शानू साहब की स्थिति ' दीपक तले अंधेरा ' के जैसी बन गई थी । अगल-बगल , घर मे - ननिहाल मे सर्वत्र उजाले ही उजाले थे पर शानू साहब के नसीब मे अंधेरा ही अंधेरा था ।
कभी नयन सुख , तो कभी विध्न संतोषी की भुमिका ही इनके खुशी का कारण बना ।
घर मे माॅम ने इन्हे अपने लटके झटके से गोल गोल घुमा कर ललचाने का काम किया और इधर नानी ने भी बब्बू अंकल से अनैतिक सम्बन्ध स्थापित कर ' मै नदिया फिर भी मै प्यासी ' की स्थिति मे फिर से लाकर खड़ा कर दिया ।
वैसे इस परिवार की एक खास विशेषता है और वह है - जैसा बाप वैसा बेटा और जैसी अम्मा वैसी पुत्री ।
फरीदा मैम अपनी अम्मा की ही परछाई प्रतीत हो रही है ।
हमारे शानू साहब से अधिक तेज और माॅडर्न उनसे उम्र मे चार साल छोटी गुलनार निकली । अपने ही बाप से आशनाई कर बैठी ।
जब की शानू साहब अब तक सिर्फ सोचन देव महाराज ही बने हुए है । देखो , सोचो और खुद को संतुष्ट करो - यही नियति बन गई है शानू साहब की ।
आउटस्टैंडिंग एंड हाॅट अपडेट भाई ।