Office and Stressful life
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Take care of yourself and your family
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nice updateअपडेट १८
अगले दिन मैं सुबह 9 बजे उठा और रात की घटना के बारे में याद करने लगा, मुझे अभी भी यकीन नही हो रहा था कि हरिया ताऊजी का सौतेला भाई है और कल्लू की मां सभ्या ताईजी की सौतन है और रेखा मौसी ताईजी की सगी बहन है, अब मुझे सब कुछ पता करना था कि आखिर चल क्या रहा है और मुझसे इस घर के कौन से राज़ छुपाए जा रहे हैं लेकिन इसके लिए मुझे हरिया और कल्लू से दोस्ती करनी पड़ेगी तभी मुझे कुछ पता चलेगा या फिर सभ्या चाची और रेखा मौसी से बात करनी पड़ेगी लेकिन मुझे नहीं लगता कि उनसे बात करना अभी ठीक रहेगा, हां कम्मो दीदी शायद मुझे कुछ बता सकती हैं क्योंकि वह बचपन में मेरे बहुत करीब रही हैं, कम्मो दीदी को पटाकर कुछ बात बन सकती है मुझे लगता है कि मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूं, ये बड़के दादा और ताऊजी बहुत कांड करके गए हैं ताईजी ने मुझे कसम देकर बांध दिया है नहीं तो मैं ताईजी का विश्वास जीतकर उन्हें मजबूर कर देता।
ताईजी रसोई में काम कर रही थी और हल्की आवाज में गाने भी गुनगुना रही थी मैं समझ गया कि आज ताईजी बहुत खुश हैं रात में धमाकेदार चूदाई जो हुई थी। भीमा भईया और शीला भाभी दुकान पर जा चुके थे और पीहू दीदी भी घर पर नहीं थी, कुछ देर बाद मैं उठकर घर के पिछवाड़े में मूतने चला गया और फिर वहीं थोड़ी देर कसरत करने के बाद मैं आंगन में जाकर चारपाई पर बैठ गया, मुझे बहुत पसीना आ रहा था, मैं शरीर ठंडा करके नहाने जाने वाला था कि ताईजी रसोईघर से बाहर निकलकर मेरे पास आती हैं।
"लल्ला कितनी मेहनत करता है रे तू" ताईजी अपने पल्लू से मेरा पसीना पोछते हुए बोली
"अरे ताईजी ये तो कुछ नहीं है, जब मैं अपने गांव में था तो बापू के साथ सुबह २ घंटे कसरत करता था"
"हां रे तभी तो तू इतना हट्टा कट्टा है" ताईजी मेरे बाजुओं और छाती पर हाथ फेरते हुए बोली
"ताईजी कसरत करने से कुछ नहीं होता अगर शरीर को पौष्टिक आहार न मिल पाए, इसका श्रेय तो मेरी प्यारी मां और ताईजी को जाता है क्योंकि असली मेहनत तो पौष्टिक भोजन बनाकर आप लोग करती हैं"
"लल्ला तेरी लुगाई तूझसे बड़ा खुश रहा करेगी नहीं तो आजकल के नौजवान कहां अपने शरीर पर ध्यान देते हैं बस पैसे कमाने में लगे रहते हैं"
मैं लुगाई वाली बात पर थोड़ा शर्मा जाता हूं
"ताईजी मैं नहाने जा रहा हूं नहीं तो कोचिंग के लिए देर हो जाएगी"
"आज तुम कोचिंग नहीं जाओगे" कहकर ताईजी मुस्कुराती हुई अपने कमरे में चली जाती हैं
मैंने भी फिर कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं समझ गया था कि ताईजी क्या चाहती हैं उन्हें फिर से मस्ती चढ़ गई थी।
कुछ देर बाद मै गुसलखाने में नहाने चला गया, मैं अपनी धोती उतार के किवाड़ पर टांग ही रहा था कि मुझे ताईजी गुसलखाने के बाहर खड़ी दिखाई दी, उन्होंने अपनी कमर में चाभी का गुच्छा ठूंस रखा था ये चाभी घर के फाटक की थी मतलब ताईजी ने घर के फाटक को लॉक कर दिया था, फिर ताईजी गुसलखाने के अंदर आ गई और साड़ी के साथ साथ ब्लाउज और पेटीकोट को उतार के नंगी हो गई और उन्होंने गुसलखाने में लगा छोटा सा झरना चालू किया और फिर उसके नीचे जाकर खड़ी हो गई तो मैं भी ताईजी के साथ झरने के नीचे खड़ा हो गया, हम पानी के नीचे गीले हो चुके थे।
तभी ताईजी ने मेरी आंखों में देखते हुए मुझे कसके अपनी बाहों में जकड़ कर मेरी गर्दन पर चूमने लगी, आज ताईजी के चूमने का अंदाज बड़ा ही निराला था, मैंने भी ताईजी के चुम्बन का जवाब अलग तरीके से दिया, मैंने उनकी चौड़ी उभारदार गांड़ को अपने हथेलियों में भरकर दबोच लिया और उनकी गर्दन पर चूमने लगा, ताईजी का कद ठीक मेरे कंधे तक था इसलिए वह अपने पैर की उंगिलियों के सहारे से उचक के मुझे चूम रही थी और मेरा लन्ड तनकर हथौड़ा बन चुका था जो ताईजी की नाभी पर टकरा रहा था
"ताईजी इसका कुछ कीजिए ना, इसमें बहुत दर्द हो रहा है" मैंने अपने लन्ड की ओर इशारा करते हुए बोला
फिर ताईजी अपने उल्टे हाथ में मेरा लन्ड पकड़कर मुठ्ठी मारने लगी, मेरे लिए यह एक नया एहसास था मेरी आंखें खुद बंद होने लगी थीं।
"बाप रे कितना फौलादी लन्ड है, मेरी कलाई से भी मोटा है"
फिर ताईजी नीचे अपने घुटनों के बल बैठ गई और मेरे लन्ड को अपनी दोनों हाथों में जकड़कर मुठ्ठी मारने लगी, मैं समझ गया था कि अब क्या होने वाला है, तभी ताईजी ने जैसे ही मेरा काला लन्ड का चमड़ा पीछे किया तो मेरा गुलाबी सुपाड़ा बाहर आ गया और फिर ताईजी ने उस पर चुम्बन दिया, मेरे सुपाड़े पर ताईजी के नरम–नरम होंठ जैसे ही पड़े तो मैं उछल पड़ा और तभी ताईजी ने मेरे सुपाड़े को मुंह में भर लिया और उसे चूसने लगी, मैं तो जैसे एक पल के लिए जमीन से उठकर आसमान की सैर पर चला गया था, ताईजी मेरे लन्ड के गुलाबी सुपाड़े को मुंह में लेकर चूस रही थी, उन्होंने खूब सारा थूक मेरे लन्ड पर लगा दिया था और अपने दोनो हाथों से मेरे लन्ड को मसल रही थी और इसके साथ बारी–बारी मेरे आंडों को मुंह में भरके चूस रही थी,
फिर ताईजी ने दोबारा से मेरा लन्ड अपने मुंह में भर लिया और अपने दोनों हाथ को मेरे पेट पर रख के मेरे लन्ड अपने मुंह में लेकर चूसने लगी, कुछ देर बाद ताईजी ने मेरे पेट पर से अपने हाथ हटाकर मेरी गांड़ पर रख दिया और मेरे लन्ड को अपने गले के अंदर तक लेकर चूसने लगी, १०–१२ मिनट तक ऐसे ही ताईजी ने मेरे लन्ड को चूसा, उसके बाद उन्होंने अपने हाथ को मेरी गांड़ पर से हटा लिया तो मैं अपनी गांड़ को आगे पीछे करके उनका मुंह चोदना लगा, मैं अपने लन्ड को ताईजी के मुंह के अंदर तक घुसेड़–घुसेड़कर चोद रहा था, ताईजी का मुंह थूक से भरा हुआ था और थोड़ा बहुत थूक उनके मुंह से बाहर निकलकर चेहरे से लटक रहा था, ताईजी के मुंह इतना थूक था की मेरा लन्ड फिसल–फिसलकर और ज्यादा ताईजी के मुंह में जाने लगा था, १०–१२ मिनट तक ऐसे ही मैं ताईजी का मुंह चोदता रहा, उसके बाद मुझे लगा कि मैं झड़ने वाला हूं।
इसलिए मैंने अपने लन्ड को ताईजी के मुंह से बाहर निकाल लिया लेकिन ताईजी किसी भूखी शेरनी की तरह मेरे लन्ड को लपक कर अपने मुंह में भर लिया और मेरी गांड़ पर हाथ रख के दोबारा से मुंह चोदने का इशारा किया, मैं तो अब झड़ने वाला था इसलिए मैं लगातार ताबड़तोड़ धक्के ताईजी के मुंह में मारना शुरू कर दिया और कुछ देर बाद आआआह्हह करके अपना सारा वीर्य ताईजी के मुंह में भर दिया, जैसे–जैसे मैं अपने लन्ड से पिचकारी मारता रहा वैसे–वैसे ताईजी मेरे लन्ड का रस गटागट पीती रही, लन्ड का सारा रस निचोड़ने के बाद भी ताईजी ने मेरे लन्ड को अपने मुंह से बाहर नहीं किया जब तक उसकी आखिरी बूंद नहीं निकल गई।
फिर ताईजी पानी के झरने के नीचे से हट गई और अपने ब्लाउज और पेटीकोट को उठाकर गुसलखाने से चली गई, कुछ देर बाद मै नहा लिया और धोती पहन के आंगन में आ गया, मैंने देखा कि ताईजी रसोईघर में हैं उन्होंने सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट पहना था।
"भूख लग रही है ताईजी" मैं पीछे से ताईजी को अपनी बाहों में जकड़ते हुए बोला
"पनीर के परांठे बने हैं चटाई पर बैठ मैं अभी लाती हूं" ताईजी अपनी गांड़ को मेरे लन्ड पर रगड़ते हुए बोली
"ये वाली भूख नहीं, ये वाली भूख ताईजी" मैं अपने उल्टे हाथ को ताईजी के पेटीकोट के ऊपर से उनकी चूत पर रखते हुए बोला
"अभी नहीं लल्ला मुझे दोपहर का खाना भी बनाना है" मेरे गाल पर हल्के से थप्पड़ मारती हुई बोली
"ठीक है तो जब तक के लिए मैं खेत में घूम आता हूं"
फिर मैंने पनीर के छह परांठे पेले और मस्त लस्सी पीके आम के बगीचे में आ गया, मैंने पंपहाउस से चारपाई बाहर निकाली और मस्त पेड़ की छांव में लगाकर लेट गया, आम के बगीचे में सन्नाटा छाया हुआ था, उसमें चिड़ियों की हल्की हल्की मधुर आवाज कान को सूकून दे रही थी लेकिन अचानक मुझे अजीब सी आवाज सुनाई दी जो शायद किसी के सिसकियों की था, मुझे लगा कि मेरे दिमाग का वहम है लेकिन तभी मुझे फिर से हल्की हल्की किसी के सिसकियो की आवाज आई, मैं झटके से चारपाई से उठा और इधर उधर देखने लगा, आम के बगीचे में कोई नहीं था, मैंने आवाज को ध्यान से सुना तो पता चला कि आवाज ताईजी के आम के बगीचे से नहीं बल्कि किसी और के खेत से आ रही है चूंकि वहां इतना ज्यादा सन्नाटा था इसलिए मुझे इतनी दूर से आ रही आवाज भी हल्की हल्की सुनाई दे रही थी।
nice updateअपडेट १८
अगले दिन मैं सुबह 9 बजे उठा और रात की घटना के बारे में याद करने लगा, मुझे अभी भी यकीन नही हो रहा था कि हरिया ताऊजी का सौतेला भाई है और कल्लू की मां सभ्या ताईजी की सौतन है और रेखा मौसी ताईजी की सगी बहन है, अब मुझे सब कुछ पता करना था कि आखिर चल क्या रहा है और मुझसे इस घर के कौन से राज़ छुपाए जा रहे हैं लेकिन इसके लिए मुझे हरिया और कल्लू से दोस्ती करनी पड़ेगी तभी मुझे कुछ पता चलेगा या फिर सभ्या चाची और रेखा मौसी से बात करनी पड़ेगी लेकिन मुझे नहीं लगता कि उनसे बात करना अभी ठीक रहेगा, हां कम्मो दीदी शायद मुझे कुछ बता सकती हैं क्योंकि वह बचपन में मेरे बहुत करीब रही हैं, कम्मो दीदी को पटाकर कुछ बात बन सकती है मुझे लगता है कि मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूं, ये बड़के दादा और ताऊजी बहुत कांड करके गए हैं ताईजी ने मुझे कसम देकर बांध दिया है नहीं तो मैं ताईजी का विश्वास जीतकर उन्हें मजबूर कर देता।
ताईजी रसोई में काम कर रही थी और हल्की आवाज में गाने भी गुनगुना रही थी मैं समझ गया कि आज ताईजी बहुत खुश हैं रात में धमाकेदार चूदाई जो हुई थी। भीमा भईया और शीला भाभी दुकान पर जा चुके थे और पीहू दीदी भी घर पर नहीं थी, कुछ देर बाद मैं उठकर घर के पिछवाड़े में मूतने चला गया और फिर वहीं थोड़ी देर कसरत करने के बाद मैं आंगन में जाकर चारपाई पर बैठ गया, मुझे बहुत पसीना आ रहा था, मैं शरीर ठंडा करके नहाने जाने वाला था कि ताईजी रसोईघर से बाहर निकलकर मेरे पास आती हैं।
"लल्ला कितनी मेहनत करता है रे तू" ताईजी अपने पल्लू से मेरा पसीना पोछते हुए बोली
"अरे ताईजी ये तो कुछ नहीं है, जब मैं अपने गांव में था तो बापू के साथ सुबह २ घंटे कसरत करता था"
"हां रे तभी तो तू इतना हट्टा कट्टा है" ताईजी मेरे बाजुओं और छाती पर हाथ फेरते हुए बोली
"ताईजी कसरत करने से कुछ नहीं होता अगर शरीर को पौष्टिक आहार न मिल पाए, इसका श्रेय तो मेरी प्यारी मां और ताईजी को जाता है क्योंकि असली मेहनत तो पौष्टिक भोजन बनाकर आप लोग करती हैं"
"लल्ला तेरी लुगाई तूझसे बड़ा खुश रहा करेगी नहीं तो आजकल के नौजवान कहां अपने शरीर पर ध्यान देते हैं बस पैसे कमाने में लगे रहते हैं"
मैं लुगाई वाली बात पर थोड़ा शर्मा जाता हूं
"ताईजी मैं नहाने जा रहा हूं नहीं तो कोचिंग के लिए देर हो जाएगी"
"आज तुम कोचिंग नहीं जाओगे" कहकर ताईजी मुस्कुराती हुई अपने कमरे में चली जाती हैं
मैंने भी फिर कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं समझ गया था कि ताईजी क्या चाहती हैं उन्हें फिर से मस्ती चढ़ गई थी।
कुछ देर बाद मै गुसलखाने में नहाने चला गया, मैं अपनी धोती उतार के किवाड़ पर टांग ही रहा था कि मुझे ताईजी गुसलखाने के बाहर खड़ी दिखाई दी, उन्होंने अपनी कमर में चाभी का गुच्छा ठूंस रखा था ये चाभी घर के फाटक की थी मतलब ताईजी ने घर के फाटक को लॉक कर दिया था, फिर ताईजी गुसलखाने के अंदर आ गई और साड़ी के साथ साथ ब्लाउज और पेटीकोट को उतार के नंगी हो गई और उन्होंने गुसलखाने में लगा छोटा सा झरना चालू किया और फिर उसके नीचे जाकर खड़ी हो गई तो मैं भी ताईजी के साथ झरने के नीचे खड़ा हो गया, हम पानी के नीचे गीले हो चुके थे।
तभी ताईजी ने मेरी आंखों में देखते हुए मुझे कसके अपनी बाहों में जकड़ कर मेरी गर्दन पर चूमने लगी, आज ताईजी के चूमने का अंदाज बड़ा ही निराला था, मैंने भी ताईजी के चुम्बन का जवाब अलग तरीके से दिया, मैंने उनकी चौड़ी उभारदार गांड़ को अपने हथेलियों में भरकर दबोच लिया और उनकी गर्दन पर चूमने लगा, ताईजी का कद ठीक मेरे कंधे तक था इसलिए वह अपने पैर की उंगिलियों के सहारे से उचक के मुझे चूम रही थी और मेरा लन्ड तनकर हथौड़ा बन चुका था जो ताईजी की नाभी पर टकरा रहा था
"ताईजी इसका कुछ कीजिए ना, इसमें बहुत दर्द हो रहा है" मैंने अपने लन्ड की ओर इशारा करते हुए बोला
फिर ताईजी अपने उल्टे हाथ में मेरा लन्ड पकड़कर मुठ्ठी मारने लगी, मेरे लिए यह एक नया एहसास था मेरी आंखें खुद बंद होने लगी थीं।
"बाप रे कितना फौलादी लन्ड है, मेरी कलाई से भी मोटा है"
फिर ताईजी नीचे अपने घुटनों के बल बैठ गई और मेरे लन्ड को अपनी दोनों हाथों में जकड़कर मुठ्ठी मारने लगी, मैं समझ गया था कि अब क्या होने वाला है, तभी ताईजी ने जैसे ही मेरा काला लन्ड का चमड़ा पीछे किया तो मेरा गुलाबी सुपाड़ा बाहर आ गया और फिर ताईजी ने उस पर चुम्बन दिया, मेरे सुपाड़े पर ताईजी के नरम–नरम होंठ जैसे ही पड़े तो मैं उछल पड़ा और तभी ताईजी ने मेरे सुपाड़े को मुंह में भर लिया और उसे चूसने लगी, मैं तो जैसे एक पल के लिए जमीन से उठकर आसमान की सैर पर चला गया था, ताईजी मेरे लन्ड के गुलाबी सुपाड़े को मुंह में लेकर चूस रही थी, उन्होंने खूब सारा थूक मेरे लन्ड पर लगा दिया था और अपने दोनो हाथों से मेरे लन्ड को मसल रही थी और इसके साथ बारी–बारी मेरे आंडों को मुंह में भरके चूस रही थी,
फिर ताईजी ने दोबारा से मेरा लन्ड अपने मुंह में भर लिया और अपने दोनों हाथ को मेरे पेट पर रख के मेरे लन्ड अपने मुंह में लेकर चूसने लगी, कुछ देर बाद ताईजी ने मेरे पेट पर से अपने हाथ हटाकर मेरी गांड़ पर रख दिया और मेरे लन्ड को अपने गले के अंदर तक लेकर चूसने लगी, १०–१२ मिनट तक ऐसे ही ताईजी ने मेरे लन्ड को चूसा, उसके बाद उन्होंने अपने हाथ को मेरी गांड़ पर से हटा लिया तो मैं अपनी गांड़ को आगे पीछे करके उनका मुंह चोदना लगा, मैं अपने लन्ड को ताईजी के मुंह के अंदर तक घुसेड़–घुसेड़कर चोद रहा था, ताईजी का मुंह थूक से भरा हुआ था और थोड़ा बहुत थूक उनके मुंह से बाहर निकलकर चेहरे से लटक रहा था, ताईजी के मुंह इतना थूक था की मेरा लन्ड फिसल–फिसलकर और ज्यादा ताईजी के मुंह में जाने लगा था, १०–१२ मिनट तक ऐसे ही मैं ताईजी का मुंह चोदता रहा, उसके बाद मुझे लगा कि मैं झड़ने वाला हूं।
इसलिए मैंने अपने लन्ड को ताईजी के मुंह से बाहर निकाल लिया लेकिन ताईजी किसी भूखी शेरनी की तरह मेरे लन्ड को लपक कर अपने मुंह में भर लिया और मेरी गांड़ पर हाथ रख के दोबारा से मुंह चोदने का इशारा किया, मैं तो अब झड़ने वाला था इसलिए मैं लगातार ताबड़तोड़ धक्के ताईजी के मुंह में मारना शुरू कर दिया और कुछ देर बाद आआआह्हह करके अपना सारा वीर्य ताईजी के मुंह में भर दिया, जैसे–जैसे मैं अपने लन्ड से पिचकारी मारता रहा वैसे–वैसे ताईजी मेरे लन्ड का रस गटागट पीती रही, लन्ड का सारा रस निचोड़ने के बाद भी ताईजी ने मेरे लन्ड को अपने मुंह से बाहर नहीं किया जब तक उसकी आखिरी बूंद नहीं निकल गई।
फिर ताईजी पानी के झरने के नीचे से हट गई और अपने ब्लाउज और पेटीकोट को उठाकर गुसलखाने से चली गई, कुछ देर बाद मै नहा लिया और धोती पहन के आंगन में आ गया, मैंने देखा कि ताईजी रसोईघर में हैं उन्होंने सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट पहना था।
"भूख लग रही है ताईजी" मैं पीछे से ताईजी को अपनी बाहों में जकड़ते हुए बोला
"पनीर के परांठे बने हैं चटाई पर बैठ मैं अभी लाती हूं" ताईजी अपनी गांड़ को मेरे लन्ड पर रगड़ते हुए बोली
"ये वाली भूख नहीं, ये वाली भूख ताईजी" मैं अपने उल्टे हाथ को ताईजी के पेटीकोट के ऊपर से उनकी चूत पर रखते हुए बोला
"अभी नहीं लल्ला मुझे दोपहर का खाना भी बनाना है" मेरे गाल पर हल्के से थप्पड़ मारती हुई बोली
"ठीक है तो जब तक के लिए मैं खेत में घूम आता हूं"
फिर मैंने पनीर के छह परांठे पेले और मस्त लस्सी पीके आम के बगीचे में आ गया, मैंने पंपहाउस से चारपाई बाहर निकाली और मस्त पेड़ की छांव में लगाकर लेट गया, आम के बगीचे में सन्नाटा छाया हुआ था, उसमें चिड़ियों की हल्की हल्की मधुर आवाज कान को सूकून दे रही थी लेकिन अचानक मुझे अजीब सी आवाज सुनाई दी जो शायद किसी के सिसकियों की था, मुझे लगा कि मेरे दिमाग का वहम है लेकिन तभी मुझे फिर से हल्की हल्की किसी के सिसकियो की आवाज आई, मैं झटके से चारपाई से उठा और इधर उधर देखने लगा, आम के बगीचे में कोई नहीं था, मैंने आवाज को ध्यान से सुना तो पता चला कि आवाज ताईजी के आम के बगीचे से नहीं बल्कि किसी और के खेत से आ रही है चूंकि वहां इतना ज्यादा सन्नाटा था इसलिए मुझे इतनी दूर से आ रही आवाज भी हल्की हल्की सुनाई दे रही थी।
good updateअपडेट १९
मेरा दिल बहुत तेज धक–धक कर रहा था, मैंने ध्यान से देखा तो पता चला कि वह आवाज हरिया के सब्जियों के खेत से आ रही थी, लेकिन तभी "आह्ह्ह्ह्ह मर गई मां बहुत दर्द हो रहा है" सुनते ही मेरे लन्ड में खून दौड़ गया क्योंकि इस आवाज के पीछे जो कोई भी थी उसकी आवाज को मैं पहचान गया था यह कम्मो दीदी की आवाज थी, फिर मै झाड़ियों के पीछे से आगे बढ़कर देखने लगा लेकिन खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाली बात थी कम्मो दीदी के पैर में कांटा लगा हुआ था और वह दर्द के मारे चिल्ला रही थी।
"अरे कम्मो दीदी क्या हुआ? ताईजी के खेत तक आपकी आवाज आ रही है"
"मुन्ना कांटा लग गया आआआह्हह्ह"
"लाओ मैं देखता हूं" कहकर कम्मो दीदी का पैर उठाकर देखने लगता हूं
लेकिन मैं जैसे ही कम्मो दीदी का पैर उठाता हूं तो उनका घागरा घुटने से पीछे सरक जाता है और मुझे उनकी फूली हुई बिना झांटों वाली काली चूत नजर आ जाती है, साली ने अंदर पैंटी तक पहनी नहीं थी।
"क्या हुआ मुन्ना कितनी देर लगाएगा तुझसे एक कांटा तक नहीं निकाला जा रहा है"
"अरे दीदी पैर न हिलाओ, कांटा बहुत अंदर तक घुसा है"
कम्मो दीदी आंखें बंद करके आह्ह्ह उह्ह्ह्ह कर रही थी तभी मैंने कम्मो दीदी की टांगों को थोड़ा चौड़ा कर दिया और मुझे उनकी चूत की फटी हुई फांक नजर आने लगी, मेरा दिल तो किया कि अभी धोती में से अपना लन्ड बाहर करके इसकी चूत में पेल दूं लेकिन मैं जल्दीबाजी करके खुद के पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहता था, कुछ देर बाद मैंने कांटा निकाल दिया।
फिर कम्मो दीदी उठकर लगड़ाते हुए बैंगन और टमाटर लेकर जाने लगी और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को ताड़कर सोचा कि आज नहीं तो कल इसकी गांड़ ठोककर रहूंगा, उसके बाद मैं ताईजी के आम के बगीचे में वापस आ गया तो मैंने देखा कि रागिनी काकी एक लकड़ी से कच्ची कैरियां तोड़ने की कोशिश कर रही हैं।
"ऐसे नहीं टूटेंगे काकी" मैं रागिनी काकी को ऊपर से नीचे तक ताड़ते हुए बोला
"तू यहां क्या कर रहा है?"
"उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, बल्कि मुझे पूछना चाहिए कि आप मेरी ताईजी के खेत में क्या कर रही हो"
"मैं तो यहां कच्ची कैरियां तोड़ने आई थी तू किसलिए आया है?"
"मेरी ताईजी का बगीचा है घूमने आया हूं आजकल बगीचे से आम बहुत चोरी हो रहे हैं"
"चल अब बातें मत बना, मुझे कुछ कच्ची कैरियां तोड़ दे"
"साली खुद तो पका पकाया आम है"
"क्या? नहीं तोड़ना हो तो बता दे मैं खुद तोड़ लूंगी"
"अरे नहीं काकी आपको नहीं दूंगा तो किसे दूंगा"
"चल बड़ा आया देने वाला, अब कच्ची वाली कैरियां तोड़ दे"
"जो मजा पके में है वो कच्ची में कहां"
"अच्छा तुझे कैसे पता?"
"अरे काकी पके आम को दबा दबाके चूसने में कितना मजा आता है"
"चल अब जल्दी कर मुझे देर हो रही है"
"काकी जल्दी का काम शैतान का होता है जो मजा धीरे–धीरे में है वो जल्दी में कहां"
"तू मेरा काम करता है या नहीं? वरना मैं चली जाती हूं"
"काकी मैं तो कबसे आपका काम करने के लिए तैयार हूं आप ही मुझे बातों में उलझा रही हो चलो इधर आओ"
"किसलिए?"
"अरे काकी मैं आपको ऊपर उठा देता हूं , आप अपनी मर्जी से कच्ची वाली कैरियां तोड़ लेना"
रागिनी काकी मेरे पास आती हैं और मैं उनकी गदराई कमर पकड़कर ऊपर उठा देता हूं ये तो सभ्या चाची से भी भारी थी।
"काकी बड़ी भारी हो गई हो"
"बस इतना ही दम है क्या, थोड़ी देर के लिए तो मुझे उठा नहीं सकता, बड़ा मर्द बनता फिरता है।"
मुझे मर्द वाली बात पर थोड़ा गुस्सा आ गया और मैंने दम लगाकर रागिनी काकी को ऊपर उठा दिया जिसके कारण उनकी चर्बीदार गांड़ मेरी आंखों के पास आ गई, रागिनी काकी कैरियां तोड़ने लगती हैं।
मुझसे अब रहा नहीं गया, मेरे मुंह में पानी आ जाता है और अचानक मैं अपने चेहरे को रागिनी काकी की चर्बीदार गांड़ की दरार में घुसा देता हूं, रागिनी काकी का जिस्म कांप उठता है जिससे उनके हाथ में आए कच्चे आम नीचे टपक जाते हैं लेकिन खुद को किसी तरह संभाल लेती हैं फिर से मैं अपनी नाक को रागिनी काकी की गांड़ के ठीक ऊपर लगाकर हल्के से उनकी गांड़ को अपने चेहरे पर दबा देता हूं।
"आह्ह्ह्ह क्या कर रहा है?"
अचानक मैं अपनी नाक को उनकी गांड़ की दरार से बाहर निकालता हूं तो मेरा हाथ उनकी मलाईदार कमर से फिसल जाता है और रागिनी काकी धड़ाम से नीचे गिर पड़ती हैं।
"हाय रे मां आह्ह्हह कितना दर्द हो रहा है, क्या कर रहा था?"
"दिखाओ मुझे कहां लगी है"
"अह्ह्ह दूर हट मूए, आह्ह्ह्ह् मां मर गई"
"अरे काकी मुझे देखने तो दो, कोई गहरी चोट तो नहीं लगी"
मैं रागिनी काकी के पंजे देखता हूं वहां सब कुछ ठीक था और फिर धीरे धीरे रागिनी काकी की साड़ी ऊपर करने लगता हूं।
"ये क्या कर रहा है बलराम"
"आप चुप बैठो, मुझे लगता है पिंडलियों पर चोट लगी है"
"हाय रे मैं मर गई आह"
मैं साड़ी को रागिनी काकी के पिंडलियों तक चढ़ा देता हूं पर मुझे ज्यादा अंदर तक देखने के लिए नही मिलता क्योंकि उन्होंने अपने हाथ से साड़ी पकड़ी हुई थी, मैं उनकी पिंडलियों की हल्की हल्की मालिश करने लगता हूं तभी रागिनी काकी की हल्की हल्की चिल्लाहट सिसकियां में बदल जाती है।
"हां बलराम बेटा वहीं दर्द हो रहा है"
इससे पहले मैं थोड़ा आगे बढ़ने की कोशिश करता, रागिनी काकी उठने लगती हैं लेकिन दर्द के मारे वापस से बैठ जाती है।
"काकी ऐसा करते हैं आपको मैं अपनी गोदी में उठाकर घर छोड़ देता हूं"
"नहीं मैं चली जाऊंगी"
इस बार मैं रागिनी काकी से कुछ पूछता नही हूं और फूल सी हल्की अपनी रागिनी काकी को अपनी मजबूत बाहों में उठा लेता हूं और गिरने के डर से रागिनी काकी अपने दोनो हाथों को मेरी गर्दन में डाल देती हैं। धूप बहुत तेज थी इसलिए गांव के लोग अपने घर में थे और रागिनी काकी को किसी के देखने का डर नही था।
मेरी उंगलियां रागिनी काकी की कमर पर थी और उन्हें भी नशा छाने लगता है उन्हे तो यकीन नही हो रहा था कि मैं बड़ी आसानी से उन्हें उठा ले रहा हूं।
"काकी आप तो बहुत हल्की हो , मुझे लगा था कि भारी होगी"
"अभी तो बोल रहा था कि मैं भारी हूं"
"अरे काकी तब मैंने आपको ठीक से लिया नहीं था"
रागिनी काकी मेरी छाती में मुक्का जड़ देती हैं और कुछ देर बाद हम घर पहुंच जाते हैं।
फिर रागिनी काकी मुस्कुरा कर मेरे हाथ से कच्ची कैरियों की थैली लेकर लंगड़ाती हुई अंदर जाने लगती हैं और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को देखने लगता हूं रागिनी काकी मुझे उनकी गांड़ को घूरते हुए देख लेती हैं लेकिन आज रागिनी काकी के चेहरे पर गुस्सा नहीं बल्कि बेहद कामुक मुस्कुराहट थी, उसके बाद मैं घर चल देता हूं।
pehle to mana kar di thi......................रागिनी काकीअपडेट १९
मेरा दिल बहुत तेज धक–धक कर रहा था, मैंने ध्यान से देखा तो पता चला कि वह आवाज हरिया के सब्जियों के खेत से आ रही थी, लेकिन तभी "आह्ह्ह्ह्ह मर गई मां बहुत दर्द हो रहा है" सुनते ही मेरे लन्ड में खून दौड़ गया क्योंकि इस आवाज के पीछे जो कोई भी थी उसकी आवाज को मैं पहचान गया था यह कम्मो दीदी की आवाज थी, फिर मै झाड़ियों के पीछे से आगे बढ़कर देखने लगा लेकिन खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाली बात थी कम्मो दीदी के पैर में कांटा लगा हुआ था और वह दर्द के मारे चिल्ला रही थी।
"अरे कम्मो दीदी क्या हुआ? ताईजी के खेत तक आपकी आवाज आ रही है"
"मुन्ना कांटा लग गया आआआह्हह्ह"
"लाओ मैं देखता हूं" कहकर कम्मो दीदी का पैर उठाकर देखने लगता हूं
लेकिन मैं जैसे ही कम्मो दीदी का पैर उठाता हूं तो उनका घागरा घुटने से पीछे सरक जाता है और मुझे उनकी फूली हुई बिना झांटों वाली काली चूत नजर आ जाती है, साली ने अंदर पैंटी तक पहनी नहीं थी।
"क्या हुआ मुन्ना कितनी देर लगाएगा तुझसे एक कांटा तक नहीं निकाला जा रहा है"
"अरे दीदी पैर न हिलाओ, कांटा बहुत अंदर तक घुसा है"
कम्मो दीदी आंखें बंद करके आह्ह्ह उह्ह्ह्ह कर रही थी तभी मैंने कम्मो दीदी की टांगों को थोड़ा चौड़ा कर दिया और मुझे उनकी चूत की फटी हुई फांक नजर आने लगी, मेरा दिल तो किया कि अभी धोती में से अपना लन्ड बाहर करके इसकी चूत में पेल दूं लेकिन मैं जल्दीबाजी करके खुद के पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहता था, कुछ देर बाद मैंने कांटा निकाल दिया।
फिर कम्मो दीदी उठकर लगड़ाते हुए बैंगन और टमाटर लेकर जाने लगी और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को ताड़कर सोचा कि आज नहीं तो कल इसकी गांड़ ठोककर रहूंगा, उसके बाद मैं ताईजी के आम के बगीचे में वापस आ गया तो मैंने देखा कि रागिनी काकी एक लकड़ी से कच्ची कैरियां तोड़ने की कोशिश कर रही हैं।
"ऐसे नहीं टूटेंगे काकी" मैं रागिनी काकी को ऊपर से नीचे तक ताड़ते हुए बोला
"तू यहां क्या कर रहा है?"
"उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, बल्कि मुझे पूछना चाहिए कि आप मेरी ताईजी के खेत में क्या कर रही हो"
"मैं तो यहां कच्ची कैरियां तोड़ने आई थी तू किसलिए आया है?"
"मेरी ताईजी का बगीचा है घूमने आया हूं आजकल बगीचे से आम बहुत चोरी हो रहे हैं"
"चल अब बातें मत बना, मुझे कुछ कच्ची कैरियां तोड़ दे"
"साली खुद तो पका पकाया आम है"
"क्या? नहीं तोड़ना हो तो बता दे मैं खुद तोड़ लूंगी"
"अरे नहीं काकी आपको नहीं दूंगा तो किसे दूंगा"
"चल बड़ा आया देने वाला, अब कच्ची वाली कैरियां तोड़ दे"
"जो मजा पके में है वो कच्ची में कहां"
"अच्छा तुझे कैसे पता?"
"अरे काकी पके आम को दबा दबाके चूसने में कितना मजा आता है"
"चल अब जल्दी कर मुझे देर हो रही है"
"काकी जल्दी का काम शैतान का होता है जो मजा धीरे–धीरे में है वो जल्दी में कहां"
"तू मेरा काम करता है या नहीं? वरना मैं चली जाती हूं"
"काकी मैं तो कबसे आपका काम करने के लिए तैयार हूं आप ही मुझे बातों में उलझा रही हो चलो इधर आओ"
"किसलिए?"
"अरे काकी मैं आपको ऊपर उठा देता हूं , आप अपनी मर्जी से कच्ची वाली कैरियां तोड़ लेना"
रागिनी काकी मेरे पास आती हैं और मैं उनकी गदराई कमर पकड़कर ऊपर उठा देता हूं ये तो सभ्या चाची से भी भारी थी।
"काकी बड़ी भारी हो गई हो"
"बस इतना ही दम है क्या, थोड़ी देर के लिए तो मुझे उठा नहीं सकता, बड़ा मर्द बनता फिरता है।"
मुझे मर्द वाली बात पर थोड़ा गुस्सा आ गया और मैंने दम लगाकर रागिनी काकी को ऊपर उठा दिया जिसके कारण उनकी चर्बीदार गांड़ मेरी आंखों के पास आ गई, रागिनी काकी कैरियां तोड़ने लगती हैं।
मुझसे अब रहा नहीं गया, मेरे मुंह में पानी आ जाता है और अचानक मैं अपने चेहरे को रागिनी काकी की चर्बीदार गांड़ की दरार में घुसा देता हूं, रागिनी काकी का जिस्म कांप उठता है जिससे उनके हाथ में आए कच्चे आम नीचे टपक जाते हैं लेकिन खुद को किसी तरह संभाल लेती हैं फिर से मैं अपनी नाक को रागिनी काकी की गांड़ के ठीक ऊपर लगाकर हल्के से उनकी गांड़ को अपने चेहरे पर दबा देता हूं।
"आह्ह्ह्ह क्या कर रहा है?"
अचानक मैं अपनी नाक को उनकी गांड़ की दरार से बाहर निकालता हूं तो मेरा हाथ उनकी मलाईदार कमर से फिसल जाता है और रागिनी काकी धड़ाम से नीचे गिर पड़ती हैं।
"हाय रे मां आह्ह्हह कितना दर्द हो रहा है, क्या कर रहा था?"
"दिखाओ मुझे कहां लगी है"
"अह्ह्ह दूर हट मूए, आह्ह्ह्ह् मां मर गई"
"अरे काकी मुझे देखने तो दो, कोई गहरी चोट तो नहीं लगी"
मैं रागिनी काकी के पंजे देखता हूं वहां सब कुछ ठीक था और फिर धीरे धीरे रागिनी काकी की साड़ी ऊपर करने लगता हूं।
"ये क्या कर रहा है बलराम"
"आप चुप बैठो, मुझे लगता है पिंडलियों पर चोट लगी है"
"हाय रे मैं मर गई आह"
मैं साड़ी को रागिनी काकी के पिंडलियों तक चढ़ा देता हूं पर मुझे ज्यादा अंदर तक देखने के लिए नही मिलता क्योंकि उन्होंने अपने हाथ से साड़ी पकड़ी हुई थी, मैं उनकी पिंडलियों की हल्की हल्की मालिश करने लगता हूं तभी रागिनी काकी की हल्की हल्की चिल्लाहट सिसकियां में बदल जाती है।
"हां बलराम बेटा वहीं दर्द हो रहा है"
इससे पहले मैं थोड़ा आगे बढ़ने की कोशिश करता, रागिनी काकी उठने लगती हैं लेकिन दर्द के मारे वापस से बैठ जाती है।
"काकी ऐसा करते हैं आपको मैं अपनी गोदी में उठाकर घर छोड़ देता हूं"
"नहीं मैं चली जाऊंगी"
इस बार मैं रागिनी काकी से कुछ पूछता नही हूं और फूल सी हल्की अपनी रागिनी काकी को अपनी मजबूत बाहों में उठा लेता हूं और गिरने के डर से रागिनी काकी अपने दोनो हाथों को मेरी गर्दन में डाल देती हैं। धूप बहुत तेज थी इसलिए गांव के लोग अपने घर में थे और रागिनी काकी को किसी के देखने का डर नही था।
मेरी उंगलियां रागिनी काकी की कमर पर थी और उन्हें भी नशा छाने लगता है उन्हे तो यकीन नही हो रहा था कि मैं बड़ी आसानी से उन्हें उठा ले रहा हूं।
"काकी आप तो बहुत हल्की हो , मुझे लगा था कि भारी होगी"
"अभी तो बोल रहा था कि मैं भारी हूं"
"अरे काकी तब मैंने आपको ठीक से लिया नहीं था"
रागिनी काकी मेरी छाती में मुक्का जड़ देती हैं और कुछ देर बाद हम घर पहुंच जाते हैं।
फिर रागिनी काकी मुस्कुरा कर मेरे हाथ से कच्ची कैरियों की थैली लेकर लंगड़ाती हुई अंदर जाने लगती हैं और मैं उनकी लहराती हुई गांड़ को देखने लगता हूं रागिनी काकी मुझे उनकी गांड़ को घूरते हुए देख लेती हैं लेकिन आज रागिनी काकी के चेहरे पर गुस्सा नहीं बल्कि बेहद कामुक मुस्कुराहट थी, उसके बाद मैं घर चल देता हूं।