अपडेट ६.
" अभी तुम दोनों क्या करने जा रहे थे ?"- एंथनी दोनों के कान और जोर से खींचता हुआ सहज भाव से बोला ।
" क.. कुछ.. कुछ नहीं , एंथनी !"- राक्षस जैसे लड़के का साथी बोला -" लेकिन यह साला हलकट..."
" साला ! हलकट ! "- एंथनी की भवें तनी -" मुझे तो यहां कोई साला , कोई हलकट नहीं दिखाई दे रहा है ! मुझे तो यहां सिर्फ यह साहब दिखाई दे रहे हैं ! क्या !"
" एंथोनी , ये साहब..."
" सोलंकी साहब ।"
" सोलंकी साहब । क्या ?"
" तुमने सोलंकी साहब के साथ जो बेअदबी की है उसके लिए साहब से माफी मांगो ।"
" लेकिन..."
" शायद ये तुम्हें माफ कर दें । बोलो , साॅरी , सोलंकी साहब ।"
" साॅरी , सोलंकी साहब ।"- दोनों एक साथ बोले ।
एंथोनी ने दोनों के कान छोड़ दिए ।
" उस छोकरे का नाम क्या है "- एंथनी अभी भी घुटनों में हाथ दबाये पीड़ा से बिलबिलाते राक्षस जैसे लड़के की ओर देखता बोला ।
" रघु ।"- लडके का साथी बोला ।
" इसे कहो छोकरी से माफी मांगे ।"
" क्या ?"- रघु चौंकते हुए बोला ।
" पांव पकड़ कर.... पांव पकड़ कर माफी मांगे ।"
" मैं किसी आइटम के पांव नहीं पकड़ने वाला "- रघु भुनभुनाया ।
एंथनी ने अकबर की तरफ देखा ।
अकबर रघु के करीब पहुंचा । उसने नीचे झुक कर अपने जुर्राब में खुंसा हुआ उस्तरा खिंच लिया । फिर उस्तरे को खोला और बड़े निर्विकार भाव से अपने बांये हाथ के अंगूठे पर उसकी धार चेक करने लगा ।
रघु का चेहरा पीला पड़ गया । उसने व्याकुल भाव से अपने साथियों की तरफ देखा ।
" एंथनी !"- उसका एक साथी यातनापूर्ण स्वर में बोला -" अब बिल्कुल ही तो हमारी इज्जत का जनाजा मत निकालो । कुछ तो ख्याल करो !"
" ठीक है ।"- एंथनी बड़ी दयानतदारी जताता बोला -" ख्याल करने का काम सोलंकी साहब पर छोड़ा । सोलंकी साहब चाहेंगे कि ये छोकरा रघु लड़की के पांव छुए तो यह छुएगा । सोलंकी साहब नहीं चाहेंगे तो यह नहीं छुएगा । सोलंकी साहब से पुछ इनकी क्या मर्जी है !"
तीनों लड़कों ने अमर की तरफ देखा ।
अमर ने नर्वस भाव से अपने होंठों पर जुबान फेरी । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि एंथनी उसका कैसा इम्तिहान ले रहा है और उसे उस वक्त कौन सा रूख अख्तियार करना चाहिए था । उसने अकबर की तरफ देखा लेकिन अकबर ने उस्तरे पर से सिर नहीं उठाया । उसने एंथनी की तरफ देखा लेकिन वहां भी उसे कोई प्रोत्साहन नहीं मिला । उसने मोनिका की तरफ देखा ।
मोनिका उसके कान में कुछ फुसफुसाई ।
तुरंत अमर के चेहरे पर रौनक आई ।
" जाओ , तुम्हें माफ किया !"- अमर बोला -" लेकिन आइंदा ऐसी हरकत न करना ।"
तीनों की जान में जान आई ।
" साहब का शुक्रिया बोलो ।"- एंथनी बोला ।
सबने शुक्रिया बोला ।
" कट लो ।"
तीनों फौरन वहां से कट लिए ।
मोनिका अमर की बाहें पकड़े एक ओर चली गई ।
एंथनी बार पर अपने पसंदीदा स्थान पर पहुंचा । वहां बैठे लोग उसे आया देख दो दो स्टूल परे हट गए । दिया और शबनम तुरंत उसके दाएं बाएं पहुंच गई ।
माईकल ने फौरन उसे ड्रिंक सर्व किया ।"
" एंथनी "- शबनम उसकी एक बांह से झुलती बोली -" हमें गोवा कब ले चलोगे ?"
" तुमने पिछले हफ्ते का वादा किया था "- दिया उसकी दूसरी बांह से चिपकती बोली ।
" माईकल "- एंथनी बोला -" ये फुलझड़ी कौन है जो मेरे पर लाइन मार रही है ?"
माईकल ने उत्तर न दिया । वह जानता था उत्तर उससे अपेक्षित भी नहीं था ।
" ओह , एंथनी "- शबनम मुंह बिसूर कर बोली -" हमेशा इन्सल्ट करते रहते हो ।"
" तुने भी कुछ कहना होगा "- एंथनी दिया को घूरता बोला ।
" इतने लोगों के सामने तो हमारी इन्सल्ट न किया करो "- वह एक क्षण ठिठकी और फिर अपने वक्ष को उसकी बांह के साथ रगड़ती बड़े ही सेक्सी स्वर में बोली -" वैसे जो मर्जी किया करो ।"
गाॅड डैम यू , बिचिज !"- एंथनी कहर भरे स्वर में बोला -" मेरा नाम एंथनी डिसूजा है । एंथनी ने कब क्या करना होता है , यह उसे किसी लेग पीस ने नहीं बताना । दोबारा मुझे सलाह दी तो गला रेत दुंगा । गोवा जाना है तो जाना है , नहीं जाना है तो नहीं जाना है । फैसला मैं करूंगा । यह भी फैसला मैं करूंगा कि मैंने वहां एक को बांध कर ले जानी है या दो । क्या ?"
दोनों चुप रही ।
" अरे बोलो !"- एंथनी दहाड़ा -" क्या ?"
" ठीक है "- दोनों बोली ।
' अब बोलो क्या पियोगी ?"
तभी अमर मोनिका के साथ वहां पहुंचा ।
" मजा आया !"- एंथनी ने अमर से पूछा ।
" क्यों न मजा आता !"- मोनिका बोली -" देखा नहीं किसके साथ गया था !"
एंथनी का एक झन्नाटेदार झापड़ मोनिका के गाल पर पड़ा ।
मोनिका की गर्दन फिरकनी की तरह घुमी । उसकी आंखों में आसूं छलछला आए । हाल में सन्नाटा छा गया ।
अमर एकाएक एंथनी की तरफ झपटा लेकिन मोनिका उसके रास्ते में आ गई ।
" एंथनी जिससे सवाल करता है "- एंथनी दांत भींचकर फुंफकारा -" वही जबाव देता है । क्या ?"
मोनिका की आंखें अपमान से जल रही थी लेकिन वह जबरन मुस्कराई ।
" आजकल क्या रेट है तेरा ?"
मोनिका ने चार उंगलियां उठाई ।
एंथनी ने जेब से सौ की एक गड्डी उसके ब्लाउज में खोंस दिए ।
" यह तेरी अक्खा बाॅडी इस्तेमाल करने का प्राइस है । मैंने तो सिर्फ एक गाल इस्तेमाल किया । ठीक ?"
" ठीक ।"
" हिसाब बरोबर ।"
" बरोबर ।"
" कट ले ।"
मोनिका फौरन वहां से हट गई ।
" तुम दोनों "- एंथनी जिया और शबनम से बोला -" बाहर जाकर गाड़ी में बैठो ।"
" किधर जाने का है ?"- जिया बोली ।
एंथनी ने खूनी निगाहों से उसे देखा ।
जिया के सारे शरीर में सिहरन दौड़ गई । तभी शबनम ने उसकी बांह थामी और उसे बाहर को ले चली ।
" इधर आ , पप्पू ।"
अमर एंथनी के करीब पहुंचा ।
" अभी तु मेरे पर झपटने लगा था "- एंथनी धीमे किंतु बेहद हिंसक स्वर में बोला -" एक रण्डी के खातिर एंथनी पर झपटने लगा था ।"
" न... नहीं ।"- अमर हकलाया -" नहीं ।"
" आज दस मिनट में दो बार तुने मेरी उम्मीदों पर पानी फेरा ।"
" दो... दो बार ।"
" मैंने तो तुझे पप्पू से सोलंकी बनाया , तु अमरदीप भी बन कर न दिखा सका । जब जरूरत उन छोकरों को धूल चटाने की थी तो तुने उन्हें माफ कर दिया ।"
" वो अपनी करतूत से शर्मिंदा थे ।"
" बेवकूफ ! शर्मिंदा होना तो दूर की बात है , वो तो शर्मिन्दा लग भी नहीं रहे थे । उन्होंने साॅरी नहीं बोला था , तुझे बेवकूफ बनाया था । तु पप्पू ही रहा ।"
अमर खामोश रहा ।
" तु क्या समझता है मुझे इस बात की परवाह थी कि वो छोकरे उस नशे में चूर लड़की के साथ क्या करते थे ! मेरी बला से वो लड़की को यहां नंगी नचाते ।"
" तो... तो ?"
" वो लड़के नौजवान थे , राक्षसों जैसे विशाल और हट्टे कट्टे थे और दादा बनने की कोशिश में थे । पप्पू , यहां इज्जत और दबदबा किसी पिलपिलाए हुए कुत्ते की दुम उमेठने से नहीं बनता , जाबर पर , दादा पर जोर दिखाने से बनता है । वो तीनों मेरे से डबल थे , उनमें से जो चाहता , मेरी बोटी-बोटी नोच कर यहां छितरा देता । किसी की मजाल हुई ? नहीं हुई । लेकिन तु , जो उन्हीं के जैसा हट्टा कट्टा है , तेरे से भिड़ने की मजाल हुई उनकी । मै न पहुंच गया होता तो तु यहां के फर्श से अपने दांत बटोर रहा होता । मैंने तुझे पप्पू से अमरदीप सोलंकी बनने का मौका दिया जो कि तुने खो दिया । तु पिलपिला गया । तेरी हिम्मत नहीं हुई । बावजूद मेरे और अकबर के यहां होते तेरी हिम्मत नहीं हुई । तु पप्पू का पप्पू ही रहा ।
" एंथनी "- अमर खेद पूर्ण स्वर में बोला -" मुझे अफसोस है कि..."
" अरे , तुझे क्या अफसोस है । अफसोस तो मुझे है , पप्पू ।"
" वो... वो.."
" छोड़ । जा काम कर अपना । कल अड्डे पर आना ।"
अमर मन में कुछ मंसूबे बनाता वहां से निकल गया ।