Office and Stressful life
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Are waahh kya mast update diya hai ekअपडेट १८
अगले दिन मैं सुबह 9 बजे उठा और रात की घटना के बारे में याद करने लगा, मुझे अभी भी यकीन नही हो रहा था कि हरिया ताऊजी का सौतेला भाई है और कल्लू की मां सभ्या ताईजी की सौतन है और रेखा मौसी ताईजी की सगी बहन है, अब मुझे सब कुछ पता करना था कि आखिर चल क्या रहा है और मुझसे इस घर के कौन से राज़ छुपाए जा रहे हैं लेकिन इसके लिए मुझे हरिया और कल्लू से दोस्ती करनी पड़ेगी तभी मुझे कुछ पता चलेगा या फिर सभ्या चाची और रेखा मौसी से बात करनी पड़ेगी लेकिन मुझे नहीं लगता कि उनसे बात करना अभी ठीक रहेगा, हां कम्मो दीदी शायद मुझे कुछ बता सकती हैं क्योंकि वह बचपन में मेरे बहुत करीब रही हैं, कम्मो दीदी को पटाकर कुछ बात बन सकती है मुझे लगता है कि मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूं, ये बड़के दादा और ताऊजी बहुत कांड करके गए हैं ताईजी ने मुझे कसम देकर बांध दिया है नहीं तो मैं ताईजी का विश्वास जीतकर उन्हें मजबूर कर देता।
ताईजी रसोई में काम कर रही थी और हल्की आवाज में गाने भी गुनगुना रही थी मैं समझ गया कि आज ताईजी बहुत खुश हैं रात में धमाकेदार चूदाई जो हुई थी। भीमा भईया और शीला भाभी दुकान पर जा चुके थे और पीहू दीदी भी घर पर नहीं थी, कुछ देर बाद मैं उठकर घर के पिछवाड़े में मूतने चला गया और फिर वहीं थोड़ी देर कसरत करने के बाद मैं आंगन में जाकर चारपाई पर बैठ गया, मुझे बहुत पसीना आ रहा था, मैं शरीर ठंडा करके नहाने जाने वाला था कि ताईजी रसोईघर से बाहर निकलकर मेरे पास आती हैं।
"लल्ला कितनी मेहनत करता है रे तू" ताईजी अपने पल्लू से मेरा पसीना पोछते हुए बोली
"अरे ताईजी ये तो कुछ नहीं है, जब मैं अपने गांव में था तो बापू के साथ सुबह २ घंटे कसरत करता था"
"हां रे तभी तो तू इतना हट्टा कट्टा है" ताईजी मेरे बाजुओं और छाती पर हाथ फेरते हुए बोली
"ताईजी कसरत करने से कुछ नहीं होता अगर शरीर को पौष्टिक आहार न मिल पाए, इसका श्रेय तो मेरी प्यारी मां और ताईजी को जाता है क्योंकि असली मेहनत तो पौष्टिक भोजन बनाकर आप लोग करती हैं"
"लल्ला तेरी लुगाई तूझसे बड़ा खुश रहा करेगी नहीं तो आजकल के नौजवान कहां अपने शरीर पर ध्यान देते हैं बस पैसे कमाने में लगे रहते हैं"
मैं लुगाई वाली बात पर थोड़ा शर्मा जाता हूं
"ताईजी मैं नहाने जा रहा हूं नहीं तो कोचिंग के लिए देर हो जाएगी"
"आज तुम कोचिंग नहीं जाओगे" कहकर ताईजी मुस्कुराती हुई अपने कमरे में चली जाती हैं
मैंने भी फिर कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं समझ गया था कि ताईजी क्या चाहती हैं उन्हें फिर से मस्ती चढ़ गई थी।
कुछ देर बाद मै गुसलखाने में नहाने चला गया, मैं अपनी धोती उतार के किवाड़ पर टांग ही रहा था कि मुझे ताईजी गुसलखाने के बाहर खड़ी दिखाई दी, उन्होंने अपनी कमर में चाभी का गुच्छा ठूंस रखा था ये चाभी घर के फाटक की थी मतलब ताईजी ने घर के फाटक को लॉक कर दिया था, फिर ताईजी गुसलखाने के अंदर आ गई और साड़ी के साथ साथ ब्लाउज और पेटीकोट को उतार के नंगी हो गई और उन्होंने गुसलखाने में लगा छोटा सा झरना चालू किया और फिर उसके नीचे जाकर खड़ी हो गई तो मैं भी ताईजी के साथ झरने के नीचे खड़ा हो गया, हम पानी के नीचे गीले हो चुके थे।
तभी ताईजी ने मेरी आंखों में देखते हुए मुझे कसके अपनी बाहों में जकड़ कर मेरी गर्दन पर चूमने लगी, आज ताईजी के चूमने का अंदाज बड़ा ही निराला था, मैंने भी ताईजी के चुम्बन का जवाब अलग तरीके से दिया, मैंने उनकी चौड़ी उभारदार गांड़ को अपने हथेलियों में भरकर दबोच लिया और उनकी गर्दन पर चूमने लगा, ताईजी का कद ठीक मेरे कंधे तक था इसलिए वह अपने पैर की उंगिलियों के सहारे से उचक के मुझे चूम रही थी और मेरा लन्ड तनकर हथौड़ा बन चुका था जो ताईजी की नाभी पर टकरा रहा था
"ताईजी इसका कुछ कीजिए ना, इसमें बहुत दर्द हो रहा है" मैंने अपने लन्ड की ओर इशारा करते हुए बोला
फिर ताईजी अपने उल्टे हाथ में मेरा लन्ड पकड़कर मुठ्ठी मारने लगी, मेरे लिए यह एक नया एहसास था मेरी आंखें खुद बंद होने लगी थीं।
"बाप रे कितना फौलादी लन्ड है, मेरी कलाई से भी मोटा है"
फिर ताईजी नीचे अपने घुटनों के बल बैठ गई और मेरे लन्ड को अपनी दोनों हाथों में जकड़कर मुठ्ठी मारने लगी, मैं समझ गया था कि अब क्या होने वाला है, तभी ताईजी ने जैसे ही मेरा काला लन्ड का चमड़ा पीछे किया तो मेरा गुलाबी सुपाड़ा बाहर आ गया और फिर ताईजी ने उस पर चुम्बन दिया, मेरे सुपाड़े पर ताईजी के नरम–नरम होंठ जैसे ही पड़े तो मैं उछल पड़ा और तभी ताईजी ने मेरे सुपाड़े को मुंह में भर लिया और उसे चूसने लगी, मैं तो जैसे एक पल के लिए जमीन से उठकर आसमान की सैर पर चला गया था, ताईजी मेरे लन्ड के गुलाबी सुपाड़े को मुंह में लेकर चूस रही थी, उन्होंने खूब सारा थूक मेरे लन्ड पर लगा दिया था और अपने दोनो हाथों से मेरे लन्ड को मसल रही थी और इसके साथ बारी–बारी मेरे आंडों को मुंह में भरके चूस रही थी,
फिर ताईजी ने दोबारा से मेरा लन्ड अपने मुंह में भर लिया और अपने दोनों हाथ को मेरे पेट पर रख के मेरे लन्ड अपने मुंह में लेकर चूसने लगी, कुछ देर बाद ताईजी ने मेरे पेट पर से अपने हाथ हटाकर मेरी गांड़ पर रख दिया और मेरे लन्ड को अपने गले के अंदर तक लेकर चूसने लगी, १०–१२ मिनट तक ऐसे ही ताईजी ने मेरे लन्ड को चूसा, उसके बाद उन्होंने अपने हाथ को मेरी गांड़ पर से हटा लिया तो मैं अपनी गांड़ को आगे पीछे करके उनका मुंह चोदना लगा, मैं अपने लन्ड को ताईजी के मुंह के अंदर तक घुसेड़–घुसेड़कर चोद रहा था, ताईजी का मुंह थूक से भरा हुआ था और थोड़ा बहुत थूक उनके मुंह से बाहर निकलकर चेहरे से लटक रहा था, ताईजी के मुंह इतना थूक था की मेरा लन्ड फिसल–फिसलकर और ज्यादा ताईजी के मुंह में जाने लगा था, १०–१२ मिनट तक ऐसे ही मैं ताईजी का मुंह चोदता रहा, उसके बाद मुझे लगा कि मैं झड़ने वाला हूं।
इसलिए मैंने अपने लन्ड को ताईजी के मुंह से बाहर निकाल लिया लेकिन ताईजी किसी भूखी शेरनी की तरह मेरे लन्ड को लपक कर अपने मुंह में भर लिया और मेरी गांड़ पर हाथ रख के दोबारा से मुंह चोदने का इशारा किया, मैं तो अब झड़ने वाला था इसलिए मैं लगातार ताबड़तोड़ धक्के ताईजी के मुंह में मारना शुरू कर दिया और कुछ देर बाद आआआह्हह करके अपना सारा वीर्य ताईजी के मुंह में भर दिया, जैसे–जैसे मैं अपने लन्ड से पिचकारी मारता रहा वैसे–वैसे ताईजी मेरे लन्ड का रस गटागट पीती रही, लन्ड का सारा रस निचोड़ने के बाद भी ताईजी ने मेरे लन्ड को अपने मुंह से बाहर नहीं किया जब तक उसकी आखिरी बूंद नहीं निकल गई।
फिर ताईजी पानी के झरने के नीचे से हट गई और अपने ब्लाउज और पेटीकोट को उठाकर गुसलखाने से चली गई, कुछ देर बाद मै नहा लिया और धोती पहन के आंगन में आ गया, मैंने देखा कि ताईजी रसोईघर में हैं उन्होंने सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट पहना था।
"भूख लग रही है ताईजी" मैं पीछे से ताईजी को अपनी बाहों में जकड़ते हुए बोला
"पनीर के परांठे बने हैं चटाई पर बैठ मैं अभी लाती हूं" ताईजी अपनी गांड़ को मेरे लन्ड पर रगड़ते हुए बोली
"ये वाली भूख नहीं, ये वाली भूख ताईजी" मैं अपने उल्टे हाथ को ताईजी के पेटीकोट के ऊपर से उनकी चूत पर रखते हुए बोला
"अभी नहीं लल्ला मुझे दोपहर का खाना भी बनाना है" मेरे गाल पर हल्के से थप्पड़ मारती हुई बोली
"ठीक है तो जब तक के लिए मैं खेत में घूम आता हूं"
फिर मैंने पनीर के छह परांठे पेले और मस्त लस्सी पीके आम के बगीचे में आ गया, मैंने पंपहाउस से चारपाई बाहर निकाली और मस्त पेड़ की छांव में लगाकर लेट गया, आम के बगीचे में सन्नाटा छाया हुआ था, उसमें चिड़ियों की हल्की हल्की मधुर आवाज कान को सूकून दे रही थी लेकिन अचानक मुझे अजीब सी आवाज सुनाई दी जो शायद किसी के सिसकियों की था, मुझे लगा कि मेरे दिमाग का वहम है लेकिन तभी मुझे फिर से हल्की हल्की किसी के सिसकियो की आवाज आई, मैं झटके से चारपाई से उठा और इधर उधर देखने लगा, आम के बगीचे में कोई नहीं था, मैंने आवाज को ध्यान से सुना तो पता चला कि आवाज ताईजी के आम के बगीचे से नहीं बल्कि किसी और के खेत से आ रही है चूंकि वहां इतना ज्यादा सन्नाटा था इसलिए मुझे इतनी दूर से आ रही आवाज भी हल्की हल्की सुनाई दे रही थी।