर डाली और फिर वह दृष्टि एक नौजवान लड़की पर ठहर गई थी , जो उसी अदालत के एक कोने में बैठी थी और डबडबाई आँखों से सोमू को देख रही थी ।
वहाँ से सोमू की दृष्टि पलटी और सीधा न्यायाधीश की ओर उठ गई ।
"क्या तुम अपने जुर्म का इकबाल करते हो ?" आवाज गूँज रही थी ।
"जी हाँ योर ऑनर ! मैं अपने जुर्म का इकबाल करता हूँ । वह हत्या मैंने ही की और एक लाख रूपए के लालच में की ।
मेरा सेठ बहुत ही कंजूस और कमीना था । मैंने उससे अपनी बहन की शादी के लिए कर्जा माँगा , तो उसने एक फूटी कौड़ी भी देने से इन्कार कर
दिया । उस रात मुझे मौका मिल गया और मैंने उसका क़त्ल कर डाला ।"
"नहीं..s..s..s. ।"
अचानक अदालत में किसी नारी की चीख-सी सुनाई दी । सबका ध्यान उस
चीख की तरफ आकर्षित हो गया ।
"सोमू झूठ बोल रहा है, यह किसी का कत्ल नहीं कर सकता , यह झूठ है ।"
कुछ क्षण पहले जो लड़की डबडबाई आँखों से सोमू को निहार रही थी , वह उठ खड़ी हुई ।
"तुम्हें जो कुछ कहना है, कटघरे में आकर कहो ।"
युवती अदालत में खाली पड़े दूसरे कटघरे में पहुंच गई ।
"मेरा नाम वैशाली है जज साहब” !
मैं इसकी बहन हूँ । मुझसे अधिक सोमू को कोई नहीं जानता , यह किसी की हत्या नहीं कर सकता ।"
"परन्तु वह इकबाले जुर्म कर रहा है ।"
"मीलार्ड ।"
सरकारी वकील उठ खड़ा हुआ, "कोई भी बहन अपने भाई को हत्यारा
कैसे मान सकती है । जबकि मुलजिम अपने जुर्म का इकबाल कर रहा है, तो इसमें सच्चाई की कोई गुंजाइश ही कहाँ रह जाती है ।"
"मैं कह चुका हूँ योर ऑनर ! मैंने कत्ल किया है, मैं कोई सफाई नहीं देना चाहता और न ही यह मुकदमा आगे चलाना चाहता हूँ ।
वैशाली तुम्हें यहाँ अदालत में नहीं आना चाहिये था , तुम घर जाओ ।"
वैशाली सुबकती हुई कटघरे से बाहर आई और फिर अदालत से ही बाहर चली गई ।
अदालत ने अगली कार्यवाही के लिए तारीख दे दी ।
जारी रहेगा…✍✍
Khatarnak update, aur aesi jagah pe complete huva ki aage janne ke liye dil aatur hai.# 26
मैडम माया सिर झुकाये धीरे-धीरे अदालत में दाखिल हुई। वह अब खुली किताब थीं, उसके बारे में पहले ही समाचार पत्रों में खूब छप चुका था और लोग उसे देखना भी चाहते थे। आखिर वह कौन-सी सुन्दरी है, जिसके फ्लैट पर एक वी.आई.पी. का मर्डर हुआ। जे.एन. के इस लेडी से क्या ताल्लुक थे ?
माया देवी सफेद साड़ी पहने हुये थी। इस साड़ी में लिपटा उसका चांदी-सा बदन झिलमिला रहा था। लबों पर ताजगी थी, चेहरा अब भी सुर्ख गुलाब की तरह खिला हुआ था। आँखों में मदहोशी थी, अगर वह किसी की तरफ देख भी लेती, तो बिजली-सी कौंध जाती थी। माया कटघरे में आ खड़ी हुई।
"आपका नाम ?" राजदान ने सवाल किया।
"माया देवी।"
"गीता पर हाथ रखकर कसम खाइये ।"
माया देवी के सामने गीता रख दी गयी। हाथ रखने से पूर्व उसने सामने के कटघरे में खड़े रोमेश को देखा। दोनों की आंखें चार हुई। कभी वह नजरों से खुद बिजली गिराती थी, अभी रोमेश की आंखों से बिजली उतरकर खुद उसी पर गिर रही थी। उसने शपथ की रस्म शुरू कर दी।
"हाँ, तो मैडम माया देवी ! आप विवाहिता हैं ?" राजदान ने पूछा।
"विवाहिता के बाद विधवा भी।" माया देवी बोली,
"उचित होगा कि मेरी प्राइवेट लाइफ के सम्बन्ध में आप कोई प्रश्न न करें।"
"नहीं, हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है। हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि जिस रात जे.एन. की हत्या की गयी, वारदात की उस रात यानि दस जनवरी की रात क्या हुआ ?"
"वारदात की रात से पहले एडवोकेट रोमेश सक्सेना मेरे फ्लैट पर मुझसे मिलने आये, उस मुलाकात से पहले मैंने यह नाम सुना था कि यह शख्स मर्डर मिस्ट्री सुलझाने वाला ऐसा एडवोकेट है, जैसा वर्णन किताबों में पाया जाता है।
मैंने इनके सॉल्व किये कई केस अखबारों में पढ़े थे। उस दिन जब यह मुझसे मिलने आये, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, धड़कते दिल से मैंने इनका स्वागत किया। इस पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे स्तब्ध कर दिया।"
माया देवी कुछ पल के लिए रुकी।
"इन्होंने मुझसे कहा कि यह मुझे एक केस का चश्मदीद गवाह बनाने आये हैं। मैं हैरान हो गई कि जब कोई वारदात मेरे सामने हुई ही नहीं, तो मैं चश्मदीद गवाह कैसे बन सकती हूँ? मैंने यह सवाल किया, तो रोमेश सक्सेना ने कहा कि वारदात हुई नहीं होने वाली है।
“एक कत्ल मेरे सामने होगा और मैं उस मर्डर की आई विटनेस बनूंगी। मुझे उस वक्त वह किसी जासूसी फिल्म का या किसी कहानी का प्लाट महसूस हुआ। उस वक्त क्या, कत्ल होने तक मुझे यकीन ही नहीं आता था कि सचमुच मेरे सामने कत्ल होगा और मैं यहाँ कटघरे में आई विटनेस की हैसियत से खड़ी होऊँगी।"
"क्या हुआ उस रात ?"
"उस रात !"
माया देवी की निगाह एक बार फिर रोमेश पर ठहर गयी,
"किसी अजनबी ने मुझे फोन किया। करीब साढ़े नौ बजे फोन आया कि मेरे अंकल का एक्सीडेंट हो गया और वह जसलोक में एडमिट कर दिये गये हैं। मैं उसी वक्त हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गयी। वहाँ पहुँचकर पता लगा कि फोन फर्जी था।
“वह फोन किसने किया था मिस्टर ?" यह प्रश्न माया ने रोमेश से किया। रोमेश चुप रहा।
"मिस्टर रोमेश, मैं तुमसे पूछ रही हूँ, किसने किया वह फोन ?"
"आपको मुझसे पूछताछ करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"फिर भी मुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं कि फोन मैंने आपके फ्लैट के करीबी बूथ से किया था और आपको जाते हुए भी देखा।"
"सुन लिया आपने मीलार्ड।" राजदान बोला,
"कितना जबरदस्त प्लान था इस शख्स का।"
"आगे क्या हुआ ?" न्याया धीश ने पूछा।
"जब मैं लौटकर आई, तो मेरा फ्लैट हत्यारे के कब्जे में आ चुका था, नौकरानी को बांधकर स्टोर में डाल दिया गया और बैडरूम में मुझ पर अटैक हुआ।
वह शख्स मुझे दबोचकर बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया और मुझे चाकू की नोंक पर विवश किया कि चुपचाप खड़ी रहूँ।
“इसने मेरे हाथ मोड़कर बांध दिये थे। कुछ देर बाद ही जे.एन. आये। इसने बाथरूम का शावर चला दिया, ताकि जे.एन. यह समझे कि मैं नहा रही हूँ।"
वह कुछ रुकी।
"फिर यह शख्स मुझे बाथरूम में छोड़कर बैडरूम में पहुँचा और पीछे से मैं भी डरती-डरती बाथरूम से निकली। मेरे मुंह पर इसने टेप चिपका दिया था, मैं कुछ बोल भी नहीं सकी, यह व्यक्ति आगे बढ़ा और इसने जे.एन. को चाकू घोंपकर मार डाला। मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगी कि वह यह जानने की कौशिश न करें कि जे.एन. मेरे पास क्यों आये थे।"
"योर ऑनर !"
राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी,
"मेरे ख्याल से अदालत को यह जानने की आवश्यकता भी नहीं कि जे.एन. वहाँ क्यों आये थे, क्यों कि मर्डर का प्राइवेट लाइफ से कोई ताल्लुक नहीं। माया देवी के बयानों से साफ जाहिर होता है कि क़त्ल कि प्लानिंग बड़ी जबरदस्त थी और कातिल पहले से जानता था कि जे.एन. ने वहाँ पहुंचना ही है।"
"अब सब आइने की तरह साफ है। रोमेश सक्सेना ने ऐसा जघन्य अपराध किया है, जैसा इससे पहले किसी ने कभी नहीं किया, अदालत से मेरा अनुरोध है कि रोमेश सक्सेना को बहुत कड़ी से कड़ी सजा दी जाये। दैट्स आल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना क्या आप माया देवी से कोई प्रश्न करना चाहेंगे?" न्यायाधीश ने पूछा।
"नहीं योर ऑनर ! मैं किसी की प्राइवेट लाइफ के बारे में कोई सवाल नहीं करना चाहता, मेरा एक सवाल सैंकड़ों सवाल खड़े कर देगा। मुझे माया देवी से सहानुभूति है, इसलिये कोई प्रश्न नहीं।"
माया देवी ने गहरी सांस ली। वह सोच रही थी कि रोमेश उसकी प्राइवेट लाइफ के सवालों को उछालेगा, पूछेगा, क्या जे.एन. हर शनिवार उसके फ्लैट पर बिताता था? जे.एन. से उसके क्या सम्बन्ध थे, वह इस किस्म के सवालों से डरती थी। लेकिन अब कोई डर न था। रोमेश ने उसे शरारत भरी मुस्कराहट से विदा किया।
"अब मैं अपना आखिरी गवाह पेश करता हूँ, इंस्पेक्टर विजय।"
इंस्पेक्टर विजय अदालत में उपस्थित था और अगली कतार में बैठा था। वह उठा और गवाह बॉक्स में चला गया। अदालत की रस्में पूरी करने के बाद राजदान ने अपना काम शुरू कर दिया।
"इस शहर की कानूनी किताब में पिछले कुछ अरसे से दो व्यक्ति चर्चित रहे। नम्बर एक मुल्जिम रोमेश सक्सेना, जो ईमानदारी और सही न्याय दिलाने की प्रतिमूर्ति कहे जाते थे। यह बात सारे कानूनी हल्के में प्रसिद्ध थी कि रोमेश सक्सेना किसी क्रिमिनल का मुकदमा कभी नहीं लड़ते।
जिस मुकदमे की पैरवी करते हैं, पहले खुद उसकी छानबीन करके उसकी सच्चाई का पता लगाते हैं, रोमेश सक्सेना ने कभी कोई मुकदमा हारा नहीं।" राजदान, रोमेश की तरफ से पलटा। उसने विजय की तरफ देखा।
"यानि दो अपराजित हस्तियां आमने सामने और बीच में, मैं हूँ। जो हमेशा रोमेश से हारता रहा। रोमेश, इंस्पेक्टर विजय का मित्र भी है, किन्तु कर्तव्य के साथ यह रिश्ते ना तों को कोई महत्व नहीं देते। यह बेमिसाल पुलिस ऑफिसर है योर ऑनर ! आज भी यह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे। क्यों कि जीत हमेशा सत्य की होती है।"
इस बार रोमेश ने टोका !
"आप गलत कह रहे हैं राजदान साहब; कि जीत सत्य की होती है। अदालतों में नब्बे प्रतिशत जीत झूठ की होती है। यहाँ पर हार जीत का फैसला झूठ सच पर नहीं सबूतों और वकीलों के दांव पेंचों पर निर्भर होता है।"
"देखना यह है कि आप कौन-सा दांव इस्तेमाल करते हैं मिस्टर सक्सेना।"
"मैं न तो दांव इस्तेमाल कर रहा हूँ और न कोई इरादा है। अदालत को भाषण मत दीजिए, अपने गवाह के बयान जारी करवाइये।"
"ऑर्डर…ऑर्डर !"
न्यायाधीश ने दोनों की नोंक झोंक पर आपत्ति प्रकट की। राजदान ने कार्यवा ही शुरू की।
"इंस्पेक्टर विजय अब आप अपना बयान दे सकते हैं।" विजय ने बयान शुरू किए।
"मेरा दुर्भाग्य यह है कि जिसकी हिफाजत के लिए मुझे तैनात किया गया था, उसे नहीं बचा सका और उसके कातिल के रूप में एक ऐसा शख्स मेरे सामने खड़ा है, जो कानून का पाठ पढ़ने वाले होनहार नवोदित हाथों का आदर्श था और जिसका मैं भी उतना ही सम्मान करता हूँ, यहाँ तक कि मैं मुलजिम की मनोभावना और घरेलू स्थिति से भी परिचित था और मित्र होने के नाते इनसे कभी-कभी मदद भी ले लिया करता था।"
"मैं इस मुलजिम को कानून का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति मानता था। परन्तु मुलजिम ने मेरा सारा भ्रम ही तोड़ डाला, इस मुकदमे के हर पहलू को मुझसे अधिक करीब से किसी ने नहीं देखा। यहाँ मैं मकतूल की समाज सेवाओं का उल्लेख नहीं करूँगा, मैं यह बताना चाहता हूँ कि कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, जे.एन. कोई वान्टेड इनामी डाकू नहीं था, जो रोमेश सक्सेना उसका क़त्ल करके किसी इनाम का हकदार बनता। लिहाज़ा यह क्रूरतम अपराध था।"
विजय कुछ रुका।
"शायद मैं भी गलत रौ में बह गया, बयान की बजाय भाषण देने लगा। वारदात किस तरह हुई, यह मैं बता ने जा रहा हूँ। मुझे फोन द्वारा इस क़त्ल की सूचना मिली और मैं तेजी के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हुआ"
उसके बाद विजय ने दस जनवरी से लेकर मुलजिम की गिरफ्तारी तक का पूरा बयान रिकार्ड में दर्ज करवाया, यह बताया कि किस तरह सारे सबूत जुटाये गये। विजय के बयान काफी लम्बे थे। बीच-बीच में उसकी टिप्पणियां भी थीं।
बयान समाप्त होने के बाद विजय ने सीधा रोमेश से सवाल किया,
"एनी क्वेश्चन ?"
"नो।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"तुम्हारे बयान अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त हैं, तुम एक होनहार कर्त्तव्यपालक पुलिस ऑफिसर हो, यह बात पहले ही अदालत को बताई जा चुकी है।"
विजय विटनेस बॉक्स से बाहर आ गया।
“तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए अदालत इस निर्णय पर पहुंचती है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने कानून को मजाक समझते हुए इस तरह योजना बना कर हत्या की, जैसे हत्या करना अपराध नहीं धार्मिक अनुष्ठान हो।
"जनार्दन नागा रेड्डी समाज सेवा और राजनीतिक क्षितिज की एक महत्वपूर्ण हस्ती थी। ऐसे व्यक्ति की हत्या को सार्वजनिक बना कर अत्यन्त क्रूरता पूर्ण तरीके से मार डाला गया। "
"मुलजिम ने भी अपना अपराध स्वीकार किया और किसी भी गवाह से जिरह करना उचित नहीं समझा, इससे साफ साबित होता है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने हत्या की, अत: ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 के तहत मुलजिम को अपराधी ठहराया जाता है। परन्तु इससे पूर्व अदालत रोमेश सक्सेना को दण्ड सुनाये, उसे एक मौका और देती है।"
"रोमेश सक्सेना की कानूनी सेवा में स्वच्छ छवि होने के कारण अन्तिम अवसर प्रदान किया जाता है, यदि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहे, तो अदालत सुनने के लिए तैयार है और यदि रोमेश सक्सेना इस आखिरी मौके को भी नकार देता है, तो अदालत दण्ड सुनाने के लिए तारीख निर्धारित करेगी।”
न्यायाधीश द्वारा लगी इस टिप्पणी को अदालत में सुनाया गया। राजदान के होंठों पर जीत की मुस्कान थी। विजय गम्भीर और खामोश था। वैशाली उदास नजर आ रही थी। किसी को यकीन ही नहीं आ रहा था कि रोमेश इतनी जल्दी हार मानकर स्वयं के गले में फंदा बना देगा।
किन्तु अदालत में कुछ लोग ऐसे भी बैठे थे, जिन्हें यकीन था कि अब भी पलड़ा पलटेगा, केस अभी फाइनल नहीं हुआ। उनकी अकस्मात दृष्टि रोमेश की तरफ उठ जाती थी।
रोमेश ने धीरे-धीरे फिर अदालत में बैठे लोगों का अवलोकन किया। घूमती हुई दृष्टि वैशाली, विजय से घूमती राजदान पर ठहर गई।
"अदालत ने यह एक आखिरी मौका न दिया होता, तो तुम केस जीत चुके थे राजदान ! लेकिन लगता है कि तुम्हारी किस्मत में हमेशा मुझसे बस हारना ही लिखा है।"
जारी रहेगा .....……![]()
Reader turn writer...# 26
मैडम माया सिर झुकाये धीरे-धीरे अदालत में दाखिल हुई। वह अब खुली किताब थीं, उसके बारे में पहले ही समाचार पत्रों में खूब छप चुका था और लोग उसे देखना भी चाहते थे। आखिर वह कौन-सी सुन्दरी है, जिसके फ्लैट पर एक वी.आई.पी. का मर्डर हुआ। जे.एन. के इस लेडी से क्या ताल्लुक थे ?
माया देवी सफेद साड़ी पहने हुये थी। इस साड़ी में लिपटा उसका चांदी-सा बदन झिलमिला रहा था। लबों पर ताजगी थी, चेहरा अब भी सुर्ख गुलाब की तरह खिला हुआ था। आँखों में मदहोशी थी, अगर वह किसी की तरफ देख भी लेती, तो बिजली-सी कौंध जाती थी। माया कटघरे में आ खड़ी हुई।
"आपका नाम ?" राजदान ने सवाल किया।
"माया देवी।"
"गीता पर हाथ रखकर कसम खाइये ।"
माया देवी के सामने गीता रख दी गयी। हाथ रखने से पूर्व उसने सामने के कटघरे में खड़े रोमेश को देखा। दोनों की आंखें चार हुई। कभी वह नजरों से खुद बिजली गिराती थी, अभी रोमेश की आंखों से बिजली उतरकर खुद उसी पर गिर रही थी। उसने शपथ की रस्म शुरू कर दी।
"हाँ, तो मैडम माया देवी ! आप विवाहिता हैं ?" राजदान ने पूछा।
"विवाहिता के बाद विधवा भी।" माया देवी बोली,
"उचित होगा कि मेरी प्राइवेट लाइफ के सम्बन्ध में आप कोई प्रश्न न करें।"
"नहीं, हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है। हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि जिस रात जे.एन. की हत्या की गयी, वारदात की उस रात यानि दस जनवरी की रात क्या हुआ ?"
"वारदात की रात से पहले एडवोकेट रोमेश सक्सेना मेरे फ्लैट पर मुझसे मिलने आये, उस मुलाकात से पहले मैंने यह नाम सुना था कि यह शख्स मर्डर मिस्ट्री सुलझाने वाला ऐसा एडवोकेट है, जैसा वर्णन किताबों में पाया जाता है।
मैंने इनके सॉल्व किये कई केस अखबारों में पढ़े थे। उस दिन जब यह मुझसे मिलने आये, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, धड़कते दिल से मैंने इनका स्वागत किया। इस पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे स्तब्ध कर दिया।"
माया देवी कुछ पल के लिए रुकी।
"इन्होंने मुझसे कहा कि यह मुझे एक केस का चश्मदीद गवाह बनाने आये हैं। मैं हैरान हो गई कि जब कोई वारदात मेरे सामने हुई ही नहीं, तो मैं चश्मदीद गवाह कैसे बन सकती हूँ? मैंने यह सवाल किया, तो रोमेश सक्सेना ने कहा कि वारदात हुई नहीं होने वाली है।
“एक कत्ल मेरे सामने होगा और मैं उस मर्डर की आई विटनेस बनूंगी। मुझे उस वक्त वह किसी जासूसी फिल्म का या किसी कहानी का प्लाट महसूस हुआ। उस वक्त क्या, कत्ल होने तक मुझे यकीन ही नहीं आता था कि सचमुच मेरे सामने कत्ल होगा और मैं यहाँ कटघरे में आई विटनेस की हैसियत से खड़ी होऊँगी।"
"क्या हुआ उस रात ?"
"उस रात !"
माया देवी की निगाह एक बार फिर रोमेश पर ठहर गयी,
"किसी अजनबी ने मुझे फोन किया। करीब साढ़े नौ बजे फोन आया कि मेरे अंकल का एक्सीडेंट हो गया और वह जसलोक में एडमिट कर दिये गये हैं। मैं उसी वक्त हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गयी। वहाँ पहुँचकर पता लगा कि फोन फर्जी था।
“वह फोन किसने किया था मिस्टर ?" यह प्रश्न माया ने रोमेश से किया। रोमेश चुप रहा।
"मिस्टर रोमेश, मैं तुमसे पूछ रही हूँ, किसने किया वह फोन ?"
"आपको मुझसे पूछताछ करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"फिर भी मुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं कि फोन मैंने आपके फ्लैट के करीबी बूथ से किया था और आपको जाते हुए भी देखा।"
"सुन लिया आपने मीलार्ड।" राजदान बोला,
"कितना जबरदस्त प्लान था इस शख्स का।"
"आगे क्या हुआ ?" न्याया धीश ने पूछा।
"जब मैं लौटकर आई, तो मेरा फ्लैट हत्यारे के कब्जे में आ चुका था, नौकरानी को बांधकर स्टोर में डाल दिया गया और बैडरूम में मुझ पर अटैक हुआ।
वह शख्स मुझे दबोचकर बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया और मुझे चाकू की नोंक पर विवश किया कि चुपचाप खड़ी रहूँ।
“इसने मेरे हाथ मोड़कर बांध दिये थे। कुछ देर बाद ही जे.एन. आये। इसने बाथरूम का शावर चला दिया, ताकि जे.एन. यह समझे कि मैं नहा रही हूँ।"
वह कुछ रुकी।
"फिर यह शख्स मुझे बाथरूम में छोड़कर बैडरूम में पहुँचा और पीछे से मैं भी डरती-डरती बाथरूम से निकली। मेरे मुंह पर इसने टेप चिपका दिया था, मैं कुछ बोल भी नहीं सकी, यह व्यक्ति आगे बढ़ा और इसने जे.एन. को चाकू घोंपकर मार डाला। मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगी कि वह यह जानने की कौशिश न करें कि जे.एन. मेरे पास क्यों आये थे।"
"योर ऑनर !"
राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी,
"मेरे ख्याल से अदालत को यह जानने की आवश्यकता भी नहीं कि जे.एन. वहाँ क्यों आये थे, क्यों कि मर्डर का प्राइवेट लाइफ से कोई ताल्लुक नहीं। माया देवी के बयानों से साफ जाहिर होता है कि क़त्ल कि प्लानिंग बड़ी जबरदस्त थी और कातिल पहले से जानता था कि जे.एन. ने वहाँ पहुंचना ही है।"
"अब सब आइने की तरह साफ है। रोमेश सक्सेना ने ऐसा जघन्य अपराध किया है, जैसा इससे पहले किसी ने कभी नहीं किया, अदालत से मेरा अनुरोध है कि रोमेश सक्सेना को बहुत कड़ी से कड़ी सजा दी जाये। दैट्स आल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना क्या आप माया देवी से कोई प्रश्न करना चाहेंगे?" न्यायाधीश ने पूछा।
"नहीं योर ऑनर ! मैं किसी की प्राइवेट लाइफ के बारे में कोई सवाल नहीं करना चाहता, मेरा एक सवाल सैंकड़ों सवाल खड़े कर देगा। मुझे माया देवी से सहानुभूति है, इसलिये कोई प्रश्न नहीं।"
माया देवी ने गहरी सांस ली। वह सोच रही थी कि रोमेश उसकी प्राइवेट लाइफ के सवालों को उछालेगा, पूछेगा, क्या जे.एन. हर शनिवार उसके फ्लैट पर बिताता था? जे.एन. से उसके क्या सम्बन्ध थे, वह इस किस्म के सवालों से डरती थी। लेकिन अब कोई डर न था। रोमेश ने उसे शरारत भरी मुस्कराहट से विदा किया।
"अब मैं अपना आखिरी गवाह पेश करता हूँ, इंस्पेक्टर विजय।"
इंस्पेक्टर विजय अदालत में उपस्थित था और अगली कतार में बैठा था। वह उठा और गवाह बॉक्स में चला गया। अदालत की रस्में पूरी करने के बाद राजदान ने अपना काम शुरू कर दिया।
"इस शहर की कानूनी किताब में पिछले कुछ अरसे से दो व्यक्ति चर्चित रहे। नम्बर एक मुल्जिम रोमेश सक्सेना, जो ईमानदारी और सही न्याय दिलाने की प्रतिमूर्ति कहे जाते थे। यह बात सारे कानूनी हल्के में प्रसिद्ध थी कि रोमेश सक्सेना किसी क्रिमिनल का मुकदमा कभी नहीं लड़ते।
जिस मुकदमे की पैरवी करते हैं, पहले खुद उसकी छानबीन करके उसकी सच्चाई का पता लगाते हैं, रोमेश सक्सेना ने कभी कोई मुकदमा हारा नहीं।" राजदान, रोमेश की तरफ से पलटा। उसने विजय की तरफ देखा।
"यानि दो अपराजित हस्तियां आमने सामने और बीच में, मैं हूँ। जो हमेशा रोमेश से हारता रहा। रोमेश, इंस्पेक्टर विजय का मित्र भी है, किन्तु कर्तव्य के साथ यह रिश्ते ना तों को कोई महत्व नहीं देते। यह बेमिसाल पुलिस ऑफिसर है योर ऑनर ! आज भी यह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे। क्यों कि जीत हमेशा सत्य की होती है।"
इस बार रोमेश ने टोका !
"आप गलत कह रहे हैं राजदान साहब; कि जीत सत्य की होती है। अदालतों में नब्बे प्रतिशत जीत झूठ की होती है। यहाँ पर हार जीत का फैसला झूठ सच पर नहीं सबूतों और वकीलों के दांव पेंचों पर निर्भर होता है।"
"देखना यह है कि आप कौन-सा दांव इस्तेमाल करते हैं मिस्टर सक्सेना।"
"मैं न तो दांव इस्तेमाल कर रहा हूँ और न कोई इरादा है। अदालत को भाषण मत दीजिए, अपने गवाह के बयान जारी करवाइये।"
"ऑर्डर…ऑर्डर !"
न्यायाधीश ने दोनों की नोंक झोंक पर आपत्ति प्रकट की। राजदान ने कार्यवा ही शुरू की।
"इंस्पेक्टर विजय अब आप अपना बयान दे सकते हैं।" विजय ने बयान शुरू किए।
"मेरा दुर्भाग्य यह है कि जिसकी हिफाजत के लिए मुझे तैनात किया गया था, उसे नहीं बचा सका और उसके कातिल के रूप में एक ऐसा शख्स मेरे सामने खड़ा है, जो कानून का पाठ पढ़ने वाले होनहार नवोदित हाथों का आदर्श था और जिसका मैं भी उतना ही सम्मान करता हूँ, यहाँ तक कि मैं मुलजिम की मनोभावना और घरेलू स्थिति से भी परिचित था और मित्र होने के नाते इनसे कभी-कभी मदद भी ले लिया करता था।"
"मैं इस मुलजिम को कानून का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति मानता था। परन्तु मुलजिम ने मेरा सारा भ्रम ही तोड़ डाला, इस मुकदमे के हर पहलू को मुझसे अधिक करीब से किसी ने नहीं देखा। यहाँ मैं मकतूल की समाज सेवाओं का उल्लेख नहीं करूँगा, मैं यह बताना चाहता हूँ कि कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, जे.एन. कोई वान्टेड इनामी डाकू नहीं था, जो रोमेश सक्सेना उसका क़त्ल करके किसी इनाम का हकदार बनता। लिहाज़ा यह क्रूरतम अपराध था।"
विजय कुछ रुका।
"शायद मैं भी गलत रौ में बह गया, बयान की बजाय भाषण देने लगा। वारदात किस तरह हुई, यह मैं बता ने जा रहा हूँ। मुझे फोन द्वारा इस क़त्ल की सूचना मिली और मैं तेजी के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हुआ"
उसके बाद विजय ने दस जनवरी से लेकर मुलजिम की गिरफ्तारी तक का पूरा बयान रिकार्ड में दर्ज करवाया, यह बताया कि किस तरह सारे सबूत जुटाये गये। विजय के बयान काफी लम्बे थे। बीच-बीच में उसकी टिप्पणियां भी थीं।
बयान समाप्त होने के बाद विजय ने सीधा रोमेश से सवाल किया,
"एनी क्वेश्चन ?"
"नो।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"तुम्हारे बयान अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त हैं, तुम एक होनहार कर्त्तव्यपालक पुलिस ऑफिसर हो, यह बात पहले ही अदालत को बताई जा चुकी है।"
विजय विटनेस बॉक्स से बाहर आ गया।
“तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए अदालत इस निर्णय पर पहुंचती है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने कानून को मजाक समझते हुए इस तरह योजना बना कर हत्या की, जैसे हत्या करना अपराध नहीं धार्मिक अनुष्ठान हो।
"जनार्दन नागा रेड्डी समाज सेवा और राजनीतिक क्षितिज की एक महत्वपूर्ण हस्ती थी। ऐसे व्यक्ति की हत्या को सार्वजनिक बना कर अत्यन्त क्रूरता पूर्ण तरीके से मार डाला गया। "
"मुलजिम ने भी अपना अपराध स्वीकार किया और किसी भी गवाह से जिरह करना उचित नहीं समझा, इससे साफ साबित होता है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने हत्या की, अत: ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 के तहत मुलजिम को अपराधी ठहराया जाता है। परन्तु इससे पूर्व अदालत रोमेश सक्सेना को दण्ड सुनाये, उसे एक मौका और देती है।"
"रोमेश सक्सेना की कानूनी सेवा में स्वच्छ छवि होने के कारण अन्तिम अवसर प्रदान किया जाता है, यदि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहे, तो अदालत सुनने के लिए तैयार है और यदि रोमेश सक्सेना इस आखिरी मौके को भी नकार देता है, तो अदालत दण्ड सुनाने के लिए तारीख निर्धारित करेगी।”
न्यायाधीश द्वारा लगी इस टिप्पणी को अदालत में सुनाया गया। राजदान के होंठों पर जीत की मुस्कान थी। विजय गम्भीर और खामोश था। वैशाली उदास नजर आ रही थी। किसी को यकीन ही नहीं आ रहा था कि रोमेश इतनी जल्दी हार मानकर स्वयं के गले में फंदा बना देगा।
किन्तु अदालत में कुछ लोग ऐसे भी बैठे थे, जिन्हें यकीन था कि अब भी पलड़ा पलटेगा, केस अभी फाइनल नहीं हुआ। उनकी अकस्मात दृष्टि रोमेश की तरफ उठ जाती थी।
रोमेश ने धीरे-धीरे फिर अदालत में बैठे लोगों का अवलोकन किया। घूमती हुई दृष्टि वैशाली, विजय से घूमती राजदान पर ठहर गई।
"अदालत ने यह एक आखिरी मौका न दिया होता, तो तुम केस जीत चुके थे राजदान ! लेकिन लगता है कि तुम्हारी किस्मत में हमेशा मुझसे बस हारना ही लिखा है।"
जारी रहेगा .....……![]()
Dekhte hain Romesh ne kya plan banaya tha is murder mystery ko lekar kanun ke sath khelne ke liye.... super update keep writing soon..next update...# 26
मैडम माया सिर झुकाये धीरे-धीरे अदालत में दाखिल हुई। वह अब खुली किताब थीं, उसके बारे में पहले ही समाचार पत्रों में खूब छप चुका था और लोग उसे देखना भी चाहते थे। आखिर वह कौन-सी सुन्दरी है, जिसके फ्लैट पर एक वी.आई.पी. का मर्डर हुआ। जे.एन. के इस लेडी से क्या ताल्लुक थे ?
माया देवी सफेद साड़ी पहने हुये थी। इस साड़ी में लिपटा उसका चांदी-सा बदन झिलमिला रहा था। लबों पर ताजगी थी, चेहरा अब भी सुर्ख गुलाब की तरह खिला हुआ था। आँखों में मदहोशी थी, अगर वह किसी की तरफ देख भी लेती, तो बिजली-सी कौंध जाती थी। माया कटघरे में आ खड़ी हुई।
"आपका नाम ?" राजदान ने सवाल किया।
"माया देवी।"
"गीता पर हाथ रखकर कसम खाइये ।"
माया देवी के सामने गीता रख दी गयी। हाथ रखने से पूर्व उसने सामने के कटघरे में खड़े रोमेश को देखा। दोनों की आंखें चार हुई। कभी वह नजरों से खुद बिजली गिराती थी, अभी रोमेश की आंखों से बिजली उतरकर खुद उसी पर गिर रही थी। उसने शपथ की रस्म शुरू कर दी।
"हाँ, तो मैडम माया देवी ! आप विवाहिता हैं ?" राजदान ने पूछा।
"विवाहिता के बाद विधवा भी।" माया देवी बोली,
"उचित होगा कि मेरी प्राइवेट लाइफ के सम्बन्ध में आप कोई प्रश्न न करें।"
"नहीं, हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है। हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि जिस रात जे.एन. की हत्या की गयी, वारदात की उस रात यानि दस जनवरी की रात क्या हुआ ?"
"वारदात की रात से पहले एडवोकेट रोमेश सक्सेना मेरे फ्लैट पर मुझसे मिलने आये, उस मुलाकात से पहले मैंने यह नाम सुना था कि यह शख्स मर्डर मिस्ट्री सुलझाने वाला ऐसा एडवोकेट है, जैसा वर्णन किताबों में पाया जाता है।
मैंने इनके सॉल्व किये कई केस अखबारों में पढ़े थे। उस दिन जब यह मुझसे मिलने आये, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, धड़कते दिल से मैंने इनका स्वागत किया। इस पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे स्तब्ध कर दिया।"
माया देवी कुछ पल के लिए रुकी।
"इन्होंने मुझसे कहा कि यह मुझे एक केस का चश्मदीद गवाह बनाने आये हैं। मैं हैरान हो गई कि जब कोई वारदात मेरे सामने हुई ही नहीं, तो मैं चश्मदीद गवाह कैसे बन सकती हूँ? मैंने यह सवाल किया, तो रोमेश सक्सेना ने कहा कि वारदात हुई नहीं होने वाली है।
“एक कत्ल मेरे सामने होगा और मैं उस मर्डर की आई विटनेस बनूंगी। मुझे उस वक्त वह किसी जासूसी फिल्म का या किसी कहानी का प्लाट महसूस हुआ। उस वक्त क्या, कत्ल होने तक मुझे यकीन ही नहीं आता था कि सचमुच मेरे सामने कत्ल होगा और मैं यहाँ कटघरे में आई विटनेस की हैसियत से खड़ी होऊँगी।"
"क्या हुआ उस रात ?"
"उस रात !"
माया देवी की निगाह एक बार फिर रोमेश पर ठहर गयी,
"किसी अजनबी ने मुझे फोन किया। करीब साढ़े नौ बजे फोन आया कि मेरे अंकल का एक्सीडेंट हो गया और वह जसलोक में एडमिट कर दिये गये हैं। मैं उसी वक्त हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गयी। वहाँ पहुँचकर पता लगा कि फोन फर्जी था।
“वह फोन किसने किया था मिस्टर ?" यह प्रश्न माया ने रोमेश से किया। रोमेश चुप रहा।
"मिस्टर रोमेश, मैं तुमसे पूछ रही हूँ, किसने किया वह फोन ?"
"आपको मुझसे पूछताछ करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"फिर भी मुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं कि फोन मैंने आपके फ्लैट के करीबी बूथ से किया था और आपको जाते हुए भी देखा।"
"सुन लिया आपने मीलार्ड।" राजदान बोला,
"कितना जबरदस्त प्लान था इस शख्स का।"
"आगे क्या हुआ ?" न्याया धीश ने पूछा।
"जब मैं लौटकर आई, तो मेरा फ्लैट हत्यारे के कब्जे में आ चुका था, नौकरानी को बांधकर स्टोर में डाल दिया गया और बैडरूम में मुझ पर अटैक हुआ।
वह शख्स मुझे दबोचकर बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया और मुझे चाकू की नोंक पर विवश किया कि चुपचाप खड़ी रहूँ।
“इसने मेरे हाथ मोड़कर बांध दिये थे। कुछ देर बाद ही जे.एन. आये। इसने बाथरूम का शावर चला दिया, ताकि जे.एन. यह समझे कि मैं नहा रही हूँ।"
वह कुछ रुकी।
"फिर यह शख्स मुझे बाथरूम में छोड़कर बैडरूम में पहुँचा और पीछे से मैं भी डरती-डरती बाथरूम से निकली। मेरे मुंह पर इसने टेप चिपका दिया था, मैं कुछ बोल भी नहीं सकी, यह व्यक्ति आगे बढ़ा और इसने जे.एन. को चाकू घोंपकर मार डाला। मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगी कि वह यह जानने की कौशिश न करें कि जे.एन. मेरे पास क्यों आये थे।"
"योर ऑनर !"
राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी,
"मेरे ख्याल से अदालत को यह जानने की आवश्यकता भी नहीं कि जे.एन. वहाँ क्यों आये थे, क्यों कि मर्डर का प्राइवेट लाइफ से कोई ताल्लुक नहीं। माया देवी के बयानों से साफ जाहिर होता है कि क़त्ल कि प्लानिंग बड़ी जबरदस्त थी और कातिल पहले से जानता था कि जे.एन. ने वहाँ पहुंचना ही है।"
"अब सब आइने की तरह साफ है। रोमेश सक्सेना ने ऐसा जघन्य अपराध किया है, जैसा इससे पहले किसी ने कभी नहीं किया, अदालत से मेरा अनुरोध है कि रोमेश सक्सेना को बहुत कड़ी से कड़ी सजा दी जाये। दैट्स आल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना क्या आप माया देवी से कोई प्रश्न करना चाहेंगे?" न्यायाधीश ने पूछा।
"नहीं योर ऑनर ! मैं किसी की प्राइवेट लाइफ के बारे में कोई सवाल नहीं करना चाहता, मेरा एक सवाल सैंकड़ों सवाल खड़े कर देगा। मुझे माया देवी से सहानुभूति है, इसलिये कोई प्रश्न नहीं।"
माया देवी ने गहरी सांस ली। वह सोच रही थी कि रोमेश उसकी प्राइवेट लाइफ के सवालों को उछालेगा, पूछेगा, क्या जे.एन. हर शनिवार उसके फ्लैट पर बिताता था? जे.एन. से उसके क्या सम्बन्ध थे, वह इस किस्म के सवालों से डरती थी। लेकिन अब कोई डर न था। रोमेश ने उसे शरारत भरी मुस्कराहट से विदा किया।
"अब मैं अपना आखिरी गवाह पेश करता हूँ, इंस्पेक्टर विजय।"
इंस्पेक्टर विजय अदालत में उपस्थित था और अगली कतार में बैठा था। वह उठा और गवाह बॉक्स में चला गया। अदालत की रस्में पूरी करने के बाद राजदान ने अपना काम शुरू कर दिया।
"इस शहर की कानूनी किताब में पिछले कुछ अरसे से दो व्यक्ति चर्चित रहे। नम्बर एक मुल्जिम रोमेश सक्सेना, जो ईमानदारी और सही न्याय दिलाने की प्रतिमूर्ति कहे जाते थे। यह बात सारे कानूनी हल्के में प्रसिद्ध थी कि रोमेश सक्सेना किसी क्रिमिनल का मुकदमा कभी नहीं लड़ते।
जिस मुकदमे की पैरवी करते हैं, पहले खुद उसकी छानबीन करके उसकी सच्चाई का पता लगाते हैं, रोमेश सक्सेना ने कभी कोई मुकदमा हारा नहीं।" राजदान, रोमेश की तरफ से पलटा। उसने विजय की तरफ देखा।
"यानि दो अपराजित हस्तियां आमने सामने और बीच में, मैं हूँ। जो हमेशा रोमेश से हारता रहा। रोमेश, इंस्पेक्टर विजय का मित्र भी है, किन्तु कर्तव्य के साथ यह रिश्ते ना तों को कोई महत्व नहीं देते। यह बेमिसाल पुलिस ऑफिसर है योर ऑनर ! आज भी यह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे। क्यों कि जीत हमेशा सत्य की होती है।"
इस बार रोमेश ने टोका !
"आप गलत कह रहे हैं राजदान साहब; कि जीत सत्य की होती है। अदालतों में नब्बे प्रतिशत जीत झूठ की होती है। यहाँ पर हार जीत का फैसला झूठ सच पर नहीं सबूतों और वकीलों के दांव पेंचों पर निर्भर होता है।"
"देखना यह है कि आप कौन-सा दांव इस्तेमाल करते हैं मिस्टर सक्सेना।"
"मैं न तो दांव इस्तेमाल कर रहा हूँ और न कोई इरादा है। अदालत को भाषण मत दीजिए, अपने गवाह के बयान जारी करवाइये।"
"ऑर्डर…ऑर्डर !"
न्यायाधीश ने दोनों की नोंक झोंक पर आपत्ति प्रकट की। राजदान ने कार्यवा ही शुरू की।
"इंस्पेक्टर विजय अब आप अपना बयान दे सकते हैं।" विजय ने बयान शुरू किए।
"मेरा दुर्भाग्य यह है कि जिसकी हिफाजत के लिए मुझे तैनात किया गया था, उसे नहीं बचा सका और उसके कातिल के रूप में एक ऐसा शख्स मेरे सामने खड़ा है, जो कानून का पाठ पढ़ने वाले होनहार नवोदित हाथों का आदर्श था और जिसका मैं भी उतना ही सम्मान करता हूँ, यहाँ तक कि मैं मुलजिम की मनोभावना और घरेलू स्थिति से भी परिचित था और मित्र होने के नाते इनसे कभी-कभी मदद भी ले लिया करता था।"
"मैं इस मुलजिम को कानून का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति मानता था। परन्तु मुलजिम ने मेरा सारा भ्रम ही तोड़ डाला, इस मुकदमे के हर पहलू को मुझसे अधिक करीब से किसी ने नहीं देखा। यहाँ मैं मकतूल की समाज सेवाओं का उल्लेख नहीं करूँगा, मैं यह बताना चाहता हूँ कि कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, जे.एन. कोई वान्टेड इनामी डाकू नहीं था, जो रोमेश सक्सेना उसका क़त्ल करके किसी इनाम का हकदार बनता। लिहाज़ा यह क्रूरतम अपराध था।"
विजय कुछ रुका।
"शायद मैं भी गलत रौ में बह गया, बयान की बजाय भाषण देने लगा। वारदात किस तरह हुई, यह मैं बता ने जा रहा हूँ। मुझे फोन द्वारा इस क़त्ल की सूचना मिली और मैं तेजी के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हुआ"
उसके बाद विजय ने दस जनवरी से लेकर मुलजिम की गिरफ्तारी तक का पूरा बयान रिकार्ड में दर्ज करवाया, यह बताया कि किस तरह सारे सबूत जुटाये गये। विजय के बयान काफी लम्बे थे। बीच-बीच में उसकी टिप्पणियां भी थीं।
बयान समाप्त होने के बाद विजय ने सीधा रोमेश से सवाल किया,
"एनी क्वेश्चन ?"
"नो।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"तुम्हारे बयान अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त हैं, तुम एक होनहार कर्त्तव्यपालक पुलिस ऑफिसर हो, यह बात पहले ही अदालत को बताई जा चुकी है।"
विजय विटनेस बॉक्स से बाहर आ गया।
“तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए अदालत इस निर्णय पर पहुंचती है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने कानून को मजाक समझते हुए इस तरह योजना बना कर हत्या की, जैसे हत्या करना अपराध नहीं धार्मिक अनुष्ठान हो।
"जनार्दन नागा रेड्डी समाज सेवा और राजनीतिक क्षितिज की एक महत्वपूर्ण हस्ती थी। ऐसे व्यक्ति की हत्या को सार्वजनिक बना कर अत्यन्त क्रूरता पूर्ण तरीके से मार डाला गया। "
"मुलजिम ने भी अपना अपराध स्वीकार किया और किसी भी गवाह से जिरह करना उचित नहीं समझा, इससे साफ साबित होता है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने हत्या की, अत: ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 के तहत मुलजिम को अपराधी ठहराया जाता है। परन्तु इससे पूर्व अदालत रोमेश सक्सेना को दण्ड सुनाये, उसे एक मौका और देती है।"
"रोमेश सक्सेना की कानूनी सेवा में स्वच्छ छवि होने के कारण अन्तिम अवसर प्रदान किया जाता है, यदि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहे, तो अदालत सुनने के लिए तैयार है और यदि रोमेश सक्सेना इस आखिरी मौके को भी नकार देता है, तो अदालत दण्ड सुनाने के लिए तारीख निर्धारित करेगी।”
न्यायाधीश द्वारा लगी इस टिप्पणी को अदालत में सुनाया गया। राजदान के होंठों पर जीत की मुस्कान थी। विजय गम्भीर और खामोश था। वैशाली उदास नजर आ रही थी। किसी को यकीन ही नहीं आ रहा था कि रोमेश इतनी जल्दी हार मानकर स्वयं के गले में फंदा बना देगा।
किन्तु अदालत में कुछ लोग ऐसे भी बैठे थे, जिन्हें यकीन था कि अब भी पलड़ा पलटेगा, केस अभी फाइनल नहीं हुआ। उनकी अकस्मात दृष्टि रोमेश की तरफ उठ जाती थी।
रोमेश ने धीरे-धीरे फिर अदालत में बैठे लोगों का अवलोकन किया। घूमती हुई दृष्टि वैशाली, विजय से घूमती राजदान पर ठहर गई।
"अदालत ने यह एक आखिरी मौका न दिया होता, तो तुम केस जीत चुके थे राजदान ! लेकिन लगता है कि तुम्हारी किस्मत में हमेशा मुझसे बस हारना ही लिखा है।"
जारी रहेगा .....……![]()
जे एन की तो हालत ही खराब हो गई डर के मारे रोमेश ने उसकी पूरी जन्म कुंडली निकाल ली है वह कहा कहा जाता है वही उसको फोन कर देता है जे एन के आदमियों ने रोमेश का पता लगा कर उसको बता दिया है# 17
जनार्दन नागा रेड्डी के सामने बटाला खड़ा था।
"चप्पे-चप्पे पर अपने आदमी फैला दो, दूर के स्टेशनों के बूथ और दूसरे बूथों के आस पास रात के वक्त तुम्हारे आदमी होने चाहिये। जैसे भी हो इस आदमी का पता लगाओ कि यह है कौन? इसे हमारे कोड्स का पता कैसे लग गया? यह मेरे गुप्त ठिकानों के बारे में कैसे जानता है ? वैसे तो इस काम में पुलिस भी जुट गई है. लेकिन तुम्हें अपने ढंग से पता लगाना है।"
"यस सर ! आप समझ लें, दो दिन में हम उसका पता लगा लेगा और साले को खलास कर देगा।"
"जाओ काम पर लग जाओ।" बटाला सलाम मारकर चला बना।
जे.एन.आज इसलिये फिक्रमंद था, क्यों कि विगत रात माया के फ्लैट पर उसे अज्ञात आदमी का फोन आया था। यह बात उसे कैसे पता थी कि उस वक्त जे.एन. माया रानी के फ्लैट पर होगा ?
उसने पुलिस कमिश्नर को फोन मिलाया। थोड़ी देर तक उधर बात करता रहा। पुलिस की तरफ से पूरी सुरक्षा की गारंटी दी जा रही थी। वैसे तो सिक्योरिटी गार्ड्स अभी भी उसकी सेफ्टी के लिए थे।
"चार स्पेशल कमांडो आपके साथ हर समय रहेंगे।" कमिश्नर ने कहा,
"वैसे लगता तो यही है कि कोई सिरफिरा आदमी आपको बेकार में तंग कर रहा है, फिर भी हम पूरे मामले पर नजर रखे हैं।"
"थैंक्यू कमिश्नर।" जनार्दन नागा रेड्डी ने फोन के बाद अपने पी .ए. को बुलाया।
"यस सर।" मायादास हाज़िर हो गया, "क्या हुक्म है ?"
"मायादास जी, आप मेरे सबसे नजदीकी आदमी हैं। मैं चाहता हूँ कि फ़िलहाल अब कुछ वक्त मुम्बई से बाहर गुजार लिया जाये, कौन सी जगह बेहतर रहेगी ?"
"मेरे ख्याल से आप दूर न जायें, तो बेहतर है। हम आपको अपनी सुरक्षा टीम के दायरे से बाहर नहीं भेजना चाहते।"
"क्या सचमुच मुझे कोई खतरा हो सकता है ? पुलिस कमिश्नर तो कह रहा था कि यह किसी सिरफिरे का काम है, बस दिमाग में कुछ टेंशन सी रहती है, इसलि ये जाना चाहता हूँ।"
"सुनो आप खंडाला चले जाइए, वहाँ आपकी एक विला तो है ही। हमारे लोग वहाँ उसकी हिफाजत भी करते रहेंगे। बात ये भी तो है कि कभी भी आपको दिल्ली बुलाया जा सकता है, इसलिये मुम्बई से ज्यादा दूर रहना तो वैसे भी आपके लिए ठीक नहीं होगा।"
"आप ठीक कहते हैं, मैं खंडाला चला जाता हूँ। किसी को मत बताना, कोई ख़ास बात हो, तो मुझे फोन कर देना।"
"ठीक है।"
"मैं वहाँ बिलकुल अकेला रहना चाहता हूँ, समझ गये ना।"
"बेशक।"
जनार्दन नागा रेड्डी उसी दिन खंडाला के लिए रवाना हो गया। शाम तक वह विला में पहुँच गया। उसके पहुंचने से पहले वहाँ दो स्टेनगन धारी कमांडो चौकसी पर लग चुके थे, उन्होंने जे.एन. को सैल्यूट किया। जे.एन. विला में चला गया।
विला में खाने-पीने का सब सामान मौजूद था। रात को नौ बजेणमायादास का फ़ोन आया, उसने कुशल पूछी और थोड़ी देर तक औपचारिक बातों के बाद फोन बंद कर दिया। जे.एन.बियर पीता रहा, फिर वह कुछ पत्रिकायें पलटता रहा। इसी तरह रात के ग्यारह बज गये। वह सोने की तैयारी करने लगा।
अचानक फोन की घंटी बजने लगी। अभी वह बिस्तर पर पूरी तरह लेट भी नहीं पाया था कि चिहुंककर उठ बैठा। वह फोन को घूरने लगा। क्या मायादास का फोन हो सकता है? किन्तु मायादास तो फोन कर चुका है, वह दोबारा तो तभी फोन करेगा जब कोई ख़ास बात हो।
रात के ग्यारह और बारह के बीच तो उसी कातिल का फोन आता है। तो क्या उसी का फोन है ? घंटी बजती रही। आखिर जे.एन. को फोन का रिसीवर उठाना ही पड़ा। किन्तु वह कुछ बोला नहीं, वह तब तक बोलना ही नहीं चाहता था, जब तक मायादास की आवाज न सुन ले। किन्तु दूसरी तरफ से बोलने वाला मायादास नहीं था।
"मैं तेरा होने वाला कातिल बोल रहा हूँ बे ! क्यों अब बोलती भी बंद हो गई, अभी तो छ: दिन बाकी है। यहाँ खंडाला क्या करने आ गया तू, वैसे तेरा कत्ल करने के लिए इससे बेहतर जगह तो कोई हो भी नहीं सकती।" जे.एन. ने फोन पर कोई जवाब नहीं दिया और रिसीवर क्रेडिल पर रख कर फ़ोन काट दिया। दोबारा फोन की घंटी न बजे इसलिये उसने रिसीवर क्रेडिल से उठा कर एक तरफ रख दिया। इतनी सी देर में उसके माथे पर पसीना भरभरा आया था।
पहली बार जे.एन. को खतरे का अहसास हुआ। उसे लगा वह कोई सिरफिरा नहीं है। या तो कोई शख्स उसे भयभीत कर रहा है या फिर सचमुच कोई हत्यारा उसके पीछे लग गया है। लेकिन कोई हत्यारा इस तरह चैलेंज करके तो कत्ल नहीं करता। अगली सुबह ही जनार्दन नागा रेड्डी ने खंडाला की विला भी छोड़ दी और वह वापिस अपनी कोठी पर आ गया। जनार्दन ने अंधेरी में एक नया बंगला बना या था, वह सरकारी आवास की बजाय इस बंगले में आ गया। मायादास को भी उसने वहीं बुला लिया।
शाम को इंस्पेक्टर विजय उससे मिलने आया। उसके साथ चार कमांडो भी थे।
"कमिश्नर साहब ने आपकी हिफाजत के लिए मेरी ड्यूटी लगाई है।" विजय ने कहा,
"यह चार शानदार कमांडो हर समय आपके साथ रहेंगे। हमारी कौशिश यह भी है कि हम उस अज्ञात व्यक्ति का पता लगायें, इसके लिए हमने टेलीफोन एक्सचेंज से मदद ली है। जिन-जिन फोन नम्बरों पर आप उपलब्ध रहते हैं, वह सब हमें नोट करा दें, वैसे तो यह शख्स कोई सिरफिरा है जो…।"
"नहीं वह सिरफिरा नहीं है इंस्पेक्टर! वह मेरे इर्द-गिर्द जाल कसता जा रहा है। तुम फौरन उसका पता लगाओ। मैं तुम्हें अपने फोन नम्बर नोट करवा देता हूँ और अगर मैं कहीं बाहर गया, तो वह नंबर भी तुम्हें नोट करवा दूँगा।"
इस पहली मुलाकात में न तो मायादास ने विजय का नाम पूछा, न जे.एन. ने! संयोग से दोनों ने इंस्पेक्टर विजय का नाम तो सुना था, परन्तु आमना-सामना कभी नहीं हुआ था। उस रात रोमेश ने एक सिनेमा हॉल के बाहर बूथ से जे.एन. को फोन किया। उस वक्त नाईट शो का इंटरवल चल रहा था। पास ही पान सिगरेट की एक दुकान थी। फोन करने के बाद रोमेश उसी तरफ बढ़ गया, मोटर साइकिल पार्किंग पर खड़ी थी।
"अरे साहब, फ़िल्म वाला साहब आप।" पान की दुकान पर डिपार्टमेंटल स्टोर का सेल्समैन खड़ा था,
"क्या नाम बताया था, ध्यान से उतर गया ?"
"रोमेश सक्सेना।" तभी एक और ग्राहक ने पलटकर कहा ।
"एडवोकेट रोमेश सक्सेना।" यह दूसरा शख्स राजा था। राजा ने अगला सवाल दागा ,
"वह कत्ल हुआ की नहीं ?"
"अभी नहीं , दस जनवरी की रात होना है।"
"मेरे कू अदालत वाला डायलॉग अभी तक याद है, बोल के दिखाऊं।" चन्दू ने कहा।
"पर यह तो बताइये जनाब कि आखिर आप किसका खून करना चाहते हैं ?" राजा ने मजाकिया अंदाज में कहा। आसपास कुछ लोग भी जमा हो गये थे। चर्चा ही ऐसी थी।
"अब तुम लोग जानना ही चाहते हो तो …।"
"मैं बताता हूँ।" रोमेश की बात किसी ने बीच में ही काट दी। पीछे से जो शख्सियत सामने आई, वह कासिम खान था। संयोग से तीनों ही फ़िल्म देखने आये थे, नई फ़िल्म थी और हिट जा रही थी। हाउसफुल चल रहा था। इंटरवल होने के कारण बाहर भीड़ थी।
"यह जनाब जिस शख्स का कत्ल करने वाले हैं, उसका नाम जनार्दन नागा रेड्डी है।"
"जनार्दन नागा रेड्डी।" चन्दू उछल पड़ा,
"क्या बोलता है बे ? वो चीफ मिनिस्टर तो नहीं अरे ? अपना लीडर जे.एन.?"
"कासिम ठीक कह रहा है, बात उसी जे.एन.की है। और यह कोई फ़िल्मी कहानी नहीं है, एक दिन तुम अख़बार में उसके कत्ल की खबर पढ़ लेना। ग्यारह जनवरी को छप जायेगी।" रोमेश इतना कहकर आगे बढ़ गया।
भीड़ में से एक व्यक्ति तीर की तरह निकला और टेलीफोन बूथ में घुस गया। वह बटाला को फोन मिला रहा था।
"हैलो।" फोन मिलते ही उसने कहा,
"उस आदमी का पता चल गया है, जो जे.एन.साहब को फोन पर धमकी देता है।"
"कौन है ? " बटाला ने पूछा।
"उसका नाम रोमेश सक्सेना है, एडवोकेट रोमेश सक्सेना।"
"ओह, तो यह बात है। रस्सी जल गई, मगर बल अभी बाकी है, ठीक है।" दूसरी तरफ से बिना किसी निर्देश के फोन कट गया। उसी वक्त बटाला का फोन जे.एन.को भी पहुँच गया।
जारी रहेगा…..![]()
Wahi to baat hai shetan ji,Ye hai amezing start. Dimag me ek sath kai sawal peda kar diye. Vo lash kisne feki. Seth ka plan kya hai. Sonu ikbale julm kyo kabul kar raha hai. Amezing.
Dil ko sambhal ke rakhna priye kyu ki agla update ise or bhi dhadkayegaKhatarnak update, aur aesi jagah pe complete huva ki aage janne ke liye dil aatur hai.
Aapki sarahna ka bohot bohot dhanyawad mitraReader turn writer...
Aapki sayari to lajawab thi, Aaj story read kr ke to dimag hi ghum gaya. Mind-blowing. Kya plot laye ho sirji..
Ek se badhkar ek case ke sath ye JN vs Romesh vs Vijay.
Do dosto ko aamne samne lake khada kar diya. Aur ye courtroom scene to Adaalat series ki yad dila diye. XForum ka KD Pathak bana diye![]()
Thank you very much for your wonderful review and support bhai, aage aapke sawalo ke jabaab bhi milengeDekhte hain Romesh ne kya plan banaya tha is murder mystery ko lekar kanun ke sath khelne ke liye.... super update keep writing soon..next update...
जे एन को रोमेश के बारे में पता चल गया है जे एन रोमेश को खत्म करना चाहता है लेकिन मायादास उसे रोक देता है जे एन अपने आदमी द्वारा रोमेश का पीछा करवाता है लेकिन रोमेश फोन पर जे एन को बता देता है कि उसके चार आदमी उसका पीछा कर रहे हैं रोमेश बशीर के आदमियों से पीछा कर रहे लोगो को पीट कर उस के प्लान का मुंहतोड़ जबाव देता है# 18
"रोमेश सक्सेना।" जे.एन. मुट्ठियाँ भींचे अपने ड्राइंगरूम में चहलकदमी कर रहा था ।
"उसकी ये मजाल !" मायादास सामने हाथ बांधे खड़ा था।
"वैसे तो जो आप कहेंगे, वह हो जायेगा।" मायादास ने कहा,
"मगर हमें जल्दी बाजी में कुछ नहीं करना चाहिये, हमें हर काम का नकारात्मक रुख भी तो देखना चाहिये। अगर रोमेश सक्सेना सारे शहर में यह गाता फिर रहा है कि वह आपका कत्ल करेगा, तो यकीनन आपका कत्ल नहीं होने वाला।
हाँ, इससे वह आपको उत्तेजित करके कोई ऐसा कदम उठवा सकता है कि आप कानून के दायरे में आ जायें।"
"कानून ! कानून हमारे लिए है क्या? कानून तो हम बनाते हैं मायादास।"
"ठीक है, यह सब ठीक है। मगर जरा यह तो सोचिये कि सावंत के कत्ल का मामला गर्मी न पकड़े, इसलिये आपको थोड़े दिन के लिए चीफ मिनिस्टर की सीट छोड़नी पड़ी। अब अगर हम सब वकील के क़त्ल का बीड़ा उठाते हैं और किसी वजह से वह बच गया, तब क्या होगा ? पूरा कानून का जमावड़ा, अख़बार वाले हमारे पीछे पड़ जायेंगे, हालाँकि पकड़े तो आप तब भी नहीं जायेंगे, मगर मंत्री पद तो खतरे में पड़ ही सकता है।"
"देखिये, यह तो आप भी महसूस कर रहे होंगे कि कातिल का नाम जानने के बाद आप रिलैक्स महसूस कर रहे हैं। क्यों कि यह बात आप भी समझते हैं कि रोमेश जैसा व्यक्ति आपका कत्ल नहीं कर सकता, आपको तो क्या वह किसी को भी नहीं मार सकता, वह कानून का एक ईमानदार प्रतीक माना जाता है, ऐसा शख्स कत्ल कैसे कर सकता है ? वो भी इस तरह कि सारे शहर को बता कर चले। तारीख मुकर्रर कर दे।"
"हाँ, यह तो है, मगर धमकी देकर मुझे तो परेशान किया ही न उसने।"
"अब पुलिस को उससे निपटने दें और अगर ऐसी कोई आशंका होगी भी, तो हम साले को नौ जनवरी को ही ठिकाने लगा देंगे, मगर अभी उसको कुछ नहीं कहना।"
"बटाला से कहो कि वह उसके फ्लैट की घेरा बंदी हटा दे।"
"घेरा बन्दी तो चलने दे, अब हम भी तो उस पर कड़ी नजर रखेंगे। उसकी बीवी उसे छोड़कर चली गई है, इसी वजह से हो सकता है कि वह कुछ पगला गया हो।"
"उसकी बीवी कहाँ है ?"
"यह हमें भी नहीं मालूम, हमने जरूरत भी नहीं समझी, हम उसे सबक तो पढ़ाना चाहते थे पर सबक का मतलब यह तो नहीं कि उसे कत्ल कर डालें, कत्ल तो अंतिम स्टेज है। जब सारे फ़ॉर्मूले फेल हो जायें और पानी सर से ऊपर चला जाये, अभी तो पानी घुटनों में भी नहीं है।"
"मायादास तुम वाकई अक्लमंद आदमी हो, हम तो गुस्से में उसे मरवा ही देते।"
"अब आप माफिया किंग नहीं, एक लीडर हैं। सियासी लोग हर चाल सोच-समझकर चलते हैं।" जनार्दन नागा रेड्डी अब नॉर्मल था। वह रात के फोन का इन्तजार करने लगा। वह जानता था कि रोमेश का फोन फिर आयेगा, आज जे.एन. उसका जमकर उपहास उड़ाना चाहता था।
उधर माया देवी की नौकरानी ने फ्लैट का दरवाजा खोला।
"कहिये आपको किससे मिलना है?" रोमेश ने अपना विजिटिंग कार्ड देते हुए कहा :
"मैडम माया देवी से कहिये, मैं उनसे एक केस के सिलसिले में मिलना चाहता हूँ, उनके फायदे की बात है।"
नौकरानी द्वार बंद करके अन्दर चली गई। कुछ देर बाद वह आई और उसने रोमेश को अंदर आने का संकेत किया। रोमेश सिटिंग रूम में बैठ गया। थोड़ी देर बाद माया देवी प्रकट हुई, वह लम्बे छरहरे कद की खूबसूरत महिला थी। नीली बिल्लौरी आँखें, गोरा रंग, गदराया हुआ यौवन, सचमुच जे.एन की पसंद जोर की थी।
कुछ देर तक तो रोमेश उसे ठगा-सा देखता रह गया। "नौकरानी पानी लेकर आ गई।"
"लीजिये !" माया देवी ने कहा, "पानी।"
"हाँ ।" रोमेश ने गिलास लिया और फिर पानी पी गया,
"मुझे रोमेश कहते हैं।" पानी पीने के बाद उसने कहा।
"नाम सुना है अख़बारों में। कहिये कैसे आना हुआ मेरे यहाँ ?"
रोमेश सीधा हो गया। उसने नौकरानी की तरफ देखा। रोमेश का आशय समझ कर माया ने नौकरानी को किचन में भेज दिया।
"अब बोलिये।"
"मैं आपको एक मुकदमे में गवाह बनाने आया हूँ।"
"इंटरेस्टिंग, किस किस्म का मुकदमा है ?"
"मर्डर केस ! कोल्ड ब्लडेड मर्डर केस।"
"ओह माई गॉड ! मैं किसी मर्डर केस में गवाह..।"
"हाँ, चश्मदीद गवाह! यानि आई विटनेस !"
"आप कुछ पहेली बुझा रहे हैं, मैंने तो आज तक कोई मर्डर होते हुए नहीं देखा।"
"अब देख लेंगी।" रोमेश ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा,
"आप एक मर्डर की चश्मदीद गवाह बनेंगी, डेम श्योर ! आप घबराना मत।"
"आप तो पहेली बुझा रहे हैं ?"
"दस तारीख की रात यह पहेली खुद हल हो जायेगी, बस आप मुझे पहचानकर रखें।" रोमेश ने उठते हुए कहा !
"मेरा यह गेटअप पसंद आया आपको, इसी को पहन कर मैंने एक कत्ल करना है और उसी वक्त की आप चश्मदीद गवाह बनेंगी।
अदालत में मुलजिम के कटघरे में, मैं खड़ा होऊंगा और तब आप कहेंगी, योर ऑनर यही वह शख्स है, जो पांच जनवरी को मेरे पास आकर बोला कि मैं तुम्हारे सामने ही एक आदमी का कत्ल करूंगा और इसने कर दिया।"
"इंटरेस्टिंग स्टोरी, अब आप जाने का क्या लेंगे ?"
"मैं जा ही रहा हूँ, लेकिन मेरी बात याद रखना मैडम माया देवी ! आप जैसी हसीन बला को आई विटनेस बनाते हुए मुझे बड़ी ख़ुशी होगी , गुडलक। "
रोमेश ने मफलर चेहरे पर लपेटा और सीटी बजाता बाहर निकल गया। माया देवी ने फ्लैट की खिड़की से उसे मोटर साइकिल पर बैठकर जाते देखा और फिर बड़बड़ाई,
"शायद पागल हो गया है।" रात को रोमेश ने फिर जनार्दन को फोन किया। इस बार जनार्दन जैसे पहले से तैयार बैठा था।
"हैल्लो, जे.एन. स्पीकिंग।" जनार्दन ने बड़े संयत स्वर में कहा।
"मैं रोमेश बोल रहा हूँ।" रोमेश ने मुस्कुरा कर कहा,
"एडवोकेट रोमेश सक्से तुम्हारा…। "
"होने वाला कातिल।" बाकी जुमला जे.एन. ने पूरा किया।
"तो तुम्हें मालूम हो चुका है ?" रोमेश ने कहा।
"हाँ, मैं तो तुम्हारे फोन का ही इंतजार कर रहा था। मैं सोच रहा था कि इस बार हमारा पाला किसी खतरनाक आदमी से पड़ गया है, मगर यह तो वह कहावत हुई-खोदा पहाड़ निकली चुहिया।"
"इस बात का पता तो तुम्हें दस जनवरी को लगेगा जे.एन.।"
"अरे दस किसने देखी, तू अभी आजा ! जितने चाकू तूने हमें मारने के लिए खरीदे हैं, सब लेकर आजा। तेरे लिए तो मैं गार्ड भी हटा दूँगा।"
"हर काम शुभ मुहूर्त में अच्छा होता है। तुम्हारी जन्म कुंडली में दस जनवरी का दिन बड़ा मनहूस दिन है और मेरी जन्म कुंडली का सबसे खुशनसीब दिन, इस दिन मैं कातिल बन जाऊंगा और तुम दुनिया से कूच कर चुके होंगे।"
"खैर मना कि तू अभी तक जिन्दा है साले ! जे.एन. को गुस्सा आ गया होता, तो जहाँ तू है, वहीं गोली लग जाती और इतनी गोलियां लगतीं कि तेरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी धुआं उठता नजर आता।"
"मालूम है। चार आदमी अभी भी मेरी निगरानी कर रहे हैं। जाहिर है कि हथियारों से लैस होंगे। मेरी तरफ से पूरी छूट है, चाहे जितनी गोलियां चला सकते हो। ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा। तुम चूकना चाहो, तो चूक जाओ जे.एन. ! मगर मैं चूकने वाला नहीं।"
इतना कहकर रोमेश ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया। रोमेश ने वहीं से एक नंबर और मिलाया। दूसरी तरफ से कुछ देर बाद एक लड़की बोली।
"हाजी बशीर को लाइन दो मैडम !"
"कौन बोलता ?" मैडम ने पूछा।
"बोलो एडवोकेट रोमेश सक्सेना का फोन है। "
"होल्ड ऑन प्लीज।" रोमेश ने होल्ड किये रखा। कुछ देर बाद ही बशीर की आवाज फोन पर सुनाई दी
"कहो बिरादर, हम बशीर बोल रहे हैं।"
"हाजी बशीर, मैंने फैसला किया है कि आइन्दा आपके सभी केस लडूँगा।"
"वाह जी, वाह ! क्या बात है ? यह हुई न बात। अब तो हम दनादन ठिकाने लगायेंगे अपने दुश्मनों को। आ जाओ, दावत हो जाये इसी बात पर।"
"मेरे पी छे कुछ गुंडे लगे हैं।"
"गुण्डे, लानत है। साला मुम्बई में हमसे बड़ा गुंडा कौन है, कहाँ से बोल रहे हो?"
"माहिम स्टेशन के पास।"
"गुण्डों की पहचान बताओ और एक गाड़ी का नंबर नोट करो। MD 9972 ये हमारा गाड़ी है, अभी माहिम स्टेशन के लिए रवाना होगा।
तुम अभी स्टेशन से बाहर मत निकलना, हमारा गाड़ी देखकर निकलना, हमारा आदमी की पहचान नोट करो, वो कार से उतरकर स्टेशन पर टहलेगा। बस उसको बता देना कि गुंडा किधर है, उसका लम्बी-लम्बी मूंछें हैं, दाढ़ी रखता है, काले रंग का पहलवान, गले में लाल रुमाल होगा। वो तुमको जानता है, सीधा तुम्हारे पास पहुँचेगा और फिर जैसा वो कहे, वैसा करना।
ओ.के. ?"
"ओ.के.।"
"डोंट वरी यार, हाजी बशीर को यार बनाया है, तो देखो कैसा मज़ा आता है जिन्दगी का।" रोमेश ने फोन काट दिया। उसकी मोटर साइकिल पार्किंग पर खड़ी थी, एक गुंडा तो स्टेशन पर टहल रहा था, दो पार्किंग में अपनी कार में बैठे थे, चौथा एक रेस्टोरेंट के शेड में खड़ा था। रोमेश ने उस कार का नम्बर भी नोट कर लिया था। वो स्टेशन पर ही टहलता रहा। कुछ देर बाद ही बशीर द्वारा बताये नंबर की कार स्टेशन के बाहर रुकी। उससे काला भुजंग पहलवान सरीखा व्यक्ति बाहर निकला। उसने इधर-उधर देखा, फिर उसकी निगाह रोमेश पर ठहर गई।
वह स्टेशन में दाखिल हुआ, कार आगे बढ़ गई। रोमेश प्लेटफार्म नंबर एक पर आ गया। वह व्यक्ति भी रोमेश के पास आकर इस तरह खड़ा हो गया, जैसे गाड़ी की प्रतीक्षा में हो।
"हुलिया नोट करो।" रोमेश ने कहा, "एक बाहर ही खड़ा है दुबला-पतला, काली पतलून लाल कमीज पहने, देखो प्लेटफार्म पर इधर ही आ रहा है।"
"आगे बोलो।"
"बाकि तीन बाहर है, दो गाड़ी में, गाड़ी नंबर।" रोमेश ने नंबर बताया।
"अब हम जो बोलेगा , वो सुनो।"
"बोलो।"
"इधर से तुम होटल अमर पैलेस पहुँचो, उधर तुम डिस्को क्लब में चले जाना। उसके बाद सब हम पर छोड़ दो, वो होटल अपुन के बशीर भाई का है।"
रोमेश स्टेशन से बाहर निकला और फिर पार्किंग से अपनी मोटरसाइकिल उठा कर चलता बना। अब उसकी मंजिल होटल अमर पैलेस था। वरसोवा के एक चौक पर यह होटल था। रोमेश ने जैसे ही मोटरसाइकिल रोकी, उसे पीछे एक धमाका-सा सुनाई दिया, उसने पलटकर देखा, तो नाके पर दो गाड़ियाँ आपस में टकरा गई थी। उनमें से एक कार पलटा खा गई थी। पलटा खाने वाली वह कार थी, जिसमें उसका पीछा करने वाले सवार थे। उस कार में एक तो कार में फंसा रह गया। तीन बाहर निकले। उधर बशीर के आदमी भी बाहर निकल आए थे। दोनों पार्टियों में मारपीट शुरू हो गई। देखते-देखते वहाँ पुलिस भी आ गई, परन्तु तब तक बशीर के आदमियों ने पीछा करने वालों की अच्छी खासी मरम्मत कर दी थी। जाहिर था कि आगे का मामला पुलिस को निपटा ना था। आश्चर्यजनक रूप से पुलिस ने उन्हीं लोगों को पकड़ा, जो पिटे थे और पीछा कर रहे थे। बशीर के आदमी धूल झाड़ते हुए अपनी कार में सवार हुए और आगे बढ़ गये। लोग दूर से तमाशा जरुर देखते रहे, लेकिन कोई करीब नहीं आया। रोमेश अमर पैलेस में मजे से डिनर कर रहा था।
जारी रहेगा …..![]()