भई , राजी ने रजा दिखाई तो क्या तीर मारा ! बहादुरी तो उसे काबू मे करने मे है जो अहद लिए हो कि वह काबू मे नही आने वाली है ।
एलिना , रेशमा , फलाना - ढ़िकड़ा , वगैरह - वगैरह आसानी से हासिल हैं और ऐसी औरतों के लिए ही कहा गया है कि यह खुद ही मर्द के गले पड़ने लग जाए तो मर्द की ईगो की तुष्टि नही होती , वो सेंस आफ अचीवमेंट का सुख नही पाता ।
बहादुरी तो नायक को उस औरत को हासिल करने मे है जिसके सपने वह हर घड़ी , हर मिनट , हर सेकेंड देखता है ।
शायद यही कारण है कि शानू साहब इन कन्याओं से दूर भागने की कोशिश करते आए है । लेकिन यह बड़े ही आश्चर्य की बात है कि दोस्त ( सिराज ) की अम्मा पर वो कैसे मेहरबान हो गए ? इस का विस्तृत वर्णन चाहिए ।
कहीं छोकरा मैच्योर औरतों का ही दिवाना तो नही ?
वैसे फ्लैश बेक के साथ साथ प्रजेंट डे के साथ बेहतरीन सामंजस्य बैठाया है आपने ।
आउटस्टैंडिंग अपडेट भाई ।