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Fantasy अंधेरे का बोझ : क्षीण शरीर और काला साया

अगर आपकी आत्मा किसी और के शरीर में घुस जाए तो क्या होगा?

  • अच्छा होगा

  • बुरा होगा

  • कुछ फरक नहीं पड़ेगा


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Anatole

⏳CLOCKWORK HEART 💙
Prime
132
703
94
Interesting 👏
Ismein incest hoga ke nhi yeh clear kar dein pls

Nice

हीरो को थोड़ा मजबूत बनाओ, और दुश्मन के अड्डे पर सीधा जाने से अच्छा विमल, कमिश्नर के बारे में जानकारी निकलवाए, सब समझ आ जाएगा।

बाकी बहन भाई वाली बात, तो मैं दूर हूं इस बात से।

A big no to incest from my side

बहुत अलग टॉपिक तो है ही, बहुत जबर्दस्त थ्रिलर की भी संभावनायें हैं
आरव के पास अब शुभम् बने रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं
हॉं अपने परिवार के लिए वो आरव का परिचित बल्कि अहसानमंद होने का हवाला देकर खुलकर सामने आ सकता है
इधर एक बड़ी समस्या आरव के अनजाने दुश्मन की है जो पुलिस प्रशासन में ऊंची जुगाड़ रखता है

इधर शुभम की बहन किस सहेली के घर है जो इतनी देर से फोन भी नहीं किया

अपडेट थोड़े जल्दी देना जिससे कहानी की दिशा समझ में आये और हम ज्यादा सटीक रिव्यू दे सकें

Bro plot achha laga aatma change ho chuki bhai abb aage dekhte hai.....

Bahut hi shandar update

Mind blowing bahut hi majedar update ♥️

Shaandar jabardast Romanchak Update 👌 👌

sir or bhi log he jo sex skip karke padte he

Kripya kuch kare hum apke intezar Mai hai bhai asha karte hai ap samjhe ge ki hum kya chate hai

Bahut hi shandar story he Anatole

Ek naya topic chuna he aapne............umeed he story bhi bahut hi badhiya hogi..........

Keep Rocking

Nice Start 👍

बहुत ही शानदार शुरुआत है! और कहानी का प्लॉट भी बहुत अच्छा है!

अगले भाग की प्रतीक्षा में!
भाग 3 आ चुका है
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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#३.जरूरत

मैं जब घर पहुंचा, सन्नाटा छाया हुआ था। चुपके से अंदर जाने लगा। तभी किसी की आहट हुई, बिना देरी किए मैं कमरे में घुस गया और अपनी टीशर्ट निकाल दी, जिसपर खून के छींटे थे। आइने में खुदको देखने लगा। इस चीज की आदत जल्द होने वाली नहीं थी।

तभी कोई दरवाजा ठोकने लगा। वैसे ही स्वेटर पहन कर, मैंने दरवाजा खोला। सामने सुचित्रा थी।

"श्वेता कहा है?" श्वेता, उसके बारे में तो मैं भूल ही गया, उसे तो अब तक घर आ जाना चाहिए था। ये सब मेरी गलती थी, किसी नाबालिक जैसी हरकत, मैं कैसे कर सकता हु।
मेरे चेहरे पर डर का भाव शायद सुचित्रा देख सकती थी।

सुचित्रा गुस्से से :"तुम्हारी इसी हरकत की वजह से, मुझे कितना सुनना पड़ा मालूम है? ये अच्छा हुआ वो जल्दी सो गए, वरना आज मैं भी नहीं बचा पाती तुम्हे।"

मैं बोल पड़ा :"मैं जाकर देखता हु, शायद उसकी सहेली के यहां ही होगी।" इतना कहकर चाबी ढूंढने लगा।

सुचित्रा ने मेरी बात सुन दरवाजे पर हाथ रख मुझे रोकते हुए:"अभी कही जाने की जरूरत नहीं, श्रद्धा के पिताजी आए थे उसके साथ पहुंचाने घरपर। वैसे तुम कहा गए थे, जरासा अच्छा क्या लगने लगा! कि आवारा दोस्तो के साथ घूमने लगे,आदित्य के साथ तो तुम नहीं थे उसकी मां ने बताया कि वो घर पर ही है।" आदित्य, शुभम का अच्छा मित्र था। ये बात शुभम की यादों में थी।

मैं झुके सिर के साथ :"सॉरी,आगे से ऐसा नहीं होगा।"

"अब उससे क्या होगा, ये तो अच्छा हुआ उसे जान पहचान वाले इंसान ने छोड़ दिया, अगर वो अकेली आती और कुछ बुरा जाता तो क्या करते? वैसे भी इस शहर में पुलिस सुरक्षित नहीं औरतें क्या होगी।"

अब मैं इस पर कुछ बोल नहीं पाया, बात सच ही थी, मुझसे गलती हुई। मुझे इस बात का ध्यान रखना चाहिए था। उसे मेरे भरोसे लेकर ही नहीं जाना चाहिए था। मुझपर दूसरी जिम्मेदारी थी लेकिन वो भी तो मेरे भरोसे बाहर आई थीं।

सुचित्रा ने मुझे शांत देखकर अपना गुस्सेका स्वर बदल दिया :"ठीक है,अब उसके बारे में ज्यादा मत सोचो हाथ-मुंह धो लो, मैं खाना लगाती हु।"

मैं ठंडे स्वर में:"उसकी कोई जरूरत नहीं।"

सुचित्रा ने मेरी तरफ गुस्से से घूर कर देखा।

सुचित्रा :"तुम्हारे पिताने ने पगार पर नहीं रखा है मुझे। जो इस तरह से बात करोगे, खाने को बुला रही हु। पूछ नहीं रही हु कि 'मालिक खाना खाओगे आप?', जितना तुम्हारे हिस्से का बचा है खालों।"

मैं हल्का चौंकते हुए : ठीक है।

मुझे नहीं लगा था कि सुचित्रा जी इस तरह की मां होगी। शायद बहुत गुस्से में है।

फिर मैं खाना खाने बैठा,नीचे दो रूम,एक किचेन और एक हॉल था। मैं हॉल में बैठ कर खाना खाने लगा। सुचित्रा जी वही बैठी थी।

"और हा कल सोमवार है, सुबह चुपचाप कॉलेज चले जाना, कोई आना कानी नहीं, आज दिन भर घूमने के बाद तुम कोई कारण भी नहीं बन सकते? चुपचाप चले जाना वरना तुम्हारी कोई खैर नहीं।"

कॉलेज, अरे यार, वहा पर क्या करूंगा? अगर रोज कॉलेज जाऊंगा तो कैसे होगा।

कुछ देर बाद लाइट बंद कर के सुचित्रा ऊपर सोने चली गई।
____



उन नन्हे हाथों डर के मारे मां के पल्लू को पूरी मुट्ठी ने जकड़ लिया। सिगरेट की बु एक डरावना अहसास मन में ला रही थी। मेरे पिता एक साधी शर्ट पहने , पूरी तरह अस्थिर होकर दरवाजे की और देख रहे थे। मां भी बहुत निराश थी।

"रेखा, तुम फिकर मत करो, मैं उन्हें सम्भल लूंगा।" मेरे पिताने कहा।
फिर उन्होंने ने एक लंबी सांस लेकर दरवाजा खोला।
तभी धड़से तीन हट्टे-कट्टे मर्द अंदर घुसे और बिना कुछ सोचे समझे उन्हें थप्पड़ मारने लगे।पिता नीचे गिर गए, वो बिनती करने लगे साथ ही मां भी,मेरा डर और अपने पिता को इस तरह मार खता देख मैं, 8 साल का लड़का रोने लगा।

मां ने चीखते हुए उन्हें रोकने की कोशिश करने लगी। उन्होंने कुछ गालियां के साथ, मेरे पिता को लातों घुसे मारना शुरू कर दिये। चीखे-शोर गूंज रहा था, मां भीख मांगने लगी थी। लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी। ऊपर से एक मर्द ने लात मारकर मां को गिरा दिया। मेरे पिताने जिनका चेहरा खून से सन चुका और आंखे पूरी तरह खुल नहीं रही थी। एक लात उनकी गर्दन पर रखी हुई थी। ये सब देख मेरा शरीर काप रहा था, लेकिन मैं कुछ करने के काबिल नहीं था। मुझे कुछ करना चाहिए था, लेकिन कर नहीं पाया।
मेरे पीता कि की आवाज तभी दर्द और आंसू के साथ निकली।

"उन्हें कुछ मत करना, तुम सब का गुनाहगार मैं हु।" इतना कहते ही उनमें से एक बोला।
"साले,उनके साथ क्या होगा ये देखने के लायक तो तुझे नहीं छोडूंगा." और जोर से लात मेरे पिता के मुंह पर दे मारी, और अलग होकर कुछ कहते मुंह पर थूक दिया। इस वक्त मेरे पिता का सिर नीचे झुका हुआ था। वो कुछ करना पाए। वो मुझे और मेरी मां को सुरक्षित नहीं रख पाए जैसा उन्होंने कहा था। मां उन सबके सामने गिर कर मेरे पिता के जान की भीख मांगने लगी।

तभी एक आदमी ने अपनी जेब से बंदूक निकाली। इस वक्त मैं बिना कुछ सोचे मेरे पिता की तरफ भागा,उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे जैसे उन्होंने इन सब को अपनी तकदीर मान ली थी। मैं जोर से चीखने लगा।

मैं बैठ खड़ा हो गया,ध्यान आते ही मेरे गले में चीख वही कैद हो गई। साँस वही रुक गई थी। भौवें पसीना पसीना हो गई।

"शुभम! क्या हुआ?" सामने श्वेता थी, मुझे इस तरह देख चिंता में थी। मैंने आस-पास देखा। वो कुछ पूछती इससे पहले मैं तैयार होने चला गया, मुझे आज कॉलेज भी जाना था।
मेरा मन तो नहीं था लेकिन आज श्वेता को कॉलेज में भी छोड़ना था।
________

विद्या सुबह तैयारी करके अपने काम निकल गई। आरव के जाने के बाद उसे खुदकी जिम्मेदारी निभानी थी और आरव के मां की भी।

वो एक अन्वी फाउंडेशन संस्था में काम करती थी। ये संस्था गरीब मरीजों को मदत करती थी। और विद्या वहां पर कार्यक्रम सहायक थी।

विद्या कार्यालय में काम करने लगी।

"हैलो, विद्या गुड मॉर्निंग।" ये डॉ.चेतन, कार्यक्रम निर्देशक था।

विद्या ने फीकी मुस्कान से साथ गुड मॉर्निंग कहा।

चेतन : "मैंने सुना, कल रात क्या हुआ तुम्हारे घर पर। कुछ पता चला, कौन था?"

विद्या : "नहीं पुलिस कोशिश कर तो रही है। अभी तक कुछ पता नहीं चला।"

चेतन :"अगर कोई जरूरत हो तो बता देना, मैं पुलिस में जानता हु कुछ लोगों को।"

विद्या यह पर लगभग 3 महीने से थी, चेतन विद्या का एक तरह से दोस्त बन गया था।

विद्या "उसकी कोई जरूरत नहीं है, आरव के दोस्त है, जो अभी के लिए मेरी मदत कर रहे है।"

चेतन सर हा में घुमाकर: " अच्छा ठीक है, आगे के प्रयोजन परसो करेंगे, आज तुम आराम ले लो।"

विद्या : " नहीं सर उसकी कोई जरूरत नहीं है, हम देर नहीं कर सकते वैसे भी, मेरा मन घर पर भी नहीं लगेगा अब।"

चेतन : " ठीक है फिर वैसे खुशी तो मिलती है किसी को जिस चीज की जरूरत हो वो मिल जाए। लोगों का सहारा बनने पर। हम परिपूर्ण नहीं हमारी भी गलतियां है।"

विद्या : " थैंक यू,लेकिन जिस तरह आपने मेरी मदत की, मैने भी अपना सब कुछ खोया था अपना बच्चा, पति लेकिन आपलोगो ने मुझे सहारा दिया है। मैं कभी भी फाउंडेशन को अकेला नहीं छोड़ने वाली।"

_____

कॉलेज मैं बैठे बैठे बोर हो रहा था। सभी लौंड़े मौज मस्ती कर रहे थे।मेरी किसी भी चीज की इच्छा नहीं थी। सबलो गो के नाम तो पता थे, उनके बारे में जानकारी भी थी लेकिन वो अपने नहीं लग रहे थे। ऊपर से विद्या की चिंता मुझे बहुत सता रही थी। उसे सभी परेशानी मेरे कारण थी और मुझे कुछ भी पता नहीं था कि कुछ?। वो इंसान क्या ढूंढने आया था? मेरे घर पर,तो ऐसी कोई चीज नहीं थी।

तभी आदित्य नाम का बंदा ब्रेक में मेरे पास आया।

"क्या हुआ शुभम? कुछ फोन नहीं, मुझसे बात भी नहीं कर रहे, कुछ हुआ है क्या?"

मैं इसको क्या जवाब दु? ये सोचते हुए :"कुछ नहीं यार, घर की चिंता है।"

आदित्य : "घर चिंता तो रहती ही है? वैसे घर पर बताया तुमने?" आखिर में एकदम धीरे से बोला।

मैं आदित्य को ना समझ पाया : "क्या?"

आदित्य आंखों से इशारा कर रहा था, फिर उसने थोड़ा गंभीर हो कर, : "इस बार ये हादसे से निपट गया, तुम्हे किसी बड़े की मदत लेनी चाहिए, वो लोग तुम्हे इतनी जल्दी नहीं छोड़ेंगे।"

मैं सवालिया नजरों से:"कौन लोग?"

आदित्य : "गौतम, और कोण।"

आदित्य ने इतना कहा तभी पीछे से आवाज आई।

"मेरी बात हो रही है?" तो ये गौतम था, आदित्य के पीछे एक बड़ा सा यानी बड़े चर्बी वाला लड़का खड़ा था। मुझे क्या मामला था ये तो नहीं समझ रहा था, लेकिन गौतम के बारे में जिस तरह आदित्य बात कर रहा था, कुछ तो किया था उसने?

"तो क्या शुभम, आज श्याम को आ रहे हो ना?"
गौतम ने कहा।

आदित्य: "वो क्यों आयेगा?"

गौतम आंखे बड़ी करते हुए :"शायद आदित्य तुम जानते नहीं?मैं तो थोड़ी बहुत रैगिंग करके छोड़ देता, लेकिन ये मामला कॉलेज के बाहर जा चुका है, अगर शुभम ने पैसे नहीं दिए तो विजू दादा क्या हाल करेंगे ये तो जानते ही हो।"

विजू दादा नाम सुनते ही याद आया कि शुभम को किसी बारे में सता रहा था उससे ज्यादा कुछ याद नहीं आ रहा था,क्यों पता नहीं, याद तो आ जाना चाहिए था।

आदित्य : "शुभम कोई पैसे नहीं देगा, अगर तुमने शुभम को धमकाने की कोशिश की तो हम मुख्याध्यापक सर को बता देंगे।"

गौतम आदित्य की बात पर मुस्कुराया :"किसे भी बताओ, तुम्हे लगता है हम डर जाएंगे विजू भाई है वो।"

तभी मेरी नजर मेरी बहन पर गई, वो दूर से देख रही थी। आस पास सभी की नजरे हमारी और थी। शायद गौतम ने बहुत ज्यादा ही शुभम को सताया था, लेकिन स्टूडेंट्स को पीटना तो मेरे उसूलों के खिलाफ था।

"ओके, आ जाऊंगा श्याम को, वैसे विजू भाई कहा मिलेंगे?"

मेरी बात पर आदित्य थोड़ा नाराज हुआ,
गौतम इस बात पर चढ़ने लगा :"तू श्याम को हर बार की तरह मिल, ज्यादा सवाल मत पूछ तू उसी लायक है।"

गौतम के जाने के बाद। एक लड़की हमारी तरफ भाग कर आ गई। वो स्वाति थी, शुभम की दूसरी दोस्त, जो हमसे सीनियर थी। उसके साथ एक लड़का और दो लड़किया भी थी।

"क्या कह रहा था वो?"

आदित्य: "कुछ नहीं, वही रोज का शुभम का सताना,बहुत दिनों बाद जो आया है ना,अभी हमे क्लास में जाना है बादमें बात करते है।"

आदित्य ने बात टालते हुए मुझे डांटते हुए दूसरी तरफ ले जाने लगा।

आदित्य : "तुम सच में नहीं जा रहे हो ना।"

मैंने एक बार आदित्य की तरफ देखा:"बिल्कुल नहीं।"

आदित्य ने मेरी बात लंबी सांस ली।

आदित्य : " मुझे लगा था, तुम फिर से उसी तरफ चले जाओगे, लेकिन मुझे तुमपर विश्वास है मुझसे कभी झूठ नहीं कहोगे।"

मैं उसकी बात पर मुस्कुराया और कुछ नहीं बोला बात को समझने की कोशिश करने लगा।
याद करने की कोशिश करने लगा।

आदित्य: "अभी सब कुछ नियंत्रण में है ना।"

मैं ना समझते हुए: " क्या?"

आदित्य:

"तुम ऐसे क्यों बर्ताव कर रहे हो? ड्रग्स की बात कर रहा हु? वरना श्वेता के सामने तुमसे बात नहीं कर लेता। तुम उसकी इच्छा नहीं हो रही ना।"


लाइक वगैरह कर दो। अगली अपडेट परसो ही आ रही है संडे को तो इसलिए ये थोड़ा छोटा था।
Shaandar jabardast Romanchak Update 👌 👌
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अरे यार, ये तो चरसी का शरीर मिल गया है एक योद्धा को।

बहुत मुश्किल है, ऐसे लोग का भरोसा कौन करता है, तभी श्वेता ने कहा कि "भाई बनने की जरूरत नहीं है।"
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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#३.जरूरत

मैं जब घर पहुंचा, सन्नाटा छाया हुआ था। चुपके से अंदर जाने लगा। तभी किसी की आहट हुई, बिना देरी किए मैं कमरे में घुस गया और अपनी टीशर्ट निकाल दी, जिसपर खून के छींटे थे। आइने में खुदको देखने लगा। इस चीज की आदत जल्द होने वाली नहीं थी।

तभी कोई दरवाजा ठोकने लगा। वैसे ही स्वेटर पहन कर, मैंने दरवाजा खोला। सामने सुचित्रा थी।

"श्वेता कहा है?" श्वेता, उसके बारे में तो मैं भूल ही गया, उसे तो अब तक घर आ जाना चाहिए था। ये सब मेरी गलती थी, किसी नाबालिक जैसी हरकत, मैं कैसे कर सकता हु।
मेरे चेहरे पर डर का भाव शायद सुचित्रा देख सकती थी।

सुचित्रा गुस्से से :"तुम्हारी इसी हरकत की वजह से, मुझे कितना सुनना पड़ा मालूम है? ये अच्छा हुआ वो जल्दी सो गए, वरना आज मैं भी नहीं बचा पाती तुम्हे।"

मैं बोल पड़ा :"मैं जाकर देखता हु, शायद उसकी सहेली के यहां ही होगी।" इतना कहकर चाबी ढूंढने लगा।

सुचित्रा ने मेरी बात सुन दरवाजे पर हाथ रख मुझे रोकते हुए:"अभी कही जाने की जरूरत नहीं, श्रद्धा के पिताजी आए थे उसके साथ पहुंचाने घरपर। वैसे तुम कहा गए थे, जरासा अच्छा क्या लगने लगा! कि आवारा दोस्तो के साथ घूमने लगे,आदित्य के साथ तो तुम नहीं थे उसकी मां ने बताया कि वो घर पर ही है।" आदित्य, शुभम का अच्छा मित्र था। ये बात शुभम की यादों में थी।

मैं झुके सिर के साथ :"सॉरी,आगे से ऐसा नहीं होगा।"

"अब उससे क्या होगा, ये तो अच्छा हुआ उसे जान पहचान वाले इंसान ने छोड़ दिया, अगर वो अकेली आती और कुछ बुरा जाता तो क्या करते? वैसे भी इस शहर में पुलिस सुरक्षित नहीं औरतें क्या होगी।"

अब मैं इस पर कुछ बोल नहीं पाया, बात सच ही थी, मुझसे गलती हुई। मुझे इस बात का ध्यान रखना चाहिए था। उसे मेरे भरोसे लेकर ही नहीं जाना चाहिए था। मुझपर दूसरी जिम्मेदारी थी लेकिन वो भी तो मेरे भरोसे बाहर आई थीं।

सुचित्रा ने मुझे शांत देखकर अपना गुस्सेका स्वर बदल दिया :"ठीक है,अब उसके बारे में ज्यादा मत सोचो हाथ-मुंह धो लो, मैं खाना लगाती हु।"

मैं ठंडे स्वर में:"उसकी कोई जरूरत नहीं।"

सुचित्रा ने मेरी तरफ गुस्से से घूर कर देखा।

सुचित्रा :"तुम्हारे पिताने ने पगार पर नहीं रखा है मुझे। जो इस तरह से बात करोगे, खाने को बुला रही हु। पूछ नहीं रही हु कि 'मालिक खाना खाओगे आप?', जितना तुम्हारे हिस्से का बचा है खालों।"

मैं हल्का चौंकते हुए : ठीक है।

मुझे नहीं लगा था कि सुचित्रा जी इस तरह की मां होगी। शायद बहुत गुस्से में है।

फिर मैं खाना खाने बैठा,नीचे दो रूम,एक किचेन और एक हॉल था। मैं हॉल में बैठ कर खाना खाने लगा। सुचित्रा जी वही बैठी थी।

"और हा कल सोमवार है, सुबह चुपचाप कॉलेज चले जाना, कोई आना कानी नहीं, आज दिन भर घूमने के बाद तुम कोई कारण भी नहीं बन सकते? चुपचाप चले जाना वरना तुम्हारी कोई खैर नहीं।"

कॉलेज, अरे यार, वहा पर क्या करूंगा? अगर रोज कॉलेज जाऊंगा तो कैसे होगा।

कुछ देर बाद लाइट बंद कर के सुचित्रा ऊपर सोने चली गई।
____



उन नन्हे हाथों डर के मारे मां के पल्लू को पूरी मुट्ठी ने जकड़ लिया। सिगरेट की बु एक डरावना अहसास मन में ला रही थी। मेरे पिता एक साधी शर्ट पहने , पूरी तरह अस्थिर होकर दरवाजे की और देख रहे थे। मां भी बहुत निराश थी।

"रेखा, तुम फिकर मत करो, मैं उन्हें सम्भल लूंगा।" मेरे पिताने कहा।
फिर उन्होंने ने एक लंबी सांस लेकर दरवाजा खोला।
तभी धड़से तीन हट्टे-कट्टे मर्द अंदर घुसे और बिना कुछ सोचे समझे उन्हें थप्पड़ मारने लगे।पिता नीचे गिर गए, वो बिनती करने लगे साथ ही मां भी,मेरा डर और अपने पिता को इस तरह मार खता देख मैं, 8 साल का लड़का रोने लगा।

मां ने चीखते हुए उन्हें रोकने की कोशिश करने लगी। उन्होंने कुछ गालियां के साथ, मेरे पिता को लातों घुसे मारना शुरू कर दिये। चीखे-शोर गूंज रहा था, मां भीख मांगने लगी थी। लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी। ऊपर से एक मर्द ने लात मारकर मां को गिरा दिया। मेरे पिताने जिनका चेहरा खून से सन चुका और आंखे पूरी तरह खुल नहीं रही थी। एक लात उनकी गर्दन पर रखी हुई थी। ये सब देख मेरा शरीर काप रहा था, लेकिन मैं कुछ करने के काबिल नहीं था। मुझे कुछ करना चाहिए था, लेकिन कर नहीं पाया।
मेरे पीता कि की आवाज तभी दर्द और आंसू के साथ निकली।

"उन्हें कुछ मत करना, तुम सब का गुनाहगार मैं हु।" इतना कहते ही उनमें से एक बोला।
"साले,उनके साथ क्या होगा ये देखने के लायक तो तुझे नहीं छोडूंगा." और जोर से लात मेरे पिता के मुंह पर दे मारी, और अलग होकर कुछ कहते मुंह पर थूक दिया। इस वक्त मेरे पिता का सिर नीचे झुका हुआ था। वो कुछ करना पाए। वो मुझे और मेरी मां को सुरक्षित नहीं रख पाए जैसा उन्होंने कहा था। मां उन सबके सामने गिर कर मेरे पिता के जान की भीख मांगने लगी।

तभी एक आदमी ने अपनी जेब से बंदूक निकाली। इस वक्त मैं बिना कुछ सोचे मेरे पिता की तरफ भागा,उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे जैसे उन्होंने इन सब को अपनी तकदीर मान ली थी। मैं जोर से चीखने लगा।

मैं बैठ खड़ा हो गया,ध्यान आते ही मेरे गले में चीख वही कैद हो गई। साँस वही रुक गई थी। भौवें पसीना पसीना हो गई।

"शुभम! क्या हुआ?" सामने श्वेता थी, मुझे इस तरह देख चिंता में थी। मैंने आस-पास देखा। वो कुछ पूछती इससे पहले मैं तैयार होने चला गया, मुझे आज कॉलेज भी जाना था।
मेरा मन तो नहीं था लेकिन आज श्वेता को कॉलेज में भी छोड़ना था।
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विद्या सुबह तैयारी करके अपने काम निकल गई। आरव के जाने के बाद उसे खुदकी जिम्मेदारी निभानी थी और आरव के मां की भी।

वो एक अन्वी फाउंडेशन संस्था में काम करती थी। ये संस्था गरीब मरीजों को मदत करती थी। और विद्या वहां पर कार्यक्रम सहायक थी।

विद्या कार्यालय में काम करने लगी।

"हैलो, विद्या गुड मॉर्निंग।" ये डॉ.चेतन, कार्यक्रम निर्देशक था।

विद्या ने फीकी मुस्कान से साथ गुड मॉर्निंग कहा।

चेतन : "मैंने सुना, कल रात क्या हुआ तुम्हारे घर पर। कुछ पता चला, कौन था?"

विद्या : "नहीं पुलिस कोशिश कर तो रही है। अभी तक कुछ पता नहीं चला।"

चेतन :"अगर कोई जरूरत हो तो बता देना, मैं पुलिस में जानता हु कुछ लोगों को।"

विद्या यह पर लगभग 3 महीने से थी, चेतन विद्या का एक तरह से दोस्त बन गया था।

विद्या "उसकी कोई जरूरत नहीं है, आरव के दोस्त है, जो अभी के लिए मेरी मदत कर रहे है।"

चेतन सर हा में घुमाकर: " अच्छा ठीक है, आगे के प्रयोजन परसो करेंगे, आज तुम आराम ले लो।"

विद्या : " नहीं सर उसकी कोई जरूरत नहीं है, हम देर नहीं कर सकते वैसे भी, मेरा मन घर पर भी नहीं लगेगा अब।"

चेतन : " ठीक है फिर वैसे खुशी तो मिलती है किसी को जिस चीज की जरूरत हो वो मिल जाए। लोगों का सहारा बनने पर। हम परिपूर्ण नहीं हमारी भी गलतियां है।"

विद्या : " थैंक यू,लेकिन जिस तरह आपने मेरी मदत की, मैने भी अपना सब कुछ खोया था अपना बच्चा, पति लेकिन आपलोगो ने मुझे सहारा दिया है। मैं कभी भी फाउंडेशन को अकेला नहीं छोड़ने वाली।"

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कॉलेज मैं बैठे बैठे बोर हो रहा था। सभी लौंड़े मौज मस्ती कर रहे थे।मेरी किसी भी चीज की इच्छा नहीं थी। सबलो गो के नाम तो पता थे, उनके बारे में जानकारी भी थी लेकिन वो अपने नहीं लग रहे थे। ऊपर से विद्या की चिंता मुझे बहुत सता रही थी। उसे सभी परेशानी मेरे कारण थी और मुझे कुछ भी पता नहीं था कि कुछ?। वो इंसान क्या ढूंढने आया था? मेरे घर पर,तो ऐसी कोई चीज नहीं थी।

तभी आदित्य नाम का बंदा ब्रेक में मेरे पास आया।

"क्या हुआ शुभम? कुछ फोन नहीं, मुझसे बात भी नहीं कर रहे, कुछ हुआ है क्या?"

मैं इसको क्या जवाब दु? ये सोचते हुए :"कुछ नहीं यार, घर की चिंता है।"

आदित्य : "घर चिंता तो रहती ही है? वैसे घर पर बताया तुमने?" आखिर में एकदम धीरे से बोला।

मैं आदित्य को ना समझ पाया : "क्या?"

आदित्य आंखों से इशारा कर रहा था, फिर उसने थोड़ा गंभीर हो कर, : "इस बार ये हादसे से निपट गया, तुम्हे किसी बड़े की मदत लेनी चाहिए, वो लोग तुम्हे इतनी जल्दी नहीं छोड़ेंगे।"

मैं सवालिया नजरों से:"कौन लोग?"

आदित्य : "गौतम, और कोण।"

आदित्य ने इतना कहा तभी पीछे से आवाज आई।

"मेरी बात हो रही है?" तो ये गौतम था, आदित्य के पीछे एक बड़ा सा यानी बड़े चर्बी वाला लड़का खड़ा था। मुझे क्या मामला था ये तो नहीं समझ रहा था, लेकिन गौतम के बारे में जिस तरह आदित्य बात कर रहा था, कुछ तो किया था उसने?

"तो क्या शुभम, आज श्याम को आ रहे हो ना?"
गौतम ने कहा।

आदित्य: "वो क्यों आयेगा?"

गौतम आंखे बड़ी करते हुए :"शायद आदित्य तुम जानते नहीं?मैं तो थोड़ी बहुत रैगिंग करके छोड़ देता, लेकिन ये मामला कॉलेज के बाहर जा चुका है, अगर शुभम ने पैसे नहीं दिए तो विजू दादा क्या हाल करेंगे ये तो जानते ही हो।"

विजू दादा नाम सुनते ही याद आया कि शुभम को किसी बारे में सता रहा था उससे ज्यादा कुछ याद नहीं आ रहा था,क्यों पता नहीं, याद तो आ जाना चाहिए था।

आदित्य : "शुभम कोई पैसे नहीं देगा, अगर तुमने शुभम को धमकाने की कोशिश की तो हम मुख्याध्यापक सर को बता देंगे।"

गौतम आदित्य की बात पर मुस्कुराया :"किसे भी बताओ, तुम्हे लगता है हम डर जाएंगे विजू भाई है वो।"

तभी मेरी नजर मेरी बहन पर गई, वो दूर से देख रही थी। आस पास सभी की नजरे हमारी और थी। शायद गौतम ने बहुत ज्यादा ही शुभम को सताया था, लेकिन स्टूडेंट्स को पीटना तो मेरे उसूलों के खिलाफ था।

"ओके, आ जाऊंगा श्याम को, वैसे विजू भाई कहा मिलेंगे?"

मेरी बात पर आदित्य थोड़ा नाराज हुआ,
गौतम इस बात पर चढ़ने लगा :"तू श्याम को हर बार की तरह मिल, ज्यादा सवाल मत पूछ तू उसी लायक है।"

गौतम के जाने के बाद। एक लड़की हमारी तरफ भाग कर आ गई। वो स्वाति थी, शुभम की दूसरी दोस्त, जो हमसे सीनियर थी। उसके साथ एक लड़का और दो लड़किया भी थी।

"क्या कह रहा था वो?"

आदित्य: "कुछ नहीं, वही रोज का शुभम का सताना,बहुत दिनों बाद जो आया है ना,अभी हमे क्लास में जाना है बादमें बात करते है।"

आदित्य ने बात टालते हुए मुझे डांटते हुए दूसरी तरफ ले जाने लगा।

आदित्य : "तुम सच में नहीं जा रहे हो ना।"

मैंने एक बार आदित्य की तरफ देखा:"बिल्कुल नहीं।"

आदित्य ने मेरी बात लंबी सांस ली।

आदित्य : " मुझे लगा था, तुम फिर से उसी तरफ चले जाओगे, लेकिन मुझे तुमपर विश्वास है मुझसे कभी झूठ नहीं कहोगे।"

मैं उसकी बात पर मुस्कुराया और कुछ नहीं बोला बात को समझने की कोशिश करने लगा।
याद करने की कोशिश करने लगा।

आदित्य: "अभी सब कुछ नियंत्रण में है ना।"

मैं ना समझते हुए: " क्या?"

आदित्य:

"तुम ऐसे क्यों बर्ताव कर रहे हो? ड्रग्स की बात कर रहा हु? वरना श्वेता के सामने तुमसे बात नहीं कर लेता। तुम उसकी इच्छा नहीं हो रही ना।"


लाइक वगैरह कर दो। अगली अपडेट परसो ही आ रही है संडे को तो इसलिए ये थोड़ा छोटा था।
शुभम नशेड़ी और गैरजिम्मेदार है
इधर विद्या का बच्चा भी नहीं, सांस की ज़िम्मेदारी और ये चेतन भी अबला की मदद करके अवसर बनाता लग रहा है

देखते हैं आरव अपनी मौत की डिपार्टमेंटल साज़िश के साथ साथ इन सब को कैसे सम्हालता है
 

Anatole

⏳CLOCKWORK HEART 💙
Prime
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703
94
अरे यार, ये तो चरसी का शरीर मिल गया है एक योद्धा को।

बहुत मुश्किल है, ऐसे लोग का भरोसा कौन करता है, तभी श्वेता ने कहा कि "भाई बनने की जरूरत नहीं है।"
उसके घर वालो को तो ये बात पता नहीं है। लेकिन शुभम नशेडी पन भी वजह है।
 

Anatole

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शुभम नशेड़ी और गैरजिम्मेदार है
इधर विद्या का बच्चा भी नहीं, सांस की ज़िम्मेदारी और ये चेतन भी अबला की मदद करके अवसर बनाता लग रहा है

देखते हैं आरव अपनी मौत की डिपार्टमेंटल साज़िश के साथ साथ इन सब को कैसे सम्हालता है
साजिश बहुत सी है।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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उसके घर वालो को तो ये बात पता नहीं है। लेकिन शुभम नशेडी पन भी वजह है।
नशेड़ी लोग आदतन गैरजिम्मेदार होते हैं भाई।
 
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