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★ INDEX ★
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♡ Family Introduction ♡ |
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♡ Family Introduction ♡ |
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Uski fat gai hai romesh ki dhamki seजे एन की तो हालत ही खराब हो गई डर के मारे रोमेश ने उसकी पूरी जन्म कुंडली निकाल ली है वह कहा कहा जाता है वही उसको फोन कर देता है जे एन के आदमियों ने रोमेश का पता लगा कर उसको बता दिया है
Dono ko ladane ka plan hi to tha uskaजे एन को रोमेश के बारे में पता चल गया है जे एन रोमेश को खत्म करना चाहता है लेकिन मायादास उसे रोक देता है जे एन अपने आदमी द्वारा रोमेश का पीछा करवाता है लेकिन रोमेश फोन पर जे एन को बता देता है कि उसके चार आदमी उसका पीछा कर रहे हैं रोमेश बशीर के आदमियों से पीछा कर रहे लोगो को पीट कर उस के प्लान का मुंहतोड़ जबाव देता है
विजय ने जे एन को सुरक्षित करने के लिए प्लान तो अच्छा बनाया है लेकिन लगता है उसका प्लान फेल होने वाला है क्योंकि रोमेश को पता चल गया है कि वह सब उसे बाहर भेजने का प्लान है अब देखते हैं क्या वकील साहब दिल्ली जा पाएंगे???# 19
पिटने वाले बटाला के आदमी थे और पीटने वाले बशीर के आदमी थे।
रोमेश ने अपनी चाल से इन दोनों गैंगों को भिड़वा दिया था। बटाला को अभी यह समझ नहीं आ रहा था कि बशीर के आदमी उसके आदमियों से क्यों भिड़ गये ?
"यह इत्तफाक भी हो सकता है।" मायादास ने कहा-
"तुम्हारे लोगों की गाड़ी उनसे टकरा गई। वह इलाका बशीर का था। इसलिये उसका पाला भी भारी था।"
"मेरे लोग बोलते हैं, नाके पर आते ही खुद उन लोगों ने टक्कर मारी थी।" बटाला बोला,
"फोन पे भी जब तक हम छुड़ाते, उनको पीटा पुलिस वालों ने।"
"काहे को पीटा, तुम किस मर्ज की दवा है ? साले का होटल बंद काहे नहीं करवा दिया? अपुन को अब बशीर से पिटना होगा क्या ? इस साले बशीर को ही खल्लास कर देने का।"
"अरे यार तुम तो हर वक्त खल्लास करने की सोचते हो। अभी नहीं करने का ना बटाला बाबा।"
"बशीर से बोलो, हमसे माफ़ी मांगे। नहीं तो हम गैंगवार छेड़ देगा।"
"हम बशीर से बात करेंगे।"
"अबी करो, अपुन के सामने।" बटाला अड़ गया,
"उधर घाट कोपर में साला हमारा थू-थू होता, अपुन का आदमी पिटेगा तो पूरी मुम्बई को खल्लास कर देगा अपुन।"
"अजीब अहमक है।" मायादास बड़बड़ाया। बटाला ने पास रखा फोन उठाया और मायादास के पास आ गया।
उसने फोन स्टूल पर रखकर बशीर का नंबर डायल किया। रिंग जाते ही उसने मायादास की तरफ सिर किया था।
"तुम्हारा आदमी पुलिस स्टेशन से तो छुड़वा ही दिया ना।" मायादास ने कहा। बटाला ने कोई उत्तर नहीं दिया। फिर फोन पर बोला,
"लाइन दो हाजी बशीर को।" कुछ रुककर बोला, "जे.एन. साहब के पी .ए. मायादास बोलते हैं इधर से।" फिर उसने फोन का रिसीवर मायादास को थमा दिया।
"बात करो इससे। बोलो इधर हमसे माफ़ी मांगेगा, नहीं तो आज वो मरेगा।" मायादास ने सिर हिलाया और बटाला को चुप रहने का इशारा किया।
"हाँ, हम मायादास।" मायादास ने कहा, "बटाला के लोगों से तुम्हारे लोगों का क्या लफड़ा हुआ भई?" मायादास ने पूछा।
"कुछ खास नहीं।" फोन पर बशीर ने कहा,
"इस किस्म के झगड़े तो इन लोगों में होते ही रहते हैं, सब दारु पिये हुए थे। मेरे को तो बाद में पता चला कि वह बटाला के लोग है, सॉरी भाई।"
"बटाला बहुत गुस्से में है।"
"क्या इधर ही बैठा है?"
"हाँ, इधर ही है।"
"उसको फोन दो, हम खुद उससे माफ़ी मांग लेते हैं।" मायादास ने फोन बटाला को दिया।
"अ…अपुन बटाला दादा बोलता, काहे को मारा तेरे लोगों ने ?"
"दारू पियेला वो लोग।"
"अगर हम दारु पी के तुम्हारा होटल पर आ गया तो ?"
"देखो बटाला, तुम्हारी हमसे तो कोई दुश्मनी है नहीं, यह जो हुआ उसके लिए तो हम माफ़ी मांग लेते है। मगर आगे तुमको भी एक बात का ख्याल रखना होगा।"
"किस बात का ख्याल ?"
"एडवोकेट रोमेश मेरा दोस्त है, उसके पीछे तेरे लोग क्यों पड़े हैं ?"
बटाला सुनकर ही चुप हो गया, उसने मायादास की तरफ देखा।
"जवाब नहीं मिला मुझे।"
"इस बारे में मायादास जी से बात करो। मगर याद रहे, ऐसा गलती फिर नहीं होने को मांगता।
तुम्हारे दोस्त का पंगा हमसे नहीं है। उसका पंगा जे.एन. साहब से है। बात करो मायादास जी से, वह बोलेगा तो अपुन वो काम नहीं करेगा।
" रिसीवर माया दास को दे दिया बटाला ने। "कनेक्शन रोमेश से अटैच है।" बटाला ने कहा।
"हाँ।" माया दास ने फोन पर कहा, "पूरा मामला बताओ बशीर मियां।"
"रोमेश मेरा दोस्त है, बटाला के आदमी उसकी चौकसी क्यों कर रहे हैं ?"
"अगर बात रोमेश की है बशीर, तो यूँ समझो कि तुम बटाला से नहीं हमसे पंगा ले रहे हो। लड़ना चाहते हो हमसे? यह मत सोच लेना कि जे.एन. चीफ मिनिस्टर नहीं है, सीट पर न होते हुए भी वे चीफ मिनिस्टर ही हैं और तीन चार महीने बाद फिर इसी सीट पर होंगे, हम तुम्हें बर्बाद कर देंगे।"
"मैं समझा यह मामला बटाला तक ही है।"
"नहीं, बटाला को हमने लगाया है काम पर।"
"मगर मैं भी तो उसकी हिफाजत का वादा कर चुका हूँ, फिर कैसे होगा?" बशीर बिना किसी दबाव के बोला।
"गैंगवार चाहते हो क्या?"
"मैं उसकी हिफाजत की बात कर रहा हूँ, गैंगवार की नहीं।
सेंट्रल मिनिस्टर पोद्दार से बात करा दूँ आपकी, अगर वो कहेंगे गैंगवार होनी है तो…!"
पोद्दार का नाम सुनकर माया दास कुछ नरम पड़ गया ।
"देखो हम तुम्हें एक गारंटी तो दे सकते हैं, रोमेश की जान को किसी तरह का खतरा तब तक नहीं है, जब तक वह खुद कोई गलत कदम नहीं उठाता। वह तुम्हारा दोस्त है तो उसको बोलो, जे.एन. साहब को फोन पर धमकाना बंद करे और अपने काम-से-काम रखे, वही उसकी हिफाजत की गारंटी है।"
"जे.एन. सा हब को क्या कहता है वह?"
"जान से मारने की धमकी देता है।"
"क्या बोलते हो माया दास जी ? वह तो वकील है, किसी बदमाश तक का मुकदमा तो लड़ता नहीं और आप कह रहे हैं।"
"हम बिलकुल सही बोल रहे हैं। उससे बोलो जे.एन. साहब को फोन न किया करे, बस उसे कुछ नहीं होने का।"
"ऐसा है तो फिर हम बोलेगा।"
"इसी शर्त पर हमारा तुम्हारा कॉम्प्रोमाइज हो सकता है, वरना गैंगवार की तैयारी करो।" इतना कहकर माया दास ने फोन काट दिया।
रोमेश के विरुद्ध अब जे.एन. की तरफ से नामजद रिपोर्ट दर्ज हो चुकी थी। उसी समय नौकर ने इंस्पेक्टर के आने की खबर दी।
"बुला लाओ अंदर।" मायादास ने कहा और फिर बटाला से बोला,
"बशीर के अगले फोन का इन्तजार करना होगा, उसके बाद सोचेंगे कि क्या करना है। अब मामला सीधा हमसे आ जुड़ा है, तुम भी गैंगवार की तैयारी शुरू कर दो।"
तभी विजय अंदर आया। बटाला को देखकर वह ठिठका।
"आओ इंस्पेक्टर विजय।" बटाला ने दांत चमकाते हुए कहा। अब मायादास चौंका और फिर स्थिति भांपकर बोला:-
"बटाला अब तुम जाओ।"
"बड़ा तीस-मार-खां दरोगा है यह मायादास जी ! एक प्राइवेट बिल्डिंग में अपुन की सारी रात ठुकाई करता रहा, अपुन को इससे भी हिसाब चुकाना है।"
"ऐ !" विजय ने अपना रूल उसके सीने पर रखते हुए ठकठकाया,
"तुमको अपनी चौड़ी छाती पर नाज है न, कल मैं तेरे बार में प्राइवेट कपड़े पहनके आऊँगा और अगर तू वहाँ भी हमसे पिट गया तो घाटकोपर ही नहीं, मुम्बई छोड़ देना। नहीं तो जीना हराम कर दूँगा तेरा और तू यह मत समझना कि तू जमानत करवाकर बच गया, तुझे फांसी तक ले जाऊँगा।"
"अरे यह क्या हो रहा है बटाला, निकलो यहाँ से।"
"कल रात अपने बार में मिलना।" बटाला का कंधा ठकठका कर विजय ने फिर से याद दिलाया।
"मिलेगा अपुन, जरूर मिलेगा।" बटाला गुर्राता हुआ बाहर निकल गया।
"यह बटाला ऐसे ही इधर आ गया था, तुम तो जानते ही हो इंस्पेक्टर चुनाव में ऐसे लोगों की जरूरत पड़ती है, सबको फिट रखना पड़ता है। नेता बनने के लिए क्या नहीं करना पड़ता।"
"लीडर की परिभाषा समझाने की जरूरत नहीं। गांधी भी लीडर थे, सुभाष भी लीडर थे, इन लोगों से पूरी ब्रिटिश हुकूमत घबरा गई थी और उन्हें यह देश छोड़ना पड़ा। लेकिन मुझे यह तो बता दो कि इनके पास कितने गुंडे थे, कितने कातिल थे? खैर इस बात से कुछ हासिल नहीं होना, बटाला जैसे लोगों की मेरी निगाह में कोई अहमियत नहीं हुआ करती, मुझे सिर्फ अपनी ड्यूटी से मतलब है। आपने एफ़.आई.आर. में रोमेश सक्सेना को नामजद किया है?"
"हाँ, वही फोन पर धमकी देता था।"
"कोई सबूत है इसका?" विजय ने पूछा।
"हमारे लोगों ने उसे फोन करते देखा है और फिर हमारे पास उसकी आवाज भी टेप है। इसके अलावा उसने खुद कहा था कि वह रोमेश सक्सेना है।"
"टेप की आवा ज सबूत नहीं होती, कोई भी किसी की आवाज बना सकता है। फिल्मों में डबिंग आर्टिस्टों का कमाल तो आपने देखा सुना होगा।"
"यहाँ कोई फ़िल्म नहीं बन रही इंस्पेक्टर। यहाँ हमने किसी को नामजद किया है। इन्क्वारी तुम्हारे पास है, उसको गिरफ्तार करना तुम्हारी ड्यूटी है और उसे दस जनवरी तक जमानत पर न छूटने देना भी तुम्हारा काम है।"
"शायद आप यह भूल गये हैं कि वह एक चोटी का वकील है। वह ऐसा शख्स है, जो आज तक कोई मुकदमा नहीं हारा। उसे दुनिया की कोई पुलिस केवल शक के आधार पर अंदर नहीं रोक सकती। हम उसे अरेस्ट तो कर सकते हैं, मगर जमानत पर हमारा वश नहीं चलेगा और अरेस्ट करके भी मैं अपनी नौकरी खतरे में नहीं डाल सकता।"
"या तुम अपने दोस्त को गिरफ्तार नहीं करना चाहते ?"
"वर्दी पहनने के बाद मेरा कोई दोस्त नहीं होता। और यकीन मानिए, पुलिस कमिश्नर भी अगर खुद चाहें तो उसे गिरफ्तार नहीं कर सकते। अगर यह साबित हो जाये कि उसने आपको फोन पर धमकी दी, तो भी नहीं।"
"आई.सी.! लेकिन आपने हमारे बचाव के लिए क्या व्यवस्था की है? केवल कमांडो या कुछ और भी ? हम यह चाहते हैं कि रोमेश सक्सेना उस दिन जे.एन. तक किसी कीमत पर न पहुंचने पाये, उसका क्या प्रबंध है ?"
"है, मैंने सोच लिया है। अगर वाकई इस शख्स से जे.एन. साहब को खतरा है, जबकि मैं समझता हूँ, उससे किसी को कोई खतरा हो ही नहीं सकता। वह खुद कानून का बड़ा आदर करता है।"
"उसके बावजूद भी हम चुप तो नहीं बैठेंगे।"
"हाँ, वही बता रहा हूँ। मैं उसे नौ तारीख को रात राजधानी से दिल्ली रवाना कर दूँगा। मेरे पास तगड़ा आधार है।"
"क्या? "
"सीमा भाभी इन दिनों दिल्ली में रह रही हैं। दस जनवरी को रोमेश की शादी की सालगिरह है। देखिये, वह इस वक्त बहुत टूटा हुआ है। लेकिन वह अपनी बीवी को बहुत प्यार करता है। मैं वह अंगूठी उसे दूँगा, जो वह अपनी पत्नी को शादी की सालगिरह पर देना चाहता है। मैं कहूँगा कि मैं सीमा भाभी से बात कर चुका हूँ और अंगूठी का उपहार पाते ही उनका गुस्सा ठन्डा हो जायेगा, रोमेश सब कुछ भूलकर दिल्ली चला जायेगा।"
"और दिल्ली में उसकी पत्नी से मुलाकात न हो पायी तो?"
"यह बाद की बात है, बहरहाल वह दस तारीख को दिल्ली पहुँचेगा। मैंने उसे जो जगह बताई है, वह एक क्लब है, जहाँ सीमा भाभी रात को दस बजे के आसपास पहुंचती हैं। रोमेश उसी क्लब में अपनी पत्नी का इन्तजार करेगा और मैं समझता हूँ, उसी समय उनका झगड़ा भी खत्म हो लेगा। वहाँ रात को जो भी हो, वह फिलहाल विषय नहीं है। विषय ये है कि रोमेश दस तारीख की रात यहाँ मुम्बई में नहीं होगा। जे.एन. साहब से कह दें कि वह चाहें तो स्वयं मुम्बई सेन्ट्रल पर नौ तारीख को पहुंचकर राजधानी से उसे जाते देख सकते हैं।"
"हम इस प्लान से सन्तुष्ट हैं इंस्पेक्टर !"
"वैसे हमारे चार कमाण्डो तो आपके साथ हैं ही।"
"ओ. के.! कुछ लेंगे ?"
"नो थैंक्यू।" वहाँ से विजय सीधा रोमेश के फ्लैट पर पहुँचा। रोमेश उस समय अपने फ्लैट पर ही था।
"मैंने तुम्हें कहा था कि ग्यारह जनवरी से पहले इधर मत आना। अगर तुम जे.एन. की नामजद रिपोर्ट पर कार्यवाही करने आये हो, तो मैं तुम्हें बता दूँ कि इस सिलसिले में मैं अग्रिम जमानत करवा चुका हूँ। अगर तुम पेपर देखना चाहते हो, तो देख सकते हो।"
"नहीं, मैं किसी सरकारी काम से नहीं आया। मैं कुछ देने आया हूँ।"
"क्या?"
"तुम्हें ध्यान होगा रोमेश, तुमने मुझे तीस हजार रुपये दिये थे, बदले में मैंने साठ हजार देने का वादा किया था।”
"मैं जानता हूँ, तुम ऐसा कोई धन्धा नहीं कर सकते, जहाँ रुपया एक महीने में दुगना हो जाता हो। तुम्हें जरूरत थी, मैंने दे दिया, क्या रुपया लौटाने आये हो?"
"नहीं, यह गिफ्ट देने आया हूँ।" विजय ने अंगूठी निकाली और रोमेश के हाथ में रख दी, रोमेश ने पैक खोलकर देखा।
"ओह, तो यह बात है। लेकिन विजय हम बहुत लेट हो चुके हैं, अब कोई फायदा नहीं।"
"कुछ लेट नहीं हुए, भाभी दिल्ली में हैं। मैंने पता निकाल लिया है। 10 जनवरी का दिन तुम्हारी जिन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। भाभी को पछतावा तो है पर वह आत्मसम्मान की वजह से लौट नहीं सकती। तुम जाओ रोमेश ! वह चित्रा क्लब में जाती हैं। वहाँ जब तुम्हें दस जनवरी की रात देखेगी, तो सारे गिले-शिकवे दूर हो जायेंगे। यह अंगूठी देना भाभी को और फिर सब ठीक हो जायेगा।”
"ऐसा तो नहीं हैं विजय, तुमने 10 जनवरी को मुझे बाहर भेजने का प्लान बना लिया हो?"
"नहीं, ऐसा मेरा कोई प्लान नहीं। मैं इसकी जरूरत भी नहीं समझता, क्यों कि मैं जानता हूँ कि तुम किसी का कत्ल नहीं कर सकते। मैं तो तुम्हारी जिन्दगी में एक बार फिर वही खुशियां लौटाना चाहता हूँ और ये रहा तुम्हारा रिजर्वेशन टिकट।" विजय ने राजधानी का टिकट रोमेश को पकड़ा दिया।
"नौ तारीख का है, दस जनवरी को तुम अपनी शादी की सालगिरह भाभी के साथ मनाओगे। विश यू गुडलक ! मैं तुम्हें नौ को मुम्बई सेन्ट्रल पर मिलूँगा।"
"अगर सचमुच ऐसा ही है, तो मैं जरूर जाऊंगा।" विजय ने हाथ मिलाया और बाहर आ गया।
विजय के दिमाग का बोझ अब काफी हल्का हो गया था। हालांकि उसने अपनी तरफ से जे.एन. को सुरक्षित कर दिया था, परन्तु वह खुद भी जे.एन. को कटघरे में खड़ा करने के लिए लालायित था। चाहकर भी वह सावंत मर्डर केस में अभी तक जे. एन. का वारंट हासिल नहीं कर पाया था। फिर उसे बटाला का ख्याल आया। वह बटाला का गुरुर तोड़ना चाहता था।
जे.एन. भले ही उसकी पकड़ से दूर था, परन्तु बटाला को उसकी बद्तमीजी का सबक वह पढ़ाना चाहता था। उसकी पुलिसिया जिन्दगी इन दिनों अजीब कशमकश से गुजर रही थी, एक तरफ तो वह जे.एन. की हिफाजत कर रहा था और दूसरी तरफ जे.एन. को सावंत मर्डर केस में बांधना चाहता था। सावंत के पक्ष में जो सियासी लोग पहले उसका साथ दे रहे थे, अचानक सब शांत हो गये थे।
जारी रहेगा…..![]()
Awesome update# 20
रोमेश ने सात जनवरी को पुन: जे.एन. को फोन किया।
"जनार्दन नागा रेड्डी, तुम्हें पता लग ही चुका होगा कि मैं दस तारीख को मुम्बई से बाहर रहूँगा। लेकिन तुम्हारे लिए यह कोई खुश होने की बात नहीं है। मैं चाहे दूर रहूँ या करीब, मौत तो तुम्हारी आनी ही है। दो दिन और काट लो, फिर सब खत्म हो जायेगा।"
"तेरे को मैं दस तारीख के बाद पागलखाने भिजवाऊंगा।" जे.एन. बोला,
"इतनी बकवास करने पर भी तू जिन्दा है, यह शुक्र कर।"
"तू सावंत का हत्यारा है।"
"तू सावंत का मामा लगता है या कोई रिश्ते नाते वाला ?"
"तूने और भी न जाने कितने लोगों को मरवाया होगा ?"
"तू बस अपनी खैर मना, अभी तो तू मुझे चेतावनी देता फिर रहा है, मैंने अगर आँख भी घुमा दी न तेरी तरफ, तो तू दुनिया में नहीं रहेगा। बस बहुत हो गया, अब मेरे को फोन मत करना, वरना मेरा पारा सिर से गुजर जायेगा।" जे.एन. ने फोन काट दिया।
"साला मुझे मारेगा, पागल हो गया है।" जे. एन. ने अपने चारों सरकारी कमाण्डो को बुलाया,
"यहाँ तुम चारों का क्या काम है?"
"दस तारीख की रात तक आपकी हिफाजत करना।" कमाण्डो में से एक बोला।
"हाँ , हिफाजत करना। मगर यह मत समझना कि सिर्फ तुम चार ही मेरी हिफाजत पर हो। तुम्हारे पीछे मेरे आदमी भी रहेंगे और अगर मुझे कुछ हो गया, तो मेरे आदमी तुम चारों को भूनकर रख देंगे, समझे कि नहीं ?"
"अपनी जान बचानी है, तो मैं सलामत रहूं। हमेशा साये की तरह मेरे साथ लगे रहना।"
"ओ.के. सर ! हमारे रहते परिन्दा भी आपको पर नहीं मार सकता।"
"हूँ।" जे.एन. आगे बढ़ गया और फिर सीधा अपने बैडरूम में चला गया। आठ तारीख को वह एकदम तरो ताजा था। चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। उसके बैडरूम के बाहर दो कमाण्डो चौकसी करते रहे। सुबह सोने वाले पहरेदार उठ गये और रात वाले सो गये।
यूँ तो जे.एन. के बंगले में जबरदस्त सिक्योरिटी थी। उसके प्राइवेट गार्ड्स भी थे, बंगले में किसी का घुसना एकदम असम्भव था। फोन रोमेश ने आठ जनवरी को भी किया, लेकिन जे.एन. अब उसके फोनों को ज्यादा ध्यान नहीं देता था।
नौ तारीख को जरुर उसके दिमाग में हलचल थी, कहीं सचमुच उस वकील ने कोई प्लान तो नहीं बना रखा है।
"वह अपने हाथों से मेरा कत्ल करेगा। क्या यह सम्भव है?"अपने आपसे जे.एन. ने सवाल किया,
"वह भी तारीख बता कर, नामुमकिन। इतना बड़ा बेवकूफ तो नहीं था वो।"
"मगर वह तो नौ को ही दिल्ली जाने वाला है।" जे.एन. के मन ने उत्तर दिया। जनार्दन नागा रेड्डी ने फैसला किया कि वह रोमेश को मुम्बई से बाहर जाते हुए जरूर देखेगा।
अतः वह राजधानी के समय मुम्बई सेन्ट्रल पहुंच गया। राजधानी एक्सप्रेस कुल चार स्टेशनों पर रुकती थी। अठारह घंटे बाद वह दिल्ली पहुंच जाती थी। ग्यारह-बारह बजे दिल्ली पहुंचेगा, फिर रात को चित्रा क्लब में अपनी बीवी से मिलेगा। नामुमकिन! फिर वह मुम्बई कैसे पहुंच सकता था? और अगर वह मुम्बई में होगा भी, तो क्या बिगाड़ लेगा? जे.एन. खुद रिवॉल्वर रखता था और अच्छा निशानेबाज भी था।
रेलवे स्टेशन पर वैशाली और विजय, रोमेश को विदा करने आये थे। राजधानी प्लेटफार्म पर आ गई थी और यात्री चढ़ रहे थे। रोमेश भी अपनी सीट पर जा बैठा। रस्मी बातें होती रही।
"कुछ भी हो, मैं तुम दोनों की शादी में जरूर शामिल होऊंगा।" रोमेश काफी खुश था। दूर खड़ा जे.एन. यह सब देख रहा था । जे.एन. के पास ही माया दास भी खड़ा था और उनके गार्ड्स भी मौजूद थे। रोमेश की दृष्टि प्लेटफार्म पर दूर तक दौड़ती चली गई। फिर उसकी निगाह जे.एन. पर ठहर गई।
"अपना ख्याल रखना" ट्रेन का ग्रीन सिग्नल होते ही विजय ने कहा।
"हाँ , तुम भी मेरी बातों का ध्यान रखना। हमेशा एक ईमानदार होनहार पुलिस ऑफिसर की तरह काम करना। अगर कभी मुझे कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार करना पड़े, तो संकोच मत करना। कर्तव्य के आगे रिश्ते नातों का कोई महत्व नहीं रहता।" रोमेश ने उस पर एक अजीब-सी मुस्कराहट डाली।
गाड़ी चल पड़ी। रोमेश ने हाथ हिलाया, गाड़ी सरकती हुई आहिस्ता-आहिस्ता उस तरफ बढ़ी, जिधर जे.एन. खड़ा था। रोमेश ने हाथ हिला कर उसे भी बाय किया और फिर ए.सी . डोर में दाखिल हो गया। गाड़ी धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ती जा रही थी। विजय ने गहरी सांस ली और फिर सीधा जे.एन. के पास पहुँचा।
"सब ठीक है ?" विजय ने कहा।
"गुड !" जे.एन. की बजाय मायादास ने उत्तर दिया और फिर वह लोग मुड़ गये। राजधानी ने तब तक पूरी रफ्तार पकड़ ली थी।
“दस जनवरी, शनिवार का दिन।“
यह वह दिन था, जो बहुत से लोगों के लिए बड़ा महत्वपूर्ण था। सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिन था जनार्दन नागा रेड्डी के लिए। जो सवेरे-सवेरे मन्दिर इसलिये गया था, ताकि उसके ऊपर जो शनि की ग्रह दशा चढ़ी हुई है, वह शांत रहे। शनि ने उसे अब तक कई झटके दे दिये थे, उसे मुख्यमंत्री पद से हटवाया था, सावंत की हत्या करवाई थी और अब एक शख्स ने उसे शनिवार को ही मार डालने का ऐलान कर दिया था।
जनार्दन नागा रेड्डी वैसे तो हर कार्य अपने तांत्रिक गुरु से पूछकर ही किया करता था। तांत्रिक गुरु स्वामी करुणानन्द ने ही उस पर शनि की दशा बताई थी और ग्रह को शांत करने के लिए उपाय भी बताए थे।
जे.एन. इन उपायों को निरंतर करता रहा था। इसके अतिरिक्त स्वयं तांत्रिक भी ग्रह शांत करने के लिए अनुष्ठान कर रहा था। मन्दिर से लौटते हुये भी जे.एन. के दिलो-दिमाग से यह बात नहीं निकल पा रही थी कि आज शनिवार का दिन है। घर पहुंच कर उसने माया-दास को बुलाया। मायादास तुरन्त हाजिर हो गया।
"मायादास जी, जरा देखना तो हमें आज किस-किससे मिलना है?" जे.एन. ने पूछा। माया-दास ने मिलने वालों की सूची बना दी।
"ऐसा करिये, सारी मुलाकातें कैंसिल कर दीजिये।" जे.एन. बोला।
"क्यों श्री मान जी? " मायादास ने हैरानी से पूछा।
"भई आपको कम से कम यह तो देख लेना चाहिये था कि आज शनिवार है।"
"तो शनिवार होने से क्या फर्क पड़ता है ?"
"क्या आपको मालूम नहीं कि हम पर शनि की दशा सवार है?"
"लेकि….न उससे इन मुलाकातों पर क्या असर पड़ता है, यह सारे लोग तो आपके पूर्व परिचित हैं। साथ में आपको फायदा भी पहुंचाने वाले हैं।"
"कुछ भी हो, हम आज किसी से नहीं मिलेंगे।"
"जैसी आपकी मर्जी।" मायादास ने कहा,
"वैसे आपकी तबियत तो ठीक है?"
"बैठो, यहाँ हमारे पास बैठो।" जे.एन. बोला। मायादास पास बैठ गया।
"देखो मायादास जी, तुम्हें याद है कि पिछले कई शनिवारों से हमें तगड़े झटके लगे हैं। जिस दिन सावन्त का चार्ज हमारे आदमी पर लगा, वह भी शनिवार का दिन था। जिस दिन मैंने सी .एम. की सीट छोड़ी, वह भी शनिवार का दिन था। और इस रोमेश के बच्चे ने भी मुझे मारने का दिन शनिवार ही चुना।"
"ओह, तो यह टेंशन है आपके दिमाग में। लेकिन मुझे यकीन है, यह टेंशन कल तक दूर हो जायेगी। अब आप चाहें तो दिन भर आराम कर सकते हैं। मैं आप तक किसी का टेलीफोन भी नहीं पहुंचने दूँगा। कोई खास फोन हुआ, तो बात अलग है। वरना मैं कोड वाले फोन भी नहीं पहुंचने दूँगा।"
"हाँ, ठीक है। मुझे आराम करना चाहिये।" जे.एन. अपने बैडरूम में चला गया, लेकिन आराम कहाँ ? बन्द कमरे में तो उसकी बैचेनी और बढ़ ही रही थी। बार-बार रोमेश की धमकी का ख्याल आता।
जारी रहेगा.......![]()
Nice update....# 26
मैडम माया सिर झुकाये धीरे-धीरे अदालत में दाखिल हुई। वह अब खुली किताब थीं, उसके बारे में पहले ही समाचार पत्रों में खूब छप चुका था और लोग उसे देखना भी चाहते थे। आखिर वह कौन-सी सुन्दरी है, जिसके फ्लैट पर एक वी.आई.पी. का मर्डर हुआ। जे.एन. के इस लेडी से क्या ताल्लुक थे ?
माया देवी सफेद साड़ी पहने हुये थी। इस साड़ी में लिपटा उसका चांदी-सा बदन झिलमिला रहा था। लबों पर ताजगी थी, चेहरा अब भी सुर्ख गुलाब की तरह खिला हुआ था। आँखों में मदहोशी थी, अगर वह किसी की तरफ देख भी लेती, तो बिजली-सी कौंध जाती थी। माया कटघरे में आ खड़ी हुई।
"आपका नाम ?" राजदान ने सवाल किया।
"माया देवी।"
"गीता पर हाथ रखकर कसम खाइये ।"
माया देवी के सामने गीता रख दी गयी। हाथ रखने से पूर्व उसने सामने के कटघरे में खड़े रोमेश को देखा। दोनों की आंखें चार हुई। कभी वह नजरों से खुद बिजली गिराती थी, अभी रोमेश की आंखों से बिजली उतरकर खुद उसी पर गिर रही थी। उसने शपथ की रस्म शुरू कर दी।
"हाँ, तो मैडम माया देवी ! आप विवाहिता हैं ?" राजदान ने पूछा।
"विवाहिता के बाद विधवा भी।" माया देवी बोली,
"उचित होगा कि मेरी प्राइवेट लाइफ के सम्बन्ध में आप कोई प्रश्न न करें।"
"नहीं, हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है। हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि जिस रात जे.एन. की हत्या की गयी, वारदात की उस रात यानि दस जनवरी की रात क्या हुआ ?"
"वारदात की रात से पहले एडवोकेट रोमेश सक्सेना मेरे फ्लैट पर मुझसे मिलने आये, उस मुलाकात से पहले मैंने यह नाम सुना था कि यह शख्स मर्डर मिस्ट्री सुलझाने वाला ऐसा एडवोकेट है, जैसा वर्णन किताबों में पाया जाता है।
मैंने इनके सॉल्व किये कई केस अखबारों में पढ़े थे। उस दिन जब यह मुझसे मिलने आये, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, धड़कते दिल से मैंने इनका स्वागत किया। इस पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे स्तब्ध कर दिया।"
माया देवी कुछ पल के लिए रुकी।
"इन्होंने मुझसे कहा कि यह मुझे एक केस का चश्मदीद गवाह बनाने आये हैं। मैं हैरान हो गई कि जब कोई वारदात मेरे सामने हुई ही नहीं, तो मैं चश्मदीद गवाह कैसे बन सकती हूँ? मैंने यह सवाल किया, तो रोमेश सक्सेना ने कहा कि वारदात हुई नहीं होने वाली है।
“एक कत्ल मेरे सामने होगा और मैं उस मर्डर की आई विटनेस बनूंगी। मुझे उस वक्त वह किसी जासूसी फिल्म का या किसी कहानी का प्लाट महसूस हुआ। उस वक्त क्या, कत्ल होने तक मुझे यकीन ही नहीं आता था कि सचमुच मेरे सामने कत्ल होगा और मैं यहाँ कटघरे में आई विटनेस की हैसियत से खड़ी होऊँगी।"
"क्या हुआ उस रात ?"
"उस रात !"
माया देवी की निगाह एक बार फिर रोमेश पर ठहर गयी,
"किसी अजनबी ने मुझे फोन किया। करीब साढ़े नौ बजे फोन आया कि मेरे अंकल का एक्सीडेंट हो गया और वह जसलोक में एडमिट कर दिये गये हैं। मैं उसी वक्त हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गयी। वहाँ पहुँचकर पता लगा कि फोन फर्जी था।
“वह फोन किसने किया था मिस्टर ?" यह प्रश्न माया ने रोमेश से किया। रोमेश चुप रहा।
"मिस्टर रोमेश, मैं तुमसे पूछ रही हूँ, किसने किया वह फोन ?"
"आपको मुझसे पूछताछ करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"फिर भी मुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं कि फोन मैंने आपके फ्लैट के करीबी बूथ से किया था और आपको जाते हुए भी देखा।"
"सुन लिया आपने मीलार्ड।" राजदान बोला,
"कितना जबरदस्त प्लान था इस शख्स का।"
"आगे क्या हुआ ?" न्याया धीश ने पूछा।
"जब मैं लौटकर आई, तो मेरा फ्लैट हत्यारे के कब्जे में आ चुका था, नौकरानी को बांधकर स्टोर में डाल दिया गया और बैडरूम में मुझ पर अटैक हुआ।
वह शख्स मुझे दबोचकर बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया और मुझे चाकू की नोंक पर विवश किया कि चुपचाप खड़ी रहूँ।
“इसने मेरे हाथ मोड़कर बांध दिये थे। कुछ देर बाद ही जे.एन. आये। इसने बाथरूम का शावर चला दिया, ताकि जे.एन. यह समझे कि मैं नहा रही हूँ।"
वह कुछ रुकी।
"फिर यह शख्स मुझे बाथरूम में छोड़कर बैडरूम में पहुँचा और पीछे से मैं भी डरती-डरती बाथरूम से निकली। मेरे मुंह पर इसने टेप चिपका दिया था, मैं कुछ बोल भी नहीं सकी, यह व्यक्ति आगे बढ़ा और इसने जे.एन. को चाकू घोंपकर मार डाला। मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगी कि वह यह जानने की कौशिश न करें कि जे.एन. मेरे पास क्यों आये थे।"
"योर ऑनर !"
राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी,
"मेरे ख्याल से अदालत को यह जानने की आवश्यकता भी नहीं कि जे.एन. वहाँ क्यों आये थे, क्यों कि मर्डर का प्राइवेट लाइफ से कोई ताल्लुक नहीं। माया देवी के बयानों से साफ जाहिर होता है कि क़त्ल कि प्लानिंग बड़ी जबरदस्त थी और कातिल पहले से जानता था कि जे.एन. ने वहाँ पहुंचना ही है।"
"अब सब आइने की तरह साफ है। रोमेश सक्सेना ने ऐसा जघन्य अपराध किया है, जैसा इससे पहले किसी ने कभी नहीं किया, अदालत से मेरा अनुरोध है कि रोमेश सक्सेना को बहुत कड़ी से कड़ी सजा दी जाये। दैट्स आल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना क्या आप माया देवी से कोई प्रश्न करना चाहेंगे?" न्यायाधीश ने पूछा।
"नहीं योर ऑनर ! मैं किसी की प्राइवेट लाइफ के बारे में कोई सवाल नहीं करना चाहता, मेरा एक सवाल सैंकड़ों सवाल खड़े कर देगा। मुझे माया देवी से सहानुभूति है, इसलिये कोई प्रश्न नहीं।"
माया देवी ने गहरी सांस ली। वह सोच रही थी कि रोमेश उसकी प्राइवेट लाइफ के सवालों को उछालेगा, पूछेगा, क्या जे.एन. हर शनिवार उसके फ्लैट पर बिताता था? जे.एन. से उसके क्या सम्बन्ध थे, वह इस किस्म के सवालों से डरती थी। लेकिन अब कोई डर न था। रोमेश ने उसे शरारत भरी मुस्कराहट से विदा किया।
"अब मैं अपना आखिरी गवाह पेश करता हूँ, इंस्पेक्टर विजय।"
इंस्पेक्टर विजय अदालत में उपस्थित था और अगली कतार में बैठा था। वह उठा और गवाह बॉक्स में चला गया। अदालत की रस्में पूरी करने के बाद राजदान ने अपना काम शुरू कर दिया।
"इस शहर की कानूनी किताब में पिछले कुछ अरसे से दो व्यक्ति चर्चित रहे। नम्बर एक मुल्जिम रोमेश सक्सेना, जो ईमानदारी और सही न्याय दिलाने की प्रतिमूर्ति कहे जाते थे। यह बात सारे कानूनी हल्के में प्रसिद्ध थी कि रोमेश सक्सेना किसी क्रिमिनल का मुकदमा कभी नहीं लड़ते।
जिस मुकदमे की पैरवी करते हैं, पहले खुद उसकी छानबीन करके उसकी सच्चाई का पता लगाते हैं, रोमेश सक्सेना ने कभी कोई मुकदमा हारा नहीं।" राजदान, रोमेश की तरफ से पलटा। उसने विजय की तरफ देखा।
"यानि दो अपराजित हस्तियां आमने सामने और बीच में, मैं हूँ। जो हमेशा रोमेश से हारता रहा। रोमेश, इंस्पेक्टर विजय का मित्र भी है, किन्तु कर्तव्य के साथ यह रिश्ते ना तों को कोई महत्व नहीं देते। यह बेमिसाल पुलिस ऑफिसर है योर ऑनर ! आज भी यह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे। क्यों कि जीत हमेशा सत्य की होती है।"
इस बार रोमेश ने टोका !
"आप गलत कह रहे हैं राजदान साहब; कि जीत सत्य की होती है। अदालतों में नब्बे प्रतिशत जीत झूठ की होती है। यहाँ पर हार जीत का फैसला झूठ सच पर नहीं सबूतों और वकीलों के दांव पेंचों पर निर्भर होता है।"
"देखना यह है कि आप कौन-सा दांव इस्तेमाल करते हैं मिस्टर सक्सेना।"
"मैं न तो दांव इस्तेमाल कर रहा हूँ और न कोई इरादा है। अदालत को भाषण मत दीजिए, अपने गवाह के बयान जारी करवाइये।"
"ऑर्डर…ऑर्डर !"
न्यायाधीश ने दोनों की नोंक झोंक पर आपत्ति प्रकट की। राजदान ने कार्यवा ही शुरू की।
"इंस्पेक्टर विजय अब आप अपना बयान दे सकते हैं।" विजय ने बयान शुरू किए।
"मेरा दुर्भाग्य यह है कि जिसकी हिफाजत के लिए मुझे तैनात किया गया था, उसे नहीं बचा सका और उसके कातिल के रूप में एक ऐसा शख्स मेरे सामने खड़ा है, जो कानून का पाठ पढ़ने वाले होनहार नवोदित हाथों का आदर्श था और जिसका मैं भी उतना ही सम्मान करता हूँ, यहाँ तक कि मैं मुलजिम की मनोभावना और घरेलू स्थिति से भी परिचित था और मित्र होने के नाते इनसे कभी-कभी मदद भी ले लिया करता था।"
"मैं इस मुलजिम को कानून का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति मानता था। परन्तु मुलजिम ने मेरा सारा भ्रम ही तोड़ डाला, इस मुकदमे के हर पहलू को मुझसे अधिक करीब से किसी ने नहीं देखा। यहाँ मैं मकतूल की समाज सेवाओं का उल्लेख नहीं करूँगा, मैं यह बताना चाहता हूँ कि कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, जे.एन. कोई वान्टेड इनामी डाकू नहीं था, जो रोमेश सक्सेना उसका क़त्ल करके किसी इनाम का हकदार बनता। लिहाज़ा यह क्रूरतम अपराध था।"
विजय कुछ रुका।
"शायद मैं भी गलत रौ में बह गया, बयान की बजाय भाषण देने लगा। वारदात किस तरह हुई, यह मैं बता ने जा रहा हूँ। मुझे फोन द्वारा इस क़त्ल की सूचना मिली और मैं तेजी के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हुआ"
उसके बाद विजय ने दस जनवरी से लेकर मुलजिम की गिरफ्तारी तक का पूरा बयान रिकार्ड में दर्ज करवाया, यह बताया कि किस तरह सारे सबूत जुटाये गये। विजय के बयान काफी लम्बे थे। बीच-बीच में उसकी टिप्पणियां भी थीं।
बयान समाप्त होने के बाद विजय ने सीधा रोमेश से सवाल किया,
"एनी क्वेश्चन ?"
"नो।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"तुम्हारे बयान अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त हैं, तुम एक होनहार कर्त्तव्यपालक पुलिस ऑफिसर हो, यह बात पहले ही अदालत को बताई जा चुकी है।"
विजय विटनेस बॉक्स से बाहर आ गया।
“तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए अदालत इस निर्णय पर पहुंचती है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने कानून को मजाक समझते हुए इस तरह योजना बना कर हत्या की, जैसे हत्या करना अपराध नहीं धार्मिक अनुष्ठान हो।
"जनार्दन नागा रेड्डी समाज सेवा और राजनीतिक क्षितिज की एक महत्वपूर्ण हस्ती थी। ऐसे व्यक्ति की हत्या को सार्वजनिक बना कर अत्यन्त क्रूरता पूर्ण तरीके से मार डाला गया। "
"मुलजिम ने भी अपना अपराध स्वीकार किया और किसी भी गवाह से जिरह करना उचित नहीं समझा, इससे साफ साबित होता है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने हत्या की, अत: ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 के तहत मुलजिम को अपराधी ठहराया जाता है। परन्तु इससे पूर्व अदालत रोमेश सक्सेना को दण्ड सुनाये, उसे एक मौका और देती है।"
"रोमेश सक्सेना की कानूनी सेवा में स्वच्छ छवि होने के कारण अन्तिम अवसर प्रदान किया जाता है, यदि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहे, तो अदालत सुनने के लिए तैयार है और यदि रोमेश सक्सेना इस आखिरी मौके को भी नकार देता है, तो अदालत दण्ड सुनाने के लिए तारीख निर्धारित करेगी।”
न्यायाधीश द्वारा लगी इस टिप्पणी को अदालत में सुनाया गया। राजदान के होंठों पर जीत की मुस्कान थी। विजय गम्भीर और खामोश था। वैशाली उदास नजर आ रही थी। किसी को यकीन ही नहीं आ रहा था कि रोमेश इतनी जल्दी हार मानकर स्वयं के गले में फंदा बना देगा।
किन्तु अदालत में कुछ लोग ऐसे भी बैठे थे, जिन्हें यकीन था कि अब भी पलड़ा पलटेगा, केस अभी फाइनल नहीं हुआ। उनकी अकस्मात दृष्टि रोमेश की तरफ उठ जाती थी।
रोमेश ने धीरे-धीरे फिर अदालत में बैठे लोगों का अवलोकन किया। घूमती हुई दृष्टि वैशाली, विजय से घूमती राजदान पर ठहर गई।
"अदालत ने यह एक आखिरी मौका न दिया होता, तो तुम केस जीत चुके थे राजदान ! लेकिन लगता है कि तुम्हारी किस्मत में हमेशा मुझसे बस हारना ही लिखा है।"
जारी रहेगा .....……![]()
Awesome update# 21.
उधर दस जनवरी का दिन रोमेश के लिए भी महत्वपूर्ण था। उसको एक चैलेंजिग मर्डर करना था, लोग चाहे जो अनुमान लगायें, परन्तु रोमेश ने इस कत्ल का ठेका पच्चीस लाख में लिया था और उसने कत्ल की तारीख भी तय कर ली थी।
अगर वह कामयाब हो जाता, तो उसका भविष्य क्या होता? क्या उसे सीमा वापिस मिल जानी थी ? क्या वह कानून के प्रति इंसाफ कर रहा था ?
उधर इंस्पेक्टर विजय के लिए भी यह दिन महत्वपूर्ण था। उसे एक ऐसे शख्स की हिफाजत करनी थी, जो अपराधी था और जिसने बहुत से बेगुनाहों का कत्ल किया था। वह एक माफिया था और जो चीफ मिनिस्टर बन गया था।
वह इस शख्स को नहीं बचा पाता, तो उसकी सर्विस बुक में एक बैड एंट्री होनी थी और इतना ही नहीं उसे रोमेश को गिरफ्तार करने पर भी मजबूर होना पड़ता। हालांकि वह अब अधिक चिन्तित नहीं था। फिर भी यह दिन उसके लिए महत्वपूर्ण था और इसी दिन शंकर नागा रेड्डी के मुकद्दर का भी फैसला होने वाला था।
अखबार वालों को भी सुनगुन थी कि कहीं कोई जबरदस्त न्यूज तो नहीं मिलने वाली। शहर में बहुत-सी जगह यह चर्चाएं थी। पुलिस डिपार्टमेंट से लेकर आम लोगों तक।
दस जनवरी आने तक कुछ नहीं हुआ। विजय एक गश्त लगा कर चला गया। रात के नौ बजे मायादास ने जे.एन. से मुला कात की।
"मैडम माया तीन बार फोन कर चुकी हैं।" मायादास ने कहा,
"उन्हें क्या जवाब दिया जाये ?"
"ओह, मुझे तो ध्यान नहीं रहा, आज शनिवार है।"
"तुम तो जानते ही हो मायादास ! मैं हर शनिवार डिनर उसके साथ उसी के फ्लैट पर लेता हूँ। वैसे भी यहाँ सुबह से दम-सा घुटा जा रहा है। उससे कहो कि हम आ रहे हैं, क्या हमारा जाना ठीक है ?"
"आप तो बेकार में टेंशन पा ले हुये हैं। आपको सब काम अपनी रुटीन के अनुसार करना चाहिये, अब तो शनि का प्रकोप भी खत्म हो गया। सारे ग्रह रात होते ही डूब जातेहैं। मेरा ख्याल है, वहाँ आप सारे तनाव से छुटकारा पा लेंगे। वैसे भी आपके साथ गार्ड तो रहेंगे ही। लोग कहेंगे कि आप बड़े डरपोक हैं। आपकी निडरता की साख है पूरे शहर में और आप हैं कि चूहे की तरह बिल में घुसे हुये हैं।"
"अरे नहीं हम किसी से नहीं डरने वाले। हम वहाँ जाकर आयेंगे। ड्राइवर से कहो कि गाड़ी तैयार रखे।"
"ठीक है, श्री मान जी !"
मायादास बाहर निकल गया, जे.एन. तैयार होने लगा। वह अब सब कुछ भूल चुका था और माया का हसीन फिगर उसके दिलों-दिमाग पर छाता जा रहा था।
माया ने एक बार और कौशिश की, कि जे.एन. से सम्पर्क हो जाये। वह आज रात के लिए जे. एन. को अपने यहाँ आने से रोकना चाहती थी, उसे ख्याल आया कि रोमेश ने उसे किसी कत्ल की चश्मदीद गवाह बनने के लिए कहा था और वह जान चुकी थी कि रोमेश ने जे.एन. को दस जनवरी को कत्ल करने की धमकी भी दी है।
"कहीं वह मेरे फ्लैट पर तो कुछ नहीं करने वाला ? यह ख्याल बार-बार उसके मन में आता और इसीलिये वह शाम से ही जे.एन. को फोन मिला रही थी।"
परन्तु जे.एन. से सम्पर्क नहीं हो पाया, तो उसने माया दास से संपर्क किया। उसने मायादास से ही कह दिया कि जे.एन. को वहाँ न आने दे किन्तु सवा नौ बजे मायादास का फोन आया।
"जे.एन. साहब आपके यहाँ आने वाले हैं।"
''मगर !"
"आप उस सबकी फिक्र न करे, जे.एन. साहब बड़े ही शेर दिल आदमी हैं। उन्हें इस तरह डरा देना भी ठीक बात नहीं प्लीज ! उनका वैसा ही वेलकम करें, जैसा करती हैं। तनाव मुक्त हो जायेंगे और ठीक से रात भी कट जा येगी।''
मायादास ने फोन काट दिया। करीब पांच मिनट बाद ही एक फोन और आया।
"हैलो ।"
"हम जसलोक से बोल रहे हैं, आपके अंकल मिस्टर जेठानी का एक्सी डेन्ट हो गया है। प्लीज कम इमी जियेटली !"
इस सूचना के बाद फोन कट गया।
"ओ माई गॉड, अंकल जेठानी का एक्सी डेन्ट।''
माया जल्द से तैयार हो गई। उसने अपनी नौकरानी से कहा,
''जे. एन. साहब भी आने वाले हैं। अगर कोई हॉस्पिटल से आये, तो उसे हैंडल कर लेना। कहना मैं हॉस्पिटल ही गई हूँ और जे.एन. साहब को भी समझा देना।"
माया फ्लैट से रवाना हो गई। वह अपनी कार दौड़ाती हुई हॉस्पिटल की तरफ बढ़ रही थी। उसके फ्लैट से निकलने के लगभग दस मिनट बाद बेल बजी। नौकरानी ने समझा या तो जे.एन. है, या कोई हॉस्पिटल से आया है, या खुद माया देवी ? नौकरानी ने तुरन्त द्वार खोल दिया।
जैसे ही नौकरानी ने द्वार खोला, उसके मुंह से हल्की-सी चीख निकली और तभी एक दस्ताने वाला हाथ उसके मुंह पर छा गया।
आने वाले ने दूसरे हाथ से फ्लैट का दरवाजा बन्द किया और नौकरानी को घसीटता हुआ स्टोर रूम में ले गया, भय से नौकरानी की आंखें फटी पड़ रही थीं।
शीघ्र ही उसके हाथ पाँव बाँध दिये गये और मारे भय के वह बेहोश हो गई। स्टोर बन्द करके वह शख्स बाहर आया, उसने फ्लैट का मुख्य द्वार का बोल्ट अन्दर से खोल दिया और चुपचाप फ्लैट के बैडरूम में पहुंचकर उसने दस्ताने उतारे, फिर फ्रिज खोला और फ्रिज से एक बियर और गिलास लेकर बैठ गया।
उसने गिलास में बियर डाली, और बियर पीने लगा। कुछ ही देर में माया बड़बड़ाती हुई अन्दर दाखिल हुई। वह नौकरानी को आवाज देती बड़बड़ा रही थी !
"पता नहीं किसने मूर्ख बनाया ? आज कोई फर्स्ट अप्रैल तो है नहीं ? मेरी भी मति मारी गई, यहाँ से अंकल के घर फोन किये बिना ही चल पड़ी हॉस्पिटल।"
बड़बड़ाती माया बैडरूम में पहुंची। बैडरूम में किसी की मौजूदगी देखते ही चीख पड़ी,
"तुम एडवोकेट रोमेश !"
वह शख्स एकदम माया देवी पर झपटा और उसने चाकू की नोंक माया की गर्दन पर रख दी।
''शोर मत मचाना, चलो इधर।"
वह माया को चाकू से कवर करता एक बार द्वार तक आया और फिर से फ्लैट का डोर अनबोल्ट किया। फिर द्वार का मुआयना किया और माया को खींचता हुआ बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया। उसने बैडरूम का शावर चला दिया और बाथरूम का दरवाजा भी बन्द कर दिया।
जारी रहेगा…..![]()
बहुत ही शानदार अपडेट है जैसा रोमेश ने कहा था उसी दिन उसने जे एन का कत्ल कर दिया अब देखना ये है कि इतने सबूत रोमेश के खिलाफ होने के बाद वह कैसे अपने आप को बचाता है??# 22.
जनार्दन नागा रेड्डी की कार फ्लैट के पोर्च में रुकी। पीछे कमाण्डो की कार थी। वह कार बाहर सड़क के किनारे खड़ी हो गई। जे.एन. अपनी कार से उतरा।
"इन कमाण्डो से कहना, बाहर ही रहें।" उसने अपने ड्राइवर से कहा !!
''और तुम गाड़ी में रहना, ठीक?"
"जी साहब !" ड्राइवर ने कहा।
जे.एन. फ्लैट के द्वार पर पहुँचा। द्वार को आधा खुला देखकर जे.एन. मुस्कराया,
"शायद इंतजार करते-करते दरवाजा खोलकर ही सो गई।"
अन्दर दाखिल होकर जे.एन. ने द्वार बोल्ट किया और सीधा बैडरूम की तरफ बढ़ गया। बैडरूम में रोशनी थी और बाथरूम में शावर चलने की आवाज आ रही थी।
"ओह तो इसलिये दरवाजा खुला था, स्नान हो रहा है।"
"जी हाँ, आप बैठिए।"
बाथरुम से आवाज आई। जनार्दन नागा रेड्डी आराम से बैठ गया। फिर उसने फ्रीज खोला, एक बियर निकाल ली और उसके साथ ही एक गिलास भी। मेज पर पहले से एक गिलास और बियर की तीन चौथाई खाली बोतल रखी थी।
जे. एन. ने उस पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया। उसने अपनी बियर खोली और गिलास में डालने लगा, उसके बाद उसने गिलास होंठों की तरफ बढ़ाया। बाथरूम का दरवाजा खुलने की हल्की आवाज सुनाई दी। जे.एन. मुस्कराया। वह जानता था कि माया दबे कदम उसके करीब आयेगी और फिर पीछे से गले में बाँहें डाल देगी।
वह इन्तजार करता रहा। किसी ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा। जे.एन. को एका एक वह स्पर्श अजनबी लगा। उसका हाथ रुक गया, जाम लबों पर ही ठहर गया। फिर हाथ धीरे-धीरे नीचे आया और मेज के ऊपर ठहर गया।
"जनार्दन नागा रेड्डी !" किसी ने फुसफुसा कर कहा। जे.एन. का हाथ गिलास पर से छूट गया। उसका हाथ तेजी के साथ रिवॉल्वर की तरफ बढ़ा, परन्तु तब तक पीछे से जोरदार झटका लगा!
जे.एन. कुर्सी सहित घूम गया। एक क्षण के लिए उसे चाकू का ब्लेड चमकता दिखाई दिया। उसने चीखना चाहा। वह चीखा भी। परन्तु वह चीख घुटी-घुटी थी। तब तक चाकू उसके जिस्म में पैवस्त हो चुका था। उसकी आंख फटी-की-फटी रह गई। खून सना जिस्म कालीन पर लुढ़कता चला गया।
जनार्दन की चीख शायद बाहर तक पहुंच गई थी और बेल बजने लगी थी। फिर दरवाजा इस तरह बजने लगा, जैसे कोई उसे तोड़ने की कौशिश कर रहा हो। बैडरूम की रोशनी बुझ चुकी थी। वह शख्स पीछे खुलने वाली बालकनी पर पहुँचा। फिर उसने बालकनी पर डोरी बाँधी और फिर डोरी द्वारा तीव्रता के साथ नीचे जा कूदा। उस वक्त सबका ध्यान फ्लैट के मुख्य द्वार की तरफ था। फिर कि सीने चीखकर कहा:
"देखो वह कौ न कूदा है ?"
''लगता है, अन्दर कुछ गड़बड़ हो गई है।"
कूदने वाला बेतहाशा सड़क पर दौड़ता चला गया। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, एक गाड़ी के पीछे खड़ी मोटर साइकिल स्टार्ट हुई और फिर मोटर साइकिल सड़क पर दौड़ने लगी। कमाण्डो जे.एन. को छोड़कर नहीं जा सकते थे। जैसे ही कमांडो को पता चला कि जे.एन. का कत्ल हो गया है, वह सकपका गये।
''क्या करें ?" एक ने कहा।
"उसने कहा था कि अगर उसकी जान को कुछ हो गया, तो उसके आदमी हमें मार डालेंगे। जो कभी भी यहाँ आ सकते हैं।"
"मेरे ख्याल से भागने में ही भलाई है।"
"नौकरी चली जायेगी।" दूसरा बोला।
"नौकरी तो वैसे भी जानी है, जे.एन. तो मर गया। अब तो जान बचाओ।" पहले वाले ने कहा। चारों कार लेकर वहाँ से भाग खड़े हुए।
इंस्पेक्टर विजय के अतिरिक्त बहुत से वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटना स्थल पर पहुंच चुके थे। टेलीफोन वायरलेस, टेलेक्स, फैक्स न जाने कितने माध्यमों से यह न्यूज बाहर जा रही थी। सबसे पहले घटना स्थल पर पहुंचने वाला शख्स विजय ही था। माया रो रही थी। पास ही जे. एन. का ड्राइवर और नौकरानी खड़ी थी। बाहर कुछ लोग जमा थे, जिन्हें अन्दर नहीं जाने दिया जा रहा था। फ्लैट के दरवाजे पर भी सिपाही तैनात थे।
"कैसे हुआ ?"
"उसने पहले मुझे मेरे अंकल के एक्सीडेन्ट के फोन का धोखा दिया।" माया बताती जा रही थी। नौकरानी भी बीच-बीच में बोल रही थी।
"वही था, तुम अच्छी तरह पहचानती हो।"
"वही था, रोमेश सक्सेना एडवोकेट ! ओह गॉड ! उसने मुझे बैडरूम के बाथरूम में बांधकर डाल दिया। किसी तरह मैं घिसटती-2 बाहर तक आई, मगर तब तक जे.एन. साहब का कत्ल हो चुका था।
"उसने जाते-जाते मेरे हाथ खोले और बालकनी के रास्ते भाग गया। फिर मैंने मुँह का टेप हटाया और शोर मचाया। उसके बाद दरवाजा खोलकर पुलिस को फोन किया।"
"रोमेश, तुमने बहुत बुरा किया।"
विजय ने अपने मातहत को घटना स्थल पर तैनात किया। तब तक दूसरे अधिकारी भी आ चुके थे। कुछ ही देर में उसकी जीप रोमेश के फ्लैट की ओर भागी चली जा रही थी। वह एक हाथ से स्टेयरिंग कंट्रोल कर रहा था और उसके दूसरे हाथ में सर्विस रिवॉल्वर थी। रोमेश के फ्लैट पर पहुंचते ही उसकी जीप रुक गई।
फ्लैट के एक कमरे में रोशनी हो रही थी। विजय जीप से नीचे कूदा और जैसे ही उसने आगे बढ़ना चाहा, फ्लैट की खिड़की से एक फायर हुआ। गोली उसके करीब से सनसनाती गुजर गई, विजय ने तुरन्त जीप की आड़ ले ली थी।
"इंस्पेक्टर विजय।" रोमेश की आवाज सुनाई दी ।
"अभी ग्यारह जनवरी शुरू नहीं हुई है। मैंने कहा था कि तुम मुझे गिरफ्तार करने ग्यारह जनवरी को आना। इस वक्त मैं जल्दी में हूँ, अगर तुमने मुझ पर हाथ डालने की कौशिश की, तो मैं भूनकर रख दूँगा।"
"अपने आपको कानून के हवाले कर दो रोमेश।" विजय ने चेतावनी दी और साथ ही धीरे-धीरे आगे सरकना शुरू कर दिया।
विजय उस वक्त अकेला ही था। उसी क्षण फ्लैट की रोशनी गुल हो गई। इस अंधेरे का लाभ उठा कर विजय तेजी से आगे बढ़ा। वह रोमेश को भागने का अवसर नहीं देना चाहता था। वह फ्लैट के दरवाजे पर पहुँचा। उसे हैरानी हुई कि फ्लैट का दरवाजा अन्दर से खुला है। वह तेजी के साथ अंदर गया और जल्दी ही उस कमरे में पहुँचा, जिसकी खिड़की से उस पर फायर किया गया था।
वह उस फ्लैट के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था।
थोड़ी देर तक वह आहट लेता रहा कि कहीं रोमेश उस पर फायर न कर दे। तभी वह चौंका, उसने मोटर साइकिल स्टार्ट होने की आवाज सुनी। विजय ने कमरे की रोशनी जलाई, कमरा खाली था। वह तीव्रता के साथ खिड़की पर झपटा और फिर उसकी निगाह सड़क पर दौड़ती मोटर साइकिल पर पड़ी।
"रुक जाओ रोमेश !" वह चीखा। उसने मोटर साइकिल की तरफ एक फायर भी किया, परन्तु बेकार ! खिड़की पर बंधी रस्सी देखकर वह समझ गया कि अंधेरा इसलिये किया गया था, ताकि कोई उसे रस्सी से उतरते न देखे। संयोग से विजय उस समय फ्लैट के दरवाजे से अन्दर आ रहा था।
विजय तीव्रता के साथ बाहर आ गया। उसने अपनी जीप तक पहुंचने में अधिक देर नहीं की। उसके बाद जीप को टर्न किया और उसी दिशा में दौड़ा दी, जिधर मोटर साइकिल गई थी। रिवॉल्वर अब भी उसके हाथ में थी। काफी दौड़-भाग के बाद मोटर साइकिल एक पुल पर खड़ी मिली।
विजय ने वहीं से वायरलेस किया, शीघ्र ही एक कार वहाँ पहुंच गई। मोटर साइकिल कस्टडी में ले ली गई। रोमेश का कहीं पता न था।
"फरार हो कर जायेगा कहाँ ?" विजय बड़बड़ाया। एक बार फिर वह रोमेश के फ़्लैट पर जा पहुँचा।
जारी रहेगा…..![]()
Bhai jayega bhi, or khoon bhi karega! Ab kaise? Ye sochne wali baat hai, Thanks for your wonderful review bhaiविजय ने जे एन को सुरक्षित करने के लिए प्लान तो अच्छा बनाया है लेकिन लगता है उसका प्लान फेल होने वाला है क्योंकि रोमेश को पता चल गया है कि वह सब उसे बाहर भेजने का प्लान है अब देखते हैं क्या वकील साहब दिल्ली जा पाएंगे???
Dar hi maut ka karan banega mitra,Awesome update
रोमेश की धमकी से जे एन को अब डर लगने लगा है और इसी डर की वजह से उसने अपनी सारी मीटिंग कैंसिल कर दी है