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Incest अनोखे संबंध ।।। (Completed)

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  • Maa beta

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  • Baap beti

    Votes: 73 23.9%
  • Aunty bhatija

    Votes: 59 19.3%
  • Uncle bhatiji

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Babulaskar

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Update 41


राधा और पार्वती दोनों अपनी बातों में लगी थी, इतने में शान्ती आ गई। शान्ती को देख कर पार्वती बोलती है:" आजा शान्ती, हम तेरा ही इन्तज़ार कर रहे थे। और चाची अभी ठीक है ना?"

"हाँ दीदी, अभी ठीक है। सोच रही हूँ कल परसों ही अम्मा को शहर लेके चली जाऊँ।"

"जो भी करना सोच समझ कर करना। और वैसे भी यहां तेरी अम्मा की देखभाल करने वाला कोई है भी नहीं। अच्छा वह सब छोड़, तुझे राधा से जो कहना था बोल दे। वह तेरे से ही मिलने आई थी।"


"देख राधा, मैं जो बातें तुझे बताने जा रही हूँ शायद वह सुनने के बाद तुझे झटका सा लगे, लेकिन हम तुझे बचपन से जानते हैं। इस नाते हम नहीं चाहते तेरे साथ कोई अनर्थ हो। तू शायद सोचे मैं तेरी दुश्मन हूँ।"


"अरे नहीं दीदी, क्या बात करती हो? मुझे तुम पर पुरा भरोसा है। तुम कभी भी मेरा बुरा नहीं चाह सकती। तुम निश्चिंत हो कर कहो।" राधा उसे तसल्ली देती है।


"बात असल में यह है, राकेश ने दुसरी शादी कर ली है।" इतना बोलके शान्ती चुप हो गई। जिसे सुन कर राधा एकदम से अचंभित हो गई।


"क्या?" उसके मुहं से सिर्फ इतनी बात निकली।


"हाँ राधा, मैं सच कह रही हूँ।"


"लेकिन दीदी, तुम्हें केसे पता? तुम्हारा ढाबा तो हमारी कम्पनी से बहुत दूर है।"


"तुझे मैं पुरी बात बताती हूँ। एकदिन मैं और प्रताप शहर किसी काम के सिलसिले में गए थे। हमने जिस आदमी से रोड साईड जमीन खरीदी थी उसे जमीन की बाकी पेमेंट और उससे जमीन के कागजात लेने थे। हमारा काम जब निमट गया तब काफी रात हो चुकी थी। मैं ने सोचा चलो राधा की कम्पनी यहीं है आज रात राकेश के यहां रुक जाती हुँ। रात को जब हम वहां पहुंचे तो राकेश हमें देख के चौंक गया। वह मानो हडबडाने लगा। उसने हम दोनों को पास वाले कमरे में ठहराया। सर्दी की रात थी, राकेश के कमरे में से किसी लड्की की आवाज आई। 'तुमने इन्हें ठहराया क्यों? जाने देते?' वह लड्की बोली। फिर राकेश बोला, अरे वह राधा की सहेली है। अगर उंहे ना ठहराया तो राधा मेरे उपर बरस पड़ेगी। लेकिन तुम चिंता मत करो। सुबह वह चले जायेंगे।' रात भर दोनों कानाफुसी करते रहे। लेकिन हम दोनों थके थे इसलिए जल्दी सो गए। सुबह हम उठे तो देखा एक लड्की बरामदे में झाडू लगा रही है। उसका पेट भी उभरा सा था। चार पांच महीने की जो औरतें पेट से होती हैं उनका पेट इस तरह फुला रहता है। कुछ ही देर में राकेश ने जब उपर उसे झाडू लगाते देखा तो उसे कमरे में ले जा कर खूब डाँटा। 'तुम्हें मना किया था ना बाहर मत निकलना। फिर भी तुम बाहर निकली।' वह लड्की फिर बोल पडी, मैं किसी से डरती नहीं। मैं अपने घर में जहाँ मर्जी आ जा सकती हुँ।' फिर राकेश बोला, तुम मेरी बात समझते क्यों नहीं? अगर गावँ में राधा को पता चल गया तो सत्यानास हो जाएगा।' राकेश के डांटने से वह लड्की रोने लगी। कुछ देर राकेश उसे चुप कराता रहा। फिर कहा, देखो चमेली, मुझे थोड़ा सा समय दो, मैं अपने घर में सब को इस बारे में बता दूँगा। लेकिन तब तक के लिए तुम कोई गड़बड़ मत कर देना।'

उसके कुछ देर बाद हम दौनों वहां से आ गये। मेरी बात तू समझ रही है ना?"

शान्ती की बातों से राधा सुन हो गई थी। उसने क्या क्या सोचके रखा था। और राकेश ने उन के साथ केसा धोका दिया। इधर रेखा को भी समझाना है। बेचारी के दिल को कितना दुख होगा जब वह यह खबर सुनेगी। यही सब सोच रही थी।


"देख राधा, अब तुझे सोच समझ के फेसला लेना होगा। हो सकता है मेरी बातें तुझे झूट लगे, इस लिए तू अपने तरीके से इस बारे में मालूमात कर लेना।" शान्ती कहती है।


"नहीं दीदी, तुम्हारी बातें सही है। पिछ्ले कुछ दिनों से मुझे राकेश के उपर शक हो रहा था। वह पहले की तरह अब हफ्ते में मेरे पास भी नहीं आता था। और आता भी है तो किसी तरह रात गुजार कर चला जाता। पूछने पर बताता की कम्पनी में काम का बहुत बोझ है। और हमारी खबर तक नहीं पूछता वह। मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था दीदी। अब मैं अपनी बेटी को क्या जवाब दूँगी। उस बेचारी ने कितने अरमान सजा रखे थे।" कहती हूई राधा रोने लगती है।


"चुप हो जा राधा, यह तो अच्छा हुया ना?, की तुझे पता चल गया। अगर रेखा को तू शहर भेज देती, फिर क्या होता बता?" पार्वती उसे दिलासा देती है।


"लेकिन दीदी, आखिर राकेश ने एसा किया क्यों? उसके पास तो कुछ भी नहीं था। मेरे माँ बाप ने उसे घरज्ंवई रखा। उसे काम दिया सम्मान दिया। मेरे प्यार का उसने यह बदला दिया? मेरे बच्चों के साथ उसने धोका किया। मैं उसे कभी माफ नहीं करूंगी दीदी।" राधा अपनी आंसू पोंछती है।


"चल अब चुप हो जा। अब तेरी जिन्दगी है, तुझे जीना है। इस लिए तेरा जो फेसला हो वही करना।"


"दीदी मैं चलती हुँ, रेखा घर पे अकेली होगी।"


राधा कहती हूई पार्वती के घर से निकल जाती है। घर के बाहर एक पेड़ के नीचे देवा और रघु बातों में लगे थे, राधा को देख दोनों खडे हो गए।


"मौसी जा रही हो? थोडी देर और रुक जाती?"


"नहीं बेटा, फिर कभी आऊँगी। रघु, चल बेटा।" बोल के दोनों माँ बेटा घर की जाने लगते हैं। अपनी माँ का उतरा हुया चहरा देख रघु पूछता है,"क्या बात है माँ, तुम इतनी उदास क्यों हो? किसी ने कुछ कहा क्या?"


"नहीं रे। किसी ने कुछ कहा नहीं। बस समझ ले इन्सान का भरोसा जब टूट जाता है, तब इन्सान को बहुत दुख होता है। वही बात है।"


"किस ने तुम्हें दुख दिया बताओ मुझे, किस ने तोड़ा तुम्हारा भरोसा? बताओ जरा मुझे?"


"नहीं रे, तुझे कुछ करने की जरुरत नहीं है। जो करना है मैं ही करूँगी।"
 

Babulaskar

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Update 42


इसके बाद की कुछ घटनाएँ जल्दी जल्दी होने लगी। राधा ने पहले अपने मुनिबजी को बुला कर इस बारे में मालूमात करने के लिए उन्हें शहर भेजा। मुनिबजी की खबर से अब राधा को पुरी सच्चाई का पता चला गया था। उसने मुनिबजी के जरिये राकेश को यह कहला भेजा, अब इस कारखाने में राकेश की कोई जगह नहीं है। वह एकदिन के अन्दर कारखाने का सारा काम मुनिबजी के हाथों दे दे। और साथ ही राधा ने तलाक का पेपर भेजा। इतने दिन कारखाने के मेनेजर रहने के नाते राधा ने राकेश को एक कालीन थोक रुपये दिये। जिस से वह हमेशा के लिए उनकी जींदगी से निकल जाये।

शुरु में राकेश ने राधा से फोन पे बात करने की कोशिश की थी। लेकिन राधा ने उससे बात और सम्पर्क रखने से इन्कार कर दिया। इस बात का डर वैसे भी राकेश पहले से था। इसी लिए वह राधा को यह बात बताना नहीं चाह रहा था।


जेसे तेसे दिन गुजरता रहा। अब रेखा भी सम्भल चुकी थी। शीतल उसे तसल्ली देती रहती। राधा ने सोचा था एक हफ्ते के अन्दर ही वह रघु से शादी कर लेगी। लेकिन अब मामला रेखा का भी। और वह नहीं चाहती की उसकी शादी रेखा से पहले हो। इस लिए राधा कुछ गुमसुम सी रहती है। इसी बीच एकदिन पार्वती राधा से मिलने आती है। राधा को मायूस देखकर पार्वती ने उसको बहुत खडी खोटी सुनाई।

"तू पागल हो गई है क्या? अभी तो तेरी दुसरी जिन्दगी शुरु होने जा रही थी। आखिर कब तक यूं अपने भाग्य को दोष देती रहेगी? जो भी हुया अच्छा ही हुया ना? अगर किसी तरह रेखा राकेश के चली जाती तू समझ रही है ना? फिर क्या हो सकता था?"


"नहीं दीदी, मैं अपने लिए मायूस नहीं हुँ। मुझे रेखा की चिंता है। उसका क्या होगा? अब उसके लिए भी लड़का देखना पडेगा। और मैं नहीं चाहती मेरी बेटी से पहले मैं किसी खुशी में अपना नाम लिखवाऊँ।"


"हाँ तो इस में इतनी सोचने वाली क्या बात है? करा दे उसकी शादी। और लड़का तो तेरे पास पहले से मौजूद है।"


"कोनसा लड़का दीदी?"


"अरे तेरा बेटा रघु। उसी से करा दे उसकी शादी। दोनों की जोडी खूब जमेगी देख लेना।"


"लेकिन दीदी, रघु तो मेरे से बियाह करने की उम्मीद में लगा है। क्या वह रेखा से बियाह कर पायेगा? और रेखा भी, क्या उसे पति के रुप में स्वीकार कर पायेगी?"


"हाँ क्यों नहीं। देख मेरी बात ध्यान से सुन। तुझे याद है ना मैं ने तुझ से क्या कहा था? तेरी और तेरी बेटी रेखा की योनि महाघाटी श्रेणी है। और एक महाघाटी बुर के लिए नागपंचमी लिंगधारी आदमी चाहिए। जो तेरा बेटा है। तू अगर उसकी शादी किसी और से कर देगी तो बेचारी खुश नहीं रह पायेगी। तेरी तरह पुरी जिन्दगी उसे तडपना पडेगा। इस लिए मैं कहती हुँ तू रघु के साथ रेखा का बियाह कर दे।" राधा अपने दिल पर पत्थर रख कर अपने चेहरे पे मुस्कान लाने की कोशिश करती है।

"हाँ दीदी, मैं एक माँ होने के नाते अपनी बेटी को कभी दुखी नहीं देख सकती। मैं रघु और रेखा दोनों को खुश देखना चाहती हूँ। मैं उन दोनों को शादी के लिए राजी करवाऊँगी।"


"यह हुई ना अच्छी बात।"


पार्वती कह तो गई लेकिन यह बात राधा किस तरह अपनी बेटी रेखा को बतायेगी। आखिर एक शाम को राधा ने रेखा के सामने यह बात कह डाली। अपनी माँ राधा की बात सुन कर रेखा चौंक गई।

"नहीं माँ, एसा नहीं हो सकता। मेरा भाई तुम्हें पाने के लिए कितनी आस लगाये बैठा है। मैं उसका दिल नहीं तोड सकती। और तुम्हारा भी। अगर बापू की यह करतूत हमारे सामने न आती शायद अब तक तुम्हारी शादी रघु के साथ हो जाती। मैं तुम दोनों के बीच नहीं आना चाहती।" रेखा का उसके लिये प्यार और भोलापन देख राधा उसे गले से लगा लेती है।


"अरे पगली, तू मेरे बारे में मत सोच, भला तेरी खुशी से ज्यादा मुझे और क्या चाहिए? बस तेरा बियाह हो जाये तो मेरे कन्धे से यह जिम्मेदारी दूर हो जायेगी। मान जा।"


"नहीं माँ, मेरे भाई का सपना मैं जान बूझ कर नहीं तोड सकती। मैं तुम दोनों का बियाह करवाऊँगी।"


"नहीं रेखा तुझे घर बिठाकर मैं कभी भी शादी के बारे में सोच नहीं सकती। रघु जिस तरह मेरे से प्यार करता है वह तेरे से भी प्यार करता है। इसी लिए तो तुम दोनों बन्द कमरे में क्या क्या करते रहते थे। तुझे क्या लगा मुझे तुम दोनों के बारे में पता नहीं? मैं सब जानती हूँ। तू रघु के म्मुसल के बारे में जो कुछ बताती है क्या मैं नहीं जानती की तूने उसे देखा और चखा है? समझी?" राधा मुस्कराते हुए बोली।


"क्या माँ तुम भी ना? एसा कुछ नहीं।" रेखा शर्माती हुई कहती है।


"अच्छा, भला एक जवान लड़का और लड्की बन्द कमरे में क्या कर सकते हैं, मैं समझती नहीं क्या? सच सच बताना तुम दोनों ने चुदाई भी की है?"


"नहीं माँ। तुम क्या बोले जा रही हो। मैं सच्ची बताती हूँ हम दोनों में वह सब नहीं हुया। लेकिन उसके अलावा…… सब कुछ हो गया है।"


"उसके अलावा का क्या मतलब? तुम दोनों ने और किया होगा?"


"अरे मेरी भोली माँ। क्या चुदाई के अलावा लड़का लड्की के बीच और कुछ नहीं हो सकता? बस वही समझ लो, हम ने उस काम को छोड़ कर बाकी सब कुछ किया है। इसी लिये मैं अभी तक क्ंवारी हुँ। तुम्हारी बेटी की चूत में अभी तक एक खीरा भी नहीं घुसा। यह तुम्हारी तरह नहीं है माँ, फैली हुई, बड़ा सा गडडा। मेरी अभी भी एक बच्ची के माफिक चूत के छेद है। चाहो तो तुम चेक कर सकती हो।" रेखा अपनी माँ को छेड़ती हुई बोलती है।


"मुझे नहीं देखना तेरी सिकुड चूत। बड़ी आई अपनी बुर गुण गाने वाली। लेकिन तुझे केसे पता मेरी चूत खुली हुई है? क्या तूने कभी मेरी बुर को अपनी आंखों से देखा है?"


"और नहीं तो क्या? जिस चूत के फाँके से तुम ने मुझे और भाई को निकाला है,क्या वह कभी एक क्ंवारी लड्की की तरह टाईट रह सकती है? नहीं ना। मुझे तो लगता है मेरे अगर और भाई बहन होते तब तुम्हारी बुर और ज्यादा बड़ी हो जाती।" रेखा बोलके खिलखिला के हंसने लगी।


"एसा नहीं है मेरी प्यारी बच्ची। औरत चाहे जितने भी बच्चे अपनी चूत से निकाल ले, फिर से उसकी बुर पहले जेसी टाईट हो जाती है। तू पार्वती दीदी को ही देख ले। किस तरह से वह अब भी इस उम्र में बच्चों को जनम दिये जा रही है, अगर उनकी चूत टाईट ना होती क्या उन्के पति उन्हें प्यार करते? उनकी चुदाई करते? अब उनको पहले जेसा मजा आता है तभी वह लोग इस उम्र में भी थकने का नाम नहीं लेते। बस चुदाई करते चले जा रहे हैं और हर साल बच्चों को जनम दे रही है। बस, मेरी भी एसी बात है। और वैसे भी तुम दोनों को जनम दिये हुए मुझे काफी साल हो गये है। अब तो मेरी चूत सिकुडते सिकुडते तेरे से भी ज्यादा टाईट हो गई है। देख लेना कभी चेक करके। तेरी माँ तेरे से कम नहीं हैं।"


"सच्ची माँ? नहीं। मुझे यकीन नहीं हो रहा। फिर तो मुझे तुम्हारी चूत जरुर देखना चाहिए। आखिर मैं भी तो देखूँ मेरी माँ अपनी चूत पर इतनी इतरा क्यों रही है? चलो दिखाओ अपनी बुर।" रेखा अचानक बेठ गई।


"चल हट, बदमाश। अब अपनी माँ की चूत देखेगी तू? मुझे नहीं दिखाना तुझे।"


"अरे माँ कुछ नहीं होगा। देखने दो ना। वैसे भी तुम तो कहती हो बेटी जब बड़ी हो जाती है माँ की सहेली बन जाती है। और आज नहीं तो कल तुम्हें मुझे ननद कहना पडेगा। एक भाभी ननद के बीच कुछ भी नहीं छिपता। अब दिखा दो ना। मुझे भी देखना है जहाँ से मैं निकली हुँ वह जगह केसी है।?"


"अरे बाबा मैं नहीं दिखाती।"


"तुम ऐसे नहीं मानने वाली।" कहके रेखा अपनी माँ को पकड़ के कमर में गुदगुदी करने लग जाती है। "अरे छोड़ मुझे क्या कर रही। ही ही ही, अरे बाबा केसे दिखाऊँ तुझे?"

"तुम जब तक नहीं दिखाओगी मैं तुम्हें एसे ही गुदगुदी देती रहूँगी। बताओ दिखाओगे की नहीं?"

रेखा की छेड़छाड़ से राधा की साड़ी भी जमीन पे लुटने लगी। वह बिस्तर पे हंस हंस के पसर जाती है। हाँफने की वजा से ब्लाउज में अटके उसके बड़े बड़े दुध सांस के साथ उठने-बैठने लगे। रेखा अपनी माँ के उपर आ कर कहती है,"अब दिखाओगी या और करुँ?"

"नहीं बाबा, मेरे में और हिम्मत नहीं है। दिखाती हुँ। लेकिन पहले तू दिखा। फिर मैं अपनी पेटीकोट खोलूंगी।"


"अच्छा अच्छा, लो मैं दिखाती हुँ। चूत ही देखोगे। मर्द तो नहीं हो की तुम्हारे पास लौड़ा हो और मेरी चूत में सूड दो।" रेखा अपनी चोली खोल के जमीन पे छोड़ देती है और नीचे से बिलकुल नंगी होकर अपनी माँ के सामने आ जाती है।

"अब देख लो। मैं भी देखती हुँ किसकी बुर ज्यादा टाईट है। तुम्हारी या मेरी। अब तुम भी यह पेतिकोट खोल दो। नहीं नहीं उपर करने से नहीं होगा। मेरी तरह पुरा नंगा होना पडेगा।"


"तू ना बड़ा शयतान है।" राधा झिझकती हूई पेतिकोट खोल के नंगी ही बिस्तर पे लेट जाती है।


"अरे वाह, माँ तुम्हारी चूत तो शानदार है। यह देखो तुम्हारी चूत के मुहाने पर एक तिल है। एसा तिल यह देखो मेरी चूत के दाने के उपर भी है। कितनी लम्बी बुर तुम्हारी बिल्कुल मेरे जेसी।" रेखा अपनी माँ राधा की चूत पे हाथ से सहलाती हुई कही जा रही थी।

"तेरे जेसी नहीं। तेरी चूत मेरे जेसी है। तू मेरी चूत से निकली है। मैं नहीं निकली तेरी चूत से। अब अच्छी तरह देख मेरी बुर टाईट है या नहीं है?दोनों हाथों से मेरी बुर की फाँके खोल के देख।" राधा अपनी टाँगे फैला देती है। जिस से राधा की चूत और ज्यादा पसर जाती है। रेखा मनमोहक अन्दाज में राधा की बुर देखे जा रही थी। रेखा ने अपनी एक उंगली से चूत के दाने पे रगड़ दिया जिस से राधा "अह्ह्ह्ह्ह्ह" कहती हुई सिहर जाती है।

"क्या करती है बदमाश? एसा ना कर, यहां हाथ देने से काम बड़ जाता है।"


"तो क्या हुया मेरी माँ। तुम अगर गरम हो गई मेरा भाई है ना, वह तुम्हारी इस चूत के छेद में अपना मुसल घुसा कर ठंडा कर देगा।" रेखा ने अब अपनी एक उंगली अपनी माँ की बुर में डाल दिया। चूत के अन्दर सख्तीपन को महसूस करते हुए रेखा बोलती है:"माँ यह तो सच में बहुत टाईट है? लेकिन केसे? एसा लग रहा है मानो तुम्हारी चूत क्ंवारी लड्की की जेसी है।"


"यह एक राज की बात है रेखा। तू नहीं समझेगी।" राधा पार्वती की बातों को रेखा से छुपा लेती है।

रेखा काफी देर तक माँ की चूत देखने के बाद राधा के बगल में लेट जाती है। लेटे हुए अपनी माँ के बड़े बड़े दुध को सहलाने लगती है।

"माँ, यूं तो गावँ में सभी औरतें हम दोनों को एक साथ देख कर जुड्वा बहन बोलती हैं। आज तुम्हें इस तरह देख कर लग रहा है तुम सच मुच मेरी बहन की जेसी हो। हम दोनों की कद-काठी हुबहू एक समान है। हम दोनो दिखते भी एक समान है। और तो और तुम्हारी मेरी चूत भी एक समान है। बिल्कुल वही रंग वही नक्शा एक समान चूत के दाने दोनों की बुर के मुहाने पर तिल का होना। लेकिन तुम्हारे पेट पे यह लकीरें क्यों है?"रेखा की अंजान बातों से राधा हंस देती है।

"पगली कहीं की। जब तेरे पेट में बच्चा आयेगा और तेरा पेट फूलने लगेगा तब पेट फूलने की वजा से इस तरह दाग बन जाते हैं। मेरे पेट में तुम दोनों पले बड़े तभी यह दाग बन गए।"


"लेकिन माँ यह देखने में कितना अच्छा लग रहा है। इस से तुम्हारे पेट में एक कशिश आई है। जी करता है इसे चूम लूँ। पर हम दोनों की सभी चीजें समान नहीं है तुम्हारे यह दुध साईज में मेरे से बड़े हैं। देखो।"


"वह इस लिए कयोंकि मेरी छाती में से तुम दोनों भाई बहन ने खूब सारा दुध पिया है। जब तेरा बच्चा होगा और तेरी छाती में से दुध पियेगा तब मेरे से भी बड़े बड़े दुध तेरे हो जायेंगे।"


"माँ मैं क्या कह रही थी, जब हम दोनों हर लिहाज से समान है तो हमारी चूत की प्यास भी एक ही मुसल मिटा सकता है । इस लिए मैं चाहती हूँ मेरे साथ साथ तुम भी रघु से बियाह कर लो। हम दोनो रघु पत्नी बन कर रहेंगे। मैं तुम्हें अपनी भाभी नहीं बल्कि सौतन बनाना चाहती हुँ।"


"लेकिन रेखा यह केसा हो सकता है? क्या रघु इस के लिए तैयार होगा? हम दोनों के साथ वह निभाव कर सकेगा?"


"निभाव वह नहीं हम करेंगें माँ। हम दोनों मिलके रघु का ख्याल रखेंगे। और हर साल उसे बारि बारि बच्चे का बाप बनायेंगे। मान जाओ माँ। तुम्हारे बिना मैं यह बियाह नहीं कर सकती। मैं अपनी माँ को अपनी सौतन बना के रखना चाहती हुँ। रघु ने मुझे चोदने की बहुत कोशिश की थी लेकिन मैं ने उसे मना कर दिया था। आज मैं चाहती हूँ उसे एक नहीं दो चूत मिले। बताओ ना माँ। तुम बनोगी ना मेरी सौतन? बनोगी ना रघु की बीबी?"


"अगर तेरी यही इच्छा है तो मैं तैयार हुँ।"
 

allen barry

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Kahani ka Har update ek se badhke ek hai
Yeh ek or sandar update
 
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Wonderful update Babu bhai...aapki lekhni bahut accha hain..jis tarah se samwaad hote hain..they are very romantic and erotic.
A new twist that dono Rekha and Radha abhi Raghu ki sautan banne waali hain..superb!!
Look forward to the next update..Thank you.
 
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Spartaa

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Badhiya.. Matlab launde ko abh dugni mehnat karni padegi.. Accha hai
 
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Naik

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Behad shaandaar lajawab update bhai
Raghu k tow maze hone wale h 34 inch tv k saath 18 inch ka tv free m milne wala h
Badhiya h shaandaar
 
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Iknow

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Mind blowing writing:pepenice:
 

Gokb

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Jabardast update diya hai aapne. Rekha ki vivah tay hai lagta hai
 

Mass

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Babu bhai, i know aap bahut busy ho..hope aap time nikal update update doge..kyunki story bahut interesting mode par ruka hua hain..Radhu & Rekha ki shaadi...and the story moving forward. Look forward to it..Thanks so much.
 
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