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Incest आशु की पदमा

Tri2010

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अध्याय 2
नयना की मन्नत



दो दिन बाद दिन के करीब 2 बजे अंशुल चेयर पर बैठा हुआ किताब मे गुसा हुआ था की तभी उसकी फ़ोन की रिंग बजी अंशुल ने बिना नम्बर देखे फ़ोन उठा लिया ओर हेलो कहते हुए बात की शुरुआत की....
हेलो...
हेलो.....
जी....
आपसे बात करनी है....
कौन?
आपके घर के बाहर खड़ी हूँ... आप खुद लो....

अंशुल ने फ़ोन काटा और बाहर नीचे की तरफ देखा तो नयना एक पिले सलवार कमीज पहने बाहर खड़ी थी पदमा सोइ हुई थी ओर बालचंद का कहीं अता पत्ता नहीं था... अंशुल तुरंत नीचे जाकर अपनी बाइक स्टार्ट करता है नयना को पीछे बिठाकर घर से दूर ले जाकर एक सुनसान जगह पर बड़े से पेड़ के नीचे बाइक रोक कर नयना पर गुस्से मे चीखता हुआ बोलता है...
तुम्हारा दिमाग खराब है क्या?
पागल हो क्या तुम?
अकेले घर आ गई..
कोई इस तरह तुम्हे मेरे घर के सामने खड़े देख लेगा तो क्या होगा... सोचा है तुमने?
Free मे फेमस हो जाओगी ओर मुझे भी कर दोगी....

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अंशुल एक ही सांस मे न जाने कितनी बातें नयना से कह गया था लेकिन नयना एकटक बस अंशुल के चेहरे को ही देख रही थी जैसे उसने पहली बार देखा..
अंशुल कि बातें नयना के कानो तक पहुंच रही थी या नहीं.. कह पाना मुश्किल था! वो सोच कर आई थी कि जब अंशुल उसके सामने आएगा तो उससे इंकार कि वजह पूछेगी.. उससे झड़गा करेगी, उसे इस ब्याह के लिए किसी भी तरह मनाएगी लेकिन यहां उल्टा अंशुल ही उससे झगड़ा कर रहा था..
जब अंशुल बोलकर चुप हुआ तो नयना ने अपनी मीठी आवाज़ मे अंशुल का हाथ पकड़ते हुए कहा..

आप प्लीज गुस्सा मत करिये..
मैं तो बस आपसे मिलने आई थी..
कुछ पूछना चाहती थी आपसे...
मेरा इरादा आपका दिल दुखाने का कभी नहीं हो सकता...
मैं तो प्यार करती हूँ आपसे.....
प्यार करती हूँ?
नयना की आखिरी लाइन सुनकर अंशुल का गुस्सा फुर्ररर हो चूका था और एक हैरानी उसकी आँखों मे उभर आई थी अंशुल गंभीर होता हुआ बोला-
प्यार? मुझसे? तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है? अंशुल ने डांटते हुए नयना से कहा तो नयना ने पलटकर पूरी दृढता और आत्मीयता के साथ जवाब दिया - हां.. प्यार... वो भी आपसे.. और हमारा दिमाग बिलकुल ठिकाने पर है!

एक बार के लिए अंशुल को समझ नहीं आया की नयना की बात का वो क्या जवाब दे? आज से पहले कभी किसी लड़की ने उसके साथ इस तरह से बात नहीं की थी और ना ही अंशुल प्यार के चक्कर मे पड़ा था जो उसे इस बात का अनुभव होता.. अंशुल बस एक हैरान कर देने वाली निगाह के साथ अपने सामने नज़र झुकाये खड़ी 19 साल की उस नवयोवना सुन्दर रूपबाला को देख रहा था जिसके अंग अंग से उसका जोबन झलक रहा था और जिसने अभी अभी अपने दिल की बात अंशुल के सामने बिना किसी झिझक और लोकलाज के रख दी थी...
अंशुल उसकी इस बात का क्या जवाब दे?
ऐसा नहीं था की नयना एक साधारण रूपसी कन्या थी उसकी सुंदरता अद्भुत थी वो जिसे भी चाहती वही उसे आसानी से अपनी अर्धांगिनी बना सकता था, लेकिन अंशुल के ह्रदय पर नयना के रूप और माधुर्य से कहीं अधिक गहरी अपनी माँ पदमा के प्रेम की छाप थी जिसके सामने एक बार पहले भी नयना परास्त हो चुकी थी.. अंशुल और नयना के बीच काफ़ी देर तक ख़ामोशी ने अपना वर्चस्व जमाये रखा जिसे आखिर मे अंशुल ने ही तोड़ा..

देखो मैं तुम्हे मलखान काका के यहां छोड़ देता हूँ तुम वहा से वापस अपने घर चली जाओ... ठीक है? और दुबारा ऐसी हरकत करने की सोचना भी मत..
अंशुल जब ये कहकर पास मे खड़ी अपनी बाइक की और मुड़ा तो नयना पीछे से बोल पड़ी - ये मेरी बात का जवाब नहीं है.. मैं प्यार करती हूँ आपसे.. मुझे ब्याह कराना आपके साथ..

इस बार नयना ने अपनी बात कहकर नज़र नहीं झुकाई बल्कि अंशुल के चेहरे को देखने लगी जैसे उसे अंशुल के जवान का इंतेज़ार हो.. अंशुल जब वापस नयना की तरफ मुड़ा तो उसने देखा की नयना बिना किसी शर्म लिहाज़ और परदे के उसके सामने खड़ी उसे ही देखे जा रही थी जैसे वो एक लड़की ना होकर कोई लड़का हो जो किसी लड़की से अपने दिल की बात कह रहा हो! अंशुल के पास अब भी नयना की बात का कोई जवाब नहीं था और उसे अब भी समझ नहीं आ रहा था की वो नयना की बात का क्या जवाब दे? अंशुल के चेहरे पर एक शर्म उभर आई थी जिसे नयना ने साफ परख लिया था और अब उसकी झिझक पूरी तरह खुल चुकी थी..

नयना तो आई ही इसलिए थी की किसी भी तरह वो अंशुल को ब्याह के लिए राज़ी करके ही रहेगी मगर अंशुल अब भी किसी निरमोही की तरह सामने खड़ी उस बला की खूबसूरत लड़की के प्रेम निमंत्रण को अस्वीकार कर उसके दिल को अपने निर्दयी शब्दों के नुकीले बानो से छलनी कर रहा था.

प्यार प्रेम ये सब बस किस्से कहानियो मे अच्छे लगते है नयना..
अपने पीता से कहना किसी बड़े महल मे राजकुमार के साथ तेरा ब्याह कर दे..
मेरा घर देखा है ना तूमने? कई बार ज्यादा बारिश मे छत की सीलन से पानी टपकने लागत है..
सोते सोते आँख खुल जाती है..
आँगन की दीवारो से झड़ता हुआ प्लास्टर कई बार मेरी खाने की थाली मे गिरा है..
एक साडी खरीदने से पहले चार दुकानों पर मौलभाव करने के लिए चक्कर लगाती है मेरी माँ...
और बाप तो मंदिर के आगे से ही चप्पल चुराता है ताकि खरीदनी ना पड़े..
देख.. मेरे साथ ये प्यार व्यार का नाटक छोड़..
जाकर किसी और को पकड़..
मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ और नहीं होना चाहता..
तू और मत कर.......
अंशुल अपनी बाइक को स्टार्ट करते हुए - चल बैठ.... मलखाम काका के यहां छोड़ देता हूँ...

नयना बाइक की चाबी बंद करके अंशुल की आँखों मे आँख डालके पूरी निश्चयता के साथ कहती है -
मैं रह लुंगी तुम्हारे साथ..
जैसे भी हाल मे रखोगे रह लूंगी..
जैसा कहोगे वैसा करुँगी..
जो खाने को दोगे खा लुंगी....
कभी आपसे किसी बात की शिकायत नहीं करुँगी..
ना ही कभी किसी चीज की मांग करुँगी..
मेरा आपसे लगाव सिर्फ आकर्षण नहीं है मेरा प्रेम है.. मैं आपको पाने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ..
मेरा आपके बगैर रहना अब नामुमकिन है आशु...

नयना की बातें अंशुल के दिल को और उसके निश्चय को कामजोर कर रही थी जिसे अंशुल अच्छी तरह समझ रहा था. वो नहीं चाहता था की उसकी वजह से नयना को तकलीफ हो लेकिन अंशुल पदमा को छोड़मार नयना के साथ अपना भविष्य नहीं सोच सकता था अंशुल ने खुदको बिखरने से बचाते हुए झूठे क्रोध का दिखावा करते हुए नयना से कहा -
अंशुल - लेकिन मैं तेरे साथ नहीं रह सकता.. तुझे समझ क्यूँ नहीं आता? ब्याह तो बहुत दूर है मैं तुझसे अब आगे बात तक नहीं करना चाहता.. अब चलना है तो कहो वरना वहीं छोड़कर चला जाऊंगा...

नयना को अंशुल के झूठे क्रोध मे छुपे भय का आभास हो गया था मगर वो नहीं जानती थी की इसके पीछे की आखिर क्या वजह है जिसे अंशुल उससे छीपा रहा था अगर नयना उसे जान लेती तो शायद कोई हल निकाल पाती.. मगर अंशुल उसके बारे मे बात करने को त्यार नहीं था अंशुल को नयना से इसलिए भी चीड़ हो रही थी की वो उसके दिल को कमजोर कर रही थी उसकी बातें किसी हाथोड़े की तरह उसके दिल का दरवाजा तोड़ती जा रही थी..
उसपर सबसे बड़ी चोट अब होने वाली थी नयना ने अंशुल की गिरेबान पर अपना हाथ रखते हुए अंशुल की आँख मे आंख डाल कर पूछा -
क्यूँ नहीं करना चाहते मुझसे ब्याह?
कोई कमी है मुझमे? हम्म्म्म? बताओ?
क्या कमी है मुझमे? बोलते क्यूँ नहीं?
जवान हूँ.. तुमसे ज्यादा खूबसूरत हूँ... हसीन हूँ..
इंटर पास हूँ...
अच्छा गाना आता है... नाचना आता है...
हर तरह से आपका ख्याल रख सकती हूँ...
खाना बनाने से लेकर आपकी गालिया खाने तक सब कर सकती हूँ....
फिर भी आपके इंकार का क्या कारण है?
आपको क्या लगता है आप कहीं के शहजादे हो?
आपके लिए आसमान से कोई हूर परी जमीन पर आएगी?
क्या लगता है आपको?
मैंने सिर्फ आपकी सूरत देखकर आपसे प्यार किया है?
उस दिन कजरी के ब्याह मे जब सब लोग अपनी धुन मे मस्त थे और नाच गा रहे थे तब फटे-पुराने मेले-कुचले कपडे पहनें खाने की कतारो का मुँह देखकर भूख से तिलमिलाती उन छोटी बच्चियों को जिन्हे अंदर आने से डर लग रहा था आपने जिस प्यार से अपने हाथो से खाना खिलाया था ना... उसी वक़्त आपको अपने दिल मे बसा लिया था मैंने..
आपकी नेकदिली ने मेरा दिल जीता था..
मेरी एक बात याद रखना आप..
अगर आप मेरे नहीं हुए तो मैं आपको मेरे जीतेजी किसी और का भी नहीं होने दूंगी..
अगले अगहन की पूर्णिमा का मुहूर्त निकाला था आपके और मेरे पीता ने मिलकर हमारी शादी का....
अगर उस दिन आप मेरे घर बारात लेकर नहीं आये तो फिर अगले दिन बिनबुलाये मेरी अर्थी को कन्धा देने जरुर आना..

अंशुल नयना की बातें किसी बूत की तरह खड़ा हुआ सुन रहा था इस बार उसके दिल का दरवाजा नयना के शब्दों की चोट से टूट चूका और नयना उसमे प्रवेश करने मे सफल रही थी..
अंशुल का मन अभी नयना को गले लगाकर उसके गुलाब की पंखुड़ीयों के सामान होंठ चूमने का हो रहा था वो कहना चाहता था की नयना.. मैं तुम्हारे पैरों की धूल भी नहीं हूँ... तुम मेरे जैसे मामूली आदमी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने का संकल्प क्यूँ कर रही हो? क्यूँ तुमने अपने मरने की बात मुँह से निकली? हाय रे... ये केसा दोराहा आकर मेरी जिंदगी मे खड़ा हो चूका है?

एक तरफ पदमा है जिसके साथ मे अपनी सारी जिंदगी बीतना चाहता हूँ और अपने प्यार से उसका जीवन हमेशा के लिए खुशहाल रखना चाहता हूँ उसकी एक मुस्कान के लिए अपनी जान दे सकता हूँ जो मेरे दिल पर एकक्षत्र राज करती है वहीं अब दूसरी तरफ नयना आकर खड़ी हो चुकी है जिसने अपने रूप के साथ साथ अपने शब्दों और अटूट प्रेम की सौगात से मेरे दिल पर अपना अधिकार करने की चेष्टा की है और मेरे वियोग मे अपने प्राणो को त्यागने की बात कह रही है..
अंशुल अभी नयना को अपने सीने से लगाकर कह देना चाहता था की नयना मैं भी ब्याह करना चाहता हूँ लेकिन उसे जैसे कोई अदृश्य शक्ति ये कहने से रोक रही थी! हो न हो इस शक्ति मे जरुर पदमा का ख्याल ही छीपा हुआ था... अंशुल नयना की सारी बात सुनने के बाद भी उसी स्वर मे नाटकिये अंदाज़ मे उससे बोला -

चुपचाप पीछे बैठो, समझी?
मुझे वापस घर भी जाना है....
और भी काम है तुम्हारे साथ यहां खड़े रहने के अलावा..
चलो... जल्दी करो....
थोड़ी देर मे शाम होने वाली है....

क्या.....?
हे भगवान..
केसा बैरागी निरमोही और नीरस है ये लड़का...
मेरी इतनी बातों का जरा भी असर नहीं हुआ इस पर?
सच मे मेरे मरने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा इसे?
कैसे बेरूख होकर मुझसे बात कर रहा है...
अगर प्यार नहीं करती तो मुड़कर देखती भी नहीं इसकी तरफ....
अपने आपको कहीं किसी बड़ी रियासत का राजा समझता है..
तेवर तो देखो सहजादे के....
ठीक से मेरी तरफ देखकर बात तक नहीं की... हाय रे..
नयना मन ही मन ये सब सोच रही थी की अंशुल ने फिर कहा -
अब ख़डी खड़ी मेरी शकल क्या देख रही हो?
चलो बैठो... पेट्रोल कम है यही सारा फूक गया तो पुरे रास्ते चल के जाना पड़ेगा दोनों को...
चलो अब बैठो....

नयना इस बार अंशुल की बात से चिढ़ गई और उखड़े हुए स्वर मे बोली - मुझे नहीं बैठना.... चली जाउंगी मैं अपनेआप.... आपको मुझसे कोई फर्क नहीं पड़ता तो झूठमुठ ये दिखावा क्यूँ करते हो?

अंशुल - तुमसे पूछा नहीं रहा हूँ.... बता रहा हूँ.... चुपचाप बैठ जाओ वरना अच्छा नहीं होगा....

अंशुल की आवाज़ मे इस बार कुछ ऐसा जादू था कि नयना बिना कोई वाद विवाद किये अंशुल के पीछे बैठ गई और अपने दोनों हाथो से अंशुल को बाहों मे कस लिया मानो वो पूछ रही हो कि अंशुल क्या तुम मुझे यूँही अपनी बाइक के पीछे बिठाना चाहोगे? अंशुल नयना कि पकड़ से और भी उसकी तरफ आकर्षित हो जाता है और बिना उसकी पकड़ का विरोध किये बाइक चला कर मलखान के घर कि और चल देता है... ये सफर नयना के दिल पर एक अमिट यादगार छाप छोड़ रहा था वो कब से अंशुल के साथ इसी तरह से चिपककर बैठे हुए सेर सपाटा करने के ख़्वाब देखती आ रही थी आज उसका वो ख्वाब कुछ देर के लिए ही सही पूरा जरुर हुआ था.. इस बार अंशुल भी नयना को खुदको छूने से नहीं रोक रहा था जिसका सीधा सीधा मतलब नयना ने अंशुल के दिल कि हामी समझा था और प्यार से बाइक कि पिछली सीट पर बैठे मन ही मन खुश होती हुई इस छोटे से सफर का मज़ा ले रही थी....

अरे रोको रोको.. रोको ना...
अंशुल बाइक सडक किनारे रोकते हुए - अब क्या हुआ?
नयना बाइक से उतरकर - चलो....
अंशुल - कहा?
नयना अंशुल का हाथ पकड़कर - चलो... बताती हूँ....
अंशुल - जंगल है नयना.... कोई जानवर आ सकता है..
नयना - कोई नहीं आएगा आप चलो..
नयना अंशुल का हाथ पकड़ के जंगल से गुजरने वाली सडक से दाई तरफ के जंगल मे थोड़ा अंदर लेकर जाती है जहाँ कुछ दूर चलकर एक पड़ा सा बड़ का पेड़ आता है देखने मे बहुत पुराना और विशालकाय ये पेड़ किसी भूतिया पेड़ जैसा लगता था नयना वहा रुक जाती है और उसके पेड़ के सामने खड़ी होकर अंशुल को देखने लगती है......

अंशुल - नयना यहां क्यूँ लाइ हो?
नयना अंशुल का हाथ पकड़कर - आशु.... मैंने अपना सारा बचपन बहुत बेबसी मे गुजारा है.... जब मैं 7-8 साल की थी और थोड़ी सोचने समझने लायक हुई तब घर मे एक जून खाने के लिए भी नहीं होता था... अक्सर मुझे भी माँ पापा के साथ सिर्फ पानी पीकर भूखे पेट सोना पड़ता था.... पापा रात मे मुझे भूखे पेट सोते देखकर रोते थे और माँ उन्हें दिलासा देकर ढांडस बंधवाती थी... अगले एक साल तक ऐसा ही चलता रहा, फिर एक दिन एक बहुत बूढ़ी औरत गाँव मे आई.. कोई उसे डाकिन कहता तो कोई चुड़ैल या काला जादू करने वाली बुढ़िया कह कर पुकारता.. वो सिर्फ पेट की आग बुझाने के लिए लोगों से खाना मांगती थी मगर कोई उसकी मदद नहीं करता... एक रोज़ गाँव के मंदिर मे उत्सव हुआ पुरे गाँव को भोज का निमंत्रण था... उस रात मैं भी मंदिर मे माँ पापा के साथ खाना खाने गई थी... खाना खाते हुए मैंने थोड़ा सा अपने कपड़ो में छुपा भी लिया था! जब मैं मंदिर से बाहर आई तो देखा की कुछ लोग उस बुढ़िया को पिट रहे थे.. शायद वो बुढ़िया भी खाना खाने वहा आई थी जिससे नाराज़ होकर कुछ लोग उसके साथ मार पिट कर रहे थे.. वो बुढ़िया दर्द से चिल्ला रही थी.. चीख रही थी.. रो रही थी... मगर पूरा गाँव खड़े खड़े बस तमाशा देख रहा था उस भीड़ मे खड़े हुए किसी भी आदमी-औरत बच्चे-बूढ़े अमीर-गरीब किसीको भी उस बुढ़िया पर तरस नहीं आया...
बुढ़िया जैसे तैसे वहा से अपनी जान बचाकर भाग निकली और मैं भी माँ-पापा की नज़र बचाकर उस रात उस बुढ़िया का पीछा करते करते यहां इस पेड़ तक आ गई... उस रात इसी पेड़ के नीचे जब वो बुढ़िया बैठकर अपने जख्मो पर मिट्टी लगा रही थी तब मैंने मंदिर मे खाना खाते वक़्त अपने कपड़ो के अंदर चुराया हुआ खाना उस बुढ़िया को निकाल कर दे दिया...
बुढ़िया मुझे देखकर हैरान थी...
मुझे अँधेरे से बहुत डर लगता है आशु....
मगर उस रात न जाने कैसे मुझमे इतनी हिम्मत आ गई की मैं अकेले इस जंगल मे उस बुढ़िया के पीछे पीछे चली आई थी... बुढ़िया ने मेरे हाथ से खाना ले लिया और खाते हुए कहा की अब से मुझे जो कुछ भी चाहिए यहां इस पेड़ के नीचे आकर उससे मांग लिया करे.... मुझे बुढ़िया की बात बहुत अजीब लगी.. मैंने उसपर विश्वास नहीं किया और वापस गाँव लौट गई... जब मैं घर पहुंची तो देखा की हर तरफ मुझे ही खोजा जा रहा था पापा की तबियत ख़राब हो गई थी वैध को दिखाने के लिए एक पैसा तक घर मे नहीं था सुबह बड़े जतन करने के बाद आस पास के लोग पापा को सरकारी अस्पताल लेकर गए जहा डॉक्टर ने पापा के ज़िंदा बचने की कोई उम्मीद नहीं जताई थी..... तब मुझे बुढ़िया की बात याद आई और मैं यहां वापस आ गई.. इस पेड़ के सामने खड़ी होकर उस बुढ़िया से अपने पापा की जिंदगी मांगने लगी और कुछ दिनों के अंदर ही पापा फिर से पहले की तरह तंदरुस्त हो चुके थे तब मुझे बुढ़िया पर विश्वास हुआ.... उसके कई महीनों बाद एक रोज़ जब मैं पापा के साथ यहां से गुजर रही थी तब मैं वापस यहां आई और माँगा की मुझे कभी भूखा नहीं सोना पड़े.... उस दिन के बाद घर के हालत बदल गए और मुझे आज तक कभी भूखा नहीं सोना पड़ा और ना ही फिर कभी यहां आने की जरुरत पड़ी...
आशु आज इतने सालों के बाद मैं यहां वापस अपने लिए मन्नत में आपको माँगने आई हूँ.....
अगर मेरा प्यार सच्चा है तो आपको मुझसे कोई नहीं छीन सकता... आप खुद भी नहीं....

नयना की बात सुनकर अब तक अंशुल किसी व्यथा के महासागर मे डूब चूका था और अपने मन के आकाश मे चीख चीख कर कह रहा था की मैं भी तुम्हारा तू नयना..... मैं भी तुम्हारा हूँ.... तुम भी अब मेरे दिल के अंदर प्रवेश कर चुकी हो मगर पदमा का प्रेम उसके अंतर्मन को बार बार उसके काबू से बाहर होने से रोक रहा था और उसे समझा रहा था की उसके लिए कौन पहले है पदमा अंशुल के दिल की ज़मीन पर नयना से कहीं अधिक गहरी समाई हुई थी....

अंशुल ने नयना की सारी बात सुनकर सिर्फ इतना कहा - अब वापस चले.... मुझे लेट हो रहा है....
इस बार नयना के पास भी बोलने को कुछ नहीं रह गया था वो चुपचाप अंशुल के साथ वापस आ गई और फिर से एक बार अंशुल के पीछे बैठकर अपनी बाहों मे उसे कस्ते हुए अपनी मन्नत दोहराने लगी थी.. कुछ ही देर मे अंशुल नयना को मलखान के यहाँ छोड़ आया जहाँ से नयना वापस अपने घर लौट गई....

अंशुल नयना को छोड़कर जब वापस घर आया तो शाम हो चुकी थी और उसके मन मे नयना के ही ख्याल चल रहे थे आज जैसे नयना ने उसपर जादू कर दिया ऐसा जादू जिससे अंशुल चाह कर भी बाहर नहीं निकाल पा रहा था और नयना कर बारे मे ही सोच रहा था...

अब तक बालचंद भी वापस बड़े शहर अपनी ड्यूटी बजाने चले गए थे और घर मे सिर्फ पदमा ही रह गई थी जिसे देखते ही अंशुल नयना के ख्यालो से एकदम से बाहर आ गया जैसे पदमा ने अंशुल को नयना की गिरफ्त से आजाद करवा लिया था पदमा को देखते ही अंशुल फिर से एक बार पहले की तरह पदमा के मोह मे बंध गया और अब नयना की सारी बातें उसे इतना तंग नहीं कर रही थी जितना पहले कर रही थी और पदमा की नज़र उसपर पड़ते ही वो जैसे नयना की यादो से पूरी तरह आजाद हो चूका था....

अरे लल्ला.... कहा गया था तू?
फ़ोन अपने साथ लेकर जाना चाहिए था ना....
तेरे पापा को पेदल ही बस स्टैंड तक जाना पड़ा....
कम से कम तू बता कर तो जाता....
यूँ ही बिना बताये निकाल गया....
खैर अब छोड़.....
देख तेरी मनपसंद ख़िर बनाई है....
जरा चख के तो देख... कैसी बनी है?

पदमा पुरे स्नेह और खुले निमंत्रण के साथ अंशुल को अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी जैसे वो कह रही हो की अंशुल... क्या मैं अकेली तुम्हारे लिए काफी नहीं? क्या तुम मेरे अलावा भी किसी को अपनी जिंदगी मे शामिल करना चाहते हो? क्या तुम मुझसे खुश नहीं हो? क्या मुझसे कोई गलती हो गई है अंशुल?

अंशुल रसोई में खाना पक्का रही अपनी माँ पदमा की बात सुनकर उसकी ओर बढ़ गया और अपनी बाहों मे लेकर बिना कुछ कहे सीधे उसके लबों को अपने लबों की क़ैद मे ले लिया ओर बारी बारी से उसके ऊपरी ओर निचले होंठो को चूमते हुए जीभ को चूमकर मुस्कुराते हुए पदमा की बात का जवाब देते हुए कहने लगा -
अंशुल - माँ.... ख़िर बहुत ज्यादा मीठी है.... लगता है शक्कर ज्यादा डाल दी आपने....

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अंशुल की बात सुनकर पदमा अंशुल को देखते हुए पूरी तरह खिलखिलाती हुई जोर जोर से हँसने लगी उसकी हंसी पुरे घर मे सुनाई दे सकती थी पदमा ने हँसते हुए अंशुल के होंठों को अपनी उंगलियों से पकड़ लिया ओर हलके से दबती हुई उसके मासूम चहेरे को देखकर कटोरी मे निकाली हुई ख़िर खिलाती हुई बोली...
पदमा - अब ठीक है मीठा?

अंशुल अपनी माँ पदमा के इस तरह ख़ुशी से हँसने पर मन्त्रमुग्ध हो चूका था उसे पदमा के अलावा ओर कोई दिख ही नहीं रहा था जिसे वो अपने साथ सोच भी सकता था पदमा की एक हँसी ने नयना की सारी बातें सारे जतन ओर कोशिशो पर मिट्टी डाल दी थी... पदमा का प्रेम नयना के सम्मोहन पर पूरी तरह से भारी पड़ा था और अंशुल को एक पल मे नयना के ख्यालो से रिहाई मिल गई थी.. अंशुल का दिल जोर जोर से धड़क रहा था वो अपनी बाहों मे क़ैद अपनी माँ पदमा के मुस्कुराते चहेरे को ही देख रहा था.. अंशुल पदमा के लिए किसी भी हद से गुजर सकता था और ये उसका प्रेम था अपनी माँ के लिए, जिसे वो हर हाल मे खुश और हस्ता हुआ देखना चाहता था...
अंशुल ने अपनी माँ पदमा देवी को अपनी बाहों की क़ैद से आजाद किया और रसोई से बाहर अपने रूम मे आ गया फिर अलमारी खोलकर कुछ चीज अपनी जेब मे डाली और वापस नीचे रसोई की तरफ आ गया... इस बार अंशुल ने रसोई का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और कुछ देर बाद रसोई से पदमा की मादक सिस्कारिया बाहर आने लगी जिसे सुनकर कोई भी अंदर की दशा और हाल भाँप सकता था, अंदाजा लगा सकता था...
करीब एक घंटे बाद जब रसोई का दरवाजा खुला तो पदमा अंशुल की गोद मे थी और उसके बदन पर कपडे बिलकुल अस्त व्यस्त थे.. अंशुल अपनी माँ पदमा को गोद मे उठाये उसे चूमता हुआ रसोई से बाहर निकला और पदमा को अपनी गोद मे उठाये पदमा को उसके कमरे मे लेकर आ गया फिर बिस्तर पर लेटाते हुए बोला....
अंशुल - sorry.... माँ..... खड़े खड़े आपको तकलीफ हुई होगी.... पैर दर्द कर रहे होंगे आपके....
पदमा मुस्कुराती हुई अंशुल को अपनी तरफ खींचती है और उसके होंठों से खेलती हुई जवाब देती है - हम्म्म दर्द तो कर रहे है.... तुम दबा दो अपनी माँ के पैर...
अंशुल मुस्कुराते हुए - अभी दबा देता हूँ....
ये कहकर अंशुल अपनी माँ की साडी जो रसोई मे पूरी खुल चुकी थी और बाद मे पदमा ने ऐसे ही बेढंगी तरीके से अपने बदन से लपेट रखी थी थोड़ा ऊपर सरकाकर पदमा के पैर दबाने लग गया..
पदमा अपने पैर दबाते अंशुल को इस तरह देख रही थी जैसे सालों पहले छोटे अंशुल को देखा करती थी....

पदमा मुस्कुराते हुए - आशु वहा से सिगरेट दे दो.....
अंशुल पैर दबाता हुआ खड़ा हुआ और पदमा के बताई जगह से सिगरेट और लाइटर लेकर पदमा के पास आ गया और अपने हाथो से एक बड़ी एडवांस सिगरेट अपनी माँ पदमा के गुलाबी होंठों पर लगाकर लाइटर से सिगरेट सुलगता हुआ सिगरेट का पैकेट और लाइटर बेड के सिरहाने रख कर वापस पदमा के पैरों मे आ गया और उसके पैर दबाने लगा...
पदमा सिगरेट के कश लेटी हुई अपने पैरों मे बैठे अपने बेटे को इस तरह से अपने पैर दबते देखकर किसी ख्यालों के सागर मे डूब गई....

पदमा का बचपन कठिनाई मे बिता था उसके माता-पीता को बेटा चाहिए था लेकिन पहले उसकी बड़ी बहन गुंजन और फिर पदमा के जन्म से सभी लोग दुखी थे उसके बाद जब उसके छोटे भाई निरंजन का जन्म हुआ तो सारा प्यार उसी के हिस्से आया गुंजन और पदमा तो बस घर मे काम मात्र के लिए रह गई थी उसीके साथ उसकी बड़ी बहन गुंजन की भी यही दशा थी... गुंजन के साथ तो उसके पीता कमलनाथ ने जो किया था वो कहना भी अशोभनीय है हवस की आग मे अपनी बेटी के साथ उसकी सहमति के बिना कमलनाथ ने भोग किया था जिसे छुप कर पदमा ने देखा था... फिर किसी अमीर घर मे बूढ़े आदमी के साथ गुंजन का ब्याह करवा दिया था और यही कमलनाथ पदमा के साथ करना चाहता था लेकिन किसी तरह पदमा इन सब से बच गई फिर भी उसका ब्याह उससे उम्र मे बारह साल बड़े बालचंद से हुआ जिसने कभी पदमा को पूरी तरफ से देह का सुख नहीं दिया था.. शादी के कुछ साल बाद तो बालचंद मर्द भी नहीं रह गया था और पदमा की किस्मत फिरसे एक बार उसपर कहर बनकर टूटी थी.....
बालचंद के साथ उसे ना अच्छी जिंदगी नसीब हुई थी ना ही शारीरिक जरुरत पूरा हुई थी पदमा अपनी भारी जवानी मे ही किसी बुढ़िया सी हो चुकी थी जिसे अपनी जिंदगी से कोई उम्मीद न रह गई हो..
ऐसे मे अंशुल का उसकी वीरान पड़ी जिंदगी मे फरिश्ता बनकर आना और उसे हर वो सुख देना जो वो चाहती थी उसके लिए वरदान बन गया था.. उसकी उदासी भरी बंजर जिंदगी मे अंशुल ने बहार भर दी थी.. अंशुल के हाथ लगते ही पदमा का अंग अंग वापस खिल उठा था उड़के मन मे मोर नाचने लगे थे....

पदमा सिगरेट के कश लेती हुई सोच रही थी की अंशुल आज भी क्यूँ उसका इतना ख्याल रखता है? उसे अपनी पलको पर बैठाता है? उसकी हर बात मानता है? और कभी उड़के साथ कोई बदतमीजी नहीं करता जबकि अंशुल पदमा से पिछले कुछ महीनों मे जब से वो शहर से आया था सैकड़ो बार सम्भोग कर चूका था क्यूँ अंशुल उसे कभी अकेला नहीं छोड़ता और हमेशा उसके साथ ही रहता है....
पदमा हमेशा से अंशुल को प्यार करती थी लेकिन जब से अंशुल ने उसके सुने जीवन मे खुशियों के रंग भरे थे वो अंशुल से और भी ज्यादा जुड़ गई थी... एक माँ और प्रेमिका दोनों का किरदार पदमा अच्छे से निभा रही थी आज पदमा को अंशुल पर कुछ ज्यादा ही प्यार आ रहा था....

पदमा ने सिगरेट का आखिरी कश लेकर अपने घुटनो तक ऊपर उठी अपनी साडी को धीरे धीरे और ऊपर सरका लिया और अंशुल को देखती हुई साडी कमर तक उठाकर पहले से नंगी पड़ी हुई बाल रहित गुलाबी चिकनी खिली हुई बुर को अपनी उंगलियों से हल्का सहलाते हुए अंशुल से बोली - आशु... बेटा माँ को यहां भी दर्द हो रहा है.... थोड़ा यहां भी दबा दो....

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अंशुल अपनी माँ पदमा के इशारे और मन की भावनाओं को अच्छे से समझता था उसे कभी बातों से कोई चीज समझने की जरुरत नहीं पड़ी..
पदमा और अंशुल मे कुछ ऐसा तालमेल था जो बहुत कम ही देखने को मिलता है.... अंशुल पदमा के पैर दबाना छोड़कर पदमा की झांघो के जोड़ पर आ गया झट से अपनी जीभ पदमा की सुनहरी बुर पर लगाकर उसकी मसाज करने लगा.. पदमा ने एक और सिगरेट जला ली थी जिसके कश लेती हुई वो अंशुल की बुर चुसाई और चटाई का भरपूर आनंद ले रही थी उसे जैसे इस समय जन्नत का मज़ा मिल रहा था...

पदमा अपने एक हाथ से अंशुल का सर सहलाती हुई उसे प्यार भरे शब्दों से उत्तेजित कर रही थी और सिगरेट के कश लेती हुई अंशुल की आँखों मे देखकर इशारो से सवाल कर रही थी मानो पूछ रही हो की अंशुल को इस वक़्त केसा लग रहा है? और अंशुल अपनी मुस्कुराहट से अपनी माँ के सवाल का जवाब देते हुए बता रहा हो की उसे कितना मज़ा आ रहा है.... कुछ देर बाद अंशुल उठकर दरवाजा बंद कर देता है जो अगले दिन बाहर से आ रही किसी की आवाज़ से खुलता है....

दिन के 2 बज रहे थे अंशुल अपनी माँ पदमा की बाहों मे सो रहा था दोनों की हालत देखकर पत्ता लगाना बेहद आसान था की दोनों ने पिछली रात जागकर बिताई थी.. एक पतली चादर के अंदर पदमा और अंशुल बिना किसी कपडे के एकदूसरे की बाहो मे सो रहे थे जैसे कोई नव विवाहित जोड़ा अपनी सुहागरात पर सो रहा हो.. दोनों के कपडे इधर उधर पड़े थे साथ ही ज़मीन पर 2 कंडोम भी पड़े थे जिसमे आशु का वीर्य साफ देखा जा सकता था और सिरहने से दाई तरह थोड़ा दूर रखा एक पुराना बर्तन जिसमे 4-5 सिगरेट का कचरा साथ ही बेड के नीचे शराब की आधी खाली बोतल और एक गिलास जिसमे अभी थी कुछ जाम बचा हुआ था... बाहर से किसी के दरवाजा पीटने की आवाज़ आ रही थी जिसे सुनकर अंशुल और पदमा एक साथ नींद से जाग उठे...

पदमा तो घड़ी मे समय देखकर गुस्से से बड़बड़ा पड़ी - किसकी मईया के भोसड़े मे आग लगी है इस बखत.... कौन अपनी अम्मा चुदवा रहा है बाहर? जिसे सुनकर अंशुल हसता हुआ बेड से नीचे उतरकर अपने कपडे पहनने लगा और कपडे पहनने के बाद पदमा के माथे पर एक चुम्बन देकर उसे फिर से बेड पर सुलाता हुआ बोला - मैं देख कर आता हूँ... आप आराम करो...
अंशुल की बात सुनकर पदमा को जैसे अपने ही मुँह से निकली गलियों पर शर्म आ गई और शर्म से मुस्कुराती हुई तकिये मे अपना मुँह छीपा कर फिर से लेट गई...


अंशुल कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर आँगन मे आ गया और फिर बाहर का दरवाजा खोलकर देखा तो सामने दमयंती काकी खड़ी थी जिसे सब धन्नो काकी ही कहकर पुकारा करते थे स्वाभाव से मिलनसार और हसमुख धन्नो दिखने मे कुरूप नहीं थी.. उसका रंग सांवला था मगर बदन का उभर अच्छी अच्छी औरतों को लज्जा देता था चेहरे से हसमुख और हमेशा मीठे बोल ही झड़ते थे.. अंशुल पर बड़ा लाड-प्यार था धन्नो को.. बचपन मे अक्सर पदमा से गुजरिश करके उसे अपने साथ ले जाती और खूब सारी स्वादिस्ट खाने की चीज़े उसे खिलाती और छुप छुप कर अपनी छाती से अंशुल को अपना दूध भी पीला चुकी थी धन्नो.... अंशुल का रूप और मासूमियत धन्नो के दिल मे उन दिनों एक अलग सी हलचल पैदा किया करता था जो अब भी कहीं कायम थी... धन्नो की अपनी कोई औलाद नहीं थी.. उसने सबसे बाँझ होने के ताने सुने थे.. मगर बाद मे गाँव के एक नशेखोर शराबी ने शराब के नशे मे अपना पूरा घर-परिवार स्वाह कर लिया तब उस हादसे मे उस शराबी का 7 साल का लड़का चन्दन किसी तरह बच गया था जिसे धन्नो ने गोद लेकर पाला था.... आज धन्नो उसी चन्दन के ब्याह का निमंत्रण देने आई थी...

अंशुल दरवाजा खोलकर - कैसी हो काकी.... इतने दिनों के बाद अपने आशु की याद कैसे आ गई.... तुम तो भूल गई थी हो मुझे.....
धन्नो अंशुल का गाल खींचती हुई बोली - तू पहले ये बता इतनी देर कैसे लगी दरवाजा खोलने मे.... और तेरी माँ पदमा रानी कहा गई है?
अंशुल धन्नो का हाथ पकड़ कर - अरे काकी वो माँ मलखान काका यहां सीमा काकी से मिलने गई है शाम तक आ जाएगी... अब तुम बताओ.... मुझे भूल गई हो ना.... बचपन मे तो कितना प्यार करती थी आजकल सारा प्यार चन्दन भईया पर लुटा रही हो क्या?
धन्नो मुस्कुराती हुई अंशुल के बिखरे हुए बाल संवारती हुई बोली - लल्ला.... तू भी आ सकता है अपनी काकी से मिलने... जब से शहर से लोटा है कभी अपनी काकी से दो बात करने की भी फुर्सत नहीं मिली तुझे....
अंशुल - क्या करू काकी... सरकारी इम्तिहान के लिए पढ़ाई मे लगा था तुमसे मिलने का समय ही नहीं मिला.... पर जरुर आऊंगा तुमसे मिलने....
धन्नो - अच्छा.... ये ले निमंत्रण.... चन्दन का ब्याह तय हुआ हुसेनीपुर की महिमा के साथ.... आज से दस दिन बाद ब्याह होगा..... बहुत काम है.... मैं शाम को पदमा से कह दूंगी की तुझे काम मे हाथ बटाने भेज दे... इस बार कोई बहाना काम नहीं आएगा....
अंशुल - काकी चन्दन भईया तो मेरे बड़े भाई की तरह है.... उनके ब्याह का सारा बंदोबस्त तो मैं ही करूँगा.... देखना बड़े धूम धाम से बारात निकलेगी चन्दन भईया की....
धन्नो अंशुल की बालाये लेती हुई उसके चेहरे को बड़े प्यार से अपने दोनों हाथो से सहला कर वापस चली गई और अंशुल बाहर का दरवाजा बंद करने शादी का निमंत्रण पढता हुआ वापस अंदर पदमा के पास आ गया....
पदमा - कौन था बाहर?
अंशुल बैठता हुआ - धन्नो काकी थी.. चन्दन भईया के ब्याह का निमंत्रण देकर गई है... आने वाली 22 तारीख का ब्याह तय हुआ है...
पदमा - लड़की कहा की है?
अंशुल - हुसेनीपुर की.... महिमा नाम है...
पदमा - अरे वहीं उसी गाँव मे नयना भी रहती है..
अंशुल पदमा के मुँह से नयना का नाम सुनकर चुप हो जाता है जिसे पदमा अच्छे से भांप लेती है और अंशुल को अपनी बाहो मे खींचकर उसका चेहरा चूमते हुए कहती है - एक बार फिर सोच ले आशु..... नयना से अच्छी लड़की तुझे कहीं नहीं मिलेगी... उसकी आँखों मे मैंने तेरे लिए सच्चा प्यार देखा है.... वो लड़की तुझे अपना सबकुछ मान चुकी है.. उसका दिल तोडना अच्छी बात नहीं है आशु......
अंशुल - माँ आप अच्छी तरह से जानती हो मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ.... और आपके अलावा किसी और को अपनी पत्नी के रूम मे नहीं देख सकता....
फिर भी आप ऐसी बात कर रही हो? मैं सिर्फ आपके साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहता हूँ....
पदमा - आशु.... मुझे अपनी जिंदगी से जिस ख़ुशी की तलाश थी तू मुझे उससे कहीं ज्यादा दे चूका है.... अब मैं अपने स्वार्थ के लिए तुझे यूँ धोखा नहीं दे सकती.... तू जनता है मैं तेरी सगी माँ हूँ और तेरे पापा के रहते कभी तेरे साथ एक पत्नी की तरह नहीं रह सकती... ना ही तेरे बच्चों को अपनी कोख मे पालकर जन्म दे सकती हूँ.... आशु आज नहीं तो कल तुझे ब्याह करना ही पड़ेगा.... नयना से अच्छी लड़की तुझे नहीं मिलेगी बेटा.... तू मेरी हर बात मानता है ना... तो इसे क्यूँ नहीं मान ले.... वैसे भी मैं कहा जाने वाली हूँ तेरे ब्याह के बाद भी मैं यही तेरे पास ही तो रहूंगी.... तेरी आँखों के सामने.....
अंशुल - माँ मैं अपने आखिरी दम तक इंतज़ार करूंगा आपका...... मुझे आगे और कोई बात नहीं करनी...

अंशुल इतना कहकर पदमा के कमरे से अपने कमरे मे चला जाता है....

 
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Ajju Landwalia

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अध्याय 2
नयना की मन्नत



दो दिन बाद दिन के करीब 2 बजे अंशुल चेयर पर बैठा हुआ किताब मे गुसा हुआ था की तभी उसकी फ़ोन की रिंग बजी अंशुल ने बिना नम्बर देखे फ़ोन उठा लिया ओर हेलो कहते हुए बात की शुरुआत की....
हेलो...
हेलो.....
जी....
आपसे बात करनी है....
कौन?
आपके घर के बाहर खड़ी हूँ... आप खुद लो....

अंशुल ने फ़ोन काटा और बाहर नीचे की तरफ देखा तो नयना एक पिले सलवार कमीज पहने बाहर खड़ी थी पदमा सोइ हुई थी ओर बालचंद का कहीं अता पत्ता नहीं था... अंशुल तुरंत नीचे जाकर अपनी बाइक स्टार्ट करता है नयना को पीछे बिठाकर घर से दूर ले जाकर एक सुनसान जगह पर बड़े से पेड़ के नीचे बाइक रोक कर नयना पर गुस्से मे चीखता हुआ बोलता है...
तुम्हारा दिमाग खराब है क्या?
पागल हो क्या तुम?
अकेले घर आ गई..
कोई इस तरह तुम्हे मेरे घर के सामने खड़े देख लेगा तो क्या होगा... सोचा है तुमने?
Free मे फेमस हो जाओगी ओर मुझे भी कर दोगी....

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अंशुल एक ही सांस मे न जाने कितनी बातें नयना से कह गया था लेकिन नयना एकटक बस अंशुल के चेहरे को ही देख रही थी जैसे उसने पहली बार देखा..
अंशुल कि बातें नयना के कानो तक पहुंच रही थी या नहीं.. कह पाना मुश्किल था! वो सोच कर आई थी कि जब अंशुल उसके सामने आएगा तो उससे इंकार कि वजह पूछेगी.. उससे झड़गा करेगी, उसे इस ब्याह के लिए किसी भी तरह मनाएगी लेकिन यहां उल्टा अंशुल ही उससे झगड़ा कर रहा था..
जब अंशुल बोलकर चुप हुआ तो नयना ने अपनी मीठी आवाज़ मे अंशुल का हाथ पकड़ते हुए कहा..

आप प्लीज गुस्सा मत करिये..
मैं तो बस आपसे मिलने आई थी..
कुछ पूछना चाहती थी आपसे...
मेरा इरादा आपका दिल दुखाने का कभी नहीं हो सकता...
मैं तो प्यार करती हूँ आपसे.....
प्यार करती हूँ?
नयना की आखिरी लाइन सुनकर अंशुल का गुस्सा फुर्ररर हो चूका था और एक हैरानी उसकी आँखों मे उभर आई थी अंशुल गंभीर होता हुआ बोला-
प्यार? मुझसे? तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है? अंशुल ने डांटते हुए नयना से कहा तो नयना ने पलटकर पूरी दृढता और आत्मीयता के साथ जवाब दिया - हां.. प्यार... वो भी आपसे.. और हमारा दिमाग बिलकुल ठिकाने पर है!

एक बार के लिए अंशुल को समझ नहीं आया की नयना की बात का वो क्या जवाब दे? आज से पहले कभी किसी लड़की ने उसके साथ इस तरह से बात नहीं की थी और ना ही अंशुल प्यार के चक्कर मे पड़ा था जो उसे इस बात का अनुभव होता.. अंशुल बस एक हैरान कर देने वाली निगाह के साथ अपने सामने नज़र झुकाये खड़ी 19 साल की उस नवयोवना सुन्दर रूपबाला को देख रहा था जिसके अंग अंग से उसका जोबन झलक रहा था और जिसने अभी अभी अपने दिल की बात अंशुल के सामने बिना किसी झिझक और लोकलाज के रख दी थी...
अंशुल उसकी इस बात का क्या जवाब दे?
ऐसा नहीं था की नयना एक साधारण रूपसी कन्या थी उसकी सुंदरता अद्भुत थी वो जिसे भी चाहती वही उसे आसानी से अपनी अर्धांगिनी बना सकता था, लेकिन अंशुल के ह्रदय पर नयना के रूप और माधुर्य से कहीं अधिक गहरी अपनी माँ पदमा के प्रेम की छाप थी जिसके सामने एक बार पहले भी नयना परास्त हो चुकी थी.. अंशुल और नयना के बीच काफ़ी देर तक ख़ामोशी ने अपना वर्चस्व जमाये रखा जिसे आखिर मे अंशुल ने ही तोड़ा..

देखो मैं तुम्हे मलखान काका के यहां छोड़ देता हूँ तुम वहा से वापस अपने घर चली जाओ... ठीक है? और दुबारा ऐसी हरकत करने की सोचना भी मत..
अंशुल जब ये कहकर पास मे खड़ी अपनी बाइक की और मुड़ा तो नयना पीछे से बोल पड़ी - ये मेरी बात का जवाब नहीं है.. मैं प्यार करती हूँ आपसे.. मुझे ब्याह कराना आपके साथ..

इस बार नयना ने अपनी बात कहकर नज़र नहीं झुकाई बल्कि अंशुल के चेहरे को देखने लगी जैसे उसे अंशुल के जवान का इंतेज़ार हो.. अंशुल जब वापस नयना की तरफ मुड़ा तो उसने देखा की नयना बिना किसी शर्म लिहाज़ और परदे के उसके सामने खड़ी उसे ही देखे जा रही थी जैसे वो एक लड़की ना होकर कोई लड़का हो जो किसी लड़की से अपने दिल की बात कह रहा हो! अंशुल के पास अब भी नयना की बात का कोई जवाब नहीं था और उसे अब भी समझ नहीं आ रहा था की वो नयना की बात का क्या जवाब दे? अंशुल के चेहरे पर एक शर्म उभर आई थी जिसे नयना ने साफ परख लिया था और अब उसकी झिझक पूरी तरह खुल चुकी थी..

नयना तो आई ही इसलिए थी की किसी भी तरह वो अंशुल को ब्याह के लिए राज़ी करके ही रहेगी मगर अंशुल अब भी किसी निरमोही की तरह सामने खड़ी उस बला की खूबसूरत लड़की के प्रेम निमंत्रण को अस्वीकार कर उसके दिल को अपने निर्दयी शब्दों के नुकीले बानो से छलनी कर रहा था.

प्यार प्रेम ये सब बस किस्से कहानियो मे अच्छे लगते है नयना..
अपने पीता से कहना किसी बड़े महल मे राजकुमार के साथ तेरा ब्याह कर दे..
मेरा घर देखा है ना तूमने? कई बार ज्यादा बारिश मे छत की सीलन से पानी टपकने लागत है..
सोते सोते आँख खुल जाती है..
आँगन की दीवारो से झड़ता हुआ प्लास्टर कई बार मेरी खाने की थाली मे गिरा है..
एक साडी खरीदने से पहले चार दुकानों पर मौलभाव करने के लिए चक्कर लगाती है मेरी माँ...
और बाप तो मंदिर के आगे से ही चप्पल चुराता है ताकि खरीदनी ना पड़े..
देख.. मेरे साथ ये प्यार व्यार का नाटक छोड़..
जाकर किसी और को पकड़..
मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ और नहीं होना चाहता..
तू और मत कर.......
अंशुल अपनी बाइक को स्टार्ट करते हुए - चल बैठ.... मलखाम काका के यहां छोड़ देता हूँ...

नयना बाइक की चाबी बंद करके अंशुल की आँखों मे आँख डालके पूरी निश्चयता के साथ कहती है -
मैं रह लुंगी तुम्हारे साथ..
जैसे भी हाल मे रखोगे रह लूंगी..
जैसा कहोगे वैसा करुँगी..
जो खाने को दोगे खा लुंगी....
कभी आपसे किसी बात की शिकायत नहीं करुँगी..
ना ही कभी किसी चीज की मांग करुँगी..
मेरा आपसे लगाव सिर्फ आकर्षण नहीं है मेरा प्रेम है.. मैं आपको पाने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ..
मेरा आपके बगैर रहना अब नामुमकिन है आशु...

नयना की बातें अंशुल के दिल को और उसके निश्चय को कामजोर कर रही थी जिसे अंशुल अच्छी तरह समझ रहा था. वो नहीं चाहता था की उसकी वजह से नयना को तकलीफ हो लेकिन अंशुल पदमा को छोड़मार नयना के साथ अपना भविष्य नहीं सोच सकता था अंशुल ने खुदको बिखरने से बचाते हुए झूठे क्रोध का दिखावा करते हुए नयना से कहा -
अंशुल - लेकिन मैं तेरे साथ नहीं रह सकता.. तुझे समझ क्यूँ नहीं आता? ब्याह तो बहुत दूर है मैं तुझसे अब आगे बात तक नहीं करना चाहता.. अब चलना है तो कहो वरना वहीं छोड़कर चला जाऊंगा...

नयना को अंशुल के झूठे क्रोध मे छुपे भय का आभास हो गया था मगर वो नहीं जानती थी की इसके पीछे की आखिर क्या वजह है जिसे अंशुल उससे छीपा रहा था अगर नयना उसे जान लेती तो शायद कोई हल निकाल पाती.. मगर अंशुल उसके बारे मे बात करने को त्यार नहीं था अंशुल को नयना से इसलिए भी चीड़ हो रही थी की वो उसके दिल को कमजोर कर रही थी उसकी बातें किसी हाथोड़े की तरह उसके दिल का दरवाजा तोड़ती जा रही थी..
उसपर सबसे बड़ी चोट अब होने वाली थी नयना ने अंशुल की गिरेबान पर अपना हाथ रखते हुए अंशुल की आँख मे आंख डाल कर पूछा -
क्यूँ नहीं करना चाहते मुझसे ब्याह?
कोई कमी है मुझमे? हम्म्म्म? बताओ?
क्या कमी है मुझमे? बोलते क्यूँ नहीं?
जवान हूँ.. तुमसे ज्यादा खूबसूरत हूँ... हसीन हूँ..
इंटर पास हूँ...
अच्छा गाना आता है... नाचना आता है...
हर तरह से आपका ख्याल रख सकती हूँ...
खाना बनाने से लेकर आपकी गालिया खाने तक सब कर सकती हूँ....
फिर भी आपके इंकार का क्या कारण है?
आपको क्या लगता है आप कहीं के शहजादे हो?
आपके लिए आसमान से कोई हूर परी जमीन पर आएगी?
क्या लगता है आपको?
मैंने सिर्फ आपकी सूरत देखकर आपसे प्यार किया है?
उस दिन कजरी के ब्याह मे जब सब लोग अपनी धुन मे मस्त थे और नाच गा रहे थे तब फटे-पुराने मेले-कुचले कपडे पहनें खाने की कतारो का मुँह देखकर भूख से तिलमिलाती उन छोटी बच्चियों को जिन्हे अंदर आने से डर लग रहा था आपने जिस प्यार से अपने हाथो से खाना खिलाया था ना... उसी वक़्त आपको अपने दिल मे बसा लिया था मैंने..
आपकी नेकदिली ने मेरा दिल जीता था..
मेरी एक बात याद रखना आप..
अगर आप मेरे नहीं हुए तो मैं आपको मेरे जीतेजी किसी और का भी नहीं होने दूंगी..
अगले अगहन की पूर्णिमा का मुहूर्त निकाला था आपके और मेरे पीता ने मिलकर हमारी शादी का....
अगर उस दिन आप मेरे घर बारात लेकर नहीं आये तो फिर अगले दिन बिनबुलाये मेरी अर्थी को कन्धा देने जरुर आना..

अंशुल नयना की बातें किसी बूत की तरह खड़ा हुआ सुन रहा था इस बार उसके दिल का दरवाजा नयना के शब्दों की चोट से टूट चूका और नयना उसमे प्रवेश करने मे सफल रही थी..
अंशुल का मन अभी नयना को गले लगाकर उसके गुलाब की पंखुड़ीयों के सामान होंठ चूमने का हो रहा था वो कहना चाहता था की नयना.. मैं तुम्हारे पैरों की धूल भी नहीं हूँ... तुम मेरे जैसे मामूली आदमी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने का संकल्प क्यूँ कर रही हो? क्यूँ तुमने अपने मरने की बात मुँह से निकली? हाय रे... ये केसा दोराहा आकर मेरी जिंदगी मे खड़ा हो चूका है?

एक तरफ पदमा है जिसके साथ मे अपनी सारी जिंदगी बीतना चाहता हूँ और अपने प्यार से उसका जीवन हमेशा के लिए खुशहाल रखना चाहता हूँ उसकी एक मुस्कान के लिए अपनी जान दे सकता हूँ जो मेरे दिल पर एकक्षत्र राज करती है वहीं अब दूसरी तरफ नयना आकर खड़ी हो चुकी है जिसने अपने रूप के साथ साथ अपने शब्दों और अटूट प्रेम की सौगात से मेरे दिल पर अपना अधिकार करने की चेष्टा की है और मेरे वियोग मे अपने प्राणो को त्यागने की बात कह रही है..
अंशुल अभी नयना को अपने सीने से लगाकर कह देना चाहता था की नयना मैं भी ब्याह करना चाहता हूँ लेकिन उसे जैसे कोई अदृश्य शक्ति ये कहने से रोक रही थी! हो न हो इस शक्ति मे जरुर पदमा का ख्याल ही छीपा हुआ था... अंशुल नयना की सारी बात सुनने के बाद भी उसी स्वर मे नाटकिये अंदाज़ मे उससे बोला -

चुपचाप पीछे बैठो, समझी?
मुझे वापस घर भी जाना है....
और भी काम है तुम्हारे साथ यहां खड़े रहने के अलावा..
चलो... जल्दी करो....
थोड़ी देर मे शाम होने वाली है....

क्या.....?
हे भगवान..
केसा बैरागी निरमोही और नीरस है ये लड़का...
मेरी इतनी बातों का जरा भी असर नहीं हुआ इस पर?
सच मे मेरे मरने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा इसे?
कैसे बेरूख होकर मुझसे बात कर रहा है...
अगर प्यार नहीं करती तो मुड़कर देखती भी नहीं इसकी तरफ....
अपने आपको कहीं किसी बड़ी रियासत का राजा समझता है..
तेवर तो देखो सहजादे के....
ठीक से मेरी तरफ देखकर बात तक नहीं की... हाय रे..
नयना मन ही मन ये सब सोच रही थी की अंशुल ने फिर कहा -
अब ख़डी खड़ी मेरी शकल क्या देख रही हो?
चलो बैठो... पेट्रोल कम है यही सारा फूक गया तो पुरे रास्ते चल के जाना पड़ेगा दोनों को...
चलो अब बैठो....

नयना इस बार अंशुल की बात से चिढ़ गई और उखड़े हुए स्वर मे बोली - मुझे नहीं बैठना.... चली जाउंगी मैं अपनेआप.... आपको मुझसे कोई फर्क नहीं पड़ता तो झूठमुठ ये दिखावा क्यूँ करते हो?

अंशुल - तुमसे पूछा नहीं रहा हूँ.... बता रहा हूँ.... चुपचाप बैठ जाओ वरना अच्छा नहीं होगा....

अंशुल की आवाज़ मे इस बार कुछ ऐसा जादू था कि नयना बिना कोई वाद विवाद किये अंशुल के पीछे बैठ गई और अपने दोनों हाथो से अंशुल को बाहों मे कस लिया मानो वो पूछ रही हो कि अंशुल क्या तुम मुझे यूँही अपनी बाइक के पीछे बिठाना चाहोगे? अंशुल नयना कि पकड़ से और भी उसकी तरफ आकर्षित हो जाता है और बिना उसकी पकड़ का विरोध किये बाइक चला कर मलखान के घर कि और चल देता है... ये सफर नयना के दिल पर एक अमिट यादगार छाप छोड़ रहा था वो कब से अंशुल के साथ इसी तरह से चिपककर बैठे हुए सेर सपाटा करने के ख़्वाब देखती आ रही थी आज उसका वो ख्वाब कुछ देर के लिए ही सही पूरा जरुर हुआ था.. इस बार अंशुल भी नयना को खुदको छूने से नहीं रोक रहा था जिसका सीधा सीधा मतलब नयना ने अंशुल के दिल कि हामी समझा था और प्यार से बाइक कि पिछली सीट पर बैठे मन ही मन खुश होती हुई इस छोटे से सफर का मज़ा ले रही थी....

अरे रोको रोको.. रोको ना...
अंशुल बाइक सडक किनारे रोकते हुए - अब क्या हुआ?
नयना बाइक से उतरकर - चलो....
अंशुल - कहा?
नयना अंशुल का हाथ पकड़कर - चलो... बताती हूँ....
अंशुल - जंगल है नयना.... कोई जानवर आ सकता है..
नयना - कोई नहीं आएगा आप चलो..
नयना अंशुल का हाथ पकड़ के जंगल से गुजरने वाली सडक से दाई तरफ के जंगल मे थोड़ा अंदर लेकर जाती है जहाँ कुछ दूर चलकर एक पड़ा सा बड़ का पेड़ आता है देखने मे बहुत पुराना और विशालकाय ये पेड़ किसी भूतिया पेड़ जैसा लगता था नयना वहा रुक जाती है और उसके पेड़ के सामने खड़ी होकर अंशुल को देखने लगती है......

अंशुल - नयना यहां क्यूँ लाइ हो?
नयना अंशुल का हाथ पकड़कर - आशु.... मैंने अपना सारा बचपन बहुत बेबसी मे गुजारा है.... जब मैं 7-8 साल की थी और थोड़ी सोचने समझने लायक हुई तब घर मे एक जून खाने के लिए भी नहीं होता था... अक्सर मुझे भी माँ पापा के साथ सिर्फ पानी पीकर भूखे पेट सोना पड़ता था.... पापा रात मे मुझे भूखे पेट सोते देखकर रोते थे और माँ उन्हें दिलासा देकर ढांडस बंधवाती थी... अगले एक साल तक ऐसा ही चलता रहा, फिर एक दिन एक बहुत बूढ़ी औरत गाँव मे आई.. कोई उसे डाकिन कहता तो कोई चुड़ैल या काला जादू करने वाली बुढ़िया कह कर पुकारता.. वो सिर्फ पेट की आग बुझाने के लिए लोगों से खाना मांगती थी मगर कोई उसकी मदद नहीं करता... एक रोज़ गाँव के मंदिर मे उत्सव हुआ पुरे गाँव को भोज का निमंत्रण था... उस रात मैं भी मंदिर मे माँ पापा के साथ खाना खाने गई थी... खाना खाते हुए मैंने थोड़ा सा अपने कपड़ो में छुपा भी लिया था! जब मैं मंदिर से बाहर आई तो देखा की कुछ लोग उस बुढ़िया को पिट रहे थे.. शायद वो बुढ़िया भी खाना खाने वहा आई थी जिससे नाराज़ होकर कुछ लोग उसके साथ मार पिट कर रहे थे.. वो बुढ़िया दर्द से चिल्ला रही थी.. चीख रही थी.. रो रही थी... मगर पूरा गाँव खड़े खड़े बस तमाशा देख रहा था उस भीड़ मे खड़े हुए किसी भी आदमी-औरत बच्चे-बूढ़े अमीर-गरीब किसीको भी उस बुढ़िया पर तरस नहीं आया...
बुढ़िया जैसे तैसे वहा से अपनी जान बचाकर भाग निकली और मैं भी माँ-पापा की नज़र बचाकर उस रात उस बुढ़िया का पीछा करते करते यहां इस पेड़ तक आ गई... उस रात इसी पेड़ के नीचे जब वो बुढ़िया बैठकर अपने जख्मो पर मिट्टी लगा रही थी तब मैंने मंदिर मे खाना खाते वक़्त अपने कपड़ो के अंदर चुराया हुआ खाना उस बुढ़िया को निकाल कर दे दिया...
बुढ़िया मुझे देखकर हैरान थी...
मुझे अँधेरे से बहुत डर लगता है आशु....
मगर उस रात न जाने कैसे मुझमे इतनी हिम्मत आ गई की मैं अकेले इस जंगल मे उस बुढ़िया के पीछे पीछे चली आई थी... बुढ़िया ने मेरे हाथ से खाना ले लिया और खाते हुए कहा की अब से मुझे जो कुछ भी चाहिए यहां इस पेड़ के नीचे आकर उससे मांग लिया करे.... मुझे बुढ़िया की बात बहुत अजीब लगी.. मैंने उसपर विश्वास नहीं किया और वापस गाँव लौट गई... जब मैं घर पहुंची तो देखा की हर तरफ मुझे ही खोजा जा रहा था पापा की तबियत ख़राब हो गई थी वैध को दिखाने के लिए एक पैसा तक घर मे नहीं था सुबह बड़े जतन करने के बाद आस पास के लोग पापा को सरकारी अस्पताल लेकर गए जहा डॉक्टर ने पापा के ज़िंदा बचने की कोई उम्मीद नहीं जताई थी..... तब मुझे बुढ़िया की बात याद आई और मैं यहां वापस आ गई.. इस पेड़ के सामने खड़ी होकर उस बुढ़िया से अपने पापा की जिंदगी मांगने लगी और कुछ दिनों के अंदर ही पापा फिर से पहले की तरह तंदरुस्त हो चुके थे तब मुझे बुढ़िया पर विश्वास हुआ.... उसके कई महीनों बाद एक रोज़ जब मैं पापा के साथ यहां से गुजर रही थी तब मैं वापस यहां आई और माँगा की मुझे कभी भूखा नहीं सोना पड़े.... उस दिन के बाद घर के हालत बदल गए और मुझे आज तक कभी भूखा नहीं सोना पड़ा और ना ही फिर कभी यहां आने की जरुरत पड़ी...
आशु आज इतने सालों के बाद मैं यहां वापस अपने लिए मन्नत में आपको माँगने आई हूँ.....
अगर मेरा प्यार सच्चा है तो आपको मुझसे कोई नहीं छीन सकता... आप खुद भी नहीं....

नयना की बात सुनकर अब तक अंशुल किसी व्यथा के महासागर मे डूब चूका था और अपने मन के आकाश मे चीख चीख कर कह रहा था की मैं भी तुम्हारा तू नयना..... मैं भी तुम्हारा हूँ.... तुम भी अब मेरे दिल के अंदर प्रवेश कर चुकी हो मगर पदमा का प्रेम उसके अंतर्मन को बार बार उसके काबू से बाहर होने से रोक रहा था और उसे समझा रहा था की उसके लिए कौन पहले है पदमा अंशुल के दिल की ज़मीन पर नयना से कहीं अधिक गहरी समाई हुई थी....

अंशुल ने नयना की सारी बात सुनकर सिर्फ इतना कहा - अब वापस चले.... मुझे लेट हो रहा है....
इस बार नयना के पास भी बोलने को कुछ नहीं रह गया था वो चुपचाप अंशुल के साथ वापस आ गई और फिर से एक बार अंशुल के पीछे बैठकर अपनी बाहों मे उसे कस्ते हुए अपनी मन्नत दोहराने लगी थी.. कुछ ही देर मे अंशुल नयना को मलखान के यहाँ छोड़ आया जहाँ से नयना वापस अपने घर लौट गई....

अंशुल नयना को छोड़कर जब वापस घर आया तो शाम हो चुकी थी और उसके मन मे नयना के ही ख्याल चल रहे थे आज जैसे नयना ने उसपर जादू कर दिया ऐसा जादू जिससे अंशुल चाह कर भी बाहर नहीं निकाल पा रहा था और नयना कर बारे मे ही सोच रहा था...

अब तक बालचंद भी वापस बड़े शहर अपनी ड्यूटी बजाने चले गए थे और घर मे सिर्फ पदमा ही रह गई थी जिसे देखते ही अंशुल नयना के ख्यालो से एकदम से बाहर आ गया जैसे पदमा ने अंशुल को नयना की गिरफ्त से आजाद करवा लिया था पदमा को देखते ही अंशुल फिर से एक बार पहले की तरह पदमा के मोह मे बंध गया और अब नयना की सारी बातें उसे इतना तंग नहीं कर रही थी जितना पहले कर रही थी और पदमा की नज़र उसपर पड़ते ही वो जैसे नयना की यादो से पूरी तरह आजाद हो चूका था....

अरे लल्ला.... कहा गया था तू?
फ़ोन अपने साथ लेकर जाना चाहिए था ना....
तेरे पापा को पेदल ही बस स्टैंड तक जाना पड़ा....
कम से कम तू बता कर तो जाता....
यूँ ही बिना बताये निकाल गया....
खैर अब छोड़.....
देख तेरी मनपसंद ख़िर बनाई है....
जरा चख के तो देख... कैसी बनी है?

पदमा पुरे स्नेह और खुले निमंत्रण के साथ अंशुल को अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी जैसे वो कह रही हो की अंशुल... क्या मैं अकेली तुम्हारे लिए काफी नहीं? क्या तुम मेरे अलावा भी किसी को अपनी जिंदगी मे शामिल करना चाहते हो? क्या तुम मुझसे खुश नहीं हो? क्या मुझसे कोई गलती हो गई है अंशुल?

अंशुल रसोई में खाना पक्का रही अपनी माँ पदमा की बात सुनकर उसकी ओर बढ़ गया और अपनी बाहों मे लेकर बिना कुछ कहे सीधे उसके लबों को अपने लबों की क़ैद मे ले लिया ओर बारी बारी से उसके ऊपरी ओर निचले होंठो को चूमते हुए जीभ को चूमकर मुस्कुराते हुए पदमा की बात का जवाब देते हुए कहने लगा -
अंशुल - माँ.... ख़िर बहुत ज्यादा मीठी है.... लगता है शक्कर ज्यादा डाल दी आपने....

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अंशुल की बात सुनकर पदमा अंशुल को देखते हुए पूरी तरह खिलखिलाती हुई जोर जोर से हँसने लगी उसकी हंसी पुरे घर मे सुनाई दे सकती थी पदमा ने हँसते हुए अंशुल के होंठों को अपनी उंगलियों से पकड़ लिया ओर हलके से दबती हुई उसके मासूम चहेरे को देखकर कटोरी मे निकाली हुई ख़िर खिलाती हुई बोली...
पदमा - अब ठीक है मीठा?

अंशुल अपनी माँ पदमा के इस तरह ख़ुशी से हँसने पर मन्त्रमुग्ध हो चूका था उसे पदमा के अलावा ओर कोई दिख ही नहीं रहा था जिसे वो अपने साथ सोच भी सकता था पदमा की एक हँसी ने नयना की सारी बातें सारे जतन ओर कोशिशो पर मिट्टी डाल दी थी... पदमा का प्रेम नयना के सम्मोहन पर पूरी तरह से भारी पड़ा था और अंशुल को एक पल मे नयना के ख्यालो से रिहाई मिल गई थी.. अंशुल का दिल जोर जोर से धड़क रहा था वो अपनी बाहों मे क़ैद अपनी माँ पदमा के मुस्कुराते चहेरे को ही देख रहा था.. अंशुल पदमा के लिए किसी भी हद से गुजर सकता था और ये उसका प्रेम था अपनी माँ के लिए, जिसे वो हर हाल मे खुश और हस्ता हुआ देखना चाहता था...
अंशुल ने अपनी माँ पदमा देवी को अपनी बाहों की क़ैद से आजाद किया और रसोई से बाहर अपने रूम मे आ गया फिर अलमारी खोलकर कुछ चीज अपनी जेब मे डाली और वापस नीचे रसोई की तरफ आ गया... इस बार अंशुल ने रसोई का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और कुछ देर बाद रसोई से पदमा की मादक सिस्कारिया बाहर आने लगी जिसे सुनकर कोई भी अंदर की दशा और हाल भाँप सकता था, अंदाजा लगा सकता था...
करीब एक घंटे बाद जब रसोई का दरवाजा खुला तो पदमा अंशुल की गोद मे थी और उसके बदन पर कपडे बिलकुल अस्त व्यस्त थे.. अंशुल अपनी माँ पदमा को गोद मे उठाये उसे चूमता हुआ रसोई से बाहर निकला और पदमा को अपनी गोद मे उठाये पदमा को उसके कमरे मे लेकर आ गया फिर बिस्तर पर लेटाते हुए बोला....
अंशुल - sorry.... माँ..... खड़े खड़े आपको तकलीफ हुई होगी.... पैर दर्द कर रहे होंगे आपके....
पदमा मुस्कुराती हुई अंशुल को अपनी तरफ खींचती है और उसके होंठों से खेलती हुई जवाब देती है - हम्म्म दर्द तो कर रहे है.... तुम दबा दो अपनी माँ के पैर...
अंशुल मुस्कुराते हुए - अभी दबा देता हूँ....
ये कहकर अंशुल अपनी माँ की साडी जो रसोई मे पूरी खुल चुकी थी और बाद मे पदमा ने ऐसे ही बेढंगी तरीके से अपने बदन से लपेट रखी थी थोड़ा ऊपर सरकाकर पदमा के पैर दबाने लग गया..
पदमा अपने पैर दबाते अंशुल को इस तरह देख रही थी जैसे सालों पहले छोटे अंशुल को देखा करती थी....

पदमा मुस्कुराते हुए - आशु वहा से सिगरेट दे दो.....
अंशुल पैर दबाता हुआ खड़ा हुआ और पदमा के बताई जगह से सिगरेट और लाइटर लेकर पदमा के पास आ गया और अपने हाथो से एक बड़ी एडवांस सिगरेट अपनी माँ पदमा के गुलाबी होंठों पर लगाकर लाइटर से सिगरेट सुलगता हुआ सिगरेट का पैकेट और लाइटर बेड के सिरहाने रख कर वापस पदमा के पैरों मे आ गया और उसके पैर दबाने लगा...
पदमा सिगरेट के कश लेटी हुई अपने पैरों मे बैठे अपने बेटे को इस तरह से अपने पैर दबते देखकर किसी ख्यालों के सागर मे डूब गई....

पदमा का बचपन कठिनाई मे बिता था उसके माता-पीता को बेटा चाहिए था लेकिन पहले उसकी बड़ी बहन गुंजन और फिर पदमा के जन्म से सभी लोग दुखी थे उसके बाद जब उसके छोटे भाई निरंजन का जन्म हुआ तो सारा प्यार उसी के हिस्से आया गुंजन और पदमा तो बस घर मे काम मात्र के लिए रह गई थी उसीके साथ उसकी बड़ी बहन गुंजन की भी यही दशा थी... गुंजन के साथ तो उसके पीता कमलनाथ ने जो किया था वो कहना भी अशोभनीय है हवस की आग मे अपनी बेटी के साथ उसकी सहमति के बिना कमलनाथ ने भोग किया था जिसे छुप कर पदमा ने देखा था... फिर किसी अमीर घर मे बूढ़े आदमी के साथ गुंजन का ब्याह करवा दिया था और यही कमलनाथ पदमा के साथ करना चाहता था लेकिन किसी तरह पदमा इन सब से बच गई फिर भी उसका ब्याह उससे उम्र मे बारह साल बड़े बालचंद से हुआ जिसने कभी पदमा को पूरी तरफ से देह का सुख नहीं दिया था.. शादी के कुछ साल बाद तो बालचंद मर्द भी नहीं रह गया था और पदमा की किस्मत फिरसे एक बार उसपर कहर बनकर टूटी थी.....
बालचंद के साथ उसे ना अच्छी जिंदगी नसीब हुई थी ना ही शारीरिक जरुरत पूरा हुई थी पदमा अपनी भारी जवानी मे ही किसी बुढ़िया सी हो चुकी थी जिसे अपनी जिंदगी से कोई उम्मीद न रह गई हो..
ऐसे मे अंशुल का उसकी वीरान पड़ी जिंदगी मे फरिश्ता बनकर आना और उसे हर वो सुख देना जो वो चाहती थी उसके लिए वरदान बन गया था.. उसकी उदासी भरी बंजर जिंदगी मे अंशुल ने बहार भर दी थी.. अंशुल के हाथ लगते ही पदमा का अंग अंग वापस खिल उठा था उड़के मन मे मोर नाचने लगे थे....

पदमा सिगरेट के कश लेती हुई सोच रही थी की अंशुल आज भी क्यूँ उसका इतना ख्याल रखता है? उसे अपनी पलको पर बैठाता है? उसकी हर बात मानता है? और कभी उड़के साथ कोई बदतमीजी नहीं करता जबकि अंशुल पदमा से पिछले कुछ महीनों मे जब से वो शहर से आया था सैकड़ो बार सम्भोग कर चूका था क्यूँ अंशुल उसे कभी अकेला नहीं छोड़ता और हमेशा उसके साथ ही रहता है....
पदमा हमेशा से अंशुल को प्यार करती थी लेकिन जब से अंशुल ने उसके सुने जीवन मे खुशियों के रंग भरे थे वो अंशुल से और भी ज्यादा जुड़ गई थी... एक माँ और प्रेमिका दोनों का किरदार पदमा अच्छे से निभा रही थी आज पदमा को अंशुल पर कुछ ज्यादा ही प्यार आ रहा था....

पदमा ने सिगरेट का आखिरी कश लेकर अपने घुटनो तक ऊपर उठी अपनी साडी को धीरे धीरे और ऊपर सरका लिया और अंशुल को देखती हुई साडी कमर तक उठाकर पहले से नंगी पड़ी हुई बाल रहित गुलाबी चिकनी खिली हुई बुर को अपनी उंगलियों से हल्का सहलाते हुए अंशुल से बोली - आशु... बेटा माँ को यहां भी दर्द हो रहा है.... थोड़ा यहां भी दबा दो....

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अंशुल अपनी माँ पदमा के इशारे और मन की भावनाओं को अच्छे से समझता था उसे कभी बातों से कोई चीज समझने की जरुरत नहीं पड़ी..
पदमा और अंशुल मे कुछ ऐसा तालमेल था जो बहुत कम ही देखने को मिलता है.... अंशुल पदमा के पैर दबाना छोड़कर पदमा की झांघो के जोड़ पर आ गया झट से अपनी जीभ पदमा की सुनहरी बुर पर लगाकर उसकी मसाज करने लगा.. पदमा ने एक और सिगरेट जला ली थी जिसके कश लेती हुई वो अंशुल की बुर चुसाई और चटाई का भरपूर आनंद ले रही थी उसे जैसे इस समय जन्नत का मज़ा मिल रहा था...

पदमा अपने एक हाथ से अंशुल का सर सहलाती हुई उसे प्यार भरे शब्दों से उत्तेजित कर रही थी और सिगरेट के कश लेती हुई अंशुल की आँखों मे देखकर इशारो से सवाल कर रही थी मानो पूछ रही हो की अंशुल को इस वक़्त केसा लग रहा है? और अंशुल अपनी मुस्कुराहट से अपनी माँ के सवाल का जवाब देते हुए बता रहा हो की उसे कितना मज़ा आ रहा है.... कुछ देर बाद अंशुल उठकर दरवाजा बंद कर देता है जो अगले दिन बाहर से आ रही किसी की आवाज़ से खुलता है....

दिन के 2 बज रहे थे अंशुल अपनी माँ पदमा की बाहों मे सो रहा था दोनों की हालत देखकर पत्ता लगाना बेहद आसान था की दोनों ने पिछली रात जागकर बिताई थी.. एक पतली चादर के अंदर पदमा और अंशुल बिना किसी कपडे के एकदूसरे की बाहो मे सो रहे थे जैसे कोई नव विवाहित जोड़ा अपनी सुहागरात पर सो रहा हो.. दोनों के कपडे इधर उधर पड़े थे साथ ही ज़मीन पर 2 कंडोम भी पड़े थे जिसमे आशु का वीर्य साफ देखा जा सकता था और सिरहने से दाई तरह थोड़ा दूर रखा एक पुराना बर्तन जिसमे 4-5 सिगरेट का कचरा साथ ही बेड के नीचे शराब की आधी खाली बोतल और एक गिलास जिसमे अभी थी कुछ जाम बचा हुआ था... बाहर से किसी के दरवाजा पीटने की आवाज़ आ रही थी जिसे सुनकर अंशुल और पदमा एक साथ नींद से जाग उठे...

पदमा तो घड़ी मे समय देखकर गुस्से से बड़बड़ा पड़ी - किसकी मईया के भोसड़े मे आग लगी है इस बखत.... कौन अपनी अम्मा चुदवा रहा है बाहर? जिसे सुनकर अंशुल हसता हुआ बेड से नीचे उतरकर अपने कपडे पहनने लगा और कपडे पहनने के बाद पदमा के माथे पर एक चुम्बन देकर उसे फिर से बेड पर सुलाता हुआ बोला - मैं देख कर आता हूँ... आप आराम करो...
अंशुल की बात सुनकर पदमा को जैसे अपने ही मुँह से निकली गलियों पर शर्म आ गई और शर्म से मुस्कुराती हुई तकिये मे अपना मुँह छीपा कर फिर से लेट गई...


अंशुल कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर आँगन मे आ गया और फिर बाहर का दरवाजा खोलकर देखा तो सामने दमयंती काकी खड़ी थी जिसे सब धन्नो काकी ही कहकर पुकारा करते थे स्वाभाव से मिलनसार और हसमुख धन्नो दिखने मे कुरूप नहीं थी.. उसका रंग सांवला था मगर बदन का उभर अच्छी अच्छी औरतों को लज्जा देता था चेहरे से हसमुख और हमेशा मीठे बोल ही झड़ते थे.. अंशुल पर बड़ा लाड-प्यार था धन्नो को.. बचपन मे अक्सर पदमा से गुजरिश करके उसे अपने साथ ले जाती और खूब सारी स्वादिस्ट खाने की चीज़े उसे खिलाती और छुप छुप कर अपनी छाती से अंशुल को अपना दूध भी पीला चुकी थी धन्नो.... अंशुल का रूप और मासूमियत धन्नो के दिल मे उन दिनों एक अलग सी हलचल पैदा किया करता था जो अब भी कहीं कायम थी... धन्नो की अपनी कोई औलाद नहीं थी.. उसने सबसे बाँझ होने के ताने सुने थे.. मगर बाद मे गाँव के एक नशेखोर शराबी ने शराब के नशे मे अपना पूरा घर-परिवार स्वाह कर लिया तब उस हादसे मे उस शराबी का 7 साल का लड़का चन्दन किसी तरह बच गया था जिसे धन्नो ने गोद लेकर पाला था.... आज धन्नो उसी चन्दन के ब्याह का निमंत्रण देने आई थी...

अंशुल दरवाजा खोलकर - कैसी हो काकी.... इतने दिनों के बाद अपने आशु की याद कैसे आ गई.... तुम तो भूल गई थी हो मुझे.....
धन्नो अंशुल का गाल खींचती हुई बोली - तू पहले ये बता इतनी देर कैसे लगी दरवाजा खोलने मे.... और तेरी माँ पदमा रानी कहा गई है?
अंशुल धन्नो का हाथ पकड़ कर - अरे काकी वो माँ मलखान काका यहां सीमा काकी से मिलने गई है शाम तक आ जाएगी... अब तुम बताओ.... मुझे भूल गई हो ना.... बचपन मे तो कितना प्यार करती थी आजकल सारा प्यार चन्दन भईया पर लुटा रही हो क्या?
धन्नो मुस्कुराती हुई अंशुल के बिखरे हुए बाल संवारती हुई बोली - लल्ला.... तू भी आ सकता है अपनी काकी से मिलने... जब से शहर से लोटा है कभी अपनी काकी से दो बात करने की भी फुर्सत नहीं मिली तुझे....
अंशुल - क्या करू काकी... सरकारी इम्तिहान के लिए पढ़ाई मे लगा था तुमसे मिलने का समय ही नहीं मिला.... पर जरुर आऊंगा तुमसे मिलने....
धन्नो - अच्छा.... ये ले निमंत्रण.... चन्दन का ब्याह तय हुआ हुसेनीपुर की महिमा के साथ.... आज से दस दिन बाद ब्याह होगा..... बहुत काम है.... मैं शाम को पदमा से कह दूंगी की तुझे काम मे हाथ बटाने भेज दे... इस बार कोई बहाना काम नहीं आएगा....
अंशुल - काकी चन्दन भईया तो मेरे बड़े भाई की तरह है.... उनके ब्याह का सारा बंदोबस्त तो मैं ही करूँगा.... देखना बड़े धूम धाम से बारात निकलेगी चन्दन भईया की....
धन्नो अंशुल की बालाये लेती हुई उसके चेहरे को बड़े प्यार से अपने दोनों हाथो से सहला कर वापस चली गई और अंशुल बाहर का दरवाजा बंद करने शादी का निमंत्रण पढता हुआ वापस अंदर पदमा के पास आ गया....
पदमा - कौन था बाहर?
अंशुल बैठता हुआ - धन्नो काकी थी.. चन्दन भईया के ब्याह का निमंत्रण देकर गई है... आने वाली 22 तारीख का ब्याह तय हुआ है...
पदमा - लड़की कहा की है?
अंशुल - हुसेनीपुर की.... महिमा नाम है...
पदमा - अरे वहीं उसी गाँव मे नयना भी रहती है..
अंशुल पदमा के मुँह से नयना का नाम सुनकर चुप हो जाता है जिसे पदमा अच्छे से भांप लेती है और अंशुल को अपनी बाहो मे खींचकर उसका चेहरा चूमते हुए कहती है - एक बार फिर सोच ले आशु..... नयना से अच्छी लड़की तुझे कहीं नहीं मिलेगी... उसकी आँखों मे मैंने तेरे लिए सच्चा प्यार देखा है.... वो लड़की तुझे अपना सबकुछ मान चुकी है.. उसका दिल तोडना अच्छी बात नहीं है आशु......
अंशुल - माँ आप अच्छी तरह से जानती हो मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ.... और आपके अलावा किसी और को अपनी पत्नी के रूम मे नहीं देख सकता....
फिर भी आप ऐसी बात कर रही हो? मैं सिर्फ आपके साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहता हूँ....
पदमा - आशु.... मुझे अपनी जिंदगी से जिस ख़ुशी की तलाश थी तू मुझे उससे कहीं ज्यादा दे चूका है.... अब मैं अपने स्वार्थ के लिए तुझे यूँ धोखा नहीं दे सकती.... तू जनता है मैं तेरी सगी माँ हूँ और तेरे पापा के रहते कभी तेरे साथ एक पत्नी की तरह नहीं रह सकती... ना ही तेरे बच्चों को अपनी कोख मे पालकर जन्म दे सकती हूँ.... आशु आज नहीं तो कल तुझे ब्याह करना ही पड़ेगा.... नयना से अच्छी लड़की तुझे नहीं मिलेगी बेटा.... तू मेरी हर बात मानता है ना... तो इसे क्यूँ नहीं मान ले.... वैसे भी मैं कहा जाने वाली हूँ तेरे ब्याह के बाद भी मैं यही तेरे पास ही तो रहूंगी.... तेरी आँखों के सामने.....
अंशुल - माँ मैं अपने आखिरी दम तक इंतज़ार करूंगा आपका...... मुझे आगे और कोई बात नहीं करनी...

अंशुल इतना कहकर पदमा के कमरे से अपने कमरे मे चला जाता है....


Bahut hi umda update he moms_bachha Bro

Nayna ka pyar aashu ke liye ekdum sachcha aur pakka he..........

Padma ke hote huye aashu abhi kisi dusri ke bare me nahi soch raha he..........

Lekin nayna ke shabdo ne uske man me nayna ke prati kuch to jaga hi diya he..........

Keep rocking Bro
 
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Bhai padama or anshul ka romance dikhao na khulkar thoda
 
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Enjoywuth

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Good one... Sayad Padma ki baat bhinkahin aadhar na ban jaye ya phir ashu apni aur padma ke baat ka khulasaa na karde emotional ho kar
 
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