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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Sanjdel66

Member
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भाग -69
मालपुआ शब्द और सुगना की बुर दोनों की उपमा सरयू सिंह को बेहद पसंद थी। वह जब भी सुगना की बुर को अपने होठों से दबाते बुर पानी छोड़ देती और सरयू सिंह मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखकर कहते

" देखा ताहर मालपुआ से चाशनी बाहर आ गईल"

सुगना उनके सर को ऊपर खींचती और पेट पर सटा लेती पर उनसे नजरे ना मिलाती..

"का सोचे लगलु?"


रतन ने सुगना का ध्यान भंग करते हुए पूछा…

अब आगे..

सुगना अचकचा कर अपने मीठे ख्वाबों से बाहर आ गई..

तू मधु के दूध पिला कर तैयार हो जा हम थोड़ा देर में आवा तानी रतन कमरे से बाहर चला गया और सुगना कजरी का इंतजार करने लगी।

मधु को दूध पिलाने के पश्चात कजरी कमरे से चली गई और सुगना बिस्तर पर लेट कर अपने पुराने दिनों को याद करने लगी.


जिस सुहाग की सेज पर आज वो अपने पति से एकाकार होने जा रही थी वह पलंग उसकी चुदाई और न जाने कितनी कामुक घटनाओं का गवाह था। सुगना की आंखों के सामने वह दृश्य घूमने लगे।

कैसे उसके बाबूजी पहली बार उसका चेहरा देख कर चौंक उठे थे? उनके व्यवहार में अचानक परिवर्तन क्यों आ गया था? कैसे उसे सरयू सिंह को देखना अच्छा लगने लगा था? कैसे उसके बाबूजी बछिया की चूची से दूध निकालते और वह सिहर उठती। उसे अपनी कोमल चुचियों में सिहरन महसूस होती।

जाने कब उसके हाथ अपनी चुचियों पर आ जाते उधर सरयू सिह बछिया की चूची मीस कर दूध निकालते और इधर सुगना अपनी की बुर से पानी…. आह अद्भुत था वह एहसास..

उसके बाबुजी जी का होटल में उसकी युवा चुचियों पर टॉर्च मारना …. सुगना की तड़प बढ़ती जा रही थी सुगना उस दृश्य को भी याद कर रही थी जब सरयू सिंह ने उसके शरीर पर मक्खन लपेटकर अपनी उंगलियों से उसका कौमार्य भेदन किया था सरयू सिंह के साथ बिताई गई दीपावली की रात सुगना के जहन में घूमने लगी। सरयू सिंह के साथ बिताए कामुक घड़ियों को याद करते करते सुगना अति उत्तेजित हो गई उसने अपनी बुर को सहला कर शांत करने की कोशिश की परंतु बुर गरमा चुकी थी और स्खलन को तैयार थी। सुगना की उंगलियों का स्पर्श पाते ही बुर से प्रेम धारा बह निकली।

सुगना के पैर उठने लगे और सांसे तेज होती गई बिस्तर पर पड़ी सुगना हाफ रही थी पैर के दोनों पंजे तन गए थे तथा एक दूसरे पर चढ़े हुए थे स्खलन प्रारंभ हो चुका था सुगना की बुर के अंदर मरोड़ उठ रही थी…. इसी समय रतन कमरे में आ गया।

"काहे हाफ तारु? तबीयत ठीक बानू?"

"हां.. ठीक बा" सुगना अपने उत्तेजना से लाल पड़ चुके चेहरे के भावों को संतुलित करते हुए बोली। जांघों के बीच असहजता लिए सुगना बिस्तर पर बैठ गई। अपने आलता लगे हुए पैरों को संयमित करते हुए वह अपने लहंगा और चोली को व्यवस्थित करने लगी।

मिलन की बेला आ चुकी थी रतन ने देर न की जिस तरह अति उत्साही बच्चे गिफ्ट पैकेट का रेपर पढ़ते हैं उसी प्रकार रतन ने नियति द्वारा भेजे गए सुगना रूपी उपहार के वस्त्र हरण करने शुरू कर दिए..

कमरे में सुगंध फैल रही थी यह सुगंध वैसे तो रतन द्वारा लाए गए इत्र की ही थी पर सुगना के स्खलन की खुशबू इसमें सम्मिलित हो गई थी।

जालीदार ब्रा और पेंटी में लिपटी सुगना मूर्तिवत खड़ी थी और रतन उसे एकटक घूरे जा रहा था ।

जैसे-जैसे रतन की निगाहें सुगना के चेहरे से नीचे आती गई सुगना का ध्यान रतन की निगाहों का अनुसरण करता रहा जैसे रतन का ध्यान सुखना की नाभि पर केंद्रित हुआ सुगना को अपनी पेंटी के पीलेपन का एहसास हुआ जो उसके अभी कुछ पलों पहले हुए स्खलन से भीग चुकी थी।


सुगना ने अपनी पलके झुका ली और अपने दाहिने पैर को आगे कर अपनी जाली के भीतर भीगी बिल्ली की तरह छुपी बुर को ढकने का प्रयास किया। रतन अब अधीर हो चुका था सुगना के करीब आया और उसे आलिंगन में भर लिया।

पर पुरुष से आत्मीय आलिंगन सुगना ने दूसरी बार महसूस किया था आलिंगन में तो वह एक दो मर्तबा राजेश की बाहों में भी आई थी परंतु चुचियां सीने से न टकरा पाई थीं। सुगना तुरंत ही अपना कंधा आगे कर देती थी और अपनी चुचियों को उसके सीने से न सटने देती यह अलग बात थी की होली के दौरान राजेश ने सुगना के मखमली कबूतरों को सहला जरूर लिया था।

सुगना एकाग्र ना हो पा रही थी रह रह कर उसके ख्यालों में उसके बाबूजी सरयू सिंह आ रहे थे हर स्पर्श हर आलिंगन मे वह सरयू सिंह को याद कर रही थी और राजेश की तुलना सरयू सिंह से कर रही थी। रतन के हाथ सुगना की पीठ पर घूम रहे थे और अपनी हद को जानने की कोशिश कर रहे थे रतन के मन में अब भी डर कायम था कि कहीं सुगना उसे आगे बढ़ने से रोक ना दे। परंतु सुगना तो अपने ख्यालों में खोई हुई थी रतन की उंगलियां ने साहस दिखाकर उसकी ब्रा के हुक खोल दिए।

ब्रा के अलग होते ही सुगना की चूचियां रतन की निगाहों के सामने आ गई रतन का इन चीजों से सामना पिछले कई दिनों से हो रहा था वह उसकी उत्सुकता का केंद्र न थी रतन धीरे-धीरे नीचे झुकता गया और अपने घुटने पर आ गया उसने अपना चेहरा सुगना के पेट से सटा लिया और उसे छूता हुआ बोला..

"हमरा के माफ कर दीह हम तोहरा के अतना दुख देनी"

सुगना के हाथ रतन के सिर पर आ गए और वह उसके बालों को सहलाने लगी। रतन सुगना के पेट को अपने गालों से सहलाता हुआ हुआ जालीदार बंटी के पास आ गया और अपने दांतो से उस पेंटी को नीचे खींचने का प्रयास करने लगा। रतन की कामकला में बबीता के रंग भरे हुए थे जो पाश्चात्य संस्कृति से प्रेरित थे। मुंबई शहर में रंगीन फिल्मों से रतन और बबीता दोनों लोग रूबरू हो चुके थे और उनकी कामुक क्रियाओं को यथासंभव आत्मसात कर चुके थे।

रतन के होंठों का स्पर्श अपनी जांघों के अंदरूनी भाग पर पड़ते हैं सुगना की कमर पीछे हो गई आज कई महीनों बाद जांघो के बीच पुरुष होंठ पाकर सुगना सिहर उठी।

रतन के दातों द्वारा पैंटी को उतार पाना मुश्किल था रतन ने अपनी उंगलियों को दातों की मदद के लिए उतार दिया और सुगना की छुपी हुई बुर अपने साजन के सामने अनावृत हो गयी।

स्खलित हुई सुगना की बुर पूरी तरह चिपचिपी थी ऐसा लग रहा था जैसे सफेद रसगुल्ले ने दबकर अपनी चासनी छोड़ दिया हो।

रतन सुगना की फूली और स्खलित हुई गीली बुर देखकर भ्रमित हो गया उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सुगना की पुर उसके संसर्ग से उत्तेजित होकर गीली हुई उसने अपने होंठ बुर से सटा दिए तभी सुगना बोल पड़ी..

"गुरुजी के बात भुला गईनी का?"

रतन को गुरु जी की बात याद आ गई.. मधु का प्रयोग अभी तक न किया गया था रतन उठा और सुगना को चूमते हुए बोला

" मधु दूनों और लागी नु" रतन ने स्वयं अपने ल** की तरफ देखा सुगना सुगना की निगाहों ने भी उसका अनुकरण किया और वह रतन की मंशा समझ गयी।

सुगना शरमा गई उसने अपना चेहरा नीचे कर लिया रतन ने एक ही झटके में अपना कुर्ता उतार कर नीचे फेंक दिया और धोती जाने कब खुल कर नीचे गिर पड़ी लाल लंगोट देखकर सुगना को एक बार फिर सरयू सिंह की याद आ गई।

रतन सुगना के सहयोग की अपेक्षा कर रहा था सुगना ने अपने कोमल हाथ बढ़ाएं और लाल लंगोट की रस्सी खुलने लगी और कुछ ही देर में सुगना का नया मुसल अपने भरे पूरे आकार और तनाव में सुगना के सामने था।

सुगना बरबस ही रतन के लंड को सरयू सिंह से तुलना करने लगी आकार और तनाव दोनों में कोई कमी न थी पर अपना और पराया इसका अंतर स्पष्ट था सरयू सिंह का लंड सुगना को अपने पुत्र की भांति प्रतीत होता और रतन का लंड अब सौतन पुत्र की तरह प्रतीत हो रहा था। परंतु अब जब सुगना उसे अपना चुकी थी उसने रतन के लंड को अपने हाथों से सहला दिया।


दो नग्न शरीर एक दूसरे के आलिंगन में आ गए रतन ने इस बार सुगना को याद दिलाया

"मधु कहां बा?"

सुगना को एक पल के लिए अपनी पुत्री मधु का ख्याल आया परंतु अभी उसकी यहां कोई उपयोगिता न थी सुगना पहले ही कटोरी में रखा हुआ मधु देख चुकी थी वह रतन के आलिंगन से निकली और मधु उसकी हाथ में देते हुए बोली..

" थोड़ा सा ही लगाईब"

"हम तो पूरा लगाएब" रतन शरारत से अपनी आंखें नचाते हुए बोला।

रतन ने मधु की कटोरी पकड़ ली और सुगना को पलंग पर बैठने का इशारा किया सुगना ने पलंग पर बैठ कर अपने दोनों पर दोनों तरफ उठा लिए और अपनी बुर को रतन की निगाहों के सामने परोस दिया। दीए की रोशनी में सुगना की बुर चमक रही थी। होठों पर आया मदन रस सूख रहा था। परंतु उस दिव्य गुफा से लगातार रस निकलने को तैयार था। रतन में अपनी मध्यमा उंगली शहद में ठुकाई और सुगना के बुर्के होठों को शहद से भिगोने लगा।


सुगना ने अपनी जाँघे पूरी तरह फैला दी थी ताकि रतन शहद को सिर्फ और सिर्फ उसकी बुर पर ही लगाए जैसा कि गुरु जी ने कहा था। एक कामुक और मदमस्त युवती द्वारा स्वयं फैलाई गई जांघ में देखकर रतन मदहोश हुआ जा रहा था।

उसकी उंगली बरबस ही सुगना की बुर में घुसना चाह रही थी अंदर से रिस रहा मदन रस शहद से ज्यादा मीठा होगा ऐसा रतन का अनुमान था। रतन मन ही मन गुरु जी को धन्यवाद दे रहा था और अपने पुरखों को भी जिन्होंने ऐसी विधि बनाई थी।

सुगना की बुर पर शहद का लेप लगाने के पश्चात अब बारी सुगना की थी। यदि सुगना खड़ी होती तो वापस बुर पर लगा शहद उसकी जांघों पर लग जाता। रतन ने उसकी मदद की और सुगना ने अपने पैर के दोनों पंजे रतन ने अपनी कमर के दोनों तरफ रख लिए।

रतन सुगना के कंधों को पकड़कर उसे सहारा दिए हुए थे सुगना की उंगली शहद में डूबी और रतन के लंड पर घूमने लगी लंड का आकार उसकी उंगली से 3 गुना वह शहद लगाते लगाते उसके आकार और कद का आकलन करने लगी। सुगना रतन के लंड को पूरी आत्मीयता से छू रही थी।


सरयू सिंह की बेरुखी और रतन के प्यार ने उसे रतन को अपनाने की वजह दे दी थी सुगना के मन में कोई पछतावा या अफसोस न था पर रह रह कर उसके मन में कसक अवश्य उठ रही थी काश उसके बाबूजी ने उसका साथ अंत तक दिया होता।

लंड पूरी तरह शहद से भीग चुका था और सुगना की बुर के बिल्कुल समीप था एक बार के लिए रतन के मन में आया कि वह विधि-विधान को दरकिनार कर थोड़ा आगे बढ़कर सीधा सुगना की बुर में लण्ड ठान्स दे परंतु वह चाह कर भी ऐसा न कर पाया।

उसने सुगना को अलग किया और सुगना बिस्तर पर लेट गई और विधि के आगे बढ़ने का इंतजार करने लगी।

सुगना अपनी जाँघे. फैलाए अपने पति रतन के सामने उसकी जीभ का इंतजार कर रही थी । सुगना ने शर्म से अपनी आंखें बंद कर ली और रतन की जीभ ने अमृत कलश पर दस्तक दे दिया। सुगना की जाँघे ऐंठ गयीं। एक अद्भुत प्रेम लहर उसके शरीर में दौड़ गई। सुगना का फूलता और पिचकता हुआ पेट और सीने की धड़कन इस बात की गवाही दे रही थी कि सुगना का यह मिलान नया और अद्भुत था।


रतन की जीभ सुगना की गीली बुर को फैलाते हुए अंदर प्रवेश करती। गुरुजी ने उसे शहद चाटने के लिए कहा था परंतु रतन अमृत कलश से छलक रहे प्रेम रस को पीने में ज्यादा उत्सुक था। शहद का मीठा स्वाद उस प्रेम रस से मिलकर एक अलग ही स्वाद दे रहा था।

रतन के मन में घृणा की कोई भावना न थी। वह पूरी तन्मयता और प्रेम से सुगना की अमृत कलश को गहराइयों तक छू रहा था और सुगना मदहोश हो रही थी। जैसे-जैसे सुगना को प्रेम की अनुभूति हुई वह सरयू सिंह की यादों में खो गयी...

सूरज के जन्म के पश्चात इसी पूजा में जब वह रतन की लाठी से यह विधि पूरा करने जा रही थी तभी सरयू सिंह अचानक ही उसके सामने प्रकट हो गए थे. रतन की लाठी को विधि में शरीक कर सरयू सिंह ने सुगना को वह सुख दिया था जिसकी स्त्री हकदार थी सरयू सिंह की लप-लपाती जीभ सुगना.. की बुर को इस प्रकार सहला रही थी जैसे कोई जानवर अपने छोटे बच्चे को अपनी जीभ से सहलाता है।

इधर रतन पूरी तन्मयता से सुगना की बुर चूस रहा था और सुगना अपने ख्वाबों खयालों में सरयू सिंह की जीभ को याद कर रही थी उसकी उत्तेजना परवान चढ़ रही थी परंतु उसकी उत्तेजना में रतन धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा था सरयू सिंह की यादें भारी पड़ रही थी बंद आंखों से हकीकत दूर होती जा रही थी।

जागो के बीच रतन हलचल मचाए हुए था और दिमाग में सरयू सिंह। निगोड़ी चुचियों का कोई पूछन हार न था सुगना के साथ स्वतः ही उन्हें सहला रहे थे। रतन की नाक भग्नासा पर रगड़ खा रही थी वोट निकले होठों से युद्ध लड़ रहे और उन पर लगा शहद रतन के मुंह में विलीन हो रहा था रतन के मुंह की लार सुगना की बुर का रस और शहद एक अद्भुत संगम बना रहे थे।

सुगना की बुर झड़ने को तैयार थी और अचानक..


" आह…बाबूजी"

" तनी धीरे से…….." .

"आआई….…हाँ असहीं….आह…".

सुगना की कामुक आहे गूंजने लगीं। रतन अचानक चौक उठा तब तक उसने स्त्रियों के मुख से उत्तेजना के दौरान अपनी मां का उद्बोधन तो जरूर सुना था पर "बाबूजी" उत्तेजना के अतिरेक पर यह सुगना का यह संबोधन रतन के आश्चर्य का कारण था। परंतु उसने अपनी पत्नी सुगना के स्खलन में बाधा ना डाली अपितु अपने होंठों की गति और बढ़ा दी। सुगना झड़ रही थी और अपने दोनों पैरों के पंजे से से पतन की पीठ पर मार रही थी।

सुगना के स्खलन का श्रेय एक बार फिर सरयू सिंह ही ले गए थे। जांघों के बीच मेहनत कर रही रतन की जीभ भी थक चुकी रतन उठकर सुगना के होठों की तरफ आया और प्यार से बोला

"देखा मीठा त नईखे लागत?"

सुगना ने अपने पति रतन के होठों को चूम लिया सचमुच रतन ने पूरी मेहनत और तन्मयता से सुगना के बुर को चूम चाट कर शहद विहीन कर दिया था। उसके होठों पर अब सिर्फ प्रेम रस ही बचा था जिसे सुगना भली भांति पहचानती थी और उसका स्वाद सरयू सिंह की जीभ से कई बार ले चुकी थी..

"तू ओ घरी बाबूजी के नाम काहे ले तलू हा?"

रतन ने अचानक कि अपना प्रश्न कर दिया सुगना निरुत्तर हो गई इसे कोई उत्तर न सूझ रहा था..

स्त्रियों के पास उत्तर न होने की दशा में अदाओं का ही सहारा होता है सुगना में बड़े प्रेम से कहां

" रहुआ ता हमरा मुनिया के चूस चूस के हमरा के पागल कर देनी हां अतना सुख तो आज तक ना मिलल रहे"


सुगना ने रतन को बाग बाग कर दिया। अपनी मेहनत और सफलता का यह पारितोषिक रतन के लिए सारे प्रश्नों का उत्तर भी था और आने वाले सुखद वैवाहिक जीवन का संकेत भी।

सुगना ने देर ना की इससे पहले रतन अपना प्रश्न दोबारा करता वह तुरंत ही घुटनों पर आ गई उसे पता था अभी रतन के लंड पर लगा शायद उसके होठों का इंतजार कर रहा था..

नियति के खेल भी निराले हैं रतन सुगना की बुर चूस रहा था और उस दौरान उसका लण्ड लगातार हिचकोले ले रहा था और अपने मुखड़े पर प्रेम रस छोड़ रहा था। रतन का सुपाड़ा पूरी तरह भीग चुका था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे रतन की उंगलियों ने उसको छूने की कोशिश की थी। हो सकता है की सुगना की बुर चूमते चाटते समय अकस्मात ही रतन का हाथ लण्ड पर चला गया हो ।

सुगना ने अपने होंठ गोल किये और अपने पति का लंड चूम लिया। वह रतन को अपनाने के लिए पूरी तरह तैयार थी और भाव विह्वल होकर सुगना ने रतन के सुपारे को अपने मुंह में भर लिया। बिना किसी घृणा भाग के सुगना रतन के लंड को चूस चूस कर उस पर लगा शहद हटाने लगी। रतन के पूरे लंड को मुंह में ले पाना संभव न था व सरयू सिंह जैसा बलशाली तो ना सही परंतु उससे कम भी न था।


सुगना ने लंड के सुपाडे को मुंह से निकाला और अपनी जीभ से लंड को जड़ से चाटते हुए उसके सुपारे तक आने लगी। शहद की परत उसकी जीभ पर आती और सुगना उसे चट से निगल जाती।

इतनी देर की उत्तेजना और स्खलन ने उसके उधर में भूख उत्पन्न कर दी थी। शहद का स्वाद उसे पसंद आ रहा था यह अलग बात है कि उसमें रतन के लंड की लार भी शामिल हो चुकी थी परंतु सुगना उसे भूलकर शहद का स्वाद ले रही थी और बरबस ही रतन के लंड को थिरकने पर मजबूर कर रही थी।

सुगना के होंठ लंड पर पर तेजी से चल रहे थे। लण्ड की जड़ से शहद का स्वाद हटते ही सुगना ने लंड के जड़ को अपने हाथों से पकड़ लिया और रतन के लंड को होठों से चूसने लगी। रतन ने अपनी आंखें खोली अपनी फूल जैसी पत्नी को अपना लंड चूसते हुए देख रहा था उसके लिए यह सुख स्वर्गीय सुख से कम न था।


रतन की सारी कल्पनाएं एक पल में ही साकार हो गई थी वह यदि किसी अप्सरा की कल्पना भी करता तो भी शायद सुगना से सुंदर स्त्री उसकी कल्पना में भी ना आती।

वह सुगना के रेशमी बालों को सहलाये जा रहा था और अचानक सुगना के दांतों ने लंड के निचले कोमल नसों को छू लिया.. रतन उत्तेजना से तड़प उठा और अंडकोष में उबल रहा लावा सारी सीमाएं और बंधन तोड़ते हुए बाहर आ गया.. सुगना अचानक हुए हमले से घबरा गयी उसने अपने होंठ पीछे करने की कोशिश की परंतु रतन को वह सुखद और कोमल स्पर्श को छोड़ने का मैन ना था। उसने सुगना का सर पकड़ लिया और अपनी पिचकारी का सारा लावा सुगना के मुंह में उड़ेल लिया सुगना गूं….गूं….. करती रही परंतु उसके पास अपने होंठ हटा पाने का कोई अवसर ना था। मरता क्या न करता सुगना ने ना चाहते हुए भी सारा वीर्य निगल लिया..

दोनों पति पत्नी एक दूसरे की बाहों में निढाल पड़ गए विधि के अनुसार रतन को सुगना की बुर चोदते हुए उसे स्खलित करना था परंतु सुगना और रतन दोनों ही झड़ चुके थे वासना का फूला हुआ गुब्बारा अचानक ही पिचक गया था रतन के हाथ सुगना की चुचियों पर घूमने लगे…

"ई बताव 4 साल हम तोहरा के कितना दुख देले बानी, हमरा के माफ कर द, ई बेचारी तरस गईल होइ" रतन का हाथ सुगना की बुर पर आ गया।

न सुगना बेचारी थी न हीं उसकी बुर। जिस स्त्री को सरयू सिह का प्यार और कामुकता दोनों प्राप्त हो वह स्वतः ही तृप्त होगी।

"आप ही त भाग गइल रहनी"

रतन ने सुगना को अपनी बाहों में खींच लिया और उसके हाथ सुगना के कोमल नितंबों को सहलाने लगे धीरे धीरे वासना जवान होने लगी नसों में रक्त भरने लगा और रतन का लंड खड़ा हो चुका था..

सुगना अपनी योनि पूजा को सकुशल संपन्न कराने के लिए आतुर थी पर क्या यह पूजा संपन्न होगी? क्या रतन सुगना को चोदते हुए उसे स्खलित कर पाएगा? या नियति ने इनके भाग्य में कुछ और लिखा था…

शेष अगले भाग में..
Another episode full of sexual turmoils and emotions, Sir you described the same beautifully. Hat's off to you
 

rajeev13

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भाग्य का खेल भी अजीब है बेचारी सुगना जो कभी मर्द के स्पर्श के लिए तड़प रही थी, आज ऐसी मदहोशी में है की सरयू सिंह के अलावा कुछ ख्याल भी नहीं आ रहा उसे।

अगले भाग की प्रतीक्षा में . . . . .
 

Sanju@

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सुगना के बेटे का नाम सूरज रखा गया. यह नाम कजरी ने ही सुझाया था यह उसका हक भी था आखिर सुगना और सरयू सिंह का मिलन कजरी की बदौलत ही हो पाया था।

सुगना और कजरी बच्चे का ख्याल रखतीं। सरयू सिंह बेहद खुश दिखाई पढ़ते। उनके सारे सपने पूरे हो रहे थे। खासकर जब वह अपनी प्यारी सुगना के चेहरे पर खुशी देखते हैं वह बाग बाग हो जाते।

पर आज सुगना दुखी थी वह और कजरी आपस में बातें कर रही थीं। उनकी चिंता सूरज के दूध न पीने की वजह से थी। कजरी ने कहा

"सुगना, आपन चूची में शहद लगा के पियाव"

"मां, लगवले रहनी पर लेकिन उ चूची पकड़ते नईखे"

"सरयू सिंह आंगनमें आ चुके थे। सुगना ने घुंघट ले लिया पर उसकी चुची अभी भी साफ दिखाई पड़ रही थी। कजरी ने हाथ बढ़ाकर आंचल से सुगना की चूचियां ढक दीं।

कुछ ही देर में सरयू सिंह को सारा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने सूरज को गाय का दूध पिलाने की बात की पर कजरी ने मना कर दिया।

अगली सुबह सुगना ने अपनी कोठरी का खिड़की खोली सूर्य की किरणें बाहर दालान में पढ़ रही थीं। अचानक उसकी निगाह अपनी गाय पर पड़ी जिसमें अभी दो महीना पहले ही एक बछड़े को जन्म दिया था।

कजरी ने बाल्टी सरयू सिंह ने के हाथ में दी सरयू सिंह गाय का दूध निकालने चल पड़े। उन्होंने अपनी दोनों जांघों के बीच बाल्टी फसाई और गाय की चुचियों से दूध दुहने लगे। सूर्य की किरणों से उनका बलिष्ठ शरीर चमक रहा था। उनकी मांसल जांघों के बीच बाल्टी फसी हुई थी। उनकी मजबूत हथेलियों के बीच गाय की कोमल चुचियां थी जिसे वह मुठ्ठियाँ भींचकर खींच रहे थे।

सर्र्रर्रर्रर …… सुर्रर्रर…. की आवाज आने लगी. सुगना यह दृश्य देखकर सिहर उठी. वह स्वयं को उस गाय की जगह सोच कर थरथरा उठी. उसकी आंखों में वासना तैरने लगी उसकी चूचियां तन गयीं। उत्तेजना में उसकी खिड़की पर रख दिया गिर पड़ा जिसकी आवाज से सरयू सिंह ने उधर देखा सुगना की निगाह सरयू सिंह से टकरा गई

सुगना शर्म के मारे पानी पानी हो गई सरयू सिंह को सारा माजरा समझते देर न लगी उनका लंड उछल कर खड़ा हो गया। सुगना बेटी का इस तरह चूँची निचोड़ते हुए देखना सच में उन्हें भी उत्तेजित कर गया था। उन्होंने बाल्टी को हटाया और अपने खड़े हो चुके लंड को ऊपर की तरफ किया और एक बार फिर चुचियों से दूध दुहने लगे।

सुगना से और बर्दाश्त नहीं वह उत्तेजना से कांप रही थी। उसने कोठरी की खिड़की बंद कर दी और चौकी पर बैठकर पास बड़ी कटोरी में अपनी चुचीं से दूध निकालने का प्रयास करने लगी।
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उसकी कोमल हथेलियां अपनी ही चूचियों पर जोर लगा कर चार छः चम्मच दूध निकाल पायीं। उसने सूरज को वह दूध पिलाने की कोशिश की सूरज ने गटागट दूध पी लिया।

सुगना की खुशी का ठिकाना न रहा उसने झट से दूसरी चूची निकाली और उसका भी दूध निकालने लगी। तभी सरयू सिंह बाल्टी में दूध लिए कमरे में आ गए। सुगना को इस तरह अपनी ही चूची से दूध निकालते हुए देखकर वह बोले

"सुगना बेटा ल ई गाय के ताजा दूध पिला पिया द"

"बाबूजी इहो ताजा बा उ इहे मन से पियता"

सरयू सिंह मुस्कुराते हुए कमरे से वापस आ गए। उन्होंने मन ही मन सुगना की मदद करने की ठान ली

सुगना ने दूसरी चूची से निकाला दूध भी सूरज को पिला दिया और थपकी देकर उसे सुला दिया वह खुशी से चहकती हुई कजरी के पास आयी। सरयू सिंह अपनी बहू का चहकना देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे। उनका लंड अभी भी धोती में तना हुआ था उन्होंने उसे सहला कर शांत कर दिया।

सुगना के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। उसने आज सुबह के दृश्य के लिए नियति और अपने बाबू जी के प्रति कृतज्ञता जाहिर की जिन्होंने सुगना को यह अद्भुत उपाय सुझाया था अब सूरज भी खुश था और वह भी।

दोपहर में कजरी हरिया के यहां सुगना के लिए सोंठ के लड्डू बनाने चली गई। सरयू सिंह बाहर दालान में बैठे थे आंगन में आ रही हैंडपंप की आवाज से उन्होंने अंदाजा लगा लिया सुगना नहा रही थी। जैसे ही सुगना नहा कर अपने कमरे की तरफ गई सरयू सिंह पीछे पीछे अंदर आ गए। सुगना अपना शरीर पोछ कर अपना पेटीकोट पहन ही रही थी। तभी सरयू सिंह ने पेटीकोट को जांघो तक पहुचने से पहले ही ही पकड़ लिया।

वह अपने हाथ में कटोरी लेकर आए थे सुगना ने पीछे मुड़कर देखा तो सरयू सिंह ने उसे कटोरी पकड़ा दी और कहा

" चला सूरज बाबू के दूध पिया द"

सुगना ने कटोरी लेने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया उसका पेटीकोट वापस जमीन पर आ गया। सुगना पूरी तरह नंगी खड़ी थी। तभी छोटा बालक रोने लगा। सुगना ने झुककर बालक की पीठ थपथपाई इस दौरान उसकी गोरी गांड और चूत सरयू सिंह के निगाहों के ठीक सामने आ गयी।

उनसे अब और बर्दाश्त न हुआ जब तक सुगना बच्चे की पीठ थपथपाती तब तक सरयू सिंह वस्त्र विहीन हो चुके थे। बच्चे की आंख लगते ही उन्होंने सुगना को पीछे से पकड़ लिया। सुगना ने मुस्कुराते हुए वह आमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया और खड़ी हो गई। उसकी दोनों कोमल चूचियां सरयू सिंह के हाथों में थीं।

वह कुछ देर तो अपनी सुगना बेटी की चूचियाँ सहलाते रहे फिर अपना दबाव बढ़ाते गए। दूध की धार फूट पड़ी।
सुगना ने उसे कटोरी में रोकने की कोशिश की पर खड़े होने की वजह से यह संभव नहीं हो रहा था। दूध नीचे गिर रहा था।

सुगना स्वयं आगे आकर सुबह अपनी गाय की अवस्था(आज की डॉगी स्टाइल) में आ गई। वह खुद आज उत्तेजना का शिकार थी। आज सुबह जो उसने देखा था वह उसके मन मस्तिष्क पर छा गया था। अब सुगना की दोनों चूचियां नीचे लटक रही थीं। सरयू सिंह ने कटोरी नीचे रख दी और सुगना की दोनों चूचियां सहलाने लगे बीच-बीच में वह अपने एक हाथ सुगना के कोमल नितंबों को तथा उसके बीच की दरार को भी सहला देते। अपनी गांड पर सरयू सिंह की उंगलियों का स्पर्श पाकर उनकी प्यारी सुगना चिहुँक उठती।

सुगना का चेहरा वासना से लाल हो रहा था। उन्होंने अपनी हथेलियों का दबाव जैसे ही बढ़ाया दूध की धार कटोरी में गिरने लगी। वह माहिर खिलाड़ी थे पर आज जिसका दूध वह दूर रहे थे वह उनकी जान थी उनकी अपनी बहू सुगना। दूध निकालने के लिए चुची को दबाना जरूरी था पर इतना नहीं जिससे उनकी सुकुमारी को कष्ट हो।

अपने सधे हाथों से उन्होंने सुगना की आंखों में बिना आंसू लाए आधी कटोरी भर दी। उन्होंने सुगना की आंख के आंसू तो रोक लिए पर चूत पर ख़ुशी के आंशु उभार दिए । अचानक उनके हाथों का दबाव बढ़ गया। सुगना कराह उठी

"बाबूजी तनी धीरे से……. दुखाता"

सुगना की कराह मादक थी उनसे और बर्दाश्त ना हुआ। वह उठ कर सुगना के पीछे आ गए। उन्होंने एक हाथ से अपने शरीर का बैलेंस बनाया और दूसरे हाथ से सुगना की दूसरी चूँची दुहने लगे।

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उनका लंड सुगना के नितंबों से लगातार छू रहा था। सुगना भी पूरी तरह उत्तेजित थी। कटोरी के दूध से भरते भरते सुगना की चूत से लार टपकने लगी। वह चुत से चाशनी की भांति लटकी हुई थी और चौकी को छूने की कोशिश कर रही थी। सुगना ने वह देख लिया था।उसने अपने एक हाथ से उसे पोंछने की कोशिश की। वह अपने बाबू जी को अपनी उत्तेजना का नंगा प्रदर्शन नही करना चाहती थी।

सरयू सिंह ने उसकी कोमल कलाइयां बीच में ही रोक ली। वह शर्मा कर वापस उसी अवस्था में आ गई। उसने कटोरी का दूध हटाकर दूर रख दिया। सरयू सिंह उसकी चुचियों को अभी भी सहला रहे थे। शायद जितना कष्ट उन्होंने उसे दिया था उसे सहला कर उसकी भरपाई कर रहे थे।

उधर उनका लंड अपनी सुगना बेटी की चूत के मुंह पर अपना दस्तक दे रहा था। वह सिर्फ उसके मुंह से लार लेता और सुगना के भगनासे पर छोड़ देता।

सुगना अपनी कमर पीछे कर उसे अंदर लेने का प्रयास कर रही थी। पर उसके बाबूजी अपनी कमर पीछे कर लेते।

सुगना के कड़े हो चुके निप्पल पर उंगलियां पहुंचते ही एक बार फिर सरयू सिंह ने उसे दबा दिया। सुगना के मुंह से कराह निकल गई ….

"बाबूजी तनी……….. जब तक वाह अपनी बात कह पाती उसके बाबूजी का मूसल उसकी मखमली और लिसलिसी चूत में घुस कर उसकी नाभि को चूमने का प्रयास कर रहा था। सुगना आनंद में डूब चुकी थी। सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाला और फिर एक बार जड़ तक अपनी बहू की कोमल चूत में ठास दिया।

सुगना आगे की तरफ गिरने लगी सरयू सिंह ने उसके कोमल कंधे पकड़ लिए और अपने लंड को तेजी से अंदर बाहर करने लगे। जब लंड सुगना की चुत में अंदर जाता वह गप्पप्प की आवाज होती और जब वह बाहर आता फक्क…..की ध्वनि सुनाई पड़ती।

यह मधुर ध्वनि सुगना और सरयू सिंह दोनों सुन रहे थे पर शायद उन्हें नहीं पता था घर में तीसरा प्राणी भी था जो अब अपनी आंखें खोलें टुकुर-टुकुर यह दृश्य देख रहा था। सरयू सिंह की निगाह बालक पर पढ़ते ही वह घबरा गए कहीं ऐसा ना हो कि बालक रोने लगे। उन्होंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की और उनकी प्यारी बहु की चुदाई की रफ्तार बढ़ा दी।

वह किसी भी हाल में स्खलित होना चाहते थे। सुगना आंखे बाद किये बेसुध होकर चुदाई का आंनद ले रही थी। सूरज अभी भी टुकुर-टुकुर देख रहा था। वह रो नहीं रहा था इस अद्भुत चुदाई से सुगना थरथर कांपने लगी उससे अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वह पलट कर सीधा होना चाह रही थी उसकी कोमल कोहनियां और घुटने उस खुरदुरी चौकी से लाल हो गये थे।

सरयू सिंह ने उसकी मदद की और उस खुरदरी चौकी पर अपनी कोमल बहू को पीठ के बललिटा दिया। सुगना की मांसल जांघों को पकड़ कर उन्होंने प्यारी सुगना फिर से चोदना शुरू कर दिया सुगना आनंद में डूबी हुई थी। उसकी आंखें बंद थी सरयू सिंह ने जैसी ही उसकी चुचियों को मीसा एक बार फिर दूध की धार उनके चेहरे पर पड़ गई जिसको उन्होंने अपनी जीभ से चाट लिया। उसका स्वाद उन्हें पसंद ना आया पर था तो वह उनकी प्यारी बहु सुगना का। उन्होंने सुगना की एक सूची को जैसे ही मुंह में लिया सुगना की चूत कांपने लगी।
सरयू सिंह ने भी देर नहीं की और अपनी कमर को तेजी से आगे पीछे कर अपनी प्यारी सुगना को चोदते रहे। थोड़ी ही देर में जितना दूध उन्होंने सुगना की चूची के पिया था उसे सूद समेत उसकी चुत में भर दिया।

सुगना तृप्त हो चुकी थी। उसने अपने बाबूजी को चुम्मा दिया और कुछ देर के लिए शांत हो गई। सूरज की आंखें थक चुकी थी उसने अपना क्रंदन प्रारंभ कर दिया ।

सुगना उठ कर खड़ी हो गई उसकी चूत से बह रहा वीर्य जांघो का सहारा लेकर नीचे गिर रहा था। सरयू सिंह ने पेटीकोट उठाया और उसे पोंछने लगे। उनकी निगाह नितंबों के बीच सुगना की गदरायी गाड़ कर चली गई। वह कुंवारी गांड उन्हें कई दिनों से आकर्षित कर रही थी।

सुगना ने कटोरी भर दूध देखकर अपने प्यारे बाबू जी का शुक्रिया अदा किया और सूरज को दूध पिलाने बैठ गयी। उसने कपड़े पहनने कि जल्दी बाजी न की। सूरज उसकी चुचियों से खेलते हुए चम्मच से दूध पीने लगा।
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थोड़ी ही देर में मां बेटा प्रसन्न हो गए। सरयू सिंह बाहर दालान में खाने का इंतजार कर रहे थे। सुगना तैयार होकर अपने बाबूजी के लिए खाना लेकर आ गई। सरयू सिंह अपनी उंगलियों से रोटियां तोड़ने लगे और सुगना उन मजबूत उंगलियों को देख कर मन ही मन मुस्कुरा रही थी और अपनी कोमल हथेलियों से अपने बाबूजी के लिए पंखा झल रही थी। बहू का यह प्यार सरयू सिंह को अचानक नहीं मिला था उन्होंने सुगना का मन और तन बड़ी मुश्किल से जीता था। वह अपनी यादों में खोते चले गए…..
शेष अगले भाग में
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सुगना के बेटे का नाम सूरज रखा गया. यह नाम कजरी ने ही सुझाया था यह उसका हक भी था आखिर सुगना और सरयू सिंह का मिलन कजरी की बदौलत ही हो पाया था।

सुगना और कजरी बच्चे का ख्याल रखतीं। सरयू सिंह बेहद खुश दिखाई पढ़ते। उनके सारे सपने पूरे हो रहे थे। खासकर जब वह अपनी प्यारी सुगना के चेहरे पर खुशी देखते हैं वह बाग बाग हो जाते।

पर आज सुगना दुखी थी वह और कजरी आपस में बातें कर रही थीं। उनकी चिंता सूरज के दूध न पीने की वजह से थी। कजरी ने कहा

"सुगना, आपन चूची में शहद लगा के पियाव"

"मां, लगवले रहनी पर लेकिन उ चूची पकड़ते नईखे"

"सरयू सिंह आंगनमें आ चुके थे। सुगना ने घुंघट ले लिया पर उसकी चुची अभी भी साफ दिखाई पड़ रही थी। कजरी ने हाथ बढ़ाकर आंचल से सुगना की चूचियां ढक दीं।

कुछ ही देर में सरयू सिंह को सारा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने सूरज को गाय का दूध पिलाने की बात की पर कजरी ने मना कर दिया।

अगली सुबह सुगना ने अपनी कोठरी का खिड़की खोली सूर्य की किरणें बाहर दालान में पढ़ रही थीं। अचानक उसकी निगाह अपनी गाय पर पड़ी जिसमें अभी दो महीना पहले ही एक बछड़े को जन्म दिया था।

कजरी ने बाल्टी सरयू सिंह ने के हाथ में दी सरयू सिंह गाय का दूध निकालने चल पड़े। उन्होंने अपनी दोनों जांघों के बीच बाल्टी फसाई और गाय की चुचियों से दूध दुहने लगे। सूर्य की किरणों से उनका बलिष्ठ शरीर चमक रहा था। उनकी मांसल जांघों के बीच बाल्टी फसी हुई थी। उनकी मजबूत हथेलियों के बीच गाय की कोमल चुचियां थी जिसे वह मुठ्ठियाँ भींचकर खींच रहे थे।

सर्र्रर्रर्रर …… सुर्रर्रर…. की आवाज आने लगी. सुगना यह दृश्य देखकर सिहर उठी. वह स्वयं को उस गाय की जगह सोच कर थरथरा उठी. उसकी आंखों में वासना तैरने लगी उसकी चूचियां तन गयीं। उत्तेजना में उसकी खिड़की पर रख दिया गिर पड़ा जिसकी आवाज से सरयू सिंह ने उधर देखा सुगना की निगाह सरयू सिंह से टकरा गई

सुगना शर्म के मारे पानी पानी हो गई सरयू सिंह को सारा माजरा समझते देर न लगी उनका लंड उछल कर खड़ा हो गया। सुगना बेटी का इस तरह चूँची निचोड़ते हुए देखना सच में उन्हें भी उत्तेजित कर गया था। उन्होंने बाल्टी को हटाया और अपने खड़े हो चुके लंड को ऊपर की तरफ किया और एक बार फिर चुचियों से दूध दुहने लगे।

सुगना से और बर्दाश्त नहीं वह उत्तेजना से कांप रही थी। उसने कोठरी की खिड़की बंद कर दी और चौकी पर बैठकर पास बड़ी कटोरी में अपनी चुचीं से दूध निकालने का प्रयास करने लगी।
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उसकी कोमल हथेलियां अपनी ही चूचियों पर जोर लगा कर चार छः चम्मच दूध निकाल पायीं। उसने सूरज को वह दूध पिलाने की कोशिश की सूरज ने गटागट दूध पी लिया।

सुगना की खुशी का ठिकाना न रहा उसने झट से दूसरी चूची निकाली और उसका भी दूध निकालने लगी। तभी सरयू सिंह बाल्टी में दूध लिए कमरे में आ गए। सुगना को इस तरह अपनी ही चूची से दूध निकालते हुए देखकर वह बोले

"सुगना बेटा ल ई गाय के ताजा दूध पिला पिया द"

"बाबूजी इहो ताजा बा उ इहे मन से पियता"

सरयू सिंह मुस्कुराते हुए कमरे से वापस आ गए। उन्होंने मन ही मन सुगना की मदद करने की ठान ली

सुगना ने दूसरी चूची से निकाला दूध भी सूरज को पिला दिया और थपकी देकर उसे सुला दिया वह खुशी से चहकती हुई कजरी के पास आयी। सरयू सिंह अपनी बहू का चहकना देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे। उनका लंड अभी भी धोती में तना हुआ था उन्होंने उसे सहला कर शांत कर दिया।

सुगना के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। उसने आज सुबह के दृश्य के लिए नियति और अपने बाबू जी के प्रति कृतज्ञता जाहिर की जिन्होंने सुगना को यह अद्भुत उपाय सुझाया था अब सूरज भी खुश था और वह भी।

दोपहर में कजरी हरिया के यहां सुगना के लिए सोंठ के लड्डू बनाने चली गई। सरयू सिंह बाहर दालान में बैठे थे आंगन में आ रही हैंडपंप की आवाज से उन्होंने अंदाजा लगा लिया सुगना नहा रही थी। जैसे ही सुगना नहा कर अपने कमरे की तरफ गई सरयू सिंह पीछे पीछे अंदर आ गए। सुगना अपना शरीर पोछ कर अपना पेटीकोट पहन ही रही थी। तभी सरयू सिंह ने पेटीकोट को जांघो तक पहुचने से पहले ही ही पकड़ लिया।

वह अपने हाथ में कटोरी लेकर आए थे सुगना ने पीछे मुड़कर देखा तो सरयू सिंह ने उसे कटोरी पकड़ा दी और कहा

" चला सूरज बाबू के दूध पिया द"

सुगना ने कटोरी लेने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया उसका पेटीकोट वापस जमीन पर आ गया। सुगना पूरी तरह नंगी खड़ी थी। तभी छोटा बालक रोने लगा। सुगना ने झुककर बालक की पीठ थपथपाई इस दौरान उसकी गोरी गांड और चूत सरयू सिंह के निगाहों के ठीक सामने आ गयी।

उनसे अब और बर्दाश्त न हुआ जब तक सुगना बच्चे की पीठ थपथपाती तब तक सरयू सिंह वस्त्र विहीन हो चुके थे। बच्चे की आंख लगते ही उन्होंने सुगना को पीछे से पकड़ लिया। सुगना ने मुस्कुराते हुए वह आमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया और खड़ी हो गई। उसकी दोनों कोमल चूचियां सरयू सिंह के हाथों में थीं।

वह कुछ देर तो अपनी सुगना बेटी की चूचियाँ सहलाते रहे फिर अपना दबाव बढ़ाते गए। दूध की धार फूट पड़ी।
सुगना ने उसे कटोरी में रोकने की कोशिश की पर खड़े होने की वजह से यह संभव नहीं हो रहा था। दूध नीचे गिर रहा था।

सुगना स्वयं आगे आकर सुबह अपनी गाय की अवस्था(आज की डॉगी स्टाइल) में आ गई। वह खुद आज उत्तेजना का शिकार थी। आज सुबह जो उसने देखा था वह उसके मन मस्तिष्क पर छा गया था। अब सुगना की दोनों चूचियां नीचे लटक रही थीं। सरयू सिंह ने कटोरी नीचे रख दी और सुगना की दोनों चूचियां सहलाने लगे बीच-बीच में वह अपने एक हाथ सुगना के कोमल नितंबों को तथा उसके बीच की दरार को भी सहला देते। अपनी गांड पर सरयू सिंह की उंगलियों का स्पर्श पाकर उनकी प्यारी सुगना चिहुँक उठती।

सुगना का चेहरा वासना से लाल हो रहा था। उन्होंने अपनी हथेलियों का दबाव जैसे ही बढ़ाया दूध की धार कटोरी में गिरने लगी। वह माहिर खिलाड़ी थे पर आज जिसका दूध वह दूर रहे थे वह उनकी जान थी उनकी अपनी बहू सुगना। दूध निकालने के लिए चुची को दबाना जरूरी था पर इतना नहीं जिससे उनकी सुकुमारी को कष्ट हो।

अपने सधे हाथों से उन्होंने सुगना की आंखों में बिना आंसू लाए आधी कटोरी भर दी। उन्होंने सुगना की आंख के आंसू तो रोक लिए पर चूत पर ख़ुशी के आंशु उभार दिए । अचानक उनके हाथों का दबाव बढ़ गया। सुगना कराह उठी

"बाबूजी तनी धीरे से……. दुखाता"

सुगना की कराह मादक थी उनसे और बर्दाश्त ना हुआ। वह उठ कर सुगना के पीछे आ गए। उन्होंने एक हाथ से अपने शरीर का बैलेंस बनाया और दूसरे हाथ से सुगना की दूसरी चूँची दुहने लगे।

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उनका लंड सुगना के नितंबों से लगातार छू रहा था। सुगना भी पूरी तरह उत्तेजित थी। कटोरी के दूध से भरते भरते सुगना की चूत से लार टपकने लगी। वह चुत से चाशनी की भांति लटकी हुई थी और चौकी को छूने की कोशिश कर रही थी। सुगना ने वह देख लिया था।उसने अपने एक हाथ से उसे पोंछने की कोशिश की। वह अपने बाबू जी को अपनी उत्तेजना का नंगा प्रदर्शन नही करना चाहती थी।

सरयू सिंह ने उसकी कोमल कलाइयां बीच में ही रोक ली। वह शर्मा कर वापस उसी अवस्था में आ गई। उसने कटोरी का दूध हटाकर दूर रख दिया। सरयू सिंह उसकी चुचियों को अभी भी सहला रहे थे। शायद जितना कष्ट उन्होंने उसे दिया था उसे सहला कर उसकी भरपाई कर रहे थे।

उधर उनका लंड अपनी सुगना बेटी की चूत के मुंह पर अपना दस्तक दे रहा था। वह सिर्फ उसके मुंह से लार लेता और सुगना के भगनासे पर छोड़ देता।

सुगना अपनी कमर पीछे कर उसे अंदर लेने का प्रयास कर रही थी। पर उसके बाबूजी अपनी कमर पीछे कर लेते।

सुगना के कड़े हो चुके निप्पल पर उंगलियां पहुंचते ही एक बार फिर सरयू सिंह ने उसे दबा दिया। सुगना के मुंह से कराह निकल गई ….

"बाबूजी तनी……….. जब तक वाह अपनी बात कह पाती उसके बाबूजी का मूसल उसकी मखमली और लिसलिसी चूत में घुस कर उसकी नाभि को चूमने का प्रयास कर रहा था। सुगना आनंद में डूब चुकी थी। सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाला और फिर एक बार जड़ तक अपनी बहू की कोमल चूत में ठास दिया।

सुगना आगे की तरफ गिरने लगी सरयू सिंह ने उसके कोमल कंधे पकड़ लिए और अपने लंड को तेजी से अंदर बाहर करने लगे। जब लंड सुगना की चुत में अंदर जाता वह गप्पप्प की आवाज होती और जब वह बाहर आता फक्क…..की ध्वनि सुनाई पड़ती।

यह मधुर ध्वनि सुगना और सरयू सिंह दोनों सुन रहे थे पर शायद उन्हें नहीं पता था घर में तीसरा प्राणी भी था जो अब अपनी आंखें खोलें टुकुर-टुकुर यह दृश्य देख रहा था। सरयू सिंह की निगाह बालक पर पढ़ते ही वह घबरा गए कहीं ऐसा ना हो कि बालक रोने लगे। उन्होंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की और उनकी प्यारी बहु की चुदाई की रफ्तार बढ़ा दी।

वह किसी भी हाल में स्खलित होना चाहते थे। सुगना आंखे बाद किये बेसुध होकर चुदाई का आंनद ले रही थी। सूरज अभी भी टुकुर-टुकुर देख रहा था। वह रो नहीं रहा था इस अद्भुत चुदाई से सुगना थरथर कांपने लगी उससे अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वह पलट कर सीधा होना चाह रही थी उसकी कोमल कोहनियां और घुटने उस खुरदुरी चौकी से लाल हो गये थे।

सरयू सिंह ने उसकी मदद की और उस खुरदरी चौकी पर अपनी कोमल बहू को पीठ के बललिटा दिया। सुगना की मांसल जांघों को पकड़ कर उन्होंने प्यारी सुगना फिर से चोदना शुरू कर दिया सुगना आनंद में डूबी हुई थी। उसकी आंखें बंद थी सरयू सिंह ने जैसी ही उसकी चुचियों को मीसा एक बार फिर दूध की धार उनके चेहरे पर पड़ गई जिसको उन्होंने अपनी जीभ से चाट लिया। उसका स्वाद उन्हें पसंद ना आया पर था तो वह उनकी प्यारी बहु सुगना का। उन्होंने सुगना की एक सूची को जैसे ही मुंह में लिया सुगना की चूत कांपने लगी।
सरयू सिंह ने भी देर नहीं की और अपनी कमर को तेजी से आगे पीछे कर अपनी प्यारी सुगना को चोदते रहे। थोड़ी ही देर में जितना दूध उन्होंने सुगना की चूची के पिया था उसे सूद समेत उसकी चुत में भर दिया।

सुगना तृप्त हो चुकी थी। उसने अपने बाबूजी को चुम्मा दिया और कुछ देर के लिए शांत हो गई। सूरज की आंखें थक चुकी थी उसने अपना क्रंदन प्रारंभ कर दिया ।

सुगना उठ कर खड़ी हो गई उसकी चूत से बह रहा वीर्य जांघो का सहारा लेकर नीचे गिर रहा था। सरयू सिंह ने पेटीकोट उठाया और उसे पोंछने लगे। उनकी निगाह नितंबों के बीच सुगना की गदरायी गाड़ कर चली गई। वह कुंवारी गांड उन्हें कई दिनों से आकर्षित कर रही थी।

सुगना ने कटोरी भर दूध देखकर अपने प्यारे बाबू जी का शुक्रिया अदा किया और सूरज को दूध पिलाने बैठ गयी। उसने कपड़े पहनने कि जल्दी बाजी न की। सूरज उसकी चुचियों से खेलते हुए चम्मच से दूध पीने लगा।
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थोड़ी ही देर में मां बेटा प्रसन्न हो गए। सरयू सिंह बाहर दालान में खाने का इंतजार कर रहे थे। सुगना तैयार होकर अपने बाबूजी के लिए खाना लेकर आ गई। सरयू सिंह अपनी उंगलियों से रोटियां तोड़ने लगे और सुगना उन मजबूत उंगलियों को देख कर मन ही मन मुस्कुरा रही थी और अपनी कोमल हथेलियों से अपने बाबूजी के लिए पंखा झल रही थी। बहू का यह प्यार सरयू सिंह को अचानक नहीं मिला था उन्होंने सुगना का मन और तन बड़ी मुश्किल से जीता था। वह अपनी यादों में खोते चले गए…..
शेष अगले भाग में
बहुत ही बढ़िया अपडेट है
सरयू सिंह सुगना की यादों में खोए हुए थे. कैसे सुगना उनकी जान से ज्यादा प्यारी ही गयी थी। जो एक समय पर उनसे बात तक न करती थी आज अपनी चूत चुदवाने के बाद पंखा झलते हुए उन्हें प्यार से खाना खिला रही थी। यह सफर रोमांचक था...

सुगना के गवना का दिन निर्धारित हो गया था। वह कुछ दिनों पहले हुए मुखिया के चुनाव में मतदान कर चुकी थी और शाशकीय तौर पर चुदने के लिए पूरी तरह तैयार थी। सरयू सिंह ने रतन को बुला लिया था। वह मन मसोसकर गांव आ गया पर उसकी सुगना में कोई रुचि नहीं थी। आपसी समझौते के तहत उसे गांव आना था सो आ गया था।

कजरी को अभी भी उम्मीद थी की सुगना की जवानी रतन को सुगना की जाँघों के बीच खींच लाएगी। कजरी सुगना से मिल आई थी। उसमें सुगना की कद काठी पे टंगी उसकी चूचियों और सुडौल कूल्हों के पीछे छुपी कुवांरी चूत को अंदाज लिया था। वह उसकी खूबसूरती से बेहद प्रभावित थी।

सरयू सिंह स्वयं खूबसूरती के जौहरी थे। उन्होंने जिन जिन महिलाओं को हाथ लगाया था वह सब एक से बढ़कर एक थीं। कजरी स्वयं उनमें से एक थी। सरयू सिंह ने अपने अनुभव के आधार पर ही सुगना को रतन के लिए पसंद कर लिया था। उन्हें पता था सुगना की मां पदमा जब इतनी खूबसूरत थी तो उसकी लड़की सुगना निश्चय ही खूबसूरत ही होगी।

सुगना की मां पदमा सरयू सिंह के ननिहाल की लड़की थी। अपनी जवानी में सरयू सिंह ने पदमा की जवानी का रस लूटा था। ज्यादा तो नहीं पर कभी-कभी। उस गाँव मे वही उनका सहारा थी। उस दिन पदमा की आंखों में आंसू देख कर उनका दिल पिघल गया था और उन्होंने एक ही झटके में सुगना को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था।

आखिर वह दिन आ ही गया जब सरयू सिंह की प्यारी बहू उनके घर आ गई। पूरे गांव में भोज हुआ सरयू सिंह मन ही मन डरे हुए थे की रतन और सुगना का मिलन होगा या नहीं। यह प्रश्न उन्हें खाए जा रहा था। वह कजरी की बातों से आश्वस्त थे पर रतन का व्यवहार उन्हें आशंकित किए हुए था। गवना के पूरे कार्यक्रम में वह बिना मन के उपस्थित रहा था।

कजरी ने गांव की महिलाओं के साथ मिलकर कोठरी में नई चादर बिछाई थी। सुगना अपनी सुहागरात की सेज देखकर मन ही मन शर्मा रही थी।
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सरयू सिंह अब तक सुगना का चेहरा नहीं देख पाए थे पर अपनी पारखी निगाहों से यह अवश्य जान चुके थे कि उसे सुहाग की सेज पर देखना किसी मर्द के लिए एक स्वप्न जैसा ही था।

सचमुच् वह अपनी मां से बढ़कर कामुक थी। एक पल के लिए उन्हें लगा की रतन उसके प्रेम पास में निश्चय ही आ जाएगा पर हुआ उसके विपरीत।

रात में सुगना की कोठरी से चीखने की आवाज आने लगी। सरयू सिंह और कजरी उनकी बातें सुनने लगे सुगना ने लगभग चीखते हुए कहा

"जब राउर मन ना रहे तो ब्याह काहे कइनी?"

"जाके चाचा से पूछा"

"हमरा मांग में सिंदूर तू भरले बाड़ा कि तहार चाचा" सुगना की आवाज में तल्खी आ रही थी।

"जब हमारा के आपन बहिन बनावे के रहे त गवना करावे कौना मुंह से आइल रहला हा?"

रतन निरुत्तर था.

कुछ ही देर में वाह दरवाजा खोल कर कमरे से बाहर चला गया. सरयू सिंह अपनी चादर के अंदर विदके हुए अपने फैसले पर पछता रहे थे। कामाग्नि में चल रही सुगना का यह व्यवहार सर्वथा उचित था।

कजरी सुगना के कमरे में जाकर उसे समझा रही थी। जब क्रोध की परिणीति अनुकूल परिणाम में तब्दील न हुयी तो सुगना का क्रोध क्रंदन में बदल गया वह रो रही थी । कजरी उसकी पीठ सहलाती रही पर सुगना की सिसकियां कम ना हुई।

दो दिन बाद रतन वापस मुंबई चला गया और सुगना अपनी जवानी लिए हुए बिस्तर पर तड़पती रह गयी। घर में मनहूसियत का माहौल था। सरयू सिंह और कजरी दोनों ही दुखी थे। सुगना सरयू सिंह से कोई बात नहीं करती थी। वह उनकी आहट से तुरंत ही दूर हो जाती। उसकी यह आदत कभी सरयू सिंह को सम्मानजनक लगती कभी नफरत भरी।

जब कभी सुगना घर में अकेले रहती, यदि सरयू सिंह खाना पानी मांगते तो सुगना उन्हें खाना तो दे देती पर एक लफ्ज़ न बोलती। सरयू सिंह बार-बार उसे सुगना बेटा सुगना बेटा कहते पर सुगना ने उनसे कोई बात नहीं की। कजरी सुगना को समझाती पर उसका दिल खट्टा हो चुका था।

सुगना को आए एक महीना बीत चुका था। कजरी की चूत कभी-कभी पनियाती उसका मन भी चुदवाने का करता। सुगना अपनी चूत का भविष्य सोच कर दुखी हो जाती। क्या वह कुवांरी ही रहेगी? सुगना जवान थी उसका हक था कि वह भगवान द्वारा बनाए गए इस अद्भुत सुख को भोगती पर सब बिखर गया था।

सुगना को अपनी सास से भी हमदर्दी थी आखिर उन्होंने भी अपनी जवानी बिना अपने पति के गुजारी थी. सुगना अपनी दुखियारी सास से करीब होती होती गई. उसने अपनी फूटी किस्मत के लिए उन्हें उत्तरदाई नहीं ठहराया पर सरयू सिंह को वह माफ न कर पा रही थी।

सरयू सिंह की उत्तेजना भी धूल चाट गई थी। जब भी वह प्यारी सुगना को देखते वह दुखी हो जाते। उनकी प्यारी बहू मानसिक कष्ट से गुजर रही थी वह उसे खुश करने का जी भर प्रयास करते पर सब व्यर्थ था। सुगना दिन पर दिन उदास रहने लगी। सरयू सिंह इस एक महीने में सुगना का चेहरा तक न देख पाए थे।

इन दिनों सुगना यदि किसी के साथ खुश होती तो वह थी लाली। वह हरिया की बड़ी लड़की जिसका विवाह हो चुका था और कुछ ही दिनों में गवना होने वाला था। लाली दोपहर में सुगना के पास आती और बार-बार सुगना से उसकी सुहागरात का अनुभव पूछती। यह जले पर नमक छिड़कने जैसा था पर सुगना जानती थी की इसमें लाली की कोई गलती नहीं थी।

हर लड़की का यह स्वाभाविक कौतूहल होता है। सुगना उसे उत्तेजक भाषा में समझाने का प्रयास करती पर वह वैसा ही होता जैसे कोई गांव का व्यक्ति स्विट्जरलैंड की खूबसूरती का वर्णन कर रहा हो।

आखिरकार होली के दिन घर में खुशियों ने दस्तक दी। कजरी और सरयू सिंह ने हमेशा से होली के त्यौहार को आनंद पूर्वक मनाया था। वैसे भी वह दोनों देवर भौजाई थे।

सुबह सुबह का वक्त था। सुगना अपने कमरे में सो रही थी। कजरी अभी-अभी मुंह हाथ धोकर आंगन में आई थी। सरयू सिंह ने कजरी को देखा और अपने हाथों में रंग लेकर कजरी पर कूद पड़े। हमेशा से पहले रंग लगाने की उन दोनों में होड़ लगी रहती थी। सरयू सिंह अपनी कजरी भाभी की चुचियों को रंग रहे थे। घर के आंगन में कजरी खिलखिला कर हंस रही थी। एक पल के लिए वह भूल गई थी कि सुगना घर में ही है।

कहते हैं उत्तेजना में इंसान बहक जाता है। कई दिनों बाद अपनी चूचियों पर सरयू सिंह के हाथ पाकर उसकी बुर पनिया गई। वह उसकी चुचियों को मीसते रहे
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तथा उनके होंठ कजरी के कानों और गालों पर अपने चुंबन बरसाते रहे। सरयू सिंह ने उसका पेटीकोट उठाना शुरू कर दिया। हाथों में लाल रंग लगा हुआ था। कजरी के गोरे शरीर पर सरयू सिंह के पंजों के निशान स्पष्ट दिखाई पड़ने लगे। सरयू सिंह ने नितंबों को भी नहीं छोड़ा। हथेलियों का पानी सूख चुका था पर उनकी उंगलियों ने कजरी की पनियायी बुर से पानी चुरा लिया। कजरी के गाल शर्म से और चूतड़ रंग से लाल हो गए।

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कजरी के खिलखिलाकर हँसने की वजह से सुगना जाग गयी थी। वह शांति पूर्वक दरवाजे की सुराग से आगन का दृश्य देखने लगी। कुदरत ने अनूठा संयोग बना दिया था।

सरयू सिंह की हथेलियों को अपनी सास कजरी के जांघों पर देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी। जितना आश्चर्य आंखों में था उतनी ही उत्तेजना उसके मन में जन्म ले रही थी। सरयू सिंह कजरी की बुर सहला रहे थे।

आंगन में चल रही ठंडी ठंडी बयार ने जब कजरी की पनियायी चूत को छुआ उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ। कजरी से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह अपनी कोठरी की तरफ जाने लगी। सरयू सिंह चुंबक की तरह उसके पीछे हो लिए। वहअपने लंड को लगातार उसके कूल्हों से सटे हुए थे।

सुगना के पैर कांप रहे थे। आज जो उसने देखा था उसने उसे हिला कर रख दिया था। कजरी और सरयू सिंह के कमरे में जाने के बाद वह चोरी छुपे आंगन में आ गयी।

कमरे के अंदर अंधेरा था पर इतना भी नहीं। सूर्य का प्रकाश स्वतः ही गांव के कमरों में प्रवेश कर जाता है आप चाह कर भी उसे नहीं रोक सकते। जिस तरह सूर्य का प्रकाश अंदर जा रहा था सुगना की निगाहें भी दरवाजे के पतले छेद से अंदर चली गयीं।

सुगना ने आज वह दृश्य देख लिया जिस दृश्य कि कभी वह कल्पना करती थी। कजरी और सरयू सिंह पूरी तरह नंगे हो चुके थे। सरयू सिंह का बलिष्ठ शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। चौड़ी छाती बड़ी बड़ी भुजाएं पतली कमर और मांसल जाँघे सुगना की आंखें बंद हो गयी। वह थरथर कांप रही थी।

सरयू सिंह का मजबूत और काला लंड सुगना की निगाहों के ठीक सामने था पर सुगना अपनी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी कुछ सांसे और लेकर उसने अपनी आंखें खोल दीं। सरयू सिंह अपने मजबूत और काले लंड को हथेलियों में लेकर सहला रहे थे। सुगना की आंखें अब उस पर अटक गई बाप रे बाप इतना बड़ा उसने आज के पहले पुरुष लिंग सिर्फ मासूम बच्चों का देखा था इतने विशाल लिंग की उसने कल्पना भी नहीं की थी।

होली और वासना में रंगे हुए सरयू सिंह और कजरी एक दूसरे के आलिंगन में लिपटे हुए एक दूसरे के होंठ चूसे जा रहे थे। सरयू सिंह से और बर्दाश्त ना हुआ। उन्होंने कजरी को अपनी गोद में उठा लिया। कजरी उनके आलिंगन में आ गई और अपनी दोनों जांघों को सरयू सिंह की कमर में लपेट लिया। सरयू सिंह की दोनों हथेलियों ने कजरी को नितंबों से पकड़ा हुआ था।

उनका लंड कभी कजरी की गांड पर कभी चूत पर छू रहा था। वह लगातार उसे चुम्मे जा रहे थे। सरयू सिंह ने अपने लंड को जैसे ही कजरी की चिपचिपी चूत पर महसूस किया उन्होंने कजरी के चूतड़ों को दिया हुआ अपनी हथेलियों का सहारा हटा दिया।
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कजरी अपने भार को नियंत्रित न कर पायी और नीचे आती गई। सरयू सिंह का मूसल अपनी ओखली में प्रवेश कर गया था। सुगना की सांसे तेज चल रही थी उसे अपनी जांघों के बीच की कुछ अजीब सी हलचल महसूस हो रही थी। चूचियों में मरोड़ हो रही थी।

वाह अपनी साड़ी के ऊपर से ही उसे छूने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह अब उसकी सासू मां को कस कर चोद रहे थे वह उन दोनों की चुदाई और न देख पायी और भागते हुए अपने कमरे में आ गयी।

वह अपनी किस्मत को कोस रही थी जिसने उसकी जवानी बर्बाद कर दी थी। कुछ ही देर में सरयू सिंह ने कजरी को बिस्तर पर पटक दिया और उसकी दोनों जाँघे फैलाकर उसे गचागच चोदने लगे। चारपाई के चर चर आवाज सुनाई दे रही थी। पर वह दोनों बेशर्मों की तरह चुदाई में लिप्त थे उस समय उन दोनों को अपनी बहू का ख्याल नहीं आया जिसे वो ब्याह कर तो ले आया था पर उसे उसकी किस्मत के भरोसे छोड़ दिया था।

उधर सुगना का कलेजा मुंह को आ रहा था पर कुवारी चूत बह रही थी। उसने अपना एक पैर चारपाई के नीचे कर लिया और चारपाई के बास को अपनी दोनों जाँघों के बीच ले लिया। बॉस पर रस्सियों की लिपटन ने उसे खुदरा बना दिया था।
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सुगना की चूत और उस बॉस के बीच सिर्फ उसका पेटीकोट और साड़ी थी। उसने अपनी चूत को उस बास पर रगड़ना शुरु कर दिया। कुछ ही पलों में उसकी जांघें तनने लगीं। सुगना अपनी ससुराल में आज पहली बार स्खलित हुई थी। वह हाफ रही थी। पर आज पहली बार उसके चेहरे पर सुकून और कुछ खुशी दिखाई दे रही थी। नियति मुस्कुरा रही थी ……

सुगना की होली हैप्पी होली हो चुकी थी।


शेष अगले भाग में
बहुत ही कामुक और गरमागरम अपडेट है कजरी की दमदार चूदाई हुई मजा आ गया
 
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सरयू सिंह को पंखा झलते झलते सुगना के कोमल हाथ दुखने लगे थे सरयू सिंह भी अपने सोच में डूबे खाना खाए जा रहे थे अचानक सुगना ने कहा

"बाऊजी का सोचा तानी"

"कुछु ना, तोहरा गवना के बाद के पहिलकी होली याद आ गईल रहे"

सुगना शर्म से लाल हो गई उसे इतनी शर्म तो तब भी नहीं आई थी जब वह कुछ देर पहले अपने ससुर से चूँची मीसवाकर दूध निकलवा रही थी।

सरयू सिंह थाली में हाथ धो रहे थे। सुगना ने अब और देर ना की उसने घुंघट और नीचे कर लिया था वह थाली लेकर आंगन में चली गई। बाहर हरिया की आवाज आ रही थी

"भैया घर ही रहब की चलब खेत ओरे"

"तू जा हम थाकल बानी"

सरयू सिंह सुगना का कोमल खेत अभी-अभी जोत कर ही उठे थे वह पूरी तरह थके हुए थे। ऊपर से सुगना के हाथों मीठा भोजन कर वह नींद की आगोश में चले गए पर उनके दिमाग से सुगना छायी हुयी थी। वह फिर सुगना की पहली होली की यादों में डूब गए।

जब परिवार खुशहाल रहता है तो वयस्क पुरुषों और महिलाओं में कामुकता स्वयं जन्म लेती है। सुगना के चेहरे पर उस दिन चमक थी। होली का दिन था ही उसे सुबह सुबह खुशियां मिल चुकी थीं। वह उठकर तैयार हुई भगवान को गुलाल चढ़ाने के पश्चात उसने सासू मां के पैर छुए और हाथ में अबीर लिए पहली बार सरयू सिंह के पास आयी।

उसने सरयू सिंह के भी पैर छुए। उसकी कोमल और गोरी बाहें सरयू सिंह की निगाहों में आ गयीं। बहु के कोमल उंगलियों के स्पर्श अपने पैरों पर महसूस करते वह भाव विभोर हो गए। आज कई दिनों बाद सुगना उनके करीब आई थी और उनके पैर छूये थे।

उन्होंने उसे जी भर कर आशीर्वाद दिया.. "हमेशा खुश रहा, दूधो नहाओ पूतो फलो. भगवान तोहरा के हमेशा खुश रखे"

उन्होनें आदर्श ससुर की तरह आशीर्वाद दे तो दिया पर उन्हें तुरंत ही वस्तुस्थिति का अंदाजा हो गया। उन्होंने अपनी नजरें झुका कर फिर कहा

"हो सके तो हमरा के माफ कर दिहा"

सरयू सिंह ने आखरी वाक्य कहकर सुगना की दुखती रग पर हाथ रख दिया. वह कुछ बोल नहीं पाई पर उसे एक बार फिर उसके दिल में दर्द का एहसास हुआ। वह वहां से चली गई । सुगना ने उनके करीब आकर अपनी नाराजगी कम होने का संकेत दे दिया था। सरयू सिंह को भगवान ने होली का उपहार सुगना की खुशी के रूप में दे दिया था।

सरयू सिंह सुगना से दिल से प्यार करते थे उस समय उनके मन मे वासना कतई नहीं थी। वह कल रात ही उसकी पसंद की मिठाई और कपड़े ले आए थे। उन्हें पता था सुगना उसे स्वीकार नहीं करेगी पर आज सुगना ने उनके चरण छुए थे उन्हें कुछ उम्मीद जगी थी। वह भागकर कजरी के पास गए और लाए हुए उपहार लेकर सुगना को पुकारा। सुगना चहकती हुई बाहर आ गयी।

"सुगना बेटा इ ला होली में तोहरा खातिर ले आइल बानी" सुगना ने हाथ बढ़ाकर सहर्ष उपहार स्वीकार कर लिया। सरयू सिंह बहुत खुश थे। सुगना अपनी पसंद की मिठाई और कपडे देखकर खुश हो गई। सरयू सिंह द्वारा लाई गई लहंगा चोली बेहद खूबसूरत थी। सुगना ने एक बार फिर सरयू सिंह के पैर छुए और बोली

"बाबूजी, हमरा के माफ कर द" सरयू सिंह की छाती चौड़ी हो गई उन्होंने कहा

"सुगना बाबू, बहू और बेटी एक जैसन होवेले, हम तोहरा के हमेशा खुश राखब। जौन तू चहबू उहे ई घर मे होई. हमार गलती के माफ कर दिह"

सुगना स्वतः ही सरयू सिंह से सटती चली गई। उसके कंधे सरयू सिंह के सीने से सट गई पर उसने अपनी चुची सरयू सिंह से दूर ही रखी। वह परिस्थितिजन्य बाबूजी थे यह बात वह जानती थी और अब से कुछ देर पहले कि वह उनका अद्भुत और कामुक रूप देख चुकी थी।

होली के 2 दिनों बाद हरिया की बड़ी बेटी लाली का गवना था। पड़ोस में त्यौहार जैसा माहौल था। सुनना के उजड़े जीवन में यह खुशी का मौका था। वह सज सवरकर नई बहू की तरह हरिया के घर जाती और लाली के गवना की तैयारी में मदद करती। लाली भी बेहद सुंदर थी पर सुगना तो सुगना थी।

गांव की सभी महिलाएं सुगना को छेड़ती। वह उनके सामने शर्माती पर अंदर ही अंदर दुखी हो जाति। उसके मन की वेदना बाहर वाले क्या समझते . इतनी खूबसूरत और जवानी से भरपूर सुगना की जांघों के बीच उसकी कोमल और रिस रही चूत मायूस पड़ी हुयीं अपने उद्धारकर्ता की तलाश कर रही थी।

सुगना की कद काठी देखकर आस-पड़ोस के लड़के जो रिश्ते में उसके देवर थे उसके आसपास मंडराते जरूर थे, वे अपनी आंखें भी सेंकते पर उसके करीब जा पाने की हिम्मत किसी में नहीं थी आखिर सरयू सिंह का साया सुगना के सर पर था वो उनके घर की बहू थी।

गाँव के बाहर पशु मेला लगा हुआ था। सरयू सिंह ने वहां से एक सुंदर सी बछिया खरीद लाई उनकी गाय अब बूढ़ी हो चली थी।

सुगना बछिया देखकर खुश हो गयी। सरयू सिंह ने सुगना की आंखों में चमक देख कर बड़े प्यार से कहा

"सुगना बेटा ई तहरे खातिर आइल बिया"

बछिया बहुत सुंदर थी. वह कुछ ही दिनों में बच्चा जनने योग्य हो जाती. बछिया और सुगना की दोस्ती हो चली थी. दालान में बाँधी हुई बछिया के पास जब सुगना जाती बछिया खुश हो जाती। सुगना अपने हाथों से उसे घास और चारा खिलाती और वह बछिया खुशी-खुशी मुह बा कर चारा सुगना के कोमल हाथों ले लेती। सुगना खुशी से उछलने लगती।

कजरी और सरयू सिंह दालान में बैठे हुए यह दृश्य देखकर मन ही मन प्रसन्न होते।

आज से कुछ दिनों पहले तक सुगना के चेहरे पर जो उदासी छाई थी अब वह दूर हो रही थी। सरयू और कजरी दोनों इस खुशी के माहौल में आराम से चुदाई करते। पर एक कसक अभी भी थी। आखिर सुगना का होगा क्या? क्या वह ऐसे ही अविवाहिताओं की तरह पूरा जीवन बिता देगी। रतन क्या उसे अपनाएगा? या हमें सुगना का दूसरा विवाह करना चाहिए?

यह बात सरयू सिंह बोल तो गए थे पर उन्हें पता था गांव के परिवेश में यह संभव नहीं था। सरयू सिंह का मन बेचैन हो उठा था अपनी यादों में हुई इस बेचैनी की वजह से उनकी नींद खुल गई और वह उठ कर बैठ गए।


पुरानी यादों से दूर आज उनका दिन बहुत अच्छा गया था। अपनी प्यारी बहू सुगना की चूत चोदने के बाद आज नींद भी अच्छी आई थी। आंगन से हँसने खिलखिलाने की आवाज आ रही थी। कजरी और सुगना का हंस हंस कर बात करना यह साबित कर रहा था कि सूरज के दूध न पीने की समस्या का अंत हो चुका है।

सुगना स्वयं भी अपनी चूची से दूध निकालने में महारत हासिल कर चुकी थी और उसकी मदद के लिए सरयू सिंह सदैव एक पैर पर तैयार थे।

बच्चे को जन्म देने के बाद सुगना को तेल की मसाज देने के लिए एक नाउन आया करती थी। वह सुगना के पूरे शरीर की तेलमालिश करती और उसके शरीर का कसाव वापस लाने का प्रयास करती। उसका विशेष ध्यान चूचियों, पेट ,पेड़ू और जाँघों तथा उनके जोड़ पर नियति द्वारा बनाई गई अद्भुत कलाकृति पर रहता जो बच्चे के जन्म से सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थी।

उस दिन वह नाउन नही आई थी। कजरी पर आज दोहरा भार आ गया था छोटे बच्चे सूरज को तो वह हमेशा से तेल लगाती थी पर आज उसे कजरी को भी तेल लगाना था।

कजरी सुगना को बहुत प्यार करती थी। सुगना उसकी बहू थी पर वह दोनों कभी सास बहू की तरह रहती कभी मां बेटी की तरह और कभी एक दूसरे की सहेली की तरह. वह दोनों एक दूसरे को समझने लगी थीं । सरयू सिंह को लेकर इन दोनों में कोई मतभेद या जलन नहीं थी अपितु वह दोनों एक दूसरे को सरयू सिंह के करीब आने का ज्यादा से ज्यादा मौका देतीं।

अपनी मालिश करने के बाद छोटा सूरज सो गया। कजरी बड़ी कटोरी में तेल दोबारा गर्म कर कर ले आई। सुगना ने अपनी साड़ी उतार दी थी। अब वह पेटीकोट और ब्लाउज में बेहद सुंदर दिखाई पढ़ रही थी.
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कजरी की निगाहों ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा. नाउन की मेहनत से सुगना का बदन वापस पहले जैसा हो गया था पर बच्चा जनने के बाद उसकी जांघें और चूचियां गदरा गई थी। कोमल बछिया अब गाय बन चुकी थी। पेट का हिस्सा भी पिचक गया था पर बच्चा जनने के बाद और पहले का अंतर अभी भी थोड़ा नजर आ रहा था। नियति ने पेट पर पतली लकीरों के रूप में अपना निशान छोड़ दिया था जो सुगना को हमेशा मां होने का एहसास दिलाता रहता.

सुगना की ब्लाउज और पेटीकोट अपेक्षाकृत नए थे। कजरी ने कहा

"बाबू सुगना एहू के उतार द नया बा नु तेल लाग जाई" कजरी ने सुगना के ब्लाउज और पेटीकोट की तरफ इशारा किया। सुगना हिचकिचा रही थी। पर उसकी आंखें कजरी से मिलने के बाद उसने बिना तर्क किए अपनी पीठ कजरी की तरफ कर दी। कजरी की उंगलियां उसके ब्लाउज के हुक से खेलने लगी और इसी दौरान सुगना का पेटीकोट जमीन पर आ गया निश्चय ही यह सुगना की उंगलियों का ही कमाल था। सुगना का मादक जिस्म कजरी की निगाहों के ठीक सामने था। कजरी ने सुगना को इसके पहले सिर्फ एक बार ही पूरा नंगा देखा था। उसने सुगना को माथे पर चूम लिया और कहा..

"कुंवर जी के हाथ लगला से हमार बहू, रानी के नियन लाग तारी। भगवान तोहरा के हमेशा खुश रखे" सुगना के प्रति सरयू सिंह की आसक्ति का कारण अब कजरी जान चुकी थी। सुगना सच बेहद खूबसूरत लग रही थी सीने पर बड़ी-बड़ी तनी हुयी चूचियां और गदराई हुई जांघों के जोड़ पर हल्के हल्के बाल और उसके पीछे झांक रही उसकी प्यारी बुर…. ओह…. कजरी सुगना की खूबसूरती में खो गई थी।

कजरी अपने बेटे रतन को कोस रही थी। जिसके भाग्य में इतनी सुंदर कली भगवान ने दी थी पर वह उसकी कदर न कर पाया था…..

कजरी ने सुगना को अपने आलिंगन में ले लिया और उसकी पीठ को सहलाते हुए उसने सुगना के कान में कहा..

"अब हम जान गईनी तोहर बाबूजी दिन भर काहें तोहरा आगे पीछे घुमेले" इतना कहकर कजरी में सुगना के कोमल नितंबों को अपनी हथेलियों से दबा दिया सुगना ने कजरी के गालों को चुम लिया और बोली

"सब आपेके कइल धइल हा"

कजरी ने सुगना को चौकी पर लेट जाने का इशारा किया सुगना पेट के बल लेट गई और कजरी ने मालिश शुरू कर दी।
पैरों और पीठ की मालिश करने के बाद कजरी उसके कोमल नितंबों की मालिश करने लगी। वह अपने दोनों हाथों से सुगना के चूतड़ों को फैलाती और छोड़ देती वह दोनों वापस अपनी जगह पर आते पर कुछ देर तक हिलते रहते। कजरी ने कटोरी का गर्म तेल सुगना की दोनों चूतड़ों के बीच डाल दिया जो बीच की दरार से होता है सुगना की गदरायी गांड तक पहुंच गया। उसकी कोमल चमड़ी पर उस गर्म तेल के स्पर्श से सुगना चिहुँक उठी। उसने कहा

" माँ पोछ ढेर गरम बा"

कजरी ने अपनी उंगलियों से उसे पोछने की कोशिश की पर आज वह शरारत के मूड में थी उसने सुगना की गांड में अपनी तर्जनी उंगली कुछ ज्यादा ही अंदर तक कर दी तेल लगे होने की वजह से तर्जनी का ऊपरी भाग सुगना की गांड में घुस गया वह ज्यादा अंदर तक तो नहीं गया पर निश्चय ही मांसल भाग के आखिरी किनारे तक पहुंच गया था। इसके पश्चात जाना कजरी की उंगलियों को गंदा कर सकता था। कजरी की सधी हुई उंगलियां अपनी मर्यादा में रहते हुए वापस आ गयीं पर उसकी इस क्रिया ने सुगना के मन में एक अजीब सी संवेदना पैदा कर दी। उंगलियां हटने के बाद भी ऊपर से आता हुआ तेल सुगना की गांड के अंदर जाने का प्रयास करने लगा एक बार फिर कजरी ने अपनी उंगलियां कुछ दूर अंदर तक ले जाकर उसे पोछने का प्रयास किया पर यह क्रिया तेल पोछने की कम सुगना को उत्तेजित करने की ज्यादा लग रही थी। कजरी की उंगलियों ने सुगना की गांड का फूलना पिचकना महसूस कर लिया था। सुगना की सांसे अब तेज चल रही थीं।

वह कुछ बोल नहीं रही थी पर उसकी सासू मां कजरी अपनी बहू को जानती थी। एक बार फिर कटोरी का गर्म तेल सुगना के चूतड़ों पर गिर रहा था कुछ देर सुगना की गांड को सहलाने के बाद कजरी की उंगलियां स्वता ही नीचे चली गई सुगना की बुर से रिस आया मदन रस कजरी की उंगलियों में चासनी की भांति लग गया। कजरी ने अपने अंगूठे और तर्जनी से सुगना के प्रेम रस की सांद्रता को नापना चाहा। दोनों उंगलियों के बीच सुगना का प्रेम रस चासनी की बात सटा हुआ था उसका चिपचिपा पन निश्चय ही कुंवर जी के लंड को अपने भीतर समाहित करने के लिए आवश्यक था। कजरी मन ही मन उत्तेजित हो रही थी उसने कहा.

"लागा ता तू अपना बाबूजी के याद कर तारू" सुगना शर्मा गई उसने अपनी गांड को पूरी तरह से सिकोड़ लिया और जांघों को आपस में सटा लिया एक पल के लिए कजरी की उंगलियां उन कोमल दरारों के फसी गई।

सुगना अब पीठ के बल आ चुकी थी। सुगना की गोरी और मखमली चूत अब कजरी के ठीक सामने थी और प्रेम रस से पूरी तरह भीग कर चमक रही थी।
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जिस तरह गुलाब की पंखुड़ियों पर ओस की बूंदे दिखाई पड़ती है उसी तरह सुगना की चूत के होंठो पर पर प्रेम रस की छोटी-छोटी बूंदे दिखाई पड़ रही थी। दिए रूपी बुर के निचले भाग से मदन रस चूने को तैयार था। उत्तेजनावश बुर की फांके फुल कर अलग हो गई थी और छोटे बालक सूरज का जन्म स्थान दिखाई पड़ने लगा था।

सुगना के उस सुनहरे छेद को देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था की उसने कुछ दिनों पहले उसी छेद से एक बच्चे को जन्म दिया हुआ था। आज सुगना की वही चूत कजरी की उंगली के लिए भी दबाव बनाये हुए थी।

सुगना के लिए अब अपनी उत्तेजना छुप पाना कठिन हो रहा था। कजरी की हथेलियां अब सुगना की जांघों की मसाज कर रही थी। जैसे ही उसकी उंगलियां सुगना की चूत से सटती सुगना की सांसे तेज हो जाती। वह कजरी के हाथ पकड़ने की कोशिश करती। कजरी अब मूड में आ चुकी थी। उसने उसकी नाभि के आसपास भी तेल लगाया और अब सीधा उसकी चुचियों पर आ गई।

हाथों से उसकी चुचियों को मीसते हुए उसने सुगना से पूछा

"अब दूध त भरपूर होला ना?"

" हां मां"

" तब बाप बेटा बेटा दोनों पियत होइहें?"

"सुगना मुस्कुरा रही थी"

उसने फिर पूछा

"अच्छा के ढेर पीयेला"

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी उसने अपने हाथ से सरयू सिंह का लंड बनाने की कोशिश की. अपनी दाहिने हाथ की हथेलियों को मुट्ठी का रूप दिया और बाएं हाथ की हथेली से अपनी कोहनी के ऊपर का भाग पकड़ लिया और कजरी को दिखाते हुए कहा

" इहे ढेर पीएले …राउर.. कुँवर जी"

कजरी भी हंस पड़ी तभी सरयू सिंह की आवाज आई…

"अरे उ मुखिया के यहां जाए के रहे नु. जा ना तुही परसादी लेले आव।"

"हम रहुआ बाबू के तेल लगाव तानी"

सुगना आश्चर्य से कजरी की तरफ देख रही थी कजरी ने सुगना को बाबू कह कर पुकारा था।

सरयू सिंह ने कहा

"तू चल जा बाबू के तेल हम लगा देब ओसहूं हम नहाए जा तानी"

"ठीक बा हम जा तानी।. जल्दी आयी ना त राउर बाबू के ठंडा मार दी कपड़ा नइखे पहिनले।


इतना कहकर कजरी ने सोते हुए सूरज को अपनी गोद में उठाया और पड़ोस में मुखिया के घर प्रसाद लेने चली गई। सुगना मुस्कुरा रही थी उसकी सासू मां कजरी ने मन ही मन कुछ और सोच रखा था जो अब सुगना को तो समझ आ चुका था । सुगना ने अपने ऊपर चादर डाल ली और अपने बाबूजी का इंतजार करने लगी…
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Chapter 7
चौकी पर लेटी हुई नंगी सुगना की सांसे तेज चल रहीं थीं। कजरी ने उसके शरीर की मालिश करते हुए उसे उत्तेजित कर दिया था। बस अंदरूनी मालिश बच गई थी जो सरयू सिंह के अद्भुत और मजबूत लंड से ही होनी थी. सुगना अपनी कोमल बुर में प्रेम रस भरे हुए अपने बाबूजी का इंतजार कर रही थी…

अपनी उत्तेजना को कायम रखने के लिए अपनी कोमल बुर को सहलाते हुए अपनी पुरानी यादों मे खो गयी….

सरयू सिंह द्वारा लाई गई बछिया के साथ खेलते खेलते सुगना अपने दर्द भूल गयी थी। उसका दिन बछिया के सहारे बीत जाता और रात को वह कजरी और सरयू सिंह का मिलन याद कर उत्तेजित हो जाती और अपनी बूर को चारपाई के बांस पर रगड़ कर वह स्खलित हो जाती।

पर जब भी वह सरयू सिंह के जादुई लंड को याद करती वह सिहर उठती। जैसे जैसे वो उत्तेजित होती वह लंड उसे अपने बेहद करीब महसूस होता। कभी वह अपने ख्यालों में उसे छूती कभी अपने कूल्हों और जाँघों से सटा हुआ महसूस करती। सुगना उस समय एक अधखिली कली की तरह थी जो शासकीय तौर पर जवान हो चुकी थी पर इतनी भी नही के सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और कामुक मर्द की उत्तेजना झेल सके।
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वह सरयू सिंह के लंड के बारे में सोच कर अपनी बुर की प्यास तो वो मिटा लेती पर मन ही मन खुद को कोसती. वो आखिर उसकी पिता के उम्र के थे.

यह गलत है….. यह गलत है….. उसकी अंतरात्मा चीख चीख कर यह बात उसको समझाती पर उसकी चूत की मनोदशा ठीक उलट थी जो इन सब रिश्तों से दूर अब चुदने के लिए बेचैन हो रही थी।

एक दिन सुगना और कजरी दालान में बैठकर मटर छील रही थीं। सरयू सिंह अपनी गाय को नहला रहे थे। बाल्टी और मग्गे से उन्होंने गाय के पूरे शरीर को धोया वो एक साबुन की बट्टी भी ले आये थे। गर्म धूप में गाय को वह स्नान अच्छा लग रहा था। बछिया भी अपनी बारी का इंतजार कर रही थी।

सुगना उत्साहित थी जैसे ही गाय का नहाना खत्म हुआ उसने कहा

"बाबूजी हमरो बछिया के"

सरयू सिंह हंसने लगे और एक बाल्टी पानी लेकर वापस उस बछिया के पास आ गए। सुगना खुश हो गई। वह उस बछिया को धोने लगे। अचानक उनके हाथ बछिया के पेट पर चले गए वह उसके पेट की सफाई करते करते उस बछिया के स्तनों को भी साफ करने लगे। सुगना सिहर उठी। घूंघट के अंदर उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।

वह सरयू सिंह की मजबूत हथेलियों को उस बछिया की चूचियों को धुलते देखकर स्वयं गनगना गई थी। उसे एक पल के लिए ऐसा महसूस हुआ जैसे सरयू सिंह के हाथ उसकी ही चूचियों पर हैं। वाह भाव विभोर होकर वह दृश्य देख रही थी।

कजरी ने कहा "बेटी जल्दी-जल्दी छील" सुगना की उंगलियां फिर चलने लगी पर उसकी कजरारी आंखें अभी भी सरयू सिंह की हथेलियों पर थीं। सरयू सिंह ने बछिया के स्तनों पर लगे छोटे-छोटे कीड़ों को हटाना शुरू किया। ( गांव में अक्सर मवेशियों के स्तनों में छोटे-छोटे कीड़े चिपक जाते हैं) सरयू सिंह अपने हाथों से वह निकालने लगे बीच-बीच में वह बछिया के स्तनों को सहला देते। उसकी चूचियों पर हाथ पढ़ते ही सुगना से बर्दाश्त ना होता उसे अब उसे अपनी जांघों के बीच गजब गीलापन महसूस हो रहा था।

बछिया को धोते समय सरयू सिंह ने सुगना की तरफ देखा ताकि वह उसकी प्रतिक्रिया देख सकें पर सुगना ने शर्म से अपना सर झुका लिया।

कजरी की उपस्थिति में वह अपनी बुर को छू भी नहीं सकती थी और न ही अपनी चूचियों को सहला सकती थी। वह उत्तेजना से भर चुकी थी और जल्द से जल्द वहां से हटना चाहती थी। उसने कजरी से अनुमति मांगी और भागकर गुसलखाने में चली गई।

जब वह मूतने के लिए नीचे बैठी, उसकी बुर से रिस रही चिपचिपी लार जमीन पर छू गयी।
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सुगना की उंगलियां अपनी बुर के दाने पर चली गयीं। उत्तेजना में मूत पाना उसके लिए संभव नहीं हो रहा था।

उसने अपने दाने को मसलना शुरू किया। सुगना की जाँघें तन गयीं। वह कभी अपनी जांघों को आपस में सटाती कभी दूर करती, कभी अपने कोमल नितंबों को ऊपर करती। वह तड़प रही थी उसकी कुवांरी चूत पानी छोड़ने लगी उत्तेजना धीमी पड़ते ही मूत्र की तेज धार भी बाहर आ गई। सुगना तृप्त हो गई थी। आज उसकी कामुकता में एक नया अनुभव जुड़ गया था।

सुगना के कोमल मन में सरयू सिंह की छवि धीरे-धीरे बदल रही थी। वह उनके प्रति आकर्षित हो रही थी। उसे भी यह बात पता थी कि सरयू सिंह उसके पिता तुल्य थे और ससुर थे। पर वह एक बलिष्ठ और दमदार मर्द थे इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता था। सुगना को वह पसंद आने लगे थे। पर क्या वह अपने शरीर को उन्हें छूने देगी? जब वह सोचती वह शर्म से पानी पानी हो जाती पर जब एक बार उसके मन में यह विचार आ गया तो वह इस बारे में बार-बार सोचने लगी. जितना ही वह सोचती उतना ही वह उनके प्रति आसक्त होती. यह अद्भुत अनुभव था।

अपने ससुर को अपनी कल्पना में रख उसने कई बार अपनी चूत को सहलाया और मन ही मन उनके उस विशालकाय लंड को छूने और अपनी चूत पर रगड़ने के लिए खुद को तैयार किया। उसे अपनी चूत के अंदर ले पाना अभी भी उसकी कल्पना से परे था। सरयू सिंह का मूसल खलबट्टे के लायक था और सुगना की चूत अभी अदरख कूटने वाली ओखली के जैसे छोटी थी। इन सब के बावजूद सुगना अपनी कल्पनाओं में धीरे-धीरे सरयू सिंह के नजदीक आ रही थी।

सुगना को इस घर मे आये कई दिन बीत चुके थे पर सरयू सिंह अब तक सुगना का चेहरा नहीं देख पाए थे। घूंघट होने की वजह से चेहरा देखना संभव नहीं था न ही उन्होंने अपनी तरफ से कोई प्रयास किया था । वैसे भी सरयू सिंह के मन में उस समय तक सुगना के प्रति कोई कामुक भावनाएं नहीं थी। वह अपनी आत्मग्लानि से उबर रहे थे और सुगना को भरसक खुश करने का प्रयास कर रहे थे।

समय तेजी से बीत रहा था।उधर नियति उन्हें करीब लाने की साजिश रच रही थी। उस दिन बड़ी वाली गाय रंभा रही थी। उसकी योनि से चिकना द्रव्य बह रहा था। कजरी और सरयू सिंह बाहर टहल रहे थे। कजरी ने कहा

"लागा ता टाइम हो गइल बा जाइं ना भुवरा के बोल दी सांडवा के लेले आयी।" भूवरा पास के गांव का ही एक व्यक्ति था जिसने एक बलशाली सांड पाला हुआ था वही आसपास की सभी गायों को गर्भवती करने के काम आता था।

शाम तक भूवरा सांड लेकर दरवाजे पर आ चुका था। कजरी, सरयू सिंह और हरिया बाहर ही थे बाहर की गहमागहमी देखकर सुगना भी अपनी कोठरी से खिड़की खोल कर बाहर के दृश्य देखने लगी।

सांड निश्चय ही बेहद बलिष्ठ और मजबूत था। कुछ ही देर में सांड को गाय के पास लाया गया। बगल में बछिया भी टुकुर टुकुर देख रही थी। उसकी जवानी फूटने में ज्यादा वक्त नहीं था बस कुछ ही दिनों की बात थी ।

वह सांड बार-बार बछिया की तरफ ही आकर्षित हो रहा था। हरिया और सरयू सिंह उसे खींचकर गाय की तरफ लाते पर वह अपनी ताकत से वापस बछिया की तरफ चला जाता। सांड बार बार अपना चेहरा बछिया के पिछले भाग की तरफ ले जाता और उसे सूंघने का प्रयास करता।

कजरी यह देख कर मुस्कुरा रही थी। वह शर्माकर वहां से हट गई और दालान में आकर बैठ गयी। उधर कोठरी के अंदर सुगना सिहर रही थी। वह यह दृश्य अपने बचपन मे भी देख चुकी थी पर आज अलग बात थी। आज वह बलिष्ठ सांड उसकी बछिया के साथ मिलन का प्रयास कर रहा था। सुगना की खुद की चूत संभोग के लिए आतुर थी। उसने स्वयं को बछिया की जगह रख कर सोचना शुरू कर दिया था। उसकी कल्पना में सांड की जगह सरयू सिंह दिखाई पड़ने लगे और उस गाय की जगह उसकी अपनी सास कजरी।

सुगना अपनी सोच पर मुस्कुराई पर उसकी मुस्कुराहट पर उसकी उत्तेजना भारी थी। वह सांसे रोक कर यह दृश्य देख रही थी पर उसकी धड़कन तेज थी। उसने अपनी जाँघे आपस में सटाई हुई थी जैसे वह अपनी चूत से बह रहे मदन रस को वही रोके रखना चाहती हो।

सरयू सिंह सांड को खींच कर गाय की तरफ ले जाते पर वह बार-बार बछिया के पीछे जा रहा था और उछलकर उस पर चढ़ने का प्रयास करता। हरिया के कहा

"सार, इनको के नइकी माल चाहीं"

सरयू सिंह मुस्कुरा दिये। उधर सुगना अपनी जाँघों के बीच बहते मदन रस को अपने पेटीकोट से पोछ रही थी। उसे यह तो पता था की जानवरों में भी संभोग उसी प्रकार होता है जैसा मनुष्यों में पर क्या भावनाएं भी उसी प्रकार होंगी। क्या बाउजी भी उसके बारे में ऐसा सोचते होंगे?

उसे अपनी सोच पर शर्म आयी पर चूत तो विद्रोही हो चुकी थी। वह इस सोच पर सिहरने लगी। सुगना अपनी कोमल हथेलियों से अपनी बुर को मुट्ठी में भरकर अपनी उत्तेजना को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी।

हरिया ने बछिया को वहां से हटा दिया। सांड के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था। वह कुछ देर इधर-उधर देखता रहा और फिर गाय के ऊपर चढ़ गया। सुगना एक पल के लिए उस सांड के लिंग को देख पायी। सुगना की भावनाओं में सरयू सिंह एक बार फिर कजरी को ही चोद रहे थे सुगना और उसकी बछिया को को शायद अभी और इंतजार करना था….

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परन्तु आज सुगना का इंतजार खत्म हो चुका था सरयू सिंह के कदमों की आहट सुगना सुन पा रही थी। जैसे-जैसे उनके कदम करीब आ रहे थे सुगना की सांसे रुक रही थी पर उसकी कोमल चूत मुस्कुराने लगी थी

दरअसल सरयू सिंह नहाने ही जा रहे थे तब तक उन्हें मुखिया के घर हो रही पूजा का ध्यान आ गया था। वह अपनी लंगोट उतार चुके थे कजरी के कहने पर वह अपने सूरज बाबू को तेल लगाने के लिए उन्हीने वापस अपनी कमर में धोती लपेटी और सुगना के रूम में प्रवेश कर गए। चौकी पर सुगना लेटी हुई थी और चारपाई खाली थी छोटा बाबू हमेशा चारपाई पर ही सोता था उन्होंने पुकारा….

"सुगना बेटा…."

सुगना ने कोई उत्तर नहीं दिया.

"सुगना बेटा…." इस बार आवाज और भी मीठी थी पर सुगना ने फिर भी कोई उत्तर न दिया परंतु उसके होठों पर मुस्कान आ चुकी थी।

वो सुगना की चादर धीरे-धीरे खींचने लगे। जैसे-जैसे चादर हटती गयी सुगना का तेल से भीगा हुआ कोमल और सुंदर शरीर सरयू सिंह की निगाहों के सामने आता गया एक पल के लिए ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह खजुराहो की किसी मूर्ति का अनावरण कर रहे हों।

अपनी नग्न चूत का एहसास जब सुगना को हुआ उसने अपनी जाँघे एक दूसरे पर चढ़ा लीं और अपनी अध खुली आंखों से अपने बाबू जी को देखने लगी। उन आखों ने आज सरयू सिंह की धोती को उठते हुए देख लिया। धोती के अंदर छुपी हुई अनुपम कलाकृति अपना आकार बड़ा रही थी।

अपनी जान से प्यारी बहू को इस अवस्था में देखकर सरयू सिंह अपनी उत्तेजना को काबू में ना रख पाए और लंगोट न पहने होने की वजह से उनका लंड खुलकर सामने आ गया.

सरयू सिंह सुगना की आंखों में वासना देख चुके थे उनकी खुद की आंखें अब लाल हो चुकी थी सूरज कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा था। सुगना को इस हाल में देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न था। वह खुशी को काबू में नहीं रख पा रहे थे फिर भी उन्होंने सुगना से पूछा

"भवजी कहत रहली बाबू के तेल लगावे के, कहां बा? लाव लगा दी."

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी. उसने इतराते हुए कहा

"उ का तेल धइल बा लगा दीं?"

"लेकिन बाबू कहां बा?"

"हम राउर बाबू ना हईं? सासू मां हमरे के तेल लगावत रहली हा रउआ उनका के भेज देनी हां. उ सूरज के लेके पूजा में चल गइली"

सुगना ने यह बात बड़ी मासूमियत से कह दी पर उसकी मासूमियत ने सरयू सिंह के लंड को उछलने पर मजबूर कर दिया। सरयू सिंह से अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था वह चौकी पर आ गए। धोती जाने कब उनके शरीर से अलग हो चुकी थी।

पास पड़ी हुई तेल की कटोरी में रखा हुआ तेल अब ठंडा हो चुका था उन्होंने सुगना से पूछा

"बाबू तेलवा गर्म कर दीं?"

"जइसन राउर मन" सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा। शरीर सिंह तेल की कटोरी लेकर रसोई घर की तरफ गए अपनी खुशी में वह इतने उत्तेजित हो गए थे धोती पहनना भूल गए। सुगना चलते समय उनके हिलते हुए लंड को देख रही थी। वह मन ही मन मुस्कुरा रही थी। वह यह बात जानती थी कि उसे नंगा देखने के पश्चात सरयू सिंह के शरीर का सारा लहूं उनके लंड में समा जाता था और दिमाग सुस्त हो जाता था. कुछ ही देर में सरयू सिंह गर्म तेल लेकर सुगना के पास आ चुके थे।

वह अपने विशाल मर्दाना शरीर को लेकर चौकी पर पालथी मारकर पद्मासन में बैठ गए और पदमा की पुत्री सुगना को अपनी गोद में आने का न्योता दे दिया। उनका खड़ा लंड ऊपर की ओर मुह करके अपनी प्यारी बुर इंतजार कर रहा था।

सुगना के पास आते ही उन्होंने सुगना को अपनी गोद में बैठा लिया ठीक उसी तरह जैसे होलिका ने प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाया हुआ था पर यहां परिस्थितियां उल्टी थीं सरयू सिंह के विशाल शरीर के बीच में छोटी सुगना भी उनकी गोद मे पालथी मारकर बैठ चुकी थी। सुगना ने बड़ी ही खूबसूरती से सरयू सिंह के काले और मजबूत लंड को अपनी दोनों गोरी जांघों के बीच से बाहर निकाल लिया था। सरयू सिंह ने सुगना का वजन अपनी जांघों पर लिया हुआ था।

सरयू सिंह ने पास पड़ी कटोरी से तेल अपनी हथेलियों में लिया और सुगना की पेट पर मलने लगे। सुगना की नाभि को तेल से सराबोर कर उन्होंने अपनी उंगली से उसे गुदगुदाया एक पल के लिए उन्हें नाभि का वह छेद सुगना की कोमल गांड के जैसा महसूस हुआ। जाने सरजू सिंह के लंड में इतनी संवेदना कहां कहां से आती थी वह उस सोच से तुरंत ही उछल गया जिसका एहसास सुगना और उसकी चूत को बखूबी हुआ जो खड़े लंड से सटी हुई थी।

उनकी एक हथेली ऊपर की तरफ बढ़ती गई और दूसरी नीचे की तरफ। सरयू सिंह की दाहिनी हथेली ने सुगना की चूची को पकड़ लिया पर अब सुगना की चूचियां बड़ी हो चली थी। सरयू सिंह को उसे अपनी हथेलियों में भरने में मशक्कत करनी पड़ रही थी। वह अपनी उंगलियों से उसे काबू में करने की कोशिश करते पर वह छलक कर दूसरी तरफ निकल जाती। कजरी द्वारा चुचीयों पर लगाया हुआ तेल उनकी परेशानी और बढ़ा रहा था। सुगना मुस्कुरा रही थी। सरयू सिंह उसका चेहरा नहीं देख पा रहे थे पर वह सुगना के शरीर की सिहरन को महसूस जरूर कर पा रहे थे। उनकी बायीं हथेली अब सुगना की जांघों के बीच में उसकी बूर को छूने का प्रयास कर रही थी। सुगना अपनी जांघों को सिकोड नहीं पा रही थी पर अपनी बुर को स्वयं अपनी हथेलियों से और अपने बाबूजी के लंड के सहारे ढकी हुई थी। सरयू सिंह की हथेलियां सुगना के कोमल हाथों को हटाने का प्रयास कर रही थीं पर सुगना अभी अपने बाबू जी को वह सुख नहीं देना चाह रही थी।

सरयू सिंह ने जिद नहीं की और वह उसकी जांघों का मसाज करने लगे। कुछ देर जाँघों से खेलने के बाद उन्होंने अपने दोनों हाथ सुगना की चूचियों पर ले आये। अपने दोनों हाथों के प्रयोग से उन्होंने सुगना की चुचियों पर काबू पा लिया और वह प्यार से मीसने लगे

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सुगना की मादकता भरी कराह सुनायी दे गयी।

"बाबूजी तनि धीरे से…...दुखाता" उसकी बात खत्म होने से पहले ही चुचियों से धार फूट पड़ी।
खुशियों से निकली हुई दूध की धार जांघों पर गिर रही थी सरयू सिंह ने सुगना का दूध बर्बाद करना उचित नहीं समझा उन्होंने चुचियों को मीसना छोड़ उन्हें सहलाना शुरु कर दिया।

इधर सुगना के हाथ अपनी चूत को छोड़ सरयू सिंह के लंड पर आ गए। वह उसकी जांघों के बीच से निकल कर अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था। हाथों में लगा हुआ तेल और सुगना की बुर से रिसा हुआ चिपचिपा प्रेम रस दोनों का प्रयोग कर सुगना ने लंड के सुपारे को मसल दिया। जितनी कोमलता से उसके बाबूजी उसकी चूचियां सहला रहे थे उसी कोमलता से सुगना उनके लंड को सहलाने लगी।

सरयू सिंह बेहद उत्तेजित हो गए। उन्होंने एक बार फिर ना चाहते हुए भी सुगना की चूचियां मसल दीं। सुगना जैसे-जैसे उनके लंड को सहलाये जा रही थी वो मदहोश हुए जा रहे थे। वह सुगना को लगातार गर्दन और कानों पर चूमे जा रहे थे। उनकी धड़कन तेज हो चुकी थीं। सुगना स्वयं भी पूरी तरह चुदने के लिए तैयार थी।

अचानक सुगना ने उनकी गोद से उठकर अपनी अवस्था बदल ली। अब वह अपने बाबूजी की तरफ चेहरा करके एक बार फिर वापस गोद में बैठ गयी। उसने अपने दोनों घुटने सरयू सिंह की कमर के दोनो तरफ कर लिए। नीचे बैठते समय एक पल के लिए उसे लगा कि लंड सीधा उसके बुर में प्रवेश कर जाएगा पर उसने अपने हाथों का प्रयोग कर लंड को अपने और अपने बाबूजी के पेट के बीच में व्यवस्थित कर दिया और उनकी मजबूत जांघों पर बैठ गई।

उसकी चूचियां अब सरयू सिंह के सीने में समा जाने को आतुर थीं सरयू सिंह उसे अपने आलिंगन में ले चुके थे और अपनी तरफ तेजी से खींचे हुए थे। सुगना की चुची बड़ी पावरोटी की तरह हो गई थी। पर निप्पल सरयू सिंह के सीने में अपनी उपस्थिति और प्रतिरोध दोनों दर्ज करा रहे थे।

ससुर और बहू की आंखें मिलते ही दोनों ने एक दूसरे की मनोदशा पढ़ ली। होंठ स्वतः ही मिलते चले गए। अब शर्म की गुंजाइश न थी। सरयू सिंह की बड़ी हथेलियां सुगना के चूतड़ों को सहलाने लगीं। वह उनसे सुगना को सहारा भी दिए हुए थे।

सरयू सिंह की मूछें सुगना के कोमल होठों में चुभ रही थीं। वह ज्यादा देर तक उन्हें न चूम पाई पर उसने बाबूजी को खुश करने की ठान ली थी वह बोली

"लायीं, आपोके तेल लगा दीं"

बिना उत्तर का इंतजार किए शुगना ने कटोरी से ढेर सारा तेरे हाथों में लिया और अपने बाबूजी की पीठ पर मलने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी विशाल प्रदेश पर छोटी-छोटी हथेलियां घूम रही हों। जैसे-जैसे वो उनकी पीठ पर अपनी हथेलियां फिराती उसे सरयू सिंह की दमदार मर्दानगी का एहसास होता। वह उनके बलिष्ठ शरीर की कायल शुरू से रही थी और आज अपने कोमल हाथों से उनकी मालिश कर वह भाव विभोर हो गयी। वह अपने दोनों घुटनों का सहारा लेकर थोड़ा ऊपर उठ गयी और अपने सिर को उनके कंधे के पीछे ले जाकर उनकी पीठ को मालिश करने लगी।

इस दौरान उसकी एक चुचीं सरयू सिंह के होंठों के ठीक सामने थी। उन्होंने बिना देर किए उसे मुह में ले लिया और चूसने लगे
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उसके गोल और कोमल चूतड़ ऊपर उठ गए थे। सुगना की फूली और रिस रही चूत सरयू सिंह की नाभि तक आ चुकी थी। सरयू सिंह का लंड कभी उससे छू जाता कभी उससे दूर हो जाता। सरयू सिंह ने एक बार फिर अपनी हथेलियां तेल में डूबा लीं और सुगना बाबू के चूतड़ों को सहलाने लगे। उनकी उंगलियों ने सुगना की दरार में अपनी पसंदीदा जगह खोज ली तेल में डूबे होने की वजह से वो सुगना की गांड में उतनी ही दूर तक सफर कर पाई जितना रास्ता उसकी सास कजरी ने बनाया था। तेल की मात्रा अभी भी सुगना की गांड के अंदरूनी भाग पर उपलब्ध था। सरयू सिंह की मोटी तर्जनी सुगना की गांड के छेद को सहला रही थी। सुगना अपनी गांड को कभी सिकोडती कभी फैलाती वह आनंद में डूब चुकी थी उत्तेजना चरम पर थी। सरयू सिंह आज खुद आश्चर्यचकित थे। आज सुगना ने उनकी उंगलियों को हट जाने का न तो इशारा किया था न हीं अपनी तिरछी निगाहों से आपत्ति दर्ज की थी।

सरयू सिंह का लंड ससुर बहू के उत्तेजक क्रियाकलापों से परेशान हो चुका था उसे तो सिर्फ सुगना के बुर की रजाई ओढ़ कर उछल कूद करनी थी पर उसकी बारी आ ही नहीं रही थी। वह उछल उछल कर सुगना के बुर को चूमने का प्रयास जरूर कर रहा था

कहते हैं उत्तेजना में शरीर के अंग दिमाग का साथ न देकर कामुक अंगो का ही साथ देते हैं। सुगना की गांड से खेलते खेलते सरयू सिंह की उंगलियां कुछ ज्यादा अंदर तक प्रवेश कर गयीं। सुगना चिहुँक गयी और बोली

" बाबूजी तनी धीरे से ……….दुखाता"

सुगना अनियंत्रित हो गई और उसने वापस उनकी गोद में बैठने का प्रयास किया पर सुगना से एक गलती हो गई वो लंड को अपने और अपने बाबूजी के पेट में के बीच करना भूल गई। जैसे ही वह उनकी गोद में बैठी लंड गप्पपप्पप्प से उसकी बुर के अंदर प्रवेश कर गया। जब तक वह संभल पाती तब तक आधे से ज्यादा लंड भीतर हो चुका था। जब तक सुगना आगे की गतिविधि के बारे में सोचती सरयू सिंह में उसे और नीचे खींच लिया। लंड सुगना के गर्भाशय से टकरा रहा था पर फिर भी अभी गुंजाइश बाकी थी।

सरयू सिंह जब अपनी जांघें ऊपर उठाते सुगना ऊपर की तरफ आती और लंड बाहर निकल आता पर उसका मुखड़ा चुत से सटा रहता और जैसे ही वह अपनी जाँघे फैलाते सुगना नीचे आती और लंड गप्पपपप से एक बार फिर सुगना की गर्भाशय को चूमने लगता। सरयू सिंह का लंड अब खुश हो गया था उसका खेल चालू हो गया था सुगना की चूत भी मुस्कुरा रही थी।

सरयू सिंह अभी भी अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे थे उनकी उंगलियां अभी भी सुगना की गांड से खेल रही थी पर अब सुगना को कोई आपत्ति नहीं थी वह उस का आनंद ले रही थी उसी दौरान सुगना की निगाह अपने बाबू जी से टकरा गयी उनकी उंगली सुगना की गांड में फंसी हुई थी सुगना ने उनके होंठ चूम लिये जैसे वह उनकी इस गतिविधि को सहर्ष स्वीकार कर रही हो सरयू सिंह खुश हो गए। सुगना के इशारे पर वह चौकी पर पीठ के बल लेट गए।

सुगना अभी भी उनके लंड पर बैठी हुई थी उनके पैर सीधे हो गए अब प्रेमरथ को खींचने की सारी जिम्मेदारी सुगना के ऊपर आ चुकी थी। वह अपनी कमर को तेजी से हिलाने लगी। उसकी चूचियां सरयू सिंह की आंखों के ठीक सामने थीं। जिन सूचियों को शरीर सिंह ने अपने हाथों से बड़ा किया था वह चलकर उन्हें ललचा रही थी। सरयू सिंह इतनी मादक अवस्था में सुगना को देखकर अपना होश खो बैठे उन्होंने अपनी गर्दन उठाई और सुगना की दाहिनी चूँची को लेकर लगभग पीने लगे। दूध की धार फूट पड़ी पर वह लगातार उसे पीते रहे।
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सुगना भी इतनी उत्तेजना बर्दाश्त न कर पायी उसकी चूत कांपने लगी। उसके चेहरे पर तरह-तरह के भाव आ रहे थे तभी वह अपने होठों को दांतों से काटती कभी आंखें बड़ी कर लेती कभी सिकोड लेती... सरयू सिंह ने उसी अवस्था में उसकी कमर पर अपनी हथेलियां रखते हुए उसे अपनी तरफ खींच लिया और अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगे। सुगना की थरथराहट और बढ़ती गई बाबूजी……. बाबूजी…….आ……..ईईईई………..बा…..बु……..अअअअअअअ…... हहहहहह…..सुगना मादक कराह निकालते हुए वह स्खलित हो गयी। ससुर जी ने अभी भी अपनी रफ्तार कम न की और अपने लंड को उसके गर्भाशय के मुख तक पहुचा कर अपनी वीर्य धारा छोड़ दी।

सुगना अपने अंदर हो रही इस वर्षा को महसूस किया लंड का फूलना पिचकना उसकी बुर बड़े अच्छे से समझने लगी थी। सुगना अपने बाबुजी के पेट पर लेटी हुई एक छोटे बच्चे की भांति प्रतीत हो रही थी सरयू सिंह प्यार से कभी उसकी पीठ सहलाते कभी नितम्ब।

बाहर से कजरी के आने की आवाज आई कजरी ने आंगन से ही आवाज दी थी

"लगा लेनी अपना सुगना बाबू के तेल" सरयू सिंह शरमा गए और सुगना भी। सुगना उनके शरीर से उठकर जमीन पर खड़ी होने लगी। सरयू सिंह ने आनन-फानन में अपनी धोती पहनी और बोले

"हां हां लगा देनी तोहरा बतावे के रहे हम ही पूजा में चल जईति"

कजरी मुस्कुरा रही थी उसने अपने कुँवर जी को फिर छेड़ा

"चारों ओर लगा देनी है नु बहरी भीतरी"

सरयू सिंह ने कोई जवाब न दिया वह अपनी कजरी भाभी की छेड़खानी समझ रहे थे. उन्होंने धोती पहन ली और हैंड पंप के पास आकर नहाने की तैयारी करने लगे। कजरी ने सूरज को सुगना के हवाले किया और सरयू सिंह को नहलाने के लिए हैंडपंप से बाल्टी में पानी निकालने लगी।

सुगना बेहद खुश थी। और वह अपनी कोठरी से अपने बाबूजी को नहाते हुए देखने लगी और मंद मंद मुस्कुराने लगी। उसके जीवन में अब खुशियां ही खुशियां थीं

सुगना सरयू सिंह के मन में छुपी कामुक इच्छाओं को भलीभांति जानती थी और समय के साथ उसे पूरा करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ भी थी……. फिलहाल वो अपने बाबूजी के बलिष्ठ शरीर को नंगा देखकर उस सांड को याद करने लगी...

Wish u happy weekend.
बहुत ही कामुक और गरमागरम अपडेट है
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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143
Behtareen kahani hai, excellent
 

Liyon

Member
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199
43
Adbhut behtarin update

Lekhak mahoday I am waiting for next update.

Mahoday se niwaden h, es milan ko saryu singh bhi chup ker kahi se dekh rahe ho to aur badiya hoga.

Sugna ratan se chusne ke bad , saryu singh se bhi chude .
 

Lovely Anand

Love is life
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Amazing update lovely bhai, waiting for next part
धन्यवाद ...
लेखन कला का अद्भुत... अकल्पनीय... अप्रतिम... प्रयोग...:perfect::love3::love3::love3::love3::love3::love2:
धन्यवाद..
Another episode full of sexual turmoils and emotions, Sir you described the same beautifully. Hat's off to you
Thanks।।।
भाग्य का खेल भी अजीब है बेचारी सुगना जो कभी मर्द के स्पर्श के लिए तड़प रही थी, आज ऐसी मदहोशी में है की सरयू सिंह के अलावा कुछ ख्याल भी नहीं आ रहा उसे।

अगले भाग की प्रतीक्षा में . . . . .

har baar ki tarah ... ati utkrasht ...

"... ई बेचारी तरस गईल होइ ..."
... yeh Ratan bewakoof hai kya ... do bacchon ki maa hai Sugna ... aise hi to hue nahi honge ...

Behtareen kahani hai, excellent

Adbhut behtarin update

Lekhak mahoday I am waiting for next update.

Mahoday se niwaden h, es milan ko saryu singh bhi chup ker kahi se dekh rahe ho to aur badiya hoga.

Sugna ratan se chusne ke bad , saryu singh se bhi chude .
 
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