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Incest आशु की पदमा

Premkumar65

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अध्याय 4
लाज़वन्ति का विश्वासघात


बंसी काका ओ बंसी काका....
बारात पुराने टीले तक पहुंच चुकी है रामखिलावन जी ने स्कूल का दरवाजा खुलवा दिया है रामु बता रहा था डेढ़ सो लोग शामिल है बारात मे, रामखिलावन जी आपको बुला रहे थे स्कूल पर बारात के स्वागत सत्कार के लिए.......
ठीक है मैं स्कूल जाता हूँ हरिया तू जरा यहां हलवाई का काम संभाल ले.... जैसे ही नाश्ता त्यार हो प्रमोद और मदन से कहकर सबका नाश्ता स्कूल मे भिजवा देना....
बंसी अपनी पसीने से भीगी हुई कमीज की आस्तीन चढ़ाते हुए हरिया से बोला.....
हरिया - पर काका.. बारात को सीधा यहां खेत मे ही ले आने के लिए कहा है रामखिलावन जी ने... स्कूल पर तो सिर्फ चन्दन बाबू और उसके साथ कुछ उनके मित्रो के ठहरने की व्यवस्था है....
बंसी - अच्छा अच्छा ठीक है.. जैसा वो कहता है कर.. मैं पहले घर हो आता हूँ... सुबह से सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिली है....
हरिया - हा काका... रास्ते मे काकी ने भी कहकर भेजा था आपको घर भेजनें के लिए.... पहले एक बार घर ही चले जाइये...
बंसी हरिया की बात सुनकर गमचे से अपना पसीना पोंछता हुआ खेत से घर की तरफ चल पड़ता है..

आज चन्दन और महिमा का ब्याह है हुसेनीपुर नाम के इस गाँव मे ब्याह की त्यारिया जोर शोर से चल रही है जिसे जो जिम्मेदारी मिली है वो उसे पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाने मे लगा हुआ है.....
बंसी महिमा के पीता है और हरिया बंसी के बड़े भाई का सबसे छोटा लड़का....
रामखिलावन बंसी के बड़े जमाई और महिमा की बड़ी बहन मैना के पति है स्वाभाव से स्वाभिमानी और मेहनती पेशे से अध्यापक, एक एक चीज का सही हिसाब रखना उन्हें अच्छे से आता है पिछले 3 दिन से ब्याह की सारी जिम्मेदारी अपने कंधो पर संभाली है रामखिलावन ने....
गाँव के सरकारी स्कूल मे चन्दन के ठहरने की बात हो या घर के पास खाली पड़े खेत मे तम्बू गाड़कर बरातियों की पेट पूजा का सवाल रामखिलावन ने ही गाँव के सरपंच प्रभाती लाल जी के साथ मिलकर सारी व्यवस्था की थी....

बारात के स्वागत सत्कार के बाद चन्दन और कुछ लोग स्कूल के कमरे मे बिछे गद्दे पर बैठा दिए गए थे उसके सामने गाँव के कुछ लोग बैठे थे पंखा इस गर्मी मे सबको राहत देने का काम कर रहा था.. बाकी बारात को खेत मे किसी भेड़ के झुड की भाति चरने के लिए छोड़ दिया गया था जहाँ ज़मीन पर पंगत लगी हुई थी और एक कोने मे कुछ लोग तम्बू के पीछे से खाने का सामान अंदर ला रहे थे.... बारतियों मे कुछ लोग अपनी हैसियत भूलकर आज बड़ी बड़ी बात कर रहे थे जिनकी चप्पलों मे भी छेड़ था जो आज शराब के नशे खुद को PM CM DM SDM इन सबका रिश्तेदार बता रहे थे और गिनगिन के कभी व्यवस्थाओ मे कमी निकाल रहे थे कभी खाने मे.......

बारात के आने की खबर से गाँव मे हर तरफ ख़ुशी का माहौल था महिमा दुल्हन के लिबास मे आज किसी अप्सरा से कम न लगती थी उसकी चमक के आगे उसके आसपास की सारी लड़किया फिकी नज़र आ रही थी केवल नयना ही थी जो बिना किसी साज श्रंगार के भी महिमा के तुल्य आज लग रही थी....
पर आज नयना का मन उदास था पहला उसकी सखी महिमा उसे छोड़कर जा रही थी वहीं दूसरा उसे पूरी बारात मे आशु कहीं नज़र नहीं आया था उसका उदास चेहरा इस ख़ुशी के माहौल मे दुख मिला रहा था जो किसी को स्वीकार कैसे हो सकता है? उसने अपनी आँखों से देखा था फिर मेघा को भी तो आशु को ढूंढने भेजा था बारात मे.. पर आशु कहीं नहीं था...

हरिया ने प्रमोद और मदन से कहकर नाश्ता स्कूल भिजवा दिया था जिसे रामखिलावन ने चन्दन के सामने रख दिया था आपस मे. लोगों के बीच मानोहर हो रही थी पुराने मज़ेदार प्रसंग निकलकर सामने आ रहे थे और जोरो के ठहाके लग रहे थे पूरा माहौल रमणिये था.....

स्कूल से चन्दन बाबू को दुल्हन के घर की देहलीज़ पर ले आया गया था गिनती के एक या दो लोग चन्दन के साथ बैठे थे वहीं अब तक लगभग सारी बारात खाना खा चुकी थी महिमा चन्दन को देखकर बहुत खुश थी और उसके दिल मे हिलोरे उठ रहे थे वहीं नयना के नयनों से आज आंसू बहने वाले थे जिसे उसने महिमा के सामने रोक रखा था तभी मेघा ने आकर नयना के कान मे कुछ कहा जिसे सुनकर नयना मेघा के साथ महिमा के कमरे से बाहर चली गई....

नयना खेत मे लगे टेंट के अंदर आई तो उसने देखा की अब मुश्किल से कुछ बाराती बैठे खाना खा रहे थे और और एक कोने मे अभिभी इसने सामने अंशुल खाने के लिए बैठा था.... साधारण जीन्स टीशर्ट मे भी वो बहुत आकर्षक और कमाल लगा रहा था, अंशुल को देखकर नयना के आंसू उसकी आँखों से उतर आये मगर इस बार उन्हें ख़ुशी के आंसू कहना सही होगा... नयना अपने आंसू पोंछकर अंशुल के सामने जा बैठी और उसकी आँखों मे देखने लगी...

पूरी बारात मे कहीं नहीं दिखे.....
कहा थे अबतक? मुझसे छुप रहे थे?
इतनी बुरी हूँ मैं की मेरी सूरत भी नहीं देखना चाहते?
पत्ता है कितनी बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी आपका?
अब उठिये यहां से.... मेरे साथ चलिए...

कहते हुए नयना ने अंशुल के सामने से परोसा गया खाना हटा दिया जिसे अभी अंशुल ने हाथ भी नहीं लगाया था और उसका हाथ पकड़ कर वहा से अपने साथ महिमा के घर की तरफ ले गयी जहा उसे नयना और महिमा की सखियों ने ठीक चन्दन के बगल मे बैठा दिया गया.....

अरे कहा गायब हो गया था आशु?
और फ़ोन कहा है तुम्हारा? कब से फ़ोन करवा रहा हूँ.
लग ही नहीं रहा.... सब ठीक है ना...

सब ठीक है भईया.... वो गाडी मे ज़रा आँख लग गई थी तो समय का पत्ता नहीं चला...
अंशुल ने चन्दन की बात का जवाब देते हुए कहा....

चन्दन और उसके साथ पीछे बैठे दोस्तो का गाँव की इन अल्हड़ भोली भाली लड़कियों से हंसी ठिठोली का दौर जारी था कभी एक तरफ से कोई कुछ कहता तो कभी दूसरी तरफ से कोई उसका जवाब देता.. मगर चन्दन के बगल मे बैठे अंशुल का मन कहीं खोया सा था उसे इन सब से कोई लेना देना नहीं था... महिमा और नयना की सखियों ने उससे हंसी मज़ाक़ करना भी चाहा था बदले मे अंशुल की ख़ामोशी ही उन्हें वापस मिली..

अरे हटो हटो.... पीछे हटो.. आगे जाने दो जरा...
अरे कोयल भाभी आप कहा इन लड़कियो के बीच बैठी ठिठोली कर रही है... अंजू जगह दो.... हटो....
चन्दन के सामने बैठी गाँव की लड़कियों को अगल बगल करती महिमा की माँ विद्या चन्दन के सामने आ गई और अपने पीछे आती एक लड़की के हाथो से थाली लेकर चन्दन के आगे रखते हुए बोली.....

माफ़ करना पाहून जी.... भोजन मे तनिक देरी हो गई.. और एक एक करके ब्याह मे बने पकवान चन्दन के सामने विद्या ने परोस दिए.... चन्दन के साथ मे उसको दोस्तों को भी भोजन परोसा गया लेकिन अंशुल की थाली खाली थी जिसे नयना ने अपने हाथो से अभी अभी अंशुल के सामने रखा था और उसी के सामने आ बैठी थी.. जिस मीठे स्वाभाव के साथ विद्या ने अपने जमाई चन्दन को खाना परोसा था उसी के साथ नयना ने भी अंशुल की थाली भोजन से सजाई थी..... इस माहौल मे सब अपना अपना आनंदरस खोज रहे थे और व्यस्त नज़र आ रहे थे....

क्या हुआ?
कहा खोये हो?
अपने हाथो से खा लोगे या हम खिलाये?
नयना ने जब ये बात अंशुल को कहीं तो चन्दन और उसके दोस्तों के साथ साथ नयना के साथ बैठी सभी सखियों जोर से ठहाके मारकर हँसने लगी.... बेचारे अंशुल का चेहरा शर्म से लाल हो चूका था जिसे देखकर नयना को उसकी हालत पर प्यार के साथ तरस दोनों एक साथ आ रहा था..

पाहून जी आपके दोस्त तो कुछ बोलते ही नहीं..
गूंगे है?
एक लड़की ने कहा तो सब वापस जोर से हसने लगे...
इस बार नयना भी मुस्कुराने लगी थी..

क्या हुआ आशु?
कहा खोये हो? अभी भी नींद आ रही है?
खाना ठंडा हो जाएगा.... चन्दन ने कहा....

चन्दन की बात सुनकर आशु ने सामने बैठकर पंखा झलती नयना को देखते हुए खाने की पहली कोर मुँह मे डाली और खाने लगा.... दोनों की नज़र बार बार एक दूसरे से टकरा रही थी और कई सवाल जो एक दूसरे के मन मे थे आपस मे पूछ रही थी और उनके जवाब भी उन्ही आँखों से दिए जा रहे थे.. नयना अपने सपनो के सागर मे फिर से एक बार खो चुकी थी अंशुल का चेहरा उसे उसके दिल की गहराइयों मे बसे प्रेम की अथाह सागर मे ले जा चूका था वहीं अंशुल खाना खाते हुए अपने मन मे चल रहे द्वन्द से लड़ रहा था मानो उसपर कोई ऊपर साया अपना काबू करना चाहता था जिसे उसकी आत्मा ने अब तक उसे छूने से भी रोका हुआ था....

खाने के बाद हाथ धोते हुए चन्दन ने हरिया के कहे अनुसार घर के पिछवाड़े साजे मंडप की और कदम बढ़ा दिए नहा शादी की रस्म पूरी होनी थी....

बंसी जी...
ये एक सो सातवा विवाह करवा रहे है हम....
दूर दूर तक कोई भी दूसरा पंडित हमसे ज्यादा विधि विधान के साथ कोई शुभ कार्य करवा ही नहीं सकता..
अजी इतनी उम्र ऐसे ही थोड़ी ले कर बैठे है....
सरपंच जी.....
आज तक जिसका भी विवाह करवाया है सब के सब ख़ुशी से अपना जीवन निर्वाह कर रहे है...
किसीके भी घर टूटने या कचहरी तक जाने की खबर नहीं सुनी....
आप तो अच्छे से जानते है.......
धोती कुर्ते मे बैठे एक अधेड़ उम्र के पंडित जी अपनी चुटिया को ऊँगली से घुमाते हुए बंसी और प्रभाती लाल से अपनी योग्यता का बखान कर रहे थे....

अरे आओ आओ पाहून जी....
यहां बिराजिये... पंडित जी ये है चन्दन बाबू..
हरिया... अपनी काकी से कह महिमा को भी भेजे....
चन्दन को आता देखकर बंशी ने कहा..

शादी की रस्म शुरु हो चुकी थी वही अंशुल सबकी नज़र बचाकर खेत की तरफ आ चूका था इस बार उसने नयना को भी छका दिया था.. खेत से अब तक पूरी बारात और गाँव के लोग खाना खाकर जा चुके थे और कुछ लोगों ने सुबह लगाए हुए तम्बू अब उखड़ कर एक तरफ कर दिए थे और वहा अब धीमी लाइट की रौशनी ही बची थी जहा चन्दन के साथ खाना खाने के बाद उसका एक दोस्त खड़ा हुआ सिगरेट के कश ले रहा था....

अंशुल के मन मे हलचल थी आज फिर से नयना ने उसके दिल को छुआ था उसे रह रह कर नयना का चेहरा दिखाई दे रहा था और उसकी बातें सुनाई.... अजीब मनोदशा के बीच अंशुल अब तक प्रभाती और उनकी धर्मपत्नी लाज़वन्ति से बचकर ही रहा था जैसे उसमे उनका सामना करने की हिम्मत ही ना हो.. इस बार नयना से भी नज़र बचाने मे कामयाब रहा था कहीं और जाने की जगह नहीं दिखी तो खेत मे आ गया था....

सिगरेट?
चन्दन के दोस्त गोपाल ने अंशुल की तरफ सिगरेट का पैकेट और लाइटर बढ़ाते हुए कहा..
अंशुल सिगरेट कभी कभार.. हफ्ते मे एकआदि बार ही पीता था मगर इस वक़्त उसने बिना कुछ कहे गोपाल के हाथ से वो सब ले लिया और वहीं खड़ा हुआ अपने ख्याल मे रहा...

मैं चन्दन के पास जा रहा हूँ...
जब तुम वापस आओ तो चुपके से मुझे वापस कर देना....

गोपाल ने अंशुल ये बात कहकर अपने कदम बढ़ा दिए.. अंशुल वहीं कहीं एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया काफी देर तक अपनी सोच मे खोया रहा, जहाँ खेत मे कुछ देर पहले मेला सा लगा हुआ था वहा आसपास अब इंसान का मानो निशान तक नहीं था.... अबतक नयना ने अंशुल पत्ता लगा लिया था और वो अकेली ही रात के इस वक़्त खेत की तरफ चली आई थी..
अंशुल ने बहुत देर तक बैठे बैठे जिस दौराहे पर वो था उसीके बारे मे सोच रहा था फिर आखिर मे एक सिगरेट पैकेट निकालकर जला ली और पहला ही कश लिया ही था की नयना पीछे से बोल पड़ी....

शराब का प्रबंध करू या है आपके पास?
अंशुल ने पीछे मुड़कर नयना को देखा तो हाथ से सिगरेट अपने आप नीचे गिर गई...
तुम अकेली इस वक़्त यहां क्या कर रही हो? अंशुल ने पूछा..

जहा आप हो.. वहा मैं क्या करूंगी? आपको लेने आई हूँ... सोना नहीं है? यहां शोर गुल मे तो आपको नींद आने से रही... उस दिन सासु माँ ने बताया था आपको सुकून से सोना पसंद है.. तो मैं आ गई आपको लेने... वैसे तो शादी से पहले दूल्हा अपने ससुराल मे नहीं आता मगर आप को पूरी छूट है.... आप जब चाहे आ जा सकते है... अब खड़े खड़े मेरी शकल क्या देख रहे है... चलिए....

क्या सासुमा? क्या ससुराल? क्या दूल्हा? आधी रात को कोई दौरा पड़ा है तुम्हे? उस दिन देखकर समझ आ गया था पागल हो मगर इतनी बड़ी पागल... आज समझ आया है.. तब से क्या कुछ भी बोले जा रही हो? एक बार की बात समझ नहीं आती तुमको? तेरा मेरा कुछ नहीं हो सकता.... मुझे ना तुममें कोई दिलचस्पी है ना तुम्हारे बाप की दौलत मे.... और तुमसे शादी भी नहीं करना चाहता.. अगहन तक इंतज़ार करने की तुम्हे कोई जरुरत नहीं है.... समझी..

हाय..... कैसे कोई नयना जैसी परी को इतनी दिल को दुःखाने वाली बात कह सकता था.. क्या आशु के दिल मे ज़रा भी रहम नहीं था नयना के लिए? कौन जाने? अंशुल की बात तो जैसे नयना के कानो तक पहुंच कर वापस लौट गई थी उस नादान लड़की पर अंशुल की इतनी कठोर बातों का कोई असर नहीं हुआ था वो वो बस टकटकी लगाए अंशुल के हिलते हुए होंठों को बड़े प्यार देख रही थी.. उसके दिल मे तो था की आगे बढ़ कर अंशुल के लबों को अपने लबों की कोमल और रसदार हाथकड़ी से गिरफ्तार कर ले मगर लोकलाज और उसकी मर्यादा ने उसे अब तक रोका हुआ था..

एक सिगरेट क्या नीचे गिर गई.... उसके लिए इतना गुस्सा? अच्छा पी लो अब कुछ नहीं कहती.... इतना कहकर नयना अंशुल के बिलकुल करीब आ गई और पत्थर पर पड़े सिगरेट के पैकेट और लाइटर को उठाकर अंशुल की हथेली पर रख दिया..

अंशुल ने उसे फेंकते हुए कहा - देख नयना.... मैं कोई मज़ाक़ नहीं कर रहा हूँ.. तू अच्छे से जानती है.. मुझे बक्श दे... तेरा मेरा कुछ नहीं हो सकता..

मुझे मेरी मन्नत पर पूरा भरोसा है....
देखना आप खुद अगहन की पूर्णिमा को मेरे साथ मेरा हाथ पकड़कर जीने मरने की कस्मे खाओगे.... और मुझे अपनी बनाओगे..
फिर देखना मैं कैसे आपकी बातों का गिन गिन के आपसे बदला लेती हूँ......

इस बार अंशुल ने आगे कुछ कहना जरुरी नहीं समझा और वहा से वापस आने के लिए चल दिया.. अंशुल के एक कदम पीछे अपनी ही बात करते करते नयना भी वापस आ रही थी.... नयना की सारी बातें अंशुल के मन मे उतर रही थी लेकिन पदमा के प्रेम मे उसे रोक रखा था अंशुल को नयना का रूप और स्वाभाव भा गया था लेकिन वो चाह कर भी उसे स्वीकार नहीं कर सकता था, बस ऊपरी तौर पर कड़वे बोल बोलकर नयना का दिल दुखाना चाहता था ताकि नयना उसे छोड़ कर किसी भले आदमी से ब्याह कर ले, मगर नयना भी पक्के इश्क़ आजमाइश को समझती थी और जानती थी इश्क़ सब्र और इम्तिहान दोनों मांगता है अपने प्यार को छोड़ देना उसके बस मे नहीं था.....

अब तक विवाह सम्पन हो चूका था.. पंडित जी और रामखिलावन के बीच पैसो को लेकर तीखी नौकजोख चल रही थी....
अरे पंडित जी.. जो रकम तय हुई थी वहीं तो लोगे ना.. ऐसे थोड़ी कुछ भी माँगने लगोगे.... अब जो बात बता रहे हो वो बात पहले बतानी चाहिए थी.. पंडितो की कमी थोड़े ही है हम दूसरा कर लेते..

अरे कौन है ये बीच का बांस? कब से कुछ भी बोले जा रहा है.... आस पास के अस्सी गाँव मे कितना आदर, सम्मान से बुलाते है लोग और मुँह मांगी राशि देते है.... कोई तुम्हारी तरह पंचायत नहीं करता..

पाहून जी... कितना शुभ काम हुआ है अभी वादविवाद करना ठीक नहीं.. जो मांगते है पंडित जी दे दीजिये ना.... महिमा की माँ विद्या ने कहा...
बंशी भी विद्या के साथ मे बोल पड़ा - पाहून जी.. अब छोड़िये अपना गुस्सा.... पंडित जी को विदा कीजिये...

रामखिलावन ना चाहते हुए भी पंडित जी की मांगी गई रकम उन्हें देकर विदा करता है और फिर नाक सिकोड़ता हुआ कहता है - शुभ अवसर है कोई कुछ बोलेगा नहीं यही सोच कर तो अपना मुँह फाड़ते है सबके सब.... चाहे हलवाई वाला हो या टेंट वाला.. चाहे किराने वाला हो या फेरे कराने वाला... शादी को कमाई का धंधा बना रखा है सबने...

रामखिलावन ये कहते बाहर निकलकर छत पर आ गया था जहा अंशुल नयना से किसी तरह हाथ पैर जोड़कर पीछा छुड़ाते हुए एक चार पाई पर लेट गया था.. बड़ी मुश्किल पीछा छोड़ा था नयना ने, और आखिर मे अंशुल से कहा भी था कि सुबह देखती हूँ बच्चू....






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आह्ह.... आह्ह.... आह्ह......
कोई आ जाएगा......
आह्ह.... जमाई जी..... छोड़िये..... आह्ह....

सवेरे सवेरे खेत के दूसरी तरफ स्कूल में जब महिमा की माँ विद्या रात को छोटे जमाई चन्दन का स्वागत करके वापस घर गई थी तब विद्या स्कूल में अपना कोई सामान भूल गयी थी... आज इतवार था स्कूल बंद था कोई भी नहीं दिखाई पड़ता था रामखिलावन सरपंच प्रभाती जी से ताला लेकर स्कूल बंद करने आया था वहीं विद्या उसे मिल गई थी......
रामखिलावन ने जिस गद्दे पर रात में चन्दन बैठा था उसी गद्दे पर विद्या को अपने नीचे लेटा लिया था और भोग रहा था.... दरवाजा बंद था और खिड़की भी बंद.... पिछली बार 3 महीने पहले जब वो यहां आया था तब उसका और विद्या का सम्बन्ध बना था....

क्यों चिंता करती हो विद्या...... इतनी सुबह कोई नहीं आएगा.... ठीक से मुँह खोलो.... हां.... आह्ह... तुम सच में कमाल हो विद्या.... ऐसे ही चुसो... हां...
आह्ह..... जमाई जी..... छोड़िये ना.... कोई देख लेगा...
कितने दिनों बाद आज मौका मिला है विद्या.... कैसे छोड़ दू? कोई नहीं आने वाला....
जमाई जी..... आह्ह......
सच कहु तो विद्या मैना से शादी मैंने तुम्हारे लिए ही की थी....
ई का कह रहे हो जमाई जी....
सच कह रहा हूँ विद्या..... ज़ब पहली बार देखा था मैं पागल हो गया था.... तुम्हारे इन दोनों मोटे मोटे कबूतरो ने मुझे पागल कर दिया था...
जमाई जी मुझे डर लग रहा है कोई आ जाएगा... आप फिर कभी कर लीजियेगा.... मैं कहा मना कर रही हूँ.....
फिर कभी क्यों सासु माँ? इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा.... तुम डरो मत.....
आह्ह जमाई जी.... आप तो बहुत बुरे हो.... आह्ह...
अपने जमाई को अपना बदन दिखाकर बिगाडो तुम और बुरे हम हुए.... वाह सासु जी वाह....
जरा जल्दी करो जमाई जी.... आह्ह... महिमा की विदाई है आज... बहुत काम पड़ा है घर में...

थप थप छप छप की आवाज और रामखिलावन और विद्या की बातों से हल्का सा शोर हो रहा था जिसे सुनकर विद्या डरी हुई थी मगर रामखिलावन ने जैसे तैसे करके विद्या को मनाकर उसके साथ कामसुख लूट ही लिया था और स्कूल से निकालते हुए उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी वहीं विद्या का चेहरा शर्म से लाल........

उठ जाओ बच्चू..... सोते ही रहोगे? कुम्भकरण हो?
नयना ने अंशुल को जगाते हुए कहा.....
तुम्हे सुबह भी चैन नहीं है? क्यों मेरा पीछा नहीं छोड़ती? अंशुल पास रखे पानी के बर्तन से मुँह धोता हुआ बोला...
नयना - पीछा छोड़ने के लिए थोड़ी पीछा किया है आपका.... अब तो मरकर ही पीछा छूटेगा.... याद है ना.... अगहन की पूर्णिमा को मेरे घर बारात न लाये तो क्या होगा?
अंशुल - हां तुम खुदखुशी कर लोगी.... बस.... मुझे तुम्हारी धमकियों से कोई मतलब नहीं है.... मेरी ना का मतलब ना है...
नयना - आपको फिर मेरी बातों से इतना फर्क क्यों पड़ रहा है? मर जाने दीजिये.... आपका क्या बिगड़ेगा?
अंशुल - मुझे क्यों फर्क पड़ेगा.... लेकिन आज सुबह सब गए कहा? यहां कोई भी नहीं दिख रहा... चन्दन कहा है?
नयना - सुबह? बारह बज रहे है.... शहजादे.... ये सुबह नहीं दोपहर होती है यहां.... सब द्वारे की तरफ है... विदाई होनी है महिमा की... आज से तीन माह बाद जैसी मेरी विदाई होगी और आप मुझे अपने साथ लेकर जाओगे.... नयना ने मुस्कुराते हुए कहा फिर रात को अंशुल का फ़ेंका हुआ सिगरेट का पैकेट और लाइटर उसे देती हुई बोली.... लो.. और गुस्सा थोड़ा कम किया करो..
अंशुल सिगरेट और लाइटर ले लेता है और छत से नीचे आ जाता है...
पीछे आती नयना ने कहा -चाय बना दूँ आपके लिए?
अंशुल - नहीं.... जरुरत नहीं....
नयना ने दुप्पटा नहीं ले रखा था उसके स्तन उसकी छाती पर तने हुए थे जिसपर अंशुल की नज़र चली गई....
नयना - क्या देख रहे हो मिस्टर? ऐसा वैसा कुछ सोचना भी मत बच्चू.... ब्याह से पहले कुछ नहीं करने देंगे आपको.. और ब्याह के बाद कुछ नहीं करोगे तो छोड़ेंगे नहीं... हाहा...
अंशुल - ब्याह होगा तब ना..... ये कहते हुए अंशुल जब बाहर की तरफ जाने लगा तो नयना ने अंशुल का हाथ खींच लिया और उसे अपनी तरफ करके अंशुल के अधरों पर अपने अधर ठिका दिये......

ये प्यार का पहला चुम्बन था जो नयना अंशुल को दे रही थी इस चुम्बन में सिर्फ दोनों के होंठो हो नहीं आँखे भी मिल गई थी दोनों चुम्बन के वक़्त एकदूसरे को देख रहे थे किसीने भी अपनी आँखे बंद नहीं की थी जैसे आँखों से कोई सवाल पूछ रहे हो.. अंशुल पर तो नयना ने जैसे कोई जादू कर दिया था वो चाह कर भी अपने होंठ अलग न कर सका और यूँही नयना को देखता हुआ खड़ा रहा.. नयना के गुलाब सुर्ख नरम होंठों का अहसास पाकर अंशुल मादकता और प्रेम के शिखर पर जा पंहुचा था जहाँ से नयना उसके साथ कुछ भी कर सकती थी.. उसके दिल में नयना के लिये जो प्रेम था वो और प्रगाड़ हो चला था... कुछ देर बाद जब नयना ने चुम्बन तोड़ा तो दोनों की साँसे तेज़ चल रही थी अंशुल किसी बूत की तरफ खड़ा हुआ बस नयना को ही देखे जा रहा था जैसे कोई मूरत हो.. नयना चुम्बन के बाद अंशुल के सीने से जा लिपटी जैसे उसे खोने का डर हो और अपनी बाहों में हमेशा के लिए क़ैद करना चाहती हो..

नयना ने अंशुल की बात का जवाब देते हुए कहा.. ब्याह तो होगा... और जरुर होगा आपके साथ.. आप देखना.... इस अगहन मेरे हाथो की मेहंदी आपके बिस्तर पर ही झड़ेगी..... मन तो कर रहा है अभी आपकी इज़्ज़त लूट लू मगर अगहन तक इंतजार करुँगी आपका.. और आपकी मर्ज़ी के साथ ही करूंगी सबकुछ....
अंशुल चाहता तो फिरसे नयना के अधरों को अपने अधरो पर सजाना था मगर पदमा का ख्याल उसे इसकी इज़ाज़त नहीं दे रहा था. नयना का भोलापन मासूमियत और आँखों में अपने लिए झलकते पागलपन को अंशुल समझ रहा था.. वो अपने ख्याल से बाहर आता हुआ बोला - ये ज़िद छोड़ दो नयना... मैं किसी और का हो चूका हूँ.... तुम्हारे साथ ब्याह नहीं कर सकता... मुझे माफ़ कर दो..
नयना के गंभीर चेहरे पर हंसी आ गई और वो हसते हुए बोली - ये सब मेरा दिल जलाने के लिए कह रहे हो ना? ताकि मैं आपका पीछा छोड़ दू? बच्चू इस जन्म तो ऐसा मुमकिन नहीं है.... मरने के बाद भी पीछा नहीं छोडूंगी......
बाहर से किसी के आने की आहट सुनकर नयना और अंशुल थोड़े सतर्क हो जाते है और थोड़ा दूर होकर यहां वहा देखने लगते है...
दीदी चलो ना... महिमा दी कब से आपको बुला रही है... ये मेघा थी गाँव की ही एक किशोर लड़की... जिसके साथ नयना अंशुल को देखकर मुस्कुराती हुई बाहर की तरफ चली गई...



विदाई में इतना देर कौन करता है भाई?
अरे यार क्या बताये पहले रस्मे में देरी हुई अब ये गाडी बिगड़ गई आस पास तो कोई है नहीं गाडी बनाने वाला अब लुटिया गाँव के नेनु को बुलाया अभी रास्ते में बताता है...
लोग आपस में बात कर रहे थे सुबह हो जाने वाली विदाई दिन के 1 बजे तक नहीं हुई थी.. विदाई में समय लगने वाला था...

अंशुल गाँव घूमता घूमता नहर के पास आ पंहुचा दिन सुहावना था, एक पेड़ के नीचे खड़े होकर अंशुल में पेड़ के तने पर अपनी पीठ टिका दी और नहर की तरफ देखने लगा.. नहर के उस पास एक सडक थी और सडक के पार घना जंगल... कहते है वहा से कभी कभी जंगली जानवर गाँव में घुस आते थे.. अंशुल बस प्रकर्ति की खूबसूरती निहार रहा था उसके मन से अब नयना के ख्याल उतर चुके थे और वो हक़ीक़त की ज़मीन पर था... उसने एक सिगरेट जला ली थी और कश लेते हुए नज़ारा अपनी आँखों में भर रहा था..

अंशुल खड़ा था की पीछे से किसी की आवाज़ आई - अरे आप यहा कब आये?
अंशुल ने पीछे मुड़कर देखा तो लाज़वन्ति खड़ी थी...


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लाल साडी देह पर सजाये सुन्दर चेहरे वाली लाज़वन्ति अपनी अंगकांति से जोबन की छलकियां बिखेर रही थी. उसके उभार उसकी छाती पर साफ देखे जा सकते थे जो चलने पर हलचल करते थे और साडी में उसकी कमर का दृश्य किसी को भी काम के अधीन करने के लिए पर्याप्त था... अंशुल ने सिगरेट फेंक दी...
जी... बस ऐसे ही घूमते हुए.... यहां आ गया था..
अंशुल ने बिना लाज़वन्ति की तरफ देखे कहा..
कैसे लगा आपको हमारा गाँव? लाज़वन्ति ने बाते करने की इच्छा से आगे पूछा तो अंशुल बोला - अच्छा है.. बहुत खूबसूरत है..
लाज़वन्ति अंशुल का जवाब सुनकर थोड़ा खुल गई और इस बार अंशुल को छेड़ने की नियत से पूछ बैठी...
लाज़वन्ति - इतना खूबसूरत लगा तो यहां के जमाईराजा बनने से क्यों इंकार कर दिया?
अंशुल लाज़वन्ति की बातों में लिपटा सवाल समझ गया था उसने इस बार लाज़वन्ति की तरफ मुँह करके कहा - आप नाराज़ है मुझसे?
लाज़वन्ति अंशुल के करीब आती हुई उसका हाथ पकड़ कर बोली...
लाज़वन्ति - हमारे नाराज़ होने से अगर आपको कोई फर्क पड़ता है तो हां... हम नाराज़ है आपसे?
लाज़वन्ति की बातों में मोह था और स्नेह भी.. जिसने अंशुल को बाँध लिया था, लाज़वन्ति ने मुस्कुराते हुए ऐसी बात कह दी थी जिसका अंशुल के पास कोई जवाब नहीं था.. अंशुल नज़र झुकता हुआ बोला..
अंशुल - मुझे माफ़ कर दीजिये....
लाज़वन्ति - माफ़ी तो आपको नयना से मागनी पड़ेगी जो दिन रात आपके नाम की रट लगाए रहती है... कहती है शादी आपके साथ ही करेगी.. वरना नहीं करेगी.. बहुत ज़िद्दी है..
अंशुल - मैं कई बार उसे समझा चूका हूँ पर वो मेरी बाते सुनने को त्यार नहीं..
लाज़वन्ति - हम्म... ये आप दोनों के बीच का मामला है.. इसमें मैं कुछ नहीं कर सकती..... वैसे इस मौसम में आपको गरमागरम चाय की इच्छा होगी... आप मेरे साथ चलिए.. यही पास में हमारा घर है आपको चाय पीलाती हूँ.....
अंशुल - नहीं शुक्रिया.... मुझे अभी चाय की तलब नहीं है...
लाज़वन्ति अंशुल का हाथ पकड़कर - चलिए ना... ऐसे शर्माने से काम नहीं चलेगा.... घर पर कोई नहीं है.. जिससे आपको परेशानी हो... चाय नहीं तो मेरे साथ एक सिगरेट पी लीजियेगा.... चलिए...
इस बार अंशुल लाज़वन्ति के साथ चल देता है..

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अंशुल लाज़वन्ति के पीछे पीछे चल देता है... लाज़वन्ति की मटकती गांड देखकर अंशुल अपने होश खाने लगता है और मदहोशी में कामुकता के पंजे में फँसता चला जाता है लाज़वन्ति की कमर और पीछे से दिखती उसकी जिस्मानी खूबसूरती अंशुल को समोहित करने में सफल होती है.. अंशुल किसी गुलाम की तरह लाज़वन्ति के पीछे पीछे उसके घर तक पहुंच जाता है.....

गाँव की सबसे बड़ा घर था सरपंच प्रभती लाल का जहाँ लाज़वन्ति अंशुल को ले आई थी.. घर में कोई नहीं था लाज़वान्ति घर के अंदर सोफे पर अंशुल को बैठाकर आँगन में चाय बनाने चली गई और थोड़ी देर बाद हाथ में चाय और पकोड़े की प्लेट लेकर अंशुल के सामने रख दी.... लाज़वन्ति अंशुल के बगल में बैठ गई थी..

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अंशुल चाय का कप उठाकर पिने लगा.. दोनों में अब तक और कोई बात न हुई थी.. मगर अब लाज़वन्ति ने अपने दामन पर से आँचल सरका लिया था जिससे अंशुल को ब्लाउज में उसके उभार साफ साफ दिख रहे थे.. जिसे लाज़वन्ति अच्छे से जानती थी फिर भी उसने उसे ठीक करने की जहमत नहीं उठाई... और उसी तरह अंशुल के पास बैठकर उसे देखती रही जैसे उसे अंशुल से कुछ कहना था.... बाहर बारिश की रिमझिम झड़ी लग चुकी थी...
चाय बहुत अच्छी है....
शुक्रिया.... पकोड़े भी खा कर देखो... बरसात में अच्छे लगेंगे...
आप भी मेरे साथ खाइये ना... अकेले खाना अच्छा नहीं लगता... अंशुल के कहने ओर लाज़वन्ति ने पकोड़े उठाकर खाने शुरू कर दिए और दोनों के बीच बात होनी फिर से शुरू हो गई.. कभी गाँव.. कभी महिमा की शादी.. कभी चन्दन के स्वाभाव तो कभी लाज़वन्ति और अंशुल की आपसी जिंदगी के बारे में बात होने लगी थी....
लाज़वन्ति और अंशुल आपस में काफी खुल चुके थे और अब खुलकर बाते करने लगे थे अंशुल के माँगने पर लाज़वन्ति वापस चाय बनाने चली गई थी और बारिश अपनी रफ़्तार पकड़ने लगी थी एक घंटे से ऊपर का समय हो चूका था दोनों को बाते करते..
अंशुल लाज़वन्ति की आँखों में उसकी प्यास देख रहा था उसे मालूम हो चूका था की लाज़वन्ति अब उसकी और पूरी आकर्षित हो चुकी है...

लाज़वन्ति जब इस बार चाय लाई तो चाय देते हुए उसका पल्लू नीचे गिर गया जिससे उसके कबूतर अंशुल के सामने लटक गए जो ब्लाउज के अंदर से अंशुल को चिढ़ा रहे थे.. लाज़वन्ति ऐसा अनजाने में हुआ था या जानबूझकर ये तो वो ही बता सकती है मगर इतना तय था की लाज़वन्ति अंशुल पर लट्टू हो चुकी थी और उसे हर तरह से खुश करना चाहती थी..
अंशुल ने अपना मुँह मोड़ लिया और लाज़वन्ति ने भी पल्लू ठीक कर लिया और बगल में बैठ गई..
सिगरेट है आपके पास?
आप सिगरेट पीती है?
क्यों सिर्फ आप मर्द ही पी सकते है? हम औरते नहीं?
नहीं नहीं... लीजिये....
लाज़वन्ति ने एक सिगरेट निकलकर जला ली और और एक कश लेकर सिगरेट अंशुल को देते हुए कहा - शादी से इंकार करके आपने अच्छा नहीं किया.. अपनी बाते कहते हुए लाज़वन्ति थोड़ा झुक गई थी जिससे उसके कबूतर अब अंशुल के सामने थे ओर लाज़वन्ति ने उन्हें छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया..

अंशुल ने लाज़वन्ति के हाथ से सिगरेट लेकर फेंक दी और लाज़वन्ति का हाथ पकड़कर उसे अपने ऊपर खिंच लिया.... इसके साथ ही दोनों के बीच सम्भोग आरम्भ हो गया....
बाहर होती बरसात ने माहौल को और भी कामुक बना दिया था और अंशुल लाज़वन्ति के बदन के आगे अपना काबू नहीं रख पाया जिससे दोनों काम की अग्नि में प्रेवश कर गए और अंशुल लाज़वन्ति को अपने ऊपर खींचकर उसके होंठों को अपने होंठों में भरकर चूमने लगा जैसे लाज़वन्ति के लबों का रस उसी के लिए हो.....
लाज़वन्ति ने अंशुल की इस हरकत का विरोध नहीं किया बल्कि खुद उसे पूरा पूरा सहयोग करने लगी अपने साथ कामक्रीड़ा करने में जैसे वो पहले से इसके लिए त्यार हो और जानती हो की अब आगे क्या होने वाला है......

प्रभाती लाल तो वैसे भी महीने में एक दो बार ही धीमे से लाज़वन्ति को अब वो सुख दे पाते थे जो जवानी में दिया करते थे लेकिन अब लाज़वन्ति उस सुख की तलाश में थी और अंशुल उसका शिकार बना था.. या कहना कठिन है की किसने किसका शिकार किया था फिर भी दोनों जिसे तरह से एक दूसरे को चुम रहे थे उससे लगता था की ये सब दोनों की प्रबल इच्छा से ही हो रहा है.....
कुछ देर इसी तरह अंशुल ने लाज़वन्ति के होंठों से अपना मुँह मीठा करने का बाद चुम्बन तोड़ दिया और उसकी आँखों में देखने लगा जहा काम की अपार इच्छा उसे दिखाई देने लगी. अंशुल ने अपनी पेंट की जीब खोल दी और उसमे से अपने लोडा बाहर निकाल लिया जिसे देखकर लाज़वन्ति की आँखे चमक उठी..... हाय दइया.... कितना मस्त लंड है.... ऐसा तो कभी नहीं देखा... अंशुल लाज़वन्ति के मन में चलते ख्याल उसकी आँखों से पढ़ सकता था अंशुल ने लाज़वन्ति के बाल पकड़ कर उसका चेहरा अपने लंड के करीब खींचा और लाज़वन्ति अंशुल के मन की बाते समझकर उसके लंड को मुँह में भरकर चूसने लगी.....


अंशुल नयना की माँ की लाज़वन्ति को अपना लंड चूसाते हुए बाहर होती बरसात देख रहा था और इस पल के आनंद में डूब रहा था.... लाज़वन्ति पुरे ध्यान और मज़े के साथ अंशुल का लोडा अपने मुँह में भरकर चूस रही थी जैसे उसे इसमें असीम आनंद की अनुभूति हो रही हो....
अंशुल ने एक सिगरेट जला ली और कश लेते हुए बाहर होती बारिश और अंदर होती लंड चुसाई का मज़ा लेने लगा वो लाज़वन्ति का सर बड़े प्यार से सहला रहा था मानो उसे लंड चूसने का आशीर्वाद दे रहा हो.... 42 साल की लाज़वन्ति दिखने में पदमा की भाति ही सुडोल अंगों वाली गोरी आकर्षक महिला था जो पीछे साल खरीशमाई तरीके से घर्भवती हुई थी लेकिन बच्चा पैदा होते ही ख़त्म हो गया था जिससे उसके स्तन में दूध उभर आया था.....
अंशुल पुरे मज़े के साथ सिगरेट के कश लेते हुए लाज़वन्ति की लंड चुसाई का सुख भोग रहा था तभी उसका फ़ोन बजा...
हेलो..
हेलो... आशु... कहा है तू? कब से तेरा वेट हो रहा है.. चलना नहीं है?
चन्दन भईया..... अरे मैं बाइक से आ जाऊंगा आप जाओ... मैं नहर के पास फंसा हुआ हूँ...
आशु... गोपाल बाइक लेकर पहले ही जा चूका है.. मैं किसी को भेजता हूँ नहर के पास....
नहीं भईया आप रहने दो... आप जाओ मैं बारिश ख़त्म होते ही बस से आ जाऊंगा... मेरी वजह से देर मत करो....
फ़ोन कट हो जाता है और अंशुल लाज़वन्ति का सर पकड़ कर उसके मुँह में अपने वीर्य की धार छोड़ देता है....

आह्ह.... उम्म्म्म..... उम्म्म्म..... लाज़वन्ति को अंशुल के वीर्य का सेवन करना ही पड़ता है और वो उसे पीकर अपना मुँह पोंछती है अंशुल लंड पर लगी लाज़वन्ति के होंठों की लिपस्टिक साफ करते हुए कहता है - एक कप चाय मिलेगी लाज़वन्ति?
लाज़वन्ति? मुझे नाम से बुलाया? और अब चाय चाहिए? लाज़वन्ति तो कब से उसे चुत देने को त्यार बैठी है और अंशुल उससे सर्फ़ चाय की मांग कर रहा है... अरे केसा लड़का है ये जो सम्भोग के बीच भी चाय पिने को मरा जा रहा है उसे क्या लाज़वन्ति की दशा समझने का दिमाग नहीं है? अंशुल के चाय माँगने लाज़वन्ति उखड़ा सा मुँह लेकर रसोई में आ गई और चाय बनाती हुई अपनी गीली चुत को सहलाकार बड़बड़ाने लगी.... कितना पागल लड़का है? मैं यहां सबसे कीमती चीज देने को त्यार बैठी हूँ और इसे चाय की पड़ी है.... इतना अच्छा मौसम है.. मुझसे तो रहा ही नहीं जाता... कैसे भी करके आज इससे काम निकलवाना ही है..... बिना मेरी आग बुझाये तो इसे नहीं जाने दूंगी.... चाय पिने के बाद क्या करेगा देखती हूँ.... लाज़वन्ति जब बुदबूदा रही थी तभी उसे अहसास हुआ की किसीने उसे पीछे से अपनी बाहों में भर रखा है.... उसने पीछे मुहकार देखा तो अंशुल खड़ा हुआ उसे अपनी बाहों में थामे था उसके बदन पर अब कपड़ा नहीं था जैसे उसने सारे कपडे पहले ही उतार दिए हो और अब वो एक एक करके लाज़वन्ति को भी निर्वास्त्र करने लगा था पहले उसकी साडी और फिर ब्लाउज फिर घाघरा एक एक करके अंशुल ने सही कपडे लाज़वन्ति की देह से उतार दिए.....
लाज़वन्ति शर्म से पानी पानी होकर अंशुल के सामने नज़र झुकाये खड़ी थी गैस पर चाय उफ़न रही थी और यहां अंशुल और लाज़वन्ति.....
अंशुल ने गैस बंद करके लाज़वन्ति को अपनी बाहों में उठा लिया और चूमते हुए लाज़वन्ति से बैडरूम का रास्ता पूछने लगा जिसपर लाज़वन्ति ने अपने हाथ के इशारे से उसे बेडरूम का रास्ता बता दिया.....

बिस्तर पर गिराकर अंशुल सबसे पहले लाज़वन्ति के मोटे मोटे स्तनों से खेलता हुआ उसका दूध पिने लगा और लाज़वान्ति भी उसे अपना दूध पिने में पूरा पूरा सहयोग करती हुई अंशुल के बाल सहला रही थी मानो वो अपने बच्चे को दूध पीला रही हो.... अंशुल लाज़वान्ति की छाती का दूध पूरी मस्ती से पी रहा था और बारी बारी उसके दोनों बोबे दबा दबाकर लाज़वन्ति को काम के अभिभूत कर रहा था....

कुछ देर के बाद अंशुल ने लाज़वन्ति को सीधा लेटा दिया और उसकी चुत को अपनी जीभ से छेड़ने लगा...
उफ्फ्फ हाय..... दइया..... ओह मोरी मईया.... आह्ह... सिस्कारिया लेते हुए लाज़वान्ति अंशुल के बुर चटाई का स्वाद लेने लगी और काम के सागर में गोते लगाने लगी उसे इस वक़्त वो सुख मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी ना होगा... लाज़वन्ति अंशुल का सर अपनी बुर पर दबा दबा कर चूसा रही थी मानो वो आज अंशुल से कहना चाहती हो की उसे इसमें बहुत मज़ा अ रहा है और वो नहीं चाहती की अंशुल रुके... आह्ह.... आशु..... आशु..... उफ्फ्फ.... बेटा.... आह... करते हुए लाज़वन्ति झड़ चुकी थी मगर अब भी काम के अधीन थी अंशुल ने अब उसकी चुत पर अपना लंड टिकाया तो पहले धक्के पर लंड फिसल गया.. लाज़वन्ति ने अंशुल का लंड अपने हाथ पकड़ कर अपनी बुर के मुहाने पर रखा और अंशुल से कहा - बेटा.... जरा आराम से.... बहुत बड़ा है तुम्हारा.... तनिक धीरे करना.....
मगर अंशुल ने उसकी बाते नहीं मानी और पहला धक्का ही इतना जोर से दिया की उसका लंड बच्चेदानी तक घुस गया और लाज़वन्ति की चिंख निकल गई... बरसात की आवाज ने उस चिंख को दबा लिया वरना उस चिंख से पुरे गाँव को पत्ता लगा जाता की सरपंच प्रभाती लाल की धर्मपत्नी लाज़वन्ति देवी की बुर में अभी अभी कोई मोटा लम्बा लंड घुसा है.... लाज़वन्ति की आँखों से आशु और चुत से खून की दो बून्द बाहर आ गई थी लाज़वान्ति के चेहरे से साफ लगा रह था की उसकी हालत पतली है लाज़वन्ति ने एक जोर का थप्पड़ अंशुल के गाल पर जड़ दिया और कहने लगी - इस तरह भी कोई लंड घुसाता है बुर में? तुमको बिलकुल तरस नहीं आता? पूरी फाड़ के रख दी.... एक तो इतना बड़ा लंड है ऊपर से एक ही बार में डाल दिया.... आह्ह..... कितना दर्द हो रहा है...
अंशुल ने बड़े प्यार से लाज़वन्ति के होंठों को चुम लिया जैसे कुछ हुआ ही ना हो और बोला - पहले बताना था ना तू कुंवारी है....
लाज़वन्ति अंशुल की बाते सुनकर शर्मा गई एक 21 साल का लड़का उसको कुंवारी कह रहा था और अभी उसका लंड उसकी चुत में था.... अंशुल ने धीरे धीरे चुदाई का आरम्भ किया और लाज़वान्ति को चोदने लगा... Ufff हर धक्के पर हिलता हुआ लाज़वन्ति का बदन माहौल में काम ही काम भरे जा रहा था....
इस उम्र में भी इतनी टाइट बुर लाज़वान्ति? सरपंच जी का खड़ा नहीं होता क्या?
बेशर्म नाम से तो मत बुला.... कितनी बड़ी हूँ तुझसे? आह्ह... सरपंच जी तो अब बूढ़े हो गए.... और कोई है ही नहीं ख्याल रखने वाला...
चिंता मत कर लाज़वान्ति... अब से में teri बुर का ख्याल रखूँगा....
दोनों के बीच बाते और चुदाई दोनों एक साथ हो रही थी जो बता रही थी की दोनों को एक दूसरे का साथ कितना पसंद है लाज़वन्ति के चेहरे में अंशुल पदमा तलाश रहा था जो कहीं हद तक उसे मिल भी गई थी.. लाज़वान्ति का स्वाभाव कुछ कुछ पदमा सा ही था और बदन भी उसी तरह आकर्षक....
दिन के तीन बज चुके थे और अब तक अशुल ने लाज़वन्ति की बुर में अपने वीर्य की वर्षा कर दी थी.... लाज़वन्ति ने अभी अभी घोड़ी कुतिया और छिपकली पोज़ में अंशुल का लंड लिया था और अपनी बुर की गर्मी शांत की थी....

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इधर बारिश के बिच महिमा की विदाई होने जा रही थी गाडी का काम पूरा हो चूका था नेनु ने गाडी बना दी थी चंदन और महिमा आस पास बैठे थे और सभी गाँव की औरत और लड़की उसके आस पास... बीच में महिला मुँह से गीत गाती और ढोलक बजती मस्ती से नाच रही थी.... उनमे से एक नयना भी थी... भोली-भाली नयना अपनी सखियों संग यहां नाच रही थी और वहा उसके पर उसकी माँ लाज़वन्ति उसके प्यार अंशुल के लंड पर नाच रही थी....

बिस्तर पर पीठ के बल लेते अंशुल के खड़े लंड पर लाज़वन्ति पूरी शिद्दत के साथ उछल रही थी उसकी जुल्फे हवाओ में किसी नागिन की सी लहरा रही थी और चुचे उभर नीचे हिलते हुए ऐसे लगा रहे थे जैसे कोई स्पज की गेंद हो.... अंशुल की आँखों में देखती हुई लाज़वन्ति अब बिलकुल नहीं शर्मा रही थी...

चार बजते बजते अंशुल ने एक बार फिर से लाज़वन्ति
की चुत अपने वीर्य के सलाब से भर दी थी और अब दोनों वापस अपने कपडे पहनकर सोफे पर आकर साथ में बैठ गए थे.... बारिश भी अब बूंदाबन्दी में तब्दील हो चली थी अंशुल ने लाज़वन्ति से जाने की इज़ाज़त मांगी तो लाज़वन्ति ने अंशुल के होंठों को अपने लबों की हिरासत में ले लिया और चूमने लगी जैसे वो अंशुल को नहीं जाने देना चाहती हो....

अब जाने दो..... वरना रात हो जायेगी...
कल चले जाना....
अच्छा? रातभर कहा रहूँगा?
यहां मेरे पास....
नयना पागल कर देगी मुझे....
नयना को मैं समझा दूंगी....
उसे तो कोई नहीं समझा सकता....
तुमने शादी से मना क्यों किया? नयना पसंद नहीं?
नहीं ऐसी बाते नहीं है.. मुझे अभी शादी नहीं करनी..
तो बाद में कर लेना.... बेचारी बहुत प्यार करती है..
मैं जानता हूँ लाज़वन्ति.... और अब मुझे लगता है तुम भी कहीं ना कहीं मुझसे प्यार करने लगी हो.. ये कहते हुए अंशुल ने लाज़वन्ति के बूब्स मसल दिए...
आह्ह.... तुम भी ना.... बेशर्म हो पुरे.... पहले मेरी बाते का जवाब दो.... करोगे नयना से ब्याह? सोच लो उसके साथ मैं भी तुम्हारा ख्याल रखूंगी.... कहते हुए लाज़वन्ति ने अंशुल के लंड को अपने हाथो से पकड़ लिया और अंशुल को देखने लगी....
लाज़वन्ति की इस हरकत पर अशुल के लंड में वापस तनाव आ गया और वो लाज़वन्ति को उठकर अंदर बिस्तर पर ले गया और उसकी साडी ऊपर करके फिर से उसे भोगने लगा....




महिमा की विदाई हो चुकी थी और वो चन्दन के साथ चली गई थी, वहीं नयना भी अब घर आ चुकी थी और उसे घर में लाज़वन्ति के रूम से आ रही आवाज सुनाई दी तो उसका सर चकरा गया... नयना सोचने लगी की उसके पीता प्रभाती लाला अब तक बंसी काका के यहां थे तो घर में उसकी माँ लाज़वन्ति के साथ कौन था? नयना ने दरवाजे के पास बनी खिड़की जो कुछ हद तक खुली हुई थी से अंदर झाँक कर देखा तो उसके पैरों तले ज़मीन हिल चुकी थी....
अपनी माँ और अंशुल को साथ में देखकर नयना के सर पर जैसे बिजली गिर चुकी थी.... लाज़वान्ति अपने घुटनो पर बैठकर भूखी कुतिया की तरह अंशुल के लंड और टट्टे चूस रही थी और अंशुल लाज़वन्ति के बाल पकड़ कर उसे लोडा चूसा था था... दोनों बदन पर कपडे का नामोनिशान नहीं था....
नयना बिना कुछ बोले आँखों में आशु लेकर अपने रूम में आ गई और रोने लगी, थोड़ी देर पहले जहाँ वो खुशी से झूम रही थी अब उसकी आँखों में आंसू थे और वो रोये जा रही थी. उसका दिल टूट चूका था...

अंशुल और लाज़वन्ति को नयना के घर लौट आने की कोई खबर नहीं थी और दोनों मज़े से सम्भोग का मज़ा लूट रहे थे लाज़वन्ति तो जैसे अंशुल की गुलाम बन चुकी थी वो अंशुल की हर बाते किसी गुलाम की तरह मान रही थी और उससे चुदवा रही थी उसकी सिस्कारिया नयना के कानो तक पहुंच रही थी जो नयना के दिल को और दुखा रही थी.. उसके साथ ऐसा कैसे हो गया? क्यों हो गया? क्या उसकी माँ लाज़वन्ति नहीं जानती थी उसके प्यार के बारे में? नहीं लाज़वन्ति तो सब जानती थी और उसे पत्ता था की अंशुल से नयना कितना प्यार करती है फिर भी लाज़वन्ति अंशुल के साथ? पर कैसे? क्या उसने सही सोचा था अंशुल के बारे में? क्या अंशुल वैसा था जैसा नयना ने सोचा था? हज़ार ख्याल और अपनी माँ की सिस्करीया नयना के कान से होती हुई दिल और दिमाग में ह्रदय विदारक बनकर गूंज रही थी...

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लाज़वन्ति कैसे अपनी ही बेटी के साथ इतना बड़ा धोखा कर सकती है? विश्वासघात कर सकती है? नयना के आँखों से बह रहे अविरल आंसू उसके मन से अंशुल के प्रति प्रेम को बहा कर ले जा रहे थे उसे अब अंशुल पर गुस्सा आ रहा था वो मन ही मन तय करने लगी थी की अब अंशुल का चेहरा तक नहीं देखेगी...

यहा अंशुल फिर से लाज़वन्ति की बुर को वीर्य से नहला चूका था अब उसने आखिर चुम्बन के साथ लाज़वान्ति से विदाई ले ली... आज लाज़वान्ति की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था.. उसे अपनी जिंदगी में पहली बार ऐसा सुख मिला था जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी वो खुद भी अब अंशुल के प्यार में पड़ चुकी थी शायद ये उसका आकर्षण था पर उसे भी अंशुल से लगाव हो चूका था और वो दिल ही दिल चाहने लगी थी की नयना की शादी अंशुल से ही हो उसके लिए अब वो पुरे जतन करेगी.... जाते हुए अंशुल से लाज़वन्ति ने कहा था.. जमाई जी... अब जल्दी बारात लेकर आना.... जिसपर अंशुल हँसने लगा था.. आज लाज़वन्ति को जवान लंड मिला था जिससे वो जमकर चुदी थी वहीं नयना ने रो रो कर तकिया गिला कर दिया था.. उस बेचारी ने कहा सोचा था की उसे इतना बड़ा धोखा मिलेगा वो भी अपनी माँ लाज़वन्ति से?






Super sexy update.
 
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अध्याय 5
सुरीली के सुरु



आधी रात ढल चुकी थी मगर नयना की आँखों में नींद का नमोनिशान तक नहीं था, होता भी कैसे उसका प्यार भरा दिल जो टूट चूका था.. उसकी पहली नज़र की मोहब्बत बेवफा निकली थी, मोहब्बत तो मोहब्बत उसकी अपनी माँ तक ने उसके साथ विश्वासघात किया था.. नयना कैसे उन दोनों की उस बेशर्मी भारी हरकत को भूल सकती थी? क्या लाज़वन्ति को मालूम नहीं था की वो अंशुल से कितना प्यार करती है? और क्या अंशुल नहीं जानता था की लाज़वन्ति उसकी माँ है? फिर कैसे उन दोनों ने नयना के साथ इतना बड़ा धोखा कर लिया? नयना अपने बिस्तर पर पेट के बल लेटी हुई अपनी लूटी हुई मोहब्बत का मातम मना रही थी और सोच रही थी की क्या मोहब्बत करना गलत है? और गलत है तो फिर क्यों मोहब्बत सजा नहीं होती? मोहब्बत को सरे बाजार पत्थर मारकर क्यों ख़त्म नहीं कर दिया जाता? मजनू को भी तो वहीं सजा मिली थी? क्यों मोहब्बत का गला घोंटकर नहीं मार डाला जाता?

मोहब्बत अगर कोई इंसान होता तो उससे हिसाब भी लिया जा सकता था मगर मोहब्बत तो एक अहसास है एक लगाव है जिसमे मोह और स्नेह की अपार मात्रा मिली होती है और जो शाश्वत होती है जिसमे वासना की कोई मिलावट नहीं होती! मोहब्बत क्या किसी के बस में है? क्या इश्क़ हर चीज सोच समझकर किया जाता है? अगर सोच समझके किया जाता है तो वो भला कैसे इश्क़ है? रात के उस वक़्त ऐसे ही ख्यालों का सामना करती नयना अपने तकिये को अपने सीने से लगाए अपने आप से मन ही मन बाते किये जा रही थी.. और उसके फ़ोन से जुड़े इयरफोन के तार उसके दोनों कानो में लगे हुए थे जिनपर रेडियो का एक प्रोग्राम जख़्मी दिल चल रहा था एक रेडिओ जोकी बेहद दर्द भारी आवाज में टूटे दिल और प्यार में नाकाम आशिक़ो का हाले बयान सुना रहा था जो नयना के जख्मो पर मरहम की जगह नमक का काम कर रहा था.. अपनी दर्द भरी बात ख़त्म कर अभी अभी एक गाना शुरू हुआ था....

अगर दिल गम से खाली हो तो जीने का मज़ा क्या है
ना हो खून-ए-जिगर तो अश्क़ पिने का मज़ा क्या है
ना हो खून-ए-जिगर हाँ हाँ
ना हो खून-ए-जिगर तो अश्क़ पिने का मज़ा क्या है
मुहब्बत में ज़रा आंसू बहाकर हम भी देखेंगे
मुहब्बत में ज़रा आंसू बहाकर हम भी देखेंगे
तेरी महफ़िल में किस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे
अजी हाँ हम भी देखेंगे

इस गाने ने नयना के नयनों से नीर की वर्षा आरम्भ कर दी थी एक के बाद एक आंसू की बुँदे उसके कजरारे कारे मतवारे कटीले साजिले नयनों के अंतरस्थल से बाहर की ओर आ रहे थे साथ में ला रहे थे अंशुल की बेवफाई का दर्द.. ना जाने ऐसी कितनी राते पिछले दो महीनों में उस पागल लड़की ने इसी तरह गुज़ार दी थी! हाय इतनी मासूम लड़की का इतना भारी दुख अभी तक कोई भी क्यों नहीं समझ पाया था? उसने उस दिन के बाद से किसी से हंस बोल कर बाते नहीं की थी किसी से अपने मन की बाते नहीं की थी... लाज़वन्ति से भी उसने कोई शिकायत नहीं की थी ना ही उसने लाज़वन्ति को उसके किये के लिए धुँत्कारा था.. वो आखिर लाज़वन्ति से शिकायत भी क्या करती? क्या लाज़वन्ति को सब नहीं पत्ता था? लाज़वन्ति ओर नयना के बीच तो सब जैसे पहले था वैसे ही अब था, हां नयना ने लाज़वन्ति से बात करना जरुर बंद कर दिया था अब तो बस ओपचारिक बातों के अलावा दोनों में कुछ भी बाते नहीं होती थी..
नयना जो हमेशा गाने की ताल पर कदमताल करती हुई नाचने लगती थी वो अब गाने के बोल समझने की कोशिश कर रही थी.....

पलकों के झूले से सपनों की डोरी
प्यार ने बाँधी जो तूने वो तोड़ी
खेल ये कैसा रे, कैसा रे साथी
दीया तो झूमें हैं, रोये हैं बाती
कहीं भी जाये रे, रोये या गाये रे
चैन न पाये रे हिया..... वाह रे प्यार, वाह रे वाह

दुःख मेरा दुल्हा है, बिरहा है डोली
आँसू की साड़ी है, आहों की चोली
आग मैं पियूँ रे, जैसे हो पानी
नारी दिवानी हूँ, पीड़ा की रानी
मनवा ये जले है, जग सारा छले है
साँस क्यों चले है पिया....
वाह रे प्यार, वाह रे वाह
रंगीला रे, तेरे रँग में यूँ रँगा है मेरा मन
छलिया रे, ना बुझे हैं किसी जल से ये जलन
ओ रंगीला......

नयना का दुख बदलते गाने के साथ ओर बढ़ता जा रहा था आज जैसे सारे दुख भरे गाने चुन चुन के लाये थे रेडियो वाले ने.. आधी रात को नयना उन्हें सुनते हुए दिल दिल में अंशुल को कोस रही थी ओर उसकी याद में आंसू बहा रही थी.. वो तय कर चुकी थी वो अंशुल को भूल जायेगी मगर पिछले दो महीनों में हर पल उसे अंशुल ही याद आया था.. जब माहिमा वापस गाँव लौटी थी तब भी नयना ने उससे कोई ज्यादा बाते नहीं की थी महिमा ने तो उसके दिल की बाते अच्छे से समझ ली थी मगर उसने नयना के दुख का कारण अंशुल की बेरुखी ही लगाया था उसे कहा पत्ता था उसके दुख का कारण अंशुल की बेरुखी नहीं बेवफाई है....

शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है....
लब तक आते आते हाथों से साग़र छूट जाता है...

आज नयना के मन में वेदना थी उसने पिछले दो महीनों से अंशुल को ना फ़ोन किया था ना ही कोई मैसेज, ना किसीसे उसका हाल पूछा था.. नयना तो जैसे अंशुल से ऊपरी तौर पर मुँह मोड़ ही चुकी थी मगर मन के भीतर? मन के भीतर तो अब भी अंशुल बसा हुआ था मगर क्या कोई ऐसे बेवफा को माफ़ कर सकता है? नहीं नहीं... कभी नहीं.... आज नयना के रुदन में वेदना ओर विरह दोनों थी.. अंशुल से दूर रहने की ज़िद ने उसे अंशुल के लिए और भी उत्सुक कर दिया था जिसने आज विरह का रूप ले लिया था.. नयना का मन उसे सोचने पर मजबूर कर रहा था की क्यों अंशुल ने उसके साथ ये सब किया और क्या अंशुल सच में उसे नापसंद करता है? क्या वो नयना को भूल जाएगा? अगर ऐसा हुआ तो नयना क्या करेगी? क्या नयना अंशुल के बिना जी पाएगी? मगर नयना तो पहले ही तय कर चुकी है की अंशुल को मुड़कर कभी नहीं देखेगी फिर उसके मन में अचानक कैसे ये सवाल उठ रहे है? और कैसे उसे आज अंशुल की इतनी याद आ रही है? आज की रात नयना ने अपने जज्बातों से लड़ते हुए बिताई थी....

लाज़वान्ति को नयना के स्वभाव में बदलाव अब तक समझ नहीं आया था उसे कुछ अलग महसूस हुआ था मगर लाज़वन्ति नयना को समझने में नाकाम थी.. शायद इसलिए की वो नयना का दर्द उसकी आँखों से पढ़ पाने में असमर्थ थी क्या ऐसा इसलिए था कि नयना लाज़वन्ति कि असल औलाद नहीं थी? हो भी सकता है.... जब प्रभती लाल ने लाज़वन्ति से ब्याह किया था तब नयना 3 बरस कि थी और अपने पीता प्रभती लाल के पास ही रहती थी और ब्याह के बाद लाज़वन्ति ने ही उसे पाला पोसा था. लाज़वन्ति ने कभी नयना से सौतेली माँ का व्यवहार नहीं किया था मगर वो नयना के मन कि बात बिना उसके कहे जान लेने में असफल थी.. दिन अपनी रफ़्तार से बीत रहे थे और अब नयना के ह्रदय में जो पीड़ा थी दुख था अंशुल की बेवफाई का उसने विराह का रूप धारण कर लिया था वो अंशुल के साथ ब्याह करके रहना चाहती थी मगर अब अंशुल का मुँह देखना भी उसे गवारा नहीं था वो अकेली विरह आग में जल रही थी.....

प्रभती लाल को नयना का दुख साफ साफ दिख रहा था उसने कई बार नयना से उसका मन जानना चाहा पर नयना ने कभी मन की बात किसी के आगे नहीं खोली.. वो जिस विरह की अग्नि में जल रही थी वो शायद उसको खुद भी समझ नहीं आ रहा था.. अगहन का महीना शुरू हो चूका था और अब उसकी मन्नत कबूल होने का वक़्त भी नज़दीक था नयना को तो जैसे उस मन्नत पर यक़ीन ही नहीं रह गया था उसे तो जंगल का पेड़, बुढ़िया की बाते अपनी मन्नत सब मज़ाक़ ही लगा रहा था..

चन्दन की शादी आराम से निपट गई थी महिमा धन्नो के घर में खुशियाँ लेकर आई थी चन्दन और महिमा का मिलन दोनों की जिंदगी सवारने का काम कर रहा था और उसके बीच प्रेम का संचार कर रहा था दोनों आपसी जिंदगी में खुशहाल थे धन्नो भी महिमा से सुखी थी सब अच्छा चल रहा था अब तक महिमा में किसी को कोई शिकायत का मौका नहीं दिया था ना ही चन्दन ने कभी महिमा मान घटने दिया था वो तो जैसे पलकों पर सजाने लगा था महिमा को.... चन्दन और महिमा नजदीकी ने चन्दन और सुरीली का रिस्ता ख़त्म ही कर दिया था आज पुरे दो महीने से ज्यादा का समय बीत चूका था जब चन्दन सुरीली से प्रेम के पल में मिलने आया था सुरीली को जिसका अंदेशा था वहीं सब उसके साथ घाट रहा था मगर अब कौन क्या ही कर सकता है? ये तो होना ही था सुरीली पहले से होने वाली इस हक़ीक़त से रूबरू थी सो उसको भी चन्दन से दूरी का ज्यादा दुख नहीं हुआ.....

अंशुल ने भी जैसे घर से निकलना बंद कर दिया था उसके इम्तिहान का वक़्त भी नजदीक आ रहा था सो उसका सारा ध्यान अब किताबो में ही रहता था पदमा की याद को भूलाने के लिए उसके किताबो को चुना था. पदमा अब तक गुंजन के पास थी बीच में एक बार पदमा अंशुल के साथ घर आई थी लेकिन कुछ दिनों के भीतर ही उसे गुंजन के पास वापस जाना पड़ा.. गुंजन की तबियत पदमा के रहते बेहतर रहती थी जिसके चलते पदमा ने गुंजन के पास थोड़े और दिन रहने का फैसला किया था..

नयना जहा अंशुल के विराह में जल रही थी ठीक उसी तरह अंशुल भी पदमा के विराह में जल रहा था दोनों ही अपने मन की बाते किसीको बटाने में असफल थे और अपने अपने दिल की बात दिल में ही दफन करके बैठे थे अंशुल पदमा से मिलने भी जाता तो उसे एकान्त के वो दो मीठे पल पदमा के साथ नहीं मिल पाते जिनमे वो पदमा से अपने दिल की बाते कह सकता था, अंशुल भी अब अकेला हो चूका था पदमा के अलावा उसके दिल में अब कोई नहीं बस सकता था. अंशुल के प्यास अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए धन्नो थी मगर उसने चन्दन के ब्याह के बाद कभी धन्नो के साथ सम्बन्ध नहीं बनाये ना ही सुरीली का रुख किया. उसे अब सिर्फ पदमा का प्रेम ही संवार सकता था.. अंशुल ने पदमा के दिल पर और प्रगाड़ पहचान बनाने के लिए आखिरी इंतिहान की तयारी शुरू कर दी थी पहला इम्तिहान तो उसने जैसे तैसे निकाला था मगर ये दूसरा और आखिरी बेहद कठिन और जरुरी था अंशुल के लिए.. महीनों से अंशुल इसकी तयारी कर रहा था और पिछले कुछ दिनों से और ज्यादा जोर लगाकर घुसा हुआ था दिन रात बस किताबें ही उसके लिए जरुरी थी.. महिमा अंशुल को खाना दे जाया करती थी और दोनों में देवर भाभी वाली नोक झोक भी होती थी महिमा कभी कभी अपने मन की बाते करती हुई उससे नयना को अपनी दुल्हन बना लेने की बात कहती तो अंशुल चुप हो जाता... उसके पास शब्द न होते महिमा की बात का जवाब देने के लिए.. कभी कभी धन्नो आती थी मगर अंशुल अब धन्नो के साथ व्यभिचार करने से इंकार कर देता था और धन्नो को बिना देह का सुख भोगे वापस जाना पड़ता था....

रात की किताब के पन्ने पलटते हुए कब अंशुल को नींद आ गई थी कहा नहीं जा सकता सुबह के 11 बज रहे थे और बाहर से किसी के चिल्लाने का शोर आ रहा था जिससे अंशुल की नींद खुली..

अरे भाईसाब आप समझते क्यों नहीं? मैं नहीं जा सकता.. मुझे वापस जाना है....
अरे ऐसे कैसे वापस जाना है भाई? कल तय हुआ था ना सब कुछ? फिर वापस क्यों जाना है? हम पैसे भी तो दे चुके है तुम्हारे मालिक को..
अरे भाईसाब पैसे दिए तो वापस ले लीजियेगा उनसे मगर में नहीं जा सकता.. मेरे घर में एमरजेंसी है मेरी बीवी की डिलेवरी होनी है अभी और हमें तुरंत वहा जाना है.. आप ये गाडी की चाबी रखिये... कोई और ड्राइवर बुला लीजियेगा मालिक को कहकर..
पर उन्हीने तो तुम्हे भेजा है और कोई है नहीं उनके पास अभी.. सिर्फ गाडी का क्या मैं आचार डालू जब कोई चलाने वाला ही नहीं है...
क्या हुआ चन्दन भईया? इतना क्यों परेशान हो?
अरे आशु क्या बताऊ... वो अमीन के यहां से गाडी बुक की थी हुसेनीपुर जाने के लिए.. ये ड्राइवर गाडी ले तो आया अब जाने से मना कर रहा है.. अमीन से बात की तो कह रहा है अभी कोई और ड्राइवर नहीं है.. अब तू ही बता क्या करू?
भईया बस से भी तो जा सकते हो?
अरे आशु कैसी बाते कर रहा है.. वो रामखिलावन भी मोटर से आ रहा है मैं बस से जाऊंगा तो क्या अच्छा लगेगा? मेरा छोडो तुम्हारी भाभी की क्या इज़्ज़त रह जायेगी अपने माइके में? सब तो उसे ताने ही देंगे..
अरे भईया आप भी इन सब चककरो में पड़ते हो?
ये समाज है आशु.. यहां ऐसी बातों में पड़े बिना कोई पार नहीं हो पाया है.. अब एक ही दिन की तो बात है कल सुबह तो वापस भी आ जायेगे मगर ये जाने को त्यार ही नहीं...
अरे भाईसाब मैं कब से समझा रहा हूँ मेरे भी घर में काम है मुझे भी जाना है मगर ये भाईसाब तो सुनने को त्यार ही नहीं.. ना ही चाबी लेते है ना ही जाने देते है.. मैं कब से बोल रहा हूँ सुनते ही नहीं....
ठीक है लाइये आप मुझे चाबी दीजिये.. मैं चला जाऊंगा आप जाइये अपनी बीवी का ख्याल रखिये..
बहुत बहुत धन्यवाद आपका भाईसाब.... लीजिये...
तू गाडी चलाना जानता है आशु?
हां थोड़ी बहुत....मगर आप चिंता मत कीजिये आपको सही सलामत हुसेनीपुर पहुंचा दूंगा..
वाह आशु तूने तो मुश्किल आसान कर दी चल तू नहा ले और जल्दी से त्यार होकर आजा तब तक मैं तेरी भाभी को देखता हूँ अबतक त्यार हुई या नहीं..

अंशुल नहाधो कर त्यार हो चूका था आज स्पोर्ट्स शू के ऊपर नेवी ब्लू शर्ट और लाइट ब्लू जीन्स में वो बेहद आकर्षक लग रहा था, पदमा होती तो पक्का काला टिका लगा देती और कहती की तुझे किसी की नज़र ना लगे.. चन्दन हाथ में सामान लिए बाहर आया और गाडी में सामान रखकर आगे अंशुल के साथ बैठ गया कुछ देर बाद महिमा भी आ गई और पीछे सीट पर बैठ गई.. अंशुल गाडी चलाने लगा.. दो घंटे लम्बा सफर शुरू हो चूका था..

गाडी में चन्दन और अंशुल अपनी ही आपसी बातों में उलझें हुए थे उन्हें पीछे बैठी महिमा की जैसे खबर ही ना थी महिमा भी बेचारी खिड़की से बाहर देखती हुई अपनी ही दुनिया में खोई थी चन्दन के साथ उसका वैवाहिक जीवन सुखद बीत रहा था और आगे भी वैसे ही रहने की कामना थी आज उसकी बड़ी बहन मैना और बहनोई रामखिलावन के 4 साल पुत्र का जन्मदिन था और उन दोनों ने इस बार जन्मदिन बंसी और विद्या के यहां मानाने का तय किया था जिसमे शामिल होने चन्दन और महिमा जा रहे थे और उनके साथ अंशुल भी जुड़ चूका था.... रास्ता बेहद खूबसूरत था घनी आबादी से इतर एक पक्की सडक की दाई और लहलाहते खेत और खेतो के पार जंगल तो बाई तरफ बहती नदी और रह रह कर दिखाई देती पर्वतश्रखला इस मनोरम मनोहर दृश्य को और सुन्दर बना रही थी..

बंसी के घर आज चहल पहल ज्यादा थी लगता था की किसी आयोजन की तयारी चल रही है और घर के कुछ लोग उसके लिए त्यारियों में जूटे है.. रामखिलावन घर के बाहर तम्बू बंधवा रहा था तो बंशी हलवाई का काम देख रहा था, विद्या ने आज सारे गाँव को न्योता दिया था गाँव की लड़कियों ने मंडली बना ली थी और नैना के साथ आँगन में बैठकर ढोलक की ताल पर देहाती सही गलत गीत गाते हुए नाच रही थी.. उन लड़कियों ने नयना को भी जबरदस्ती सरपंच जी की इज़ाज़त लेकर अपने साथ मिला लिया था.. बड़ी मुश्किल से आई थी नयना उन लड़कियों के साथ अपने घर से निकलकर.. बंसी के घर आते आते चन्दन और महिमा को दिन के 2 बज चुके थे आज अंशुल ने गाडी बड़ी ही धीरे चलाई थी जैसे वो यहां आना ही नहीं चाहता था मगर किसी मज़बूरी में उसे यहां आना पड़ा था..

महिमा आते ही अपनी बड़ी बहन मैना के साथ लड़कियों के झुंड में बैठ गई और चन्दन रामखिलावन से मिलकर उसी के साथ बाहर तम्बू के नीचे पड़ी हुई दो चार कुर्सीयो पर आसान जमाकार बैठ गया अंशुल भी वहीं बैठा था.. कुछ देर में चाय भी आ गई और सब चूसकारिया लेते हुए इधर उधर की बातें करने लगे.. अंशुल जा मन कुछ उदास था जैसे उसे कोई बाते खाये जा रही हो.. अगर नयना से उसे यहां देख लिया तो फिर से वो उसके पीछे पड़ जायेगी.. उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ेगी और फिर उसके साथ ब्याह शादी की बाते करेगी. नयना बहुत प्यारी है सुन्दर है और अंशुल के दिल में उसके लिए प्यार भी है लेकिन अंशुल चाहकर उसके साथ ब्याह नहीं कर सकता ये बाते उसे अंशुल कितनी बार समझा चूका है मगर वो नादान लड़की समझने को त्यार नहीं है तो अंशुल क्या करे? अंशुल को यही बाते सता रही थी की अगर नयना ने उसे देख लिया तो क्या होगा? उसने अपनी चाय को हाथ तक नहीं लगाया था वो सोच रहा था की उसने यहां आकर कोई गलती तो नहीं कर दी है? तभी रामखिलावन ने पूछा.... अरे भाई तुम किस ख्याल में खोये हो? चाय नहीं पीते क्या?
चन्दन ने कहा- क्या बात है आशु? कहा घूम हो? चाय भी ठंडी हो गई.. कुछ बाते है?
अरे.. नहीं नहीं चन्दन भईया वो बस ऐसे ही... बस अभी चाय पिने का मन नहीं है..
तो क्या पिने का मन है? बता दो भाई... एक बाते ओर सब इंतज़ाम हो जाएगा... रामखिलवान ने हंसकर कहा...
जिसका मन वो पीना अभी ठीक नहीं रहेगा... अंशुल ने कहा तो चन्दन और रामखिलावन दोनों एक साथ हंस पड़े और रामखिलवान बोला - अरे भाई क्या ठीक नहीं रहेगा.... सारा काम तो हो ही चूका है और बाकी सब देख रहे है.. मैं हरिया को बोल देता हूँ सब संभाल लेगा.. शाम तक तो वापस आ जायेगे.. चलो... चन्दन ने भी इस बार अपने मन की बाते बाहर निकाल ली और बोला - आशु चल... नहर के पास चलकर व्यवस्था करते है कुछ..
नहीं... नहर के पास नहीं.... आशु ने कहा...
रामखिलावन - नहर नहीं... तो जंगल ठीक रहेगा..

चन्दन रामखिलावन और अंशुल गाडी में बैठकर जंगल की तरफ चले गए और एक खाली जगह देखकर गाडी लगा दी.. रामखिलावन पैसे से अध्यापक था मगर पार्टी करने का शोक उसे बहुत था मगर चुकी वो समाज में सम्मानित पद पर था सो ये सब छुपकर करना ही सही समझता था.. रास्ते से शराब और पानी और चखना सब चन्दन ले आया था. तीनो गाडी में बैठे शराब के पेग हाथ में लिए स्पीकर पर नब्बे के दशक का कोई रोमेंटिक गाना सुन रहे थे और आपस में बाते कर रहे थे... आशु आज किसी और मूंड में था उसने जरुरत से ज्यादा शराब पी ली थी और उसके जहन अब उसे अपने मन की बाते कह डालने को बोल रहा था जिसे उसने सबसे छीपा रखी थी.. शराबखोरी और हंसी मज़ाक़ में कब शाम के छः बज गए उन्हें पत्ता ही नहीं चला.. जब बंसी ने रामखिलावन को फ़ोन किया तब उन्हे अपनी गोश्ठी छोड़कर वापस घर जाना पड़ा.. इस वक़्त रामखिलावन और चन्दन तो अपने अंदर की शराब को छुपा सकते थे मगर अंशुल के लिए ऐसा करना मानो असंभव था.. गाँव के लोग अब घर जे बाहर बने तम्बू के नीचे जुटने लगे थे और हरिया ने प्रमोद मदन और नरेश को कहकर सबको खाने के लिए बैठा दिया था खाना शुरू हो चूका था एक तरफ मर्दो के बैठने की व्यवस्था थी तो दूसरी तरफ औरतों की... अंशुल सबसे नज़र बचा कर छत ओर आ गया था ताकि किसी को उसके शराब पिने की बाते का पत्ता न चल सके..... बड़ी अजीब बात थी मगर अंशुल को नयना की याद आने लगी थी शराब का नशा था या दिल का हाल... उसकी नज़र छत से नीचे देखती हुई नयना को तलाश रही थी मानो वो उसे देखना चाहता हो.. कुछ देर पहले तक अंशुल जिससे छिपने की कोशिश कर रहा था अब उसी को देखने की कोशिश कर रहा था.....
रात के नो बज चुके थे और गाँव के लोग खाना खा चुके थे सभीने अब केक काटने की तयारी शुरू कर दी थी.. आँगन में बिचौबीच एक टेबल रखा गया और उसके ऊपर एक केक था सभी आपस में एक दूसरे को देखकर कह रहे थे अरे जरा इसे बुला ला... जरा उसे बुला ला... तभी महिमा ने पास खड़ी नयना से कहा - अरे नयना जा छत पर तेरे जीजा जी के दोस्त है जरा उन्हें नीचे बुला ला... महिमा जानबूझ कर अंशुल का नाम नहीं लिया था मानो नयना को सरप्राइज देना चाहती हो..

अंशुल छत पर बिछी चारपाई पर उल्टा लेटा हुआ एक हाथ से चारपाई के नीचे फर्श पर पानी के गिलास को घुमा रहा था मानो उसे ऐसा करने में मज़ा आ रहा हों. तभी नयना छत पर आ गई और मध्यम रौशनी में पीछे से अंशुल को बोली - सुनिए.... आपको नीचे बुला रहे है... केक कटने वाला है.. जल्दी आ जाइएगा.. नयना को इस बाते का इल्म नहीं था की वो जिससे ये बातें कह रही है वो और कोई नहीं बल्कि अंशुल ही था...
अंशुल ने नयना की सुनी तो वो पीछे मुड़ गया और नयना को देखने लगा.... नयना वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी की उसकी नज़र अंशुल के चेहरे पर पड़ गई..

पहले की बाते होतो तो इस वक़्त नयना अंशुल के सीने से लगा जाती और उसे चूमकर एक बार फिर अपने प्यार का इज़हार करते हुए उसे शादी के लिए मनाती मगर अब तो जैसे नयना को अंशुल के चेहरे से भी नफरत हों रहो थी उसे अंशुल का चेहरा देखते ही लाज़वन्ति के साथ उसका व्यभिचार याद आ गया और वो बिना कुछ बोले अपना मुँह फेरकार नीचे चली गई जैसे वो अंशुल को जानती ही ना हों.. अंशुल जिसे कब से ढूंढ़ रहा था वो सामने आई भी तो इस तरह जैसे कोई अजनबी हों और ये क्या? जो पहले उससे चिपकी रहती थी उसने आज देखकर भी उसे अनदेखा कर दिया.... आखिर नयना ने ऐसा क्यों किया? क्या वो इस मध्यम रोशनी में अंशुल का चेहरा ठीक से नहीं देख पाई थी? नहीं नहीं... रौशनी इतनी भी कम नहीं की नयना को कुछ दिखाई ना दिया हों पर नयना ने ऐसा किया क्यों? अंशुल का नशा अब थोड़ा हल्का हों चूका था मगर उसके दिमाग में अब यही बातें घूम रही थी आज वो चाहता था की नयना उसे छेड़े और प्यार भारी बातें करके उसे उसी तरह देखे जैसे पहले देखती थी मगर इस बार तो जैसे नयना के स्वाभाव और व्यवहार में अंशुल के लिए उल्टा बदलाव आ गया था....

अंशुल नीचे आ जाता है जहाँ आँगन में रामखिलावन और मैना अपने बच्चे को गोद में लिए केक काट रहे थे वहीं सब ताली बजाकर बच्चे को हैप्पी बर्थडे कह ररहे थे और छोटे मोटे उपहार दे रहे थे.... अंशुल की नज़र अब भी नयना पर टिकी थी आज उस लड़की ने जिस तरह से अंशुल को नज़रअंदाज़ किया था उससे अंशुल के दिल इतना जोर से दुखा था जैसे किसी ने उसका दिल निकाल लिया हों और अपने पैरों से रोन्द दिया हो. अंशुल सामने था मगर आज नयना ने उससे बात करना और मनाना तो छोड़ उसे देखना भी जरुरी नहीं समझा.... आज इस मासूम सी भोली भाली लड़की का दिल पत्थर क्यों हों गया था? कहा नहीं जा सकता.. उसके दिल में अब तक अंशुल के लिए प्यार था और कल तक तो वो उसके ग़म में दर्द भरे गाने सुन रही थी फिर अचानक से इस तरह का व्यवहार वो भी अपने दिल के शहजादे के लिए? नयना अभी तक वो सब नहीं भूल पाई थी जो उसने देखा था उसी का परिणाम था की आज वो अंशुल की तरफ देख भी नहीं रही थी जिससे अंशुल का दिल अंदर ही अंदर चिंख चिंख के रोने लगा था आज नयना की बेरुखी ने उसके मन को गहरा आघात पंहुचाया था.. तो क्या वो भी? नहीं नहीं अरे... ये कैसे हों सकता है? वो तो सिर्फ पदमा से प्यार करता है तो फिर आज उसका दिल नयना की बेरुखी पर इतना उदास क्यों था? क्यों उसकी आँख आज सिर्फ नयना को ही देख रही थी? क्यों वो नयना से बाते करना चाहता था? उसे नयना के कुछ बोलने का इंतज़ार था? ये प्यार नहीं है? इसका जवाब मैं कैसे दे सकता हूँ? मैं भी तो नहीं जानता.... अंशुल का मन उसी तरह से व्यथित हों रहा था जैसे पदमा के दूर जाने पर हुआ था तो क्या वो दोनों से? ऐसा कैसे हों सकता है? अंशुल यही तो चाहता था की नयना उसे छोड़ दे और उस लड़की ने उसे छोड़ दिया तो उसे क्यों परेशानी हों रही है?

नयना के दिल में भी एक अलग तिरगी थी उसका आशु उसके सामने था और उसका मन उसे बार बार आशु को अपनी बाहों में भर लेने को कह रहा था और बोल रहा था नयना एक बार आशु को माफ़ किया जा सकता था मगर नयना तो जैसे तय कर चुकी थी की अब अंशुल को अपनी जिंदगी से निकाल बाहर करेंगी चाहे उसे खुद कितनी ही तकलीफो का सामना करना पड़े.. आज नयना के होंठो पर बनावटी मुस्कान थी और वो खिलखिलाकर हंस रही थी और सबसे बतिया रही थी जैसे वो अंशुल को दिखाना चाहती हों की वो उसके बैगर कितनी खुश है मगर उसके मन की हालत तो बस परमात्मा ही जानता था....

सारा कार्यक्रम पूरा हुआ तो नयना ने महिमा से कहा - अच्छा अब चलती हूँ.. सुबह फिर से आउंगी.. मेरे आने से पहले वापस चले मत जाना...
महिमा के बिलकुल पीछे अंशुल खड़ा नयना को देख रहा था मगर मजाल है जो मुँह से एक शब्द भी बोल पाता.. नयना भी सामने ही थी मगर उसने अंशुल को जैसे अजनबी ही मान लिया था बाते करना तो दूर देखना भी जरुरी नहीं समझा और अपने घर के लिए निकल पड़ी.... तीन खेत पार नयना का घर था एक लम्बि सडक और कई छोटी छोटी पगदंडी से गुजरता हुआ रास्ता रात के इस पहर सुनसान था.. महिमा के घर से निकालते ही नयना जब सडक पर आई तो उसकी आँखों से आंसू का झरना बहने लगा.... जिसे उसने कब से रोक रखा था हाय.... उस 19 साल की बेहद खूबसूरत और मासूम लड़की का दिल.... कितना दुख रहा था... अंशुल को नज़रअंदाज़ करना कितना मुश्किल था वो अब जान पाई थी अपनी आँखों से आंसू पोछते हुए उसके कदम जैसे ही खेत की पगदंडी पर पड़े पीछे से किसीने उसका हाथ पकड़ लिया....

नयना ने पीछे मुड़कर देखा तो ये गाँव का ही एक आदमी छगन था उसके साथ और भी दो लोग थे तीनो नयना को घेर के खड़े थे और छगन नैना की कलाई पकडे.....
छोड़ मुझे.....
छोड़ने के लिए थोड़ी पकड़ा है मेरी जान.... छगन ने कहा... नैना उसकी आँखों में हवस देख सकती थी और महसूस कर सकती थी की उनकी क्या मंशा है....
छोड़ मुझे वरना बहुत बुरा होगा.... मेरे पापा सरपंच है जानता है ना तू?
तेरा बाप सरपंच हो या विधायक.... मुझे फर्क नहीं पड़ता... आज तो हम तेरी इस मदमस्त जवानी का रस पीकर रहेंगे मेरी जान.... कहते हुए छगन के साथी ने नैना के दामन से दुपट्टा खींच लिया.... नैना घबराह गई थी... और जोर जोर से चिल्लाने लगी मगर वहा आसपास कोई नहीं था महिमा का घर भी काफी पीछे छूट चूका था तो उसकी मदद के लिए कौन आता? और महिमा के घर में बजते dj की आवाज़ में उसकी आवाज़ कहा सुनाई देती?

मगर जैसे ही छगन ने आगे कुछ करना चाहा पीछे से अंशुल ने उसके सर पर पत्थर दे मारा... छगन वहीं जमीन पर गिर गया, उसके साथ ने जब अंशुल को देखा तो उसे मारने उसकी और दौड़ पड़े.. अंशुल नशे और गुस्से दोनों में था नैना की आँखों में आंसू देखकर उसकी आँखे लाल हों चुकी थी.... अंशुल ने छगन के साथियो को भी उसी तरह से घायल कर दिया और बड़ी बेदर्दी से मारता रहा.. अंशुल उन तीनो को आज मार ही डालता अगर नैना उसे ना रोकती.....

नैना के रोकने पर जैसे अंशुल को होश आया.. और वो नशे में लड़खड़ाते हुए खड़ा होकर नैना को देखने लगा.. नैना की आँखों में आंसू थे उसने अपना दुप्पटा वापस ले लिया था और अंशुल के सामने खड़ी हुई थी मगर कुछ ही देर में अपने आंसू पोछते हुए नैना अंशुल से बिना कुछ बोले वापस अपने घर की तरफ जाने लगी.... अंशुल भी धीरे धीरे उसके पीछे पीछे चलने लगा कुछ दूर जाकर जब नैन ने अंशुल को पीवी आते देखा तो उसका मन कुछ हद तक अंशुल के पिघल सा गया और उसके दिल में वहीं प्यार वापर ऊपर आ गया जिसे नैना ने कहीं नीचे दबा दिया था..
नैना बनावटी गुस्से में हलकी आवाज़ से अंशुल से बोली - मैं यहां से चली जाउंगी.... आप वापस जा सकते हो....
अंशुल नैना के नजदीक आ चूका था उसने नैना को देखकर कहा -नाराज़ हो? आज ब्याह की बाते नहीं करोगी?
नैना - पापा ने मेरा ब्याह कहीं और तय कर दिया है. आज से 21 दिन बाद पूर्णिमा को लग्न है.... वैसे भी इतनी बार आपसे बेज्जत होकर मेरा पेट भर चूका है.. मैं और ज्यादा आपको परेशान नहीं करना चाहती.. मेरी इज़्ज़त बचाने के लिए शुक्रिया... आपको मेरी वजह से जो तकलीफ हुई मैं उसके लिए माफ़ी मागती हूँ.. ये कहकर नैना जाने लगी तो अंशुल ने उसका हाथ पकड़ कर उसे जाने से रोक लिया और एकाएक गुस्से से बोला - कोनसा ब्याह? किसका ब्याह? तेरा ब्याह सिर्फ मेरे साथ होगा समझी तू? जाकर कह देना अपने बाप से.... और तूने लगन के लिए हां कैसे बोल दिया? मुझसे प्यार करती थी न? फिर ये अचानक से एक साथ इतना सब कैसे?
नैना अपना हाथ छुड़वाते हुए - हाथ छोड़िये मेरा.. कहीं के शहजादे नहीं है आप.. जो मैं सारी उम्र बैठकर आपका इंतजार करूंगी.. पापा ने जो तय किया है अब वहीं होगा.... अपने कहा था ना किसी और को देख लू... देख लिया... पड़ोस के गाँव के जमींदार का लड़का है करोडो की जायदाद है उनके पास.. उनके नौकर भी आपसे बड़े घर में रहते है....
अंशुल - साली... एक शब्द और मुँह से निकाला ना जबान खींच लूंगा.. समझी? तू मेरी थी और मेरी रहेगी.. जैसा तय हुआ था वैसा ही होगा... अगहन की पूर्णिमा को तुझे अपनी दुल्हन बनाऊंगा..
नैना - आपको जो करना है आप कर सकते है.... मैं आपकी खोखली बातों से नहीं डरने वाली.. और वैसे भी किसी शराबी और लड़कीबाज़ आदमी के साथ व्याह कराके किसका भला हुआ है जो मेरा होगा? आपने आज जो कुछ किया उसके लिए शुक्रिया.... लेकिन अब उम्मीद करती हूँ वापस आपसे दुबारा कभी ना मुलाक़ात हों.....
कहते हुए नैना ने अपने घर की और कदम बढ़ा दिए और अंशुल वहीं जमीन पर बैठ गया....

दोनों के दोनों अपने मन में कितने उदास और दुखी थे वहीं जानते थे, आंसू तो जैसे रातभर रुके ही ना थे आँखों से... किसका दुख ज्यादा था ये भी कह पाना कठिन था एक तरफ नैना थी जो अंशुल को अपनी जान से ज्यादा प्यार करती थी और उसकी बेवफाई से दुखी होकर उसे भूल जाना चाहती थी मगर भूल ना पाई थी और दूसरी तरफ अंशुल था जिसे अभी अभी अपने प्यार का अहसास हो चूका था और अब वो नैना को पाने के लिए बेताब था.. अंशुल ने सारी रात वहीं बैठकर बिताई थी सुबह होने पर वो वापस महिमा के घर आ गया था और उदासी उसके चेहरे पर किसी अखबार की सुर्खियों की तरह पढ़ी जा सकती थी.. वहीं नैना ने भी अपनी रात कुछ इसी तरह बिता दी थी... मगर आज उसे ख़ुशी हों रही थी अंशुल ने अपने प्यार का इज़हार जो किया था वो उसी वक़्त उसे चुम लेना चाहती थी और कहना चाहती थी की अगर अब अपनी बात से मुकरे तो जान से हाथ धो बैठोगे मगर बेवफाई का गुस्सा ज्यादा हावी था.. नैना अब क्या करे? उसके पास उलझन बेशुमार थी और हल एक भी नहीं..

सुबह सुबह होते होते दोनों को कई बातें समझ आ चुकी थी जिनमें उनकी गलती और नासमझी शामिल थी.. अंशुल ने अंदाजा लगा लिया था की नैना ने उसे लड़कीबाज़ क्यों कहा था.. और क्यों वो उससे नज़र थी वो गलत भी हों सकता था मगर अब क्या कहा जा सकता था.... नैना तो जैसे सुबह आसमान में थी वो सोच रही थी की अंशुल भी उससे प्यार करता है पर उसने कभी जताया नहीं और रात को एकदम से सब कह गया.. मगर उसकी बेवफाई? नयना ने तय कर लिया था की अगर अंशुल उससे माफ़ी मागेगा और वापस वैसी गलती नहीं करेगा तो वो उसे माफ़ जर देगी और बहुत प्यार करेगी.... नयना सुबह महिमा से मिलने निकली तो उसके चेहरे की ख़ुशी आसानी से समझी जा सकती थी मगर अंशुल की तो हवाइया उडी हुई थी...

अरे कहा? मैंने कहा था ना मुझसे मिले बिना नहीं जाना.. नैना ने महिमा से कहा.. नैना कँखियो से अंशुल को देख रही थी जो कुछ उदास और हताश लग रहा था.. वो चाहती थी की अंशुल उससे कुछ बाते करे और उसे मनायेंगे ताकि वो झट से उसे अपने दिल की बाते बताकर अपनी बाहों में लेले... पर अंशुल तो जैसे मूरत बन चूका था उसे कहा ये सब मन की बाते समझ आने वाली थी.. अंशुल बिना नयना को देखे गाडी के आगे की सीट पर बैठ गया जैसे वो लाज़वन्ति के कारण उससे बाते करने से झिझक रहा हों.. और उसीके साथ चन्दन भी बैठ गया महिमा कुछ देर नयना से बाते करती रही फिर आकर वो भी गाडी मैं बैठ गई.... सफर शुरू हों गया नयना की उमीदो पर पानी फिर चूका था....

अंशुल जब घर बहुत तो बालचंद घर पर ही था शायद छुटियो में आया होगा पदमा अभी गुंजन के पास ही थी.. अंशुल बालचंद से बाते करने के मूंड में नहीं था सो उसने बालचंद के सवालों का जवाब हां ना में देना उचित समझा और अपने कमरे में आ गया आज उसे पदमा की याद आ रही थी बालचंद ने खाना बनाया था मगर खाने लायक बना था नहीं ये कहा नहीं जा सकता अंशुल ने उसे देखा तक नहीं था बालचंद ही अकेला खाना खा कर रात को टीवी देखते हुए सोफे पर ही सो गया था अंशुल को नींद नहीं आई थी कुछ दिनों में उसका दूसरा और आखिरी इम्तिहान भी था पढ़ाई तो बहुत की थी मगर आगे क्या होने वाला था कौन जानता है.. उसे नैना की चिंता नहीं थी उसे मालूम था की आसानी को वो आसानी से पा लेगा और नयना खुद भी उससे दूर नहीं होगी आखिर वो कब तक अपने दिल की बात दिल में छुपा कर रखेगी, रात को जो नयना ने कहा था सब झूठ था नयना का कोई लगन नहीं होने वाला था ये बात अंशुल ने लाज़वन्ति से सुबह फ़ोन पर की थी और लाज़वन्ति से कहा था की वो नयना का ख्याल रखे....

आज अंशुल के मन में वासना भी भड़क रही थी.. रात हों चुकी थी चन्दन और महिमा के रहते वो धन्नो के पास भी नहीं जा सकता था और कोई उपाय अपनी वासना को शांत करने का उसके पास था नहीं.. सो उसे सुरीली की कही बाते याद आ गई.. अंशुल न चाहते हुए भी रात को टहलता हुआ सुरीली चाची के घर आ गया जहाँ बाहर रमेश बैठा था.....
अंशुल में रमेश को चिढ़ाते हुए कहा - क्या बात है? आज ढोलक बाहर क्यों बैठा है?
आशु भाई आपसे कितनी बार कहा है हमारा नाम ढोलक नहीं रमेश है रमेश....
अच्छा ठीक है रमेश आज सोये नहीं.. क्या बात है?
अरे भईया वो टीवी बिगड़ गया है देखे बिना हमको नींद नहीं आती.. पापा आज दीदी को लेकर शहर गए है तो मन नहीं लगा रहा है...
क्या हुआ टीवी में?
पत्ता नहीं भईया दिन से ही नहीं चल रहा है...
चलो देखे.. क्या हुआ है तुम्हारी टीवी को?
रमेश अंशुल को घर के अंदर ले आता है... आज सुरीली और रमेश ही घर पर थे ये जानकार अंशुल को अपने इरादे पुरे होने की पूरी सम्भावना नज़र आ गई और वो ख़ुशी से अंदर आ गया..
रमेश उम्र से भले ही 16-17 साल का था मगर उसका दिमाग अभी अभी बच्चों जैसा ही था आलस और कामचोरी तो उसमे कूट कूट के भरी थी उसे कहीं और लगाने में अंशुल को कोई मुश्किल नहीं होती..
सुरीली ने जब अंशुल को देखा तो वो हैरानी से भर गयी मगर उसके दिल में एक लहर भी उठ गई थी.. उसे लगा की आखिरी अंशुल उसके लिए ही आया है चन्दन ने तो अब सुरीली को याद करना भी बंद कर दिया था सो अंशुल का सुरीली के लिए उसके घर आना बहुत हैरानी वाला काम था....

अंशुल ने जब टीवी देखा तो रमेश पर हंसी और गुस्सा दोनों एक साथ आया मगर वो चुप खड़े होकर रमेश को देखने लगा.. सुरीली भी अब तक वहां आ चुकी थी और अंशुल और सुरीली की नज़र टकरा रही थी..
अरे ढोलक.... Sorry रमेश.... टीवी में तो बड़ी बिमारी लगती है ये आसानी से ठीक नहीं होने वाला..
पर भईया.. मुझे बिना टीवी देखे नींद कैसे आएगी..
हम्म एक काम कर सकते है मैं तुम्हारे टीवी को टेम्प्रेरी चला सकता हूँ लेकिन उसके लिए मुंहे कुछ करना होगा...
क्या करना होगा भईया?
उसके लिए मुझे तुम्हारी मम्मी की जरुरत पड़ेगी...
अंशुल ने सुरीली की तरफ देखते हुए आँख मार दी..
ठीक है भईया आप बस टीवी चला दो...
टीवी का स्विच ऑन था पर टीवी के सेटॉप बॉक्स से कनेक्शन वायर हटा हुआ था जिससे टीवी ऑन नहीं हों रहा था जिसे अंशुल ने ठीक कर दिया और टीवी ऑन हों गया..
अरे वाह भईया.... मज़ा आ गया अब में आराम से कार्टून देखते हुए सो जाऊंगा...
ठीक है रमेश ओर एक काम तुम्हे भी करना होगा..
क्या भईया..
टीवी की आवाज़ थोड़ी तेज़ रखना और मैं तुम्हारी मम्मी के साथ अंदर रूम में टीवी ऑन रखने के लिए वायर पकड़ के खड़ा हों जाऊंगा.... सुरीली चाची की आवाज़ आये तो अंदर नहीं आना वरना टीवी फिर से बिगड़ जाएगा...
ठीक है भईया....
अंशुल सुरीली को रूम में ले जाता है और रमेश टीवी की आवाज़ तेज़ करके बाहर टीवी के आगे बैठ जाता और कुछ खाते हुए कार्टून देखने लगता है.... करीब 15 मिनट बाद रमेश के कान में उसकी मम्मी की आवाज़ सुनाई पडती है..
हाय मोरी मईया.... मर गई रे..... आहहहहहहह.....
रमेश आवाज़ सुनकर - क्या हुआ मम्मी?
अंशुल - कुछ नहीं रमेश... वो बस सुरीली चाची के बिल में छोटा सा चूहा घुस गया है तो वो डर गई है....
सुरीली कराहते हुए - हाय रे... चूहा है या अजगर? मेरे बिल का सत्यनाश कर दिया....
कुछ देर बाद रमेश के कान में थप थप छप छप की आवाज़ गुंजने लगी...
रमेश - मम्मी अंदर क्या हो रह है?
सुरीली - रमेश तुम्हारे आशु भईया मेरे साथ नीचे वाली ताली बजा रहे है... अगर ऐसा नहीं करेंगे तो टीवी बंद हों जाएगा....
रमेश - ठीक है मम्मी टीवी बंद मत होने देना...
कमरे के अंदर अंशुल और सुरीली दोनों के बदन पर कपडे नहीं थे और अंशुल सुरीली को नंगा दिवार से चिपकाये उसकी एक टांग उठाकर उसे चोद रहा था और रह रह कर सुरीली के रसीले होंठों का आनंद ले रहा था.. बाहर रमेश अंदर अपनी चुदती मम्मी की हालत से बिलकुल अनजान टीवी देख रहा था...
अंशुल - रमेश सरसो का तेल देना.....
रमेश - क्यों भईया...
अंशुल - वो तुम्हारी मम्मी का पीछे वाला बिल खोलना है इसलिए.... बहुत टाइट है...
रमेश - पर भईया मुझे नहीं पत्ता कहा रखा है.. वो मम्मी को ही पत्ता होगा..
अंशुल ठीक है रमेश तुम अपनी आँखे बंद करो.. जब मैं कहु तभी खोलना...
पर क्यों भईया?
टीवी देखना है या नहीं?
हां भईया..
तो जैसा कह रहा हूँ करो.. सवाल जवाब करोगे तो टीवी बिगड़ जाएगा फिर मुझे मत कहना...
ठीक है भाई कर ली....
अंशुल - जाओ चाची तेल के आओ...
नहीं नहीं आशु मैं ऐसे नंगी बाहर नहीं जाउंगी...
अरे चाची रसोई में ही तो जाना है.. रमेश की आँख बंद है तुम टैंशन मत लो.. जाओ जल्दी तेल ले आओ फिर मैं आपकी गांड का गोदाम बनाता हूँ....
चुप बदमाश.... तू तो पूरा बेशम है....
सुरीली बाहर चली जाती है और रसोई में से तेल ले आती है...
रमेश - भईया आँख खोल लू....
अंशुल - हां खोल लो....
अंशुल ने सुरीली को घोड़ी बनाया हुआ था और खूब सारा तेल उसकी गांड के छेद और अपने लंड पर लगा दिया था... अंशुल का आधा लंड सुरीली की गांड में था और सुरीली के चेहरे से उसकी दशा का अंदाजा लगाया जा सकता था...
अंशुल ने सुरीली चाची के बाल अपने दोनों हाथो में पकड़ लिए थे और अब धीरे धीरे सुरीली की गांड चुदाई कर रहा था... इस दृश्य को देखकर ऐसा लगा रहा था जैसे कोई घुड़सावार घोड़ी की सवारी कर रहा हों....
धीरे धीरे लंड जब गांड में आधा आराम से अंदर बाहर होने लगा तो अंशुल ने जोर का धक्का देकर पूरा लंड गांड के अंदर कर दिया जिससे सुरीली की सिटी पीटी घुल हों गई....
सुरीली चिल्लाते हुए - हाय दइया.... मर गई रे.... आशु निकाल बाहर वापस....
रमेश - क्या हुआ मम्मी?
अंशुल - कुछ नहीं रमेश... तेरी मम्मी बहुत कच्ची है मैं पक्का रहा हूँ... सुरीली चाची बिलकुल ठीक है...
रमेश - पर भईया मम्मी चिल्ला क्यों रही है?
अंशुल - वो रमेश पहले चूहा खुले हुए बिल में घुसा था अब बंद बिल में इसलिए.....
सुरीली - बेटा तू मेरी चिंता मत कर मम्मी बिलकुल ठीक है आशु भईया के साथ....
रमेश - ठीक है मम्मी.. मैं टीवी देख रहा हूँ... कुछ चाहिए हों तो बताना..
सुरीली - नहीं बेटा... तेरे आशु भईया मैं वायर पकड़ कर खड़े है तू आराम से टीवी देख...
रमेश - ठीक है मम्मी...
अंशुल ने अब सुरीली की गांड चुदाई शुरू कर दी थी जिससे सुरीली की सिस्कारिया कमरे के बाहर रमेश के कान तक पहुंच रही थी मगर अपनी माँ की सिस्कारिया सुनने के बाद भी वो उसे अनसुना कर मज़े से टीवी देख रहा था..
अंशुल - चाची इतनी मस्त गांड है.. पहले बता देती तो पहले ही आ जाता हम्हारे पास....
सुरीली - लल्ला.... ये चीज़े बताई नहीं जाती... पत्ता लगाईं जाती है..
अंशुल - अच्छा चाची.... चुत का चूबारा बना रखा तुमने.. चाचा अब भी पेलते है क्या?
सुरीली - लल्ला गाजर मूली से काम चलाना पड़ता है.... तेरे चाचा में अब दम नहीं है... तभी तो तेरा लोडा लेने के लिए अपनी गांड की कुर्बानी दे दी...
अंशुल - उफ्फ्फ चाची तेरी ये कुर्बानी.... मज़ा आ गया आज... तेरी गांड लेके... इस गाँव में काकी हों या चाची.... सबके भोस्ङो मेंगर्मी भरी पड़ी है...
सुरीली - बाते तो सोहळा आने सही बोली तूने लगा... आह्ह.... इतना बड़ा लंड है तेरा.. जरा तरस खा अपनी चाची पर... आराम से काम ले मेरी गांड से लल्ला...
अंशुल - आराम से ही तो चोद रहा हूँ चाची....
सुरीली - हाय आज कैसे झड़ रही हूँ बार बार... आह लल्ला तू खिलाडी है...
अंशुल - में भी झड़ रहा हूँ चाची... कहे तो तुम्हारी गांड में निकाल दू?
सुरीली - निकाल दे लल्ला.....
अंशुल सुरीली की गांड में अपना वीर्य निकाल देता है और सुरीली की गांड का पीछा छोड़ कर खड़ा हों जाता है.. सुरीली भी जैसे तैसे खुदको संभाल कर खड़ी हों जाती है.. दोनों की हालत पतली थी दोनों सर से पैर तक पसीने से भीग चुके थे और नंगे खड़े एक दूसरे को देखकर मुस्का रहे थे....
अंशुल ने दरवाजा खोलकर बाहर देखा तो रमेश सो चूका था...
अंशुल और सुरीली ने भी कपडे पहन लिए थे..
अंशुल रमेश के पास आया और पीठ दिवार से लगा कर बैठ गया.. बाहर चलते कूलर ने जैसे उसे राहत दी हों.. सुरीली भी उसके पास आकर बैठ गई और दोनों आपस में चूमा चाटी करने लगे.... उसके बाद अंशुल ने अपनी पेंट खोलकर लोडा वापस बाहर निकाल लिया और सुरीली के सर को अपने लंड पर झुका कर उसके मुँह में अपना लंड दे दिया जिसे सुरीली लॉलीपॉप जैसे चूसने लगी.... बगल में सोते रमेश की बॉडी में कुछ हरकत हुई तो अंशुल ने एक चादर सुरीली पर डाल दी और उसका बदन छुपा लिया...
रमेश की नींद कच्ची थी अभी सोया ही था की खुल गई...
रमेश - भईया आप यहां.... अंदर वायर कौन पकड़ रखा है?
अंशुल - अब वायर पकड़ने की जरुरत नहीं है रमेश.
रमेश - मम्मी कहा है भईया?
अंशुल - तुम्हारी मम्मी मेरा केला चूस रही है....
रमेश - मतलब?
अंशुल - मतलब तुम्हारी मम्मी को भूख लगी थी तो मैंने तेरी मम्मी को अपना केला दे दिया.. बहुत अच्छा चुस्ती है तेरी मम्मी...
रमेश - पर भईया केला तो खाया जाता है..
अंशुल - पर तेरी मम्मी तो चूसके खाती है... उन्होंने बताया नहीं तुझे?
रमेश - नहीं... और आप तो केला लेकर ही नहीं आये थे...
अंशुल - लाया था जेब में था.... अच्छा ये सब छोड़ तू सो जा वरना सुबह देर से उठेगा..
रमेश - पर आशु भईया आप?
अंशुल - रमेश में आज रात यही रहूँगा.... और रातभर तुम्हारी मम्मी के आगे पीछे दोनों बिलों की खुदाई करूँगा ताकि अगली बार उनको चूहों से डर ना लगे...
रमेश - हां भईया.. अच्छे से खुदाई करना.. मम्मी चूहों से बहुत डरती है...
अंशुल - तू चिंता मत कर रमेश... आज सारी रात सुरीली चाची सुरु में गाना गायेगी.... तू सोजा अब..
सुरीली चादर के अंदर अंशुल के लोडा मुँह में लेकर चूसते हुए सारी बाते सुन रही थी और बीच में बीच जब अंशुल की कोई बाते बुरी लगती तो लंड को दांतो से काट भी रही थी....
रमेश टीवी देखते हुए फिर से हलकी नींद में चला जाता है और उसकी नींद खुलती तो वो रसोई में पानी पिने जाता है और देखता है की उसकी माँ सुरीली अंशुल के होंठों को बुरी तरह से चुम रही है दोनों में इग्लिश किसिंग चल रही है....
रमेश - माँ ये क्या हों रहा है? आप आशु भईया के साथ क्या कर रही हो?
सुरीली - अरे बेटा वो तेरे आशु भईया के होंठो पर किसी कीड़े ने काट लिया था तो दर्द हों रहा था उनको, मैं उसका दर्द मिटा रही हूँ....
अंशुल - हां रमेश बहुत जहरीला कीड़ा था शायद....
रमेश - ठीक है मम्मी आप आशु भईया की मदद करो.. लेकिन अंदर वायर पकड़ के कौन खड़ा है?
अंशुल - अरे वो हम जाने ही वाले थे अंदर.. वरना वायर इधर उधर हों गया तो टीवी खराब हों जाएगा... चले चाची?
सुरीली - हां चलो आशु.....
अंशुल रूम जाकर जैसे ही दरवाजा बंद करता है सुरीली उसपर झपट पडती है और आशु को अपनी बाहों में लेते हुए अपने मुँह का स्वाद फिर से उसे चखा देती है.... अंशुल उसके दोनों कबूतर मसलते हुए उसके होंठो का रस पिने लगता है..
कुछ देर बाद दोनों फिर से नंगे हों जाते है और फिर से रमेश को कमरे से आती हुई छपछप थपथप घपघप की आवाजे सुनाई देती है.....
रमेश - मम्मी अंदर सब ठीक है ना?
सुरीली - आह्ह... रमेश.. सब ठीक है बेटा... बस तेरी माँ चुद रही है.... आअह्ह्ह.... उफ्फ्फ....
रमेश - क्या माँ...
सुरीली - खुदाई बेटा... खुदाई चल रही है तेरी माँ के बिल की... आअह्ह्ह......
रमेश - आशु भईया मम्मी की खुदाई धीरे करो..मम्मी को दर्द मत दो...
अंशुल - दर्द में ही तो मज़ा है रमेश....
सुरीली - आह्ह... तू मेरी चिंता मत कर रमेश.... तेरी माँ ये चुदाई... ओह खुदाई संभाल लेगी... तू सोजा बेटा.....
रमेश - ठीक है माँ.....
रमेश अबकी बार जो टीवी देखते हुए सोया तो फिर नहीं उठा और सुरीली अंशुल के साथ पूरी रात मुँह काला करती रही, दोनों ने शर्म लिहाज और कपडे उतार कर सब कुछ किया और सुबह के 5 बजे अंशुल सुरीली की छाती पर सर रख कर लेटा हुआ था...
सुरीली बड़े प्यार से अंशुल का सर सहला रही थी सुरीली की प्यास पूरी तरह बुझ चुकी थी वो तृप्त हों चुकी थी.....
अंशुल - जो कुछ हमारे बीच हुआ चाची किसी से कहोगी तो नहीं?
सुरीली - अरे लल्ला कैसी बात कर रहा है? ये बातें भला किसी को बोली जाती है? तू भी किसी से ना कहना...
अंशुल - बहुत मस्त हों चाची....
सुरीली - तू कोनसा कम है.. पूरी गांड दुख रही है अभी तक....
अंशुल - ये तो हमारे मिलन की निशानी है चाची....
सुरीली - खूब जानती हूँ..... अच्छा अब वापस कब आएगा अपनी सुरीली चाची से मिलने?
अंशुल - जब तुम वापस घर में अकेली रहोगी... मगर एक शर्त है...
सुरीली - क्या?
अंशुल - मुझे सुसु करना है....
सुरीली - तो कर ले ना लल्ला....
अंशुल - तुम्हारे मुँह में चाची....
सुरीली - छी लल्ला कितना गन्दा है तू....
अंशुल - शर्त पूरी करोगी तभी आऊंगा चाची....
सुरीली - अच्छा जब तेरा माल पी लिया तो मूत क्या चीज़ है? आ मूत ले अपनी चाची के मुँह में....
अंशुल सुरीली को घुटनो पर बैठकर अपना लोडा उसका मुँह में डाल देता है और धीरे धीरे मूतने लगता है... सुरीली अंशुल की आँखों में देखती हुई उसका मूत पिने लगती है..
अंशुल - चाची अब खड़ा हों गया तो चूस भी लो....
सुरीली हंसती हुई - तू भी लल्ला.. सुरीली ने एक बार फिर लंड चूसकर वीर्य निकाल दिया..
आह्ह चाची मज़ा आ गया.... कहते हुए अंशुल कमरे से बाहर आ जाता है और अंगड़ाई लेटा है जैसे रातभर की मेहनत के बाद उसका बदन दुख रहा हों..
सुरीली भी कपडे पहनकर बाहर आ जाते है और सुरीली जाने से पहले फिर से अंशुल को अपनी बाहों में खींचकर चूमती है जिसे रमेश जागने के साथ देख लेता है..
रमेश - अब तक दर्द ठीक नहीं हुआ भईया का..
सुरीली - हां बेटा.... तू अंदर जाकर सो जा मैं आती हूँ..
ठीक है मम्मी....
अंशुल सुरीली के घर से अपने घर आ जाता है थकावट से उसकी नींद लग जाती है..



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Agle update me padma pr focus hoga❤️
Anshul ki to chandi hai. Har taraf chut hi chut mil rahi hain.
 
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अध्याय 7
अगहन की पूर्णिमा


प्रभातीलाल घर के बाहर बने पेड़ के चबूतरे के ऊपर अपना सर पकड़कर बैठा था, सुबह उसका झगड़ा लाज़वन्ति से हुआ था लाजो (लाज़वन्ति) पेट से थी और ये अंशुल और लाजो के बिच उस रोज़ हुई घमासान ताबड़तोड़ चुदाई का परिणाम था जिसे लाजो ने बड़ी ख़ुशी से स्वीकार किया था प्रभतीलाल को शंशय था मगर लाजो के पेट में पल रहे बच्चे को अपना न मानने की उसके पास कोई वजह न थी.. कुदरत ने इतने सालों के बाद एक बार पहले भी उसे बाप बनाया था मगर लाजो का वो बच्चा होते ही मृत्यु को हासिल हो गया था.. सुबह प्रभतीलाल जब लाजो से नयना को लेकर किसी सम्बन्ध में झगड़ रहा था तब नयना घर में ही मोज़ूद थी.. लाजो अपनी जबान पर काबू न रख सकी और उसके मुँह आज इतने सालों बाद निकल ही गया की - नयना कोनसी तुम्हारी अपनी औलाद है.... जिस शराबी ने अपनी बेटी कहकर नयना को तुम्हे दिया था.. सुना है किसी जेल में बंद है.. बच्चा चुराते हुए पकड़ा था.. नयना को भी किसी अस्पताल से चुराया होगा उसने... बच्चे के मोह में तुमने जरा भी छान बिन नहीं की थी.. भूल गए?

नयना ने लाजो की ये बात सुन ली थी और उसके दिल पर एक और वज्र आ गिरा था लाजो ने क्या उसके दिल को अपने कदमो से रोदने का ठेका ले रखा है? पहले अंशुल के साथ वो सब करके और अब इन सब बातों से....
नयना बिन बताये कहीं चली गई थी.. प्रभतीलाल ने बहुत ढूंढा पर मिली नहीं गाँव में भी हर तरफ उसीकी तलाश हो रही थी मगर नयना का कोई अता पता नहीं था प्रभती सभी सहेलियों, सखियों और जानने वालो के घर पूछ आया था अब रोता हुआ अपना सर पिट रहा था उसे लाजो पर गुस्सा आ रहा था की उसने सुबह ऐसी बातें बोली ही क्यू? हो न हो नयना उन बातों को सुनकर ही वहा से गई होगी.. वरना आज तक उस बच्ची ने कोई गलत कदम नहीं उठाया था.. लाजो को अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आ रहा था वो दिल की साफ थी मगर आज उसके जुबान से जो बातें निकली थी वो उसे भी पीड़ा पंहुचा रही थी उसने तय किया था नयना से अपने किये की माफ़ी मांगेगी..

सुबह बीत चुकी थी और दोपहर का समय आ गया था.. नयना जेल के सामने खड़े थी उसने उस आदमी से मिलने की ठान ली थी जिसने नयना को प्रभती लाल के यहां अपनी बेटी बताकर दिया था.. नयना ने उस आदमी के बारे में पता किया था, नाम जब्बार था शराब के साथ और भी कई नशे करता था.. Police ने कई कानूनी दफाओ में उसे बंद करवा दिया था बीस बरस की सजा हुई थी उसे.... और पिछले 16 साल से जेल में बंद था.. हफ्ते में जिन दो दिनों में क़दी से मिला जा सकता था उनमे से एक दिन आज था.. आज क़दी से मिलने आने जाने की छूट थी.. एक स्थानीय वकील की मदद से नयना को जब्बार से मिलने का मौका मिल गया था.. नयना घबराते हुए लोहे की जाली के करीब खड़ी थी अंदर से एक नाटा सा आदमी संवाले रंग वहा आ गया देखने में खुंखार तो नहीं था मगर उसकी आँखों से लगता था जैसे उसने अपनी जिंदगी में हर नशा किया था मगर अब उसकी हालात बेहतर थी जेल में रहकर उसने कम से कम नशे से मुक्ति पा ली थी.. जब्बार 45 साल के करीब था शरीर में दुबला पतला मरियल मगर तेज़ दिमाग और नोटंकी में उस्ताद....
दिवार के पास सिपाही तैनात था उसी के थोड़ा दूर जाली से बाहर की तरफ नयना और अंदर जब्बार..
जब्बार - जी कहिए....
नयना की आँख नम थी और मन अस्त व्यस्त मगर उसने होने बिखरे दिल को समेटकर जब्बार से पूछा..
आज से 19 साल पहले एक बच्ची तुमने यहां से 22 कोस पश्चिम की ओर हुस्नीपुर में प्रभतीलाल को दी थी.. तुमने उसे कहा से चुराया था?
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नयना को जब्बार की बाते सुनकर गुस्सा आ रहा था वो वापस बोली - देखो अगर तुम सच सच बताओगे तो ये वकील साब तुम्हे बाहर लाने के लिए कोशिश कर सकते है.. तुम जल्दी बाहर आ जाओगे..
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नयना - देखो नाटक मत करो.. तुम्हे जो चाहिए मैं दिलवा सकती हूँ.. मगर मुझे सच जानना है.. तुम्हे चुप रहकर भी कुछ नहीं मिलने वाला... सच बोलकर तुम जो चाहो पा सकते हो...
जब्बार - जो मागूंगा दोगी....
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जब्बार - बिरयानी चाहिए.... रायते के साथ..
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जब्बार - ये जेल है यहां सब मुमकिन है... जब्बार ने पास खड़े सिपाही को पास आने इशारा किया और नयना से कहा.. मेरी एक साल की बिरयानी के पैसे सिपाही जी की जेब में रख दो....
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जब्बार - क्या नहीं.... हां.... जल्दी करो... तुम्हे अपने घरवालों के बारे में जानना है या नहीं..
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जब्बार - कितने है?
नयना - 12-13 हज़ार...
जब्बार - सिपाही की जेब रख दो....
नयना ने पास खड़े सिपाही को पैसे दे दिये..
जब्बार खुश होता हुआ सिपाही को इशारे से वापस भेज दिया और मुँह का थूक गटकते हुए धीमे से बोला चलो महीने भर का जुगाड़ तो हुआ...
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जब्बार - श्यामलाल अस्पताल, विराटपुर, वार्ड-3 बेड नम्बर-7 दिन-बुधवार दिनांक - ##-##-####...
नयना ने अपने फ़ोन में जब्बार की सारी बाते रिकॉर्ड कर ली थी.. वो बाहर आ गई उसका दिल जोरो से धड़क रहा था.. उसने बाहर से एक रिक्शा पकड़ा और विराटपुर के लिए चली रिक्शा विरातपुर में श्यामलाल अस्पताल के आगे रुका था.. नयना ने सबसे पहले अस्पताल के बाहर एटीएम से पैसे निकलवाये और रिक्शा वाले को भाड़ा देकर अस्पताल के अंदर आ गई.. ये एक सरकारी अस्पताल था..

नयना पिछले एक घंटे से अस्पताल की टूटी हुई कुर्सी पर बैठे इंतजार कर रही थी एक मोटी सी भद्दी दिखने वाली महिला ने उसे बैठने को कहा था और अंदर चली गई थी जब वो बाहर आई तो नयना ने वापस उससे वहीं सवाल पूछ लिया जो पहले पूछा था.. जब्बार से मिली डिटेल बताते हुए नयना ने उस औरतों से उस रोज़ बेड नम्बर 7 पर एडमिट महिला के बारे में पूछा तो वो औरत मुँह से गुटका थूकती हुई नयना पर चिल्ला कर बोली - कहा रिकॉर्ड ढूंढ़ रहे है.. बैठी रहो चुप छप जा चली जाओ यहां से... कितना काम है पड़ा... सरकारी अस्पताल में लोग काम भी करते है? नयना ने मन में यही बाते बोली थी वो देख रही थी कैसे वो औरत अपने साथ बैठी दूसरी औरत के साथ पान मसाला खाती हुई लूडो खेलने में व्यस्त थी.. मरीज़ तो भगवान भरोसे थे.. मगर जहा मरीज़ खुद इसी इलाज के लायक हो वहा उनका ऐसा ही इलाज होता है.. नयना ने टीवी में देखा था अमेरिका के सरकारी अस्पताल और उसकी खुबिया.... और आज वो यहां सरकारी अस्पताल देख रही थी.. मगर अमेरिका में लोग भी अलग है.. पढ़े लिखें, अपने हक़ अधिकारों को लेकर सजग और ईमानदार, खुले दिमाग और विचारों वाले.. सरकार से सवाल पूछने वाले मगर यहां? यहां तो पढ़ाई लिखाई का कोई महत्त्व ही नहीं है.. जो पढ़ाया जाता उससे बच्चे का नैतिक विकास तो दूर उसमे खुदसे सोचने समझने की काबिलियत तक नहीं आ पाती, जाती और धर्म के मामले में उलझकर विकास का गला घुट जाता है.. राजनितिक लोग राजनितिक लाभ के लिए लोगों को गुमराह करते है और वो आसानी हो भी जाते है.. जब अपने दिमाग से किसी चीज़ की परख ही नहीं कर पाएंगे, सही गलत ही नहीं जांच पाएंगे तो इसी हाल में रहना होगा.. और क्या? नयना के दिमाग में यही चल रहा था मगर उसे अब बैठे हुए काफी देर हो चुकी थी उसने फिर दूसरा रास्ता अपनाया..
नयना ने एक सो का नोट उस औरत के सामने रखे रजिस्टर के नीचे रखा और प्यार से कहा - जरा अर्जेंट है देख लीजिये ना.. औरत ने सो का नोट अपनी जेब में डाल लिया और नयना को अपने पीछे आने का इशारा किया..
नयना औरत के पीछे पीछे रिकॉर्ड रूम में आ गई.. ये बेसमेंट में था.. साल #### के माह ### का एक बड़ा पोटला निकाल कर सामने टेबल पर रख दिया और उसपर जमीं धूल साफ करती हुई गाँठ खोल दी.. एक रजिस्टर निकलकर नयना को देती हुई बोली जल्दी से देखकर वापस दो..
नयना रजिस्टर लेकर पन्ने पलटते हुए उस पन्ने पर पहुंची जहाँ उस दिन की सारी एंट्री लिखी हुई थी जिस दिन के बारे में जब्बार ने जिक्र किया था.. नयना ने पहले अपने फ़ोन उस पेज की तस्वीर ली फिर पन्ने पर लिखी एंट्री को गौर से देखने लगी....
वार्ड नंबर -3 बेड नम्बर -7 पेशेंट नेम - पदमा देवी पति का नाम - बालचंद..... पता - ******* एडमिट होने का कारण - प्रेगनेंसी.... नयना के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गई थी.. उसे यकीन नहीं हो रहा था जो उसने अभी अभी पढ़ा था क्या वो सच था? या कोई मज़ाक़ जो जब्बार ने उसके साथ किया था?
हो गया? पढ़ लिया? लाओ दो.. उस औरत ने वापस पोटली को वहीं बांधकर रख दिया.. नयना अस्पताल से बाहर आ गई थी उसकी आँखों में आंशू की धारा बह चली थी जो अब बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी तो क्या वो अंशुल की..... नहीं नहीं... ऐसा नहीं हो सकता... उसने जो अभी अभी देखा उसपर नयना को यक़ीन नहीं आ रहा था और ना ही वो यक़ीन करना चाहती थी.. ऐसा कैसे हो सकता है? इतना बड़ा संयोग? नहीं नहीं.. ऐसा नहीं हो सकता.. मगर क्या कागज झूठ बोलते है? पर ऐसा कैसे मुमकिन है? वो तो अंशुल से बेताशा प्यार करती है और आज की रात अंशुल से ब्याह का वादा था उसका.. आखिरी बार अंशुल ने भी उसे आज रात ब्याह करने की बात कही थी.. पर क्या अंशुल उसका बड़ा भाई... नहीं ये नयना क्या सोच रही है? ऐसा नहीं है... नयना भारी कश्मकश और उलझनों से जूझती हुई अस्पताल से बाहर आकर एक जगह बैठ गई थी और रोये जा रही थी उसकी आँखों से आंसू का सागर बह जाना चाहता था.. वो सोच भी नहीं सकती थी की ऐसा कैसे हो सकता है? अंशुल जिसे वो दिल और जान से चाहती है अपना मान चुकी है वो उसको सगा बड़ा भाई है.. उसने अपने बड़े भाई से प्यार क्या है.. नयना के नयन आंसू के साथ उसके मन की हालात भी बाहर निकाल रहे थे...

अंशुल आज नयना को अपना बनाने के इरादे से घर से निकला था वो जब नयना के घर पंहुचा तो लाजो ने उसे सारा वृतांत कह सुनाया.. नयना सुबह से किसी का फ़ोन भी नहीं उठा रही है... लाजो की आँखों में आंसू थे मगर अंशुल जानता था की नयना इस वक़्त उसे कहा मिल सकती है अंशुल ने लाजो के गर्भवती होने की बात भी पता चली थी जिसपर उसने लाजो को अपने सीने से लगाते हुए अपना और बच्चे का ख्याल रखने की नसीहत भी दे दी.. अगर इस वक़्त नयना का ख्याल ना होता तो अंशुल और लाजो के बीच सम्भोग होना तय था.. लाजो की आँखों में नयना के दुख के साथ साथ अंशुल से कामसुख की इच्छा भी थी.. मगर इस इच्छा को अंशुल ने सिर्फ एक चुम्बन में समेटकर रख दिया..
अंशुल जब नयना के घर से बाहर निकला तो उसे सामने से प्रभतीलाल आते दिखे और वो रुक गया.. दोनों के बीच मोन था.. दोनों को समझ नहीं आ रह था की कैसे वो बात की शुरुआत करे और एक दूसरे के सामना करे..
अंशुल प्रभतीलाल को नस्कार किया तो प्रभती लाल ने भी विचलित मन से उसका जवाब दे दिया.. नयना की बाते होने लगी.. अंशुल ने प्रभती लाल से कहा की वो चिंता न करे अंशुल उसे खोज लाएगा.. अ नयना का प्रेम प्रभती लाल जानता था मगर उसे अब अंशुल के बारे में भी पता चला था.. दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे है.. प्रभती लाल की आँखों में कुछ सुकून आया था..

शाम हो चुकी थी अंशुल ने पदमा से आज घर नहीं आने का कोई बहाना बना लिया था जिसपर पदमा बड़ी नाराज़ हुई थी मगर अंशुल ने उसे समझा लिया था अंशुल गाँव से बाहर आ चूका था एक एक करके उन सारी जगहों पर जा आया था जहाँ नयना मिल सकती थी.. फिर अंशुल के दिमाग में कुछ ख्याल आया और वो अपनी बाइक स्टार्ट करके किसी ओर चल दिया... एक जगह पहुंच कर उसने बाइक रोक दी.. रास्ता सुनसान था सांझ ढल चुकी थी पूर्णिमा के पुरे चाँद ने रौशनी की कोई कमी नहीं रखी थी इस रौशनी में अंशुल साफ साफ सब देख सकता था सडक के दोनों तरफ पेड़ थे जैसे जंगल हो... अंशुल आगे बढ़ गया था...

अंशुल के बाहर रहने से पदमा के स्वाभाव में परिवर्तन आ गया था वो आज चिड़चिड़ी सी लग रही थी बालचंद ने उसका मूंड देखकर उससे उलझना जरुरी नहीं समझा ओर दूर ही रहा यही उसके लिए सही भी था.. आज अंशुल नहीं था मगर फिर भी पदमा को चैन नहीं आ रहा था ओर वो बेचैन हो रही थी उसने आज भी बालचंद को दवाई दे दी थी जिससे बालचंद नींद में खराटे मार रहा था ओर पदमा अंशुल के रूम में जाकर उसी बिस्तर पर जहाँ वो अंशुल के साथ काम क्रीड़ा किया करती थी लेट गई थी ओर अंशुल की तस्वीर अपनी छाती से लगा कर चुत में उंगलियां करते हुए सोने की कोशिश कर रही थी.. पदमा को महसूस हो रहा था की अंशुल उसके लिए कितना जरुरी बन चूका है और अब वो अंशुल के बिना नहीं रह सकती.. पदमा अंशुल के प्यार में पागल हो चुकी थी ऐसा उसकी हालात देखकर कहा जा सकता था..

नयना की आँखे नम थी आज का सारा दिन उसने अपनी हक़ीक़त पता लगाने में लगाया था और किसी का फ़ोन नहीं उठा रही थी इस वक़्त जंगल में उसी पेड़ के नीचे अकेली बैठी थी जहाँ उसने अपने लिए मन्नत मांगी थी मन में चलती कश्मकश और उथल पुथल के बीच उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे? अंशुल उसका अपना बड़ा भाई निकलेगा ऐसा उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.. कैसे सपने देखे थे उसने अंशुल के साथ जिनमे वो अपनी मर्यादा लांघ चुकी थी.. हर रात वो अंशुल के साथ हम बदन होने के ख्याब देखती थी मगर आज उसे उन ख़्वाबों के लिए अजीब लग रहा था ये पश्चात् नहीं था मगर वैसा ही कुछ था जिसे बयान करना व्यर्थ है.. नयना ने अच्छी तरह जांच पड़ताल की थी... तब जाकर उसने ये माना था की जब्बार जो कह रहा था वो सही और सत्य था.. जब पहली बार नयना अंशुल के घर गई थी तब बालचंद ने भी ये प्रसंग छेड़ा था जिसमे अस्पताल से उनकी बच्ची के चोरी होने का जिक्र था मगर वो इतना विस्तृत नहीं था जिससे नयना सारा माजरा समझ पाती.. नयना कुछ तय करने का मन बना रही थी.. इस चांदनी रात की रौशनी में उसका दुदिया रंग चमक रहा था जिसे अंशुल ने दूर से ही देख लिया था.. नयना अपने ख्यालों में इतनी खोई हुई थी उसे महसूस भी नहीं हुआ की अंशुल उसके बेहद नज़दीक आ कर बैठ चूका था..

लो.. खा लो... अंशुल ने नयना की तरफ एक खाने का पैकेट बढ़ाते हुए कहा तो नयना अपने ख्याल से बाहर आते हुए चौंक गई.. आप....? यहाँ...
अंशुल ने खाने का पैकेट फाड़ कर चम्मच से एक निवाला नयना के होंठों की तरफ खाते हुए कहा - क्यू यहां तुम ही आ सकती हो? चलो मुँह खोलो... वरना खाना ठंडा हो जाएगा.. अंशुल रास्ते में पड़े एक रेस्टोरेंट से राजमाचावल ले आया था उसे यक़ीन था की नयना सुबह से भूखी प्यासी होगी और अंशुल के शादी से इंकार करने के कारण ही घर से चली गई होगी.. अंशुल नयना को अपना बनाने आया था.. अंशुल को पदमा ने नयना से शादी करने के लिए पहले से परमिशन दे रखी थी और उसके लिए अंशुल को बोला भी था मगर अंशुल ही अब तक नयना से शादी करने से भाग रहा था.. मगर अब वो नयना का प्यार स्वीकार कर चूका था और पदमा के साथ नयना को भी अपना बनाकर रखना चाहता था वहीं पदमा में आये परिवर्तन का उसे इल्म नहीं था पदमा अब अंशुल के पीछे पागल हो रही थी..
नयना ने बिना कुछ बोले पहला निवाला मुँह में ले लिया और खाने लगी.. धीरे धीरे अंशुल ने उसे खाना खिला दिया नयना और अंशुल ने उस दौरान कोई ख़ास बात चीत नहीं हुई थी.. बस अंशुल नयना की तरह देखता हुआ प्यार से उसे खाना खाने की गुजारिश करता रहा और नयना उसकी मिन्नतो को मानते हुए खाना खाती रही.. नयना का दिल जोरो से धड़क रहा था उसके सामने उसका प्रेमी था जिसमे उसे अब अपना बड़ा भाई नज़र आ रहा था.. कुदरत का केसा निज़ाम है? अगर इस वक़्त नयना को ये मालूम ना होता की वो अंशुल की छोटी बहन है तो वो अंशुल को अपनी बाहो में लेकर बहक चुकी होती और प्यार सागर में दोनों का मिलन हो चूका होता मगर उसे ये ख्याल अंशुल से दूर ले जा रहा था की नयना तू ये नहीं कर सकती.. ये जान लेने के बाद की अंशुल तेरा सगा भाई है तू उसके साथ ये रिस्ता नहीं रख सकती.. नयना को समाज के नियम कायदे और रितिया याद आने लगी थी खुद पर शर्म आने लगी थी उसका दिल कितनी बार टूटेगा वो सोच रही थी और अब उसकी आँख फिर से नम हो चली थी जिसे अंशुल ने अपने हाथो से आंसू पोचकर साफ किया था.. खाने के बाद पानी पीते हुए नयना ने अंशुल से कहा - आपको कैसे पता मैं यहां हूँ....
अब बीवी कहा है ये तो पति को मालूम ही होना चाहिए. अंशुल ने अपना रुमाल निकलकर नयना के होंठो को साफ करते हुए जवाब दिया था जिसपर नयना लज्जा गई थी... मगर क्यू? उसने तो अब अंशुल से दूर होने का फैसला किया था.. मगर अंशुल का प्रेम नयना के मन में इतना पक्का था की वो उसे निकालने में असमर्थ थी..

नयना शर्म से लाल थी और जमीन की ओर देख रही थी अंशुल ने उसको चेहरा उसकी ठोदी से उंगलि लगा कर ऊपर उठाया ओर उसके गुलाब सुर्ख लबों पर अपने लब रख दिए.. इस चांदनी रात में दोनों इस बड़े से पेड़ के नीचे एक दूसरे के प्यार में घुल चुके थे नयना के लबों को चूमते ही अंशुल ने उसके दिमाग में चल रहे सारे ख्याल को शून्य कर दिया नयना बस इसी पल में होकर रह गई जहाँ वो अंशुल को अपने लबों के शराबी जाम पीला रही थी.. नयना ने अंशुल को इतना कसके पकड़ा हुआ था जैसे कोई छोटा बच्चा डर से किसी बड़े से चिपक जाता है.. अंशुल ने चुम्बन की शुरुआत की थी मगर नयना उसके लबों को ऐसे चुम रही थी जैसे जन्मो की प्यासी हो उसने सब भुला दिया था.. अंशुल की बेवफाई ओर उसके रिश्ते को भूल चुकी थी.. अब सिर्फ उसे इसी पल को जीना था जिसमे उसे उसका प्यार अपनी बाहों में लिए खड़ा था ओर अपना बनाने को आतुर था..

नयना अपने दोनों हाथ अंशुल जे गले में डालकर उसके लबों को प्रियसी बनकर चुम रही थी ओर अपने प्रियतम को अपनी कला से भावविभोर कर रही थी अंशुल नयना की इस हरकत पर मन्त्रमुग्ध हो रहा था.. अंशुल ने नयना की कमर में हाथ डालकर उसे हवा में उठा लिया था ओर दोनों के बदन आपस में ऐसे चिपक गए थे जैसे की दोनों एक ही हो.. इस चांदनी रात में नयना की लहराती जुल्फे किसी फ़िल्मी दृश्य का काम कर रही थी नयना ओर अंशुल ने जी भरके एक दूसरे को चूमा ओर फिर अंशुल ने चुम्बन तोड़कर नयना के चहेरे ओर गर्दन पर अपने चुम्बन की बौछार शुरु कर दी अंशुल की मदमस्त प्रेमी की तरह नयना के जिस्म का स्वाद ले रहा था गर्दन चाटने पर नयना ओर भी ज़्यदा अंशुल की तरफ मोहित होने लगी थी वो भूलने लगी थी अंशुल उसका बड़ा भाई है नयना को अंशुल में सिर्फ अपना प्यार नज़र आ रहा था पहली नज़र वाला प्यार और नयना कब से यही तो चाहती थी की अंशुल उसे अपना बना ले आज हो भी तो वहीं रहा था.. नयना कैसे अपने आप पर काबू रखती क्या इतना गहरा प्यार एक पल में ख़त्म किया जा सकता है? नहीं ऐसा नहीं हो सकता.. नयना कैसे अंशुल से दूर जा सकती थी अंशुल ने उसे पूरी तरह अपने बस में लिया हुआ था..

गर्दन और कंधे चूमने के बाद एक बार फिर से अंशुल नयना के लबों पर आ गया और उसके गुलाबी होंठ को बड़े प्यार से चूमने लगा... नयना भी अंशुल के लबों को अपने दांतो से खींचते हुए चुम रही थी और बार बार अंशुल की जीभ को अपनी जीभ से लड़ा रही थी मानो वो दोनों की कुस्ती करवाना चाहती हो.. चांदनी रात की रौशनी में जंगल में इस पेड़ के नीचे दोनों चुम रहे थे की किसी जानवर के आने की आहट हुई तो दोनों का चुम्बन एक बार फिर टूट गया.. अंशुल और नयना आपस में चिपके हुए थे दोनों की नज़र एक साथ जानवर पर गई तो थोड़ी दूर कुत्ते नज़र आ रहे थे.. एक कुत्ता कुतिया के पीछे चढ़ा हुआ उसके साथ सम्भोग कर रहा था और कुतिया के मुँह से आवाजे आ रही थी.. अंशुल और नयना ने ये नज़ारा देखकर एक दूसरे की तरफ देखा फिर हंसने लगे जैसे आगे होने वाली प्रकिया को पहले ही जान चुके हो..

अंशुल ने अपने एक हाथ से नयना का एक कुल्हा पकड़ लिया और जोर से मसलने लगा जिससे नयना के मुँह से भी सिस्करी निकाल पड़ी.. वो शिकायत भरी आँखों से अंशुल को देखने लगी मानो पूछ रही हो अंशुल क्या तुम यही सब कर लोगे? अंशुल ने नयना को अपनी गोद में उठा लिया और पेड़ के पीछे दाई और घास की सेज पर लिटा दिया जहाँ साफ साफ चाँद की रौशनी पहुंच रही थी जहाँ से सारा नज़ारा बिना किसी परेशानी या रुकावट के देखा जा सकता था मगर ये देखने वाला वहा था कौन? कोई भी तो नहीं था.. नयना के मन में अंशुल का चेहरा देखकर फिर से वहीं ख्याल आने लगे थे.. नहीं नहीं.. ये मैं क्या कर रही हूँ? अंशुल मेरा भाई है.. सगा भाई.. और में उसके साथ ही.. नहीं.. मैं ये नहीं कर सकती.. ऐसा नहीं हो सकता.. मुझे अंशुल को रोकना होगा.. हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हो सकता.. ये सब पाप है.. गलत है.. नयना के मन जब तक ये सवाल आये तब तक उसके बदन से अंशुल ने कुर्ती उतार ली थी और अब नयना अंशुल के सामने घास पर सलवार के ऊपर ब्रा पहने लेटी हुई थी.. चाँद की रौशनी में नयना का गोरा बदन सोने की तरह चमक रहा था.. विकसित चुचे उसके छाती पर काले रंग की ब्रा से ढके हुए थे जिन्हे अंशुल ब्रा के ऊपर से मसल रहा था और चुम रहा था.. नयना अपने मन की गहराइयों में इस मिलने का मज़ा लेते हुए अपने मन की उपरी परत पर आज हुए खुलासे के घाव से परेशान थी.. वो समझ नहीं पा रही थी उसे क्या करना है वो एक पल कुछ तय करती और फिर अगले पल कुछ और..

अंशुल ने नयना की ब्रा के साथ ही अपनी शर्ट भी उतार दी और अब दोनों कमर से ऊपर नंगे थे अंशुल पूरी चाहत के साथ नयना को अपना बनाने में लगा था वहीं नयना अपने बदन की जरुरत और हालात से मजबूर थी वो चाहती थी तो अंशुल से दूर होना थी मगर उसका जिस्म उसे इस बाते की इज़्ज़त नहीं दे रहा था.. अंशुल नयना के छाती पर उभार को अपने मुँह से चाट रहा था और बार बार नयना की निप्पल्स को अपने मुँह में भरकर चूसता हुआ उसकी मादक सिस्कारिया सुन रहा था पूरा माहौल चुदाईमय बन चूका था जहाँ थोड़ी दूर कुतिया एक कुत्ते से चुदती हुई चीख रही थी वहीं यहां नयना जो अंशुल से दूर होना चाहती थी वो अंशुल के सर को सहलाती हुई अपने चुचे उसके मुँह में दे रही थी जिसे अंशुल बड़े ही प्यार से चूस रहा था और निप्पल्स दांतो से काटते हुए खींच रहा था.. अंशुल ने नयना बोबो को दबा दबा के और चूस चाट के लाल कर दिया था नयना की छाती पर गहरे निशान पड़ने लगे थे जिसमे नयना को आनंद की अनुभूति हो रही थी मर्द का प्यार उसे पहली बार मिला था..

अंशुल फिर से नयना के होंठो पर आ गया और नयना ने उसे फिर से अपने दोनों हाथ से अपनी मधुशाला का प्याला भरके अंशुल को अपने होंठ से पिलाना शुरू किया.. अंशुल का एक हाथ धीरे धीरे नयना के चेहरे से होता हुआ उसके कंधे फिर चुचे फिर नाभि और फिर नयना की सलवार में जा घुसा नयना को इसका अंदेशा भी नहीं था की अंशुल ने अपना एक हाथ उसकी सलवार में डाल दिया था वो तो बस होने लबों से अंशूल को चाहत के जाम पिलाने में मस्त थी उसके लिए यही सब अभी हो रहा था..
अंशुल का हाथ सलवार में नयना के पैर के जोड़ तक चला गया जहाँ नयन की बुर पनिया रही थी नयना की पैंटी बिलकुल गीली हो चुकी थी और बुर को छूने पर नयना और ज्यादा उत्तेजित होने लगी थी उसने अंशुल को और कसके जकड लिया था.. अंशुल के हाथ ने नयना की बुर को तालाशा तो अंदाजा लगाया की नयना की बुर बिलकुल साफ सुथरी है जिसपर अभी तक बाल का कोई नामो निशान नहीं है हलके से दो चार बाल आये भी है तो वो बुर के ऊपर मुहाने पर.. इतनी प्यारी और रसदार बहती चुत को अंशुल चोदने की इज़ाज़त लेने नयना की आँखों में देखता हुई उसकी बुर सहलाने लगा.. मगर नयना की आँख बंद थी वो अंशुल को पकडे हुए उसके चेहरे और आस पास के हिस्से चुम रही थी.

अंशुल ने अपना हाथ नयना की बुर से हटा लिया और फिर मादकता के नशे में डूबी हुई नयना को देखते हुए उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार नीचे सरका दी.. आँख बंद करके अंशुल की बाहों में पड़ी नयना अपने साथ होते इस सब घटनाक्रम को महसूस कर रही थी.. उसके बदन पर सिर्फ बुर के पानी से भीगी हुई पेंटी ही बची थी जिसे भी अंशुल ने अगले ही पल उसके बदन से अलग कर दिया था.. अंशुल की बाहों में अब एक पूरी नंगी जवान खूबसूरत हसीन लड़की लेटी हुई थी जो अपने हाथो से अपना चेहरा छुपाने की कोशिश कर रही थी.. अंशुल ने भी अपनी जीन्स उतार कर एक तरफ रख दी और वो भी अपनी प्राकृतिक अवस्था में आ गया.. अंशुल ने नयना के पैरों को खोला और उसकी गुलाबी चिकनी साफ बुर पर अपने होंठ रख दिए..


अंशुल को चुदाई कला का पूरा ज्ञान था उसने जो अनुभव पदमा धन्नो सुरीली से लिया था वो आज काम आ रहा था और यही कारण था की नयना जो पहले अंशुल से दूर जाने की सोच रही थी वो अब उसके सामने बेबस और लाचार बनकर लेटी हुई उसकी हर हरकत को प्यार कर रही थी.. अंशुल ने जैसे ही नयना की बुर पर अपने होंठ रखे नयना के मुँह से आह्ह... निकल गई और फिर नयना ने अंशुल के सर को अपने दोनों हाथो से एकसाथ अपनी बुर पर दबा लिया मानो कह रही को की अंशुल चुसो मेरी बुर को चाटो.. खा जाओ इसे.. मैं तुम्हे अपनी कच्ची बुर पर पूरा हक़ देती हुई.. मेरी बुर का घमंड तोड़ दो.. अंशुल बुर चाटते हुए उससे छेड़खानी कर रहा था जिससे नयना कुछ ही पलो में अंशुल के मुँह में झड़ गई और तुरंत बाद पेशाब करने लगी जैसे उसका अपने शारीर पर कोई नियंत्रण ही नहीं था.. अंशुल का मुँह नयना ने अपने बुर से निकले पानी से भर दिया जिसे अंशुल को पीना पड़ा.. नयना शर्म से लाल हो चुकी थी और कुछ हद तक झड़ने के बाद कामुकता के जाल से हलकी बाहर आई थी.. अंशुल भी अब अपनी लंड की ताकत से नयना को रूबरू करवाना चाहता था उसने नयना की बुर को चाटकर साफ किया और फिर अपने लोडे को उसकी बुर की दरार पर रगढ़ते हुए नयना का चेहरा देखने लगा जिसपर दुविधा के निशान थे जैसे वो इस मादकता के पलो में भी कुछ सोच रही हो..

अंशुल के लंड में पत्थर सी अकड़न थी जो पूरा खड़ा था अंशुल ने नयना की चुत पर लोडा रगड़ने के बाद उसके छेद के मुहने पर टिका दिया और दबाब बनाकर अंदर करने की कोशिश करने लगा.. नयना की बुर में पहली बार लंड वो भी अंशुल के जैसा बड़ा मोटा और मजबूत... नयना की हालात खराब हो रही थी उसके मन में चलते विचारो के बिच अंशुल ने उसकी बुर में अपना सुपाडा घुसा दिया था जिससे नयना सिसकने लगी.. नयना को होश आया की उसने तो अंशुल से दूर रहने का फैसला किया था फिर क्यू वो अपने बदन के बहकावे में आकर अपने सगे बड़े भाई के साथ सम्भग करने पर उतारू हो चुकी है? क्या उसके बदन की आग रिस्तो पर हावी हो गई है? नयना ऐसा नहीं कर सकती..... हां ये पाप है... ये सोचते हुए नयना ने अब अंशुल का विरोध शुरू कर दिया और अंशुल के लंड को पकड़ कर अपनी चुत से उसका सुपाडा बाहर निकलने की कोशिश करने लगी मगर अब तक बहुत देर हो चुकी थी.. अंशुल ने अगले ही पल एक झटके में अपना आधे से ज्यादा लंड नयना की बुर में घुसा दिया और नयना के दोनों हाथ पकड़ कर ऊपर की और उठा दिए.. नयना बिलकुल विचार शून्य हो गई उसे समझ नहीं आया की वो क्या करें पहली चुदाई की तकलीफ के बीच अंशुल की मनमानी ने उसे किसी लायक नहीं छोड़ा... उसकी आँख चौड़ी होगई जो उसे हो रहे पहली चुदाई के दर्द को बयान करने में सक्षम थी.. नयना की बुर से दो-तीन खून की बून्द भी बाहर आ गई थी जो बता रही थी नयना की ये पहली चुदाई है और अब तक उसने अपनी बुर में लोकी खीरा केला गाजर मूली कुछ नहीं डाला है...

आखिरकार नयना की इज़्ज़त अंशुल ने अपने नाम कर ही ली.. नयना अंशुल को देखते हुए सिसकियाँ ले रही थी और सोच रही थी की वो कैसी लड़की है जो अपने सगे भाई को अपनी इज़्ज़त दे रही है.. उससे बुरी लड़की शायद ही कोई और हो.. अंशुल ने नयना की बुर कुटाई अभियान की शुरुआत कर दी थी.. अंशुल रह रह कर झटके मारता हुआ नयना को चोदने लगा था हर झटके पर नयना का बदन ऊपर से नीचे तक पूरा हिल जाता और नयना मादक सिस्कारिया भरती हुई आवाजे इस माहौल में कामुकता के फूल खिला रही थी... एक तरफ कुतिया चुदते हुए आवाजे कर रही थी दूसरी तरफ नयना.. अंशुल और नयना इस चांदनी रात में ऐसे मिल रहे थे जैसे उसका मिलन ही दोनों का एक मात्र लक्ष्य हो.. नयना की चुत खुल चुकी थी और अब पानी छोड़ने लगी थी जिससे अंशुल का लंड आराम से अंदर बाहर हो रहा था और अब नयना अंशुल का कड़क तूफानी लंड चुत में मज़े से लेने लगी थी पर अब भी उसे वहीं ख्याल सताये जा रहा था..

नयना के दिमाग पर चुदाई से ज्यादा जब रिश्ते का ख्याल हावी हुआ तो उसने अंशुल को धक्का देकर अपने से दूर कर दिया जिससे अंशुल का लंड बुर से बाहर निकल गया नयना की आँख में आंसू आ गए थे वो कैसी लड़की है? इतना बड़ा पाप? इसका प्रायश्चित कैसे होगा सोचने लगी.. अंशुल नयना का ये बर्ताव समझ नहीं पाया था वो कुछ पल के लिए ठहर गया मगर उसके दिमाग में नयना को पाने की चाहत उफान मार रही थी.. नयना पलट गई थी उसकी पीठ अब अंशुल के सामने थी.. नयना अपनी गलती पर रोते हुए जैसे ही उठने की कोशिश करने लगी अंशुल ने नयना को उसी तरह से कमर पर हाथ लगाते हुए पकड़ लिया और घोड़ी की पोजीशन में लाते हुए फिर अपना लोडा नयना की चुत के अंदर घुसा दिया.. नयना को इस बात का अंदाजा भी नहीं था की अंशुल कुछ ऐसा करेगा.. वो बेचारी तो उठकर अपने कपडे पहनना चाहती थी मगर अब घोड़ी बनकर अपने बड़े भाई से चुद रही थी.. अंशुल नयना की कमर पकड़ कर झटके मारता हुआ उसे किसी बाजारू की तरफ पेल रहा था.. नयना के मन में वहीं सब चल रहा था ऊपर से चुदाई का सुख भी उसे मिल रहा था तो उसके मन की हालात जान पाना कठिन था.. अंशुल ने एक हाथ से नयना के लहराते हुए बाल पकड़ लिए थे और दूसरे से कमर थामे हुए था.. उसका लंड नयना की बुर में तहलका मचाये हुए अंदर बाहर हो रहा था.. अब लगभग कुत्ते कुतिया वाली पोजीशन में ही दोनों थे..

नयना के मुँह से सिस्कारिया और आँख से आंसू आ रहे थे, उसे अपने प्यार से पहले मिलन के सुख के साथ-साथ रिश्ते में बड़े भाई से चुदने का दुख भी हो रहा था.. नयना फिर से झड़ चुकी थी और अब अंशुल भी उसी राह पर था उसका झड़ना भी कुछ ही देर में होने वाला था वो नयना की बुर पर बार बार ताकत के साथ हमला कर रहा था जिससे नयना की आवाज और तेज़ होने लगी थी.. पहली बुर चुदाई वो भी इतनी बेरहमी से.. नयना की हालात पतली थी वो अब सही गलत छोड़ चुकी थी और बस इस लम्हे के ख़त्म होने का ही इंतजार कर रही थी वो अब आखिरी फैसला कर चुकी थी की ये अंशुल के साथ उसकी पहली और आखिरी चुदाई है.. अंशुल ने झड़ते हुए अपना सारा वीर्य नयना की बुर में खाली कर दिया जिसे नयना आसानी से महसूस कर सकती थी वो आखिरी बार आहे भर रही थी और आंसू पोंछ कर अपनी इस पहली चुदाई विश्लेषण करने की कोशिश कर रही थी..

अंशुल नयना को चोद कर एक पत्थर पर गांड टिका के बैठ गया और नयना घास में नंगी पेट के बल ही पड़ी रही उसका बदन इस चांदनी रौशनी में दिव्य लग रहा था जैसे कोई आसमान की परी अभी अभी नीचे उतरकर आई है और अंशुल को उसने सम्भोग का असली पाठ पढ़ाया है..

नयना लड़खड़ाती हुई जैसे तैसे खड़ी हुई फिर अपनी बुर से बहते अंशुल के वीर्य को अपनी उंगलियों से साफ किया और अपनी ब्रा पैंटी वापस पहन ली कुत्ते का लंड कुतिया की बुर में चिपक गया था जिसे दोनों देख रहे थे.. अंशुल और नयना आपस में ना बोल रहे थे ना ही एक दूसरे को देख रहे थे.. नयना अपनी सलवार कुर्ती भी पहन चुकी थी.. अंशुल पथर से उठा और वो भी अपने कपडे पहनने लगा.. कपडे पहन कर उसने पास खड़ी नयना को देखा और उसके पास आ गया.. अंशुल नयना का हाथ पकड़ कर उसे जंगल से बाहर ले जाने लगा मगर पहली चुदाई के कारण नयना के बदन में अकड़न और पैरों में लंगडापन आ गया था.. अंशुल ने नयना को गोद में उठा लिया और सडक की ओर आ गया.. नयन अंशुल को बड़े प्यार से देख रही थी मगर अब ये प्यार अपने बड़े भाई के लिए था वो अंशुल में अपना भाई देख रही थी..

अंशुल बाइक के पास पहुंचकर नयना को गोद से उतारता है और कहता है..
अंशुल - पता आज से सेकड़ो साल पहले यहां जंगल में एक काबिल रहता था.. **** नाम था उस क़ाबिले का.. बड़ी अजीब मान्यता थी उस काबिले की अगहन की पूर्णिमा को लेकर...
नयना कुछ नहीं बोलती और चुपचाप अंशुल के पीछे बैठ जाती है.. अंशुल बाइक चलाकर प्रभातीलाल के यहां पहुँचता है जहाँ प्रभतीलाल और लज्जो के साथ गाँव के कुछ लोग भी नयना के इंतजार में बैठे थे..
प्रभतीलाल और लाजो नयना को देखते ही गले लगा लेते और और उससे घर से जाने का कारण पूछने लगते है उसे लाड प्यार करने लगते है.. प्रभती लाल ने तो नयना के लंगड़ाने का कारण नयन के पैर की मोच समझा मगर लज्जो अच्छी तरह उसका मतलब समझ रही थी.. लज्जो ने आँखों ही आँखों में अंशुल से सारा किस्सा समझ लिया और नयना को होने साथ घर जे अंदर ले गई.. प्रभती लाल अंशुल से बाते करने लगा और उसका धन्यवाद करने लगा.. अंशुल ने प्रभती लाल से कह दिया था की वो नयना से ब्याह करना चाहता है और जल्दी ही प्रभती लाल घर आकर बालचंद से ब्याह की तारिक पक्की कर ले.... प्रभातीलाल नयना का मन जानता था और इस पर सहमति जताते हुए अंशुल को गले लगाकर बोला - तुम इस घर के जमाई नहीं बेटे बनोगे...

अंशुल नयना को घर छोड़ कर चला गया था और नयना अपने रूम में जाकर बिस्तर सोते हुए अपने आप को कोस रही थी की वो बदन की आग में रिश्ते भी भूल गयी? मगर उसका ध्यान अंशुल की आखिरी बात पर था.. वो क़ाबिले वाली बात.. नयना ने तुरंत अपना फोन निकाला और google पर उस क़ाबिले के बारे में पता लगाने लगी....
नयना क़ाबिले के बारे में पढ़ रही थी की पढ़ते पढ़ते उसकी आँख बड़ी हो गई... क्या? ऐसा कैसे हो सकता है? इसका मतलब मेरी मन्नत पूरी..... मगर क्या सच मे ऐसा हो सकता है?
नयना ने पढ़ा था की उस क़ाबिले में एक परंपरा थी जिसमे अगर अगहन की पूर्णिमा को कोई औरत मर्द चाँद की पूरी रौशनी में सम्भोग़ कर ले तो उन्हें पति पत्नी होने का दर्जा मिल जाएगा... इसका मतलब उस क़ाबिले की परम्परा से नयना अंशुल की पत्नी बन चुकी है.... नयना इसे झूठलाने की कोशिश कर रही थी.. और अपने आप को समझा रही थी की ऐसा नहीं हो सकता... अंशुल उसका भाई है और अब वो उसे सिर्फ भाई की नज़र से ही देखेगी.. और कोई दूसरा रिस्ता उससे नहीं रखेगी.. अपनी मोहब्बत का गला वो घोंट देगी.. नयना और अंशुल के बीच अब सिर्फ यही एक रिस्ता होगा.... नयना खुदको पापी समझ रही थी.. अंशुल ने जो किया अनजाने में था मगर नयना को सब पता था फिर भी.... नहीं अब ये नहीं होगा.. नयना ने दृढ़निश्चिय किया था....

अंशुल को घर पहुंचते पहुंचते सुबह के चार बज चुके थे जब वो घर आया तो पदमा की हालात देख हैरान था.. पदमा ने रात जागकर गुजारि थी और उसकी आँखे बोझल लग रही थी.. अंशुल पदमा को अपनी गोद में उठाकर अपने कमरे में ले गया और अपनी बाहों में लेटा कर प्यार से उसका सर सहलाते हुए सुलाने लगा था.. पदमा जो रात से अंशुल की याद में जाग रही थी वो अंशुल की बाहों में तुरंत सो गई...

अंशुल के लिए पदमा और नयना में कोई फर्क नहीं रह गया था वो दोनों को अपने पास रखना चाहता था और प्यार करना चाहता था उसका मन अब दोनों को चाहने लगा था.. उसकी बाहो में सो रही उसकी माँ पदमा उसे कितना चाहने लगी थी ये उसे आज की उसकी हालात से पता लगा......

दिन गुजरने लगे थे... दो महीने बीत गए मगर नयना की अंशुल से कोई बात न हो सकती थी एक दो बार अंशुल नयना से मिलने गया भी तो पता लगा नयना अपने चाचा के यहां गई हुई है उधर पदमा अब दिनरात बालचंद से नज़र बचकर अंशुल के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए आतुर रहती थी.. दोनों का प्रेम प्रगाड़ से भी अधिक मजबूत हो गया था... नयना अंशुल से बच रही थी वो नहीं चाहती थी की अब अंशुल उसे अपनी प्रेमिका के रूम में देखे और प्यार करे.. नयना बस अंशुल को अपना भाई समझने लगी थी और उससे भाई वाला रिस्ता कायम रखना चाहती थी.

एक दिन दोपहर को जब बालचंद ऑफिस में बड़े बाबू की गाली खा रहा था और बेज़्ज़त हो रहा था वहीं दूसरी तरफ उसकी बीवी अपने बेटे के सामने अपनी गांड फैलाये घर पर उसके ही बिस्तर में अपनी बुर चुदवा रही थी.... अंशुल पदमा के बाल पकड़ कर पीछे से उसकी बुर कुटाई कर रहा था और पदमा सिसकते हुए मज़ा ले रही थी... तभी अंशुल का फ़ोन बजा....
पदमा ने चुदते हुए फ़ोन उठा कर स्पीकर पर डाल दिया और अपना एक हाथ पीछे करते हुए अंशुल की तरफ फ़ोन कर दिया अंशुल अपने दोनों हाथ से पदमा की कमर थामे चोदता हुआ फ़ोन पर बात करने लगा...
हेलो...
हेलो.. आशु....
हां... मस्तु (अंशुल का शहर में रूमपार्टनर, पदमा के फलेशबैक में डिटेल से इसके बारे में लिखा गया है)
मस्तु - भाई अभी अभी तेरा परिणाम आया है...
अंशुल अपनी माँ चोदते हुए - अच्छा....
पदमा चुदते हुए सारी बाते सुन रही थी...
(मस्तु चुदाई की आवाजे साफ साफ सुन रहा था.. मगर वो जनता था ये किसकी चुदाई चल रही है इसलिए चुदाई के बारे में कुछ बोला नहीं..)
मस्तु - भाई कहा था मैंने तू पहली बार में निकाल लेगा.. निकाल लिया तूने.... अब तू सिर्फ अंशुल नहीं... ******* अंशुल है.. जल्दी से शहर आ बड़ी पार्टी लेनी है तुझसे... कहते हुए मस्तु ने फ़ोन काट दिया..
अंशुल ने पदमा को पलट दिया और अब वो मिशनरी पोज़ में पदमा के ऊपर आकर उसकी चुदाई करने लगा...
अंशुल - बधाई हो माँ.... अब तू सरकारी चपरासी की बीवी नहीं.. सरकारी अधिकारी की माँ है...
पदमा - आह्ह लल्ला.. तूने तो सच में अपना वादा पूरा कर दिया... मैं तो तुझे इस ख़ुशी के मोके पर कुछ दे भी नहीं सकती..
अंशुल - बिलकुल दे सकती हो माँ.....
पदमा - सब तो दे चुकी हूँ बेटा अब मेरे पास बचा ही क्या है?
अंशुल ने पदमा को होंठ चूमते हुए कहा - माँ मुझे तुम्हारी गांड चाहिए......
पदमा अंशुल की बात सुनकर शर्म से पानी पानी हो गई अब तक उसने अंशुल के दानवी लंड से डर कर अपनी गांड उसे नहीं दी थी मगर आज अंशुल ने उससे वहीं मांग ली थी...
पदमा ने मुस्कुराते हुए कहा - मैं तो खुद तुझे सब देना चाहती हूँ लेकिन डरती हूँ तेरे उस लोडे से... मगर ठीक है दो दिन बाद जब भालू शहर जाए तब ले लेना.. अंशुल झड़ चूका था..


Like & comment if you like the story ❤️❤️❤️❤️
Fantastic update brother
Thank for the update
Aise hi likhte rho
 

Premkumar65

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अध्याय 6
इम्तिहान


अंशुल का आखिरी इम्तिहान 3 दिन बाद था और अंशुल ने उसकी जमकर तयारी की थी उसने यही बाते सोची थी की इम्तिहान के बाद वो सीधा जाकर नयना को ब्याह के लिए मनाकर अपने साथ ले आएगा और पदमा के साथ उसे भी बहुत प्यार करेगा मगर अभी इम्तिहान था और कल रात की ट्रैन से उसे हिमाचल निकलना था पदमा अभी अभी गुंजन के घर से वापस आई थी और रसोई में खाना पक्का रही थी.. बा
लचंद आज ही बड़े शहर चला गया था और अब घर में पदमा और अंशुल अकेले थे..

अंशुल ने सारी तयारी कर ली थी और अब वो नीचे आ गया था अंशुल सीधा रसोई में पदमा के करीब पंहुचा और पदमा को पीछे से गले लगता हुआ बोला - मौसी कैसी है?
पदमा अपना काम करती हुई बोली - अब पहले से अच्छी है... तुझे कितना याद कर रही थी.. एक बार मिलने आ जाता तो अच्छा रहता....
आप फ़िक्र मत करो इम्तिहान के बाद गुंजन मौसी को यही बुला लेंगे और उनका खूब ख्याल रखेंगे..
इम्तिहान? वो कब है?
3 दिन बाद.... कल की ट्रैन है हिमाचल जाना पड़ेगा इम्तिहान के लिए..
पदमा - तो तू अकेला जा रहा है मुझे यहां अकेला छोड़ कर?
अरे आप अकेले कहा हो? धन्नो काकी है ना.. अब तो महिमा भाभी भी आ गई है.. उनके साथ आपका दिल लग जाएगा.. मुझे अगर मालूम होता की आप आ रही हों तो शायद कुछ कर पाता...
क्या मतलब कुछ कर पाता.. अभी भी तो 3 दिन बाकी है.. मैं तुम्हारे साथ चलूंगी.... समझें?
माँ बहुत लम्बा सफर है आप परेशान हों जाओगी..
कुछ भी हों मैं तुम्हारे साथ चलूंगी मतलब चलूंगी.. मुझे और कुछ नहीं सुनना....
अच्छा ठीक है मैं कुछ करता हूँ.. आप नाराज़ मत हो..
वैसे अभी खाने में क्या बनाया है?
आलू पूरी.. तुम्हे पसंद है ना?
पसंद तो और भी बहुत कुछ है माँ....
हम्म उसके लिए तो थोड़ा सब्र करना पड़ेगा मेरे आशु को.. मुस्कुराते हुए पदमा ने कहा..
अच्छा फिर खाना तो खिला दो अपने हाथो से..

पदमा खाने की थाली हाथो में लेकर अंशुल को अपने हाथो से खिलाने लगती है और अंशुल भी पदमा को अपने हाथो से खाना खिलाता है.. दोनों एक साथ बड़े प्यारे लगा रहे थे जैसे एक दूसरे के लिए बने हों दोनों के बीच का प्रेम अद्भुत था.. खाना खाने के बाद अंशुल पदमा से अपना कुछ सामान पैक करने को कह देता है और अपना टिकट केन्सिल करवाकर सुबह की ट्रैन का फर्स्ट ac क्लास के दो टिकट एक साथ बुक करता है ताकि एक साथ सफर कई सके.... फिर झूठे बर्तन धोने लगता है जिसे देखकर पदमा हँसते हुए अंशुल से कहती है.... अरे अरे.. नवाब साहब कब से ये काम करने लगे? चलो छोडो.... मैं करती हूँ.... तुम आराम करो जाकर....
अंशुल - माँ आज रात आप वो लाल वाली साड़ी पहनो ना.. बहुत प्यारी लगती हों उसमे...
पदमा मुस्कुराते हुए - लगता है आज रात मेरी इज़्ज़त खतरे में है...
अंशुल पदमा के गाल चूमकर - आप भी ना माँ.... चलो में ऊपर जाता हूँ एक बार फिर से बैग चेक कर लेता हूँ..
पदमा रसोई का सारा काम ख़त्म करके वहीं लाल साड़ी पहनती है और हाथो में एक दूध का गिलास लेकर अंशुल के रूम में आ जाती और दरवाजा बंद कर लेती है... अंशुल पदमा का ये रूप देखकर उसपर टूट पड़ता है और फिर कुछ देर में पदमा की मादक सिस्कारिया पुरे कमरे में गुंजने लगती है...

**** स्टेशन से अंशुल पदमा के साथ **** ट्रैन के फर्स्ट ac क्लास डिब्बे में अपनी जगह आ गया था.. ऊपर नीचे दो बर्थ थे और सामने एक दरवाजा जिसके अंदर की तरफ पर्दा लटका हुआ था.. अपना सामान रखकर पदमा खिड़की से बाहर देखने लगी थी उसे आज पहली बार कहीं आने जाने का मौका मिला था वरना वो तो कब से अपने घर में ही रहती थी कभी कभी बहन गुंजन के घर तो कभी अपने भाई के घर इसके अलावा उसने दुनिया नहीं देखी थी.. पदमा ट्रैन के नजारो के साथ अपनी आँखे बिना झपकाये चल रही थी उस उमंग उस उल्लास और उस रोमांचक सफर की और जहाँ अंशुल उसे जिंदगी के असल मायने समझाने वाला था..

सफर शुरू हुए करीब दो घंटे हों चुके थे मगर पदमा की नज़र खिड़की के बाहर से नहीं हटी थी वो सीलसिलेवार गुजरे गाँव शहर और जंगल देख रही थी जैसे उसे डर हों की आज के बाद उसे वापस ये सब देखने को नहीं मिलेगा.. पदमा उन नज़ारों को अपनी नज़र में बंद कर लेना चाहती थी और चाहती थी इसी सफर में रहना.. अंशुल तो सिर्फ किताब में मगन था आखिर उसने इतने महीने दिनरात एक करके मेहनत से इम्तिहान की तयारी की थी वो अभी किताब के पन्ने पलटते हुए देख रहा था... शाम का समय था और सफर पूरी रात का.. इसी तरह बैठे बैठे दोनों को रात हों गई खाना आ चूका था और दोनों ने मिलकर खा भी लिया था आज पदमा और अंशुल के बीच आज अजीब सी कशिश थी जो अक्सर नये नये प्रेमी जोड़ो में देखने को मिलती है..

रात के 11 बजते बजते पदमा की आँखे नींद से भरी जा रही थी उसे अब बाहर के मनमोहक दृश्य देखते हुए नींद आ रही थी मगर अंशुल अब भी अपनी किताब में घुसा हुआ था पदमा ने अंशुल के हाथ से किताब लेकर ऊपर वाली बर्थ पर रख थी और लाइट बंद करते हुए अंशुल को नीचे वाली बर्थ पर लेटा कर खुद अंशुल के सीने पर लेट गई और अंशुल को प्यार से अपनी बाहों में भर लिया....

अंशुल - नींद आ रही है?
पदमा - हम्म....
चादर निकाल दू.. कुछ देर में ठंड लगने लगेगी..
अभी नहीं.. अभी ठीक है..

अंशुल खिड़की से छनकर अंदर आती चाँद की हलकी रौशनी में पदमा का चेहरा देखते हुए उसकी जुल्फ जो उसके चेहरे पर आ रही थी पीछे कर रहा था और बड़ी प्यार से सर सहलाते हुए पदमा को अपने बाजु का सहारा देकर सुलाने लगा था..
अंशुल देख रहा था की पदमा बिलकुल वैसी ही दिख रही है जैसी पहले मिलन के समय दिख रही थी उसके चेहरे पर कोई शिकन कोई फ़िक्र नहीं थी वो बस सुकून चाहती थी जो उसे अंशुल की बाहों में मिल रहा था..

दोनों के बीच कोई पर्दा नहीं था ना बाहर ना भीतर.. अपने मन की बाते दोनों बेझिझक एक दूसरे से कहते और सुनते थे यही कारण था की दोनों का सम्बन्ध प्रगाड़ और मजबूत था ना उसमे किसी तरह की मिलावट थी ना झूठ....
अंशुल अपने मन में और भी कई ख्याल लिए लेटा था.

माँ एक बाते पुछु?
हम्म.... पदमा ने आँख बंद किये हुए ही अंशुल से कहा..
आप खुश तो हों ना मेरे साथ?
पदमा की आँखे नींद से बाहर आ गई और अंशुल के इस सवाल पर खुल गई और अंशुल को देखने लगी जैसे पूछ रही हों की अचानक से ये सवाल उसे क्यों सुझा? क्यों उसने ये सवाल पदमा से किया? क्या वो जानता नहीं की औरत केवल उसे ही अपने बदन को छूने का हक़ देती है जिसे वो चाहती है? अगर वो अंशुल के साथ खुश ना होती तो ऐसे उसके साथ इतनी दूर क्यों आती? क्यों पदमा अंशुल को अब भी किसी बच्चे की तरह प्यार करती? क्यों उसकी हर बात मानती और उसे अपने जिस्म की कसावट और बनावट से रूबरू करवाती? ये केसा सवाल है जो रात के इस वक़्त उसने पदमा से पूछा है? क्या वो खुद इसका जवाब नहीं जानता?
पदमा ने कुछ देर अंशुल को यूँही सवालिया आँखों से देखा और फिर उसके लबों को अपने लबों की गिरफ्त में लेकर दांतो से खींचते हुए कहा - नहीं मैं बिलकुल खुश नहीं हूँ तुमसे..
क्यों?
क्यों क्या? ऐसे मासूम शकल बनाकर न जाने कैसी गन्दी गन्दी हरकत करते हो अपनी सगी माँ के साथ.. कल रात का भूल गए? क्या हाल किया था तुमने मेरा? वो अच्छा हुआ मैंने देख लिया की कंडोम फट चूका है वरना तुम तो मुझे माँ ही बना ड़ालते..
आप रोक भी तो सकती थी मुझे..
मैं क्यों रोकू भला? तुम्हे खुद समझना चाहिए.. कुछ दिन दूर क्या रही तुमसे.. तुम तो बेसब्री हों गए और मुझे भी....
अच्छा sorry माँ....
Sorry क्यू? मैंने ऐसा तो नहीं कहा कि मुझे बुरा लगा.. तुम मर्द हो और मैं औरत.. औरत को हमेशा अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए मर्द के नीचे आना ही पड़ा है.. मैं तो ये कह रही हूँ कि तुम थोड़ा सा ख्याल रखो बस.... जहा से तुम निकले हो वहा बिना कंडोम पहने आना जाना अच्छी बात नही... समझें?
अच्छा ठीक है समझ गया मेरी माँ.... अब से ध्यान रखूँगा.. अब तो खुश?
हम्म्म..... कहते हुए पदमा ने फिर से अंशुल के होंठों को अपने होंठो कि जेल में डाल दिया और चूसने लगी..
ट्रैन और पदमा कि काम इच्छा दोनों अपनी गति से आगे बढ़ रहे थे मीठी मीठी बातों के बाद दोनों ही इसमें कूद पड़े और आधी रात होते होते तृप्त होकर बाहर निकले.. पदमा अब भी अंशुल के सीने पर अपना सर रखे हुए लटी थी और दोनों ने कमर से ऊपर कुछ नहीं पहना था बस एक चादर दोनों ने अभी अभी ओढ़ ली थी और अभी पूरी हुई कामतृप्ति से दोनों के चेहरे पर मुस्कान बिखरी हुई थी....
ऐसे क्या देख रही हो?
कुछ नहीं बस देख रही हूँ तुम कब छोटे से इतने बड़े हो गए और मुझे अपने जाल मै फंसा लिया...
जाल में फंसा लिया? मैंने कब आपको जाल में फंसाया? भूल गई आप खुद आई थी मेरे पास.. वो भी सज धज कर..
हां क्युकी तुमने मजबूर कर दिया था मुझे..
अच्छा जी.. वो भी मेरी गलती है?
हां हां तुम्हारी गलती है और किसकी है? तुम्हे तो पता थी ना मेरी हालत? तभी तुमने मेरे साथ....
बोलो ना.... चुप क्यू हो गई?
छी.... मुझे शर्म आती है..
अंशुल ने पदमा के चेहरे पर चुम्बन करते हुए कहा - माँ होकर बेटे से शर्मा रही हो?
पदमा के चेहरे पर शर्म हया और मुस्कान थी उसे आज अपने ही बेटे अंशुल से शर्म आ रही थी जैसे एक दुल्हन को अपने पति से आती है दोनों की बाते कुछ देर और चली फिर नींद ने दोनों को अपने आगोश में ले लिए और उसी तरह एक बर्थ पर लिपटकर अंशुल और पदमा कब सो गए कहा नहीं जा सकता..

शिमला स्टेशन पर सुबह 10 बजे के करीब ट्रैन पहुंची अंशुल अपना सामान और पदमा को साथ में लेकर नीचे उतरा और तुरंत बाहर निकल कर एक ऑटो लेकर होटल ***** की ओर चल पड़ा... पदमा शिमला की खूबसूरती निहारे जा रही थी एक तरफ उसका गाँव और क़स्बा था दूसरी तरफ खूबसूरती से भरा हिमाचल.. उसकी आँखों में नज़र और चेहरे पर ठंडी हवा की छुअन पदमा के मन को उसहित और प्रफ्फुलित कर रही थी.. रास्ते में एक रेस्टोरेंट पर खाना खा कर दोनों वापस होटल की तरफ बढ़ गए.. होटल अंशुल ने पहले से ही बुक किया हुआ था जो उसके इम्तिहान वाली जगह से कुछ दुरी पर ही था..

गुड आफ्टरनून सर, हाउ कैन ई हेल्प यू? अंशुल को देखकर होटल रिसेप्शन पर बैठे एक आदमी ने कहा..
अंशुल फ़ोन दिखाते हुए - मैंने एक रूम बुक किया था..
रिसेप्शनिस्ट - जी सर, one सेकंड.. जी... अंशुल सिंह...& पदमा देवी.... Yes.. सर, आपका सुइट नंबर 3924.... ये आपकी key....
अंशुल - thanks.. But मैंने सिर्फ ए क्लास रूम बुक किया था....
रिसेप्शनिस्ट - सर..... वो विंटर सीजन स्टार्ट हुआ है थिस वीकेंड एंड जितना आपके रूम का टेरीफ है उसमे नाउ वी कैन प्रोवाइड यू अ सुइट... सो दी होटल अपग्रेड योर रूम टू अ सुइट.... ताकि आप और आपकी वाइफ को कोई प्रॉब्लम न हो...
पदमा को कुछ कुछ समझ आ रहा था और ये वो अच्छे से समझ गई थी की रिसेप्शनिस्ट ने उसे अंशुल की बीवी समझा समझा है.. वो मन ही मन खुश हो रही थी और अंशुल का हाथ पकडे उसके चेहरे की तरफ मुस्कुराते हुए देख रही थी..
अंशुल - थैंक्स.....
रिसेप्शनिस्ट - एन्जॉय योर हनीमून सर...

(अंशुल की इनकम का सोर्स फ़्लैश बैक में पता चल जाएगा)
अंशुल समझ गया था की उसे और पदमा को पति पत्नी समझा जा रहा है but उसने किसी का ये भरम तोड़ने की कोशिश नहीं की उलटे उसी तरह व्यवहार करने लगा...
एक लड़का आकर अंशुल से सामान ले लेता है और दोनों को उनके सुइट पर ले जाता है पदमा जब सुइट में पहुंची तो अंदर का नज़ारा देखकर हैरान रह जाती है जैसे किसी महल में आ गई हो.. उसने अब से पहले ऐसा कुछ नहीं देखा था उसे विश्वास नहीं हो रहा था की कोई होटल भी इतना खूबसूरत और महल जैसा हो सकता है..
अंशुल ने लड़के को टिप देकर वापस भेज दिया और दरवाजा बंद कर लिया, फिर पदमा को बाहो में भरके चूमते हुए बेड पर ले गया जहा मुस्कुराते हुए अंशुल ने पदमा से कहा - ई love यू माँ....

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पदमा - माँ नहीं आशु... पदमा... तुम्हारी पदमा.. और अब से अकेले में आप नहीं तु या तुम कह कर पुकारा करो... यहां मुझे मेरे नाम से बुलाओ... पदमा ने ऐसा कहते हुए जितनी बेबाकी से अंशुल की आँखों में देखा था उतनी बेबाकी अंशुल ने आज तक पदमा की आँखों में नहीं देखी थी..
अंशुल और पदमा वापस बहकने लगे थे और कुछ पलो में काम ने अपना काम कर दिया.. शिमला की ठंडी हवा मे मादकता घोलती पदमा की सिस्कारिया गूंजने लगी थी मखमली बिस्तर पर अंशुल पदमा की मुनिया को इस रफ़्तार से पेल रहा था जैसे कोई बदला निकाल रहा हो पदमा की चुदाई इस सर्दी में आग लगा रही थी. पदमा अंशुल को अपनी बाहों में ऐसे जकड़े हुए थी मानो अपने से अलग नहीं होने देना चाहती हो..
रह रह कर दोनों माँ बेटे के बीच सम्भोग पूरा दिन और शाम चलता रहा जहा दोनों ने बिना किसी शर्म लिहाज और परदे के एकदूसरे को हर सुख प्रदान किया.. रात एक बज चुके थे.. दोनों बुरी तरह थक चुके थे और एक दूसरे से लिपटे सो रहे थे आज अंशुल का इम्तिहान भी था जो सुबह 10 बजे शुरू होने वाला था...

आशु.... आशु... उठो इम्तिहान नहीं देने जाना? जल्दी करो आठ बज चुके है.. पदमा ने कहा.. अंशुल आँख मलता हुआ उठा तो उसने एक बार पदमा को अपने गले से लगा कर उसके माथे पर चुम्मा दे दिया मानो वो शुक्रिया कर रहा हो उन लम्हो का जो उसने पदमा के साथ यहां बिताये थे उसका सारा टेंशन और फ़िक्र जो इम्तिहान को लेकर थी वो हवा हो चुकी थी उसे इम्तिहान से ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा था जैसे कोई सालभर तयारी करके इम्तिहान देने जाता है और घबराहट और चिंता उसके साथ रहती है वैसी अंशुल के साथ आज नहीं थी पदमा ने सारी फ़िक्र और चिंता अपने प्यार से उतार दी थी.. होटल से इम्तिहान की जगह कुछ 15 मिनट वाकिंग डिस्टेंस पर थी सो अंशुल को अभी कोई फ़िक्र नहीं थी

अंशुल बिस्तर से उठ गया और नहाने चला गया पदमा उसके लिए चाय बनाने लगी थी आज पदमा पहले से कहीं ज्यादा सुलझी हुई समझदार और शहरी औरत मालूम पडती थी उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था की वो किसी गाँव देहात या कस्बे में बसने वाली आबादी जो आधुनिकता से कोसो दूर है वहा रहती हो.. पदमा के चरित्र और स्वाभाव में आकस्मिक पर अद्भुत परिवर्तन आया था जो उसे भी महसूस हो रहा था वो मन ही मन अपने ऊपर डाली गई समाज की बंदिश और मर्यादा लांघने को आतुर थी उसे अब समाज और महिला की गरिमा की ज्यादा परवाह नहीं रह गई थी.. पदमा चाय बनाते हुए अपनी सारी का पल्लू अपनी ऊँगली में उलझा कर दाँत से कुतर रही थी और सोच रही थी अगर अंशुल सच में उसके पति बन जाए तो? वो हर दम उसके साथ पति पत्नी की तरह जीवन बिताये तो? अंशुल तो कब से इसके लिए त्यार है पर ये तो पदमा ने ही तय किया है की वो अंशुल के साथ परदे के पीछे ही अपना ये नाजायज रिश्ता रखेगी और समाज के सामने एक माँ बेटा होने का पूरा दिखावा करेगी.. पदमा को न जाने क्यू आज अंशुल के प्रति कुछ ज्यादा आकर्षण उत्पन्न हो रहा था वो जानती थी की अंशुल भी उसके प्रति कितना आकर्षित है पर अभी तक दोनों ने अपने दिल की बाते को एकदूसरे के सामने रखते हुए एक मर्यादा रखी थी जिसे शायद उनके मन के भीतर माँ बेटे के रिश्ते का ख्याल कहा जा सकता था..

अंशुल जब नहाकर बाहर आया तो सिर्फ तौलिये में था और अपने बाल सहला रहा था पदमा ने पहले भी उसे कई बार इस तरह देखा था मगर आज उसे अंशुल में अपना बेटा कहीं दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा था वो चाय का कप लिए अंशुल के पीछे खड़ी थी.. उसे देने के लिए अंशुल की और आगे बढ़ गई थी जैसे कोई पत्नी सुबह की पहली चाय अपने पति को देने के लिए बढ़ती है... अंशुल ने जल्दी से एक ब्लू जीन्स और वाइट टीशर्ट पहन लिया था वो आईने के सामने खड़ा हुआ अपने बाल बना रहा था वहीं पदमा आज बिना कुछ बोले अंशुल जे पीछे चाय का कप हाथ में लिए खड़ी थी जैसे इंतजार कर रही हो की आशु कब मोड़कर उससे चाय का कप लेकर चाय पिए और उसे देखकर कोई मीठी प्यार भारी बाते करे.... ऐसा होना मौसम की मांग थी इस ठंडी में पदमा का ऐसा सोचना भी जायज था आखिर इतना खूबसूरत शहर और माहौल कैसे नहीं प्यार की बात करेगा?

अंशुल जब बाल बनाकर पीछे मुड़ा तो पदमा मुस्कुराते हुए चाय लेकर खड़ी थी अंशुल ने चाय का कप लेकर एक दो चुस्की ली फिर चाय मैंज पर रखकर पदमा को अपनी बाहों में खींच लिया और उसके गुलाबी हलके मोटे उभरे हुए होंठों को अपने होंठो में भर कर इतना प्यार से चूमा की पदमा अपने होश खो बैठी और सिमटकार अंशुल की बाहो में समा गई.. पदमा को ये भी ख्याल ना रहा उसका आँचल उसके सीने से नीचे जा चूका है और उसके छाती के उभार साफ साफ अंशुल के सामने है.. मगर वो इसकी परवाह करती भी क्यू? कुछ देर चूमने के बाद अंशुल ने पदमा के चेहरे को अपने दोनों हाथ से पकड़कर उसकी आँखों में देखते हुए कहा.. चाय में मीठा कम था इसलिए आपके होंठ चूमे... पदमा अंशुल की बाते सुनकर नीचे उसकी जीन्स में साफ दिख रहे उसके लिंग की अकड़न महसूस करते हुए बोली - मीठे के चक्कर में अब इसका क्या?
अंशुल पदमा की बात सुनकर मुस्कुराते हुए बोला - आप हो ना...
पदमा ने एक क़ातिल मुस्कुराहट के साथ घड़ी की और इशारा किया, घड़ी में 8.50 हो रहे थे..
पदमा बोली - इम्तिहान नहीं दोगे? अंशुल की नज़र जैसे घड़ी पर पड़ी उसके चेहरे पर मोज़ूद ख़ुशी और कामइच्छा फुर्ररर हो गई और एक उदासी छा गई.. अंशुल अब कुछ बोलने की हालत में नहीं था उसने बस पदमा को एक नज़र प्यार से देखा फिर उसके लबों को चूमकर अपना जैकेट उठाकर बाहर की और जाने के लिए बढ़ गया....

पदमा ने अंशुल को दरवाजे पर ही रोक लिया और प्यार से उसके लबों को चूमकर कहा - इस तरह बे-मन से जाओगे तो इम्तिहान में मन नहीं लगेगा.. और अंशुल का हाथ पकड़कर उसे वापस बिस्तर के करीब ले आई, पदमा ने टेबल पर पड़े पैकेट से एक सिगरेट निकलकर अंशुल के होंठो पर लगा दी और लाइटर से सिगरेट जलाकर घुटनो पर बैठकर अंशुल की जीन्स का बटन खोलकर जीन्स नीचे सरका दी और उसके लंड के सुपाडे पर अपने होंठों को लगा दिया.. अंशुल ने एक लम्बा सिगरेट का कश लेते हुए अपनी माँ के सर पर दो तीन बार प्यार से हाथ फेरा और फिर उसके मुँह में अपने लंड को घुसा कर पदमा से ब्लोजॉब लेने लगा.. पदमा किसी भूखी शेरनी की तरह अंशुल के लिंग को शांत करने में लग गई और अंशुल सिगरेट के कश लेते हुए पदमा को देख रहा था.. पदमा अंशुल के लिंग और आंड ऐसे चूस चाट रही थी जैसे साधारण देहाती औरत न होकर कोई बड़ी पोर्नस्टार हो..

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इस वक़्त वो अंशुल को उसके चरम पर खींच लाना चाहती थी और कुछ ही मिनटों में ऐसा हो भी गया.. पदमा का पूरा मुँह अंशुल के वीर्य से भर चूका था सिर्फ दस मिनट में अंशुल पूरी तरह ठंडा हो चूका था.. पदमा अपने मुँह में अंशुल का वीर्य भरे खड़ी हुई तो अंशुल ने जल्दी से अपनी जीन्स पहनी और फिर पदमा के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हुए बाहर इम्तिहान देने चला गया...

पदमा ने कई बार अंशुल को आशीर्वाद दिया था मगर आज उसे अंशुल का पैर छूना अजीब लग रहा था उसके मुँह में वीर्य भरा था जिसे वो धीरे धीरे अपने गले से नीचे उतार रही थी और सोच रही थी क्यू वो अंशुल के साथ नई शुरुआत करने से डर रही है? बालचंद तो कब का उसे भुला चूका है और उसके लिए पदमा का कोई महत्त्व भी नहीं.. बालचंद के लिए पदमा घर में काम करने वाली एक औरत है इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं.. फिर क्यू पदमा अपनी ख़ुशी नहीं सोच सकती? क्यू उसे अपनी मनमानी तरह से खुश रहने का हक़ नहीं है? अंशुल ने कितना ख्याल रखा है पदमा का.. उसे हर तरह से खुश रखा है फिर भी अंशुल को वो अपने ऊपर पूरा हक़ क्यू नहीं दे सकती? पदमा सोच में डूबी जा रही थी.. आज पदमा ने अपने सुहाग की निशानी को उतार कर रख दिया था और मांग में सिन्दूर भी नहीं भरा था.. नहाने के बाद पदमा ने साडी नहीं पहनी बल्कि एक ड्रेस जो अंशुल ने बहुत पहले उसे गिफ्ट की थी और समाज के डर से उसने कभी पहनी ना थी आज उसके हाथ में थी और वो उसे पहने वाली थी आज पदमा ने तय किया था की वो अब अपने मन से ज़िन्दगी जियेगी.. पदमा उस ड्रेस में बेहद खूबसूरत और जवान नज़र आ रही थी..
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शाम होने को थी अंशुल इम्तिहान देकर वापस होटल आ चूका था और दरवाजा खोलने वाला थी की पदमा ने दरवाजा खोलकर उसे अंदर आते ही अपनेआप से मिला लिया और किसी प्रियसी की भाती उसके मुख पर अनेको चुम्बन अंकित कर दिए..
अंशुल पदमा का ये बर्ताव देखकर आश्चर्य में था मगर वो आश्चर्य उसे सुख दे रहा था अंशुल ने पदमा को उठाकर बिस्तर पर पटक दिया और उसे आज पहली बार साड़ी के अलावा कुछ और पहना देखकर मुस्कुराने लगा.. पदमा आज बहुत ज्यादा कामुक लग रही थी अंशुल ने पदमा को अपने आलिंगन में ले लिए और सम्भोग के अधीन होकर कामक्रीड़ा करने लगा जिसमे पदमा का उसे पूरा साथ हासिल था.

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रात के 8 बज रहे थे और शिमला की ठंडी हवाओ के बिच मालरोड पर किसी कोने में पदमा और अंशुल एकदूसरे को कॉलेज के प्रेमी प्रेमिकाओ की भांति चुम रहे थे आज पदमा को शर्म आने का नाम नहीं था जो बंद कमरे में शर्मा जाती थी वो आज इतने लोगों के बीच अंशुल को किसी बेसब्री की तरह चुम रही थी.. अंशुल के हाथ अपने माँ के बदन की बनावट का जायजा ले रहे थे और पदमा बार बार उसके लबों को दाँत से खींचकर चूमते हुए आँख मार रही थी जैसे कह रही हो अंशुल मुझे अब किसी की कोई फ़िक्र नहीं है.. वहीं कहीं किसी रेस्टोरेंट में खाना खाने के बाद अंशुल वापस पदमा को होटल ले आया और पूरी रात उसके आलिंगन में रहा जैसे उसे भी फर्क हो की कल घर पहूँचने के बाद दोनों के बीच ये सब छुप कर ही हो पायेगा..

सुबह की ट्रैन थी और सुबह जल्दी हो दोनों ट्रैन में आकर्षित बैठ गए थे अब पदमा अंशुल की बाजू पकडे उसके कंधे पर सर रखकर किसी ख्याल में थी और उसके आंसू उसकी आँखों से बाहर आ रहे थे अंशुल खिड़की से बाहर देख रहा था. जब उसके कंधे पर पदमा के आंसू गिरे तो उसे अहसास हुआ की पदमा रो रही है वो पदमा की ओर मुँह करके बैठ गया ओर पदमा के आंसू पोंछते हुई उससे इन आँसुओ के पीछे का कारण पूछने लगा जिसपर पदमा ने बिना कोई जवाब दिया अंशुल के सीने से लग गई ओर उसे अपनी बाहो में कस लिया मानो कह रही हो की अंशुल में भी तुमसे शादी करके अपना घर फिर से बसाना चाहती हूँ मगर मेरे सामने जो मजबूरिया है मैं उनको कैसे दूर करू? मैं बहुत बेबस असहाय ओर लाचार हूँ ओर चाहते हुए भी तुम्हे पूरी तरह से अपना नहीं बना सकती.. आज मेरा दिल बहुत जोरो से मुझे कोस रहा है ओर कह रहा है की मैं सब कुछ छोड़कर तुम्हारे साथ कहीं चली जाऊ मगर ऐसा करना मेरे बस में नहीं.. मैं क्या करू? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा..

अंशुल कुछ हद तक पदमा की मनोभावना समझने में सफल था उसे समझ आ रहा था की पदमा को भी अब अहसास हो रहा है की वो उसके बगैर नहीं रह पाएगी..
अंशुल में पदमा को अपनी गोद में बैठा लिया ओर उसके आँखों से बहती अश्रु धारा को पोंछते हुए कहा - तुम चिंता मत करो मैं तुम्हे छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा ओर हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा.. ओर तुम्हारा ख्याल रखूँगा..
पदमा - वादा?
अंशुल - पक्का वादा..

अंशुल ओर पदमा वापस घर आ चुके थे और अब बालचंद का भी फिर से ट्रांसफर बड़े शहर घर के पास वाले विभाग में हो गया था बालचंद पदमा और अंशुल की जिंदगी वापस से उसी तरह चलने लगी थी जैसे पहले चलती थी मगर अब पदमा बालचंद से कोई झगड़ा नहीं करती थी अगर झड़गा कभी होता भी तो पदमा बालचंद को ऐसी खरी खोटी सुनती की वो पलटकर कुछ बोलने लायक नहीं रहता.. अंशुल ने पास एक स्कूल में शोखिया तौर पर पढ़ना शुरु कर दिया था..

बालचंद एक शाम घर आया तो कुछ गुस्से में था आज बड़े बाबू से बुरी डांट पड़ी थी उसे आखिर कामचोरी और रिश्वत में भी कुछ एहतियात बर्तनी जरुरी है एक तो कामचोरी और ऊपर से रिश्वत के पैसो का बटवारा दोनों में बालचंद गड़बड़ कर बैठा था सो बड़े बाबू ने जमके लताड़ा था आज उसे.. तरह तरह की उपमा देकर पुकारा था कभी गधो का राजा तो कभी चोरो का सरताज क्या क्या कह दिया था बालचंद को सबके सामने.. बालचंद जूते उतारता हुआ पदमा से बोला - तुम्हारे साहेबजादे कल फ्री हो तो पूछ लेना, मुझे सिहरी जाना है ज्ञानचंद (बालचंद का छोटा भाई) के यहां.. आरुषि (ज्ञानचंद के बेटी) को देखने वाले आएंगे कल..
पदमा - तो बस से चले जाना.. मेरे बच्चे को पूँछ की तरह कहे अपने पीछे पीछे घुमा रहे हो.. वैसे भी अपने बेटे को तो वो लोग घर से निकाल ही चुके है..
बालचंद - जब औलाद हाथ से बाहर हो जाए तो घर में रखकर क्या फ़ायदा? निकाल देना ही बेहतर होता है....
पदमा - क्या मतलब निकाल देना बेहतर होता है? अरे शादी भी तो करवा सकते थे उसकी.. कोठे पर ही तो जाता था किसी का खून थोड़ी किया था उसने.. और अब कोनसा साधु महात्मा बन गया होगा? अब तो और भी बुरी आदत लग चुकी होंगी विजु को (ज्ञानचंद का बेटा ).. ना जाने कहा क्या कर रहा होगा..
बालचंद - सिर्फ कोठे पर जाने की बात नहीं थी.. राह चलते लोगों से लड़ाई-झगड़ा मारपीट करना और उसने तो ज्ञानचंद के फ़र्ज़ी दस्तखत करके बैंक से रुपए तक चुराए थे.. ज्ञानचंद बेचारा क्या करता? मुझे तो डर है कहीं तुम्हारा आशु भी....
पदमा - चुप रहो तुम... मेरे आशु के लिए ऐसी बाते करने से पहले सो बार सोच लेना.. मुझसे बुरा कोई ना होगा.. आजतक तुम्हारा एक रूपया भी नहीं लिया मेरे आशु ने.. अरे तुम्हारे पास है ही क्या जिसे वो चुरायेगा? तुम्हारी चपसारीगिरी और रिश्वत खोरी से घरखर्च चलाना भी मुश्किल होता है जैसे तैसे मैं चलाती हूँ उतना ही शुक्र मनाओ.. कभी किसी चीज़ के लिए ज़िद नहीं की मेरे आशु ने.. हमेशा अपनी मेहनत और पैसो से अपने खर्चे चलाये है..
बालचंद - अरे बस भी करो.. क्या बोलते बोलते सुबह कर दोगी? वैसे भी फ्री ही तो पड़ा रहता है तुम्हारा लाडला एक दिन साथ चला जाएगा तो क्या फर्क पड़ेगा?
पदमा - बहुत फर्क पड़ेगा.. वो घर ही मनहूस है पहले तुम्हारे भाई ने अपने बेटे विजय (विजु) को घर से निकल दिया फिर तुम्हारी वो छिनाल बहन बांसुरी अपने यार के साथ भाग गई और फिर आरुषि की सगाई टूट गई.. और अब रिश्ता मिला भी है तो ऐसा? सुना है तुम्हारी उम्र से कुछ ही कम उम्र का लगता है लड़का.. उस बेचारी लड़की का जीवन ही नर्क कर दोगे तुम सब मिलकर...
बालचंद - तो फिर क्या करे? घर बैठा ले उसे जिंदगीभर? 28 की हो चुकी है.. अब तक तो गांव देहात में लड़कियों के बच्चे भी हो जाते है... जो रिस्ता मिल रहा है वो नहीं मिलेगा कुछ दिनों बाद.. फिर वो भी कहीं बांसुरी की तरह भाग गई तो रही सही इज़्ज़त भी चली जायेगी...
पदमा - इज़्ज़त बची कहा है तुम लोगों के पास? उसे तो तुम सब मिलकर बेच खाये हो..
अंशुल सीढ़ियों से नीचे आता हुआ - क्या हुआ?
पदमा का सारा गुस्सा हवा हो गया ओर प्यार भरी मुस्कान उभर आई - कुछ नहीं आशु... कुछ चाहिए? चाय बना दू?
अंशुल - नहीं मैं वो चन्दन भईया के पास जा रहा था उन्होंने बुलाया था बाजार से भाभी के लिए दवा लानी है तो साथ जाना था....
पदमा - क्या हुआ महिमा को?
अंशुल - कुछ नहीं बस वो पेट से है... सुबह डाक्टर को दिखाया था दवाई लिखी थी आस पास मिली नहीं बाजार जाना पड़ेगा... आते आते रात हो जायेगी..
पदमा - महिमा पेट से है.. ये तो बहुत ख़ुशी की बात है.. पर लल्ला जरा आराम से जाना..
अंशुल - नया रोड बन गया है माँ..अब आने जाने में परेशानी नहीं होगी... कुछ लाना है आपके लिये ?
बालचंद अंदर रूम में जाता हुआ - एक मुँह बंद रखने की गोली ले आना.. अगर मिल जाये तो..
अंशुल और पदमा बालचंद की बात सुनकर एक दूसरे की तरफ देखते हुए मुस्कुराने लगते है.. और आँखों में कुछ बाते एक दूसरे से कहकर अपने अपने काम में लग जाते है..

अंशुल चंदन के साथ बाजार चला जाता है और डाक्टर की लिखी दवाई खरीदने में उसकी मदद करने लगता है.. दवाइया लेकर दोनों वापस घर की तरफ चल पड़ते है लेकिन बीच में नदी के पास बने पुल के नीचे साथ बैठ जाते है.. दोनों पहले भी कई बार यहां ऐसे ही बैठ चुके थे और आपस में घर और इधर उधर की बात करते हुए नदी का बहना देखते थे दोनों के बीच में कुछ जगह खाली थी जहा एक अंग्रेजी शराब की बोतल दो प्लास्टिक के गिलास और उनमे भरी शराब के साथ एक सोडे की बोतल भी बगल में रखी हुई थी.. चकने में मटर खाये जा रहे थे जो ख़रीदे गए तो तरकारी बनाने के लिए थे पर अब बोतल खुलने पर उसका इस्तेमाल अलग तरह से किया जा रहा था चकने में नमकीन भी जिसे चबाते हुए आवाज़ आ रही थी..

क्या हुआ भईया? बाप बनने वाले हो.. इतनी ख़ुशी के मोके पर ऐसा उदास मुँह क्यू बनाया हुआ है? अंशुल ने शराब के गिलाश से मुँह लगाते हुए कहा..
आशु बाप बनना बहुत जिम्मेदारी का काम होता है यार.... मुझे लगता है मैं कभी अच्छा बाप नहीं बन पाउँगा.. मैं कभी किसी का ख्याल नहीं रख पाउँगा.. तुम्हारी भाभी मुझसे कोई शिकायत तो नहीं करती मगर मैं जानता हूँ वो कितनी अकेली है.. शादी के बाद मैंने बस काम ही किया है उस बेचारी के साथ दो पल बैठकर प्रेम के बोल तक नहीं बोल पाया....
अंशुल - भईया जो नहीं कर पाए वो अब कर लो... जिंदगी ख़त्म तो नहीं हुई है.. वैसे भी भाभी जितना प्यार आपसे करती है उससे लगता नहीं है की आप उनका ख्याल न रख पाए हो..
चन्दन - नहीं आशु.... मैं इस प्यार के क़ाबिल नहीं हूँ यार... मैं हूँ तो उसी शराबी की औलाद जिसने नशे में अपने पुरे परिवार को आग में जला कर मार डाला.. सोचता हूँ अगर धन्नो काकी ने मुझे ना पाला होता तो मेरा क्या होगा? ये परिवार ये जिंदगी ये ख़ुशी मैं इसके लायक़ नहीं हूँ..
अंशुल - भईया.... अगर लाइफ में थोड़ी ख़ुशी मिल रही हो तो उसे नकारना नहीं चाहिए.. जो हो चूका उसे बुरा सपना समझकर भूलने में फ़ायदा है.. मैं जानता हूँ आप अच्छे बाप बनेंगे क्युकी आपने अपने बाप को देखा है.. और वैसा आप कभी बन नहीं पाएंगे.. आप उस तरह के है नहीं... अब ये बेकार की चिंता छोड़िये.. घर भी चलना है.. लीजिये खिचिये...
चन्दन मुस्कुराते हुए - लाइफ को समझना बहुत मुश्किल है आशु.... कभी हंसाती है तो कभी रुलाती है.. कभी सब छीन लेटी है तो कभी सब लुटाती है..
अंशुल - आज कुछ ज्यादा इमोशनल नहीं हो रहे है आप? अच्छा ये पेग ख़त्म करिये मैं मूत्रविसर्जन करके आता हूँ...
अंशुल कुछ दूर जाकर जैसे ही अपनी धार बहाने लगता है उसका फ़ोन बज उठता है पदमा का फ़ोन था..
अंशुल - हेलो...
पदमा - कहा हो? कब तक आओगे?
अंशुल - रास्ते में हूँ.. आ रहा हूँ..
पदमा - पूल के नीचे?
अंशुल - यार आप भी ना माँ.. आपसे झूठ भी नहीं बोल सकता....
पदमा - हम्म... लगा ही था... अब अपनी पार्टी ख़त्म करो और जल्दी आओ.. अपने हाथो से शराब पिलाऊँगी...
अंशुल - अच्छा आता हूँ..
अंशुल वापस चन्दन के पास चला आता है और उसके साथ घर आ जाता है..

बालचंद आज कुछ उदास था सो खाना नहीं खा सका और पदमा उसे दवा देने में नाकाम रही बालचंद की आँखों में आज नींद नहीं थी वो कुछ सोच रहा था जैसे किसी फैसले को लेकर कुछ तय करना चाहता हो.. पदमा अंशुल को दूध देने गई थी मगर अब अंशुल उसके थनो से ही दूध पिने लगा था पदमा किसी अठरा साल की लड़की की तरह पहले प्यार में डूबी मुस्काती हुई अंशुल के सर को ऐसे सहला रही थी मानो वो अंशुल से कह देना चाहती हो की अंशुल तुम्हे जब भी अपनी माँ के दूध की जरुरत हो तुम ऐसे ही मेरा दूध पी सकते हो.. पदमा के थनो में दूध तो नहीं था मगर उसी भावना के साथ वो अंशुल को अपनी छाती से लगाए हुए थी और अंशुल उसके निप्पल्स को चूसकर आनंद ले रहा था.. आज रात उसे बिना पदमा के निकालनी थी पदमा उसे बताकर नीचे आई थी की आज वो नहीं आएगी और कल बालचंद अपने छोटे भाई ज्ञानचंद के यहां जा रहा है तो अब दोनों का मिलन कल ही हो पायेगा..

सुबह की पहली किरण धरती पर पड़ चुकी थी और पदमा बिस्तर से उठकर घर के कामो में लग चुकी थी अंशुल भी उठकर छत पर टहल रहा था और इंतजार कर रहा था की कब पदमा छत पर आये और वो उसे अपनी बाहों के घेरे में लेकर अपनी सुबह को मीठा कर ले बालचंद नींद में था रात को देर तक सोच विचार करने के बाद उसे नींद आई थी सो वो अभी नींद में ही खराटे मार रहा था.. पदमा जब छत पर कपडे लेने पहुंची तो अंशुल ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और छत पर बने एक छोटे से कमरे में ले गया..
पदमा - आशु..... क्या कर रहे हो? छोडो.. बहुत काम पड़ा है... तुम्हे जरा भी सब्र नहीं है.. आह्ह... आशु... छोडो ना मुझे... आह्ह.... आह्ह.... तुम ना दिन ब दिन बहुत बद्तमीज होते जा रहे हो... आह्ह.. आराम से....
अंशुल ने पदमा की साडी उठाकर चड्डी नीचे सरका दी थी और अपने लिंग से उसकी बुर का नाप ले रहा था पदमा के बाल बिखरे हुए थे उसे सुबह सुबह इस तरह अपनी बुर कुटाई का अंदाजा नहीं था..

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पदमा - आह्ह... पूरा दिन पड़ा है आशु.... तुम अभी छोड़ दो... बहुत काम है...
अंशुल - मैं पापा के साथ सीहरी जा रहा हूँ माँ.... सोचा एक बार जाने से पहले आपको प्यार कर लू...
पदमा - आह्ह.. तुम कहीं नहीं जाओगे समझे? और उस आदमी के साथ जाने की जरुरत भी नहीं है..
अंशुल - मैं सिर्फ आरुषि के लिए जा रहा हूँ.. मैं उसे किसी ऐरे गेरे के साथ नहीं देख सकता...
पदमा - आह्ह... आशु.... तुम मुझे अकेला छोड़कर चले जाओगे?
अंशुल - शाम तक तो वापस आ जाऊंगा.. और दिन की भरपाई कर तो रहा हूँ....
पदमा - आह्ह.... आह्ह.... आह्ह....

सुबह के साढ़े छः बज चुके थे और अंशुल पदमा की बुर में उतरकर अभी अभी बाहर आया था पदमा हांफ रही थी उसके कपडे अस्त व्यस्त थे और बाल बिखरे हुए बुर से पानी बह रहा था जिससे लगता था की वो भी झड़ चुकी है अंशुल अपने लंड पर से वीर्य से भरा कंडोम निकाल कर गाँठ लगा चूका था और एक जगह रख दिया था, अंशुल नीचे अपने रूम में आ चूका था और पदमा अब तक अपनी हालत सुधार रही थी जब वो नीचे आई तो अपने साथ वो वीर्य से भरा हुआ कंडोम भी ले आई और बाथरूम के ऊपर रखी हुई एक बाल्टी जिसमे पहले से कई इस्तेमाल किये कंडोम पड़े थे उसे भी वहीं डाल दिया और काम में लग गई उसे अजीब ख़ुशी मिल रही थी उसका मन अंशुल के ख्यालों से भरा हुआ था फ्लिमी गाना गुनगुनाते हुए वो अपने काम में व्यस्त थी..

सुबह की चाय बन चुकी थी आज बालचंद को उठते उठते 9 बज गए थे चाय पीकर वो नहाने चला गया था और पदमा चाय लेकर अंशुल के पास आ गई थी अंशुल ने फिर से एक बार पदमा के गुलाबी लबों को अपना शिकार बना लिया था पदमा भी इस बार शायद शिकार होने की नियत से ही उसके पास गई थी जब तक नीचे बालचंद नाहधोकर त्यार हुआ अंशुल फिर से अपनी माँ पदमा के बुर का रस निकाल चूका था....

जब बालचंद जाने लगा तब अंशुल ने कहा - रुकिए मैं भी साथ चलता हूँ.. कहते हुए उसने अपनी बाइक निकाल ली और बालचंद बिना कुछ कहे उसके पीछे बैठकर सीहरी के लिए निकल पड़ा था.. दोनों के बिच तालमेल देखकर कोई भी बता सकता था की दोनों में जरा भी नहीं बनती.. मगर बालचंद ने रास्ते में पूछ ही लिया..
ब - पेपर केसा हुआ तुम्हारा?
अ - अच्छा हुआ है..
ब - सिर्फ अच्छे से कहा सिलेक्शन होता है..
अ - शायद निकल जाएगा..
ब - कहने में क्या जाता है? तयारी तो हमने भी बहुत की थी.. मगर पांच सीट पर पांच हज़ार लोग इंतिहान देंगे तो कितनी भी मेहनत कर लो कैसे होगा..
अ - चिंता मत कीजिये मैं चपरासी से अच्छा ही कुछ करूँगा..
इस बार बालचंद ने बात घुमा दी और यहां वहा की बाते करने लगा दोनों बाप बेटे के बीच जो मोन कई सालों से कायम था वो आज टूट गया था और दोनों आपस में खुलकर बतिया रहे थे...
बालचंद जिस औरत को भोग चूका था अंशुल उसे भोग रहा था और आगे भी इसी तरह भोगना चाहता था एक छत नीचे जो हो रहा था उसका होना अकासमात नहीं था..

अंशुल ज्ञानचंद के घर पहुंच चूका था ये घर गाँव के बाजार से लगता हुआ था जहा नीचे दूकान और ऊपर मकान जैसी प्रथा आम थी ऐसा ही एक घर ज्ञानचंद का था उसकी पत्नी शांति स्वाभाव की बहुत ही अशांत औरत थी लालच तो उसमे कूट कूट कर भरा हुआ था यही कारण था की वो इस बेमेल रिश्ते को मान गई थी और अपनी बेटी की ख़ुशी उसे नज़र नहीं आई..


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आरुषि छत पर अकेली उदास आँखों से खेतो की लहलाहती हुई फसल को देख रही थी और सोच रही की क्या वो इतनी बदकिस्मत है की उसके नसीब में मनचाहे पुरुष का सुख भी नहीं है.. बिन ब्याही लड़की को क्यू इस समाज में बोझ समझा जाता है? आरुषि में ऐसी कोई कमी नहीं थी जो उसको कोई ठुकरा सकता था मगर ज्ञानचंद का बड़बोलापन और शान्ति के लालच ने उसके लिएआये कई रिश्तो की लंका लगा दी थी.. आरुषि दिखने में सामान्य और सुशील थी मन की साफ.. वो ज्ञानचंद और शांती के घर कैसे पैदा हो गई कहा नहीं जा सकता, आज वो 28 साल की हो चुकी थी मगर अब तक कवारी थी.. आरुषि छत पर खड़ी खेत देख रही थी की पीछे से अंशुल ने उसकी आँखों पर अपने हाथ रख लिए और उसकी आँखे बंद कर दी..

आरुषि समझ नहीं पाई की आखिर कौन है जिसने उसकी आँखों को इस तरह अपनी हथेलियों से ढक लिया था आरुषि ने हाथो को महसूस किया मगर पता न चला सकी और फिर पूछ बैठी.. कौन?
अंशुल अपने होंठ आरुषि के कान के करीब लेजाकर धीमे से कहा - मैं...
आरुषि कई सालों से अंशुल से नहीं मिली थी मगर उसकी आवाज़ सुनते ही समझ गई की कौन है जिसने उसकी आँखे ढाप रखी है.. अंशुल का नाम लेकर तुरंत पीछे पलट गई और अंशुल को अपनी बाहों में भर लिया.... अंशुल को आरुषि से इस तरह के आलिंगन की उम्मीद नहीं थी आरुषि के उन्नत उरोज अंशुल के वक्ष में किसी मुलायम गद्दे की भाँती दब गए और आरुषि के बदन से उठती एक भीनी महक अंशुल की नाक में भर चुकी थी...

आरुषि - इतने सालों बाद याद आई है अपनी बहन की? हम्म?
अंशुल - तुम्हे भी तो याद नहीं आई मेरी? पहले तो कितना याद करती थी..
आरुषि - याद तो अब भी आती पर तुम हो की आने का नाम ही नहीं लेते.. कितने बड़े और प्यारे हो गए हो... बिलकुल किसी शहजादे की तरह खूबसूरत और सुन्दर....
अंशुल - तुम भी तो पहले से ज्यादा चमक रही हो..
आरुषि - मस्का मत लगाओ.. सब जानती हूँ तुमको... आखिर बड़ी बहन हूँ तुम्हारी..
अंशुल - अच्छा अब छोडो मुझे... कोई ऐसे गले लगे हुए देख लेगा तो पता नहीं क्या सोचेगा..
आरुषि - शर्मा रहे हो मुझसे?
अंशुल - तुमसे क्यू शर्माऊंगा? वैसे भी जो किसी बुड्ढे से शादी करने वाली हो उससे मैं क्यू शर्माउ?
आरुषि अंशुल को छोड़कर - तुम भी यहा मेरा मज़ाक़ उड़ाने आये हो ना..
अंशुल - नहीं.... मैं अपनी प्यारी बड़ी बहन को समझाने आया हूँ.. पता है ना जब विजु को पता चलेगा तो क्या हाल करेगा उस बुड्ढे का?
आरुषि उदासी से - छोडो आशु.... सारी उम्र यही थोड़े बैठे रहूंगी.. अब तो सब ताने मारने लगे है.. और अब मेरे लिए कोनसा सहजादा आने वाला है?
अंशुल - अगर आ जाए तो?
आरुषि - मज़ाक़ नहीं आशु.. हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हो सकता.... तुम छोटे भाई हो मेरे..
अंशुल - अरे बुद्धू मैं अपनी बात नहीं कर रहा हूँ.. वैसे तुम्हारा आईडिया बुरा भी नहीं है... हमारे बीच भी कुछ.......
आरुषि - सपने देखो बच्चू.... कुछ नहीं मिलने वाला मुझसे....
अंशुल फ़ोन निकालते हुए - अच्छा ठीक है यहां आओ.... देखो.....
आरुषि - कौन है ये?
अंशुल - पहले बताओ.... पसंद है या नहीं? दोस्त है शहर रहता है....
आरुषि बिना कुछ बोले अंशुल के सीने से चिपक जाती है और इस बार उसके गाल पर एक जोरदार चुबन अंकित कर देती है..
अरे अभी तो कह रही थी कुछ नहीं मिलने वाला और अब चुम्मे दे रही हो....
आरुषि शरमाते हुए - आशु....
अच्छा अब उस बुड्ढे को नीचे से भगाओ.. साले की शकल देकर मेरा खून खोल रहा है..
आरुषि - पर क्या वो मुझसे शादी करेगा?
अंशुल - वो मुझे पर छोड़ दो... तुम बस अब अपने इस प्यारे से चेहरे को एक मीठी से मुस्कुराहट से सजा लो....

आरुषि ने रिश्ते से साफ इंकार कर दिया था और अगले ही दिन अंशुल के जुगाड़ से किसी के कहने पर आरुषि और अंशुल के दोस्त विशाल के रिश्ते की बात उठ गई थी.. अंशुल ने विशाल से बातों ही बातों में अनजान बनकर विशाल को उसके और आरुषि के भाई बहन होने के बारे में बता दिया था आज विशाल अपने माँ बाप के साथ आरुषि को देखने अगुआ के साथ उसके घर आया था आरुषि रसोई में चाय बना रही थी वहीं बगल में खड़ा अंशुल उसे इशारे कर करके छेड़े जा रहा था.. आरुषि का मन प्रसन्न था ज्ञानचंद के बड़बोलेपन और शान्ति के लालची स्वाभाव के कारण शायद ये रिश्ता भी हाथ से निकल गया होता अगर अंशुल ने बीच में सब संभाला ना होता और विशाल को पहली नज़र में ही आरुषि पसंद न आई होती..
आमतौर पर कुछ समय बाद ऐसा होता है मगर आज कुछ बिशेष था विवाह की तिथि भी आज ही निकल गई थी अब से तीन माह बाद आरुषि का ब्याह तय हुआ था, आरुषि तो ख़ुशी से मचल उठी थी.. उसने अंशुल का पूरा चेहरा चूमते हुए लाल कर दिया था.. और कहा था आशु.... तुम सच मरे लिए किसी फ़रिश्ते जैसे हो.. और बदले में अंशुल ने सिर्फ अपने होंठों पर लगी लिपस्टिक उंगलिओ से हटाते हुए कहा था.. छोटे भाई के होंठो को कौन चूमता है.. आरुषि ने फिर से एक प्यारा सा चूमा करके अंशुल के होंठों को काट लिया था....
दोनों के जज़्बात बाहकने तो लगे थे मगर अंशुल ने अपने आप पर काबू रखा और इस चुम्मे को बस एक मीठी याद बनकर ही रह जाना पड़ा....


आज किस ख़ुशी में चिकेन बन रहा है? अंशुल ने पीछे से अपनी माँ पदमा को अपनी बाहों में भरते हुए पूछा..
पदमा ने अपने पीछे से अंशुल की शरारत समझते हुए कहा - थोड़ा दूर से.... भालू अंदर ही है.... और कोई ख़ास वजह नहीं है.. बस आज मन हुआ तो बना लिया..
अंशुल - अपने पति को भालू तो मत बोलो....
पदमा मुस्कुराते हुए - जानती हूँ कितनी इज़्ज़त करते हो तुम उसकी.. ये दिखावा ना किसी और के सामने करना.. अभी घर पर ही है वो...
अंशुल - कहो तो भालू को ठिकाने लगा देता हूँ....
पदमा - अच्छा? मार खाने का इरादा है आज?
अंशुल - आपके हाथो की मार भी कबूल है....
पदमा मुस्कुराते हुए - चुप बेशर्म.....
बालचंद अंदर से आवाज़ लगाते हुए - पदमा.... नीली कमीज देखी तुमने मेरी?
पदमा चिल्लाते हुए - वो अलमारी के ऊपर वाले हिस्से में है..
अंशुल नक़ल करते हुए - पदमा.... मेरी गुलाबी चड्डी देखी तुमने?
पदमा हँसते हुए - वो तुम्हरी पेंट के अंदर है.. चलो अब जाओ ऊपर... मैं आती हूँ खाना लेके..
अगले दिन सुबह के चार बज रहे थे बालचंद दवाई के नशे में बेसुध होकर सो रहा था और पदमा अंशुल की बाहों में बेपर्दा होकर लेटी थी अभी अभी दोनों ने काम क्रिया को पूजा था और अब एक दूसरे से छेड़खानी करते हुए खेल रहे थे पदमा अंशुल को चिढ़ा रही थी और अंशुल उसे बार बार प्यार से चुम रहा था..
पदमा - अंशुल क्या सच मेरे लिए ऐसा कुछ कर सकते हो?
अंशुल - मतलब?
पदमा - जो तुमने नीचे मुझसे कहा था...
अंशुल - क्या?
पदमा - यही की तुम भालू को ठिकाने....
पदमा इतना बोलते ही रुक गई और अंशुल पदमा को हैरानी से देखता हुआ सोचने लगा ये बात तो उसने मज़ाक़ में कही थी मगर पदमा के मन में अब तक वो बाते बैठी हुई थी..
अंशुल ने पदमा की बाते का जवाब नहीं दिया और उसे फिर से अपने आलिंगन में खींचते हुए भोगक्रिया के अधीन कर लिया.... आज अगहन की पूर्णिमा थी.. पदमा जब अंशुल के कमरे से बाहर निकली तो उसके चेहरे पर हंसी थी और एक संतुस्टी मानो उसे किसी जवाब का मन चाहा उतर मिला हो...


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Very engaging story.
 
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अध्याय 7
अगहन की पूर्णिमा


प्रभातीलाल घर के बाहर बने पेड़ के चबूतरे के ऊपर अपना सर पकड़कर बैठा था, सुबह उसका झगड़ा लाज़वन्ति से हुआ था लाजो (लाज़वन्ति) पेट से थी और ये अंशुल और लाजो के बिच उस रोज़ हुई घमासान ताबड़तोड़ चुदाई का परिणाम था जिसे लाजो ने बड़ी ख़ुशी से स्वीकार किया था प्रभतीलाल को शंशय था मगर लाजो के पेट में पल रहे बच्चे को अपना न मानने की उसके पास कोई वजह न थी.. कुदरत ने इतने सालों के बाद एक बार पहले भी उसे बाप बनाया था मगर लाजो का वो बच्चा होते ही मृत्यु को हासिल हो गया था.. सुबह प्रभतीलाल जब लाजो से नयना को लेकर किसी सम्बन्ध में झगड़ रहा था तब नयना घर में ही मोज़ूद थी.. लाजो अपनी जबान पर काबू न रख सकी और उसके मुँह आज इतने सालों बाद निकल ही गया की - नयना कोनसी तुम्हारी अपनी औलाद है.... जिस शराबी ने अपनी बेटी कहकर नयना को तुम्हे दिया था.. सुना है किसी जेल में बंद है.. बच्चा चुराते हुए पकड़ा था.. नयना को भी किसी अस्पताल से चुराया होगा उसने... बच्चे के मोह में तुमने जरा भी छान बिन नहीं की थी.. भूल गए?

नयना ने लाजो की ये बात सुन ली थी और उसके दिल पर एक और वज्र आ गिरा था लाजो ने क्या उसके दिल को अपने कदमो से रोदने का ठेका ले रखा है? पहले अंशुल के साथ वो सब करके और अब इन सब बातों से....
नयना बिन बताये कहीं चली गई थी.. प्रभतीलाल ने बहुत ढूंढा पर मिली नहीं गाँव में भी हर तरफ उसीकी तलाश हो रही थी मगर नयना का कोई अता पता नहीं था प्रभती सभी सहेलियों, सखियों और जानने वालो के घर पूछ आया था अब रोता हुआ अपना सर पिट रहा था उसे लाजो पर गुस्सा आ रहा था की उसने सुबह ऐसी बातें बोली ही क्यू? हो न हो नयना उन बातों को सुनकर ही वहा से गई होगी.. वरना आज तक उस बच्ची ने कोई गलत कदम नहीं उठाया था.. लाजो को अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आ रहा था वो दिल की साफ थी मगर आज उसके जुबान से जो बातें निकली थी वो उसे भी पीड़ा पंहुचा रही थी उसने तय किया था नयना से अपने किये की माफ़ी मांगेगी..

सुबह बीत चुकी थी और दोपहर का समय आ गया था.. नयना जेल के सामने खड़े थी उसने उस आदमी से मिलने की ठान ली थी जिसने नयना को प्रभती लाल के यहां अपनी बेटी बताकर दिया था.. नयना ने उस आदमी के बारे में पता किया था, नाम जब्बार था शराब के साथ और भी कई नशे करता था.. Police ने कई कानूनी दफाओ में उसे बंद करवा दिया था बीस बरस की सजा हुई थी उसे.... और पिछले 16 साल से जेल में बंद था.. हफ्ते में जिन दो दिनों में क़दी से मिला जा सकता था उनमे से एक दिन आज था.. आज क़दी से मिलने आने जाने की छूट थी.. एक स्थानीय वकील की मदद से नयना को जब्बार से मिलने का मौका मिल गया था.. नयना घबराते हुए लोहे की जाली के करीब खड़ी थी अंदर से एक नाटा सा आदमी संवाले रंग वहा आ गया देखने में खुंखार तो नहीं था मगर उसकी आँखों से लगता था जैसे उसने अपनी जिंदगी में हर नशा किया था मगर अब उसकी हालात बेहतर थी जेल में रहकर उसने कम से कम नशे से मुक्ति पा ली थी.. जब्बार 45 साल के करीब था शरीर में दुबला पतला मरियल मगर तेज़ दिमाग और नोटंकी में उस्ताद....
दिवार के पास सिपाही तैनात था उसी के थोड़ा दूर जाली से बाहर की तरफ नयना और अंदर जब्बार..
जब्बार - जी कहिए....
नयना की आँख नम थी और मन अस्त व्यस्त मगर उसने होने बिखरे दिल को समेटकर जब्बार से पूछा..
आज से 19 साल पहले एक बच्ची तुमने यहां से 22 कोस पश्चिम की ओर हुस्नीपुर में प्रभतीलाल को दी थी.. तुमने उसे कहा से चुराया था?
जब्बार दिमाग पर जोर डालकर कुछ सोचने लगा ओर फिर हँसता हुआ बोला - अरे.... बिटिया तुम तो बड़ी हो गई हो.. मेरी लाड़ली बिटिया... मैंने तुम्हे कहीं से चुराया नहीं था तुम तो मेरी अपनी बिटिया हो...
नयना को जब्बार की बाते सुनकर गुस्सा आ रहा था वो वापस बोली - देखो अगर तुम सच सच बताओगे तो ये वकील साब तुम्हे बाहर लाने के लिए कोशिश कर सकते है.. तुम जल्दी बाहर आ जाओगे..
जब्बार - बिटिया सच कह रहा हूँ... तुम्हारी कसम.. तू मेरा अपना खून है.. मेरी बिटिया...
नयना - देखो नाटक मत करो.. तुम्हे जो चाहिए मैं दिलवा सकती हूँ.. मगर मुझे सच जानना है.. तुम्हे चुप रहकर भी कुछ नहीं मिलने वाला... सच बोलकर तुम जो चाहो पा सकते हो...
जब्बार - जो मागूंगा दोगी....
नयना - हां....
जब्बार - बिरयानी चाहिए.... रायते के साथ..
नयना - ठीक है पर जेल में कैसे??
जब्बार - ये जेल है यहां सब मुमकिन है... जब्बार ने पास खड़े सिपाही को पास आने इशारा किया और नयना से कहा.. मेरी एक साल की बिरयानी के पैसे सिपाही जी की जेब में रख दो....
नयना - क्या?
जब्बार - क्या नहीं.... हां.... जल्दी करो... तुम्हे अपने घरवालों के बारे में जानना है या नहीं..
नयना - पर मेरे पास अभी इतने ही पैसे है..
जब्बार - कितने है?
नयना - 12-13 हज़ार...
जब्बार - सिपाही की जेब रख दो....
नयना ने पास खड़े सिपाही को पैसे दे दिये..
जब्बार खुश होता हुआ सिपाही को इशारे से वापस भेज दिया और मुँह का थूक गटकते हुए धीमे से बोला चलो महीने भर का जुगाड़ तो हुआ...
नयना - अब बताओ कहा से चुराया था मुझे?
जब्बार - श्यामलाल अस्पताल, विराटपुर, वार्ड-3 बेड नम्बर-7 दिन-बुधवार दिनांक - ##-##-####...
नयना ने अपने फ़ोन में जब्बार की सारी बाते रिकॉर्ड कर ली थी.. वो बाहर आ गई उसका दिल जोरो से धड़क रहा था.. उसने बाहर से एक रिक्शा पकड़ा और विराटपुर के लिए चली रिक्शा विरातपुर में श्यामलाल अस्पताल के आगे रुका था.. नयना ने सबसे पहले अस्पताल के बाहर एटीएम से पैसे निकलवाये और रिक्शा वाले को भाड़ा देकर अस्पताल के अंदर आ गई.. ये एक सरकारी अस्पताल था..

नयना पिछले एक घंटे से अस्पताल की टूटी हुई कुर्सी पर बैठे इंतजार कर रही थी एक मोटी सी भद्दी दिखने वाली महिला ने उसे बैठने को कहा था और अंदर चली गई थी जब वो बाहर आई तो नयना ने वापस उससे वहीं सवाल पूछ लिया जो पहले पूछा था.. जब्बार से मिली डिटेल बताते हुए नयना ने उस औरतों से उस रोज़ बेड नम्बर 7 पर एडमिट महिला के बारे में पूछा तो वो औरत मुँह से गुटका थूकती हुई नयना पर चिल्ला कर बोली - कहा रिकॉर्ड ढूंढ़ रहे है.. बैठी रहो चुप छप जा चली जाओ यहां से... कितना काम है पड़ा... सरकारी अस्पताल में लोग काम भी करते है? नयना ने मन में यही बाते बोली थी वो देख रही थी कैसे वो औरत अपने साथ बैठी दूसरी औरत के साथ पान मसाला खाती हुई लूडो खेलने में व्यस्त थी.. मरीज़ तो भगवान भरोसे थे.. मगर जहा मरीज़ खुद इसी इलाज के लायक हो वहा उनका ऐसा ही इलाज होता है.. नयना ने टीवी में देखा था अमेरिका के सरकारी अस्पताल और उसकी खुबिया.... और आज वो यहां सरकारी अस्पताल देख रही थी.. मगर अमेरिका में लोग भी अलग है.. पढ़े लिखें, अपने हक़ अधिकारों को लेकर सजग और ईमानदार, खुले दिमाग और विचारों वाले.. सरकार से सवाल पूछने वाले मगर यहां? यहां तो पढ़ाई लिखाई का कोई महत्त्व ही नहीं है.. जो पढ़ाया जाता उससे बच्चे का नैतिक विकास तो दूर उसमे खुदसे सोचने समझने की काबिलियत तक नहीं आ पाती, जाती और धर्म के मामले में उलझकर विकास का गला घुट जाता है.. राजनितिक लोग राजनितिक लाभ के लिए लोगों को गुमराह करते है और वो आसानी हो भी जाते है.. जब अपने दिमाग से किसी चीज़ की परख ही नहीं कर पाएंगे, सही गलत ही नहीं जांच पाएंगे तो इसी हाल में रहना होगा.. और क्या? नयना के दिमाग में यही चल रहा था मगर उसे अब बैठे हुए काफी देर हो चुकी थी उसने फिर दूसरा रास्ता अपनाया..
नयना ने एक सो का नोट उस औरत के सामने रखे रजिस्टर के नीचे रखा और प्यार से कहा - जरा अर्जेंट है देख लीजिये ना.. औरत ने सो का नोट अपनी जेब में डाल लिया और नयना को अपने पीछे आने का इशारा किया..
नयना औरत के पीछे पीछे रिकॉर्ड रूम में आ गई.. ये बेसमेंट में था.. साल #### के माह ### का एक बड़ा पोटला निकाल कर सामने टेबल पर रख दिया और उसपर जमीं धूल साफ करती हुई गाँठ खोल दी.. एक रजिस्टर निकलकर नयना को देती हुई बोली जल्दी से देखकर वापस दो..
नयना रजिस्टर लेकर पन्ने पलटते हुए उस पन्ने पर पहुंची जहाँ उस दिन की सारी एंट्री लिखी हुई थी जिस दिन के बारे में जब्बार ने जिक्र किया था.. नयना ने पहले अपने फ़ोन उस पेज की तस्वीर ली फिर पन्ने पर लिखी एंट्री को गौर से देखने लगी....
वार्ड नंबर -3 बेड नम्बर -7 पेशेंट नेम - पदमा देवी पति का नाम - बालचंद..... पता - ******* एडमिट होने का कारण - प्रेगनेंसी.... नयना के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गई थी.. उसे यकीन नहीं हो रहा था जो उसने अभी अभी पढ़ा था क्या वो सच था? या कोई मज़ाक़ जो जब्बार ने उसके साथ किया था?
हो गया? पढ़ लिया? लाओ दो.. उस औरत ने वापस पोटली को वहीं बांधकर रख दिया.. नयना अस्पताल से बाहर आ गई थी उसकी आँखों में आंशू की धारा बह चली थी जो अब बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी तो क्या वो अंशुल की..... नहीं नहीं... ऐसा नहीं हो सकता... उसने जो अभी अभी देखा उसपर नयना को यक़ीन नहीं आ रहा था और ना ही वो यक़ीन करना चाहती थी.. ऐसा कैसे हो सकता है? इतना बड़ा संयोग? नहीं नहीं.. ऐसा नहीं हो सकता.. मगर क्या कागज झूठ बोलते है? पर ऐसा कैसे मुमकिन है? वो तो अंशुल से बेताशा प्यार करती है और आज की रात अंशुल से ब्याह का वादा था उसका.. आखिरी बार अंशुल ने भी उसे आज रात ब्याह करने की बात कही थी.. पर क्या अंशुल उसका बड़ा भाई... नहीं ये नयना क्या सोच रही है? ऐसा नहीं है... नयना भारी कश्मकश और उलझनों से जूझती हुई अस्पताल से बाहर आकर एक जगह बैठ गई थी और रोये जा रही थी उसकी आँखों से आंसू का सागर बह जाना चाहता था.. वो सोच भी नहीं सकती थी की ऐसा कैसे हो सकता है? अंशुल जिसे वो दिल और जान से चाहती है अपना मान चुकी है वो उसको सगा बड़ा भाई है.. उसने अपने बड़े भाई से प्यार क्या है.. नयना के नयन आंसू के साथ उसके मन की हालात भी बाहर निकाल रहे थे...

अंशुल आज नयना को अपना बनाने के इरादे से घर से निकला था वो जब नयना के घर पंहुचा तो लाजो ने उसे सारा वृतांत कह सुनाया.. नयना सुबह से किसी का फ़ोन भी नहीं उठा रही है... लाजो की आँखों में आंसू थे मगर अंशुल जानता था की नयना इस वक़्त उसे कहा मिल सकती है अंशुल ने लाजो के गर्भवती होने की बात भी पता चली थी जिसपर उसने लाजो को अपने सीने से लगाते हुए अपना और बच्चे का ख्याल रखने की नसीहत भी दे दी.. अगर इस वक़्त नयना का ख्याल ना होता तो अंशुल और लाजो के बीच सम्भोग होना तय था.. लाजो की आँखों में नयना के दुख के साथ साथ अंशुल से कामसुख की इच्छा भी थी.. मगर इस इच्छा को अंशुल ने सिर्फ एक चुम्बन में समेटकर रख दिया..
अंशुल जब नयना के घर से बाहर निकला तो उसे सामने से प्रभतीलाल आते दिखे और वो रुक गया.. दोनों के बीच मोन था.. दोनों को समझ नहीं आ रह था की कैसे वो बात की शुरुआत करे और एक दूसरे के सामना करे..
अंशुल प्रभतीलाल को नस्कार किया तो प्रभती लाल ने भी विचलित मन से उसका जवाब दे दिया.. नयना की बाते होने लगी.. अंशुल ने प्रभती लाल से कहा की वो चिंता न करे अंशुल उसे खोज लाएगा.. अ नयना का प्रेम प्रभती लाल जानता था मगर उसे अब अंशुल के बारे में भी पता चला था.. दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे है.. प्रभती लाल की आँखों में कुछ सुकून आया था..

शाम हो चुकी थी अंशुल ने पदमा से आज घर नहीं आने का कोई बहाना बना लिया था जिसपर पदमा बड़ी नाराज़ हुई थी मगर अंशुल ने उसे समझा लिया था अंशुल गाँव से बाहर आ चूका था एक एक करके उन सारी जगहों पर जा आया था जहाँ नयना मिल सकती थी.. फिर अंशुल के दिमाग में कुछ ख्याल आया और वो अपनी बाइक स्टार्ट करके किसी ओर चल दिया... एक जगह पहुंच कर उसने बाइक रोक दी.. रास्ता सुनसान था सांझ ढल चुकी थी पूर्णिमा के पुरे चाँद ने रौशनी की कोई कमी नहीं रखी थी इस रौशनी में अंशुल साफ साफ सब देख सकता था सडक के दोनों तरफ पेड़ थे जैसे जंगल हो... अंशुल आगे बढ़ गया था...

अंशुल के बाहर रहने से पदमा के स्वाभाव में परिवर्तन आ गया था वो आज चिड़चिड़ी सी लग रही थी बालचंद ने उसका मूंड देखकर उससे उलझना जरुरी नहीं समझा ओर दूर ही रहा यही उसके लिए सही भी था.. आज अंशुल नहीं था मगर फिर भी पदमा को चैन नहीं आ रहा था ओर वो बेचैन हो रही थी उसने आज भी बालचंद को दवाई दे दी थी जिससे बालचंद नींद में खराटे मार रहा था ओर पदमा अंशुल के रूम में जाकर उसी बिस्तर पर जहाँ वो अंशुल के साथ काम क्रीड़ा किया करती थी लेट गई थी ओर अंशुल की तस्वीर अपनी छाती से लगा कर चुत में उंगलियां करते हुए सोने की कोशिश कर रही थी.. पदमा को महसूस हो रहा था की अंशुल उसके लिए कितना जरुरी बन चूका है और अब वो अंशुल के बिना नहीं रह सकती.. पदमा अंशुल के प्यार में पागल हो चुकी थी ऐसा उसकी हालात देखकर कहा जा सकता था..

नयना की आँखे नम थी आज का सारा दिन उसने अपनी हक़ीक़त पता लगाने में लगाया था और किसी का फ़ोन नहीं उठा रही थी इस वक़्त जंगल में उसी पेड़ के नीचे अकेली बैठी थी जहाँ उसने अपने लिए मन्नत मांगी थी मन में चलती कश्मकश और उथल पुथल के बीच उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे? अंशुल उसका अपना बड़ा भाई निकलेगा ऐसा उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.. कैसे सपने देखे थे उसने अंशुल के साथ जिनमे वो अपनी मर्यादा लांघ चुकी थी.. हर रात वो अंशुल के साथ हम बदन होने के ख्याब देखती थी मगर आज उसे उन ख़्वाबों के लिए अजीब लग रहा था ये पश्चात् नहीं था मगर वैसा ही कुछ था जिसे बयान करना व्यर्थ है.. नयना ने अच्छी तरह जांच पड़ताल की थी... तब जाकर उसने ये माना था की जब्बार जो कह रहा था वो सही और सत्य था.. जब पहली बार नयना अंशुल के घर गई थी तब बालचंद ने भी ये प्रसंग छेड़ा था जिसमे अस्पताल से उनकी बच्ची के चोरी होने का जिक्र था मगर वो इतना विस्तृत नहीं था जिससे नयना सारा माजरा समझ पाती.. नयना कुछ तय करने का मन बना रही थी.. इस चांदनी रात की रौशनी में उसका दुदिया रंग चमक रहा था जिसे अंशुल ने दूर से ही देख लिया था.. नयना अपने ख्यालों में इतनी खोई हुई थी उसे महसूस भी नहीं हुआ की अंशुल उसके बेहद नज़दीक आ कर बैठ चूका था..

लो.. खा लो... अंशुल ने नयना की तरफ एक खाने का पैकेट बढ़ाते हुए कहा तो नयना अपने ख्याल से बाहर आते हुए चौंक गई.. आप....? यहाँ...
अंशुल ने खाने का पैकेट फाड़ कर चम्मच से एक निवाला नयना के होंठों की तरफ खाते हुए कहा - क्यू यहां तुम ही आ सकती हो? चलो मुँह खोलो... वरना खाना ठंडा हो जाएगा.. अंशुल रास्ते में पड़े एक रेस्टोरेंट से राजमाचावल ले आया था उसे यक़ीन था की नयना सुबह से भूखी प्यासी होगी और अंशुल के शादी से इंकार करने के कारण ही घर से चली गई होगी.. अंशुल नयना को अपना बनाने आया था.. अंशुल को पदमा ने नयना से शादी करने के लिए पहले से परमिशन दे रखी थी और उसके लिए अंशुल को बोला भी था मगर अंशुल ही अब तक नयना से शादी करने से भाग रहा था.. मगर अब वो नयना का प्यार स्वीकार कर चूका था और पदमा के साथ नयना को भी अपना बनाकर रखना चाहता था वहीं पदमा में आये परिवर्तन का उसे इल्म नहीं था पदमा अब अंशुल के पीछे पागल हो रही थी..
नयना ने बिना कुछ बोले पहला निवाला मुँह में ले लिया और खाने लगी.. धीरे धीरे अंशुल ने उसे खाना खिला दिया नयना और अंशुल ने उस दौरान कोई ख़ास बात चीत नहीं हुई थी.. बस अंशुल नयना की तरह देखता हुआ प्यार से उसे खाना खाने की गुजारिश करता रहा और नयना उसकी मिन्नतो को मानते हुए खाना खाती रही.. नयना का दिल जोरो से धड़क रहा था उसके सामने उसका प्रेमी था जिसमे उसे अब अपना बड़ा भाई नज़र आ रहा था.. कुदरत का केसा निज़ाम है? अगर इस वक़्त नयना को ये मालूम ना होता की वो अंशुल की छोटी बहन है तो वो अंशुल को अपनी बाहो में लेकर बहक चुकी होती और प्यार सागर में दोनों का मिलन हो चूका होता मगर उसे ये ख्याल अंशुल से दूर ले जा रहा था की नयना तू ये नहीं कर सकती.. ये जान लेने के बाद की अंशुल तेरा सगा भाई है तू उसके साथ ये रिस्ता नहीं रख सकती.. नयना को समाज के नियम कायदे और रितिया याद आने लगी थी खुद पर शर्म आने लगी थी उसका दिल कितनी बार टूटेगा वो सोच रही थी और अब उसकी आँख फिर से नम हो चली थी जिसे अंशुल ने अपने हाथो से आंसू पोचकर साफ किया था.. खाने के बाद पानी पीते हुए नयना ने अंशुल से कहा - आपको कैसे पता मैं यहां हूँ....
अब बीवी कहा है ये तो पति को मालूम ही होना चाहिए. अंशुल ने अपना रुमाल निकलकर नयना के होंठो को साफ करते हुए जवाब दिया था जिसपर नयना लज्जा गई थी... मगर क्यू? उसने तो अब अंशुल से दूर होने का फैसला किया था.. मगर अंशुल का प्रेम नयना के मन में इतना पक्का था की वो उसे निकालने में असमर्थ थी..

नयना शर्म से लाल थी और जमीन की ओर देख रही थी अंशुल ने उसको चेहरा उसकी ठोदी से उंगलि लगा कर ऊपर उठाया ओर उसके गुलाब सुर्ख लबों पर अपने लब रख दिए.. इस चांदनी रात में दोनों इस बड़े से पेड़ के नीचे एक दूसरे के प्यार में घुल चुके थे नयना के लबों को चूमते ही अंशुल ने उसके दिमाग में चल रहे सारे ख्याल को शून्य कर दिया नयना बस इसी पल में होकर रह गई जहाँ वो अंशुल को अपने लबों के शराबी जाम पीला रही थी.. नयना ने अंशुल को इतना कसके पकड़ा हुआ था जैसे कोई छोटा बच्चा डर से किसी बड़े से चिपक जाता है.. अंशुल ने चुम्बन की शुरुआत की थी मगर नयना उसके लबों को ऐसे चुम रही थी जैसे जन्मो की प्यासी हो उसने सब भुला दिया था.. अंशुल की बेवफाई ओर उसके रिश्ते को भूल चुकी थी.. अब सिर्फ उसे इसी पल को जीना था जिसमे उसे उसका प्यार अपनी बाहों में लिए खड़ा था ओर अपना बनाने को आतुर था..

नयना अपने दोनों हाथ अंशुल जे गले में डालकर उसके लबों को प्रियसी बनकर चुम रही थी ओर अपने प्रियतम को अपनी कला से भावविभोर कर रही थी अंशुल नयना की इस हरकत पर मन्त्रमुग्ध हो रहा था.. अंशुल ने नयना की कमर में हाथ डालकर उसे हवा में उठा लिया था ओर दोनों के बदन आपस में ऐसे चिपक गए थे जैसे की दोनों एक ही हो.. इस चांदनी रात में नयना की लहराती जुल्फे किसी फ़िल्मी दृश्य का काम कर रही थी नयना ओर अंशुल ने जी भरके एक दूसरे को चूमा ओर फिर अंशुल ने चुम्बन तोड़कर नयना के चहेरे ओर गर्दन पर अपने चुम्बन की बौछार शुरु कर दी अंशुल की मदमस्त प्रेमी की तरह नयना के जिस्म का स्वाद ले रहा था गर्दन चाटने पर नयना ओर भी ज़्यदा अंशुल की तरफ मोहित होने लगी थी वो भूलने लगी थी अंशुल उसका बड़ा भाई है नयना को अंशुल में सिर्फ अपना प्यार नज़र आ रहा था पहली नज़र वाला प्यार और नयना कब से यही तो चाहती थी की अंशुल उसे अपना बना ले आज हो भी तो वहीं रहा था.. नयना कैसे अपने आप पर काबू रखती क्या इतना गहरा प्यार एक पल में ख़त्म किया जा सकता है? नहीं ऐसा नहीं हो सकता.. नयना कैसे अंशुल से दूर जा सकती थी अंशुल ने उसे पूरी तरह अपने बस में लिया हुआ था..

गर्दन और कंधे चूमने के बाद एक बार फिर से अंशुल नयना के लबों पर आ गया और उसके गुलाबी होंठ को बड़े प्यार से चूमने लगा... नयना भी अंशुल के लबों को अपने दांतो से खींचते हुए चुम रही थी और बार बार अंशुल की जीभ को अपनी जीभ से लड़ा रही थी मानो वो दोनों की कुस्ती करवाना चाहती हो.. चांदनी रात की रौशनी में जंगल में इस पेड़ के नीचे दोनों चुम रहे थे की किसी जानवर के आने की आहट हुई तो दोनों का चुम्बन एक बार फिर टूट गया.. अंशुल और नयना आपस में चिपके हुए थे दोनों की नज़र एक साथ जानवर पर गई तो थोड़ी दूर कुत्ते नज़र आ रहे थे.. एक कुत्ता कुतिया के पीछे चढ़ा हुआ उसके साथ सम्भोग कर रहा था और कुतिया के मुँह से आवाजे आ रही थी.. अंशुल और नयना ने ये नज़ारा देखकर एक दूसरे की तरफ देखा फिर हंसने लगे जैसे आगे होने वाली प्रकिया को पहले ही जान चुके हो..

अंशुल ने अपने एक हाथ से नयना का एक कुल्हा पकड़ लिया और जोर से मसलने लगा जिससे नयना के मुँह से भी सिस्करी निकाल पड़ी.. वो शिकायत भरी आँखों से अंशुल को देखने लगी मानो पूछ रही हो अंशुल क्या तुम यही सब कर लोगे? अंशुल ने नयना को अपनी गोद में उठा लिया और पेड़ के पीछे दाई और घास की सेज पर लिटा दिया जहाँ साफ साफ चाँद की रौशनी पहुंच रही थी जहाँ से सारा नज़ारा बिना किसी परेशानी या रुकावट के देखा जा सकता था मगर ये देखने वाला वहा था कौन? कोई भी तो नहीं था.. नयना के मन में अंशुल का चेहरा देखकर फिर से वहीं ख्याल आने लगे थे.. नहीं नहीं.. ये मैं क्या कर रही हूँ? अंशुल मेरा भाई है.. सगा भाई.. और में उसके साथ ही.. नहीं.. मैं ये नहीं कर सकती.. ऐसा नहीं हो सकता.. मुझे अंशुल को रोकना होगा.. हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हो सकता.. ये सब पाप है.. गलत है.. नयना के मन जब तक ये सवाल आये तब तक उसके बदन से अंशुल ने कुर्ती उतार ली थी और अब नयना अंशुल के सामने घास पर सलवार के ऊपर ब्रा पहने लेटी हुई थी.. चाँद की रौशनी में नयना का गोरा बदन सोने की तरह चमक रहा था.. विकसित चुचे उसके छाती पर काले रंग की ब्रा से ढके हुए थे जिन्हे अंशुल ब्रा के ऊपर से मसल रहा था और चुम रहा था.. नयना अपने मन की गहराइयों में इस मिलने का मज़ा लेते हुए अपने मन की उपरी परत पर आज हुए खुलासे के घाव से परेशान थी.. वो समझ नहीं पा रही थी उसे क्या करना है वो एक पल कुछ तय करती और फिर अगले पल कुछ और..

अंशुल ने नयना की ब्रा के साथ ही अपनी शर्ट भी उतार दी और अब दोनों कमर से ऊपर नंगे थे अंशुल पूरी चाहत के साथ नयना को अपना बनाने में लगा था वहीं नयना अपने बदन की जरुरत और हालात से मजबूर थी वो चाहती थी तो अंशुल से दूर होना थी मगर उसका जिस्म उसे इस बाते की इज़्ज़त नहीं दे रहा था.. अंशुल नयना के छाती पर उभार को अपने मुँह से चाट रहा था और बार बार नयना की निप्पल्स को अपने मुँह में भरकर चूसता हुआ उसकी मादक सिस्कारिया सुन रहा था पूरा माहौल चुदाईमय बन चूका था जहाँ थोड़ी दूर कुतिया एक कुत्ते से चुदती हुई चीख रही थी वहीं यहां नयना जो अंशुल से दूर होना चाहती थी वो अंशुल के सर को सहलाती हुई अपने चुचे उसके मुँह में दे रही थी जिसे अंशुल बड़े ही प्यार से चूस रहा था और निप्पल्स दांतो से काटते हुए खींच रहा था.. अंशुल ने नयना बोबो को दबा दबा के और चूस चाट के लाल कर दिया था नयना की छाती पर गहरे निशान पड़ने लगे थे जिसमे नयना को आनंद की अनुभूति हो रही थी मर्द का प्यार उसे पहली बार मिला था..

अंशुल फिर से नयना के होंठो पर आ गया और नयना ने उसे फिर से अपने दोनों हाथ से अपनी मधुशाला का प्याला भरके अंशुल को अपने होंठ से पिलाना शुरू किया.. अंशुल का एक हाथ धीरे धीरे नयना के चेहरे से होता हुआ उसके कंधे फिर चुचे फिर नाभि और फिर नयना की सलवार में जा घुसा नयना को इसका अंदेशा भी नहीं था की अंशुल ने अपना एक हाथ उसकी सलवार में डाल दिया था वो तो बस होने लबों से अंशूल को चाहत के जाम पिलाने में मस्त थी उसके लिए यही सब अभी हो रहा था..
अंशुल का हाथ सलवार में नयना के पैर के जोड़ तक चला गया जहाँ नयन की बुर पनिया रही थी नयना की पैंटी बिलकुल गीली हो चुकी थी और बुर को छूने पर नयना और ज्यादा उत्तेजित होने लगी थी उसने अंशुल को और कसके जकड लिया था.. अंशुल के हाथ ने नयना की बुर को तालाशा तो अंदाजा लगाया की नयना की बुर बिलकुल साफ सुथरी है जिसपर अभी तक बाल का कोई नामो निशान नहीं है हलके से दो चार बाल आये भी है तो वो बुर के ऊपर मुहाने पर.. इतनी प्यारी और रसदार बहती चुत को अंशुल चोदने की इज़ाज़त लेने नयना की आँखों में देखता हुई उसकी बुर सहलाने लगा.. मगर नयना की आँख बंद थी वो अंशुल को पकडे हुए उसके चेहरे और आस पास के हिस्से चुम रही थी.

अंशुल ने अपना हाथ नयना की बुर से हटा लिया और फिर मादकता के नशे में डूबी हुई नयना को देखते हुए उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार नीचे सरका दी.. आँख बंद करके अंशुल की बाहों में पड़ी नयना अपने साथ होते इस सब घटनाक्रम को महसूस कर रही थी.. उसके बदन पर सिर्फ बुर के पानी से भीगी हुई पेंटी ही बची थी जिसे भी अंशुल ने अगले ही पल उसके बदन से अलग कर दिया था.. अंशुल की बाहों में अब एक पूरी नंगी जवान खूबसूरत हसीन लड़की लेटी हुई थी जो अपने हाथो से अपना चेहरा छुपाने की कोशिश कर रही थी.. अंशुल ने भी अपनी जीन्स उतार कर एक तरफ रख दी और वो भी अपनी प्राकृतिक अवस्था में आ गया.. अंशुल ने नयना के पैरों को खोला और उसकी गुलाबी चिकनी साफ बुर पर अपने होंठ रख दिए..


अंशुल को चुदाई कला का पूरा ज्ञान था उसने जो अनुभव पदमा धन्नो सुरीली से लिया था वो आज काम आ रहा था और यही कारण था की नयना जो पहले अंशुल से दूर जाने की सोच रही थी वो अब उसके सामने बेबस और लाचार बनकर लेटी हुई उसकी हर हरकत को प्यार कर रही थी.. अंशुल ने जैसे ही नयना की बुर पर अपने होंठ रखे नयना के मुँह से आह्ह... निकल गई और फिर नयना ने अंशुल के सर को अपने दोनों हाथो से एकसाथ अपनी बुर पर दबा लिया मानो कह रही को की अंशुल चुसो मेरी बुर को चाटो.. खा जाओ इसे.. मैं तुम्हे अपनी कच्ची बुर पर पूरा हक़ देती हुई.. मेरी बुर का घमंड तोड़ दो.. अंशुल बुर चाटते हुए उससे छेड़खानी कर रहा था जिससे नयना कुछ ही पलो में अंशुल के मुँह में झड़ गई और तुरंत बाद पेशाब करने लगी जैसे उसका अपने शारीर पर कोई नियंत्रण ही नहीं था.. अंशुल का मुँह नयना ने अपने बुर से निकले पानी से भर दिया जिसे अंशुल को पीना पड़ा.. नयना शर्म से लाल हो चुकी थी और कुछ हद तक झड़ने के बाद कामुकता के जाल से हलकी बाहर आई थी.. अंशुल भी अब अपनी लंड की ताकत से नयना को रूबरू करवाना चाहता था उसने नयना की बुर को चाटकर साफ किया और फिर अपने लोडे को उसकी बुर की दरार पर रगढ़ते हुए नयना का चेहरा देखने लगा जिसपर दुविधा के निशान थे जैसे वो इस मादकता के पलो में भी कुछ सोच रही हो..

अंशुल के लंड में पत्थर सी अकड़न थी जो पूरा खड़ा था अंशुल ने नयना की चुत पर लोडा रगड़ने के बाद उसके छेद के मुहने पर टिका दिया और दबाब बनाकर अंदर करने की कोशिश करने लगा.. नयना की बुर में पहली बार लंड वो भी अंशुल के जैसा बड़ा मोटा और मजबूत... नयना की हालात खराब हो रही थी उसके मन में चलते विचारो के बिच अंशुल ने उसकी बुर में अपना सुपाडा घुसा दिया था जिससे नयना सिसकने लगी.. नयना को होश आया की उसने तो अंशुल से दूर रहने का फैसला किया था फिर क्यू वो अपने बदन के बहकावे में आकर अपने सगे बड़े भाई के साथ सम्भग करने पर उतारू हो चुकी है? क्या उसके बदन की आग रिस्तो पर हावी हो गई है? नयना ऐसा नहीं कर सकती..... हां ये पाप है... ये सोचते हुए नयना ने अब अंशुल का विरोध शुरू कर दिया और अंशुल के लंड को पकड़ कर अपनी चुत से उसका सुपाडा बाहर निकलने की कोशिश करने लगी मगर अब तक बहुत देर हो चुकी थी.. अंशुल ने अगले ही पल एक झटके में अपना आधे से ज्यादा लंड नयना की बुर में घुसा दिया और नयना के दोनों हाथ पकड़ कर ऊपर की और उठा दिए.. नयना बिलकुल विचार शून्य हो गई उसे समझ नहीं आया की वो क्या करें पहली चुदाई की तकलीफ के बीच अंशुल की मनमानी ने उसे किसी लायक नहीं छोड़ा... उसकी आँख चौड़ी होगई जो उसे हो रहे पहली चुदाई के दर्द को बयान करने में सक्षम थी.. नयना की बुर से दो-तीन खून की बून्द भी बाहर आ गई थी जो बता रही थी नयना की ये पहली चुदाई है और अब तक उसने अपनी बुर में लोकी खीरा केला गाजर मूली कुछ नहीं डाला है...

आखिरकार नयना की इज़्ज़त अंशुल ने अपने नाम कर ही ली.. नयना अंशुल को देखते हुए सिसकियाँ ले रही थी और सोच रही थी की वो कैसी लड़की है जो अपने सगे भाई को अपनी इज़्ज़त दे रही है.. उससे बुरी लड़की शायद ही कोई और हो.. अंशुल ने नयना की बुर कुटाई अभियान की शुरुआत कर दी थी.. अंशुल रह रह कर झटके मारता हुआ नयना को चोदने लगा था हर झटके पर नयना का बदन ऊपर से नीचे तक पूरा हिल जाता और नयना मादक सिस्कारिया भरती हुई आवाजे इस माहौल में कामुकता के फूल खिला रही थी... एक तरफ कुतिया चुदते हुए आवाजे कर रही थी दूसरी तरफ नयना.. अंशुल और नयना इस चांदनी रात में ऐसे मिल रहे थे जैसे उसका मिलन ही दोनों का एक मात्र लक्ष्य हो.. नयना की चुत खुल चुकी थी और अब पानी छोड़ने लगी थी जिससे अंशुल का लंड आराम से अंदर बाहर हो रहा था और अब नयना अंशुल का कड़क तूफानी लंड चुत में मज़े से लेने लगी थी पर अब भी उसे वहीं ख्याल सताये जा रहा था..

नयना के दिमाग पर चुदाई से ज्यादा जब रिश्ते का ख्याल हावी हुआ तो उसने अंशुल को धक्का देकर अपने से दूर कर दिया जिससे अंशुल का लंड बुर से बाहर निकल गया नयना की आँख में आंसू आ गए थे वो कैसी लड़की है? इतना बड़ा पाप? इसका प्रायश्चित कैसे होगा सोचने लगी.. अंशुल नयना का ये बर्ताव समझ नहीं पाया था वो कुछ पल के लिए ठहर गया मगर उसके दिमाग में नयना को पाने की चाहत उफान मार रही थी.. नयना पलट गई थी उसकी पीठ अब अंशुल के सामने थी.. नयना अपनी गलती पर रोते हुए जैसे ही उठने की कोशिश करने लगी अंशुल ने नयना को उसी तरह से कमर पर हाथ लगाते हुए पकड़ लिया और घोड़ी की पोजीशन में लाते हुए फिर अपना लोडा नयना की चुत के अंदर घुसा दिया.. नयना को इस बात का अंदाजा भी नहीं था की अंशुल कुछ ऐसा करेगा.. वो बेचारी तो उठकर अपने कपडे पहनना चाहती थी मगर अब घोड़ी बनकर अपने बड़े भाई से चुद रही थी.. अंशुल नयना की कमर पकड़ कर झटके मारता हुआ उसे किसी बाजारू की तरफ पेल रहा था.. नयना के मन में वहीं सब चल रहा था ऊपर से चुदाई का सुख भी उसे मिल रहा था तो उसके मन की हालात जान पाना कठिन था.. अंशुल ने एक हाथ से नयना के लहराते हुए बाल पकड़ लिए थे और दूसरे से कमर थामे हुए था.. उसका लंड नयना की बुर में तहलका मचाये हुए अंदर बाहर हो रहा था.. अब लगभग कुत्ते कुतिया वाली पोजीशन में ही दोनों थे..

नयना के मुँह से सिस्कारिया और आँख से आंसू आ रहे थे, उसे अपने प्यार से पहले मिलन के सुख के साथ-साथ रिश्ते में बड़े भाई से चुदने का दुख भी हो रहा था.. नयना फिर से झड़ चुकी थी और अब अंशुल भी उसी राह पर था उसका झड़ना भी कुछ ही देर में होने वाला था वो नयना की बुर पर बार बार ताकत के साथ हमला कर रहा था जिससे नयना की आवाज और तेज़ होने लगी थी.. पहली बुर चुदाई वो भी इतनी बेरहमी से.. नयना की हालात पतली थी वो अब सही गलत छोड़ चुकी थी और बस इस लम्हे के ख़त्म होने का ही इंतजार कर रही थी वो अब आखिरी फैसला कर चुकी थी की ये अंशुल के साथ उसकी पहली और आखिरी चुदाई है.. अंशुल ने झड़ते हुए अपना सारा वीर्य नयना की बुर में खाली कर दिया जिसे नयना आसानी से महसूस कर सकती थी वो आखिरी बार आहे भर रही थी और आंसू पोंछ कर अपनी इस पहली चुदाई विश्लेषण करने की कोशिश कर रही थी..

अंशुल नयना को चोद कर एक पत्थर पर गांड टिका के बैठ गया और नयना घास में नंगी पेट के बल ही पड़ी रही उसका बदन इस चांदनी रौशनी में दिव्य लग रहा था जैसे कोई आसमान की परी अभी अभी नीचे उतरकर आई है और अंशुल को उसने सम्भोग का असली पाठ पढ़ाया है..

नयना लड़खड़ाती हुई जैसे तैसे खड़ी हुई फिर अपनी बुर से बहते अंशुल के वीर्य को अपनी उंगलियों से साफ किया और अपनी ब्रा पैंटी वापस पहन ली कुत्ते का लंड कुतिया की बुर में चिपक गया था जिसे दोनों देख रहे थे.. अंशुल और नयना आपस में ना बोल रहे थे ना ही एक दूसरे को देख रहे थे.. नयना अपनी सलवार कुर्ती भी पहन चुकी थी.. अंशुल पथर से उठा और वो भी अपने कपडे पहनने लगा.. कपडे पहन कर उसने पास खड़ी नयना को देखा और उसके पास आ गया.. अंशुल नयना का हाथ पकड़ कर उसे जंगल से बाहर ले जाने लगा मगर पहली चुदाई के कारण नयना के बदन में अकड़न और पैरों में लंगडापन आ गया था.. अंशुल ने नयना को गोद में उठा लिया और सडक की ओर आ गया.. नयन अंशुल को बड़े प्यार से देख रही थी मगर अब ये प्यार अपने बड़े भाई के लिए था वो अंशुल में अपना भाई देख रही थी..

अंशुल बाइक के पास पहुंचकर नयना को गोद से उतारता है और कहता है..
अंशुल - पता आज से सेकड़ो साल पहले यहां जंगल में एक काबिल रहता था.. **** नाम था उस क़ाबिले का.. बड़ी अजीब मान्यता थी उस काबिले की अगहन की पूर्णिमा को लेकर...
नयना कुछ नहीं बोलती और चुपचाप अंशुल के पीछे बैठ जाती है.. अंशुल बाइक चलाकर प्रभातीलाल के यहां पहुँचता है जहाँ प्रभतीलाल और लज्जो के साथ गाँव के कुछ लोग भी नयना के इंतजार में बैठे थे..
प्रभतीलाल और लाजो नयना को देखते ही गले लगा लेते और और उससे घर से जाने का कारण पूछने लगते है उसे लाड प्यार करने लगते है.. प्रभती लाल ने तो नयना के लंगड़ाने का कारण नयन के पैर की मोच समझा मगर लज्जो अच्छी तरह उसका मतलब समझ रही थी.. लज्जो ने आँखों ही आँखों में अंशुल से सारा किस्सा समझ लिया और नयना को होने साथ घर जे अंदर ले गई.. प्रभती लाल अंशुल से बाते करने लगा और उसका धन्यवाद करने लगा.. अंशुल ने प्रभती लाल से कह दिया था की वो नयना से ब्याह करना चाहता है और जल्दी ही प्रभती लाल घर आकर बालचंद से ब्याह की तारिक पक्की कर ले.... प्रभातीलाल नयना का मन जानता था और इस पर सहमति जताते हुए अंशुल को गले लगाकर बोला - तुम इस घर के जमाई नहीं बेटे बनोगे...

अंशुल नयना को घर छोड़ कर चला गया था और नयना अपने रूम में जाकर बिस्तर सोते हुए अपने आप को कोस रही थी की वो बदन की आग में रिश्ते भी भूल गयी? मगर उसका ध्यान अंशुल की आखिरी बात पर था.. वो क़ाबिले वाली बात.. नयना ने तुरंत अपना फोन निकाला और google पर उस क़ाबिले के बारे में पता लगाने लगी....
नयना क़ाबिले के बारे में पढ़ रही थी की पढ़ते पढ़ते उसकी आँख बड़ी हो गई... क्या? ऐसा कैसे हो सकता है? इसका मतलब मेरी मन्नत पूरी..... मगर क्या सच मे ऐसा हो सकता है?
नयना ने पढ़ा था की उस क़ाबिले में एक परंपरा थी जिसमे अगर अगहन की पूर्णिमा को कोई औरत मर्द चाँद की पूरी रौशनी में सम्भोग़ कर ले तो उन्हें पति पत्नी होने का दर्जा मिल जाएगा... इसका मतलब उस क़ाबिले की परम्परा से नयना अंशुल की पत्नी बन चुकी है.... नयना इसे झूठलाने की कोशिश कर रही थी.. और अपने आप को समझा रही थी की ऐसा नहीं हो सकता... अंशुल उसका भाई है और अब वो उसे सिर्फ भाई की नज़र से ही देखेगी.. और कोई दूसरा रिस्ता उससे नहीं रखेगी.. अपनी मोहब्बत का गला वो घोंट देगी.. नयना और अंशुल के बीच अब सिर्फ यही एक रिस्ता होगा.... नयना खुदको पापी समझ रही थी.. अंशुल ने जो किया अनजाने में था मगर नयना को सब पता था फिर भी.... नहीं अब ये नहीं होगा.. नयना ने दृढ़निश्चिय किया था....

अंशुल को घर पहुंचते पहुंचते सुबह के चार बज चुके थे जब वो घर आया तो पदमा की हालात देख हैरान था.. पदमा ने रात जागकर गुजारि थी और उसकी आँखे बोझल लग रही थी.. अंशुल पदमा को अपनी गोद में उठाकर अपने कमरे में ले गया और अपनी बाहों में लेटा कर प्यार से उसका सर सहलाते हुए सुलाने लगा था.. पदमा जो रात से अंशुल की याद में जाग रही थी वो अंशुल की बाहों में तुरंत सो गई...

अंशुल के लिए पदमा और नयना में कोई फर्क नहीं रह गया था वो दोनों को अपने पास रखना चाहता था और प्यार करना चाहता था उसका मन अब दोनों को चाहने लगा था.. उसकी बाहो में सो रही उसकी माँ पदमा उसे कितना चाहने लगी थी ये उसे आज की उसकी हालात से पता लगा......

दिन गुजरने लगे थे... दो महीने बीत गए मगर नयना की अंशुल से कोई बात न हो सकती थी एक दो बार अंशुल नयना से मिलने गया भी तो पता लगा नयना अपने चाचा के यहां गई हुई है उधर पदमा अब दिनरात बालचंद से नज़र बचकर अंशुल के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए आतुर रहती थी.. दोनों का प्रेम प्रगाड़ से भी अधिक मजबूत हो गया था... नयना अंशुल से बच रही थी वो नहीं चाहती थी की अब अंशुल उसे अपनी प्रेमिका के रूम में देखे और प्यार करे.. नयना बस अंशुल को अपना भाई समझने लगी थी और उससे भाई वाला रिस्ता कायम रखना चाहती थी.

एक दिन दोपहर को जब बालचंद ऑफिस में बड़े बाबू की गाली खा रहा था और बेज़्ज़त हो रहा था वहीं दूसरी तरफ उसकी बीवी अपने बेटे के सामने अपनी गांड फैलाये घर पर उसके ही बिस्तर में अपनी बुर चुदवा रही थी.... अंशुल पदमा के बाल पकड़ कर पीछे से उसकी बुर कुटाई कर रहा था और पदमा सिसकते हुए मज़ा ले रही थी... तभी अंशुल का फ़ोन बजा....
पदमा ने चुदते हुए फ़ोन उठा कर स्पीकर पर डाल दिया और अपना एक हाथ पीछे करते हुए अंशुल की तरफ फ़ोन कर दिया अंशुल अपने दोनों हाथ से पदमा की कमर थामे चोदता हुआ फ़ोन पर बात करने लगा...
हेलो...
हेलो.. आशु....
हां... मस्तु (अंशुल का शहर में रूमपार्टनर, पदमा के फलेशबैक में डिटेल से इसके बारे में लिखा गया है)
मस्तु - भाई अभी अभी तेरा परिणाम आया है...
अंशुल अपनी माँ चोदते हुए - अच्छा....
पदमा चुदते हुए सारी बाते सुन रही थी...
(मस्तु चुदाई की आवाजे साफ साफ सुन रहा था.. मगर वो जनता था ये किसकी चुदाई चल रही है इसलिए चुदाई के बारे में कुछ बोला नहीं..)
मस्तु - भाई कहा था मैंने तू पहली बार में निकाल लेगा.. निकाल लिया तूने.... अब तू सिर्फ अंशुल नहीं... ******* अंशुल है.. जल्दी से शहर आ बड़ी पार्टी लेनी है तुझसे... कहते हुए मस्तु ने फ़ोन काट दिया..
अंशुल ने पदमा को पलट दिया और अब वो मिशनरी पोज़ में पदमा के ऊपर आकर उसकी चुदाई करने लगा...
अंशुल - बधाई हो माँ.... अब तू सरकारी चपरासी की बीवी नहीं.. सरकारी अधिकारी की माँ है...
पदमा - आह्ह लल्ला.. तूने तो सच में अपना वादा पूरा कर दिया... मैं तो तुझे इस ख़ुशी के मोके पर कुछ दे भी नहीं सकती..
अंशुल - बिलकुल दे सकती हो माँ.....
पदमा - सब तो दे चुकी हूँ बेटा अब मेरे पास बचा ही क्या है?
अंशुल ने पदमा को होंठ चूमते हुए कहा - माँ मुझे तुम्हारी गांड चाहिए......
पदमा अंशुल की बात सुनकर शर्म से पानी पानी हो गई अब तक उसने अंशुल के दानवी लंड से डर कर अपनी गांड उसे नहीं दी थी मगर आज अंशुल ने उससे वहीं मांग ली थी...
पदमा ने मुस्कुराते हुए कहा - मैं तो खुद तुझे सब देना चाहती हूँ लेकिन डरती हूँ तेरे उस लोडे से... मगर ठीक है दो दिन बाद जब भालू शहर जाए तब ले लेना.. अंशुल झड़ चूका था..


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bhai nanya ka past bhi mast tha
 
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Premkumar65

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अध्याय 7
अगहन की पूर्णिमा


प्रभातीलाल घर के बाहर बने पेड़ के चबूतरे के ऊपर अपना सर पकड़कर बैठा था, सुबह उसका झगड़ा लाज़वन्ति से हुआ था लाजो (लाज़वन्ति) पेट से थी और ये अंशुल और लाजो के बिच उस रोज़ हुई घमासान ताबड़तोड़ चुदाई का परिणाम था जिसे लाजो ने बड़ी ख़ुशी से स्वीकार किया था प्रभतीलाल को शंशय था मगर लाजो के पेट में पल रहे बच्चे को अपना न मानने की उसके पास कोई वजह न थी.. कुदरत ने इतने सालों के बाद एक बार पहले भी उसे बाप बनाया था मगर लाजो का वो बच्चा होते ही मृत्यु को हासिल हो गया था.. सुबह प्रभतीलाल जब लाजो से नयना को लेकर किसी सम्बन्ध में झगड़ रहा था तब नयना घर में ही मोज़ूद थी.. लाजो अपनी जबान पर काबू न रख सकी और उसके मुँह आज इतने सालों बाद निकल ही गया की - नयना कोनसी तुम्हारी अपनी औलाद है.... जिस शराबी ने अपनी बेटी कहकर नयना को तुम्हे दिया था.. सुना है किसी जेल में बंद है.. बच्चा चुराते हुए पकड़ा था.. नयना को भी किसी अस्पताल से चुराया होगा उसने... बच्चे के मोह में तुमने जरा भी छान बिन नहीं की थी.. भूल गए?

नयना ने लाजो की ये बात सुन ली थी और उसके दिल पर एक और वज्र आ गिरा था लाजो ने क्या उसके दिल को अपने कदमो से रोदने का ठेका ले रखा है? पहले अंशुल के साथ वो सब करके और अब इन सब बातों से....
नयना बिन बताये कहीं चली गई थी.. प्रभतीलाल ने बहुत ढूंढा पर मिली नहीं गाँव में भी हर तरफ उसीकी तलाश हो रही थी मगर नयना का कोई अता पता नहीं था प्रभती सभी सहेलियों, सखियों और जानने वालो के घर पूछ आया था अब रोता हुआ अपना सर पिट रहा था उसे लाजो पर गुस्सा आ रहा था की उसने सुबह ऐसी बातें बोली ही क्यू? हो न हो नयना उन बातों को सुनकर ही वहा से गई होगी.. वरना आज तक उस बच्ची ने कोई गलत कदम नहीं उठाया था.. लाजो को अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आ रहा था वो दिल की साफ थी मगर आज उसके जुबान से जो बातें निकली थी वो उसे भी पीड़ा पंहुचा रही थी उसने तय किया था नयना से अपने किये की माफ़ी मांगेगी..

सुबह बीत चुकी थी और दोपहर का समय आ गया था.. नयना जेल के सामने खड़े थी उसने उस आदमी से मिलने की ठान ली थी जिसने नयना को प्रभती लाल के यहां अपनी बेटी बताकर दिया था.. नयना ने उस आदमी के बारे में पता किया था, नाम जब्बार था शराब के साथ और भी कई नशे करता था.. Police ने कई कानूनी दफाओ में उसे बंद करवा दिया था बीस बरस की सजा हुई थी उसे.... और पिछले 16 साल से जेल में बंद था.. हफ्ते में जिन दो दिनों में क़दी से मिला जा सकता था उनमे से एक दिन आज था.. आज क़दी से मिलने आने जाने की छूट थी.. एक स्थानीय वकील की मदद से नयना को जब्बार से मिलने का मौका मिल गया था.. नयना घबराते हुए लोहे की जाली के करीब खड़ी थी अंदर से एक नाटा सा आदमी संवाले रंग वहा आ गया देखने में खुंखार तो नहीं था मगर उसकी आँखों से लगता था जैसे उसने अपनी जिंदगी में हर नशा किया था मगर अब उसकी हालात बेहतर थी जेल में रहकर उसने कम से कम नशे से मुक्ति पा ली थी.. जब्बार 45 साल के करीब था शरीर में दुबला पतला मरियल मगर तेज़ दिमाग और नोटंकी में उस्ताद....
दिवार के पास सिपाही तैनात था उसी के थोड़ा दूर जाली से बाहर की तरफ नयना और अंदर जब्बार..
जब्बार - जी कहिए....
नयना की आँख नम थी और मन अस्त व्यस्त मगर उसने होने बिखरे दिल को समेटकर जब्बार से पूछा..
आज से 19 साल पहले एक बच्ची तुमने यहां से 22 कोस पश्चिम की ओर हुस्नीपुर में प्रभतीलाल को दी थी.. तुमने उसे कहा से चुराया था?
जब्बार दिमाग पर जोर डालकर कुछ सोचने लगा ओर फिर हँसता हुआ बोला - अरे.... बिटिया तुम तो बड़ी हो गई हो.. मेरी लाड़ली बिटिया... मैंने तुम्हे कहीं से चुराया नहीं था तुम तो मेरी अपनी बिटिया हो...
नयना को जब्बार की बाते सुनकर गुस्सा आ रहा था वो वापस बोली - देखो अगर तुम सच सच बताओगे तो ये वकील साब तुम्हे बाहर लाने के लिए कोशिश कर सकते है.. तुम जल्दी बाहर आ जाओगे..
जब्बार - बिटिया सच कह रहा हूँ... तुम्हारी कसम.. तू मेरा अपना खून है.. मेरी बिटिया...
नयना - देखो नाटक मत करो.. तुम्हे जो चाहिए मैं दिलवा सकती हूँ.. मगर मुझे सच जानना है.. तुम्हे चुप रहकर भी कुछ नहीं मिलने वाला... सच बोलकर तुम जो चाहो पा सकते हो...
जब्बार - जो मागूंगा दोगी....
नयना - हां....
जब्बार - बिरयानी चाहिए.... रायते के साथ..
नयना - ठीक है पर जेल में कैसे??
जब्बार - ये जेल है यहां सब मुमकिन है... जब्बार ने पास खड़े सिपाही को पास आने इशारा किया और नयना से कहा.. मेरी एक साल की बिरयानी के पैसे सिपाही जी की जेब में रख दो....
नयना - क्या?
जब्बार - क्या नहीं.... हां.... जल्दी करो... तुम्हे अपने घरवालों के बारे में जानना है या नहीं..
नयना - पर मेरे पास अभी इतने ही पैसे है..
जब्बार - कितने है?
नयना - 12-13 हज़ार...
जब्बार - सिपाही की जेब रख दो....
नयना ने पास खड़े सिपाही को पैसे दे दिये..
जब्बार खुश होता हुआ सिपाही को इशारे से वापस भेज दिया और मुँह का थूक गटकते हुए धीमे से बोला चलो महीने भर का जुगाड़ तो हुआ...
नयना - अब बताओ कहा से चुराया था मुझे?
जब्बार - श्यामलाल अस्पताल, विराटपुर, वार्ड-3 बेड नम्बर-7 दिन-बुधवार दिनांक - ##-##-####...
नयना ने अपने फ़ोन में जब्बार की सारी बाते रिकॉर्ड कर ली थी.. वो बाहर आ गई उसका दिल जोरो से धड़क रहा था.. उसने बाहर से एक रिक्शा पकड़ा और विराटपुर के लिए चली रिक्शा विरातपुर में श्यामलाल अस्पताल के आगे रुका था.. नयना ने सबसे पहले अस्पताल के बाहर एटीएम से पैसे निकलवाये और रिक्शा वाले को भाड़ा देकर अस्पताल के अंदर आ गई.. ये एक सरकारी अस्पताल था..

नयना पिछले एक घंटे से अस्पताल की टूटी हुई कुर्सी पर बैठे इंतजार कर रही थी एक मोटी सी भद्दी दिखने वाली महिला ने उसे बैठने को कहा था और अंदर चली गई थी जब वो बाहर आई तो नयना ने वापस उससे वहीं सवाल पूछ लिया जो पहले पूछा था.. जब्बार से मिली डिटेल बताते हुए नयना ने उस औरतों से उस रोज़ बेड नम्बर 7 पर एडमिट महिला के बारे में पूछा तो वो औरत मुँह से गुटका थूकती हुई नयना पर चिल्ला कर बोली - कहा रिकॉर्ड ढूंढ़ रहे है.. बैठी रहो चुप छप जा चली जाओ यहां से... कितना काम है पड़ा... सरकारी अस्पताल में लोग काम भी करते है? नयना ने मन में यही बाते बोली थी वो देख रही थी कैसे वो औरत अपने साथ बैठी दूसरी औरत के साथ पान मसाला खाती हुई लूडो खेलने में व्यस्त थी.. मरीज़ तो भगवान भरोसे थे.. मगर जहा मरीज़ खुद इसी इलाज के लायक हो वहा उनका ऐसा ही इलाज होता है.. नयना ने टीवी में देखा था अमेरिका के सरकारी अस्पताल और उसकी खुबिया.... और आज वो यहां सरकारी अस्पताल देख रही थी.. मगर अमेरिका में लोग भी अलग है.. पढ़े लिखें, अपने हक़ अधिकारों को लेकर सजग और ईमानदार, खुले दिमाग और विचारों वाले.. सरकार से सवाल पूछने वाले मगर यहां? यहां तो पढ़ाई लिखाई का कोई महत्त्व ही नहीं है.. जो पढ़ाया जाता उससे बच्चे का नैतिक विकास तो दूर उसमे खुदसे सोचने समझने की काबिलियत तक नहीं आ पाती, जाती और धर्म के मामले में उलझकर विकास का गला घुट जाता है.. राजनितिक लोग राजनितिक लाभ के लिए लोगों को गुमराह करते है और वो आसानी हो भी जाते है.. जब अपने दिमाग से किसी चीज़ की परख ही नहीं कर पाएंगे, सही गलत ही नहीं जांच पाएंगे तो इसी हाल में रहना होगा.. और क्या? नयना के दिमाग में यही चल रहा था मगर उसे अब बैठे हुए काफी देर हो चुकी थी उसने फिर दूसरा रास्ता अपनाया..
नयना ने एक सो का नोट उस औरत के सामने रखे रजिस्टर के नीचे रखा और प्यार से कहा - जरा अर्जेंट है देख लीजिये ना.. औरत ने सो का नोट अपनी जेब में डाल लिया और नयना को अपने पीछे आने का इशारा किया..
नयना औरत के पीछे पीछे रिकॉर्ड रूम में आ गई.. ये बेसमेंट में था.. साल #### के माह ### का एक बड़ा पोटला निकाल कर सामने टेबल पर रख दिया और उसपर जमीं धूल साफ करती हुई गाँठ खोल दी.. एक रजिस्टर निकलकर नयना को देती हुई बोली जल्दी से देखकर वापस दो..
नयना रजिस्टर लेकर पन्ने पलटते हुए उस पन्ने पर पहुंची जहाँ उस दिन की सारी एंट्री लिखी हुई थी जिस दिन के बारे में जब्बार ने जिक्र किया था.. नयना ने पहले अपने फ़ोन उस पेज की तस्वीर ली फिर पन्ने पर लिखी एंट्री को गौर से देखने लगी....
वार्ड नंबर -3 बेड नम्बर -7 पेशेंट नेम - पदमा देवी पति का नाम - बालचंद..... पता - ******* एडमिट होने का कारण - प्रेगनेंसी.... नयना के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गई थी.. उसे यकीन नहीं हो रहा था जो उसने अभी अभी पढ़ा था क्या वो सच था? या कोई मज़ाक़ जो जब्बार ने उसके साथ किया था?
हो गया? पढ़ लिया? लाओ दो.. उस औरत ने वापस पोटली को वहीं बांधकर रख दिया.. नयना अस्पताल से बाहर आ गई थी उसकी आँखों में आंशू की धारा बह चली थी जो अब बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी तो क्या वो अंशुल की..... नहीं नहीं... ऐसा नहीं हो सकता... उसने जो अभी अभी देखा उसपर नयना को यक़ीन नहीं आ रहा था और ना ही वो यक़ीन करना चाहती थी.. ऐसा कैसे हो सकता है? इतना बड़ा संयोग? नहीं नहीं.. ऐसा नहीं हो सकता.. मगर क्या कागज झूठ बोलते है? पर ऐसा कैसे मुमकिन है? वो तो अंशुल से बेताशा प्यार करती है और आज की रात अंशुल से ब्याह का वादा था उसका.. आखिरी बार अंशुल ने भी उसे आज रात ब्याह करने की बात कही थी.. पर क्या अंशुल उसका बड़ा भाई... नहीं ये नयना क्या सोच रही है? ऐसा नहीं है... नयना भारी कश्मकश और उलझनों से जूझती हुई अस्पताल से बाहर आकर एक जगह बैठ गई थी और रोये जा रही थी उसकी आँखों से आंसू का सागर बह जाना चाहता था.. वो सोच भी नहीं सकती थी की ऐसा कैसे हो सकता है? अंशुल जिसे वो दिल और जान से चाहती है अपना मान चुकी है वो उसको सगा बड़ा भाई है.. उसने अपने बड़े भाई से प्यार क्या है.. नयना के नयन आंसू के साथ उसके मन की हालात भी बाहर निकाल रहे थे...

अंशुल आज नयना को अपना बनाने के इरादे से घर से निकला था वो जब नयना के घर पंहुचा तो लाजो ने उसे सारा वृतांत कह सुनाया.. नयना सुबह से किसी का फ़ोन भी नहीं उठा रही है... लाजो की आँखों में आंसू थे मगर अंशुल जानता था की नयना इस वक़्त उसे कहा मिल सकती है अंशुल ने लाजो के गर्भवती होने की बात भी पता चली थी जिसपर उसने लाजो को अपने सीने से लगाते हुए अपना और बच्चे का ख्याल रखने की नसीहत भी दे दी.. अगर इस वक़्त नयना का ख्याल ना होता तो अंशुल और लाजो के बीच सम्भोग होना तय था.. लाजो की आँखों में नयना के दुख के साथ साथ अंशुल से कामसुख की इच्छा भी थी.. मगर इस इच्छा को अंशुल ने सिर्फ एक चुम्बन में समेटकर रख दिया..
अंशुल जब नयना के घर से बाहर निकला तो उसे सामने से प्रभतीलाल आते दिखे और वो रुक गया.. दोनों के बीच मोन था.. दोनों को समझ नहीं आ रह था की कैसे वो बात की शुरुआत करे और एक दूसरे के सामना करे..
अंशुल प्रभतीलाल को नस्कार किया तो प्रभती लाल ने भी विचलित मन से उसका जवाब दे दिया.. नयना की बाते होने लगी.. अंशुल ने प्रभती लाल से कहा की वो चिंता न करे अंशुल उसे खोज लाएगा.. अ नयना का प्रेम प्रभती लाल जानता था मगर उसे अब अंशुल के बारे में भी पता चला था.. दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे है.. प्रभती लाल की आँखों में कुछ सुकून आया था..

शाम हो चुकी थी अंशुल ने पदमा से आज घर नहीं आने का कोई बहाना बना लिया था जिसपर पदमा बड़ी नाराज़ हुई थी मगर अंशुल ने उसे समझा लिया था अंशुल गाँव से बाहर आ चूका था एक एक करके उन सारी जगहों पर जा आया था जहाँ नयना मिल सकती थी.. फिर अंशुल के दिमाग में कुछ ख्याल आया और वो अपनी बाइक स्टार्ट करके किसी ओर चल दिया... एक जगह पहुंच कर उसने बाइक रोक दी.. रास्ता सुनसान था सांझ ढल चुकी थी पूर्णिमा के पुरे चाँद ने रौशनी की कोई कमी नहीं रखी थी इस रौशनी में अंशुल साफ साफ सब देख सकता था सडक के दोनों तरफ पेड़ थे जैसे जंगल हो... अंशुल आगे बढ़ गया था...

अंशुल के बाहर रहने से पदमा के स्वाभाव में परिवर्तन आ गया था वो आज चिड़चिड़ी सी लग रही थी बालचंद ने उसका मूंड देखकर उससे उलझना जरुरी नहीं समझा ओर दूर ही रहा यही उसके लिए सही भी था.. आज अंशुल नहीं था मगर फिर भी पदमा को चैन नहीं आ रहा था ओर वो बेचैन हो रही थी उसने आज भी बालचंद को दवाई दे दी थी जिससे बालचंद नींद में खराटे मार रहा था ओर पदमा अंशुल के रूम में जाकर उसी बिस्तर पर जहाँ वो अंशुल के साथ काम क्रीड़ा किया करती थी लेट गई थी ओर अंशुल की तस्वीर अपनी छाती से लगा कर चुत में उंगलियां करते हुए सोने की कोशिश कर रही थी.. पदमा को महसूस हो रहा था की अंशुल उसके लिए कितना जरुरी बन चूका है और अब वो अंशुल के बिना नहीं रह सकती.. पदमा अंशुल के प्यार में पागल हो चुकी थी ऐसा उसकी हालात देखकर कहा जा सकता था..

नयना की आँखे नम थी आज का सारा दिन उसने अपनी हक़ीक़त पता लगाने में लगाया था और किसी का फ़ोन नहीं उठा रही थी इस वक़्त जंगल में उसी पेड़ के नीचे अकेली बैठी थी जहाँ उसने अपने लिए मन्नत मांगी थी मन में चलती कश्मकश और उथल पुथल के बीच उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे? अंशुल उसका अपना बड़ा भाई निकलेगा ऐसा उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.. कैसे सपने देखे थे उसने अंशुल के साथ जिनमे वो अपनी मर्यादा लांघ चुकी थी.. हर रात वो अंशुल के साथ हम बदन होने के ख्याब देखती थी मगर आज उसे उन ख़्वाबों के लिए अजीब लग रहा था ये पश्चात् नहीं था मगर वैसा ही कुछ था जिसे बयान करना व्यर्थ है.. नयना ने अच्छी तरह जांच पड़ताल की थी... तब जाकर उसने ये माना था की जब्बार जो कह रहा था वो सही और सत्य था.. जब पहली बार नयना अंशुल के घर गई थी तब बालचंद ने भी ये प्रसंग छेड़ा था जिसमे अस्पताल से उनकी बच्ची के चोरी होने का जिक्र था मगर वो इतना विस्तृत नहीं था जिससे नयना सारा माजरा समझ पाती.. नयना कुछ तय करने का मन बना रही थी.. इस चांदनी रात की रौशनी में उसका दुदिया रंग चमक रहा था जिसे अंशुल ने दूर से ही देख लिया था.. नयना अपने ख्यालों में इतनी खोई हुई थी उसे महसूस भी नहीं हुआ की अंशुल उसके बेहद नज़दीक आ कर बैठ चूका था..

लो.. खा लो... अंशुल ने नयना की तरफ एक खाने का पैकेट बढ़ाते हुए कहा तो नयना अपने ख्याल से बाहर आते हुए चौंक गई.. आप....? यहाँ...
अंशुल ने खाने का पैकेट फाड़ कर चम्मच से एक निवाला नयना के होंठों की तरफ खाते हुए कहा - क्यू यहां तुम ही आ सकती हो? चलो मुँह खोलो... वरना खाना ठंडा हो जाएगा.. अंशुल रास्ते में पड़े एक रेस्टोरेंट से राजमाचावल ले आया था उसे यक़ीन था की नयना सुबह से भूखी प्यासी होगी और अंशुल के शादी से इंकार करने के कारण ही घर से चली गई होगी.. अंशुल नयना को अपना बनाने आया था.. अंशुल को पदमा ने नयना से शादी करने के लिए पहले से परमिशन दे रखी थी और उसके लिए अंशुल को बोला भी था मगर अंशुल ही अब तक नयना से शादी करने से भाग रहा था.. मगर अब वो नयना का प्यार स्वीकार कर चूका था और पदमा के साथ नयना को भी अपना बनाकर रखना चाहता था वहीं पदमा में आये परिवर्तन का उसे इल्म नहीं था पदमा अब अंशुल के पीछे पागल हो रही थी..
नयना ने बिना कुछ बोले पहला निवाला मुँह में ले लिया और खाने लगी.. धीरे धीरे अंशुल ने उसे खाना खिला दिया नयना और अंशुल ने उस दौरान कोई ख़ास बात चीत नहीं हुई थी.. बस अंशुल नयना की तरह देखता हुआ प्यार से उसे खाना खाने की गुजारिश करता रहा और नयना उसकी मिन्नतो को मानते हुए खाना खाती रही.. नयना का दिल जोरो से धड़क रहा था उसके सामने उसका प्रेमी था जिसमे उसे अब अपना बड़ा भाई नज़र आ रहा था.. कुदरत का केसा निज़ाम है? अगर इस वक़्त नयना को ये मालूम ना होता की वो अंशुल की छोटी बहन है तो वो अंशुल को अपनी बाहो में लेकर बहक चुकी होती और प्यार सागर में दोनों का मिलन हो चूका होता मगर उसे ये ख्याल अंशुल से दूर ले जा रहा था की नयना तू ये नहीं कर सकती.. ये जान लेने के बाद की अंशुल तेरा सगा भाई है तू उसके साथ ये रिस्ता नहीं रख सकती.. नयना को समाज के नियम कायदे और रितिया याद आने लगी थी खुद पर शर्म आने लगी थी उसका दिल कितनी बार टूटेगा वो सोच रही थी और अब उसकी आँख फिर से नम हो चली थी जिसे अंशुल ने अपने हाथो से आंसू पोचकर साफ किया था.. खाने के बाद पानी पीते हुए नयना ने अंशुल से कहा - आपको कैसे पता मैं यहां हूँ....
अब बीवी कहा है ये तो पति को मालूम ही होना चाहिए. अंशुल ने अपना रुमाल निकलकर नयना के होंठो को साफ करते हुए जवाब दिया था जिसपर नयना लज्जा गई थी... मगर क्यू? उसने तो अब अंशुल से दूर होने का फैसला किया था.. मगर अंशुल का प्रेम नयना के मन में इतना पक्का था की वो उसे निकालने में असमर्थ थी..

नयना शर्म से लाल थी और जमीन की ओर देख रही थी अंशुल ने उसको चेहरा उसकी ठोदी से उंगलि लगा कर ऊपर उठाया ओर उसके गुलाब सुर्ख लबों पर अपने लब रख दिए.. इस चांदनी रात में दोनों इस बड़े से पेड़ के नीचे एक दूसरे के प्यार में घुल चुके थे नयना के लबों को चूमते ही अंशुल ने उसके दिमाग में चल रहे सारे ख्याल को शून्य कर दिया नयना बस इसी पल में होकर रह गई जहाँ वो अंशुल को अपने लबों के शराबी जाम पीला रही थी.. नयना ने अंशुल को इतना कसके पकड़ा हुआ था जैसे कोई छोटा बच्चा डर से किसी बड़े से चिपक जाता है.. अंशुल ने चुम्बन की शुरुआत की थी मगर नयना उसके लबों को ऐसे चुम रही थी जैसे जन्मो की प्यासी हो उसने सब भुला दिया था.. अंशुल की बेवफाई ओर उसके रिश्ते को भूल चुकी थी.. अब सिर्फ उसे इसी पल को जीना था जिसमे उसे उसका प्यार अपनी बाहों में लिए खड़ा था ओर अपना बनाने को आतुर था..

नयना अपने दोनों हाथ अंशुल जे गले में डालकर उसके लबों को प्रियसी बनकर चुम रही थी ओर अपने प्रियतम को अपनी कला से भावविभोर कर रही थी अंशुल नयना की इस हरकत पर मन्त्रमुग्ध हो रहा था.. अंशुल ने नयना की कमर में हाथ डालकर उसे हवा में उठा लिया था ओर दोनों के बदन आपस में ऐसे चिपक गए थे जैसे की दोनों एक ही हो.. इस चांदनी रात में नयना की लहराती जुल्फे किसी फ़िल्मी दृश्य का काम कर रही थी नयना ओर अंशुल ने जी भरके एक दूसरे को चूमा ओर फिर अंशुल ने चुम्बन तोड़कर नयना के चहेरे ओर गर्दन पर अपने चुम्बन की बौछार शुरु कर दी अंशुल की मदमस्त प्रेमी की तरह नयना के जिस्म का स्वाद ले रहा था गर्दन चाटने पर नयना ओर भी ज़्यदा अंशुल की तरफ मोहित होने लगी थी वो भूलने लगी थी अंशुल उसका बड़ा भाई है नयना को अंशुल में सिर्फ अपना प्यार नज़र आ रहा था पहली नज़र वाला प्यार और नयना कब से यही तो चाहती थी की अंशुल उसे अपना बना ले आज हो भी तो वहीं रहा था.. नयना कैसे अपने आप पर काबू रखती क्या इतना गहरा प्यार एक पल में ख़त्म किया जा सकता है? नहीं ऐसा नहीं हो सकता.. नयना कैसे अंशुल से दूर जा सकती थी अंशुल ने उसे पूरी तरह अपने बस में लिया हुआ था..

गर्दन और कंधे चूमने के बाद एक बार फिर से अंशुल नयना के लबों पर आ गया और उसके गुलाबी होंठ को बड़े प्यार से चूमने लगा... नयना भी अंशुल के लबों को अपने दांतो से खींचते हुए चुम रही थी और बार बार अंशुल की जीभ को अपनी जीभ से लड़ा रही थी मानो वो दोनों की कुस्ती करवाना चाहती हो.. चांदनी रात की रौशनी में जंगल में इस पेड़ के नीचे दोनों चुम रहे थे की किसी जानवर के आने की आहट हुई तो दोनों का चुम्बन एक बार फिर टूट गया.. अंशुल और नयना आपस में चिपके हुए थे दोनों की नज़र एक साथ जानवर पर गई तो थोड़ी दूर कुत्ते नज़र आ रहे थे.. एक कुत्ता कुतिया के पीछे चढ़ा हुआ उसके साथ सम्भोग कर रहा था और कुतिया के मुँह से आवाजे आ रही थी.. अंशुल और नयना ने ये नज़ारा देखकर एक दूसरे की तरफ देखा फिर हंसने लगे जैसे आगे होने वाली प्रकिया को पहले ही जान चुके हो..

अंशुल ने अपने एक हाथ से नयना का एक कुल्हा पकड़ लिया और जोर से मसलने लगा जिससे नयना के मुँह से भी सिस्करी निकाल पड़ी.. वो शिकायत भरी आँखों से अंशुल को देखने लगी मानो पूछ रही हो अंशुल क्या तुम यही सब कर लोगे? अंशुल ने नयना को अपनी गोद में उठा लिया और पेड़ के पीछे दाई और घास की सेज पर लिटा दिया जहाँ साफ साफ चाँद की रौशनी पहुंच रही थी जहाँ से सारा नज़ारा बिना किसी परेशानी या रुकावट के देखा जा सकता था मगर ये देखने वाला वहा था कौन? कोई भी तो नहीं था.. नयना के मन में अंशुल का चेहरा देखकर फिर से वहीं ख्याल आने लगे थे.. नहीं नहीं.. ये मैं क्या कर रही हूँ? अंशुल मेरा भाई है.. सगा भाई.. और में उसके साथ ही.. नहीं.. मैं ये नहीं कर सकती.. ऐसा नहीं हो सकता.. मुझे अंशुल को रोकना होगा.. हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हो सकता.. ये सब पाप है.. गलत है.. नयना के मन जब तक ये सवाल आये तब तक उसके बदन से अंशुल ने कुर्ती उतार ली थी और अब नयना अंशुल के सामने घास पर सलवार के ऊपर ब्रा पहने लेटी हुई थी.. चाँद की रौशनी में नयना का गोरा बदन सोने की तरह चमक रहा था.. विकसित चुचे उसके छाती पर काले रंग की ब्रा से ढके हुए थे जिन्हे अंशुल ब्रा के ऊपर से मसल रहा था और चुम रहा था.. नयना अपने मन की गहराइयों में इस मिलने का मज़ा लेते हुए अपने मन की उपरी परत पर आज हुए खुलासे के घाव से परेशान थी.. वो समझ नहीं पा रही थी उसे क्या करना है वो एक पल कुछ तय करती और फिर अगले पल कुछ और..

अंशुल ने नयना की ब्रा के साथ ही अपनी शर्ट भी उतार दी और अब दोनों कमर से ऊपर नंगे थे अंशुल पूरी चाहत के साथ नयना को अपना बनाने में लगा था वहीं नयना अपने बदन की जरुरत और हालात से मजबूर थी वो चाहती थी तो अंशुल से दूर होना थी मगर उसका जिस्म उसे इस बाते की इज़्ज़त नहीं दे रहा था.. अंशुल नयना के छाती पर उभार को अपने मुँह से चाट रहा था और बार बार नयना की निप्पल्स को अपने मुँह में भरकर चूसता हुआ उसकी मादक सिस्कारिया सुन रहा था पूरा माहौल चुदाईमय बन चूका था जहाँ थोड़ी दूर कुतिया एक कुत्ते से चुदती हुई चीख रही थी वहीं यहां नयना जो अंशुल से दूर होना चाहती थी वो अंशुल के सर को सहलाती हुई अपने चुचे उसके मुँह में दे रही थी जिसे अंशुल बड़े ही प्यार से चूस रहा था और निप्पल्स दांतो से काटते हुए खींच रहा था.. अंशुल ने नयना बोबो को दबा दबा के और चूस चाट के लाल कर दिया था नयना की छाती पर गहरे निशान पड़ने लगे थे जिसमे नयना को आनंद की अनुभूति हो रही थी मर्द का प्यार उसे पहली बार मिला था..

अंशुल फिर से नयना के होंठो पर आ गया और नयना ने उसे फिर से अपने दोनों हाथ से अपनी मधुशाला का प्याला भरके अंशुल को अपने होंठ से पिलाना शुरू किया.. अंशुल का एक हाथ धीरे धीरे नयना के चेहरे से होता हुआ उसके कंधे फिर चुचे फिर नाभि और फिर नयना की सलवार में जा घुसा नयना को इसका अंदेशा भी नहीं था की अंशुल ने अपना एक हाथ उसकी सलवार में डाल दिया था वो तो बस होने लबों से अंशूल को चाहत के जाम पिलाने में मस्त थी उसके लिए यही सब अभी हो रहा था..
अंशुल का हाथ सलवार में नयना के पैर के जोड़ तक चला गया जहाँ नयन की बुर पनिया रही थी नयना की पैंटी बिलकुल गीली हो चुकी थी और बुर को छूने पर नयना और ज्यादा उत्तेजित होने लगी थी उसने अंशुल को और कसके जकड लिया था.. अंशुल के हाथ ने नयना की बुर को तालाशा तो अंदाजा लगाया की नयना की बुर बिलकुल साफ सुथरी है जिसपर अभी तक बाल का कोई नामो निशान नहीं है हलके से दो चार बाल आये भी है तो वो बुर के ऊपर मुहाने पर.. इतनी प्यारी और रसदार बहती चुत को अंशुल चोदने की इज़ाज़त लेने नयना की आँखों में देखता हुई उसकी बुर सहलाने लगा.. मगर नयना की आँख बंद थी वो अंशुल को पकडे हुए उसके चेहरे और आस पास के हिस्से चुम रही थी.

अंशुल ने अपना हाथ नयना की बुर से हटा लिया और फिर मादकता के नशे में डूबी हुई नयना को देखते हुए उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार नीचे सरका दी.. आँख बंद करके अंशुल की बाहों में पड़ी नयना अपने साथ होते इस सब घटनाक्रम को महसूस कर रही थी.. उसके बदन पर सिर्फ बुर के पानी से भीगी हुई पेंटी ही बची थी जिसे भी अंशुल ने अगले ही पल उसके बदन से अलग कर दिया था.. अंशुल की बाहों में अब एक पूरी नंगी जवान खूबसूरत हसीन लड़की लेटी हुई थी जो अपने हाथो से अपना चेहरा छुपाने की कोशिश कर रही थी.. अंशुल ने भी अपनी जीन्स उतार कर एक तरफ रख दी और वो भी अपनी प्राकृतिक अवस्था में आ गया.. अंशुल ने नयना के पैरों को खोला और उसकी गुलाबी चिकनी साफ बुर पर अपने होंठ रख दिए..


अंशुल को चुदाई कला का पूरा ज्ञान था उसने जो अनुभव पदमा धन्नो सुरीली से लिया था वो आज काम आ रहा था और यही कारण था की नयना जो पहले अंशुल से दूर जाने की सोच रही थी वो अब उसके सामने बेबस और लाचार बनकर लेटी हुई उसकी हर हरकत को प्यार कर रही थी.. अंशुल ने जैसे ही नयना की बुर पर अपने होंठ रखे नयना के मुँह से आह्ह... निकल गई और फिर नयना ने अंशुल के सर को अपने दोनों हाथो से एकसाथ अपनी बुर पर दबा लिया मानो कह रही को की अंशुल चुसो मेरी बुर को चाटो.. खा जाओ इसे.. मैं तुम्हे अपनी कच्ची बुर पर पूरा हक़ देती हुई.. मेरी बुर का घमंड तोड़ दो.. अंशुल बुर चाटते हुए उससे छेड़खानी कर रहा था जिससे नयना कुछ ही पलो में अंशुल के मुँह में झड़ गई और तुरंत बाद पेशाब करने लगी जैसे उसका अपने शारीर पर कोई नियंत्रण ही नहीं था.. अंशुल का मुँह नयना ने अपने बुर से निकले पानी से भर दिया जिसे अंशुल को पीना पड़ा.. नयना शर्म से लाल हो चुकी थी और कुछ हद तक झड़ने के बाद कामुकता के जाल से हलकी बाहर आई थी.. अंशुल भी अब अपनी लंड की ताकत से नयना को रूबरू करवाना चाहता था उसने नयना की बुर को चाटकर साफ किया और फिर अपने लोडे को उसकी बुर की दरार पर रगढ़ते हुए नयना का चेहरा देखने लगा जिसपर दुविधा के निशान थे जैसे वो इस मादकता के पलो में भी कुछ सोच रही हो..

अंशुल के लंड में पत्थर सी अकड़न थी जो पूरा खड़ा था अंशुल ने नयना की चुत पर लोडा रगड़ने के बाद उसके छेद के मुहने पर टिका दिया और दबाब बनाकर अंदर करने की कोशिश करने लगा.. नयना की बुर में पहली बार लंड वो भी अंशुल के जैसा बड़ा मोटा और मजबूत... नयना की हालात खराब हो रही थी उसके मन में चलते विचारो के बिच अंशुल ने उसकी बुर में अपना सुपाडा घुसा दिया था जिससे नयना सिसकने लगी.. नयना को होश आया की उसने तो अंशुल से दूर रहने का फैसला किया था फिर क्यू वो अपने बदन के बहकावे में आकर अपने सगे बड़े भाई के साथ सम्भग करने पर उतारू हो चुकी है? क्या उसके बदन की आग रिस्तो पर हावी हो गई है? नयना ऐसा नहीं कर सकती..... हां ये पाप है... ये सोचते हुए नयना ने अब अंशुल का विरोध शुरू कर दिया और अंशुल के लंड को पकड़ कर अपनी चुत से उसका सुपाडा बाहर निकलने की कोशिश करने लगी मगर अब तक बहुत देर हो चुकी थी.. अंशुल ने अगले ही पल एक झटके में अपना आधे से ज्यादा लंड नयना की बुर में घुसा दिया और नयना के दोनों हाथ पकड़ कर ऊपर की और उठा दिए.. नयना बिलकुल विचार शून्य हो गई उसे समझ नहीं आया की वो क्या करें पहली चुदाई की तकलीफ के बीच अंशुल की मनमानी ने उसे किसी लायक नहीं छोड़ा... उसकी आँख चौड़ी होगई जो उसे हो रहे पहली चुदाई के दर्द को बयान करने में सक्षम थी.. नयना की बुर से दो-तीन खून की बून्द भी बाहर आ गई थी जो बता रही थी नयना की ये पहली चुदाई है और अब तक उसने अपनी बुर में लोकी खीरा केला गाजर मूली कुछ नहीं डाला है...

आखिरकार नयना की इज़्ज़त अंशुल ने अपने नाम कर ही ली.. नयना अंशुल को देखते हुए सिसकियाँ ले रही थी और सोच रही थी की वो कैसी लड़की है जो अपने सगे भाई को अपनी इज़्ज़त दे रही है.. उससे बुरी लड़की शायद ही कोई और हो.. अंशुल ने नयना की बुर कुटाई अभियान की शुरुआत कर दी थी.. अंशुल रह रह कर झटके मारता हुआ नयना को चोदने लगा था हर झटके पर नयना का बदन ऊपर से नीचे तक पूरा हिल जाता और नयना मादक सिस्कारिया भरती हुई आवाजे इस माहौल में कामुकता के फूल खिला रही थी... एक तरफ कुतिया चुदते हुए आवाजे कर रही थी दूसरी तरफ नयना.. अंशुल और नयना इस चांदनी रात में ऐसे मिल रहे थे जैसे उसका मिलन ही दोनों का एक मात्र लक्ष्य हो.. नयना की चुत खुल चुकी थी और अब पानी छोड़ने लगी थी जिससे अंशुल का लंड आराम से अंदर बाहर हो रहा था और अब नयना अंशुल का कड़क तूफानी लंड चुत में मज़े से लेने लगी थी पर अब भी उसे वहीं ख्याल सताये जा रहा था..

नयना के दिमाग पर चुदाई से ज्यादा जब रिश्ते का ख्याल हावी हुआ तो उसने अंशुल को धक्का देकर अपने से दूर कर दिया जिससे अंशुल का लंड बुर से बाहर निकल गया नयना की आँख में आंसू आ गए थे वो कैसी लड़की है? इतना बड़ा पाप? इसका प्रायश्चित कैसे होगा सोचने लगी.. अंशुल नयना का ये बर्ताव समझ नहीं पाया था वो कुछ पल के लिए ठहर गया मगर उसके दिमाग में नयना को पाने की चाहत उफान मार रही थी.. नयना पलट गई थी उसकी पीठ अब अंशुल के सामने थी.. नयना अपनी गलती पर रोते हुए जैसे ही उठने की कोशिश करने लगी अंशुल ने नयना को उसी तरह से कमर पर हाथ लगाते हुए पकड़ लिया और घोड़ी की पोजीशन में लाते हुए फिर अपना लोडा नयना की चुत के अंदर घुसा दिया.. नयना को इस बात का अंदाजा भी नहीं था की अंशुल कुछ ऐसा करेगा.. वो बेचारी तो उठकर अपने कपडे पहनना चाहती थी मगर अब घोड़ी बनकर अपने बड़े भाई से चुद रही थी.. अंशुल नयना की कमर पकड़ कर झटके मारता हुआ उसे किसी बाजारू की तरफ पेल रहा था.. नयना के मन में वहीं सब चल रहा था ऊपर से चुदाई का सुख भी उसे मिल रहा था तो उसके मन की हालात जान पाना कठिन था.. अंशुल ने एक हाथ से नयना के लहराते हुए बाल पकड़ लिए थे और दूसरे से कमर थामे हुए था.. उसका लंड नयना की बुर में तहलका मचाये हुए अंदर बाहर हो रहा था.. अब लगभग कुत्ते कुतिया वाली पोजीशन में ही दोनों थे..

नयना के मुँह से सिस्कारिया और आँख से आंसू आ रहे थे, उसे अपने प्यार से पहले मिलन के सुख के साथ-साथ रिश्ते में बड़े भाई से चुदने का दुख भी हो रहा था.. नयना फिर से झड़ चुकी थी और अब अंशुल भी उसी राह पर था उसका झड़ना भी कुछ ही देर में होने वाला था वो नयना की बुर पर बार बार ताकत के साथ हमला कर रहा था जिससे नयना की आवाज और तेज़ होने लगी थी.. पहली बुर चुदाई वो भी इतनी बेरहमी से.. नयना की हालात पतली थी वो अब सही गलत छोड़ चुकी थी और बस इस लम्हे के ख़त्म होने का ही इंतजार कर रही थी वो अब आखिरी फैसला कर चुकी थी की ये अंशुल के साथ उसकी पहली और आखिरी चुदाई है.. अंशुल ने झड़ते हुए अपना सारा वीर्य नयना की बुर में खाली कर दिया जिसे नयना आसानी से महसूस कर सकती थी वो आखिरी बार आहे भर रही थी और आंसू पोंछ कर अपनी इस पहली चुदाई विश्लेषण करने की कोशिश कर रही थी..

अंशुल नयना को चोद कर एक पत्थर पर गांड टिका के बैठ गया और नयना घास में नंगी पेट के बल ही पड़ी रही उसका बदन इस चांदनी रौशनी में दिव्य लग रहा था जैसे कोई आसमान की परी अभी अभी नीचे उतरकर आई है और अंशुल को उसने सम्भोग का असली पाठ पढ़ाया है..

नयना लड़खड़ाती हुई जैसे तैसे खड़ी हुई फिर अपनी बुर से बहते अंशुल के वीर्य को अपनी उंगलियों से साफ किया और अपनी ब्रा पैंटी वापस पहन ली कुत्ते का लंड कुतिया की बुर में चिपक गया था जिसे दोनों देख रहे थे.. अंशुल और नयना आपस में ना बोल रहे थे ना ही एक दूसरे को देख रहे थे.. नयना अपनी सलवार कुर्ती भी पहन चुकी थी.. अंशुल पथर से उठा और वो भी अपने कपडे पहनने लगा.. कपडे पहन कर उसने पास खड़ी नयना को देखा और उसके पास आ गया.. अंशुल नयना का हाथ पकड़ कर उसे जंगल से बाहर ले जाने लगा मगर पहली चुदाई के कारण नयना के बदन में अकड़न और पैरों में लंगडापन आ गया था.. अंशुल ने नयना को गोद में उठा लिया और सडक की ओर आ गया.. नयन अंशुल को बड़े प्यार से देख रही थी मगर अब ये प्यार अपने बड़े भाई के लिए था वो अंशुल में अपना भाई देख रही थी..

अंशुल बाइक के पास पहुंचकर नयना को गोद से उतारता है और कहता है..
अंशुल - पता आज से सेकड़ो साल पहले यहां जंगल में एक काबिल रहता था.. **** नाम था उस क़ाबिले का.. बड़ी अजीब मान्यता थी उस काबिले की अगहन की पूर्णिमा को लेकर...
नयना कुछ नहीं बोलती और चुपचाप अंशुल के पीछे बैठ जाती है.. अंशुल बाइक चलाकर प्रभातीलाल के यहां पहुँचता है जहाँ प्रभतीलाल और लज्जो के साथ गाँव के कुछ लोग भी नयना के इंतजार में बैठे थे..
प्रभतीलाल और लाजो नयना को देखते ही गले लगा लेते और और उससे घर से जाने का कारण पूछने लगते है उसे लाड प्यार करने लगते है.. प्रभती लाल ने तो नयना के लंगड़ाने का कारण नयन के पैर की मोच समझा मगर लज्जो अच्छी तरह उसका मतलब समझ रही थी.. लज्जो ने आँखों ही आँखों में अंशुल से सारा किस्सा समझ लिया और नयना को होने साथ घर जे अंदर ले गई.. प्रभती लाल अंशुल से बाते करने लगा और उसका धन्यवाद करने लगा.. अंशुल ने प्रभती लाल से कह दिया था की वो नयना से ब्याह करना चाहता है और जल्दी ही प्रभती लाल घर आकर बालचंद से ब्याह की तारिक पक्की कर ले.... प्रभातीलाल नयना का मन जानता था और इस पर सहमति जताते हुए अंशुल को गले लगाकर बोला - तुम इस घर के जमाई नहीं बेटे बनोगे...

अंशुल नयना को घर छोड़ कर चला गया था और नयना अपने रूम में जाकर बिस्तर सोते हुए अपने आप को कोस रही थी की वो बदन की आग में रिश्ते भी भूल गयी? मगर उसका ध्यान अंशुल की आखिरी बात पर था.. वो क़ाबिले वाली बात.. नयना ने तुरंत अपना फोन निकाला और google पर उस क़ाबिले के बारे में पता लगाने लगी....
नयना क़ाबिले के बारे में पढ़ रही थी की पढ़ते पढ़ते उसकी आँख बड़ी हो गई... क्या? ऐसा कैसे हो सकता है? इसका मतलब मेरी मन्नत पूरी..... मगर क्या सच मे ऐसा हो सकता है?
नयना ने पढ़ा था की उस क़ाबिले में एक परंपरा थी जिसमे अगर अगहन की पूर्णिमा को कोई औरत मर्द चाँद की पूरी रौशनी में सम्भोग़ कर ले तो उन्हें पति पत्नी होने का दर्जा मिल जाएगा... इसका मतलब उस क़ाबिले की परम्परा से नयना अंशुल की पत्नी बन चुकी है.... नयना इसे झूठलाने की कोशिश कर रही थी.. और अपने आप को समझा रही थी की ऐसा नहीं हो सकता... अंशुल उसका भाई है और अब वो उसे सिर्फ भाई की नज़र से ही देखेगी.. और कोई दूसरा रिस्ता उससे नहीं रखेगी.. अपनी मोहब्बत का गला वो घोंट देगी.. नयना और अंशुल के बीच अब सिर्फ यही एक रिस्ता होगा.... नयना खुदको पापी समझ रही थी.. अंशुल ने जो किया अनजाने में था मगर नयना को सब पता था फिर भी.... नहीं अब ये नहीं होगा.. नयना ने दृढ़निश्चिय किया था....

अंशुल को घर पहुंचते पहुंचते सुबह के चार बज चुके थे जब वो घर आया तो पदमा की हालात देख हैरान था.. पदमा ने रात जागकर गुजारि थी और उसकी आँखे बोझल लग रही थी.. अंशुल पदमा को अपनी गोद में उठाकर अपने कमरे में ले गया और अपनी बाहों में लेटा कर प्यार से उसका सर सहलाते हुए सुलाने लगा था.. पदमा जो रात से अंशुल की याद में जाग रही थी वो अंशुल की बाहों में तुरंत सो गई...

अंशुल के लिए पदमा और नयना में कोई फर्क नहीं रह गया था वो दोनों को अपने पास रखना चाहता था और प्यार करना चाहता था उसका मन अब दोनों को चाहने लगा था.. उसकी बाहो में सो रही उसकी माँ पदमा उसे कितना चाहने लगी थी ये उसे आज की उसकी हालात से पता लगा......

दिन गुजरने लगे थे... दो महीने बीत गए मगर नयना की अंशुल से कोई बात न हो सकती थी एक दो बार अंशुल नयना से मिलने गया भी तो पता लगा नयना अपने चाचा के यहां गई हुई है उधर पदमा अब दिनरात बालचंद से नज़र बचकर अंशुल के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए आतुर रहती थी.. दोनों का प्रेम प्रगाड़ से भी अधिक मजबूत हो गया था... नयना अंशुल से बच रही थी वो नहीं चाहती थी की अब अंशुल उसे अपनी प्रेमिका के रूम में देखे और प्यार करे.. नयना बस अंशुल को अपना भाई समझने लगी थी और उससे भाई वाला रिस्ता कायम रखना चाहती थी.

एक दिन दोपहर को जब बालचंद ऑफिस में बड़े बाबू की गाली खा रहा था और बेज़्ज़त हो रहा था वहीं दूसरी तरफ उसकी बीवी अपने बेटे के सामने अपनी गांड फैलाये घर पर उसके ही बिस्तर में अपनी बुर चुदवा रही थी.... अंशुल पदमा के बाल पकड़ कर पीछे से उसकी बुर कुटाई कर रहा था और पदमा सिसकते हुए मज़ा ले रही थी... तभी अंशुल का फ़ोन बजा....
पदमा ने चुदते हुए फ़ोन उठा कर स्पीकर पर डाल दिया और अपना एक हाथ पीछे करते हुए अंशुल की तरफ फ़ोन कर दिया अंशुल अपने दोनों हाथ से पदमा की कमर थामे चोदता हुआ फ़ोन पर बात करने लगा...
हेलो...
हेलो.. आशु....
हां... मस्तु (अंशुल का शहर में रूमपार्टनर, पदमा के फलेशबैक में डिटेल से इसके बारे में लिखा गया है)
मस्तु - भाई अभी अभी तेरा परिणाम आया है...
अंशुल अपनी माँ चोदते हुए - अच्छा....
पदमा चुदते हुए सारी बाते सुन रही थी...
(मस्तु चुदाई की आवाजे साफ साफ सुन रहा था.. मगर वो जनता था ये किसकी चुदाई चल रही है इसलिए चुदाई के बारे में कुछ बोला नहीं..)
मस्तु - भाई कहा था मैंने तू पहली बार में निकाल लेगा.. निकाल लिया तूने.... अब तू सिर्फ अंशुल नहीं... ******* अंशुल है.. जल्दी से शहर आ बड़ी पार्टी लेनी है तुझसे... कहते हुए मस्तु ने फ़ोन काट दिया..
अंशुल ने पदमा को पलट दिया और अब वो मिशनरी पोज़ में पदमा के ऊपर आकर उसकी चुदाई करने लगा...
अंशुल - बधाई हो माँ.... अब तू सरकारी चपरासी की बीवी नहीं.. सरकारी अधिकारी की माँ है...
पदमा - आह्ह लल्ला.. तूने तो सच में अपना वादा पूरा कर दिया... मैं तो तुझे इस ख़ुशी के मोके पर कुछ दे भी नहीं सकती..
अंशुल - बिलकुल दे सकती हो माँ.....
पदमा - सब तो दे चुकी हूँ बेटा अब मेरे पास बचा ही क्या है?
अंशुल ने पदमा को होंठ चूमते हुए कहा - माँ मुझे तुम्हारी गांड चाहिए......
पदमा अंशुल की बात सुनकर शर्म से पानी पानी हो गई अब तक उसने अंशुल के दानवी लंड से डर कर अपनी गांड उसे नहीं दी थी मगर आज अंशुल ने उससे वहीं मांग ली थी...
पदमा ने मुस्कुराते हुए कहा - मैं तो खुद तुझे सब देना चाहती हूँ लेकिन डरती हूँ तेरे उस लोडे से... मगर ठीक है दो दिन बाद जब भालू शहर जाए तब ले लेना.. अंशुल झड़ चूका था..


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What a maze of relations. Fantastic story.
 
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अध्याय 7
अगहन की पूर्णिमा


प्रभातीलाल घर के बाहर बने पेड़ के चबूतरे के ऊपर अपना सर पकड़कर बैठा था, सुबह उसका झगड़ा लाज़वन्ति से हुआ था लाजो (लाज़वन्ति) पेट से थी और ये अंशुल और लाजो के बिच उस रोज़ हुई घमासान ताबड़तोड़ चुदाई का परिणाम था जिसे लाजो ने बड़ी ख़ुशी से स्वीकार किया था प्रभतीलाल को शंशय था मगर लाजो के पेट में पल रहे बच्चे को अपना न मानने की उसके पास कोई वजह न थी.. कुदरत ने इतने सालों के बाद एक बार पहले भी उसे बाप बनाया था मगर लाजो का वो बच्चा होते ही मृत्यु को हासिल हो गया था.. सुबह प्रभतीलाल जब लाजो से नयना को लेकर किसी सम्बन्ध में झगड़ रहा था तब नयना घर में ही मोज़ूद थी.. लाजो अपनी जबान पर काबू न रख सकी और उसके मुँह आज इतने सालों बाद निकल ही गया की - नयना कोनसी तुम्हारी अपनी औलाद है.... जिस शराबी ने अपनी बेटी कहकर नयना को तुम्हे दिया था.. सुना है किसी जेल में बंद है.. बच्चा चुराते हुए पकड़ा था.. नयना को भी किसी अस्पताल से चुराया होगा उसने... बच्चे के मोह में तुमने जरा भी छान बिन नहीं की थी.. भूल गए?

नयना ने लाजो की ये बात सुन ली थी और उसके दिल पर एक और वज्र आ गिरा था लाजो ने क्या उसके दिल को अपने कदमो से रोदने का ठेका ले रखा है? पहले अंशुल के साथ वो सब करके और अब इन सब बातों से....
नयना बिन बताये कहीं चली गई थी.. प्रभतीलाल ने बहुत ढूंढा पर मिली नहीं गाँव में भी हर तरफ उसीकी तलाश हो रही थी मगर नयना का कोई अता पता नहीं था प्रभती सभी सहेलियों, सखियों और जानने वालो के घर पूछ आया था अब रोता हुआ अपना सर पिट रहा था उसे लाजो पर गुस्सा आ रहा था की उसने सुबह ऐसी बातें बोली ही क्यू? हो न हो नयना उन बातों को सुनकर ही वहा से गई होगी.. वरना आज तक उस बच्ची ने कोई गलत कदम नहीं उठाया था.. लाजो को अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आ रहा था वो दिल की साफ थी मगर आज उसके जुबान से जो बातें निकली थी वो उसे भी पीड़ा पंहुचा रही थी उसने तय किया था नयना से अपने किये की माफ़ी मांगेगी..

सुबह बीत चुकी थी और दोपहर का समय आ गया था.. नयना जेल के सामने खड़े थी उसने उस आदमी से मिलने की ठान ली थी जिसने नयना को प्रभती लाल के यहां अपनी बेटी बताकर दिया था.. नयना ने उस आदमी के बारे में पता किया था, नाम जब्बार था शराब के साथ और भी कई नशे करता था.. Police ने कई कानूनी दफाओ में उसे बंद करवा दिया था बीस बरस की सजा हुई थी उसे.... और पिछले 16 साल से जेल में बंद था.. हफ्ते में जिन दो दिनों में क़दी से मिला जा सकता था उनमे से एक दिन आज था.. आज क़दी से मिलने आने जाने की छूट थी.. एक स्थानीय वकील की मदद से नयना को जब्बार से मिलने का मौका मिल गया था.. नयना घबराते हुए लोहे की जाली के करीब खड़ी थी अंदर से एक नाटा सा आदमी संवाले रंग वहा आ गया देखने में खुंखार तो नहीं था मगर उसकी आँखों से लगता था जैसे उसने अपनी जिंदगी में हर नशा किया था मगर अब उसकी हालात बेहतर थी जेल में रहकर उसने कम से कम नशे से मुक्ति पा ली थी.. जब्बार 45 साल के करीब था शरीर में दुबला पतला मरियल मगर तेज़ दिमाग और नोटंकी में उस्ताद....
दिवार के पास सिपाही तैनात था उसी के थोड़ा दूर जाली से बाहर की तरफ नयना और अंदर जब्बार..
जब्बार - जी कहिए....
नयना की आँख नम थी और मन अस्त व्यस्त मगर उसने होने बिखरे दिल को समेटकर जब्बार से पूछा..
आज से 19 साल पहले एक बच्ची तुमने यहां से 22 कोस पश्चिम की ओर हुस्नीपुर में प्रभतीलाल को दी थी.. तुमने उसे कहा से चुराया था?
जब्बार दिमाग पर जोर डालकर कुछ सोचने लगा ओर फिर हँसता हुआ बोला - अरे.... बिटिया तुम तो बड़ी हो गई हो.. मेरी लाड़ली बिटिया... मैंने तुम्हे कहीं से चुराया नहीं था तुम तो मेरी अपनी बिटिया हो...
नयना को जब्बार की बाते सुनकर गुस्सा आ रहा था वो वापस बोली - देखो अगर तुम सच सच बताओगे तो ये वकील साब तुम्हे बाहर लाने के लिए कोशिश कर सकते है.. तुम जल्दी बाहर आ जाओगे..
जब्बार - बिटिया सच कह रहा हूँ... तुम्हारी कसम.. तू मेरा अपना खून है.. मेरी बिटिया...
नयना - देखो नाटक मत करो.. तुम्हे जो चाहिए मैं दिलवा सकती हूँ.. मगर मुझे सच जानना है.. तुम्हे चुप रहकर भी कुछ नहीं मिलने वाला... सच बोलकर तुम जो चाहो पा सकते हो...
जब्बार - जो मागूंगा दोगी....
नयना - हां....
जब्बार - बिरयानी चाहिए.... रायते के साथ..
नयना - ठीक है पर जेल में कैसे??
जब्बार - ये जेल है यहां सब मुमकिन है... जब्बार ने पास खड़े सिपाही को पास आने इशारा किया और नयना से कहा.. मेरी एक साल की बिरयानी के पैसे सिपाही जी की जेब में रख दो....
नयना - क्या?
जब्बार - क्या नहीं.... हां.... जल्दी करो... तुम्हे अपने घरवालों के बारे में जानना है या नहीं..
नयना - पर मेरे पास अभी इतने ही पैसे है..
जब्बार - कितने है?
नयना - 12-13 हज़ार...
जब्बार - सिपाही की जेब रख दो....
नयना ने पास खड़े सिपाही को पैसे दे दिये..
जब्बार खुश होता हुआ सिपाही को इशारे से वापस भेज दिया और मुँह का थूक गटकते हुए धीमे से बोला चलो महीने भर का जुगाड़ तो हुआ...
नयना - अब बताओ कहा से चुराया था मुझे?
जब्बार - श्यामलाल अस्पताल, विराटपुर, वार्ड-3 बेड नम्बर-7 दिन-बुधवार दिनांक - ##-##-####...
नयना ने अपने फ़ोन में जब्बार की सारी बाते रिकॉर्ड कर ली थी.. वो बाहर आ गई उसका दिल जोरो से धड़क रहा था.. उसने बाहर से एक रिक्शा पकड़ा और विराटपुर के लिए चली रिक्शा विरातपुर में श्यामलाल अस्पताल के आगे रुका था.. नयना ने सबसे पहले अस्पताल के बाहर एटीएम से पैसे निकलवाये और रिक्शा वाले को भाड़ा देकर अस्पताल के अंदर आ गई.. ये एक सरकारी अस्पताल था..

नयना पिछले एक घंटे से अस्पताल की टूटी हुई कुर्सी पर बैठे इंतजार कर रही थी एक मोटी सी भद्दी दिखने वाली महिला ने उसे बैठने को कहा था और अंदर चली गई थी जब वो बाहर आई तो नयना ने वापस उससे वहीं सवाल पूछ लिया जो पहले पूछा था.. जब्बार से मिली डिटेल बताते हुए नयना ने उस औरतों से उस रोज़ बेड नम्बर 7 पर एडमिट महिला के बारे में पूछा तो वो औरत मुँह से गुटका थूकती हुई नयना पर चिल्ला कर बोली - कहा रिकॉर्ड ढूंढ़ रहे है.. बैठी रहो चुप छप जा चली जाओ यहां से... कितना काम है पड़ा... सरकारी अस्पताल में लोग काम भी करते है? नयना ने मन में यही बाते बोली थी वो देख रही थी कैसे वो औरत अपने साथ बैठी दूसरी औरत के साथ पान मसाला खाती हुई लूडो खेलने में व्यस्त थी.. मरीज़ तो भगवान भरोसे थे.. मगर जहा मरीज़ खुद इसी इलाज के लायक हो वहा उनका ऐसा ही इलाज होता है.. नयना ने टीवी में देखा था अमेरिका के सरकारी अस्पताल और उसकी खुबिया.... और आज वो यहां सरकारी अस्पताल देख रही थी.. मगर अमेरिका में लोग भी अलग है.. पढ़े लिखें, अपने हक़ अधिकारों को लेकर सजग और ईमानदार, खुले दिमाग और विचारों वाले.. सरकार से सवाल पूछने वाले मगर यहां? यहां तो पढ़ाई लिखाई का कोई महत्त्व ही नहीं है.. जो पढ़ाया जाता उससे बच्चे का नैतिक विकास तो दूर उसमे खुदसे सोचने समझने की काबिलियत तक नहीं आ पाती, जाती और धर्म के मामले में उलझकर विकास का गला घुट जाता है.. राजनितिक लोग राजनितिक लाभ के लिए लोगों को गुमराह करते है और वो आसानी हो भी जाते है.. जब अपने दिमाग से किसी चीज़ की परख ही नहीं कर पाएंगे, सही गलत ही नहीं जांच पाएंगे तो इसी हाल में रहना होगा.. और क्या? नयना के दिमाग में यही चल रहा था मगर उसे अब बैठे हुए काफी देर हो चुकी थी उसने फिर दूसरा रास्ता अपनाया..
नयना ने एक सो का नोट उस औरत के सामने रखे रजिस्टर के नीचे रखा और प्यार से कहा - जरा अर्जेंट है देख लीजिये ना.. औरत ने सो का नोट अपनी जेब में डाल लिया और नयना को अपने पीछे आने का इशारा किया..
नयना औरत के पीछे पीछे रिकॉर्ड रूम में आ गई.. ये बेसमेंट में था.. साल #### के माह ### का एक बड़ा पोटला निकाल कर सामने टेबल पर रख दिया और उसपर जमीं धूल साफ करती हुई गाँठ खोल दी.. एक रजिस्टर निकलकर नयना को देती हुई बोली जल्दी से देखकर वापस दो..
नयना रजिस्टर लेकर पन्ने पलटते हुए उस पन्ने पर पहुंची जहाँ उस दिन की सारी एंट्री लिखी हुई थी जिस दिन के बारे में जब्बार ने जिक्र किया था.. नयना ने पहले अपने फ़ोन उस पेज की तस्वीर ली फिर पन्ने पर लिखी एंट्री को गौर से देखने लगी....
वार्ड नंबर -3 बेड नम्बर -7 पेशेंट नेम - पदमा देवी पति का नाम - बालचंद..... पता - ******* एडमिट होने का कारण - प्रेगनेंसी.... नयना के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गई थी.. उसे यकीन नहीं हो रहा था जो उसने अभी अभी पढ़ा था क्या वो सच था? या कोई मज़ाक़ जो जब्बार ने उसके साथ किया था?
हो गया? पढ़ लिया? लाओ दो.. उस औरत ने वापस पोटली को वहीं बांधकर रख दिया.. नयना अस्पताल से बाहर आ गई थी उसकी आँखों में आंशू की धारा बह चली थी जो अब बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी तो क्या वो अंशुल की..... नहीं नहीं... ऐसा नहीं हो सकता... उसने जो अभी अभी देखा उसपर नयना को यक़ीन नहीं आ रहा था और ना ही वो यक़ीन करना चाहती थी.. ऐसा कैसे हो सकता है? इतना बड़ा संयोग? नहीं नहीं.. ऐसा नहीं हो सकता.. मगर क्या कागज झूठ बोलते है? पर ऐसा कैसे मुमकिन है? वो तो अंशुल से बेताशा प्यार करती है और आज की रात अंशुल से ब्याह का वादा था उसका.. आखिरी बार अंशुल ने भी उसे आज रात ब्याह करने की बात कही थी.. पर क्या अंशुल उसका बड़ा भाई... नहीं ये नयना क्या सोच रही है? ऐसा नहीं है... नयना भारी कश्मकश और उलझनों से जूझती हुई अस्पताल से बाहर आकर एक जगह बैठ गई थी और रोये जा रही थी उसकी आँखों से आंसू का सागर बह जाना चाहता था.. वो सोच भी नहीं सकती थी की ऐसा कैसे हो सकता है? अंशुल जिसे वो दिल और जान से चाहती है अपना मान चुकी है वो उसको सगा बड़ा भाई है.. उसने अपने बड़े भाई से प्यार क्या है.. नयना के नयन आंसू के साथ उसके मन की हालात भी बाहर निकाल रहे थे...

अंशुल आज नयना को अपना बनाने के इरादे से घर से निकला था वो जब नयना के घर पंहुचा तो लाजो ने उसे सारा वृतांत कह सुनाया.. नयना सुबह से किसी का फ़ोन भी नहीं उठा रही है... लाजो की आँखों में आंसू थे मगर अंशुल जानता था की नयना इस वक़्त उसे कहा मिल सकती है अंशुल ने लाजो के गर्भवती होने की बात भी पता चली थी जिसपर उसने लाजो को अपने सीने से लगाते हुए अपना और बच्चे का ख्याल रखने की नसीहत भी दे दी.. अगर इस वक़्त नयना का ख्याल ना होता तो अंशुल और लाजो के बीच सम्भोग होना तय था.. लाजो की आँखों में नयना के दुख के साथ साथ अंशुल से कामसुख की इच्छा भी थी.. मगर इस इच्छा को अंशुल ने सिर्फ एक चुम्बन में समेटकर रख दिया..
अंशुल जब नयना के घर से बाहर निकला तो उसे सामने से प्रभतीलाल आते दिखे और वो रुक गया.. दोनों के बीच मोन था.. दोनों को समझ नहीं आ रह था की कैसे वो बात की शुरुआत करे और एक दूसरे के सामना करे..
अंशुल प्रभतीलाल को नस्कार किया तो प्रभती लाल ने भी विचलित मन से उसका जवाब दे दिया.. नयना की बाते होने लगी.. अंशुल ने प्रभती लाल से कहा की वो चिंता न करे अंशुल उसे खोज लाएगा.. अ नयना का प्रेम प्रभती लाल जानता था मगर उसे अब अंशुल के बारे में भी पता चला था.. दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे है.. प्रभती लाल की आँखों में कुछ सुकून आया था..

शाम हो चुकी थी अंशुल ने पदमा से आज घर नहीं आने का कोई बहाना बना लिया था जिसपर पदमा बड़ी नाराज़ हुई थी मगर अंशुल ने उसे समझा लिया था अंशुल गाँव से बाहर आ चूका था एक एक करके उन सारी जगहों पर जा आया था जहाँ नयना मिल सकती थी.. फिर अंशुल के दिमाग में कुछ ख्याल आया और वो अपनी बाइक स्टार्ट करके किसी ओर चल दिया... एक जगह पहुंच कर उसने बाइक रोक दी.. रास्ता सुनसान था सांझ ढल चुकी थी पूर्णिमा के पुरे चाँद ने रौशनी की कोई कमी नहीं रखी थी इस रौशनी में अंशुल साफ साफ सब देख सकता था सडक के दोनों तरफ पेड़ थे जैसे जंगल हो... अंशुल आगे बढ़ गया था...

अंशुल के बाहर रहने से पदमा के स्वाभाव में परिवर्तन आ गया था वो आज चिड़चिड़ी सी लग रही थी बालचंद ने उसका मूंड देखकर उससे उलझना जरुरी नहीं समझा ओर दूर ही रहा यही उसके लिए सही भी था.. आज अंशुल नहीं था मगर फिर भी पदमा को चैन नहीं आ रहा था ओर वो बेचैन हो रही थी उसने आज भी बालचंद को दवाई दे दी थी जिससे बालचंद नींद में खराटे मार रहा था ओर पदमा अंशुल के रूम में जाकर उसी बिस्तर पर जहाँ वो अंशुल के साथ काम क्रीड़ा किया करती थी लेट गई थी ओर अंशुल की तस्वीर अपनी छाती से लगा कर चुत में उंगलियां करते हुए सोने की कोशिश कर रही थी.. पदमा को महसूस हो रहा था की अंशुल उसके लिए कितना जरुरी बन चूका है और अब वो अंशुल के बिना नहीं रह सकती.. पदमा अंशुल के प्यार में पागल हो चुकी थी ऐसा उसकी हालात देखकर कहा जा सकता था..

नयना की आँखे नम थी आज का सारा दिन उसने अपनी हक़ीक़त पता लगाने में लगाया था और किसी का फ़ोन नहीं उठा रही थी इस वक़्त जंगल में उसी पेड़ के नीचे अकेली बैठी थी जहाँ उसने अपने लिए मन्नत मांगी थी मन में चलती कश्मकश और उथल पुथल के बीच उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे? अंशुल उसका अपना बड़ा भाई निकलेगा ऐसा उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.. कैसे सपने देखे थे उसने अंशुल के साथ जिनमे वो अपनी मर्यादा लांघ चुकी थी.. हर रात वो अंशुल के साथ हम बदन होने के ख्याब देखती थी मगर आज उसे उन ख़्वाबों के लिए अजीब लग रहा था ये पश्चात् नहीं था मगर वैसा ही कुछ था जिसे बयान करना व्यर्थ है.. नयना ने अच्छी तरह जांच पड़ताल की थी... तब जाकर उसने ये माना था की जब्बार जो कह रहा था वो सही और सत्य था.. जब पहली बार नयना अंशुल के घर गई थी तब बालचंद ने भी ये प्रसंग छेड़ा था जिसमे अस्पताल से उनकी बच्ची के चोरी होने का जिक्र था मगर वो इतना विस्तृत नहीं था जिससे नयना सारा माजरा समझ पाती.. नयना कुछ तय करने का मन बना रही थी.. इस चांदनी रात की रौशनी में उसका दुदिया रंग चमक रहा था जिसे अंशुल ने दूर से ही देख लिया था.. नयना अपने ख्यालों में इतनी खोई हुई थी उसे महसूस भी नहीं हुआ की अंशुल उसके बेहद नज़दीक आ कर बैठ चूका था..

लो.. खा लो... अंशुल ने नयना की तरफ एक खाने का पैकेट बढ़ाते हुए कहा तो नयना अपने ख्याल से बाहर आते हुए चौंक गई.. आप....? यहाँ...
अंशुल ने खाने का पैकेट फाड़ कर चम्मच से एक निवाला नयना के होंठों की तरफ खाते हुए कहा - क्यू यहां तुम ही आ सकती हो? चलो मुँह खोलो... वरना खाना ठंडा हो जाएगा.. अंशुल रास्ते में पड़े एक रेस्टोरेंट से राजमाचावल ले आया था उसे यक़ीन था की नयना सुबह से भूखी प्यासी होगी और अंशुल के शादी से इंकार करने के कारण ही घर से चली गई होगी.. अंशुल नयना को अपना बनाने आया था.. अंशुल को पदमा ने नयना से शादी करने के लिए पहले से परमिशन दे रखी थी और उसके लिए अंशुल को बोला भी था मगर अंशुल ही अब तक नयना से शादी करने से भाग रहा था.. मगर अब वो नयना का प्यार स्वीकार कर चूका था और पदमा के साथ नयना को भी अपना बनाकर रखना चाहता था वहीं पदमा में आये परिवर्तन का उसे इल्म नहीं था पदमा अब अंशुल के पीछे पागल हो रही थी..
नयना ने बिना कुछ बोले पहला निवाला मुँह में ले लिया और खाने लगी.. धीरे धीरे अंशुल ने उसे खाना खिला दिया नयना और अंशुल ने उस दौरान कोई ख़ास बात चीत नहीं हुई थी.. बस अंशुल नयना की तरह देखता हुआ प्यार से उसे खाना खाने की गुजारिश करता रहा और नयना उसकी मिन्नतो को मानते हुए खाना खाती रही.. नयना का दिल जोरो से धड़क रहा था उसके सामने उसका प्रेमी था जिसमे उसे अब अपना बड़ा भाई नज़र आ रहा था.. कुदरत का केसा निज़ाम है? अगर इस वक़्त नयना को ये मालूम ना होता की वो अंशुल की छोटी बहन है तो वो अंशुल को अपनी बाहो में लेकर बहक चुकी होती और प्यार सागर में दोनों का मिलन हो चूका होता मगर उसे ये ख्याल अंशुल से दूर ले जा रहा था की नयना तू ये नहीं कर सकती.. ये जान लेने के बाद की अंशुल तेरा सगा भाई है तू उसके साथ ये रिस्ता नहीं रख सकती.. नयना को समाज के नियम कायदे और रितिया याद आने लगी थी खुद पर शर्म आने लगी थी उसका दिल कितनी बार टूटेगा वो सोच रही थी और अब उसकी आँख फिर से नम हो चली थी जिसे अंशुल ने अपने हाथो से आंसू पोचकर साफ किया था.. खाने के बाद पानी पीते हुए नयना ने अंशुल से कहा - आपको कैसे पता मैं यहां हूँ....
अब बीवी कहा है ये तो पति को मालूम ही होना चाहिए. अंशुल ने अपना रुमाल निकलकर नयना के होंठो को साफ करते हुए जवाब दिया था जिसपर नयना लज्जा गई थी... मगर क्यू? उसने तो अब अंशुल से दूर होने का फैसला किया था.. मगर अंशुल का प्रेम नयना के मन में इतना पक्का था की वो उसे निकालने में असमर्थ थी..

नयना शर्म से लाल थी और जमीन की ओर देख रही थी अंशुल ने उसको चेहरा उसकी ठोदी से उंगलि लगा कर ऊपर उठाया ओर उसके गुलाब सुर्ख लबों पर अपने लब रख दिए.. इस चांदनी रात में दोनों इस बड़े से पेड़ के नीचे एक दूसरे के प्यार में घुल चुके थे नयना के लबों को चूमते ही अंशुल ने उसके दिमाग में चल रहे सारे ख्याल को शून्य कर दिया नयना बस इसी पल में होकर रह गई जहाँ वो अंशुल को अपने लबों के शराबी जाम पीला रही थी.. नयना ने अंशुल को इतना कसके पकड़ा हुआ था जैसे कोई छोटा बच्चा डर से किसी बड़े से चिपक जाता है.. अंशुल ने चुम्बन की शुरुआत की थी मगर नयना उसके लबों को ऐसे चुम रही थी जैसे जन्मो की प्यासी हो उसने सब भुला दिया था.. अंशुल की बेवफाई ओर उसके रिश्ते को भूल चुकी थी.. अब सिर्फ उसे इसी पल को जीना था जिसमे उसे उसका प्यार अपनी बाहों में लिए खड़ा था ओर अपना बनाने को आतुर था..

नयना अपने दोनों हाथ अंशुल जे गले में डालकर उसके लबों को प्रियसी बनकर चुम रही थी ओर अपने प्रियतम को अपनी कला से भावविभोर कर रही थी अंशुल नयना की इस हरकत पर मन्त्रमुग्ध हो रहा था.. अंशुल ने नयना की कमर में हाथ डालकर उसे हवा में उठा लिया था ओर दोनों के बदन आपस में ऐसे चिपक गए थे जैसे की दोनों एक ही हो.. इस चांदनी रात में नयना की लहराती जुल्फे किसी फ़िल्मी दृश्य का काम कर रही थी नयना ओर अंशुल ने जी भरके एक दूसरे को चूमा ओर फिर अंशुल ने चुम्बन तोड़कर नयना के चहेरे ओर गर्दन पर अपने चुम्बन की बौछार शुरु कर दी अंशुल की मदमस्त प्रेमी की तरह नयना के जिस्म का स्वाद ले रहा था गर्दन चाटने पर नयना ओर भी ज़्यदा अंशुल की तरफ मोहित होने लगी थी वो भूलने लगी थी अंशुल उसका बड़ा भाई है नयना को अंशुल में सिर्फ अपना प्यार नज़र आ रहा था पहली नज़र वाला प्यार और नयना कब से यही तो चाहती थी की अंशुल उसे अपना बना ले आज हो भी तो वहीं रहा था.. नयना कैसे अपने आप पर काबू रखती क्या इतना गहरा प्यार एक पल में ख़त्म किया जा सकता है? नहीं ऐसा नहीं हो सकता.. नयना कैसे अंशुल से दूर जा सकती थी अंशुल ने उसे पूरी तरह अपने बस में लिया हुआ था..

गर्दन और कंधे चूमने के बाद एक बार फिर से अंशुल नयना के लबों पर आ गया और उसके गुलाबी होंठ को बड़े प्यार से चूमने लगा... नयना भी अंशुल के लबों को अपने दांतो से खींचते हुए चुम रही थी और बार बार अंशुल की जीभ को अपनी जीभ से लड़ा रही थी मानो वो दोनों की कुस्ती करवाना चाहती हो.. चांदनी रात की रौशनी में जंगल में इस पेड़ के नीचे दोनों चुम रहे थे की किसी जानवर के आने की आहट हुई तो दोनों का चुम्बन एक बार फिर टूट गया.. अंशुल और नयना आपस में चिपके हुए थे दोनों की नज़र एक साथ जानवर पर गई तो थोड़ी दूर कुत्ते नज़र आ रहे थे.. एक कुत्ता कुतिया के पीछे चढ़ा हुआ उसके साथ सम्भोग कर रहा था और कुतिया के मुँह से आवाजे आ रही थी.. अंशुल और नयना ने ये नज़ारा देखकर एक दूसरे की तरफ देखा फिर हंसने लगे जैसे आगे होने वाली प्रकिया को पहले ही जान चुके हो..

अंशुल ने अपने एक हाथ से नयना का एक कुल्हा पकड़ लिया और जोर से मसलने लगा जिससे नयना के मुँह से भी सिस्करी निकाल पड़ी.. वो शिकायत भरी आँखों से अंशुल को देखने लगी मानो पूछ रही हो अंशुल क्या तुम यही सब कर लोगे? अंशुल ने नयना को अपनी गोद में उठा लिया और पेड़ के पीछे दाई और घास की सेज पर लिटा दिया जहाँ साफ साफ चाँद की रौशनी पहुंच रही थी जहाँ से सारा नज़ारा बिना किसी परेशानी या रुकावट के देखा जा सकता था मगर ये देखने वाला वहा था कौन? कोई भी तो नहीं था.. नयना के मन में अंशुल का चेहरा देखकर फिर से वहीं ख्याल आने लगे थे.. नहीं नहीं.. ये मैं क्या कर रही हूँ? अंशुल मेरा भाई है.. सगा भाई.. और में उसके साथ ही.. नहीं.. मैं ये नहीं कर सकती.. ऐसा नहीं हो सकता.. मुझे अंशुल को रोकना होगा.. हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हो सकता.. ये सब पाप है.. गलत है.. नयना के मन जब तक ये सवाल आये तब तक उसके बदन से अंशुल ने कुर्ती उतार ली थी और अब नयना अंशुल के सामने घास पर सलवार के ऊपर ब्रा पहने लेटी हुई थी.. चाँद की रौशनी में नयना का गोरा बदन सोने की तरह चमक रहा था.. विकसित चुचे उसके छाती पर काले रंग की ब्रा से ढके हुए थे जिन्हे अंशुल ब्रा के ऊपर से मसल रहा था और चुम रहा था.. नयना अपने मन की गहराइयों में इस मिलने का मज़ा लेते हुए अपने मन की उपरी परत पर आज हुए खुलासे के घाव से परेशान थी.. वो समझ नहीं पा रही थी उसे क्या करना है वो एक पल कुछ तय करती और फिर अगले पल कुछ और..

अंशुल ने नयना की ब्रा के साथ ही अपनी शर्ट भी उतार दी और अब दोनों कमर से ऊपर नंगे थे अंशुल पूरी चाहत के साथ नयना को अपना बनाने में लगा था वहीं नयना अपने बदन की जरुरत और हालात से मजबूर थी वो चाहती थी तो अंशुल से दूर होना थी मगर उसका जिस्म उसे इस बाते की इज़्ज़त नहीं दे रहा था.. अंशुल नयना के छाती पर उभार को अपने मुँह से चाट रहा था और बार बार नयना की निप्पल्स को अपने मुँह में भरकर चूसता हुआ उसकी मादक सिस्कारिया सुन रहा था पूरा माहौल चुदाईमय बन चूका था जहाँ थोड़ी दूर कुतिया एक कुत्ते से चुदती हुई चीख रही थी वहीं यहां नयना जो अंशुल से दूर होना चाहती थी वो अंशुल के सर को सहलाती हुई अपने चुचे उसके मुँह में दे रही थी जिसे अंशुल बड़े ही प्यार से चूस रहा था और निप्पल्स दांतो से काटते हुए खींच रहा था.. अंशुल ने नयना बोबो को दबा दबा के और चूस चाट के लाल कर दिया था नयना की छाती पर गहरे निशान पड़ने लगे थे जिसमे नयना को आनंद की अनुभूति हो रही थी मर्द का प्यार उसे पहली बार मिला था..

अंशुल फिर से नयना के होंठो पर आ गया और नयना ने उसे फिर से अपने दोनों हाथ से अपनी मधुशाला का प्याला भरके अंशुल को अपने होंठ से पिलाना शुरू किया.. अंशुल का एक हाथ धीरे धीरे नयना के चेहरे से होता हुआ उसके कंधे फिर चुचे फिर नाभि और फिर नयना की सलवार में जा घुसा नयना को इसका अंदेशा भी नहीं था की अंशुल ने अपना एक हाथ उसकी सलवार में डाल दिया था वो तो बस होने लबों से अंशूल को चाहत के जाम पिलाने में मस्त थी उसके लिए यही सब अभी हो रहा था..
अंशुल का हाथ सलवार में नयना के पैर के जोड़ तक चला गया जहाँ नयन की बुर पनिया रही थी नयना की पैंटी बिलकुल गीली हो चुकी थी और बुर को छूने पर नयना और ज्यादा उत्तेजित होने लगी थी उसने अंशुल को और कसके जकड लिया था.. अंशुल के हाथ ने नयना की बुर को तालाशा तो अंदाजा लगाया की नयना की बुर बिलकुल साफ सुथरी है जिसपर अभी तक बाल का कोई नामो निशान नहीं है हलके से दो चार बाल आये भी है तो वो बुर के ऊपर मुहाने पर.. इतनी प्यारी और रसदार बहती चुत को अंशुल चोदने की इज़ाज़त लेने नयना की आँखों में देखता हुई उसकी बुर सहलाने लगा.. मगर नयना की आँख बंद थी वो अंशुल को पकडे हुए उसके चेहरे और आस पास के हिस्से चुम रही थी.

अंशुल ने अपना हाथ नयना की बुर से हटा लिया और फिर मादकता के नशे में डूबी हुई नयना को देखते हुए उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार नीचे सरका दी.. आँख बंद करके अंशुल की बाहों में पड़ी नयना अपने साथ होते इस सब घटनाक्रम को महसूस कर रही थी.. उसके बदन पर सिर्फ बुर के पानी से भीगी हुई पेंटी ही बची थी जिसे भी अंशुल ने अगले ही पल उसके बदन से अलग कर दिया था.. अंशुल की बाहों में अब एक पूरी नंगी जवान खूबसूरत हसीन लड़की लेटी हुई थी जो अपने हाथो से अपना चेहरा छुपाने की कोशिश कर रही थी.. अंशुल ने भी अपनी जीन्स उतार कर एक तरफ रख दी और वो भी अपनी प्राकृतिक अवस्था में आ गया.. अंशुल ने नयना के पैरों को खोला और उसकी गुलाबी चिकनी साफ बुर पर अपने होंठ रख दिए..


अंशुल को चुदाई कला का पूरा ज्ञान था उसने जो अनुभव पदमा धन्नो सुरीली से लिया था वो आज काम आ रहा था और यही कारण था की नयना जो पहले अंशुल से दूर जाने की सोच रही थी वो अब उसके सामने बेबस और लाचार बनकर लेटी हुई उसकी हर हरकत को प्यार कर रही थी.. अंशुल ने जैसे ही नयना की बुर पर अपने होंठ रखे नयना के मुँह से आह्ह... निकल गई और फिर नयना ने अंशुल के सर को अपने दोनों हाथो से एकसाथ अपनी बुर पर दबा लिया मानो कह रही को की अंशुल चुसो मेरी बुर को चाटो.. खा जाओ इसे.. मैं तुम्हे अपनी कच्ची बुर पर पूरा हक़ देती हुई.. मेरी बुर का घमंड तोड़ दो.. अंशुल बुर चाटते हुए उससे छेड़खानी कर रहा था जिससे नयना कुछ ही पलो में अंशुल के मुँह में झड़ गई और तुरंत बाद पेशाब करने लगी जैसे उसका अपने शारीर पर कोई नियंत्रण ही नहीं था.. अंशुल का मुँह नयना ने अपने बुर से निकले पानी से भर दिया जिसे अंशुल को पीना पड़ा.. नयना शर्म से लाल हो चुकी थी और कुछ हद तक झड़ने के बाद कामुकता के जाल से हलकी बाहर आई थी.. अंशुल भी अब अपनी लंड की ताकत से नयना को रूबरू करवाना चाहता था उसने नयना की बुर को चाटकर साफ किया और फिर अपने लोडे को उसकी बुर की दरार पर रगढ़ते हुए नयना का चेहरा देखने लगा जिसपर दुविधा के निशान थे जैसे वो इस मादकता के पलो में भी कुछ सोच रही हो..

अंशुल के लंड में पत्थर सी अकड़न थी जो पूरा खड़ा था अंशुल ने नयना की चुत पर लोडा रगड़ने के बाद उसके छेद के मुहने पर टिका दिया और दबाब बनाकर अंदर करने की कोशिश करने लगा.. नयना की बुर में पहली बार लंड वो भी अंशुल के जैसा बड़ा मोटा और मजबूत... नयना की हालात खराब हो रही थी उसके मन में चलते विचारो के बिच अंशुल ने उसकी बुर में अपना सुपाडा घुसा दिया था जिससे नयना सिसकने लगी.. नयना को होश आया की उसने तो अंशुल से दूर रहने का फैसला किया था फिर क्यू वो अपने बदन के बहकावे में आकर अपने सगे बड़े भाई के साथ सम्भग करने पर उतारू हो चुकी है? क्या उसके बदन की आग रिस्तो पर हावी हो गई है? नयना ऐसा नहीं कर सकती..... हां ये पाप है... ये सोचते हुए नयना ने अब अंशुल का विरोध शुरू कर दिया और अंशुल के लंड को पकड़ कर अपनी चुत से उसका सुपाडा बाहर निकलने की कोशिश करने लगी मगर अब तक बहुत देर हो चुकी थी.. अंशुल ने अगले ही पल एक झटके में अपना आधे से ज्यादा लंड नयना की बुर में घुसा दिया और नयना के दोनों हाथ पकड़ कर ऊपर की और उठा दिए.. नयना बिलकुल विचार शून्य हो गई उसे समझ नहीं आया की वो क्या करें पहली चुदाई की तकलीफ के बीच अंशुल की मनमानी ने उसे किसी लायक नहीं छोड़ा... उसकी आँख चौड़ी होगई जो उसे हो रहे पहली चुदाई के दर्द को बयान करने में सक्षम थी.. नयना की बुर से दो-तीन खून की बून्द भी बाहर आ गई थी जो बता रही थी नयना की ये पहली चुदाई है और अब तक उसने अपनी बुर में लोकी खीरा केला गाजर मूली कुछ नहीं डाला है...

आखिरकार नयना की इज़्ज़त अंशुल ने अपने नाम कर ही ली.. नयना अंशुल को देखते हुए सिसकियाँ ले रही थी और सोच रही थी की वो कैसी लड़की है जो अपने सगे भाई को अपनी इज़्ज़त दे रही है.. उससे बुरी लड़की शायद ही कोई और हो.. अंशुल ने नयना की बुर कुटाई अभियान की शुरुआत कर दी थी.. अंशुल रह रह कर झटके मारता हुआ नयना को चोदने लगा था हर झटके पर नयना का बदन ऊपर से नीचे तक पूरा हिल जाता और नयना मादक सिस्कारिया भरती हुई आवाजे इस माहौल में कामुकता के फूल खिला रही थी... एक तरफ कुतिया चुदते हुए आवाजे कर रही थी दूसरी तरफ नयना.. अंशुल और नयना इस चांदनी रात में ऐसे मिल रहे थे जैसे उसका मिलन ही दोनों का एक मात्र लक्ष्य हो.. नयना की चुत खुल चुकी थी और अब पानी छोड़ने लगी थी जिससे अंशुल का लंड आराम से अंदर बाहर हो रहा था और अब नयना अंशुल का कड़क तूफानी लंड चुत में मज़े से लेने लगी थी पर अब भी उसे वहीं ख्याल सताये जा रहा था..

नयना के दिमाग पर चुदाई से ज्यादा जब रिश्ते का ख्याल हावी हुआ तो उसने अंशुल को धक्का देकर अपने से दूर कर दिया जिससे अंशुल का लंड बुर से बाहर निकल गया नयना की आँख में आंसू आ गए थे वो कैसी लड़की है? इतना बड़ा पाप? इसका प्रायश्चित कैसे होगा सोचने लगी.. अंशुल नयना का ये बर्ताव समझ नहीं पाया था वो कुछ पल के लिए ठहर गया मगर उसके दिमाग में नयना को पाने की चाहत उफान मार रही थी.. नयना पलट गई थी उसकी पीठ अब अंशुल के सामने थी.. नयना अपनी गलती पर रोते हुए जैसे ही उठने की कोशिश करने लगी अंशुल ने नयना को उसी तरह से कमर पर हाथ लगाते हुए पकड़ लिया और घोड़ी की पोजीशन में लाते हुए फिर अपना लोडा नयना की चुत के अंदर घुसा दिया.. नयना को इस बात का अंदाजा भी नहीं था की अंशुल कुछ ऐसा करेगा.. वो बेचारी तो उठकर अपने कपडे पहनना चाहती थी मगर अब घोड़ी बनकर अपने बड़े भाई से चुद रही थी.. अंशुल नयना की कमर पकड़ कर झटके मारता हुआ उसे किसी बाजारू की तरफ पेल रहा था.. नयना के मन में वहीं सब चल रहा था ऊपर से चुदाई का सुख भी उसे मिल रहा था तो उसके मन की हालात जान पाना कठिन था.. अंशुल ने एक हाथ से नयना के लहराते हुए बाल पकड़ लिए थे और दूसरे से कमर थामे हुए था.. उसका लंड नयना की बुर में तहलका मचाये हुए अंदर बाहर हो रहा था.. अब लगभग कुत्ते कुतिया वाली पोजीशन में ही दोनों थे..

नयना के मुँह से सिस्कारिया और आँख से आंसू आ रहे थे, उसे अपने प्यार से पहले मिलन के सुख के साथ-साथ रिश्ते में बड़े भाई से चुदने का दुख भी हो रहा था.. नयना फिर से झड़ चुकी थी और अब अंशुल भी उसी राह पर था उसका झड़ना भी कुछ ही देर में होने वाला था वो नयना की बुर पर बार बार ताकत के साथ हमला कर रहा था जिससे नयना की आवाज और तेज़ होने लगी थी.. पहली बुर चुदाई वो भी इतनी बेरहमी से.. नयना की हालात पतली थी वो अब सही गलत छोड़ चुकी थी और बस इस लम्हे के ख़त्म होने का ही इंतजार कर रही थी वो अब आखिरी फैसला कर चुकी थी की ये अंशुल के साथ उसकी पहली और आखिरी चुदाई है.. अंशुल ने झड़ते हुए अपना सारा वीर्य नयना की बुर में खाली कर दिया जिसे नयना आसानी से महसूस कर सकती थी वो आखिरी बार आहे भर रही थी और आंसू पोंछ कर अपनी इस पहली चुदाई विश्लेषण करने की कोशिश कर रही थी..

अंशुल नयना को चोद कर एक पत्थर पर गांड टिका के बैठ गया और नयना घास में नंगी पेट के बल ही पड़ी रही उसका बदन इस चांदनी रौशनी में दिव्य लग रहा था जैसे कोई आसमान की परी अभी अभी नीचे उतरकर आई है और अंशुल को उसने सम्भोग का असली पाठ पढ़ाया है..

नयना लड़खड़ाती हुई जैसे तैसे खड़ी हुई फिर अपनी बुर से बहते अंशुल के वीर्य को अपनी उंगलियों से साफ किया और अपनी ब्रा पैंटी वापस पहन ली कुत्ते का लंड कुतिया की बुर में चिपक गया था जिसे दोनों देख रहे थे.. अंशुल और नयना आपस में ना बोल रहे थे ना ही एक दूसरे को देख रहे थे.. नयना अपनी सलवार कुर्ती भी पहन चुकी थी.. अंशुल पथर से उठा और वो भी अपने कपडे पहनने लगा.. कपडे पहन कर उसने पास खड़ी नयना को देखा और उसके पास आ गया.. अंशुल नयना का हाथ पकड़ कर उसे जंगल से बाहर ले जाने लगा मगर पहली चुदाई के कारण नयना के बदन में अकड़न और पैरों में लंगडापन आ गया था.. अंशुल ने नयना को गोद में उठा लिया और सडक की ओर आ गया.. नयन अंशुल को बड़े प्यार से देख रही थी मगर अब ये प्यार अपने बड़े भाई के लिए था वो अंशुल में अपना भाई देख रही थी..

अंशुल बाइक के पास पहुंचकर नयना को गोद से उतारता है और कहता है..
अंशुल - पता आज से सेकड़ो साल पहले यहां जंगल में एक काबिल रहता था.. **** नाम था उस क़ाबिले का.. बड़ी अजीब मान्यता थी उस काबिले की अगहन की पूर्णिमा को लेकर...
नयना कुछ नहीं बोलती और चुपचाप अंशुल के पीछे बैठ जाती है.. अंशुल बाइक चलाकर प्रभातीलाल के यहां पहुँचता है जहाँ प्रभतीलाल और लज्जो के साथ गाँव के कुछ लोग भी नयना के इंतजार में बैठे थे..
प्रभतीलाल और लाजो नयना को देखते ही गले लगा लेते और और उससे घर से जाने का कारण पूछने लगते है उसे लाड प्यार करने लगते है.. प्रभती लाल ने तो नयना के लंगड़ाने का कारण नयन के पैर की मोच समझा मगर लज्जो अच्छी तरह उसका मतलब समझ रही थी.. लज्जो ने आँखों ही आँखों में अंशुल से सारा किस्सा समझ लिया और नयना को होने साथ घर जे अंदर ले गई.. प्रभती लाल अंशुल से बाते करने लगा और उसका धन्यवाद करने लगा.. अंशुल ने प्रभती लाल से कह दिया था की वो नयना से ब्याह करना चाहता है और जल्दी ही प्रभती लाल घर आकर बालचंद से ब्याह की तारिक पक्की कर ले.... प्रभातीलाल नयना का मन जानता था और इस पर सहमति जताते हुए अंशुल को गले लगाकर बोला - तुम इस घर के जमाई नहीं बेटे बनोगे...

अंशुल नयना को घर छोड़ कर चला गया था और नयना अपने रूम में जाकर बिस्तर सोते हुए अपने आप को कोस रही थी की वो बदन की आग में रिश्ते भी भूल गयी? मगर उसका ध्यान अंशुल की आखिरी बात पर था.. वो क़ाबिले वाली बात.. नयना ने तुरंत अपना फोन निकाला और google पर उस क़ाबिले के बारे में पता लगाने लगी....
नयना क़ाबिले के बारे में पढ़ रही थी की पढ़ते पढ़ते उसकी आँख बड़ी हो गई... क्या? ऐसा कैसे हो सकता है? इसका मतलब मेरी मन्नत पूरी..... मगर क्या सच मे ऐसा हो सकता है?
नयना ने पढ़ा था की उस क़ाबिले में एक परंपरा थी जिसमे अगर अगहन की पूर्णिमा को कोई औरत मर्द चाँद की पूरी रौशनी में सम्भोग़ कर ले तो उन्हें पति पत्नी होने का दर्जा मिल जाएगा... इसका मतलब उस क़ाबिले की परम्परा से नयना अंशुल की पत्नी बन चुकी है.... नयना इसे झूठलाने की कोशिश कर रही थी.. और अपने आप को समझा रही थी की ऐसा नहीं हो सकता... अंशुल उसका भाई है और अब वो उसे सिर्फ भाई की नज़र से ही देखेगी.. और कोई दूसरा रिस्ता उससे नहीं रखेगी.. अपनी मोहब्बत का गला वो घोंट देगी.. नयना और अंशुल के बीच अब सिर्फ यही एक रिस्ता होगा.... नयना खुदको पापी समझ रही थी.. अंशुल ने जो किया अनजाने में था मगर नयना को सब पता था फिर भी.... नहीं अब ये नहीं होगा.. नयना ने दृढ़निश्चिय किया था....

अंशुल को घर पहुंचते पहुंचते सुबह के चार बज चुके थे जब वो घर आया तो पदमा की हालात देख हैरान था.. पदमा ने रात जागकर गुजारि थी और उसकी आँखे बोझल लग रही थी.. अंशुल पदमा को अपनी गोद में उठाकर अपने कमरे में ले गया और अपनी बाहों में लेटा कर प्यार से उसका सर सहलाते हुए सुलाने लगा था.. पदमा जो रात से अंशुल की याद में जाग रही थी वो अंशुल की बाहों में तुरंत सो गई...

अंशुल के लिए पदमा और नयना में कोई फर्क नहीं रह गया था वो दोनों को अपने पास रखना चाहता था और प्यार करना चाहता था उसका मन अब दोनों को चाहने लगा था.. उसकी बाहो में सो रही उसकी माँ पदमा उसे कितना चाहने लगी थी ये उसे आज की उसकी हालात से पता लगा......

दिन गुजरने लगे थे... दो महीने बीत गए मगर नयना की अंशुल से कोई बात न हो सकती थी एक दो बार अंशुल नयना से मिलने गया भी तो पता लगा नयना अपने चाचा के यहां गई हुई है उधर पदमा अब दिनरात बालचंद से नज़र बचकर अंशुल के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए आतुर रहती थी.. दोनों का प्रेम प्रगाड़ से भी अधिक मजबूत हो गया था... नयना अंशुल से बच रही थी वो नहीं चाहती थी की अब अंशुल उसे अपनी प्रेमिका के रूम में देखे और प्यार करे.. नयना बस अंशुल को अपना भाई समझने लगी थी और उससे भाई वाला रिस्ता कायम रखना चाहती थी.

एक दिन दोपहर को जब बालचंद ऑफिस में बड़े बाबू की गाली खा रहा था और बेज़्ज़त हो रहा था वहीं दूसरी तरफ उसकी बीवी अपने बेटे के सामने अपनी गांड फैलाये घर पर उसके ही बिस्तर में अपनी बुर चुदवा रही थी.... अंशुल पदमा के बाल पकड़ कर पीछे से उसकी बुर कुटाई कर रहा था और पदमा सिसकते हुए मज़ा ले रही थी... तभी अंशुल का फ़ोन बजा....
पदमा ने चुदते हुए फ़ोन उठा कर स्पीकर पर डाल दिया और अपना एक हाथ पीछे करते हुए अंशुल की तरफ फ़ोन कर दिया अंशुल अपने दोनों हाथ से पदमा की कमर थामे चोदता हुआ फ़ोन पर बात करने लगा...
हेलो...
हेलो.. आशु....
हां... मस्तु (अंशुल का शहर में रूमपार्टनर, पदमा के फलेशबैक में डिटेल से इसके बारे में लिखा गया है)
मस्तु - भाई अभी अभी तेरा परिणाम आया है...
अंशुल अपनी माँ चोदते हुए - अच्छा....
पदमा चुदते हुए सारी बाते सुन रही थी...
(मस्तु चुदाई की आवाजे साफ साफ सुन रहा था.. मगर वो जनता था ये किसकी चुदाई चल रही है इसलिए चुदाई के बारे में कुछ बोला नहीं..)
मस्तु - भाई कहा था मैंने तू पहली बार में निकाल लेगा.. निकाल लिया तूने.... अब तू सिर्फ अंशुल नहीं... ******* अंशुल है.. जल्दी से शहर आ बड़ी पार्टी लेनी है तुझसे... कहते हुए मस्तु ने फ़ोन काट दिया..
अंशुल ने पदमा को पलट दिया और अब वो मिशनरी पोज़ में पदमा के ऊपर आकर उसकी चुदाई करने लगा...
अंशुल - बधाई हो माँ.... अब तू सरकारी चपरासी की बीवी नहीं.. सरकारी अधिकारी की माँ है...
पदमा - आह्ह लल्ला.. तूने तो सच में अपना वादा पूरा कर दिया... मैं तो तुझे इस ख़ुशी के मोके पर कुछ दे भी नहीं सकती..
अंशुल - बिलकुल दे सकती हो माँ.....
पदमा - सब तो दे चुकी हूँ बेटा अब मेरे पास बचा ही क्या है?
अंशुल ने पदमा को होंठ चूमते हुए कहा - माँ मुझे तुम्हारी गांड चाहिए......
पदमा अंशुल की बात सुनकर शर्म से पानी पानी हो गई अब तक उसने अंशुल के दानवी लंड से डर कर अपनी गांड उसे नहीं दी थी मगर आज अंशुल ने उससे वहीं मांग ली थी...
पदमा ने मुस्कुराते हुए कहा - मैं तो खुद तुझे सब देना चाहती हूँ लेकिन डरती हूँ तेरे उस लोडे से... मगर ठीक है दो दिन बाद जब भालू शहर जाए तब ले लेना.. अंशुल झड़ चूका था..


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amazing update bhai...
 
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