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Adultery आज्ञाकारी (कर्तव्य का पालन)

OnlyBhabhis

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ये कहानी पूरी तरह से मनगढ़ंत व काल्पनिक है. इसके सभी पात्र अट्ठारह वर्ष से ऊपर हैं. इसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति, धर्म, संप्रदाय, जाती और स्थान से कोई संबंध नहीं है. अगर पाठकों को पढ़ते वक़्त ऐसा एहसास होता है कि ये इनमें से किसी के बारे में है तो ये मात्र संयोग है. ये कहानी किसी भी तरह से व्यभिचार और गलत व्यवहार को बढ़ावा नहीं देती. ये सिर्फ़ और सिर्फ़ मनोरंजन के लिए लिखी गई है.।




Thanks
 
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OnlyBhabhis

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आज्ञाकारी (कर्तव्य का पालन)

कहानी धीरे धीरे आराम से आगे बढ़ेगी किसी तरह की कोई जल्दबाजी नहीं होगी, कहानी में कुछ लंबे तो कुछ बहुत छोटे अपडेट होंगे इसलिए थोड़ा धैर्य बनाए रखें।



कृपया सभी साथ बने रहिए.
धन्यवाद
 
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OnlyBhabhis

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• Update - 1




"पैरानॉर्मल ताकतों का होना या न होना हमेशा से ही डिबेट का एक हॉट टॉपिक रहा है। आपने कई सारे टेलीविज़न शोज़ पर ऐसी कईं सारी डिबेट्स देखी होंगी। और, कई सारे हॉन्टेड जगहों पर होने वाली पैरानॉर्मल एक्टिविटीस की वीडियो क्लिप्स भी देखी होंगी। पर, इन सब में कितनी सच्चाई है, कोई नहीं जानता। ऐसी अनहोनी घटनाओं की वजह क्या है, ये भी कोई नहीं जानता। परलोक, आत्मा और पुनर्जन्म को लेकर कितने ही किस्से हम सुनते आए हैं। लेकिन, ये सब आखिर हैं क्या? मिथ्या या सच?"



एक 27-28 साल का गोरा चिट्टा युवक अपने बेडरूम में रखे ड्रेसर के आईने में ख़ुद को देखते हुए बोला।



"अगर, अच्छे कर्म करोगे तो स्वर्ग का सुख मिलेगा नहीं तो नर्क की आग में जलोगे। इस जन्म के कर्मों के हिसाब से ही अगला जन्म में सुख या दुख मिलता है। ये सारी बातें सुनी तो हम सबने हैं मगर क्या हम में से कोई भी जानता है कि पैदा होने से पहले और मौत के बाद हम कहाँ थे? किस हाल में थे? हमारे साथ क्या होता है?



हो सकता है सचमुच, हमारी दुनिया से अलग एक दूसरी दुनिया हो, जिसे परलोक कहा जाता है। और जब किसी एक पॉइंट पर इन दोनों दुनियाओं का सामना होता है तब हमें ऐसी पैरानॉर्मल एक्टिविटीज़ देखने को मिलती हों। मेरा ये टेलीविज़न शो, 'सच की खोज' एक कोशिश है इन पैरानॉर्मल घटनाओं में छुपे रहस्यों की खोज करने की।"



उसने एक गहरी साँस छोड़ी और नज़रें झुकाकर कुछ सोचने लगा। कुछ दो- तीन मिनट बाद उसने फ़िर से नज़रें उठायी और आईने की तरफ़ देखा।



"हम्म..." उसने सर हिलाया और खुद से कहा, "नॉट बेड, रोहन! कल अगर चैनल के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स इस प्रेसेंटेशन से इम्प्रेस हो गए न तो समझ ले तेरी तो निकल पड़ी।"



रोहन मल्होत्रा, चैनल V3 में काम करता था। उसे बचपन से ही हॉटेड जगहों पर जाना और पैरानॉर्मल एक्टिविटीज़ पर रिसर्च करने का बहुत शौक था। चैनल में काम मिलते ही रोहन ने अपने पहले शो के लिए यही विषय चुना था। कल सुबह चैनल के ऑफिस में डायरेक्टर बोर्ड़ के सामने उसे अपने नए शो का प्रेजेंटेशन देना था। इसलिए, आज की रात उसके लिए कयामत की रात थी। उसे हर हाल में अपने शो के लिए चैनल वालों की मंज़ूरी हासिल करनी ही थी।



रोहन अपने शो के ज़रिए हॉन्टेड बतायी जाने वाली जगहों पर जाकर वहाँ की पैरानॉर्मल गतिविधियों को दर्शकों के सामने लाना चाहता था और उनके वैज्ञानिक कारणों की खोज करना चाहता था। नाईट गाउन पहना रोहन अपने बेड पर जाकर बैठ गया और उसने अपना लैपटॉप ऑन किया। फ़िर, उसने कुछ बटन दबाये और लैपटॉप के स्क्रीन पर एक पुराने, वीरान किले की तस्वीर आ गयी।



"यहीं शूट होगा मेरे शो का पहला एपिसोड," लैपटॉप पर उस किले की तस्वीर को देखते ही रोहन की आंखों में एक अजीब सी चमक आ गयी। "देश की सबसे खतरनाक बतायी जाने वाली हॉटेड जगह, मेवटगढ़ का किला।"



हालाँकि रोहन आज तक कभी उस जगह गया तो नहीं था। मगर, वो जब भी इस किले की तस्वीर को देखता तो वो अपने आसपास की सारी दुनिया को भूल जाता। न जाने कैसी अजीब सी कशिश थी उस उजड़े, वीरान किले में? तभी कमरे की दीवार पर लगी घड़ी से दो घंटियों के बजने की आवाज़ आयी।



"रात के 2 बज गए," रोहन ने हैरानी से घड़ी की तरफ़ देखा। "प्रेजेंटेशन की तैयारी करते करते पता ही न चला। चलो भई, जल्दी सो जाते हैं नहीं तो पता चला कल 12 बजे तक सोते ही रह गए। शो तो हाथ से जाएगा ही ऊपर से बॉस की डाँट भी सुननी पड़ेगी।"



रोहन ने जल्दी से लैपटॉप बन्द किया और उसे अलमारी में रख दिया। रात काफ़ी बीत चुकी थी इसलिए हर तरफ़ सन्नाटा था। रोहन अपने बिस्तर पर आकर लेट गया और कमरे की लाइट बन्द कर दी। कमरे को अँधेरे की चादर ने ढँक दिया। रोहन आज सुबह से ही अपने प्रेजेंटेशन को लेकर काफ़ी भाग-दौड़ कर चुका था और बहुत थक चुका था। इसलिए, उसे नींद भी बहुत जल्दी आ गयी।



• • •



झींगुरों की तेज़ आवाज़ कानों में पड़ी तो रोहन की नींद टूटी। आँखें खोले बिना ही उसने करवट ली और सोचा कि कहीं कोई खिड़की तो खुली नहीं छोड़ दी। करवट बदलते ही ठंडी हवा का तेज़ झोंका उसके चेहरे पर थपेड़े मारने लगा। अब, उसे यकीन हो गया कि उसने ज़रूर बैडरूम की कोई खिड़की खुली छोड़ दी है। रोहन ने खीजते हुए आँखें खोली मगर फ़िर जो नज़ारा उसने देखा उससे उसकी साँसें हलक में अटक गयीं। वो एक वीरान किले के खंडहर में पड़ा था।




चारों तरफ़ टूटी फूटी इमारतें थी जिनके ऊपर जँगली बेलों और मकड़ी के जालों ने कब्ज़ा कर लिया था। चौंकते हुए रोहन ने चारों तरफ़ नज़रें दौड़ायी। पूनम की रात थी और पूरे चाँद की दूधिया रोशनी में वो खंडहर बहुत ही खौफ़नाक लग रहा रहा। ये किला बिल्कुल वैसा ही लग रहा था जैसा कि उसने तस्वीरों में मेवटगढ़ के किले को देखा था। रोहन की आँखें उसे जो दिखा रहीं थी, उसे उस पर यकीन नहीं हो रहा था।




किले में चारों तरफ़ गहरा सन्नाटा छाया हुआ था। ड़र के मारे रोहन का गला सूख गया और माथे से पसीने की धारायें फूट पड़ीं। वो ज़ोर ज़ोर से हाँफते हुए वहाँ से बाहर निकलने का रास्ता खोजने लगा। तभी किसी के ज़ोर से चीखने की आवाज़ आयी और रोहन सिहर उठा।




उसने ड़रते हुए उस दिशा की तरफ़ नज़रें घुमायी जहाँ से चीखने की आवाज़ आयी थी। अँधेरे में थोड़ी देर तक आँखें फाड़ फाड़कर देखने के बाद भी उसे कुछ नज़र नहीं आया। रोहन ने एक गहरी सांस ली और खुद को शांत किया।



अचानक एक खूबसूरत सी, जवान लड़की हाथों में तलवार लिए, उस दिशा से दौड़ती हुई आयी। उसका कद लंबा था और गोरा, छरहरा बदन था। उसके चेहरे पर नक़ाब लगा हुआ था जिसके अंदर से सिर्फ़ उसकी दो बड़ी बड़ी खूबसूरत, कजरारी आँखें ही नज़र आ रहीं थी। उसने रेशम की नीली तंग चोली और घाघरा पहना हुआ था। उसके पैरों में सोने की पायल और हाथों में सोने के कंगन थे। उसने गले में हीरों का हार, सोने का कमरबंद और हीरे जवाहरात जड़े झुमके भी पहने हुए थे। कुछ लोग हाथों में तलवार लिए उसके पीछे दौड़ रहे थे। पहनावे से वो लोग किसी रजवाड़े के सैनिक लग रहे थे।



सैनिकों का जत्था लड़की की ओर बढ़ा तो लड़की ने बड़ी बहादुरी से तलवार चलायी और अकेले ही उन सबको मार गिराया। लड़की थोड़ा ही आगे बढ़ी थी कि एक ऊँचे कद और पहलवान जैसे शरीर वाले जल्लाद ने सामने से आकर उसका रास्ता रोका। जल्लाद का रंग कोयले जैसा काला था और आँखें अंगारों जैसी लाल थीं। उसे देखते ही लड़की की आँखें पल भर के लिए ड़र से काँप उठीं मगर फ़िर उसने खुद को संभला और अपनी तलवार को कसकर पकड़ लिया।




कुछ देर तक दोनों में घमासान तलवारबाज़ी चलती रही। आख़िर, उस जल्लाद अपनी तलवार से एक ज़ोरदार वार किया और लड़की की तलवार को दो टुकड़ों में तोड़ दिया। अगले ही पल उसने लड़की को पीछे से उसकी कमर से बल दबोच लिया। लड़की खुद को छुड़ाने के लिए छटपटाने लगी। उस जल्लाद ने अपनी तलवार से लड़की के चेहरे से नक़ाब हटा दिया। चाँद की रोशनी से नहाया उस लड़की का चेहरा खुद भी चाँद से कम नहीं था।



उस जल्लाद ने लड़की की बेबसी पर जी भर कर ठहाके लगाए। उस लड़की की हिरणी जैसी आँखें गुस्से से लाल थीं। वो ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रही थी और खुद को छुड़ाने की जी तोड़ कोशिश कर रही थी। जल्लाद ने अपनी तलवार से उस लड़की की कमरबंद को काट दिया। और फ़िर अपनी तेज़ धारवाली तलवार से उसके घाघरे समेत उसकी कमर के नीचे के सारे वस्त्र काट दिए।




"न...हीं...ही...!"



चाँद की किरणें लड़की की गोरी, सुड़ौल टाँगो से होती हुई उसकी नंगी योनि पर पड़ी तो लड़की लाज के मारे चिल्लायी। जल्लाद की तलवार का अगला निशाना लड़की की चोली थी। उसने लड़की की चोली के टुकड़े टुकड़े कर दिए। लड़की के सीने पर उभरी, दो कलियाँ भी चाँदनी में नहा गयीं।




"छोड़ दो हमें!" एक ग़ैर मर्द की बाहों के चँगुल में घिरे अपने नंगे बदन से शर्मिंदा होकर लड़की ने आंखें बंद कर लीं।



लड़की के खूबसूरती से तराशे जवान बदन पर पड़ते ही जल्लाद का लिंग उतेजना से उठ गया। उसके हाथ से तलवार छूट गयी और उसका हाथ खुद-ब-खुद लड़की की टाँगों के बीच चला गया।




"आ...आ..आह!



जल्लाद ने अपनी खुरदरी उंगलियाँ लड़की की पँखुड़ियों जैसी नाज़ुक योनि की फाकों पर रगड़ी तो लड़की कराह उठी। लड़की चीखती रही मगर जल्लाद ने उस पर कोई दया नहीं दिखायी और वो उन नाज़ुक फाकों से खेलता ही रहा।



"आआह...ह!" लड़की की योनि भीग गयी और उसके मुँह से आह निकली। योनि से उठकर जल्लाद का हाथ लड़की के सीने के उभारों को मसलने में मसरूफ़ हो गया।




"जाने दो हमें!" लड़की के गाल गुस्से और लाज के मारे सुर्ख हो गए और उसने जल्लाद की टाँगों पर अपनी जूतियों से वार किया। जल्लाद ने लड़की के खुले, रेशमी बालों को पकड़कर उसे अपनी तरफ़ खींचा और उसके मखमली होंठो को बड़ी हैवानियत के साथ चूमने लगा। एक हाथ से उस जल्लाद ने अपनी बाहों में मचलती लड़की को कसकर पकड़ा। और दूसरे हाथ से लड़की की गर्दन की नस दबा दी। लड़की कुछ ही मिनटों में जल्लाद की बाँहों में बेहोश होकर गिर पड़ी। उसे अपनी बाहों में यूँ बेबस पड़े देख जल्लाद ने इतनी ज़ोर से अट्टहास किया कि किले की दीवारें भी काँप उठी।



• • •



रोहन चौंकते हुए जगा और उसने हड़बड़ाते हुए चारों तरफ़ देखा। वो अपने कमरे में ही था। उसने फौरन पलंग के पासवाली टेबल लैंप जला दी। उसका पूरा बदन पसीने से भीगा हुआ था। उसने टेबल पर जग को हाथों में उठाया और गटागट पानी पीने लगा। पानी पीकर उसकी जान में जान आयी और उसने जग को वापस टेबल पर रख दिया।



"कितना भयानक सपना था!" काँपती आवाज़ में रोहन ने खुद से कहा।



👍👍
❤️❤️
 
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malikarman

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• Update - 1

दोपहर के ३ बज रहे थे. शिमला के पहाड़ों के बीच घुमावदार रास्ते पर घूमती हुई एक टैक्सी आगे बढ़ती जा रही थी.

कार की पिछली सीट पर बैठे दीपेश ने एक अंगडाई ली और सीसे से बाहर झांक कर देखा "कितना सुंदर नजारा है..."

उसके साथ बैठी सुनीता ने भी अंगडाई ली और बोली, “सच में... ऐसा लग रहा है हम हेवन में आ गये."

सुनीता ने लाल कमीज़ और सफ़ेद लैगिंग पहनी हुई थी और दीपेश ने नीली कमीज़ और खाकी पेंट. वो दोनों शरदपुर से थे, सुनीता भी और दीपेश भी. दोनों के माता पिता वर्षों से एक दूसरे को जानते थे और उन्होंने ही अपनी दोस्ती को सुनीता और दीपेश की शादी करके रिश्ते में बदल दिया था. ६ साल पहले हुई थी शादी उनकी. खुश थे वो एक दूसरे के साथ. किसी बात की कोई कमी नहीं थी. उनका एक बेटा भी था. पंकज नाम था उसका. दोनों उसे बहुत प्यार करते थे. वो शिमला रोजाना की भाग दौड़ से अपने लिए थोडा वक्त चुराने आये थे. दीपेश एक प्राइवेट बैंक में मेनेजर था और सुनीता हाउसवाइफ थी.

दीपेश बहुत बिजी रहता था अपनी जॉब में. कभी कभी तो रात को ग्यारह या बारह बजे वापस आता था वो बैंक से. सुनीता को उसका ये बिजी होना बड़ा खलता था. वो बहुत अकेलापन महसूस करती थी. पर कुछ बोलती नहीं थी क्योंकि वो जानती थी कि दीपेश की जॉब ही ऐसी थी. वो चाह कर भी ज्याफ़ा टाइम नहीं दे सकता था उसे.

दीपेश समझता था सुनीता के दिल की बात. इसलिए उसने जॉब से छुट्टी ले ली एक हफ़्ते की और शिमला घूमने का प्लान बना लिया ताकि उनके रिश्ते को थोड़ा टाइम मिले.

दोनों बहुत खुश थे. बार बार पहाड़ों को देख रहे थे.

"घर में सब ठीक रहेगा ना?" सुनीता गहरी साँस लेते हुए बोली.

"घर की बिलकुल चिंता मत करो... मम्मी है ना..." दीपेश के पिता का देहांत हो गया था तीन साल पहले. उसकी मम्मी ही अब घर की सबसे बड़ी थी और वो बहुत प्यार करती थी अपने बेटे और बहू को.

“हाँ मम्मी के रहते किसी बात की चिंता नहीं...”

"मोहन काका भी तो हैं... किसी बात की परेशानी नहीं आने देंगे वो...” दीपेश बोला.

मोहन उनका नौकर था. बीस साल से था वो दीपेश के घर. अब क़रीब पचास साल का था वो पर कोई कह नहीं सकता था कि इतनी उम्र का है. हर काम भाग भाग कर करता था. देखने में एक दम साधारण था. चेहरे पर हमेशा दाढ़ी रखता था और अकसर कुर्ता पजामा पहन कर रखता था.

सुनीता भी मोहन को काका कह कर ही बुलाती थी. मोहन बड़ी इज्जत देता था उसे. बहुरानी कह कर बुलाता था इज्जत से. कभी आँख उठा कर नहीं देखता था. कोई भी काम बोलो तुरंत कर देता था. आज तक कभी शिकायत नहीं हुई थी सुनीता को मोहन से.

“हाँ ये तो है... काका के रहते किस बात की चिंता...फिर भी... फोन करके पूछे क्या पंकज ठीक है कि नहीं...” सुनीता बोली

"अरे नहीं... फिर हम फोन पर ही लगे रहेंगे. वैसे भी तो पंकज मम्मी के पास ही रहता है और उनके साथ ही सोता है... फिर किस बात की चिंता. बस एक हफ़्ते की ही तो बात है. तुम बिलकुल चिंता मत करो.”

“मैं तो बस यूँ ही कह रही थी. ठीक है हम फ़ोन से दूर ही रहेंगे.”

"राजेश कितनी देर लगेगी और?" दीपेश ने ड्राइवर से कहा.

"दस मिनट में पहुँच जाएँगे साहिब...” राजेश ने कहा.

कुछ ही देर में वो शिमला शहर में पहुँच गए. दोनों के चेहरे पर शिमला पहुँच कर खुशनुमा मुस्कान उभर आई थी.

ड्राइवर ने एक होटल के बाहर कार रोक दी और बोला, “यही होटल है ना साहिब आपका?”

“ग्रीन हेवन... हाँ हाँ यही है राजेश...” दीपेश ने कहा.

"अरे शहर में आते ही होटल आ गया हमारा?" सुनीता बोली.

"राजेश बड़े अच्छे से लाया है हमें इसलिए ऐसा लग रहा है...”

"थैंक यू साहिब...”

दीपेश और सुनीता कार से निकल कर होटल के रिसेप्शन पर गए. उनके पीछे ड्राईवर भी समान लेकर आ गया. रिसेप्शन पर काला सूट पहने एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी. उसने मुस्कुरा कर उन्हें कहा, “वेलकम... हाउ कैन आई हेल्प यू?”

“हमारी बुकिंग है यहाँ...”

“किस नाम से बुकिंग है सर?”

“दीपेश...”

“ओह... आई एम सॉरी टू इन्फॉर्म यू सर... आपकी बुकिंग कैंसिल कर दी गई है...”

“क्या मतलब?”

“जो रूम आपके लिए बुक था उसमे शोर्ट सर्केट के कारण आग लग गई. हम आपको फ़ोन कर रहे थे पर आपका फ़ोन नहीं मिल रहा था.”

सुरेश ने निराशा में सर हिलाया. “दरअसल हम दोनों पूरी तरह से दिन दुनिया से कटना चाहते थे ताकि हमें ब्रेक मिले और इसलिए हमने अपने फोन स्विच ऑफ कर रखें हैं. इसलिए आपसे बात नहीं हो पाई.”

“ओह...”

“आपके पास कोई दूसरा रूम नहीं है?” दीपेश ने कहा.

“सॉरी सर... आल रूम्स आर बुक्ड...”

“यहां आस पास कोई और होटल है?”

“आल आर बुक्ड सर. हमने कोशिश की थी अपनी तरफ से आपको किसी दूसरे होटल में अकोमोडेट करने के लिए. पर किसी के पास कमरा खाली नहीं है.”

दीपेश और सुनीता मुंह लटकाए होटल से बाहर आ गए. उनके साथ साथ ड्राईवर भी बाहर आ गया उनका समान लेकर.

टैक्सी में समान रख कर ड्राईवर बोला, “सर होटल में तो रूम मिलना मुश्किल है अभी पर आपके लिए होटल से भी बढ़िया एक बंगले का इंतज़ाम हो सकता है...”

“बंगला खाली है क्या?”

“खाली है तभी तो आपको बोल रहा हूँ. वहां एक केयरटेकर रहता है... लालू नाम है उसका... वो खाना बनाना भी जानता है. आप उसे जो कहोगे बना देगा. बस उसे सामान का पैसा दे देना आप.”

“तुम कैसे जानते हो इस बंगले के बारे में...”

“लालू से पुरानी पहचान है साहब...”

सुनीता राजेश को खींच कर एक तरफ ले गई और बोली, “हमें नहीं जाना किसी बंगले पर. ट्राई करते हैं... कहीं ना कहीं तो रूम मिल ही जाएगा...”

“मुझे तो आईडिया अच्छा लग रहा है. बंगले में हमें ज्यादा प्राइवेसी मिलेगी...”

“पैसे भी तो ज्यादा खर्च होंगे... पूरा बंगला सस्ते में तो मिलने से रहा...”

“पूछ लेता हूँ कितना चार्ज है... अगर ठीक लगा तो चलेंगे वरना कोई होटल तलाश करेंगे...”

“चलो पूछो...”

दीपेश ड्राईवर के पास गया और बोला, “कितने में मिलेगा ये बंगला एक हफ्ते के लिए राजेश?”

राजेश ने मन ही मन हिसाब लगाया और बोला, “चौदह हज़ार साहब... खाने पीने का खर्चा अलग...”

सुनीता फिर से सुरेश को एक तरफ ले गई और बोली, “चौदह हज़ार में पूरा बंगला... मुझे तो दाल में कुछ काला लग रहा है...”

“तुम बेवजह शक कर रही हो. चल कर देखते हैं... पसंद आया तो ठीक वरना हम कुछ और देखेंगे...”

“चलो जैसी तुम्हारी मर्जी...”

दोनों टैक्सी में वापस बैठ गए और बंगले की तरफ चल दिए. चलती गाडी से वो शिमला की हसीन वादियों का नज़ारा ले रहे थे. करीब बीस मिनट बाद वो बंगले पर पहुँच गए. बंगला एक पहाड़ी की चौटी पर था और आस पास कोई दूसरा मकान नहीं था दूर दूर तक. देखने में आलिशान था बंगला. सामने के भाग पर अच्छी नक्काशी हो रखी थी. बिलकुल क्लासिकल लुक थी.

“बंगला तो अच्छा लग रहा है देखने में पर आस पास कोई और घर नहीं है... यहाँ मुझे डर लगेगा,” सुनीता बोली.

“डरने की क्या बात है... मैं रहूँगा ना साथ. चलो अंदर चलते हैं... मुझे तो ये अच्छा लग रहा है...” दीपेश ने कहा.

तभी लालू आया दौड़ता हुआ बाहर. देखने में करीब चालीस साल का लग रहा था वो. मैली सी कमीज़ और पजामा पहने हुए था. चेहरे पर हल्की सी दाढ़ी थी उसके और सर पर केवल नाम मात्र के ही बाल थे. देखने में एक दम साधारण.

“अरे लालू... ये साहब और मेमसाब दिल्ली से आए हैं. इनको अच्छा सा रूम दे दो. ये एक हफ्ते के लिए रुकेंगे यहाँ.”

लालू ने अजीब सी नज़रों से दीपेश और सुनीता को देखा और हल्का सा मुस्कुराया. “ठीक है... मैं इनको बंगले का सबसे अच्छा रूम दे देता हूँ...”

“साहब मैं निकलता हूँ...” राजेश बोला.

“हाँ हाँ तुम निकलो... थैंक्स...” दीपेश बोला.


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धन्यवाद, Update पर आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार है।
Nice story
Par kahin padhi hai ye
 

malikarman

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दोपहर के ३ बज रहे थे. शिमला के पहाड़ों के बीच घुमावदार रास्ते पर घूमती हुई एक टैक्सी आगे बढ़ती जा रही थी.

कार की पिछली सीट पर बैठे दीपेश ने एक अंगडाई ली और सीसे से बाहर झांक कर देखा "कितना सुंदर नजारा है..."

उसके साथ बैठी सुनीता ने भी अंगडाई ली और बोली, “सच में... ऐसा लग रहा है हम हेवन में आ गये."

सुनीता ने लाल कमीज़ और सफ़ेद लैगिंग पहनी हुई थी और दीपेश ने नीली कमीज़ और खाकी पेंट. वो दोनों शरदपुर से थे, सुनीता भी और दीपेश भी. दोनों के माता पिता वर्षों से एक दूसरे को जानते थे और उन्होंने ही अपनी दोस्ती को सुनीता और दीपेश की शादी करके रिश्ते में बदल दिया था. ६ साल पहले हुई थी शादी उनकी. खुश थे वो एक दूसरे के साथ. किसी बात की कोई कमी नहीं थी. उनका एक बेटा भी था. पंकज नाम था उसका. दोनों उसे बहुत प्यार करते थे. वो शिमला रोजाना की भाग दौड़ से अपने लिए थोडा वक्त चुराने आये थे. दीपेश एक प्राइवेट बैंक में मेनेजर था और सुनीता हाउसवाइफ थी.

दीपेश बहुत बिजी रहता था अपनी जॉब में. कभी कभी तो रात को ग्यारह या बारह बजे वापस आता था वो बैंक से. सुनीता को उसका ये बिजी होना बड़ा खलता था. वो बहुत अकेलापन महसूस करती थी. पर कुछ बोलती नहीं थी क्योंकि वो जानती थी कि दीपेश की जॉब ही ऐसी थी. वो चाह कर भी ज्याफ़ा टाइम नहीं दे सकता था उसे.

दीपेश समझता था सुनीता के दिल की बात. इसलिए उसने जॉब से छुट्टी ले ली एक हफ़्ते की और शिमला घूमने का प्लान बना लिया ताकि उनके रिश्ते को थोड़ा टाइम मिले.

दोनों बहुत खुश थे. बार बार पहाड़ों को देख रहे थे.

"घर में सब ठीक रहेगा ना?" सुनीता गहरी साँस लेते हुए बोली.

"घर की बिलकुल चिंता मत करो... मम्मी है ना..." दीपेश के पिता का देहांत हो गया था तीन साल पहले. उसकी मम्मी ही अब घर की सबसे बड़ी थी और वो बहुत प्यार करती थी अपने बेटे और बहू को.

“हाँ मम्मी के रहते किसी बात की चिंता नहीं...”

"मोहन काका भी तो हैं... किसी बात की परेशानी नहीं आने देंगे वो...” दीपेश बोला.

मोहन उनका नौकर था. बीस साल से था वो दीपेश के घर. अब क़रीब पचास साल का था वो पर कोई कह नहीं सकता था कि इतनी उम्र का है. हर काम भाग भाग कर करता था. देखने में एक दम साधारण था. चेहरे पर हमेशा दाढ़ी रखता था और अकसर कुर्ता पजामा पहन कर रखता था.

सुनीता भी मोहन को काका कह कर ही बुलाती थी. मोहन बड़ी इज्जत देता था उसे. बहुरानी कह कर बुलाता था इज्जत से. कभी आँख उठा कर नहीं देखता था. कोई भी काम बोलो तुरंत कर देता था. आज तक कभी शिकायत नहीं हुई थी सुनीता को मोहन से.

“हाँ ये तो है... काका के रहते किस बात की चिंता...फिर भी... फोन करके पूछे क्या पंकज ठीक है कि नहीं...” सुनीता बोली

"अरे नहीं... फिर हम फोन पर ही लगे रहेंगे. वैसे भी तो पंकज मम्मी के पास ही रहता है और उनके साथ ही सोता है... फिर किस बात की चिंता. बस एक हफ़्ते की ही तो बात है. तुम बिलकुल चिंता मत करो.”

“मैं तो बस यूँ ही कह रही थी. ठीक है हम फ़ोन से दूर ही रहेंगे.”

"राजेश कितनी देर लगेगी और?" दीपेश ने ड्राइवर से कहा.

"दस मिनट में पहुँच जाएँगे साहिब...” राजेश ने कहा.

कुछ ही देर में वो शिमला शहर में पहुँच गए. दोनों के चेहरे पर शिमला पहुँच कर खुशनुमा मुस्कान उभर आई थी.

ड्राइवर ने एक होटल के बाहर कार रोक दी और बोला, “यही होटल है ना साहिब आपका?”

“ग्रीन हेवन... हाँ हाँ यही है राजेश...” दीपेश ने कहा.

"अरे शहर में आते ही होटल आ गया हमारा?" सुनीता बोली.

"राजेश बड़े अच्छे से लाया है हमें इसलिए ऐसा लग रहा है...”

"थैंक यू साहिब...”

दीपेश और सुनीता कार से निकल कर होटल के रिसेप्शन पर गए. उनके पीछे ड्राईवर भी समान लेकर आ गया. रिसेप्शन पर काला सूट पहने एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी. उसने मुस्कुरा कर उन्हें कहा, “वेलकम... हाउ कैन आई हेल्प यू?”

“हमारी बुकिंग है यहाँ...”

“किस नाम से बुकिंग है सर?”

“दीपेश...”

“ओह... आई एम सॉरी टू इन्फॉर्म यू सर... आपकी बुकिंग कैंसिल कर दी गई है...”

“क्या मतलब?”

“जो रूम आपके लिए बुक था उसमे शोर्ट सर्केट के कारण आग लग गई. हम आपको फ़ोन कर रहे थे पर आपका फ़ोन नहीं मिल रहा था.”

सुरेश ने निराशा में सर हिलाया. “दरअसल हम दोनों पूरी तरह से दिन दुनिया से कटना चाहते थे ताकि हमें ब्रेक मिले और इसलिए हमने अपने फोन स्विच ऑफ कर रखें हैं. इसलिए आपसे बात नहीं हो पाई.”

“ओह...”

“आपके पास कोई दूसरा रूम नहीं है?” दीपेश ने कहा.

“सॉरी सर... आल रूम्स आर बुक्ड...”

“यहां आस पास कोई और होटल है?”

“आल आर बुक्ड सर. हमने कोशिश की थी अपनी तरफ से आपको किसी दूसरे होटल में अकोमोडेट करने के लिए. पर किसी के पास कमरा खाली नहीं है.”

दीपेश और सुनीता मुंह लटकाए होटल से बाहर आ गए. उनके साथ साथ ड्राईवर भी बाहर आ गया उनका समान लेकर.

टैक्सी में समान रख कर ड्राईवर बोला, “सर होटल में तो रूम मिलना मुश्किल है अभी पर आपके लिए होटल से भी बढ़िया एक बंगले का इंतज़ाम हो सकता है...”

“बंगला खाली है क्या?”

“खाली है तभी तो आपको बोल रहा हूँ. वहां एक केयरटेकर रहता है... लालू नाम है उसका... वो खाना बनाना भी जानता है. आप उसे जो कहोगे बना देगा. बस उसे सामान का पैसा दे देना आप.”

“तुम कैसे जानते हो इस बंगले के बारे में...”

“लालू से पुरानी पहचान है साहब...”

सुनीता राजेश को खींच कर एक तरफ ले गई और बोली, “हमें नहीं जाना किसी बंगले पर. ट्राई करते हैं... कहीं ना कहीं तो रूम मिल ही जाएगा...”

“मुझे तो आईडिया अच्छा लग रहा है. बंगले में हमें ज्यादा प्राइवेसी मिलेगी...”

“पैसे भी तो ज्यादा खर्च होंगे... पूरा बंगला सस्ते में तो मिलने से रहा...”

“पूछ लेता हूँ कितना चार्ज है... अगर ठीक लगा तो चलेंगे वरना कोई होटल तलाश करेंगे...”

“चलो पूछो...”

दीपेश ड्राईवर के पास गया और बोला, “कितने में मिलेगा ये बंगला एक हफ्ते के लिए राजेश?”

राजेश ने मन ही मन हिसाब लगाया और बोला, “चौदह हज़ार साहब... खाने पीने का खर्चा अलग...”

सुनीता फिर से सुरेश को एक तरफ ले गई और बोली, “चौदह हज़ार में पूरा बंगला... मुझे तो दाल में कुछ काला लग रहा है...”

“तुम बेवजह शक कर रही हो. चल कर देखते हैं... पसंद आया तो ठीक वरना हम कुछ और देखेंगे...”

“चलो जैसी तुम्हारी मर्जी...”

दोनों टैक्सी में वापस बैठ गए और बंगले की तरफ चल दिए. चलती गाडी से वो शिमला की हसीन वादियों का नज़ारा ले रहे थे. करीब बीस मिनट बाद वो बंगले पर पहुँच गए. बंगला एक पहाड़ी की चौटी पर था और आस पास कोई दूसरा मकान नहीं था दूर दूर तक. देखने में आलिशान था बंगला. सामने के भाग पर अच्छी नक्काशी हो रखी थी. बिलकुल क्लासिकल लुक थी.

“बंगला तो अच्छा लग रहा है देखने में पर आस पास कोई और घर नहीं है... यहाँ मुझे डर लगेगा,” सुनीता बोली.

“डरने की क्या बात है... मैं रहूँगा ना साथ. चलो अंदर चलते हैं... मुझे तो ये अच्छा लग रहा है...” दीपेश ने कहा.

तभी लालू आया दौड़ता हुआ बाहर. देखने में करीब चालीस साल का लग रहा था वो. मैली सी कमीज़ और पजामा पहने हुए था. चेहरे पर हल्की सी दाढ़ी थी उसके और सर पर केवल नाम मात्र के ही बाल थे. देखने में एक दम साधारण.

“अरे लालू... ये साहब और मेमसाब दिल्ली से आए हैं. इनको अच्छा सा रूम दे दो. ये एक हफ्ते के लिए रुकेंगे यहाँ.”

लालू ने अजीब सी नज़रों से दीपेश और सुनीता को देखा और हल्का सा मुस्कुराया. “ठीक है... मैं इनको बंगले का सबसे अच्छा रूम दे देता हूँ...”

“साहब मैं निकलता हूँ...” राजेश बोला.

“हाँ हाँ तुम निकलो... थैंक्स...” दीपेश बोला.


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धन्यवाद, Update पर आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार है।
Nice story
Par kahin padhi hai ye
 

OnlyBhabhis

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• Update - 2



रोहन अपने ऑफिस में बैठा लैपटॉप पर मेवटगढ़ के किले की फ़ोटो देख रहा था। सुबह के 10 बज चुके थे और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के साथ उसके प्रेसेंटेशन में करीब एक घंटा और बाकी था। किले की तस्वीर को देखते ही उसे उस भयानक सपने की याद आ गयी जो उसने काल रात देखा था। उस सपने की याद आते ही रोहन के मन में कई सारे सवाल उठे।




'कल रात मैंने खुद को उस किले के अंदर पाया जब कि मैं तो आज तक कभी वहाँ गया ही नहीं? फ़िर मुझे ऐसा क्यों लगा कि मैं उस किले के अंदर के चप्पे चप्पे से अच्छी तरह वाकिफ़ हूँ। वहाँ की हर इमारत, हर गली, हर चबूतरे को पहचानता हूँ। और वो लड़की? कौन थी वो कमसिन हसीना? क्यूँ उसकी चीखों से मेरा दिल तड़प उठता है? क्यों उस पर ढाए हर सितम के दर्द का एहसास मुझे होता है? क्या रिश्ता है मेरा उससे ? इस एहसास को क्या नाम दूँ, मैं? हमदर्दी, इंसानियत या फिर कुछ और?'




मेज़ पर रखे लैंडफोन कि घंटी बजी तो रोहन ने चौंकते हुए उसे देखा। उसने फ़ौरन खुद को संभाला और रिसीवर उठा लिया।



"हेलो?"


."सर, मिस्टर चौधरी आपको अपने केबिन में बुला रहे हैं।" रिसेप्शनिस्ट की मीठी आवाज़ रोहन के कानों में पड़ी।



"ओके, मैं अभी आता हूँ।" रोहन ने फ़ोन रख दिया और सोच में पड़ गया | प्रेज़ेंटेशन में तो अभी काफ़ी वक़्त है फ़िर चैनल के मैनेजिंग डायरेक्टर मिस्टर अरविंद चौधरी ने उससे अभी क्यों मिलना चाहते हैं? उन दोनों के बीच सारी बातें तो काफ़ी पहले ही तय हो गयीं थीं। कहीं लास्ट मिनट में मिस्टर चौधरी ने कोई रोड़ा अटकाने का प्लान तो नहीं बना लिया?




रोहन ने सर झटका और सारे बुरे ख़यालों को अपने दिमाग से निकाल दिया। रोहन अपनी कुर्सी से उठा और वॉशरूम चला गया। उसने खुद को वॉशरूम के आईने में देखा। रोहन के 6 फुट लंबे, सुड़ौल शरीर पर काला सूट खूब जच रहा रहा। उसके नयन नक्श भी काफ़ी दिलकश थे।




उसने अपनी टाई सीधी की, बाल सँवारे और वॉशरूम से बाहर निकलकर मिस्टर चौधरी के केबिन की तरफ़ चल पड़ा। ऑफिस के गलियारे में खड़े लड़कियों के एक ग्रुप ने उसे हसरत भरी निगाहों से देखा। मगर, रोहन उन्हें अनदेखा कर आगे बढ़ गया और मिस्टर चौधरी के केबिन के दरवाज़े पर दस्तक दी।



"कम इन" अंदर से एक कड़क आवाज़ आयी और रोहन ने केबिन के अंदर कदम रखा।



"आओ रोहन," स्टाइलिश गॉगल्स पहने, 45 साल के अरविंद चौधरी ने रोहन को देखते ही एक औपचारिक मुस्कान के साथ कहा। "प्लीज़ हेव ए सीट।"



ऑफिस में बाकी सबकी तरह चौधरी भी रोहन को 'रो' कहकर बुलाता था।



"कहिए सर, कैसे याद किया आपने मुझे?" चौधरी की आँखों में झाँककर उसके मनसूबों को भाँपने की कोशिश करते हुए रोहन ने पूछा।



"रो, तुम्हारा ये जो शो है," अपने लैपटॉप पर रोहन के भेजे मेवटगढ़ वाले प्रेज़ेंटेशन को देखते हुए चौधरी ने पूछा, "क्या इसमें हॉन्टेड जगहों की असलियत ही दिखाना ज़रूरी है?"



"हम इस बारे में पहले भी डिस्कस कर चुके हैं सर," बुरे ख्याल फिर से रोहन के मन में घर कर गए और उसका चेहरा उतर गया। "और आपने इस प्रोजेक्ट को मंज़ूरी भी दे दी थी। फ़िर, अब ये सवाल क्यूँ ?"




"ऑफ कोर्स!" चौधरी ने खाँसकर गला साफ़ किया और फ़िर मुस्कुराने की कोशिश करते हुए रोहन को देखा और पूछा, "मगर क्या तुम्हें नहीं लगता ये थोड़ा ...आय मीन...थोड़ा ज़्यादा ही रिस्की हो जाएगा?"




रोहन चुप रहा और चौधरी की आँखों में देखकर उसके लब्ज़ों में छुपे मतलब को समझने की कोशिश करने लगा।



"देखो, मैं तुम्हें एक हॉरर सिरीस के लिए आसान सा कॉन्सेप्ट बताता हूँ।" चौधरी की आँखें बड़े जोश से दमक उठीं। "एक 24 - 25 साल की खूबसूरत सी लड़की, एक हॉन्टेड बँगले में अकेले रहने आती है। रात को उसे कुछ पैरानॉर्मल एक्सपीरिएन्सेस होते हैं। वो ड़र जाती है और एक सेक्सी सा नाईट गाउन पहने, आधी रात के वक़्त बाहर सड़क पर दौड़ने लगती है।"



"तभी वो हीरो की गाड़ी से टकराते टकराते बच जाती है। दोनों की नज़रें मिलती हैं और प्यार हो जाता है। लड़की उस जाँबाज़ हैंडसम से मदद माँगती है। और हीरो उसके साथ उस हॉन्टेड बँगले में रहने लगता है। बस फ़िर क्या? हर रात प्यार में पागल इस जवान, हसीन जोड़े के बेडरूम सीन दिखाकर ऑडियंस को उकसायेंगे और साथ ही भूत का स्पेशल इफ़ेक्ट डालकर डराएंगे। अपने शो की TRP आसमान छूने लगेगी। बोलो, क्या कहते हो? इस कॉन्सेप्ट पर शो करना चाहोगे?"




"जी नहीं सर," अपने अंदर उबलते गुस्से और घिन्न को दबाते हुए रोहन बोला, "ये शो आप उस ठरकी रणदीप को दे दीजिए। वो इसे सुपरहिट बना देगा। मैं काम करूँगा तो अपने प्रोजेक्ट पर वरना नहीं।"



चौधरी ने आह भरी और कुर्सी पर तनकर बैठ गया। रोहन की बात से न उसे हैरानी हु,ई न निराशा। उसे रोहन से इसी जवाब की उम्मीद थी।




"विशाल आहूजा का नाम तो सुना ही होगा?" चौधरी ने एक मग में थोड़ी कॉफी उड़ेली और उसे रोहन की तरफ़ बढ़ा दिया। "कुछ साल पहले तक बड़ा फेमस टेलिविज़न रिपोर्टर हुआ करता रहा। उसके शोज़ सुपर डुपर हिट हुआ करते थे। रातों रात बड़ा हॉट स्टार बन गया था। हर चैनल चाहता था कि विशाल उनके लिए काम करे। उसे मुँह माँगी कीमत देने के लिए तैयार थे सबके सब।"




"अच्छा खासा कैरियर बना किया था उसने। फ़िर एक दिन, तुम्हारी तरह पेरानॉर्मल चीजों की हकीकत खोजने का भूत सवार हो गया था उसके सर पर भी। उसने भी अपने शो के पहले एपिसोड के लिए इसी मेवटगढ़ के किले को ही चुना था। फ़िर कुछ ऐसा हुआ उसके साथ कि उसने अपना बना बनाया कैरियर छोड़कर जर्नलिज्म से ही सन्यास ले लिया। पता है क्या हुआ था उसके साथ?"




करीब 5 साल पहले, रोहन ने भी विशाल आहूजा के हॉरर शो से जुड़ी कुछ खबरें और कई सारी मसालेदार अफवायें सुनी थी।



"हाँ, कुछ सुना तो मैंने भी है," पुरानी बातें याद करते हुए रोहन के माथे पर शिकन पड़ी।




"किले में रात के वक़्त शूट करते हुए उसका एक्सीडेंट हो गया...हम्म...उसे कुछ...बहुत सीरियस चोट लगी। कुछ दिन ICU में भी था। फ़िर काफ़ी अरसे तक विदेशों में उसका इलाज चलता रहा। अब सर, शूटिंग पर ऐसे हादसों का होना तो आम बात है, ना?"




"ये सब तो वो बातें हैं जो आहूजा परिवार ने मीडियावालों से अपना पिंड छुड़ाने के लिए बतायीं" चौधरी ने रोहन को घूरते हुए कहा। "अंदर की बात बस हम कुछ ही लोग जानते हैं। पता भी ICU के अंदर विशाल कैसी कैसी हरकतें किया करता था?"




रोहन ने चौंकते हुए चौधरी को देखा।



"उसका बदन ऐसे कांपता था जैसे उसे मिर्गी के दौरे पड़ रहे हों। वो कुछ अजीब से शब्दों को बार बार दोहराता रहता। दीवारों पर नाखूनों से कुरेद कर कुछ अजीब अजीब सी चीज़े बनाता रहता। बड़े बड़े डॉक्टर भी नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर उसका मर्ज़ क्या है? जब मर्ज़ ही नही समझ पाते तो क्या ख़ाक इलाज करते?"




"उसके हॉस्पिटल के बाहर हर वक़्त मीडियावालों का मेला लगा रहता था। ये बात बाहरवालों को पता न चल जाये इसलिए उसके परिवार ने ज़बरदस्ती उसे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करवा लिया और वहाँ से ले गए। फ़िर किसी को उसकी कोई ख़बर नहीं मिली। उसके घरवाले उसे कहाँ ले गए? कहाँ उसका इलाज करवाया? कोई नहीं जानता। साल भर बाद पता चला कि उसने अपनी गर्लफ्रैंड से शादी कर ली है और अब अपने ससुर का बिज़नेस संभाल रहा है।"




चौधरी ने एक गहरी साँस ली और रोहन की आँखों में देखकर कहा, "I am warning you, Ro उस जगह ज़रूर कुछ है जो बहुत खतरनाक है। अब तुम बताओ, क्या इतना बड़ा रिस्क लेना ज़रूरी है। अभी भी वक़्त है बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के साथ मीटिंग में। तुम चाहो तो मेवटगढ़ वाले कांसेप्ट को बदलकर, कोई नया कांसेप्ट प्रेज़ेंट कर सकते हो।"



"मैं समझ सकता हूँ सर कि आपको मेरी कितनी फ़िक्र है।" रोहन ने एक गहरी साँस छोड़ी और पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा, "मगर, चाहे जो हो जाये, मैं इसी प्रॉजेक्ट पर काम करना चाहूँगा।"




"फाइन!" चौधरी ने हाथ खड़े कर लिए "डायरेक्टर बोर्ड की मीटिंग में बस आधा घंटा बाकी है। मीटिंग के बाद मैं चाहूँगा कि तुम विशाल आहूजा के ऑफिस जाकर उससे एक बार मिल लो। अगर विशाल से मिलने के बाद तुम्हारा इरादा बदल जाये तो डायरेक्टर बोर्ड को मैं हैंडल कर लूँगा। और अगर फ़िर भी तुम्हें इसी प्रोजेक्ट पर काम करना है तो विशाल का एक्सपीरियंस तुम्हारे काम आएगा।"



"जी ज़रूर," रोहन कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया और बोला, "Thank you sir."



👍👍
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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OnlyBhabhis

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Good story

Par xforum ke link mat daliye, ban ho jayega

Pls remove it

Aisa hai kya....!!!

Ok Bhai batane ke liye shukriya, hata deta hu link ko
 
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Reactions: Ajju Landwalia

OnlyBhabhis

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Nice story
Par kahin padhi hai ye
हां हो सकता है भाई, मै भी 2014 से अच्छी कहानियों और Videos को collect करते आया हूँ, मेरे पास कई अच्छी कहानियों और हजारों देसी videos पड़े हुए है, कुछ कहानियां मेरी Original भी लिखी हुई है जिनको भी मैं धीरे धीरे यहां post करूंगा। अगर यह कहानी यहां मौजूद है पहले से तो मुझे inform जरूर करना।

Thanks 👍
 
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