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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

  • yes

    Votes: 41 97.6%
  • no

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Siraj Patel

The name is enough
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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

As you all know, in previous week we announced USC and also opened Rules and Queries thread after some time. Before all this, chit-chat thread already opened in Hindi section.

Well, Just want to inform that it is a Short story contest, in this you can post post story under any prefix. with minimum 700 words and maximum 7000 words . That is why, i want to invite you so that you can portray your thoughts using your words into a story which whole xforum would watch. This is a great step for you and for your stories cause USC's stories are read by every reader of Xforum. You are one of the best writers of Xforum, and your story is also going very well. That is why We whole heatedly request you to write a short story For USC. We know that you do not have time to spare but even after that we also know that you are capable of doing everything and bound to no limits.

And the readers who does not want to write they can also participate for the "Best Readers Award" .. You just have to give your reviews on the Posted stories in USC

"Winning Writer's will be awarded with Cash prizes and another awards "and along with that they get a chance to sticky their thread in their section so their thread remains on the top. That is why This is a fantastic chance for you all to make a great image on the mind of all reader and stretch your reach to the mark. This is a golden chance for all of you to portrait your thoughts into words to show us here in USC. So, bring it on and show us all your ideas, show it to the world.

Entry thread will be opened on 7th February, meaning you can start submission of your stories from 7th of feb and that will be opened till 25th of feb. During this you can post your story, so it is better for you to start writing your story in the given time.

And one more thing! Story is to be posted in one post only, cause this is a short story contest that means we can only hope for short stories. So you are not permitted to post your story in many post/parts. If you have any query regarding this, you can contact any staff member.



To chat or ask any doubt on a story, Use this thread — Chit Chat Thread

To Give review on USC's stories, Use this thread — Review Thread

To Chit Chat regarding the contest, Use this thread— Rules & Queries Thread

To post your story, use this thread — Entry Thread

Prizes
Position Benifits
Winner 1500 Rupees + Award + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 500 Rupees + Award + 2500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 5000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories) + 2 Months Prime Membership
Best Supporting Reader Award + 1000 Likes+ 2 Months Prime Membership
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :- XForum Staff
 

Sanju@

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सुगना अपने मीठे ख्वाब से बाहर आ गई और अपने पति को अपना पैर दबाते देख एक तरफ वो शर्मा गयी दूसरी तरफ अपने उस सुखद सपने को याद कर रही थी जिसने उसकी बुर को पनिया दिया था।

सुगना की साड़ी अभी घुटनों के ठीक ऊपर थी रतन नींद में सो रही सुगना उस साड़ी को ऊपर करना तो चाहता था परंतु हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था परंतु अब सुगना जाग चुकी थी रतन के हाथ सुगना के घुटनों की तरफ बढ़ रहे थे...

नियति रतन की आंखों में प्रेम और वासना दोनों का मिलाजुला अंश देख रही थी…

अब आगे...…..

जब तक की रतन के हाथ सुगना के घुटनों के ऊपर पड़ी साड़ी तक पहुंचते सुगना ने रतन के हाथ पकड़ लीये और अपने दूसरे हाथ से साड़ी को नीचे करते हुए होली "जाए दी अब रहे दी ...अब ठीक लागता"

सुगना ने रतन को बड़ी सादगी और सम्मान से रोक लिया था। परंतु रतन सुगना के इस तरह रोके जाने से एक बार फिर दुखी हो गया।

रतन हमेशा यही बात सोचता की सुगना ने राजेश से संभोग कर न सिर्फ सूरज को जन्म दिया था अपितु वह एक बार पुनः गर्भवती हो गई थी। क्या सुगना राजेश से के बार बार अंतरंग हो चुकी थी? क्या उन दोनों के बीच अंतरंगता की वजह संतान उत्पत्ति के अलावा और भी कुछ थी ? क्या सुगना ने राजेश के साथ संबंध अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए बनाया था? क्या मासूम सी दिखने वाली सुगना एक काम पिपासु युवती थी जो जिसने वासना शांत करने के लिए राजेश से निरंतर संबंध बना कर रखे थे?

कभी-कभी रतन के मन में यह सोच कर घृणा का भाव भी उत्पन्न होता परंतु सुगना का मृदुल व्यवहार और मासूम चेहरा उसे व्यभिचारी साबित होने से रोक लेता रतन सुगना के साथ बिताए गए पिछले कुछ महीनों के अनुभव से यह बात कह सकता था कि सुगना जैसी युवती बिना प्रेम के इस तरह के संबंध नहीं बनाएगी और यह प्रेम न तो सुगना की आंखों में दिखाई देता न राजेश की आंखों में। यह अलग बात थी की राजेश की आखों में वासना अवश्य दिखाई देती।

ढेर सारे प्रश्न लिए रतन बेचैन रहता परंतु सुगना और राजेश के संबंध को जितना वह समझ पाया था वह उसके प्रश्नों के उत्तर के लिए काफी न था। वह सुगना और राजेश पर नजर भी रखता था परंतु हर बार उसे असफलता ही हाथ लगती। उसने राजेश की आंखों में सुगना के प्रति जो कसक और ललक महसूस की थी वह ठीक वैसी ही थी जैसी किसी कामुक मर्द की आंखों में दिखाई पड़ती है। रतन बार-बार यही बात सोचता कि जब राजेश सुगना के साथ कई बार अंतरंग हो चुका है तो फिर यह लालसा क्यों?

रतन के प्रश्नों का उत्तर किसी के पास नहीं था सुगना से पूछ पाने की उसकी हिम्मत न थी और सुगना जिससे पिछले तीन-चार वर्षो से कामकला के खेल खेल रही थी वह रतन की उम्मीदों से परे था ।

उधर मिंकी सूरज के अंगूठे के रहस्य को जान चुकी थी उस दिन सुगना ने आंखें बंद कर उससे जो कार्य कराया था उसका अंदाजा उसे लग चुका था अपनी समझ की तस्दीक करने के लिए उसने एक नहीं कई बार सूरज का अंगूठा सहलाया और उसकी नुंनी पर अपने होठों का स्पर्श दे उसे वापस अपने आकार में लाने में कामयाब रही थी। यह अनोखा खेल मिंकी को पसंद आ गया था।


सूरज की मासूम नुंनी से उसे नाम मात्र की भी घृणा न थी। जब उसका मन करता सूरज के अंगूठे पर से आवरण हटाती और उसके अंगूठे को सहला कर बेहद प्यार से उस करामाती अंग को बड़ा करती उससे प्यार से खेलती तथा सुगना के आने की आहट सुन अपने होठों के बीच लेकर उसे तुरंत ही छोटा कर देती। सूरज इस दौरान हंसता खिलखिला रहता।

नियति उसका यह खेल देखती और उनके भविष्य की कल्पना करती। काश नियति समय की चाल बदल पाती तो वह 15 वर्षों के बाद के एक तरुणी को एक युवा के लण्ड से इस प्रकार खेलते देख स्वयं उत्तेजित हो जाती।

मिंकी का यह खेल बेहद पावन और स्वाभाविक था उसे न तो इन काम अंगों का ज्ञान था नहीं उस पर लगाई गई समाज की बंदिशें। यदि वह समाज के बीच न होती तो यही कार्य करते करते दिन महीने साल बीतते जाते और एक दिन सूरज की नूनी लण्ड का आकार ले लेती और मिंकी के मादक हो चुके होंठ उसे निश्चित ही अपने स्पर्श , घर्षण और आगोश से स्खलित कर देते।

परंतु समय अपनी चाल से चल रहा था और नियति नित्य नई परिस्थितियां देखकर अपनी कहानी संजो रही थी। सुगना का गर्भ भी अब प्रसव के लिए तैयार हो रहा था।


इसी दौरान सुगना की बहन सोनी ने अपनी 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर बनारस के नर्सिंग स्कूल में दाखिला ले लिया था। वह सुगना के साथ रहती और घरेलू कार्यों में उसका हाथ भी बताती। सुगना के फूले हुए पेट को देखकर सोनी के मन में कई सारे प्रश्न आते वह सुगना से उसके अनुभव के बारे में पूछती परंतु गर्भधारण करने की मूल क्रिया के बारे में चाह कर भी न पूछ पाती जो इन दिनों लगातार उसकी उत्सुकता बढ़ा रहा रही थी।

सोनी ने अपनी बहन मोनी को भी अपने कामुक अनुभव सुनाने और उसे अपने खेल में शामिल करने के लिए कई प्रयास किए परंतु मोनी इन सब बातों से दूर घरेलू कार्यों और पूजा पाठ में मन लगाती। उसके पास बात करने के लिए विषय दूसरे थे और सोनी के दूसरे। सोने की इस जिज्ञासा का उत्तर देने वाला और कोई नहीं सिर्फ सुगना थी। परंतु सुगना और सोनी के बीच उम्र का अंतर और सुगना का कद आड़े आ जाता।

सोनी समय से पहले युवा हो चुकी थी और चुचियों ने स्वयं उसके हाथों का मर्दन कुछ जरूरत से ज्यादा झेला था और अपना आकार बरबस ही बढ़ा चुकी थीं। विकास के संपर्क में आने के बाद तो सोनी और भी उत्तेजित हो चली थी गुसल खाने में लगने वाला समय धीरे-धीरे बढ़ रहा था और सोनी को एकांत पसंद आने लगा था।

सुगना की अधीरता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी जैसे-जैसे प्रसव का समय नजदीक आ रहा था उसके मन में गर्भ के लिंग को लेकर प्रश्न उठते और वह अपने इष्ट देव के सामने नतमस्तक होती जाती वह घंटों पूजा पाठ किया करती और अपनी हर दुआ में सिर्फ और सिर्फ पुत्री की कामना करती। मन में उठने वाली दुआएं अब बुदबुदाहट का रूप ले चुकी थी।

सुगना अपने इष्ट देव के सामने नतमस्तक होकर दुआ मांग रही थी

"हे भगवान हमरा के लइकिये दीह ना त हम मर जाइब"

पीछे खड़ी सोनी सुगना की इस विलक्षण मांग से थोड़ी आश्चर्यचकित थी सुगना के उठते ही उसने पूछ लिया..

"ए दीदी ते लड़की काहे मांगेले सब केहू लाइका मांगेला"

सुगना अपनी मनो स्थिति और विद्यानंद की बातों को सोनी जैसी तरुणी से साझा नहीं करना चाहती थी उसने कहा

"हमरा लाइका ता बड़ले बा हमरा एगो लईकी चाही"

सोनी की नजरों में सुगना पहले भी समझदार थी और आज इस सटीक उत्तर ने उसे उसकी नजरों में और बड़ा तथा सम्मानित बना दिया। सोनी ने किताबों में जो लिंगानुपात के बारे में पढ़ा था आज एक समझदार महिला उसका अनुकरण कर रही थी सोनी ने सुगना को गले से लगा लिया परंतु सगुना का पेट आड़े आ गया।

"चल छोड़ जाए दे कुछ चाही का बड़ा आगे पीछे घूमता रे"

सोनी ने अपनी चूचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा "गंजी चाहीं फाट गईल बा"

(सोनी और उस क्षेत्र की किशोरियों ब्रा को गंजी कहा करती थी)

सुगना भी आज हंसी ठिठोली के मूड में थी

" बनारस शहर में लइकन के चक्कर में मत पड़ जईहे देखा तानी तोर जोवन ढेर फुलल बा" सुगना में सोने की चुचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा।

सोनी शर्मा गई सुगना ने उसके गालों को अपनी हथेलियों से सहलाते हुए अपनी कमर मे लटके बटुए से निकालकर ₹ 50 का नोट पकड़ाया और बोला

" ले अब जो तोरा कॉलेज के देर होत होइ"

सोनी मस्त हो गई और फटाफट अपना बैग लेकर अपने नर्सिंग कॉलेज की तरफ निकल पड़ी।

हवा आग और फूस को मिलाने का कार्य करती है ऐसे ही जवानी और कामुकता इस्त्री पुरुषों को करीब खींच लाते विकास और सोनी एक बार फिर रूबरू हो गए।

नियति ने जो रास रंग सोनी और विकास के खाते में लिखे थे। वह अंजाम चढ़ने लगे विकास और सोनी की मुलाकाते होने लगी। दिल के रिश्ते जिस्मानी रिश्ते में तो न बदल पाए परंतु उन दोनों ने एक दूसरे के कामांगों के स्पर्श सुख और एक दूसरे का हस्तमैथुन कर रंगरलिया मनाने लगे।


विकास तो सोनी को बिस्तर पर पटक कर चोदना चाहता था परंतु सोनी पूर्ण नग्न होकर अभी विकास के सामने अपनी जांघें खोलने को तैयार न थी विवाह अभी भी उसके लिए अपना कौमार्य खोने की अनिवार्य शर्त थी पर विकास अभी सोनी चोदने के लिए तैयार तो था परंतु विवाह बंधन में बंधने के लिए नहीं।

विकास और सोनू दोनों ही अपने फाइनल एग्जाम की तैयारी में लगे थे। लाली का पेट फूलने के बाद सोनू की कामवासना को भी ग्रहण लग गया था। उसकी सुगना दीदी लाली के ठीक बगल में रहती थी और दोनों सहेलियां अक्सर साथ-साथ ही रहती सोनू जब कभी लाली से मिलने जाता तो सुगना वहां पहले ही उपस्थित रहती या फिर लाली खुद सुगना के घर में रहती दोनों ही स्थितियों में सोनू की कामवासना ठंडी पड़ जाती। मदमस्त युवती जब गर्भवती होती है तो कामकला के पारखी उस दशा में भी आनंद खोज लेते हैं परंतु सोनू तो नया नया युवा था वह मदमस्त काया वाली अपनी लाली दीदी पर आसक्त हुआ था लाली का बदला रूप उसे उतना नहीं भा रहा था।

इस समय विकास का पलड़ा भारी था सोनू की बहन सोनी के साथ बिताए पलों को वह विस्तार से सोनू को सुनाता और दोनों अपनी अपनी उत्तेजना को जागृत कर अपने हाथों से अपने लण्ड का मान मर्दन करते और खुद को स्खलित कर अपनी अगली पढ़ाई के लिए स्वयं को तैयार कर लेते।

सोनी ने घर का सारा कार्यभार संभाल लिया था सुगना अब ज्यादा समय आराम ही करती थी।


रविवार का दिन था सुगना ने बिस्तर पर से ही आवाज दी

" ए सोनी तनी सूरज बाबू के तेल लगा दिहे ढेर दिन हो गईल बा"

सोनी को हमेशा से सूरज के साथ खेलना पसंद था उसने खुशी-खुशी कहा

"ठीक बा दीदी"

सोनी सूरज को तेल लगाने लगी थोड़ी ही देर में सूरज सोनी की कोमल हाथों की मालिश से मस्त हो गया और चेहरे पर मुस्कान लिए अपनी मौसी के साथ खेलने लगा अचानक सोनी ने एक बार फिर वही प्रतिबंधित कार्य किया जिसे सुगना ने मना किया था।

जाने बंदिशों में ऐसा कौन सा आकर्षण होता है जो मानव मन को स्वभावतः उसी दिशा में खींच लाता है क्या बंदिशें आकर्षण को जन्म देती हैं ?

सोनी भी अपने आकर्षण और कौतूहल को न रोक पायी। और एक बार फिर उसने सूरज के अंगूठे को सहला दिया और अंततः सोनी को अपने होठों का प्रयोग करना पड़ा। परंतु इस बार जब वह अपने होंठ रगड़ रही थी उसी समय रतन कमरे में आ गया सोनी झेप गई और सूरज को बिस्तर पर सुला उसके अधोभाग को पास पड़े तौलिए से ढक दिया …

"जीजा जी कुछ चाही का?" सोनी में अपनी चोरी पकडे जाने को नजरअंदाज कर रतन से पूछा...

रतन अब भी उस विलक्षण दृश्य के बारे में सोच रहा था सोनी के गोल किए गए होठों को यह कार्य करते देख वह कर अपने मन ही मन सोनी का चरित्र चित्रण करने लगा।

क्या सोनी ने वह कार्य वासना के अधीन होकर किया था? रतन ने पहले भी कई बार कई महिलाओं को छोटे बच्चों के उस भाग पर तेल की बूंदे डाल फूंक कर उसके आवरण को हटाते देखा था परंतु आज जो सोनी ने किया था यह कार्य सर्वथा अलग था अपने होठों के बीच उस भाग को रगड़ने की क्रिया को किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं माना जा सकता था.. सोनी के होंठ और चेहरे के हाव भाव रतन की सोच से मेल खा रहे थे।

रतन के मुंह से कोई उत्तर न सुन एक बार सोनी ने फिर कहा

" रउआ खातिर चाय बना दी?"

सोनी चौकी पर से उठने लगी। अपने घागरे को व्यवस्थित करते समय उसकी युवा टांगे रतन की निगाहों में आ गयीं। अचानक ही अपनी साली के इस युवा रूप को देखकर रतन के मन में एक पल के लिए वासना का झोंका आया जिस पर विराम एक बार फिर सोनी की आवाज ने ही लगाया

" ली रउआ सूरज बाबू के पकड़ी और दीदी के पास चली हम चाय लेकर आ आव तानी"


रतन ने अपनी क्षणिक कुत्सित सोच पर स्वयं को धिक्कारा और सूरज बाबू को लेकर सुगना के कमरे की तरफ बढ़ चला। सोनी कब बच्ची से बड़ी हो गई रतन यही सोच रहा था।

कुछ दृश्य मानव पटल पर ऐसे स्मृतियां छोड़ देते जो चाह कर भी विचारों से नहीं हटते। सोनी के गोल किए हुए सुंदर होठ अभी रतन के जहन में रह रह कर घूम रहे थे। रतन का ध्यान अब सोनी के अन्य अंगों पर भी जा रहा था। अचानक कि सोनी उसे मासूम किशोरी की जगह काम पिपासु युवती दिखाई पड़ने लगी। रतन ने सोनी को कभी इस रूप में नहीं देखता था पर जब एक बार विचार मैले हुए फिर रतन के पुरुष मन ने सोनी के युवा शरीर की नाप जोख करनी शुरू कर दी। रतन के अंतर्मन में चल रहे इस विचार को उसकी अतृप्त कामेच्छा ने और बढ़ावा दिया।

सुगना ने रतन का ध्यान भंग किया और बोली..

"लागा ता अब दिन आ गईल बा। टेंपो वाला के बोल कर राखब कभी भी हॉस्पिटल जाए के पड़ सकता बा"

पिछले कुछ दिनों में सुगना रतन से खुल कर बातें करने लगी थी।

"तू चिंता मत कर सब तैयारी बा"


तभी सोनी चाय लेकर आ गई उसने सुगना को चाय दी और फिर रतन को जैसे ही सोनी रतन को चाय देने के लिए झुकी उसकी फूली हुई चुचियों के बीच की गहरी घाटी रतन को दिखाई पड़ गई न जाने आज रतन को क्या हो गया था सोनी उसके विचारों में पूरी तरह बदल गई थी।

वैसे भी बनारस आने से पहले रतन और सोनी की मुलाकात ज्यादा नहीं थी। जब रतन को सुगना से ही कोई सरोकार न था तो उसके परिवार वालों और उसकी छोटी बहनों से क्यों होता परंतु पिछले कुछ दिनों में जब से सोनी आई थी तब से रतन ने भी उसे सहर्ष अपनी साली के रूप में स्वीकार कर लिया था।

"जीजा जी हमरा का नेग मिली सेवा कईला के"

सोनी ने रतन को सहज करने की कोशिश की जोअपने ख्यालों में खोया हुआ था

"सब कुछ बढ़िया से हो जायी त जो चाहे मांग लीह"

"बाद में पलटब अब नानू"

"अच्छा बताव तहरा का चाहीं"

"चली जाए दीं, टाइम आवे पर मांग लेब भूलाइब मत"

चाय खत्म होने के बाद सोनी चाय के कप लेकर वापस जाने लगी रतन की निगाहें उस के हिलते हुए नितंबों पर चिपकी हुई थी बिस्तर पर बैठी सुगना ने यह ताड़ लिया और बोली

"का देखा तानी"

रतन क्या बोलता वह जो देख रहा था वह सारे युवाओं को पसंद आने सोनी के गदराए नितंब थे जो घागरे के अंदर से चीख चीख कर अपनी उपस्थिति का एहसास करा रहे थे।

"कुछो ना"

रतन ने बात काटी और अपने वस्त्र बदलने लगा। सुगना को एक पल के लिए महसूस हुआ की युवा स्त्रियों के प्रति रतन का आकर्षण क्या स्वाभाविक है? या रतन एक चरित्रहीन व्यक्ति है? सुगना रतन के व्यक्तित्व का आकलन पिछले कई दिनों से कर रही थी और धीरे-धीरे उसे अपने अंतर्मन में जगह दे रही थी उसका घाघरा तो अभी व्यस्त था उस में जगह देने की न तो अभी जगह थी और नहीं यह विचार सुगना की सोच में था? जब अंतर्मन एक हो तो एकाकार होने का आनंद सुगना बखूबी जानती थी।

सुगना ने रतन की परीक्षा के दिन और बढ़ा दिए।

उधर रतन अब सोनी पर निगाह रखने लगा। कई बार वह अपने मन को समझाता कि उसका इस तरह सोनी पर निगाह रखना सोनी के चरित्र को समझने के लिए था परंतु इसमें उसकी कामेच्छा भी इसमें एक अहम भूमिका निभा रही थी।

रतन ने मन ही मन सोनी की युवा काया की तस्वीर को अपने मस्तिष्क के कैनवस पर खींचना शुरू कर दिया था। सोनी को बिना वस्त्रों के देखने की ललक बढ़ती जा रही थी। वह ताका झांकी करने लगा। सोनी इन सब बातों से अनजान सामान्य रूप से रह रही थी। उसे एक पुरुष से जो चाहिए था वह विकास उसे भली-भांति दे रहा था और जिसकी उसे असीम इच्छा थी उसके लिए विवाह एक अनिवार्य शर्त थी। उसे क्या पता था कि जीजा रतन के विचार बदल चुके थे।

स्त्रियों विशेषकर पत्नियों में यह एक विशेष गुण होता है कि यदि वह अपने पुरुष मित्र या पति को किसी अन्य युवती की तरफ आकर्षित होते हुए देखते हैं तो वह तुरंत ही उसे ताड़ लेती हैं। सुगना ने भी कुछ ही दिनों में रतन के मन में आए इस पाप को पहचान लिया। उसे रतन का यह रूप कतई पसंद न आया। अपनी सालियों से हंसी ठिठोली तो ठीक है परंतु रतन की निगाहें सोनी की चूचियों और नितंबों पर ज्यादा देर टिकने लगी थी।

रतन के मन में सोनी के प्रति जो भावना आई थी वह सिर्फ और सिर्फ वासना के कारण जन्मी थी उसके खयालो और हस्तमैथुन के अंतरंग पलों में कभी-कभी पेट फूली हुई सुगना की जगह सोनी अपनी जगह बनाने लगी थी। रतन सुगना से बेहद प्यार करता था परंतु वासना का क्या ? वह तो भटकती है और उचित पात्र देखकर उसे अपने रास रंग में शामिल कर लेती है रतन की वासना ने भी रतन के मन को व्यभिचारी बना दिया था।

अपनी वासना को अपनी सोच पर हावी होने देना मानव मन की सबसे बड़ी कमजोरी है जिन पुरुषों ने इस पर विजय प्राप्त की है वह तारीफ के काबिल है और उन के दम पर ही समाज चल रहा है यदि पुरुषों को यह वरदान प्राप्त हो जाए कि वह किसी भी सुंदर स्त्री को अपने बिस्तर पर अवतरित कर भोग सकते हैं तो अधिकतर पुरुष दर्जन भर से ज्यादा स्त्रियों को अपने बिस्तर पर ला चुके होते और इस चुनाव में रिश्ते शायद कम ही आड़े आते।

किसी नितांत अपरिचित सुंदरी से संभोग करना शायद उतना उत्तेजक ना होता हो जितना अपने जानने पहचानने वाली चुलबुली और हसीन स्त्री से।

दो-चार दिन और बीत गए और एक दिन सुगना का पेटीकोट पानी से भीग गया कजरी घर पर ही थी वह तुरंत ही समझ गई की प्रसव बेला करीब है रतन अपने होटल के लिए निकल रहा था कजरी ने कहा

"जो टेंपो ले आओ सुगना के अस्पताल लाई जाए के परी। ए सोनी जल्दी-जल्दी सामान रख लागा ता आज ही नया बाबू आई.."

चेहरे पर दर्द लिए सुगना एक बार फिर बोली

"मां बाबू ना बबुनी"

सुगना इस दर्द भरी अवस्था में भी अपनी पुत्री की चाह को सरेआम व्यक्त करने से ना रोक पायी ।

दोनों सास बहू उन बातों पर चिंता कर रही थी जो उनके हाथ में कतई ना था। थोड़ी ही देर में हरिया की पत्नी (लाली की सास) भागते हुए आई और बोली

"लाली के हमनी के अस्पताल ले जा तानी जा ओकरा पेट में दर्द होखता"


कजरी और हरिया की पत्नी ने एक दूसरे से अस्पताल ले जाने वाली सामग्रियों की जानकारी साझा की और कुछ ही देर में दो अलग-अलग ऑटो में बैठ कर सुगना और लाली अस्पताल में प्रसव पीड़ा झेलने के लिए चल पड़ी। बनारस महोत्सव में जो बीच उनके गर्भ में बोया गया था उसका फल आने का वक्त हो चुका था।…

क्या नियति ने सुगना के गर्भ में पुत्री का है सृजन किया था? या सुगना जो सूरज की मां और बहन दोनों थी वही उसकी मुक्ती दायिनी थी…




यह प्रश्न मैं एक बार फिर पाठकों के लिए छोड़े जा रहा हूं।

शेष अगले भाग में
बहुत ही सुंदर लाजवाब और रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया :applause: :applause:
कहानी एक धमाकेदार और नये मोड पर आ गयी है रतन सुगना की मालिश करते हुए वासना के अधीर हो जाता हैं लेकिन सुगना रोक लेती है
एक तरफ रतन का सोनी की ओर झुकाव हो रहा है जिसका सुगना को पता चल जाता है वह रतन के चरित्र का आकलन करती है तो एक ओर सुगना और लाली के प्रसव का वक्त आ गया है
आगे बहुत ही बडा धमाका होने की संभावना लगती हैं देखते हैं आगे क्या होता है
 

Tiger 786

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भाग-61

कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।

सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी


"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई

अब आगे..

"आई भैया" सोनी चिल्लाई

जब तक सोनी की आवाज बाहर पहुंचती सोनू कमरे में दाखिल हो चुका था यह तो शुक्र था कि सोनी के हाथ उसके लहंगे से बाहर आ चुके थे परंतु उंगलियों में रस अभी भी लगा हुआ था. सोनी ने उस रस को अपने नितंबों को ढक रहे घागरे में पोछने की कोशिश की और बोली..

"का चाहीं"

"थोड़ा बोरोप्लस लगा दे देख यहां का कटले बा"

सोनी ने देखा सोनू की नाक के नीचे एक कीड़े ने काट लिया था चमड़ी छिली हुई प्रतीत हो रही थी। सोनू के दोनों हाथ भैंसों के चारे से लथपथ थे शायद वह भैंसों के नाद ( जिसमेँ भैसें खाना खाती हैं) में चारा डाल कर उसे मिला रहा था।

सोनी ने दीवाल पर टंगे शीशे के साथ लगी प्लेट में रखा बोरोप्लस उठाया और अपनी उंगलियों में लेकर सोनू की नाक के ठीक नीचे लगे जख्म पर लगाने लगी एक पल के लिए सोनी यह भूल गई की उसकी उंगलियां प्रेम रस से संनी हुई थीं।


यद्यपि उसने उस रस को अपने घागरे में पोंछ लिया था परंतु कुवारी चूत की खुशबू अभी भी उसकी उंगलियों में समाहित थी।

जिस तरह कस्तूरी मृग अपनी नाभि में छुपे सुगंध को नहीं पहचान पाता उसी प्रकार सोनी भी उस खुशबू से अनभिज्ञ थी। परंतु सोनू वह तो इस काम रस की खुशबू से अभी हाल में ही वाकिफ हुआ था और उसकी मादक खुशबू को बखूबी पहचानता था।

अपनी लाली दीदी की चूत में उंगली घुमा कर उसने न जाने कितनी बार अपनी उंगलियों को प्रेम रस से सराबोर किया था और उन पर आई मदन रस को न जाने कितने घंटों तक सहेज कर उसकी मादक खुशबू का आनंद लिया था।


जैसे ही सोनी की उंगलियां सोनू की नाक के नीचे पहुंची सोनू की घ्राणेन्द्रियों ने उन्होंने सोनी की उंगलियों में लगी उसकी कुंवारी चूत की खुशबू बोरोप्लस की खुशबू पर भारी पड़ गयी। सोनू ने उसे अपने संज्ञान में ले लिया वह खुशबू उसे जानी पहचानी लगी ….

बनारस महोत्सव ने सोनू को स्त्रियों के यौन अंगों और उनसे रिसने वाले काम रस से भलीभांति परिचित करा दिया था.

यदि सामने सोनी की जगह लानी होती तो सोनू निश्चित ही यकीन कर लेता की उसके दिमाग में आए खयालात पूरी तरह सच है परंतु चूंकि यह उसकी छोटी बहन सोनी थी, सोनू का दिल यह बात मानने को तैयार न था की वह खुशबू सोनी की नादान चूत की ही थी। सोनू की निगाह में अब भी सोनी एक किशोरी ही थी उसे क्या पता था लड़कियां ज्यादा जल्दी जवान होती हैं और जांघों के बीच भट्टी जल्दी सुलगने लगती है..

सोनू ने उंगलियों को सुघने के लिए कुछ ज्यादा ही प्रयास किया जिसे सोनी ने महसूस कर लिया और उसे यह बात ध्यान आ गई उसने फटाक से अपने हाथ नीचे खींच लीयेऔर बोली

"लग गया…" और शर्माती लजाती तेजी से कोठरी से बाहर निकल गयी…..

सोनू भी वहां से हट गया पर अभी भी उस भीनी भीनी खुश्बू की तस्दीक कर रहा था कि क्या सोनी की उंगलियों पर कुछ और भी लगा था?


यह पहला अवसर था जब सोनू के मन में सोनी की युवा अवस्था का ख्याल आया अन्यथा आज तक तो वह उसकी प्यारी गुड़िया ही थी।

एक-दो दिन बाद सोनू वापस बनारस आ कर अपनी पढ़ाई में लग गया।

बनारस महोत्सव ने कईयों के अरमान पूरे किए थे और कईयों को उनकी किए की सजा भी दी थी एक तरफ सोनू ने इस महोत्सव में लाली की चूत में डुबकी लगाई थी वही विकास ने सोनी के जाँघों के बीच छलकती पहाड़ी नदी और उसकी उष्णता का आनंद लिया था। वहीं दूसरी तरफ सरयू सिंह को इस महोत्सव में ऐसी स्थिति में ला दिया था जहां वह न सिर्फ पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे अपितु अब उन्हें अपना जीवन बोझ लगने लगा था।

सोनू और विकास दोनों ही हॉस्टल के कमरे में अपने बिस्तर पर लेटे छत को देख रहे थे आंखें छत से चिपकी हुई थी पर दिमाग चूत पर टिका था।

कितना अद्भुत सृजन है नियति का एक छोटा पर अद्भुत छेद … लगता है जैसे सारी संवेदनाएं और भावनाएं उस अद्भुत कलाकृति के इर्द-गिर्द ही घूमती है। वही प्रेम का चरम है वही जन्म का स्त्रोत है वही रिश्तो की जनक है वही पवित्र है वही पाप है…..

विकास अपने पहले अनुभव को साझा करना चाहता था। उसने बात शुरू करते हुए से सोनू से कहा...

इस बार तो तू अपनी लाली दीदी से चिपका रहा?

सोनू ने विकास की तरफ देखा परंतु कुछ बोला नहीं

" बेटा मैं जानता हूं कि वह गच्च माल तेरी असली दीदी नहीं है…"


"सच कहूं तो भगवान को ऐसी सुंदर और गदराई माल का कोई भाई नहीं होना चाहिए …तू कैसे उसे अपनी दीदी मां पाता है?" विकास मैं अपनी कही गई बात पर बल देते हुए कहा।

सोनू से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह अपनी सफलता अपने दोस्त से साझा करना चाहता था उसने मुस्कुराते हुए कहा..

"दीदी है ना तभी तो दे दी…."

विकास बिस्तर पर उठ कर बैठ गया और उत्सुकता से पूछा…

"तू क्या तूने चोद लिया"

" हां, चोद लिया" सोनू ने शर्माते हुए कहा.. वह भी अपने प्रथम संभोग की बातों को साझा कर अपनी मर्दानगी का बखान करना चाहता था..

" बता...ना कैसे कैसे हुआ?"


सोनू ने लाली के साथ बिताए गए पलों को विकास से पूरी तरह साझा कर लिया जैसे-जैसे सोनू की कहानी संभोग के करीब पहुंची वैसे वैसे उसने अपनी कहानी से राजेश को दूर कर दिया सोनू को यह बात अब भी समझ नहीं आ रही थी कि आखिर राजेश जीजु उसे लाली के समीप आने पर रोक क्यों नहीं रहे थे परंतु सोनू तो लाली का आम चूसने में व्यस्त था उसे गुठलियों से क्या मतलब था।

संभोग का विवरण सुनते सुनाते दोनों युवा एक बार फिर उत्तेजित हो गए और उनके लण्ड एक बार फिर हथेलियों का मर्दन झेलने लगे। यह भी एक विधि का विधान है जब वह अंग सबसे कोमल रहता है तब उसे सख्त हथेलियों के मर्दन का शिकार होना पड़ता है।

अब बारी विकास की थी उसने जैसे-जैसे सोनी के शरीर और उसके कामांगो के बारीक विवरण प्रस्तुत किए सोनू के दिमाग में उस किशोरी की छवि बनती चली गई। जैसे-जैसे विकास के विवरण में उस किशोरी की कुंवारी चूत का अंश आने लगा सोनू भाव विभोर हो गया। उसका लण्ड उसकी कठोर हथेलियों के मर्दन से तंग आ चुका था और शीघ्र स्खलित हो कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहता था।

विकास ने बताया..

"यार चूत की खुशबू क्या नशीली होती है, मैं तो उसे रात तक सूंघता रह गया था…"

सोनू के दिमाग में बरबस सोनी का ख्याल आ गया सोनी की उंगलियों में बसी बुर की खुशबू को सोनू ने अपने दिलो-दिमाग में बसा लिया था।

अपनी लाली दीदी की फूली हुई चूत रूपी ग़ुलाब को छोड़कर अचानक सोनू के दिमाग में गुलाब की कली का ध्यान आ गया। एक पल के लिए सोनू यह भूल गए कि जिस कली को वह मसलने की सोच रहा है वह उसकी अपनी छोटी बहन सोनी थी। उत्तेजना ने पराकाष्ठा प्राप्त की और सोनू के लण्ड ने अपना तनाव त्यागना शुरू कर दिया और अपनी दुग्ध धारा खुले आसमान की तरफ छोड़ दी। उधर विकास में भी अपना स्खलन प्रारंभ कर दिया था।


दोनों ही युवा पुरुषों से निकल रही वीर्य धारा एक दूसरे से होड़ लगा रही थी। परंतु सोनू था गांव का गबरु जवान और सरयू सिंह की प्रतिमूर्ति और विकास शहर का सामान्य युवक …. लण्ड की धार चाहे जैसी भी रही हो तृप्ति का एहसास उन दोनों के चेहरे पर था।

विकास को क्या पता था जिस किशोरी का उसने वर्णन किया था वह सोनू की अपनी बहन सोनी थी।

समय बीतते देर नहीं लगती। उधर सलेमपुर में जैसे ही स्थितियां सामान्य हुई सुगना ने सूरज द्वारा जीते गए पैसों से गंगा नदी के किनारे उसी सोसाइटी में एक मकान खरीदा जिसके काउंटर के बगल में लॉटरी की टिकट बिक रही थी।


उसने लाली और राजेश को भी उसी सोसाइटी में मकान खरीदने के लिए मना लिया। सुगना के समीप रहने की बात सोच कर राजेश बेहद उत्साहित हो गया अपने प्रोविडेंट फंड के पैसे निकालकर वह उस सोसाइटी में मकान खरीदने के लिए तैयार हो गया।

पैसों की तंगी राजेश और लाली के पास भी थी। यह तो सुगना की दरिया दिली थी कि उसने अपने जीते हुए पैसों का कुछ भाग राजेश और लाली को भी दे दिया ताकि वह उसी सोसाइटी में उसके ठीक बगल का मकान खरीद पाए। राजेश ने बाकी पैसे अपने लोन से उठा लिए।

सरयू सिंह सुगना की दूरदर्शिता से पूरी तरह प्रभावित थे। बनारस शहर में मकान खरीदने का निर्णय सुगना ने किया था और वह तुरंत ही उसकी बात मान गए थे। क्योंकि वह पूरी तरह स्वस्थ न थे उन्होंने इस विशेष कार्य के लिए रतन और राजेश पर विश्वास कर लिया था और अपने संचित धन का महत्वपूर्ण हिस्सा उस घर पर लगा दिया। सरयू सिंह अपनी इस आकस्मिक पुत्री के जीवन में खुशियां लाना चाहते थे और उसकी हर इच्छा पूरी करना चाहते थे। राजेश ने भी सुगना को खुश करने के लिए घर के लिए आवश्यक साजो सामान खरीदने में अपने संचित धन का प्रयोग किया और कुछ ही दिनों में घर रहने लायक स्थिति में आ गया।

सुगना ने एक और कार्य किया उसने सोनू की मदद से जीते हुए पैसों से दो मोटरसाइकिल खरीदी और एक राजेश को तथा एक अपने पति रतन को उपहार स्वरूप दे दिया। फटफटिया की अहमियत के बारे में लाली उससे कई बार बातें कर चुकी थी सुगना मन ही मन यह सोच चुकी थी कि लॉटरी में जीते गए पैसे पर लाली का भी उतना ही अधिकार है जितना उसका। आखिर वह टिकट राजेश ने हीं खरीदी थी।

रतन और राजेश फटफटिया देखकर बेहद प्रसन्न हो गए यह अलग बात थी कि वह अपनी इस आकांक्षा को पूरा तो करना चाहते थे परंतु उन्हें कभी कभी यह फिजूलखर्ची लगती थी परंतु जब सुगना ने सामने से ही मोटरसाइकिल खरीदने का निर्णय कर लिया था तो वह उसके निर्णय के साथ हो गए थे और भौतिकता के इस उपहार का आनंद लेने के लिए सहर्ष तैयार हो गए थे ।

वह दोनों न सिर्फ सुगना की कामुकता के कायल थे अपितु उसकी दरियादिली के भी। सच सुगना बेहद समझदार थी और पूरे परिवार को साथ लेकर चलने वाली थी।

कुछ ही दिनों में बनारस का मकान पूरी तरह तैयार हो गया। सुगना और लाली का परिवार बेहद प्रसन्न था।

राजेश की मदद से रतन को भी बनारस में उसी होटल में की नौकरी मिल गई जिसमे सुगना के दूसरे छेद का उदघाटन हुआ था।

नए मकान का गृहप्रवेश था। सलेमपुर गांव से कई सारे लोग सुगना और लाली के गृह प्रवेश में आए हुए थे गृह प्रवेश की पूजा में लाली और राजेश तथा सुगना और रतन जोड़ी बना कर बैठे थे रतन और सुगना को एक साथ बैठे देख कर कजरी का मन फूला नहीं समा रहा था वह बेहद प्रसन्न थी। आखिर भगवान ने उसकी सुन ली थी।

पूजा-पाठ का दौर खत्म होते ही खानपान का कार्यक्रम प्रारंभ हो गया सभी सुगना और सूरज की तारीख करते नहीं थक रहे थे कितना भाग्यशाली था सूरज लाटरी के जीते हुए पैसे ने सुगना और उसके परिवार को एक नई ऊंचाई पर ला दिया था।

अकस्मात आया धन अपने साथ दुश्मन लेकर आता है। घर के बाहर पंगत में बैठे लोग वैसे तो सुगना और उसके परिवार के शुभचिंतक थे परंतु उनमें से कई ऐसे भी थे जो इस इस प्रगति से ज्यादा खुश न थे।

रतन और बबीता की पुत्री मिंकी पंगत में पानी के गिलास रख रही थी मिंकी का चेहरा उसके पिता रतन से मिलता था गांव के ही एक व्यक्ति ने मिंकी को देखकर पूछा..

"ई केकर लईकी ह"

सरयू सिंह जो पास में है खड़े थे और पंगत की व्यवस्था देख रहे थे उन्होंने उत्तर दिया

"मिन्की बेटा जा होने गिलास दे आव"

"रतन के दोस्त के लईकी ह, एकर माई बाबूजी दोनों नई खन"

सरयू सिंह ने अपने परिवार की इज्जत का ख्याल कर रतन की दूसरी शादी की बात को छुपा लिया परंतु मिंकी के चेहरे पर रतन के प्रभाव को वह समझा पाने में नाकाम थे। जाकी रही भावना जैसी... पंगत में बैठे लोगों ने सरयू सिंह की बात को सुना और अपनी अपनी मनोदशा के अनुसार उनकी बात पर यकीन कर लिया।

सरयू सिंह ने उन सभी को यह बातें स्पष्ट कर दी कि अब मिंकी उनके ही परिवार का अंग है और रतन और सुगना ने उसे पुत्री रूप में अपना लिया है।

सुगना बेहद प्रसन्न थी। मिन्की सुगना से पूरी तरह हिल मिल गई थी वह हमेशा सुगना के आसपास ही रहती और छोटी-छोटी मदद करती रहती सुगना उसे अपनी सूज बुझ के अनुसार पढ़ाती तथा प्लेट पर क ख ग घ लिखना सिखाती। सुगना के मृदुल व्यवहार ने मिंकी का मन मोह लिया था वह सुगना को अपने मां के रूप में स्वीकार कर चुकी थी।

सुगना के सारे मनोरथ पूरे हो रहे थे। पेट में आया गर्भ अपना आकार बड़ा रहा था। पूजा की शाम को वह सरयू सिंह के समीप गई और उनके चरण छूने के लिए झुकी...

सरयू सिंह पूरी तरह सुगना को अपनी बेटी मान चुके थे उन्होंने अपनी अंतरात्मा से उसे आशीर्वाद दिया

"खुश रहो बेटी भगवान तोहर मनोकामना पूरा करें और सूरज के जइसन एगो और भाई होखे"

"बाबूजी हमारा लईकी चाहीं…" सुगना ने चहकते हुए कहा..


सुगना उठ कर खड़ी हो चुकी थी और सरयू सिंह के आलिंगन में जाने का इंतजार कर रही थी। पिछले दो-तीन माह से उसे सरयू सिंह की अंतरंगता और आलिंगन का सुख नहीं मिला था। परंतु आज खुशी और एकांत में सुगना की कामुकता जवान हो उठी थी वह स्वयं उठकर अपने बाबुजी के आलिंगन में आ गए अपनी चूचियां उनके सीने से रगड़ ती हुई बोली ..

"हमार पेट फुला के त रहुआ भुला गईनी... लागा ता ई हो बूढा गईल बा…"

सुगना की निगाहें सरयू सिंह के चेहरे से हटकर उनके लण्ड की तरफ बढ़ने लगीं और हाथों ने उन निगाहों का अनुकरण किया । जब तक की सुगना के हाथ सरयू सिंह के लटके हुए लण्ड को छूने का प्रयास करते सरयू सिंह ने सुगना का हाथ पकड़ लिया और उसे उसके गालों पर लाते हुए बोले..

"अब ई सब काम मत कर….बच्चा पर ध्यान द... और एक बात कही..?"

"ना पहले ई बतायी रहुआ हमरा से दूर काहे भाग तानी"

सुगना ने अपनी चुचियों को ब्लाउज से आजाद कर दिया और बोली..

"यह दोनों हमेशा राहुल इंतजार करेले सो डॉक्टर खाली उ सब काम के मना कइले बा ई कुल खातिर नाहीं…"

सुगना ने अपनी चूचियां खोल कर उन्हें मीसने का खुला निमंत्रण सरयू सिंह को दे दिया था।

सरयू सिंह ने अपनी आंखें बंद कर लीं। वह अपनी पुत्री को अपने मन की व्यथा समझा पाने में पूरी तरह नाकाम थे।

सुगना ने अपनी कामकला का पाठ उन से ही सीखा था और उसे सरयू सिंह की यह बेरुखी बिल्कुल रास ना आ रही थी । यद्यपि यह बात वह जानती थी कि सरयू सिंह अभी उस दिन के सदमे से उबर रहे थे परंतु वह उनके कामुक स्पर्श के लिए बेताब और बेचैन थी।


उसे यह बात कतई समझ ना आ रही थी की सरयू सिंह की उत्तेजना को क्या हो गया था? जो व्यक्ति दिन में एक दो नहीं कई बार एकांत में उसे देखकर अपने आलिंगन में भर लेता और यथासंभव अपना स्पर्श सुख देता वह पिछले कई दिनों से उसी से दूर दूर रह रहा था।

सुगना को अचानक अपनी जांघों के बीच गिरे राजेश के वीर्य का ध्यान आया कहीं उसके बाबूजी मैं उसे गलत तो नहीं समझ लिया? सुगना परेशान हो गई उसने अपने मन में सोची हुई बात पर यकीन कर लिया और सरयू सिंह की नाराजगी के कारण को उससे जोड़ लिया।

उसने सरयू सिंह को मनाने की सोची… और घुटनों के बल आने लगी उसकी मुद्रा से सरयू सिंह ने आगे के घटनाक्रम का अंदाजा लगा लिया और वह पलट गए खिड़की की तरफ देखते हुए उन्होंने सुगना से कहा ..

"सुगना बेटा हमार ए गो बात मान ल…"

"बाउजी जी हम तो राउरे बानी आप जैसे कहब हम करब हमरा से नाराज मत होखी.. कौनो गलती भईल होखे तो हमार मजबूरी समझ के माफ कर देब"

सुगना ने अपने मनोदशा के अनुसार उस कृत्य के लिए सरयू सिंह से माफी मांग ली.

सरयू सिंह के मन में कुछ और ही चल रहा था उन्होंने सुगना को अपने सीने से लगा लिया परंतु यह आलिंगन में कामुकता कतई न थी सिर्फ और सिर्फ प्यार था. सुगना उनके आलिंगन में थी परंतु स्तनों ने जैसे अपना आकार सिकोड़ लिया था। उत्तेजना से सुगना के सख्त हो चुके निप्पलों ने भी इस नए प्रेम को पहचान लिया और उन्होंने अपना तनाव त्याग दिया। सुगना अपने पिता के आलिंगन में आ चुकी थी। सरयू सिंह का यह रूप उसे बेहद अलग प्रतीत हो रहा था परंतु भावनाएं प्रबल थी उसे सरयू सिंह के आलिंगन में अद्भुत सुख मिल रहा था।

सुगना ने पुरुष का यह रूप शायद पहली बार देखा था वह भावविभोर थी और आँखों मे अश्रु लिए सरयू सिह से सटती जा रही थी।

सरयू सिंह ने सुगना के कोमल गालों को अपने हाथों में लेते हुए उसके माथे को चूम लिया और बेहद प्यार से बोले ..

"बेटा हमार बात मनबु?

"हा बाबूजी" सुगना ने अपनी पलकों पर छलक आए आंसू को पूछते हुए कहा

"हमरा खातिर रतन के माफ कर द…"

सुगना ने कोई उत्तर न दिया…

सरयू सिंह ने फिर कहा..

"जीवन ने सब कुछ अपना मर्ज़ी से ना होला..हम सब कहीं न कहीं गलती कइले बानी जा… पर अब गलती के ठीक करके बा"

सुगना को अपनी गलती का प्रायश्चित करने का विचार आ चुका था…

"ठीक बा बाबूजी… पर का उ अब हमारा के अपना पइहें"

"बेटा उ सब कुछ छोड़ के तहरे पास आइल बा….उ..अब हमारा सुगना बेटा के तंग करी त लाठी से पीटब"

सुगना के होंठो पर मुस्कुराहट आ गयी। चेहरा कांतिमान ही गया। नियति सुगना को देख रही थी और सुगना के भविष्य का ताना बाना बुन रही थी।


रतन सचमुच सुगना से प्यार करने लगा था उसे पता था कि सूरज और उसके गर्भ में पल रहा दूसरा बच्चा भी उसका नहीं था परंतु वह इन सब बातों से दूर सुगना पर पूरी तरह आसक्त हो चुका था वह एक पति की तरह उसका ख्याल रखता और हर सुख दुख में उसका साथ देता.

कुछ ही दिनों में लाली और सुगना दोनों ही अपने नए घर में पूरी तरह सेट हो गई। उनका गर्भ लगभग 6 माह का हो चुका था। दोनों ही एक साथ गर्भवती हुई थी दोनों साथ बैठती और अपने गर्भ के अनुभव को साझा करती…

एक दिन लाली ने सुगना का फूला हुआ पेट सहलाते हुए पूछा

"ए में केकर बीज बा तोर जीजाजी कि रतन भैया के…?"

"जब होइ त देख लीहे…"

सुगना इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट तौर पर दे सकती थी उसका संशय तो राजेश और बाबूजी के बीच था, रतन तो इस खेल से पूरी तरह बाहर था। निश्चित ही राजेश का पलड़ा भारी था...

सुगना के मन में उस दिन के दृश्य ताजा हो गए जब वह बनारस महोत्सव की आखिरी रात को राजेश के घर पर थी जाने यादों और संवेदनाओं में ऐसी कौन सी ताकत होती है जो दूसरा पक्ष भी पहचान लेता है। राजेश भी रेल की खिड़की से सर टिकाए स्वयं उस दिन की यादों में खोया हुआ निर्विकार भाव से बाहर की काली रात को देख रहा था और उसका अंतर्मन सुगना को याद कर रोशन था रोमांचित हो रहा था …

शेष अगले भाग में...
Awesome update
 
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Tiger 786

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भाग 62

सुगना के मन में उस दिन के दृश्य ताजा हो गए जब वह बनारस महोत्सव की आखिरी रात को राजेश के घर पर थी। जाने यादों और संवेदनाओं में ऐसी कौन सी ताकत होती है जो दूसरा पक्ष भी पहचान लेता है। राजेश भी रेल की खिड़की से सर टिकाए स्वयं उस दिन की यादों में खोया हुआ निर्विकार भाव से बाहर की काली रात को देख रहा था और उसका अंतर्मन सुगना को याद कर रोशन था रोमांचित हो रहा था …

अब आगे....

लाली के घर मे बनारस महोत्सव की आखिरी रात लाली और सुगना बिस्तर पर सुंदर नाइटी में लिपटी हुई बातें कर रही थी। कुछ वस्त्र तन को इस प्रकार ढकते हैं कि वह उसे और कामुक बना देते हैं वही हाल लाली और सुगना का था। दोनों परियां दीये की रोशनी में कयामत ढा रहीं थीं पर इन पर मार मिटने वाला राजेश बाहर हाल में लेटा हुआ उन्हें ही याद कर रहा था।

लाली में खुश होकर कहा

"आज त ते भाग्यशाली बाड़े"

सुगना को एक पल के लिए सच में एहसास हुआ कि जैसे वह इस दुनिया के सबसे भाग्यशाली औरत हो। भरपूर धन दौलत जो आज राजेश की बदौलत उससे मिल चुकी थी एक खूबसूरत और प्यारा बेटा जो सूरज के रूप में उसके पास था और तीसरा काम सुख.. यह अलग बात थी कि उसे पुरुष संसर्ग का सुख अपने पति के बजाए अपने प्यारे बाबू जी से मिला था पर वह अनुभव अद्भुत और बेहद आनंददायक था।

पिछले 3 -4 वर्षों में न तो उसे कभी अपने पति की कमी कभी महसूस न हुई थी वह दुनिया की सबसे संतुष्ट औरत थी। परंतु पिछले 3-4 दिनों में उसकी अधीरता चरम पर पहुंच चुकी थी। विद्यानंद की बातों पर विश्वास कर गर्भधारण उसके लिए बेहद अहम और एक चुनौती बन गया था।

सुगना जैसे संतुष्ट और खुशहॉल युवती अचानक ही हतभगिनी बन गई थी। जिस स्त्री को अपने ही पुत्र से संभोग करना पड़े निश्चित ही यह मानसिक कष्ट असहनीय होगा और तो और इसके बचाव का तरीका भी कम कष्टकारी न था अपनी ही पुत्री को अपने पुत्र से संभोग कराना यह घृणित और निकृष्ट कार्य सुगना के भाग्य में नियति ने सौंप दिया था। लाली ने फिर कहा

"कहां भुला गइले" सुगना उदास होकर बोली

"लागा ता हमार मनोकामना पूरा ना हो पायी"

"रतन भैया त आ गइल बाड़े" सुगाना के ना तो दिमाग में और ना ही खयालों में कभी रतन का नाम आया था वह कुछ ना बोली और चुप ही रही।

"कह त जीजा जी के बुला दे तानी*

सुगना ने पिछले दो दिनों में मन ही मन कई बार राजेश के बारे में सोचा था अपने अवचेतन मन में में वह स्वयं को राजेश के सामने नग्न तो कर लेती पर अपनी जाँघे खोल कर उनके काले लण्ड को अपनी बुर में…..….छी छी सुगना तड़प उठती। क्या वह सच में राजेश से संभोग करेगी? जिस रसीली चूत को उसके बाबूजी रस ले लेकर चूसते और चाटते हैं और उसमेँ किसी पराये मर्द का….….आह… सुगना की बुर सतर्क हो गयी…परंतु आज राजेश का पलड़ा बेहद भारी था।

सुगना स्वयं को तैयार करने लगी तभी लाली ने कहा "अच्छा हम जा तानी हम कालू मल ( राजेश का लण्ड) के दूह ले आवा तानी. ते आंख बंद करके सुतल रहिये ..बस उनका के आपन दिया (बुर) देखा दीहें ओ में तेल हम गिरवा देब"


उधर सुगनामन ही मन चुदवाने को तैयार हो रही थी परंतु लाली ने यह सुझाव देकर वापस उसे एक सम्मानजनक परिस्थिति में ला दिया। उसने अपनी मूक सहमति दे दी।

उधर राजेश ….जन्नत में सैर कर रहा था..

खूबसूरत पलंग पर लाल चादर बिछी हुई थी। लाली पूर्ण नग्न अवस्था में बिस्तर पर लेटी थी जैसे उसका ही इंतजार कर रही थी। पूरे कमरे में घुप्प अंधेरा था परंतु बिस्तर और उस पर लेटी हुई लाली चमक रही थी।


राजेश बिस्तर पर आ चुका था कुछ ही देर में उसका खड़ा लण्ड लाली की बुर में प्रवेश कर गया। दो सख्त और दो मुलायम जांघों के बीच घर्षण शुरू हो गया। पति-पत्नी की काम क्रीड़ा हमेशा की तरह आगे बढ़ने लगी।

अचानक राजेश को लाली को बगल में किसी के लेटे होने का एहसास हुआ उसने लाली से पूछा

"अरे ई कौन है"


लाली की गूंजती हुई आवाज आयी

"जेकर हमेशा सपना देखेनी उ हे ह आपके सुगना.."

"फेर काहे बुला लेलु हा , जाग गईल त?

"अरे उ घोड़ा बेच के सुतेले उ ना जागी.."

" हमरा ठीक नईखे लागत, चल हाल में चलीजा "

"अरे एहिजे कर लीं उ ना जागी"

राजेश लाली को चोदते चोदते अचानक रुक गया था परंतु लाली के आश्वासन से एक बार फिर उसके कमर की गति ने रफ्तार पकड़ ली लाली ने राजेश को छेड़ा

"आज त कालू मल (राजेश का लण्ड) कुछ ज्यादा ही उछलत बाड़े। लागता आपके दिमाग में सुगना घूमत बिया"

"लाली मत बोल उ जाग जायी" राजेश मन ही मन उत्साहित भी था पर घबरा भी रहा था।

राजेश को लाली के बगल में सोई हुई सुगना की आकृति दिखाई दे रही थी परंतु उसका शरीर पूरी तरह नाइटी से ढका हुआ था.

अचानक लाली ने अपने हाथ बढ़ाए और सुगना की फ्रंट ओपन नाइटी के दोनों भाग दोनों तरफ कर दिए राजेश की निगाहें सुगना की भरी-भरी चुचियों पर टिक गई जो कार की हेडलाइट की तरह चमक रहीं थीं। राजेश की तरसती आंखों ने सुगना की चुचियों के दिव्य दर्शन कर लिए।

उस सुर्ख लाल बिस्तर पर सुगना का गोरा शरीर चमक रहा था पूरे शरीर पर कोई आभूषण न था परंतु सुगना की छातियों पर जो दुग्ध कलश थे सुगना के सबसे बड़े गहने थे। खूबसूरत और कसी हुई चूचियां गुरुत्वाकर्षण को धता बताकर पूरी तरह तनी हुई थी उस पर से निप्पल अकड़ कर खड़े थे जैसे सुगना के नारी स्वाभिमान की दुहाई दे रहे हों। चुचियों में वह आकर्षण था जो युवकों को ही क्या युवतियों को ही अपने मोहपाश में बांध ले।

राजेश जैसे-जैसे सुगना को देखता गया उसका लण्ड और खड़ा होता गया ऐसा लग रहा था जैसे शरीर का सारा रक्त लण्ड में घुसकर उसे फूलने पर मजबूर कर रहा था। राजेश का लण्ड अभी भी लाली के बुर में था पर वह शांत था। राजेश की निगाह छातियों की घाटी पर गई.. सुगना ने मंगलसूत्र क्यों उतारा था राजेश मन ही मन सोचने लगा…

कहीं सुगना संभोग आतुर तो नहीं शायद उसने अपने पति रतन का दिया मंगलसूत्र इसीलिए उतारा था? राजेश के मन में आए प्रश्न का उत्तर स्वयं राजेश ने हीं दिया और उसका मन कुलांचे भरने लगा।


लाली मुस्कुराते हुए राजेश को देख रही थी जिसकी आंखें सुगना की चुचियों से चिपकी हुई थी और होंठ आश्चर्य से खुले हुए थे।

राजेश का कालूमल अब अधीर हो रहा था शांति उसे कतई पसंद न थी उछलना उसका स्वभाव था और वह लाली की बुर में अठखेलियां करने के लिए तत्पर था लाली ने कहा

"लागा ता ओकरा चूँची में भुला गईनी"

राजेश वापस से लाली को चोदने लगा इस बार कमर के धक्कों की रफ़्तार कुछ ज्यादा थी निश्चित ही इसमें सुगना की चुचियों का असर था लाली ने कहा

"अब साध बुता गईल की औरू चाहीं"

सुगना राजेश के लिए एक अप्सरा जैसी थी उसकी चुचियों को देखकर उसके आकांक्षाएं और बढ़ गयीं सबसे प्यारी और पवित्र चीज सुगना की बुर अब भी उसकी निगाहों से दूर थी। सुगना की बुर और जांघों का वह मांसल भाग देखने के लिए राजेश तड़प उठा।


सुगना की जाँघों का पिछला भाग वह पहले देख चुका था परंतु आगे का भाग की कल्पना कर न जाने उसने कितनी बार कालूमल का मान मर्दन किया था राजेश ने लाली से कहा..

" नीचे भी हटा दी का?"

"मन बा तो हटा दी उ ना जागी घोड़ा बेच के सुतेले" लाली ने अपनी बात एक बार फिर दोहराई और राजेश के हौसले को बढ़ाया।

राजेश ने हिम्मत करके नाइटी का निचला भाग भी हटा दिया नाइटी अलमारी के 2 पल्लों की तरह खुलकर बिस्तर पर आ गए और सुगना का कोमल और कमनीय शरीर राजेश की निगाहों के सामने पूर्ण नग्न अवस्था में आ गया। सुगना ने अपने पैर के दोनों पंजे एक दूसरे के ऊपर चढ़ाए हुए थे। दोनों जाँघे एक दूसरे से चिपकी हुई थी।

अलमारी खुल चुकी थी परंतु तिजोरी अब भी बंद थी। जांघों के मांसल भाग ने सुगना की बुर पर आवरण चढ़ा रखा था वह तो उसके बुर् के घुंघराले बाल थे जो खजाने की ओर संकेत कर रहे थे परंतु खजाना देखने के लिए सुगना की मांसल जांघों का अलग होना अनिवार्य था।

राजेश को जांघों के बीच बना अद्भुत और मनमोहक त्रिकोण दिखाई दे रहा था सुगना के चमकते गोरे शरीर पर छोटे छोटे बालों से आच्छादित वह त्रिकोण राजेश को बरमूडा ट्रायंगल जैसा प्रतीत हो रहा था। वह उसके आकर्षण में खोया जा रहा था उसका अंतर्मन उस सुखना की अनजानी और अद्भुत गहराई में उतरता जा रहा था ।

उसने लाली की चुदाई बंद कर दी थी और भाव विभोर होकर बरमूडा ट्रायंगल के केंद्र में बने उस अद्भुत दृश्य को अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर देख रहा था परंतु गुलाबी छेद का दर्शन तब तक संभव न था जब तक सुगना अपनी जांघों के पट ना खोलती और अपने गर्भ द्वार और उसके पहरेदार बुर् के होठों को न खोलती।

लाली ने राजेश का ध्यान भंग किया और बोली

"आप देखते रहीं हम जा तानी सुते" अपना कालूमल के निकाल ली। "

लाली ने यह बात झूठे गुस्से से कही थी राजेश को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह सुगना के सुंदर शरीर को देखते हुए लाली को फिर गचगचा कर चोदने लगा। उसने लाली को चूमते हुए कहा ..

"कितना सुंदर बीया सुगना देखा चुचियों कतना फूलन फूलन बा . रतनवा साला के कितना सुंदर माल मिलल बा। एकदम मैदा के जैसन चूची बा"

"अतना पसंद बा त ध लीं"

"जाग जायी त"

"छोड़ देब"


"हट पागल"

राजेश एक बार फिर लाली को चोदने लगा था परंतु उसकी आंखें सुगना के इर्द गिर्द घूम रही थी।


वह चुचियों को छूना चाहता था उसकी मनोदशा जानकर लाली ने एक बार फिर कहा

"जोर से मत दवाईब खाली सहला लीं"


राजेश जैसे अधीर हो गया था उसने सुगना की चुचियों पर अपना हाथ रख दिया. सुगना जैसे निर्विकार भाव से लेटी हुई थी. उसने कोई प्रतिरोध ना किया और राजेश के हाथ सुगना की चुचियों को प्यार से धीरे-धीरे सहलाने लगे। उसकी उंगलियां सुगना के निप्पलों से टकराते ही और राजेश सिहर जाता। एक पल के लिए राजेश के मन में आया कि वह आगे बढ़ कर उसकी चुचियों को मुंह में भर ले पर राजेश इतनी हिम्मत न जुटा पाया। राजेश ने जो प्यार सुगना की चुचियों के साथ दिखाया था उसका असर सुगना के कमर के निचले भाग पर भी हुआ।

सुगना के गर्भ द्वार के पटल खुल गए सुगना की दोनों एड़ियां दूर हो चुकी थी और जाँघे भी उसी अनुपात में अलग हो चुकी थी। सुगना की रानी झुरमुट से बाहर मुंह निकालकर खुली हवा में सांस ले रही थी। राजेश की निगाह इस परिवर्तित अवस्था पर पढ़ते ही वह अधीर हो गया। उसने लाली की बुर से अपना लण्ड बाहर खींच लिया और अपने सर को सुगना की जांघों के ठीक ऊपर ले आया। उसके दोनों पैर लाली और सुगना के बीचो-बीच आ गए.

गोरी सपाट चिकनी और बेदाग चूत को देखकर राजेश मदहोश हो गया उसने लाली की तरफ देख कर बोला "एकदम मक्खन मलाई जैसी बा"

"तो चाट ली."

" जाग गई त"

"तो आप जानी और आपके साली"

राजेश से और बर्दाश्त ना हुआ उसने अपने होंठ सुगना की कोमल बुर से सटा दिए। अपने दोनों होंठो से सुगना के निचले होठों को फैलाते हुए उसने अपनी जीभ उस गहरी सुराही में छोड़ दी जिस पर पानी छलक रहा था । जीभ ने जैसे ही गहरी गुफा में प्रवेश किया सुगना की बुर से रस छलक कर बाहर आ गया और सुगना के दूसरे छेद की तरफ बढ़ चला। राजेश की निगाहें सुगना की सुगना की बुर को ध्यान से न देख पा रही थी वह कभी सर उठा कर सुगना की बुर को देखता और फिर झुक कर अपने होंठ उससे सटा देता।

नयन सुख और स्पर्श सुख दोनों ही राजेश को पसंद आ रहे थे। सुगना के फैले हुए पैर तन रहे थे। सुगना कि मजबूत जांघों की मांसपेशियां तनाव में आ रही थी राजेश के होठों की मेहनत रंग ला रही थी। सुगना की सांसें तेज चलने लगी । लाली ने सुगना की सांसों में आए बदलाव को महसूस कर लिया था उसने सुगना को चूमते हुए कहा

" ए सुगना मान जा"

"हम कहां रोकले बानी"

सुगना ने यह बात फुसफुसाकर कही थी पर राजेश ने सुन ली.

लाली ने सुगना के हाथ को पकड़ कर राजेश के लण्ड पर रख दिया और सुगना की कोमल हथेलियों से कालूमल को सहलाने लगी।

राजेश ने नए स्पर्श को महसूस किया। सुगना के हांथो में अपने लण्ड को देखकर मस्त हो गया। राजेश तृप्त हो गया उसने एक बार फिर सुगना की सुराही में मुंह डाल दिया।

एक अद्भुत तारतम्य बन गया था। सुगना राजेश का लण्ड तब तक सहलाती जब तक उसे अपनी बूर् चटवाने में मजा आता। जैसे जी राजेश उग्र होकर बूर् को खाने लगता वह लण्ड के सुपारे को जोर से दबा देती और राजेश तुरंत ही बुर से अपने होंठ हटा लेता।

लाली तो धीरे-धीरे इस खेल से बाहर हो गई थी थोड़ी ही देर में राजेश लाली को भूलकर सुगना की जांघों के बीच आ गया परंतु सुगना की जाघें अभी भी एक खूबसूरत कृत्रिम डॉल की तरह निर्जीव पड़ी हुई थी राजेश ने उसे अपने दोनों हाथ से अलग किया और घुटने से मोड़ दिया।

अपने काले लण्ड को सुगना की गोरी चूत के मुहाने पर रखकर वह मन ही मन सुगना को चोदने की सोचने लगा तभी लाली की गूंजती हुई आवाज सुनाई दी…


"अपना साली के सूखले चोदब बुर दिखाई ना देब?"

राजेश को शर्म आई और उसने अपने गले की चैन उतार कर सुगना की चूचियो पर रख दिया चैन से 8 का आकार बनाते हुए उसमें सुगना की चुचियों को उसमें भरने की कोशिश की। परंतु अब सुगना की चूचियां बड़ी हो चुकी थी। वह राजेश की छोटी सी चैन में आने को तैयार न थी। फिर भी राजेश ने यथासंभव कोशिश की और सुगना चुचियों को तो ना सही परंतु निप्पलों को अपने प्रेम पास में बांधने में कामयाब हो गया।

सुगना की निर्जीव पड़ी जाँघे अब सजीव हो चुकी थी वह अपने दोनों पैर घुटनों से मोड़ें दोनों तरफ फैलाए हुए थे और जांघों के बीच उसकी गोरी और मदमस्त फूली हुई बुर अपने होठों पर प्रेम रस लिए अपने अद्भुत निषेचन का इंतजार कर रही थी। अंदर का मांसल भाग भी उभरकर झांकने लगा ऐसा लग रहा था जैसे सुगना की उत्तेजना चीख चीख कर अपना एहसास करा रही थी और अपना हक मांग रही थी।


सुगना की जाँघे स्वतः फैली हुई थी राजेश को उन्हें सहारा देने की कोई आवश्यकता नहीं थी। सुगना की अवस्था प्रणय निवेदन को स्पष्ट रूप से दर्शा रही थी। राजेश ने अपने लण्ड का दबाव सुगना की मदमस्त बुर पर लगा दिया और सुगना की कामुक कराह निकल पड़ी..

"जीजा जी तनी धीरे से….. दुखाता…."

राजेश तो मस्त हो गया यह मादक और अतिकामुक कराह उसने पहली बार सुनी थी उसने निर्दयी भाव से अपने लण्ड को सुगना की बुर में ठान्स ने की कोशिश की और यही वक्त था जब उसका स्वप्न भंग हुआ दरअसल उसके लण्ड ने सुगना की कोमल बुर की जगह जगह चौकी में छेद करने की कोशिश की। परंतु वह काठ की चौकी लण्ड से ज्यादा कठोर थी। राजेश का स्वप्न भंग हो गया था.. और उत्तेजना दर्द में तब्दील हो गई थी।


सुगना की बुर लण्ड जड़ तक पहुंचाने के प्रयास में राजेश के पैर पूरी तरह तन गए थे पंजे बाहर की तरफ हो गए और चौकी के कोने में रखा दूध का वह गिलास जिससे सुगना ने अपने हाथों से दिया था जमीन पर गिर पड़ा खनखनाहट की तेज आवाज हुई और कमरे में लेटी बतिया रही सुगना और लाली सचेत हो गयीं।

राजेश ने अपने आपको पेट के बल चौकी पर पाया । नीचे सुगना ना होकर चौकी पर सूखा बिस्तर था। वह तड़प कर रह गया परंतु उसके होठों पर मुस्कुराहट कायम थी अपने स्वप्न में ही सही परंतु उसने अपनी स्वप्न सुंदरी की अंतरंगता का आनंद ले लिया था। वह पलट कर पीठ के बल आ गया और अपने इस खूबसूरत सपने के बारे में सोचने लगा।

गिलास गिरने की आवाज सेकमरे में लाली और सुगना सचेत हो गयीं। सुगना ने कहा

"जा कर देख जीजा जी सपनात बड़े का"

सुगना ने यह बात अंदाज़ पर ही कही थी परंतु उसकी बात अक्षरसः सत्य थी। लाली हाल में कई और राजेश की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई। राजेश अभी भी अपने तने हुए लण्ड को हाथ से सहला रहा था। राजेश की स्थिति देखकर लाली वापस अंदर आयी हाथों में जैतून का तेल लिए वापस हाल में आने लगी। जाते-जाते उसने अपने हथेलियों को गोलकर सुगना को यह इशारा कर दिया कि वह कालू मल का मान मर्दन करने जा रही है, सुगना मुस्कुरा रही थी।

लाली के जैतून के तेल से सने हाथ राजेश के लण्ड पर तेजी से चलने लगी उसने राजेश से पूछा

"सुगना के बारे में सोचा तानी है नु?"

राजेश ने लाली से अपने स्वप्न को ना छुपाया और उसे अपने स्वप्न का सारा विवरण सुना दिया। लाली राजेश के स्वप्न को सुनती रही और उसके लण्ड को सहला कर स्खलन के लिए तैयार कर दिया।

तभी लाली ने कहा त "चली आज साँचों दर्शन करा दीं, सुगना सुत गईल बिया"

"का कह तारू?"

" उ जागी ना?"

लाली ने वही उत्तर दिया जो राजेश ने अपने स्वप्न में सुना था।

राजेश उस लालच को छोड़ ना पाया और अपने खड़े लण्ड के साथ अंदर के कमरे में आ गया। सुगना किनारे पीठ के बल सोई हुई सोई हुई थी। सुगना की मदमस्त काया को देख कर का लण्ड उछलने लगा। लाली के हाथ अभी भी उसके लण्ड को सहना रहे थे। अचानक लाली ने नाइटी तो दोनों तरफ फैला दिया सुगना का मादक शरीर पूरी तरह नग्न हो गया।


कमरे में बत्ती गुल थी। पर दीए की रोशनी में सुगना का शरीर चमक रहा था। सुगना ने अपना चेहरा ढक रखा था। राजेश सुगना का चेहरा तो ना देख पाया परंतु चेहरे के अलावा सारा शरीर उसकी आंखों के सामने था जो सपने उसने देखा था उसका कुछ अंश आंखों के सामने देख कर वह बाग बाग हो गया।

कालूमल आज उद्दंड हो चला था वह लाली के हाथों से छटक रहा था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह स्वयं उछलकर सुगना की गोरी बुर में समाहित हो जाना चाहता था।

राजेश उत्तेजना से कांपने लगा लाली के हाथ लगातार कालूमल को रगड़ रहे थे और अंततः कालू मल ने अपना दम तोड़ दिया राजेश के लण्ड से निकल रही वीर्य की धार को नियंत्रित करने का जिम्मा लाली ने बखूबी उठाया और सुगना की बुर पर बालों का झुरमुट राजेश के रस से पूरी तरह भीग गया सुगना अपने होंठ अपने दांतो से दबाए इस कठिन परिस्थिति को झेल रही थी कभी उत्तेजना और कभी घृणा दोनों ही भाव अपने मन में लिए उसने अपनी बुर को राजेश के रस से भीग जाने दिया।

स्खलन उत्तेजना की पराकाष्ठा है और वही उसका अंत है स्खलन पूर्ण होते ही राजेश वापस हॉल में चला गया और लाली की राजेश के वीर्य से सनी उंगलियां सुगना की बुर में। सुगना की बुर पूरी तरह गीली थी। लाली की उंगलियों ने कोई अवरोध ना पाकर लाली में उस मखमली एहसास को अंदर तक महसूस करने की कोशिश की परंतु सुगना ने लाली के हाथ पकड़ लिए और कहा

"अब बस हो गईल"

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा

"अतना गरमाइल रहले हा त काहे ना उनकर साधो बुता देले हा"

सुगना अपनी यादों में खोई हुई थी। तभी राजेश के वीर्य के जिस अंश को उसने अपनी गर्भ में स्थान दिया था आज उसने ही अंदर से उसके पेट पर एक मीठी लात मारी और उसे अपनी उपस्थिति का एहसास कराया अपने गर्भ में पल रहे बच्चे के हिलने डुलने का एहसास कर सुगना भाव विभोर हो गई और खुश होकर मुस्कुराते हुए बोली


"ए लाली देख लात मार तिया"

सुगना ने अपने गर्भ में पल रहे लिंग का निर्धारण स्वयं ही कर लिया था उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि गर्भ में पल रहा बच्चा एक लड़की की थी..

नियति स्वयं भी सुगना को देखकर उसके भाग्य के बारे में सोच रही थी सुगना जैसी संवेदनशील और प्यारी युवती के लिए उसने ऐसा खेल क्यों रचा था वह स्वयं परेशान थी।

लाली ने कहा..


"हमरा से बाजी लगा ले इ लइका ह"

सुगना सहम गई


"ते कैईसे बोला ता रे"

"हमरो पेट तोरे साथी फूलल रहे हमार त लात नईखे मारत ….लड़की देरी से लात मारेली सो"

सुगना ने लाली की बात का विश्वास न किया वह पूरी तरह आश्वस्त थी की नियति उसके साथ ऐसा क्रूर मजाक नहीं करेगी आखिर जब उसके इष्ट देव ने विषम परिस्थितियों में भी उसे बनारस महोत्सव के दौरान गर्भवती करा ही दिया था तो वह निश्चित ही यह कार्य सूरज की मुक्ति के लिए ही हुआ होगा..

सुगना और लाली की बातें खत्म ना हुई थी कि मिंकी भागती हुई सुगना के पास आई

"माँ सूरज के देख का भइल बा…"

मिंकी ने भी न सिर्फ अपनी माता बदल ली थी अपितु मातृभाषा भी सुगना अपना पेट पकड़कर भागती हुई सूरज के पास गई

"अरे तूने क्या किया…"

मिंकी हतप्रभ खड़ी थी उसने अपने दोनों हाथ जोड़ लीये और कातर निगाहों से सुगना की तरफ देखने लगी...सुगना परेशान हो गई...

शेष अगले भाग में..
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भाग- 63

सुगना और लाली की बातें खत्म ना हुई थी कि मिंकी भागती हुई सुगना के पास आई

"माँ सूरज के देख का भइल बा…"

मिंकी ने भी न सिर्फ अपनी माता बदल ली थी अपितु मातृभाषा भी सुगना अपना पेट पकड़कर भागती हुई सूरज के पास गई

"अरे तूने क्या किया…"


मिंकी हतप्रभ खड़ी थी उसने अपने दोनों हाथ जोड़ लीये और कातर निगाहों से सुगना की तरफ देखने लगी...सुगना परेशान हो गई...

अब आगे..

सूरज बिस्तर पर बैठा खेल रहा था परंतु उसकी छोटी नुंनी अपना आकार बढ़ा चुकी थी सूरज के अंगूठे पर सुगना द्वारा लगाया आवरण नीचे गिरा हुआ था । सुगना ने मिंकी की तरफ देखा डरी हुई मिन्की ने कहा "मां मैंने कुछ नहीं किया सिर्फ सूरज बाबू के अंगूठे को सह लाया था"

सुगना ने अपना सर पकड़ लिया उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था जो गलती मिन्की में की थी उसका उसे एहसास भी न था। उस मासूम को क्या पता था कि सूरज और उसके अंगूठे में क्या छुपा है।

सुगना ने स्थिति को संभाला और मिंकी से अपनी आंखें बंद करने को कहा..

"जबले हम ना कहीं आंख मत खोलीह"

मिंकी ने पूरी तन्मयता से अपनी आंखें बंद कर लिया और सुगना के अगले कदम का इंतजार करने लगी। मिंकी सुगना के वात्सल्य रस से ओतप्रोत हो चुकी थी उसे पूरा विश्वास था कि उसकी सुगना मां उसके साथ कुछ भी गलत नहीं करेगी।

फिर भी आंखें बंद कर सुगना के अगले कदम का इंतजार करती हुई मिंकी के चेहरे पर डर देखा जा सकता था। तभी सुगना ने अपनी उंगली को उसके होठों से सटाया और बोला

"अच्छा बता यह मेरी कौन सी उंगली है?"

सुगना की मीठी आवाज सुनकर मिंकी का डर काफूर हो गया और वह खुशी खुशी चाहते हुए बोली

"मां बीच वाली"

अच्छा यह बता

"मां सबसे छोटी वाली" मिन्की अपनी समझ बूझ से सुगना के प्रश्नों का उत्तर दे रही थी।


तभी सुगना ने सूरज को उठाकर अपनी गोद में ले लिया और उसकी नूनी को मिंकी के होठों से सटा दीया।

छोटी मिंकी सूरज की नुन्नी के अद्भुत स्पर्श को पहचान ना पहचान पायी। जब तक कि वह उत्तर देती सूरज की नुंनी ने अपना आकार कम करना शुरू कर दिया कुछ ही देर में मिल्की ने यह अंदाजा लगा लिया कि जो जादुई चीज उसके होठों से स्पर्श कर रही थी वह सुगना मां की उंगलियां कतई न थी मिकी ने अपनी आंखें तो ना खुली परंतु हाथ ऊपर कर सुगना को छूने की कोशिश की और उसकी कोमल हथेलियां सूरज के पैरों से जा टकराई मिंकी को एक पल के लिए वही भ्रम हुआ जो सच था परंतु उसकी आंखें अब भी बंद थी।

सुगना ने सूरज को वापस बिस्तर पर रख दिया और मिंकी के माथे को चूमते हुए बोली

"बेटा कभी भी बाबू के अंगूठा मत सहलाई ह"

मिंकी अभी भी अपनी उधेड़बुन में खोई हुई थी उसने अपना सर हिलाया और अपनी मां के आलिंगन में आ गई सुगना ने उसे अपने पेट से सटा लिया परंतु पेट में पल रहे बच्चे की हलचल महसूस कर मिंकी ने पूछा

" मां एमें बाबू बा नु?"

सुगना सहम गयी उसने मुझे के गाल पर मीठी सी चपत लगाई और बोली "तोहार साथ देवे तोहार बहन आव तिया"

नियति ने सुगना के कहे शब्दों को अपने मन में संजो लिया और अपनी कहानी का ताना-बाना बुनने लगी …


उधर सरयू सिंह पूरी तरह निरापद और निर्विकार हो चुके थे। जीवन में उन्होंने जितने सुख सुगना से पाए थे वह सुखद यादें अब उनके मन में एक टीस पैदा करती थी। उनका मन बनारस में न लगता जब जब वह सुगना को देखते उनके मन में एक हुक सी उठती। सरयू सिंह की कामवासना अचानक ही गायब हो चुकी थी। पिता पुत्री के पावन रिश्ते के सैलाब में उनकी कामवासना एक झोपड़ी की तरह बह गई थी।


सुगना जैसी मदमस्त और मादक युवती को देखने का अचानक ही उनका नजरिया बदल गया था परंतु उनके अंग प्रत्यंग किसी न किसी प्रकार से सुगना के मादक स्पर्श को न भूल पाते हाथों की उंगलियां दिमाग के नियंत्रण से बाहर जाने का प्रयास करतीं सुगना भी परेशान रहती आखिर बाबूजी को यह क्या हो गया है? उनके आलिंगन में आया बदलाव सुगना भली-भांति महसूस करती थी वह स्वयं सटने का प्रयास करती परंतु उसके बाबूजी स्वयं मर्यादा की लकीर खींच देते और अपने शरीर को पीछे कर लेते।

सुगना को मन ही मन यह ग्लानि होती ही क्यों उसने राजेश के वीर्य को अपनी जांघों के बीच स्थान दिया… शायद इसी वजह से उसके बापूजी उससे घृणा करने लगे हैं। सुगना सरयू सिंह के करीब जाकर उन्हें खुश करने का प्रयास करती परंतु होता ठीक उल्टा शरीर सिंह असहज स्थिति में आने लगे थे।

सुगना ने अपने गर्भवती होने के लिए पर पुरुष के वीर्य को जिस तरह धारण किया था वह उचित है या अनुचित यह नजरिए की बात है।परंतु सुगना की मनो स्थिति वही जान सकती थी। बनारस महोत्सव में गर्भवती होना उसके लिए जीवन मरण का प्रश्न था और उसने वही किया जो उसके लिए सर्वथा उचित था।

सरयू सिंह दुविधा में थे। वह सुगना के करीब ही रहना चाहते थे और सुगना के कामुक व्यवहार से दूर भी रहना चाहते थे वह चाहकर भी सुगना को यह बात नहीं बता सकते थे कि वह उनकी अपनी पुत्री है। कोई उपाय न देख कर वह बनारस छोड़कर सलेमपुर चले आये। परंतु उनके लिए अकेले सलेमपुर में रहना कठिन हो रहा था उनका हमेशा से साथ देने वाली कजरी भौजी अब सुगना का ख्याल रखने बनारस में रहती थी। सरयू सिंह का खाना पीना उनके दोस्त हरिया के यहां चलता परंतु मनुष्य के जीवन में खाना के अलावा भी कई कार्य होते जो कजरी एक पत्नी के रूप में कर दिया करती थी। सेक्स तो जैसे सरयू सिंह के जीवन के गधे के सिर के सींघ की तरह गायब हो गया था।

उधर रतन सुगना के करीब आने को लालायित था। पिछले कुछ महीनों में सुगना ने रतन को अपने बिस्तर पर सोने की इजाजत देती थी परंतु विचारों में दूरियां अभी भी कायम थी। खासकर सुगना की तरफ से। रतन तो आगे बढ़कर सुगना को गले लगा लेना चाहता था परंतु सुगना खुद को हाथ न लगाने देती । वह मरखैल गाय की तरह व्यवहार तो ना करती परंतु बड़ी ही संजीदगी से स्वयं को दूर कर लेती।


वैसे भी वह दिमागी तौर पर हमेशा यही सोचने में व्यस्त रहती है कि आखिर उसके बाबूजी की उत्तेजना को क्या हो गया है। ऐसा तो नहीं कि वह गर्भवती पहली बार हुई थी इसके पूर्व भी जब उसके पेट में सूरज आया था तब भी सरयू सिंह ने अपनी और उसकी उत्तेजना को कम होने नहीं दिया था। सुगना की यादों में वह खूबसूरत पल आज भी कैद थे।

जैसे-जैसे सुगना का गर्भ अपना आकार बढ़ा रहा था सुगना का ध्यान कामुकता से हटकर अपने गर्भ पर केंद्रित हो रहा था शायद यही वजह थी कि वह सरयू सिंह की बेरुखी को नजरअंदाज कर पा रही थी।

आज सुगना के हाथ पैर में अचानक तेज दर्द हो रहा था। कजरी किसी आवश्यक कार्य से सलेमपुर गई हुई थी घर पर सिर्फ रतन और दोनों छोटे बच्चे थे एक सूरज और दूसरी मिन्की।

शाम घिर आई थी परंतु सुगना बिस्तर पर लेटी अपने हाथ पैर ऐंठ रही थी। उसे बच्चों और रतन के लिए खाना बनाना था परंतु उसकी स्थिति ऐसी न थी कि वह उठकर चूल्हा चौका कर पाती। एक पल के लिए उसके मन में आया की वह लाली से मदद ले परंतु उसे लाली की स्थिति का अंदाजा था। दोनों के पेट बराबर से फूले थे। उसके लिए खुद का खाना बनाना दूभर था। सुगना ने लाली को परेशान करने का विचार त्याग दिया और राम भरोसे रतन का इंतजार करने लगी।

थोड़ी ही देर में रतन आ गया सुगना की स्थिति देख वह सारा माजरा समझ गया। दोनों बच्चे उससे आकर लिपट गए सूरज हालांकि रतन का पुत्र न था परंतु जितनी आत्मीयता रतन ने सूरज के साथ दिखाई थी उस छोटे बालक सूरज ने उसे अपने पिता रूप में स्वीकार कर लिया था।


हालांकि सूरज की निगाहें अब भी सरयू सिंह को खोजती परंतु छोटे बच्चों की याददाश्त कमजोर होती है प्रेम का सहारा पाकर वह और धूमिल होने लगती है यही हाल सूरज का भी था वह रतन के करीब आ चुका था।

रतन ने कुछ ही देर में हाथ पैर धोए अपने और सुगना के लिए चाय बनाई। थोड़ी ही देर में पास पास के ही एक ढाबे से जाकर खाना ले आया बच्चों को खिला पिला कर उसने अपने ही कमरे में अलग बिस्तर पर सुला दिया तथा थाली में निकाल कर स्वयं और सुगना के लिए खाना ले आया।

सुगना रतन के इस रूप को देखकर मन ही मन खुश हो रही थी आखिर रतन में आया यह बदलाव सर्वथा सुखद था । यदि सुगना के जीवन में सरयू सिंह ना आए होते तो शायद पिछले कुछ महीने सुगना के जीवन के सबसे अच्छे दिन होते जब वह धीरे-धीरे रतन के करीब आ रही होती।

खानपान के पश्चात रतन ने हिम्मत जुटाई और कटोरी में सरसों का तेल गर्म कर ले आया। बच्चे अब तक भोजन के मीठे नशे में आ चुके थे और सो चुके थे। रतन ने उन्हें चादर ओढाई और सुगना के बिस्तर पर आ गया।

कटोरी में तेल देखकर सुगना को आने वाले घटनाक्रम का अंदाजा हो रहा था वह मन ही मन सोच रही थी कि रतन उसके पैरों में तेल कैसे लगाएगा जिस पुरुष ने आज तक उसकी एडी से ऊपर का भाग नहीं देखा था वह आज उसके पैरों में तेल लगाने जा रहा था सुगना आज पहली बार रतन की उंगलियों को अपने पैरों पर महसूस करने जा रही थी।

सुगना की मनोदशा ऐसी न थी कि वह अपने पति से पैर दबवाती पाती परंतु लाली और राजेश के संबंधों के बारे में उसे बहुत कुछ पता था राजेश एक पत्नी भक्त की भांति लाली की सेवा किया करता था उसकी इस सेवा ने ही सुगना के मन में हिम्मत दी और उसने स्वयं को रतन के सामने तेल लगाने के लिए परोस दिया।

"साड़ी ऊपर करा तभी तो तेलवा लागी"

सुगना ने मुस्कुराते और रतन से अपनी नजरें बचाते हुए अपनी हरे रंग की साड़ी घुटनों तक खींच लिया। ऐसा लग रहा था जैसे केले के तने से ऊपरी हरा आवरण हटा दिया गया हो। सुगना के कोमल और सुडोल पैर झांकने लगे। रतन उन चमकदार पैरों की खूबसूरती में खो गया। सुगना के पैरों में लगा आलता और चमकदार चांदी की पाजेब उसके पैरों की खूबसूरती को और बढ़ा रही थी। सुगना आंखें बंद किए रतन की उंगलियों के स्पर्श का इंतजार कर रही थी। रतन ने अंततः हिम्मत जुटाकर तेल से सनी अपनी उंगलियां सुगना के पैरों से लगा दीं उंगलियों ने उन खूबसूरत पैरों को थाम लिया और राजेश सुगना के पैरों को हल्की हल्की मसाज देने लगा सुगना का दिल धक-धक कर रहा था रतन के स्पर्श से वह अभिभूत हो रही थी।

जैसे-जैसे रतन सुगना के पैर दबाता गया सुगना के पैरों को आराम मिलने इतनी मीठी यादों में खोई सुगना की आंख लग गई..

"बाबूजी बस अब हो गई अब मत लगाईं"

"रुक जा मालिश पूरा कर लेवे दा थोड़ा साड़ी और ऊपर क..र"

सरयू सिंह के हाथ सुगना की जांघों की तरफ बढ़ चले थे सुगना भी अपनी साड़ी को बचाने के प्रयास में खींचकर अपनी कमर तक ले आई थी परंतु उसका फुला हुआ पेट पेटीकोट के नाड़े को घसीट कर उसकी फूली हुई बुर के ठीक ऊपर ला दिया था।

सरयू सिंह के हाथ सुगना की नंगी जांघों पर घूमने लगे गोरे गोरे पैरों पर उनकी मजबूत उंगलियां धीरे-धीरे ऊपर की तरफ बढ़ने लगी और अंततः वही हुआ जिसका सुगना इंतजार कर रही थी सरयू सिंह की उंगलियों ने सुगना के निचले होठों पर छलक आया काम रस छू लिया। अपनी तर्जनी को उस मलमली चीरे में डुबो दिया वह अपनी उंगलियां बाहर निकाल कर उस काम रस की सांद्रता को चासनी की भांति अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच लार बनाकर महसूस करने लगे।

सुगना कनखियों से सरयू सिंह को देख रही थी और शर्म से पानी पानी हो रही थी अपनी गर्भावस्था के दौरान उसकी यह उत्तेजना बिल्कुल ही निराली थी सरयू सिंह ने सुगना के कोमल मुखड़े की तरफ देखा और बेहद प्यार से बोला

"सुगना बाबू के मन कराता का?"

सुगना ने अपना चेहरा अपनी दोनों हथेलियों से छुपा लिया परंतु अपने मीठे गुस्से को प्रदर्शित करते हुए अपने मासूम अपने पैर सरयू सिंह की गोद में पटकने लगी। जो सीधा शरीर सिंह के तने हुए लण्ड से टकराने लगे सरयू सिंह ने अपने चेहरे पर पीड़ा के भाव लाते हुए कहा

"अरे एकरा के तूर देबू का खेलबु काहे से?"

सुगना तुरंत उठ कर सरयू सिंह की गोद में छुपे उनके जादुई लण्ड को सहलाने लगी

"चोट नानू लागल हा?"

"हम का जानी एकरे से पूछ ल"

सुगना ने देर न की उसने सरयू सिंह का लंगोट खिसकाया और तने हुए लण्ड को बाहर निकाल लिया। उसने अपने बाबूजी की तरफ एक नजर देखा और अगले ही पल लण्ड का सुपाड़ा सुगना उंगलियों के बीच था सुगना ने उसे चूमना चाहा उसने अपने पेट को व्यवस्थित किया और अपने बाबू जी की गोद में झुक गई। लण्ड उसके होठों के बीच आ चुका था। सुगना की कोमल और गुलाबी जीभ कोमल सुपारे से अठखेलियां करने लगी।


सुगना की हथेलियां सरयू सिंह के अंडकोषों को सहला सहला कर सरयू सिंह को और उत्तेजित करती रहीं। लण्ड पूरी तरह उत्तेजना से भर चुका था सरयू सिंह सुगना के रेशमी बाल सहलाए जा रहे थे और कभी कभी अपनी तेल से सनी उंगलियां सुगना की पीठ पर फिरा रहे थे। ब्लाउज कसे होने की वजह से उंगलियां अंदर तक न जा पा रही थीं। जैसे ही उंगलियों ने ब्लाउज के अंदर प्रवेश करने की कोशिश की सुगना ने बुदबुदाते हुए कहा

"बाबूजी साड़ी नया बा तेल लग जायी"

" त हटा द ना"

सुगना सरयू सिंह का लण्ड छोड़कर बैठ गई। दो कोमल तथा दो मजबूत हाथों ने मिलकर सुगना जैसी सुंदरी को निर्वस्त्र कर दिया। सुगना का चिकना और सपाट पेट जिसकी नाभि से निकली पतली लकीर उसकी बुर तक पहुंच कर खत्म होती थी गायब हो चुकी थी। पेट पूरी तरह फूल चुका था।


सरयू सिंह अपनी प्यारी सुगना को चोदना चाहते थे परंतु उसके फूले हुए पेट और अंदर पल रहे बच्चे को ध्यान कर मन मसोसकर रह जाते थे परंतु आज उनका लण्ड विद्रोह पर उतारू था। सुगना के पेट को सहलाते हुए सरयू सिंह ने कहा..

"तहार मन ना करेला का?

"काहे के बाबूजी.."

उनकी उंगलियों ने पेट को छोड़कर बुर का रास्ता पकड़ा और मध्यमा ने गहरी घाटी में घुसकर सुगना के प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश की।


सुगना ने सरयू सिंह की मूछों को अपनी उंगलियों से हटाया और उनके होठों को चूम लिया और बोली

"केकर मन ना करी ई मूसल से चटनी कुटवावे के" सुगना का दूसरा हाथ सरयू सिंह के लण्ड पर आ चुका था।

सुगना के होठों की लार अब भी सुपाडे पर कायम थी। सुगना ने अपनी हथेली से लड्डू जैसे सुपारे को कसकर सहला दिया और लण्ड की धड़कन को महसूस करने लगी।

सरयू सिंह ने सुगना को चूम लिया और उसे अपनी गोद में बैठा लिया। सुगना ने बड़ी चतुराई से लण्ड को नीचे झुका कर अपनी दोनों जांघों के बीच से निकाल लिया और चौकी पर सरयू सिंह की गोद में पालथी मारकर बैठ गयी। उसके हाथ अब भी लण्ड के सुपारे से खेल रहे थे।


वह लण्ड को कभी अपनी बुर से सटाती और कभी लण्ड के सुपारे को अपनी भग्नासा से रगड़ती। सुगना अपना सारा ध्यान नीचे केंद्रित की हुई थी और उधर उसके बाबूजी की हथेलियां सुगना की चुचियों का जायजा ले रहीं थी। उन्होंने सुगना के शरीर को तेल से सराबोर कर दिया था और अपनी मजबूत हथेलियों से सुगना के कोमल शरीर और अत्यंत कोमल परंतु कठोर चुचियों को सहलाये जा रहे थे।

निप्पलों को दबाते ही सुगना सहम उठती और बोलती

"बाबूजी तनी धीरे से ….दुखाता"


सुगना को भी यह अंदाज लग चुका था कि यह शब्द बाबुजी को अतिउत्तेजित कर देता है जब वह अपने मुंह से इस मीठी कराह को निकालती उनके लण्ड के सुपारे को दबा देती। लण्ड और भग्नासे की रगड़ बढ़ती जा रही थी।

"ए सुगना ये में से दूध निकली त हमरो मिली" सरयू सिंह ने सुगना की चूचियां और निप्पलों को मीसते हुए पूछा।

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली

" दुगो बानू एगो राहुर ए गो लइका के"

सुंदर और कामुक स्त्री यदि हंसमुख और हाजिर जवाब है उसकी खूबसूरती दुगनी हो जाती है सरयू सिंह भी सुगना कि इसी अदा पर मर मिटते थे। उन्होंने भी अपने हाथ सुगना की जांघों के बीच की घाटी में उतार दिए और उसकी बुर के झरने से बहने वाले रस में अपनी उंगलियां भिगोने लगे

सुगना की बुर से रिसने वाला काम रस लण्ड को सराबोर कर चुका था। सुगना अपनी हथेलियों को सुरंग का आकार देकर लण्ड को कृत्रिम योनि का एहसास करा रही थी..


सुगना का हर अंग जादुई था सुगना के स्पर्श से अभिभूत सरयू सिह धीरे-धीरे स्खलन को तैयार हो चुके थे उन्होंने सुगना के कान में कहां

"तनी सा भीतर घुसा ली का?"

"बाबूजी थोड़ा भी आगे जाए तब लाइका के माथा चापुट हो जायी हा मां कह तली हा"

अचानक ही सरयू सिंह ने अपनी उंगलियों से सुगना की गुदांज गांड को सहला दिया और सुगना के गालो को चूमते हुए पूछे

" अउर ए में?"

सुगना मुस्कुराने लगी उसने सरयू सिंह के गानों को चुमते हुए बोला

"राहुल लइका ई सब सूनत होइ त का कहत होइ"

"इतना सुंदर सामान देखी त उहो इहे काम करी"

सुगना जान चुकी थी कि यदि बाबूजी स्खलित ना हुए तो यह कामुक कार्यक्रम किसी भी हद तक जा सकता था। उसने अपनी उंगलियों की कला दिखायी वह सरयू सिंह के सुपारे को कभी अपने बुर में घुसेड़ती और फिर अपनी उंगलियों से खींच कर बाहर कर देती।


बुर् के मखमली एहसास से सरयू सिंह का लण्ड उछलने लगा। सुगना उसकी हर धड़कन पहचानती थी उसे मालूम चल चुका था ज्वालामुखी फूटने वाला था। वह उनकी गोद से उठ गई और लण्ड से निकलने वाली वीर्य धार को ऊपर आसमान की तरफ नियंत्रित करने लगी। वीर्य की बूंदों ने छत को चूमने की कोशिश की परंतु कामयाब ना हुईं। वह वापस आकर सुगना के मादक शरीर पर गिरने लगी सुगना ने उस वीर्य वर्षा में खुद को डुब जाने दिया। चुचियों और चेहरे पर गिर रहा वीर्य सुगना आंखें बंद कर महसूस करती रही। सरयू सिंह उसकी ठुड्डी और होठों को चूमते रहे वह भाव विभोर हो चुके थे। उधर उनकी उंगलियां सुगना की बूर को मसले जा रही थी…

सुगना के पैर एक बार फिर एठने लगे और पंजे सीधे होने लगे ….

रतन अर्ध निद्रा में सो रही सुगना की इस परिवर्तित अवस्था से आश्चर्यचकित था उसने सुगना को झकझोरा और बोला

" का भईल सुगना"

सुगना अपने मीठे ख्वाब से बाहर आ गई और अपने पति को अपना पैर दबाते देख एक तरफ वो शर्मा गयी दूसरी तरफ अपने उस सुखद सपने को याद कर रही थी जिसने उसकी बुर को पनिया दिया था।

सुगना की साड़ी अभी घुटनों के ठीक ऊपर थी रतन नींद में सो रही सुगना उस साड़ी को ऊपर करना तो चाहता था परंतु हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था परंतु अब सुगना जाग चुकी थी रतन के हाथ सुगना के घुटनों की तरफ बढ़ रहे थे...

नियति रतन की आंखों में प्रेम और वासना दोनों का मिलाजुला अंश देख रही थी…


शेष अगले भाग में…..
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Sanju@

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भाग 65

अब तक आपने पढ़ा लाली और सुगना अपने प्रसव के लिए अस्पताल पहुंच चुकी थीं

अब आगे..

कुछ ही देर में लाली और सुनना अपनी प्रसव वेदना झेलने के लिए अस्पताल के लेबर रूम के अंदर आ गयीं। जितनी आत्मीयता से कजरी और हरिया की पत्नी (लाली की मां) तथा सोनी अस्पताल पहुंची थी उतनी ही बेरुखी से उन्हें लेबर रूम के बाहर रोक दिया गया।

अंदर असहाय सुगना और लाली अपनी प्रसव पीड़ा झेलने के लिए चल पड़ीं। कजरी अस्पताल की लॉबी में पैर पटकते हुए इधर-उधर घूम रही थी लाली की माँ भी उसके पीछे-पीछे घूमती परंतु उसे यह घूमना व्यर्थ प्रतीत हो रहा था कुछ ही देर में वह चुपचाप लोहे की बेंच पर बैठ गई। सोनी ने अपने नर्सिंग की पढ़ाई के बलबूते वहां उपलब्ध नर्सों से कुछ ही घंटों में दोस्ती कर ली और कुछ देर के लिए अंदर जाकर सुगना और लाली का हालचाल ले आयी।


वाकपटु पढ़ी-लिखी युवती का यह गुण देखकर कजरी और लाली की मां ने सोनी को ढेरों आशीर्वाद दिए…

"जल्दी तोहरो बियाह ओके और भगवान तोहरा के सब सुख देस"

लाली की मां ने सोनी को उसके मन मुताबिक आशीर्वाद दे दिया था। विवाह की प्रतीक्षा वह स्वयं कर रही थी। सोनी अब यह जान चुकी थी की जांघों के बीच छुपी वह कोमल ओखली की प्यास बिना मुसल बुझने वाली नहीं थी। विकास के संग बिताए पल इस कामाग्नि को सिर्फ और सिर्फ भड़काने का कार्य करते थे सोनी चुदने के लिए तड़प उठती।। हाय रे समाज ….हाय रे बंदिशें ….सोनी समाज के नियमों को कोसती परंतु उन्हें तोड़ पाने की हिम्मत न जुटा पाती।


स्खलन एक आनंददायक प्रक्रिया है परंतु लिंग द्वारा योनि मर्दन करवाते हुए अपनी भग्नासा को लण्ड के ठीक ऊपर की हड्डी पर रगड़ते हुए स्खलित होना अद्भुत सुख है जो जिन महिलाओं को प्राप्त होता है वही उसकी उपयोगिता और अहमियत समझती हैं। सोनी का इंतजार लंबा था यह बात वह भी जानती थी पर सोनी की मुनिया इन सांसारिक बंधनों से दूर अपने होठों पर प्रेम रस लिए एक मजबूत लण्ड का इंतजार कर रही थी। सोनी विकास के लण्ड को स्वयं तो छू लेती परंतु अपनी मुनिया से हमेशा दूर रखती।

इधर सोनी अपने रास रंग में खो खोई थी...उधर अंदर दो युवा महिलाएं प्रसव वेदना से तड़प रही थी और प्रकृति को कोस रही थी। चुदाई का सुख जितना उत्तेजक और आनंददायक होता है प्रसव उतना ही हृदय विदारक। जो सुगना अपनी जांघें अपने बाबूजी सरयू सिंह के लिए खोलने से पहले उनसे मान मुनहार करवाती थी वह अपनी जांघें स्वयं फैलाए हुए प्रसव पीड़ा झेल रही थी।

सुगना अपने बाबूजी सरयू सिंह को को याद करने लगी उनके साथ बिताए पल उसकी जिंदगी के सबसे सुखद पल थे । कैसे वो उसे पैरों से लेकर घुटने तक चूमते, जांघों तक आते-आते सुगना की उत्तेजना जवाब दे जाती वह उनके होठों को अपनी बुर तक न पहुंचने देती…और उनके माथे को प्यार से धकेलती..


पता नहीं क्यों उसे बाबूजी बेहद सम्मानित लगते थे और उनसे यह कार्य करवाना उसे अच्छा नहीं लगता था। जबकि सरयू सिंह सुगना के निचले होठों को पूरी तन्मयता से चूसना चाहते उन्हें अपने होठों से सुगना की बूर् के मखमली होठों को फैला कर अपनी जीभ उस गुलाबी छेद में घुमाने से बेहद आनंद आता और उससे निकलने वाले रस से जब वह अपनी जीभ को भिगो कर अपने होठों पर फिराते …..आह….आनंद का वह पल उनके चेहरे पर गजब सुकून देता और सुगना उन्हें देख भाव विभोर हो उठती यह पल उसके लिए हमेशा यादगार रहता।

कभी-कभी वह अपनी जीभ पर प्रेम रस संजोए सुगना के चेहरे तक आते और उसके होठों को चूमने की कोशिश करते। सुगना जान जाती उसे अपनी ही बुर से उठाई चासनी को को चाटने में कोई रस नहीं आता परंतु वह अपने बाबूजी को निराश ना करती। उसे अपने बाबू जी से जीभ लड़ाना बेहद आनंददायक लगता और उनके मुख से आने वाली पान किमाम खुशबू उसे बेहद पसंद थी। और इसी चुम्मा चाटी के दौरान सरयू सिंह का लण्ड अपना रास्ता खोज देता... सुगना ने अपने दिमाग में चल रही यादों से कुछ पल का सुकून खरीदा तभी गर्भ में पल रहे बच्चे ने हलचल की और सुगना दर्द से कराह उठी

"आह ...तानी धीरे से" सुगना ने अपने गर्भस्थ शिशु से गुहार लगाई।

नियति सुगना की इस चिरपरिचित कराह सुनकर मुस्कुराने लगी। पर सुगना ने यह पुकार अपने शिशु से लगाई थी।

सुगना की जिस कोख ने उस शिशु को आकार दिया और बड़ा किया वही उस कोख से निकल कर बाहर आना चाहता था अंदर उसकी तड़प सुगना के दर्द का कारण बन रही थी सुगना अब स्वयं अपनी पुत्री को देखने के लिए व्यग्र थी।

सुगना ने पास खड़ी नर्स से पूछा...

"कवनो दर्द के दवाई नईखे का? अब नईखे सहात"

"अरे थोड़ा दर्द सह लो जब अपने लड़के का मुखड़ा देखोगी सारे दर्द भूल जाजोगी"

"अरे बहन जी ऐसा मत कहीं मुझे लड़की चाहिए मैंने इसके लिए कई मन्नते मान रखी है"

" आप निराली हैं' मैंने यहां तो किसी को भी लड़की मांगते नहीं देखा भगवान करे आपकी इच्छा पूरी हो... हमारा नेग जरुर दे दीजिएगा"

नर्स केरल से आई थी परंतु बनारस में रहते रहते वह नेग चार से परिचित हो चुकी थी।

सोनी अंदर आ चुकी थी और नर्स और सुगना की बातें सुन रही थी वह भी मन ही मन अपने इष्ट देव से सुगना की इच्छा पूरी करने के लिए प्रार्थना करने लगी।

इधर सुगना अपनी पुत्री के तरह-तरह की मन्नतें और अपने इष्ट देव से गुहार पुकार लगा रही थी उधर लाली एक और पुत्र की प्रतीक्षा में थी उसे लड़कियों का जीवन हमेशा से कष्टकारी लगता था जिनमें से एक कष्ट जो आज वह स्वयं झेल रही थी। उसका बस चलता तो वह सोनू को बगल में बिठाकर उतने ही दर्द का एहसास कराती


आज पहली बार उसे सोनू पर बेहद गुस्सा आ रहा था जिसने उसकी बुर में मलाई भरकर दही जमा दी थी।

नर्स मुआयना करने लाली के करीब भी गई और उससे ढेरों बातें की बातों ही बातों में लाली ने भी आने वाले शिशु से अपने अपेक्षाएं नर्स के सामने प्रस्तुत कर दीं।

परिस्थितियों ने आकांक्षाओं और गर्भस्थ शिशु के लिंग से अपेक्षाओं के रूप बदल दिए थे। उन दिनों पुत्री की लालसा रखने वाली सुगना शायद पहली मां थी। अन्यथा पुत्री जो भगवान का वरदान होती है वह स्वयं भगवान स्त्रियों को गर्भ में उपहार स्वरूप देते थे।

बाहर हॉस्पिटल की जमीन पर अपने नन्हे कदमों से कदम ताल करता हुआ सूरज अपनी मां का इंतजार कर रहा था वह बार-बार नीचे जमीन पर बैठना चाहता परंतु कजरी उसे तुरंत गोद में उठा लेती..

" मां केने बिया" सूरज ने तोतली आवाज में कजरी से पूछा

"तोहार भाई ले आवे गईल बिया"

सूरज को न तो भाई से सरोकार था नहीं बहन से उसे तो शायद ना इन रिश्तो की अहमियत पता थी और न हीं उसे अपने अपने अभिशप्त होने का एहसास था।

उधर बनारस स्टेशन पर रतन, राजेश का इंतजार कर रहा था उसे लाली की मां ने राजेश को लेने भेज दिया था। रतन का मन नहीं लग रहा था वह इस समय सुगना के समीप रहना चाहता था और उसे दिलासा देना चाहता था हालांकि यह संभव नहीं था परंतु फिर भी हॉस्पिटल के बाहर रहकर वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाना चाहता था। परंतु लाली के अस्पताल में भर्ती होने की खबर राजेश तक पहुंचाना भी उतना ही आवश्यक था।

बनारस एक्सप्रेस कुछ ही देर मैं प्लेटफार्म पर प्रवेश कर रही थी। साफ सुथरा दिख रहा स्टेशन में न जाने कहां से इतनी धूल आ गई जो ट्रेन आने के साथ ही उड़ उड़ कर प्लेटफार्म पर आने लगी..

रतन को स्टेशन पर खड़ा देखकर राजेश सारी वस्तुस्थिति समझ गया उसे इस बात का अंदाजा तो था कि लाली के प्रसव के दिन आज या कल में ही संभावित थे। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि वह आज के बाद दो-तीन दिन छुट्टी लेकर लाली के साथ ही रहेगा। रतन को देखते ही उसने पूछा

"का भईल रतन भैया?"

"चलीं दूनों जानी अस्पताल में बा लोग"

"कब गईल हा लोग"

" 2 घंटा भईल"

कहने सुनने को कुछ बाकी ना था. राजेश ने अपनी मोटरसाइकिल बनारस के बाहर रेलवे स्टेशन में खड़ी की हुई थी। रतन और राजेश अपनी अपनी मोटरसाइकिल से अस्पताल के लिए निकल पड़े।

रतन आगे आगे चल रहा था और राजेश पीछे पीछे। ट्रैफिक की वजह से रतन आगे निकल गया और पीछे चल रहे राजेश को रुकना पड़ा परंतु यह अवरोध राजेश के लिए एक अवसर बन गया। बगल में एक ऑटो रिक्शा आकर खड़ा हुआ जिस पर एक 20 - 22 वर्षीय युवती अपनी मां के साथ बैठी हुई थी उस कमसिन युवती का चेहरा और गदराया शरीर बेहद आकर्षक था। उसकी भरी-भरी चुचियां उसे मदमस्त युवती का दर्जा प्रदान कर रही थी साड़ी और ब्लाउज मिलकर भी चुचियों की खूबसूरती छुपा पाने में पूरी तरह नाकाम थे।

राजेश की कामुक निगाहें उस स्त्री से चिपक गई वह रह रह कर उसे देखता और उसके गदराए शरीर का मुआयना करता…. पतली कमर से नितंबों तक का वह भाग का वह जिसे आजकल लव हैंडल कहा जाता है धूप की रोशनी में चमक रहा था इसके आगे राजेश की नजरों को इजाजत नहीं थी। गुलाबी साड़ी ने गुलाबी चूत और उसके पहरेदार दोनों नितंबों को अपने आगोश में लिया हुआ था। राजेश के पीछे मोटरसाइकिल वाले हॉर्न बजा बजाकर राजेश को आगे बढ़ने के लिए उकसा रहे थे परंतु राजेश उस दृष्टि सुख को नहीं छोड़ना चाहता था। वह ऑटो रिक्शा चलने का इंतजार कर रहा था।

रिक्शा चल पड़ा और राजेश उसके पीछे हो लिया। राजेश की अंधी वासना ने उसे मार्ग भटकने पर मजबूर कर दिया। हॉस्पिटल जाने की बजाय राजेश उस अपरिचित पर मदमस्त महिला के ऑटो रिक्शा पीछे पीछे चल पड़ा।

मौका देख कर राजेश उसे ओवरटेक करने की कोशिश करता और दृष्ट सुख लेकर वापस पीछे हट जाता।

राजेश की युवा और कामुक महिलाओं के पीछे भागने की आदत पुरानी थी। पता नहीं क्यों, लाली जैसी मदमस्त और कामुक महिला से भी उसका जी नहीं भरा था। उसकी सुगना को चोदने की चाहत अधूरी रह गई थी परंतु जब से उसने सुगना को नग्न देखकर अपना वीर्य स्खलन किया था वह भी उसकी जांघों के बीच उसकी रसीली बुर पर तब से वासना में अंधा हो गया और हर सुंदर तथा कामुक महिला को देखने की लालसा लिए उनके पीछे पीछे भागता रहता।

राजेश अपने ख्वाबों में उस अनजान महिला को नग्न कर रहा था। वह कभी उसकी तुलना सुगना से करता कभी उसकी अनजान और छुपी हुई बुर की कल्पना करती। राजेश का लण्ड तन चुका था।

अचानक राजेश को लाली का ध्यान आया और उसने ऑटो रिक्शा को ओवरटेक करने की कोशिश की। रिक्शा बाएं मुड़ रहा था राजेश को यह अंदाजा न हो पाया कि रिक्शा सामने आ रहे वाहन की वजह से बाएं मुड़ रहा है । राजेश ने यह समझा कि रिक्शावाला उसे आगे जाने के लिए पास दे रहा है उसने अपने मोटरसाइकिल की रफ्तार बढ़ा दी।


अचानक राजेश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। सामने से आ रहे मेटाडोर ने राजेश को जोरदार टक्कर मार दी...

देखते ही देखते सड़क पर चीख-पुकार मचने लगी... नियति ने अपना क्रूर खेल खेल दिया था।

कुछ ही देर में राजेश उसी अस्पताल के एक बेड पर पड़ा जीवन मृत्यु के बीच झूल रहा था।

लाली के परिवार की खुशियों पर अचानक ग्रहण लग गया था । लाली के परिवार रूपी रथ के दोनों पहिए अलग-अलग बिस्तर पर पड़े असीम पीड़ा का अनुभव कर रहे थे। एक जीवन देने के लिए पीड़ा झेल रहा था और एक जीवन बचाने के लिए।

सोनी को लाली और सुगना के पास छोड़कर सभी लोग राजेश के समीप आ गए। राजेश की स्थिति वास्तव में गंभीर थी। सर पर गहरी चोट आई थी राजेश को आनन-फानन में ऑपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया गया परंतु मस्तिष्क में आई गहरी चोट वहां उपलब्ध डॉक्टरों के बस की ना थी। उन्होंने जिला अस्पताल से एंबुलेंस मंगाई और राजेश को प्राथमिक उपचार देकर उसकी जान बचाने का प्रयास करते रहे.


बाहर लाली की मां का रो रो कर बुरा हाल था अपनी एकमात्र पुत्री के पति को इस स्थिति में देखकर उसका कलेजा फट रहा था। भगवान भी लाली की मां का करुण क्रंदन देखकर द्रवित हो रहे थे। दो छोटे-छोटे बच्चे राजू और रीमा भी अपने पिता के लिए चिंतित और मायूस थे परंतु उनके कोमल दिमाग में अभी जीवन और मृत्यु का अंतर स्पष्ट न था।

नियति आज सचमुच निष्ठुर थी जाने उसने ऐसी कौन सी व्यूह रचना की थी उसे राजू और रीमा पर भी तरस ना आया।

राजेश जीवन और मृत्यु के लकीर के इधर उधर झूल रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वो दो ऊँची मीनारों के बीच बनी रस्सी पर अपना संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा था।


आज इस अवस्था में भी उसके अवचेतन मन में सुगना अपने कामुक अवतार में दिखाई पड़ रही थी। अपने सारे भी कष्टों को भूल वह अपने अवचेतन मन में सुगना की जांघों के बीच उस अद्भुत गुफा को आज स्पष्ट रूप से देख पा रहा था। गुलाबी बुर की वह अनजान सुरंग मुंह बाये जैसे राजेश का ही इंतजार कर रही थी।

जाने उस छेद में ऐसा क्या आकर्षण था राजेश उसकी तरफ खींचता चला जा रहा था। और कुछ ही देर में राजेश की आत्मा ने नया जन्म लेने के लिए सुगना के गर्भ में पल रहे शिशु के शरीर में प्रवेश कर लिया।


राजेश अपनी जिस स्वप्न सुंदरी की बुर को चूमना चाटना तथा जी भरकर चोदना चाहता था नियति ने उसका वह सपना तो पूरा न किया परंतु उस बुर में प्रवेश कर गर्भस्थ शिशु का रूप धारण करने का अवसर दे दिया।

सुगना राजेश की आत्मा के इस अप्रत्याशित आगमन से घबरा गई उसके शरीर में एक अजब सी हलचल हुई एक पल के लिए उसे लगा जैसे गर्भस्थ ने अजीब सी हलचल की।


सुगना तड़प रही थी उसने अपने पेट को सिकोड़ कर शिशु को अपनी जांघों के बीच से बाहर निकालने की कोशिश की। सुगना की छोटी और कसी हुई बुर स्वतः ही फूल कर शिशु को बाहर आने का मार्ग देने लगी।

प्रकृति द्वारा रची हुई वह छोटी से बुर जो हमेशा सरयू सिंह के लण्ड को एक अद्भुत कसाव देती और जब तक उसके बाबूजी सुगना को चूम चाट कर उत्तेजित ना करते बुर अपना मुंह न खोलती उसी बुर ने आज अपना कसाव त्याग दिया था और अपनी पुत्री को जन्म देने के लिए पूरी तरह तैयार थी।

सोनी और वह नर्स टकटकी लगाकर शिशु को बाहर आते हुए देख रहे थे। सोनी के लिए के लिए यह दृश्य डरावना था। जिस छोटी सी बुर में उसकी उंगली तक न जाती थी उससे एक स्वस्थ शिशु बाहर आ रहा था। सोनी डर भी रही थी परंतु अपनी बहन सुगना का साथ भी दे रही थी नर्सिंग की पढ़ाई ने उसे विज्ञान की जानकारी भी दी थी और आत्मबल भी।

इधर सुगना के बच्चे का सर बाहर आ चुका था नर्स बच्चे को बाहर खींच कर सुगना की मदद कर रही थी उतनी ही देर में लाली की तड़प भी चरम पर आ गई। गर्भ के अंदर का शिशु लाली की बुर् के कसाव को धता बताते हुए अपना सर बाहर निकालने में कामयाब हो गया।

"अरे लाली दीदी का भी बच्चा बाहर आ रहा है "

सोनी ने लगभग चीखते हुए कहा.. और सुगना के बेड के पास खड़ी नर्स के पास आ गई।

" आप इस बच्चे को पकड़िए मैं उस बच्चे को बाहर निकालने में मदद करती हूं"

नर्स भागकर लाली की तरफ चली गई

सोनी ने अपना ध्यान पहले ध्यान बच्चे के जननांग पर लगाया और सन्न रह गई सुगना ने पुत्री की बजाय पुत्र को जन्म दिया।

"हे विधाता तूने दीदी की इच्छा का मान न रखा"

सोनी को यह तो न पता था कि पुत्री का सुगना के जीवन में क्या महत्व था परंतु इतना वह अवश्य जानती थी कि सुगना दीदी जितना पुत्री के लिए अधीर थी उतना अधीर उसने आज तक उन्हें न देखा था। सुगना अपने बच्चे का मुख देख पाती इससे पहले वह पीड़ा सहते सहते बेहोश हो चुकी थी।

कुछ ही देर में नर्स लाली के बच्चे को लेकर सोनी के समीप आ गई

"आपकी दीदी को क्या हुआ है.."

सोनी ने उसके प्रश्न का उत्तर न दिया अपितु वही प्रश्न उसने नर्स से दोहरा दिया

"मेरे हाथ में तो सुंदर पुत्री है.."

"क्या आप मेरी एक बात मानिएगा?"

"बोलिए"

"मेरी सुगना दीदी को पुत्री की बड़ी लालसा है और लाली दीदी को पुत्र की जो काम भगवान ने नहीं किया क्या हम उन दोनों की इच्छा पूरी नहीं कर सकते ? दो गुलाब के फूल यदि बदल जाए तो भी तो वह गुलाब के फूल ही रहेंगे।"

नर्स को सोनी की बात समझ आ गई उसे वैसे भी न लाली से सरोकार था न सुगना से । दोनों ही महिलाएं यदि खुश होती तो उसे मिलने वाले उपहार की राशि निश्चित ही बढ़ जाती। नर्स के मन में परोपकार और लालच दोनों उछाल मारने लगे और अंततः सुगना के बगल में एक अति सुंदर पुत्री लेटी हुई थी और सुगना के जागने का इंतजार कर रही थी।

यही हाल लाली का भी था। उसे थोड़ा जल्दी होश आ गया अपने बगल में पुत्र को देखकर लाली फूली न समाई।

उधर सोनी बाहर निकल कर अपने परिजनों को ढूंढ रही थी ताकि वह स्वस्थ बच्चों के जन्म की खुशखबरी उन्हें सुना सके गली में घूम रहे कंपाउंडर ने उसे राजेश की दुर्घटना के बारे में सब कुछ बता दिया। सोनी भागती हुई हॉस्पिटल के ऑपरेशन थिएटर की तरफ गई जहां राजेश का मृत शरीर ऑपरेशन थिएटर से बाहर आ रहा था। लाली की मां का रो रो कर बुरा हाल था अपनी नानी को इस तरह बिलखते देखकर राजू और रीमा भी रोने लगे। कजरी लाली की मां को सहारा दे रही थी परंतु लाली की मां अपनी पुत्री के सुहाग का मृत शरीर देख उसका कलेजा मुंह को आ रहा था।

सोनी आवाक खड़ी इस बदली हुई परिस्थिति को देख रही थी राजेश की मृत्यु सारी खुशियों पर भारी पड़ गई थी।

अस्पताल परिसर में एक ही इंसान था जो बेहद प्रसन्न था वह थी सुगना यद्यपि यह अलग बात थी कि उसे राजेश की मृत्यु की जानकारी न थी अपनी बहुप्रतीक्षित पुत्री को देखकर सुगना फूली नहीं समा रही थी। उसने अपने सारे इष्ट देवों का हृदय से आभार व्यक्त किया और अपने मन में मानी हुई सारी मान्यताओं को अक्षर सही याद करती रही और उन्हें पूरा करने के लिए अपने संकल्प को दोहराती रही। विद्यानंद के लिए उसका सर आदर्श इच्छुक गया था उसने मन ही मन फैसला किया कि वह अगले बनारस महोत्सव में उनसे जरूर मिलेगी

वह रह रह कर अपनी छोटी बच्ची को चूमती….

"अब तो आप खुश है ना"

सुगना को ध्यान आया कि अब से कुछ देर पहले उसने नर्स को नेग देने की बात कही थी

सुगना ने अपने हाथ में पहनी हुई एक अंगूठी उस नर्स को देते हुए कहा

"हमार शरदा भगवान पूरा कर देले ई ल तहार नेग "

नर्स ने हाथ बढ़ाकर वह अंगूठी ले तो ली पर उसकी अंतरात्मा कचोट रही थी। उसे पता था कि उसने बच्चे बदल कर गलत कार्य किया था चाहे उसकी भावना पवित्र ही क्यों ना रही हो।

कुछ घटनाक्रम अपरिवर्तनीय होते हैं आप अपने बढ़ाएं हुए कदम वापस नहीं ले सकते वही स्थिति सोनी और उस नर्स की थी शायद नियति की भी...।


शेष अगले भाग में...
अद्भुत अद्वितीय रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
वाह ने नियति क्या खेल खेला है
सुगना और लाली का प्रसव हो गया लेकीन राजेश की दुर्घटना में मृत्यू हो गई
सोनी ने बच्चों की अदला बदली कर के दोनो मांओ को तसल्ली तो दे दी लेकीन एक सवाल खडा कर दिया लाली की पुत्री सुगना के भाई सोनू के बीज से उत्पन्न हुई हैं जो अब सुगना की पुत्री है और लाली का पुत्र अपने पति का या सरयू का देखते हैं आगे क्या होता है
रतन और सुगना के बिच नजदिकीया बढ रही है देखते हैं आगे क्या क्या रंग लाती हैं
 

Sanju@

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भाग -66

सुगना ने अपने हाथ में पहनी हुई एक अंगूठी उस नर्स को देते हुए कहा

"हमार शरदा भगवान पूरा कर देले ई ल तहार नेग "

नर्स ने हाथ बढ़ाकर वह अंगूठी ले तो ली पर उसकी अंतरात्मा कचोट रही थी। उसे पता था कि उसने बच्चे बदल कर गलत कार्य किया था चाहे उसकी भावना पवित्र ही क्यों ना रही हो।

कुछ घटनाक्रम अपरिवर्तनीय होते हैं आप अपने बढ़ाएं हुए कदम वापस नहीं ले सकते वही स्थिति सोनी और उस नर्स की और शायद नियति की भी ..


अब आगे..

लाली की मा और कजरी लाली और सुगना से मिलने अंदर आ चुकी थीं। सुगना ने चहकते हुए कजरी से कहा..

"मां देख भगवान हमार सुन ले ले हमरा के बेटी दे दे ले"

कजरी ने बच्चे को गोद में ले लिया पर उसके चेहरे पर खुशी के भाव न थे।

"मां तू खुश नईखु का काहे मुंह लटकावले बाड़ू"

कजरी ने अपने होठों पर उंगलियां रखकर सुगना को चुप रहने का इशारा किया। और उसके कान में जाकर वस्तु स्थिति से सुगना को अवगत करा दिया।

सुगना सन्न पड़ गई जितनी खुशियां उसके दिलो-दिमाग मे थी. उन पर राजेश के मरने का गम भारी पड़ गया, अपनी सहेली के के लिए उसकी संवेदनाओं ने उन खुशियों को निगल लिया।

उधर लाली पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा था। वह एक बार फिर बेहोश हो गई। निष्ठुर नियति ने लाली का सुहाग छीन लिया था.

शाम होते होते सुगना और लाली अपने बच्चे के साथ अपने घर में आ चुकी थी।

राजेश की आत्मा ने अपने क्षत-विक्षत शरीर को त्याग कर सुगना के उसी गर्भ में अपना स्थान बनाया था जिसका निषेचन स्वयं उसके ही वीर्य से हुआ था। राजेश आज बालक रूप में अपनी ही पत्नी लाली की गोद में अपने घर में खेल रहा था और उन्हीं चुचियों पर बार-बार मुंह मार रहा था जिनको लाली उसे ज्यादा चूसने के लिए रोकती रहती थी।

काश लाली को यह पता होता वह बालक राजेश का ही अंश है तो शायद उसका दुख कुछ कम होता परंतु अपने पति को अपने बालक के रूप में देखकर शायद ही कोई महिला खुश हो।


पुरुष का पति रूप हर महिला को सबसे ज्यादा प्यारा होता है बशर्ते उन दोनों में और एक दूसरे के प्रति समझ आदर और प्यार हो।

सोनू भी घर पर आ चुका था। वह लाली को सांत्वना दे रखा था। लाली की मां को सोनू का इस तरह सांत्वना देना सहज तो लग रहा था परंतु कहीं ना कहीं कोई बात खटक रही थी।

स्त्री और पुरुष के आलिंगन को देखकर उनके बीच संबंधों का आकलन किया जा सकता है .. एक दूसरे के शरीर पर बाहों का कसाव खुशी और गम दोनों स्थितियों में अलग अलग होता है। शारीरिक अंगों का मिलन रिश्तो को परिभाषित करता है,

यदि आलिंगन के दौरान पुरुष और स्त्री के पेट आपस में कसकर चिपके हुए हों तो यह मान लीजिए की या तो उन दोनों में संबंध स्थापित हो चुके हैं या फिर निकट भविष्य में होने वाले हैं।


लाली और सोनू का यह मिलन जिन परिस्थितियों में हो रहा था वहां कामोत्तेजना का कोई स्थान न था परंतु लाली सोनू के जीवन में आने वाली पहली महिला थी जिसे वह मन ही मन प्यार करने लगा था यद्यपि इस प्यार में कामुकता का अहम स्थान था।

सोनू का शरीर पिछले कुछ ही महीनों में और मर्दाना हो गया था 6 फुट का लंबा शरीर भरने के बाद सोनू का व्यक्तित्व निखरने लगा था।

खबरों की अपनी गति होती है वह आज के युग में मोबाइल और व्हाट्सएप से पहुंचती हैं उस दौरान कानो कान पहुंचती थी। सुगना की पुत्री और राजेश की मृत्यु की खबर भी सलेमपुर पहुंची और अगले दिन अगले दिन सरयू सिंह भी बनारस में हाजिर थे।


अपनी पुत्री सुगना की गोद में मासूम बालिका को देखकर उनका हृदय भाव विह्वल हो उठा। उन्हें पता था की बनारस महोत्सव के दौरान सुगना की जांघों के बीच लगा वह वीर्य निश्चित ही राजेश का था। वह मन ही मन यह मान चुके थे कि सुगना का यह गर्भ राजेश से संभोग की देन थी।

उन्हें सुगना की पुत्री से कोई विशेष लगाव न था शायद इसकी वजह उसमें राजेश का अंश होना था परंतु सुगना... वह तो उन्हें जान से प्यारी थी उस कामुक रूप में भी और इस परिवर्तित पुत्री रूप में भी।

सुगना ने अपने बाबू जी के चरण छुए और एक बार फिर उनके आलिंगन में आने को तड़प उठी। परंतु सरयू सिंह ने अब मर्यादा की लकीर कुछ ज्यादा ही गहरी खींच रखी थी सुगना चाह कर भी उसे लांघ न पाई और सरयू सिंह ने सिर्फ उसके माथे को चूमकर उसे स्वयं से अलग कर दिया।

राजेश के मृत शरीर का अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर किया गया यद्यपि वह इस लायक कतई न था वासना का जो खेल वह खेल रहा था वह न शायद प्रकृति को पसंद था और नहीं नियति को।

विधि का विधान है दुख चाहे कितना भी गहरा और अवसाद भरा क्यों ना हो इंसान की सहनशक्ति के आगे हार जाता है ।

राजेश के जाने से लाली का पूरा परिवार हिल गया था परंतु कुछ ही दिनों में दिनचर्या सामान्य होती गयी। सोनू ने अपने दोस्तों की मदद से राजेश के विभाग से मिलने वाली सारी मदद लाली तक पहुंचवा दी तथा उसकी अनुकंपा नियुक्ति के लिए अर्जी भी लगवा दी।

सोनू जो उम्र में लाली से लगभग चार-पांच वर्ष छोटा था अचानक ही उसे बड़ा दिखाई पड़ने लगा। सोनू जब भी लाली के घर आता सारे बच्चे उसका भरपूर आदर करते हैं उसकी गोद में खेलते और लाली अपने सारे गम भूल जाती। जितना समय सोनू लाली के घर व्यतीत करता उतना तो शायद अपनी सगी बहन सुगना के यहां भी नहीं करता।

धीरे धीरे जिंदगी सामान्य होने लगी सुगना अपने बिस्तर पर रहती और पुत्री से एक पल के लिये भी अलग न होती। कजरी और सोनी मिलकर घर का कामकाज संभालती। कजरी को एक-दो दिन के लिए सरयू सिंह के साथ सलेमपुर जाना पड़ा घर की जिम्मेदारी संभालने का कार्य सोनी और रतन पर आ पड़ा। सोनी दिनभर कॉलेज में बिताती और घर आने पर चूल्हा चौका करती।

घर की जिम्मेदारियां किशोरियों और युवतियों को कामुकता से दूर कर देती हैं पिछले दो-तीन महीनों में सोनी विकास से नहीं मिल पा रही थी जिन चूचियों और जांघों के बीच उस झुरमुट में छुपी मुनिया को पुरुष हथेलियों का संसर्ग मिल चुका था वह भी इस बिछोह से त्रस्त हो चुकी थीं।

रसोई में कभी-कभी रतन उसका साथ देने आ जाता सोनी की उपस्थिति रतन को उत्साहित किए रखती। युवा लड़की आसपास के पुरुषों में स्वता ही उर्जा भर देती है .. रतन अपने आसपास सोनी को पाकर उत्साहित रहता और उसके साथ मिलजुल कर घर का काम निपटा लेता।


उधर सुगना अपनी पुत्री के लालन-पालन में खो गई थी। वह उसे अपने शरीर से एक पल के लिए भी अलग ना करती जैसे उसके लिए उससे ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं था। उसे सूरज की चिंता अवश्य थी जो उसके कलेजे का टुकड़ा था पर सूरज अब बड़ा हो चुका था और अपनी आवश्यकताएं अपने मुख से बोल कर अपनी प्यारी मौसी से मांग सकता था।

सुगना अपनी बच्ची को बार-बार चूमती और नियति को दिल से धन्यवाद देती जिसने उसे अपने ही पुत्र से संभोग करने से रोक लिया था परंतु जब जब वह अपनी फूल सी बच्ची के बारे में सोचती वह घबरा जाती..

एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई यही स्थिति सुगना की हो गई थी यह तो तय था की सुगना खाई में नहीं गिरेगी परंतु वह कैसे अपनी ही पुत्री को अपने ही पुत्र से संभोग करा कर उसे अभिशाप से मुक्ति दिलाएगी??

सुगना अपने विचारों में आज से 15- 20 वर्ष बाद की स्थिति सोचने लगी थी।

सुगना का ध्यान सूरज ने भंग किया जो उसकी ब्लाउज से दूसरी चूची को बाहर निकालकर पकड़ने का प्रयास कर रहा था..

"बाबू अब ना तू त बड़ हो गईला जा मौसी से दूध मांग ल में"

"मौसी के चूँची में दूध बा का? " सूरज ने अपना बाल सुलभ प्रश्न कर दिया तुरंत सुगना सिहर उठी उसने यह क्या कह दिया।

" बेटा मौसी गिलास में दूध दी"

सूरज ने मन मसोसकर दुखी मन से सुगना की सूचियां छोड़ी परंतु उसकी फूली चुचियों से दूध का कुछ अंश अपने होठों पर ले गया..

मौसी मौसी कहते हुए सूरज रसोई घर की तरफ चला गया.

सुगना अपनी पुत्री की खूबसूरती में खोई अपनी उसका नाम सोचने लगी... परंतु कोई भी नाम उसे सूझ नहीं सोच रहा था। वह अपने बाबूजी सरयू सिंह से उसका नाम कारण कराना चाहती थी । अब तक उसके जीवन में जो भी खुशियां आई थी उसके मूल में सरयू सिंह ही थे।

सुगना ने दिल से इच्छा जाहिर की और उसी शाम को सरयू सिंह हाजिर थे जो किसी शासकीय कार्य बस बनारस आए हुए थे।

"बाबूजी हम रउवे के याद करा तनी हां"

सुगना ने झुककर सरयू सिह के चरण छुए और सरयू सिंह की नशीली निगाहों ने ने एक बार फिर सुगना की पीठ और मादक नितंबों की तरफ दौड़ लगा दी। सरयू सिंह के मस्तिष्क ने निगाहों पर नियंत्रण किया और उनकी हथेलियां एक बार फिर सुगना के सर पर आशीर्वाद की मुद्रा में आ गयीं।


सरयू सिंह के अंग प्रत्यंग अब भी दिमाग का आदेश नजरअंदाज करने को उत्सुक रहते थे परंतु शरीर सिंह ने अपने काम भावना पर पूरी तरह नियंत्रण पा लिया था वह सुगना को सचमुच अपनी बेटी का दर्जा दे चुके थे।

"बाबूजी एकर का नाम रखाई" सुगना ने अपनी फूल सी बच्ची को सरयू सिंह जैसे मजबूत मर्द के हाथों में देते हुए कहा।

सरयू सिंह ने बच्ची को गोद में लिया.. सचमुच लाली और सोनू के अद्भुत प्यार और मिलन से जन्मी बच्ची बेहद कोमल और प्यारी थी। सरयू सिंह ने छोटी बच्ची को उठाया और उसके माथे को चूम लिया। सरयू सिंह के मुख से फूट पड़ा..

"सुगना बेटा ई ता शहद जैसन मीठा बिया एकर नाव मधु रखिह"

रतन पास ही खड़ा था उसने मिंकी को आगे कर दिया और बोला..

"चाचा एकरो त नाम स्कूल में लिखावे के बा मिन्की त ना नू लिखाई एकरो नाम तू ही ध द"

सरयू सिंह ने छोटी मिंकी को भी अपने पास बुलाया और बेहद प्यार से उसके माथे को सहलाते हुए बोले "एकर नाम मालती रही"

"हमरा सुगना बेटा के दुगो बेटी मधु - मालती"

सबके चेहरे पर खुशियां दिखाई देने लगी। सच सरयू सिंह ने दोनों ही बच्चों का नाम बड़ी सूझबूझ से रख दिया था।

"रतन तू ध्यान रखिह सुगना बेटी के कौनो कष्ट मत होखे"

रतन की निगाह में सरयू सिंह देवता तुल्य थे जिसने अपने निजी हित को ताक पर रखकर उसकी मां और पत्नी का ख्याल रखा था यहां तक की उन्होंने विवाह तक न किया था उसे सरयू सिंह की असलियत न पता थी और शायद यह उचित भी न था ।

रतन सरयू सिंह को पिता तुल्य मानता और उनके बड़प्पन के आगे हमेशा नतमस्तक रहता।

सुगना ने अपने बाबू जी सरयू सिंह की कामुकता को लगभग समाप्त मान लिया था उसे ऐसा प्रतीत होता जैसे उनकी उम्र हो चली थी। सुगना ने भी स्वयं पर नियंत्रण करना सीख लिया। वैसे भी अभी उसकी बुर अपना कसाव पाने की कोशिश कर रही थी। सुगना अपनी जांघों और बुर को सिकोड़ कर उसमें कसाव लाने का प्रयास करती। आज की कीगल क्रिया सुगना तब भी जानती थी।

समय दुख पर मरहम का कार्य करता है लाली के जीवन में भी खुशियां आने लगी। लाली को प्रसन्न देखकर सुगना भी धीरे धीरे धीरे खुश हो गई।

सूरज बार-बार मधु को अपनी गोद में लेने की कोशिश करता.. सुगना उसे रोकते परंतु वह जिद पर अड़ा रहा अंततः सुगना ने उसे बिस्तर पर पालथी मार कर बैठाया और उसकी गोद में अपनी फूल सी बच्ची मधु को दे दिया सूरज बेहद प्यार से मधु के माथे को चूम रहा था और उसके कोमल शरीर से खेल रहा था मधु भी अनुकूल प्रतिक्रिया देते हुए अपने कोमल होंठ फैला रही थी।

सुगना भाई बहन का यह प्यार देखकर द्रवित हो गयी। विधाता ने उसे कैसी अग्नि परीक्षा में झोंक दिया था कैसे हो इन दोनों मासूम भाई बहनों को परस्पर संभोग के लिए राजी करेंगी…

अगले कुछ दिनों में सुगना पूरी तरह स्वस्थ हो गई और अपने सभी इष्ट देवों के यहां जाकर मन्नत उतारने लगी रतन उसका साथ बखूबी देता।

सुगना द्वारा दी गई मोटरसाइकिल पर जब रतन सुगना को लेकर सुगना घुमाने और उसकी मन्नत पूरी कराने के लिए निकलता रतन की मन्नत स्वतः ही पूरी हो जाती। अपनी पत्नी सुगना के तन मन को जीतना रतन के जीवन का एकमात्र उद्देश्य था। हालांकि उससे अब इंतजार बर्दाश्त ना होता। पूरे 1 वर्ष तक वह सुगना के आगे पीछे घूमता रहा था उसने अपने प्रयश्चित के लिए हर कदम उठाए चाहे वह सुगना के पैर दबाना हो या उसके माथे पर तेल लगाना। सुगना इसके अलावा अपने किसी अंग को हाथ न लगाने देती।

परंतु पिछले चार-पांच महीनों में वह सोनी की कमनीय काया के दर्शन सुख का आनंद भी गाहे-बगाहे लेता रहा था। उसके मन में पाप था या नहीं यह तो रतन ही जाने पर सोनी की चढ़ती जवानी और उसके चाल चलन पर नजर रखना रतन अपना अधिकार समझ रहा था और अपने इसी कर्तव्य निर्वहन में वह अपना आनंद भी ढूंढ ले रहा था। एक पंथ दो काज वाली कहावत उसकी मनोदशा से मेल खा रही थी।

और एक दिन वह हो गया जो नहीं होना था..

रतन को आज अपने होटल जल्दी जाना था. घर के अंदर गुसल खाने में सोनी घुसी हुई थी उसे कॉलेज जाने की देरी हो रही थी। सुगना ने सोनी से कहा..

"तनी जल्दी बाहर निकल तोरा जीजा जी के होटल जल्दी जाए के बा"

सोनी ने अंदर से आवाज दी

"दीदी अभी 10 मिनट लागी"

रतन ने अंदाज लगा लिया कि यह 10 मिनट निश्चित ही 20 मिनट में बदल जाएंगे। वैसे भी रतन ने यह अनुभव किया था की सोनी बाथरूम में जरूरत से ज्यादा वक्त लगाती है उसने सुगना से कहा

"हम जा तानी आंगन में नल पर नहा ले तानी"

"ठीक बा आप जायीं हम ओहिजे कपड़ा पहुंचा देब"

सुगना भी अब अपने पति रतन को उचित सम्मान देने लगी थी।

रतन घर के आंगन में खुली धूप में नहाने लगा यह पहला अवसर था जब वह खुले में नहा रहा था। रतन और सुगना के बीच जो मर्यादा की लकीर खींची हुई थी उसने कभी भी रतन को सुगना के सामने निर्वस्त्र होने ना दिया था।

परंतु आज उसे सुगना को अपना गठीला शरीर दिखाने का मौका मिल गया था सुगना कुछ ही देर में उसके कपड़े और तोलिया लेकर आने वाली थी।

रतन की गठीली काया खुली धूप में चमक रही थी। रतन ने अपने शरीर पर साबुन लगाया और अपनी पत्नी सुगना की कल्पना करने लगा सुगना का शरीर अब वापस अपने आकार में आ रहा था रतन को पूरा विश्वास था कि वह सुगना को खुश कर उसे नजदीक आने के लिए राजी कर लेगा।

सुगना के मदमस्त बदन को याद करते करते रतन का लण्ड खड़ा हो गया वाह साबुन की बट्टी अपने लण्ड पर मलने लगा रतन अपनी आंखें बंद किए मन ही मन सोच रहा था काश सुगना इसी समय उसे तोलिया देने आ जाती तो वह अनजान बनकर ही अपने लण्ड के दर्शन उसे करा देता…

तभी पीछे आवाज आई..

"जीजा जी लींआपन तोलिया"

रतन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।


यह आवाज सोनी की थी। तो क्या सोनी ने उसे खड़े लण्ड पर साबुन बनते देख लिया था? हे भगवान…उसने झटपट अपनी लुंगी से अपने लण्ड को ढकने की नाकाम कोशिश की और अपना हाथ सोनी की तरफ बढ़ा दिया।

परंतु जो होना था वह हो चुका था. सोनी की सांसे तेज चल रही थीं। उसने आज जो दृश्य देखा था वह अनूठा था रतन एक पूर्ण मर्द था और उसका तना हुआ खूटे जैसा लण्ड देख कर सोनी अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं कर पा रही थी।

उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था। रतन का लण्ड आज तो वह अपनी बहुप्रतीक्षित सुगना की बुर को याद कर खड़ा हुआ था उसमें दोहरी ऊर्जा थी।

सोनी उस अद्भुत लण्ड को याद करते हुए अंदर भाग गई। रतन के खड़े लण्ड का वह आकार कल्पना से परे था। रतन एक ग्रामीण और बलिष्ठ युवक था पर क्या पुरुषों का लण्ड इतना बड़ा होता है? सोनी अपने दिमाग में रतन के लण्ड की विकास के लण्ड से तुलना करने लगी।


निश्चित थी रतन विकास पर भारी था। सोनी ने विकास के लण्ड को न सिर्फ छुआ था अपितु कई बार अपनी हथेलियों में लेकर सहलाते हुए उसे स्खलित किया था।

सोनी अभी लिंग के आकार की अहमियत से अनजान थी। वह अपने आप को खुश किस्मत मान रही थी कि उसे भगवान ने विकास से ही मिलाया था .. जिसके लण्ड को सोनी अपनी बुर में जगह देने को तैयार हो रही थी। यदि उसके हिस्से में भगवान में रतन जीजा जैसे किसी ग्रामीण युवक को दिया होता तो उसका क्या हश्र होता ? जिस बुर में उसकी पतली सी उंगली न जा पाती हो उसमें इतना मोटा बाप रे बाप। सोनी मन ही मन अपने जीजा और सुगना दीदी के मिलन के बारे में सोच रही थी। सुगना दीदी कैसे झेलती होंगी...जीजा को..

"काहें हाफ तारे"

"ऐसे ही कुछो ना"

" बुझाता जीजाजी तोर इंतजार कर तले हा तू हमारा के भेज देलु हा"

"काहे अइसन बोल तारे"

"अपन खजाना खोल के बइठल रहले हा .. बुझात रहे धार लगावतले हा" सोनी ने मुस्कुराते हुए अपनी जांघे खोल दी और जांघों के बीच इशारा किया..

सुगना को अंदाजा तो हो गया कि सोनी क्या कहना चाह रहे हैं परंतु उसे इस बात का कतई यकीन न था कि रतन इतनी हिम्मत जुटा सकेगा और आंगन में उसका इंतजार करते हुए अपने लण्ड पर धार लगा रहा होगा।

"साफ-साफ बोल का कहल चाह तारे?"


सोनी क्या बोलती जो दृश्य उसने देखा था उसे बयां करना कठिन था।

"दीदी चल जाए दे हमरा देर होता" सोनी अपने बाल झाड़ने लगी। उसकी सांसे और सांसों के साथ हिलती हुई भरी-भरी चूचियां कुछ अप्रत्याशित होने की तरफ इशारा कर रही थी।

"का भईल बा साफ-साफ बताऊ" * अपनी अधीरता न छुपा पा रही थी क्या रतन सचमुच उसे सोच कर उत्तेजित था।

"कुछ भी ना दीदी, दे कुछ खाए कि भूख लागल बा"

सुगना मन ही मन अफसोस कर रही थी कि क्यों उसने लाली को तोलिया लेकर भेज दिया था यदि वह स्वयं जाती तो रतन की मनोदशा को देख पाती और उसके हथियार को भी देख पाती। सुगना मन ही मन मुस्कुरा रही थी।

उधर रतन का खड़ा लण्ड अचानक ही सिकुड़ गया था। सोनी जैसी युवा लड़की ने जिस तरह उसे देखा था वह वास्तव में शर्मसार करने वाला था। वह सोनी के सामने क्या मुंह लेकर जाएगा ? यह सोच कर वह मन ही मन परेशान होने लगा। वह जानबूझकर अपने नहाने का समय बढ़ाता गया ताकि सोनी अपने कॉलेज के लिए निकल जाए। सुगना ने रतन को आवाज दी...

"अब देरी नईखे होत"

रतन अंदर आया और उसने सोनी को न पाकर राहत की सांस ली। सुगना ने रतन का नाश्ता निकाल कर रख दिया और वापस अपने कमरे में आकर अपनी पुत्री को दूध पिलाने की कोशिश करने लगी।

सुगना ने भी अब रतन के बारे में सोचना शुरू कर दिया था जैसे जैसे वह स्वस्थ हो रही थी उसकी बुर में कसाव आता जा रहा था और जांघों के बीच संवेदनाएं और सिहरन एक युवती की भांति होने लगे थे। पिछले छह आठ महीनों से जिस बुर ने कामकला से मुंह मोड़ लिया था वह मौका देख कर अपने होठों पर प्रेम रस लिए न जाने किसका इंतजार करती। सरयू सिंह की बेरुखी ने सुगना की बुर को रतन के लिए अपने होंठ खोलने पर मजबूर कर दिया था इसमें निश्चित जी रतन की लगन और पिछले कुछ महीनों में की गई सेवा का भी अहम योगदान था।

दिन बीत रहे थे...

जाने सुगना की चुचियों में क्या रहस्य था कि कुछ ही दिनों बाद बच्चे उसकी चूची ना पकड़ते यही हाल सूरज का भी था जब वह छोटा था


(पाठक एक बार अपडेट 4 पढ़ सकते हैं उनके दिमाग में यादें ताजा हो जाएंगी)

और अब यही स्थिति अब मधु की थी। कल शाम से वह सुगना की चूँचियां नहीं पकड़ रही थी। सुगना ने सारे जतन किए अपने हाथों से अपने निप्पलों को मसलकर दूध निकालने की कोशिश की और दूध निकला भी परंतु मधु चूँची पकड़ने को तैयार न थी।

सुगना अंततः कटोरी ले आई और अपनी चुचियों से दूध कटोरी में निकालने का प्रयास करने लगी.. परंतु यह कार्य अकेले संभव न था एक हाथ से वह कटोरी पकड़ती और दूसरे हाथ से अपनी मोटी मोटी चूचियों से दूध निकालने का प्रयास करती लाख जतन करने के बाद भी सुगना दूध की कुछ बूंदे ही कटोरी में निकाल पाई।

अपनी पुत्री को भूखा रखना सुगना को कतई गवारा न था जिस पुत्री का जन्म इतने मन्नतों और प्रार्थनाओं के बाद हुआ था उसे भूख से तड़पाना सुगना को कतई गवारा न था। उसने अपनी लज्जा को ताक पर रख रतन से मदद लेने की सोची…

शेष अगले भाग में..
अद्भुत अद्वितीय रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
लाली पर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा लेकिन सोनू ने अपने दोस्तो की सहायता से लाली की सहायता की उधर सुगना अपनी बेटी के लालन पालन में वयस्त है सोनी ने अपने जीजा के हथियार के दर्शन कर लिए देखते हैं सुगना और रतन के बीच नजदीकियां बढ़ती है या नही
प्रतीक्षा अगले अपडेट। की.......
हा सोनी ने अपने जीजा रतन के मुसल के दर्शन कर ही लिए और रतन और सुगना के बिच नजदिकीया बढ रही है देखते हैं आगे क्या क्या रंग लाती हैं
 

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भाग -67

सुगना अंततः कटोरी ले आई और अपनी चुचियों से दूध कटोरी में निकालने का प्रयास करने लगी.. परंतु यह कार्य अकेले संभव न था एक हाथ से वह कटोरी पकड़ती और दूसरे हाथ से अपनी मोटी मोटी चूचियों से दूध निकालने का प्रयास करती लाख जतन करने के बाद भी सुगना दूध की कुछ बूंदे ही कटोरी में निकाल पाई।

अपनी पुत्री को भूखा रखना सुगना को कतई गवारा न था जिस पुत्री का जन्म इतने मन्नतों और प्रार्थनाओं के बाद हुआ था उसे भूख से तड़पाना सुगना को कतई गवारा न था। उसने अपनी लज्जा को ताक पर रख रतन से मदद लेने की सोची…

अब आगे..


"ए जी थोड़ा मदद कर दीं देर त ना होई?"

सुगना की मधुर आवाज रतन के कानों तक पड़ी जो अब घर से बाहर निकलने के लिए लगभग तैयार था।

रतन सुगना की बात कभी टाल नहीं सकता था। दुनिया में यदि कोई रतन के लिए अहम था तो वह थी सुगना। उसकी नौकरी चाकरी इतनी अहम न थी कि वह अपनी सुगना की बात को नजरअंदाज करता। उसने सहर्ष कहा

"हां बतावा ना का करे के बा"

"हई तनी कटोरी पकड़ी और आपन आंख मत खोलब"

सुगना ने अपनी झील जैसी आंखें नचाते हुए कहा..

कुछ निषेधात्मक वाक्यों को कहने का अंदाज उनकी निषेधात्मकता को कम कर देता है।


सुगना ने राजेश को आँखें खोलने के लिए तो मना कर दिया था परंतु शायद जो उसके उद्बोधन में था वो उसके मन में नहीं।

रतन ने अपनी आंखें कुछ ज्यादा ही मीच लीं। उसने शायद सुगना को आश्वस्त करने की कोशिश की और सुगना द्वारा दी गई कटोरी को पकड़ लिया सुगना ने उसके हाथों को एक नियत जगह पर रहने का इशारा किया और अपनी एक चूँची को ब्लाउज से बाहर निकाल लिया…

नियति यह दृश्य देखकर मंत्रमुग्ध थी काश रतन अपनी आंखें खोल कर वह सुंदर दृश्य देख पाता। जिन चुचियों की कल्पना वह पिछले कई महीनों से कर रहा था वह उसकी आंखों के ठीक सामने थी परंतु उनकी मालकिन सुगना ने रतन को आंखें खोलने से रोक रखा था।

सुगना की कोमल हथेलियां उसकी चुचियों पर दबाव बढ़ाने लगी और दूध की धारा फूट पड़ी। कटोरी पर पढ़ने वाली धार सरररररर ... की मधुर आवाज पैदा कर रही थी जो रतन के कानों तक भी पहुंच रही थी।

रतन व्यग्र हो रहा था... कुछ दृश्य बंद आंखों से भी स्पष्ट दिखाई देते हैं वह अपने बंद आंखों के पीछे छुपी लालिमा में अपने हाथों में अपनी ही चूचियां पकड़े सुगना को देखने लगा।


सुगना के अथक प्रयास करने के बावजूद वह थोड़ा ही दूध बाहर निकाल पायी। जैसे-जैसे सुगना की हथेलियों का दबाव घट रहा था दूध की धारा धीमी पड़ती जा रही थी…

रतन ने हिम्मत जुटाई और बोला...

"तनी थपथपा ल ओकरा के(चुचियों को) तब दूध निकले में आसानी होगी"

रतन की बात ने सब कुछ खोल कर रख दिया था। सुगना ने उसकी आंखें बंद कर जिसे छिपाने की कोशिश की थी उसे रतन मैं बोलकर बयां कर दिया था हालांकि उसकी आंखें अब भी बंद थीं।

"ली तब आप ही करीं" सुगना अपनी चुचियों को दबाते दबाते थक चुकी थी उसने अनजाने में ही रतन को अपनी चूचियां छूने और उनसे दूध निकालने के लिए आमंत्रित कर दिया था।

रतन का दिल तेजी से धड़कने लगा आज वह पहली बार सुगना की चुचियों को छूने जा रहा था वह भी उसके आमंत्रण पर रतन के हाथ कांपने लगे और दिल की धड़कन तेज होती गई। सुगना ने उसके हाथ से कटोरी ले ली और उसके दोनों हाथों को आजाद कर दिया

"आंख अभियो मत खोलब" सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा परंतु उसकी आवाज में नटखट पन स्पष्ट महसूस हो रहा था। सुगना ने स्वयं रतन की हथेलियों को अपनी चुचियों से सटा दिया..

रतन सुगना की फूली हुई गोल-गोल सूचियों को अपने दोनों हथेलियों से महसूस करने लगा अपनी उंगलियों से उसके निप्पल को छूते हुए चुचियों के आकार और कसाव का अंदाजा लगाने लगा। धीरे-धीरे उसकी हथेलियों का दबाव बढ़ता गया और चूँचियों से दुग्ध धारा एक बार पुनः फूट पड़ी जिसे सुगना ने कटोरी में रोक लिया।

रतन मदहोश हो रहा था। उसका लण्ड खड़ा हो चुका था जो बिस्तर पर बैठी हुई सुगना की आंखों के ठीक सामने था। परंतु सुगना की निगाह अभी उस पर नहीं पड़ी थी। वह अपना ध्यान कटोरी पर लगाए हुए थी।

रतन का लण्ड अपने आकार में आकर रतन को असहज कर रहा था। उसे दिशा देने की आवश्यकता थी रतन ने अपना एक हाथ कुछ पल के लिए हटाया और लण्ड को ऊपर की तरफ किया। सुगना की निगाहों में यह देख लिया परंतु सुगना ने कुछ ना कहा।


रतन भी अब सहज हो चला था वह उसकी दोनों चूचियों को थपथपातता कभी उन्हें सहलाता और कभी अपनी हथेलियों के दबाव से उन्हें दुग्ध धारा छोड़ने पर मजबूर कर देता।

इसी क्रम में रतन की हथेलियों ने अपना दबाव कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया और सुगना करा उठी

"आह...तनी धीरे से …….दुखाता"

सुगना कि यह कराह मादक थी। रतन भाव विभोर हो गया उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपनी आंखें खोल दी वह सुगना की चूँचियों को सहलाने लगा।

रतन ने एक झलक उन दुग्ध कलशों को देख लिया परंतु अपनी निगाह वह ज्यादा देर तक उन खूबसूरत चुचियों पर ना रख पाए वह सुगना के चेहरे को देखते हुए बोला

"माफ कर द गलती से जोर से दब गइल हा"

सुगना का चेहरा लाल हो गया था यह दर्द के कारण था या उत्तेजना के रतन के लिए यह समझना मुश्किल था।

"जाए दीं कवनो बात ना। अब हो गई गईल अब आप जायीं " सुगना ने अपनी साड़ी के आंचल से दोनों चुचियों को ढक लिया।

सुगना ने रतन के आंख खोलने का बुरा न माना था। वह मुस्कुराती हुई अपनी सूचियों को अपनी ब्लाउज में अंदर करने लगी।

"आपन ख्याल रखीह" रतन में जाते हुए कहा

रतन वापस अपने होटल के लिए निकल गया आज का दिन रतन के लिए बेहद अहम था…

रतन रह रह कर अपनी हथेलियों को चूम रहा था आज पहली बार सुगना ने उसे अपनाने का संकेत दिया था वह उसका कृतज्ञ था जिसने उसे माफ कर अपने उस अंग को छूने दिया था जिस पर या तो उसके बच्चों का अधिकार होता है या पति का।

सुगना की पुत्री मधु ने उन दोनों को करीब लाने में अहम भूमिका अदा कर दी थी। अगले कुछ दिनों तक रतन सुगना की चुचियों से दूध निकालता रहा। धीरे धीरे आंखों का बंद होना भी सुगना की आवश्यक शर्त न रही थी।

जैसे-जैसे सुगना और रतन खुलते गए चुचियों से दूध निकालने के दौरान रतन उनसे अठखेलियां करने लगा सुगना उसे काम पर ध्यान देने को कहती परंतु रतन सुगना की चूँचियों को कामुक तरीके से सहला कर उसे उत्तेजित करने का प्रयास करता। इस दौरान उसका लण्ड हमेशा खड़ा रहता।

आखिरकार एक दिन सुगना ने भी उसे छेड़ दिया।

उसने रतन की जांघों की जोड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा

"दुधवा निकालत खानी इ महाराज काहे बेचैन हो जाले.."

रतन शर्मा गया परंतु उसमें अब हिम्मत आ चुकी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा..

"अइसन मक्खन मलाई जैसन चूची छुवला पर बुढ़वन के खड़ा हो जाए हम तो अभी नया बानी.".

"अच्छा चलीं बात मत बनाइ आपन काम करी"

"का करीं?"

"जवन कर तानी हां"

"साफ-साफ बोल…. ना"

" पागल मत बनी ई कुल बोलल थोड़ी जाला"

"एक बार बोल द हमरा खातिर"

"हम ना बोलब हमरा लाज लगाता"

रतन ने अपनी जगह बदल दी थी। वह सुगना के ठीक पीछे आकर खड़ा हो गया और उसकी दोनों चूचियों को दबा कर दूध निकाल रहा था। उसका खड़ा लण्ड सुनना की पीठ में सट रहा था। कभी वह नीचे झुक कर उसे सुगना के नितंबों से सटाने का प्रयास करता।


सुगना उसकी यह छेड़छाड़ समझ रही थी पर शांत थी। उसे भी अब यह अठखेलिया पसंद आने लगी थी। रतन अपना सर सुगना के कंधे पर रखकर अपने गाल सुगना के गाल से सटाने का प्रयास करता और उसकी गर्म सांसे सुगना के कोपलों से टकराती।

उत्तेजना दोनों पति पत्नी को अपने आगोश में ले रही थी। रतन ने मदहोश हो रही सुगना से एक बार फिर पूछा "बता द ना का करीं…"

"अब हमार चुंचीं मीसल छोड़ दीं और अपना होटल जाए के तैयारी करीं" सुगना ने बड़े प्यार से रतन के दोनों हाथों को अपनी चुचियों पर से हटा दिया और उन्हें ब्लाउज में बंद करते हुए कमरे से बाहर निकलने लगी। दरवाजे से निकलते समय उसने रतन को पलट कर देखा जो अभी भी सुगना के मुख से निकले चुंचीं शब्द की मधुरता में खोया हुआ उसे एकटक निहार रहा था।


नियति मुस्कुरा रही थी..रतन और सुगना करीब आ रहे थे।

उधर सोनू लाली के परिवार के साथ समय व्यतीत कर बच्चों को खुश करने का प्रयास करता और बच्चों की मां लाली अपने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देखकर स्वतः ही खुश हो जाती। सोनू का अपने परिवार के प्रति यह लगाव देखकर लाली अपने दिल और आत्मा से उसे धन्यवाद देती।

सुगना की पुत्री मधु 3 माह की होने वाली आने वाली पूर्णमासी को कुल देवता की पूजा होनी थी।

सरयू सिंह के खानदान में संतान उत्पत्ति होने पर अपने कुल देवता की पूजा करने विशेष प्रथा थी यह पूजा संतानोत्पत्ति के लगभग 3 माह पश्चात की जाती थी। पूजा की विशेष विधि थी और इसका उद्देश्य भी शायद विशेष था।

संतानोत्पत्ति के कुछ महीनों तक संतान के माता पिता का आपस में मिलना और संभोग करना अनुचित था। कुल देवता की पूजा करने के पश्चात उन्हें वापस एकाकार होने का अवसर प्राप्त होता।

सुगना मन ही मन सोचने लगी कि क्या वह इस पूजा में अपने पति रतन को शामिल करेगी? क्या पूजा के उपरांत वह अपने पति रतन को उसके साथ संभोग करने का अवसर देगी?

सुगना अपने पुराने दिनों को याद करने लगी जब सूरज के जन्म के 3 महीनों बाद उसे कुल देवता की पूजा करनी थी। उसका पति रतन उस समय उपस्थित न था। न तो सुगना के गर्भ धारण मैं रतन का योगदान था और नहीं अब सुगना की इस पूजा में उसकी उपयोगिता।


गांव के सभी मानिंद लोगों ने आपस में विचार-विमर्श कर यह निर्णय किया की यदि पति उपस्थित ना हो तो उसकी लाठी को साथ में रखकर कुल देवता की पूजा की जा सकती।

कजरी भी धर्म संकट में थी उसे पता था कुलदेवता की पूजा करने के पश्चात पति अपनी पत्नी को अपनी बाहों में उठा कर सीधा शयन कक्ष में ले जाता है और फिर अपनी पत्नी की योनि की पूजा करता और योनि को संतान प्राप्ति के लिए धन्यवाद देता और कई महीनों के अंतराल के बाद उसी दिन उसके साथ संभोग कर योनि को चरमोत्कर्ष प्रदान करता और वापस अपना गृहस्थ जीवन प्रारंभ करता।

कजरी ने तो गांव के बुजुर्ग लोगों की बात मानकर कुलदेवता की पूजन के लिए रतन की लाठी को मान्यता दे दी परंतु शयन कक्ष में होने वाली योनि पूजा कौन करेगा क्या कुंवर जी को ही यह पूजा करनी पड़ेगी? या सुगना को रतन की लाठी की मूठ से ही योनि स्खलित कर इस पूजा को पूर्ण करना होगा जैसे कि स्वयं उसने रतन के जन्म के बाद किया था।

(शायद पाठकों को याद हो रतन के पिता बिरजू जो आजकल विद्यानंद के नाम से जाने जाते थे कजरी को गर्भवती कर साधुओं की मंडली के साथ भाग गए थे उन्हें इस विशेष पूजा में बुला पाना असंभव था। कजरी ने भी अपने पति बिरजू उर्फ विद्यानंद की लाठी अपनी योनि से रगड़ कर बड़ी कठिनाई से उसे स्खलित किया था परंतु कजरी का वह अनुभव अच्छा नहीं रहा था उसने उसी दिन तय कर लिया था कि वह सरयू सिंह को अपने नजदीक आने का मौका देगी और अपनी स्वाभाविक काम इच्छा को पूरा करेगी।)

कजरी अपने मन में सुगना की पूजा का समापन सरयू सिंह से कराना चाहती थी। सच ही तो था.. जिसने सुगना को गर्भवती कर पुत्र रत्न से नवाजा था उसके द्वारा योनि पूजन कराना उचित ही था।

सरयू सिंह ने इस पूजा में उपस्थित रहने के लिए रतन से कई बार अनुरोध किया था परंतु वह मुंबई से आने को तैयार न था। अंततः परंपरा के निर्वहन के लिए सरयू सिंह ने इस पूजन की पूरी तैयारियां कर ली।


सलेमपुर गांव के सभी लोगों को पूजा के उपरांत होने वाले भोज में भारत में आमंत्रित किया गया। यह उत्सव परिवार के लिए बेहद सम्मान और मान प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला होता था।

सुगना की अपनी सहेली लाली भी ईसी विशेष पूजा के लिए सलेमपुर आई हुई थी। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसे पता चला कि यह पूजा सुगना बिना रतन भैया के करने जा रही है।

उसने रतन की लाठी की मूड को पकड़कर सुगना को छेड़ते हुए पूछा..

"त हमार रानी अपना ओखली में रतन भैया के मुसल की जगह हई लाठी डाली का"

"हट पागल कुछो बोलेले"

"रतन भैया काहे ना अइले हा आज के दिन के सब मर्द लोग इंतजार करेला"

"जाकर उनके से पूछ लीहे"

"त इनके के भेज दी का तोर बुर...के पूजाइयो हो जायी और इनको साध बता जायी?" लाली ने अपने पति राजेश की तरफ इशारा करते हुए कहा।

सुगना मुस्कुराने लगी…

तभी सरयू सिंह बाजार से वापस आए और आंगन में पहुंचते ही सुगना से बोले..

"इ ला आपन कपड़ा पूजा में पहने खातिर"

सुगना ने सरयू सिंह की आंखों की चमक देखकर अंदाजा लगा लिया। कि वह भी इस पूजा का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे उसने झोला पकड़ लिया।

"दिखाओ ना कौन कपड़ा आइल बा?" लाली ने उत्सुकता से पूछा।

सुगना ने सरयू सिंह की आंखों की चमक देखकर अंदाजा लगा लिया था कि उसके बाबूजी ने निश्चित ही कुछ न कुछ शरारत की होगी विशेषकर उसके अंतरंग वस्त्रों को लेकर।

"दिखाओ ना का सोचे लगले?"

"जब काल पहनब तब देख लीहे"


"ए सुगना सलेमपुर कब चले के बा" लाली अपने पुत्र (जो दरअसल राजेश और सुगना का पुत्र था ) को लिए हुए सचमुच सुगना के पास आ रही थी।

सुगना अपनी मीठी यादों से बाहर आ गयी। यह एक महज संयोग था या दोनों सहेलियों की जांघों के बीच जागृति प्राकृतिक भूख दोनों ही उस पूजा को याद कर रही थी।

"काहे खातिर" सुगना ने लाली के भाव को समझ कर भी अनजान बनते हुए पूछा

लाली पास आ चुकी थी वह सुगना के बगल में बैठते हुए उसकी जांघों के बीच अपनी हथेलियां लेकर आई और बोली


"एकर पूजाई करावे"

दोनों सहेलियां हंसने लगी।

"अबकी बार काठ के मुसल के बदला में असली मुसल भेटाई" लाली, सुगना कि उस संभावित रात की कल्पना कर मन ही मन खुश हो रही थी। इस बार रतन उपस्थित था और सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

सुगना ने लाली की हथेलियां अपने हाथ में ले ली और उसे प्यार से सहलाते हुए पूछा..

" एक बात कहीं "

"बोल ना"

"देख तोरा के सोनू से मिलावे वाला भी जीजा रहलन। अभी जिंदगी लंबा बा हमनी में दूसर बियाह ना हो सकेला लेकिन सोनुवा के अपनावले रहू जब तक ओकर ब्याह नईखे होत…"

सुगना ने लाली के मन की बात कह दी थी पिछले 2-3 महीनों में लाली की जिंदगी में आए दुख में भी अब ठहराव आ रहा था। दिन के 24 घंटों में खुशियां अपना अधिकार लगातार बढ़ा रही थीं और राजेश के जाने का गम धीरे-धीरे कमजोर पड़ता जा रहा था।


सोनू भी ज्यादातर समय लाली के घर पर ही देता। वह राजेश के कमरे में अपनी पढ़ाई करता और अपने खाली समय में बच्चों के साथ खेल कर उनका मन लगाए रखता। परंतु विधवा लाली से सेक्स की उम्मीद रखना सोनू को उचित प्रतीत ना होता दोनों के बीच जमी हुई बर्फ को किसी ना किसी को पिघलाना था।

"काहे चुप हो गइले कुछ बोलत नईखे?" सुगना ने लाली के कंधे को हिलाते हुए पूछा।

"उ आजकल दिनभर पढ़त रहेला जब टाइम मिलेला तब बचवन संग खेलेला"

"त तेहीं आगे बढ़ के ओकरा के खेला दे" सुगना ने हंसते हुए कहा और लाली के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई। जांघों के बीच एक अजब सी सनसनी हुई जो चुचियों के निप्पलओ तक पहुंची। तभी राजेश और सुगना के पुत्र जो इस समय लाली की गोद में था ने लाली की चूचियां पकड़ने की कोशिश की और लाली की चूचियां बाहर आ गई।


सुगना ने मधु को लाली की गोद में देते हुए कहा

"ले तनी एकरो के दूध पिला दे हमार दूध धरे में दिक्कत कर तिया"

मधु ने लाली की दूसरी चूची बड़े प्रेम से पकड़ ली और चूस चूस कर तृप्त होने लगी। अपनी माता का दूध पीने का यह सुख मधु ही जानती होगी लाली ने भी मधु के होठों और मसूड़ों का मासूम स्पर्स महसूस किया और भावविभोर हो गयी"


नियति सलेमपुर में सुगना की पूजा की तैयारियों में लग गई। काश कि दोनों सहेलियां इस पूजा में शामिल हो पाती? एक सुहागन एक विधवा परंतु दोनों में कुछ समानता अवश्य थी।

एक तरफ सुगना का वास्तविक सुहाग उजड़ चुका था। उसके बाबूजी सरयू सिंह जिसके साथ उसने अपने वैवाहिक जीवन के सुखद वर्ष बिताए थे वह अचानक ही वैराग्य धारण कर चुके थे। सुगना को यह एक विशेष प्रकार का वैधव्य ही प्रतीत हो रहा था। यह अलग बात थी कि प उस में कामेच्छा जगाने वाला उसका पति रतन आ चुका था और वह सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

कमोबेश यही स्थिति लाली की भी थी उसका पति राजेश अपना शरीर छोड़ चुका था और अपने स्थान पर सोनू को लाली से मिलाकर उसकी कामेच्छा पूरी करने के लिए छोड़ गया था।

नियति अपनी उधेड़बुन में लगी लाली को तृप्त करने का संयोग जुटाने लगी… सुगना रतन बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगे...

शेष अगले भाग में...
एक बहुत ही मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
नियती के आगे किसकी चलती है नियती ने सुगना और लाली के आने वाले जीवन में क्या क्या परोसकर रखा हैं ये तो वही जाने
योनी पुजन के साथ कुछ बडा धमाका हो सकता है रतन का सुगना के साथ जीवन बिताने की प्रतिक्षा खत्म हो और सोनू और लाली भी दोनो फिर से एक हो जाए देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी
 

sunoanuj

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Waiting for next update mitr…
 

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