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प्रभातीलाल घर के बाहर बने पेड़ के चबूतरे के ऊपर अपना सर पकड़कर बैठा था, सुबह उसका झगड़ा लाज़वन्ति से हुआ था लाजो (लाज़वन्ति) पेट से थी और ये अंशुल और लाजो के बिच उस रोज़ हुई घमासान ताबड़तोड़ चुदाई का परिणाम था जिसे लाजो ने बड़ी ख़ुशी से स्वीकार किया था प्रभतीलाल को शंशय था मगर लाजो के पेट में पल रहे बच्चे को अपना न मानने की उसके पास कोई वजह न थी.. कुदरत ने इतने सालों के बाद एक बार पहले भी उसे बाप बनाया था मगर लाजो का वो बच्चा होते ही मृत्यु को हासिल हो गया था.. सुबह प्रभतीलाल जब लाजो से नयना को लेकर किसी सम्बन्ध में झगड़ रहा था तब नयना घर में ही मोज़ूद थी.. लाजो अपनी जबान पर काबू न रख सकी और उसके मुँह आज इतने सालों बाद निकल ही गया की - नयना कोनसी तुम्हारी अपनी औलाद है.... जिस शराबी ने अपनी बेटी कहकर नयना को तुम्हे दिया था.. सुना है किसी जेल में बंद है.. बच्चा चुराते हुए पकड़ा था.. नयना को भी किसी अस्पताल से चुराया होगा उसने... बच्चे के मोह में तुमने जरा भी छान बिन नहीं की थी.. भूल गए?
नयना ने लाजो की ये बात सुन ली थी और उसके दिल पर एक और वज्र आ गिरा था लाजो ने क्या उसके दिल को अपने कदमो से रोदने का ठेका ले रखा है? पहले अंशुल के साथ वो सब करके और अब इन सब बातों से....
नयना बिन बताये कहीं चली गई थी.. प्रभतीलाल ने बहुत ढूंढा पर मिली नहीं गाँव में भी हर तरफ उसीकी तलाश हो रही थी मगर नयना का कोई अता पता नहीं था प्रभती सभी सहेलियों, सखियों और जानने वालो के घर पूछ आया था अब रोता हुआ अपना सर पिट रहा था उसे लाजो पर गुस्सा आ रहा था की उसने सुबह ऐसी बातें बोली ही क्यू? हो न हो नयना उन बातों को सुनकर ही वहा से गई होगी.. वरना आज तक उस बच्ची ने कोई गलत कदम नहीं उठाया था.. लाजो को अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आ रहा था वो दिल की साफ थी मगर आज उसके जुबान से जो बातें निकली थी वो उसे भी पीड़ा पंहुचा रही थी उसने तय किया था नयना से अपने किये की माफ़ी मांगेगी..
सुबह बीत चुकी थी और दोपहर का समय आ गया था.. नयना जेल के सामने खड़े थी उसने उस आदमी से मिलने की ठान ली थी जिसने नयना को प्रभती लाल के यहां अपनी बेटी बताकर दिया था.. नयना ने उस आदमी के बारे में पता किया था, नाम जब्बार था शराब के साथ और भी कई नशे करता था.. Police ने कई कानूनी दफाओ में उसे बंद करवा दिया था बीस बरस की सजा हुई थी उसे.... और पिछले 16 साल से जेल में बंद था.. हफ्ते में जिन दो दिनों में क़दी से मिला जा सकता था उनमे से एक दिन आज था.. आज क़दी से मिलने आने जाने की छूट थी.. एक स्थानीय वकील की मदद से नयना को जब्बार से मिलने का मौका मिल गया था.. नयना घबराते हुए लोहे की जाली के करीब खड़ी थी अंदर से एक नाटा सा आदमी संवाले रंग वहा आ गया देखने में खुंखार तो नहीं था मगर उसकी आँखों से लगता था जैसे उसने अपनी जिंदगी में हर नशा किया था मगर अब उसकी हालात बेहतर थी जेल में रहकर उसने कम से कम नशे से मुक्ति पा ली थी.. जब्बार 45 साल के करीब था शरीर में दुबला पतला मरियल मगर तेज़ दिमाग और नोटंकी में उस्ताद....
दिवार के पास सिपाही तैनात था उसी के थोड़ा दूर जाली से बाहर की तरफ नयना और अंदर जब्बार..
जब्बार - जी कहिए....
नयना की आँख नम थी और मन अस्त व्यस्त मगर उसने होने बिखरे दिल को समेटकर जब्बार से पूछा..
आज से 19 साल पहले एक बच्ची तुमने यहां से 22 कोस पश्चिम की ओर हुस्नीपुर में प्रभतीलाल को दी थी.. तुमने उसे कहा से चुराया था?
जब्बार दिमाग पर जोर डालकर कुछ सोचने लगा ओर फिर हँसता हुआ बोला - अरे.... बिटिया तुम तो बड़ी हो गई हो.. मेरी लाड़ली बिटिया... मैंने तुम्हे कहीं से चुराया नहीं था तुम तो मेरी अपनी बिटिया हो...
नयना को जब्बार की बाते सुनकर गुस्सा आ रहा था वो वापस बोली - देखो अगर तुम सच सच बताओगे तो ये वकील साब तुम्हे बाहर लाने के लिए कोशिश कर सकते है.. तुम जल्दी बाहर आ जाओगे..
जब्बार - बिटिया सच कह रहा हूँ... तुम्हारी कसम.. तू मेरा अपना खून है.. मेरी बिटिया...
नयना - देखो नाटक मत करो.. तुम्हे जो चाहिए मैं दिलवा सकती हूँ.. मगर मुझे सच जानना है.. तुम्हे चुप रहकर भी कुछ नहीं मिलने वाला... सच बोलकर तुम जो चाहो पा सकते हो...
जब्बार - जो मागूंगा दोगी....
नयना - हां....
जब्बार - बिरयानी चाहिए.... रायते के साथ..
नयना - ठीक है पर जेल में कैसे??
जब्बार - ये जेल है यहां सब मुमकिन है... जब्बार ने पास खड़े सिपाही को पास आने इशारा किया और नयना से कहा.. मेरी एक साल की बिरयानी के पैसे सिपाही जी की जेब में रख दो....
नयना - क्या?
जब्बार - क्या नहीं.... हां.... जल्दी करो... तुम्हे अपने घरवालों के बारे में जानना है या नहीं..
नयना - पर मेरे पास अभी इतने ही पैसे है..
जब्बार - कितने है?
नयना - 12-13 हज़ार...
जब्बार - सिपाही की जेब रख दो....
नयना ने पास खड़े सिपाही को पैसे दे दिये..
जब्बार खुश होता हुआ सिपाही को इशारे से वापस भेज दिया और मुँह का थूक गटकते हुए धीमे से बोला चलो महीने भर का जुगाड़ तो हुआ...
नयना - अब बताओ कहा से चुराया था मुझे?
जब्बार - श्यामलाल अस्पताल, विराटपुर, वार्ड-3 बेड नम्बर-7 दिन-बुधवार दिनांक - ##-##-####...
नयना ने अपने फ़ोन में जब्बार की सारी बाते रिकॉर्ड कर ली थी.. वो बाहर आ गई उसका दिल जोरो से धड़क रहा था.. उसने बाहर से एक रिक्शा पकड़ा और विराटपुर के लिए चली रिक्शा विरातपुर में श्यामलाल अस्पताल के आगे रुका था.. नयना ने सबसे पहले अस्पताल के बाहर एटीएम से पैसे निकलवाये और रिक्शा वाले को भाड़ा देकर अस्पताल के अंदर आ गई.. ये एक सरकारी अस्पताल था..
नयना पिछले एक घंटे से अस्पताल की टूटी हुई कुर्सी पर बैठे इंतजार कर रही थी एक मोटी सी भद्दी दिखने वाली महिला ने उसे बैठने को कहा था और अंदर चली गई थी जब वो बाहर आई तो नयना ने वापस उससे वहीं सवाल पूछ लिया जो पहले पूछा था.. जब्बार से मिली डिटेल बताते हुए नयना ने उस औरतों से उस रोज़ बेड नम्बर 7 पर एडमिट महिला के बारे में पूछा तो वो औरत मुँह से गुटका थूकती हुई नयना पर चिल्ला कर बोली - कहा रिकॉर्ड ढूंढ़ रहे है.. बैठी रहो चुप छप जा चली जाओ यहां से... कितना काम है पड़ा... सरकारी अस्पताल में लोग काम भी करते है? नयना ने मन में यही बाते बोली थी वो देख रही थी कैसे वो औरत अपने साथ बैठी दूसरी औरत के साथ पान मसाला खाती हुई लूडो खेलने में व्यस्त थी.. मरीज़ तो भगवान भरोसे थे.. मगर जहा मरीज़ खुद इसी इलाज के लायक हो वहा उनका ऐसा ही इलाज होता है.. नयना ने टीवी में देखा था अमेरिका के सरकारी अस्पताल और उसकी खुबिया.... और आज वो यहां सरकारी अस्पताल देख रही थी.. मगर अमेरिका में लोग भी अलग है.. पढ़े लिखें, अपने हक़ अधिकारों को लेकर सजग और ईमानदार, खुले दिमाग और विचारों वाले.. सरकार से सवाल पूछने वाले मगर यहां? यहां तो पढ़ाई लिखाई का कोई महत्त्व ही नहीं है.. जो पढ़ाया जाता उससे बच्चे का नैतिक विकास तो दूर उसमे खुदसे सोचने समझने की काबिलियत तक नहीं आ पाती, जाती और धर्म के मामले में उलझकर विकास का गला घुट जाता है.. राजनितिक लोग राजनितिक लाभ के लिए लोगों को गुमराह करते है और वो आसानी हो भी जाते है.. जब अपने दिमाग से किसी चीज़ की परख ही नहीं कर पाएंगे, सही गलत ही नहीं जांच पाएंगे तो इसी हाल में रहना होगा.. और क्या? नयना के दिमाग में यही चल रहा था मगर उसे अब बैठे हुए काफी देर हो चुकी थी उसने फिर दूसरा रास्ता अपनाया..
नयना ने एक सो का नोट उस औरत के सामने रखे रजिस्टर के नीचे रखा और प्यार से कहा - जरा अर्जेंट है देख लीजिये ना.. औरत ने सो का नोट अपनी जेब में डाल लिया और नयना को अपने पीछे आने का इशारा किया..
नयना औरत के पीछे पीछे रिकॉर्ड रूम में आ गई.. ये बेसमेंट में था.. साल #### के माह ### का एक बड़ा पोटला निकाल कर सामने टेबल पर रख दिया और उसपर जमीं धूल साफ करती हुई गाँठ खोल दी.. एक रजिस्टर निकलकर नयना को देती हुई बोली जल्दी से देखकर वापस दो..
नयना रजिस्टर लेकर पन्ने पलटते हुए उस पन्ने पर पहुंची जहाँ उस दिन की सारी एंट्री लिखी हुई थी जिस दिन के बारे में जब्बार ने जिक्र किया था.. नयना ने पहले अपने फ़ोन उस पेज की तस्वीर ली फिर पन्ने पर लिखी एंट्री को गौर से देखने लगी....
वार्ड नंबर -3 बेड नम्बर -7 पेशेंट नेम - पदमा देवी पति का नाम - बालचंद..... पता - ******* एडमिट होने का कारण - प्रेगनेंसी.... नयना के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गई थी.. उसे यकीन नहीं हो रहा था जो उसने अभी अभी पढ़ा था क्या वो सच था? या कोई मज़ाक़ जो जब्बार ने उसके साथ किया था?
हो गया? पढ़ लिया? लाओ दो.. उस औरत ने वापस पोटली को वहीं बांधकर रख दिया.. नयना अस्पताल से बाहर आ गई थी उसकी आँखों में आंशू की धारा बह चली थी जो अब बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी तो क्या वो अंशुल की..... नहीं नहीं... ऐसा नहीं हो सकता... उसने जो अभी अभी देखा उसपर नयना को यक़ीन नहीं आ रहा था और ना ही वो यक़ीन करना चाहती थी.. ऐसा कैसे हो सकता है? इतना बड़ा संयोग? नहीं नहीं.. ऐसा नहीं हो सकता.. मगर क्या कागज झूठ बोलते है? पर ऐसा कैसे मुमकिन है? वो तो अंशुल से बेताशा प्यार करती है और आज की रात अंशुल से ब्याह का वादा था उसका.. आखिरी बार अंशुल ने भी उसे आज रात ब्याह करने की बात कही थी.. पर क्या अंशुल उसका बड़ा भाई... नहीं ये नयना क्या सोच रही है? ऐसा नहीं है... नयना भारी कश्मकश और उलझनों से जूझती हुई अस्पताल से बाहर आकर एक जगह बैठ गई थी और रोये जा रही थी उसकी आँखों से आंसू का सागर बह जाना चाहता था.. वो सोच भी नहीं सकती थी की ऐसा कैसे हो सकता है? अंशुल जिसे वो दिल और जान से चाहती है अपना मान चुकी है वो उसको सगा बड़ा भाई है.. उसने अपने बड़े भाई से प्यार क्या है.. नयना के नयन आंसू के साथ उसके मन की हालात भी बाहर निकाल रहे थे...
अंशुल आज नयना को अपना बनाने के इरादे से घर से निकला था वो जब नयना के घर पंहुचा तो लाजो ने उसे सारा वृतांत कह सुनाया.. नयना सुबह से किसी का फ़ोन भी नहीं उठा रही है... लाजो की आँखों में आंसू थे मगर अंशुल जानता था की नयना इस वक़्त उसे कहा मिल सकती है अंशुल ने लाजो के गर्भवती होने की बात भी पता चली थी जिसपर उसने लाजो को अपने सीने से लगाते हुए अपना और बच्चे का ख्याल रखने की नसीहत भी दे दी.. अगर इस वक़्त नयना का ख्याल ना होता तो अंशुल और लाजो के बीच सम्भोग होना तय था.. लाजो की आँखों में नयना के दुख के साथ साथ अंशुल से कामसुख की इच्छा भी थी.. मगर इस इच्छा को अंशुल ने सिर्फ एक चुम्बन में समेटकर रख दिया..
अंशुल जब नयना के घर से बाहर निकला तो उसे सामने से प्रभतीलाल आते दिखे और वो रुक गया.. दोनों के बीच मोन था.. दोनों को समझ नहीं आ रह था की कैसे वो बात की शुरुआत करे और एक दूसरे के सामना करे..
अंशुल प्रभतीलाल को नस्कार किया तो प्रभती लाल ने भी विचलित मन से उसका जवाब दे दिया.. नयना की बाते होने लगी.. अंशुल ने प्रभती लाल से कहा की वो चिंता न करे अंशुल उसे खोज लाएगा.. अ नयना का प्रेम प्रभती लाल जानता था मगर उसे अब अंशुल के बारे में भी पता चला था.. दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे है.. प्रभती लाल की आँखों में कुछ सुकून आया था..
शाम हो चुकी थी अंशुल ने पदमा से आज घर नहीं आने का कोई बहाना बना लिया था जिसपर पदमा बड़ी नाराज़ हुई थी मगर अंशुल ने उसे समझा लिया था अंशुल गाँव से बाहर आ चूका था एक एक करके उन सारी जगहों पर जा आया था जहाँ नयना मिल सकती थी.. फिर अंशुल के दिमाग में कुछ ख्याल आया और वो अपनी बाइक स्टार्ट करके किसी ओर चल दिया... एक जगह पहुंच कर उसने बाइक रोक दी.. रास्ता सुनसान था सांझ ढल चुकी थी पूर्णिमा के पुरे चाँद ने रौशनी की कोई कमी नहीं रखी थी इस रौशनी में अंशुल साफ साफ सब देख सकता था सडक के दोनों तरफ पेड़ थे जैसे जंगल हो... अंशुल आगे बढ़ गया था...
अंशुल के बाहर रहने से पदमा के स्वाभाव में परिवर्तन आ गया था वो आज चिड़चिड़ी सी लग रही थी बालचंद ने उसका मूंड देखकर उससे उलझना जरुरी नहीं समझा ओर दूर ही रहा यही उसके लिए सही भी था.. आज अंशुल नहीं था मगर फिर भी पदमा को चैन नहीं आ रहा था ओर वो बेचैन हो रही थी उसने आज भी बालचंद को दवाई दे दी थी जिससे बालचंद नींद में खराटे मार रहा था ओर पदमा अंशुल के रूम में जाकर उसी बिस्तर पर जहाँ वो अंशुल के साथ काम क्रीड़ा किया करती थी लेट गई थी ओर अंशुल की तस्वीर अपनी छाती से लगा कर चुत में उंगलियां करते हुए सोने की कोशिश कर रही थी.. पदमा को महसूस हो रहा था की अंशुल उसके लिए कितना जरुरी बन चूका है और अब वो अंशुल के बिना नहीं रह सकती.. पदमा अंशुल के प्यार में पागल हो चुकी थी ऐसा उसकी हालात देखकर कहा जा सकता था..
नयना की आँखे नम थी आज का सारा दिन उसने अपनी हक़ीक़त पता लगाने में लगाया था और किसी का फ़ोन नहीं उठा रही थी इस वक़्त जंगल में उसी पेड़ के नीचे अकेली बैठी थी जहाँ उसने अपने लिए मन्नत मांगी थी मन में चलती कश्मकश और उथल पुथल के बीच उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे? अंशुल उसका अपना बड़ा भाई निकलेगा ऐसा उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.. कैसे सपने देखे थे उसने अंशुल के साथ जिनमे वो अपनी मर्यादा लांघ चुकी थी.. हर रात वो अंशुल के साथ हम बदन होने के ख्याब देखती थी मगर आज उसे उन ख़्वाबों के लिए अजीब लग रहा था ये पश्चात् नहीं था मगर वैसा ही कुछ था जिसे बयान करना व्यर्थ है.. नयना ने अच्छी तरह जांच पड़ताल की थी... तब जाकर उसने ये माना था की जब्बार जो कह रहा था वो सही और सत्य था.. जब पहली बार नयना अंशुल के घर गई थी तब बालचंद ने भी ये प्रसंग छेड़ा था जिसमे अस्पताल से उनकी बच्ची के चोरी होने का जिक्र था मगर वो इतना विस्तृत नहीं था जिससे नयना सारा माजरा समझ पाती.. नयना कुछ तय करने का मन बना रही थी.. इस चांदनी रात की रौशनी में उसका दुदिया रंग चमक रहा था जिसे अंशुल ने दूर से ही देख लिया था.. नयना अपने ख्यालों में इतनी खोई हुई थी उसे महसूस भी नहीं हुआ की अंशुल उसके बेहद नज़दीक आ कर बैठ चूका था..
लो.. खा लो... अंशुल ने नयना की तरफ एक खाने का पैकेट बढ़ाते हुए कहा तो नयना अपने ख्याल से बाहर आते हुए चौंक गई.. आप....? यहाँ...
अंशुल ने खाने का पैकेट फाड़ कर चम्मच से एक निवाला नयना के होंठों की तरफ खाते हुए कहा - क्यू यहां तुम ही आ सकती हो? चलो मुँह खोलो... वरना खाना ठंडा हो जाएगा.. अंशुल रास्ते में पड़े एक रेस्टोरेंट से राजमाचावल ले आया था उसे यक़ीन था की नयना सुबह से भूखी प्यासी होगी और अंशुल के शादी से इंकार करने के कारण ही घर से चली गई होगी.. अंशुल नयना को अपना बनाने आया था.. अंशुल को पदमा ने नयना से शादी करने के लिए पहले से परमिशन दे रखी थी और उसके लिए अंशुल को बोला भी था मगर अंशुल ही अब तक नयना से शादी करने से भाग रहा था.. मगर अब वो नयना का प्यार स्वीकार कर चूका था और पदमा के साथ नयना को भी अपना बनाकर रखना चाहता था वहीं पदमा में आये परिवर्तन का उसे इल्म नहीं था पदमा अब अंशुल के पीछे पागल हो रही थी..
नयना ने बिना कुछ बोले पहला निवाला मुँह में ले लिया और खाने लगी.. धीरे धीरे अंशुल ने उसे खाना खिला दिया नयना और अंशुल ने उस दौरान कोई ख़ास बात चीत नहीं हुई थी.. बस अंशुल नयना की तरह देखता हुआ प्यार से उसे खाना खाने की गुजारिश करता रहा और नयना उसकी मिन्नतो को मानते हुए खाना खाती रही.. नयना का दिल जोरो से धड़क रहा था उसके सामने उसका प्रेमी था जिसमे उसे अब अपना बड़ा भाई नज़र आ रहा था.. कुदरत का केसा निज़ाम है? अगर इस वक़्त नयना को ये मालूम ना होता की वो अंशुल की छोटी बहन है तो वो अंशुल को अपनी बाहो में लेकर बहक चुकी होती और प्यार सागर में दोनों का मिलन हो चूका होता मगर उसे ये ख्याल अंशुल से दूर ले जा रहा था की नयना तू ये नहीं कर सकती.. ये जान लेने के बाद की अंशुल तेरा सगा भाई है तू उसके साथ ये रिस्ता नहीं रख सकती.. नयना को समाज के नियम कायदे और रितिया याद आने लगी थी खुद पर शर्म आने लगी थी उसका दिल कितनी बार टूटेगा वो सोच रही थी और अब उसकी आँख फिर से नम हो चली थी जिसे अंशुल ने अपने हाथो से आंसू पोचकर साफ किया था.. खाने के बाद पानी पीते हुए नयना ने अंशुल से कहा - आपको कैसे पता मैं यहां हूँ....
अब बीवी कहा है ये तो पति को मालूम ही होना चाहिए. अंशुल ने अपना रुमाल निकलकर नयना के होंठो को साफ करते हुए जवाब दिया था जिसपर नयना लज्जा गई थी... मगर क्यू? उसने तो अब अंशुल से दूर होने का फैसला किया था.. मगर अंशुल का प्रेम नयना के मन में इतना पक्का था की वो उसे निकालने में असमर्थ थी..
नयना शर्म से लाल थी और जमीन की ओर देख रही थी अंशुल ने उसको चेहरा उसकी ठोदी से उंगलि लगा कर ऊपर उठाया ओर उसके गुलाब सुर्ख लबों पर अपने लब रख दिए.. इस चांदनी रात में दोनों इस बड़े से पेड़ के नीचे एक दूसरे के प्यार में घुल चुके थे नयना के लबों को चूमते ही अंशुल ने उसके दिमाग में चल रहे सारे ख्याल को शून्य कर दिया नयना बस इसी पल में होकर रह गई जहाँ वो अंशुल को अपने लबों के शराबी जाम पीला रही थी.. नयना ने अंशुल को इतना कसके पकड़ा हुआ था जैसे कोई छोटा बच्चा डर से किसी बड़े से चिपक जाता है.. अंशुल ने चुम्बन की शुरुआत की थी मगर नयना उसके लबों को ऐसे चुम रही थी जैसे जन्मो की प्यासी हो उसने सब भुला दिया था.. अंशुल की बेवफाई ओर उसके रिश्ते को भूल चुकी थी.. अब सिर्फ उसे इसी पल को जीना था जिसमे उसे उसका प्यार अपनी बाहों में लिए खड़ा था ओर अपना बनाने को आतुर था..
नयना अपने दोनों हाथ अंशुल जे गले में डालकर उसके लबों को प्रियसी बनकर चुम रही थी ओर अपने प्रियतम को अपनी कला से भावविभोर कर रही थी अंशुल नयना की इस हरकत पर मन्त्रमुग्ध हो रहा था.. अंशुल ने नयना की कमर में हाथ डालकर उसे हवा में उठा लिया था ओर दोनों के बदन आपस में ऐसे चिपक गए थे जैसे की दोनों एक ही हो.. इस चांदनी रात में नयना की लहराती जुल्फे किसी फ़िल्मी दृश्य का काम कर रही थी नयना ओर अंशुल ने जी भरके एक दूसरे को चूमा ओर फिर अंशुल ने चुम्बन तोड़कर नयना के चहेरे ओर गर्दन पर अपने चुम्बन की बौछार शुरु कर दी अंशुल की मदमस्त प्रेमी की तरह नयना के जिस्म का स्वाद ले रहा था गर्दन चाटने पर नयना ओर भी ज़्यदा अंशुल की तरफ मोहित होने लगी थी वो भूलने लगी थी अंशुल उसका बड़ा भाई है नयना को अंशुल में सिर्फ अपना प्यार नज़र आ रहा था पहली नज़र वाला प्यार और नयना कब से यही तो चाहती थी की अंशुल उसे अपना बना ले आज हो भी तो वहीं रहा था.. नयना कैसे अपने आप पर काबू रखती क्या इतना गहरा प्यार एक पल में ख़त्म किया जा सकता है? नहीं ऐसा नहीं हो सकता.. नयना कैसे अंशुल से दूर जा सकती थी अंशुल ने उसे पूरी तरह अपने बस में लिया हुआ था..
गर्दन और कंधे चूमने के बाद एक बार फिर से अंशुल नयना के लबों पर आ गया और उसके गुलाबी होंठ को बड़े प्यार से चूमने लगा... नयना भी अंशुल के लबों को अपने दांतो से खींचते हुए चुम रही थी और बार बार अंशुल की जीभ को अपनी जीभ से लड़ा रही थी मानो वो दोनों की कुस्ती करवाना चाहती हो.. चांदनी रात की रौशनी में जंगल में इस पेड़ के नीचे दोनों चुम रहे थे की किसी जानवर के आने की आहट हुई तो दोनों का चुम्बन एक बार फिर टूट गया.. अंशुल और नयना आपस में चिपके हुए थे दोनों की नज़र एक साथ जानवर पर गई तो थोड़ी दूर कुत्ते नज़र आ रहे थे.. एक कुत्ता कुतिया के पीछे चढ़ा हुआ उसके साथ सम्भोग कर रहा था और कुतिया के मुँह से आवाजे आ रही थी.. अंशुल और नयना ने ये नज़ारा देखकर एक दूसरे की तरफ देखा फिर हंसने लगे जैसे आगे होने वाली प्रकिया को पहले ही जान चुके हो..
अंशुल ने अपने एक हाथ से नयना का एक कुल्हा पकड़ लिया और जोर से मसलने लगा जिससे नयना के मुँह से भी सिस्करी निकाल पड़ी.. वो शिकायत भरी आँखों से अंशुल को देखने लगी मानो पूछ रही हो अंशुल क्या तुम यही सब कर लोगे? अंशुल ने नयना को अपनी गोद में उठा लिया और पेड़ के पीछे दाई और घास की सेज पर लिटा दिया जहाँ साफ साफ चाँद की रौशनी पहुंच रही थी जहाँ से सारा नज़ारा बिना किसी परेशानी या रुकावट के देखा जा सकता था मगर ये देखने वाला वहा था कौन? कोई भी तो नहीं था.. नयना के मन में अंशुल का चेहरा देखकर फिर से वहीं ख्याल आने लगे थे.. नहीं नहीं.. ये मैं क्या कर रही हूँ? अंशुल मेरा भाई है.. सगा भाई.. और में उसके साथ ही.. नहीं.. मैं ये नहीं कर सकती.. ऐसा नहीं हो सकता.. मुझे अंशुल को रोकना होगा.. हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हो सकता.. ये सब पाप है.. गलत है.. नयना के मन जब तक ये सवाल आये तब तक उसके बदन से अंशुल ने कुर्ती उतार ली थी और अब नयना अंशुल के सामने घास पर सलवार के ऊपर ब्रा पहने लेटी हुई थी.. चाँद की रौशनी में नयना का गोरा बदन सोने की तरह चमक रहा था.. विकसित चुचे उसके छाती पर काले रंग की ब्रा से ढके हुए थे जिन्हे अंशुल ब्रा के ऊपर से मसल रहा था और चुम रहा था.. नयना अपने मन की गहराइयों में इस मिलने का मज़ा लेते हुए अपने मन की उपरी परत पर आज हुए खुलासे के घाव से परेशान थी.. वो समझ नहीं पा रही थी उसे क्या करना है वो एक पल कुछ तय करती और फिर अगले पल कुछ और..
अंशुल ने नयना की ब्रा के साथ ही अपनी शर्ट भी उतार दी और अब दोनों कमर से ऊपर नंगे थे अंशुल पूरी चाहत के साथ नयना को अपना बनाने में लगा था वहीं नयना अपने बदन की जरुरत और हालात से मजबूर थी वो चाहती थी तो अंशुल से दूर होना थी मगर उसका जिस्म उसे इस बाते की इज़्ज़त नहीं दे रहा था.. अंशुल नयना के छाती पर उभार को अपने मुँह से चाट रहा था और बार बार नयना की निप्पल्स को अपने मुँह में भरकर चूसता हुआ उसकी मादक सिस्कारिया सुन रहा था पूरा माहौल चुदाईमय बन चूका था जहाँ थोड़ी दूर कुतिया एक कुत्ते से चुदती हुई चीख रही थी वहीं यहां नयना जो अंशुल से दूर होना चाहती थी वो अंशुल के सर को सहलाती हुई अपने चुचे उसके मुँह में दे रही थी जिसे अंशुल बड़े ही प्यार से चूस रहा था और निप्पल्स दांतो से काटते हुए खींच रहा था.. अंशुल ने नयना बोबो को दबा दबा के और चूस चाट के लाल कर दिया था नयना की छाती पर गहरे निशान पड़ने लगे थे जिसमे नयना को आनंद की अनुभूति हो रही थी मर्द का प्यार उसे पहली बार मिला था..
अंशुल फिर से नयना के होंठो पर आ गया और नयना ने उसे फिर से अपने दोनों हाथ से अपनी मधुशाला का प्याला भरके अंशुल को अपने होंठ से पिलाना शुरू किया.. अंशुल का एक हाथ धीरे धीरे नयना के चेहरे से होता हुआ उसके कंधे फिर चुचे फिर नाभि और फिर नयना की सलवार में जा घुसा नयना को इसका अंदेशा भी नहीं था की अंशुल ने अपना एक हाथ उसकी सलवार में डाल दिया था वो तो बस होने लबों से अंशूल को चाहत के जाम पिलाने में मस्त थी उसके लिए यही सब अभी हो रहा था..
अंशुल का हाथ सलवार में नयना के पैर के जोड़ तक चला गया जहाँ नयन की बुर पनिया रही थी नयना की पैंटी बिलकुल गीली हो चुकी थी और बुर को छूने पर नयना और ज्यादा उत्तेजित होने लगी थी उसने अंशुल को और कसके जकड लिया था.. अंशुल के हाथ ने नयना की बुर को तालाशा तो अंदाजा लगाया की नयना की बुर बिलकुल साफ सुथरी है जिसपर अभी तक बाल का कोई नामो निशान नहीं है हलके से दो चार बाल आये भी है तो वो बुर के ऊपर मुहाने पर.. इतनी प्यारी और रसदार बहती चुत को अंशुल चोदने की इज़ाज़त लेने नयना की आँखों में देखता हुई उसकी बुर सहलाने लगा.. मगर नयना की आँख बंद थी वो अंशुल को पकडे हुए उसके चेहरे और आस पास के हिस्से चुम रही थी.
अंशुल ने अपना हाथ नयना की बुर से हटा लिया और फिर मादकता के नशे में डूबी हुई नयना को देखते हुए उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार नीचे सरका दी.. आँख बंद करके अंशुल की बाहों में पड़ी नयना अपने साथ होते इस सब घटनाक्रम को महसूस कर रही थी.. उसके बदन पर सिर्फ बुर के पानी से भीगी हुई पेंटी ही बची थी जिसे भी अंशुल ने अगले ही पल उसके बदन से अलग कर दिया था.. अंशुल की बाहों में अब एक पूरी नंगी जवान खूबसूरत हसीन लड़की लेटी हुई थी जो अपने हाथो से अपना चेहरा छुपाने की कोशिश कर रही थी.. अंशुल ने भी अपनी जीन्स उतार कर एक तरफ रख दी और वो भी अपनी प्राकृतिक अवस्था में आ गया.. अंशुल ने नयना के पैरों को खोला और उसकी गुलाबी चिकनी साफ बुर पर अपने होंठ रख दिए..
अंशुल को चुदाई कला का पूरा ज्ञान था उसने जो अनुभव पदमा धन्नो सुरीली से लिया था वो आज काम आ रहा था और यही कारण था की नयना जो पहले अंशुल से दूर जाने की सोच रही थी वो अब उसके सामने बेबस और लाचार बनकर लेटी हुई उसकी हर हरकत को प्यार कर रही थी.. अंशुल ने जैसे ही नयना की बुर पर अपने होंठ रखे नयना के मुँह से आह्ह... निकल गई और फिर नयना ने अंशुल के सर को अपने दोनों हाथो से एकसाथ अपनी बुर पर दबा लिया मानो कह रही को की अंशुल चुसो मेरी बुर को चाटो.. खा जाओ इसे.. मैं तुम्हे अपनी कच्ची बुर पर पूरा हक़ देती हुई.. मेरी बुर का घमंड तोड़ दो.. अंशुल बुर चाटते हुए उससे छेड़खानी कर रहा था जिससे नयना कुछ ही पलो में अंशुल के मुँह में झड़ गई और तुरंत बाद पेशाब करने लगी जैसे उसका अपने शारीर पर कोई नियंत्रण ही नहीं था.. अंशुल का मुँह नयना ने अपने बुर से निकले पानी से भर दिया जिसे अंशुल को पीना पड़ा.. नयना शर्म से लाल हो चुकी थी और कुछ हद तक झड़ने के बाद कामुकता के जाल से हलकी बाहर आई थी.. अंशुल भी अब अपनी लंड की ताकत से नयना को रूबरू करवाना चाहता था उसने नयना की बुर को चाटकर साफ किया और फिर अपने लोडे को उसकी बुर की दरार पर रगढ़ते हुए नयना का चेहरा देखने लगा जिसपर दुविधा के निशान थे जैसे वो इस मादकता के पलो में भी कुछ सोच रही हो..
अंशुल के लंड में पत्थर सी अकड़न थी जो पूरा खड़ा था अंशुल ने नयना की चुत पर लोडा रगड़ने के बाद उसके छेद के मुहने पर टिका दिया और दबाब बनाकर अंदर करने की कोशिश करने लगा.. नयना की बुर में पहली बार लंड वो भी अंशुल के जैसा बड़ा मोटा और मजबूत... नयना की हालात खराब हो रही थी उसके मन में चलते विचारो के बिच अंशुल ने उसकी बुर में अपना सुपाडा घुसा दिया था जिससे नयना सिसकने लगी.. नयना को होश आया की उसने तो अंशुल से दूर रहने का फैसला किया था फिर क्यू वो अपने बदन के बहकावे में आकर अपने सगे बड़े भाई के साथ सम्भग करने पर उतारू हो चुकी है? क्या उसके बदन की आग रिस्तो पर हावी हो गई है? नयना ऐसा नहीं कर सकती..... हां ये पाप है... ये सोचते हुए नयना ने अब अंशुल का विरोध शुरू कर दिया और अंशुल के लंड को पकड़ कर अपनी चुत से उसका सुपाडा बाहर निकलने की कोशिश करने लगी मगर अब तक बहुत देर हो चुकी थी.. अंशुल ने अगले ही पल एक झटके में अपना आधे से ज्यादा लंड नयना की बुर में घुसा दिया और नयना के दोनों हाथ पकड़ कर ऊपर की और उठा दिए.. नयना बिलकुल विचार शून्य हो गई उसे समझ नहीं आया की वो क्या करें पहली चुदाई की तकलीफ के बीच अंशुल की मनमानी ने उसे किसी लायक नहीं छोड़ा... उसकी आँख चौड़ी होगई जो उसे हो रहे पहली चुदाई के दर्द को बयान करने में सक्षम थी.. नयना की बुर से दो-तीन खून की बून्द भी बाहर आ गई थी जो बता रही थी नयना की ये पहली चुदाई है और अब तक उसने अपनी बुर में लोकी खीरा केला गाजर मूली कुछ नहीं डाला है...
आखिरकार नयना की इज़्ज़त अंशुल ने अपने नाम कर ही ली.. नयना अंशुल को देखते हुए सिसकियाँ ले रही थी और सोच रही थी की वो कैसी लड़की है जो अपने सगे भाई को अपनी इज़्ज़त दे रही है.. उससे बुरी लड़की शायद ही कोई और हो.. अंशुल ने नयना की बुर कुटाई अभियान की शुरुआत कर दी थी.. अंशुल रह रह कर झटके मारता हुआ नयना को चोदने लगा था हर झटके पर नयना का बदन ऊपर से नीचे तक पूरा हिल जाता और नयना मादक सिस्कारिया भरती हुई आवाजे इस माहौल में कामुकता के फूल खिला रही थी... एक तरफ कुतिया चुदते हुए आवाजे कर रही थी दूसरी तरफ नयना.. अंशुल और नयना इस चांदनी रात में ऐसे मिल रहे थे जैसे उसका मिलन ही दोनों का एक मात्र लक्ष्य हो.. नयना की चुत खुल चुकी थी और अब पानी छोड़ने लगी थी जिससे अंशुल का लंड आराम से अंदर बाहर हो रहा था और अब नयना अंशुल का कड़क तूफानी लंड चुत में मज़े से लेने लगी थी पर अब भी उसे वहीं ख्याल सताये जा रहा था..
नयना के दिमाग पर चुदाई से ज्यादा जब रिश्ते का ख्याल हावी हुआ तो उसने अंशुल को धक्का देकर अपने से दूर कर दिया जिससे अंशुल का लंड बुर से बाहर निकल गया नयना की आँख में आंसू आ गए थे वो कैसी लड़की है? इतना बड़ा पाप? इसका प्रायश्चित कैसे होगा सोचने लगी.. अंशुल नयना का ये बर्ताव समझ नहीं पाया था वो कुछ पल के लिए ठहर गया मगर उसके दिमाग में नयना को पाने की चाहत उफान मार रही थी.. नयना पलट गई थी उसकी पीठ अब अंशुल के सामने थी.. नयना अपनी गलती पर रोते हुए जैसे ही उठने की कोशिश करने लगी अंशुल ने नयना को उसी तरह से कमर पर हाथ लगाते हुए पकड़ लिया और घोड़ी की पोजीशन में लाते हुए फिर अपना लोडा नयना की चुत के अंदर घुसा दिया.. नयना को इस बात का अंदाजा भी नहीं था की अंशुल कुछ ऐसा करेगा.. वो बेचारी तो उठकर अपने कपडे पहनना चाहती थी मगर अब घोड़ी बनकर अपने बड़े भाई से चुद रही थी.. अंशुल नयना की कमर पकड़ कर झटके मारता हुआ उसे किसी बाजारू की तरफ पेल रहा था.. नयना के मन में वहीं सब चल रहा था ऊपर से चुदाई का सुख भी उसे मिल रहा था तो उसके मन की हालात जान पाना कठिन था.. अंशुल ने एक हाथ से नयना के लहराते हुए बाल पकड़ लिए थे और दूसरे से कमर थामे हुए था.. उसका लंड नयना की बुर में तहलका मचाये हुए अंदर बाहर हो रहा था.. अब लगभग कुत्ते कुतिया वाली पोजीशन में ही दोनों थे..
नयना के मुँह से सिस्कारिया और आँख से आंसू आ रहे थे, उसे अपने प्यार से पहले मिलन के सुख के साथ-साथ रिश्ते में बड़े भाई से चुदने का दुख भी हो रहा था.. नयना फिर से झड़ चुकी थी और अब अंशुल भी उसी राह पर था उसका झड़ना भी कुछ ही देर में होने वाला था वो नयना की बुर पर बार बार ताकत के साथ हमला कर रहा था जिससे नयना की आवाज और तेज़ होने लगी थी.. पहली बुर चुदाई वो भी इतनी बेरहमी से.. नयना की हालात पतली थी वो अब सही गलत छोड़ चुकी थी और बस इस लम्हे के ख़त्म होने का ही इंतजार कर रही थी वो अब आखिरी फैसला कर चुकी थी की ये अंशुल के साथ उसकी पहली और आखिरी चुदाई है.. अंशुल ने झड़ते हुए अपना सारा वीर्य नयना की बुर में खाली कर दिया जिसे नयना आसानी से महसूस कर सकती थी वो आखिरी बार आहे भर रही थी और आंसू पोंछ कर अपनी इस पहली चुदाई विश्लेषण करने की कोशिश कर रही थी..
अंशुल नयना को चोद कर एक पत्थर पर गांड टिका के बैठ गया और नयना घास में नंगी पेट के बल ही पड़ी रही उसका बदन इस चांदनी रौशनी में दिव्य लग रहा था जैसे कोई आसमान की परी अभी अभी नीचे उतरकर आई है और अंशुल को उसने सम्भोग का असली पाठ पढ़ाया है..
नयना लड़खड़ाती हुई जैसे तैसे खड़ी हुई फिर अपनी बुर से बहते अंशुल के वीर्य को अपनी उंगलियों से साफ किया और अपनी ब्रा पैंटी वापस पहन ली कुत्ते का लंड कुतिया की बुर में चिपक गया था जिसे दोनों देख रहे थे.. अंशुल और नयना आपस में ना बोल रहे थे ना ही एक दूसरे को देख रहे थे.. नयना अपनी सलवार कुर्ती भी पहन चुकी थी.. अंशुल पथर से उठा और वो भी अपने कपडे पहनने लगा.. कपडे पहन कर उसने पास खड़ी नयना को देखा और उसके पास आ गया.. अंशुल नयना का हाथ पकड़ कर उसे जंगल से बाहर ले जाने लगा मगर पहली चुदाई के कारण नयना के बदन में अकड़न और पैरों में लंगडापन आ गया था.. अंशुल ने नयना को गोद में उठा लिया और सडक की ओर आ गया.. नयन अंशुल को बड़े प्यार से देख रही थी मगर अब ये प्यार अपने बड़े भाई के लिए था वो अंशुल में अपना भाई देख रही थी..
अंशुल बाइक के पास पहुंचकर नयना को गोद से उतारता है और कहता है..
अंशुल - पता आज से सेकड़ो साल पहले यहां जंगल में एक काबिल रहता था.. **** नाम था उस क़ाबिले का.. बड़ी अजीब मान्यता थी उस काबिले की अगहन की पूर्णिमा को लेकर...
नयना कुछ नहीं बोलती और चुपचाप अंशुल के पीछे बैठ जाती है.. अंशुल बाइक चलाकर प्रभातीलाल के यहां पहुँचता है जहाँ प्रभतीलाल और लज्जो के साथ गाँव के कुछ लोग भी नयना के इंतजार में बैठे थे..
प्रभतीलाल और लाजो नयना को देखते ही गले लगा लेते और और उससे घर से जाने का कारण पूछने लगते है उसे लाड प्यार करने लगते है.. प्रभती लाल ने तो नयना के लंगड़ाने का कारण नयन के पैर की मोच समझा मगर लज्जो अच्छी तरह उसका मतलब समझ रही थी.. लज्जो ने आँखों ही आँखों में अंशुल से सारा किस्सा समझ लिया और नयना को होने साथ घर जे अंदर ले गई.. प्रभती लाल अंशुल से बाते करने लगा और उसका धन्यवाद करने लगा.. अंशुल ने प्रभती लाल से कह दिया था की वो नयना से ब्याह करना चाहता है और जल्दी ही प्रभती लाल घर आकर बालचंद से ब्याह की तारिक पक्की कर ले.... प्रभातीलाल नयना का मन जानता था और इस पर सहमति जताते हुए अंशुल को गले लगाकर बोला - तुम इस घर के जमाई नहीं बेटे बनोगे...
अंशुल नयना को घर छोड़ कर चला गया था और नयना अपने रूम में जाकर बिस्तर सोते हुए अपने आप को कोस रही थी की वो बदन की आग में रिश्ते भी भूल गयी? मगर उसका ध्यान अंशुल की आखिरी बात पर था.. वो क़ाबिले वाली बात.. नयना ने तुरंत अपना फोन निकाला और google पर उस क़ाबिले के बारे में पता लगाने लगी....
नयना क़ाबिले के बारे में पढ़ रही थी की पढ़ते पढ़ते उसकी आँख बड़ी हो गई... क्या? ऐसा कैसे हो सकता है? इसका मतलब मेरी मन्नत पूरी..... मगर क्या सच मे ऐसा हो सकता है?
नयना ने पढ़ा था की उस क़ाबिले में एक परंपरा थी जिसमे अगर अगहन की पूर्णिमा को कोई औरत मर्द चाँद की पूरी रौशनी में सम्भोग़ कर ले तो उन्हें पति पत्नी होने का दर्जा मिल जाएगा... इसका मतलब उस क़ाबिले की परम्परा से नयना अंशुल की पत्नी बन चुकी है.... नयना इसे झूठलाने की कोशिश कर रही थी.. और अपने आप को समझा रही थी की ऐसा नहीं हो सकता... अंशुल उसका भाई है और अब वो उसे सिर्फ भाई की नज़र से ही देखेगी.. और कोई दूसरा रिस्ता उससे नहीं रखेगी.. अपनी मोहब्बत का गला वो घोंट देगी.. नयना और अंशुल के बीच अब सिर्फ यही एक रिस्ता होगा.... नयना खुदको पापी समझ रही थी.. अंशुल ने जो किया अनजाने में था मगर नयना को सब पता था फिर भी.... नहीं अब ये नहीं होगा.. नयना ने दृढ़निश्चिय किया था....
अंशुल को घर पहुंचते पहुंचते सुबह के चार बज चुके थे जब वो घर आया तो पदमा की हालात देख हैरान था.. पदमा ने रात जागकर गुजारि थी और उसकी आँखे बोझल लग रही थी.. अंशुल पदमा को अपनी गोद में उठाकर अपने कमरे में ले गया और अपनी बाहों में लेटा कर प्यार से उसका सर सहलाते हुए सुलाने लगा था.. पदमा जो रात से अंशुल की याद में जाग रही थी वो अंशुल की बाहों में तुरंत सो गई...
अंशुल के लिए पदमा और नयना में कोई फर्क नहीं रह गया था वो दोनों को अपने पास रखना चाहता था और प्यार करना चाहता था उसका मन अब दोनों को चाहने लगा था.. उसकी बाहो में सो रही उसकी माँ पदमा उसे कितना चाहने लगी थी ये उसे आज की उसकी हालात से पता लगा......
दिन गुजरने लगे थे... दो महीने बीत गए मगर नयना की अंशुल से कोई बात न हो सकती थी एक दो बार अंशुल नयना से मिलने गया भी तो पता लगा नयना अपने चाचा के यहां गई हुई है उधर पदमा अब दिनरात बालचंद से नज़र बचकर अंशुल के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए आतुर रहती थी.. दोनों का प्रेम प्रगाड़ से भी अधिक मजबूत हो गया था... नयना अंशुल से बच रही थी वो नहीं चाहती थी की अब अंशुल उसे अपनी प्रेमिका के रूम में देखे और प्यार करे.. नयना बस अंशुल को अपना भाई समझने लगी थी और उससे भाई वाला रिस्ता कायम रखना चाहती थी.
एक दिन दोपहर को जब बालचंद ऑफिस में बड़े बाबू की गाली खा रहा था और बेज़्ज़त हो रहा था वहीं दूसरी तरफ उसकी बीवी अपने बेटे के सामने अपनी गांड फैलाये घर पर उसके ही बिस्तर में अपनी बुर चुदवा रही थी.... अंशुल पदमा के बाल पकड़ कर पीछे से उसकी बुर कुटाई कर रहा था और पदमा सिसकते हुए मज़ा ले रही थी... तभी अंशुल का फ़ोन बजा....
पदमा ने चुदते हुए फ़ोन उठा कर स्पीकर पर डाल दिया और अपना एक हाथ पीछे करते हुए अंशुल की तरफ फ़ोन कर दिया अंशुल अपने दोनों हाथ से पदमा की कमर थामे चोदता हुआ फ़ोन पर बात करने लगा...
हेलो...
हेलो.. आशु....
हां... मस्तु (अंशुल का शहर में रूमपार्टनर, पदमा के फलेशबैक में डिटेल से इसके बारे में लिखा गया है)
मस्तु - भाई अभी अभी तेरा परिणाम आया है...
अंशुल अपनी माँ चोदते हुए - अच्छा....
पदमा चुदते हुए सारी बाते सुन रही थी...
(मस्तु चुदाई की आवाजे साफ साफ सुन रहा था.. मगर वो जनता था ये किसकी चुदाई चल रही है इसलिए चुदाई के बारे में कुछ बोला नहीं..)
मस्तु - भाई कहा था मैंने तू पहली बार में निकाल लेगा.. निकाल लिया तूने.... अब तू सिर्फ अंशुल नहीं... ******* अंशुल है.. जल्दी से शहर आ बड़ी पार्टी लेनी है तुझसे... कहते हुए मस्तु ने फ़ोन काट दिया..
अंशुल ने पदमा को पलट दिया और अब वो मिशनरी पोज़ में पदमा के ऊपर आकर उसकी चुदाई करने लगा...
अंशुल - बधाई हो माँ.... अब तू सरकारी चपरासी की बीवी नहीं.. सरकारी अधिकारी की माँ है...
पदमा - आह्ह लल्ला.. तूने तो सच में अपना वादा पूरा कर दिया... मैं तो तुझे इस ख़ुशी के मोके पर कुछ दे भी नहीं सकती..
अंशुल - बिलकुल दे सकती हो माँ.....
पदमा - सब तो दे चुकी हूँ बेटा अब मेरे पास बचा ही क्या है?
अंशुल ने पदमा को होंठ चूमते हुए कहा - माँ मुझे तुम्हारी गांड चाहिए......
पदमा अंशुल की बात सुनकर शर्म से पानी पानी हो गई अब तक उसने अंशुल के दानवी लंड से डर कर अपनी गांड उसे नहीं दी थी मगर आज अंशुल ने उससे वहीं मांग ली थी...
पदमा ने मुस्कुराते हुए कहा - मैं तो खुद तुझे सब देना चाहती हूँ लेकिन डरती हूँ तेरे उस लोडे से... मगर ठीक है दो दिन बाद जब भालू शहर जाए तब ले लेना.. अंशुल झड़ चूका था..
दो दिन बाद दिन के करीब 2 बजे अंशुल चेयर पर बैठा हुआ किताब मे गुसा हुआ था की तभी उसकी फ़ोन की रिंग बजी अंशुल ने बिना नम्बर देखे फ़ोन उठा लिया ओर हेलो कहते हुए बात की शुरुआत की....
हेलो...
हेलो.....
जी....
आपसे बात करनी है....
कौन?
आपके घर के बाहर खड़ी हूँ... आप खुद लो....
अंशुल ने फ़ोन काटा और बाहर नीचे की तरफ देखा तो नयना एक पिले सलवार कमीज पहने बाहर खड़ी थी पदमा सोइ हुई थी ओर बालचंद का कहीं अता पत्ता नहीं था... अंशुल तुरंत नीचे जाकर अपनी बाइक स्टार्ट करता है नयना को पीछे बिठाकर घर से दूर ले जाकर एक सुनसान जगह पर बड़े से पेड़ के नीचे बाइक रोक कर नयना पर गुस्से मे चीखता हुआ बोलता है...
तुम्हारा दिमाग खराब है क्या?
पागल हो क्या तुम?
अकेले घर आ गई..
कोई इस तरह तुम्हे मेरे घर के सामने खड़े देख लेगा तो क्या होगा... सोचा है तुमने?
Free मे फेमस हो जाओगी ओर मुझे भी कर दोगी....
अंशुल एक ही सांस मे न जाने कितनी बातें नयना से कह गया था लेकिन नयना एकटक बस अंशुल के चेहरे को ही देख रही थी जैसे उसने पहली बार देखा..
अंशुल कि बातें नयना के कानो तक पहुंच रही थी या नहीं.. कह पाना मुश्किल था! वो सोच कर आई थी कि जब अंशुल उसके सामने आएगा तो उससे इंकार कि वजह पूछेगी.. उससे झड़गा करेगी, उसे इस ब्याह के लिए किसी भी तरह मनाएगी लेकिन यहां उल्टा अंशुल ही उससे झगड़ा कर रहा था..
जब अंशुल बोलकर चुप हुआ तो नयना ने अपनी मीठी आवाज़ मे अंशुल का हाथ पकड़ते हुए कहा..
आप प्लीज गुस्सा मत करिये..
मैं तो बस आपसे मिलने आई थी..
कुछ पूछना चाहती थी आपसे...
मेरा इरादा आपका दिल दुखाने का कभी नहीं हो सकता...
मैं तो प्यार करती हूँ आपसे.....
प्यार करती हूँ?
नयना की आखिरी लाइन सुनकर अंशुल का गुस्सा फुर्ररर हो चूका था और एक हैरानी उसकी आँखों मे उभर आई थी अंशुल गंभीर होता हुआ बोला-
प्यार? मुझसे? तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है? अंशुल ने डांटते हुए नयना से कहा तो नयना ने पलटकर पूरी दृढता और आत्मीयता के साथ जवाब दिया - हां.. प्यार... वो भी आपसे.. और हमारा दिमाग बिलकुल ठिकाने पर है!
एक बार के लिए अंशुल को समझ नहीं आया की नयना की बात का वो क्या जवाब दे? आज से पहले कभी किसी लड़की ने उसके साथ इस तरह से बात नहीं की थी और ना ही अंशुल प्यार के चक्कर मे पड़ा था जो उसे इस बात का अनुभव होता.. अंशुल बस एक हैरान कर देने वाली निगाह के साथ अपने सामने नज़र झुकाये खड़ी 19 साल की उस नवयोवना सुन्दर रूपबाला को देख रहा था जिसके अंग अंग से उसका जोबन झलक रहा था और जिसने अभी अभी अपने दिल की बात अंशुल के सामने बिना किसी झिझक और लोकलाज के रख दी थी...
अंशुल उसकी इस बात का क्या जवाब दे?
ऐसा नहीं था की नयना एक साधारण रूपसी कन्या थी उसकी सुंदरता अद्भुत थी वो जिसे भी चाहती वही उसे आसानी से अपनी अर्धांगिनी बना सकता था, लेकिन अंशुल के ह्रदय पर नयना के रूप और माधुर्य से कहीं अधिक गहरी अपनी माँ पदमा के प्रेम की छाप थी जिसके सामने एक बार पहले भी नयना परास्त हो चुकी थी.. अंशुल और नयना के बीच काफ़ी देर तक ख़ामोशी ने अपना वर्चस्व जमाये रखा जिसे आखिर मे अंशुल ने ही तोड़ा..
देखो मैं तुम्हे मलखान काका के यहां छोड़ देता हूँ तुम वहा से वापस अपने घर चली जाओ... ठीक है? और दुबारा ऐसी हरकत करने की सोचना भी मत..
अंशुल जब ये कहकर पास मे खड़ी अपनी बाइक की और मुड़ा तो नयना पीछे से बोल पड़ी - ये मेरी बात का जवाब नहीं है.. मैं प्यार करती हूँ आपसे.. मुझे ब्याह कराना आपके साथ..
इस बार नयना ने अपनी बात कहकर नज़र नहीं झुकाई बल्कि अंशुल के चेहरे को देखने लगी जैसे उसे अंशुल के जवान का इंतेज़ार हो.. अंशुल जब वापस नयना की तरफ मुड़ा तो उसने देखा की नयना बिना किसी शर्म लिहाज़ और परदे के उसके सामने खड़ी उसे ही देखे जा रही थी जैसे वो एक लड़की ना होकर कोई लड़का हो जो किसी लड़की से अपने दिल की बात कह रहा हो! अंशुल के पास अब भी नयना की बात का कोई जवाब नहीं था और उसे अब भी समझ नहीं आ रहा था की वो नयना की बात का क्या जवाब दे? अंशुल के चेहरे पर एक शर्म उभर आई थी जिसे नयना ने साफ परख लिया था और अब उसकी झिझक पूरी तरह खुल चुकी थी..
नयना तो आई ही इसलिए थी की किसी भी तरह वो अंशुल को ब्याह के लिए राज़ी करके ही रहेगी मगर अंशुल अब भी किसी निरमोही की तरह सामने खड़ी उस बला की खूबसूरत लड़की के प्रेम निमंत्रण को अस्वीकार कर उसके दिल को अपने निर्दयी शब्दों के नुकीले बानो से छलनी कर रहा था.
प्यार प्रेम ये सब बस किस्से कहानियो मे अच्छे लगते है नयना..
अपने पीता से कहना किसी बड़े महल मे राजकुमार के साथ तेरा ब्याह कर दे..
मेरा घर देखा है ना तूमने? कई बार ज्यादा बारिश मे छत की सीलन से पानी टपकने लागत है..
सोते सोते आँख खुल जाती है..
आँगन की दीवारो से झड़ता हुआ प्लास्टर कई बार मेरी खाने की थाली मे गिरा है..
एक साडी खरीदने से पहले चार दुकानों पर मौलभाव करने के लिए चक्कर लगाती है मेरी माँ...
और बाप तो मंदिर के आगे से ही चप्पल चुराता है ताकि खरीदनी ना पड़े..
देख.. मेरे साथ ये प्यार व्यार का नाटक छोड़..
जाकर किसी और को पकड़..
मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ और नहीं होना चाहता..
तू और मत कर.......
अंशुल अपनी बाइक को स्टार्ट करते हुए - चल बैठ.... मलखाम काका के यहां छोड़ देता हूँ...
नयना बाइक की चाबी बंद करके अंशुल की आँखों मे आँख डालके पूरी निश्चयता के साथ कहती है -
मैं रह लुंगी तुम्हारे साथ..
जैसे भी हाल मे रखोगे रह लूंगी..
जैसा कहोगे वैसा करुँगी..
जो खाने को दोगे खा लुंगी....
कभी आपसे किसी बात की शिकायत नहीं करुँगी..
ना ही कभी किसी चीज की मांग करुँगी..
मेरा आपसे लगाव सिर्फ आकर्षण नहीं है मेरा प्रेम है.. मैं आपको पाने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ..
मेरा आपके बगैर रहना अब नामुमकिन है आशु...
नयना की बातें अंशुल के दिल को और उसके निश्चय को कामजोर कर रही थी जिसे अंशुल अच्छी तरह समझ रहा था. वो नहीं चाहता था की उसकी वजह से नयना को तकलीफ हो लेकिन अंशुल पदमा को छोड़मार नयना के साथ अपना भविष्य नहीं सोच सकता था अंशुल ने खुदको बिखरने से बचाते हुए झूठे क्रोध का दिखावा करते हुए नयना से कहा -
अंशुल - लेकिन मैं तेरे साथ नहीं रह सकता.. तुझे समझ क्यूँ नहीं आता? ब्याह तो बहुत दूर है मैं तुझसे अब आगे बात तक नहीं करना चाहता.. अब चलना है तो कहो वरना वहीं छोड़कर चला जाऊंगा...
नयना को अंशुल के झूठे क्रोध मे छुपे भय का आभास हो गया था मगर वो नहीं जानती थी की इसके पीछे की आखिर क्या वजह है जिसे अंशुल उससे छीपा रहा था अगर नयना उसे जान लेती तो शायद कोई हल निकाल पाती.. मगर अंशुल उसके बारे मे बात करने को त्यार नहीं था अंशुल को नयना से इसलिए भी चीड़ हो रही थी की वो उसके दिल को कमजोर कर रही थी उसकी बातें किसी हाथोड़े की तरह उसके दिल का दरवाजा तोड़ती जा रही थी..
उसपर सबसे बड़ी चोट अब होने वाली थी नयना ने अंशुल की गिरेबान पर अपना हाथ रखते हुए अंशुल की आँख मे आंख डाल कर पूछा -
क्यूँ नहीं करना चाहते मुझसे ब्याह?
कोई कमी है मुझमे? हम्म्म्म? बताओ?
क्या कमी है मुझमे? बोलते क्यूँ नहीं?
जवान हूँ.. तुमसे ज्यादा खूबसूरत हूँ... हसीन हूँ..
इंटर पास हूँ...
अच्छा गाना आता है... नाचना आता है...
हर तरह से आपका ख्याल रख सकती हूँ...
खाना बनाने से लेकर आपकी गालिया खाने तक सब कर सकती हूँ....
फिर भी आपके इंकार का क्या कारण है?
आपको क्या लगता है आप कहीं के शहजादे हो?
आपके लिए आसमान से कोई हूर परी जमीन पर आएगी?
क्या लगता है आपको?
मैंने सिर्फ आपकी सूरत देखकर आपसे प्यार किया है?
उस दिन कजरी के ब्याह मे जब सब लोग अपनी धुन मे मस्त थे और नाच गा रहे थे तब फटे-पुराने मेले-कुचले कपडे पहनें खाने की कतारो का मुँह देखकर भूख से तिलमिलाती उन छोटी बच्चियों को जिन्हे अंदर आने से डर लग रहा था आपने जिस प्यार से अपने हाथो से खाना खिलाया था ना... उसी वक़्त आपको अपने दिल मे बसा लिया था मैंने..
आपकी नेकदिली ने मेरा दिल जीता था..
मेरी एक बात याद रखना आप..
अगर आप मेरे नहीं हुए तो मैं आपको मेरे जीतेजी किसी और का भी नहीं होने दूंगी..
अगले अगहन की पूर्णिमा का मुहूर्त निकाला था आपके और मेरे पीता ने मिलकर हमारी शादी का....
अगर उस दिन आप मेरे घर बारात लेकर नहीं आये तो फिर अगले दिन बिनबुलाये मेरी अर्थी को कन्धा देने जरुर आना..
अंशुल नयना की बातें किसी बूत की तरह खड़ा हुआ सुन रहा था इस बार उसके दिल का दरवाजा नयना के शब्दों की चोट से टूट चूका और नयना उसमे प्रवेश करने मे सफल रही थी..
अंशुल का मन अभी नयना को गले लगाकर उसके गुलाब की पंखुड़ीयों के सामान होंठ चूमने का हो रहा था वो कहना चाहता था की नयना.. मैं तुम्हारे पैरों की धूल भी नहीं हूँ... तुम मेरे जैसे मामूली आदमी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने का संकल्प क्यूँ कर रही हो? क्यूँ तुमने अपने मरने की बात मुँह से निकली? हाय रे... ये केसा दोराहा आकर मेरी जिंदगी मे खड़ा हो चूका है?
एक तरफ पदमा है जिसके साथ मे अपनी सारी जिंदगी बीतना चाहता हूँ और अपने प्यार से उसका जीवन हमेशा के लिए खुशहाल रखना चाहता हूँ उसकी एक मुस्कान के लिए अपनी जान दे सकता हूँ जो मेरे दिल पर एकक्षत्र राज करती है वहीं अब दूसरी तरफ नयना आकर खड़ी हो चुकी है जिसने अपने रूप के साथ साथ अपने शब्दों और अटूट प्रेम की सौगात से मेरे दिल पर अपना अधिकार करने की चेष्टा की है और मेरे वियोग मे अपने प्राणो को त्यागने की बात कह रही है..
अंशुल अभी नयना को अपने सीने से लगाकर कह देना चाहता था की नयना मैं भी ब्याह करना चाहता हूँ लेकिन उसे जैसे कोई अदृश्य शक्ति ये कहने से रोक रही थी! हो न हो इस शक्ति मे जरुर पदमा का ख्याल ही छीपा हुआ था... अंशुल नयना की सारी बात सुनने के बाद भी उसी स्वर मे नाटकिये अंदाज़ मे उससे बोला -
चुपचाप पीछे बैठो, समझी?
मुझे वापस घर भी जाना है....
और भी काम है तुम्हारे साथ यहां खड़े रहने के अलावा..
चलो... जल्दी करो....
थोड़ी देर मे शाम होने वाली है....
क्या.....?
हे भगवान..
केसा बैरागी निरमोही और नीरस है ये लड़का...
मेरी इतनी बातों का जरा भी असर नहीं हुआ इस पर?
सच मे मेरे मरने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा इसे?
कैसे बेरूख होकर मुझसे बात कर रहा है...
अगर प्यार नहीं करती तो मुड़कर देखती भी नहीं इसकी तरफ....
अपने आपको कहीं किसी बड़ी रियासत का राजा समझता है..
तेवर तो देखो सहजादे के....
ठीक से मेरी तरफ देखकर बात तक नहीं की... हाय रे..
नयना मन ही मन ये सब सोच रही थी की अंशुल ने फिर कहा -
अब ख़डी खड़ी मेरी शकल क्या देख रही हो?
चलो बैठो... पेट्रोल कम है यही सारा फूक गया तो पुरे रास्ते चल के जाना पड़ेगा दोनों को...
चलो अब बैठो....
नयना इस बार अंशुल की बात से चिढ़ गई और उखड़े हुए स्वर मे बोली - मुझे नहीं बैठना.... चली जाउंगी मैं अपनेआप.... आपको मुझसे कोई फर्क नहीं पड़ता तो झूठमुठ ये दिखावा क्यूँ करते हो?
अंशुल - तुमसे पूछा नहीं रहा हूँ.... बता रहा हूँ.... चुपचाप बैठ जाओ वरना अच्छा नहीं होगा....
अंशुल की आवाज़ मे इस बार कुछ ऐसा जादू था कि नयना बिना कोई वाद विवाद किये अंशुल के पीछे बैठ गई और अपने दोनों हाथो से अंशुल को बाहों मे कस लिया मानो वो पूछ रही हो कि अंशुल क्या तुम मुझे यूँही अपनी बाइक के पीछे बिठाना चाहोगे? अंशुल नयना कि पकड़ से और भी उसकी तरफ आकर्षित हो जाता है और बिना उसकी पकड़ का विरोध किये बाइक चला कर मलखान के घर कि और चल देता है... ये सफर नयना के दिल पर एक अमिट यादगार छाप छोड़ रहा था वो कब से अंशुल के साथ इसी तरह से चिपककर बैठे हुए सेर सपाटा करने के ख़्वाब देखती आ रही थी आज उसका वो ख्वाब कुछ देर के लिए ही सही पूरा जरुर हुआ था.. इस बार अंशुल भी नयना को खुदको छूने से नहीं रोक रहा था जिसका सीधा सीधा मतलब नयना ने अंशुल के दिल कि हामी समझा था और प्यार से बाइक कि पिछली सीट पर बैठे मन ही मन खुश होती हुई इस छोटे से सफर का मज़ा ले रही थी....
अरे रोको रोको.. रोको ना...
अंशुल बाइक सडक किनारे रोकते हुए - अब क्या हुआ?
नयना बाइक से उतरकर - चलो....
अंशुल - कहा?
नयना अंशुल का हाथ पकड़कर - चलो... बताती हूँ....
अंशुल - जंगल है नयना.... कोई जानवर आ सकता है..
नयना - कोई नहीं आएगा आप चलो..
नयना अंशुल का हाथ पकड़ के जंगल से गुजरने वाली सडक से दाई तरफ के जंगल मे थोड़ा अंदर लेकर जाती है जहाँ कुछ दूर चलकर एक पड़ा सा बड़ का पेड़ आता है देखने मे बहुत पुराना और विशालकाय ये पेड़ किसी भूतिया पेड़ जैसा लगता था नयना वहा रुक जाती है और उसके पेड़ के सामने खड़ी होकर अंशुल को देखने लगती है......
अंशुल - नयना यहां क्यूँ लाइ हो?
नयना अंशुल का हाथ पकड़कर - आशु.... मैंने अपना सारा बचपन बहुत बेबसी मे गुजारा है.... जब मैं 7-8 साल की थी और थोड़ी सोचने समझने लायक हुई तब घर मे एक जून खाने के लिए भी नहीं होता था... अक्सर मुझे भी माँ पापा के साथ सिर्फ पानी पीकर भूखे पेट सोना पड़ता था.... पापा रात मे मुझे भूखे पेट सोते देखकर रोते थे और माँ उन्हें दिलासा देकर ढांडस बंधवाती थी... अगले एक साल तक ऐसा ही चलता रहा, फिर एक दिन एक बहुत बूढ़ी औरत गाँव मे आई.. कोई उसे डाकिन कहता तो कोई चुड़ैल या काला जादू करने वाली बुढ़िया कह कर पुकारता.. वो सिर्फ पेट की आग बुझाने के लिए लोगों से खाना मांगती थी मगर कोई उसकी मदद नहीं करता... एक रोज़ गाँव के मंदिर मे उत्सव हुआ पुरे गाँव को भोज का निमंत्रण था... उस रात मैं भी मंदिर मे माँ पापा के साथ खाना खाने गई थी... खाना खाते हुए मैंने थोड़ा सा अपने कपड़ो में छुपा भी लिया था! जब मैं मंदिर से बाहर आई तो देखा की कुछ लोग उस बुढ़िया को पिट रहे थे.. शायद वो बुढ़िया भी खाना खाने वहा आई थी जिससे नाराज़ होकर कुछ लोग उसके साथ मार पिट कर रहे थे.. वो बुढ़िया दर्द से चिल्ला रही थी.. चीख रही थी.. रो रही थी... मगर पूरा गाँव खड़े खड़े बस तमाशा देख रहा था उस भीड़ मे खड़े हुए किसी भी आदमी-औरत बच्चे-बूढ़े अमीर-गरीब किसीको भी उस बुढ़िया पर तरस नहीं आया...
बुढ़िया जैसे तैसे वहा से अपनी जान बचाकर भाग निकली और मैं भी माँ-पापा की नज़र बचाकर उस रात उस बुढ़िया का पीछा करते करते यहां इस पेड़ तक आ गई... उस रात इसी पेड़ के नीचे जब वो बुढ़िया बैठकर अपने जख्मो पर मिट्टी लगा रही थी तब मैंने मंदिर मे खाना खाते वक़्त अपने कपड़ो के अंदर चुराया हुआ खाना उस बुढ़िया को निकाल कर दे दिया...
बुढ़िया मुझे देखकर हैरान थी...
मुझे अँधेरे से बहुत डर लगता है आशु....
मगर उस रात न जाने कैसे मुझमे इतनी हिम्मत आ गई की मैं अकेले इस जंगल मे उस बुढ़िया के पीछे पीछे चली आई थी... बुढ़िया ने मेरे हाथ से खाना ले लिया और खाते हुए कहा की अब से मुझे जो कुछ भी चाहिए यहां इस पेड़ के नीचे आकर उससे मांग लिया करे.... मुझे बुढ़िया की बात बहुत अजीब लगी.. मैंने उसपर विश्वास नहीं किया और वापस गाँव लौट गई... जब मैं घर पहुंची तो देखा की हर तरफ मुझे ही खोजा जा रहा था पापा की तबियत ख़राब हो गई थी वैध को दिखाने के लिए एक पैसा तक घर मे नहीं था सुबह बड़े जतन करने के बाद आस पास के लोग पापा को सरकारी अस्पताल लेकर गए जहा डॉक्टर ने पापा के ज़िंदा बचने की कोई उम्मीद नहीं जताई थी..... तब मुझे बुढ़िया की बात याद आई और मैं यहां वापस आ गई.. इस पेड़ के सामने खड़ी होकर उस बुढ़िया से अपने पापा की जिंदगी मांगने लगी और कुछ दिनों के अंदर ही पापा फिर से पहले की तरह तंदरुस्त हो चुके थे तब मुझे बुढ़िया पर विश्वास हुआ.... उसके कई महीनों बाद एक रोज़ जब मैं पापा के साथ यहां से गुजर रही थी तब मैं वापस यहां आई और माँगा की मुझे कभी भूखा नहीं सोना पड़े.... उस दिन के बाद घर के हालत बदल गए और मुझे आज तक कभी भूखा नहीं सोना पड़ा और ना ही फिर कभी यहां आने की जरुरत पड़ी...
आशु आज इतने सालों के बाद मैं यहां वापस अपने लिए मन्नत में आपको माँगने आई हूँ.....
अगर मेरा प्यार सच्चा है तो आपको मुझसे कोई नहीं छीन सकता... आप खुद भी नहीं....
नयना की बात सुनकर अब तक अंशुल किसी व्यथा के महासागर मे डूब चूका था और अपने मन के आकाश मे चीख चीख कर कह रहा था की मैं भी तुम्हारा तू नयना..... मैं भी तुम्हारा हूँ.... तुम भी अब मेरे दिल के अंदर प्रवेश कर चुकी हो मगर पदमा का प्रेम उसके अंतर्मन को बार बार उसके काबू से बाहर होने से रोक रहा था और उसे समझा रहा था की उसके लिए कौन पहले है पदमा अंशुल के दिल की ज़मीन पर नयना से कहीं अधिक गहरी समाई हुई थी....
अंशुल ने नयना की सारी बात सुनकर सिर्फ इतना कहा - अब वापस चले.... मुझे लेट हो रहा है....
इस बार नयना के पास भी बोलने को कुछ नहीं रह गया था वो चुपचाप अंशुल के साथ वापस आ गई और फिर से एक बार अंशुल के पीछे बैठकर अपनी बाहों मे उसे कस्ते हुए अपनी मन्नत दोहराने लगी थी.. कुछ ही देर मे अंशुल नयना को मलखान के यहाँ छोड़ आया जहाँ से नयना वापस अपने घर लौट गई....
अंशुल नयना को छोड़कर जब वापस घर आया तो शाम हो चुकी थी और उसके मन मे नयना के ही ख्याल चल रहे थे आज जैसे नयना ने उसपर जादू कर दिया ऐसा जादू जिससे अंशुल चाह कर भी बाहर नहीं निकाल पा रहा था और नयना कर बारे मे ही सोच रहा था...
अब तक बालचंद भी वापस बड़े शहर अपनी ड्यूटी बजाने चले गए थे और घर मे सिर्फ पदमा ही रह गई थी जिसे देखते ही अंशुल नयना के ख्यालो से एकदम से बाहर आ गया जैसे पदमा ने अंशुल को नयना की गिरफ्त से आजाद करवा लिया था पदमा को देखते ही अंशुल फिर से एक बार पहले की तरह पदमा के मोह मे बंध गया और अब नयना की सारी बातें उसे इतना तंग नहीं कर रही थी जितना पहले कर रही थी और पदमा की नज़र उसपर पड़ते ही वो जैसे नयना की यादो से पूरी तरह आजाद हो चूका था....
अरे लल्ला.... कहा गया था तू?
फ़ोन अपने साथ लेकर जाना चाहिए था ना....
तेरे पापा को पेदल ही बस स्टैंड तक जाना पड़ा....
कम से कम तू बता कर तो जाता....
यूँ ही बिना बताये निकाल गया....
खैर अब छोड़.....
देख तेरी मनपसंद ख़िर बनाई है....
जरा चख के तो देख... कैसी बनी है?
पदमा पुरे स्नेह और खुले निमंत्रण के साथ अंशुल को अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी जैसे वो कह रही हो की अंशुल... क्या मैं अकेली तुम्हारे लिए काफी नहीं? क्या तुम मेरे अलावा भी किसी को अपनी जिंदगी मे शामिल करना चाहते हो? क्या तुम मुझसे खुश नहीं हो? क्या मुझसे कोई गलती हो गई है अंशुल?
अंशुल रसोई में खाना पक्का रही अपनी माँ पदमा की बात सुनकर उसकी ओर बढ़ गया और अपनी बाहों मे लेकर बिना कुछ कहे सीधे उसके लबों को अपने लबों की क़ैद मे ले लिया ओर बारी बारी से उसके ऊपरी ओर निचले होंठो को चूमते हुए जीभ को चूमकर मुस्कुराते हुए पदमा की बात का जवाब देते हुए कहने लगा -
अंशुल - माँ.... ख़िर बहुत ज्यादा मीठी है.... लगता है शक्कर ज्यादा डाल दी आपने....
अंशुल की बात सुनकर पदमा अंशुल को देखते हुए पूरी तरह खिलखिलाती हुई जोर जोर से हँसने लगी उसकी हंसी पुरे घर मे सुनाई दे सकती थी पदमा ने हँसते हुए अंशुल के होंठों को अपनी उंगलियों से पकड़ लिया ओर हलके से दबती हुई उसके मासूम चहेरे को देखकर कटोरी मे निकाली हुई ख़िर खिलाती हुई बोली...
पदमा - अब ठीक है मीठा?
अंशुल अपनी माँ पदमा के इस तरह ख़ुशी से हँसने पर मन्त्रमुग्ध हो चूका था उसे पदमा के अलावा ओर कोई दिख ही नहीं रहा था जिसे वो अपने साथ सोच भी सकता था पदमा की एक हँसी ने नयना की सारी बातें सारे जतन ओर कोशिशो पर मिट्टी डाल दी थी... पदमा का प्रेम नयना के सम्मोहन पर पूरी तरह से भारी पड़ा था और अंशुल को एक पल मे नयना के ख्यालो से रिहाई मिल गई थी.. अंशुल का दिल जोर जोर से धड़क रहा था वो अपनी बाहों मे क़ैद अपनी माँ पदमा के मुस्कुराते चहेरे को ही देख रहा था.. अंशुल पदमा के लिए किसी भी हद से गुजर सकता था और ये उसका प्रेम था अपनी माँ के लिए, जिसे वो हर हाल मे खुश और हस्ता हुआ देखना चाहता था...
अंशुल ने अपनी माँ पदमा देवी को अपनी बाहों की क़ैद से आजाद किया और रसोई से बाहर अपने रूम मे आ गया फिर अलमारी खोलकर कुछ चीज अपनी जेब मे डाली और वापस नीचे रसोई की तरफ आ गया... इस बार अंशुल ने रसोई का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और कुछ देर बाद रसोई से पदमा की मादक सिस्कारिया बाहर आने लगी जिसे सुनकर कोई भी अंदर की दशा और हाल भाँप सकता था, अंदाजा लगा सकता था...
करीब एक घंटे बाद जब रसोई का दरवाजा खुला तो पदमा अंशुल की गोद मे थी और उसके बदन पर कपडे बिलकुल अस्त व्यस्त थे.. अंशुल अपनी माँ पदमा को गोद मे उठाये उसे चूमता हुआ रसोई से बाहर निकला और पदमा को अपनी गोद मे उठाये पदमा को उसके कमरे मे लेकर आ गया फिर बिस्तर पर लेटाते हुए बोला....
अंशुल - sorry.... माँ..... खड़े खड़े आपको तकलीफ हुई होगी.... पैर दर्द कर रहे होंगे आपके....
पदमा मुस्कुराती हुई अंशुल को अपनी तरफ खींचती है और उसके होंठों से खेलती हुई जवाब देती है - हम्म्म दर्द तो कर रहे है.... तुम दबा दो अपनी माँ के पैर...
अंशुल मुस्कुराते हुए - अभी दबा देता हूँ....
ये कहकर अंशुल अपनी माँ की साडी जो रसोई मे पूरी खुल चुकी थी और बाद मे पदमा ने ऐसे ही बेढंगी तरीके से अपने बदन से लपेट रखी थी थोड़ा ऊपर सरकाकर पदमा के पैर दबाने लग गया..
पदमा अपने पैर दबाते अंशुल को इस तरह देख रही थी जैसे सालों पहले छोटे अंशुल को देखा करती थी....
पदमा मुस्कुराते हुए - आशु वहा से सिगरेट दे दो.....
अंशुल पैर दबाता हुआ खड़ा हुआ और पदमा के बताई जगह से सिगरेट और लाइटर लेकर पदमा के पास आ गया और अपने हाथो से एक बड़ी एडवांस सिगरेट अपनी माँ पदमा के गुलाबी होंठों पर लगाकर लाइटर से सिगरेट सुलगता हुआ सिगरेट का पैकेट और लाइटर बेड के सिरहाने रख कर वापस पदमा के पैरों मे आ गया और उसके पैर दबाने लगा...
पदमा सिगरेट के कश लेटी हुई अपने पैरों मे बैठे अपने बेटे को इस तरह से अपने पैर दबते देखकर किसी ख्यालों के सागर मे डूब गई....
पदमा का बचपन कठिनाई मे बिता था उसके माता-पीता को बेटा चाहिए था लेकिन पहले उसकी बड़ी बहन गुंजन और फिर पदमा के जन्म से सभी लोग दुखी थे उसके बाद जब उसके छोटे भाई निरंजन का जन्म हुआ तो सारा प्यार उसी के हिस्से आया गुंजन और पदमा तो बस घर मे काम मात्र के लिए रह गई थी उसीके साथ उसकी बड़ी बहन गुंजन की भी यही दशा थी... गुंजन के साथ तो उसके पीता कमलनाथ ने जो किया था वो कहना भी अशोभनीय है हवस की आग मे अपनी बेटी के साथ उसकी सहमति के बिना कमलनाथ ने भोग किया था जिसे छुप कर पदमा ने देखा था... फिर किसी अमीर घर मे बूढ़े आदमी के साथ गुंजन का ब्याह करवा दिया था और यही कमलनाथ पदमा के साथ करना चाहता था लेकिन किसी तरह पदमा इन सब से बच गई फिर भी उसका ब्याह उससे उम्र मे बारह साल बड़े बालचंद से हुआ जिसने कभी पदमा को पूरी तरफ से देह का सुख नहीं दिया था.. शादी के कुछ साल बाद तो बालचंद मर्द भी नहीं रह गया था और पदमा की किस्मत फिरसे एक बार उसपर कहर बनकर टूटी थी.....
बालचंद के साथ उसे ना अच्छी जिंदगी नसीब हुई थी ना ही शारीरिक जरुरत पूरा हुई थी पदमा अपनी भारी जवानी मे ही किसी बुढ़िया सी हो चुकी थी जिसे अपनी जिंदगी से कोई उम्मीद न रह गई हो..
ऐसे मे अंशुल का उसकी वीरान पड़ी जिंदगी मे फरिश्ता बनकर आना और उसे हर वो सुख देना जो वो चाहती थी उसके लिए वरदान बन गया था.. उसकी उदासी भरी बंजर जिंदगी मे अंशुल ने बहार भर दी थी.. अंशुल के हाथ लगते ही पदमा का अंग अंग वापस खिल उठा था उड़के मन मे मोर नाचने लगे थे....
पदमा सिगरेट के कश लेती हुई सोच रही थी की अंशुल आज भी क्यूँ उसका इतना ख्याल रखता है? उसे अपनी पलको पर बैठाता है? उसकी हर बात मानता है? और कभी उड़के साथ कोई बदतमीजी नहीं करता जबकि अंशुल पदमा से पिछले कुछ महीनों मे जब से वो शहर से आया था सैकड़ो बार सम्भोग कर चूका था क्यूँ अंशुल उसे कभी अकेला नहीं छोड़ता और हमेशा उसके साथ ही रहता है....
पदमा हमेशा से अंशुल को प्यार करती थी लेकिन जब से अंशुल ने उसके सुने जीवन मे खुशियों के रंग भरे थे वो अंशुल से और भी ज्यादा जुड़ गई थी... एक माँ और प्रेमिका दोनों का किरदार पदमा अच्छे से निभा रही थी आज पदमा को अंशुल पर कुछ ज्यादा ही प्यार आ रहा था....
पदमा ने सिगरेट का आखिरी कश लेकर अपने घुटनो तक ऊपर उठी अपनी साडी को धीरे धीरे और ऊपर सरका लिया और अंशुल को देखती हुई साडी कमर तक उठाकर पहले से नंगी पड़ी हुई बाल रहित गुलाबी चिकनी खिली हुई बुर को अपनी उंगलियों से हल्का सहलाते हुए अंशुल से बोली - आशु... बेटा माँ को यहां भी दर्द हो रहा है.... थोड़ा यहां भी दबा दो....
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अंशुल अपनी माँ पदमा के इशारे और मन की भावनाओं को अच्छे से समझता था उसे कभी बातों से कोई चीज समझने की जरुरत नहीं पड़ी..
पदमा और अंशुल मे कुछ ऐसा तालमेल था जो बहुत कम ही देखने को मिलता है.... अंशुल पदमा के पैर दबाना छोड़कर पदमा की झांघो के जोड़ पर आ गया झट से अपनी जीभ पदमा की सुनहरी बुर पर लगाकर उसकी मसाज करने लगा.. पदमा ने एक और सिगरेट जला ली थी जिसके कश लेती हुई वो अंशुल की बुर चुसाई और चटाई का भरपूर आनंद ले रही थी उसे जैसे इस समय जन्नत का मज़ा मिल रहा था...
पदमा अपने एक हाथ से अंशुल का सर सहलाती हुई उसे प्यार भरे शब्दों से उत्तेजित कर रही थी और सिगरेट के कश लेती हुई अंशुल की आँखों मे देखकर इशारो से सवाल कर रही थी मानो पूछ रही हो की अंशुल को इस वक़्त केसा लग रहा है? और अंशुल अपनी मुस्कुराहट से अपनी माँ के सवाल का जवाब देते हुए बता रहा हो की उसे कितना मज़ा आ रहा है.... कुछ देर बाद अंशुल उठकर दरवाजा बंद कर देता है जो अगले दिन बाहर से आ रही किसी की आवाज़ से खुलता है....
दिन के 2 बज रहे थे अंशुल अपनी माँ पदमा की बाहों मे सो रहा था दोनों की हालत देखकर पत्ता लगाना बेहद आसान था की दोनों ने पिछली रात जागकर बिताई थी.. एक पतली चादर के अंदर पदमा और अंशुल बिना किसी कपडे के एकदूसरे की बाहो मे सो रहे थे जैसे कोई नव विवाहित जोड़ा अपनी सुहागरात पर सो रहा हो.. दोनों के कपडे इधर उधर पड़े थे साथ ही ज़मीन पर 2 कंडोम भी पड़े थे जिसमे आशु का वीर्य साफ देखा जा सकता था और सिरहने से दाई तरह थोड़ा दूर रखा एक पुराना बर्तन जिसमे 4-5 सिगरेट का कचरा साथ ही बेड के नीचे शराब की आधी खाली बोतल और एक गिलास जिसमे अभी थी कुछ जाम बचा हुआ था... बाहर से किसी के दरवाजा पीटने की आवाज़ आ रही थी जिसे सुनकर अंशुल और पदमा एक साथ नींद से जाग उठे...
पदमा तो घड़ी मे समय देखकर गुस्से से बड़बड़ा पड़ी - किसकी मईया के भोसड़े मे आग लगी है इस बखत.... कौन अपनी अम्मा चुदवा रहा है बाहर? जिसे सुनकर अंशुल हसता हुआ बेड से नीचे उतरकर अपने कपडे पहनने लगा और कपडे पहनने के बाद पदमा के माथे पर एक चुम्बन देकर उसे फिर से बेड पर सुलाता हुआ बोला - मैं देख कर आता हूँ... आप आराम करो...
अंशुल की बात सुनकर पदमा को जैसे अपने ही मुँह से निकली गलियों पर शर्म आ गई और शर्म से मुस्कुराती हुई तकिये मे अपना मुँह छीपा कर फिर से लेट गई...
अंशुल कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर आँगन मे आ गया और फिर बाहर का दरवाजा खोलकर देखा तो सामने दमयंती काकी खड़ी थी जिसे सब धन्नो काकी ही कहकर पुकारा करते थे स्वाभाव से मिलनसार और हसमुख धन्नो दिखने मे कुरूप नहीं थी.. उसका रंग सांवला था मगर बदन का उभर अच्छी अच्छी औरतों को लज्जा देता था चेहरे से हसमुख और हमेशा मीठे बोल ही झड़ते थे.. अंशुल पर बड़ा लाड-प्यार था धन्नो को.. बचपन मे अक्सर पदमा से गुजरिश करके उसे अपने साथ ले जाती और खूब सारी स्वादिस्ट खाने की चीज़े उसे खिलाती और छुप छुप कर अपनी छाती से अंशुल को अपना दूध भी पीला चुकी थी धन्नो.... अंशुल का रूप और मासूमियत धन्नो के दिल मे उन दिनों एक अलग सी हलचल पैदा किया करता था जो अब भी कहीं कायम थी... धन्नो की अपनी कोई औलाद नहीं थी.. उसने सबसे बाँझ होने के ताने सुने थे.. मगर बाद मे गाँव के एक नशेखोर शराबी ने शराब के नशे मे अपना पूरा घर-परिवार स्वाह कर लिया तब उस हादसे मे उस शराबी का 7 साल का लड़का चन्दन किसी तरह बच गया था जिसे धन्नो ने गोद लेकर पाला था.... आज धन्नो उसी चन्दन के ब्याह का निमंत्रण देने आई थी...
अंशुल दरवाजा खोलकर - कैसी हो काकी.... इतने दिनों के बाद अपने आशु की याद कैसे आ गई.... तुम तो भूल गई थी हो मुझे.....
धन्नो अंशुल का गाल खींचती हुई बोली - तू पहले ये बता इतनी देर कैसे लगी दरवाजा खोलने मे.... और तेरी माँ पदमा रानी कहा गई है?
अंशुल धन्नो का हाथ पकड़ कर - अरे काकी वो माँ मलखान काका यहां सीमा काकी से मिलने गई है शाम तक आ जाएगी... अब तुम बताओ.... मुझे भूल गई हो ना.... बचपन मे तो कितना प्यार करती थी आजकल सारा प्यार चन्दन भईया पर लुटा रही हो क्या?
धन्नो मुस्कुराती हुई अंशुल के बिखरे हुए बाल संवारती हुई बोली - लल्ला.... तू भी आ सकता है अपनी काकी से मिलने... जब से शहर से लोटा है कभी अपनी काकी से दो बात करने की भी फुर्सत नहीं मिली तुझे....
अंशुल - क्या करू काकी... सरकारी इम्तिहान के लिए पढ़ाई मे लगा था तुमसे मिलने का समय ही नहीं मिला.... पर जरुर आऊंगा तुमसे मिलने....
धन्नो - अच्छा.... ये ले निमंत्रण.... चन्दन का ब्याह तय हुआ हुसेनीपुर की महिमा के साथ.... आज से दस दिन बाद ब्याह होगा..... बहुत काम है.... मैं शाम को पदमा से कह दूंगी की तुझे काम मे हाथ बटाने भेज दे... इस बार कोई बहाना काम नहीं आएगा....
अंशुल - काकी चन्दन भईया तो मेरे बड़े भाई की तरह है.... उनके ब्याह का सारा बंदोबस्त तो मैं ही करूँगा.... देखना बड़े धूम धाम से बारात निकलेगी चन्दन भईया की....
धन्नो अंशुल की बालाये लेती हुई उसके चेहरे को बड़े प्यार से अपने दोनों हाथो से सहला कर वापस चली गई और अंशुल बाहर का दरवाजा बंद करने शादी का निमंत्रण पढता हुआ वापस अंदर पदमा के पास आ गया....
पदमा - कौन था बाहर?
अंशुल बैठता हुआ - धन्नो काकी थी.. चन्दन भईया के ब्याह का निमंत्रण देकर गई है... आने वाली 22 तारीख का ब्याह तय हुआ है...
पदमा - लड़की कहा की है?
अंशुल - हुसेनीपुर की.... महिमा नाम है...
पदमा - अरे वहीं उसी गाँव मे नयना भी रहती है..
अंशुल पदमा के मुँह से नयना का नाम सुनकर चुप हो जाता है जिसे पदमा अच्छे से भांप लेती है और अंशुल को अपनी बाहो मे खींचकर उसका चेहरा चूमते हुए कहती है - एक बार फिर सोच ले आशु..... नयना से अच्छी लड़की तुझे कहीं नहीं मिलेगी... उसकी आँखों मे मैंने तेरे लिए सच्चा प्यार देखा है.... वो लड़की तुझे अपना सबकुछ मान चुकी है.. उसका दिल तोडना अच्छी बात नहीं है आशु......
अंशुल - माँ आप अच्छी तरह से जानती हो मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ.... और आपके अलावा किसी और को अपनी पत्नी के रूम मे नहीं देख सकता....
फिर भी आप ऐसी बात कर रही हो? मैं सिर्फ आपके साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहता हूँ....
पदमा - आशु.... मुझे अपनी जिंदगी से जिस ख़ुशी की तलाश थी तू मुझे उससे कहीं ज्यादा दे चूका है.... अब मैं अपने स्वार्थ के लिए तुझे यूँ धोखा नहीं दे सकती.... तू जनता है मैं तेरी सगी माँ हूँ और तेरे पापा के रहते कभी तेरे साथ एक पत्नी की तरह नहीं रह सकती... ना ही तेरे बच्चों को अपनी कोख मे पालकर जन्म दे सकती हूँ.... आशु आज नहीं तो कल तुझे ब्याह करना ही पड़ेगा.... नयना से अच्छी लड़की तुझे नहीं मिलेगी बेटा.... तू मेरी हर बात मानता है ना... तो इसे क्यूँ नहीं मान ले.... वैसे भी मैं कहा जाने वाली हूँ तेरे ब्याह के बाद भी मैं यही तेरे पास ही तो रहूंगी.... तेरी आँखों के सामने.....
अंशुल - माँ मैं अपने आखिरी दम तक इंतज़ार करूंगा आपका...... मुझे आगे और कोई बात नहीं करनी... अंशुल इतना कहकर पदमा के कमरे से अपने कमरे मे चला जाता है....
अगले दिन सुबह जब पदमा अपने कपडे और शर्म उतारकर अपने बेटे अंशुल की बाहों मे सोई हुई थी तभी अंशुल के फ़ोन की घंटी बजी जिसकी आवाज़ सुनकर दोनों की नींद खुली और अंशुल बिस्तर मे बजते हुए फ़ोन को तलाशने लगा जो चादर के नीचे कहीं दबा हुआ उसे मिला......
पदमा - किसका फ़ोन है?
अंशुल - काकोड़ी से है.....
पदमा - ला दे...
फ़ोन उठाते हुए - हेलो.... हां....कब? अब कैसी तबियत है? नहीं मैं अभी आ रही हूँ...तुम ख्याल रखो उनका..
अंशुल - क्या हुआ?
पदमा कपडे समेटकर बाथरूम जाते हुए - दीदी को फिर से दौरा आया है... अस्पताल मे भर्ती है..
अंशुल - मैं नीचे आपका इंतजार कर रहा हूँ....
पदमा - नहीं... मैं बस से चली जाउंगी.. तुम आराम करो...
पदमा जल्दी जल्दी मे नहाकर त्यार हो गई.. वहीं अंशुल काफ़ी देर से अपना मुँह हाथ धोकर बाहर बाइक पर बैठे पदमा का इंतजार कर रहा था...
अरे मैं बस से चली जाउंगी... कहा तू इतना दूर आए-जाएगा?
आप चुपचाप बैठो.. और ये बेग मुझे दे दो....
अंशुल अपनी माँ के हाथो मे से एक छोटा सा बेग लेकर अपने आगे रखते हुए बाइक स्टार्ट करता है और पदमा अंशुल के पीछे बैठ जाती है...
काकोड़ी यहां से 40 किलोमीटर की दुरी पर था रास्ता टूटी फूटी सडक से भरा था बस से ये रास्ता अढ़ाई घंटे मे तय होता था और बाइक से डेढ़ घंटे मे...
अंशुल अपनी माँ पदमा को मौसी गुंजन के पास अस्पताल ले आया था जहा नींद के इंजेक्शन से गुंजन सो रही थी और उसके आस पास कुछ लोग खड़े थे....
गुंजन विधवा हो चुकी थी एक लड़की के माँ बनने का सौभाग्य उसे प्राप्त हुआ था जिसकी शादी हो चुकी थी लेकिन दामाद लालची और घरजमाई दोनों था.. बड़े धनवान घर मे ब्याह हुआ था सो दौलत की कमी नहीं थी.. गुंजन की बेटी रूपा और जमाई सुरेंद्र वहीं अस्पताल मे थे... अंशुल को सुरेंद्र जरा भी पसंद नहीं था एक बार तो उसने सबके सामने सुरेंद्र को झाड़ दिया था बस बहुत हँसे थे सुरेंद्र पर... रूपा ने उसका बदला अंशुल के गाल पर तमाचा मारकर लिया था.. रूपा बुरी नहीं थी.. पर सबके सामने अपने पति की बेज्जती सह न सकी थी आखिर वो चाहे जैसा भी हो उसके साथ रूपा का भी तो आत्मसम्मान जुड़ा था.... रूपा ने अंशुल से माफ़ी भी मांगी थी मगर अंशुल ने उस दिन के बाद से रूपा से बात करना बंद कर दिया था...
अंशुल ने डॉक्टर से बात की तो डॉक्टर ने उसे गुंजन की हालत के बारे मे सब सच बता दिया और गुंजन का ख्याल रखने को कहा... अंशुल ने पदमा को डॉक्टर के कहे अनुसार गुंजन का पूरा ध्यान रखने की बात कही जिसे सुनकर पदमा ने कुछ दिन गुंजन के साथ ही रहने का फैसला किया....
अंशुल जब वापस जाने लगा तो रूपा ने अंशुल का हाथ पकड़ लिया और उसके गले से लग गई.. बेचारी रूपा कुछ कह ना सकी थी..
रूपा की आँखों से आंसू की धार बह निकली थी जिसने अंशुल के दिल को पिघला दिया था वो उस दिन के बाद आज रूपा को रोते से चुप करता हुआ उससे बोला..
दीदी रोओ मत....
डॉक्टर ने कहा मासी ठीक है...
वो कुछ दिनों मे पहले जैसी हो जायेगी....
बस उनका ख्याल रखना होगा...
आप प्लीज चुप हो जाओ...
आपको मेरी कसम, रोना बंद करो....
रूपा इतना जोर से अंशुल को पकड़ा था की अंशुल को अपनी पीठ मे रूपा के कंगन चुभ रहे थे... अंशुल ने जैसे तैसे रूपा को चुप करवाया और अस्पताल मे रखी बैंच पर बैठाते हुए उसके आंसू पोंछकर रूपा को किसी बच्चे की तरह समझाया की सब ठीक है और कुछ देर ऐसे ही उसके पास बैठा रहा जब तक रूपा उसके कंधे पर सर रखकर सो नहीं गई...
सुरेंद्र तो बस जैसे कोई औपचारिक तौर पर वहा था उसे किसी से कुछ लेना देना नहीं था वो फ़ोन मे कोई गेम खेल रहा था शायद टाइमपास कर रहा था...
अंशुल पदमा को वहा छोड़कर शाम को वापस घर आ चूका था आज ये घर उसे बिलकुल सुना लगा रहा था जहा उसके अलावा कोई नहीं था..
वो अपने कमरे मे जाकर अपनी किताबो मे खो गया और 5-6 दिन तक तो जैसे उसे किसी चीज का होश ही नहीं था.. वो फ़ोन पर पदमा से बात करता था जो उसे गुंजन के धीरे धीरे ठीक होने की खबर सुनाकर अपने दिल का हाल भी सुना देती थी.....
सातवे दिन की रात को अंशुल के दिल और लिंग दोनों को पदमा की याद बहुत ज्यादा परेशान करने लगी तो अंशुल बाथरूम की दिवार पर अपनी माँ की याद मे वीर्य के धार छोड़ आया था और अचेत होकर सो गया था.....
धन्नो काकी
धन्नो के घर मे चन्दन के ब्याह की तेयारी जोर-शोर से चल रही थी घर पुराना मगर बड़ा था.. आगे दरवाजा और दरवाजे के दोनों तरफ दो कमरे... फिर आँगन और आँगन मे बाई तरफ रसोई... आँगन के बाद पीछे एक बड़ा सा कमरा और उस कमरे के पीछे थोड़ी सी जगह, जहा चूल्हे के लिए लकड़िया और बाकी चीज़े रखी थी......
सूट आ गया है..
चन्दन भईया से कह दो एक बार पहन के देख ले.. छोटा बड़ा करवा है तो टाइम से हो जाएगा....
और ढ़ोल-बाजे वाले को भी अच्छे से समझा दिया है.... हलवाई भी समय से आ जाएगा बाकी की सारी तयारी भी हो चुकी है....
अब कोई काम बाकी नहीं रहा काकी....
अंशुल ने धन्नो के घर के आँगन मे बिछी खाट पर बैठते हुए ये सब एक सांस मे धन्नो से कह गया था..
आज सुबह से वो चन्दन के ब्याह की तयारी मे लगा था और दिन के 3 बज गए थे खाने तक की फुर्सत नहीं मिली थी...
धन्नो अपनी पड़ोसन गुल्ली के साथ आंगन मे गेहूं छान रही थी जिसे सब गुल्ली ताई कहते थे..
धन्नो - अरे आशु... वो बाजार मे लल्लू सोनार के यहां बहु के लिए गहने बनवाये थे... वो ले आया?
अंशुल - मुझसे कब लाने के लिए कहा था काकी? वो चन्दन भईया लाने वाले थे?
धन्नो - चन्दन तो शहर चला गया.... कल आएगा...
अंशुल - भूल गया होगा काकी.. तुम ऐसा करो मुझे गहने की पर्ची दे दो मैं बाजार जाकर ले आऊंगा... बाइक पर ज्यादा समय नहीं लगेगा.....
धन्नो - तेरी मोटर तो चन्दन लेकर चला गया.. उसका दोस्त गोपाल भी साथ मे था... और पर्ची भी उसी के पास है... बिना पर्ची वो लल्लू चोर.. कहा तुझे गहने देगा.... और गहने भी आज ही लाने जरुरी है लल्ला.. कल तो टाइम ही नहीं मिलेगा... 2 दिन बाद तो बारात जानी है...
अंशुल - अब क्या करे काकी....
धन्नो - तू ठहर लल्ला.... मैं भी तेरे संग बाजार चलती हूँ....
अंशुल - पर टैम्पो या तूफ़ान से तो वापस आते आते अंधेरा हो जाएगा...
धन्नो - जाना तो पड़ेगा लल्ला.... गुल्ली ताई मैं आशु के साथ बाजार जाती हूँ तुम घर पर ही रुकना...
धन्नो अंशुल के साथ कस्बे के पुराने मोड़ पर बाजार जाने वाले साधन के इंतजार मे खड़ी थी उसके सामने से अभी अभी एक तूफ़ान जीब लोगों से खचाखच भरके वहा से रवाना हुई थी धन्नो और अंशुल दोनों ने देखा था कैसे लोग एक दूसरे के उपर गिर पड़ रहे थे औरतों का तो कहना ही क्या था.. कुछ बेचारी छोटी छोटी जगह मे मर्दो से चिपकी हुई बैठी थी तो कुछ अपने साथ आये मर्दो के साथ उनकी गोद मे बैठी थी.... मज़बूरी मे हर कोई इस बात को नज़र अंदाज़ कर रहा था की इस भीड़ मे कई महिलों और लड़की के निजी अंगों को कुछ मनचले अपने हाथो से छेड़ रहे थे... धन्नो तो पहले से इस तरह आने जाने की आदि थी लेकिन अंशुल को ये सब पसंद नहीं था.. 11 km दूर था बाजार इस कस्बे से और करीब एक घंटे का समय लगता था इस तरफ से एक तरफ के सफर मे....
धन्नो - लल्ला बस तो ना आने वाली शांझ तक इसी जाना पड़ेगा....
अंशुल - पर काकी इतनी भीड़ मे कैसे?
धन्नो - लल्ला अब जाना तो पड़ेगा.... और लोग भी तो जा रहे है...
इस बार धन्नो ने ज़िद करके जीभ के अंदर अंशुल को बैठा दिया और खुद उसके पास बैठ गई...
अरे आंटी जी जरा आगे उठ के बैठो अभी तो कई स्वारी आनी बाकी है... कंडक्टर ने धन्नो से कहा तो धन्नो जरा सी उठकर अंशुल की दायी जांघ पर खिसक कर बैठ गई.... अंशुल कुछ ना बोल सका था उसे ऐसे सफर करने की जरा भी आदत नहीं थी.. देखते ही देखते कुछ मिनटों मे खचाखच जीब भर गयी और कई लड़किया और महिलाये सीट पर बैठे आदमियों की गोद मे बैठे गई थी...
अंशुल को सब कुछ अजीब लगा रहा था पूरी तरह से पैक होकर जीभ चल पड़ी थी और साथ की छेड़खानी भी शुरु हो चुकी थी.... जीब के चलते ही सडक के एक खड्डे मे गाडी का टायर पड़ा तो सब उछल पड़े.. धन्नो पर उछल कर अब सीधे अंशुल की जांघ से उसकी गोद मे आ गिरी थी..
अंशुल तो जैसे शर्मा ही गया था.. धन्नो को अब थोड़ा आराम महसूस हो रहा था की वो अब ठीक से अंशुल की गोद मे बैठ गई थी और उसे इस बात से जरा भी फर्क नहीं पड़ रहा था.... गाडी कजच पांच साथ मिनट चली होगी की उबड़ खाबड़ रास्ते की हलचल और झटको से धन्नो अंशुल की गोद मे बार बार उछलने लगी थी जिससे अंशुल बहुत अनकन्फ्टेबल हो रहा था और उसका लिंग धन्नो काकी की उछलती हुई गद्देदार गांड का स्पर्श पाकर पेंट मे ही सख्त हो चला था जिसे अब धन्नो आसानी से महसूस कर रही थी...
धन्नो ने खुदको ढीला छोड़ दिया था जिससे उसकी पीठ अंशुल के सीने से चिपक गई थी और दोनों के गाल आपस मे रगड़ खा रहे थे..
धन्नो के पूरी तरह विकसित स्तन कच्चे रास्ते पर गाडी की चाल से ऊपर नीचे हिल रहे थे जिसे धन्नो ने अपनी गोद मे रखे छोटे से बेग और अपनी साडी के पल्लू की मदद से सबसे छुपा रखा मगर अंशुल की आँखों के सामने ये नज़ारा बिलकुल साफ साफ चल रहा था जिसे धन्नो जानती थी बार बार अपनी आँखों से अंशुल की आँखों की तरफ देख रही थी...
अंशुल बार बार धन्नो की आँखों से पकड़ा जाता और नज़र घुमा लेता.. धन्नो को अंशुल का इस तरह शर्मा अद्भुत सुख दे रहा था जिसे धन्नो ही सुना सकती थी धन्नो विधवा थी और बहुत सालो से उसे देह का सुख नहीं मिला था मगर आज अंशुल का चुबता लिंग और छुप छुप के उसके हिलते स्तन देखना उसे औरत होने का अहसास करवाने के साथ ही अकल्पनीय कामसुख के सागर मे डूबा रहा था....
घंटेभर इसी तरह दोनों ने एक दूसरे के साथ चिपके हुए सफर किया फिर जीब बाजार आकर्षित रुक गई...
धन्नो तो झट से अंशुल की गोद से नीचे उतर गई मगर अंशुल को अपनी पेंट सँभालने मे समय लगा गया था जिसे धन्नो ने बड़े मज़े लेते हुए देखा था....
जीब से उतरने के बाद दोनों ही एक दूसरे से बात करने से बच रहे थे और चुपचाप साथ साथ चल रहे थे.. सोनार ने गहने देते देते सांझ कर दी थी दोनों को अब बाजार मे ही शाम हो गई थी अंधेरा भी होने लगा था...
वापस कस्बे के लिए स्टैंड पर खड़े अंशुल और धन्नो के मन मे बस से जाने की ज़रा भी इच्छा नहीं थी वो उसी तरह जाना चाहते थे जैसे आये पर कौन अपने दिल की बात कहे?
बस आई तो अंशुल एक हाथ मे सामान का बेग पकडे दूसरे हाथ मे धन्नो काकी का हाथ पकड़ कर बस मे चढ़ गया.... दोनों के चेहरे उतरे हुए थे... वो दोनों ही बस से वापस जाना नहीं चाहते थे मगर जा रहे थे...
कंडक्टर - सिर्फ मीरपुर वाले ही चढ़ना.... सिर्फ मीरपुर वाले ही चढ़ना... सिर्फ मीरपुर...
किसी ने कहा - अरे ***** नहीं जायेगी क्या?
कंडक्टर - नहीं..... सिर्फ मीरपुर.....
अंशुल और धन्नो के दिल मे जैसे ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी थी...
दोनों वापस बस से नीचे उतर गए थे और पीछे खचाखच भरी जीभ की तरफ चले गए.....
आ जाओ बहन जी... पूरी खाली है.. कहते हुए जीब के ड्राइवर ने धन्नो को पीछे आखिर बची सीट पर बैठने के लिए कहा...
जीभ पहले से भरी हुई थी मगर थोड़ी सी जगह बाकी रह गई थी जिसमे एक शख्स सिकुड़कर बैठ सकता था...
बहनजी इससे खाली नहीं मिलेगी... आज की आखिर जीब है इसके बाद कोई साधन नहीं है...
इस बार अंशुल बिना कुछ कहे या पूछे उस जगह बैठ गया और उसके बाद धन्नो अंशुल की गोद मे आ बैठी और कंडक्टर ने जीब का दरवाजा पीछे से बंद कर दिया... अंधेरा हो चूका था उसपर जीब के चलने के बाद गाडी की लाइट भी बंद कर दी गई थी....
इस बार अंशुल ने शुरुआत मे ठीक से धन्नो को अपनी गोद मे बैठा लिया और अँधेरे का फ़ायदा भी उसे मिला था.. धन्नो ने वापस अपने को ढीला छोड़ दिया था जिससे उसकी पीठ वापस अंशुल के सीने से जा मिली थी और दोनों के गाल आपस मे टकरा रहे थे इस बार धन्नो के हिलते मादक स्तन केवल अंशुल ही देख सकता था और देख रहा था जिसपर धन्नो अब कुछ नहीं कर रही थी ना ही उसे देखकर शर्मिंदा कर रही थी....
कहते है बड़े बड़े साधु महात्मा का ध्यान और ईमान औरत के कारण भंग हुआ था तो अंशुल तो फिर भी एक साधारण नौजवान लड़का था जिसमे काम की पीपासा भरपूर थी तो वो कैसे इस आकर्षण से बच सकता था? 15-20 मिनट के सफर के बाद अंशुल को महसूस हुआ की उसने अपनी गोद मे बैठी धन्नो काकी के पल्लू के अंदर अपना हाथ डाला हुआ है और उसकी उंगलियां अपने आप धन्नो के स्तन पर अपना दबाब बना रही है जिसपर धन्नो की तरफ से उसे कोई आपत्ति महसूस नहीं हो रही थी थी....
कई दिनों से बिना सम्भोग के अंशुल का मन विचलित हो रहा था और ऊपर से आज धन्नो जैसी आकर्षक उभरो वाली महिला का उसके गोदमें होना उसकी काम इच्छा को और प्रबल बना दिया था...
अंशुल काम की वासना मे बहक गया और अपने दोनों हाथो को धन्नो की साडी के पल्लू के अन्दर डालकर अपने हाथो के दोनों पंजो से धन्नो के ऊपर नीचे हिलते हुए स्तनों को अपनी गिरफ्त मे लेकर एक बार जोर से मसल दिया...
धन्नो ने बिलकुल धीमी आवाज़ मे अंशुल के काम मे कहा - आशु आहिस्ता........
धन्नो के मुँह से सिर्फ ये दो लफ्ज सुनकर अंशुल का सारा डर छुमंतर हो गया और वो अपने हाथो से धन्नो के स्तन को महसूस करने लगा जिससे धन्नो को भी काम के सागर मे आना पड़ गया और अंशुल के साथ इस सफर का मज़ा लेना पड़ा.....
अंशुल ने अब तक धन्नो की गर्दन पर दर्जनों चुम्बन कर डाले थे और उसके हाथ धन्नो की छाती पर उभार के ऊपर निप्पल्स को छेड़ रहे थे...
धन्नो आज सालों बात जो सुख अनुभव कररही थी उसमे डूब चुकी थी उसने अंशुल की अब तक रोकना तो छोड़ कुछ बोला तक नहीं था....
काकी बेग थोड़ा आगे करो.... अंशुल ने कहा तो उसके इरादों से अनजान धन्नो ने उसके कहे अनुसार अपनी गोद मे रखा बेग थोड़ा आगे सरका लिया...
अंशुल अपना दाया हाथ धन्नो के स्तन से नीचे लाते हुए धन्नो की नाभि का रास्ता तय करके हलकी सी साडी ढीली करता हुआ उसकी बुर तक ले आया मानो धन्नो की बुर महसूस करना चाहता हो...
अपनी बुर पर अंशुल का हाथ महसूस करके धन्नो पूरी तरह बहक चुकी थी उसने मादक निगाहो मे अंशुल की आँखों मे देखा तो जहाँ कुछ देर पहले शर्म थी वहा अब बेशर्मी झलक रही थी..
अंशुल की मुठी मे धन्नो की बालों से घिरी काली बुर थी जिसे अंशुल प्यार से सहला रहा था और अब बुर के मुहने पर अपनी मिडिल फिंगर रखकर अंदर डालने लगा था....
धन्नो तो जैसे जन्नत मे पहुंच गई थी इतनी भीड़ मे भी उसे वो सुख मिल रहा था जो उसे कभी बंद दरवाजे के भीतर नहीं मिल पाया था..
अपनी उंगलियां अंदर बाहर करते करते अंशुल ने धन्नो की बुर पूरी तरह गीली कर दी थी और कुछ देर बाद तो एक जोर की सुनामी अंशुल ने अपने हाथ पर महसूस की थी शायद धन्नो झड़ चुकी थी...
धन्नो को यक़ीन नहीं हो रहा था जो उसके साथ हुआ था वो सच था.... बचपन मे उसकी गोद मे खेलने वाला आशु आज उसे अपनी गोद मे खिला रहा था और इतना आंनद दे रहा था जितना उसे कभी नहीं मिला था.....
अंशुल को जब लगा की धन्नो झड़ चुकी है वो उसकी साडी से अपना हाथ साफ करता हुआ अपने आप को कण्ट्रोल करने लगा.. जैसे खुदको कुछ समझा रहा हो...
अब कुछ मिनटों का ही सफर बाकी थी रात भी हो चुकी थी... जब गाडी गाँव के मोड़ पर रुकी तो दोनों साथ मे नीचे उतर गया...अब धन्नो को लाज आ रही थी और वो अंशुल से नजर तक नहीं मिला पा रही थी... दोनों के कदम अपने आप घर की तरफ बढ़ गए.. दोनों बिना कुछ बोले धन्नो के घर तक आ गए अंशुल ने बिना कोई बात किये बेग धन्नो को दे दिया और अपने घर की तरफ चला गया....
धन्नो ने भी बेग लेकर घर का दरवाजा बंद कर लिया...
आधे घंटे बाद अंशुल को घर के दरवाजे पर दस्तक महसूस हुई तो अपने कमरे से निकलकर बाहर आ गया.. अंशुल इस वख्त 2-3 पेग शराब पी चूका था ओर हलके सुरूर मै था... दरवाजा खोलकर देखा... बाहर धन्नो हाथो मे खाने का बर्तन लिए खड़ी थी... जो अंशुल के दरवाजा खोलने पर बिना बोले अंदर आ गई थी.. अंशुल ने दरवाजा लगा दिया और धन्नो जब खाना रखकर वापस जाने लगी तो उसका हाथ पकड़ कर अपनी बाहों मे खींच लिया......
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करीब एक घंटे बाद अंशुल अपने घर की रसोई मे खड़ा हुआ था उसके हाथ मे धन्नो के बनाये खाने की एक कोर थी जिसे उसने अभी अभी अपने मुँह मे डाला था और अपनी उंगलियों को चाटते हुए खाने का स्वाद ले रहा था..... रात के नो बज चुके थे और अब तक क़स्बा पूरी तरह शांत हो चूका था शहर की चहल पहल से दूर इस कस्बे मे शाम होते होते लोग घर मे चले जाते थे और रात के नो - दस बजे यूँ लगता था जैसे आधी रात हो चुकी हो.......
अंशुल एक के बाद एक निवाला अपने मुँह मे डाल कर खा रहा था वहीं धन्नो अंशुल के आगे अपने घुटनो पर बैठी हुई थी.. कमर से ऊपर उसके बदन पर अब एक भी कपड़ा नहीं रह गया था उसके विशाल स्तन उसकी छाती पर आम की भाती लटक रहे थे मानो सामने वाले को चूसने का निमंत्रण दे रहे हो.. धन्नो के दोनों हाथों मे अंशुल का भीमाकार लिंग था जो अपनी पूरी औकात मे आकाश की ओर अपना मुँह करके अपनी ताकत का परिचय सामने बैठी धन्नो को दे रहा था.. अंशुल ने खाना ख़त्म किया ही था की धन्नो ने लिंग पर अपने होंठों की चुम्बनवर्षा प्रारभ कर दी ओर फिर अंशुल के साफ-सुथरे मोटे-लम्बे लिंग को अपने मुँह मे भरकर किसी भूखी-प्यासी कुतिया की तरह अपने मुखमैथुन से आनंदित करने लगी......
अंशुल की आँखों के सामने धन्नो का ये रूप दोनों के बीच कामुकता ओर मादकता भर रहा था.... 10-15 मिनट बाद ही अंशुल ने धन्नो के दिए मुखमैथुन से उत्तेजित होकर धन्नो के मुँह मै अपने गाड़े वीर्य की धार छोड़ दी जिसे धन्नो ने प्रसाद की तरह ग्रहण करते हुए अपने गले से तुरंत नीचे उतार लिया और अंशुल के चेहरे को देखकर मुस्कुराने लगी मानो अभी अभी उससे मिले प्रसाद के लिए धन्यवाद कह रही हो.......
अंशुल का रूम अंदर से बंद था और रात के ग्यारह बज चुके थे.... धन्नो के बदन पर अब एक भी कपड़ा नहीं रह गया था और अंशुल भी अपनी कुदरती अवस्था मै आ चूका था.. अंशुल की स्टडी टेबल पर धन्नो अपने दोनों हाथ आगे करके झुकी हुई थी और उसकी भारी भरकम चूचियाँ टेबल की चिकनी प्लाई पर आगे पीछे फिसल रही थी... अंशुल धन्नो के बिलकुल पीछे खड़ा हुआ अपने सीधे हाथ से धन्नो के लम्बे-काले बाल जिनमे कुछ कुछ जगह सफ़ेदी भी थी पकड रखा था और अपने उलटे हाथ से धन्नो की कमर पकडकर बार-बार अपने लिंग का हिला देने वाला प्रहार धन्नो की बुर पर कर रहा था जिससे धन्नो काम के अथाह सागर मै डूबी हुई सिस्कारिया ले रही थी जिससे पूरा माहौल कामाधिन हो चूका था.....
रात के साढ़े बारह बजते-बजते धन्नो ने अंशुल के लिंग पर से अपनी बुर कुटाई के बाद वीर्य से भरा कंडोम उतार लिया था और अभी अभी वापस झड़कर पहले की तरह अपने घुटनो पर आ गई थी और अंशुल के लिंग को अपने मुँह मै वापस भर लिया था.. अंशुल ने एक सिगरेट जला ली और कश लेते हुए कामुक निगाहों से धन्नो को देख रहा था की कैसे धन्नो पूरी मेहनत के साथ उसके लिंग को सुख देने मै लगी थी.. धन्नो मुखमैथुन के बीच बीच मै अपनी आँखे ऊपर करके बार बार अंशुल की आँखों मै देखकर मुस्कुरा रही थी और बदले मै अंशुल भी सिगरेट के कश लेता हुआ मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था....
अंशुन ने सिगरेट ख़त्म होने पर धन्नो का हाथ पकड़कर उसके मुँह से अपना लिंग निकाल लिया और उसे खड़ा करके दिवार से चिपका दिया जिसके बाद अपने एक हाथ से धन्नो की जांघ पकड़कर उसका पैर उठाते हुए अपने लिंग को उसकी बुर मै डालने लगा....
लल्ला..... गुब्बारा तो लगा ले....
मैं संभाल लूंगा काकी....
इतनी सी बात चित के बाद धन्नो की काली बुर पर अंशुल के लिंग की थाप से पूरा कमरा गुजने लगा.....
एक के बाद एक कई बार धन्नो झड़ चुकी थी लेकिन इस बार अंशुल का स्खलन नहीं हुआ था, रात के डेढ़ बज चुके थे और धन्नो अंशुल के बिस्तर पर लेटी हुई अब तक अंशुल से अपनी बुर कुटाई करवा रही थी और अंशुल धन्नो का कामुक चेहरा देखकर उसे भोग रहा था लेकिन उसके मन मै अब वो उत्तेजना नहीं आ रही थी..... उसे अब तक मालूम हो चूका था की धन्नो के प्रति उसका केवल आकर्षण ही था जो एक बार मै ख़त्म हो चूका था......
आह्ह.... लल्ला.... कब से कर रहा है....
निकलता क्यूँ नहीं है तेरा? अह्ह्ह्ह....
मेरी हालत ख़राब हो रही है....
हाय.... अब तो जलन भी होने लगी है.....
लल्ला... ला.... मुँह से ही निकाल देती हूँ तेरा.....
बस थोड़ी देर काकी.....
अभी निकाल दूंगा....
ये कहते हुए अंशुल ने अपनी आँखे धन्नो के चेहरे से हटा कर कमरे की दिवार पर लगी अपनी माँ पदमा देवी की बड़ी सी तस्वीर पर जमा ली....
अपनी माँ पदमा की तस्वीर देखते हुए अंशुल कामुकता और प्रेम से भर गया और जोर जोर से धन्नो की बुर कुटाई करने लेगा जिससे कुछ ही मिनटों मै अंशुल झड़ने की कगार पर आ गया... जब अंशुल झड़ने वाला था तो उसने अपना लिंग धन्नो की तहस नहस होकर बर्बाद हो चुकी बुर से निकाल कर सीधा धन्नो के मुँह मै दे दिया और अपना सारा वीर्य 8-10 धार मै प्रवाहित कर दिया जिसे धन्नो ने बड़ी सहजता से ग्रहण कर पी लिया....
सुबह के चार बज चुके थे अंशुल अपने बिस्तर पर दिवार से अपनी पीठ से लगाए दिवार का सहारा लेकर पैर फैलाये बैठा था और उसकी गोद मै धन्नो काकी अपनी बुर मै उसका लिंग लिए उसकी ओर मुँह किये बैठी उसे चुम रही थी दोनों ने अब तक कपडे नहीं पहने थे और ज्यादा बात भी नहीं की थी, सोने की कोशिश की थी मगर नींद दोनों की आँखों मै नहीं थी अंशुल सिगरेट के कश लगा रहा और धन्नो अंशुल को उसके बचपन के किस्से सुना कर बच्चों की जैसे हंस रही थी..
धन्नो ने रातभर अंशुल के होंठो को इतना चूमा था की उसके होंठ कुछ सूजे लग रहे थे.....
कुछ देर बाद फिर से अंशुल की गुजारिश पर धन्नो ख़ुशी से अपनी बुर देने को राज़ी हो गई तो इस बार भी अंशुल ने पदमा की तस्वीर देखते हुए अपनी आगे घोड़ी बनी धन्नो काकी को अपनी माँ पदमा सोचकर उसकी स्वारी की और पांच बजते बजते उसे अपने वीर्य का दान किया...
तू तो बिलकुल घोड़ा हो गया है लल्ला....
पदमा से कहकर जल्दी ही तेरे लिए भी एक सुन्दर सी लड़की देखनी पड़ेगी जो तेरा ख्याल रख सके....
जल्दी ही तेरा भी ब्याह करना पड़ेगा....
अब छोड़ भी दे लल्ला... कोनसा इनमे दूध आता है जो तू बच्चों की तरस चूची चूस रहा है...
अब जाने दे वरना कोई देख लेगा तो फिर जवाब देते ना बनेगा दोनों से....
चल छोड़ मुझे..... प्यार से हँसते हुए धन्नो से अंशुल से कहा...
काकी एक बात पुछु सच सच बताओगी?
पूछ....
तुम चन्दन भईया ओर मुझमे ज्यादा प्यार किसे करती हो?
कोई माँ अपने बच्चों मै फर्क कर सकती है भला... जैसे मेरे लिए चन्दन है वैसे ही तू है... मैं तुम दोनों को जन्म नहीं दिया तो क्या हुआ? प्यार तो अपना मानकर किया है....
काकी हमारे बीच जो हुआ किसीको बताओगी तो नहीं?
अरे पागल हो गया है क्या लल्ला? तू भी किसी से इस बारे मै जिक्र ना करना.... अच्छा अब छोड़ मेरी चूची.... जाने दे....
धन्नो ओर अंशुल घर के बाहरी दरवाजे पर खड़े थे जो अंदर से बंद था सुबह साढ़े पांच होने वाले थे दोनों ने एक दूसरे को अभी चूमने शुरु ही किया था मानो दोनों एकदूसरे को गुड बाय किस दे रहे हो जब किस टूटी तो अंशुल ने कहा - काकी मैं जानता हूँ मैंने आपके साथ जो कुछ किया वो सही नहीं है पर मैं वासना में बहक चूका था.. मुझपर अपना कोई इख़्तियार नहीं था...
धन्नो - लल्ला.... छोड़ इन सब बातों को... गलती तो हम दोनों ने की है.... इसमें तेरे अकेले का कसूर कैसे हुआ भला? मुझे ही हमारी उम्र ओर रिश्ते का लिहाज़ करना चाहिए था... मगर तू चिंता मत कर.. मैं इस बारे में किसी से कोई बात नहीं करुँगी ओर ना ही तू करना.. मैं अब भी तेरी पहले वाली धन्नो काकी हूँ....
अंशुल की आंख में आंसू थे वो बोला - काकी.. आप बहुत अच्छी हो..
ये कहते हुए अंशुल ने एक बार फिरसे धन्नो को अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठ चूमकर बाहर का दरवाजा खोल दिया...
धन्नो अपने चेहरे पर मुस्कुहाट और दिल में नया अहसास और बदन में नई ऊर्जा लेकर इस भोर में अपने घर आ गई... आज उसकी आँखों में नींद नहीं थी और उसे अपनेआप में तरोंताज़गी महसूस हो रही थी पहले जहाँ वो कुछ थकी हुई सी महसूस करती थी वही अब उसे ऐसा कुछ महसूस नहीं हो रहा था...
समय अपने हिसाब से गुजरा और बारात जाने का दिन भी आ गया, धन्नो के घर में मेहमानों का ताँता लगा हुआ था.....
अरे आशु भईया... चन्दर भईया कहा है? फ़ोन भी बंद है उनका...
मुझे क्या पत्ता? भोर में खेत की ओर निकले थे तब से मैंने नहीं था....
वो हज़ाम कब से बैठा इंतजार कर है उसे अपनी दूकान भी जाना है उसे आप जाकर एक बार देख लो खेत में हो तो बुला लाना....
तू खुद क्यूँ नहीं चला जाता? यहां बस आराम करने आया है? हाथी कहीं का....
अरे हमारे पैर में मोच है आशु भईया.... वरना आप तो जानते हो हम कितने फुर्तीले है.. कहने से पहले काम कर देंते है...
हां हां.. देखी है तुम्हारी फुर्तीली.... चार कदम चलने में पैर जवाब दे जाते है....
जाकर बुला ला ना लल्ला... ये तो है ही कामचोर....
धन्नो ने अपने हाथो से गुड़ के 2-3 छोटे छोटे दाने अंशुल के मुँह में डालकर कहा...
हम कामचोर नहीं है काकी.... हमें कामचोर मत कहो.. कल हमने ही आँगन और छत पर तंबू बंधवाया था सुरपाल के लड़को से....
बता तो ऐसे रहा है जैसे तूने ही बाँधा हो....
तुम भी काकी किसके साथ बहस करने बैठ गई, इस ढ़ोल के बारे में तो सब जानते है..
ढ़ोल नहीं है हम.. हमारा नाम रमेश है रमेश... आशु भईया के पास तो मोटर है.. उन्हें खेत जाकर आने में कितना समय लगेगा? हम यहां और काम संभाल लेंगे है...
धन्नो और अंशुल 17-18 साल के उस भैंस की तरह मोटे देखने वाले लड़के रमेश की बात सुनकर एकदूसरे की तरफ देखते हुए हंसने लगे.. रमेश पड़ोस में ही रहने वाली सुरीली चाची का लड़का था जो एक नम्बर का आलसी और कामचोर था खाने और मुहजोरी करने के अलावा कोई ओर काम नहीं था रमेश को....
अंशुल अपनी बाइक लेकर चन्दन को बुलाने खेत की तरफ निकल गया और खेत के किनारे बाइक रोककर पक चुकी लहलाहती फसलो के बीच बनी पगदंडी से होता हुआ खेत के अंदर चला गया......
आज तो तेरा ब्याह हो जाएगा चन्दन....
दुल्हन आने के बाद भूल तो नहीं जाएगा मुझे?
कैसे भूल सकता हूँ? तुमने कितना ख्याल रखा है मेरा.. तुम नहीं होती तो मुझे कौन संभालता? ब्याह के बाद में मैं तुमसे मिलना नहीं छोड़ सकूंगा...
ये सब कहने की बात है मैंने सुना है तेरी दुल्हन रूपवाली है उसके आगे मेरी देह कहा याद रह जायेगी तुझे चन्दन....
ऐसी बात मत करो.... वादा करता हूँ ब्याह के बाद भी आपसे मिलने आऊंगा...
कभी कभार सही चन्दन.. अगर तुम आओगे तो मुझे आराम रहेगा........ (कोई आहट सुनकर) लगता है कोई आ रहा है.... अब हमें चलना चाहिए चन्दन तुम्हारा ब्याह है.... कोई इस तरफ तुम्हे ही ढूंढ़ने आया होगा...
हां सुबह आशु ने मुझे इस तरफ आते देखा था.... ठीक है... मैं पीछे से घर निकल जाता हूँ तुम बसंत के खेतो से जली जाओ....
ठीक है चन्दन...... कहते हुए उस चालिस पार कर चुकी देहाती महिला ने जिसका रूप अब तक उसके साथ था चन्दन को आखिरी चुम्बन देकर भेज दिया ओर खुद भी फसलो के बीच बनी इस छोटी सी जगह से निकल कर बाहर पड़ोस के खेत की तरफ चली गई जहा से गुजरते हुए आशु ने उसे देख लिया...
अरे चाची..... ओ सुरीली चाची.... चिल्लाते हुए आशु ने उस औरतों को पुकारा... एक दो बार तो सुरुली ने ध्यान नहीं दिया पर आशु जब करीब आकर जोर से बोला तो उसका ध्यान आशु की तरफ गया...
अरे लल्ला.... तू यहां क्या कर रहा है?
चन्दन भईया को ढूंढने आया था चाची.... और तुम मिल गई... चन्दन भईया को देखा तुमने?
नहीं लल्ला.... वो यहां कहा होगा? घर पर नहीं है? आज तो ब्याह है उसका....
हां चाची.... अच्छा... घर जा रही हो?
हां लल्ला....
चलो मैं छोड़ देता हूँ.... मैं भी वापस घर ही जा रहा हूँ....
मैं चली जाउंगी लल्ला.... तुम रहने दिओ...
अरे चाची कहा 2 कोस पैदल चलकर पैरों को दुख दोगी... आओ मैं छोड़ दूंगा...
ठीक है लल्ला.... चल....
कहते हुए सुरुली ने जैसे अंशुल के साथ कदम बढ़ाया उसका मुड़ गया...
हाय दइया..... आह्ह....
क्या हुआ चाची....
मेरा पैर....
अंशुल पैर देखकर - मोच आई लगता है चाची.... देखकर चलना भी भूल गयी हो तुम तो... लगता है उम्र हो गई है तुम्हारी.... इतना कहकर धीरे से हँसता हुआ अंशुल सुरीली के साथ मसखरी करता है..
लल्ला क्या मसखरी कर रहा है मेरे साथ.. ला हाथ दे..
सुरीली अंशुल का हाथ पकड़ कर खड़ी होती है मगर चलने में उसे बहुत दर्द हो रहा था....
बहुत दर्द हो रहा है लल्ला.... मैं तो मर ही गई आज....
आशु सुरीली का हाथ छोड़कर अपने दोनों हाथो से उसे अपनी गोद में उठा लेता है...
चिंता मत करो चाची मैं हूँ ना.....
अरे आशु.... छोड़.... लल्ला... कोई देख लेगा..... छोड़...
कोई नहीं है चाची तुम फालतू डरती हो... चलो सडक तक की बात है... कहता हुआ अंशुल सुरीली को गोद में लिए खेत की पगदंडियो से होता हुआ अपनी बाइक की तरफ चल देता है...
लल्ला..... तेरे हाथ में दर्द होगा...
कहा चाची? बच्चों सा वजन है तुमने... लगता है खाना नहीं खाती हो...
जिसके जीवन में सुनापन हो उसके जीवन में दो मीठे बोल बोलने वाले की कद्र भगवान से कहीं अधिक होने लगती है सुरीली के साथ भी वैसा ही था घर पर पति बब्बन का तो उसे कोई सहारा ही ना था और संतान भी उसके साथ कुछ पल बैठने की फुर्सत नहीं निकाल पाती थी आस पड़ोस में औरतों का अलग समूह था मुश्किल से धन्नो कुछ देर बात करती थी तो उसे चैन पड़ता था चन्दन और सुरीली का सम्बन्ध भी वहीं से जुड़ा था..... चन्दन ने दो मीठे बोल क्या सुरीली से कहे सुरीली ने तो उसे अपना मान लिया आज कुछ ऐसा ही आशु के लिए उसे लग रहा था.. आशु चन्दन से दो बरस छोटा है दिखने में कहीं अधिक सुन्दर साजिला और सम्पन है देह भी चन्दन से ज्यादा गठिली और मजबूत लगती है उसका आकर्षण मनमोहक था सुरीली जैसे नहीं उसके लिए अपने दिल के द्वार खोलती?
लल्ला..... तू घर से नज़र का टिका लगाकर के निकला कर.... कहीं किसी की नज़र लगी तो सब चौपट हो जाएगा....
चाची अब तुम भी मसखरी करने लगी...
अरे सच कह रही हूँ लल्ला.... कहीं तेरे इस चाँद से मुखड़े को मेरी ही ना लगा जाए...
अंशुल हसता हुआ- तुम तो मुझे ही छेड़ने लगी चाची... लगता है चाचा ठीक से ख्याल नहीं रखते...
चाचा ख्याल नहीं रखते तो तू कहे नहीं रख लेता अपनी चाची का ख्याल? बोल लल्ला....
मैं कहा ख्याल रख सकता हूँ चाची.... मैं तो बच्चा हूँ आपका... चलो पीछे बैठो.... जरा संभाल कर पैर में ना लगा जाए.....
अब तू दूध पीता बच्चा थोड़ी ही है लल्ला.... खैर छोड़... कभी अगर अपनी इस सुरीली चाची से मिलने का मन हो तो घर आ जाना.... कोई परहेज न रखूंगी लल्ला...
ठीक है चाची.... लो तुम्हारा घर भी आ गया... मैं धन्नो काकी के पास जाता हूँ देखता हूँ चन्दन भईया आये या नहीं...
वो तो घर पहुंच गया होगा लल्ला....
तुमको कैसे पत्ता चाची? तुम कोई ज्योतिषी हो...
अरे आज ब्याह है उसका....
चलो चाची....
सुरीली को छोड़कर अंशुल जब धन्नो के पास आया तो चन्दन अपनी हज़ामत बनवा रहा था और धन्नो आँगन मैं बैठकर गीत गा रही महिलों के साथ बैठकर चाय पी रही थी...
देखते ही देखते दोपहर ढल चुकी थी और बारात के जाने का वखत हो चूका था.....
अरे भाई गोपाल अब और कितना समय लगेगा बबलू को आने में?
पत्ता नहीं चन्दन.... वो साला है ही चुटिया आदमी... सुबह के लिए कहा था अब तक नहीं आया... कह रहा है रास्ते में है...
बबलू चन्दन का सूट फिटिंग करने के लिए लेकर गया था जिसे अब तक आ जाना चाहिए था लेकिन किन्ही कारणों से अब तक नहीं आया था...
गोपाल तुम ऐसा करो चन्दन भईया के साथ बारात लेकर निकालो... ज्यादा लेट करना ठीक नहीं रहेगा...
बबलू के आते ही मैं सामान लेकर आ जाऊंगा...
अंशुल ने कहा तो धन्नो और गोपाल ने अपनी हामी भरदी जिससे सभी बाराती एक पुरानी बस में कचरे की तरह भरके दूल्हे की कार के पीछे पीछे हुसेनीपुर की तरफ रवाना हो गए थे...
शाम का समय हो गया था और बबलू अब जाकर कहीं आया था....
अरे वनराकस.... कहा मर गया था.. पत्ता नहीं था आज बारात जानी है... तू दर्जी है भी या नहीं?
अरे काकी आज ज्यादा काम था और दूकान पर मैं अकेला इसलिए आते आते देर हो गई... वैसे भी कल सुबह विदाई में पहनने वाले है चन्दन भाई इस सूट को.... बारात गई?
वो तो कब की चली गई... तेरे लिए इंतेज़ार थोड़ी करती... ला दे...
धन्नो बबलू से सूट लेकर घर के अंदर चली जाती है जहा कुछ देर पहले मेला लगा हुआ था तो अब सनाटा पसरा हुआ था.... एक दो महिलये अभी भी रह गई थी...
गुल्ली ताई - धन्नो आ गया बबलू....
धन्नो - हां ताई.... अब आया है मुआ...
गुल्ली ताई - अरे तो जाके आशु को दे दे वो साथ ले जाएगा...
धन्नो - हां ताई बस वही कर रही थी पहले जरा ये आँगन साफ कर लू.. रात को गाँव की सारी महिलाओ का जमघट यही तो लगने वाला है...
गुल्ली ताई - अरे वो तो रात को लगेगा.... तू पहले आशु को सामान दे आ... वो तेरी राह देखता होगा.. मैं भी घर हो आती हूँ..
ठीक है ताई... कहती हुई धन्नो हाथ में सामान लिए अंशुल के घर चली जाती है और दरवाजा खुला था...
आशु आशु.... धन्नो ने अंदर आकर आंगन से आवाज़ दी तो अंशुल अपने कमरे से बोला- काकी ऊपर...
धन्नो अंशुल के कमरे की तरह बढ़ गई और रूम में आकर्षित सामान रखते हुए बोली - लल्ला ले.... इसे लेता हुआ जाना तू भी कहीं भूल ना जाना... कहते हुए धन्नो अंशुल के रूम से जाने लगी तो अंशुल ने धन्नो का हाथ हाथ पकड़ लिया....
छोड़ लल्ला.... तू भी क्या करता है? किसीने देख लिया तो क्या सोचेगा?
कोई नहीं आने वाला काकी.... फ़िक्र मत करो...
ठीक है लल्ला.. पर थोड़ा जल्दी.. तू बहुत समय लगता है....
ठीक है काकी.....
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अंशुल ने धन्नो को बिस्तर पर लिटा कर उसका घाघरा ऊपर सरका दिया और चड्डी उतार फ़ेंकी...
गुब्बारा लगा ले बब्बूआ.....
मैं संभाल लूंगा काकी.. तुम तो जानती हो... कहते हुए धन्नो की बुर में अपने लंड को घुसाकार उसे चोदना शुरू कर दिया...
आह्ह.... लल्ला.... आह्ह.... तनिक आराम से... आह्ह.... आह्ह....
अंशुल अब भी अपने नीचे लेटी धन्नो में अपनी माँ पदमा को तलाश रहा था और कामुकता से धन्नो के बदन को भोग रहा था.... इस बार उसे झड़ने में ज्यादा समय नहीं लगा और 15-20 की चुदाई के बाद धन्नो के मुँह में अपने वीर्य की धार छोड़ दी.... धन्नो के चेहरे पर एक शर्म थी जो अंशुल साफ देख पा रहा था धन्नो अपनी चड्डी पहन कर जाने लगी तो अंशुल बोल पड़ा - बाल मेरे लिए साफ किये है काकी...
धन्नो शर्माती हुई - हट... पागल कहीं का.... अब जा....