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Update 20
राधा के दिल की धड़कन तेज़ हो गई थी। उसने अपनी सहेली को उसके बेटे के साथ देख लिया है, यह बात कोमल को पता नहीं लगना चाहिए। उसकी दोस्त कोमल आखिर अपने बेटे के चक्कर में फंस गई। क्या पता दोनों माँ और बेटे ने चुदाई भी कर ली हो। आखिर कमल जब अपनी बेटी के साथ फेरे लेने जा रहा है तो कोमल को भी पीछे नहीं रहना चाहिए। ठीक किया उसने के अपने बेटे को ही अपना यार बना लिया। राधा आँगन में पड़ी एक कुर्सी में बेठी हुई थी। कोमल जब कमरे से निकलती है तो उसे राधा दिख जाती है। राधा को देख कर कोमल का चेहरा खिल उठता है।
को: तू कब आई ? कोमल उसके पास जाती है।
राधा: आई हुँ तथोड़ी देर पहले।
को:फिर मुझे बुलाया क्यों नहीं?
रा: बुला कर क्या करती। शीतल के कमरे थी।
को:बहुत अच्छा किया तुने आ कर। इतना सारा काम पड़ा है और में ठहरी अकेली। चल रसोई में चल के बात करते हैं।
कों: देखा कुछ भी किया नहीं गया। सब सब्जियां भी काटनी है। घर की साफ सफाई । शीतल को तैयार करना। मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा है क्या करूं। कहाँ से शुरु करूं।
राधा: कोई नहीं। मैं तेरा हाथ बटा देती हुँ। दोनों एक साथ करेँगे तो जल्दी से निमट जायेगा। और दोनो काम में लग जाती है।
कोमल राधा से पूछती है: रघु कहाँ है? सुबह से इस तरफ आया भी नहीं।
राधा: क्या पता। होगा खेतों की तरफ किसी काम में। अब मुझे बता कर वह कहीं थोड़ा ही जाता है।
कोमल: उससे तेरी बात भी हुई?
राधा: तू तो जानती है मेरा बेटा रघु कितना शर्मिला है। कहते है ना बेटी बाप पर और बेटा माँ पर जाता है। रघु भी मेरी तरह बहुत शर्मिला है।
कोमल: वह तो मैं भी जानती हूँ। लेकिन इसी चक्कर में दोनो बाप बेटी का तो मिलन हो जायेगा लेकिन तेरा और रघु का क्या होगा। यही मैं सोच रही हूँ। आखिर उम्र में तू उससे बड़ी है तुझे ही आगे बड़ कर उससे बात करनी होगी। तू समझ रही है ना मेरी बात?
राधा: देखती हूँ। वह उदास सी होकर जवाब देती है। 'तू बता रामू के साथ तेरा केसा चल रहा है? तेरा बेटा तुझे प्यार तो करता है ना? राधा मांद मांद मुस्कुराने लगी।
कोमल: उस के सिर पर तो प्यार का भुत सवार हो चुका है। क्या बताऊँ तुझे राधा किसी भी वक्त पकड़ लेटा है । चुम्मा चाटी तो आम सी बात हो गई है । उसका बस चले तो मुझे अभी पकड़ के अपने नीचे डाल दे।
राधा उसकी बात पे खिलखिला उठती है । जिस पे कोमल बताती है : तुझे तो हंसी सूझ रही है। जिस दिन अपने बेटे रघु के हाथों पकड़ी जायेगी उस दिन तुझे भी पता चल जायेगा। अरे राधा तुझे क्या बताऊँ इन जवान लड़कों में कितनी आग होती है । इन का लण्ड तो हमेशा तना हुया रहता है। इन्हें अपनी आग बुझाने के लिये एक चुत चाहिए। चाहे वह जिस किसी की भी हो।
राधा: तो तेरे बेटे को अपनी आग बुझाने के लिये किसी चुत मिली के नहीं?
कोमल: मिल तो गई है लेकिन अभी तक उसका लण्ड उस में गया नहीं।
राधा: क्यों? जाने देती लण्ड को। फिर तेरे बेटे की आग भी बूझ जाती।
कोमल: तू तो कहके एक तरफ हो जायेगी। बाद में उसे सम्भालना तो मुझे पडेगा ना। एक बार अगर उसके आगे चुत खोल के पड़ गई ना फिर मैं भी अपना आपा खो दूँगी। फिर मुझे ना अपने पति की परवा होगी और ना ही बेटी की। आखिर चुत मरवाने में मैं रंडी से भी गई गुजरी बन जाती हुँ।
राधा: हाँ वह तो है। लेकिन सिर्फ तू नहीं। चुत मरवाते वक्त सभी औरत रंडी बन जाती है ।
कोमल: पता है मुझे तू कितनी बड़ी रंडी है। बात तो तेरे से करी नहीं जाती। चुत तू खाक मरवाईगी?
राधा: अरी चिंता क्यों करती है। तेरे साथ साथ मैं भी चुद जाऊँगी। अब खुश।
कोमल: हाय मेरी जान। तू ने तो मेरा दिल जीत लिया। मेरे दिल से एक बोझ उतर गया। एक काम कर, तू आज ही रघु से बात करने की कोशिस कर। उसे अपने दिल की बात कहने का मौका दे।
राधा: हाँ देखती हुँ।
इसी बात चीत के बीच बाहर रामू और रघु की आवाज सुनाई देती है। दौनों की आवाज सुनते ही राधा और कोमल के कान खडे हो गये।
रसोई से कोमल आवाज लगाती है: रघु ! तेरी माँ इधर है।
कोमल की बात सुन कर राधा सकपका जाती है। मौसी की आवाज सुन्के रघु रसोई में आके देखता है उसकी माँ और मौसी दोनो बेठे सब्जियां काट रही हैं। रघु की नजर अपनी माँ के उपर पड़ते ही कोमल कहती है: अपनी माँ को ढूंड रहा था क्या?
रघु: नहीं तो मौसी। मैं तो आप से मिलने आया था। रघु मजाक के मुड में था।
कोमल: वह भला क्यों? तेरी इतनी अच्छी माँ है। कहाँ उसका ख्याल रखेगा।
पीछे से रामू कह पड्ता है: माँ। रघु तो अपनी माँ का ख्याल रखना चाहता है। लेकिन जब मौसी हाँ करेगी तभी तो वह आगे बड़ेगा ना?
कोमल: तू चुप कर। बड़ा आया रघु का चमचा। तू बता रघु आखिर कब तक तेरी माँ इस तरह अकेली अकेली जिन्दगी गुजारेगी। तेरा बाप तो अब शहर का हो के रह गया है। तुझ को ही अपनी माँ की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। क्या उठा पायेगा अपनी माँ की जिम्मेदारी?
रघु: अरे मौसी मेरा बस चले तो मैं तुम दोनों की जिम्मेदारी अपने कंधे पर डाल लूँ। लेकिन बीच में तुम्हारा यह बेटा आ गया।' रामू उसकी बात पर जवाब देता है: आखिर माँ जिसकी है वही तो ख्याल रखेगा ना?
कोमल: तेरी बातों से लग रहा है तू सच मुच उठा सकता है। ठीक है मैं तेरी माँ से बात करता हुँ। अगर तेरी राजी हो जाये फिर मुकर ना जाना।
रघु अपनी माँ की तरफ हवस भरी निगाहों से देखता रहता है। जिस से राधा शर्म से पानी पानी हो जाती है। वह कभी रघु देखती फिर नजरें नीचे करके ना सुनने ना समझने का नाटक कर रहती है। रघु बोलता है: अरे मौसी एकबार तुम माँ को राजी तो करवा लो फिर देखना मैं माँ का किस तरह ख्याल रखता हूँ।
कोमल: तठीक है। मैं इसे राजी करवाती हूँ। आज रात को तुझे जवाब मिल जायेगा।
रघु: सच मौसी। मौसी अगर तुम ने मुझे खुश खबरी दोगी तो मैं भी तुम को खुश कर दूँगा।
कोमल: ठीक है देखा जायेगा। तुम दौनों जाओ। मैं तुम्हारे लिये चाय भेजती हूँ।
रघु बड़े खुशी से कहता है: मौसी अगर माँ राजी हो गई ना फिर मैं तुम्हें मौसी नहीं बुलाऊंगा।
कोमल: फिर किस नाम से बुलायेगा मुझे?
रघु: फिर तुम मेरी साली बन जाओगी।
राधा के दिल की धड़कन तेज़ हो गई थी। उसने अपनी सहेली को उसके बेटे के साथ देख लिया है, यह बात कोमल को पता नहीं लगना चाहिए। उसकी दोस्त कोमल आखिर अपने बेटे के चक्कर में फंस गई। क्या पता दोनों माँ और बेटे ने चुदाई भी कर ली हो। आखिर कमल जब अपनी बेटी के साथ फेरे लेने जा रहा है तो कोमल को भी पीछे नहीं रहना चाहिए। ठीक किया उसने के अपने बेटे को ही अपना यार बना लिया। राधा आँगन में पड़ी एक कुर्सी में बेठी हुई थी। कोमल जब कमरे से निकलती है तो उसे राधा दिख जाती है। राधा को देख कर कोमल का चेहरा खिल उठता है।
को: तू कब आई ? कोमल उसके पास जाती है।
राधा: आई हुँ तथोड़ी देर पहले।
को:फिर मुझे बुलाया क्यों नहीं?
रा: बुला कर क्या करती। शीतल के कमरे थी।
को:बहुत अच्छा किया तुने आ कर। इतना सारा काम पड़ा है और में ठहरी अकेली। चल रसोई में चल के बात करते हैं।
कों: देखा कुछ भी किया नहीं गया। सब सब्जियां भी काटनी है। घर की साफ सफाई । शीतल को तैयार करना। मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा है क्या करूं। कहाँ से शुरु करूं।
राधा: कोई नहीं। मैं तेरा हाथ बटा देती हुँ। दोनों एक साथ करेँगे तो जल्दी से निमट जायेगा। और दोनो काम में लग जाती है।
कोमल राधा से पूछती है: रघु कहाँ है? सुबह से इस तरफ आया भी नहीं।
राधा: क्या पता। होगा खेतों की तरफ किसी काम में। अब मुझे बता कर वह कहीं थोड़ा ही जाता है।
कोमल: उससे तेरी बात भी हुई?
राधा: तू तो जानती है मेरा बेटा रघु कितना शर्मिला है। कहते है ना बेटी बाप पर और बेटा माँ पर जाता है। रघु भी मेरी तरह बहुत शर्मिला है।
कोमल: वह तो मैं भी जानती हूँ। लेकिन इसी चक्कर में दोनो बाप बेटी का तो मिलन हो जायेगा लेकिन तेरा और रघु का क्या होगा। यही मैं सोच रही हूँ। आखिर उम्र में तू उससे बड़ी है तुझे ही आगे बड़ कर उससे बात करनी होगी। तू समझ रही है ना मेरी बात?
राधा: देखती हूँ। वह उदास सी होकर जवाब देती है। 'तू बता रामू के साथ तेरा केसा चल रहा है? तेरा बेटा तुझे प्यार तो करता है ना? राधा मांद मांद मुस्कुराने लगी।
कोमल: उस के सिर पर तो प्यार का भुत सवार हो चुका है। क्या बताऊँ तुझे राधा किसी भी वक्त पकड़ लेटा है । चुम्मा चाटी तो आम सी बात हो गई है । उसका बस चले तो मुझे अभी पकड़ के अपने नीचे डाल दे।
राधा उसकी बात पे खिलखिला उठती है । जिस पे कोमल बताती है : तुझे तो हंसी सूझ रही है। जिस दिन अपने बेटे रघु के हाथों पकड़ी जायेगी उस दिन तुझे भी पता चल जायेगा। अरे राधा तुझे क्या बताऊँ इन जवान लड़कों में कितनी आग होती है । इन का लण्ड तो हमेशा तना हुया रहता है। इन्हें अपनी आग बुझाने के लिये एक चुत चाहिए। चाहे वह जिस किसी की भी हो।
राधा: तो तेरे बेटे को अपनी आग बुझाने के लिये किसी चुत मिली के नहीं?
कोमल: मिल तो गई है लेकिन अभी तक उसका लण्ड उस में गया नहीं।
राधा: क्यों? जाने देती लण्ड को। फिर तेरे बेटे की आग भी बूझ जाती।
कोमल: तू तो कहके एक तरफ हो जायेगी। बाद में उसे सम्भालना तो मुझे पडेगा ना। एक बार अगर उसके आगे चुत खोल के पड़ गई ना फिर मैं भी अपना आपा खो दूँगी। फिर मुझे ना अपने पति की परवा होगी और ना ही बेटी की। आखिर चुत मरवाने में मैं रंडी से भी गई गुजरी बन जाती हुँ।
राधा: हाँ वह तो है। लेकिन सिर्फ तू नहीं। चुत मरवाते वक्त सभी औरत रंडी बन जाती है ।
कोमल: पता है मुझे तू कितनी बड़ी रंडी है। बात तो तेरे से करी नहीं जाती। चुत तू खाक मरवाईगी?
राधा: अरी चिंता क्यों करती है। तेरे साथ साथ मैं भी चुद जाऊँगी। अब खुश।
कोमल: हाय मेरी जान। तू ने तो मेरा दिल जीत लिया। मेरे दिल से एक बोझ उतर गया। एक काम कर, तू आज ही रघु से बात करने की कोशिस कर। उसे अपने दिल की बात कहने का मौका दे।
राधा: हाँ देखती हुँ।
इसी बात चीत के बीच बाहर रामू और रघु की आवाज सुनाई देती है। दौनों की आवाज सुनते ही राधा और कोमल के कान खडे हो गये।
रसोई से कोमल आवाज लगाती है: रघु ! तेरी माँ इधर है।
कोमल की बात सुन कर राधा सकपका जाती है। मौसी की आवाज सुन्के रघु रसोई में आके देखता है उसकी माँ और मौसी दोनो बेठे सब्जियां काट रही हैं। रघु की नजर अपनी माँ के उपर पड़ते ही कोमल कहती है: अपनी माँ को ढूंड रहा था क्या?
रघु: नहीं तो मौसी। मैं तो आप से मिलने आया था। रघु मजाक के मुड में था।
कोमल: वह भला क्यों? तेरी इतनी अच्छी माँ है। कहाँ उसका ख्याल रखेगा।
पीछे से रामू कह पड्ता है: माँ। रघु तो अपनी माँ का ख्याल रखना चाहता है। लेकिन जब मौसी हाँ करेगी तभी तो वह आगे बड़ेगा ना?
कोमल: तू चुप कर। बड़ा आया रघु का चमचा। तू बता रघु आखिर कब तक तेरी माँ इस तरह अकेली अकेली जिन्दगी गुजारेगी। तेरा बाप तो अब शहर का हो के रह गया है। तुझ को ही अपनी माँ की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। क्या उठा पायेगा अपनी माँ की जिम्मेदारी?
रघु: अरे मौसी मेरा बस चले तो मैं तुम दोनों की जिम्मेदारी अपने कंधे पर डाल लूँ। लेकिन बीच में तुम्हारा यह बेटा आ गया।' रामू उसकी बात पर जवाब देता है: आखिर माँ जिसकी है वही तो ख्याल रखेगा ना?
कोमल: तेरी बातों से लग रहा है तू सच मुच उठा सकता है। ठीक है मैं तेरी माँ से बात करता हुँ। अगर तेरी राजी हो जाये फिर मुकर ना जाना।
रघु अपनी माँ की तरफ हवस भरी निगाहों से देखता रहता है। जिस से राधा शर्म से पानी पानी हो जाती है। वह कभी रघु देखती फिर नजरें नीचे करके ना सुनने ना समझने का नाटक कर रहती है। रघु बोलता है: अरे मौसी एकबार तुम माँ को राजी तो करवा लो फिर देखना मैं माँ का किस तरह ख्याल रखता हूँ।
कोमल: तठीक है। मैं इसे राजी करवाती हूँ। आज रात को तुझे जवाब मिल जायेगा।
रघु: सच मौसी। मौसी अगर तुम ने मुझे खुश खबरी दोगी तो मैं भी तुम को खुश कर दूँगा।
कोमल: ठीक है देखा जायेगा। तुम दौनों जाओ। मैं तुम्हारे लिये चाय भेजती हूँ।
रघु बड़े खुशी से कहता है: मौसी अगर माँ राजी हो गई ना फिर मैं तुम्हें मौसी नहीं बुलाऊंगा।
कोमल: फिर किस नाम से बुलायेगा मुझे?
रघु: फिर तुम मेरी साली बन जाओगी।
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