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Incest अनोखे संबंध ।।। (Completed)

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  • Maa beta

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  • Baap beti

    Votes: 73 23.9%
  • Aunty bhatija

    Votes: 59 19.3%
  • Uncle bhatiji

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Babulaskar

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Update 20


राधा के दिल की धड़कन तेज़ हो गई थी। उसने अपनी सहेली को उसके बेटे के साथ देख लिया है, यह बात कोमल को पता नहीं लगना चाहिए। उसकी दोस्त कोमल आखिर अपने बेटे के चक्कर में फंस गई। क्या पता दोनों माँ और बेटे ने चुदाई भी कर ली हो। आखिर कमल जब अपनी बेटी के साथ फेरे लेने जा रहा है तो कोमल को भी पीछे नहीं रहना चाहिए। ठीक किया उसने के अपने बेटे को ही अपना यार बना लिया। राधा आँगन में पड़ी एक कुर्सी में बेठी हुई थी। कोमल जब कमरे से निकलती है तो उसे राधा दिख जाती है। राधा को देख कर कोमल का चेहरा खिल उठता है।

को: तू कब आई ? कोमल उसके पास जाती है।

राधा: आई हुँ तथोड़ी देर पहले।

को:फिर मुझे बुलाया क्यों नहीं?

रा: बुला कर क्या करती। शीतल के कमरे थी।

को:बहुत अच्छा किया तुने आ कर। इतना सारा काम पड़ा है और में ठहरी अकेली। चल रसोई में चल के बात करते हैं।

कों: देखा कुछ भी किया नहीं गया। सब सब्जियां भी काटनी है। घर की साफ सफाई । शीतल को तैयार करना। मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा है क्या करूं। कहाँ से शुरु करूं।

राधा: कोई नहीं। मैं तेरा हाथ बटा देती हुँ। दोनों एक साथ करेँगे तो जल्दी से निमट जायेगा। और दोनो काम में लग जाती है।

कोमल राधा से पूछती है: रघु कहाँ है? सुबह से इस तरफ आया भी नहीं।

राधा: क्या पता। होगा खेतों की तरफ किसी काम में। अब मुझे बता कर वह कहीं थोड़ा ही जाता है।

कोमल: उससे तेरी बात भी हुई?

राधा: तू तो जानती है मेरा बेटा रघु कितना शर्मिला है। कहते है ना बेटी बाप पर और बेटा माँ पर जाता है। रघु भी मेरी तरह बहुत शर्मिला है।

कोमल: वह तो मैं भी जानती हूँ। लेकिन इसी चक्कर में दोनो बाप बेटी का तो मिलन हो जायेगा लेकिन तेरा और रघु का क्या होगा। यही मैं सोच रही हूँ। आखिर उम्र में तू उससे बड़ी है तुझे ही आगे बड़ कर उससे बात करनी होगी। तू समझ रही है ना मेरी बात?

राधा: देखती हूँ। वह उदास सी होकर जवाब देती है। 'तू बता रामू के साथ तेरा केसा चल रहा है? तेरा बेटा तुझे प्यार तो करता है ना? राधा मांद मांद मुस्कुराने लगी।

कोमल: उस के सिर पर तो प्यार का भुत सवार हो चुका है। क्या बताऊँ तुझे राधा किसी भी वक्त पकड़ लेटा है । चुम्मा चाटी तो आम सी बात हो गई है । उसका बस चले तो मुझे अभी पकड़ के अपने नीचे डाल दे।

राधा उसकी बात पे खिलखिला उठती है । जिस पे कोमल बताती है : तुझे तो हंसी सूझ रही है। जिस दिन अपने बेटे रघु के हाथों पकड़ी जायेगी उस दिन तुझे भी पता चल जायेगा। अरे राधा तुझे क्या बताऊँ इन जवान लड़कों में कितनी आग होती है । इन का लण्ड तो हमेशा तना हुया रहता है। इन्हें अपनी आग बुझाने के लिये एक चुत चाहिए। चाहे वह जिस किसी की भी हो।

राधा: तो तेरे बेटे को अपनी आग बुझाने के लिये किसी चुत मिली के नहीं?

कोमल: मिल तो गई है लेकिन अभी तक उसका लण्ड उस में गया नहीं।

राधा: क्यों? जाने देती लण्ड को। फिर तेरे बेटे की आग भी बूझ जाती।

कोमल: तू तो कहके एक तरफ हो जायेगी। बाद में उसे सम्भालना तो मुझे पडेगा ना। एक बार अगर उसके आगे चुत खोल के पड़ गई ना फिर मैं भी अपना आपा खो दूँगी। फिर मुझे ना अपने पति की परवा होगी और ना ही बेटी की। आखिर चुत मरवाने में मैं रंडी से भी गई गुजरी बन जाती हुँ।

राधा: हाँ वह तो है। लेकिन सिर्फ तू नहीं। चुत मरवाते वक्त सभी औरत रंडी बन जाती है ।

कोमल: पता है मुझे तू कितनी बड़ी रंडी है। बात तो तेरे से करी नहीं जाती। चुत तू खाक मरवाईगी?

राधा: अरी चिंता क्यों करती है। तेरे साथ साथ मैं भी चुद जाऊँगी। अब खुश।

कोमल: हाय मेरी जान। तू ने तो मेरा दिल जीत लिया। मेरे दिल से एक बोझ उतर गया। एक काम कर, तू आज ही रघु से बात करने की कोशिस कर। उसे अपने दिल की बात कहने का मौका दे।

राधा: हाँ देखती हुँ।

इसी बात चीत के बीच बाहर रामू और रघु की आवाज सुनाई देती है। दौनों की आवाज सुनते ही राधा और कोमल के कान खडे हो गये।

रसोई से कोमल आवाज लगाती है: रघु ! तेरी माँ इधर है।

कोमल की बात सुन कर राधा सकपका जाती है। मौसी की आवाज सुन्के रघु रसोई में आके देखता है उसकी माँ और मौसी दोनो बेठे सब्जियां काट रही हैं। रघु की नजर अपनी माँ के उपर पड़ते ही कोमल कहती है: अपनी माँ को ढूंड रहा था क्या?

रघु: नहीं तो मौसी। मैं तो आप से मिलने आया था। रघु मजाक के मुड में था।

कोमल: वह भला क्यों? तेरी इतनी अच्छी माँ है। कहाँ उसका ख्याल रखेगा।

पीछे से रामू कह पड्ता है: माँ। रघु तो अपनी माँ का ख्याल रखना चाहता है। लेकिन जब मौसी हाँ करेगी तभी तो वह आगे बड़ेगा ना?

कोमल: तू चुप कर। बड़ा आया रघु का चमचा। तू बता रघु आखिर कब तक तेरी माँ इस तरह अकेली अकेली जिन्दगी गुजारेगी। तेरा बाप तो अब शहर का हो के रह गया है। तुझ को ही अपनी माँ की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। क्या उठा पायेगा अपनी माँ की जिम्मेदारी?

रघु: अरे मौसी मेरा बस चले तो मैं तुम दोनों की जिम्मेदारी अपने कंधे पर डाल लूँ। लेकिन बीच में तुम्हारा यह बेटा आ गया।' रामू उसकी बात पर जवाब देता है: आखिर माँ जिसकी है वही तो ख्याल रखेगा ना?

कोमल: तेरी बातों से लग रहा है तू सच मुच उठा सकता है। ठीक है मैं तेरी माँ से बात करता हुँ। अगर तेरी राजी हो जाये फिर मुकर ना जाना।

रघु अपनी माँ की तरफ हवस भरी निगाहों से देखता रहता है। जिस से राधा शर्म से पानी पानी हो जाती है। वह कभी रघु देखती फिर नजरें नीचे करके ना सुनने ना समझने का नाटक कर रहती है। रघु बोलता है: अरे मौसी एकबार तुम माँ को राजी तो करवा लो फिर देखना मैं माँ का किस तरह ख्याल रखता हूँ।

कोमल: तठीक है। मैं इसे राजी करवाती हूँ। आज रात को तुझे जवाब मिल जायेगा।

रघु: सच मौसी। मौसी अगर तुम ने मुझे खुश खबरी दोगी तो मैं भी तुम को खुश कर दूँगा।

कोमल: ठीक है देखा जायेगा। तुम दौनों जाओ। मैं तुम्हारे लिये चाय भेजती हूँ।

रघु बड़े खुशी से कहता है: मौसी अगर माँ राजी हो गई ना फिर मैं तुम्हें मौसी नहीं बुलाऊंगा।

कोमल: फिर किस नाम से बुलायेगा मुझे?

रघु: फिर तुम मेरी साली बन जाओगी।
 
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Mass

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Nice update...hope you'll find time to provide regular updates...the story is just too good.
Eagerly looking forward to the next update...as and when you get an early time. Thanks.
 

Babulaskar

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कहानी का नेम चेंज करना चाहता हूँ। क्र्पया मदद करें।
 

prkin

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कहानी का नेम चेंज करना चाहता हूँ। क्र्पया मदद करें।

मोडेरेटर को लिखें।
 
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Sanju@

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राधा के दिल की धड़कन तेज़ हो गई थी। उसने अपनी सहेली को उसके बेटे के साथ देख लिया है, यह बात कोमल को पता नहीं लगना चाहिए। उसकी दोस्त कोमल आखिर अपने बेटे के चक्कर में फंस गई। क्या पता दोनों माँ और बेटे ने चुदाई भी कर ली हो। आखिर कमल जब अपनी बेटी के साथ फेरे लेने जा रहा है तो कोमल को भी पीछे नहीं रहना चाहिए। ठीक किया उसने के अपने बेटे को ही अपना यार बना लिया। राधा आँगन में पड़ी एक कुर्सी में बेठी हुई थी। कोमल जब कमरे से निकलती है तो उसे राधा दिख जाती है। राधा को देख कर कोमल का चेहरा खिल उठता है।

को: तू कब आई ? कोमल उसके पास जाती है।

राधा: आई हुँ तथोड़ी देर पहले।

को:फिर मुझे बुलाया क्यों नहीं?

रा: बुला कर क्या करती। शीतल के कमरे थी।

को:बहुत अच्छा किया तुने आ कर। इतना सारा काम पड़ा है और में ठहरी अकेली। चल रसोई में चल के बात करते हैं।

कों: देखा कुछ भी किया नहीं गया। सब सब्जियां भी काटनी है। घर की साफ सफाई । शीतल को तैयार करना। मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा है क्या करूं। कहाँ से शुरु करूं।

राधा: कोई नहीं। मैं तेरा हाथ बटा देती हुँ। दोनों एक साथ करेँगे तो जल्दी से निमट जायेगा। और दोनो काम में लग जाती है।

कोमल राधा से पूछती है: रघु कहाँ है? सुबह से इस तरफ आया भी नहीं।

राधा: क्या पता। होगा खेतों की तरफ किसी काम में। अब मुझे बता कर वह कहीं थोड़ा ही जाता है।

कोमल: उससे तेरी बात भी हुई?

राधा: तू तो जानती है मेरा बेटा रघु कितना शर्मिला है। कहते है ना बेटी बाप पर और बेटा माँ पर जाता है। रघु भी मेरी तरह बहुत शर्मिला है।

कोमल: वह तो मैं भी जानती हूँ। लेकिन इसी चक्कर में दोनो बाप बेटी का तो मिलन हो जायेगा लेकिन तेरा और रघु का क्या होगा। यही मैं सोच रही हूँ। आखिर उम्र में तू उससे बड़ी है तुझे ही आगे बड़ कर उससे बात करनी होगी। तू समझ रही है ना मेरी बात?

राधा: देखती हूँ। वह उदास सी होकर जवाब देती है। 'तू बता रामू के साथ तेरा केसा चल रहा है? तेरा बेटा तुझे प्यार तो करता है ना? राधा मांद मांद मुस्कुराने लगी।

कोमल: उस के सिर पर तो प्यार का भुत सवार हो चुका है। क्या बताऊँ तुझे राधा किसी भी वक्त पकड़ लेटा है । चुम्मा चाटी तो आम सी बात हो गई है । उसका बस चले तो मुझे अभी पकड़ के अपने नीचे डाल दे।

राधा उसकी बात पे खिलखिला उठती है । जिस पे कोमल बताती है : तुझे तो हंसी सूझ रही है। जिस दिन अपने बेटे रघु के हाथों पकड़ी जायेगी उस दिन तुझे भी पता चल जायेगा। अरे राधा तुझे क्या बताऊँ इन जवान लड़कों में कितनी आग होती है । इन का लण्ड तो हमेशा तना हुया रहता है। इन्हें अपनी आग बुझाने के लिये एक चुत चाहिए। चाहे वह जिस किसी की भी हो।

राधा: तो तेरे बेटे को अपनी आग बुझाने के लिये किसी चुत मिली के नहीं?

कोमल: मिल तो गई है लेकिन अभी तक उसका लण्ड उस में गया नहीं।

राधा: क्यों? जाने देती लण्ड को। फिर तेरे बेटे की आग भी बूझ जाती।

कोमल: तू तो कहके एक तरफ हो जायेगी। बाद में उसे सम्भालना तो मुझे पडेगा ना। एक बार अगर उसके आगे चुत खोल के पड़ गई ना फिर मैं भी अपना आपा खो दूँगी। फिर मुझे ना अपने पति की परवा होगी और ना ही बेटी की। आखिर चुत मरवाने में मैं रंडी से भी गई गुजरी बन जाती हुँ।

राधा: हाँ वह तो है। लेकिन सिर्फ तू नहीं। चुत मरवाते वक्त सभी औरत रंडी बन जाती है ।

कोमल: पता है मुझे तू कितनी बड़ी रंडी है। बात तो तेरे से करी नहीं जाती। चुत तू खाक मरवाईगी?

राधा: अरी चिंता क्यों करती है। तेरे साथ साथ मैं भी चुद जाऊँगी। अब खुश।

कोमल: हाय मेरी जान। तू ने तो मेरा दिल जीत लिया। मेरे दिल से एक बोझ उतर गया। एक काम कर, तू आज ही रघु से बात करने की कोशिस कर। उसे अपने दिल की बात कहने का मौका दे।

राधा: हाँ देखती हुँ।

इसी बात चीत के बीच बाहर रामू और रघु की आवाज सुनाई देती है। दौनों की आवाज सुनते ही राधा और कोमल के कान खडे हो गये।

रसोई से कोमल आवाज लगाती है: रघु ! तेरी माँ इधर है।

कोमल की बात सुन कर राधा सकपका जाती है। मौसी की आवाज सुन्के रघु रसोई में आके देखता है उसकी माँ और मौसी दोनो बेठे सब्जियां काट रही हैं। रघु की नजर अपनी माँ के उपर पड़ते ही कोमल कहती है: अपनी माँ को ढूंड रहा था क्या?

रघु: नहीं तो मौसी। मैं तो आप से मिलने आया था। रघु मजाक के मुड में था।

कोमल: वह भला क्यों? तेरी इतनी अच्छी माँ है। कहाँ उसका ख्याल रखेगा।

पीछे से रामू कह पड्ता है: माँ। रघु तो अपनी माँ का ख्याल रखना चाहता है। लेकिन जब मौसी हाँ करेगी तभी तो वह आगे बड़ेगा ना?

कोमल: तू चुप कर। बड़ा आया रघु का चमचा। तू बता रघु आखिर कब तक तेरी माँ इस तरह अकेली अकेली जिन्दगी गुजारेगी। तेरा बाप तो अब शहर का हो के रह गया है। तुझ को ही अपनी माँ की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। क्या उठा पायेगा अपनी माँ की जिम्मेदारी?

रघु: अरे मौसी मेरा बस चले तो मैं तुम दोनों की जिम्मेदारी अपने कंधे पर डाल लूँ। लेकिन बीच में तुम्हारा यह बेटा आ गया।' रामू उसकी बात पर जवाब देता है: आखिर माँ जिसकी है वही तो ख्याल रखेगा ना?

कोमल: तेरी बातों से लग रहा है तू सच मुच उठा सकता है। ठीक है मैं तेरी माँ से बात करता हुँ। अगर तेरी राजी हो जाये फिर मुकर ना जाना।

रघु अपनी माँ की तरफ हवस भरी निगाहों से देखता रहता है। जिस से राधा शर्म से पानी पानी हो जाती है। वह कभी रघु देखती फिर नजरें नीचे करके ना सुनने ना समझने का नाटक कर रहती है। रघु बोलता है: अरे मौसी एकबार तुम माँ को राजी तो करवा लो फिर देखना मैं माँ का किस तरह ख्याल रखता हूँ।

कोमल: तठीक है। मैं इसे राजी करवाती हूँ। आज रात को तुझे जवाब मिल जायेगा।

रघु: सच मौसी। मौसी अगर तुम ने मुझे खुश खबरी दोगी तो मैं भी तुम को खुश कर दूँगा।

कोमल: ठीक है देखा जायेगा। तुम दौनों जाओ। मैं तुम्हारे लिये चाय भेजती हूँ।

रघु बड़े खुशी से कहता है: मौसी अगर माँ राजी हो गई ना फिर मैं तुम्हें मौसी नहीं बुलाऊंगा।

कोमल: फिर किस नाम से बुलायेगा मुझे?

रघु: फिर तुम मेरी साली बन जाओगी।
Excellent update

बहुत ही शानदार अपडेट है
 

Babulaskar

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Update 21


शादी का माहोल

शाम हो चुकी थी। शीतल व कमल की शादी कोई खास बात नहीं थी। इस गाँव में यह अक्सर होता रहता है । भाई बहन के साथ, बेटा माँ के साथ, और बाप की बेटी के साथ बियाह होना इस गाँव की एक परम्परा थी। जिसे मौका मिलता वह अपने लोगों को लेकर इस प्यार के बन्धन को अंजाम दे देता। यूँ तो कमल और शीतल की शादी में भी ज्यादा लोग नहीं थे। कुछ मेहमान जिन्हें कमल ने खास तौर पर बुलाया था वह आने शुरु हो गए थे।
कोमल खाना बनाने में ब्यस्त थी। वहीं रेखा और सपना शीतल को सजाने में लगी थी। और दोनो अपनी सहेली शीतल के साथ हंसी मजाक कर रही थी। रामू और रघु आँगन में बेठ के बात कर रहे थे।
बहुत जल्द पंडित जी भी आ गए। शर्माहट के इस प्रोग्राम में सभी के चेहरे पर एक मुस्कराहट थी। शर्म और नजाकत के साथ सब की नजर उन्हें ढूध रही थी जिन्हें वह चाहते हैं या उन्हें पाना चाहते हैं। शादी के वक्त राकेश अपनी बेटी रेखा को और रघु अपनी माँ राधा को कामुकता भरी नजरों देखे जा रहे थे। वही रामू अपनी माँ कोमल के पास किसी बहाने आता रहता और उसे चूम कर या उसकी गांड पर हाथ फेरता हुया चला जाता।

शादी का प्रोग्राम समाप्त होते और दो चार मेहमान जो आये थे खाना खाने के बाद चले गये। इसी के चलते रात के नौ बज चुके थे। गाँव में रात बहुत जल्दी आती है। कोमल ने अपनी बेटी की सुहागरात के लिए अपना कमरा छोड़ दिया था। वहीं शीतल को ठहराया गया। शीतल अपनी दोस्त रेखा के साथ सुहाग सेज पर बेठी बात कर रही थी। कोमल और राधा भी आपस में शादी के बारे बात चीत में लगी थी।
कोमल राधा को छेड़ते हुई बोली: आज तो तेरा बेटा तुझे खा जाने वाली नजरों से देखे ही जा रहा था।

राधा: तेरे बेटे की वजा से मेरा बेटा भी मुझ पर डोरे डाले जा रहा है।

कोमल: अच्छा जी मेरे बेटे की वजा से! लेकिन मुझे तो लगता है उससे ज्यादा तू उसके नीचे आने के लिए मरी जा रही है।

राधा: तेरे मुंह में कुछ भी आ जाता है। काफी रात हो गई है। अब मुझे घर चलना चाहिए। तू भी दिन भर की थकी आराम कर ले।

कोमल: ठीक है फिर तू घर चली जा। मैं रघु को बुलाती हूँ उसके साथ चले जाना।

राधा: अरे नहीं। मैं रघु के पापा के साथ चली जाऊँगी। उसे बुलाने की जरुरत नहीं है।

कोमल: अरे फिर काफी देर हो जाएगी। राकेश भाई अभी रामू के पिता के साथ बेठे हैं। रेखा भी शीतल के साथ है। जब कमल शीतल के पास जायेगा राकेश भाई रेखा को साथ लेके चले जायेंगे। तू फिक्र मत कर।

राधा: ठीक है फिर। मैं रघु के साथ चली जाती हुँ। उन्हें जल्दी भेज देना।

रघु को बुला कर कोमल ने उसे अपनी माँ को लेकर घर जाने को कहा। कोमल मौसी की बात सुन कर रघु की मुस्कुराहट चौड़ी हो गई। उसे हँसता देख कर कोमल कहने लगी: अब ज्यादा खिलखिलाने की जरुरत नहीं है। तू तो कह रहा था ना अपनी माँ का ख्याल रखने वाला है। मैं भी देखती हूँ तू किस तरह अपनी माँ का ख्याल रखता है।

रघु: लेकिन मौसी तुम ने तो कहा था आज रात मुझे जवाब मिलेगा। आखिर माँ ने क्या जवाब दिया तुम को?

कोमल राधा की और देखते हुए बोली: वह बात तू अपनी माँ से ही मालुम कर लेना। कोमल की इस शरारत भरी बात से राधा शर्म से पानी पानी हो जाती है। रघु के सामने उसे एसी शर्म आ रही थी मानो रघु उसका बेटा नहीं बलके कोई पराया मर्द है। राधा वहाँ से यह कह कर चली जाती है ' मैं जरा शीतल से मिल लूँ।'

रघु ने कहा: ओह मौसी मैं ने कितनी आस लगाई थी के तुम मुझे कोई खुश् खबरी दोगी और मैं तुम्हे एक गिफ्ट दूंगा। लेकिन तुम ने मेरा दिल ही तोड दिया।

कोमल: मेरे बच्चे! दिल छोटा न कर। जो तेरा है वह तुझे जरुर मिलेगा।

रघु थोड़ा मुरझा जाता है। ' मौसी तुम्हारे बेटे को तो तुम मिल गई। रामू के सपने अब पुरे हो गए। लेकिन एक मैं हुँ तुम्हारी सहेली राधा से जी जान प्यार करता हूँ लेकिन वह मेरी तरफ मुड के भी नहीं देखती।

कोमल उसके गले लग जाती है। और बाहों में भर के उसे सहलाते हुई बोलती है: तू चिंता क्यों करता है। मैं हुँ तेरे साथ। तेरी माँ तेरी हो कर रहेगी। मैं खुद तेरे साथ खड़ी रह कर तेरी और राधा का मिलन करवाउँगी।"

रघु अपनी मौसी को इस तरह पा कर और चिमट जाता है। कोमल के शरीर की सुगंध रघु को मदहोश सा कर देता है। रघु अपने हाथों से कोमल को अपनी तरफ और ज्यादा भींच लेटा है। इस के साथ ही रघु अपना चेहरा कोमल के खुले हुए मनमोहक गले और सीने में फेरता रहता है। रघु की इस हरकत से कोमल भी सिहर जाती है। अपने बेटे के साथ साथ अब उसे लगने लगता है रघु भी कम नहीं है। शुक्र है कि इस वक्त आस पास कोई है नहीं। अगर रघु के गले लगते रामू देख लेता बेचारा बरदास्त नहीं कर पाता।

"चल अब छोड़ मुझे। तेरे दोस्त ने देख लिया तो बहुत बुरा मान जायेगा।" कोमल यह कहते हुए रघु से अलग हो गई ।

"मेरा दोस्त मेरे से कभी नाराज नहीं होता मौसी। अगर वह यहां मौजुद होता तो खुद कहता यार रघु मेरी माँ को बहुत प्यार देना।" रघु ने कहा।

"चल मदमाश! एसा भी कभी हो सकता है। तेरा दोस्त तो मुझे अपने पति के साथ भी देखना पसंद नहीं करता। तेरे साथ केसे कर लेगा। हाँ!" कोमल ने उसकी नाक मोड़ते हुए कहा।

"अब मौसी हम दोस्तों की यही बात तो दोस्ती बना कर रखती है। कल को देख लेना तुम्हारा बेटा रामू ही तुम्हे कहेगा की माँ तुम रघु के साथ सो जाओ।"

"बड़ा आया ख्वाब देखने वाला। तब की तब देखेंगे। तब मैं भी देखूंगी की तेरे अन्दर कितनी हिम्मत है। लेकिन उससे पहले तू अपनी माँ से भी थोड़ी प्यार मह्ब्ब्त की बात कर लिया कर।"

"मौसी तुम्हें क्या लगता है माँ के बारे में? "

"तू चिंता मत कर। मैं ने तेरी माँ को अच्छे से समझा दिया है। मैं तेरे बापू और रेखा को यहीं रोक के रखती हूँ। मुझे नहीं लगता तेरे बापू आधी रात से पहले घर जायेंगे। इस लिये तेरे दिल की जो भी बातें हैं अपनी माँ से मेरा मतलब अपनी प्रेमिका से कह दे। फिर उसे फेस्ला लेने दे।"

"ठीक है मौसी। लेकिन तुम्हारे साथ मेरा किया वादा मैं पुरा जरुर करूँगा।"

"ठीक है बाबा। आ जाऊँगी तेरे नीचे। अब खुश। बना लेना अपनी कोमल। तेरे जैसे लौडों की यही परेशानी है मेरी जेसी औरत देखी नहीं उसे अपने नीचे डाल ने के बारे में सपने आ जाते हैं। मैं भी तेरी मौसी हूँ। जो हक रामू दूँगी वही अधिकार तुझे भी मिलेगा। लेकिन बच्चे जरा सबर रखो। पहले अपनी माँ को मना। जिस तरह रामू ने मुझे मनाया है। अब जा काफी रात हो गई है।"

कुछ देर बाद राधा अपने बेटे रघु के साथ कोमल के घर से निकल रही थी।
 
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