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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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Are sir ji,,, kaha ho,,, waiting for updates:lol1::rock1:
 
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Rockstar_Rocky

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:confused:
ab to bhai ji apni imagination ke anusaar hi bhouji ki shakal surat bna li hai,,,,,, ab koi fayda nahi:lol1:
Photo na dalne ka bhi ek fayda ye hai ki har reader apne hisab se , apni imagination se characters soch sakta hai,,,,,,,,,,, ya fir ye kaam story ke character ke description ke samay hona chahiye

Imagination बढ़िया है भाई! ....पर अगर कोई रिक्वेस्ट करे तो मैं कभी-कभी सुन लेता हूँ! :)

Aj update nahi ayega:stoned: ab kal ka intezar karna padega,,,,,,

थोड़ा इंतजार और :writing:

Waiting for tomorrow's update

:writing:

बहुत ही जबर्दस्त कहानी है ।

:thank_you:


:confused:

Wonderful story my friend


No words to praise you

If possible make more erotic

:thank_you:

Excellent story

You have good story writing skills

If possible make it more erotic and
Involve more characters

:thank_you: its just a strat, the story will be erotic and a lot of characters are coming in upcoming updates!

Are sir ji,,, kaha ho,,, waiting for updates:lol1::rock1:

:writing: :online:

Waiting....

:writing: :online:
 

Rockstar_Rocky

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सातवाँ अध्याय: समर्पण
भाग-2

शाम को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा हो गया, बेचारा वरुण अपने मम्मी-पापा की लड़ाई देख रोने लगा| भौजी ने मुझे वरुण को अपने पास ले आने को कहा और मैं फटा-फ़ट वरुण को अपने साथ बहार ले आया| वरुण का रोना बंद ही नहीं हो रहा था, बड़ी मुश्किल से मैंने उसे पुचकार के आधा किलोमीटर घुमाया और जब मुझे लगा की वो सो गया है तब मैंने उसे भौजी को सौंप दिया| जब भौजी मेरी गोद से वरुण को ले रही थी तो मैंने शरारत की और उनके निप्पलों को अपने अंगूठे में भर हल्का सा मसल दिया| भौजी विचलित हो उठी और मुस्कुराती हुई प्रमुख आँगन में पड़ी चारपाई पर वरुण को लिटा दिया| रात हो चुकी थी और अँधेरा हो चूका था, भौजी जानती थी की मैं खाना उनके साथ ही खाऊँगा परन्तु सब के सामने? उनकी चिंता का हल मैंने ही कर दिया;

मैं: भौजी मुझे भी खाना दे दो|

भौजी मेरा खाना परोस के लाई और खुस-फुसते हुए बोलीं;

भौजी: मानु क्या नाराज हो मुझ से?

मैं: नहीं तो!

भौजी: तो आज मेरे साथ खाना नहीं खाओगे?

मैं: भौजी आप भी जानते हो की दोपहर की बात और थी, अभी आप मेरे साथ खाना खाओगी तो चन्दर भैया नाराज होंगे|

भौजी मेरी ओर देखते हुए मुस्कुराई और मेरी ठुड्डी पकड़ी ओर प्यार से हिलाई!

भौजी: बहुत समझदार हो गए हो?

मैं: वो तो है, अब संगत ही ऐसी मिली है! और वैसे भी आप मेरे हिस्से का खाना खा जाती हो|

मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा तो भौजी ने अपनी नाराज़गी ओर प्यार दिखाते हुए मेरी दाहिनी बाजू पर प्यार से मुक्का मारा|


मैंने जल्दी-जल्दी खाना खाया और अपने बिस्तर पर लेट गया, मैंने सबको ऐसे जताया जैसे मुझे नींद आ गई हो, जबकि असल में मुझे बस इन्तेजार था की कब भौजी खाना खाएँ और कब बाकी सब घर वाले अपने-अपने बिस्तर में घुस घोड़े बेच कर सो जाएँ, तब मैं और भौजी अपना अधूरा काम पूरा कर लें| इसीलिए मैं आँखें बंद किये सोने का नाटक करने लगा, पेट भरा होने के कारन नींद आने लगी थी पर मेरा कौमार्य दिमाग मुझे सोने नहीं दे रहा था| कुछ देर बाद मैं बाथरूम जाने के बहाने उठा ताकि देखूँ की भौजी ने खाना खाया है की नहीं, तभी भौजी और अम्मा मुझे खाना खाते हुए दिखाई दिए| मैं बाथरूम जाने के बाद जानबूझ के रसोई की तरफ से आया ताकि भौजी मुझे देख ले और उन्हें ये पक्का हो जाये की मैं सोया नहीं हूँ, वर्ण क्या पता वो मुझे सोता हुआ समझ खुद ही सो जाएँ! मैंने अपने बिस्तर पर लौटते समय मुआइना कर लिया था की कौन-कौन जाग रहा है और कौन सो चूका है| बच्चे तो सब सो चुके थे, बड़के दादा और पिताजी की चारपाई पास-पास थी और दोनों के खर्रांटें चालु थे| गट्टू भी गधे बेचके सो रहा था, माँ अभी जाग रही थी और बड़की अम्मा जी से लेटे-लेटे बात कर रही थी| मैंने अनुमान लगाया की ज्यादा से ज्यादा एक घंटे में दोनों अवश्य सो जाएँगी| रसिका भाभी और मधु भाभी नए घर में अपने-अपने कमरे में सोईं थीं| अजय भैया और अशोक भैया मुझे कहीं नहीं दिखे तो मुझे लगा की वो बड़े घर की छत पर सोये होंगे| चन्दर भैया भी पिताजी के पास ही चारपाई डाले ऊँघ रहे थे| मैं अपने बिस्तर पर आके पुनः लेट गया और भौजी की प्रतीक्षा करने लगा| अब बस इन्तेजार था की कब भौजी आएं और अपनी प्यारी जुबान से मेरे कानों में फुसफुसाएं की मानु चलो! इन्तेजार करते-करते डेढ़ घंटा हो गया, मैं आँखें मूंदें करवटें बदल रहा था की तभी भौजी की फुसफुसाती आवाज मेरे कानों में पड़ी;

भौजी: मानु? सो गए क्या?

मैंने तुरंत आँख खोली और बोला;

मैं: नहीं तो, आजकी रात सोने के लिए थोड़े ही है!

ये सुन भौजी ने एक कटीली मुस्कान दी|

मैं: बाकी सब सो गए?

भौजी: हाँ ... शायद... (भौजी ने एक बार इधर-उधर देखते हुए कहा|)

मैं: डर लग रहा है?

भाभी: हाँ!

मैं: घबराओ मत मैं हूँ ना!

मैंने बड़े आत्मविश्वास से कहा और उनके हाथ को थोड़ा दबा दिया|


तभी अचानक बड़े घर से किसी के झगड़ने की आवाज आने लगी| ये आवाज सुन हम दोनों चौंक गए, भौजी को तो ये डर सताने लगा की कोई हम दोनों को साथ देख लेगा तो क्या सोचेगा और मैं मन ही मन कोस रहा था की मेरी योजना पे किस ने ठंडा पानी डाल दिया? शोर सुन सभी उठ चुके थे, बच्चे तक उठ के बैठ गए थे| मैं और भौजी भी अब बड़े घर की तरफ चल दिए| ये शोर और किसी का नहीं बल्कि अजय भैया और रसिका भाभी का था| पता नहीं दोनों किस बात पर इतने जोर-जोर से झगड़ रह थे| अजय भैया बड़ी जोर-जोर से रसिका भाभी को गालियाँ दे रहे थे और लट्ठ से पीटने वाले थे की तभी मेरे पिताजी और बड़के दादा ने उन्हें रोक लिया| इधर शोर सुन वरुण ने रोना चालु कर दिया था, मैंने वापस आ कर वरुण को गोद में उठाया और साथ ही राकेश और नेहा को अपने साथ रेल बनाते हुए दूर ले गया ताकि वो इतनी गन्दी गालियाँ न सुन पाएँ| मैंने इशारे से भौजी को भी अपने पास बुला लिया, मुझे लगा शायद भौजी को पता होगा की आखिर दोनों क्यों लड़ रहे होंगे पर उनके चेहरे के हाव-भाव कुछ अलग ही थे|

भौजी: मानु तुम यहाँ अकेले में इन बच्चों के साथ क्यों खड़े हो?

मैं: भौजी अपने नहीं देखा दोनों कितनी गन्दी-गन्दी गालियाँ दे रहे हैं! बच्चे क्या सीखेंगे इन से?

भौजी: मानु ये तो रोज की बात है| इनकी गालियाँ तो अब गाओं का बच्चा-बच्चा रट चूका है|

मैं: हे भगवान!!!


अब भौजी का मुँह बना हुआ था और मैं जनता था की वो क्यों खफ़ा है| मैंने उन्हें सांत्वना देने के लिए उनके कान में कहा;

मैं: भौजी आप चिंता क्यों करते हो? कल सारा दिन है अपने पास और रात भी!

भौजी: मानु रात तो तुम भूल जाओ!

उनकी बात में जो गुस्सा था उसे सुन मैं हँस पड़ा और मेरी हँसी से भौजी नाराज होके चली गईं, मैं पीछे से उन्हें आवाज देता रह गया| सच बताऊँ तो मुझे भी उतना ही दुःख था जितना भौजी को था बस मैं उस दुःख को जाहिर कर अपना और भौजी का मूड ख़राब नहीं करना चाहता था|

खेर जैसे-तैसे मामला सुलझा, सुबह हो गई और एक नई मुसीबत मेरे सामने थी| पिताजी और माँ बाजार जाना चाहते थे और मजबूरी में मुझे भी जाना था| मन मसोस कर मैं चल पड़ा, बाजार पहुँच माँ और पिताजी खरीदारी कर रहे थे, पर मेरी शकल पे तो बारह बजे थे| पिताजी को आखिर गुस्सा आना ही था;

पिताजी: मुँह क्यों उतरा हुआ है तेरा?

मैं: वो गर्मी बहुत है, थकावट हो रही है... घर चलते हैं| (मैंने बहाना मारते हुए कहा|)

पिताजी: घर? अभी तो कुछ खरीदा ही नहीं? और अगर तुझे घर पर ही रहना था तो आया क्यों साथ?

माँ: अरे छोडो न इसे, इसका मूड ही ऐसा है, एक पल में इतना खुश होता है की मानो हवा में उड़ रहा हो और थोड़ी देर में ऐसे मायूस हो जाता है जैसे किसी का मातम मन रहा हो|


माँ ने भी अपना गुस्सा दिखाया| अब मैं कुछ बोल नहीं सकता था, इसलिए चुप रहा| माँ और पिताजी दूकान में साड़ियाँ देखने में व्यस्त हो गए, साड़ियाँ देख मन हुआ की क्यों न भौजी के लिए एक साडी ले लूँ, पर जब जेब का ख्याल आया तो मन फिर से उदास हो गया| मेरी जेब में एक ढेला तक नहीं था, ग्यारहवीं में आने के बाद मैंने स्कूल लंच ले जाना बंद कर दिया था| तो मैं वहाँ भूखा न रहूँ इसके लिए पिताजी मुझे 10 रुपये दिया करते थे| उस समय 10 रुपये की कीमत हुआ करती थी, इसलिए शाम को वापस आ कर मुझे उन्हें बताना पड़ता था की मैंने 10 रुपये खर्च किये या नहीं! पर मैं होशियारी सीख गया था, तो मैं अक्सर झूठ बोल दिया करता की मैंने खाने-पीने में खर्च कर दिए| कभी-कभार माँ जब अच्छे मूड में होती या मेरे किये किसी काम से खुश होती तो मुझे 10/-, 20/-, 50/- रुपये दे दिया करती तो मैं वो भी अपने पास छुपा कर रखता| इन पैसों को इक्कट्ठा करने का कारन था की मुझे एक मोबाइल लेना था पर आज बजार आते समय मैं वो पैसे ले कर नहीं आया था और अगर लाया भी होता तो पिताजी के सामने भौजी के लिए साडी लेने की हिम्मत ना होती!


खैर पिताजी और माँ साडी देखने में व्यस्त थे और मैं बैठे-बैठे ऊब रहा था, इस परिस्थिति से निकलने का एक रास्ता दिमाग में आया| मैंने सोचा की क्यों न मैं अपने दिमाग के प्रोजेक्टर में अभी तक की सभी सुखद घटनाओं की रील को फिर से चलाऊँ? मैं जब भी ऊब जाता था तो अपनी एक काल्पनिक दुनिया में खो जाता था और ये करना मुझे बहुत अच्छा लगता था| इसलिए मैं ध्यान लगाते हुए भौजी के साथ बिठाये उन सभी अनुभवों को फिर से जीने लगा, पता नहीं क्यों पर अचानक से दिमाग में कुछ पुरानी बातें आने लगीं| उन्हीं बातों में से एक थी गुजरात वाले भैया की चेतावनी!

"मानु अब तुम बड़े हो गए हो, मैं तुम्हें एक बात बताना चाहता हूँ| जिंदगी में ऐसे बहुत से क्षण आते हैं जब मनुष्य गलत फैसले लेता है| वो ऐसी रह चुनता है जिसके बारे में वो जानता है की उसे बुराई की और ले जायेगी| तुम ऐसी बुराई से दूर रहना क्योंकि बुराई एक ऐसा दलदल है जिस में जो भी गिरता है वो फँस के रह जाता है|" ये बात दुबारा दिमाग में आते ही मैं सन्न रह गया| भैया की बात मेरी अंतर्-आत्मा को झिंझोड़ने लगी थी, बार-बार मुझे रोक रही थी की मैं बुराई की तरफ न जाऊँ! मेरा कौमार्य दिमाग अब तर्क देने लगा था पर अंतर-आत्मा उसके दिए हर तर्क को विफल कर रही थी| 'तो क्या अब तक जो भी कुछ हुआ वो पाप है? परन्तु भौजी तो मुझ से प्यार करती है!' मेरे कौमार्य दिमाग ने तर्क दिया|

'पर क्या मैं भी उन्हें प्यार करता हूँ?' मेरी अंतर् आत्मा ने मुझसे पुछा| ये वो सवाल था जिसे मैंने उस दिन दबा दिया था जब भौजी पिछली बार दिल्ली आईं थी| उस समय क्योंकि मेरी परीक्षा नजदीक थी इसलिए दिमाग पढ़ाई में लग गया था पर आज मेरे सर पर कोई बोझ नहीं था इसलिए दिमाग बार-बार वही प्रश्न दोहरा रहा था| जब मेरा कौमार्य दिमाग इस सवाल का जवाब नहीं दे पाया तो मुझे अपने आप से घृणा होने लगी! मैं कैसे देवर हूँ मैं जो अपनी भौजी के जज्बातों का गलत फायदा उठाना चाहता हूँ! मुझे तो चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए, जिंदगी में आज तक मुझे इतनी घृणा कभी नहीं हुई जितना उस समय हो रही थी! अंदर से मैं टूटना चालु हो गया था, मेरा आत्मविश्वास चकनाचूर हो गया था! पर कुछ तो था जो मुझे भौजी की तरफ खींच रहा था, वासना या प्यार मैं इसमें अंतर नहीं कर पा रहा था! जिस तरह मेरा कौमार्य दिमाग मुझ पर हावी हुआ था उस हिसाब से तो ये वासना थी, पर फिर क्यों भौजी के दूर जाने पर मैं खुद को अधूरा महसूस करता था? उस दिन छत पर जब उन्होंने मुझसे अपने प्यार का इजहार किया तो मैंने क्यों कहा की मैं उनसे प्यार करता हूँ? मैं झूठ भी बोल सकता था, पर उनका दिल नहीं तोडना चाहता था! 'हम केवल उसी का दिल नहीं तोडना चाहते जिसे हम प्यार करते हैं!' मेरे अंतर-आत्मा ने तर्क दिया और ये तर्क मैंने क़बूल कर लिया| मेरे लिए भौजी की ख़ुशी जर्रूरी थी और उनकी ख़ुशी मेरे प्यार में थी| अंतर-आत्मा कह रही था की 'तुझे भौजी का ये प्यार काबुल कर लेना चाहिए, तुझे भौजी से ये कहना होगा की तू उनसे बहुत प्यार करता है!' आज मैं पहलीबार अपनी अंतर-आत्मा की बात सुन पा रहा था और मैंने निर्णय किया की मैं भौजी से अपने प्यार का इजहार करूँगा और अब कोई भी गलत बात या कोई गन्दी हरकत उनके साथ नहीं करूँगा|


अपने अंदर उठ रहे इस विचारों के तूफ़ान के कारन मेरा मुँह उतर गया था, मन में मायूसी के बदल छाय हुए थे और मैं बस जल्दी से जल्दी भौजी से ये बात कहना चाहता था| उधर पिताजी के सब्र का बाँध टूट रहा था, उन्हें मेरा मायूस चेहरा देख के अत्यधिक क्रोध आ रहा था| उन्होंने माँ से कहा; "जल्दी से साडी खरीदो, मैं अब इस लड़के का उदास चेहरा नहीं देखना चाहता!" पिताजी ने मेरी तरफ क्रोध से देखते हुए कहा| माँ ने अपने और बड़की अम्मा के लिए साडी खरीदी और हम घर के लिए निकल पड़े| पूरे रास्ते पिताजी मुझे डाँटते रहे, परन्तु मैंने उनकी डाँट को अनसुना कर दिया और सारे रास्ते मैं भौजी से क्या कहना है उसके लिए सही शब्दों का चयन करने लगा| मेरा आत्मविश्वास चकनाचूर हो चूका था इसलिए मुझे लगा की मैं भौजी से ये प्यार वाली बात कभी नहीं कह पाउँगा! घर पहुँचते-पहुँचते दोपहर के भोजन का समय हो गया था, मैं. पिताजी और माँ बड़े घर पहुँच कर अपने-अपने कपडे बदल रहे थे| गर्मी के कारन पिताजी स्नान कर रसोई की ओर चल दिए और माँ को कह गए की इसे (यानी मुझे) भी कह दो खाना खा ले| तभी भौजी मेरे और माँ के लिए खाना परोस के ले आईं, भौजी को देखते ही मेरा गाला भर आया और नजाने क्यों मैं उनसे नजर नहीं मिला पा रहा था| भौजी ने माँ को खाना परोसा और मुझे भी खाना खाने के लिए कहा| भौजी की बात सुन मेरे मुख से शब्द नहीं निकले, क्योंकि मैं जानता था की अगर मैंने कुछ भी बोलने की कोशिश की तो मैं अपने पर काबू नहीं रख पाउँगा और रो पड़ूँगा| मैंने केवल ना में गर्दन हिलाई, ये देख भौजी के मुख पे चिंता के भाव थे, उन्होंने धीमी आवाज में कहा; "मानु अगर तुम खाना नहीं खाओगे तो मैं भी नहीं खाऊँगी!" मैं नहीं चाहता था की मेरी वजह से भौजी खाना न खाएँ, पर कुछ भी बोलने के लिए मेरे अंदर हिम्मत ही नहीं थी! पर भौजी को मेरे मुँह से जवाब सुनना था; "क्या हुआ?" उन्होंने दबी आवाज में कहा| मैं उसी क्षण उनसे अपने दिल की बात कहना चाहता था परन्तु हिम्मत जवाब दे गई और मैं वहाँ से छत की ओर भाग गया| छत पर चिल-चिलाती हुई धुप थी और मैं उस धुप में सर झुकाये खड़ा था, भौजी नीचे से ही आवाज देने लगी, अब तो माँ ने भी चिंता जताई, पर मैं भौजी की बात को अनसुना करता रहा| मैं छत पर एक कोने में खड़ा होगया और अपने अंदर उठ रहे तूफ़ान पर काबू पाने की कोशिश करने लगा| मेरी आँखों से कुछ आँसूँ की बूँदें छलक आईं, मैं अपनी आँख पोछते हुए पीछे घुमा तो देखा की भौजी चुपचाप खड़ी हुई मुझे देख रही हैं, मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था| न उन्होंने कुछ कहा, ना ही मैंने कुछ कहा, मैं सर झुकाये चुप-चाप नीचे भाग आया और बैठ के भोजन करने लगा| माँ ने इस अजीब बर्ताव का कारन पूछा परनतु मैंने कोई जवाब नहीं दिया| भौजी भी नीचे आ गईं, इधर माँ खाना खा चुकी थी और थाली ले कर रसोई की ओर जा रही थी तो भौजी ने उन्हें रोका और मेरे बर्ताव का कारन मेरे ही सामने पूछने लगीं;

भौजी: चाची क्या हुआ मानु को? चाचा ने डाँटा क्या?

माँ: अरे नहीं बहु, पता नहीं क्या हुआ है इसे सारा रास्ता ऐसे ही मुँह लटका के बौठा था| जब पूछा तो कहने लगा की गर्मी बहुत है, सर दर्द हो रहा है| भगवान जाने इसे क्या हुआ है?

भौजी: आप थाली मुझे दो, मैं अभी मानु को ठंडा तेल लगा देती हूँ उससे सर का दर्द ठीक हो जायेगा|


उधर मेरा भी खाना खत्म हो चूका था और मैं अपनी थाली ले कर जा रहा था| भौजी ने मुझे रोका और बिना कुछ कहे मेरी थाली ले कर चली गई| माँ भी भोजन के बाद टहलने के लिए बहार चली गईं| अब केवल मैं घर में अकेला रह गया था, मैंने सोचा मौका अच्छा है भौजी से अपने दिल की बात करने का, पर मैं ये बात कहूँ कैसे? मैं सोचने लगा की मुझे भौजी से कैसे बात शुरू करनी है, दिमाग में वाक्यों को सेट कर के मैं तैयारी करने लगा| आज पहलीबार मुझे किसी से अपने प्यार का इजहार करना था और ये मेरे लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा था|

पाँच मिनट के भीतर ही भौजी नवरतन तेल ले कर आगईं और मुझे सर झुकाये आंगन में टहलते हुए देखा| उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे चारपाई पर बैठाया और बोलीं; "मानु मैं जानती हूँ की तुम क्यों उदास हो? सच बताऊँ तो मेरा भी यही हाल है पर तुम मायूस मत हो, कल हम कैसे न कैसे कर के सब कुछ निपटा लेंगे|" भौजी मेरे बर्ताव का गलत मतलब निकाल रहीं थीं और मैं उन्हें कुछ भी बोलने की हालत में नहीं था| गला सुख गया था, आँखों में आँसूँ छलक आये और हिम्मत इक्कट्ठा करनी शुरू की| मैं जानता था की भौजी की आँखों में आँखें डाल के मैं अपने प्यार का इजहार उनसे कभी नहीं कर पाउँगा| इसीलिए मैंने अपनी आँखें बंद की और एक झटके में भौजी से सब कह देना चाहा| परन्तु शब्द ही नहीं मिल रहे थे, मन अंदर से कचोट रहा था, एक अजीब सी तड़पन महसूस हो रही थी| मैं उन्हें कहना चाहता था की अभी तक जो भी हमारे बीच हुआ वो मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ एक आकर्षण मात्र था, परन्तु अब एक चुम्बकीये शक्ति मुझे आपकी तरफ खींच रही है और वो शक्ति इतनी ताकतवर थी की वो हम दोनों को मिला देना चाहती थी, दो जिस्म एक जान में बदल देना चाहती है|


पर भौजी मेरी चुप्पी का गलत मतलब निकाल रहीं थीं, उन्हें लगा जैसे मैं वासना के आगे विवश होता जा रहा हूँ इसलिए वो मुझे हिम्मत बंधाते हुए बोलीं; "मानु मैं जानती हूँ तुम्हें बहुत बुरा लग रहा है, पर अब किया भी गया जा सकता है? कैसे भी करके आज का दिन सब्र कर लो... कल…" भौजी की बात पूरी होने से पहले ही मैंने अपनी आँख खोली और एक आखरीबार गर्दन न में हिला के उन्हें बताने की कोशिश करने लगा की आप मुझे गलत समझ रहे हो, पर पता नहीं क्यों भौजी समझी ही नहीं| वो आगे कुछ बोलने वाली थीं पर मैंने भौजी के होंठों पर अपना हाथ रख उन्हें आगे बोलने से रोक दिया, क्योंकि वो मेरी भावनाओं को नहीं समझ रहीं थी और उनका बस गलत अर्थ निकाल रही थीं जिससे मैं शर्मिंदा महसूस कर रहा था| पर उनके होठों को छूने भर से मेरा खुद पर से काबू छूटने लगा, मैं भौजी की ओर बढ़ा और उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए| मेरा उन्हें Kiss करने का इरादा नहीं था, मैं तो जैसे उन्हें चुप कराना चाहता था| परन्तु खुद पर काबू नहीं रख पाया और अपनी द्वारा तय की हुई सीमा खुद ही तोड़ दी| मैंने अपने दोनों हाथों से उनके मुख को पकड़ लिया और मैं बिना रुके उनके होंठों पर हमला करता रहा| मैं कभी उनके नीचले होंठ को अपने मुख में भर चूसता, तो कभी उनके ऊपर के होंठ को| आज नजाने क्यों मुझे उनके होंठों से एक भीनी-भीनी सी खुशबु आ रही थी जो मुझे उनकी तरफ खींचे जा रही थी और मैं मदहोश होता जा रहा था| जिंदगी में पहली बार मैं कोई काम बिना किसी रणनीति के कर रहा था| Kiss करते-करते मैंने अपनी जीभ उनके मुँह में प्रवेश करा दी! मेरी इस हरकत से भौजी थोड़ा चकित रह गई पर इस बार उन्होंने भी पलट वार करते हुए मेरी जीभ अपने दातों के बीच जकड ली और उसे चूसने लगीं! मेरे मुंह से; "म्म्म्म...हम्म्म" की आवाज निकल पड़ी जिसे सुन भौजी को आनंद आने लगा था| ये हम दोनों का पहला ऐसा Kiss था जिसमें मैंने पहल करते हुए अपनी जीभ उनके मुँह में प्रवेश कराई थी!


भौजी भी मेरा Kiss में खुल कर साथ दे रहीं थी और जिस तरह से वो मेरा साथ दे रही थी उससे लग रहा था की अब उनसे भी खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा है| अचानक मेरे कौमार्य दिमाग ने मुझे सन्देश भेजा की मेरे पास ज्यादा समय नहीं है, मुझे जल्दी से जल्दी सब करना होगा| इसलिए मैंने भौजी की जीभ से मेरे मुख के भीतर हो रहे प्रहारों को रोक दिया और भाग कर मैंने बाहर का दरवाजा बंद किया| वापस आ के भौजी को अशोक भैया के कमरे के पास कोने पर खड़ा किया और मैं नीचे अपने घुटनों के बल बैठ गया| मेरे अंदर भौजी की योनि देखने की तीव्र इच्छा होने लगी, पिछली बार तो मैं उनकी योनि बस छू पाया था पर आज मुझे कैसे भी कर के उनकी योनि देखनी थी इसलिए मैंने भौजी की साडी उठा दी| मैं देख के हैरान था की भौजी ने नीचे पैंटी नहीं पहनी थी!!! इधर मैंने आज पहली बार एक योनि देखि थी इसलिए मैं उत्साह से भर गया और मैंने बिना देर किये उनकी योनि को अपनी जीभ से छुआ! मेरी जीभ के स्पर्श से भौजी एकदम से सिहर उठीं! भाभी का योनि द्वार बंद था और जैसे ही मैंने अपनी जीभ की नोक से उसे कुरेदा तो वो जैसे उभर के मेरे समक्ष आ गया| उनका गुलाबी क्लीट (भगनासा) चमकने लगा था, मैंने भौजी की योनि को अपनी जीभ से थोड़ा और कुरेदा तो मुझे अंदर का गुलाबी हिस्सा दिखाई दिया, उसे देख के तो मैं सम्मोहित हो गया| मेरी लपलपाती जीभ भौजी की योनि से खेल रही थी और उनकी योनि को चाट रही थी! उधर भौजी की साँसे तेजी से चलने लगींथीं, भौजी कसमसाते हुए मेरे द्वारा किये प्रहार के लिए मुझे प्रोत्साहन देने लगीं| भौजी की योनि से अब एक तेज सुगंध उठने लगीथी जो मुझे हरपाल दीवाना बनाने लगी थी|

अब मैं और देर नहीं करना चाहता था इसलिए मैं वापस खड़ा हो गया, पर भौजी को लगा की शायद मेरा मन भर गया इसलिए उन्होंने मुझसे पुछा; "मानु मजा आया?" मैं उस वक़्त उन्हें कुछ ही कहने की हालत में नहीं था, क्योंकि मेरे कान और गाल सुर्ख लाल हो चुके थे, मैंने केवल गर्दन हाँ में हिलाई| मैंने अपनी पेंट की चैन खोली और अपना लिंग भौजी के समक्ष प्रस्तुत किया, मेरा लिंग बिलकुल तन चूका था और अब मुझे थोड़ा-थोड़ा दर्द भी होने लगा था, ऐसा लगा मानो अभी फ़ट जायेगा! चूँकि ये मेरा पहला अवसर था इसलिए मैंने भौजी से कहा; "भौजी इसे सही जगह लगाओ ना,

मुझे लगाना नहीं आता!!!" भौजी मेरी नादानी भरी बात सुन मुस्कुराई, उन्होंने मेरा लिंग हाथ में लिया और मुझे अपने से चिपका लिया| जैसे ही उन्होंने मेरे लंड को अपनी बुर से स्पर्श कराया मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया, भौजी की तो दर्दभरी सिसकारी छूट गई; "आह..हहह..मम...स्स्स्स...सीईइइइइ म्म्म्म!!!" उनकी योनि अंदर से गीली और गर्म थी, लिंग अंदर जाते ही मुझे गर्माहट का एहसास होने लगा| काफी देर से खड़े लंड को जब भौजी की योनि की गरम दीवारों ने जकड़ा तो मेरे लिंग को सकून मिला| भौजी ने मुझे कस कर अपने आलिंगन में कैद कर लिया और जवाब में मैंने भी भौजी को कस कर अपनी बाँहों में भर लिया| मैंने बिना सोचे समझे खड़े-खड़े ही नीचे से झटके मरने शुरू कर दिए, अनादि होने के कारन मेरे झटके बिना किसी लय के भौजी की योनि में हमला कर रहे थे| पर भौजी के मुख से दर्द भरी सिसकारियाँ जारी थी; "आह..माँ....हहममम...आह..ह.म्म.स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!!!" कुछ ही देर में वो मेरे द्वारा दिए गए हर झटके को महसूस कर आनंदित हो रही थी, परअब मेरी भी आहें निकलनी शुरू हो गईं थीं; "अह्ह्हह्ह्ह्ह......म्म्म्म... अम्म्म्म!!!" मैंने नीचे से अपना आक्रमण जारी रखा और साथ ही साथ भौजी की गर्दन पर अपने होंठ रख उनकी गर्दन को चूमने लगा, भौजी ने अपना एक हाथ मेरे सर पर रख मुझे अपनी गर्दन पर दबाने लगीं| उनका प्रोत्साहन पा मैंने उनकी गर्दन पर अपने दाँत गड़ा दिए, इस कारन भौजी की चीख निकल पड़ी; "आअह अह्ह्ह्ह्न्न.. मानु.....स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!!!" मैं उनकी गर्दन पर किसी ड्रैकुला की तरह चूस और चाट रहा था, बस फर्क इतना था की मेरी इच्छा उनका खून पीने की नहीं थी|


अभी केवल दस मिनट ही हुए थे और अब मैं इस सम्भोग को और आगे नहीं ले जा सकता था, मेरा ज्वालामुखी भौजी की योनि के अंदर ही फूट पड़ा| भौजी को जैसे ही मेरा गर्म वीर्य उनकी योनि में महसूस हुआ उन्होंने मेरे लिंग को एक झटके में अपने हाथ से पकड़ बहार निकाल दिया| जैसे ही मेरा लिंग बाहर आया भौजी की बुर से एक गाढ़ा पदार्थ नीचे गिरा और उसके गिरते ही आवाज आई; "पाच!!!" ये पदार्थ कुछ और नहीं बल्कि मेरे और भौजी के काम रसों का मिश्रण था| भौजी निढाल हो कर मेरे ऊपर गिर पड़ीं| मैंने उन्हें संभाला और उनके होंठों पर Kiss किया, उन्हें दिवार के सहारे खड़ा किया और अपनी जेब से रुमाल निकाल के उनकी योनि को पोंछा और फिर अपने लिंग को साफ़ किया| मैंने पास ही पड़े पोंछें से जमीन पे पड़ी उस "खीर" को साफ़ करने लगा जिस पर मखियाँ भिन्न-भिनाने लगीं थी| भौजी अब तक होश में आ गई थीं और वो स्वयं चलके चारपाई पर बैठ गईं| मैंने अपने हाथ धोये और तुरंत दरवाजा खोल उनके पास खड़ा हो गया, भौजी मेरी ओर बड़े प्यार से देख रही थी, पर मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था|

जारी रहेगा भाग-3 में .....





 

Rockstar_Rocky

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Hi everyone,

You’ve showered me with so much of love and support that I just can’t say enough thank you to each and everyone. I need your support again in one of my threads : New Desi Indexed Video Collection

As you can see its PnV section thread and you must be wondering what makes it different from other PnV threads. Well first of all since you like reading stories, this thread has a lot of short stories that I’ve written to give a brief info about the videos I’ve posted. I’m pretty sure you’re gonna love this thread!


All the videos that I’ve posted are tagged under different Tags. Just select your favorite tag and see what all videos are posted under it. Here are some tags :
बेवफा बीवी
ठरकी वेब सीरीज
भाभी जी घर पे हैं?!
मियाँ-बीवी
मलयालम/तमिल/तेलगु/कन्नडा

कौटुम्बिक व्यभिचार (Incest)
रंडी
देसी लौंडिया
देसी रण्डियां विदेश में
क्लोज अप वीडियो
हिंदी रोलप्ले
बंगाली भौजी
चूत में ऊँगली
MMS स्कैंडल
Lesbian/समलैंगिक
Gangbang/सामूहिक चुदाई
Village/गाँव में चुदाई
Outdoor Sex/खुले में चुदाई


The captions I’ve posted have all the information as to what is the file size, video duration, Video format.

I’m hoping you will show your support by liking the posts and if possible please comment. :)


 
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