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अबडेट नंबर 28 आ गया है पेज नंबर 95 में आप सभी उसे पढ़ कर आनंद ले सकते हैं धन्यवाद !
Shandaar updateभाग २७
अभी तक आप लोगों ने पढ़ा की आरती राजनाथ की मालिश करते हुए उसके हठे कठे गठीले बदन को देख कर मन ही मन सोचती है की बाबूजी का इतना मजबूत और भारी शरीर है जब मैं ईनके नीचे आऊंगी और यह मेरे ऊपर चढ़ेंगे और अपनी ताकत आजमाएंगे तब मेरी हालत क्या होगी पता नहीं ।
लेकिन यह सब जो मैं सोच रही हूँ..... क्या ऐसा होगा क्या बाबू जी यह सब के लिए मानेंगे या नहीं यह तो इनको वाहाँ लेकर जाने के बाद ही मालूम होगा की क्या होने वाला है।
आरती यह सब सोंचते हुए उसकी मालिश पूरी हो गई फिर वह सोने के लिए अपने कमरे में चली गई।
फिर दूसरे दिन सुबह उठकर अपना काम खत्म करने के बाद नहाने के लिए गई और नहाने के बाद उसके दिमाग में एक ख्याल आया और उसने अपने खोले हुए कपड़े वहीं वॉशरूम में खूंटी के उपर टांग के रख देती ह यह सोचकर कि जब बाबूजी अपना पैर हाथ धोने के लिए आएंगे तो ईसको देखेंगे और देखने के बाद उनकी प्रती क्रीया क्या होगी वह कुछ बोलते हैं की नहीं यह जानने के लिए उसने अपने कपड़े वहीं टांग दिये और उसने अपनी ब्रा और पैंटी को ऊपर रख दिया ताकि राजनाथ उसे देख सके।
उसके बाद दोपहर को राजनाथ घर आया तो आरती ने उसे कहा बाबूजी आप पैर हांथ धो लीजिए मैं आपके लिए खाना लेकर आती हूँ।
उसके बाद राजनाथ पैर हांथ धोने के लिए वॉशरूम में गया तो जैसे उसने अपना गमछा कंधे से उतार के कुटी पर टांगने गया तो वहाँ आरती के कपड़े देखकर वह चौंक गया की आरती के कपड़े यहाँ क्यों रखे हुए हैं यह तो खोला हुआ कपड़ा लग रहा है लेकिन उसने यह सब कपड़े यहाँ क्यों रखे हैं यहाँ तो वो अपने कपड़े कभी नहीं रखती थी वह कुछ और सोचता कि उसकी नजर ब्रा और पैंटी पर टिक जाती है फिर उसके मन में उत्सुकता होती है उस ब्रा पैंटी को छूकर देखने की क्योंकि उसने इससे पहले कभी भी आरती की खोली हुई ब्रा और पैंटी नहीं देखी थी इस वजह से उसके अंदर उत्सुकता ज्यादा होने लगती है फिर वह उस पैंटी को उठाकर देखने लगता है कि इसमें आरती की चूत से निकली हुई कोई निशानी है कि नहीं।
फिर वह चड्डी को उलट के देखा तो उसमे दोनों टांगों के बीच वाले हिस्से पर कुछ दाग नजर आता है उसको देखने से ऐसा लग रहा था कि वहां पर कोई तरल पदार्थ गिरा है जो अब सूख चुका और सूखने की वजह से हार्ड हो गया है यह दाग उस चीज़ का था कि जब आरती है रात में राजनाथ की मालिश कर रही थी तब उसका तंदुरुस्त बदन को देखकर उसके अंदर सेक्स करने की जो भावना जगी थी उसी भावना की वजह से उसकी योनि की पानी की कुछ बूँदे बह के बाहर आ गई थी यह दाग उसी की है।
राजनाथ उसको देख कर समझ जाता है कि यह क्या चीज का दाग है क्योंकि एक मर्द को अच्छी तरह से पता होता है कि एक स्त्री की योनि से क्या चीज निकलता है राजनाथ तो इन सब चीजों का पुराना खिलाड़ी है।
राजनाथ उस पैंटी को नाक के करीब लाकर उस दाग वाली जगह को सूंघता है तो उसके नाक में एक मादक सि गंध समा जाती है और वह उस गंध को सुंघते ही मदहोश होने लगता है आज बहुत सालो के बाद उसको ऐसी गंध सुंघने को मिली थी ।
उसकी बीबी के मरने के कइ साल बाद उसको
आज ऐसा मौका मिला था।
राजनाथ को यह सब करते हुए 10 मिनट बीत जाते हैं लेकिन वह सेक्स की वासना में इतना खो चुका था कि उसे होंश नहीं रहता है वह क्या करने आया था और क्या कर रहा है ।
उधर आरती यह सोचने लगती है कि बाबूजी को गए हुए इतनी देर हो गई लेकिन अभी तक पैर हांथ धोकर नहीं आए लगता है उन्होंने मेरे कपड़े देख लिए लेकिन उनको इतना टाइम क्यों लग रहा है पैर हाथ धोने में तो इतनी टाइम नहीं लगता है आखिर ये वहाँ कर क्या रहे हैं।
तभी राजनाथ की आंख खुलती है और वह होश में आता है तो देखता हैं कि ये मैं क्या कर रहा हूं मैं यहां पैर हाँथ धोने के लिए आया था और यह मैं क्या करने लग गया फिर वह उस पैंटी को उसी जगह पर रख देता है और फिर पैर हांथ धोने के बाद वह वापस आ जाता है।
तो आरती उससे पूछती है की बड़ी देर लगा दिया आज पैर धोने में ।
राजनाथ -- कहता है कि हांँ आज थोड़ा गंदा ज्यादा था इस वजह से देर हो गई धोने में ।
आरती -- मुस्कुराती और कहती ठीक है आप बैठीए मैं आपके लिए खाना लेकर आती हूँ फिर वह जैसे ही किचन से खाना लेकर आ रही होती है की।
तभी राजनाथ की नजर उस पर पड़ती है तो उसको देख कर देखता ही रह जाता है। उसके खुले हुए बाल , उसकी मांग में हल्की सी लाल सिंदूर ,और उसके पलू के पीछे झाँकती हुई उसकी पतली कमर और उसकी गदराई जवानी वह एक वासना में लिपटी हुई कामदेवी लग रही थी जो कीसी भी पुरूष को समोहीत कर सकती है यह सब देखकर राजनाथ की भूख मर चुकी थी अब उसे कुछ और चीज़ की भूख लग चुकी थी और वह भूख थी सेक्स और वासना की।
और उस भूख को मिटाने के लिए जो खाना चाहिए वह खाना उसकी बेटी के पास है और वह उससे मांग नहीं सकता फिर मजबूरी में अपने आप को समझाता है और फिर खाना खाने की कोशिश करता है लेकिन उसको खाने की इच्छा नहीं हो रही थी।
फिर उसने थोड़ा सा खाना खाया बाकी सारा खान उसी तरह छोड़ दीया और खाने पर से उठकर अपना हांथ धोने के बाद अपने कमरे में सोने के लिए चला जाता है।
आरती को थोड़ा आश्चर्य होता है कि बाबूजी ने खाना क्यों छोड़ दिया और कुछ बताया भी नहीं।
फिर वह राजनाथ के कमरे में जाति और पूछती है बाबूजी क्या हुआ आपने खाना क्यों छोड़ दिया खाना अच्छा नहीं है क्या।
राजनाथ -- नहीं बेटा खाना तो बहुत अच्छा है।
आरती -- तो फिर आपने खाना क्यों छोड़ दियाआपकी तबीयत ठीक नहीं है क्या।
राजनाथ -- नहीं बेटा तबीयत तो ठीक है बस भूख नहीं है।
आरती -- ऐसे कैसे भूख नहीं है आज सुबह मे नाश्ता भी ठीक से नहीं किया था और अब कह रहे हैं कि भूख नहीं है आप कुछ छुपा रहे हैं मुझसे ।
अब वह उसे क्या बताएं कि वह क्या छुपा रहा है यह बात उसे बता भी नहीं सकता था तो वह बात टालने के लिए कह देता है कि मेरा माथा थोड़ा दर्द कर रहा है इसलिए खाने का मन नहीं किया।
आरती -- क्या माथा दर्द कर रहा है आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया दवा ला देती आपके लिए फिर वह अपना हाथ बढ़ा कर उसके माथे को छूकर देखी और बोली की माथा गरम तो नहीं है फिर दर्द कैसे कर रहा और वह उसी के बीशतर पर बैठते हुए कहती है लाइए मैं आपका माथा दबा देती हूँ कुछ आराम मिलेगा।
और वह जैसे ही उसके बगल बैठी वैसे ही उसकी बदन की खुशबू सीधे उसके नाक से होते हुए उसके मन मसक्त में छाने लगता है और उसे परम आनंद की अनुभूति होने लगता है और वह सोचने लगता है कि बस ईस आनंद की अनुभूति ऐसे ही मिलती रहे और वह अपना सर और उसके करीब ले जाता है ताकि उसकी खुशबू अच्छे से ले सके लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा देर नहीं रहती।
क्योंकि कुछ ही देर बाद उसकी मांँ बाहर से आ जाती है और फिर आरती को उठकर जाना पड़ता है ।
और राजनाथ अपनी माँ पर गुस्सा होते हुए मन ही मन सोचा है और कहता है कि माँ को भी अभी आना था कुछ देर बाद आती तो क्या हो जाता।
फिर वह उस खूबसूरत पल के ख्यालों में खो जाता है जो अभी कुछ देर पहले उसको प्राप्त हो रहा था ।
फिर 2 दिन के बाद दोनों बाप बेटी बाबा के पास जाने के लिए दोनों निकलते हैं।
जब वहां पहुंचे तो देखा की बाबा आश्रम के बाहर चबूतरे पर बैठकर आराम कर रहे थे क्योंकि आज रविवार था और आज के दिन उनका आश्रम बंद रहता है इसलिए आज कोई नहीं आया हुआ था और वह अकेले बैठे आराम कर रहे थे।
जैसे उन्होंने आरती को दिखा तो बोले अरे पुत्री तुम।
आरती-- जी बाबा आपने हम लोगों को चार दिन के बाद आने के लिए कहा था।
बाबा -- अच्छा अच्छा बहुत अच्छा किया जो आ गए। यह सब बात कर ही रहे होते हैं कि तभी आश्रम के घर के अंदर से एक महिला स्त्री निकल कर के बाहर आती है जो दिखने में खूबसूरत लग रही थी और उसकी उम्र है 26 27 की होगी और उसके गोद में एक दो ढाई साल की बच्ची भी थी और वह बाबा के पास आती है और कहती है पिताजी आपके लिए चाय लाऊँ ।
बाबा --हाँ बेटा चाय लेकर आओ लेकिन सिर्फ मेरे लिए नहीं इनके लिए भी लेकर आना यह हमारे मेहमान है।
फिर वह अंदर चली जाती है तो बाबा उसके तरफ देखते हुए कहते हैं कि ये हमरी बेटी है पूर्णिमा आज ही सुबह अपने ससुराल से आई है ।
फिर बाबा आरती से कहते हैं पुत्री तुम अंदर जाओ पूर्णिया से बातें वातें करो तब तक हम दोनों बाहर से टहल कर आते हैं ।
फिर आरती वहां से उठकर अंदर पूर्णिमा के पास चली जाती है।
फिर बाबा और राजनाथ भी वहां से उठकर आश्रम के पीछे बने गार्डन में घूमने के लिए जाते हैं और फिर घूमते घूमते एक जगह पर बैठ जाते हैं ।
फिर बाबा राजनाथ को वह सब बात बताने लगते हैं जिसके लिए उन्होंने उसे बुलाया था।
फिर वह राजनाथ से कहते हैं कि आपकी बेटी को माँ बनने में एक बहुत बड़ी समस्या है और वह समस्या आप ही दूर कर सकते हैं ।
राजनाथ -- ऐसी क्या समस्या है।
बाबा-- समस्या यह है कि आपके खानदान में आपके अलावा और कोई मर्द नहीं है और ना ही आपका कोई भाई है सबसे बड़ा समस्या की आपका कोई बेटा भी नहीं है इसका मतलब यह है कि आपके बाद आपके वंश को बढ़ाने वाला और कोई मर्द नहीं है और जब तक आपके वंश को बढ़ाने वाला नहीं आएगा तब तक आपकी बेटी माँ नही बन पाएगी । इसका मतलब यह है क्या जब तक आपका कोई बेटा नहीं होगा तब तक वह माँ नही बन पाएगी।
राजनाथ -- लेकिन बाबा अब इस उम्र में मेरा बेटा कहां से आएगा और मेरी बीवी भी गुजर गई है तो मेरा बेटा कहां से होगा क्या मुझे दोबारा शादी करनी पड़ेगी इस उम्र में।
बाबा -- शादी तो तुम अभी भी इस उम्र में भी कर सकते हो लेकिन इसमें भी समस्या है अगर तुम दोबारा शादी करते हो तो तुम्हारी मृत्यु हो सकती है मैं तुम्हारा और तुम्हारी बेटी की कुंडली देखी है और मुझे उसमें साफ-साफ दिख रहा है की जब तुम दोबारा शादी करोगे और जैसे ही तुम आप बनोगे वैसे ही तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी इसलिए तुम दोबारा शादी भी नहीं कर सकते।
राजनाथ -- बाबा जी तो क्या इसका और कोई उपाय नहीं हो सकता।
बाबा -- उपाय है उपाय क्यों नहीं है इसीलिए तो हमने तुम्हें यहां बुलाया है और उपाय यह है कि जो काम तुम अपनी पत्नी के साथ करते थेअब वही काम तुमको अपनी बेटी के साथ करना पड़ेगा तुमको उसके साथ संबंध बनाना पड़ेगा मेरा मतलब है उसके साथ संभोग करना पड़ेगा।
राजनाथ -- यह बात सुनते ही एक दम से चौंक जाता है उसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं होता कि उसने क्या सुना है लेकिन वह फिर से वही बात बाबा जी से पूछता है कि बाबा आपने क्या कहा मैंने ठीक से सुना नही ।
बाबा -- तुमने बिलकुल ठीक सुना है मैं वही कहा है जो तुमने सुना है तुमको अपनी बेटी के साथ संभोग करना पड़ेगा तब वह माँ बनेगी और तुम बाप बनोगे इस तरह से तुम दोनों का काम हो जाएगा।
राजनाथ को अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि बाबा यह क्या कह रहे हैं तो वह कहता है बाबा जी आप क्या कर रहे हैं ऐसे कैसे हो सकते हैं मैं उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता हूं वह मेरी बेटी है।
बाबा -- मुझे पता है कि वह तुम्हारी बेटी है लेकिन वह एक स्त्री भी है और वह इस वक्त अपने जीवन काल की सबसे उच्चतम अवस्था में है और इस अवस्था में जो एक स्त्री को शारीरिक सुख चाहिए वह उसे नहीं मिल पा रहा है वह सुख तुम उसे दे सकते हो।
राजनाथ -- लेकिन बाबा जी मेरे लिए यह सब करना उचित नहीं होगा मैं ऐसा नहीं कर सकता।
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Bahut hi badiya update hai prantu update bada ho aur sath me image.....भाग २७
अभी तक आप लोगों ने पढ़ा की आरती राजनाथ की मालिश करते हुए उसके हठे कठे गठीले बदन को देख कर मन ही मन सोचती है की बाबूजी का इतना मजबूत और भारी शरीर है जब मैं ईनके नीचे आऊंगी और यह मेरे ऊपर चढ़ेंगे और अपनी ताकत आजमाएंगे तब मेरी हालत क्या होगी पता नहीं ।
लेकिन यह सब जो मैं सोच रही हूँ..... क्या ऐसा होगा क्या बाबू जी यह सब के लिए मानेंगे या नहीं यह तो इनको वाहाँ लेकर जाने के बाद ही मालूम होगा की क्या होने वाला है।
आरती यह सब सोंचते हुए उसकी मालिश पूरी हो गई फिर वह सोने के लिए अपने कमरे में चली गई।
फिर दूसरे दिन सुबह उठकर अपना काम खत्म करने के बाद नहाने के लिए गई और नहाने के बाद उसके दिमाग में एक ख्याल आया और उसने अपने खोले हुए कपड़े वहीं वॉशरूम में खूंटी के उपर टांग के रख देती ह यह सोचकर कि जब बाबूजी अपना पैर हाथ धोने के लिए आएंगे तो ईसको देखेंगे और देखने के बाद उनकी प्रती क्रीया क्या होगी वह कुछ बोलते हैं की नहीं यह जानने के लिए उसने अपने कपड़े वहीं टांग दिये और उसने अपनी ब्रा और पैंटी को ऊपर रख दिया ताकि राजनाथ उसे देख सके।
उसके बाद दोपहर को राजनाथ घर आया तो आरती ने उसे कहा बाबूजी आप पैर हांथ धो लीजिए मैं आपके लिए खाना लेकर आती हूँ।
उसके बाद राजनाथ पैर हांथ धोने के लिए वॉशरूम में गया तो जैसे उसने अपना गमछा कंधे से उतार के कुटी पर टांगने गया तो वहाँ आरती के कपड़े देखकर वह चौंक गया की आरती के कपड़े यहाँ क्यों रखे हुए हैं यह तो खोला हुआ कपड़ा लग रहा है लेकिन उसने यह सब कपड़े यहाँ क्यों रखे हैं यहाँ तो वो अपने कपड़े कभी नहीं रखती थी वह कुछ और सोचता कि उसकी नजर ब्रा और पैंटी पर टिक जाती है फिर उसके मन में उत्सुकता होती है उस ब्रा पैंटी को छूकर देखने की क्योंकि उसने इससे पहले कभी भी आरती की खोली हुई ब्रा और पैंटी नहीं देखी थी इस वजह से उसके अंदर उत्सुकता ज्यादा होने लगती है फिर वह उस पैंटी को उठाकर देखने लगता है कि इसमें आरती की चूत से निकली हुई कोई निशानी है कि नहीं।
फिर वह चड्डी को उलट के देखा तो उसमे दोनों टांगों के बीच वाले हिस्से पर कुछ दाग नजर आता है उसको देखने से ऐसा लग रहा था कि वहां पर कोई तरल पदार्थ गिरा है जो अब सूख चुका और सूखने की वजह से हार्ड हो गया है यह दाग उस चीज़ का था कि जब आरती है रात में राजनाथ की मालिश कर रही थी तब उसका तंदुरुस्त बदन को देखकर उसके अंदर सेक्स करने की जो भावना जगी थी उसी भावना की वजह से उसकी योनि की पानी की कुछ बूँदे बह के बाहर आ गई थी यह दाग उसी की है।
राजनाथ उसको देख कर समझ जाता है कि यह क्या चीज का दाग है क्योंकि एक मर्द को अच्छी तरह से पता होता है कि एक स्त्री की योनि से क्या चीज निकलता है राजनाथ तो इन सब चीजों का पुराना खिलाड़ी है।
राजनाथ उस पैंटी को नाक के करीब लाकर उस दाग वाली जगह को सूंघता है तो उसके नाक में एक मादक सि गंध समा जाती है और वह उस गंध को सुंघते ही मदहोश होने लगता है आज बहुत सालो के बाद उसको ऐसी गंध सुंघने को मिली थी ।
उसकी बीबी के मरने के कइ साल बाद उसको
आज ऐसा मौका मिला था।
राजनाथ को यह सब करते हुए 10 मिनट बीत जाते हैं लेकिन वह सेक्स की वासना में इतना खो चुका था कि उसे होंश नहीं रहता है वह क्या करने आया था और क्या कर रहा है ।
उधर आरती यह सोचने लगती है कि बाबूजी को गए हुए इतनी देर हो गई लेकिन अभी तक पैर हांथ धोकर नहीं आए लगता है उन्होंने मेरे कपड़े देख लिए लेकिन उनको इतना टाइम क्यों लग रहा है पैर हाथ धोने में तो इतनी टाइम नहीं लगता है आखिर ये वहाँ कर क्या रहे हैं।
तभी राजनाथ की आंख खुलती है और वह होश में आता है तो देखता हैं कि ये मैं क्या कर रहा हूं मैं यहां पैर हाँथ धोने के लिए आया था और यह मैं क्या करने लग गया फिर वह उस पैंटी को उसी जगह पर रख देता है और फिर पैर हांथ धोने के बाद वह वापस आ जाता है।
तो आरती उससे पूछती है की बड़ी देर लगा दिया आज पैर धोने में ।
राजनाथ -- कहता है कि हांँ आज थोड़ा गंदा ज्यादा था इस वजह से देर हो गई धोने में ।
आरती -- मुस्कुराती और कहती ठीक है आप बैठीए मैं आपके लिए खाना लेकर आती हूँ फिर वह जैसे ही किचन से खाना लेकर आ रही होती है की।
तभी राजनाथ की नजर उस पर पड़ती है तो उसको देख कर देखता ही रह जाता है। उसके खुले हुए बाल , उसकी मांग में हल्की सी लाल सिंदूर ,और उसके पलू के पीछे झाँकती हुई उसकी पतली कमर और उसकी गदराई जवानी वह एक वासना में लिपटी हुई कामदेवी लग रही थी जो कीसी भी पुरूष को समोहीत कर सकती है यह सब देखकर राजनाथ की भूख मर चुकी थी अब उसे कुछ और चीज़ की भूख लग चुकी थी और वह भूख थी सेक्स और वासना की।
और उस भूख को मिटाने के लिए जो खाना चाहिए वह खाना उसकी बेटी के पास है और वह उससे मांग नहीं सकता फिर मजबूरी में अपने आप को समझाता है और फिर खाना खाने की कोशिश करता है लेकिन उसको खाने की इच्छा नहीं हो रही थी।
फिर उसने थोड़ा सा खाना खाया बाकी सारा खान उसी तरह छोड़ दीया और खाने पर से उठकर अपना हांथ धोने के बाद अपने कमरे में सोने के लिए चला जाता है।
आरती को थोड़ा आश्चर्य होता है कि बाबूजी ने खाना क्यों छोड़ दिया और कुछ बताया भी नहीं।
फिर वह राजनाथ के कमरे में जाति और पूछती है बाबूजी क्या हुआ आपने खाना क्यों छोड़ दिया खाना अच्छा नहीं है क्या।
राजनाथ -- नहीं बेटा खाना तो बहुत अच्छा है।
आरती -- तो फिर आपने खाना क्यों छोड़ दियाआपकी तबीयत ठीक नहीं है क्या।
राजनाथ -- नहीं बेटा तबीयत तो ठीक है बस भूख नहीं है।
आरती -- ऐसे कैसे भूख नहीं है आज सुबह मे नाश्ता भी ठीक से नहीं किया था और अब कह रहे हैं कि भूख नहीं है आप कुछ छुपा रहे हैं मुझसे ।
अब वह उसे क्या बताएं कि वह क्या छुपा रहा है यह बात उसे बता भी नहीं सकता था तो वह बात टालने के लिए कह देता है कि मेरा माथा थोड़ा दर्द कर रहा है इसलिए खाने का मन नहीं किया।
आरती -- क्या माथा दर्द कर रहा है आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया दवा ला देती आपके लिए फिर वह अपना हाथ बढ़ा कर उसके माथे को छूकर देखी और बोली की माथा गरम तो नहीं है फिर दर्द कैसे कर रहा और वह उसी के बीशतर पर बैठते हुए कहती है लाइए मैं आपका माथा दबा देती हूँ कुछ आराम मिलेगा।
और वह जैसे ही उसके बगल बैठी वैसे ही उसकी बदन की खुशबू सीधे उसके नाक से होते हुए उसके मन मसक्त में छाने लगता है और उसे परम आनंद की अनुभूति होने लगता है और वह सोचने लगता है कि बस ईस आनंद की अनुभूति ऐसे ही मिलती रहे और वह अपना सर और उसके करीब ले जाता है ताकि उसकी खुशबू अच्छे से ले सके लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा देर नहीं रहती।
क्योंकि कुछ ही देर बाद उसकी मांँ बाहर से आ जाती है और फिर आरती को उठकर जाना पड़ता है ।
और राजनाथ अपनी माँ पर गुस्सा होते हुए मन ही मन सोचा है और कहता है कि माँ को भी अभी आना था कुछ देर बाद आती तो क्या हो जाता।
फिर वह उस खूबसूरत पल के ख्यालों में खो जाता है जो अभी कुछ देर पहले उसको प्राप्त हो रहा था ।
फिर 2 दिन के बाद दोनों बाप बेटी बाबा के पास जाने के लिए दोनों निकलते हैं।
जब वहां पहुंचे तो देखा की बाबा आश्रम के बाहर चबूतरे पर बैठकर आराम कर रहे थे क्योंकि आज रविवार था और आज के दिन उनका आश्रम बंद रहता है इसलिए आज कोई नहीं आया हुआ था और वह अकेले बैठे आराम कर रहे थे।
जैसे उन्होंने आरती को दिखा तो बोले अरे पुत्री तुम।
आरती-- जी बाबा आपने हम लोगों को चार दिन के बाद आने के लिए कहा था।
बाबा -- अच्छा अच्छा बहुत अच्छा किया जो आ गए। यह सब बात कर ही रहे होते हैं कि तभी आश्रम के घर के अंदर से एक महिला स्त्री निकल कर के बाहर आती है जो दिखने में खूबसूरत लग रही थी और उसकी उम्र है 26 27 की होगी और उसके गोद में एक दो ढाई साल की बच्ची भी थी और वह बाबा के पास आती है और कहती है पिताजी आपके लिए चाय लाऊँ ।
बाबा --हाँ बेटा चाय लेकर आओ लेकिन सिर्फ मेरे लिए नहीं इनके लिए भी लेकर आना यह हमारे मेहमान है।
फिर वह अंदर चली जाती है तो बाबा उसके तरफ देखते हुए कहते हैं कि ये हमरी बेटी है पूर्णिमा आज ही सुबह अपने ससुराल से आई है ।
फिर बाबा आरती से कहते हैं पुत्री तुम अंदर जाओ पूर्णिया से बातें वातें करो तब तक हम दोनों बाहर से टहल कर आते हैं ।
फिर आरती वहां से उठकर अंदर पूर्णिमा के पास चली जाती है।
फिर बाबा और राजनाथ भी वहां से उठकर आश्रम के पीछे बने गार्डन में घूमने के लिए जाते हैं और फिर घूमते घूमते एक जगह पर बैठ जाते हैं ।
फिर बाबा राजनाथ को वह सब बात बताने लगते हैं जिसके लिए उन्होंने उसे बुलाया था।
फिर वह राजनाथ से कहते हैं कि आपकी बेटी को माँ बनने में एक बहुत बड़ी समस्या है और वह समस्या आप ही दूर कर सकते हैं ।
राजनाथ -- ऐसी क्या समस्या है।
बाबा-- समस्या यह है कि आपके खानदान में आपके अलावा और कोई मर्द नहीं है और ना ही आपका कोई भाई है सबसे बड़ा समस्या की आपका कोई बेटा भी नहीं है इसका मतलब यह है कि आपके बाद आपके वंश को बढ़ाने वाला और कोई मर्द नहीं है और जब तक आपके वंश को बढ़ाने वाला नहीं आएगा तब तक आपकी बेटी माँ नही बन पाएगी । इसका मतलब यह है क्या जब तक आपका कोई बेटा नहीं होगा तब तक वह माँ नही बन पाएगी।
राजनाथ -- लेकिन बाबा अब इस उम्र में मेरा बेटा कहां से आएगा और मेरी बीवी भी गुजर गई है तो मेरा बेटा कहां से होगा क्या मुझे दोबारा शादी करनी पड़ेगी इस उम्र में।
बाबा -- शादी तो तुम अभी भी इस उम्र में भी कर सकते हो लेकिन इसमें भी समस्या है अगर तुम दोबारा शादी करते हो तो तुम्हारी मृत्यु हो सकती है मैं तुम्हारा और तुम्हारी बेटी की कुंडली देखी है और मुझे उसमें साफ-साफ दिख रहा है की जब तुम दोबारा शादी करोगे और जैसे ही तुम आप बनोगे वैसे ही तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी इसलिए तुम दोबारा शादी भी नहीं कर सकते।
राजनाथ -- बाबा जी तो क्या इसका और कोई उपाय नहीं हो सकता।
बाबा -- उपाय है उपाय क्यों नहीं है इसीलिए तो हमने तुम्हें यहां बुलाया है और उपाय यह है कि जो काम तुम अपनी पत्नी के साथ करते थेअब वही काम तुमको अपनी बेटी के साथ करना पड़ेगा तुमको उसके साथ संबंध बनाना पड़ेगा मेरा मतलब है उसके साथ संभोग करना पड़ेगा।
राजनाथ -- यह बात सुनते ही एक दम से चौंक जाता है उसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं होता कि उसने क्या सुना है लेकिन वह फिर से वही बात बाबा जी से पूछता है कि बाबा आपने क्या कहा मैंने ठीक से सुना नही ।
बाबा -- तुमने बिलकुल ठीक सुना है मैं वही कहा है जो तुमने सुना है तुमको अपनी बेटी के साथ संभोग करना पड़ेगा तब वह माँ बनेगी और तुम बाप बनोगे इस तरह से तुम दोनों का काम हो जाएगा।
राजनाथ को अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि बाबा यह क्या कह रहे हैं तो वह कहता है बाबा जी आप क्या कर रहे हैं ऐसे कैसे हो सकते हैं मैं उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता हूं वह मेरी बेटी है।
बाबा -- मुझे पता है कि वह तुम्हारी बेटी है लेकिन वह एक स्त्री भी है और वह इस वक्त अपने जीवन काल की सबसे उच्चतम अवस्था में है और इस अवस्था में जो एक स्त्री को शारीरिक सुख चाहिए वह उसे नहीं मिल पा रहा है वह सुख तुम उसे दे सकते हो।
राजनाथ -- लेकिन बाबा जी मेरे लिए यह सब करना उचित नहीं होगा मैं ऐसा नहीं कर सकता।
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भाग २७
अभी तक आप लोगों ने पढ़ा की आरती राजनाथ की मालिश करते हुए उसके हठे कठे गठीले बदन को देख कर मन ही मन सोचती है की बाबूजी का इतना मजबूत और भारी शरीर है जब मैं ईनके नीचे आऊंगी और यह मेरे ऊपर चढ़ेंगे और अपनी ताकत आजमाएंगे तब मेरी हालत क्या होगी पता नहीं ।
लेकिन यह सब जो मैं सोच रही हूँ..... क्या ऐसा होगा क्या बाबू जी यह सब के लिए मानेंगे या नहीं यह तो इनको वाहाँ लेकर जाने के बाद ही मालूम होगा की क्या होने वाला है।
आरती यह सब सोंचते हुए उसकी मालिश पूरी हो गई फिर वह सोने के लिए अपने कमरे में चली गई।
फिर दूसरे दिन सुबह उठकर अपना काम खत्म करने के बाद नहाने के लिए गई और नहाने के बाद उसके दिमाग में एक ख्याल आया और उसने अपने खोले हुए कपड़े वहीं वॉशरूम में खूंटी के उपर टांग के रख देती ह यह सोचकर कि जब बाबूजी अपना पैर हाथ धोने के लिए आएंगे तो ईसको देखेंगे और देखने के बाद उनकी प्रती क्रीया क्या होगी वह कुछ बोलते हैं की नहीं यह जानने के लिए उसने अपने कपड़े वहीं टांग दिये और उसने अपनी ब्रा और पैंटी को ऊपर रख दिया ताकि राजनाथ उसे देख सके।
उसके बाद दोपहर को राजनाथ घर आया तो आरती ने उसे कहा बाबूजी आप पैर हांथ धो लीजिए मैं आपके लिए खाना लेकर आती हूँ।
उसके बाद राजनाथ पैर हांथ धोने के लिए वॉशरूम में गया तो जैसे उसने अपना गमछा कंधे से उतार के कुटी पर टांगने गया तो वहाँ आरती के कपड़े देखकर वह चौंक गया की आरती के कपड़े यहाँ क्यों रखे हुए हैं यह तो खोला हुआ कपड़ा लग रहा है लेकिन उसने यह सब कपड़े यहाँ क्यों रखे हैं यहाँ तो वो अपने कपड़े कभी नहीं रखती थी वह कुछ और सोचता कि उसकी नजर ब्रा और पैंटी पर टिक जाती है फिर उसके मन में उत्सुकता होती है उस ब्रा पैंटी को छूकर देखने की क्योंकि उसने इससे पहले कभी भी आरती की खोली हुई ब्रा और पैंटी नहीं देखी थी इस वजह से उसके अंदर उत्सुकता ज्यादा होने लगती है फिर वह उस पैंटी को उठाकर देखने लगता है कि इसमें आरती की चूत से निकली हुई कोई निशानी है कि नहीं।
फिर वह चड्डी को उलट के देखा तो उसमे दोनों टांगों के बीच वाले हिस्से पर कुछ दाग नजर आता है उसको देखने से ऐसा लग रहा था कि वहां पर कोई तरल पदार्थ गिरा है जो अब सूख चुका और सूखने की वजह से हार्ड हो गया है यह दाग उस चीज़ का था कि जब आरती है रात में राजनाथ की मालिश कर रही थी तब उसका तंदुरुस्त बदन को देखकर उसके अंदर सेक्स करने की जो भावना जगी थी उसी भावना की वजह से उसकी योनि की पानी की कुछ बूँदे बह के बाहर आ गई थी यह दाग उसी की है।
राजनाथ उसको देख कर समझ जाता है कि यह क्या चीज का दाग है क्योंकि एक मर्द को अच्छी तरह से पता होता है कि एक स्त्री की योनि से क्या चीज निकलता है राजनाथ तो इन सब चीजों का पुराना खिलाड़ी है।
राजनाथ उस पैंटी को नाक के करीब लाकर उस दाग वाली जगह को सूंघता है तो उसके नाक में एक मादक सि गंध समा जाती है और वह उस गंध को सुंघते ही मदहोश होने लगता है आज बहुत सालो के बाद उसको ऐसी गंध सुंघने को मिली थी ।
उसकी बीबी के मरने के कइ साल बाद उसको
आज ऐसा मौका मिला था।
राजनाथ को यह सब करते हुए 10 मिनट बीत जाते हैं लेकिन वह सेक्स की वासना में इतना खो चुका था कि उसे होंश नहीं रहता है वह क्या करने आया था और क्या कर रहा है ।
उधर आरती यह सोचने लगती है कि बाबूजी को गए हुए इतनी देर हो गई लेकिन अभी तक पैर हांथ धोकर नहीं आए लगता है उन्होंने मेरे कपड़े देख लिए लेकिन उनको इतना टाइम क्यों लग रहा है पैर हाथ धोने में तो इतनी टाइम नहीं लगता है आखिर ये वहाँ कर क्या रहे हैं।
तभी राजनाथ की आंख खुलती है और वह होश में आता है तो देखता हैं कि ये मैं क्या कर रहा हूं मैं यहां पैर हाँथ धोने के लिए आया था और यह मैं क्या करने लग गया फिर वह उस पैंटी को उसी जगह पर रख देता है और फिर पैर हांथ धोने के बाद वह वापस आ जाता है।
तो आरती उससे पूछती है की बड़ी देर लगा दिया आज पैर धोने में ।
राजनाथ -- कहता है कि हांँ आज थोड़ा गंदा ज्यादा था इस वजह से देर हो गई धोने में ।
आरती -- मुस्कुराती और कहती ठीक है आप बैठीए मैं आपके लिए खाना लेकर आती हूँ फिर वह जैसे ही किचन से खाना लेकर आ रही होती है की।
तभी राजनाथ की नजर उस पर पड़ती है तो उसको देख कर देखता ही रह जाता है। उसके खुले हुए बाल , उसकी मांग में हल्की सी लाल सिंदूर ,और उसके पलू के पीछे झाँकती हुई उसकी पतली कमर और उसकी गदराई जवानी वह एक वासना में लिपटी हुई कामदेवी लग रही थी जो कीसी भी पुरूष को समोहीत कर सकती है यह सब देखकर राजनाथ की भूख मर चुकी थी अब उसे कुछ और चीज़ की भूख लग चुकी थी और वह भूख थी सेक्स और वासना की।
और उस भूख को मिटाने के लिए जो खाना चाहिए वह खाना उसकी बेटी के पास है और वह उससे मांग नहीं सकता फिर मजबूरी में अपने आप को समझाता है और फिर खाना खाने की कोशिश करता है लेकिन उसको खाने की इच्छा नहीं हो रही थी।
फिर उसने थोड़ा सा खाना खाया बाकी सारा खान उसी तरह छोड़ दीया और खाने पर से उठकर अपना हांथ धोने के बाद अपने कमरे में सोने के लिए चला जाता है।
आरती को थोड़ा आश्चर्य होता है कि बाबूजी ने खाना क्यों छोड़ दिया और कुछ बताया भी नहीं।
फिर वह राजनाथ के कमरे में जाति और पूछती है बाबूजी क्या हुआ आपने खाना क्यों छोड़ दिया खाना अच्छा नहीं है क्या।
राजनाथ -- नहीं बेटा खाना तो बहुत अच्छा है।
आरती -- तो फिर आपने खाना क्यों छोड़ दियाआपकी तबीयत ठीक नहीं है क्या।
राजनाथ -- नहीं बेटा तबीयत तो ठीक है बस भूख नहीं है।
आरती -- ऐसे कैसे भूख नहीं है आज सुबह मे नाश्ता भी ठीक से नहीं किया था और अब कह रहे हैं कि भूख नहीं है आप कुछ छुपा रहे हैं मुझसे ।
अब वह उसे क्या बताएं कि वह क्या छुपा रहा है यह बात उसे बता भी नहीं सकता था तो वह बात टालने के लिए कह देता है कि मेरा माथा थोड़ा दर्द कर रहा है इसलिए खाने का मन नहीं किया।
आरती -- क्या माथा दर्द कर रहा है आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया दवा ला देती आपके लिए फिर वह अपना हाथ बढ़ा कर उसके माथे को छूकर देखी और बोली की माथा गरम तो नहीं है फिर दर्द कैसे कर रहा और वह उसी के बीशतर पर बैठते हुए कहती है लाइए मैं आपका माथा दबा देती हूँ कुछ आराम मिलेगा।
और वह जैसे ही उसके बगल बैठी वैसे ही उसकी बदन की खुशबू सीधे उसके नाक से होते हुए उसके मन मसक्त में छाने लगता है और उसे परम आनंद की अनुभूति होने लगता है और वह सोचने लगता है कि बस ईस आनंद की अनुभूति ऐसे ही मिलती रहे और वह अपना सर और उसके करीब ले जाता है ताकि उसकी खुशबू अच्छे से ले सके लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा देर नहीं रहती।
क्योंकि कुछ ही देर बाद उसकी मांँ बाहर से आ जाती है और फिर आरती को उठकर जाना पड़ता है ।
और राजनाथ अपनी माँ पर गुस्सा होते हुए मन ही मन सोचा है और कहता है कि माँ को भी अभी आना था कुछ देर बाद आती तो क्या हो जाता।
फिर वह उस खूबसूरत पल के ख्यालों में खो जाता है जो अभी कुछ देर पहले उसको प्राप्त हो रहा था ।
फिर 2 दिन के बाद दोनों बाप बेटी बाबा के पास जाने के लिए दोनों निकलते हैं।
जब वहां पहुंचे तो देखा की बाबा आश्रम के बाहर चबूतरे पर बैठकर आराम कर रहे थे क्योंकि आज रविवार था और आज के दिन उनका आश्रम बंद रहता है इसलिए आज कोई नहीं आया हुआ था और वह अकेले बैठे आराम कर रहे थे।
जैसे उन्होंने आरती को दिखा तो बोले अरे पुत्री तुम।
आरती-- जी बाबा आपने हम लोगों को चार दिन के बाद आने के लिए कहा था।
बाबा -- अच्छा अच्छा बहुत अच्छा किया जो आ गए। यह सब बात कर ही रहे होते हैं कि तभी आश्रम के घर के अंदर से एक महिला स्त्री निकल कर के बाहर आती है जो दिखने में खूबसूरत लग रही थी और उसकी उम्र है 26 27 की होगी और उसके गोद में एक दो ढाई साल की बच्ची भी थी और वह बाबा के पास आती है और कहती है पिताजी आपके लिए चाय लाऊँ ।
बाबा --हाँ बेटा चाय लेकर आओ लेकिन सिर्फ मेरे लिए नहीं इनके लिए भी लेकर आना यह हमारे मेहमान है।
फिर वह अंदर चली जाती है तो बाबा उसके तरफ देखते हुए कहते हैं कि ये हमरी बेटी है पूर्णिमा आज ही सुबह अपने ससुराल से आई है ।
फिर बाबा आरती से कहते हैं पुत्री तुम अंदर जाओ पूर्णिया से बातें वातें करो तब तक हम दोनों बाहर से टहल कर आते हैं ।
फिर आरती वहां से उठकर अंदर पूर्णिमा के पास चली जाती है।
फिर बाबा और राजनाथ भी वहां से उठकर आश्रम के पीछे बने गार्डन में घूमने के लिए जाते हैं और फिर घूमते घूमते एक जगह पर बैठ जाते हैं ।
फिर बाबा राजनाथ को वह सब बात बताने लगते हैं जिसके लिए उन्होंने उसे बुलाया था।
फिर वह राजनाथ से कहते हैं कि आपकी बेटी को माँ बनने में एक बहुत बड़ी समस्या है और वह समस्या आप ही दूर कर सकते हैं ।
राजनाथ -- ऐसी क्या समस्या है।
बाबा-- समस्या यह है कि आपके खानदान में आपके अलावा और कोई मर्द नहीं है और ना ही आपका कोई भाई है सबसे बड़ा समस्या की आपका कोई बेटा भी नहीं है इसका मतलब यह है कि आपके बाद आपके वंश को बढ़ाने वाला और कोई मर्द नहीं है और जब तक आपके वंश को बढ़ाने वाला नहीं आएगा तब तक आपकी बेटी माँ नही बन पाएगी । इसका मतलब यह है क्या जब तक आपका कोई बेटा नहीं होगा तब तक वह माँ नही बन पाएगी।
राजनाथ -- लेकिन बाबा अब इस उम्र में मेरा बेटा कहां से आएगा और मेरी बीवी भी गुजर गई है तो मेरा बेटा कहां से होगा क्या मुझे दोबारा शादी करनी पड़ेगी इस उम्र में।
बाबा -- शादी तो तुम अभी भी इस उम्र में भी कर सकते हो लेकिन इसमें भी समस्या है अगर तुम दोबारा शादी करते हो तो तुम्हारी मृत्यु हो सकती है मैं तुम्हारा और तुम्हारी बेटी की कुंडली देखी है और मुझे उसमें साफ-साफ दिख रहा है की जब तुम दोबारा शादी करोगे और जैसे ही तुम आप बनोगे वैसे ही तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी इसलिए तुम दोबारा शादी भी नहीं कर सकते।
राजनाथ -- बाबा जी तो क्या इसका और कोई उपाय नहीं हो सकता।
बाबा -- उपाय है उपाय क्यों नहीं है इसीलिए तो हमने तुम्हें यहां बुलाया है और उपाय यह है कि जो काम तुम अपनी पत्नी के साथ करते थेअब वही काम तुमको अपनी बेटी के साथ करना पड़ेगा तुमको उसके साथ संबंध बनाना पड़ेगा मेरा मतलब है उसके साथ संभोग करना पड़ेगा।
राजनाथ -- यह बात सुनते ही एक दम से चौंक जाता है उसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं होता कि उसने क्या सुना है लेकिन वह फिर से वही बात बाबा जी से पूछता है कि बाबा आपने क्या कहा मैंने ठीक से सुना नही ।
बाबा -- तुमने बिलकुल ठीक सुना है मैं वही कहा है जो तुमने सुना है तुमको अपनी बेटी के साथ संभोग करना पड़ेगा तब वह माँ बनेगी और तुम बाप बनोगे इस तरह से तुम दोनों का काम हो जाएगा।
राजनाथ को अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि बाबा यह क्या कह रहे हैं तो वह कहता है बाबा जी आप क्या कर रहे हैं ऐसे कैसे हो सकते हैं मैं उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता हूं वह मेरी बेटी है।
बाबा -- मुझे पता है कि वह तुम्हारी बेटी है लेकिन वह एक स्त्री भी है और वह इस वक्त अपने जीवन काल की सबसे उच्चतम अवस्था में है और इस अवस्था में जो एक स्त्री को शारीरिक सुख चाहिए वह उसे नहीं मिल पा रहा है वह सुख तुम उसे दे सकते हो।
राजनाथ -- लेकिन बाबा जी मेरे लिए यह सब करना उचित नहीं होगा मैं ऐसा नहीं कर सकता।
.......
Shandaar update..... Ab mamla fit ho gaya hai.... Ab to bas le chudai le chudai le thukai le thukai.... Do k maje hone wale hainभाग २७
अभी तक आप लोगों ने पढ़ा की आरती राजनाथ की मालिश करते हुए उसके हठे कठे गठीले बदन को देख कर मन ही मन सोचती है की बाबूजी का इतना मजबूत और भारी शरीर है जब मैं ईनके नीचे आऊंगी और यह मेरे ऊपर चढ़ेंगे और अपनी ताकत आजमाएंगे तब मेरी हालत क्या होगी पता नहीं ।
लेकिन यह सब जो मैं सोच रही हूँ..... क्या ऐसा होगा क्या बाबू जी यह सब के लिए मानेंगे या नहीं यह तो इनको वाहाँ लेकर जाने के बाद ही मालूम होगा की क्या होने वाला है।
आरती यह सब सोंचते हुए उसकी मालिश पूरी हो गई फिर वह सोने के लिए अपने कमरे में चली गई।
फिर दूसरे दिन सुबह उठकर अपना काम खत्म करने के बाद नहाने के लिए गई और नहाने के बाद उसके दिमाग में एक ख्याल आया और उसने अपने खोले हुए कपड़े वहीं वॉशरूम में खूंटी के उपर टांग के रख देती ह यह सोचकर कि जब बाबूजी अपना पैर हाथ धोने के लिए आएंगे तो ईसको देखेंगे और देखने के बाद उनकी प्रती क्रीया क्या होगी वह कुछ बोलते हैं की नहीं यह जानने के लिए उसने अपने कपड़े वहीं टांग दिये और उसने अपनी ब्रा और पैंटी को ऊपर रख दिया ताकि राजनाथ उसे देख सके।
उसके बाद दोपहर को राजनाथ घर आया तो आरती ने उसे कहा बाबूजी आप पैर हांथ धो लीजिए मैं आपके लिए खाना लेकर आती हूँ।
उसके बाद राजनाथ पैर हांथ धोने के लिए वॉशरूम में गया तो जैसे उसने अपना गमछा कंधे से उतार के कुटी पर टांगने गया तो वहाँ आरती के कपड़े देखकर वह चौंक गया की आरती के कपड़े यहाँ क्यों रखे हुए हैं यह तो खोला हुआ कपड़ा लग रहा है लेकिन उसने यह सब कपड़े यहाँ क्यों रखे हैं यहाँ तो वो अपने कपड़े कभी नहीं रखती थी वह कुछ और सोचता कि उसकी नजर ब्रा और पैंटी पर टिक जाती है फिर उसके मन में उत्सुकता होती है उस ब्रा पैंटी को छूकर देखने की क्योंकि उसने इससे पहले कभी भी आरती की खोली हुई ब्रा और पैंटी नहीं देखी थी इस वजह से उसके अंदर उत्सुकता ज्यादा होने लगती है फिर वह उस पैंटी को उठाकर देखने लगता है कि इसमें आरती की चूत से निकली हुई कोई निशानी है कि नहीं।
फिर वह चड्डी को उलट के देखा तो उसमे दोनों टांगों के बीच वाले हिस्से पर कुछ दाग नजर आता है उसको देखने से ऐसा लग रहा था कि वहां पर कोई तरल पदार्थ गिरा है जो अब सूख चुका और सूखने की वजह से हार्ड हो गया है यह दाग उस चीज़ का था कि जब आरती है रात में राजनाथ की मालिश कर रही थी तब उसका तंदुरुस्त बदन को देखकर उसके अंदर सेक्स करने की जो भावना जगी थी उसी भावना की वजह से उसकी योनि की पानी की कुछ बूँदे बह के बाहर आ गई थी यह दाग उसी की है।
राजनाथ उसको देख कर समझ जाता है कि यह क्या चीज का दाग है क्योंकि एक मर्द को अच्छी तरह से पता होता है कि एक स्त्री की योनि से क्या चीज निकलता है राजनाथ तो इन सब चीजों का पुराना खिलाड़ी है।
राजनाथ उस पैंटी को नाक के करीब लाकर उस दाग वाली जगह को सूंघता है तो उसके नाक में एक मादक सि गंध समा जाती है और वह उस गंध को सुंघते ही मदहोश होने लगता है आज बहुत सालो के बाद उसको ऐसी गंध सुंघने को मिली थी ।
उसकी बीबी के मरने के कइ साल बाद उसको
आज ऐसा मौका मिला था।
राजनाथ को यह सब करते हुए 10 मिनट बीत जाते हैं लेकिन वह सेक्स की वासना में इतना खो चुका था कि उसे होंश नहीं रहता है वह क्या करने आया था और क्या कर रहा है ।
उधर आरती यह सोचने लगती है कि बाबूजी को गए हुए इतनी देर हो गई लेकिन अभी तक पैर हांथ धोकर नहीं आए लगता है उन्होंने मेरे कपड़े देख लिए लेकिन उनको इतना टाइम क्यों लग रहा है पैर हाथ धोने में तो इतनी टाइम नहीं लगता है आखिर ये वहाँ कर क्या रहे हैं।
तभी राजनाथ की आंख खुलती है और वह होश में आता है तो देखता हैं कि ये मैं क्या कर रहा हूं मैं यहां पैर हाँथ धोने के लिए आया था और यह मैं क्या करने लग गया फिर वह उस पैंटी को उसी जगह पर रख देता है और फिर पैर हांथ धोने के बाद वह वापस आ जाता है।
तो आरती उससे पूछती है की बड़ी देर लगा दिया आज पैर धोने में ।
राजनाथ -- कहता है कि हांँ आज थोड़ा गंदा ज्यादा था इस वजह से देर हो गई धोने में ।
आरती -- मुस्कुराती और कहती ठीक है आप बैठीए मैं आपके लिए खाना लेकर आती हूँ फिर वह जैसे ही किचन से खाना लेकर आ रही होती है की।
तभी राजनाथ की नजर उस पर पड़ती है तो उसको देख कर देखता ही रह जाता है। उसके खुले हुए बाल , उसकी मांग में हल्की सी लाल सिंदूर ,और उसके पलू के पीछे झाँकती हुई उसकी पतली कमर और उसकी गदराई जवानी वह एक वासना में लिपटी हुई कामदेवी लग रही थी जो कीसी भी पुरूष को समोहीत कर सकती है यह सब देखकर राजनाथ की भूख मर चुकी थी अब उसे कुछ और चीज़ की भूख लग चुकी थी और वह भूख थी सेक्स और वासना की।
और उस भूख को मिटाने के लिए जो खाना चाहिए वह खाना उसकी बेटी के पास है और वह उससे मांग नहीं सकता फिर मजबूरी में अपने आप को समझाता है और फिर खाना खाने की कोशिश करता है लेकिन उसको खाने की इच्छा नहीं हो रही थी।
फिर उसने थोड़ा सा खाना खाया बाकी सारा खान उसी तरह छोड़ दीया और खाने पर से उठकर अपना हांथ धोने के बाद अपने कमरे में सोने के लिए चला जाता है।
आरती को थोड़ा आश्चर्य होता है कि बाबूजी ने खाना क्यों छोड़ दिया और कुछ बताया भी नहीं।
फिर वह राजनाथ के कमरे में जाति और पूछती है बाबूजी क्या हुआ आपने खाना क्यों छोड़ दिया खाना अच्छा नहीं है क्या।
राजनाथ -- नहीं बेटा खाना तो बहुत अच्छा है।
आरती -- तो फिर आपने खाना क्यों छोड़ दियाआपकी तबीयत ठीक नहीं है क्या।
राजनाथ -- नहीं बेटा तबीयत तो ठीक है बस भूख नहीं है।
आरती -- ऐसे कैसे भूख नहीं है आज सुबह मे नाश्ता भी ठीक से नहीं किया था और अब कह रहे हैं कि भूख नहीं है आप कुछ छुपा रहे हैं मुझसे ।
अब वह उसे क्या बताएं कि वह क्या छुपा रहा है यह बात उसे बता भी नहीं सकता था तो वह बात टालने के लिए कह देता है कि मेरा माथा थोड़ा दर्द कर रहा है इसलिए खाने का मन नहीं किया।
आरती -- क्या माथा दर्द कर रहा है आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया दवा ला देती आपके लिए फिर वह अपना हाथ बढ़ा कर उसके माथे को छूकर देखी और बोली की माथा गरम तो नहीं है फिर दर्द कैसे कर रहा और वह उसी के बीशतर पर बैठते हुए कहती है लाइए मैं आपका माथा दबा देती हूँ कुछ आराम मिलेगा।
और वह जैसे ही उसके बगल बैठी वैसे ही उसकी बदन की खुशबू सीधे उसके नाक से होते हुए उसके मन मसक्त में छाने लगता है और उसे परम आनंद की अनुभूति होने लगता है और वह सोचने लगता है कि बस ईस आनंद की अनुभूति ऐसे ही मिलती रहे और वह अपना सर और उसके करीब ले जाता है ताकि उसकी खुशबू अच्छे से ले सके लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा देर नहीं रहती।
क्योंकि कुछ ही देर बाद उसकी मांँ बाहर से आ जाती है और फिर आरती को उठकर जाना पड़ता है ।
और राजनाथ अपनी माँ पर गुस्सा होते हुए मन ही मन सोचा है और कहता है कि माँ को भी अभी आना था कुछ देर बाद आती तो क्या हो जाता।
फिर वह उस खूबसूरत पल के ख्यालों में खो जाता है जो अभी कुछ देर पहले उसको प्राप्त हो रहा था ।
फिर 2 दिन के बाद दोनों बाप बेटी बाबा के पास जाने के लिए दोनों निकलते हैं।
जब वहां पहुंचे तो देखा की बाबा आश्रम के बाहर चबूतरे पर बैठकर आराम कर रहे थे क्योंकि आज रविवार था और आज के दिन उनका आश्रम बंद रहता है इसलिए आज कोई नहीं आया हुआ था और वह अकेले बैठे आराम कर रहे थे।
जैसे उन्होंने आरती को दिखा तो बोले अरे पुत्री तुम।
आरती-- जी बाबा आपने हम लोगों को चार दिन के बाद आने के लिए कहा था।
बाबा -- अच्छा अच्छा बहुत अच्छा किया जो आ गए। यह सब बात कर ही रहे होते हैं कि तभी आश्रम के घर के अंदर से एक महिला स्त्री निकल कर के बाहर आती है जो दिखने में खूबसूरत लग रही थी और उसकी उम्र है 26 27 की होगी और उसके गोद में एक दो ढाई साल की बच्ची भी थी और वह बाबा के पास आती है और कहती है पिताजी आपके लिए चाय लाऊँ ।
बाबा --हाँ बेटा चाय लेकर आओ लेकिन सिर्फ मेरे लिए नहीं इनके लिए भी लेकर आना यह हमारे मेहमान है।
फिर वह अंदर चली जाती है तो बाबा उसके तरफ देखते हुए कहते हैं कि ये हमरी बेटी है पूर्णिमा आज ही सुबह अपने ससुराल से आई है ।
फिर बाबा आरती से कहते हैं पुत्री तुम अंदर जाओ पूर्णिया से बातें वातें करो तब तक हम दोनों बाहर से टहल कर आते हैं ।
फिर आरती वहां से उठकर अंदर पूर्णिमा के पास चली जाती है।
फिर बाबा और राजनाथ भी वहां से उठकर आश्रम के पीछे बने गार्डन में घूमने के लिए जाते हैं और फिर घूमते घूमते एक जगह पर बैठ जाते हैं ।
फिर बाबा राजनाथ को वह सब बात बताने लगते हैं जिसके लिए उन्होंने उसे बुलाया था।
फिर वह राजनाथ से कहते हैं कि आपकी बेटी को माँ बनने में एक बहुत बड़ी समस्या है और वह समस्या आप ही दूर कर सकते हैं ।
राजनाथ -- ऐसी क्या समस्या है।
बाबा-- समस्या यह है कि आपके खानदान में आपके अलावा और कोई मर्द नहीं है और ना ही आपका कोई भाई है सबसे बड़ा समस्या की आपका कोई बेटा भी नहीं है इसका मतलब यह है कि आपके बाद आपके वंश को बढ़ाने वाला और कोई मर्द नहीं है और जब तक आपके वंश को बढ़ाने वाला नहीं आएगा तब तक आपकी बेटी माँ नही बन पाएगी । इसका मतलब यह है क्या जब तक आपका कोई बेटा नहीं होगा तब तक वह माँ नही बन पाएगी।
राजनाथ -- लेकिन बाबा अब इस उम्र में मेरा बेटा कहां से आएगा और मेरी बीवी भी गुजर गई है तो मेरा बेटा कहां से होगा क्या मुझे दोबारा शादी करनी पड़ेगी इस उम्र में।
बाबा -- शादी तो तुम अभी भी इस उम्र में भी कर सकते हो लेकिन इसमें भी समस्या है अगर तुम दोबारा शादी करते हो तो तुम्हारी मृत्यु हो सकती है मैं तुम्हारा और तुम्हारी बेटी की कुंडली देखी है और मुझे उसमें साफ-साफ दिख रहा है की जब तुम दोबारा शादी करोगे और जैसे ही तुम आप बनोगे वैसे ही तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी इसलिए तुम दोबारा शादी भी नहीं कर सकते।
राजनाथ -- बाबा जी तो क्या इसका और कोई उपाय नहीं हो सकता।
बाबा -- उपाय है उपाय क्यों नहीं है इसीलिए तो हमने तुम्हें यहां बुलाया है और उपाय यह है कि जो काम तुम अपनी पत्नी के साथ करते थेअब वही काम तुमको अपनी बेटी के साथ करना पड़ेगा तुमको उसके साथ संबंध बनाना पड़ेगा मेरा मतलब है उसके साथ संभोग करना पड़ेगा।
राजनाथ -- यह बात सुनते ही एक दम से चौंक जाता है उसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं होता कि उसने क्या सुना है लेकिन वह फिर से वही बात बाबा जी से पूछता है कि बाबा आपने क्या कहा मैंने ठीक से सुना नही ।
बाबा -- तुमने बिलकुल ठीक सुना है मैं वही कहा है जो तुमने सुना है तुमको अपनी बेटी के साथ संभोग करना पड़ेगा तब वह माँ बनेगी और तुम बाप बनोगे इस तरह से तुम दोनों का काम हो जाएगा।
राजनाथ को अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि बाबा यह क्या कह रहे हैं तो वह कहता है बाबा जी आप क्या कर रहे हैं ऐसे कैसे हो सकते हैं मैं उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता हूं वह मेरी बेटी है।
बाबा -- मुझे पता है कि वह तुम्हारी बेटी है लेकिन वह एक स्त्री भी है और वह इस वक्त अपने जीवन काल की सबसे उच्चतम अवस्था में है और इस अवस्था में जो एक स्त्री को शारीरिक सुख चाहिए वह उसे नहीं मिल पा रहा है वह सुख तुम उसे दे सकते हो।
राजनाथ -- लेकिन बाबा जी मेरे लिए यह सब करना उचित नहीं होगा मैं ऐसा नहीं कर सकता।
.......
Just jabardastभाग २७
अभी तक आप लोगों ने पढ़ा की आरती राजनाथ की मालिश करते हुए उसके हठे कठे गठीले बदन को देख कर मन ही मन सोचती है की बाबूजी का इतना मजबूत और भारी शरीर है जब मैं ईनके नीचे आऊंगी और यह मेरे ऊपर चढ़ेंगे और अपनी ताकत आजमाएंगे तब मेरी हालत क्या होगी पता नहीं ।
लेकिन यह सब जो मैं सोच रही हूँ..... क्या ऐसा होगा क्या बाबू जी यह सब के लिए मानेंगे या नहीं यह तो इनको वाहाँ लेकर जाने के बाद ही मालूम होगा की क्या होने वाला है।
आरती यह सब सोंचते हुए उसकी मालिश पूरी हो गई फिर वह सोने के लिए अपने कमरे में चली गई।
फिर दूसरे दिन सुबह उठकर अपना काम खत्म करने के बाद नहाने के लिए गई और नहाने के बाद उसके दिमाग में एक ख्याल आया और उसने अपने खोले हुए कपड़े वहीं वॉशरूम में खूंटी के उपर टांग के रख देती ह यह सोचकर कि जब बाबूजी अपना पैर हाथ धोने के लिए आएंगे तो ईसको देखेंगे और देखने के बाद उनकी प्रती क्रीया क्या होगी वह कुछ बोलते हैं की नहीं यह जानने के लिए उसने अपने कपड़े वहीं टांग दिये और उसने अपनी ब्रा और पैंटी को ऊपर रख दिया ताकि राजनाथ उसे देख सके।
उसके बाद दोपहर को राजनाथ घर आया तो आरती ने उसे कहा बाबूजी आप पैर हांथ धो लीजिए मैं आपके लिए खाना लेकर आती हूँ।
उसके बाद राजनाथ पैर हांथ धोने के लिए वॉशरूम में गया तो जैसे उसने अपना गमछा कंधे से उतार के कुटी पर टांगने गया तो वहाँ आरती के कपड़े देखकर वह चौंक गया की आरती के कपड़े यहाँ क्यों रखे हुए हैं यह तो खोला हुआ कपड़ा लग रहा है लेकिन उसने यह सब कपड़े यहाँ क्यों रखे हैं यहाँ तो वो अपने कपड़े कभी नहीं रखती थी वह कुछ और सोचता कि उसकी नजर ब्रा और पैंटी पर टिक जाती है फिर उसके मन में उत्सुकता होती है उस ब्रा पैंटी को छूकर देखने की क्योंकि उसने इससे पहले कभी भी आरती की खोली हुई ब्रा और पैंटी नहीं देखी थी इस वजह से उसके अंदर उत्सुकता ज्यादा होने लगती है फिर वह उस पैंटी को उठाकर देखने लगता है कि इसमें आरती की चूत से निकली हुई कोई निशानी है कि नहीं।
फिर वह चड्डी को उलट के देखा तो उसमे दोनों टांगों के बीच वाले हिस्से पर कुछ दाग नजर आता है उसको देखने से ऐसा लग रहा था कि वहां पर कोई तरल पदार्थ गिरा है जो अब सूख चुका और सूखने की वजह से हार्ड हो गया है यह दाग उस चीज़ का था कि जब आरती है रात में राजनाथ की मालिश कर रही थी तब उसका तंदुरुस्त बदन को देखकर उसके अंदर सेक्स करने की जो भावना जगी थी उसी भावना की वजह से उसकी योनि की पानी की कुछ बूँदे बह के बाहर आ गई थी यह दाग उसी की है।
राजनाथ उसको देख कर समझ जाता है कि यह क्या चीज का दाग है क्योंकि एक मर्द को अच्छी तरह से पता होता है कि एक स्त्री की योनि से क्या चीज निकलता है राजनाथ तो इन सब चीजों का पुराना खिलाड़ी है।
राजनाथ उस पैंटी को नाक के करीब लाकर उस दाग वाली जगह को सूंघता है तो उसके नाक में एक मादक सि गंध समा जाती है और वह उस गंध को सुंघते ही मदहोश होने लगता है आज बहुत सालो के बाद उसको ऐसी गंध सुंघने को मिली थी ।
उसकी बीबी के मरने के कइ साल बाद उसको
आज ऐसा मौका मिला था।
राजनाथ को यह सब करते हुए 10 मिनट बीत जाते हैं लेकिन वह सेक्स की वासना में इतना खो चुका था कि उसे होंश नहीं रहता है वह क्या करने आया था और क्या कर रहा है ।
उधर आरती यह सोचने लगती है कि बाबूजी को गए हुए इतनी देर हो गई लेकिन अभी तक पैर हांथ धोकर नहीं आए लगता है उन्होंने मेरे कपड़े देख लिए लेकिन उनको इतना टाइम क्यों लग रहा है पैर हाथ धोने में तो इतनी टाइम नहीं लगता है आखिर ये वहाँ कर क्या रहे हैं।
तभी राजनाथ की आंख खुलती है और वह होश में आता है तो देखता हैं कि ये मैं क्या कर रहा हूं मैं यहां पैर हाँथ धोने के लिए आया था और यह मैं क्या करने लग गया फिर वह उस पैंटी को उसी जगह पर रख देता है और फिर पैर हांथ धोने के बाद वह वापस आ जाता है।
तो आरती उससे पूछती है की बड़ी देर लगा दिया आज पैर धोने में ।
राजनाथ -- कहता है कि हांँ आज थोड़ा गंदा ज्यादा था इस वजह से देर हो गई धोने में ।
आरती -- मुस्कुराती और कहती ठीक है आप बैठीए मैं आपके लिए खाना लेकर आती हूँ फिर वह जैसे ही किचन से खाना लेकर आ रही होती है की।
तभी राजनाथ की नजर उस पर पड़ती है तो उसको देख कर देखता ही रह जाता है। उसके खुले हुए बाल , उसकी मांग में हल्की सी लाल सिंदूर ,और उसके पलू के पीछे झाँकती हुई उसकी पतली कमर और उसकी गदराई जवानी वह एक वासना में लिपटी हुई कामदेवी लग रही थी जो कीसी भी पुरूष को समोहीत कर सकती है यह सब देखकर राजनाथ की भूख मर चुकी थी अब उसे कुछ और चीज़ की भूख लग चुकी थी और वह भूख थी सेक्स और वासना की।
और उस भूख को मिटाने के लिए जो खाना चाहिए वह खाना उसकी बेटी के पास है और वह उससे मांग नहीं सकता फिर मजबूरी में अपने आप को समझाता है और फिर खाना खाने की कोशिश करता है लेकिन उसको खाने की इच्छा नहीं हो रही थी।
फिर उसने थोड़ा सा खाना खाया बाकी सारा खान उसी तरह छोड़ दीया और खाने पर से उठकर अपना हांथ धोने के बाद अपने कमरे में सोने के लिए चला जाता है।
आरती को थोड़ा आश्चर्य होता है कि बाबूजी ने खाना क्यों छोड़ दिया और कुछ बताया भी नहीं।
फिर वह राजनाथ के कमरे में जाति और पूछती है बाबूजी क्या हुआ आपने खाना क्यों छोड़ दिया खाना अच्छा नहीं है क्या।
राजनाथ -- नहीं बेटा खाना तो बहुत अच्छा है।
आरती -- तो फिर आपने खाना क्यों छोड़ दियाआपकी तबीयत ठीक नहीं है क्या।
राजनाथ -- नहीं बेटा तबीयत तो ठीक है बस भूख नहीं है।
आरती -- ऐसे कैसे भूख नहीं है आज सुबह मे नाश्ता भी ठीक से नहीं किया था और अब कह रहे हैं कि भूख नहीं है आप कुछ छुपा रहे हैं मुझसे ।
अब वह उसे क्या बताएं कि वह क्या छुपा रहा है यह बात उसे बता भी नहीं सकता था तो वह बात टालने के लिए कह देता है कि मेरा माथा थोड़ा दर्द कर रहा है इसलिए खाने का मन नहीं किया।
आरती -- क्या माथा दर्द कर रहा है आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया दवा ला देती आपके लिए फिर वह अपना हाथ बढ़ा कर उसके माथे को छूकर देखी और बोली की माथा गरम तो नहीं है फिर दर्द कैसे कर रहा और वह उसी के बीशतर पर बैठते हुए कहती है लाइए मैं आपका माथा दबा देती हूँ कुछ आराम मिलेगा।
और वह जैसे ही उसके बगल बैठी वैसे ही उसकी बदन की खुशबू सीधे उसके नाक से होते हुए उसके मन मसक्त में छाने लगता है और उसे परम आनंद की अनुभूति होने लगता है और वह सोचने लगता है कि बस ईस आनंद की अनुभूति ऐसे ही मिलती रहे और वह अपना सर और उसके करीब ले जाता है ताकि उसकी खुशबू अच्छे से ले सके लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा देर नहीं रहती।
क्योंकि कुछ ही देर बाद उसकी मांँ बाहर से आ जाती है और फिर आरती को उठकर जाना पड़ता है ।
और राजनाथ अपनी माँ पर गुस्सा होते हुए मन ही मन सोचा है और कहता है कि माँ को भी अभी आना था कुछ देर बाद आती तो क्या हो जाता।
फिर वह उस खूबसूरत पल के ख्यालों में खो जाता है जो अभी कुछ देर पहले उसको प्राप्त हो रहा था ।
फिर 2 दिन के बाद दोनों बाप बेटी बाबा के पास जाने के लिए दोनों निकलते हैं।
जब वहां पहुंचे तो देखा की बाबा आश्रम के बाहर चबूतरे पर बैठकर आराम कर रहे थे क्योंकि आज रविवार था और आज के दिन उनका आश्रम बंद रहता है इसलिए आज कोई नहीं आया हुआ था और वह अकेले बैठे आराम कर रहे थे।
जैसे उन्होंने आरती को दिखा तो बोले अरे पुत्री तुम।
आरती-- जी बाबा आपने हम लोगों को चार दिन के बाद आने के लिए कहा था।
बाबा -- अच्छा अच्छा बहुत अच्छा किया जो आ गए। यह सब बात कर ही रहे होते हैं कि तभी आश्रम के घर के अंदर से एक महिला स्त्री निकल कर के बाहर आती है जो दिखने में खूबसूरत लग रही थी और उसकी उम्र है 26 27 की होगी और उसके गोद में एक दो ढाई साल की बच्ची भी थी और वह बाबा के पास आती है और कहती है पिताजी आपके लिए चाय लाऊँ ।
बाबा --हाँ बेटा चाय लेकर आओ लेकिन सिर्फ मेरे लिए नहीं इनके लिए भी लेकर आना यह हमारे मेहमान है।
फिर वह अंदर चली जाती है तो बाबा उसके तरफ देखते हुए कहते हैं कि ये हमरी बेटी है पूर्णिमा आज ही सुबह अपने ससुराल से आई है ।
फिर बाबा आरती से कहते हैं पुत्री तुम अंदर जाओ पूर्णिया से बातें वातें करो तब तक हम दोनों बाहर से टहल कर आते हैं ।
फिर आरती वहां से उठकर अंदर पूर्णिमा के पास चली जाती है।
फिर बाबा और राजनाथ भी वहां से उठकर आश्रम के पीछे बने गार्डन में घूमने के लिए जाते हैं और फिर घूमते घूमते एक जगह पर बैठ जाते हैं ।
फिर बाबा राजनाथ को वह सब बात बताने लगते हैं जिसके लिए उन्होंने उसे बुलाया था।
फिर वह राजनाथ से कहते हैं कि आपकी बेटी को माँ बनने में एक बहुत बड़ी समस्या है और वह समस्या आप ही दूर कर सकते हैं ।
राजनाथ -- ऐसी क्या समस्या है।
बाबा-- समस्या यह है कि आपके खानदान में आपके अलावा और कोई मर्द नहीं है और ना ही आपका कोई भाई है सबसे बड़ा समस्या की आपका कोई बेटा भी नहीं है इसका मतलब यह है कि आपके बाद आपके वंश को बढ़ाने वाला और कोई मर्द नहीं है और जब तक आपके वंश को बढ़ाने वाला नहीं आएगा तब तक आपकी बेटी माँ नही बन पाएगी । इसका मतलब यह है क्या जब तक आपका कोई बेटा नहीं होगा तब तक वह माँ नही बन पाएगी।
राजनाथ -- लेकिन बाबा अब इस उम्र में मेरा बेटा कहां से आएगा और मेरी बीवी भी गुजर गई है तो मेरा बेटा कहां से होगा क्या मुझे दोबारा शादी करनी पड़ेगी इस उम्र में।
बाबा -- शादी तो तुम अभी भी इस उम्र में भी कर सकते हो लेकिन इसमें भी समस्या है अगर तुम दोबारा शादी करते हो तो तुम्हारी मृत्यु हो सकती है मैं तुम्हारा और तुम्हारी बेटी की कुंडली देखी है और मुझे उसमें साफ-साफ दिख रहा है की जब तुम दोबारा शादी करोगे और जैसे ही तुम आप बनोगे वैसे ही तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी इसलिए तुम दोबारा शादी भी नहीं कर सकते।
राजनाथ -- बाबा जी तो क्या इसका और कोई उपाय नहीं हो सकता।
बाबा -- उपाय है उपाय क्यों नहीं है इसीलिए तो हमने तुम्हें यहां बुलाया है और उपाय यह है कि जो काम तुम अपनी पत्नी के साथ करते थेअब वही काम तुमको अपनी बेटी के साथ करना पड़ेगा तुमको उसके साथ संबंध बनाना पड़ेगा मेरा मतलब है उसके साथ संभोग करना पड़ेगा।
राजनाथ -- यह बात सुनते ही एक दम से चौंक जाता है उसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं होता कि उसने क्या सुना है लेकिन वह फिर से वही बात बाबा जी से पूछता है कि बाबा आपने क्या कहा मैंने ठीक से सुना नही ।
बाबा -- तुमने बिलकुल ठीक सुना है मैं वही कहा है जो तुमने सुना है तुमको अपनी बेटी के साथ संभोग करना पड़ेगा तब वह माँ बनेगी और तुम बाप बनोगे इस तरह से तुम दोनों का काम हो जाएगा।
राजनाथ को अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि बाबा यह क्या कह रहे हैं तो वह कहता है बाबा जी आप क्या कर रहे हैं ऐसे कैसे हो सकते हैं मैं उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता हूं वह मेरी बेटी है।
बाबा -- मुझे पता है कि वह तुम्हारी बेटी है लेकिन वह एक स्त्री भी है और वह इस वक्त अपने जीवन काल की सबसे उच्चतम अवस्था में है और इस अवस्था में जो एक स्त्री को शारीरिक सुख चाहिए वह उसे नहीं मिल पा रहा है वह सुख तुम उसे दे सकते हो।
राजनाथ -- लेकिन बाबा जी मेरे लिए यह सब करना उचित नहीं होगा मैं ऐसा नहीं कर सकता।
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