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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

LustyArjuna

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भाग 117

उधर कोई और रास्ता न देख सुगना ने फैसला कर लिया कि वह लाज शर्म छोड़कर…सोनू से खुलकर बात करेगी और डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत को स्पष्ट रूप से सोनू को बता देगी.


सुगना अपनी बात सोनू तक स्पष्ट रूप से पहुंचाने के लिए अपने शब्दों को सजोने लगी …निश्चित ही अपने छोटे भाई को डॉक्टर द्वारा दी गई उस नसीहत को समझाना कठिन था

अब आगे..

लाली और सोनू के जाने के बाद सुगना खुद को असहाय महसूस कर रही थी। नियति ने उसे न जाने किस परीक्षा में डाल दिया था उसका अचूक अस्त्र लाली रणक्षेत्र से बाहर हो चुकी थी।


सोनू के पुरुषत्व को जीवित रखने के लिए सुगना नए-नए उपाय सोच रही थी। सोनू द्वारा स्वयं हस्तमैथुन कर अपने पुरुषत्व को जगाए रखना ही एकमात्र विकल्प नजर आ रहा था।

मुसीबत में इंसान तार्किक हुए बिना कई संभावनाएं तलाश लेता है परंतु हकीकत की कसौटी पर वह संभावनाएं औंधे मुंह गिर पड़ती हैं। अपने ही भाई को अब से कुछ दिनों पहले हस्तमैथुन के लिए पहले रोकना और अब उसे समझा कर उसी बात के राजी करना सुगना को विचित्र लग रहा था।

यद्यपि हस्तमैथुन वीर्य स्खलन करने में सक्षम तो था परंतु डॉक्टर ने दूसरे विकल्प के रूप में बताया था पहला विकल्प अब भी स्पष्ट था संभोग और संभोग हस्तमैथुन का विकल्प तब के लिए था जब सुगना संभोग के लायक कुदरती रूप से न रहती। शायद उस डॉक्टर ने वह क्रीम इसीलिए दी थी।

कई बार कुछ कार्य बेहद आसान होते हैं और अचानक ही एक कड़ी के टूट जाने से वह दुरूह हो जाते है। लाली और सोनू का मिलन सबसे सटीक उपाय था पर अब वह हाथ से निकल चुका था। अचानक सुगना को रहीम और फातिमा की कहानी याद आई और उसकी आंखों में चमक आ गई सुगना ने फटाफट कपड़े बदले और अपने दोनों बच्चों को पड़ोस में कुछ देर के लिए छोड़ कर बाजार की तरफ निकल गई। वैसे भी अब सूरज समझदार हो चुका था और अपनी बहन मधु का ख्याल रख लेता था।


जब जब सुगना सूरज और मधु को साथ देखती उसे भविष्य के दृश्य दिखाई देने लगते विद्यानंद द्वारा कही गई बातें उसके जेहन में गूंजने लगती सूरज कैसे अपनी छोटी बहन के साथ संभोग करेगा ?

सुगना न जाने क्यों यह बात भूल रही थी कि वह स्वयं उसी दहलीज पर खड़ी थी सोनू भी तो उसका अपना भाई था।

सुगना का रिक्शा एक राजसी वैद्य की कुटिया के पास रुका। अंदर वैद्य की जगह उनकी पत्नी उनका कार्यभार सम्हालती थी। कजरी से पूर्व परिचित होने के कारण वह सुगना के भी करीब हो चुकी थीं। सुगना अंदर प्रवेश कर गई। कुछ देर तक वार्तालाप करने की पश्चात वापसी में सुगना के चेहरे पर संतोष स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था शायद अंदर उसे जो शिक्षा और ज्ञान मिला था उससे सुगना संतुष्ट थी।

शाम के 4:00 बज चुके थे सुगना सोनू का इंतजार कर रही थी पर परंतु सोनू के आने में विलंब हो रहा था। सुगना सोनू से बात करने का मसौदा तैयार कर चुकी थी और न जाने कितनी बार उन शब्दों को अपने मन में दोहरा चुकी थी।


हर इंतजार का अंत होता है और सुगना का इंतजार भी खत्म हुआ सोनू की गाड़ी की आवाज बाहर सुनाई दी और सुगना झट से खिड़की पर आ गई। सोनू गाड़ी से उतर कर अंदर आ रहा था चेहरे पर थकावट स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही। बात सच थी आज का दिन सोनू का भागते दौड़ते बीत गया था। योजनाएं सिर्फ सुगना की चकनाचूर न हुई थी सोनू भी आशंकाओं से घिरा हुआ था। सलेमपुर में हुई घटना ने सब कुछ तितर-बितर कर दिया था।

सोनू अपना चेहरा अपने अंगौछे से पोछता हुआ अंदर आया।

"कईसन बाड़े लोग हरिया चाचा और चाची? ज्यादा चोट तो नाइखे लागल ?" सुगना ने स्वाभाविक प्रश्न किया। हरिया चाचा उसके पड़ोसी थे और सरयू सिंह के परम मित्र भी सुगना के सलेमपुर प्रवास के दिनों में उन दोनों ने सुगना का बखूबी ख्याल रखा था। कमरे के अंदर सरयू सिंह के उस दिव्य रूप और रिश्ते को छोड़ दिया जाए तो सरयू सिंह और हरिया दोनों पिता तुल्य ही थे।

"ठीक बाड़े लोग तीन-चार दिन में घाव सूख जाई ज्यादा चोट नईखे लागल चाची के ही पैर में प्लास्टर लागल बा उहे दिक्कत के बात बा? लाली दीदी त बुझाता ओहीजे रहीहैं " सोनू ने स्पष्ट तौर पर सुगना के मन में चल रही सारी संभावनाओं पर विराम लगा दिया।

सोनू स्वयं सुगना के मन की बात जानना चाहता था क्या सुगना उसके साथ जौनपुर जाएगी?

अपनी अधीरता सोनू रोक ना पाया शायद इसीलिए उसने सारी बातें स्पष्ट रूप से सुगना को बता दीं…वह बिना प्रश्न पूछे ही अपना उत्तर चाह रहा था।

सुगना सोच में डूब गई…

सुगना को मौन देख सोनू ने कहा..

" हमरा के जल्दी से चाय पिला द हमरा वापिस जौनपुर जाए के बा"

सुगना ने सोनू की बात का कोई उत्तर न दिया परंतु रसोईघर में जाते-जाते उसने सोनू और दिशा निर्देश दे दिया जाकर पहले मुंह हाथ धो ला। दिन भर के थाकल बाड़.. अ पहले चाय पी ल फिर बतियावाल जाए"


सुगना पूरी तरह तैयार थी। वैद्य जी की पत्नी से मिलने के बाद सुगना के पास कई विकल्प थे। जिसके तरकस में कई तीर आ चुके हों उसमें आत्मविश्वास आना स्वाभाविक।

सुगना रसोई घर में और सोनू गुसल खाने में अपने अपने कार्यों में लग गए पर दिमाग एक ही दिशा में कार्य कर रहा था।

आखिरकार सुगना चाय लेकर सोनू के समक्ष उपस्थित थी। सुगना आपने चेहरे पर उभर रहे भाव को यथासंभव नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी और अपनी नजरें झुकाए हुए थी। उसने सोनू के हाथ में चाय की प्याली दी और बोला

"आज ही जाएल जरूरी बा का?"

हां दीदी बहुत छुट्टी हो गईल बा अब और छुट्टी ना मिली…वैसे भी साल बीते में 1 सप्ताह ही बा।


सुगना ने फिर कहा

"1 सप्ताह बाद फिर लखनऊ भी जाए के बा चेकअप करावे मालूम बानू"

"हां याद बा… नया साल में चलल जाई"

"सोनू एक बात कही?" सुगना लाख प्रयास करने के बाद भी अपनी प्रश्न में छुपी हुई संजीदगी रोक ना पाए और सोनू सतर्क हो गया..

"हां बोल ना दीदी"

"डॉक्टर कहत रहे….." सुगना की सारी तैयारी एक पल में स्वाहा हो गई और उसकी जुबान लड़खड़ा गई

सोनू ने आतुरता से सुगना के मुंह में जबान डालते हुए बोला

"का कहत रहे दीदी?"


सुगना ने फिर हिम्मत जुटाई और बोली

" ते जवन नसबंदी करोले ल बाड़े ओकरे बारे में कहत रहे…"

"का कहत रहे?" सोनू ने सुगना को उत्साहित किया

"सुगना शर्म से गड़ी जा रही थी.. अपने कोमल पैरों से मजबूत फर्श को कुरेदनी की कोशिश की और अपनी हांथ की उंगलियों को एक दूसरे में उलझा लिया शारीरिक क्रियाएं दिमाग में चल रही उलझन का संकेत देती हैं सुगना परेशान हो गई थी। उसने बेहद धीमे स्वर में कहा ..

"डॉक्टर कहते रहे की… नसबंदी के सात दिन बाद एक हफ्ता तक ज्यादा से ज्यादा वीर्य स्खलन करना चाहिए… जिससे ऊ अंग आगे भी काम करता रहे चाहे इसके लिए हस्तमैथुन ही क्यों ना करना पड़े "

सुगना ने डॉक्टर की नसीहत को तोड़मरोड़ कर सोनू को सुना दिया था…हिंदी भाषा का अधिकाधिक प्रयोग कर सुगना ने सोनू को डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत सुनाने की कोशिश की थी…. परंतु परंतु संभोग की बात वह छुपा ले गई थी आखिर जो संभव न था उसके जिक्र का कोई औचित्य भी न था।

अपनी बहन के मुख से हिंदी के वाक्य सुनकर सोनू भी आश्चर्यचकित था और मन ही मन मुस्कुरा रहा था उसने सुगना के शर्माते हुए चेहरे को पढ़ने की कोशिश की परंतु सुगना नजरे ना मिला रही थी.

"का दीदी अभी तीन-चार दिन पहले तक तो उल्टा कहत रहलू और अब उल्टा बोला तारु "

"जरूरी बार एही से बोला तानी"

"दीदी हमरा से ई सब ना होई वैसे भी हमार ई सब से मन हट गईल बा अब हमार जीवन के लक्ष्य बदल गईल बा"

सुगना को एक पल के लिए भ्रम हुआ जैसे सोनू सच कह रहा है परंतु सुगना यह बात भली-भांति जानती थी कि सोनू लाली को चोदने के लिए आतुर था बड़ी मुश्किल से उसने उसे लाली से 1 हफ्ते तक दूर रखा था अचानक वासना से विरक्ति निश्चित ही यकीन योग्य बात न थी।

सुगना कुछ और कहना चाहती थी तभी सूरज कमरे में आ गया और सोनू के पास में आते हुए बोला

"मामा लाली मौसी जौनपुर नईखे जात त हमनी के ले चला… हमरो स्कूल के छुट्टी हो गईल बा"

सोनू ने सूरज के गाल पर पप्पी ली और अपने मन में उठ रही खुशी की तरंगों को नियंत्रित करते हुए बोला.. "हमरा से का बोलत बाड़ा अपना मां से बोला हम तो चाहते बानी"

सूरज सोनू के पास से उठकर सुगना के पास में आ गया और उसके गालों और होठों को चूमते हुए बोला "मां चल ना " सोनू सुगना के चेहरे पर बदल रहे भाव को पढ़ रहा था। और उसने एक बार फिर सुगना से बेहद प्यार से कहा ..

" चल ना दीदी अब तो घर में केहू नईखे …दू चार दिन रह के नया घर देख लिहे ओहिजे से लखनऊ भी चल जाएके "

सुगना ने न जाने क्या सोचा पर उसने अपनी हामी भर दी और उठ कर अपने कमरे में आ गई। थोड़ी ही देर में सुगना अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ जौनपुर जाने के लिए तैयार थी। सुगना का पहला तीर खाली गया था पर उसके तरकश में अब भी तीर बाकी थे।

सोनू की सरकारी गाड़ी सड़क पर तेजी से दौड़ रही थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू की अधीरता उसका ड्राइवर भी समझ रहा था सुगना खिड़की का शीशा खोलें बाहर देख रही थी। चेहरा एकदम शांत पर मन में हिलोरे उठ रही थी जो सुगना ने सोचा था उसे अंजाम में लाने की सोच कर उसका तन बदन सिहर रहा था।

आखिरकार सुगना सोनू के नए बंगले पर खड़ी थी सोनू के मातहत फटाफट सुगना और सोनू का सामान गाड़ी से निकालकर अंदर लाने लगे और सोनू पहली बार अपनी बड़ी बहन सुगना तो अपने नए आशियाने में अंदर ला रहा था खूबसूरत सजा हुआ घर वह भी अपना….. सुगना घर की खूबसूरती देखकर प्रसन्न हो गई थी उसने हॉल में कुछ कदम बढ़ाए उसका ध्यान बगल के कमरे पर गया..

"अरे ई पलंगवा काहे खरीदले"


सोनू के घर में स्वयं द्वारा पसंद किए गए पलंग को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी। उस दिन बनारस में एक ही पलंग खरीदने की बात हुई थी और वह था लाली की पसंद का। सुगना ने पीछे मुड़कर सोनू को देखा और प्रश्न किया

"लाली ई पलंग देखित त का सोचित?"


सोनू पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था। वह सुगना के पास आया और उसका हांथ पकड़ कर दूसरे कमरे में ले गया…जहां लाली की पसंद का पलंग लगा था। सुगना सोनू की समझदारी पर खुश हो गई।

दोनों ही कमरे सोनू ने बेहद खूबसूरती के साथ सजाए थे और जितना भी वह अपनी बहनों को समझ पाया था उसने दीवारों पर रंगरोगन और बिस्तर की चादर का रंग भी उनके पसंद के अनुसार ही रखा था… सुगना अभिभूत थी। सोनू के प्रति उसके दिल में प्यार और इज्जत बढ़ गई।

सोनू के अर्दली और मातहतों ने सुगना का सामान सुगना के पलंग पर लाकर रख दिया और थोड़ी ही देर में सुगना अपने कमरे में सहज होने लगी। सूरज और मधु नए पलंग पर खेलने लगे।

रसोई घर की हालत देखकर सुगना ने सोनू से कहा…

"खाली रसोई घर के हालत खराब बा बाकी तो घर तू चमका ले ले बाड़ा"

"दीदी ई त हम तोहरा और लाली दीदी के खातिर छोड़ देले रहनी.. अब काल आराम से सरिया लिहा"

" तब आज खाना कैसे बनी"

"आज खाना बाहर से आई… ड्राइवर चल गईल बा ले आवे"

सुगना ने सोनू से पूछा

"और सूरज मधु खातिर दूध?"

" मंगा देले बानी.. और तोहरा खातिर भी तू भी त पसंद करेलू "

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे इस बात की खुशी थी कि उसका छोटा भाई उसकी हर पसंद नापसंद से अब भी बखूबी वाकिफ था।

धीरे-धीरे सभी घर में सहज हो गए खाना आ चुका था सूरज और मधु तो पहले से ही चॉकलेट और न जाने क्या-क्या अनाप-शनाप खाकर मस्त हो गए थे। सुगना ने सूरज और मधु को गिलास से दूध पिलाया। मधु भी अब काफी समय से सुगना की चूचियां पीना छोड़ चुकी थी शायद अब न तो उसे इसकी आवश्यकता थी और नहीं सुगना की चूचियां और दूध उत्सर्जन कर रही थीं। अब जो उनका उपयोग था उसका इंतजार कोई और कर रहा था।

अब तक सोनू स्नान ध्यान कर तैयार हो चुका था सफेद धोती और नई नई सैंडो बनियान पहने सोनू का गठीला बदन देखने लायक था बदन से चिपकी हुई बनियान उसे और खूबसूरत आकार दे रही थी पुष्ट और चौड़ा मांसल सीना और उस पर उभरी मांसल नसें ट्यूबलाइट के दूधिया प्रकाश में चमक रही थीं…

सूरज के अनुरोध पर सोनू सुगना के बिस्तर पर आकर दोनों के साथ खेलना लगा। सूरज और मधु धीरे-धीरे अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर पर लेटे सोनू से कहानियां सुनने लगे।

जब तक दोनो नींद में जाते सुगना सोनू के लिए खाना लेकर आ चुकी थी।

सोनू ने जिद कर सुगना के लिए भी प्लेट मंगवा ली सुगना कहती रही कि मैं स्नान करने के बाद आराम से खा लूंगी परंतु सोनू न माना। आखिरकार सोनू और सुगना साथ साथ भोजन करने लगे बार-बार सुगना की निगाहें सोनू के गठीले बदन पर जाती और सुगना सोनू के मर्दाना शरीर को देखकर मोहित हो जाती काश यदि सोनू उसका भाई ना होता तो निश्चित ही वह उसके सपनों का राजकुमार होता परंतु मन का सोचा कहां होता है हकीकत और कल्पना का अंतर है सुगना भली भांति जानती थी ।

सुगना ने मन बना लिया था कि वह सोनू के पुरुषत्व को निश्चित ही यूं ही खत्म नहीं होने देगी आखिर देर सबेर यदि सोनू विवाह के लिए राजी होता है तो अपनी अर्धांगिनी को वंश तो नहीं परंतु स्त्री सुख अवश्य दे पाएगा।

सोनू का कलेजा भी सीने में कुछ ज्यादा ही तेज धड़क रहा था जैसे-जैसे रात्रि की बेला नजदीक आ रही थी सोनू अधीर हो रहा था क्या होने वाला था? सुगना दीदी आखिर क्या करने वाली थी उसे इस बात का तो यकीन था कि आज की रात व्यर्थ न जाएगी पर कोई सुगना के व्यवहार में इसकी झलक दिखाई नहीं पड़ रही थी।

सुगना खाने की झूठी प्लेट लेकर वापस रसोई घर की तरफ से आ रही थी और उसके मादक नितंब सोनू की नजरों के साथ थिरक रहे थे।

सोनू अपने मन में सुगना के साथ बिताए कामुक पलों को याद करने लगा सुगना का नंगा बदन उसकी आंखों में घूमने लगा वासना चरम पर थी जैसे-जैसे सुगना का नशा दिमाग पर चढ़ता गया लंड उत्तेजना से भरता चला गया उधर सुगना के हाथ कांप रहे थे गर्म दूध गिलास में निकाल कर उसने अपने ब्लाउज में हाथ डालकर एक लाल पुड़िया निकाली… .और पुड़िया में रखा एक चुटकी सफेद पाउडर दूध की गिलास में मिला दिया….

उसने हाथ जोड़कर अपने इष्ट देव को याद किया और वैद्य जी की पत्नी को धन्यवाद दिया तथा अपनी पलकें बंद कर ली…शायद सुगना किए जाने वाले कृत्य की अग्रिम माफी मांग रही थी..

हाथ में गिलास का दूध लिए सुगना सोनू के बिस्तर पर आ चुकी थी…

"ले सोनू दूध पी ले "

"तू भी दूध पी ल" सोनू अपनी तरफ से सुगना का पूरा ख्याल रखना चाहता था।

सुगना ने बड़ी बहन के अधिकार को प्रयोग करते हुए सोनू से कहा

"अब चुपचाप दूध पी ला तोहरा कहना पर बिना नहाए ले खा लेनी अब दूध ना पियब…हम नहा के पी लेब "


सोनू ने दूध का गिलास पकड़ लिया। सुगना सूरज और मधु के ऊपर रजाई डालने लगी। वह बार-बार कनखियों से सोनू को देख रही थी मन में आशंका उठ रही थी कि कहीं सोनू को दूध का स्वाद अलग ना लगे और हुआ भी वही जैसे ही सोनू ने दूध का पहला घूंट लिया उसकी स्वाद इंद्रियों ने स्वाद में बदलाव महसूस किया परंतु इस बदलाव का कारण सोनू की कल्पना शक्ति से परे था। सोनू यह बात सोच भी नहीं सकता था कि उसकी बहन सुगना ने उस दूध में कुछ तत्व मिलाए थे।

सोनू ने फिर भी सुगना से कहा

"ओहिजा गांव में बढ़िया दूध मिलत रहे आज के दूध तो बिल्कुल अलग लागत बा.."

सुगना हड़बड़ा गई दूध का स्वाद निश्चित ही कुछ बदल गया होगा परंतु सुगना ने सोनू की बात को ज्यादा अहमियत न देते हुए कहा…

"हां अलग-अलग जगह के दूध में अंतर होला वैसे देखे में तो ठीक लागत रहे"

सोनू धीरे-धीरे दूध के घूंट पीता रहा और जब सुगना संतुष्ट हो गई की सोनू पूरा दूध खत्म कर लेगा वह नहाने के लिए गुसलखाने में प्रवेश कर गई।

सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था बाथरूम में नग्न शरीर पर गर्म पानी डालते हुए सुगना सोच रही थी क्या वह जो करने जा रही थी वह उचित था..

आइए सुगना को स्थिर चित्त होने के लिए कुछ समय देते हैं और आपको लिए चलते हैं सलेमपुर के उसी घर में जहां पर इस कहानी की शुरुआत हुई थी। सुगना के आगमन से अब तक घर में कई बदलाव आ चुके थे पर मूल ढांचा अब भी वहीं था परंतु समृद्धि का असर घर पर दिखाई दे रहा था सरयू सिंह की कोठरी भी अब बिजली के प्रकाश से जगमगाने लगी थी।

बनारस से वापस आने के बाद उनकी उम्मीदें टूट चुकी थी पर सोनी को याद करना अब भी बदस्तूर जारी था। हस्तमैथुन के समय सोनी अब भी याद आती थी परंतु ग्लानि भाव के साथ। आखिरकार सरयू सिंह ने अपनी वासना को नया रूप दिया और बाजार से जाकर टीवी खरीद लाए टीवी में कई नायिकाएं नायिकाएं और उनके प्रणय दृश्य सरयू सिंह को लुभाने लगे और धीरे-धीरे स्वयं को उन नायिकाओं के साथ कल्पना कर सरयू सिंह की रातें एक बार फिर रंगीन होने लगी।

हकीकत और टीवी का अंतर स्पष्ट था जब जब उनके मन में सोनी का गदराया बदन घूमता उत्तेजना नया रूप ले लेती परंतु वह भी यह बात जान चुके थे कि सोनी अब हाथ से निकल चुकी है।


मन में दबी हुई आस लिए सरयू सिंह धीरे-धीरे अपना समय व्यतीत कर रहे थे परंतु उन्होंने सोनी के लिए जो मन्नतें मांगी थी नियति ने उनकी इच्छा का मान रखने की सोच ली थी।

तभी कजरी उनकी कोठरी में आई और सरयू सिंह ने अपनी धोती से अपने खड़े लंड को ढक लिया..

टीवी पर चल रहे दृश्यों को कजरी ने सरयू सिंह की मनो स्थिति समझ ली और कहा…

"जाने ई कुल से राऊर ध्यान कब हटी"

सरयू सिंह ने कजरी को छेड़ते हुए कहा

" अब तू ता पूछा हूं ना आवेलू "

"अब हमरा से ई कुल ना होई आपके भी इस सब छोड़ देवें के चाही अतना उम्र में के ई कुल करेला?"

"काहे ना करेला ? काहे जब ले जान बा आदमी सांस लेला की ना.?." सरयू सिंह ने उल्टा प्रश्न पूछ कर अपनी बात रखने की कोशिश की.

"तब अपना पतोहिया सुगना के काहे छोड़ देनी…जैसे तीन चार साल खेत जोतले रहनी… आगे भी…जोतत रहतीं ओकरो जीवन त अभियो उदासे बा"

सरयू सिंह निरुत्तर हो गए। अपनी पुत्री सुगना के साथ जो पाप उन्होंने किया था वह उसे भली-भांति समझते थे। पर अब वह और उस बारे में नहीं सोचना चाहते थे और ना ही बात करना। सुगना उनकी दुखती रग थी जिसके बारे में कामुक बातें करने पर सरयू सिंह शांत पड़ जाते थे।

सरयू सिंह को को चुप देखकर कजरी ने उन्हें और परेशान करना उचित न समझा। यह बात कजरी भी जानती थी कि अब सुगना और सरयू सिंह के बीच कोई भी कामुक रिश्ता नहीं बचा है पर इसकी वजह क्या थी यह ज्ञान उसे न था।

कजरी आई थी कुछ और बात कहने और सरयू सिंह की दशा दिशा देखकर बातें कुछ और होने लगी थी कजरी ने मूल बात पर आते हुए कहा

"गुड़ के लड्डू बनावले बानी …छोटकी डॉक्टरनी सीतापुर आईल बिया जाके दे आईं बहुत पसंद करेले"

"के ?" सरयू सिंह छोटी डॉक्टरनी को समझ ना पाए

"अरे सब के दुलरवी सोनी"

सरयू सिंह के जेहन में सोनी का चेहरा घूम गया उन्होंने सहर्ष सीतापुर जाने की सहमति दे दी मन में उमंगे हिलोरे मार रही थी सोनी के करीब जाने की बात सुनकर मन एक बार फिर ख्वाब बुनने लगा था परंतु हकीकत सरयू सिंह भी जानते थे पर उम्मीदों का क्या?

उधर जौनपुर में सुगना अपना स्नान पूरा कर चुकी थी और सुगना द्वारा दिया गया दूध पीकर सोनू बिस्तर पर लेटे लेटे सो गया था शायद यह निद्रा कुछ अलग थी सुगना द्वारा दूध में मिलाया गया वह विशेष रसायन अपना असर दिखा चुका था सुगना सोनू के मासूम चेहरे को देख रही थी और कसा हुआ सोनू का बदन बिस्तर पर निढाल पड़ा हुआ था..

सुगना अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए आगे बढ़ रही थी.. पैर कंपकपा रहे थे यह ठंड की वजह से था या सुगना के मन में चल रहे भंवर से कहना कठिन था..

परीक्षा की घड़ी आ चुकी थी…

शेष अगले भाग में….
कामुकता सरयू सिंह और सोनी के बीच बढ़ने वाली हैं।
सुगना भी सोनु को सुला कर उसका पानी निकालना चाह रही है। देखना ये है कि सुगना अपने हाथों का प्रयोग करेंगी या फिर कुछ और ‌‌😉😉
 

LustyArjuna

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भाग 119


सोनू को मूत्र विसर्जन की इच्छा हुई और वह चाय का प्याला बिस्तर पर रख गुसल खाने की तरफ बढ़ गया। अंदर जैसे ही उसने छोटे सोनू को बाहर निकाला रात की बात सोनू को समझ में आ गई सुपाड़े के अंदर लिपटा हुआ सोनू का वीर्य से सना चिपचिपा सुपाड़ा यह बार-बार एहसास दिला रहा था की कल रात कुछ न कुछ हुआ है। सोनू को यह समझते देर न लगी कि उसका वीर्य स्खलन हुआ है…पर कैसे? सोनू ने अपने अंडरवियर को ध्यान से देखा…वीर्य स्खलन के अंश वहां मौजूद ना थे। सोनू ने एक बार फिर सुपाड़े पर लगे चिपचिपे वीर्य को अपनी उंगलियों पर लिया और अपने नाक के पास लाया…सोनू को यकीन हो गया कि उसका वीर्य स्खलन हुआ नहीं था अपितु कराया गया था….तो क्या सुगना दीदी….?

अब आगे…

सोनू ने अपने दिमाग पर जोर देने की कोशिश की परंतु दूध पीने के बाद का कोई भी दृश्य उसे याद न था उसे यह बात अवश्य ध्यान आ रही थी कि दूध का स्वाद कुछ अलग था।

अचानक उसे रहीम और फातिमा की किताब का वाकया ध्यान आ गया जिसमें फातिमा ने अपने छोटे भाई को दूध में मिलाकर कोई नशीला द्रव्य दिया था..और सोनू के होंठो पर मुस्कुराहट दौड़ गई। उसके जी में आया कि वह अपनी सुगना दीदी को जाकर चूम ले…पर भाई बहन के बीच नियति ने तय किया था वो घटित होना इतना आसान न था।

सोनू वापस बिस्तर पर आया और खुद को सामान्य दिखाते हुए सुगना के साथ चाय पीने लगा। सोनू को सामान्य देख सुगना भी सहज हो गई। कल रात हुई घटना सुगना और सोनू दोनों के लिए सुखद रही सुगना ने अपना कार्य पूरा कर लिया और सोनू अपनी बहन के और करीब आ गया।

आज शनिवार का दिन था सोनू की ऑफिस की छुट्टियां थी। रसोईघर का बिखरा हुआ सामान सोनू और सुगना का ध्यान खींच रहा था। कुछ ही देर बाद सुगना रसोई घर को सजाने में लग गई शायद यही एकमात्र कार्य सोनू ने अपनी बहनों के लिए छोड़ा था।

सुगना ने सोनू को निराश ना किया वह तन मन से रसोई घर को सजाने लगी। धीरे धीरे रसोईघर अपनी रंगत में आता गया…सुगना बीती रात के बारे में सोचते सोचते रसोई घर का सामान व्यवस्थित कर रही थी। उसके जेहन में वैद्य जी की पत्नी की बातें घूम रही थी …. उत्तेजना और स्खलन कुछ पलों का खेल नहीं स्त्री और पुरुष दिन भर में कई बार वासना के आगोश में आते हैं और पुरुषों में उसी दौरान वीर्य का निर्माण होता है। जितना अधिक वीर्य निर्माण उतना शीघ्र स्खलन।

सुगना ने पूरी तरह यह बात आत्मसात कर ली थी। उसने ठान लिया था कि वह सोनू के वीर्य निर्माण में अपनी भी भूमिका अदा करेगी। उसे पता था सोनू की विचारधारा उसके प्रति बदल चुकी थी.. और वर्तमान में सोनू की उत्तेजना का प्रमुख केंद्र व स्वयं थी.

सुगना रसोईघर को व्यवस्थित करने में लगी थी। शरीर पर पड़ी पतली नाइटी सुगना की मादकता को और बढ़ा रही थी अंदर पहने अंग वस्त्र चूचियों को तो कैद में कर चुके थे परंतु सुगना के गदराए नितंब छोटी पेंटी के बस में न थे। वह बार-बार सोनू का ध्यान खींच रहे थे …जो हॉल में बार-बार आकर अपनी बड़ी बहन के युवा और अतृप्त बदन को निहार रहा था…

जब सुगना उसे अपनी तरफ देखते पकड़ लेती सोनू की नजरें झुक जाती और वह बिना कुछ बोले वापस कमरे में जाकर सूरज और मधु के साथ खेलने लगता…सुगना जान चुकी थी कि सोनू की उत्तेजना से दोनों का ही फायदा था सुगना को मेहनत कम करनी पड़ती और वीर्य उत्पादन तथा स्खलन आसान हो जाता जो सोनू के पुरुषत्व को बचाए रखने के लिए आवश्यक था।

कुछ सामान अभी ऊपर के खाने में सजाए जाने थे सुगना का हाथ पहुंचना मुश्किल था दरअसल ऊंचाई ज्यादा होने की वजह से सुगना ही क्या सोनू का भी हाथ पहुंचना कठिन होता।

सुगना ने आवाज लगाई

" ए सोनू…."

सोनू सूरज और मधु के साथ खेलने में व्यस्त था।

अपनी बहन सुगना की आवाज सुनकर सोनू अगले ही पल रसोईघर में आ गया।

सोनू में सारी जुगत लगाई परंतु ऊपर के खाने में सामान रखने में नाकाम रहा.. आखिरकार सुगना ने कहा

"ले हमरा के पकड़ के उठाऊ हम रख देत बानी"

सुगना ने यह बात कह तो दी परंतु उसे आगे होने वाले घटनाक्रम का अंदाजा न था। सोनू ने सुगना को पीछे से आकर कमर से पकड़ लिया और उसे ऊपर उठाने लगा सुगना आगे की तरफ गिरने लगी उसने बड़ी मुश्किल से दीवाल का सहारा लिया और बोली

" उतार उतार ऐसे त हम गिर जाएब"


सोनू को अपनी गलती का एहसास हुआ वह सुगना के सामने की तरफ आया और उसने अपनी मजबूत बाहें पीछे की और सुगना के नितम्बो के ठीक नीचे उसकी जांघों को अपनी भुजाओं में कसते हुए सुगना को ऊपर उठा दिया।

मर्द सोनू की मजबूत भुजाओं में युवा सुगना को देखकर नियति स्वयं मचल उठी… सोनू का चेहरा सुगना की नाभि से छू रहा था और सुगना के मादक बदन की खुशबू सोनू के नथुनो में नशा भर रही थी थी इस खुशबू में निश्चित ही सुगना की अद्भुत योनि और उससे रिस रहे प्रेमरस की खुशबू भी शामिल थी। सोनू को न जाने कितने खजाने एक साथ मिल गए थे उसकी बांहों को सुगना के कोमल नितंबों का स्पर्श मिल रहा था और उंगलियां जांघों की कोमलता महसूस कर रही थी। सुगना के पंजे सोनू के लंड के बिल्कुल करीब थे सोनू घबरा रहा था कहीं उसकी उत्तेजना का अंदाज सुगना दीदी न कर लें और यह सुखद क्षण जल्द ही समाप्त हो जाए।

सुगना सोनू की मनोदशा से अनजान रसोई घर का जरूरी सामान ऊपरी खाने में सजाने लगी। कुछ ही पलों में आवश्यक सामान ऊपर व्यवस्थित कर दिया गया और जब कार्य खत्म हुआ तो सुगना को अपनी अवस्था का ध्यान आया सोनू की गर्म सांसे अपनी नाभि पर महसूस कर सुगना की वासना जाग उठी वह यह बात भूल गई कि उसे बाहों में उठाने वाला व्यक्ति सरयू सिंह नहीं अपितु उसका छोटा भाई सोनू है…सुगना कुछ देर तक उस आनंद में खो गई और सोनू की गर्म सांसो को अपने बदन पर फैलते हुए महसूस करने लगी उसके हाथ ऊपर रखे सामानों को यूं ही आगे पीछे कर व्यवस्थित कर रहे थे परंतु शरीर की सारी चेतना वासना पर केंद्रित हो गई थी..


सुगना ने अंदाज कर लिया कि उसका पैर सोनू की जांघों के ठीक बीच में है उसने जानबूझकर अपने पैर के पंजों से सोनू के लंड को छूने की कोशिश की और सोनू के लंड को पूरी तरह तना हुआ पाकर मन ही मन मुस्कुराने लगी…

अपने तने हुए लंड पर सुगना के पंजों का स्पर्श पाकर सोनू शर्मसार हो गया उसने झल्लाते हुए कहा

"अरे दीदी अब उतर हाथ दुख गईल"

"ठीक बा अब उतार दे काम हो गएल" और सोनू ने धीरे-धीरे अपनी भुजाओं का कसाव कम करना शुरू किया और सुगना ऊपर से नीचे धीरे-धीरे सोनू के बदन से सटती हुई नीचे आने लगी। सोनू की हथेलियों ने सुगना के नितंबों को बेहद करीब से महसूस किया और सोनू की वासना तड़प कर रह गई …लंड उस मखमली स्पर्श के लिए तड़प कर रह गया।

ऊपर सुगना की मदमस्त चूचियां सोनू के चेहरे के बेहद करीब से लगभग सटती हुई नीचे आ रही थी और फिर सुगना का खूबसूरत और कोमल चेहरा। एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना को इसी अवस्था में पकड़ ले और उसके खूबसूरत होठों को कसकर चूम ले पर सुगना ….उसकी बड़ी बहन थी और को सोनू सोच रहा था वो अभी संभव न था।.


सुगना यह बात भली-भांति जान चुकी थी की कुछ मिनटो में जो स्पर्श सुख सोनू ने लिया था उसका असर सुगना ने अपने पैर के पंजों महसूस कर लिया था। उसने कोई प्रतिक्रिया न दी और बेहद प्यार से बोली…

"देख इतना सुंदर तोर रसोईघर बना देनी ठीक लागत बा नू….."

सोनू को अब मौका मिल गया उसने सुगना को अपने आलिंगन में भर लिया और बेहद प्यार से बोला

" जवन भी चीज में हमरा दीदी के हाथ लग जाला ऊ चीज सुंदर हो जाला"

"जाकी रही भावना जैसी " सुगना एक बार फिर कल सोनू के लंड के बारे में सोचने लगी जो उसके हाथों का स्पर्श पाते ही खिलकर खड़ा हो गया था।"

सोनू के आलिंगन में खुद को महसूस कर सुगना सहम गई बात आगे बढ़ती इससे पहले सुगना ने सोनू के सीने पर हल्का धक्का दिया और बोली

"चल हट तोर काम हो गईल अब ढेर मक्खन मत लगाव"

सोनू कमरे से बाहर जा चुका था। अचानक सुगना ने अपनी जांघों के बीच कुछ गीलापन महसूस किया जो स्वाभाविक था सोनू जैसे मर्द की बाहों में आने के बाद कोई भी तरुणी अपने कामांगो का ध्यान अवश्य करती और निश्चित ही उसके कामांग सोनू से मिलने को आतुर हो उठते।

सुगना की बुर धीरे-धीरे बेचैन हो रही थी आखिर डॉक्टर की नसीहत उसके लिए भी थी सुगना को भी अपनी बुर को जीवंत रखने के लिए जमकर संभोग करना था परंतु सुगना का भविष्य गर्त में था सुगना के जीवन में आए दोनों मर्द सरयू सिंह और रतन अब बीते दिनों की बात हो चुके थे और उसके सामने जो खड़ा था वह हर रूप में उसके योग्य होने के बावजूद रिश्तों के आड़े आ रहा था।

कमरे में सुगना के पलंग पर सूरज और मधु दोनों सोनू के साथ खेल रहे थे। आत्मीयता इतनी कि यदि उन्हें कोई इस तरह खेलते देखता तो निश्चित यही समझता कि सोनू उन दोनों खूबसूरत बच्चों का पिता है यह बात भी अर्धसत्य थी मधु सोनू और लाली के मिलन से जन्मी थी। अचानक सूरज ने कहा

"मामा लखनऊ वाली कलेक्टर मैडम के यहां कतना बढ़िया झूला रहे तू काहे ना खरीदला ? "

बालमन सहज पर सजग होता है। वह भी अपनी आवश्यकता की चीजों का निरीक्षण करता रहता है और मन ही मन उनकी इच्छा अपने दिल में करता रहता है। सूरज को भी शायद मनोरमा मैडम के घर में रखा हुआ पिंकी का वह झूला बेहद पसंद आया था जिसमें लेटी हुई पिंकी चैन की नींद ले रही थी। सूरज के मन में भी तब से वह झूला घर पर गया था और उसने अपनी बात अपने मामा सोनू से खुलकर कह थी।


जब एक बार बात निकल गई तो फिर सोनू को रोकना कठिन था। सोनू बाजार गया और कुछ ही देर बाद मनोरमा जैसा तो न सही परंतु शायद उससे भी खूबसूरत बच्चों का झूला घर में हाजिर था।

झूला छोटी मधु के लिए था पर आकार में बड़ा हो पाने के कारण सूरज भी उसमे आराम से आ सकता था उसकी उम्र ही क्या थी।

सोनू ने सूरज और मधु दोनों को ही पालने में डाल दिया और बेहद प्यार से ही आने लगा सूरज छोटी मधु को बड़े प्यार से खिला रहा था और उसके पेट पर गुदगुदी कर रहा था अब तक कमरे में सुगना आ चुकी थी अपने दोनों बच्चों को झूले में हंसता खेलता देख उसका हृदय गदगद हो गया था और बिस्तर पर बैठा सोंनू उसे और भी प्यारा लग रहा था पलंग अपने प्रेमी जोड़ों के लिए पलक पावडे बिछाए तैयार था।

उधर सीतापुर में दोपहर हो चुकी थी पदमा सरयू सिंह को भोजन करा रही थी…और बगल में बैठकर बातें कर रही थी सोनी बीच-बीच में आकर घटा बढ़ा सामान पहुंचा रही थी। जब जब सोनी करीब आती सरयू सिंह की पीठ में तनाव आ जाता और वह संभल कर बैठ जाते और उसके जाते ही फिर सहज हो जाते हैं युवा किशोरियों और तरुणियों को देखकर सरयू सिंह का यह व्यवहार अनूठा था। चुदने योग्य युवतियों को देख सरयू सिंह का गठीला बदन युवा अवस्था में लौट आता सीना चौड़ा हो जाता और बाहर झांकता हुआ पेट तुरंत ही रीड की हड्डी से जा चिपकता। यह कार्य उतने ही स्वाभाविक तरीके से होता जैसे पलकों का झपकना।

सरयू सिंह की हरकतों और उनके हावभाव से पदमा ने यह भाप लिया की सरयू सिंह निश्चित ही सोनी की उपस्थिति में कुछ असहज महसूस कर रहे हैं और इतना तो पदमा को भली-भांति पता था कि कोई पुरुष यदि स्त्री की उपस्थिति में थोड़ा भी असहज महसूस करें तो यह मान लेना चाहिए कि उन दोनों के बीच जो संबंध हैं वह उन्हें स्वीकार्य नहीं और उन संबंधों में कुछ बदलाव होने की आशंका है पदमा सरयू सिंह की नस नस से वाकिफ थी ऐसा न था की सरयू सिंह किसी युवती पर डोरे डालते थे और उससे अपनी वासना में खींचने की कोशिश करते परंतु वह यह बात भली-भांति जानती थी सरयू सिंह का व्यक्तित्व और उनका मर्दाना शरीर तरुणियों को स्वतः उनकी तरफ आकर्षित करता था।

शायद यही वजह थी कि सरयू सिंह की निगाहों से असहज महसूस करने वाली सोनी रह-रहकर उनके करीब आ रही थी।

खाना खत्म होने के बाद पद्मा ने सरयू सिंह से कहा

"बनारस जाके शादी के दिन बार के बारे में बतिया लेब सोनी कहत रहली की विकास के पढ़ाई दो-तीन महीना में खत्म हो जाए और वह बनारस वापस आ जईहैं"

सरयू सिंह को एक पल के लिए लगा जैसे उनका दिवास्वप्न तोड़ दिया गया था। जिस सोनी को अपनी ख्वाबों में सजाए और उसके खूबसूरत अंगों की परिकल्पना करते हुए सरयू सिंह भोजन कर रहे थे वह भोजन के खात्मे के साथ ही खत्म हो चुका था उन्होंने अपने हाथ धोते हुए कहा

"ठीक बा…"

सरयू सिंह ने थोड़ा विश्राम किया और फिर वापस सलेमपुर के लिए निकल पड़े आज सुबह छोटी डॉक्टरनी का जो रूप उन्होंने देखा था उसने सोनी के प्रति उनके विचारों में परिवर्तन लाया था शहरों में आधुनिक वेशभूषा में घूमने और रहने वाली सोनी आज सुबह गांव के पारंपरिक वेशभूषा में जिस तरह अपनी मां का हाथ बटा रही थी वह सराहनीय था। सोनी को लेकर सरयू सिंह के विचार बदल रहे थे परंतु अभी दिल्ली दूर थी सोनी को अपनी गोद में लेकर मनभर चोदने की इच्छा को हकीकत का जामा पहना पाना कठिन था।

बोली उधर जौनपुर में सुगना के अनुरोध पर सोनू दोनों बच्चों को लेकर मंदिर गया और सुगना ने अपने आराध्य से अपने परिवार की खुशियां मांगी परंतु सोनू ने जो मांगा वह पाठक भली-भांति समझ सकते हैं । इस समय सुगना सोनू के चेतन और अवचेतन मन दोनों पर राज कर रही थी उसे सुगना के अलावा न कुछ दिखाई दे रहा ना था और न कुछ सूझ रहा था। सुगना के बदन के बारे में सोचते सोचते सोनू के विचार एक तूफान की तरह अपने केंद्र में एकत्रित होते और उसका अंत सुगना की मखमली बुर पर खत्म होता..

धीरे-धीरे दिन भर का तनाव खत्म होने का वक्त आया सुगना ने अपने बच्चों और सोनू के लिए खाना बनाया.. सोनू की पसंद के पकवान बनाते समय सुगना सोनू के बचपन से लेकर युवा होने तक सारी बातें याद कर रही थी जबसे सोनू युवा हुआ था और लाली के करीब आया था सुगना के विचारों में सोनू का बालपन न जाने कब अपना रूप बदल चुका था लाली को चोदते हुए देखने के बाद सुगना ने पहली बार सोनू से नजरें मिलाने में शर्म महसूस की और फिर जैसे-जैसे वासना सोनू और सुनना को अपने आगोश में लेती गई दोनों के बीच भाई-बहन की मासूमियत तार-तार होती गई और सुगना ने अपनी जांघों के बीच सोनू के लिए उत्तेजना महसूस करना शुरू कर दिया….

सुगना ने बीती रात जो प्रयोग किया था आज भी उसे हूबहू दोहराने के लिए बिसात बिछा ली उस मासूम को क्या पता था कि वह जिस सोनू पर जिस हथियार का प्रयोग करने जा रही थी उसने उसकी रणनीति बना रखी थी।

सोनू और सुगना ने साथ में भोजन किया बच्चों ने भी दिनभर की खेलकूद के पश्चात मनपसंद भोजन कर नए-नए पालने में आकर झूला झूलने लगे सूरज ने भी जिद कर उसी झूले में अपने लिए जगह तलाश ली।


सोनू सूरज और मधु को पालने में एक दूसरे के साथ प्यार करते और खेलते देखकर मन ही मन सोच रहा था क्या बालपन का यह प्यार भविष्य में कोई और रूप ले सकता है सुगना और उसके बीच कुछ ऐसी ही घटनाएं बालपन में हुई होंगी और उसकी सुगना दीदी ने उसका ऐसे ही ख्याल रखा होगा परंतु आज…

वासना के आधीन सोनू उस रिश्ते की पवित्रता को नजरअंदाज कर सिर्फ और सिर्फ सुगना की चूचियों और बुर पर अपना ध्यान लगाए हुए था। मन के किसी कोने में सुगना की अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति करना वह अपना दायित्व समझ रहा था। बीती रात उसकी बहन ने जो उसके पुरुषत्व को बचाने के लिए किया था आज उसका ऋण चुकाने का वक्त था ….

सोनू बाथरूम में मुत्रत्याग के लिए गया और मूत्र त्याग के दौरान शावर की लंबी रोड पर टंगी सुगना की ब्रा और पेंटी को देखकर मदहोश होने लगा। लंड से मूत्रधार बहती रही और लंड में लहू एकत्रित होता गया। उसने सुगना के अंतर्वस्त्र को चूमा पुचकारा और फिर वापस उसी जगह रख दिया। अंतर्वस्त्रों ने सोनू की कल्पना को आज फिर एक नया रूप दे दिया।

अचानक सोनू के दिमाग में कुछ विचार आए और उसने सुगना की ब्रा और पेंटी को शावर की रॉड के ठीक किनारे लटका दिया जिससे उसका अधिकतर भार एक तरफ झूल गया…. उस पर से उसने सुगना की नाइटी डाल दी जिससे ब्रा और पेंटी नीचे गिरने से तात्कालिक रूप से बच गई। पर यदि सुगना अपनी नाइटी को हटाकर ब्रा और पैंटी को पकड़ने की कोशिश करती तो निश्चित ही असावधानी के कारण ब्रा और पेंटिं नीचे गिरकर बाल्टी में गिरती या फर्श के पानी भीग जाती।

सोनू न जाने अपने मन में क्या-क्या सोच रहा था और उसी अनुसार अपने मन में योजनाएं बना रहा था। उधर सोनू के लंड ने अब तक अपना आकार ले लिया था अपनी बड़ी बहन की ब्रा और पेंटी को चूमने तथा पूचकारने का असर नीचे दिखाई पड़ रहा था सोनू ने अपने लंड को अपने हाथों में ले और उसे मसल मसल कर वीर्य त्याग करने लगा था। सोनू अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा था।

कुछ ही देर में सोनू ने अपना वीर्य स्खलन पूरा किया और वापस आकर बिस्तर पर उसी तरह लेट गया। सफेद धोती में अपना लंड छुपाए और सफेद गंजी में सोनू का बदन एक बार फिर चमक रहा था।

उधर रसोई में सुगना ने दूध तैयार किया वैद्य जी की पत्नी द्वारा दी गई दवाई मिलाई और दूध लेकर सोनू की तरफ आने लगी।पर कल की तरह आज सुगना के हाथ में दो गिलास न थे। शायद दिन भर में दूध की खपत कुछ ज्यादा हो गई थी और रात्रि के लिए दूध एक ही गिलास बचा था।

बिस्तर पर लेटे सोनू की धड़कन तेज थी लंड स्खलित होकर आराम कर रहा था। आज सोनू ने जानबूझकर अपना अंडरवियर नहीं पहना था परंतु सतर्क होने के कारण धोती का आवरण भी उसे ढकने में कामयाब हो रहा था। सुगना को अपने करीब आते देख कर उसने स्वयं को व्यवस्थित किया और पालथी मारकर पलंग पर बैठ गया धोती को अपने जननांगों के पास समेट कर उसने अपने आराम कर रहे लंड को पूरी तरह ढक लिया।

"आज दिन भर ढेर काम हो गईल ने दूध पीकर सूत जो…." सुगना ने स्वयं को यथासंभव सामान्य दिखाते हुए कहा।

"अरे एक ही गिलास दूध ले आईल बाड़ू तू ना पियाबु"

"नाना हम पी ले ले बानी" सुगना ने झूठ बोलने की कोशिश की पर इस झूठ में सिर्फ और सिर्फ त्याग था।

"अइसन हो ना सकेला हमार कसम खा"

सोनू की झूठी कसम खा पाना सुगना के लिए संभव न था वह बात बदलते हुए बोली

"अरे पी ले हम ढेर खाना खा ले ले बानी"

परंतु सोनू ना माना उसने आगे झुक कर सुगना की कलाइयां पकड़ ली और उसे खींचकर अपने बगल में बैठा लिया

"पहले तू थोड़ा दूध पी ला तब हम पियेब " सोनू ने अधिकार जमाते हुए कहा।

सुगना को पता था सोनू अपनी जिद नहीं छोड़ेगा पर यदि उसने दूध पिया तो……. सुगना का हलक सूखने लगा

"का सोचे लगलू? थोड़ा सा पी ला…"

सुगना को कोई उत्तर न सूझ रहा था आखिरकार उसने हार मान ली और बोली

" बस दो घूंट और ना.."

सोनू ने गिलास अपने हाथ में लेकर अपने अंगूठे से गिलास पर निशान बनाया और बोला

"इतना पी जा ना ता हम दूध ना पिएब"

सुगना जानती थी यदि उसने दूध पीने में आनाकानी की और ज्यादा जिद की तो सोनू को शक हो सकता था । और यदि सोनू ने दूध न पिया तो आज उसका वीर्य स्खलन असंभव हो जाता। उसने सोनू की संतुष्टि के लिए मजबूरी बस दूध के कुछ घूंट अपने हलक के नीचे उतार लिए।


उसे पता था कि वह स्वयं अब उस दवा के प्रकोप में आ सकती है परम उसे विश्वास था कि वह दूध की कुछ मात्रा लेने के बावजूद भी वह अपनी चेतना बरकरार रख सकती है। सुगना ने दूध के कुछ घूंट पिए और गिलास सोनू को हाथ में देते हुए बोली

"अब पी जा बदमाशी मत कर हम जा तानी नहाए…"

सोनू दूध पीने के मूड में बिल्कुल भी नहीं था परंतु सुगना वहां से हिलने को तैयार ना थी। जब तक सोनू के गले की मांसपेशियों ने दूध हलक में उतरने का दृश्य सुगना की आंखों के समक्ष न लाया सुगना वहां से न हटी। परंतु जैसे ही सुगना ने बाथरूम की तरफ अपने कदम बढ़ाए सोनू ने दूध पीना रोक लिया और सुगना के बाथरूम में जाते ही वह दूध रसोई घर में जाकर बेसिन में गिरा आया।

भाई-बहन के इस मीठे प्यार ने दोनों के हलक में उस दिव्य दूध की चंद घूटें उतार दी थी…

दोनों भाई बहन कभी अपने सर को झटकते कभी अपनी आंखों को बड़ा कर दवा के असर को कम करने की कोशिश करते….


सुगना निर्वस्त्र होकर स्नान करने लगी उसके दिमाग में एक बार फिर सोनू का लंड घूमने लगा जिसे अब से कुछ देर बाद उसे हाथों में लेकर सहलाते हुए स्खलित करना था। जांघों के बीच हो रही बेचैनी को सुगना ने रोकने की कोशिश न कि आखिर बुर से बह रही लार ने कल रात सुगना की मदद ही की थी..
अपने उत्तेजक ख्यालों में खोई सुगना ने अपना स्नान पूरा किया तौलिए से अपने भीगे बदन को पोछा और अपने अंतर्वस्त्र पहनने के लिए शावर की रॉड पर टंगी अपनी नाइटी को हटाया….

जब तक सुगना अपने अंतर्वस्त्र पकड़ पाती वह नाइटी के हटते ही वह रॉड से नीचे गिर गए। सुगना ने उन्हें पकड़ने की कोशिश अवश्य की परंतु सोनू की चाल कामयाब हो गई थी। सुगना की ब्रा और पेंटी नीचे रखी बाल्टी में जा गिरे थे और भीग गए। वो अब पहनने लायक न थे। सुगना कुछ समय के लिए परेशान हो गई पर कोई उपाय न था। आखिर का उसने हिम्मत जुटाई और बिना अंतर्वस्त्र पहले ही नाइटी पहन कर बाहर आ गई…

वैसे भी उसके अनुसार उसका भाई सोनू अवचेतन अवस्था में होगा नाइटी के अंदर अंतर्वस्त्र है या नहीं इससे किसी को फर्क नहीं पड़ना था। परंतु सुगना शायद यह बात नहीं जानती थी कि उसका छोटा भाई सोनू उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा और जब वह उसकी भरी-भरी चुचियों और जांघों के बीच से झांक रहे अमृत कलश को अपनी निगाहों से देखेगा वह कैसे खुद पर काबू रख पाएगा…

सुगना को अपनी तरफ आते देख सोनू ने सुगना की चूचीयों को बंद पलकों के बीच से झांक कर देखा और चुचियों की थिरकन से उसने अपनी योजना की सफलता का आकलन कर लिया।


सुगना एक बार फिर सोनू के बगल में बैठ चुकी थी। और अपने दाहिने हाथ से सोनू की धोती को अलग कर रही थी नियति मुस्कुरा रही थी…सुगना जागृत सोनू का लंड अपने हाथों से पकड़ने जा रही थी..

दवा की खुमारी ने सोनू और सुगना दोनों को सहज कर दिया था।

पाप घटित होने जा रहा था….

शेष अगले भाग में….
Bhut badhiya update....... Base pura ready ho gya h, ab to premyudh hona hi h
 

LustyArjuna

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AJJU ji धन्यवाद वास्तव में यह अपडेट मुझे भी अच्छा लगा अपना जुड़ाव बनाए रखें.

बाकी सभी पाठकों को भी एक बार फिर कहानी के पटल पर आकर अपना समर्थन दिखाने के लिए धन्यवाद।

Is Kahani Ko anjam Tak pahunchane ke liye pathakon ka samarthan behad aham hai jab tak aap sab is Patel per Aakar apni upsthiti darj karte rahenge Kahani aage badhati rahegi anyatha mere likhane ka koi auchit nahin hai dhanyvad
लवली जी,
आपने सोनू और सुगना के मिलन के सारे अपडेट यहां पटल पर नहीं डाले और अब आप कहानी के पटल पर आते नहीं। इससे मेरे जैसे नये पाठकों के लिए यह कहानी यहां तक पड़ने के बाद भी अधुरी है।

कृप्या करके जब भी active/ online आओ site पर तो १०१, १०२, १०९ और अब १२० अपडेट जरूर भेजना।

अपडेट के इन्तजार में आपकी कहानी के नये पाठक ‍।
 
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