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Naukar-Malkin premkahani aur chudai bahut hot.....अपडेट १
मुझे अपनी ताईजी के गांव आए कुछ दिन ही हुए थे, मैं पास के शहर में सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा था, सुबह १० बजे से दोपहर २ बजे तक मेरी कोचिंग होती थी, एक दिन मैं साइकिल से कोचिंग पहुंचा तो मैने देखा कि कोचिंग में रिन्यूवेशन का काम चल रहा है इसलिए कोचिंग अगले २ दिन के लिए बंद रहेगी। मैं साइकिल आगे बढ़ा देता हूं और ताईजी के घर की तरफ चल देता हूं, घर पहुंचकर साइकिल रोकता हूं और अपने कमरे में चला आता हूं फिर धोती पहनकर आंगन में आता हूं और खटिए पर बैठते हुए ताईजी को आवाज लगाकर कहता हूं कि ताईजी जल्दी से खाना लगाओ बहुत भूख लगी है। २ मिनट तक ताईजी के कमरे से कोई आवाज नहीं आती इसलिए मैं खटिए से उठकर ताईजी के कमरे की तरफ आता हूं, कमरे का दरवाजा खुला हुआ था पर अंदर कोई नही था फिर मैं रसोईघर की तरफ़ जाता हूं पर वहां भी कोई नही था।
फिर मैं बहुत आवाज लगाता हूं पर कोई जवाब नही देता, मुझे पता था कि इस समय भीमा भईया शीला भाभी के साथ अपने कपड़े एवं कॉस्मेटिक्स की दुकान पर होंगे और पीहू दीदी अपनी सहेलियों के साथ नदी किनारे घूमने गई होगी। मैं ताईजी को घर के आस पास बहुत खोजता हूं लेकिन ताईजी का कुछ अता पता नहीं था, फिर मैने सोचा कि कल्लू से पूछता हूं, कल्लू मेरी ताईजी के खेत में अपनी विधवा मां सभ्या के साथ काम करता है। मैं अपनी ताईजी के खेत में आ जाता हूं पर वहां मुझे कोई दिखाई नहीं देता लेकिन जैसे ही मैं वहां से आने लगता हूं तो मुझे कुछ आवाज सुनाई देती है जो ताईजी के गन्ने के खेत में बनी एक झोपड़ी में से आ रही थी।
मुझे झोपड़ी के अंदर से अजीब तरीके की आवाज आ रही थी, मैं आगे बढ़ता हूं और आवाज को सुनने को कोशिश करता हूं पर मुझे कुछ भी साफ सुनाई नही देता, झोपड़ी के अंदर कोई बहुत धीरे धीरे बातें कर रहा था, मैंने सोचा कि झोपड़ी के अंदर जाकर देखता हूं पर उसका फाटक अंदर से बंद था लेकिन मैं जानना चाहता था की आवाज के पीछे कौन है, मुझे बहुत बेचैनी हो रही थी और डर भी लग रहा था कि कहीं खेत में कोई चोर तो नही घुस गया, यहां पर मैं अकेला था इसलिए डर भी रहा था अगर कल्लू या सभ्या चाची होती तो भले ही नहीं डरता, डर से ज्यादा बेचैनी हो रही थी क्योंकि वह आवाज मुझे जानी–पहचानी लग रही थी।
मैं झोपड़ी के पीछे बनी खिड़की की तरफ गया तो देखा कि खिड़की भी अंदर से बंद थी पर खिड़की पुरानी थी इसलिए उसमें एक जगह छोटा सा छेद बना हुआ था, मैं छेद से झोपड़ी के अंदर देखने में कामयाब हो गया पर जैसे ही मैंने अंदर का नजारा देखा तो मेरे दिल ने धड़कना ही बंद कर दिया मैं गुमसुम सा हो गया क्योंकि मैं कुछ ऐसा देख रहा था जिसके बारे में मैं कभी सोच भी नही सकता था, झोपड़ी के अंदर ताईजी एक पुराने से खटिए पर आगे की ओर झुकी हुई थी उनके ब्लाउज के बटन खुले हुए थे और साड़ी के साथ साथ पेटीकोट उनकी पीठ तक चढ़ा हुआ था और पैंटी उनके घुटनों तक गिरी हुई थी।
झोपड़ी के अंदर बहुत अंधेरा था , मुझे ताईजी तो नजर आ रही थी पर ताईजी के साथ जो कोई भी थी उसको देखने में मुझे मुश्किल हो रही थी पर ताईजी की हालत देखकर मैं इतना तो समझ गया था कि ताईजी अंदर चुद रही है, वह इंसान ताईजी के पीछे खड़ा था और अपने लन्ड को ताईजी के गांड में डालकर अंदर बाहर कर रहा था, मैंने देखा की उसका लन्ड बहुत लंबा था लेकिन पतला था फिर भी उसके लन्ड ने मेरी ताईजी की गांड को फाड़कर रखा हुआ था, और ताईजी उस इंसान को और तेज झटके मारने को बोल रही थी, आआआह्ह्ह्ह उह्ह्ह्ह्ह उम्मम्म हां मेरे राजा ऐसे ही चोदो डाल दो अपना पूरा लन्ड मेरी गान्ड में,,,, मैं देखकर बहुत हैरान था कि इतना बड़ा लन्ड ताईजी की गांड में घुसा हुआ है फिर भी ताईजी और तेज झटके मारने को बोल रही है।
कुछ देर बाद उसने अपना लन्ड गांड से बाहर निकाला और ताईजी के मुंह के पास लेकर आ गया और ताईजी उसके लन्ड को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी, मैं तो बहुत हैरान था कि इतना बड़ा लन्ड ताईजी ने बड़ी आसानी से अपने मुंह में भर लिया और बड़े आराम से चूसे जा रही थी, फिर २ मिनट चूसने के बाद ताईजी ने लन्ड को अपने मुंह से बाहर निकाल दिया और तभी उस इंसान ने दुबारा से अपना लन्ड ताईजी की गांड में घुसेड़ दिया, उसने एक झटके में अपना लन्ड ताईजी की गांड में उतार दिया जिससे ताईजी की चिल्ला पड़ी आआआह्ह्ह्ह लेकिन ताईजी इतने धीरे से चिल्लाई थी कि उनकी आवाज ज्यादा दूर तक नही गई बस मुझे ही सुनाई पड़ी, वह बहुत तेज झटकों के साथ ताईजी की गांड में अपना लन्ड सूत रहा था और ताईजी आह उह करते हुए मजा ले रही थी फिर उसने अपने हाथ आगे बढ़ाकर ताईजी की बड़ी बड़ी चूचियों पर रखे और उन्हें दबाना और मसलना शुरू किया और पकड़ मजबूत करके लन्ड को गांड में बहुत जोर जोर से पेलने लगा।
आह्ह्ह्ह उह्ह्ह ऐसी ही आह्ह्ह्ह्ह मेरे राजा ऐसी ही चोदो अपनी रानी को आह्ह्ह्ह्ह फाड़कर रख दो मेरी गांड को आआआह्ह्ह्हह हां ऐसी ही दम लगाकर चोदो,,,, मैं पहली बार अपनी ताईजी के मुंह से ऐसी बातें सुन रहा था, मैं हैरान था कि जो औरत इतनी भोली भाली दिखती है चूदाई के दौरान ऐसी गंदी बातें भी बोल सकती है, आज पहली बार मैंने अपनी ताईजी को नंगी देखा था, ताईजी पूरे तरह से नंगी तो नही थी पर लगभग नंगी ही थी, ताईजी का गोरा नंगा जिस्म देखकर मुझे कुछ कुछ होने लगा, मेरी ताईजी के खरबूजे के आकार के बूब्स हवा में लटक रहे थे और हर एक झटके के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे, पीछे से वह मेरी ताईजी की चूचियों की जानवरों की तरह मसल भी रहा था और कभी चूचियों को छोड़कर ताईजी की मोटी गांड पर पकड़ बनाकर तेज तेज झटके भी लगा रहा था, ताईजी की हालत बहुत खराब हो चुकी है पर उनके चेहरे से ऐसा लग रहा था कि उन्हें बहुत मजा आ रहा है, मेरी हालत भी ताईजी को देखकर बिगड़ने लगी थी मेरा हाथ अचानक अपने लन्ड पर चला गया , मैंने धोती में से अपना लन्ड बाहर निकाला जो पहले से ही अपनी औकात में सर उठाकर खड़ा हुआ था।
पता नही क्यों मैं अपने लन्ड की तुलना उस इंसान के लन्ड से करने लगा जो मेरी ताईजी जो चोद रहा था, मेरे लन्ड की लंबाई उसके लन्ड से थोड़ी बड़ी थी पर मेरा लन्ड उसके लन्ड से मोटा बहुत था, मैने अपने लन्ड को हाथ में लेकर मुठियाने लगा, उधर ताईजी उसके लन्ड से चूद रही थी और इधर मैं अपनी ताईजी की बड़ी बड़ी चूचियों को देखकर मुठ्ठी मारने लगा , मुठ मारते वक्त मुझे ताईजी कुछ ज्यादा ही कामुक लग रही थी, मैं सोचने लगा कि काश उस इंसान की जगह मैं ताईजी की गांड अपने लन्ड से मार रहा होता, उधर उस इंसान ने बहुत तेज तेज ताईजी की गांड मारना शुरू कर दिया और इधर मेरा हाथ मेरे लन्ड पर तेज रफ्तार से दौड़ने लगा।
ताईजी की सिसकियां भी तेज होने लगी पर ताईजी अपनी आवाज ज्यादा ऊंची नही कर रही थी , वह इस बात का ख्याल रख रही थी कि झोपड़ी से बाहर आवाज नहीं जाए, करीब 10–12 मिनट बाद उस इंसान की सांस उखड़ने लगी और ताईजी की सासें भी उखड़ रही थी और मेरी भी दिल की धड़कन बहुत तेज हो गई थी और मेरा हाथ बहुत रफ्तार में मेरे लन्ड पर चल रहा था। कुछ ही देर में उस इंसान में एक तेज आवाज के साथ वीर्य छोड़ दिया, ताईजी की गांड को अपने वीर्य से भर दिया और उसके साथ साथ ताईजी भी झड़ गई और मैंने भी झोपड़ी के ऊपर अपने लन्ड की पिचकारी छोड़ दी, वह इंसान अपना लन्ड बिना गांड से बाहर निकाले ही ताईजी की पीठ पर आहें भरता रहा और करीब 2 मिनट बाद अपना लन्ड गांड से बाहर निकाला तो ताईजी की गांड से बहुत सारा कामरस टपकने लगा, वह अपने लन्ड को ताईजी के मुंह के पास ले गया और ताईजी ने उसके लन्ड को चाटकर साफ़ कर दिया, और मैंने अपना लन्ड धोती के अंदर कर लिया। कुछ देर बाद ताईजी अपनी साड़ी ठीक करने लगी और वह इंसान भी अपनी धोती पहन लिया।
मुझे पता था अब दोनो किसी भी वक्त बाहर आने वाले हैं, इसलिए मैं झोपड़ी से हटकर थोड़ा दूर गन्ने के खेत में चुप गया और झोपड़ी के फाटक की तरफ देखने लगा, 2 मिनट बाद झोपड़ी का फाटक खुला और ताईजी बाहर निकालकर इधर उधर देखने लगी कि कोई है तो नही, फिर धीरे से घर की तरफ चली गई पर वह इंसान अभी भी झोपड़ी से बाहर नहीं निकला, मैं 5–10 मिनट इंतजार किया फिर भी वह इंसान बाहर नहीं आया इसलिए हिम्मत करके मैंने सोचा कि देखता हूं झोपड़ी में आखिर कौन है? मैं चुपचाप झोपड़ी के फाटक के पास पहुंचकर अंदर देखने लगा, झोपड़ी के अंदर देखकर मैं दंग रह गया, अंदर मेरी ताईजी के खेत में काम करने वाला मजदूर कल्लू था, मैं दंग रह गया कि मेरी ताईजी के खेत में काम करने वाला नौकर कल्लू अपनी मालकिन को चोद रहा था।
कुछ देर मैं ऐसे ही बेसुध खड़ा रहा, फिर जैसे ही मैं वहां से जाने को हुआ तो कल्लू में मुझे देख लिया,
"आप कब आए बाबूजी"
कल्लू मेरे उम्र का था लेकिन था तो एक नौकर ही इसलिए मुझे बाबूजी कहकर बोलता था।
"मैं वो, मैं अभी आया हूं, मुझे भूख लगी थी इसलिए ताईजी को ढूंढते हुए आ गया, ताईजी कहां है? और सभ्या चाची भी कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं।"
"मालकिन तो अभी घर के तरफ ही गई हैं और अम्मा तो कपड़े धुलने के लिए नदी किनारे गई हैं।,"
"ठीक है मैं भी अब घर जाता हूं।" ऐसा कहकर मैं घर के तरफ चल दिया।
Kyun nahi? Naukar se Malkin ki chudai jyada exciting hoti hai.......Nice update..!!
Apne hero ke hote huye yeh tayji iss majdoor se chud rahi hai..!!
Oh superb! Shahnaaz-ko iss kahini mein jurkar aur bhi hot ho gayi....... uss family ka iss kahani mein aur role hoga to achcha hoga......आप सभी ने इतने प्यार भरे कमेंट्स किए मैंने सोचा भी नही था, ऐसे ही अपनी प्रतिक्रिया देते रहिए।
अपडेट पोस्ट कर दिया है , आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
अपडेट १९
मेरा दिल बहुत तेज धक–धक कर रहा था, मैंने ध्यान से देखा तो पता चला कि वह आवाज हरिया के सब्जियों के खेत से आ रही थी, लेकिन तभी "आह्ह्ह्ह्ह मर गई मां बहुत दर्द हो रहा है" सुनते ही मेरे लन्ड में खून दौड़ गया क्योंकि इस आवाज के पीछे जो कोई भी थी उसकी आवाज को मैं पहचान गया था यह कम्मो दीदी की आवाज थी, फिर मै झाड़ियों के पीछे से आगे बढ़कर देखने लगा लेकिन खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाली बात थी कम्मो दीदी के पैर में कांटा लगा हुआ था और वह दर्द के मारे चिल्ला रही थी।
"अरे कम्मो दीदी क्या हुआ? ताईजी के खेत तक आपकी आवाज आ रही है"
"मुन्ना कांटा लग गया आआआह्हह्ह"
"लाओ मैं देखता हूं" कहकर कम्मो दीदी का पैर उठाकर देखने लगता हूं
लेकिन मैं जैसे ही कम्मो दीदी का पैर उठाता हूं तो उनका घागरा घुटने से पीछे सरक जाता है और मुझे उनकी फूली हुई बिना झांटों वाली काली चूत नजर आ जाती है, साली ने अंदर पैंटी तक पहनी नहीं थी।
"क्या हुआ मुन्ना कितनी देर लगाएगा तुझसे एक कांटा तक नहीं निकाला जा रहा है"
"अरे दीदी पैर न हिलाओ, कांटा बहुत अंदर तक घुसा है"
कम्मो दीदी आंखें बंद करके आह्ह्ह उह्ह्ह्ह कर रही थी तभी मैंने कम्मो दीदी की टांगों को थोड़ा चौड़ा कर दिया और मुझे उनकी चूत की फटी हुई फांक नजर आने लगी, मेरा दिल तो किया कि अभी धोती में से अपना लन्ड बाहर करके इसकी चूत में पेल दूं लेकिन मैं जल्दीबाजी करके खुद के पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहता था, कुछ देर बाद मैंने कांटा निकाल दिया।
फिर कम्मो दीदी उठकर लगड़ाते हुए बैंगन और टमाटर लेकर जाने लगी और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को ताड़कर सोचा कि आज नहीं तो कल इसकी गांड़ ठोककर रहूंगा, उसके बाद मैं ताईजी के आम के बगीचे में वापस आ गया तो मैंने देखा कि रागिनी काकी एक लकड़ी से कच्ची कैरियां तोड़ने की कोशिश कर रही हैं।
"ऐसे नहीं टूटेंगे काकी" मैं रागिनी काकी को ऊपर से नीचे तक ताड़ते हुए बोला
"तू यहां क्या कर रहा है?"
"उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, बल्कि मुझे पूछना चाहिए कि आप मेरी ताईजी के खेत में क्या कर रही हो"
"मैं तो यहां कच्ची कैरियां तोड़ने आई थी तू किसलिए आया है?"
"मेरी ताईजी का बगीचा है घूमने आया हूं आजकल बगीचे से आम बहुत चोरी हो रहे हैं"
"चल अब बातें मत बना, मुझे कुछ कच्ची कैरियां तोड़ दे"
"साली खुद तो पका पकाया आम है"
"क्या? नहीं तोड़ना हो तो बता दे मैं खुद तोड़ लूंगी"
"अरे नहीं काकी आपको नहीं दूंगा तो किसे दूंगा"
"चल बड़ा आया देने वाला, अब कच्ची वाली कैरियां तोड़ दे"
"जो मजा पके में है वो कच्ची में कहां"
"अच्छा तुझे कैसे पता?"
"अरे काकी पके आम को दबा दबाके चूसने में कितना मजा आता है"
"चल अब जल्दी कर मुझे देर हो रही है"
"काकी जल्दी का काम शैतान का होता है जो मजा धीरे–धीरे में है वो जल्दी में कहां"
"तू मेरा काम करता है या नहीं? वरना मैं चली जाती हूं"
"काकी मैं तो कबसे आपका काम करने के लिए तैयार हूं आप ही मुझे बातों में उलझा रही हो चलो इधर आओ"
"किसलिए?"
"अरे काकी मैं आपको ऊपर उठा देता हूं , आप अपनी मर्जी से कच्ची वाली कैरियां तोड़ लेना"
रागिनी काकी मेरे पास आती हैं और मैं उनकी गदराई कमर पकड़कर ऊपर उठा देता हूं ये तो सभ्या चाची से भी भारी थी।
"काकी बड़ी भारी हो गई हो"
"बस इतना ही दम है क्या, थोड़ी देर के लिए तो मुझे उठा नहीं सकता, बड़ा मर्द बनता फिरता है।"
मुझे मर्द वाली बात पर थोड़ा गुस्सा आ गया और मैंने दम लगाकर रागिनी काकी को ऊपर उठा दिया जिसके कारण उनकी चर्बीदार गांड़ मेरी आंखों के पास आ गई, रागिनी काकी कैरियां तोड़ने लगती हैं।
मुझसे अब रहा नहीं गया, मेरे मुंह में पानी आ जाता है और अचानक मैं अपने चेहरे को रागिनी काकी की चर्बीदार गांड़ की दरार में घुसा देता हूं, रागिनी काकी का जिस्म कांप उठता है जिससे उनके हाथ में आए कच्चे आम नीचे टपक जाते हैं लेकिन खुद को किसी तरह संभाल लेती हैं फिर से मैं अपनी नाक को रागिनी काकी की गांड़ के ठीक ऊपर लगाकर हल्के से उनकी गांड़ को अपने चेहरे पर दबा देता हूं।
"आह्ह्ह्ह क्या कर रहा है?"
अचानक मैं अपनी नाक को उनकी गांड़ की दरार से बाहर निकालता हूं तो मेरा हाथ उनकी मलाईदार कमर से फिसल जाता है और रागिनी काकी धड़ाम से नीचे गिर पड़ती हैं।
"हाय रे मां आह्ह्हह कितना दर्द हो रहा है, क्या कर रहा था?"
"दिखाओ मुझे कहां लगी है"
"अह्ह्ह दूर हट मूए, आह्ह्ह्ह् मां मर गई"
"अरे काकी मुझे देखने तो दो, कोई गहरी चोट तो नहीं लगी"
मैं रागिनी काकी के पंजे देखता हूं वहां सब कुछ ठीक था और फिर धीरे धीरे रागिनी काकी की साड़ी ऊपर करने लगता हूं।
"ये क्या कर रहा है बलराम"
"आप चुप बैठो, मुझे लगता है पिंडलियों पर चोट लगी है"
"हाय रे मैं मर गई आह"
मैं साड़ी को रागिनी काकी के पिंडलियों तक चढ़ा देता हूं पर मुझे ज्यादा अंदर तक देखने के लिए नही मिलता क्योंकि उन्होंने अपने हाथ से साड़ी पकड़ी हुई थी, मैं उनकी पिंडलियों की हल्की हल्की मालिश करने लगता हूं तभी रागिनी काकी की हल्की हल्की चिल्लाहट सिसकियां में बदल जाती है।
"हां बलराम बेटा वहीं दर्द हो रहा है"
इससे पहले मैं थोड़ा आगे बढ़ने की कोशिश करता, रागिनी काकी उठने लगती हैं लेकिन दर्द के मारे वापस से बैठ जाती है।
"काकी ऐसा करते हैं आपको मैं अपनी गोदी में उठाकर घर छोड़ देता हूं"
"नहीं मैं चली जाऊंगी"
इस बार मैं रागिनी काकी से कुछ पूछता नही हूं और फूल सी हल्की अपनी रागिनी काकी को अपनी मजबूत बाहों में उठा लेता हूं और गिरने के डर से रागिनी काकी अपने दोनो हाथों को मेरी गर्दन में डाल देती हैं। धूप बहुत तेज थी इसलिए गांव के लोग अपने घर में थे और रागिनी काकी को किसी के देखने का डर नही था।
मेरी उंगलियां रागिनी काकी की कमर पर थी और उन्हें भी नशा छाने लगता है उन्हे तो यकीन नही हो रहा था कि मैं बड़ी आसानी से उन्हें उठा ले रहा हूं।
"काकी आप तो बहुत हल्की हो , मुझे लगा था कि भारी होगी"
"अभी तो बोल रहा था कि मैं भारी हूं"
"अरे काकी तब मैंने आपको ठीक से लिया नहीं था"
रागिनी काकी मेरी छाती में मुक्का जड़ देती हैं और कुछ देर बाद हम घर पहुंच जाते हैं।
फिर रागिनी काकी मुस्कुरा कर मेरे हाथ से कच्ची कैरियों की थैली लेकर लंगड़ाती हुई अंदर जाने लगती हैं और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को देखने लगता हूं रागिनी काकी मुझे उनकी गांड़ को घूरते हुए देख लेती हैं लेकिन आज रागिनी काकी के चेहरे पर गुस्सा नहीं बल्कि बेहद कामुक मुस्कुराहट थी, उसके बाद मैं घर चल देता हूं।