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Incest आवारे सांड और चुदक्कड़ घोड़ियां

Mass

Well-Known Member
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super update bhai...lagta hain ragini kaki bhi ab line par aa gayi hain, next number uska hi lagne waala hain shaayad.
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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174
अपडेट १९

मेरा दिल बहुत तेज धक–धक कर रहा था, मैंने ध्यान से देखा तो पता चला कि वह आवाज हरिया के सब्जियों के खेत से आ रही थी, लेकिन तभी "आह्ह्ह्ह्ह मर गई मां बहुत दर्द हो रहा है" सुनते ही मेरे लन्ड में खून दौड़ गया क्योंकि इस आवाज के पीछे जो कोई भी थी उसकी आवाज को मैं पहचान गया था यह कम्मो दीदी की आवाज थी, फिर मै झाड़ियों के पीछे से आगे बढ़कर देखने लगा लेकिन खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाली बात थी कम्मो दीदी के पैर में कांटा लगा हुआ था और वह दर्द के मारे चिल्ला रही थी।

"अरे कम्मो दीदी क्या हुआ? ताईजी के खेत तक आपकी आवाज आ रही है"

"मुन्ना कांटा लग गया आआआह्हह्ह"

"लाओ मैं देखता हूं" कहकर कम्मो दीदी का पैर उठाकर देखने लगता हूं

लेकिन मैं जैसे ही कम्मो दीदी का पैर उठाता हूं तो उनका घागरा घुटने से पीछे सरक जाता है और मुझे उनकी फूली हुई बिना झांटों वाली काली चूत नजर आ जाती है, साली ने अंदर पैंटी तक पहनी नहीं थी।

"क्या हुआ मुन्ना कितनी देर लगाएगा तुझसे एक कांटा तक नहीं निकाला जा रहा है"

"अरे दीदी पैर न हिलाओ, कांटा बहुत अंदर तक घुसा है"

कम्मो दीदी आंखें बंद करके आह्ह्ह उह्ह्ह्ह कर रही थी तभी मैंने कम्मो दीदी की टांगों को थोड़ा चौड़ा कर दिया और मुझे उनकी चूत की फटी हुई फांक नजर आने लगी, मेरा दिल तो किया कि अभी धोती में से अपना लन्ड बाहर करके इसकी चूत में पेल दूं लेकिन मैं जल्दीबाजी करके खुद के पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहता था, कुछ देर बाद मैंने कांटा निकाल दिया।

फिर कम्मो दीदी उठकर लगड़ाते हुए बैंगन और टमाटर लेकर जाने लगी और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को ताड़कर सोचा कि आज नहीं तो कल इसकी गांड़ ठोककर रहूंगा, उसके बाद मैं ताईजी के आम के बगीचे में वापस आ गया तो मैंने देखा कि रागिनी काकी एक लकड़ी से कच्ची कैरियां तोड़ने की कोशिश कर रही हैं।

"ऐसे नहीं टूटेंगे काकी" मैं रागिनी काकी को ऊपर से नीचे तक ताड़ते हुए बोला

"तू यहां क्या कर रहा है?"

"उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, बल्कि मुझे पूछना चाहिए कि आप मेरी ताईजी के खेत में क्या कर रही हो"

"मैं तो यहां कच्ची कैरियां तोड़ने आई थी तू किसलिए आया है?"

"मेरी ताईजी का बगीचा है घूमने आया हूं आजकल बगीचे से आम बहुत चोरी हो रहे हैं"

"चल अब बातें मत बना, मुझे कुछ कच्ची कैरियां तोड़ दे"

"साली खुद तो पका पकाया आम है"

"क्या? नहीं तोड़ना हो तो बता दे मैं खुद तोड़ लूंगी"

"अरे नहीं काकी आपको नहीं दूंगा तो किसे दूंगा"

"चल बड़ा आया देने वाला, अब कच्ची वाली कैरियां तोड़ दे"

"जो मजा पके में है वो कच्ची में कहां"

"अच्छा तुझे कैसे पता?"

"अरे काकी पके आम को दबा दबाके चूसने में कितना मजा आता है"

"चल अब जल्दी कर मुझे देर हो रही है"

"काकी जल्दी का काम शैतान का होता है जो मजा धीरे–धीरे में है वो जल्दी में कहां"

"तू मेरा काम करता है या नहीं? वरना मैं चली जाती हूं"

"काकी मैं तो कबसे आपका काम करने के लिए तैयार हूं आप ही मुझे बातों में उलझा रही हो चलो इधर आओ"

"किसलिए?"

"अरे काकी मैं आपको ऊपर उठा देता हूं , आप अपनी मर्जी से कच्ची वाली कैरियां तोड़ लेना"

रागिनी काकी मेरे पास आती हैं और मैं उनकी गदराई कमर पकड़कर ऊपर उठा देता हूं ये तो सभ्या चाची से भी भारी थी।

"काकी बड़ी भारी हो गई हो"

"बस इतना ही दम है क्या, थोड़ी देर के लिए तो मुझे उठा नहीं सकता, बड़ा मर्द बनता फिरता है।"

मुझे मर्द वाली बात पर थोड़ा गुस्सा आ गया और मैंने दम लगाकर रागिनी काकी को ऊपर उठा दिया जिसके कारण उनकी चर्बीदार गांड़ मेरी आंखों के पास आ गई, रागिनी काकी कैरियां तोड़ने लगती हैं।

मुझसे अब रहा नहीं जाता मेरे मुंह में पानी आ जाता है और अचानक मैं अपने चेहरे को रागिनी काकी की चर्बीदार गांड़ की दरार में घुसा देता हूं, रागिनी काकी का जिस्म कांप उठता है जिससे उनके हाथ में आए कच्चे आम नीचे टपक जाते हैं लेकिन खुद को किसी तरह संभाल लेती हैं फिर से मैं अपनी नाक को रागिनी काकी की गांड़ के ठीक ऊपर लगाकर हल्के से उनकी गांड़ को अपने चेहरे पर दबा देता हूं।

"आह्ह्ह्ह क्या कर रहा है?"

अचानक मैं अपनी नाक को उनकी गांड़ की दरार से बाहर निकालता हूं तो मेरा हाथ उनकी मलाईदार कमर से फिसल जाता है और रागिनी काकी धड़ाम से नीचे गिर पड़ती हैं।

"हाय रे मां आह्ह्हह कितना दर्द हो रहा है, क्या कर रहा था?"

"दिखाओ मुझे कहां लगी है"

"अह्ह्ह दूर हट मूए, आह्ह्ह्ह् मां मर गई"

"अरे काकी मुझे देखने तो दो, कोई गहरी चोट तो नहीं लगी"

मैं रागिनी काकी के पंजे देखता हूं वहां सब कुछ ठीक था और फिर धीरे धीरे रागिनी काकी की साड़ी ऊपर करने लगता हूं।

"ये क्या कर रहा है बलराम"

"आप चुप बैठो, मुझे लगता है पिंडलियों पर चोट लगी है"

"हाय रे मैं मर गई आह"

मैं साड़ी को रागिनी काकी के पिंडलियों तक चढ़ा देता हूं पर मुझे ज्यादा अंदर तक देखने के लिए नही मिलता क्योंकि उन्होंने अपने हाथ से साड़ी पकड़ी हुई थी, मैं उनकी पिंडलियों की हल्की हल्की मालिश करने लगता हूं तभी रागिनी काकी की हल्की हल्की चिल्लाहट सिसकियां में बदल जाती है।

"हां बलराम बेटा वहीं दर्द हो रहा है"

इससे पहले मैं थोड़ा आगे बढ़ने की कोशिश करता, रागिनी काकी उठने लगती हैं लेकिन दर्द के मारे वापस से बैठ जाती है।

"काकी ऐसा करते हैं आपको मैं अपनी गोदी में उठाकर घर छोड़ देता हूं"

"नहीं मैं चली जाऊंगी"

इस बार मैं रागिनी काकी से कुछ पूछता नही हूं और फूल सी हल्की अपनी रागिनी काकी को अपनी मजबूत बाहों में उठा लेता हूं और गिरने के डर से रागिनी काकी अपने दोनो हाथों को मेरी गर्दन में डाल देती हैं। धूप बहुत तेज थी इसलिए गांव के लोग अपने घर में थे और रागिनी काकी को किसी के देखने का डर नही था।

मेरी उंगलियां रागिनी काकी की कमर पर थी और उन्हें भी नशा छाने लगता है उन्हे तो यकीन नही हो रहा था कि मैं बड़ी आसानी से उन्हें उठा ले रहा हूं।

"काकी आप तो बहुत हल्की हो , मुझे लगा था कि भारी होगी"

"अभी तो बोल रहा था कि मैं भारी हूं"

"अरे काकी तब मैंने आपको ठीक से लिया नहीं था"

रागिनी काकी मेरी छाती में मुक्का जड़ देती हैं और कुछ देर बाद हम घर पहुंच जाते हैं।

फिर रागिनी काकी मुस्कुरा कर मेरे हाथ से कच्ची कैरियों की थैली लेकर लंगड़ाती हुई अंदर जाने लगती हैं और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को देखने लगता हूं रागिनी काकी मुझे उनकी गांड़ को घूरते हुए देख लेती हैं लेकिन आज रागिनी काकी के चेहरे पर गुस्सा नहीं बल्कि बेहद कामुक मुस्कुराहट थी, उसके बाद मैं घर चल देता हूं।
Wah Kammo didi thi jinki siskiya kheto me sunai pad rhi thi pr unhe Kata lga tha or apna Balram samajh rha tha kisi ki thukai ho rhi hai, Kata nikalte huye Kammo ke khajane ka darsan ho gya lalla ko, ragini kaki se double meaning bate karke Pahle to unhe gira diya pr baad me unhe utha kar Ghar chhod aaya kaki bhi khush ho gyi hai... Superb update bhai sandar jabarjast lajvab
 

Motaland2468

Well-Known Member
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अपडेट १९

मेरा दिल बहुत तेज धक–धक कर रहा था, मैंने ध्यान से देखा तो पता चला कि वह आवाज हरिया के सब्जियों के खेत से आ रही थी, लेकिन तभी "आह्ह्ह्ह्ह मर गई मां बहुत दर्द हो रहा है" सुनते ही मेरे लन्ड में खून दौड़ गया क्योंकि इस आवाज के पीछे जो कोई भी थी उसकी आवाज को मैं पहचान गया था यह कम्मो दीदी की आवाज थी, फिर मै झाड़ियों के पीछे से आगे बढ़कर देखने लगा लेकिन खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाली बात थी कम्मो दीदी के पैर में कांटा लगा हुआ था और वह दर्द के मारे चिल्ला रही थी।

"अरे कम्मो दीदी क्या हुआ? ताईजी के खेत तक आपकी आवाज आ रही है"

"मुन्ना कांटा लग गया आआआह्हह्ह"

"लाओ मैं देखता हूं" कहकर कम्मो दीदी का पैर उठाकर देखने लगता हूं

लेकिन मैं जैसे ही कम्मो दीदी का पैर उठाता हूं तो उनका घागरा घुटने से पीछे सरक जाता है और मुझे उनकी फूली हुई बिना झांटों वाली काली चूत नजर आ जाती है, साली ने अंदर पैंटी तक पहनी नहीं थी।

"क्या हुआ मुन्ना कितनी देर लगाएगा तुझसे एक कांटा तक नहीं निकाला जा रहा है"

"अरे दीदी पैर न हिलाओ, कांटा बहुत अंदर तक घुसा है"

कम्मो दीदी आंखें बंद करके आह्ह्ह उह्ह्ह्ह कर रही थी तभी मैंने कम्मो दीदी की टांगों को थोड़ा चौड़ा कर दिया और मुझे उनकी चूत की फटी हुई फांक नजर आने लगी, मेरा दिल तो किया कि अभी धोती में से अपना लन्ड बाहर करके इसकी चूत में पेल दूं लेकिन मैं जल्दीबाजी करके खुद के पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहता था, कुछ देर बाद मैंने कांटा निकाल दिया।

फिर कम्मो दीदी उठकर लगड़ाते हुए बैंगन और टमाटर लेकर जाने लगी और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को ताड़कर सोचा कि आज नहीं तो कल इसकी गांड़ ठोककर रहूंगा, उसके बाद मैं ताईजी के आम के बगीचे में वापस आ गया तो मैंने देखा कि रागिनी काकी एक लकड़ी से कच्ची कैरियां तोड़ने की कोशिश कर रही हैं।

"ऐसे नहीं टूटेंगे काकी" मैं रागिनी काकी को ऊपर से नीचे तक ताड़ते हुए बोला

"तू यहां क्या कर रहा है?"

"उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, बल्कि मुझे पूछना चाहिए कि आप मेरी ताईजी के खेत में क्या कर रही हो"

"मैं तो यहां कच्ची कैरियां तोड़ने आई थी तू किसलिए आया है?"

"मेरी ताईजी का बगीचा है घूमने आया हूं आजकल बगीचे से आम बहुत चोरी हो रहे हैं"

"चल अब बातें मत बना, मुझे कुछ कच्ची कैरियां तोड़ दे"

"साली खुद तो पका पकाया आम है"

"क्या? नहीं तोड़ना हो तो बता दे मैं खुद तोड़ लूंगी"

"अरे नहीं काकी आपको नहीं दूंगा तो किसे दूंगा"

"चल बड़ा आया देने वाला, अब कच्ची वाली कैरियां तोड़ दे"

"जो मजा पके में है वो कच्ची में कहां"

"अच्छा तुझे कैसे पता?"

"अरे काकी पके आम को दबा दबाके चूसने में कितना मजा आता है"

"चल अब जल्दी कर मुझे देर हो रही है"

"काकी जल्दी का काम शैतान का होता है जो मजा धीरे–धीरे में है वो जल्दी में कहां"

"तू मेरा काम करता है या नहीं? वरना मैं चली जाती हूं"

"काकी मैं तो कबसे आपका काम करने के लिए तैयार हूं आप ही मुझे बातों में उलझा रही हो चलो इधर आओ"

"किसलिए?"

"अरे काकी मैं आपको ऊपर उठा देता हूं , आप अपनी मर्जी से कच्ची वाली कैरियां तोड़ लेना"

रागिनी काकी मेरे पास आती हैं और मैं उनकी गदराई कमर पकड़कर ऊपर उठा देता हूं ये तो सभ्या चाची से भी भारी थी।

"काकी बड़ी भारी हो गई हो"

"बस इतना ही दम है क्या, थोड़ी देर के लिए तो मुझे उठा नहीं सकता, बड़ा मर्द बनता फिरता है।"

मुझे मर्द वाली बात पर थोड़ा गुस्सा आ गया और मैंने दम लगाकर रागिनी काकी को ऊपर उठा दिया जिसके कारण उनकी चर्बीदार गांड़ मेरी आंखों के पास आ गई, रागिनी काकी कैरियां तोड़ने लगती हैं।

मुझसे अब रहा नहीं गया, मेरे मुंह में पानी आ जाता है और अचानक मैं अपने चेहरे को रागिनी काकी की चर्बीदार गांड़ की दरार में घुसा देता हूं, रागिनी काकी का जिस्म कांप उठता है जिससे उनके हाथ में आए कच्चे आम नीचे टपक जाते हैं लेकिन खुद को किसी तरह संभाल लेती हैं फिर से मैं अपनी नाक को रागिनी काकी की गांड़ के ठीक ऊपर लगाकर हल्के से उनकी गांड़ को अपने चेहरे पर दबा देता हूं।

"आह्ह्ह्ह क्या कर रहा है?"

अचानक मैं अपनी नाक को उनकी गांड़ की दरार से बाहर निकालता हूं तो मेरा हाथ उनकी मलाईदार कमर से फिसल जाता है और रागिनी काकी धड़ाम से नीचे गिर पड़ती हैं।

"हाय रे मां आह्ह्हह कितना दर्द हो रहा है, क्या कर रहा था?"

"दिखाओ मुझे कहां लगी है"

"अह्ह्ह दूर हट मूए, आह्ह्ह्ह् मां मर गई"

"अरे काकी मुझे देखने तो दो, कोई गहरी चोट तो नहीं लगी"

मैं रागिनी काकी के पंजे देखता हूं वहां सब कुछ ठीक था और फिर धीरे धीरे रागिनी काकी की साड़ी ऊपर करने लगता हूं।

"ये क्या कर रहा है बलराम"

"आप चुप बैठो, मुझे लगता है पिंडलियों पर चोट लगी है"

"हाय रे मैं मर गई आह"

मैं साड़ी को रागिनी काकी के पिंडलियों तक चढ़ा देता हूं पर मुझे ज्यादा अंदर तक देखने के लिए नही मिलता क्योंकि उन्होंने अपने हाथ से साड़ी पकड़ी हुई थी, मैं उनकी पिंडलियों की हल्की हल्की मालिश करने लगता हूं तभी रागिनी काकी की हल्की हल्की चिल्लाहट सिसकियां में बदल जाती है।

"हां बलराम बेटा वहीं दर्द हो रहा है"

इससे पहले मैं थोड़ा आगे बढ़ने की कोशिश करता, रागिनी काकी उठने लगती हैं लेकिन दर्द के मारे वापस से बैठ जाती है।

"काकी ऐसा करते हैं आपको मैं अपनी गोदी में उठाकर घर छोड़ देता हूं"

"नहीं मैं चली जाऊंगी"

इस बार मैं रागिनी काकी से कुछ पूछता नही हूं और फूल सी हल्की अपनी रागिनी काकी को अपनी मजबूत बाहों में उठा लेता हूं और गिरने के डर से रागिनी काकी अपने दोनो हाथों को मेरी गर्दन में डाल देती हैं। धूप बहुत तेज थी इसलिए गांव के लोग अपने घर में थे और रागिनी काकी को किसी के देखने का डर नही था।

मेरी उंगलियां रागिनी काकी की कमर पर थी और उन्हें भी नशा छाने लगता है उन्हे तो यकीन नही हो रहा था कि मैं बड़ी आसानी से उन्हें उठा ले रहा हूं।

"काकी आप तो बहुत हल्की हो , मुझे लगा था कि भारी होगी"

"अभी तो बोल रहा था कि मैं भारी हूं"

"अरे काकी तब मैंने आपको ठीक से लिया नहीं था"

रागिनी काकी मेरी छाती में मुक्का जड़ देती हैं और कुछ देर बाद हम घर पहुंच जाते हैं।

फिर रागिनी काकी मुस्कुरा कर मेरे हाथ से कच्ची कैरियों की थैली लेकर लंगड़ाती हुई अंदर जाने लगती हैं और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को देखने लगता हूं रागिनी काकी मुझे उनकी गांड़ को घूरते हुए देख लेती हैं लेकिन आज रागिनी काकी के चेहरे पर गुस्सा नहीं बल्कि बेहद कामुक मुस्कुराहट थी, उसके बाद मैं घर चल देता हूं।
Gajab update bro bas gif ki kami h agar gif bhi ho to story ka maza dugna ho jaye
 

A.A.G.

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अपडेट १९

मेरा दिल बहुत तेज धक–धक कर रहा था, मैंने ध्यान से देखा तो पता चला कि वह आवाज हरिया के सब्जियों के खेत से आ रही थी, लेकिन तभी "आह्ह्ह्ह्ह मर गई मां बहुत दर्द हो रहा है" सुनते ही मेरे लन्ड में खून दौड़ गया क्योंकि इस आवाज के पीछे जो कोई भी थी उसकी आवाज को मैं पहचान गया था यह कम्मो दीदी की आवाज थी, फिर मै झाड़ियों के पीछे से आगे बढ़कर देखने लगा लेकिन खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाली बात थी कम्मो दीदी के पैर में कांटा लगा हुआ था और वह दर्द के मारे चिल्ला रही थी।

"अरे कम्मो दीदी क्या हुआ? ताईजी के खेत तक आपकी आवाज आ रही है"

"मुन्ना कांटा लग गया आआआह्हह्ह"

"लाओ मैं देखता हूं" कहकर कम्मो दीदी का पैर उठाकर देखने लगता हूं

लेकिन मैं जैसे ही कम्मो दीदी का पैर उठाता हूं तो उनका घागरा घुटने से पीछे सरक जाता है और मुझे उनकी फूली हुई बिना झांटों वाली काली चूत नजर आ जाती है, साली ने अंदर पैंटी तक पहनी नहीं थी।

"क्या हुआ मुन्ना कितनी देर लगाएगा तुझसे एक कांटा तक नहीं निकाला जा रहा है"

"अरे दीदी पैर न हिलाओ, कांटा बहुत अंदर तक घुसा है"

कम्मो दीदी आंखें बंद करके आह्ह्ह उह्ह्ह्ह कर रही थी तभी मैंने कम्मो दीदी की टांगों को थोड़ा चौड़ा कर दिया और मुझे उनकी चूत की फटी हुई फांक नजर आने लगी, मेरा दिल तो किया कि अभी धोती में से अपना लन्ड बाहर करके इसकी चूत में पेल दूं लेकिन मैं जल्दीबाजी करके खुद के पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहता था, कुछ देर बाद मैंने कांटा निकाल दिया।

फिर कम्मो दीदी उठकर लगड़ाते हुए बैंगन और टमाटर लेकर जाने लगी और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को ताड़कर सोचा कि आज नहीं तो कल इसकी गांड़ ठोककर रहूंगा, उसके बाद मैं ताईजी के आम के बगीचे में वापस आ गया तो मैंने देखा कि रागिनी काकी एक लकड़ी से कच्ची कैरियां तोड़ने की कोशिश कर रही हैं।

"ऐसे नहीं टूटेंगे काकी" मैं रागिनी काकी को ऊपर से नीचे तक ताड़ते हुए बोला

"तू यहां क्या कर रहा है?"

"उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, बल्कि मुझे पूछना चाहिए कि आप मेरी ताईजी के खेत में क्या कर रही हो"

"मैं तो यहां कच्ची कैरियां तोड़ने आई थी तू किसलिए आया है?"

"मेरी ताईजी का बगीचा है घूमने आया हूं आजकल बगीचे से आम बहुत चोरी हो रहे हैं"

"चल अब बातें मत बना, मुझे कुछ कच्ची कैरियां तोड़ दे"

"साली खुद तो पका पकाया आम है"

"क्या? नहीं तोड़ना हो तो बता दे मैं खुद तोड़ लूंगी"

"अरे नहीं काकी आपको नहीं दूंगा तो किसे दूंगा"

"चल बड़ा आया देने वाला, अब कच्ची वाली कैरियां तोड़ दे"

"जो मजा पके में है वो कच्ची में कहां"

"अच्छा तुझे कैसे पता?"

"अरे काकी पके आम को दबा दबाके चूसने में कितना मजा आता है"

"चल अब जल्दी कर मुझे देर हो रही है"

"काकी जल्दी का काम शैतान का होता है जो मजा धीरे–धीरे में है वो जल्दी में कहां"

"तू मेरा काम करता है या नहीं? वरना मैं चली जाती हूं"

"काकी मैं तो कबसे आपका काम करने के लिए तैयार हूं आप ही मुझे बातों में उलझा रही हो चलो इधर आओ"

"किसलिए?"

"अरे काकी मैं आपको ऊपर उठा देता हूं , आप अपनी मर्जी से कच्ची वाली कैरियां तोड़ लेना"

रागिनी काकी मेरे पास आती हैं और मैं उनकी गदराई कमर पकड़कर ऊपर उठा देता हूं ये तो सभ्या चाची से भी भारी थी।

"काकी बड़ी भारी हो गई हो"

"बस इतना ही दम है क्या, थोड़ी देर के लिए तो मुझे उठा नहीं सकता, बड़ा मर्द बनता फिरता है।"

मुझे मर्द वाली बात पर थोड़ा गुस्सा आ गया और मैंने दम लगाकर रागिनी काकी को ऊपर उठा दिया जिसके कारण उनकी चर्बीदार गांड़ मेरी आंखों के पास आ गई, रागिनी काकी कैरियां तोड़ने लगती हैं।

मुझसे अब रहा नहीं गया, मेरे मुंह में पानी आ जाता है और अचानक मैं अपने चेहरे को रागिनी काकी की चर्बीदार गांड़ की दरार में घुसा देता हूं, रागिनी काकी का जिस्म कांप उठता है जिससे उनके हाथ में आए कच्चे आम नीचे टपक जाते हैं लेकिन खुद को किसी तरह संभाल लेती हैं फिर से मैं अपनी नाक को रागिनी काकी की गांड़ के ठीक ऊपर लगाकर हल्के से उनकी गांड़ को अपने चेहरे पर दबा देता हूं।

"आह्ह्ह्ह क्या कर रहा है?"

अचानक मैं अपनी नाक को उनकी गांड़ की दरार से बाहर निकालता हूं तो मेरा हाथ उनकी मलाईदार कमर से फिसल जाता है और रागिनी काकी धड़ाम से नीचे गिर पड़ती हैं।

"हाय रे मां आह्ह्हह कितना दर्द हो रहा है, क्या कर रहा था?"

"दिखाओ मुझे कहां लगी है"

"अह्ह्ह दूर हट मूए, आह्ह्ह्ह् मां मर गई"

"अरे काकी मुझे देखने तो दो, कोई गहरी चोट तो नहीं लगी"

मैं रागिनी काकी के पंजे देखता हूं वहां सब कुछ ठीक था और फिर धीरे धीरे रागिनी काकी की साड़ी ऊपर करने लगता हूं।

"ये क्या कर रहा है बलराम"

"आप चुप बैठो, मुझे लगता है पिंडलियों पर चोट लगी है"

"हाय रे मैं मर गई आह"

मैं साड़ी को रागिनी काकी के पिंडलियों तक चढ़ा देता हूं पर मुझे ज्यादा अंदर तक देखने के लिए नही मिलता क्योंकि उन्होंने अपने हाथ से साड़ी पकड़ी हुई थी, मैं उनकी पिंडलियों की हल्की हल्की मालिश करने लगता हूं तभी रागिनी काकी की हल्की हल्की चिल्लाहट सिसकियां में बदल जाती है।

"हां बलराम बेटा वहीं दर्द हो रहा है"

इससे पहले मैं थोड़ा आगे बढ़ने की कोशिश करता, रागिनी काकी उठने लगती हैं लेकिन दर्द के मारे वापस से बैठ जाती है।

"काकी ऐसा करते हैं आपको मैं अपनी गोदी में उठाकर घर छोड़ देता हूं"

"नहीं मैं चली जाऊंगी"

इस बार मैं रागिनी काकी से कुछ पूछता नही हूं और फूल सी हल्की अपनी रागिनी काकी को अपनी मजबूत बाहों में उठा लेता हूं और गिरने के डर से रागिनी काकी अपने दोनो हाथों को मेरी गर्दन में डाल देती हैं। धूप बहुत तेज थी इसलिए गांव के लोग अपने घर में थे और रागिनी काकी को किसी के देखने का डर नही था।

मेरी उंगलियां रागिनी काकी की कमर पर थी और उन्हें भी नशा छाने लगता है उन्हे तो यकीन नही हो रहा था कि मैं बड़ी आसानी से उन्हें उठा ले रहा हूं।

"काकी आप तो बहुत हल्की हो , मुझे लगा था कि भारी होगी"

"अभी तो बोल रहा था कि मैं भारी हूं"

"अरे काकी तब मैंने आपको ठीक से लिया नहीं था"

रागिनी काकी मेरी छाती में मुक्का जड़ देती हैं और कुछ देर बाद हम घर पहुंच जाते हैं।

फिर रागिनी काकी मुस्कुरा कर मेरे हाथ से कच्ची कैरियों की थैली लेकर लंगड़ाती हुई अंदर जाने लगती हैं और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को देखने लगता हूं रागिनी काकी मुझे उनकी गांड़ को घूरते हुए देख लेती हैं लेकिन आज रागिनी काकी के चेहरे पर गुस्सा नहीं बल्कि बेहद कामुक मुस्कुराहट थी, उसके बाद मैं घर चल देता हूं।
nice update..!!
balram ko laga chudayi chal rahi hai lekin yaha toh kammo ke pair me kanta laga tha..ab kammo ki chut dekh li hai toh kammo ka number bhi jaldi lagne wala hai..!! balram ne aaj toh ragini ke sath double meaning baate bhi ki aur usko uthake ghar bhi chhod aaya..ab kaki ki line pe aarahi hai..jald hi kaki balram ke liye tadpegi..ab dekhte hai aage kya hota hai..!!
 

Lucky babu

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अपडेट १९

मेरा दिल बहुत तेज धक–धक कर रहा था, मैंने ध्यान से देखा तो पता चला कि वह आवाज हरिया के सब्जियों के खेत से आ रही थी, लेकिन तभी "आह्ह्ह्ह्ह मर गई मां बहुत दर्द हो रहा है" सुनते ही मेरे लन्ड में खून दौड़ गया क्योंकि इस आवाज के पीछे जो कोई भी थी उसकी आवाज को मैं पहचान गया था यह कम्मो दीदी की आवाज थी, फिर मै झाड़ियों के पीछे से आगे बढ़कर देखने लगा लेकिन खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाली बात थी कम्मो दीदी के पैर में कांटा लगा हुआ था और वह दर्द के मारे चिल्ला रही थी।

"अरे कम्मो दीदी क्या हुआ? ताईजी के खेत तक आपकी आवाज आ रही है"

"मुन्ना कांटा लग गया आआआह्हह्ह"

"लाओ मैं देखता हूं" कहकर कम्मो दीदी का पैर उठाकर देखने लगता हूं

लेकिन मैं जैसे ही कम्मो दीदी का पैर उठाता हूं तो उनका घागरा घुटने से पीछे सरक जाता है और मुझे उनकी फूली हुई बिना झांटों वाली काली चूत नजर आ जाती है, साली ने अंदर पैंटी तक पहनी नहीं थी।

"क्या हुआ मुन्ना कितनी देर लगाएगा तुझसे एक कांटा तक नहीं निकाला जा रहा है"

"अरे दीदी पैर न हिलाओ, कांटा बहुत अंदर तक घुसा है"

कम्मो दीदी आंखें बंद करके आह्ह्ह उह्ह्ह्ह कर रही थी तभी मैंने कम्मो दीदी की टांगों को थोड़ा चौड़ा कर दिया और मुझे उनकी चूत की फटी हुई फांक नजर आने लगी, मेरा दिल तो किया कि अभी धोती में से अपना लन्ड बाहर करके इसकी चूत में पेल दूं लेकिन मैं जल्दीबाजी करके खुद के पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहता था, कुछ देर बाद मैंने कांटा निकाल दिया।

फिर कम्मो दीदी उठकर लगड़ाते हुए बैंगन और टमाटर लेकर जाने लगी और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को ताड़कर सोचा कि आज नहीं तो कल इसकी गांड़ ठोककर रहूंगा, उसके बाद मैं ताईजी के आम के बगीचे में वापस आ गया तो मैंने देखा कि रागिनी काकी एक लकड़ी से कच्ची कैरियां तोड़ने की कोशिश कर रही हैं।

"ऐसे नहीं टूटेंगे काकी" मैं रागिनी काकी को ऊपर से नीचे तक ताड़ते हुए बोला

"तू यहां क्या कर रहा है?"

"उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, बल्कि मुझे पूछना चाहिए कि आप मेरी ताईजी के खेत में क्या कर रही हो"

"मैं तो यहां कच्ची कैरियां तोड़ने आई थी तू किसलिए आया है?"

"मेरी ताईजी का बगीचा है घूमने आया हूं आजकल बगीचे से आम बहुत चोरी हो रहे हैं"

"चल अब बातें मत बना, मुझे कुछ कच्ची कैरियां तोड़ दे"

"साली खुद तो पका पकाया आम है"

"क्या? नहीं तोड़ना हो तो बता दे मैं खुद तोड़ लूंगी"

"अरे नहीं काकी आपको नहीं दूंगा तो किसे दूंगा"

"चल बड़ा आया देने वाला, अब कच्ची वाली कैरियां तोड़ दे"

"जो मजा पके में है वो कच्ची में कहां"

"अच्छा तुझे कैसे पता?"

"अरे काकी पके आम को दबा दबाके चूसने में कितना मजा आता है"

"चल अब जल्दी कर मुझे देर हो रही है"

"काकी जल्दी का काम शैतान का होता है जो मजा धीरे–धीरे में है वो जल्दी में कहां"

"तू मेरा काम करता है या नहीं? वरना मैं चली जाती हूं"

"काकी मैं तो कबसे आपका काम करने के लिए तैयार हूं आप ही मुझे बातों में उलझा रही हो चलो इधर आओ"

"किसलिए?"

"अरे काकी मैं आपको ऊपर उठा देता हूं , आप अपनी मर्जी से कच्ची वाली कैरियां तोड़ लेना"

रागिनी काकी मेरे पास आती हैं और मैं उनकी गदराई कमर पकड़कर ऊपर उठा देता हूं ये तो सभ्या चाची से भी भारी थी।

"काकी बड़ी भारी हो गई हो"

"बस इतना ही दम है क्या, थोड़ी देर के लिए तो मुझे उठा नहीं सकता, बड़ा मर्द बनता फिरता है।"

मुझे मर्द वाली बात पर थोड़ा गुस्सा आ गया और मैंने दम लगाकर रागिनी काकी को ऊपर उठा दिया जिसके कारण उनकी चर्बीदार गांड़ मेरी आंखों के पास आ गई, रागिनी काकी कैरियां तोड़ने लगती हैं।

मुझसे अब रहा नहीं गया, मेरे मुंह में पानी आ जाता है और अचानक मैं अपने चेहरे को रागिनी काकी की चर्बीदार गांड़ की दरार में घुसा देता हूं, रागिनी काकी का जिस्म कांप उठता है जिससे उनके हाथ में आए कच्चे आम नीचे टपक जाते हैं लेकिन खुद को किसी तरह संभाल लेती हैं फिर से मैं अपनी नाक को रागिनी काकी की गांड़ के ठीक ऊपर लगाकर हल्के से उनकी गांड़ को अपने चेहरे पर दबा देता हूं।

"आह्ह्ह्ह क्या कर रहा है?"

अचानक मैं अपनी नाक को उनकी गांड़ की दरार से बाहर निकालता हूं तो मेरा हाथ उनकी मलाईदार कमर से फिसल जाता है और रागिनी काकी धड़ाम से नीचे गिर पड़ती हैं।

"हाय रे मां आह्ह्हह कितना दर्द हो रहा है, क्या कर रहा था?"

"दिखाओ मुझे कहां लगी है"

"अह्ह्ह दूर हट मूए, आह्ह्ह्ह् मां मर गई"

"अरे काकी मुझे देखने तो दो, कोई गहरी चोट तो नहीं लगी"

मैं रागिनी काकी के पंजे देखता हूं वहां सब कुछ ठीक था और फिर धीरे धीरे रागिनी काकी की साड़ी ऊपर करने लगता हूं।

"ये क्या कर रहा है बलराम"

"आप चुप बैठो, मुझे लगता है पिंडलियों पर चोट लगी है"

"हाय रे मैं मर गई आह"

मैं साड़ी को रागिनी काकी के पिंडलियों तक चढ़ा देता हूं पर मुझे ज्यादा अंदर तक देखने के लिए नही मिलता क्योंकि उन्होंने अपने हाथ से साड़ी पकड़ी हुई थी, मैं उनकी पिंडलियों की हल्की हल्की मालिश करने लगता हूं तभी रागिनी काकी की हल्की हल्की चिल्लाहट सिसकियां में बदल जाती है।

"हां बलराम बेटा वहीं दर्द हो रहा है"

इससे पहले मैं थोड़ा आगे बढ़ने की कोशिश करता, रागिनी काकी उठने लगती हैं लेकिन दर्द के मारे वापस से बैठ जाती है।

"काकी ऐसा करते हैं आपको मैं अपनी गोदी में उठाकर घर छोड़ देता हूं"

"नहीं मैं चली जाऊंगी"

इस बार मैं रागिनी काकी से कुछ पूछता नही हूं और फूल सी हल्की अपनी रागिनी काकी को अपनी मजबूत बाहों में उठा लेता हूं और गिरने के डर से रागिनी काकी अपने दोनो हाथों को मेरी गर्दन में डाल देती हैं। धूप बहुत तेज थी इसलिए गांव के लोग अपने घर में थे और रागिनी काकी को किसी के देखने का डर नही था।

मेरी उंगलियां रागिनी काकी की कमर पर थी और उन्हें भी नशा छाने लगता है उन्हे तो यकीन नही हो रहा था कि मैं बड़ी आसानी से उन्हें उठा ले रहा हूं।

"काकी आप तो बहुत हल्की हो , मुझे लगा था कि भारी होगी"

"अभी तो बोल रहा था कि मैं भारी हूं"

"अरे काकी तब मैंने आपको ठीक से लिया नहीं था"

रागिनी काकी मेरी छाती में मुक्का जड़ देती हैं और कुछ देर बाद हम घर पहुंच जाते हैं।

फिर रागिनी काकी मुस्कुरा कर मेरे हाथ से कच्ची कैरियों की थैली लेकर लंगड़ाती हुई अंदर जाने लगती हैं और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को देखने लगता हूं रागिनी काकी मुझे उनकी गांड़ को घूरते हुए देख लेती हैं लेकिन आज रागिनी काकी के चेहरे पर गुस्सा नहीं बल्कि बेहद कामुक मुस्कुराहट थी, उसके बाद मैं घर चल देता हूं।
Are e ka ho gaya pchale update padh ke laga ki chudai ke raaz khulega yaha to kata ke hi raj khul gaya

Phir bhi super update diya hai bhai 😘😘😘
 

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
साला खोदा पहाड और निकली चुहीया वाली कहावत हो गई बाजु वाले खेत में
कम्मो के पैर में लगा कांटा निकाल ने के चक्कर में कम्मो की फुली हुई बुर का दर्शन अपने हिरो बलराम को हो ही गया
ताईजी के आम के बगीचे में एक बार फिर रोहिनी और बलराम की मुलाखत हो गई कैरी तोडते समय चाची का गिरना अपने हिरो बलराम के लिये लाभदायक ही होगा
देखते हैं आगे
अगले धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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