अध्याय 6
इम्तिहान
अंशुल का आखिरी इम्तिहान 3 दिन बाद था और अंशुल ने उसकी जमकर तयारी की थी उसने यही बाते सोची थी की इम्तिहान के बाद वो सीधा जाकर नयना को ब्याह के लिए मनाकर अपने साथ ले आएगा और पदमा के साथ उसे भी बहुत प्यार करेगा मगर अभी इम्तिहान था और कल रात की ट्रैन से उसे हिमाचल निकलना था पदमा अभी अभी गुंजन के घर से वापस आई थी और रसोई में खाना पक्का रही थी.. बालचंद आज ही बड़े शहर चला गया था और अब घर में पदमा और अंशुल अकेले थे..
अंशुल ने सारी तयारी कर ली थी और अब वो नीचे आ गया था अंशुल सीधा रसोई में पदमा के करीब पंहुचा और पदमा को पीछे से गले लगता हुआ बोला - मौसी कैसी है?
पदमा अपना काम करती हुई बोली - अब पहले से अच्छी है... तुझे कितना याद कर रही थी.. एक बार मिलने आ जाता तो अच्छा रहता....
आप फ़िक्र मत करो इम्तिहान के बाद गुंजन मौसी को यही बुला लेंगे और उनका खूब ख्याल रखेंगे..
इम्तिहान? वो कब है?
3 दिन बाद.... कल की ट्रैन है हिमाचल जाना पड़ेगा इम्तिहान के लिए..
पदमा - तो तू अकेला जा रहा है मुझे यहां अकेला छोड़ कर?
अरे आप अकेले कहा हो? धन्नो काकी है ना.. अब तो महिमा भाभी भी आ गई है.. उनके साथ आपका दिल लग जाएगा.. मुझे अगर मालूम होता की आप आ रही हों तो शायद कुछ कर पाता...
क्या मतलब कुछ कर पाता.. अभी भी तो 3 दिन बाकी है.. मैं तुम्हारे साथ चलूंगी.... समझें?
माँ बहुत लम्बा सफर है आप परेशान हों जाओगी..
कुछ भी हों मैं तुम्हारे साथ चलूंगी मतलब चलूंगी.. मुझे और कुछ नहीं सुनना....
अच्छा ठीक है मैं कुछ करता हूँ.. आप नाराज़ मत हो..
वैसे अभी खाने में क्या बनाया है?
आलू पूरी.. तुम्हे पसंद है ना?
पसंद तो और भी बहुत कुछ है माँ....
हम्म उसके लिए तो थोड़ा सब्र करना पड़ेगा मेरे आशु को.. मुस्कुराते हुए पदमा ने कहा..
अच्छा फिर खाना तो खिला दो अपने हाथो से..
पदमा खाने की थाली हाथो में लेकर अंशुल को अपने हाथो से खिलाने लगती है और अंशुल भी पदमा को अपने हाथो से खाना खिलाता है.. दोनों एक साथ बड़े प्यारे लगा रहे थे जैसे एक दूसरे के लिए बने हों दोनों के बीच का प्रेम अद्भुत था.. खाना खाने के बाद अंशुल पदमा से अपना कुछ सामान पैक करने को कह देता है और अपना टिकट केन्सिल करवाकर सुबह की ट्रैन का फर्स्ट ac क्लास के दो टिकट एक साथ बुक करता है ताकि एक साथ सफर कई सके.... फिर झूठे बर्तन धोने लगता है जिसे देखकर पदमा हँसते हुए अंशुल से कहती है.... अरे अरे.. नवाब साहब कब से ये काम करने लगे? चलो छोडो.... मैं करती हूँ.... तुम आराम करो जाकर....
अंशुल - माँ आज रात आप वो लाल वाली साड़ी पहनो ना.. बहुत प्यारी लगती हों उसमे...
पदमा मुस्कुराते हुए - लगता है आज रात मेरी इज़्ज़त खतरे में है...
अंशुल पदमा के गाल चूमकर - आप भी ना माँ.... चलो में ऊपर जाता हूँ एक बार फिर से बैग चेक कर लेता हूँ..
पदमा रसोई का सारा काम ख़त्म करके वहीं लाल साड़ी पहनती है और हाथो में एक दूध का गिलास लेकर अंशुल के रूम में आ जाती और दरवाजा बंद कर लेती है... अंशुल पदमा का ये रूप देखकर उसपर टूट पड़ता है और फिर कुछ देर में पदमा की मादक सिस्कारिया पुरे कमरे में गुंजने लगती है...
**** स्टेशन से अंशुल पदमा के साथ **** ट्रैन के फर्स्ट ac क्लास डिब्बे में अपनी जगह आ गया था.. ऊपर नीचे दो बर्थ थे और सामने एक दरवाजा जिसके अंदर की तरफ पर्दा लटका हुआ था.. अपना सामान रखकर पदमा खिड़की से बाहर देखने लगी थी उसे आज पहली बार कहीं आने जाने का मौका मिला था वरना वो तो कब से अपने घर में ही रहती थी कभी कभी बहन गुंजन के घर तो कभी अपने भाई के घर इसके अलावा उसने दुनिया नहीं देखी थी.. पदमा ट्रैन के नजारो के साथ अपनी आँखे बिना झपकाये चल रही थी उस उमंग उस उल्लास और उस रोमांचक सफर की और जहाँ अंशुल उसे जिंदगी के असल मायने समझाने वाला था..
सफर शुरू हुए करीब दो घंटे हों चुके थे मगर पदमा की नज़र खिड़की के बाहर से नहीं हटी थी वो सीलसिलेवार गुजरे गाँव शहर और जंगल देख रही थी जैसे उसे डर हों की आज के बाद उसे वापस ये सब देखने को नहीं मिलेगा.. पदमा उन नज़ारों को अपनी नज़र में बंद कर लेना चाहती थी और चाहती थी इसी सफर में रहना.. अंशुल तो सिर्फ किताब में मगन था आखिर उसने इतने महीने दिनरात एक करके मेहनत से इम्तिहान की तयारी की थी वो अभी किताब के पन्ने पलटते हुए देख रहा था... शाम का समय था और सफर पूरी रात का.. इसी तरह बैठे बैठे दोनों को रात हों गई खाना आ चूका था और दोनों ने मिलकर खा भी लिया था आज पदमा और अंशुल के बीच आज अजीब सी कशिश थी जो अक्सर नये नये प्रेमी जोड़ो में देखने को मिलती है..
रात के 11 बजते बजते पदमा की आँखे नींद से भरी जा रही थी उसे अब बाहर के मनमोहक दृश्य देखते हुए नींद आ रही थी मगर अंशुल अब भी अपनी किताब में घुसा हुआ था पदमा ने अंशुल के हाथ से किताब लेकर ऊपर वाली बर्थ पर रख थी और लाइट बंद करते हुए अंशुल को नीचे वाली बर्थ पर लेटा कर खुद अंशुल के सीने पर लेट गई और अंशुल को प्यार से अपनी बाहों में भर लिया....
अंशुल - नींद आ रही है?
पदमा - हम्म....
चादर निकाल दू.. कुछ देर में ठंड लगने लगेगी..
अभी नहीं.. अभी ठीक है..
अंशुल खिड़की से छनकर अंदर आती चाँद की हलकी रौशनी में पदमा का चेहरा देखते हुए उसकी जुल्फ जो उसके चेहरे पर आ रही थी पीछे कर रहा था और बड़ी प्यार से सर सहलाते हुए पदमा को अपने बाजु का सहारा देकर सुलाने लगा था..
अंशुल देख रहा था की पदमा बिलकुल वैसी ही दिख रही है जैसी पहले मिलन के समय दिख रही थी उसके चेहरे पर कोई शिकन कोई फ़िक्र नहीं थी वो बस सुकून चाहती थी जो उसे अंशुल की बाहों में मिल रहा था..
दोनों के बीच कोई पर्दा नहीं था ना बाहर ना भीतर.. अपने मन की बाते दोनों बेझिझक एक दूसरे से कहते और सुनते थे यही कारण था की दोनों का सम्बन्ध प्रगाड़ और मजबूत था ना उसमे किसी तरह की मिलावट थी ना झूठ....
अंशुल अपने मन में और भी कई ख्याल लिए लेटा था.
माँ एक बाते पुछु?
हम्म.... पदमा ने आँख बंद किये हुए ही अंशुल से कहा..
आप खुश तो हों ना मेरे साथ?
पदमा की आँखे नींद से बाहर आ गई और अंशुल के इस सवाल पर खुल गई और अंशुल को देखने लगी जैसे पूछ रही हों की अचानक से ये सवाल उसे क्यों सुझा? क्यों उसने ये सवाल पदमा से किया? क्या वो जानता नहीं की औरत केवल उसे ही अपने बदन को छूने का हक़ देती है जिसे वो चाहती है? अगर वो अंशुल के साथ खुश ना होती तो ऐसे उसके साथ इतनी दूर क्यों आती? क्यों पदमा अंशुल को अब भी किसी बच्चे की तरह प्यार करती? क्यों उसकी हर बात मानती और उसे अपने जिस्म की कसावट और बनावट से रूबरू करवाती? ये केसा सवाल है जो रात के इस वक़्त उसने पदमा से पूछा है? क्या वो खुद इसका जवाब नहीं जानता?
पदमा ने कुछ देर अंशुल को यूँही सवालिया आँखों से देखा और फिर उसके लबों को अपने लबों की गिरफ्त में लेकर दांतो से खींचते हुए कहा - नहीं मैं बिलकुल खुश नहीं हूँ तुमसे..
क्यों?
क्यों क्या? ऐसे मासूम शकल बनाकर न जाने कैसी गन्दी गन्दी हरकत करते हो अपनी सगी माँ के साथ.. कल रात का भूल गए? क्या हाल किया था तुमने मेरा? वो अच्छा हुआ मैंने देख लिया की कंडोम फट चूका है वरना तुम तो मुझे माँ ही बना ड़ालते..
आप रोक भी तो सकती थी मुझे..
मैं क्यों रोकू भला? तुम्हे खुद समझना चाहिए.. कुछ दिन दूर क्या रही तुमसे.. तुम तो बेसब्री हों गए और मुझे भी....
अच्छा sorry माँ....
Sorry क्यू? मैंने ऐसा तो नहीं कहा कि मुझे बुरा लगा.. तुम मर्द हो और मैं औरत.. औरत को हमेशा अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए मर्द के नीचे आना ही पड़ा है.. मैं तो ये कह रही हूँ कि तुम थोड़ा सा ख्याल रखो बस.... जहा से तुम निकले हो वहा बिना कंडोम पहने आना जाना अच्छी बात नही... समझें?
अच्छा ठीक है समझ गया मेरी माँ.... अब से ध्यान रखूँगा.. अब तो खुश?
हम्म्म..... कहते हुए पदमा ने फिर से अंशुल के होंठों को अपने होंठो कि जेल में डाल दिया और चूसने लगी..
ट्रैन और पदमा कि काम इच्छा दोनों अपनी गति से आगे बढ़ रहे थे मीठी मीठी बातों के बाद दोनों ही इसमें कूद पड़े और आधी रात होते होते तृप्त होकर बाहर निकले.. पदमा अब भी अंशुल के सीने पर अपना सर रखे हुए लटी थी और दोनों ने कमर से ऊपर कुछ नहीं पहना था बस एक चादर दोनों ने अभी अभी ओढ़ ली थी और अभी पूरी हुई कामतृप्ति से दोनों के चेहरे पर मुस्कान बिखरी हुई थी....
ऐसे क्या देख रही हो?
कुछ नहीं बस देख रही हूँ तुम कब छोटे से इतने बड़े हो गए और मुझे अपने जाल मै फंसा लिया...
जाल में फंसा लिया? मैंने कब आपको जाल में फंसाया? भूल गई आप खुद आई थी मेरे पास.. वो भी सज धज कर..
हां क्युकी तुमने मजबूर कर दिया था मुझे..
अच्छा जी.. वो भी मेरी गलती है?
हां हां तुम्हारी गलती है और किसकी है? तुम्हे तो पता थी ना मेरी हालत? तभी तुमने मेरे साथ....
बोलो ना.... चुप क्यू हो गई?
छी.... मुझे शर्म आती है..
अंशुल ने पदमा के चेहरे पर चुम्बन करते हुए कहा - माँ होकर बेटे से शर्मा रही हो?
पदमा के चेहरे पर शर्म हया और मुस्कान थी उसे आज अपने ही बेटे अंशुल से शर्म आ रही थी जैसे एक दुल्हन को अपने पति से आती है दोनों की बाते कुछ देर और चली फिर नींद ने दोनों को अपने आगोश में ले लिए और उसी तरह एक बर्थ पर लिपटकर अंशुल और पदमा कब सो गए कहा नहीं जा सकता..
शिमला स्टेशन पर सुबह 10 बजे के करीब ट्रैन पहुंची अंशुल अपना सामान और पदमा को साथ में लेकर नीचे उतरा और तुरंत बाहर निकल कर एक ऑटो लेकर होटल ***** की ओर चल पड़ा... पदमा शिमला की खूबसूरती निहारे जा रही थी एक तरफ उसका गाँव और क़स्बा था दूसरी तरफ खूबसूरती से भरा हिमाचल.. उसकी आँखों में नज़र और चेहरे पर ठंडी हवा की छुअन पदमा के मन को उसहित और प्रफ्फुलित कर रही थी.. रास्ते में एक रेस्टोरेंट पर खाना खा कर दोनों वापस होटल की तरफ बढ़ गए.. होटल अंशुल ने पहले से ही बुक किया हुआ था जो उसके इम्तिहान वाली जगह से कुछ दुरी पर ही था..
गुड आफ्टरनून सर, हाउ कैन ई हेल्प यू? अंशुल को देखकर होटल रिसेप्शन पर बैठे एक आदमी ने कहा..
अंशुल फ़ोन दिखाते हुए - मैंने एक रूम बुक किया था..
रिसेप्शनिस्ट - जी सर, one सेकंड.. जी... अंशुल सिंह...& पदमा देवी.... Yes.. सर, आपका सुइट नंबर 3924.... ये आपकी key....
अंशुल - thanks.. But मैंने सिर्फ ए क्लास रूम बुक किया था....
रिसेप्शनिस्ट - सर..... वो विंटर सीजन स्टार्ट हुआ है थिस वीकेंड एंड जितना आपके रूम का टेरीफ है उसमे नाउ वी कैन प्रोवाइड यू अ सुइट... सो दी होटल अपग्रेड योर रूम टू अ सुइट.... ताकि आप और आपकी वाइफ को कोई प्रॉब्लम न हो...
पदमा को कुछ कुछ समझ आ रहा था और ये वो अच्छे से समझ गई थी की रिसेप्शनिस्ट ने उसे अंशुल की बीवी समझा समझा है.. वो मन ही मन खुश हो रही थी और अंशुल का हाथ पकडे उसके चेहरे की तरफ मुस्कुराते हुए देख रही थी..
अंशुल - थैंक्स.....
रिसेप्शनिस्ट - एन्जॉय योर हनीमून सर...
(अंशुल की इनकम का सोर्स फ़्लैश बैक में पता चल जाएगा)
अंशुल समझ गया था की उसे और पदमा को पति पत्नी समझा जा रहा है but उसने किसी का ये भरम तोड़ने की कोशिश नहीं की उलटे उसी तरह व्यवहार करने लगा...
एक लड़का आकर अंशुल से सामान ले लेता है और दोनों को उनके सुइट पर ले जाता है पदमा जब सुइट में पहुंची तो अंदर का नज़ारा देखकर हैरान रह जाती है जैसे किसी महल में आ गई हो.. उसने अब से पहले ऐसा कुछ नहीं देखा था उसे विश्वास नहीं हो रहा था की कोई होटल भी इतना खूबसूरत और महल जैसा हो सकता है..
अंशुल ने लड़के को टिप देकर वापस भेज दिया और दरवाजा बंद कर लिया, फिर पदमा को बाहो में भरके चूमते हुए बेड पर ले गया जहा मुस्कुराते हुए अंशुल ने पदमा से कहा - ई love यू माँ....
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पदमा - माँ नहीं आशु... पदमा... तुम्हारी पदमा.. और अब से अकेले में आप नहीं तु या तुम कह कर पुकारा करो... यहां मुझे मेरे नाम से बुलाओ... पदमा ने ऐसा कहते हुए जितनी बेबाकी से अंशुल की आँखों में देखा था उतनी बेबाकी अंशुल ने आज तक पदमा की आँखों में नहीं देखी थी..
अंशुल और पदमा वापस बहकने लगे थे और कुछ पलो में काम ने अपना काम कर दिया.. शिमला की ठंडी हवा मे मादकता घोलती पदमा की सिस्कारिया गूंजने लगी थी मखमली बिस्तर पर अंशुल पदमा की मुनिया को इस रफ़्तार से पेल रहा था जैसे कोई बदला निकाल रहा हो पदमा की चुदाई इस सर्दी में आग लगा रही थी. पदमा अंशुल को अपनी बाहों में ऐसे जकड़े हुए थी मानो अपने से अलग नहीं होने देना चाहती हो..
रह रह कर दोनों माँ बेटे के बीच सम्भोग पूरा दिन और शाम चलता रहा जहा दोनों ने बिना किसी शर्म लिहाज और परदे के एकदूसरे को हर सुख प्रदान किया.. रात एक बज चुके थे.. दोनों बुरी तरह थक चुके थे और एक दूसरे से लिपटे सो रहे थे आज अंशुल का इम्तिहान भी था जो सुबह 10 बजे शुरू होने वाला था...
आशु.... आशु... उठो इम्तिहान नहीं देने जाना? जल्दी करो आठ बज चुके है.. पदमा ने कहा.. अंशुल आँख मलता हुआ उठा तो उसने एक बार पदमा को अपने गले से लगा कर उसके माथे पर चुम्मा दे दिया मानो वो शुक्रिया कर रहा हो उन लम्हो का जो उसने पदमा के साथ यहां बिताये थे उसका सारा टेंशन और फ़िक्र जो इम्तिहान को लेकर थी वो हवा हो चुकी थी उसे इम्तिहान से ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा था जैसे कोई सालभर तयारी करके इम्तिहान देने जाता है और घबराहट और चिंता उसके साथ रहती है वैसी अंशुल के साथ आज नहीं थी पदमा ने सारी फ़िक्र और चिंता अपने प्यार से उतार दी थी.. होटल से इम्तिहान की जगह कुछ 15 मिनट वाकिंग डिस्टेंस पर थी सो अंशुल को अभी कोई फ़िक्र नहीं थी
अंशुल बिस्तर से उठ गया और नहाने चला गया पदमा उसके लिए चाय बनाने लगी थी आज पदमा पहले से कहीं ज्यादा सुलझी हुई समझदार और शहरी औरत मालूम पडती थी उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था की वो किसी गाँव देहात या कस्बे में बसने वाली आबादी जो आधुनिकता से कोसो दूर है वहा रहती हो.. पदमा के चरित्र और स्वाभाव में आकस्मिक पर अद्भुत परिवर्तन आया था जो उसे भी महसूस हो रहा था वो मन ही मन अपने ऊपर डाली गई समाज की बंदिश और मर्यादा लांघने को आतुर थी उसे अब समाज और महिला की गरिमा की ज्यादा परवाह नहीं रह गई थी.. पदमा चाय बनाते हुए अपनी सारी का पल्लू अपनी ऊँगली में उलझा कर दाँत से कुतर रही थी और सोच रही थी अगर अंशुल सच में उसके पति बन जाए तो? वो हर दम उसके साथ पति पत्नी की तरह जीवन बिताये तो? अंशुल तो कब से इसके लिए त्यार है पर ये तो पदमा ने ही तय किया है की वो अंशुल के साथ परदे के पीछे ही अपना ये नाजायज रिश्ता रखेगी और समाज के सामने एक माँ बेटा होने का पूरा दिखावा करेगी.. पदमा को न जाने क्यू आज अंशुल के प्रति कुछ ज्यादा आकर्षण उत्पन्न हो रहा था वो जानती थी की अंशुल भी उसके प्रति कितना आकर्षित है पर अभी तक दोनों ने अपने दिल की बाते को एकदूसरे के सामने रखते हुए एक मर्यादा रखी थी जिसे शायद उनके मन के भीतर माँ बेटे के रिश्ते का ख्याल कहा जा सकता था..
अंशुल जब नहाकर बाहर आया तो सिर्फ तौलिये में था और अपने बाल सहला रहा था पदमा ने पहले भी उसे कई बार इस तरह देखा था मगर आज उसे अंशुल में अपना बेटा कहीं दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा था वो चाय का कप लिए अंशुल के पीछे खड़ी थी.. उसे देने के लिए अंशुल की और आगे बढ़ गई थी जैसे कोई पत्नी सुबह की पहली चाय अपने पति को देने के लिए बढ़ती है... अंशुल ने जल्दी से एक ब्लू जीन्स और वाइट टीशर्ट पहन लिया था वो आईने के सामने खड़ा हुआ अपने बाल बना रहा था वहीं पदमा आज बिना कुछ बोले अंशुल जे पीछे चाय का कप हाथ में लिए खड़ी थी जैसे इंतजार कर रही हो की आशु कब मोड़कर उससे चाय का कप लेकर चाय पिए और उसे देखकर कोई मीठी प्यार भारी बाते करे.... ऐसा होना मौसम की मांग थी इस ठंडी में पदमा का ऐसा सोचना भी जायज था आखिर इतना खूबसूरत शहर और माहौल कैसे नहीं प्यार की बात करेगा?
अंशुल जब बाल बनाकर पीछे मुड़ा तो पदमा मुस्कुराते हुए चाय लेकर खड़ी थी अंशुल ने चाय का कप लेकर एक दो चुस्की ली फिर चाय मैंज पर रखकर पदमा को अपनी बाहों में खींच लिया और उसके गुलाबी हलके मोटे उभरे हुए होंठों को अपने होंठो में भर कर इतना प्यार से चूमा की पदमा अपने होश खो बैठी और सिमटकार अंशुल की बाहो में समा गई.. पदमा को ये भी ख्याल ना रहा उसका आँचल उसके सीने से नीचे जा चूका है और उसके छाती के उभार साफ साफ अंशुल के सामने है.. मगर वो इसकी परवाह करती भी क्यू? कुछ देर चूमने के बाद अंशुल ने पदमा के चेहरे को अपने दोनों हाथ से पकड़कर उसकी आँखों में देखते हुए कहा.. चाय में मीठा कम था इसलिए आपके होंठ चूमे... पदमा अंशुल की बाते सुनकर नीचे उसकी जीन्स में साफ दिख रहे उसके लिंग की अकड़न महसूस करते हुए बोली - मीठे के चक्कर में अब इसका क्या?
अंशुल पदमा की बात सुनकर मुस्कुराते हुए बोला - आप हो ना...
पदमा ने एक क़ातिल मुस्कुराहट के साथ घड़ी की और इशारा किया, घड़ी में 8.50 हो रहे थे..
पदमा बोली - इम्तिहान नहीं दोगे? अंशुल की नज़र जैसे घड़ी पर पड़ी उसके चेहरे पर मोज़ूद ख़ुशी और कामइच्छा फुर्ररर हो गई और एक उदासी छा गई.. अंशुल अब कुछ बोलने की हालत में नहीं था उसने बस पदमा को एक नज़र प्यार से देखा फिर उसके लबों को चूमकर अपना जैकेट उठाकर बाहर की और जाने के लिए बढ़ गया....
पदमा ने अंशुल को दरवाजे पर ही रोक लिया और प्यार से उसके लबों को चूमकर कहा - इस तरह बे-मन से जाओगे तो इम्तिहान में मन नहीं लगेगा.. और अंशुल का हाथ पकड़कर उसे वापस बिस्तर के करीब ले आई, पदमा ने टेबल पर पड़े पैकेट से एक सिगरेट निकलकर अंशुल के होंठो पर लगा दी और लाइटर से सिगरेट जलाकर घुटनो पर बैठकर अंशुल की जीन्स का बटन खोलकर जीन्स नीचे सरका दी और उसके लंड के सुपाडे पर अपने होंठों को लगा दिया.. अंशुल ने एक लम्बा सिगरेट का कश लेते हुए अपनी माँ के सर पर दो तीन बार प्यार से हाथ फेरा और फिर उसके मुँह में अपने लंड को घुसा कर पदमा से ब्लोजॉब लेने लगा.. पदमा किसी भूखी शेरनी की तरह अंशुल के लिंग को शांत करने में लग गई और अंशुल सिगरेट के कश लेते हुए पदमा को देख रहा था.. पदमा अंशुल के लिंग और आंड ऐसे चूस चाट रही थी जैसे साधारण देहाती औरत न होकर कोई बड़ी पोर्नस्टार हो..
इस वक़्त वो अंशुल को उसके चरम पर खींच लाना चाहती थी और कुछ ही मिनटों में ऐसा हो भी गया.. पदमा का पूरा मुँह अंशुल के वीर्य से भर चूका था सिर्फ दस मिनट में अंशुल पूरी तरह ठंडा हो चूका था.. पदमा अपने मुँह में अंशुल का वीर्य भरे खड़ी हुई तो अंशुल ने जल्दी से अपनी जीन्स पहनी और फिर पदमा के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हुए बाहर इम्तिहान देने चला गया...
पदमा ने कई बार अंशुल को आशीर्वाद दिया था मगर आज उसे अंशुल का पैर छूना अजीब लग रहा था उसके मुँह में वीर्य भरा था जिसे वो धीरे धीरे अपने गले से नीचे उतार रही थी और सोच रही थी क्यू वो अंशुल के साथ नई शुरुआत करने से डर रही है? बालचंद तो कब का उसे भुला चूका है और उसके लिए पदमा का कोई महत्त्व भी नहीं.. बालचंद के लिए पदमा घर में काम करने वाली एक औरत है इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं.. फिर क्यू पदमा अपनी ख़ुशी नहीं सोच सकती? क्यू उसे अपनी मनमानी तरह से खुश रहने का हक़ नहीं है? अंशुल ने कितना ख्याल रखा है पदमा का.. उसे हर तरह से खुश रखा है फिर भी अंशुल को वो अपने ऊपर पूरा हक़ क्यू नहीं दे सकती? पदमा सोच में डूबी जा रही थी.. आज पदमा ने अपने सुहाग की निशानी को उतार कर रख दिया था और मांग में सिन्दूर भी नहीं भरा था.. नहाने के बाद पदमा ने साडी नहीं पहनी बल्कि एक ड्रेस जो अंशुल ने बहुत पहले उसे गिफ्ट की थी और समाज के डर से उसने कभी पहनी ना थी आज उसके हाथ में थी और वो उसे पहने वाली थी आज पदमा ने तय किया था की वो अब अपने मन से ज़िन्दगी जियेगी.. पदमा उस ड्रेस में बेहद खूबसूरत और जवान नज़र आ रही थी..
शाम होने को थी अंशुल इम्तिहान देकर वापस होटल आ चूका था और दरवाजा खोलने वाला थी की पदमा ने दरवाजा खोलकर उसे अंदर आते ही अपनेआप से मिला लिया और किसी प्रियसी की भाती उसके मुख पर अनेको चुम्बन अंकित कर दिए..
अंशुल पदमा का ये बर्ताव देखकर आश्चर्य में था मगर वो आश्चर्य उसे सुख दे रहा था अंशुल ने पदमा को उठाकर बिस्तर पर पटक दिया और उसे आज पहली बार साड़ी के अलावा कुछ और पहना देखकर मुस्कुराने लगा.. पदमा आज बहुत ज्यादा कामुक लग रही थी अंशुल ने पदमा को अपने आलिंगन में ले लिए और सम्भोग के अधीन होकर कामक्रीड़ा करने लगा जिसमे पदमा का उसे पूरा साथ हासिल था.
रात के 8 बज रहे थे और शिमला की ठंडी हवाओ के बिच मालरोड पर किसी कोने में पदमा और अंशुल एकदूसरे को कॉलेज के प्रेमी प्रेमिकाओ की भांति चुम रहे थे आज पदमा को शर्म आने का नाम नहीं था जो बंद कमरे में शर्मा जाती थी वो आज इतने लोगों के बीच अंशुल को किसी बेसब्री की तरह चुम रही थी.. अंशुल के हाथ अपने माँ के बदन की बनावट का जायजा ले रहे थे और पदमा बार बार उसके लबों को दाँत से खींचकर चूमते हुए आँख मार रही थी जैसे कह रही हो अंशुल मुझे अब किसी की कोई फ़िक्र नहीं है.. वहीं कहीं किसी रेस्टोरेंट में खाना खाने के बाद अंशुल वापस पदमा को होटल ले आया और पूरी रात उसके आलिंगन में रहा जैसे उसे भी फर्क हो की कल घर पहूँचने के बाद दोनों के बीच ये सब छुप कर ही हो पायेगा..
सुबह की ट्रैन थी और सुबह जल्दी हो दोनों ट्रैन में आकर्षित बैठ गए थे अब पदमा अंशुल की बाजू पकडे उसके कंधे पर सर रखकर किसी ख्याल में थी और उसके आंसू उसकी आँखों से बाहर आ रहे थे अंशुल खिड़की से बाहर देख रहा था. जब उसके कंधे पर पदमा के आंसू गिरे तो उसे अहसास हुआ की पदमा रो रही है वो पदमा की ओर मुँह करके बैठ गया ओर पदमा के आंसू पोंछते हुई उससे इन आँसुओ के पीछे का कारण पूछने लगा जिसपर पदमा ने बिना कोई जवाब दिया अंशुल के सीने से लग गई ओर उसे अपनी बाहो में कस लिया मानो कह रही हो की अंशुल में भी तुमसे शादी करके अपना घर फिर से बसाना चाहती हूँ मगर मेरे सामने जो मजबूरिया है मैं उनको कैसे दूर करू? मैं बहुत बेबस असहाय ओर लाचार हूँ ओर चाहते हुए भी तुम्हे पूरी तरह से अपना नहीं बना सकती.. आज मेरा दिल बहुत जोरो से मुझे कोस रहा है ओर कह रहा है की मैं सब कुछ छोड़कर तुम्हारे साथ कहीं चली जाऊ मगर ऐसा करना मेरे बस में नहीं.. मैं क्या करू? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा..
अंशुल कुछ हद तक पदमा की मनोभावना समझने में सफल था उसे समझ आ रहा था की पदमा को भी अब अहसास हो रहा है की वो उसके बगैर नहीं रह पाएगी..
अंशुल में पदमा को अपनी गोद में बैठा लिया ओर उसके आँखों से बहती अश्रु धारा को पोंछते हुए कहा - तुम चिंता मत करो मैं तुम्हे छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा ओर हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा.. ओर तुम्हारा ख्याल रखूँगा..
पदमा - वादा?
अंशुल - पक्का वादा..
अंशुल ओर पदमा वापस घर आ चुके थे और अब बालचंद का भी फिर से ट्रांसफर बड़े शहर घर के पास वाले विभाग में हो गया था बालचंद पदमा और अंशुल की जिंदगी वापस से उसी तरह चलने लगी थी जैसे पहले चलती थी मगर अब पदमा बालचंद से कोई झगड़ा नहीं करती थी अगर झड़गा कभी होता भी तो पदमा बालचंद को ऐसी खरी खोटी सुनती की वो पलटकर कुछ बोलने लायक नहीं रहता.. अंशुल ने पास एक स्कूल में शोखिया तौर पर पढ़ना शुरु कर दिया था..
बालचंद एक शाम घर आया तो कुछ गुस्से में था आज बड़े बाबू से बुरी डांट पड़ी थी उसे आखिर कामचोरी और रिश्वत में भी कुछ एहतियात बर्तनी जरुरी है एक तो कामचोरी और ऊपर से रिश्वत के पैसो का बटवारा दोनों में बालचंद गड़बड़ कर बैठा था सो बड़े बाबू ने जमके लताड़ा था आज उसे.. तरह तरह की उपमा देकर पुकारा था कभी गधो का राजा तो कभी चोरो का सरताज क्या क्या कह दिया था बालचंद को सबके सामने.. बालचंद जूते उतारता हुआ पदमा से बोला - तुम्हारे साहेबजादे कल फ्री हो तो पूछ लेना, मुझे सिहरी जाना है ज्ञानचंद (बालचंद का छोटा भाई) के यहां.. आरुषि (ज्ञानचंद के बेटी) को देखने वाले आएंगे कल..
पदमा - तो बस से चले जाना.. मेरे बच्चे को पूँछ की तरह कहे अपने पीछे पीछे घुमा रहे हो.. वैसे भी अपने बेटे को तो वो लोग घर से निकाल ही चुके है..
बालचंद - जब औलाद हाथ से बाहर हो जाए तो घर में रखकर क्या फ़ायदा? निकाल देना ही बेहतर होता है....
पदमा - क्या मतलब निकाल देना बेहतर होता है? अरे शादी भी तो करवा सकते थे उसकी.. कोठे पर ही तो जाता था किसी का खून थोड़ी किया था उसने.. और अब कोनसा साधु महात्मा बन गया होगा? अब तो और भी बुरी आदत लग चुकी होंगी विजु को (ज्ञानचंद का बेटा ).. ना जाने कहा क्या कर रहा होगा..
बालचंद - सिर्फ कोठे पर जाने की बात नहीं थी.. राह चलते लोगों से लड़ाई-झगड़ा मारपीट करना और उसने तो ज्ञानचंद के फ़र्ज़ी दस्तखत करके बैंक से रुपए तक चुराए थे.. ज्ञानचंद बेचारा क्या करता? मुझे तो डर है कहीं तुम्हारा आशु भी....
पदमा - चुप रहो तुम... मेरे आशु के लिए ऐसी बाते करने से पहले सो बार सोच लेना.. मुझसे बुरा कोई ना होगा.. आजतक तुम्हारा एक रूपया भी नहीं लिया मेरे आशु ने.. अरे तुम्हारे पास है ही क्या जिसे वो चुरायेगा? तुम्हारी चपसारीगिरी और रिश्वत खोरी से घरखर्च चलाना भी मुश्किल होता है जैसे तैसे मैं चलाती हूँ उतना ही शुक्र मनाओ.. कभी किसी चीज़ के लिए ज़िद नहीं की मेरे आशु ने.. हमेशा अपनी मेहनत और पैसो से अपने खर्चे चलाये है..
बालचंद - अरे बस भी करो.. क्या बोलते बोलते सुबह कर दोगी? वैसे भी फ्री ही तो पड़ा रहता है तुम्हारा लाडला एक दिन साथ चला जाएगा तो क्या फर्क पड़ेगा?
पदमा - बहुत फर्क पड़ेगा.. वो घर ही मनहूस है पहले तुम्हारे भाई ने अपने बेटे विजय (विजु) को घर से निकल दिया फिर तुम्हारी वो छिनाल बहन बांसुरी अपने यार के साथ भाग गई और फिर आरुषि की सगाई टूट गई.. और अब रिश्ता मिला भी है तो ऐसा? सुना है तुम्हारी उम्र से कुछ ही कम उम्र का लगता है लड़का.. उस बेचारी लड़की का जीवन ही नर्क कर दोगे तुम सब मिलकर...
बालचंद - तो फिर क्या करे? घर बैठा ले उसे जिंदगीभर? 28 की हो चुकी है.. अब तक तो गांव देहात में लड़कियों के बच्चे भी हो जाते है... जो रिस्ता मिल रहा है वो नहीं मिलेगा कुछ दिनों बाद.. फिर वो भी कहीं बांसुरी की तरह भाग गई तो रही सही इज़्ज़त भी चली जायेगी...
पदमा - इज़्ज़त बची कहा है तुम लोगों के पास? उसे तो तुम सब मिलकर बेच खाये हो..
अंशुल सीढ़ियों से नीचे आता हुआ - क्या हुआ?
पदमा का सारा गुस्सा हवा हो गया ओर प्यार भरी मुस्कान उभर आई - कुछ नहीं आशु... कुछ चाहिए? चाय बना दू?
अंशुल - नहीं मैं वो चन्दन भईया के पास जा रहा था उन्होंने बुलाया था बाजार से भाभी के लिए दवा लानी है तो साथ जाना था....
पदमा - क्या हुआ महिमा को?
अंशुल - कुछ नहीं बस वो पेट से है... सुबह डाक्टर को दिखाया था दवाई लिखी थी आस पास मिली नहीं बाजार जाना पड़ेगा... आते आते रात हो जायेगी..
पदमा - महिमा पेट से है.. ये तो बहुत ख़ुशी की बात है.. पर लल्ला जरा आराम से जाना..
अंशुल - नया रोड बन गया है माँ..अब आने जाने में परेशानी नहीं होगी... कुछ लाना है आपके लिये ?
बालचंद अंदर रूम में जाता हुआ - एक मुँह बंद रखने की गोली ले आना.. अगर मिल जाये तो..
अंशुल और पदमा बालचंद की बात सुनकर एक दूसरे की तरफ देखते हुए मुस्कुराने लगते है.. और आँखों में कुछ बाते एक दूसरे से कहकर अपने अपने काम में लग जाते है..
अंशुल चंदन के साथ बाजार चला जाता है और डाक्टर की लिखी दवाई खरीदने में उसकी मदद करने लगता है.. दवाइया लेकर दोनों वापस घर की तरफ चल पड़ते है लेकिन बीच में नदी के पास बने पुल के नीचे साथ बैठ जाते है.. दोनों पहले भी कई बार यहां ऐसे ही बैठ चुके थे और आपस में घर और इधर उधर की बात करते हुए नदी का बहना देखते थे दोनों के बीच में कुछ जगह खाली थी जहा एक अंग्रेजी शराब की बोतल दो प्लास्टिक के गिलास और उनमे भरी शराब के साथ एक सोडे की बोतल भी बगल में रखी हुई थी.. चकने में मटर खाये जा रहे थे जो ख़रीदे गए तो तरकारी बनाने के लिए थे पर अब बोतल खुलने पर उसका इस्तेमाल अलग तरह से किया जा रहा था चकने में नमकीन भी जिसे चबाते हुए आवाज़ आ रही थी..
क्या हुआ भईया? बाप बनने वाले हो.. इतनी ख़ुशी के मोके पर ऐसा उदास मुँह क्यू बनाया हुआ है? अंशुल ने शराब के गिलाश से मुँह लगाते हुए कहा..
आशु बाप बनना बहुत जिम्मेदारी का काम होता है यार.... मुझे लगता है मैं कभी अच्छा बाप नहीं बन पाउँगा.. मैं कभी किसी का ख्याल नहीं रख पाउँगा.. तुम्हारी भाभी मुझसे कोई शिकायत तो नहीं करती मगर मैं जानता हूँ वो कितनी अकेली है.. शादी के बाद मैंने बस काम ही किया है उस बेचारी के साथ दो पल बैठकर प्रेम के बोल तक नहीं बोल पाया....
अंशुल - भईया जो नहीं कर पाए वो अब कर लो... जिंदगी ख़त्म तो नहीं हुई है.. वैसे भी भाभी जितना प्यार आपसे करती है उससे लगता नहीं है की आप उनका ख्याल न रख पाए हो..
चन्दन - नहीं आशु.... मैं इस प्यार के क़ाबिल नहीं हूँ यार... मैं हूँ तो उसी शराबी की औलाद जिसने नशे में अपने पुरे परिवार को आग में जला कर मार डाला.. सोचता हूँ अगर धन्नो काकी ने मुझे ना पाला होता तो मेरा क्या होगा? ये परिवार ये जिंदगी ये ख़ुशी मैं इसके लायक़ नहीं हूँ..
अंशुल - भईया.... अगर लाइफ में थोड़ी ख़ुशी मिल रही हो तो उसे नकारना नहीं चाहिए.. जो हो चूका उसे बुरा सपना समझकर भूलने में फ़ायदा है.. मैं जानता हूँ आप अच्छे बाप बनेंगे क्युकी आपने अपने बाप को देखा है.. और वैसा आप कभी बन नहीं पाएंगे.. आप उस तरह के है नहीं... अब ये बेकार की चिंता छोड़िये.. घर भी चलना है.. लीजिये खिचिये...
चन्दन मुस्कुराते हुए - लाइफ को समझना बहुत मुश्किल है आशु.... कभी हंसाती है तो कभी रुलाती है.. कभी सब छीन लेटी है तो कभी सब लुटाती है..
अंशुल - आज कुछ ज्यादा इमोशनल नहीं हो रहे है आप? अच्छा ये पेग ख़त्म करिये मैं मूत्रविसर्जन करके आता हूँ...
अंशुल कुछ दूर जाकर जैसे ही अपनी धार बहाने लगता है उसका फ़ोन बज उठता है पदमा का फ़ोन था..
अंशुल - हेलो...
पदमा - कहा हो? कब तक आओगे?
अंशुल - रास्ते में हूँ.. आ रहा हूँ..
पदमा - पूल के नीचे?
अंशुल - यार आप भी ना माँ.. आपसे झूठ भी नहीं बोल सकता....
पदमा - हम्म... लगा ही था... अब अपनी पार्टी ख़त्म करो और जल्दी आओ.. अपने हाथो से शराब पिलाऊँगी...
अंशुल - अच्छा आता हूँ..
अंशुल वापस चन्दन के पास चला आता है और उसके साथ घर आ जाता है..
बालचंद आज कुछ उदास था सो खाना नहीं खा सका और पदमा उसे दवा देने में नाकाम रही बालचंद की आँखों में आज नींद नहीं थी वो कुछ सोच रहा था जैसे किसी फैसले को लेकर कुछ तय करना चाहता हो.. पदमा अंशुल को दूध देने गई थी मगर अब अंशुल उसके थनो से ही दूध पिने लगा था पदमा किसी अठरा साल की लड़की की तरह पहले प्यार में डूबी मुस्काती हुई अंशुल के सर को ऐसे सहला रही थी मानो वो अंशुल से कह देना चाहती हो की अंशुल तुम्हे जब भी अपनी माँ के दूध की जरुरत हो तुम ऐसे ही मेरा दूध पी सकते हो.. पदमा के थनो में दूध तो नहीं था मगर उसी भावना के साथ वो अंशुल को अपनी छाती से लगाए हुए थी और अंशुल उसके निप्पल्स को चूसकर आनंद ले रहा था.. आज रात उसे बिना पदमा के निकालनी थी पदमा उसे बताकर नीचे आई थी की आज वो नहीं आएगी और कल बालचंद अपने छोटे भाई ज्ञानचंद के यहां जा रहा है तो अब दोनों का मिलन कल ही हो पायेगा..
सुबह की पहली किरण धरती पर पड़ चुकी थी और पदमा बिस्तर से उठकर घर के कामो में लग चुकी थी अंशुल भी उठकर छत पर टहल रहा था और इंतजार कर रहा था की कब पदमा छत पर आये और वो उसे अपनी बाहों के घेरे में लेकर अपनी सुबह को मीठा कर ले बालचंद नींद में था रात को देर तक सोच विचार करने के बाद उसे नींद आई थी सो वो अभी नींद में ही खराटे मार रहा था.. पदमा जब छत पर कपडे लेने पहुंची तो अंशुल ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और छत पर बने एक छोटे से कमरे में ले गया..
पदमा - आशु..... क्या कर रहे हो? छोडो.. बहुत काम पड़ा है... तुम्हे जरा भी सब्र नहीं है.. आह्ह... आशु... छोडो ना मुझे... आह्ह.... आह्ह.... तुम ना दिन ब दिन बहुत बद्तमीज होते जा रहे हो... आह्ह.. आराम से....
अंशुल ने पदमा की साडी उठाकर चड्डी नीचे सरका दी थी और अपने लिंग से उसकी बुर का नाप ले रहा था पदमा के बाल बिखरे हुए थे उसे सुबह सुबह इस तरह अपनी बुर कुटाई का अंदाजा नहीं था..
पदमा - आह्ह... पूरा दिन पड़ा है आशु.... तुम अभी छोड़ दो... बहुत काम है...
अंशुल - मैं पापा के साथ सीहरी जा रहा हूँ माँ.... सोचा एक बार जाने से पहले आपको प्यार कर लू...
पदमा - आह्ह.. तुम कहीं नहीं जाओगे समझे? और उस आदमी के साथ जाने की जरुरत भी नहीं है..
अंशुल - मैं सिर्फ आरुषि के लिए जा रहा हूँ.. मैं उसे किसी ऐरे गेरे के साथ नहीं देख सकता...
पदमा - आह्ह... आशु.... तुम मुझे अकेला छोड़कर चले जाओगे?
अंशुल - शाम तक तो वापस आ जाऊंगा.. और दिन की भरपाई कर तो रहा हूँ....
पदमा - आह्ह.... आह्ह.... आह्ह....
सुबह के साढ़े छः बज चुके थे और अंशुल पदमा की बुर में उतरकर अभी अभी बाहर आया था पदमा हांफ रही थी उसके कपडे अस्त व्यस्त थे और बाल बिखरे हुए बुर से पानी बह रहा था जिससे लगता था की वो भी झड़ चुकी है अंशुल अपने लंड पर से वीर्य से भरा कंडोम निकाल कर गाँठ लगा चूका था और एक जगह रख दिया था, अंशुल नीचे अपने रूम में आ चूका था और पदमा अब तक अपनी हालत सुधार रही थी जब वो नीचे आई तो अपने साथ वो वीर्य से भरा हुआ कंडोम भी ले आई और बाथरूम के ऊपर रखी हुई एक बाल्टी जिसमे पहले से कई इस्तेमाल किये कंडोम पड़े थे उसे भी वहीं डाल दिया और काम में लग गई उसे अजीब ख़ुशी मिल रही थी उसका मन अंशुल के ख्यालों से भरा हुआ था फ्लिमी गाना गुनगुनाते हुए वो अपने काम में व्यस्त थी..
सुबह की चाय बन चुकी थी आज बालचंद को उठते उठते 9 बज गए थे चाय पीकर वो नहाने चला गया था और पदमा चाय लेकर अंशुल के पास आ गई थी अंशुल ने फिर से एक बार पदमा के गुलाबी लबों को अपना शिकार बना लिया था पदमा भी इस बार शायद शिकार होने की नियत से ही उसके पास गई थी जब तक नीचे बालचंद नाहधोकर त्यार हुआ अंशुल फिर से अपनी माँ पदमा के बुर का रस निकाल चूका था....
जब बालचंद जाने लगा तब अंशुल ने कहा - रुकिए मैं भी साथ चलता हूँ.. कहते हुए उसने अपनी बाइक निकाल ली और बालचंद बिना कुछ कहे उसके पीछे बैठकर सीहरी के लिए निकल पड़ा था.. दोनों के बिच तालमेल देखकर कोई भी बता सकता था की दोनों में जरा भी नहीं बनती.. मगर बालचंद ने रास्ते में पूछ ही लिया..
ब - पेपर केसा हुआ तुम्हारा?
अ - अच्छा हुआ है..
ब - सिर्फ अच्छे से कहा सिलेक्शन होता है..
अ - शायद निकल जाएगा..
ब - कहने में क्या जाता है? तयारी तो हमने भी बहुत की थी.. मगर पांच सीट पर पांच हज़ार लोग इंतिहान देंगे तो कितनी भी मेहनत कर लो कैसे होगा..
अ - चिंता मत कीजिये मैं चपरासी से अच्छा ही कुछ करूँगा..
इस बार बालचंद ने बात घुमा दी और यहां वहा की बाते करने लगा दोनों बाप बेटे के बीच जो मोन कई सालों से कायम था वो आज टूट गया था और दोनों आपस में खुलकर बतिया रहे थे...
बालचंद जिस औरत को भोग चूका था अंशुल उसे भोग रहा था और आगे भी इसी तरह भोगना चाहता था एक छत नीचे जो हो रहा था उसका होना अकासमात नहीं था..
अंशुल ज्ञानचंद के घर पहुंच चूका था ये घर गाँव के बाजार से लगता हुआ था जहा नीचे दूकान और ऊपर मकान जैसी प्रथा आम थी ऐसा ही एक घर ज्ञानचंद का था उसकी पत्नी शांति स्वाभाव की बहुत ही अशांत औरत थी लालच तो उसमे कूट कूट कर भरा हुआ था यही कारण था की वो इस बेमेल रिश्ते को मान गई थी और अपनी बेटी की ख़ुशी उसे नज़र नहीं आई..
आरुषि छत पर अकेली उदास आँखों से खेतो की लहलाहती हुई फसल को देख रही थी और सोच रही की क्या वो इतनी बदकिस्मत है की उसके नसीब में मनचाहे पुरुष का सुख भी नहीं है.. बिन ब्याही लड़की को क्यू इस समाज में बोझ समझा जाता है? आरुषि में ऐसी कोई कमी नहीं थी जो उसको कोई ठुकरा सकता था मगर ज्ञानचंद का बड़बोलापन और शान्ति के लालच ने उसके लिएआये कई रिश्तो की लंका लगा दी थी.. आरुषि दिखने में सामान्य और सुशील थी मन की साफ.. वो ज्ञानचंद और शांती के घर कैसे पैदा हो गई कहा नहीं जा सकता, आज वो 28 साल की हो चुकी थी मगर अब तक कवारी थी.. आरुषि छत पर खड़ी खेत देख रही थी की पीछे से अंशुल ने उसकी आँखों पर अपने हाथ रख लिए और उसकी आँखे बंद कर दी..
आरुषि समझ नहीं पाई की आखिर कौन है जिसने उसकी आँखों को इस तरह अपनी हथेलियों से ढक लिया था आरुषि ने हाथो को महसूस किया मगर पता न चला सकी और फिर पूछ बैठी.. कौन?
अंशुल अपने होंठ आरुषि के कान के करीब लेजाकर धीमे से कहा - मैं...
आरुषि कई सालों से अंशुल से नहीं मिली थी मगर उसकी आवाज़ सुनते ही समझ गई की कौन है जिसने उसकी आँखे ढाप रखी है.. अंशुल का नाम लेकर तुरंत पीछे पलट गई और अंशुल को अपनी बाहों में भर लिया.... अंशुल को आरुषि से इस तरह के आलिंगन की उम्मीद नहीं थी आरुषि के उन्नत उरोज अंशुल के वक्ष में किसी मुलायम गद्दे की भाँती दब गए और आरुषि के बदन से उठती एक भीनी महक अंशुल की नाक में भर चुकी थी...
आरुषि - इतने सालों बाद याद आई है अपनी बहन की? हम्म?
अंशुल - तुम्हे भी तो याद नहीं आई मेरी? पहले तो कितना याद करती थी..
आरुषि - याद तो अब भी आती पर तुम हो की आने का नाम ही नहीं लेते.. कितने बड़े और प्यारे हो गए हो... बिलकुल किसी शहजादे की तरह खूबसूरत और सुन्दर....
अंशुल - तुम भी तो पहले से ज्यादा चमक रही हो..
आरुषि - मस्का मत लगाओ.. सब जानती हूँ तुमको... आखिर बड़ी बहन हूँ तुम्हारी..
अंशुल - अच्छा अब छोडो मुझे... कोई ऐसे गले लगे हुए देख लेगा तो पता नहीं क्या सोचेगा..
आरुषि - शर्मा रहे हो मुझसे?
अंशुल - तुमसे क्यू शर्माऊंगा? वैसे भी जो किसी बुड्ढे से शादी करने वाली हो उससे मैं क्यू शर्माउ?
आरुषि अंशुल को छोड़कर - तुम भी यहा मेरा मज़ाक़ उड़ाने आये हो ना..
अंशुल - नहीं.... मैं अपनी प्यारी बड़ी बहन को समझाने आया हूँ.. पता है ना जब विजु को पता चलेगा तो क्या हाल करेगा उस बुड्ढे का?
आरुषि उदासी से - छोडो आशु.... सारी उम्र यही थोड़े बैठे रहूंगी.. अब तो सब ताने मारने लगे है.. और अब मेरे लिए कोनसा सहजादा आने वाला है?
अंशुल - अगर आ जाए तो?
आरुषि - मज़ाक़ नहीं आशु.. हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हो सकता.... तुम छोटे भाई हो मेरे..
अंशुल - अरे बुद्धू मैं अपनी बात नहीं कर रहा हूँ.. वैसे तुम्हारा आईडिया बुरा भी नहीं है... हमारे बीच भी कुछ.......
आरुषि - सपने देखो बच्चू.... कुछ नहीं मिलने वाला मुझसे....
अंशुल फ़ोन निकालते हुए - अच्छा ठीक है यहां आओ.... देखो.....
आरुषि - कौन है ये?
अंशुल - पहले बताओ.... पसंद है या नहीं? दोस्त है शहर रहता है....
आरुषि बिना कुछ बोले अंशुल के सीने से चिपक जाती है और इस बार उसके गाल पर एक जोरदार चुबन अंकित कर देती है..
अरे अभी तो कह रही थी कुछ नहीं मिलने वाला और अब चुम्मे दे रही हो....
आरुषि शरमाते हुए - आशु....
अच्छा अब उस बुड्ढे को नीचे से भगाओ.. साले की शकल देकर मेरा खून खोल रहा है..
आरुषि - पर क्या वो मुझसे शादी करेगा?
अंशुल - वो मुझे पर छोड़ दो... तुम बस अब अपने इस प्यारे से चेहरे को एक मीठी से मुस्कुराहट से सजा लो....
आरुषि ने रिश्ते से साफ इंकार कर दिया था और अगले ही दिन अंशुल के जुगाड़ से किसी के कहने पर आरुषि और अंशुल के दोस्त विशाल के रिश्ते की बात उठ गई थी.. अंशुल ने विशाल से बातों ही बातों में अनजान बनकर विशाल को उसके और आरुषि के भाई बहन होने के बारे में बता दिया था आज विशाल अपने माँ बाप के साथ आरुषि को देखने अगुआ के साथ उसके घर आया था आरुषि रसोई में चाय बना रही थी वहीं बगल में खड़ा अंशुल उसे इशारे कर करके छेड़े जा रहा था.. आरुषि का मन प्रसन्न था ज्ञानचंद के बड़बोलेपन और शान्ति के लालची स्वाभाव के कारण शायद ये रिश्ता भी हाथ से निकल गया होता अगर अंशुल ने बीच में सब संभाला ना होता और विशाल को पहली नज़र में ही आरुषि पसंद न आई होती..
आमतौर पर कुछ समय बाद ऐसा होता है मगर आज कुछ बिशेष था विवाह की तिथि भी आज ही निकल गई थी अब से तीन माह बाद आरुषि का ब्याह तय हुआ था, आरुषि तो ख़ुशी से मचल उठी थी.. उसने अंशुल का पूरा चेहरा चूमते हुए लाल कर दिया था.. और कहा था आशु.... तुम सच मरे लिए किसी फ़रिश्ते जैसे हो.. और बदले में अंशुल ने सिर्फ अपने होंठों पर लगी लिपस्टिक उंगलिओ से हटाते हुए कहा था.. छोटे भाई के होंठो को कौन चूमता है.. आरुषि ने फिर से एक प्यारा सा चूमा करके अंशुल के होंठों को काट लिया था....
दोनों के जज़्बात बाहकने तो लगे थे मगर अंशुल ने अपने आप पर काबू रखा और इस चुम्मे को बस एक मीठी याद बनकर ही रह जाना पड़ा....
आज किस ख़ुशी में चिकेन बन रहा है? अंशुल ने पीछे से अपनी माँ पदमा को अपनी बाहों में भरते हुए पूछा..
पदमा ने अपने पीछे से अंशुल की शरारत समझते हुए कहा - थोड़ा दूर से.... भालू अंदर ही है.... और कोई ख़ास वजह नहीं है.. बस आज मन हुआ तो बना लिया..
अंशुल - अपने पति को भालू तो मत बोलो....
पदमा मुस्कुराते हुए - जानती हूँ कितनी इज़्ज़त करते हो तुम उसकी.. ये दिखावा ना किसी और के सामने करना.. अभी घर पर ही है वो...
अंशुल - कहो तो भालू को ठिकाने लगा देता हूँ....
पदमा - अच्छा? मार खाने का इरादा है आज?
अंशुल - आपके हाथो की मार भी कबूल है....
पदमा मुस्कुराते हुए - चुप बेशर्म.....
बालचंद अंदर से आवाज़ लगाते हुए - पदमा.... नीली कमीज देखी तुमने मेरी?
पदमा चिल्लाते हुए - वो अलमारी के ऊपर वाले हिस्से में है..
अंशुल नक़ल करते हुए - पदमा.... मेरी गुलाबी चड्डी देखी तुमने?
पदमा हँसते हुए - वो तुम्हरी पेंट के अंदर है.. चलो अब जाओ ऊपर... मैं आती हूँ खाना लेके..
अगले दिन सुबह के चार बज रहे थे बालचंद दवाई के नशे में बेसुध होकर सो रहा था और पदमा अंशुल की बाहों में बेपर्दा होकर लेटी थी अभी अभी दोनों ने काम क्रिया को पूजा था और अब एक दूसरे से छेड़खानी करते हुए खेल रहे थे पदमा अंशुल को चिढ़ा रही थी और अंशुल उसे बार बार प्यार से चुम रहा था..
पदमा - अंशुल क्या सच मेरे लिए ऐसा कुछ कर सकते हो?
अंशुल - मतलब?
पदमा - जो तुमने नीचे मुझसे कहा था...
अंशुल - क्या?
पदमा - यही की तुम भालू को ठिकाने....
पदमा इतना बोलते ही रुक गई और अंशुल पदमा को हैरानी से देखता हुआ सोचने लगा ये बात तो उसने मज़ाक़ में कही थी मगर पदमा के मन में अब तक वो बाते बैठी हुई थी..
अंशुल ने पदमा की बाते का जवाब नहीं दिया और उसे फिर से अपने आलिंगन में खींचते हुए भोगक्रिया के अधीन कर लिया.... आज अगहन की पूर्णिमा थी.. पदमा जब अंशुल के कमरे से बाहर निकली तो उसके चेहरे पर हंसी थी और एक संतुस्टी मानो उसे किसी जवाब का मन चाहा उतर मिला हो...
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