शानू साहब के जर्रे नवाजी मे यह शायरी पेश करता हूं - " कभी लैला पे अफसूं , कभी शीरीं पे फिदा , और जो फिर देखो तो दोनो से सरोकार नहीं ! "
कभी खुद की अम्मा जान , कभी दोस्त की अम्मा जान , कभी जमीला तो कभी अलीना , कभी रेशमा तो कभी शबनम और कुछ न मिले तो काम करने वाली बाई जी पे फिदा , और जो फिर देखो तो किसी से भी सरोकार नही ।
अब फरीदा मैम के शानो-शौकत मे यह फिलॉसफी - " बांधती थी , तानती थी , खींचती थी , खींच कर छोड़ देती थी और ज्यों ही मै राहत महसूस करने लगता था , फिर खींच लेती थी । "
फरीदा मैम के क्या ही कहने ! अपने हसबैंड के साथ मोबाइल फोन पर इलू इलू करते रहती है , हसबैंड के साथ भाई-बहन का रोल प्ले सेक्स करती है , हसबैंड के साथ अपनी सहेली को लेकर अश्लील बातें करती है , हसबैंड और सहेली से गंदी गंदी बातें करती है , नंगी और अश्लील बीडीओ बनाती है , अश्लील मैसेज करती है , और जाहिर करती है जैसे उनके जैसा पाक , सुशील , संस्कारी औरत पुरी कायनात मे कोई है ही नही ।
खैर देखते हैं , यह दोनो कब तक अपने तथाकथित सफेद चादर को मैली करने से रोक पाते हैं !
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट भाई ।