भाग 62
सुगना के मन में उस दिन के दृश्य ताजा हो गए जब वह बनारस महोत्सव की आखिरी रात को राजेश के घर पर थी। जाने यादों और संवेदनाओं में ऐसी कौन सी ताकत होती है जो दूसरा पक्ष भी पहचान लेता है। राजेश भी रेल की खिड़की से सर टिकाए स्वयं उस दिन की यादों में खोया हुआ निर्विकार भाव से बाहर की काली रात को देख रहा था और उसका अंतर्मन सुगना को याद कर रोशन था रोमांचित हो रहा था …
अब आगे....
लाली के घर मे बनारस महोत्सव की आखिरी रात लाली और सुगना बिस्तर पर सुंदर नाइटी में लिपटी हुई बातें कर रही थी। कुछ वस्त्र तन को इस प्रकार ढकते हैं कि वह उसे और कामुक बना देते हैं वही हाल लाली और सुगना का था। दोनों परियां दीये की रोशनी में कयामत ढा रहीं थीं पर इन पर मार मिटने वाला राजेश बाहर हाल में लेटा हुआ उन्हें ही याद कर रहा था।
लाली में खुश होकर कहा
"आज त ते भाग्यशाली बाड़े"
सुगना को एक पल के लिए सच में एहसास हुआ कि जैसे वह इस दुनिया के सबसे भाग्यशाली औरत हो। भरपूर धन दौलत जो आज राजेश की बदौलत उससे मिल चुकी थी एक खूबसूरत और प्यारा बेटा जो सूरज के रूप में उसके पास था और तीसरा काम सुख.. यह अलग बात थी कि उसे पुरुष संसर्ग का सुख अपने पति के बजाए अपने प्यारे बाबू जी से मिला था पर वह अनुभव अद्भुत और बेहद आनंददायक था।
पिछले 3 -4 वर्षों में न तो उसे कभी अपने पति की कमी कभी महसूस न हुई थी वह दुनिया की सबसे संतुष्ट औरत थी। परंतु पिछले 3-4 दिनों में उसकी अधीरता चरम पर पहुंच चुकी थी। विद्यानंद की बातों पर विश्वास कर गर्भधारण उसके लिए बेहद अहम और एक चुनौती बन गया था।
सुगना जैसे संतुष्ट और खुशहॉल युवती अचानक ही हतभगिनी बन गई थी। जिस स्त्री को अपने ही पुत्र से संभोग करना पड़े निश्चित ही यह मानसिक कष्ट असहनीय होगा और तो और इसके बचाव का तरीका भी कम कष्टकारी न था अपनी ही पुत्री को अपने पुत्र से संभोग कराना यह घृणित और निकृष्ट कार्य सुगना के भाग्य में नियति ने सौंप दिया था। लाली ने फिर कहा
"कहां भुला गइले" सुगना उदास होकर बोली
"लागा ता हमार मनोकामना पूरा ना हो पायी"
"रतन भैया त आ गइल बाड़े" सुगाना के ना तो दिमाग में और ना ही खयालों में कभी रतन का नाम आया था वह कुछ ना बोली और चुप ही रही।
"कह त जीजा जी के बुला दे तानी*
सुगना ने पिछले दो दिनों में मन ही मन कई बार राजेश के बारे में सोचा था अपने अवचेतन मन में में वह स्वयं को राजेश के सामने नग्न तो कर लेती पर अपनी जाँघे खोल कर उनके काले लण्ड को अपनी बुर में…..….छी छी सुगना तड़प उठती। क्या वह सच में राजेश से संभोग करेगी? जिस रसीली चूत को उसके बाबूजी रस ले लेकर चूसते और चाटते हैं और उसमेँ किसी पराये मर्द का….….आह… सुगना की बुर सतर्क हो गयी…परंतु आज राजेश का पलड़ा बेहद भारी था।
सुगना स्वयं को तैयार करने लगी तभी लाली ने कहा "अच्छा हम जा तानी हम कालू मल ( राजेश का लण्ड) के दूह ले आवा तानी. ते आंख बंद करके सुतल रहिये ..बस उनका के आपन दिया (बुर) देखा दीहें ओ में तेल हम गिरवा देब"
उधर सुगनामन ही मन चुदवाने को तैयार हो रही थी परंतु लाली ने यह सुझाव देकर वापस उसे एक सम्मानजनक परिस्थिति में ला दिया। उसने अपनी मूक सहमति दे दी।
उधर राजेश ….जन्नत में सैर कर रहा था..
खूबसूरत पलंग पर लाल चादर बिछी हुई थी। लाली पूर्ण नग्न अवस्था में बिस्तर पर लेटी थी जैसे उसका ही इंतजार कर रही थी। पूरे कमरे में घुप्प अंधेरा था परंतु बिस्तर और उस पर लेटी हुई लाली चमक रही थी।
राजेश बिस्तर पर आ चुका था कुछ ही देर में उसका खड़ा लण्ड लाली की बुर में प्रवेश कर गया। दो सख्त और दो मुलायम जांघों के बीच घर्षण शुरू हो गया। पति-पत्नी की काम क्रीड़ा हमेशा की तरह आगे बढ़ने लगी।
अचानक राजेश को लाली को बगल में किसी के लेटे होने का एहसास हुआ उसने लाली से पूछा
"अरे ई कौन है"
लाली की गूंजती हुई आवाज आयी
"जेकर हमेशा सपना देखेनी उ हे ह आपके सुगना.."
"फेर काहे बुला लेलु हा , जाग गईल त?
"अरे उ घोड़ा बेच के सुतेले उ ना जागी.."
" हमरा ठीक नईखे लागत, चल हाल में चलीजा "
"अरे एहिजे कर लीं उ ना जागी"
राजेश लाली को चोदते चोदते अचानक रुक गया था परंतु लाली के आश्वासन से एक बार फिर उसके कमर की गति ने रफ्तार पकड़ ली लाली ने राजेश को छेड़ा
"आज त कालू मल (राजेश का लण्ड) कुछ ज्यादा ही उछलत बाड़े। लागता आपके दिमाग में सुगना घूमत बिया"
"लाली मत बोल उ जाग जायी" राजेश मन ही मन उत्साहित भी था पर घबरा भी रहा था।
राजेश को लाली के बगल में सोई हुई सुगना की आकृति दिखाई दे रही थी परंतु उसका शरीर पूरी तरह नाइटी से ढका हुआ था.
अचानक लाली ने अपने हाथ बढ़ाए और सुगना की फ्रंट ओपन नाइटी के दोनों भाग दोनों तरफ कर दिए राजेश की निगाहें सुगना की भरी-भरी चुचियों पर टिक गई जो कार की हेडलाइट की तरह चमक रहीं थीं। राजेश की तरसती आंखों ने सुगना की चुचियों के दिव्य दर्शन कर लिए।
उस सुर्ख लाल बिस्तर पर सुगना का गोरा शरीर चमक रहा था पूरे शरीर पर कोई आभूषण न था परंतु सुगना की छातियों पर जो दुग्ध कलश थे सुगना के सबसे बड़े गहने थे। खूबसूरत और कसी हुई चूचियां गुरुत्वाकर्षण को धता बताकर पूरी तरह तनी हुई थी उस पर से निप्पल अकड़ कर खड़े थे जैसे सुगना के नारी स्वाभिमान की दुहाई दे रहे हों। चुचियों में वह आकर्षण था जो युवकों को ही क्या युवतियों को ही अपने मोहपाश में बांध ले।
राजेश जैसे-जैसे सुगना को देखता गया उसका लण्ड और खड़ा होता गया ऐसा लग रहा था जैसे शरीर का सारा रक्त लण्ड में घुसकर उसे फूलने पर मजबूर कर रहा था। राजेश का लण्ड अभी भी लाली के बुर में था पर वह शांत था। राजेश की निगाह छातियों की घाटी पर गई.. सुगना ने मंगलसूत्र क्यों उतारा था राजेश मन ही मन सोचने लगा…
कहीं सुगना संभोग आतुर तो नहीं शायद उसने अपने पति रतन का दिया मंगलसूत्र इसीलिए उतारा था? राजेश के मन में आए प्रश्न का उत्तर स्वयं राजेश ने हीं दिया और उसका मन कुलांचे भरने लगा।
लाली मुस्कुराते हुए राजेश को देख रही थी जिसकी आंखें सुगना की चुचियों से चिपकी हुई थी और होंठ आश्चर्य से खुले हुए थे।
राजेश का कालूमल अब अधीर हो रहा था शांति उसे कतई पसंद न थी उछलना उसका स्वभाव था और वह लाली की बुर में अठखेलियां करने के लिए तत्पर था लाली ने कहा
"लागा ता ओकरा चूँची में भुला गईनी"
राजेश वापस से लाली को चोदने लगा इस बार कमर के धक्कों की रफ़्तार कुछ ज्यादा थी निश्चित ही इसमें सुगना की चुचियों का असर था लाली ने कहा
"अब साध बुता गईल की औरू चाहीं"
सुगना राजेश के लिए एक अप्सरा जैसी थी उसकी चुचियों को देखकर उसके आकांक्षाएं और बढ़ गयीं सबसे प्यारी और पवित्र चीज सुगना की बुर अब भी उसकी निगाहों से दूर थी। सुगना की बुर और जांघों का वह मांसल भाग देखने के लिए राजेश तड़प उठा।
सुगना की जाँघों का पिछला भाग वह पहले देख चुका था परंतु आगे का भाग की कल्पना कर न जाने उसने कितनी बार कालूमल का मान मर्दन किया था राजेश ने लाली से कहा..
" नीचे भी हटा दी का?"
"मन बा तो हटा दी उ ना जागी घोड़ा बेच के सुतेले" लाली ने अपनी बात एक बार फिर दोहराई और राजेश के हौसले को बढ़ाया।
राजेश ने हिम्मत करके नाइटी का निचला भाग भी हटा दिया नाइटी अलमारी के 2 पल्लों की तरह खुलकर बिस्तर पर आ गए और सुगना का कोमल और कमनीय शरीर राजेश की निगाहों के सामने पूर्ण नग्न अवस्था में आ गया। सुगना ने अपने पैर के दोनों पंजे एक दूसरे के ऊपर चढ़ाए हुए थे। दोनों जाँघे एक दूसरे से चिपकी हुई थी।
अलमारी खुल चुकी थी परंतु तिजोरी अब भी बंद थी। जांघों के मांसल भाग ने सुगना की बुर पर आवरण चढ़ा रखा था वह तो उसके बुर् के घुंघराले बाल थे जो खजाने की ओर संकेत कर रहे थे परंतु खजाना देखने के लिए सुगना की मांसल जांघों का अलग होना अनिवार्य था।
राजेश को जांघों के बीच बना अद्भुत और मनमोहक त्रिकोण दिखाई दे रहा था सुगना के चमकते गोरे शरीर पर छोटे छोटे बालों से आच्छादित वह त्रिकोण राजेश को बरमूडा ट्रायंगल जैसा प्रतीत हो रहा था। वह उसके आकर्षण में खोया जा रहा था उसका अंतर्मन उस सुखना की अनजानी और अद्भुत गहराई में उतरता जा रहा था ।
उसने लाली की चुदाई बंद कर दी थी और भाव विभोर होकर बरमूडा ट्रायंगल के केंद्र में बने उस अद्भुत दृश्य को अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर देख रहा था परंतु गुलाबी छेद का दर्शन तब तक संभव न था जब तक सुगना अपनी जांघों के पट ना खोलती और अपने गर्भ द्वार और उसके पहरेदार बुर् के होठों को न खोलती।
लाली ने राजेश का ध्यान भंग किया और बोली
"आप देखते रहीं हम जा तानी सुते" अपना कालूमल के निकाल ली। "
लाली ने यह बात झूठे गुस्से से कही थी राजेश को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह सुगना के सुंदर शरीर को देखते हुए लाली को फिर गचगचा कर चोदने लगा। उसने लाली को चूमते हुए कहा ..
"कितना सुंदर बीया सुगना देखा चुचियों कतना फूलन फूलन बा . रतनवा साला के कितना सुंदर माल मिलल बा। एकदम मैदा के जैसन चूची बा"
"अतना पसंद बा त ध लीं"
"जाग जायी त"
"छोड़ देब"
"हट पागल"
राजेश एक बार फिर लाली को चोदने लगा था परंतु उसकी आंखें सुगना के इर्द गिर्द घूम रही थी।
वह चुचियों को छूना चाहता था उसकी मनोदशा जानकर लाली ने एक बार फिर कहा
"जोर से मत दवाईब खाली सहला लीं"
राजेश जैसे अधीर हो गया था उसने सुगना की चुचियों पर अपना हाथ रख दिया. सुगना जैसे निर्विकार भाव से लेटी हुई थी. उसने कोई प्रतिरोध ना किया और राजेश के हाथ सुगना की चुचियों को प्यार से धीरे-धीरे सहलाने लगे। उसकी उंगलियां सुगना के निप्पलों से टकराते ही और राजेश सिहर जाता। एक पल के लिए राजेश के मन में आया कि वह आगे बढ़ कर उसकी चुचियों को मुंह में भर ले पर राजेश इतनी हिम्मत न जुटा पाया। राजेश ने जो प्यार सुगना की चुचियों के साथ दिखाया था उसका असर सुगना के कमर के निचले भाग पर भी हुआ।
सुगना के गर्भ द्वार के पटल खुल गए सुगना की दोनों एड़ियां दूर हो चुकी थी और जाँघे भी उसी अनुपात में अलग हो चुकी थी। सुगना की रानी झुरमुट से बाहर मुंह निकालकर खुली हवा में सांस ले रही थी। राजेश की निगाह इस परिवर्तित अवस्था पर पढ़ते ही वह अधीर हो गया। उसने लाली की बुर से अपना लण्ड बाहर खींच लिया और अपने सर को सुगना की जांघों के ठीक ऊपर ले आया। उसके दोनों पैर लाली और सुगना के बीचो-बीच आ गए.
गोरी सपाट चिकनी और बेदाग चूत को देखकर राजेश मदहोश हो गया उसने लाली की तरफ देख कर बोला "एकदम मक्खन मलाई जैसी बा"
"तो चाट ली."
" जाग गई त"
"तो आप जानी और आपके साली"
राजेश से और बर्दाश्त ना हुआ उसने अपने होंठ सुगना की कोमल बुर से सटा दिए। अपने दोनों होंठो से सुगना के निचले होठों को फैलाते हुए उसने अपनी जीभ उस गहरी सुराही में छोड़ दी जिस पर पानी छलक रहा था । जीभ ने जैसे ही गहरी गुफा में प्रवेश किया सुगना की बुर से रस छलक कर बाहर आ गया और सुगना के दूसरे छेद की तरफ बढ़ चला। राजेश की निगाहें सुगना की सुगना की बुर को ध्यान से न देख पा रही थी वह कभी सर उठा कर सुगना की बुर को देखता और फिर झुक कर अपने होंठ उससे सटा देता।
नयन सुख और स्पर्श सुख दोनों ही राजेश को पसंद आ रहे थे। सुगना के फैले हुए पैर तन रहे थे। सुगना कि मजबूत जांघों की मांसपेशियां तनाव में आ रही थी राजेश के होठों की मेहनत रंग ला रही थी। सुगना की सांसें तेज चलने लगी । लाली ने सुगना की सांसों में आए बदलाव को महसूस कर लिया था उसने सुगना को चूमते हुए कहा
" ए सुगना मान जा"
"हम कहां रोकले बानी"
सुगना ने यह बात फुसफुसाकर कही थी पर राजेश ने सुन ली.
लाली ने सुगना के हाथ को पकड़ कर राजेश के लण्ड पर रख दिया और सुगना की कोमल हथेलियों से कालूमल को सहलाने लगी।
राजेश ने नए स्पर्श को महसूस किया। सुगना के हांथो में अपने लण्ड को देखकर मस्त हो गया। राजेश तृप्त हो गया उसने एक बार फिर सुगना की सुराही में मुंह डाल दिया।
एक अद्भुत तारतम्य बन गया था। सुगना राजेश का लण्ड तब तक सहलाती जब तक उसे अपनी बूर् चटवाने में मजा आता। जैसे जी राजेश उग्र होकर बूर् को खाने लगता वह लण्ड के सुपारे को जोर से दबा देती और राजेश तुरंत ही बुर से अपने होंठ हटा लेता।
लाली तो धीरे-धीरे इस खेल से बाहर हो गई थी थोड़ी ही देर में राजेश लाली को भूलकर सुगना की जांघों के बीच आ गया परंतु सुगना की जाघें अभी भी एक खूबसूरत कृत्रिम डॉल की तरह निर्जीव पड़ी हुई थी राजेश ने उसे अपने दोनों हाथ से अलग किया और घुटने से मोड़ दिया।
अपने काले लण्ड को सुगना की गोरी चूत के मुहाने पर रखकर वह मन ही मन सुगना को चोदने की सोचने लगा तभी लाली की गूंजती हुई आवाज सुनाई दी…
"अपना साली के सूखले चोदब बुर दिखाई ना देब?"
राजेश को शर्म आई और उसने अपने गले की चैन उतार कर सुगना की चूचियो पर रख दिया चैन से 8 का आकार बनाते हुए उसमें सुगना की चुचियों को उसमें भरने की कोशिश की। परंतु अब सुगना की चूचियां बड़ी हो चुकी थी। वह राजेश की छोटी सी चैन में आने को तैयार न थी। फिर भी राजेश ने यथासंभव कोशिश की और सुगना चुचियों को तो ना सही परंतु निप्पलों को अपने प्रेम पास में बांधने में कामयाब हो गया।
सुगना की निर्जीव पड़ी जाँघे अब सजीव हो चुकी थी वह अपने दोनों पैर घुटनों से मोड़ें दोनों तरफ फैलाए हुए थे और जांघों के बीच उसकी गोरी और मदमस्त फूली हुई बुर अपने होठों पर प्रेम रस लिए अपने अद्भुत निषेचन का इंतजार कर रही थी। अंदर का मांसल भाग भी उभरकर झांकने लगा ऐसा लग रहा था जैसे सुगना की उत्तेजना चीख चीख कर अपना एहसास करा रही थी और अपना हक मांग रही थी।
सुगना की जाँघे स्वतः फैली हुई थी राजेश को उन्हें सहारा देने की कोई आवश्यकता नहीं थी। सुगना की अवस्था प्रणय निवेदन को स्पष्ट रूप से दर्शा रही थी। राजेश ने अपने लण्ड का दबाव सुगना की मदमस्त बुर पर लगा दिया और सुगना की कामुक कराह निकल पड़ी..
"जीजा जी तनी धीरे से….. दुखाता…."
राजेश तो मस्त हो गया यह मादक और अतिकामुक कराह उसने पहली बार सुनी थी उसने निर्दयी भाव से अपने लण्ड को सुगना की बुर में ठान्स ने की कोशिश की और यही वक्त था जब उसका स्वप्न भंग हुआ दरअसल उसके लण्ड ने सुगना की कोमल बुर की जगह जगह चौकी में छेद करने की कोशिश की। परंतु वह काठ की चौकी लण्ड से ज्यादा कठोर थी। राजेश का स्वप्न भंग हो गया था.. और उत्तेजना दर्द में तब्दील हो गई थी।
सुगना की बुर लण्ड जड़ तक पहुंचाने के प्रयास में राजेश के पैर पूरी तरह तन गए थे पंजे बाहर की तरफ हो गए और चौकी के कोने में रखा दूध का वह गिलास जिससे सुगना ने अपने हाथों से दिया था जमीन पर गिर पड़ा खनखनाहट की तेज आवाज हुई और कमरे में लेटी बतिया रही सुगना और लाली सचेत हो गयीं।
राजेश ने अपने आपको पेट के बल चौकी पर पाया । नीचे सुगना ना होकर चौकी पर सूखा बिस्तर था। वह तड़प कर रह गया परंतु उसके होठों पर मुस्कुराहट कायम थी अपने स्वप्न में ही सही परंतु उसने अपनी स्वप्न सुंदरी की अंतरंगता का आनंद ले लिया था। वह पलट कर पीठ के बल आ गया और अपने इस खूबसूरत सपने के बारे में सोचने लगा।
गिलास गिरने की आवाज सेकमरे में लाली और सुगना सचेत हो गयीं। सुगना ने कहा
"जा कर देख जीजा जी सपनात बड़े का"
सुगना ने यह बात अंदाज़ पर ही कही थी परंतु उसकी बात अक्षरसः सत्य थी। लाली हाल में कई और राजेश की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई। राजेश अभी भी अपने तने हुए लण्ड को हाथ से सहला रहा था। राजेश की स्थिति देखकर लाली वापस अंदर आयी हाथों में जैतून का तेल लिए वापस हाल में आने लगी। जाते-जाते उसने अपने हथेलियों को गोलकर सुगना को यह इशारा कर दिया कि वह कालू मल का मान मर्दन करने जा रही है, सुगना मुस्कुरा रही थी।
लाली के जैतून के तेल से सने हाथ राजेश के लण्ड पर तेजी से चलने लगी उसने राजेश से पूछा
"सुगना के बारे में सोचा तानी है नु?"
राजेश ने लाली से अपने स्वप्न को ना छुपाया और उसे अपने स्वप्न का सारा विवरण सुना दिया। लाली राजेश के स्वप्न को सुनती रही और उसके लण्ड को सहला कर स्खलन के लिए तैयार कर दिया।
तभी लाली ने कहा त "चली आज साँचों दर्शन करा दीं, सुगना सुत गईल बिया"
"का कह तारू?"
" उ जागी ना?"
लाली ने वही उत्तर दिया जो राजेश ने अपने स्वप्न में सुना था।
राजेश उस लालच को छोड़ ना पाया और अपने खड़े लण्ड के साथ अंदर के कमरे में आ गया। सुगना किनारे पीठ के बल सोई हुई सोई हुई थी। सुगना की मदमस्त काया को देख कर का लण्ड उछलने लगा। लाली के हाथ अभी भी उसके लण्ड को सहना रहे थे। अचानक लाली ने नाइटी तो दोनों तरफ फैला दिया सुगना का मादक शरीर पूरी तरह नग्न हो गया।
कमरे में बत्ती गुल थी। पर दीए की रोशनी में सुगना का शरीर चमक रहा था। सुगना ने अपना चेहरा ढक रखा था। राजेश सुगना का चेहरा तो ना देख पाया परंतु चेहरे के अलावा सारा शरीर उसकी आंखों के सामने था जो सपने उसने देखा था उसका कुछ अंश आंखों के सामने देख कर वह बाग बाग हो गया।
कालूमल आज उद्दंड हो चला था वह लाली के हाथों से छटक रहा था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह स्वयं उछलकर सुगना की गोरी बुर में समाहित हो जाना चाहता था।
राजेश उत्तेजना से कांपने लगा लाली के हाथ लगातार कालूमल को रगड़ रहे थे और अंततः कालू मल ने अपना दम तोड़ दिया राजेश के लण्ड से निकल रही वीर्य की धार को नियंत्रित करने का जिम्मा लाली ने बखूबी उठाया और सुगना की बुर पर बालों का झुरमुट राजेश के रस से पूरी तरह भीग गया सुगना अपने होंठ अपने दांतो से दबाए इस कठिन परिस्थिति को झेल रही थी कभी उत्तेजना और कभी घृणा दोनों ही भाव अपने मन में लिए उसने अपनी बुर को राजेश के रस से भीग जाने दिया।
स्खलन उत्तेजना की पराकाष्ठा है और वही उसका अंत है स्खलन पूर्ण होते ही राजेश वापस हॉल में चला गया और लाली की राजेश के वीर्य से सनी उंगलियां सुगना की बुर में। सुगना की बुर पूरी तरह गीली थी। लाली की उंगलियों ने कोई अवरोध ना पाकर लाली में उस मखमली एहसास को अंदर तक महसूस करने की कोशिश की परंतु सुगना ने लाली के हाथ पकड़ लिए और कहा
"अब बस हो गईल"
लाली ने मुस्कुराते हुए कहा
"अतना गरमाइल रहले हा त काहे ना उनकर साधो बुता देले हा"
सुगना अपनी यादों में खोई हुई थी। तभी राजेश के वीर्य के जिस अंश को उसने अपनी गर्भ में स्थान दिया था आज उसने ही अंदर से उसके पेट पर एक मीठी लात मारी और उसे अपनी उपस्थिति का एहसास कराया अपने गर्भ में पल रहे बच्चे के हिलने डुलने का एहसास कर सुगना भाव विभोर हो गई और खुश होकर मुस्कुराते हुए बोली
"ए लाली देख लात मार तिया"
सुगना ने अपने गर्भ में पल रहे लिंग का निर्धारण स्वयं ही कर लिया था उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि गर्भ में पल रहा बच्चा एक लड़की की थी..
नियति स्वयं भी सुगना को देखकर उसके भाग्य के बारे में सोच रही थी सुगना जैसी संवेदनशील और प्यारी युवती के लिए उसने ऐसा खेल क्यों रचा था वह स्वयं परेशान थी।
लाली ने कहा..
"हमरा से बाजी लगा ले इ लइका ह"
सुगना सहम गई
"ते कैईसे बोला ता रे"
"हमरो पेट तोरे साथी फूलल रहे हमार त लात नईखे मारत ….लड़की देरी से लात मारेली सो"
सुगना ने लाली की बात का विश्वास न किया वह पूरी तरह आश्वस्त थी की नियति उसके साथ ऐसा क्रूर मजाक नहीं करेगी आखिर जब उसके इष्ट देव ने विषम परिस्थितियों में भी उसे बनारस महोत्सव के दौरान गर्भवती करा ही दिया था तो वह निश्चित ही यह कार्य सूरज की मुक्ति के लिए ही हुआ होगा..
सुगना और लाली की बातें खत्म ना हुई थी कि मिंकी भागती हुई सुगना के पास आई
"माँ सूरज के देख का भइल बा…"
मिंकी ने भी न सिर्फ अपनी माता बदल ली थी अपितु मातृभाषा भी सुगना अपना पेट पकड़कर भागती हुई सूरज के पास गई
"अरे तूने क्या किया…"
मिंकी हतप्रभ खड़ी थी उसने अपने दोनों हाथ जोड़ लीये और कातर निगाहों से सुगना की तरफ देखने लगी...सुगना परेशान हो गई...
शेष अगले भाग में..