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Adultery आज्ञाकारी (कर्तव्य का पालन)

OnlyBhabhis

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• Update - 3




"सर, आपसे मिस्टर रोहन मल्होत्रा मिलने आये हैं।"


अपनी सेक्रेटरी अवंतिका को कहते सुना तो पल भर के लिए विशाल के दिल की धड़कनें रुक सी गयीं।



"उन्हें बाहर लाउन्ज में बिठाओ," विशाल ने अवंतिका से मुँह फेर लिया। वो नहीं चाहता था कि अवंतिका उसके चेहरे से रंग उड़ता देखे। "मुझे एक बहुत इम्पोर्टेन्ट कॉल करनी है। उसके बाद ही मैं उनसे मिल पाऊँगा।""



ओके सर," अवंतिका मुस्कुरायी और विशाल के केबिन से बाहर चली गयी।



उसके जाते ही विशाल ने आह भरी और अपना चेहरा हथेलियों में छुपा लिया।



"ये क्यों आया है?" चेहरे से हथेलियों को हटाकर विशाल ने खुद से पूछा। "मेरा इंटरव्यू लेने के बहाने मेरे पुराने ज़ख्मों को कुरेदने? मेरे और कितने इम्तेहान लोगे, ईश्वर? अब तो मुझे बक्श दो!"



मेवटगढ़ वाले हादसे के बाद, विशाल कभी किसी भी मीडियावाले से नहीं मिला। वो अपने अतीत को भुलाकर गुमनामी के अँधेरे में खो जाना चाहता था। मगर उसके किसी रिश्तेदार ने उसकी शादी की तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी थी। उस तस्वीर में किसी रिपोर्टर ने उसे पहचान लिया और चला आया इंटरव्यू लेने। उस दिन तो विशाल ने अपनी माँ की बीमारी का बहाना बनाकर किसी तरह अपनी जान छुड़ा ली।



मगर, उसके ज़रिये और लोग भी विशाल के नए घर का पता जान गए। पर जो कोई भी उससे मिलने आता, विशाल कोई न कोई बहाना बनाकर मिलने से इनकार कर देता। लेकिन, रोहन को अरविंद चौधरी ने भेजा था। और अरविंद चौधरी को विशाल कभी मना नहीं कर सकता था। जर्नलिज्म के दिनों में चौधरी के बहुत एहसान थे विशाल पर।



दरअसल, विशाल ने अपने करियर की शुरुवात चौधरी के चैनल V3 से ही की थी। उन दोनों की मुलाक़ात पहली बार तब हुई थी जब विशाल कॉलेज में था। उन दिनों को याद कर के विशाल के मन में एक मीठी सी टीस उठी। कॉलेज के दिनों में जर्नलिज्म उसके लिए शौक, पेशा, जुनून सब कुछ था। कॉलेज का सबसे होनहार स्टूडेंट था, वो। सारे टीचर्स उससे उम्मीद लगाए बैठे थे कि वो एक दिन जर्नलिज्म की दुनिया का चमकता सितारा बनेगा।




अपने करियर के शुरुवाती दिनों में सबको लगता था विशाल सच मुच उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा। मगर एक ग़लत चाल काफ़ी होती है आपको ज़िन्दगी की शतरंज में मात देने के लिए। और विशाल के लिए वो ग़लत चाल थी, मेवटगढ़। चौधरी ने उसे मेवटगढ़ जाने से रोकने की हर संभव कोशिश भी की थी। मगर, विशाल जोश में इतना अंधा हो गया था कि अपने होश ही खो बैठा। और जब होश आया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।




"जिन शक्तियों के बारे में हम कुछ नहीं जानते उनसे न उलझने में ही हमारी भलाई है।"




विशाल को अपने कुलगुरु की कही बात याद आ गयी। कुलगुरु को याद करते हुए उसने अपने गले में पहने रुद्राक्ष की माला को माथे से लगा लिया। फ़िर उसकी नज़र, कलाई पर बँधे कई सारे ताबीज़ों और उंगलियों में पहनी अंगूठियों की ओर गयी।




इन सब के होने के बावजूद और इतने सालों के गुज़रने के बाद भी विशाल रातों को चैन की नींद नहीं सो पाता था। रात का अंधेरा, विशाल को मेवटगढ़ में बितायी उस अमावस की रात की याद दिलाता था जिसके बाद उसकी ज़िन्दगी में फ़िर कभी सवेरा हुआ ही नहीं। उसका जीवन तो जैसे उस एक बिंदु पर रुक सा गया था। और आज फ़िर कोई आया है विशाल को उस अतीत की याद दिलाने, जिसे वो कभी दोबारा याद नहीं करना चाहता।




विशाल ने एक दर्द में लिपटी आह भरी और फ़ोन का रिसीवर उठा लिया। "अवंतिका," विशाल ने भारी मन से कहा, "मिस्टर मल्होत्रा को मेरे केबिन में भेज दो।"



केबिन के दरवाज़े पर दस्तक हुई तो विशाल की दिल धड़कने भी तेज़ हो गयीं। "प्लीज़, कम इन," अपनी भावनाओं को काबू में कर के विशाल ने कहा।



"प्लीज़ टू मीट यू, मिस्टर आहूजा," विशाल से हाथ मिलाते हुए रोहन ने कहा।



"सेम हियर, मिस्टर मल्होत्रा," विशाल का स्वर भावहीन था। "प्लीज़ टेक योर सीट।"



"थैंक यू," रोहन बैठ गया और इधर उधर नज़रें घुमाकर विशाल के आलीशान केबिन को देखने लगा।



"कहिए, क्या लेंगे आप ?" फ़ोन का रिसीवर हाथ में लेकर विशाल ने पूछा, "टी ऑर कॉफ़ी?



"कुछ नहीं," रोहन ने हाथ हिलाकर मना कर दिया, "बस आपका थोड़ा सा वक़्त लेना चाहूँगा।"




"आधे घन्टे में मेरी एक क्लाइंट के साथ मीटिंग है," रिसीवर नीचे रखने के बाद कलाई पर बँधी महँगी घड़ी को देखते हुए विशाल ने कहा। "मेरा ख्याल है, इतना वक़्त काफी होगा।"



"जी, बड़ी मेहरबानी आपकी।" रोहन ने सीधे विशाल की आँखों में देखा और पूछा, "आपने जर्नलिज्म क्यों छोड़ दी, मिस्टर आहूजा?"




"मेरी पत्नी, अपने माँ बाप की इकलौती बेटी है," विशाल ने सारे जवाब पहले ही सोच रखे थे। न जाने कितनी बार उससे ये सवाल पूछा जा चुका था। "और उसके पिता का बहुत बड़ा बिज़नेस था, जिसे संभालने वाला कोई नहीं था। इसलिए, उनका दामाद होने के नाते ये ज़िमेदारी मैंने उठा ली।"



"मगर, आप तो कहा करते थे कि जर्नलिज्म आपके लिए सिर्फ पेशा नहीं बल्कि आपकी ज़िंदगी, आपका जुनून और आपका भगवान है।" विशाल की लाख कोशिश के बावजूद भी रोहन समझ गया था कि विशाल झूठ बोल रहा है। "फ़िर अपने भगवान से क्यों मुँह मोड़ लिया आपने?"



"जिंदगी चीज ही कुछ ऐसी है" आपने मन में उठते दर्द के सैलाब को दबाते हुए विशाल ने कहा। "आपको अपने फैसले और रास्ते बदलने पड़ते है ताकि जिदंगी का बहाव रुके नहीं"




"आपके साथ उस रात मेवतगढ़ के किले में क्या हुआ था" रोहन ने बिना घुमाए फिराए सीधे ही पूछ लिया



"मुझे बस इतना याद है कि मैं रात के करीब 12 बजे अपना हैंडीकैम लिए होटल से निकला और जब वहां पहुंचा तो 12:30 बज चुके थे किले के अंदर क्या हुआ था मुझे याद नहीं अगले दिन कुछ गांव वालों ने मुझे किले के बाहर जख्मी हालत में देखा और हॉस्पिटल पहुंचा दिया, विशाल ने एक गहरी सांस ली और कहा शायद मैं शूट करते हुए किले की दीवार से गिर गया था मेरा हैंडीकैम भी टूटा हुआ मिला था



"जब आप ICU में थे तो अजीबोगरीब हरकते क्यों कर रहे थे ऐसा क्या हुआ था आपके साथ"



"सिर पर चोट लगने की वजह से होता है कभी कभी ऐसा" रोहन के सवालों से विशाल बैचेन हो उठा था लेकिन उसने खुद पर काबू बनाए रखा "Now I Am Perfectly Alright"



"अस्पताल से डिस्चार्ज लेने के साल भर बाद तक आप कहां थे"



"वो सब मेरा निजी मामला है आप ये क्यों जानना चाहते है" अब विशाल के लिए खुद पर काबू करना मुमकिन नहीं था


"क्योंकि मैं भी मेवतगढ़ के किले में एक शो करने जा रहा हूं और आपके तजुर्बे से मुझे थोड़ी मदद मिलेगी" रोहन ने ठंडे स्वर में कहा



रोहन की बात सुनकर विशाल का मुंह खुला का खुला रह गया उसका रोम रोम चिल्लाकर रोहन को वहां जाने से रोकना चाहता था, मगर विशाल जनता था कि उसके कहने से रोहन नहीं रुकेगा



"विधि के विधान को कोई नहीं बदल सकता" कुलगुरु की बात विशाल के कानो में गूंजने लगी और उसने खुद को संभाल लिया रोहन को रोकने की बजाय विधि के आगे उसने अपना सिर झुका लिया



"क्या आप मुझे अपने तजुर्बा के बारे में बताना नहीं चाहेंगे"



"तुम्हारे सवालों का जवाब वो किला खुद तुम्हे देगा ठीक है अब मेरी मीटिंग का वक्त हो गया है"



*थैंक्यू मिस्टर आहूजा" रोहन केबिन के बाहर जाते हुए बोला



"मेवतगढ़ में बाबा सिद्धेश्वर शास्त्री के आश्रम जरूर जाना रोहन" विशाल ने पीछे से आवाज दी "वो हमारे कुलगुरु है"



"सारी मिस्टर आहूजा" रोहन मुंह दबाकर हंसा, "मै इन सब साधु, बाबाओं में नहीं मानता"


"तुम चाहो या न चाहो रोहन" विशाल ने केबिन की खिड़की से दूर क्षितिज को देखते हुए कहा "नियति तुम्हे बाबा के पास जरूर ले जाएगी मैं आज उन्हीं की वजह से जिंदा हूं"



👍👍
❤️❤️
 
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deep_aman

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This is cut paste story which is also posted on xforum. This is cheating bro.
 
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Haaaaa

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Story name batoa
 

Ajju Landwalia

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• Update - 3



शाम के सात बज रहे थे. शिमला की हसीन वादियों में दीपेश और सुनीता हाथ में हाथ डाले सैर कर रहे थे.



करीब आधा घंटा पहले निकले थे वो बंगले से और घूमते घूमते काफी दूर निकल आए थे और इस वक्त वो एक मार्किट से गुजर रहे थे. दोनों के चेहरे पर सुकून और खुशी साफ़ दिखाई दे रही थी.



“कितना अच्छा लग रहा है यहाँ,” सुनीता मुस्कुराते हुए बोली.



“हाँ वाकई... अच्छा हुआ कि हमें बंगला मिल गया वरना दिक्कत होती,” दीपेश ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया.



“तुमने सही डिसिजन लिया,” सुनीता फिर से मुस्कुराते हुए बोली.



“ज्यादा मत मुस्कुराओ हनी... तुम हँसते हुए बहुत खुबसूरत लगती हो. ऐसा न हो कि किसी का दिल आ जाए तुम पर यहाँ. ऐसा हो गया तो मेरा क्या होगा?” दीपेश ने कहा.



“मस्का लगा रहे हो... हैं न?”



“अरे नहीं. मस्का क्यों लगाऊंगा भला मैं. क्या तुम नहीं जानती कि तुम कितनी खुबसूरत हो? पूरे तीस साल की हो मगर अभी भी किसी कॉलेज गर्ल जैसी लगती हो,” दीपेश ने कन्धा मारते हुए कहा.



सुनीता शरमाते हुए मुस्कुरा दी. बात तो सही ही कह रहा था उसका पति. एक बच्चे की माँ होने के बावजूद भी वो बहुत ही आकर्षक दिखती थी. ये सब अपने आप ही मुमकिन नहीं हो गया था. सुबह सुबह वो जो रोज योगा करती थी उसी का नतीजा था ये. और दीपेश से ऐसी तारीफ़ सुन कर वो मन ही मन खुद से कह रही थी कि चाहे जिंदगी कितनी भी बिजी हो जाए वो सुबह के बीस मिनट योगा को देगी ही देगी.



“तुम भी कम नहीं हो. अभी भी पहले जैसे ही दिखते हो. कोई नहीं कह सकता कि तुम पैंतीस साल के हो.”


“झूठ मत बोलो. मेरा पेट देखो. कितना बाहर निकल आया है.”



“तभी तो कहती हूँ कि तुम भी मेरे साथ योगा किया करो सुबह. देखना तुम भी मेरी तरह फिट हो जाओगे.”



“ना बाबा ना. मैं इतनी सुबह नहीं उठ सकता. मैं तो इवनिंग जिम ज्वाइन करूँगा.”



“पिछले दो साल से बोल रहे हो तुम ये... अभी तक तो किया नहीं.”



“अरे यार… वक्त ही कहाँ मिलता है.”



“वक्त कभी नहीं मिलता दीपेश. वक्त हमें निकलना पड़ता है. जैसे हमने अब निकाला है.”



“ठीक है... ठीक है... ये सब छोडो और ये बताओ कि कौन सी मिनी स्कर्ट पहनोगी तुम बंगले पर पहुँच कर.”



“मैं वो यहाँ नहीं पहनने वाली,” सुनीता झट से बोली.


“क्यों?” सुरेश उदास स्वर में बोला.



“बहुत छोटी स्कर्ट दिलवाई है तुमने. ऐसी स्कर्ट पहनता है क्या कोई?”



“जिसे रात में अपने पति का मूड बनाना हो वो पहनते हैं.”


“अच्छा जी… तुम्हें बड़ी जानकारी है.”


“और नहीं तो क्या.”



“मैंने तो पहले कभी ऐसे कपडे पहने नहीं.”



“अरे कुछ बदलाव करते हैं ना यार. एक बार ट्राई करो तुम्हें अच्छा लगेगा.”



“ठीक है बाबा... मैं तो यूँ ही मजाक कर रही थी. जब तुमने इतने प्यार से स्कर्ट दिलवाई है तो मैं पहनूंगी क्यों नहीं.”



“ये हुई ना बात. देखना एक दम मस्त लगोगी तुम उसमें.”


“देखेंगे...” सुनीता शरमाते हुए बोली.


दीपेश चलता चलता रुक गया. सुनीता भी रुक गई.


“क्या हुआ?” सुनीता बोली.



“वो देखो... वो पहाड़ कितना अच्छा लग रहा है...”


शाम ढलने को थी. डूबते सूरज की रौशनी में एक पहाड़ बहुत सुंदर लग रहा था.



“वाओ... कितना अच्छा लग रहा है ये पहाड़... काश यहाँ बर्फ भी देखने को मिलती...”



“अभी जून में कहाँ बर्फ दिखेगी यहाँ... हल्की हल्की ठण्ड लग रही है वही काफी हैं...”



तभी एक लड़का उनके पास आया और बोला, “साहिब मालिश करवाएंगे?”


“मालिश?” दीपेश ने कहा.


“हाँ साहिब. सात सौ रुपये में आपके पूरे शरीर की मालिश करूँगा. बहुत आराम मिलेगा आपको.”


“700 रूपये में?”



लड़का कोई 20 या 21 साल का था. रंग थोडा सांवला था. नैन नक्स ज्यादा मनभावन नहीं थे. बस ठीक ठीक थे. देखने में गरीब घर से लग रहा था. वो तो वैसे स्वाभाविक ही था. गरीब न होता तो क्यों मालिश करता घूमता. पर उसे देख कर ये अहसास भी हो रहा था सुनीता को कि वो ठीक से मालिश नहीं कर पाएगा.



दीपेश अक्सर शरदपुर में मालिश करवाता रहता था एक दो महीने में मगर जिस से वो करवाता था वो एक्सपर्ट था मालिश में. उसे पता था कि शरीर के किस भाग में कैसे मालिश करनी है. इस लड़के को देख कर ऐसा नहीं लगता था कि वो ठीक तरीके से मालिश कर पाएगा. एक दम नौसिखिया लग रहा था.


“दीपेश छोडो. घर वापिस चल कर करवा लेना मालिश,” सुनीता धीरे से दीपेश के कान में बोली.



“अरे देखो न कितने सस्ते में मालिश कर रहा है.”


“मुझे नहीं लगता कि ठीक से कर पाएगा ये मालिश...”


शायद लड़के ने सुनीता की ये बात सुन ली. वो तुरंत बोला, “मैं बहुत अच्छे से मालिश करूँगा मेमसाब. बिल्कुल शिकायत का मौका नहीं दूंगा.”



सुनीता दीपेश की बाजू पकड़ कर उसे लड़के से थोडा दूर ले गई और बोली, “मुझे ये नौसिखिया लग रहा है.”


“सुनीता… क्या बिगड़ेगा अपना? सिर्फ 700 रुपये की ही तो बात है,” दीपेश धीरे से बोला.



“देख लो… जैसा तुम्हारा मन कहे.”



“कुछ तो थोडा बहुत फायदा होगा ही. देखते है...”


“कहाँ करवाओगे मालिश?”


“बंगले पर और कहाँ...”

“बंगले पर बुला लेंगे इसे...?”


“और नहीं तो क्या...?”


“वहां ठीक रहेगा...”


“हाँ हाँ बिल्कुल...” दीपेश बोल कर लड़के की तरफ चल दिया. उसके पीछे पीछे सुनीता भी आ गई.


“क्या नाम है तुम्हारा?” दीपेश ने पूछा.


“जी... दीपू,” लड़का मुस्कुराते हुए बोला.


“दीपू?”


“जी नाम तो मेरा दीपक है पर सभी मुझे दीपू कहकर बुलाते हैं इसलिए मैंने आपको भी वही बोल दिया.”



“देखो हम नजदीक ही एक बंगले पर ठहरे हुए हैं. यहाँ से करीब तीस मिनट पैदल का रास्ता है. तुम आ पाओगे वहां?”



“हाँ हाँ आ जाऊँगा साहब... उसका एड्रेस दे देते तो आसानी होगी मुझे ढूंढने में...”



“वो पहाड़ी की चोटी पर है... आसपास कोई दूसरा बंगला या घर नहीं है... पहाड़ी से उतर कर एक छोटा सा बस स्टॉप है... बस इतना ही पता है मुझे...”



“समझ गया साहब... शायद मैंने देखा है बंगला... एक बार वहाँ आपके ही जैसे साहिब की मालिश करने गया था...”



सुनीता ने गहरी सांस ली. शक्ल से ही लग रहा था कि लड़का झूठ बोल रहा है. कौन करवाएगा ऐसे लड़के से मालिश?



“किस वक्त आऊँ साहिब?” दीपू बोला.



“हम बंगले पर ही जा रहे हैं. तुम आ जाओ तीस या चालीस मिनट बाद.”



“ठीक है साहब मैं पहुँच जाऊँगा,” दीपू ने कहा.



दीपेश और सुनीता वापस बंगले की तरफ चल दिए. जब वो दीपू से दूर आ गए तो सुनीता बोली, “मुझे तो ये सब ठीक नहीं लग रहा. एक जवान लड़का हमारे कमरे में आयेगा शाम के वक्त.”



“अरे कुछ नहीं होता. लोग बुलाते हैं मालिश वालों को. क्या दिक्कत है इसमें?”



“तुमने उसे जल्दी बुला लिया. डिनर भी तो करेंगे हम लोग.”



“अरे मेरा तो बिल्कुल मन नहीं है डिनर का. लंच बहुत हैवी हो गया था. लालू अच्छा खाना बनाता है. बस एक गिलास दूध लूँगा मालिश के बाद. तुम्हें भूख होगी तो तुम बनवा लेना कुछ. मैं तो आराम से मालिश करवाऊंगा.”



“मन तो मेरा भी नहीं है पर मैं सलाद वगैरह खा लूंगी. तुम उसे जल्द से जल्द रफा दफा करना मालिश करवा कर. मुझे आज की रात कोई डिस्टर्बेंस नहीं चाहिए.”



“मरी जा रही हो मेरे सामने स्कर्ट में आने को, हैं ना?”



“शट अप... मैं कोई मरी नहीं जा रही.”


“जस्ट जोकिंग हनी. चिंता मत करो मैं उसे जल्दी भगा दूंगा. तुम बस एक घंटा देना मुझे. चलो अब तेज क़दमों से जल्दी से बंगले पर पहुँचते हैं. ये न हो कि वो हमसे पहले पहुँच जाए और लालू उसे वहाँ से भगा दे.”



“अच्छा होगा अगर वो भगा दे तो.”



“तुम बेचारे से इतना चिढ़ी हुई क्यों हो?”



“अरे अचानक तुमने ये मालिश का प्लान बना लिया... मुझे अच्छा नहीं लग रहा.”



“बस एक घंटे की बात है हनी. फिर हम खूब मस्ती करेंगे.”




Thanks.

Bahut hi badhiya updates he dear OnlyBhabhis

Ek nayi kahani ke liye Hardik Shubhkamnaye.........

Keep rocking
 

OnlyBhabhis

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This is cut paste story which is also posted on xforum. This is cheating bro.

Naam batao Bhai maine pahle hi kaha hai mere paas 2014 se ab tak bahut si kahaniyo ka collection hai koi doosri post karuga agar pahle se maujood hai to naam batao
 

urc4me

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Romanchak. Pratiksha agle rasprd update ki
 

OnlyBhabhis

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This is cut paste story which is also posted on xforum. This is cheating bro.

लो भाई पूरी तरह एक नई कहानी में बदल दिया हूं इसको अब तो खुश हो जाओ

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