भाग 10
फिर राजनाथ पेशाब करने के बाद अपने लंड को अच्छी तरह से ऊपर नीचे करके डोलाया फिर अपने मुट्ठी में पकड़ के ऊपर से नीचे तक दो-तीन बार उसको सहलाया फिर वह अपनी पैंट उठाकर पहनने लगा ।
तो आरती समझ गई कि अब बाबूजी बाहर आएंगे और इधर ही से जाएंगे तो मुझे दूसरी तरफ जाकर छुपना पड़ेगा फिर वह बाथरूम के दूसरी तरफ जाकर छिप जाती है फिर राजनाथ पेशाब करने के बाद वह अपने कमरे में सोने के लिए चला जाता है।
राजनाथ के जाने के बाद आरती फिर बाथरूम के अंदर जाती है और जाकर उसे जगह को गौर से देखने लगती है और मन ही मन सोचती है और कहती है कि मेरे बाबूजी ने अभी यहीं खड़े होकर अपने मोटे लंड से मूत रहे थे और अब मैं भी उसी जगह पर मुतने जा रही हूं फिर वह सोचती है कि हम दोनों बाप बेटी का शरीर एक दूसरे से नहीं मिल सकता लेकिन आज हम दोनों का पेशाब जरूर एक दूसरे से मिलेगा यह सोचते हुए उसने अपनी साड़ी को ऊपर उठाकर मुतने के लिए बैठ गई और अपनी चूत से मोटी धार छोड़ते हुए , छर,छर करके मुतने लगी फिर पेशाब करने के बाद वह उठी और उठकर अपने कमरे में चली गई और वह सोने की कोशिश करने लगी लेकिन बार-बार उसकी आंखों के सामने उसका बाप का लंड आ रहा था और वह सोच रही थी कि मेरे बाबूजी के पास इतना बड़ा लंड है और मैं एक छोटे-मोटे लंड के लिए तरस रही हूं लेकिन मुझे वह भी नहीं मिल रहा यह भी किस्मत किस्मत की बात है।
मेरा बाप मशीन गंज लेकर घूम रहा है और मैं उसकी बेटी एक छोटा सा पिस्तौल के लिए भी तरस रही है। यह सब सोंचते हुए उसे नींद आ जाती है।
फिर सुबह उठकर वह अपने काम में लग जाती है और राजनाथ भी सुबह उठकर और नाश्ता पानी करके वह अभी किसी काम से बाहर चला जाता है फिर कुछ देर के बाद आरती को उसकी गइया कि गगाने की आवाज आती है जो घर के पीछे बंधी हुई थी और वह रह, रह के बार-बार आवाज दे रही थी फिर आरती ने सोचा कि गइया बार-बार क्यों आवाज दे रही है तो उसने जाकर देखा तो वह गइया नहीं थी बल्कि बछिया थी यानी उस गइया की बड़ी बेटी जो अब जवान हो चुकी थी लेकिन अभी तक उसने कोई बच्चा नहीं दिया था वही बछिया रह-रह के आवाज कर रही थी तो आरती को समझ में नहीं आया कि यह क्यों बार-बार आवाज दे रही हैं। तो वह अपनी दादी को जाकर बोली दादी दादी वो जो अपनी बछिया है वह बार-बार गगा रही है।
तो दादी ने पूछा और कहा की बछिया गगा रही है क्यों क्या हुआ उसको काहे गगा रही है।
तो आरती बोली पता नहीं हमको तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है काहे गगा रही है अब आप ही चल कर देखो आपको कुछ समझ में आ जाए। फिर दादी बोली अच्छा ठीक है चल मेरे साथ में चल कर देखती हूं की क्या हुआ है उसे। फिर दोनों उसके पास जाती है और दादी बछिया को चारों तरफ घूम के देखने लगती है फिर भी उनको कुछ समझ नहीं आ रहा था तभी उनकी नजर बछिया की पूछ पर गई जो बछिया अपनी पूछ को बार-बार उठा रही थी फिर दादी उसके पीछे जाती है और उसके प्राइवेट पार्ट को यानी उसकी योनि को गौर से देखने लगती है तो वह समझ जाती है कि इसकी योनी फूल गई है और इसका रंग भी हल्का-हल्का बदल गया है और छूने से नरम भी लग रहा है।
फिर आरती पूछती है क्या हुआ दादी कुछ समझ में आया कि नहीं। तो फिर दादी बोलती है हां हमारी समझ में आ गया है और कहती है की बछिया गरमा गई है यानी गरम हो गई है और यह बच्चा देने के लायक हो गई है इसलिए यह बार-बार आवाज दे रही है। तो फिर आरती बोलती है कि अब क्या करना पड़ेगा।
तो दादी बोलती है कुछ नहीं इसको सांढ़ के पास लेकर जाना पड़ेगा, तो फिर आरती पूछती है कि सांढ़ के पास क्यों लेकर जाना पड़ेगा, तो फिर दादी बोलती है रे बेवकूफ सांढ़ के पास नहीं तो क्या गधे के पास लेकर जाएगी और सुन राजनाथ आएगा तो उसको बोल देना बछिया को सांढ़ के पास लेकर जाने के लिए।
तो फिर आरती बोलती है कि मैं नहीं कहूंगी आप ही उनको बोल देना। तो फिर दादी बोलती है कि ठीक है जब तुमको शर्म आ रहा है बताने में तो मैं ही उसको बोल दूंगी, वैसे वह गया कहां है। तो आरती बोलती है पता नहीं गए होंगे कहीं कुछ काम से।
आरती- फिर घर के काम लग जाती है फिर दोपहर को राजनाथ बाहर से आता है फिर खाना खाने के बाद आराम करने जा रहा था तो आरती उसको बछिया वाली बात बताती है और बोलती है बाबूजी और दादी बछिया को दिखाने के लिए बोल रही थी। तो राजनाथ पूछता है बछिया को कौन बछिया को, तो आरती बोलती है कि अपनी बछिया है उसको, तो राजनाथ बोलता है कि अपनी बछिया को क्या हुआ उसको और कहां दिखाने के लिए बोल रही थी। तो आरती धीरे से शरमाते हुए बोली की जी वो दादी उसको सांँढ़ के पास लेकर जाने के लिए बोली है।
तो राजनाथ उसको बोलता हैं कि यह तू क्या बोल रही है मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
तो फिर आरती बोलती है कि आप खुद ही जाकर देख लीजिए ना उसको सुबह वो गगाय रही है।
तो फिर राजनाथ बोलता है कि ठीक है मैं जाकर देखता हूं फिर वह देखने के लिए घर के पीछे में जाता है जहां वह बंधी हुई थी फिर वह उसको गौर से चारों तरफ देखा है तो उसको भी समझ में आ जाता है कि यह गरमा गई है हीरो आरती के पास वापस आता है और बोलता है कि हां मैंने उसको देख लिया है वह अब गरमा गई है उसको साँढ़ को दिखाना पड़ेगा तो मैं उसको शाम में दिखा दूंगा, दिखा क्या दूंगा उसको यहीं पर ले आऊंगा वो तो इधर ही बस्ती में घूमता रहता है।
आरती समझ गई कि बाबूज किसकी बात कर रहे हैं वह उस काले साँढ़ की बात कर रहे हैं जो हमारे ही बस्ती का है जो आवारा घूमता रहता है इधर-उधर और उसका सिर्फ दो ही काम है इधर-उधर घूम कर खाना और दूसरा काम है हमारी बस्ती की जितनी भी गायें हैं उन सब को प्रेग्नेंट करना यानी की गाभिन करना।
फिर शाम के 4:00 के करीब राजनाथ उस साँढ़ को खोज के लाता है साँढ़ जैसे ही गेट के अंदर आता है तो इधर-उधर अपना मुंडी घूम के देखने लगत है वो अपनी भाषा में यही सोच रहा होगा कि मुझे यहां क्यों लाया गया है यहां तो कोई गाय भी नहीं है। राजनाथ फिर गेट को अंदर से बंद कर देता है ताकि निकल के भाग ना सके फिर राजनाथ सोचता है की बछिया को यही आंगन में लाकर बांधना पड़ेगा पीछे वहां जगह नहीं हो सकेगा फिर वह घर के पीछे से बछीया को लाने के लिए जाता है।
तभी आरती घर के अंदर से बाहर आती है तो वह साँढ़ को देखकर चौंक जाती है और उसकी भारी भरकम शरीर देखकर सोचने लगती है और कहती है कि हमारी बछिया तो इसके सामने एकदम बच्ची लगेगी वो तो इसका वजन भी नहीं रोक पाएगी जब यह उसके ऊपर चढ़ेगा तो वह तो इसके नीचे दब के मर जाएगी।
तभी राजनाथ बछिया को लेकर आता है और वही आंगन के दीवार के साइड में एक खूटा उसी में उसको बांध देता है । साँढ़ जैसे ही बछीया को देखा है तो वह दौड़कर उसके पास जाता है और जाते ही उसकी प्राइवेट पार्ट को सुनने लगता है यानी उसकी योनि, या चूत, बूर जो भी बोले अपनी मुंह और नाक से सूंघने लगा, और बछिया भी अपनी पूछ उठाकर आराम से उसको सुंघने दे रही थी और साँढ़ बार-बार उसको सूंघ रहा था शायद वह सूंघ कर यह जानने की कोशिश कर रहा था कि आज मैं जिसकी सील तोड़ने जा रहा हूं क्या वह पूरी तरह से तैयार है कि नहीं।
कुछ देर सूंघने के बाद उसको तसल्ली हो ही जाता है कि यह लेने के लिए पूरी तरह से तैयार है फिर वह अपना लंबा हथियार निकलता है उसकी लंबाई करीब करीब 1 फीट से ज्यादा ही होगा। फिर वह चढ़ने की कोशिश करता है और चढ़ ही जाता है। लेकिन वह अंदर नहीं जा रहा था क्योंकि उसका निशाना सही से नहीं लग पा रहा था, और बछिया उसकी भारी वजन को बहुत मुश्किल से ही संभाल पा रही थी, जब साँढ़ का लिंग अंदर नहीं गया तो वह उतर गया। और उतर कर फिर सुंघने लगा और सुंघने के बाद एक बार फिर से चढ़ गया और इस बार निशाना सही जगह पर लगा और निशान लगते ही एक जोरदार झटका के साथ पूरा का पूरा अंदर कर दिया अंदर करते ही बछिया का पूरा शरीर सिकुड़ गया शायद इस वजह से की झटका ज्यादा जोर का था, झटका तो था ही एक वजह यह भी थी की आज पहली बार उसके पेट के अंदर में कोई इतना बड़ा सामान गया था इस वजह से वह संभाल नहीं पाई। कुछ देर इस तरह अपनी पीठ को ऊपर और अपनी पेट को अंदर सिकुडे़ हुए खड़ी रही साँढ़ ने जब उसके पेट के अंदर अपना बीज डालकर अपना सामान बाहर निकाला तो उसके साथ-साथ उसका लंड का पानी और बछिया की चूत का पानी दोनों का पानी एक साथ मिलकर उसकी चूत से निकल रहा था इधर साँढ़ अपना काम कर रहा था, और राजनाथ वहीं सामने बैठकर यह सब देख रहा था ,और उसके पीछे आरती घर के अंदर से छुप कर यह सब देख रही थी।
इधर साँढ़ अपना काम करते हुए आज वह एक और कुंवारी बछिया का सील तोड़ चुका था। और वह एक बार फिर से उसके अंदर अपना लंड घुसाने की तैयारी में था और देखते ही देखते वह फिर से चढ़ जाता है और इस बार भी उसने सही निशाना लगाया और एक जोरदार झटका मार देता है और शायद इस बार झटका कुछ ज्यादा तेज था इस वजह से बछीया उसको संभाल नहीं पाई और वह गिर गई तब तक साँढ़ अपना काम कर चुका था और अपना बीज एक बार फिर उसके बच्चेदानी में डाल चुका था।
और यह सब आरती घर के अंदर से छुप कर देख रही थी और यह सब देखकर उसके शरीर में सीहरन पैदा होने लगती है और वह साँढ़ को देखकर मन ही मन सोचती है कि काश मेरा भी पति ऐसा ही ताकतवर होता ।
आगे की कहानी अगले भाग में