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bohot achchi baat kahi .... prem hi mool hai....'स्पर्श' या लिपटन की चाहा! शीघ्र ही वासना का खूनी खंजर बन जाती है!
और मुंशी प्रेमचंद्र ने तो यहाँ तक कहा हैः-
कि-"स्त्री की मोहिनी शक्ति से पृथ्वी का कोई पुरूष नहीं बच सकता!"
और यह सत्य है फिर भी!
जिस मोहिनी शक्ति से अहंकार युक्त बड़े-बड़े ऋषि , मुनि और समाधिस्थ व्यक्ति भी बच नहीं सकते !
वहाँ तुम्हारा बचपन तुम्हें सहजता से बचा सकता है ।
इसलिये तुम सिद्ध योगियोंमें सदा छोटे बच्चे जैसा आचरण पाओगे!
जो अस्तित्व उन्हें प्रदान करता है।
एक बच्चे जैसी चित्तदशा के समक्ष 'उर्वशी, मेनका और रम्भा " जैसी अप्सराओं के भी सारे हथियार निकम्में है।
पर वो 'प्रेम' का तत्व ही है जो तुम्हें फिर से तुम्हारा बचपन लौटा सकता है।
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Ye to aksar logo mein dekha gaya hai.....
Good thinking dear