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Fantasy अंजाम-ए-आशिक़ी (Completed)

Naik

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अंजाम-ए-आशिक़ी
_________☆☆☆_________



तुम्हारी हर धड़कन में नाम सिर्फ हमारा होगा।
तुम पर किसी और का नहीं, हक़ हमारा होगा।।

कोई एक पल के लिए भी तुम्हें अपना बनाए,
मेरी जान वो एक पल भी हमको न गवारा होगा।।

कुछ इस तरह से हम मोहब्बत का सिला देंगे,

के ना तुम होगे और ना ही कोई तुम्हारा होगा।।

उसका नाम कीर्ति था। मेरी नज़र में वो दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की थी। मैं दिलो जान से उसको प्यार करता था। आज से पहले मैं अक्सर यही सोच कर खुश होता था कि मेरी किस्मत बहुत ही अच्छी है जिसकी वजह से वो मेरी ज़िन्दगी में आई थी। पिछले डेढ़ साल से मैं उसे जानता था और इन डेढ़ सालों में हमारे बीच वो सब कुछ हो चुका था जो आज कल के लड़के और लड़कियां सबसे पहले कर लेने की चाह रखते हैं। जिस्मानी सम्बन्ध होने के बावजूद उसके प्रति मेरे प्यार में कभी कोई कमी नहीं आई थी, बल्कि अगर ये कहूं तो ज़्यादा बेहतर होगा कि हर गुज़रते पल के साथ मेरी चाहत और भी बढ़ती जा रही थी।

मैं दिल से चाहता था कि वो हमेशा के लिए मेरी बन जाए और मेरी बीवी बन कर एक दिन मेरे घर आए लेकिन उसके मन में ऐसी कोई बात नहीं थी। मैं कई बार उससे कह चुका था कि वो सिर्फ मेरी है और मैं उसे किसी और का नहीं होने दूंगा लेकिन वो अक्सर मेरी इन बातों को हंस कर उड़ा देती थी। वो अक्सर यही कहती थी कि मैं सिर्फ उससे मज़े लूं, ना कि उसके साथ जीवन के सपने सजाऊं। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि वो मुझसे उम्र में बड़ी थी और किसी प्राइवेट कंपनी में काम करती थी जबकि मैं कॉलेज में पढ़ने वाला सेकंड ईयर का स्टूडेंट था।

वो एक किराए के कमरे में अकेली ही रहती थी। उसने अपने बारे में मुझे यही बताया था कि उसका इस दुनियां में कोई नहीं है। वो अपने माता पिता की इकलौती औलाद थी और उसके माता पिता की कुछ साल पहले एक हादसे में मौत हो गई थी। उसके बाद से उसने खुद ही अपनी ज़िन्दगी की गाड़ी को आगे बढ़ाया था। डेढ़ साल पहले उससे मेरी मुलाक़ात मार्किट की एक दुकान पर हुई थी। वो पहली नज़र में ही मेरे दिलो दिमाग़ में जैसे छप सी गई थी। उसके बाद अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर मैंने जब उसका पीछा किया तो पता चला वो एक किराए के मकान में अकेली ही रहती है। उसे तो पता भी नहीं था कि कॉलेज में पढ़ने वाला एक लड़का उसे किस क़दर पसंद करने लगा है जिसके लिए वो अक्सर उसके गली कूचे में आ कर उसकी राह देखता है।

किस्मत में उससे मिलना लिखा था इस लिए एक दिन उसने मुझे पीछा करते हुए देख ही लिया। मैं उसके देख लेने पर घबरा तो गया था लेकिन फिर ये सोच कर उसका सामना करने के लिए तैयार हो गया कि अब जो होगा देखा जाएगा। कम से कम उससे अपने दिल की बात तो बता ही दूंगा। मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि उस दिन वो मुझे मिल जाने वाली थी। मैं भी दिखने में अच्छा ख़ासा ही था। मेरे कॉलेज की कई लड़कियां मुझे प्रोपोज़ कर चुकीं थी लेकिन मैं तो सिर्फ कीर्ति का दीवाना बन गया था। उस दिन जब वो मेरे क़रीब आ कर बोली कि उसे मैं पसंद हूं तो मैं एकदम से भौचक्का सा रह गया था। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मुझसे मिलते ही उसने ऐसा कह दिया था। वो तो बाद में उसने बताया कि वो कई दिनों से मुझ पर नज़र रख रही थी।

कीर्ति से पहले दोस्ती हुई और फिर धीरे धीरे हम दोनों बेहद क़रीब पहुंच गए। मैं खुश था कि किस्मत ने मेरे हिस्से में इतनी बड़ी ख़ुशी लिख दी थी। मैं उसकी छुट्टी के दिन अक्सर उसके कमरे में पहुंच जाता और फिर हम दोनों एक दूसरे के प्यार में खो जाते। उसी ने मुझे सिखाया कि किसी लड़की के साथ सेक्स कैसे करते हैं और उसे खुश कैसे रखते हैं। इन डेढ़ सालों में उसने मुझे सेक्स का उस्ताद बना दिया था और सच कहूं तो उसके साथ सेक्स करने में मुझे भी बेहद मज़ा आता था। मैं उसका दिवाना था और अक्सर उससे कहता था कि मैं उसी से शादी करुंगा। मेरी इस बात पर वो बस मुस्कुरा देती थी।

पिछ्ली बार जब मैं उसके पास गया था तब उसने मुझे एक झटका दे दिया था। एक ऐसा झटका जिसकी मैंने ख़्वाब में भी उम्मीद नहीं की थी। मैंने हमेशा की तरह जब उस दिन उससे ये कहा कि मैं उसी से शादी करुंगा तो उसने मुझसे कहा था।

"ऐसा नहीं हो सकता वंश।" उसने मेरी तरफ देखते हुए सहज भाव से कहा था____"क्योंकि मेरी शादी किसी और से पक्की हो चुकी है और बहुत जल्द हम शादी करने वाले हैं।"

पहले तो मुझे यही लगा था कि उसने ये सब मज़ाक में कहा था लेकिन जब उसने गंभीर हो कर फिर से अपनी बात दोहराई तो मैं जैसे सकते में आ गया था। मेरी धड़कनें थम सी गईं थी। ऐसा लगा जैसे सारा आसमान मेरे सिर पर गिर पड़ा हो। मेरे पैरों तले से ज़मीन ग़ायब हो गई थी। मैंने तो उसके साथ अपनी ज़िन्दगी के न जाने कितने सपने सजा लिए थे लेकिन उसने तो एक ही पल में मेरे उन सपनों को चूर चूर कर दिया था। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया हो और पूरी कायनात किसी घोर अन्धकार में खो गई हो।

"नहीं..।" मैं हलक फाड़ कर चिल्लाया था____"तुम सिर्फ मेरी हो और मैं तुम्हें किसी कीमत पर किसी और की नहीं होने दूंगा।"
"मैंने तुमसे कभी नहीं कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूं या तुमसे शादी करूंगी।" उसने जैसे मुझे होश में लाते हुए कहा था____"हम मिले और हमने एक दूसरे के साथ मज़ा किया, इसके अलावा मेरे ज़हन में दूसरी कोई बात कभी नहीं आई। बेहतर होगा कि तुम भी अपने ज़हन से बेकार के ये ख़याल निकाल दो।"

"नहीं निकाल सकता।" मैं जैसे हतास हो कर बोल पड़ा था____"मैं तुम्हें अपने दिलो दिमाग़ से नहीं निकाल सकता कीर्ति। तुम मेरी रग रग में बस चुकी हो। मैंने न जाने कितनी बार तुमसे कहा है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं और तुम्हीं से शादी करुंगा। फिर तुम कैसे किसी और से शादी करने का सोच सकती हो?"

"देखो वंश।" कीर्ति ने कहा था____"मैंने तुम्हें कभी प्यार वाली नज़र से नहीं देखा। ये सच है कि तुम भी मुझे अच्छे लगे थे लेकिन मेरे दिल में इसके अलावा कभी कुछ नहीं आया। अगर कभी ऐसा कुछ आया होता तो मैं ज़रूर तुम्हें बताती कि मेरे दिल में भी तुम्हारे लिए प्यार जैसी भावना है।"

"पर तुमने कभी मना भी तो नहीं किया।" मैंने ज़ोर दे कर कहा था____"मैं जब भी तुमसे कहता था कि मैं तुम्हीं से शादी करुंगा तो तुम बस मुस्कुरा देती थी। मैं तो यही समझता था कि तुम्हारी तरफ से हां ही है।"

"तुम ग़लत समझ रहे थे।" कीर्ति ने दो टूक लहजे में कहा था____"मैं तो बस तुम्हारी नादानी पर मुस्कुरा देती थी, ये सोच कर कि पढ़ने लिखने और मज़ा करने की उम्र में ये तुम कैसी बचकानी बातें किया करते हो। अब भला मैं क्या जानती थी कि तुम शादी करने की बात पर इतना ज़्यादा सीरियस हो।"

"अब तो पता चल गया है न?" मैंने कहा____"अब तो तुम जान गई हो न कि मैं तुमसे शादी करने के लिए कितना सीरियस हूं?"
"नहीं वंश।" कीर्ति ने कहा____"ये ज़रूरी नहीं कि तुम अगर मुझसे प्यार करते हो तो मैं भी तुमसे प्यार करूं। प्यार कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो बदले में कर ली जाए, बल्कि वो तो एक एहसास है जो किसी ख़ास को देख कर ही दिल में पैदा होता है। वैसे भी मैं इस प्यार व्यार के चक्कर में नहीं पड़ती। हम दोनों ने अब तक एक दूसरे के साथ खूब मज़े किए। ये सोच कर मेरी तरह तुम भी इस बात को बात को भूल जाओ।"

उस दिन मैंने कीर्ति को बहुत समझाने की कोशिश की थी लेकिन कीर्ति नहीं मानी। उसने साफ़ कह दिया था कि उसके दिल में मेरे प्रति प्यार जैसी कोई फीलिंग नहीं है। बल्कि आज तक वो मेरे साथ सिर्फ सेक्स के लिए ही टाइम पास कर रही थी। उसने मुझसे भी यही कहा कि मैं भी उसके बारे में बस यही समझूं। उस दिन कीर्ति की बातों से मेरा बहुत दिल दुख था। आँखों में आंसू लिए मैं उसके कमरे से चला आया था।

मैं इस बात को सहन ही नहीं कर पा रहा था कि डेढ़ सालों से कीर्ति सिर्फ सेक्स के लिए मुझसे संबंध रखे हुए थी। एक पार्क के कोने में बैठा मैं सोच रहा था कि क्या इन डेढ़ सालों में कभी भी कीर्ति के मन में मेरे प्रति प्यार की भावना न आई होगी? क्या सच में वो इतनी पत्थर दिल हो सकती है कि उसने इतने समय तक मुझे खिलौना समझ कर अपने साथ सिर्फ हवश का खेल खिलाया? एक मैं था कि हर रोज़ हर पल अपने दिल में उसके प्रति चाहत को पालता रहा और उस चाहत को सींच सींच कर और भी गहराता रहा।

दिलो दिमाग़ पर आँधियां सी चल रही थी और आँखों में दुःख संताप की ज्वाला। मेरी आँखों के सामने रह रह कर कीर्ति का चेहरा फ्लैश हो जाता था और साथ ही उसके साथ गुज़ारे हुए वो पल जिन्हें मैं बेहद हसीन समझता था।

"तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो कीर्ति।" मेरी आँखों के सामने मुझे वो मंज़र नज़र आया जब मैं कीर्ति के कमरे में उसके साथ बेड पर था। वो ब्रा पैंटी पहने लेटी हुई थी और मैं सिर्फ अंडरवियर पहने उसकी कमर के पास बैठा उसकी खूबसूरती को निहार रहा था।

"अच्छा।" उसने बड़ी अदा से मुस्कुरा कर कहा था____"सिर्फ मैं अच्छी लगती हूं या मेरा जिस्म भी अच्छा लगता है तुम्हें?"
"ज़ाहिर है कि जब तुम अच्छी लगती हो।" मैंने मुस्कुरा कर कहा था____"तो तुम्हारी हर चीज़ भी मुझे अच्छी लगती होगी।"

"तो मेरे जिस्म का कौन सा अंग तुम्हें सबसे ज़्यादा अच्छा लगता है?" कीर्ति ने क़ातिल नज़रों से देखते हुए पूछा था।
"सब कुछ" मैंने ये कहा तो उसने बुरा सा मुँह बना कर कहा था कि____"ऐसे नहीं डियर, नाम ले कर बताओ न।"

और फिर उसके बाद मैंने उसे एक एक कर के बताना शुरू कर दिया था कि मुझे उसके जिस्म का कौन कौन सा अंग अच्छा लगता था। मेरे बताने पर कीर्ति ने खुश हो कर मुझे अपनी तरफ खींच लिया था और फिर मेरे होठों को चूमने लगी थी। जब वो इस तरह से शुरू हो जाती थी तो फिर मेरा भी मुझ पर काबू नहीं रहता था। उसके बाद तो सेक्स के उस खेल का वही अंजाम होता था जो कि हमेशा से होता आया है।

आज सोचता हूं तो ऐसा लगता है जैसे कि वो मुझे अपने लिए ट्रेंड कर रही थी ताकि मैं उसको सेक्स का सुख दे सकूं। पार्क में बैठा जाने कितनी ही देर तक मैं इस सबके बारे में सोचता रहा और फिर दिन ढले अपने घर आ गया।


☆☆☆

मैं जानता था कि रविवार को कीर्ति की छुट्टी रहती थी इस लिए बहुत सोचने के बाद आज फिर से मैंने उससे मिलने का सोचा था। मेरे दिल के किसी कोने से अभी भी ये आवाज़ आ रही थी कि एक आख़िरी बार फिर से मैं कीर्ति से इस बारे में बात करूं। हो सकता है कि वो मेरे दिल हाल समझ जाए और वो किसी और से शादी करने का ख़याल अपने दिलो दिमाग़ से निकाल दे।

जब मैं कीर्ति के कमरे में पहुंचा तो देखा दरवाज़ा खुला हुआ था। जिस जगह वो रहती थी वो एक छोटा सा मकान था जो थोड़ा हट के था। हालांकि उसके आस पास और भी मकान बने हुए थे कित्नु वो सभी मकान एक जैसे ही थे। दो कमरे, एक किचेन, एक बाथरूम और एक छोटा सा ड्राइंग रुम।

मैं खुले हुए दरवाज़े से अंदर पहुंचा तो देखा कीर्ति पूरी तरह से सज धज कर कहीं जाने की तैयारी कर रही थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही वो पहले तो चौंकी फिर नार्मल हो गई। उसने ऐसा दर्शाया जैसे मेरे आने पर उसे कोई फ़र्क ही न पड़ा हो।

"कहीं जा रही हो क्या?" मैंने धड़कते दिल से पूछा।
"हां वो मार्किट जा रही हूं।" उसने अपने एक छोटे से बैग में कुछ डालते हुए कहा____"कल के लिए तैयारी करनी है न।"

"त..तैयारी??" मैं चौंका____"किस बात की तैयारी करनी है तुम्हें?"
"शादी की।" कीर्ति ने सहज और सपाट लहजे में कहा____"पंडित जी ने शादी के लिए कल का मुहूर्त ही शुभ बताया है। इस लिए उसी की तैयारी करनी है।"

"तो क्या तुम सच में शादी कर रही हो?" उसके मुख से शादी की बात सुन कर मेरा दिल जैसे धक्क से रह गया था____"नहीं नहीं….तुम ऐसा नहीं कर सकती।"

"देखो वंश।" उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मेरी अपनी भी ज़िन्दगी है जिसमें मेरे भी कुछ सपने हैं और मेरी भी कुछ ख़्वाहिशें हैं। इंसानी जानवरों से भरे इस संसार में अगर कोई नेक इंसान मुझ अकेली लड़की का हाथ थाम लेना चाहता है तो मैं इसके लिए बिलकुल भी मना नहीं कर सकती। तुम नहीं जानते कि मैंने अब तक क्या क्या सहा है।"

"और मेरा क्या..??" मैंने कातर भाव से उसकी तरफ देखा____"तुमने तो अपनी दुनियां बसाने का सोच लिया लेकिन मेरा क्या जिसकी दुनिया ही तुम हो?"
"इस बारे में हमारी पहले ही बात हो चुकी है वंश।" कीर्ति ने शख़्त भाव से कहा____"मैं तुम्हें पहले ही बता चुकी हूं कि मैं तुमसे प्यार नहीं करती। हमारे बीच बस एक ऐसा रिश्ता था जिसमें हम दोनों को अपनी अपनी जिस्मानी ज़रूरतों को पूरा करना था।"

"इतनी आसानी से तुम ये बात कैसे कह सकती हो?" मैंने झल्ला कर कहा____"तुम्हारी नज़र में भले ही वो सब चाहे जो रहा हो लेकिन मैं सिर्फ ये जानता हूं कि मैं तुमसे प्यार करता हूं और तुम्हीं से शादी करुंगा। तुम सिर्फ मेरी हो कीर्ति। मैं इस तरह तुम्हें किसी और का नहीं होने दूंगा।"

"अजीब पागल लड़के हो यार।" कीर्ति ने हंसते हुए कहा____"तुम इस तरह ज़ोर ज़बरदस्ती कर के कैसे किसी को अपना बना सकते हो? एक पल के लिए चलो मैं ये मान भी लूं कि मुझे तुम्हारी चाहत का ख़याल रखना चाहिए तो तुम ही बताओ कि क्या तुम इसी वक़्त मुझसे शादी कर सकते हो?"

"इस वक़्त नहीं कर सकता।" मैंने बेबस भाव से कहा____"लेकिन एक दिन तो करुंगा न?"
"उस दिन का इंतज़ार मैं नहीं कर सकती वंश।" कीर्ति ने कहा____"मैंने अपनी ज़िंदगी में बहुत दुःख सहे हैं। मुझे अपनी किस्मत पर ज़रा भी भरोसा नहीं है। कल को अगर तुमने भी किसी वजह से मुझसे शादी करने से इंकार कर दिया तो फिर मैं क्या करुँगी? नहीं वंश, तुम समझ ही नहीं सकते कि एक अकेली लड़की किस तरह से इंसानी जानवरों से भरे इस संसार में खुद को ज़िंदा रखती है।"

"मैं सब समझता हूं कीर्ति।" मैंने उसे मनाने की कोशिश की____"और ऐसा कभी नहीं होगा कि मैं तुमसे शादी करने से इंकार कर दूं। तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं।"

"फिल्मी डायलाग बोलने में और असल ज़िन्दगी में उनका अमल करने में बहुत फ़र्क होता है वंश।" कीर्ति ने गहरी सांस ली____"तुम अभी बच्चे हो। अभी तुमने दुनियां नहीं देखी है। जिस दिन अपने बलबूते पर दुनियां देखने निकलोगे तो तुम्हें समझ आ जाएगा कि कहने और करने में कितना फ़र्क होता है। तब ये प्यार का भूत भी तुम्हारे दिलो दिमाग़ से उतर जाएगा। मेरी बात मानो और इस सबको भूल जाओ। पढ़ लिख कर एक अच्छे इंसान बनो और ज़िन्दगी में आगे बढ़ो...चलती हूं अब।"

"नहीं तुम ऐसे नहीं जा सकती।" कीर्ति की बातों ने जैसे मेरे दिलो दिमाग़ में ज़हर सा भर दिया था। कोई नार्मल सिचुएशन होती तो यकीनन मुझे उसकी बातें समझ में आ जातीं लेकिन इस वक़्त मेरे दिलो दिमाग़ में उसके प्यार का भूत सवार था और मेरी ज़िद थी कि वो सिर्फ मेरी है।

"मैं तुम्हें प्यार से समझा रही हूं वंश।" कीर्ति ने तीखे भाव से कहा____"मुझे शख़्ती करने पर मजबूर मत करो।"
"मजबूर तो तुम मुझे कर रही हो।" मैंने इस बार गुस्से में कहा____"मेरी एक बात कान खोल कर सुन लो। तुम सिर्फ मेरी हो और अगर किसी और ने तुम्हें अपना बनाने की कोशिश की तो अंजाम बहुत बुरा होगा।"

"क्या करोगे तुम हां??" कीर्ति ने भी गुस्से में आ कर कहा____"अब एक बात तुम भी मेरी सुनो। अगर तुमने दुबारा मुझसे ऐसे लहजे में बात की या किसी तरह की धमकी दी तो फिर तुम्हारे लिए भी अच्छा नहीं होगा।"

"अगर तुम मेरी नहीं होगी।" मैंने गुस्से में दाँत पीसते हुए कहा____"तो तुम किसी और की भी नहीं हो पाओगी। मैं उसकी साँसें छीन लूंगा जो तुम्हें मुझसे छीनने की कोशिश करेगा, याद रखना।"

गुस्से में भभकते हुए मैंने कहा और फिर पैर पटकते हुए उसके घर से बाहर निकल आया। इस वक़्त मेरे दिलो दिमाग़ में भयंकर तूफ़ान चलने लगा था। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं सारी दुनियां को जला कर राख कर दूं। गुस्से में जलता हुआ मैं जाने कहां चला जा रहा था।

मेरी आख़िरी कोशिश ने भी दम तोड़ दिया था। मुझे ये सोच सोच कर और भी गुस्सा आ रहा था कि कीर्ति ने मेरे जज़्बातों को ज़रा भी अहमियत नहीं दी। उसे मेरी चाहत का ज़रा भी ख़याल नहीं था और ना ही उसे मुझ पर भरोसा था। मैं मानता था कि इस वक़्त मैं एक पढ़ने वाला स्टूडेंट था और उससे शादी करने की क्षमता नहीं रखता था लेकिन इसका मतलब ये हर्गिज़ नहीं हो सकता था कि सक्षम होने के बाद मैं उससे शादी ही नहीं करता? उसे मेरे प्यार पर और मेरी चाहत पर भरोसा करना चाहिए था।


☆☆☆

"मुझे एक कट्टा चाहिए।" एक दुकान के सामने खड़े आदमी से मैंने कहा।

शाम का वक़्त था और इस वक़्त मैं एक ऐसी जगह पर था जहां पर देशी कट्टे सस्ते दामों पर मिल जाते थे। इस जगह के बारे में मैंने सुना तो था लेकिन कभी इस तरफ आया नहीं था। बड़ी अजीब सी जगह थी और इस जगह पर मुझे अंदर से थोड़ा डर भी लग रहा था लेकिन मैं चेहरे पर डर को ज़ाहिर नहीं कर रहा था।

"किसी को उड़ाने का है क्या?" उस काले से आदमी ने मुझे घूर कर देखा था।
"नहीं, उस कट्टे को अपनी गांड के छेंद पर रख कर उस पर टट्टी करनी है।" मैंने निडरता से कहा तो उस काले से आदमी ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और फिर खी खी कर के हंसने लगा। उसके काले दाँत देख कर मेरे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई, लेकिन मैंने ज़ाहिर नहीं होने दिया।

"अच्छा है अच्छा है।" उस काले से आदमी ने सिर को हिलाते हुए तथा खीसें निपोरते हुए कहा____"अपने को क्या तू चाहे उसपे टट्टी कर या फिर उसे अपनी गांड में ही डाल ले। कट्टा चाहिए तो दो हज़ार का रोकड़ा लगेगा।"

"पर मैंने तो सुना है कि हज़ार पांच सौ में अच्छा सा कट्टा मिल जाता है!" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा।
"हां तो मैं भी इतने में दे दूंगा।" उस आदमी ने कहा____"पर पांच सौ वाला कट्टा उल्टा घोड़ा चलाने वाले को ही उड़ा दे इसकी गारंटी मैं नहीं लूंगा। सोच ले खुद की जान जाने का ख़तरा रहेगा।"

उस आदमी की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया था कि क्या ऐसा भी होता है कि चलाने वाले को ही उड़ा दे? कीर्ति से मिलने के बाद मैं दोपहर को घर आया था और अपने गुल्लक को फोड़ कर उसके सारे रूपए गिने थे। गुल्लक में ग्यारह सौ सत्ताइस रुपए थे। मैंने सोचा था कि पापा के घर आने से पहले ही कट्टे का जुगाड़ कर लूंगा। अपने पिता से अगर इतने पैसे मांगता तो वो पूछने लगते कि इतने पैसे मुझे किस काम के लिए चाहिए? मैं उनके इस सवाल का जवाब नहीं दे सकता था। इस लिए गुल्लक वाले रुपए ले कर मैं शाम को इसी जगह पर आ गया था।

मैंने जेब से निकाल कर हज़ार रुपए उस आदमी को दे दिए। उस आदमी ने पैसे ले कर उन्हें गिना और हंसते हुए बोला____"इतने चिल्लर कहां से चोरी कर के लाया है?"
"तुम्हें इससे क्या मतलब?" मैंने उसे घूरते हुए कहा____"पैसे पूरे हैं कि नहीं?"

"वो तो पूरे हैं।" उसने फिर से अपनी खीसें निपोरी____"अच्छा, यहीं रुक दो मिनट।"
"ठीक है।" मैंने कहा तो उसने पहले इधर उधर देखा और फिर अंदर की तरफ चला गया।

क़रीब पांच मिनट बाद वो आया तो उसके हाथ में मैंने एक कट्टा देखा। उसने मुझे कट्टा दिखाया और समझाया कि उसे कैसे पकड़ना है। कट्टा देशी ही था और उसमें गोलियां भी थीं। मैंने धड़कते दिल के साथ कट्टे को हाथ में ले कर थोड़ी देर उसे देखा परखा और फिर उसे अपनी कमर में खोंस कर शर्ट के नीचे दबा लिया। उसके बाद चेहरे पर बेहद ही शख़्त भाव लिए मैं चल पड़ा।


☆☆☆

रात भर मुझे नींद नहीं आई। रात भर मैं ये सोच सोच कर खुद को जलाता रहा कि जिसे मैंने इतना टूट टूट कर चाहा उसने एक बार भी मेरे दिल के हाल के बारे में नहीं सोचा और ना ही उसने मुझ पर और मेरी चाहत पर भरोसा किया। जब डेढ़ साल में उसने किसी से शादी नहीं की थी तो एक दो साल और न करती तो कौन सा पहाड़ टूट जाता? वो कहती तो मैं अपनी पढ़ाई छोड़ कर कोई काम धंधा करने लगता और उसके खर्चों का भार अपने कन्धों पर रख लेता लेकिन उसने एक बार भी ये नहीं सोचा। अरे! सोचना तो दूर उसने एक पल के लिए ये तक नहीं सोचा कि उसके बिना मैं कैसे जी पाऊंगा?

रात इसी तरह सोचते विचारते और खुद को जलाते हुए गुज़र गई। रात में एक पल के लिए भी मेरी आँखों में नींद नहीं आई। सुबह जब कानों में चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ पड़ी तो मैंने एक झटके में बिस्तर पर उठ कर बैठ गया। सिर भारी सा लग रहा था और आँखों में जलन सी हो रही थी।

मेरे घर में मेरे अलावा सिर्फ मेरे पापा ही थे। माँ तो बचपन में ही गुज़र गई थी। घर में लगी उनकी तस्वीर को देख कर ही मैंने जाना था कि वो मेरी माँ थी। बचपन से ले कर अब तक मेरे पापा ने ही मुझे पिता के साथ साथ माँ का प्यार दिया था। मैं उन्हें इस वक़्त अपना चेहरा नहीं दिखाना चाहता था क्योंकि वो मेरा चेहरा देख कर फ़ौरन ही समझ जाते कि मैं रात को सोया नहीं हूं और इसकी वजह यकीनन कोई ऐसी बात हो सकती है जिसने मुझे इस क़दर चिंता में डाल दिया होगा कि उसकी वजह से मुझे रात भर नींद नहीं आई। पापा मेरे लिए बेकार में ही परेशान हो जाते। इस लिए मैंने उनके काम पर जाने का इंतज़ार किया। वो सुबह आठ बजे ही काम पर चले जाते थे किन्तु उसके पहले वो सुबह सुबह उठ कर घर का सारा काम कर डालते थे और मेरे लिए नास्ता तैयार कर के ही अपने काम पर जाते थे।

किसी तरह घड़ी ने साढ़े सात बजाए और कमरे के बाहर से पापा की आवाज़ आई। वो मुझे उठ जाने को कह रहे थे और साथ ही ये भी बता रहे थे कि उन्होंने मेरे लिए नास्ता तैयार कर दिया है इस लिए मैं समय से खा पी कर अपने कॉलेज चला जाऊंगा। उनकी इस बात पर मैंने कमरे के अंदर से ही आवाज़ दे कर कहा कि ठीक है पापा।

बाहर वाले दरवाज़े के बंद होने की आवाज़ जब मेरे कानों में पड़ी तो मैं अपने कमरे से निकला। बाहर छोटे से हॉल में एक तरफ की दिवार पर टंगी माँ की तस्वीर पर मेरी नज़र पड़ी तो मेरे अंदर एक टीस सी उभरी और पता नहीं क्यों मेरी आँखों में आंसू भर आए। मेरा मन एकदम से बोझिल हो गया। दिलो दिमाग़ जो कुछ पलों के लिए शांत सा हो गया था वो एक बार फिर से तरह तरह के ख़याल उभर आने की वजह से तूफ़ान का शिकार हो गया।

मां की तस्वीर को एक नज़र देखने के बाद मैं सीधा बाथरूम में घुस गया। मेरे दिलो दिमाग़ से कीर्ति के ख़याल जा ही नहीं रहे थे। किसी तरह फ्रेश हुआ और कपड़े पहन कर हॉल में आया तो अनायास ही मेरी नज़र एक तरफ रखे छोटे से टेबल पर पड़ी। उस टेबल में पीतल का एक सुराहीदार गमला रखा हुआ था और उसी गमले के पास कोई कागज़ तह किया रखा हुआ था। तभी घड़ी में आठ बजने से घंटे की आवाज़ हुई तो मेरा ध्यान घड़ी की तरफ गया।

"आठ बज चुके हैं।" मैंने मन ही मन सोचा____"आज कीर्ति किसी से शादी करने वाली है। आज वो किसी और की हो जाएगी।"

"नहीं..।" मैं हड़बड़ा कर जैसे चीख ही पड़ा____"नहीं, वो किसी और की नहीं हो सकती। वो सिर्फ मेरी है। हां हां, वो सिर्फ मेरी है। मैं उसे किसी और का नहीं होने दूंगा, और...और अगर किसी ने उसको मुझसे छीना तो मैं उसे जान से मार दूंगा।"

पलक झपकते ही मेरे दिलो दिमाग़ में आँधियां सी चलने लगीं थी। मैं एकदम से पागलों जैसी हालत में नज़र आने लगा था। मैं तेज़ी से अपने कमरे की तरफ बढ़ा। तकिए के नीचे मैंने वो कट्टा छुपा के रखा था। उसे मैंने तकिए के नीचे से निकाला। कट्टे को खोल कर मैंने चेक किया। पूरी छह गोलियां थी उसमें। अच्छे से देखने के बाद मैंने उसे बंद किया और उसे शर्ट के नीचे कमर पर खोंस लिया।


☆☆☆

सारे रास्ते मैं दिल में आग लिए और अंदर भयंकर तूफ़ान समेटे मंदिर तक आया था। इस बीच कई बार मेरा मोबाइल भी बजा था लेकिन मुझे जैसे अब किसी चीज़ का होश ही नहीं था।

कल ही मैंने कीर्ति का पीछा करते हुए देख लिया था कि वो किस जगह पर शादी करने वाली है? कल वो एक मंदिर के पंडित से बातें कर रही थी। मैं समझ गया था कि वो उसी मंदिर में किसी से शादी करने वाली है। उस वक़्त मेरे मन में सवाल उभरा था कि अगर उसे किसी से शादी ही करनी है तो मंदिर में ही क्यों? इसका मतलब उसकी शादी में ताम झाम वाला कोई सिस्टम नहीं होना था। मंदिर में किसी के साथ वो शादी के बंधन में बंधने वाली थी और मेरे दिल के हज़ार टुकड़े कर देने वाली थी।

शहर के उत्तर दिशा की तरफ एक शिव पार्वती का मंदिर था। मैंने दूर से देखा कि आज वो मंदिर थोड़ा सजा हुआ था। मंदिर के अंदर छोटे से हॉल में मुझे कीर्ति नज़र आई। दुल्हन के लाल सुर्ख जोड़े में थी वो। बेहद ही सुन्दर लग रही थी वो उस लाल जोड़े में। उसे उस जोड़े में देख कर मेरे दिल में एक दर्द भरी टीस उभरी। दिल के साथ साथ मेरा पूरा बदन जैसे किसी भीषण आग में जल उठा।

अभी मैं कीर्ति को दुल्हन के लाल जोड़े में सजी देख ही रहा था कि तभी एक आदमी उसके पास आया। उसके सिर पर सेहरा लगा हुआ था इस लिए मुझे उसका चेहरा दिखाई नहीं दिया। उस आदमी को देखते ही मेरे तन बदन में आग लग गई। चेहरा पत्थर की तरह शख़्त हो गया और मुट्ठिया कस ग‌ईं।

मैंने देखा मंदिर में उन दोनों के अलावा एक पंडित था और मंदिर के बाहर एक कोने में एक और ब्यक्ति था जो कि कोई कपड़ा ओढ़े बैठा हुआ था। उधर मंदिर के हॉल के बीचो बीच छोटे से हवन कुंड में आग जल रही थी। तभी पंडित ने उन दोनों को बैठने का इशारा किया तो वो दोनों एक दूसरे को देखते हुए बैठ ग‌ए।

"नहीं..नहीं।" मेरे ज़हन में जैसे कोई चीख उठा____"ये नहीं हो सकता। कीर्ति इस तरह किसी की नहीं हो सकती...वो सिर्फ मेरी है।"


तुम्हारी हर धड़कन में नाम सिर्फ हमारा होगा।

तुम पर किसी और का नहीं, हक़ हमारा होगा।।

अपने अंदर विचारों का भयानक तूफ़ान समेटे मैंने एक झटके से अपनी कमर में खोंसा हुआ कट्टा निकाला और मंदिर की तरफ तेज़ी से चल दिया। मेरी नज़रें सिर्फ उस आदमी पर ही जमी हुईं थी जो कीर्ति के बगल से उसका दूल्हा बन के बैठा था। इस वक़्त जैसे वो मेरा सबसे बड़ा दुश्मन नज़र आ रहा था।

कुछ ही देर में मैं मंदिर के पास पहुंच गया। पंडित का मुख मेरी तरफ था जबकि उन दोनों का मुख अब मुझे बगल से दिखने लगा था। सबसे पहले कीर्ति बैठी हुई थी और फिर वो आदमी। मैं जैसे ही उनके क़रीब पंहुचा तो मेरे कानों में पंडित के मुख से निकल रहे मंत्र सुनाई दिए।

मुझसे पांच सात क़दम की दूरी पर मेरी चाहत किसी और के साथ बैठी हुई थी। दिल में एक बार फिर से दर्द भरी टीस उभरी। उधर जैसे कीर्ति को किसी बात का एहसास हुआ तो उसने गर्दन घुमा कर मंदिर के बाहर की तरफ देखा तो उसकी नज़र मुझ पर पड़ी। मुझे देखते ही उसके चेहरे पर चौंकने वाले भाव उभरे और फिर उसकी नज़र फिसल कर जैसे ही मेरे हाथ में पड़ी तो उसके चेहरे पर दहशत के भाव उभर आए।

"मैंने कहा था न कि तुम सिर्फ मेरी हो।" मैंने अजीब भाव से कहा____"और अगर किसी और ने तुम्हें मुझसे छीन कर अपना बनाया तो मैं उसे जान से मार दूंगा।"

मेरे मुख से निकले इन शब्दों ने जैसे पंडित और उस आदमी का भी ध्यान मेरी तरफ खींचा। उधर मेरी बात सुनते ही कीर्ति भय के मारे चीखते हुए उठ कर खड़ी हो गई। उसके खड़े होते ही वो आदमी भी खड़ा हो गया। इससे पहले कि कोई कुछ बोल पाता या कुछ समझ पाता मैंने अपना हाथ उठाया और कट्टे की नाल सीधा उस आदमी पर केंद्रित कर दी।

"नहीं....।" कीर्ति आतंकित हो कर ज़ोर से चीखी किन्तु मेरी ऊँगली कट्टे की ट्रिगर पर दब चुकी थी। कट्टे से एक तेज़ आवाज़ निकली और पलक झपकते ही गोली निकली जो सीधा उस आदमी के गले में छेंद करती हुई दूसरी तरफ निकल गई।


कोई एक पल के लिए भी तुम्हें अपना बनाए,

मेरी जान वो एक पल भी हमको न गवारा होगा।।

वो आदमी कटे हुए पेड़ की तरह लहराया और वहीं मंदिर के फर्श पर ढेर हो गया। फर्श पर उसका खून बड़ी तेज़ी से फैलने लगा था। वक़्त जैसे अपनी जगह पर जाम सा हो गया था। उधर कीर्ति फटी फटी आँखों से फर्श पर पड़े उस आदमी को बेयकीनी से देखे जा रही थी जो कुछ देर पहले उसका पति बनने वाला था।

अचनाक ही कीर्ति को जैसे होश आया। वो एक झटके से पलटी और बुरी तरह रोते हुए चीख पड़ी____"आख़िर तुमने मार ही डाला न मेरे होने वाले पति को? तुम इंसान नहीं हैवान हो। अब मुझे भी मार दो। मैं भी अब जीना नहीं चाहती।"

"सही कहा।" मैंने अजीब लहजे में कहा____"तुझे भी जीने का कोई अधिकार नहीं है। जिसको मेरी मोहब्बत का और मेरे हाले दिल का ज़रा सा भी एहसास न हो ऐसी खुदगर्ज़ औरत को जीने का अधिकार भला कैसे हो सकता है? इस लिए अलविदा मेरी जान।"


कुछ इस तरह से हम मोहब्बत का सिला देंगे,
के ना तुम होगे और ना ही कोई तुम्हारा होगा।।


एक पल के लिए मेरा हाथ कांपा किन्तु अगले ही पल मैंने ट्रिगर दबा दिया। एक तेज़ धमाके के साथ वातावरण में कीर्ति की घुटी घुटी सी चीख भी गूँजी। पास ही खड़ा पंडित जैसे बेजान लाश में तब्दील हो गया था। मौत का ऐसा भयावह मंज़र देख कर जैसे उसके सभी देवी देवता कूच कर गए थे।

कीर्ति उस आदमी के पास ही ढेर हो गई थी। उसका भी खून उस आदमी के खून में शामिल होता जा रहा था। मैंने आख़िरी बार कीर्ति के खून से नहाए चेहरे को देखा और फिर जैसे ही पंडित की तरफ देखा तो वो एकदम से कांपते हुए बोल पड़ा____"मुझे मत मारना। मेरा इसमें कोई दोष नहीं है।"

सब कुछ ख़त्म हो चुका था। मैंने अपने हाथों से अपनी मोहब्बत को नेस्तनाबूत कर दिया था। सोचा था कि दिल में लगी आग शांत हो जाएगी लेकिन नहीं, ऐसा नहीं हुआ था। बल्कि दिल की आग तो और भी ज़्यादा भड़क उठी थी। अपनी आँखों में आंसू लिए मैं किसी तरह अपने घर पहुंचा। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि मैं भी खुद को गोली मार लूं और दूसरी दुनियां में कीर्ति के पास पहुंच जाऊं।

घर आया तो हॉल की दिवार पर टंगी माँ की तस्वीर पर मेरी नज़र पड़ी। दिल का गुबार मुझसे सम्हाला न गया और मैं वहीं फर्श पर घुटने के बल गिर कर फूट फूट कर रोने लगा। तभी खुले हुए दरवाज़े से हवा का एक तेज़ झोंका आया जिससे मेरी नज़र कुछ ही दूरी पर रखे उस छोटे से टेबल की तरफ गई। उस टेबल में रखा हुआ वो कागज़ हवा के खोंके से उड़ कर नीचे गिर आया था।

मैंने किसी तरह खुद को सम्हाला और उठ कर उस कागज़ को उठा कर उसे देखा। किसी डायरी का पन्ना था वो जो तह कर के टेबल पर रखा गया था। मैंने उसे खोल कर देखा तो उसमें कोई मजमून लिखा हुआ नज़र आया।


मेरे प्यारे बेटे,

कई दिनों से तुमसे एक बात कहना चाह रहा था लेकिन तुम्हारे सामने कहने की हिम्मत ही नहीं जुटा सका था। आख़िर में मैंने इस कागज़ के माध्यम से तुम्हें अपनी बात बताने का फ़ैसला किया। बेटे मैं जानता हूं कि ये कोई उम्र नहीं है कि मैं फिर से शादी करूं, क्योंकि इस उम्र में तो अब मुझे अपने लिए एक बहू लानी चाहिए। लेकिन बार बार तुम्हें अपनी माँ की तस्वीर के सामने रोते हुए देखता था इस लिए मैंने बहुत सोच कर ये फ़ैसला लिया कि तुम्हारे लिए एक माँ ले आऊं। मैं जानता हूं कि दुनियां की कोई भी औरत तुम्हारी माँ जैसी नहीं हो सकती और ना ही उसकी तरह तुम्हें प्यार कर सकती है लेकिन फिर भी तुम्हारे जीवन में जो माँ शब्द की कमी है उसे तो पूरी कर ही सकती है।
बेटे मैं जिस कंपनी में काम करता हूं उसी कंपनी में एक कीर्ति नाम की लड़की काम करती है। पता नहीं कैसे पर शायद ये किस्मत में ही लिखा था कि एक दिन वो मेरी ज़िन्दगी में मेरी पत्नी बन कर आएगी और उससे तुम्हें माँ का प्यार मिलेगा।
इससे ज़्यादा और क्या कहूं बेटे, बस यही उम्मीद करता हूं कि तुम मेरी भावनाओं को समझोगे और मेरे इस फ़ैसले पर मेरा साथ दोगे। मैं ये कागज़ इसी उम्मीद में छोड़ कर जा रहा हूं कि तुम इसे पढ़ कर शहर के शिव पार्वती मंदिर में ज़रूर आओगे। तुम्हारे आने से मुझे बेहद ख़ुशी होगी।


तुम्हारा पिता..

कागज़ में लिखे इस मजमून को पढ़ने के बाद मेरे हाथों से वो कागज़ छूट गया। आंखों के सामने मंदिर का वो दृश्य चमक उठा जब मैंने कीर्ति के होने वाले पति पर गोली चलाई थी और वो वहीं पर ढेर हो गया था। उस दृश्य के चमकते ही एकाएक मेरा सिर मुझे अंतरिक्ष में घूमता हुआ महसूस हुआ और मैं वहीं अचेत हो कर गिर पड़ा।



_______☆☆ समाप्त ☆☆_______
Bahot shaandaar story thi wakai lajawab
 

Jaguaar

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:congrats:for new thread bhai.


Story awesome thi. Vansh ne apni chahat mein andha hokar apne baap ko hi anjaane mein maardiyaa. Par aisa karne se kyaa usko uski chahat mili nhi. Ulta usne usko bhi maardiya.

Agar Vansh ke baap aur Kirti ki shaadi hojaati aur jab woh ghar aate toh kirti kistarah Vansh ko face karti kyoki usne toh pehle se uske hone wale bete ke saath sambandh bana liye thee.

Bina soche samjhe koi bhi kaam nhi karna chahiye. Warna baad mein uss kiye hue kaam ka bhoj saari zindagi rehta hai. Aur chah kar bhi paschyatap nhi kar sakte.

Yehi hua Vansh ke saath. Usne bina soche samjhe jo kiya usse uske pita ki jaan hi chali gayi.
 

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Mere aesa manna hai ki "Badla" sabse buri bala hai, log drugs sharab ke nashe se to ubhar jaye par badla dimag par chha jaye to shayad hi koi sambhal pata hai.

Isi baat ko apne kahani me apne kahani me acche se samjhaya hai, kayi Inspirational speakers ko kehte suna hai maine ke sacche pyar me "jalan" ki koi jagah nahi hoti halanki aese pyar karne wale se kabhi mulaqat nahi huyi, to is mamle me Vansh bilkul realistic charecter laga.

Par usne jo kadam uthaye, wo bade hi khatarnak hai. Ab badla koi seedhi rekha to nahi. Ki teer ki tarah kaman se nikle aur virodhi ki seene me jaa lage, badla tedhe medhe raaste se guzar kar najane kitni zindegiyon ko hani pohnchati hai. Aur Vansh khud hi apne badle ka shikar ho gaya.

Itni acchi kahani prastut karne ka shukria :shakehands:

Bas ek sawal.... Prefix "Fantasy" kyun rakha hai :D
 

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बहुत ही बेहतरीन और शानदार महोदय,

वाकई में कहानी बहुत छोटी है, लेकिन इस कहानी में बहुत बड़ी सीख छुपी है। बिना जाने, बिना किसी की भावनाओं को समझे आजकल के युवा ऐसे कदम उठा लेते हैं जो बाद में उन्हें दर्द और दुःख के सिवाय कुछ नहीं देता। वंश ने अपनी चाहत की आड़ में अनजाने से ही सही अपने माँ और बाप समान बाप को मार डाला। क्या मिल गया उसे ऐसा करके, कीर्ति भी नहीं मिली और अपने सिर से अपने ही बाप का साया छीन लिया उसने अपने ही हाथ से।।

इसीलिए कहते हैं कि बिना विचारे जो करे। सो पाछे पछताए।।

अब वंश को पछताने के अलावा कुछ नही मिलेगा। एक गम जो उसने अपने हाथों से अपनी तकदीर में लिख दिया है अपने पापा को मारकर।।

Shukriya mahi madam is khubsurat sameeksha ke liye,,,,:hug:
Duniya me tarah tarah ki maansikta wale aashiq hote hain,,,,:D
 

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हम प्यार का सुबूत की बात कर रहे हैं मान्यवर।
उस कहानी पर जितने पाठक थे उसके आधे भी पाठक अपनी चूत मार सर्विस पर नहीं हैं,
Usko tab shuru karuga jab mere paas uchit waqt hoga. Baaki is kahani ko to time pass ke taur par shuru kiya hai. Readers nahi hain to koi baat nahi, Aap aur Sanju bhaiya to hain na,,, :D
ये भी कहानी अधूरी छोड़ देंगे इसी बात का हवाला देकर। इसी तरह पाठकों का भरोसा उठता है लेखकों के ऊपर से।।

मेरी बात मानिए। प्यार का सुबूत को आगे बढ़ाइए।।
Pathako ke bare me kuch nahi kaha ja sakta madam. Aaj ke time me is forum par do chaar pathak mil jaye yahi bahut badi baat hai,,,,:dazed:
 

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Shukriya bhai,,,,:hug:
 
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Story awesome thi. Vansh ne apni chahat mein andha hokar apne baap ko hi anjaane mein maardiyaa. Par aisa karne se kyaa usko uski chahat mili nhi. Ulta usne usko bhi maardiya.

Agar Vansh ke baap aur Kirti ki shaadi hojaati aur jab woh ghar aate toh kirti kistarah Vansh ko face karti kyoki usne toh pehle se uske hone wale bete ke saath sambandh bana liye thee.

Bina soche samjhe koi bhi kaam nhi karna chahiye. Warna baad mein uss kiye hue kaam ka bhoj saari zindagi rehta hai. Aur chah kar bhi paschyatap nhi kar sakte.

Yehi hua Vansh ke saath. Usne bina soche samjhe jo kiya usse uske pita ki jaan hi chali gayi.
Shukriya bhai is khubsurat sameeksha ke liye,,,,:hug:
Vansh ko pata hi nahi tha ki keerti jisse shadi karne wali hai wo shakhs uska khud hi baap hai. Keerti ko bhi nahi pata tha ki wo is shakhs se shadi karne wali hai jiske bete ke sath wo pichhle dedh saal se sex relation rakhe huye hai. Ab ise ittefaaq kaho ya niyati, par uska anjaam jo hua wo bhayankar tha. Vansh aisi maansikta wala aashiq tha jisne jazbaat me andha ho kar sab kuch apne hatho barbaad kar diya. Khair Shukriya bhai,,,,:hug:
 
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