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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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Kahani bahut acche se bahda rahe hai aap ... par ek prashn tha - kya ratan aur Babita ki dono betiyon ka naam minki hai? kyunki is update mai aapne ek minki Sugna ke pass aur ek Babita ke pass hone dikhaya hai.
No it is chinky...thanks u so much that's what I want from my readers..

Thanks once again.I have corrcted in the update
 

Kadak Londa Ravi

Roleplay Lover
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भाग 79

"सोनुआ राखी में आई"...सुगना के संबोधन अभी भी वैसे ही थे…. पर सोनू और सुगना के बीच बहुत कुछ बदल रहा था।

सुगना अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने की सोचने लगी.. पिछले कई दिनों से उसने घर का खाना नहीं खाया होगा और उसका पसंदीदा.. मालपुआ…

सुगना…रक्षाबंधन का और अपने भाई सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…सुगना को क्या पता था कि अब उसका छोटा भाई सोनू किसी और मालपुए की फिराक में था जो शायद मीठा ना होते हुए भी बेहद आकर्षक गुलगुला और ढेरों खुशियां समेटे हुए था…. और वह भी अपनी बड़ी बहन का…जिसे उसने साथ-साथ बड़ा होते हुए देखा था…


अब आगे….

आइए कहानी के और भी पात्रों का हालचाल ले लेते हैं आखिर उनका भी सृजन इस कथा के उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही हुआ है। सुगना को छोड़कर जाने के पश्चात रतन बदहवास सा हो गया था। उसे यह बात कतई समझ नहीं आ रही थी कि आखिर उसके पुरुषत्व को क्या हो गया था,,,? सुगना उसके जीवन में आई दूसरी युवती थी इससे पहले तो उसे अपने पुरुषत्व पर नाज हुआ करता था..

रतन के पुरुषत्व का आनंद बबीता ने भी बखूबी उठाया था.. रतन को बबीता के साथ बिताए गए अपने कामुक दिन याद याद आते थे जब बबीता उसके मजबूत और खूंटे जैसे लंड पर उछलती हुई एक नहीं दो दो बार स्खलित होती और अंततः याचना करते हुए बोलती

"अब आप भी कर लीजिए मैं थक गई"

फिर रतन उसे चूमते, चाटते …..और प्यार से चोदते हुए स्खलित हो जाता.. । इतनी संतुष्टि के बावजूद पैसों की हवस ने बबीता को उसके ही मैनेजर की बाहों में जाने पर मजबूर कर दिया था । बबीता के इस व्यभिचार ने रतन और बबीता के बीच कभी न मिटने वाली दूरियां पैदा कर दी थी।

अपने पुरुषत्व पर नाज करने वाला रतन सुगना को संतुष्ट क्यों नहीं कर पाया? यह उसकी समझ के बाहर था। सुगना को स्खलित करने के लिए उसने कामकला के सारे अस्त्र छोड़ दिए परंतु उस छोटी और मखमली बुर से चरमोत्कर्ष का प्रेम रस स्खलित न करा पाया।

कई बार छोटे बच्चे तरह-तरह के खिलौने और मिठाइयां देने के बाद भी प्रसन्न नहीं होते उसी प्रकार सुगना की करिश्माई बुर रतन की जी तोड़ मेहनत को नजरअंदाज कर न जाने क्यों रूसी फूली बैठी थी..

मनुष्य का पुरुषत्व उसका सबसे बड़ा अभिमान है रतन अपने इस अभिमान को टूटता हुआ देख रहा था। उसका मोह इस जीवन से भंग हो रहा था। वह कायर नहीं था परंतु सुगना का सामना करने की उसकी स्थिति न थी। रतन न जाने किस अनजानी साजिश का शिकार हो चुका था। सुगना का स्खलित न होना उसके लिए एक आश्चर्य का विषय था।

रतन सुगना से बेहद प्यार करता था और उस पूजा के दौरान उसने अपनी पत्नी सुगना को हर वह सुख देने की कोशिश की जो एक स्त्री एक पति या प्रेमी से उम्मीद करते है…अपितु उससे भी कहीं ज्यादा परंतु रतन को निराशा ही हाथ लगी।

कुछ महीनों की अथक मेहनत के बावजूद वह सुगना की बुर को स्खलित करने में नाकामयाब रहा और घोर निराशा का शिकार हो गया।

रतन ने गृहस्थ जीवन से संन्यास लेकर विद्यानंद के ही आश्रम की शरण में जाना चाहा।

बनारस महोत्सव के दौरान वह चाहकर भी विद्यानंद से नहीं मिल पाया था हालांकि तब चाहत में इतना दम न था जितना आज वह अकेला होने के बाद महसूस कर रहा था। अब उसका घर उजाड़ रहा था उसने आश्रम में जाकर रहने की ठान ली। सुगना जैसी आदर्श मां के हवाले अपनी पुत्री मिंकी को छोड़कर वह भटकते भटकते आखिर वह ऋषिकेश के क़रीब बने विद्यानंद के आश्रम में पहुंच गया।

विद्यानंद का आश्रम बेहद शानदार था। विद्यानंद का आश्रम जीवन मूल्यों तथा सुखद जीवन जीने की कला के मूल मंत्र पर निर्भर था यह पूजा पाठ आदि का कोई स्थान न था स्त्री और अपने-अपने समूह में एक दूसरे का ख्याल रखते हुए आनंद पूर्वक रहते।

बनारस महोत्सव में उनका पंडाल जन सामान्य के लिए सुलभ था और विद्यानंद के दर्शन भी उतनी ही आसानी से हो जाते थे। परंतु यहां उनके आश्रम में विद्यानंद के दर्शन तभी होते जब वह प्रवचन देने आते। बाकी समय वह आश्रम की व्यवस्था और आश्रम को उत्तरोत्तर प्रगति के मार्ग पर ले जाने में व्यस्त रहते हैं। आश्रम की भव्यता को बरकरार रखना निश्चित ही एक व्यवसायिक कार्य था और विद्यानंद उसके प्रमुख थे उनके जीवन में धन का कोई मूल्य हो ना हो परंतु उनकी महत्तावकांक्षा में कोई कमी न थी…

रतन उम्मीद लिए आश्रम की सेवा करने लगा और धीरे धीरे अपना परिचय बढ़ाता गया।

काश कि रतन को पता होता की विद्यानंद उसके पिता है पर न नियति ने उसे बताने की कोशिश की और नहीं उसके मन में कभी प्रश्न आया। उसे यह बात तो पता थी कि उसके पिता साधुओं की टोली के साथ भाग गए थे परंतु उस छोटे से गांव का एक भगोड़ा साधु आज विद्यानंद के रूप में शीर्ष कुर्सी पर विराजमान होगा यह उसकी कल्पना से परे था।

कालांतर में रतन की आश्रम में दी गई सेवा सफल होगी या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा परंतु रतन जो इस आश्रम का उत्तराधिकारी बन सकता था अभी विद्यानंद के नए आश्रम में मुंशी बना निर्माण कार्य…की देखरेख का कार्य कर रहा था। नियति इस आश्रम के युवराज की यह स्थिति देखकर मुस्कुरा रही थी।

इस कहानी का एक और पात्र धीरे-धीरे विरक्त की ओर अग्रसर हो रहा था और वह की सोनी की बहन मोनी एक तरफ जहां सोनी अपने युवा शरीर का खुलकर आनंद ले रही थी वहीं दूसरी तरफ मोनी अपनी सुंदर काया को भूल अपना ध्यान धर्म विशेष की ओर लगाए हुए थी..

बनारस महोत्सव ने उसके मन में वैराग्य को एक बेहद आकर्षक रूप में प्रस्तुत कर दिया था.. मोनी जब युवा महिलाओं को एक साथ नृत्य और जाप करते हुए देखती वह भाव विभोर हो जाती अपने इष्ट को याद करती हुई मन ही मन झूमने लगती….।

ऐसा नहीं था कि मोनी के बदन पर मनचलों की निगाह न पड़ती परंतु ढीले ढाले वस्त्रों की वजह से मोनी के उभार काफी हद तक छुप जाते और उसका सीधा साधा चेहरा तथा झुकी हुई निगाहें मनचलों के उत्साह को थोड़ा कम कर देते। वैसे भी मोनी घर से ज्यादा बाहर निकलती और अपने घरेलू कार्यों पर अपनी मां का हाथ बंटाती और अपने इष्ट की आराधना में व्यस्त रहती..

मोनी की मां पदमा बेहद प्यार से बोलती

"मेरी प्यारी बेटी की शादी में पुजारी से करूंगी दोनो का मन पूजा पाठ में मन लगेगा…"

मोनी कोई उत्तर नहीं देती और बात टाल जाती उसे विवाह और विवाह से मिलने वाले सुख से कोई सरोकार न था। यदि कोई व्यक्ति उसके साथ उसकी ही विचारधारा काम मिल जाता तो निश्चित ही वह उसे स्वीकार कर लेती…पर फिर भी उसे इस बात का ध्यान रखता कि पुरुषों की सबसे प्यारी चीज उसकी जांघों के बीच अपने चाहने वाले का इंतजार कर रही है.. मोनी जिस सुंदर मणि को अपनी जांघों के बीच छुपाए हुए घूम रही थी उसका इंतजार भी कोई कर रहा था …

रतन की पूर्व पत्नी बबीता अब भी उस होटल मैनेजर के साथ रहती थी। धन और ऐश्वर्य की लोलुपता ने उसे और व्यभिचारी बना दिया वह अब किसी भी सूरत में स्त्री कहलाने योग्य न थी…उसके कृत्य अब दिन पर दिन घृणित हो चले थे। बबीता की छोटी पुत्री चिंकी भी अपनी मां का चाल चलन देखती उसके कोमल मन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा था।

सोनू का दोस्त विकास भी अमेरिका के लिए उड़ान भर चुका था अगले 1 वर्ष सोनी को उसकी यादों के सहारे ही गुजारना था सोनी मन ही मन घबराती कि क्या अमेरिका से आने के बाद विकास उसे उसी तरह अपना लेगा जैसा उसने वादा किया है या वह बदल जाएगा सोनी मन की मन अपने इष्ट देव से प्रार्थना करती और विकास का इंतजार दिन बीत रहे थे।

लखनऊ में सोनी को विकास के देखने के बाद जिस बड़प्पन का परिचय सोनू ने दिया था उसने सोनी का दिल जीत लिया था सोनी अपने बड़े भाई के बड़प्पन पर नतमस्तक हो गई थी सोनू भैया इतने बड़े दिलवाले होंगे सोनी ने यह कभी नहीं सोचा था। सोनू को देखने के बाद एक पल के लिए वह हक्की बक्की रह गई थी परंतु सोनू की अनुकूल प्रतिक्रिया देखकर वह सोनू के गले लग गई उसके आलिंगन में आ गई यह आलिंगन पूर्णता वासना रहित और आत्मीयता का प्रतीक था सोनू का हृदय भी अपनी छोटी बहन के इस प्रेम को नजरअंदाज न कर पाया और सोनू ने सोनी के इस कदम को मन ही मन स्वीकार कर लिया था।

उधर सलेमपुर सरयू सिंह का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा था। सोनू ने पीसीएस परीक्षा परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर उनके परिवार का नाम और भी रोशन कर दिया था। सरयू सिंह के माथे का दाग पूरी तरह विलुप्त हो चुका था निश्चित ही वह सुगना के साथ उनके नाजायज संबंधों ने जन्म दिया था जो एक पाप के प्रतीक के रूप में उनके माथे दिखाई पड़ता था। सरयू सिंह की उम्र इतनी भी नहीं हुई थी की उनका जादुई मुसल अपना अस्तित्व भुला बैठे। जैसे-जैसे उनकी आत्मग्लानि कम होती गई उनके लंड में हरकत शुरु होती गई।

सरयू सिंह की खूबसूरत यादों में अब सिर्फ एक ही शख्स बचा था और वह थी उनकी आदर्श मनोरमा मैडम न जाने वह कहां होंगी। बनारस महोत्सव में उनके ही कमरे में उनके साथ अंधेरे में किया गया वह संभोग सरयू सिंह को रह-रहकर याद आता और उनका लंड उछल कर मनोरमा मैडम को सलामी देने के लिए उठ खड़ा होता। सरयू सिंह अपने लंड को तेल लगाते और सहलाते जैसे उसे किसी अनजान प्रेम युद्ध के लिए तैयार करते ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार वह अपनी लाठी पर तेल लगाकर उसे आकस्मिक हमले से बचने के लिए तैयार रखते थे। सरयू सिंह मनोरमा मैडम के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हर संभव कोशिश करते परंतु मर्यादा में रहते हैं कई बार उन्हें अपने करीबी साथियों से यह प्रश्न सुनने को मिल जाता

" का सरयू भैया? कुछ चक्कर बा का? उनका के काहे याद करा तारा?"

उनके सभी साथियों और कर्मचारियों को इस बात का अंदाजा था कि मनोरमा मैडम का सरयू सिंह और उनके परिवार के प्रति विशेष स्नेह था। जाने मनोरमा मैडम कहां होगी और कैसी होंगी…


कुछ दिनों बाद रक्षाबंधन का त्यौहार आने वाला था.. बच्चों के लिए कपड़े खरीदना आवश्यकत था और स्वयं के लिए भी …दोनों सहेलियां बाजार निकल पड़ी।

दुकान पर टंगे रंग बिरंगे कपड़े देखकर सुगना और लाली दोनों का मन मचल उठा. दोनों ने एक साथ ही कहा

"कितना सुंदर कपड़ा बा" दोनों सहेलियां मुस्कुरा उठी नियति ने दोनों की पसंद को मिला दिया था… दोनों मुस्कुराने लगी दुकान की तरफ बढ़ चली…

"आइए दीदी क्या दिखाऊ?"

सुगना ने अपनी उंगलियां बाहर टंगे पुतले की तरफ कर दी.. जिस पर एक लखनवी कुर्ता टंगा हुआ था जिस पर खूबसूरत चिकनकारी की हुई थी..

दुकानदार में अपने बात हाथ से उस कपड़े को निकालने के लिए कहा और उस कुर्ते की तारीफ करने लगा ..

सुगना सुगना सामान्यतया साड़ी ही पहनती थी विशेष अवसरों पर लहंगा चोली पहने ना उसे पसंद था परंतु सलवार सूट पहनना उसे आधुनिकता का प्रतीक लगता था जो उसके व्यक्तित्व और स्वभाव से मेल खाता था परंतु जब जब सुगना एकांत में होती वह सोनी के सलवार सूट को पहनने की कोशिश करती परंतु सोनी का कुर्ता सुगना के गदराए बदन पर फिट न बैठता और सुगना चाह कर भी अपने कामुख बदन को सलवार सूट में न देख पाती।


"दीदी यह माल कल ही आया है खास लखनऊ से मंगाया है" आप जैसे सुंदर दीदी पर यह बहुत फबेगा। दुकानदार चालू था… उसने एक ही वाक्य में सुगना और लाली दोनों को प्रभावित कर लिया था..

दुकान का नौकर उस सूट की कई वैरायटी लेकर काउंटर पर फैला चुका सुगना और लाली बार-बार उन्हें छूते उनके कपड़ों की कोमलता महसूस करते और मन ही मन उस कपड़े में अपने खूबसूरत बदन को महसूस करते..

कपड़ा और डिजाइन एक बार में ही पसंद आ चुका था अब बारी थी पैसों की.

"कितना के वा सुगना के सुकुचाते हुए पूछा?"

"₹300 के दीदी"


"लाली ने आश्चर्य से कहां 300 बाप रे बाप इतना महंगा?"

दुकानदार को लाली का इस प्रकार चौकना पसंद ना आया उसने सुगना की तरफ देख कर कहा

₹दीदी यह लखनवी चिकनकारी है आप तो जानती ही होंगी? हाथ का काम है महंगा तो होगा ही? आप एक बार ले जाइए यदि जीजा जी ने पसंद न किया तो वापस पटक जाइएगा"

सुगना अपने आकर्षक त्वचा और खूबसूरत चेहरे तथा सुडोल जिस्म की वजह से एक सब सब सभ्रांत महिला लगती थी…जिस सुगना ने मनोरमा मैडम जैसी खूबसूरत एसडीएम को प्रभावित कर लिया था उसे देखकर दुकानदार का प्रभावित होना स्वभाविक था।

सुगना और लाली दोनों दुकानदार का इशारा समझ रही थी उन्हें पता था कि इन कपड़ों में लाली और सुगना बेहद सुंदर लगेंगी और शायद इसीलिए वह विश्वास जता रहा था कि कोई भी उसे वापस करने नहीं आएगा।

यह अलग बात थी कि घर पर उन्हें इन वस्त्रों में देखने वाला कोई न था। लाली का सोनू लखनऊ में था और सुगना उसका तो जीवन ही उजाड़ हो गया… सरयू सिंह सरयू जिसके साथ उसने अपनी जवानी के तीन चार वर्ष बिताए थे उन्होंने अचानक ही काम वासना से मुंह मोड़ लिया था और उसका पति रतन ……शायद सुगना रतन के लिए बनी ही न थी।


सुगना जैसी सुंदरी सिर्फ और सिर्फ प्यार की भूखी थी और जिसका बदन प्यार पाते ही मक्खन की तरह पिघल जाता है वह अपने प्रेमी के शरीर से लिपट कर उसकी सॉरी उत्तेजना और वासना को आग को अपने बदन के कोमल स्पर्श और चुम्बनो से शांत करती करती और अंदर उठ रहे तूफान को केंद्रित कर उसके लिंग में भर देती और उसे अपनी अद्भुत योनि में स्थान देकर उसके तेज को बेहद आत्मियता से सहलाते हुए इस उत्तेजना से उत्पन्न वीर्य को बाहर खींच लाती।

रतन ने भी सुगना से प्यार ही तो किया था पर क्या यह प्यार अलग था …. क्या यह प्यार सरयू सिंह और सोनू के प्यार से अलग था…लाली ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला..और कहा

"चल सोनू के फोन कर दीहल जाओ ….लखनऊ से खरीद के ले ले आई आतना पैसा काहे देवे के?"

सुगना को यह बात पसंद आई उसने महसूस किया था उसे पता था सोनू की स्त्रियों के कपड़े की पसंद बेहद अच्छी थी। वह लाली के लिए कुछ कपड़े पहले भी खरीद चुका था।

दोनों सहेलियां एकमत होकर दुकानदार से बोली

"अच्छा ठीक है इसको रखिए हम लोग और सामान लेकर आते हैं फिर इसे ले जाएंगे.."

दुकानदार समझ चुका था वह अब भी सुगना और लाली को समझने की कोशिश कर रहा था दोनों रंग-बिरंगे कपड़ों में सजी थीं पर माथे का सिंदूर गायब था।

बाहर निकल कर पीसीओ बूथ से लाली ने सोनू के हॉस्टल में फोन लगा दिया..

प्रणाम दीदी …. सोनू की मधुर आवाज सुगना के कानों में पड़ी

" खुश रहो "

सुगना ने दिल से सोनू को आशीर्वाद दिया और पूछा "सोनी बढ़िया से पहुंच गईल नू"

"हां"

सोनू ने संक्षेप में जवाब दिया। सुगना ने सोनू के स्वास्थ्य और खानपान के बारे में पूछा पता नहीं क्यों उसे आज बात करने में वह बात करने में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी। और यही हाल सोनू का था। कुछ दिनों से सोनू और सुनना दोनों की सोच में जो बदलाव आया था वह बातचीत में स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था दोनों की बातें ज्यादा औपचारिक हो रही थी वह भाई बहन की आत्मीयता न जाने कब कमजोर पड़ती जा रही थी।

जो भाई बहन पहले काफी देर बातें किया करते थे वो आज मुद्दों की तलाश में थे… ऐसा लग रहा था जैसे बातें खींच खींच कर की जा रही हो। सुगना से और बर्दाश्त न हुआ उसने फोन लाली को पकड़ा दिया और बोली

"ले लाली भी बात करी" सुगना को अचानक महसूस हुआ जैसे उसने फोन सोनू की प्रेयसी को दे दिया वह थोड़ा दूर हट कर खड़ी हो गई ..

लाली और सोनू ने कुछ देर बातें की। सुगना उनकी बातें सुनती रही आज पहली मर्तबा सुगना सोनू और लाली की बातों को ध्यान लगाकर सुन रही थी। उसे सोनू की आवाज तो सुनाई न दे रही थी परंतु वह मन ही मन अंदाज लगा रही थी । अंत में लाली ने सोनू से कहा

"वहां से लखनवी चिकनकारी के शीफान के सूट लेले अईहा हमनी खातिर…_

" दीदी पहनी…? " सोनू ने लाली से इस बात की तस्दीक करनी चाहिए कि क्या सुनना वह सूट पहनेगी उसे यह विश्वास न था।

"अरे राखी में तू गिफ्ट ले आईबा तब काहे ना पहनी"

लाली भी सुगना के साथ रहते-रहते वाकपटु हो चली थी।

"साइज त बताव"

" हमर त मलूमे बा हां बाकी दुसरका एक साइज .. कम"

सुगना को समझते देर न लगी कि लाली ने उसकी चुचियों की साइज सोनू को बता दिया है…

सोनू की बाछे खिल उठी। आज लाली ने उसे सुगना को खुश करने का एक अवसर दे दिया था।

कमरे में आकर वहीबिस्तर पर लेट कर एक बार फिर सुगना की कल्पना करने लगा वह इसे तरह-तरह के कपड़ों में देखता और मन ही मन प्रफुल्लित होता कभी-कभी वह सुगना को कपड़े बदलते हुए देखने की कल्पना करता और तड़प उठता…हवा के झोंकें से सुगना का घाघरा जैसे हवा में उड़ता और उसकी मखमली जांघों अनावृत हो जाती…..

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…


शेष अगले भाग में…
बहुत ही अच्छा चित्रण किया है साहिब

रतन सोच रहा है की उससे जब बबिता की प्यास बुझ सकती है तो सुगना की क्यों नही कही रतन को सुगना पर सक तो नही होगा

अब बाप बेटा साथ रहेंगे ये भी देखने की बात होगी की दोनो एक दूसरे को पहचानते है की नही
और विद्यानंद क्यों घर छोड़ के भागा ये भी एक मिस्ट्री है देखते है केसे सुलझाती है


सरयू सिंह भी जोरो शोरो से तेल की मालिश कर रहा है और मनोरम को डुंड रहा है देखने की बात ये है की सरयू सिंह और मनोरमा केसे मिलते है

मोनी के किस्मत मैं कही रतन सन्यासी तो नही

विकास तो विदेश चला गया है अब सोनी और सोनू एक दूसरे के जिस्म का लुत्फ केसे उठाते है एक दूसरे को मालूम होते हुए भी अनजान बन के एक दूसरे के अंगो का मजा लेते हैं


और सोनू जब लाली और सुगना के लिए लखनवी सूट लेके आएगा तो सुगना पर कितना खिलता है

सुगना और सोनू की प्रेम कहानी भी मिलेगी


अब रक्षाबंधन स्पेशल में
1.सोनू और सुगना
2.सोनू और लाली
3.लाली और सोनू
4. सरयू सिंह और मनोरमा
और सायद
5. रतन और मोनी



अब देखते हैं ये कहानी केसे बढ़ती है



बेसे सुगना और सोनू
और सोनी और सोनू

इनकी लव स्टोरी देखने में बहुत मजा आएगा
 

Sanjdel66

Member
107
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63
भाग 79

"सोनुआ राखी में आई"...सुगना के संबोधन अभी भी वैसे ही थे…. पर सोनू और सुगना के बीच बहुत कुछ बदल रहा था।

सुगना अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने की सोचने लगी.. पिछले कई दिनों से उसने घर का खाना नहीं खाया होगा और उसका पसंदीदा.. मालपुआ…

सुगना…रक्षाबंधन का और अपने भाई सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…सुगना को क्या पता था कि अब उसका छोटा भाई सोनू किसी और मालपुए की फिराक में था जो शायद मीठा ना होते हुए भी बेहद आकर्षक गुलगुला और ढेरों खुशियां समेटे हुए था…. और वह भी अपनी बड़ी बहन का…जिसे उसने साथ-साथ बड़ा होते हुए देखा था…


अब आगे….

आइए कहानी के और भी पात्रों का हालचाल ले लेते हैं आखिर उनका भी सृजन इस कथा के उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही हुआ है। सुगना को छोड़कर जाने के पश्चात रतन बदहवास सा हो गया था। उसे यह बात कतई समझ नहीं आ रही थी कि आखिर उसके पुरुषत्व को क्या हो गया था,,,? सुगना उसके जीवन में आई दूसरी युवती थी इससे पहले तो उसे अपने पुरुषत्व पर नाज हुआ करता था..

रतन के पुरुषत्व का आनंद बबीता ने भी बखूबी उठाया था.. रतन को बबीता के साथ बिताए गए अपने कामुक दिन याद याद आते थे जब बबीता उसके मजबूत और खूंटे जैसे लंड पर उछलती हुई एक नहीं दो दो बार स्खलित होती और अंततः याचना करते हुए बोलती

"अब आप भी कर लीजिए मैं थक गई"

फिर रतन उसे चूमते, चाटते …..और प्यार से चोदते हुए स्खलित हो जाता.. । इतनी संतुष्टि के बावजूद पैसों की हवस ने बबीता को उसके ही मैनेजर की बाहों में जाने पर मजबूर कर दिया था । बबीता के इस व्यभिचार ने रतन और बबीता के बीच कभी न मिटने वाली दूरियां पैदा कर दी थी।

अपने पुरुषत्व पर नाज करने वाला रतन सुगना को संतुष्ट क्यों नहीं कर पाया? यह उसकी समझ के बाहर था। सुगना को स्खलित करने के लिए उसने कामकला के सारे अस्त्र छोड़ दिए परंतु उस छोटी और मखमली बुर से चरमोत्कर्ष का प्रेम रस स्खलित न करा पाया।

कई बार छोटे बच्चे तरह-तरह के खिलौने और मिठाइयां देने के बाद भी प्रसन्न नहीं होते उसी प्रकार सुगना की करिश्माई बुर रतन की जी तोड़ मेहनत को नजरअंदाज कर न जाने क्यों रूसी फूली बैठी थी..

मनुष्य का पुरुषत्व उसका सबसे बड़ा अभिमान है रतन अपने इस अभिमान को टूटता हुआ देख रहा था। उसका मोह इस जीवन से भंग हो रहा था। वह कायर नहीं था परंतु सुगना का सामना करने की उसकी स्थिति न थी। रतन न जाने किस अनजानी साजिश का शिकार हो चुका था। सुगना का स्खलित न होना उसके लिए एक आश्चर्य का विषय था।

रतन सुगना से बेहद प्यार करता था और उस पूजा के दौरान उसने अपनी पत्नी सुगना को हर वह सुख देने की कोशिश की जो एक स्त्री एक पति या प्रेमी से उम्मीद करते है…अपितु उससे भी कहीं ज्यादा परंतु रतन को निराशा ही हाथ लगी।

कुछ महीनों की अथक मेहनत के बावजूद वह सुगना की बुर को स्खलित करने में नाकामयाब रहा और घोर निराशा का शिकार हो गया।

रतन ने गृहस्थ जीवन से संन्यास लेकर विद्यानंद के ही आश्रम की शरण में जाना चाहा।

बनारस महोत्सव के दौरान वह चाहकर भी विद्यानंद से नहीं मिल पाया था हालांकि तब चाहत में इतना दम न था जितना आज वह अकेला होने के बाद महसूस कर रहा था। अब उसका घर उजाड़ रहा था उसने आश्रम में जाकर रहने की ठान ली। सुगना जैसी आदर्श मां के हवाले अपनी पुत्री मिंकी को छोड़कर वह भटकते भटकते आखिर वह ऋषिकेश के क़रीब बने विद्यानंद के आश्रम में पहुंच गया।

विद्यानंद का आश्रम बेहद शानदार था। विद्यानंद का आश्रम जीवन मूल्यों तथा सुखद जीवन जीने की कला के मूल मंत्र पर निर्भर था यह पूजा पाठ आदि का कोई स्थान न था स्त्री और अपने-अपने समूह में एक दूसरे का ख्याल रखते हुए आनंद पूर्वक रहते।

बनारस महोत्सव में उनका पंडाल जन सामान्य के लिए सुलभ था और विद्यानंद के दर्शन भी उतनी ही आसानी से हो जाते थे। परंतु यहां उनके आश्रम में विद्यानंद के दर्शन तभी होते जब वह प्रवचन देने आते। बाकी समय वह आश्रम की व्यवस्था और आश्रम को उत्तरोत्तर प्रगति के मार्ग पर ले जाने में व्यस्त रहते हैं। आश्रम की भव्यता को बरकरार रखना निश्चित ही एक व्यवसायिक कार्य था और विद्यानंद उसके प्रमुख थे उनके जीवन में धन का कोई मूल्य हो ना हो परंतु उनकी महत्तावकांक्षा में कोई कमी न थी…

रतन उम्मीद लिए आश्रम की सेवा करने लगा और धीरे धीरे अपना परिचय बढ़ाता गया।

काश कि रतन को पता होता की विद्यानंद उसके पिता है पर न नियति ने उसे बताने की कोशिश की और नहीं उसके मन में कभी प्रश्न आया। उसे यह बात तो पता थी कि उसके पिता साधुओं की टोली के साथ भाग गए थे परंतु उस छोटे से गांव का एक भगोड़ा साधु आज विद्यानंद के रूप में शीर्ष कुर्सी पर विराजमान होगा यह उसकी कल्पना से परे था।

कालांतर में रतन की आश्रम में दी गई सेवा सफल होगी या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा परंतु रतन जो इस आश्रम का उत्तराधिकारी बन सकता था अभी विद्यानंद के नए आश्रम में मुंशी बना निर्माण कार्य…की देखरेख का कार्य कर रहा था। नियति इस आश्रम के युवराज की यह स्थिति देखकर मुस्कुरा रही थी।

इस कहानी का एक और पात्र धीरे-धीरे विरक्त की ओर अग्रसर हो रहा था और वह की सोनी की बहन मोनी एक तरफ जहां सोनी अपने युवा शरीर का खुलकर आनंद ले रही थी वहीं दूसरी तरफ मोनी अपनी सुंदर काया को भूल अपना ध्यान धर्म विशेष की ओर लगाए हुए थी..

बनारस महोत्सव ने उसके मन में वैराग्य को एक बेहद आकर्षक रूप में प्रस्तुत कर दिया था.. मोनी जब युवा महिलाओं को एक साथ नृत्य और जाप करते हुए देखती वह भाव विभोर हो जाती अपने इष्ट को याद करती हुई मन ही मन झूमने लगती….।

ऐसा नहीं था कि मोनी के बदन पर मनचलों की निगाह न पड़ती परंतु ढीले ढाले वस्त्रों की वजह से मोनी के उभार काफी हद तक छुप जाते और उसका सीधा साधा चेहरा तथा झुकी हुई निगाहें मनचलों के उत्साह को थोड़ा कम कर देते। वैसे भी मोनी घर से ज्यादा बाहर निकलती और अपने घरेलू कार्यों पर अपनी मां का हाथ बंटाती और अपने इष्ट की आराधना में व्यस्त रहती..

मोनी की मां पदमा बेहद प्यार से बोलती

"मेरी प्यारी बेटी की शादी में पुजारी से करूंगी दोनो का मन पूजा पाठ में मन लगेगा…"

मोनी कोई उत्तर नहीं देती और बात टाल जाती उसे विवाह और विवाह से मिलने वाले सुख से कोई सरोकार न था। यदि कोई व्यक्ति उसके साथ उसकी ही विचारधारा काम मिल जाता तो निश्चित ही वह उसे स्वीकार कर लेती…पर फिर भी उसे इस बात का ध्यान रखता कि पुरुषों की सबसे प्यारी चीज उसकी जांघों के बीच अपने चाहने वाले का इंतजार कर रही है.. मोनी जिस सुंदर मणि को अपनी जांघों के बीच छुपाए हुए घूम रही थी उसका इंतजार भी कोई कर रहा था …

रतन की पूर्व पत्नी बबीता अब भी उस होटल मैनेजर के साथ रहती थी। धन और ऐश्वर्य की लोलुपता ने उसे और व्यभिचारी बना दिया वह अब किसी भी सूरत में स्त्री कहलाने योग्य न थी…उसके कृत्य अब दिन पर दिन घृणित हो चले थे। बबीता की छोटी पुत्री चिंकी भी अपनी मां का चाल चलन देखती उसके कोमल मन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा था।

सोनू का दोस्त विकास भी अमेरिका के लिए उड़ान भर चुका था अगले 1 वर्ष सोनी को उसकी यादों के सहारे ही गुजारना था सोनी मन ही मन घबराती कि क्या अमेरिका से आने के बाद विकास उसे उसी तरह अपना लेगा जैसा उसने वादा किया है या वह बदल जाएगा सोनी मन की मन अपने इष्ट देव से प्रार्थना करती और विकास का इंतजार दिन बीत रहे थे।

लखनऊ में सोनी को विकास के देखने के बाद जिस बड़प्पन का परिचय सोनू ने दिया था उसने सोनी का दिल जीत लिया था सोनी अपने बड़े भाई के बड़प्पन पर नतमस्तक हो गई थी सोनू भैया इतने बड़े दिलवाले होंगे सोनी ने यह कभी नहीं सोचा था। सोनू को देखने के बाद एक पल के लिए वह हक्की बक्की रह गई थी परंतु सोनू की अनुकूल प्रतिक्रिया देखकर वह सोनू के गले लग गई उसके आलिंगन में आ गई यह आलिंगन पूर्णता वासना रहित और आत्मीयता का प्रतीक था सोनू का हृदय भी अपनी छोटी बहन के इस प्रेम को नजरअंदाज न कर पाया और सोनू ने सोनी के इस कदम को मन ही मन स्वीकार कर लिया था।

उधर सलेमपुर सरयू सिंह का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा था। सोनू ने पीसीएस परीक्षा परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर उनके परिवार का नाम और भी रोशन कर दिया था। सरयू सिंह के माथे का दाग पूरी तरह विलुप्त हो चुका था निश्चित ही वह सुगना के साथ उनके नाजायज संबंधों ने जन्म दिया था जो एक पाप के प्रतीक के रूप में उनके माथे दिखाई पड़ता था। सरयू सिंह की उम्र इतनी भी नहीं हुई थी की उनका जादुई मुसल अपना अस्तित्व भुला बैठे। जैसे-जैसे उनकी आत्मग्लानि कम होती गई उनके लंड में हरकत शुरु होती गई।

सरयू सिंह की खूबसूरत यादों में अब सिर्फ एक ही शख्स बचा था और वह थी उनकी आदर्श मनोरमा मैडम न जाने वह कहां होंगी। बनारस महोत्सव में उनके ही कमरे में उनके साथ अंधेरे में किया गया वह संभोग सरयू सिंह को रह-रहकर याद आता और उनका लंड उछल कर मनोरमा मैडम को सलामी देने के लिए उठ खड़ा होता। सरयू सिंह अपने लंड को तेल लगाते और सहलाते जैसे उसे किसी अनजान प्रेम युद्ध के लिए तैयार करते ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार वह अपनी लाठी पर तेल लगाकर उसे आकस्मिक हमले से बचने के लिए तैयार रखते थे। सरयू सिंह मनोरमा मैडम के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हर संभव कोशिश करते परंतु मर्यादा में रहते हैं कई बार उन्हें अपने करीबी साथियों से यह प्रश्न सुनने को मिल जाता

" का सरयू भैया? कुछ चक्कर बा का? उनका के काहे याद करा तारा?"

उनके सभी साथियों और कर्मचारियों को इस बात का अंदाजा था कि मनोरमा मैडम का सरयू सिंह और उनके परिवार के प्रति विशेष स्नेह था। जाने मनोरमा मैडम कहां होगी और कैसी होंगी…


कुछ दिनों बाद रक्षाबंधन का त्यौहार आने वाला था.. बच्चों के लिए कपड़े खरीदना आवश्यकत था और स्वयं के लिए भी …दोनों सहेलियां बाजार निकल पड़ी।

दुकान पर टंगे रंग बिरंगे कपड़े देखकर सुगना और लाली दोनों का मन मचल उठा. दोनों ने एक साथ ही कहा

"कितना सुंदर कपड़ा बा" दोनों सहेलियां मुस्कुरा उठी नियति ने दोनों की पसंद को मिला दिया था… दोनों मुस्कुराने लगी दुकान की तरफ बढ़ चली…

"आइए दीदी क्या दिखाऊ?"

सुगना ने अपनी उंगलियां बाहर टंगे पुतले की तरफ कर दी.. जिस पर एक लखनवी कुर्ता टंगा हुआ था जिस पर खूबसूरत चिकनकारी की हुई थी..

दुकानदार में अपने बात हाथ से उस कपड़े को निकालने के लिए कहा और उस कुर्ते की तारीफ करने लगा ..

सुगना सुगना सामान्यतया साड़ी ही पहनती थी विशेष अवसरों पर लहंगा चोली पहने ना उसे पसंद था परंतु सलवार सूट पहनना उसे आधुनिकता का प्रतीक लगता था जो उसके व्यक्तित्व और स्वभाव से मेल खाता था परंतु जब जब सुगना एकांत में होती वह सोनी के सलवार सूट को पहनने की कोशिश करती परंतु सोनी का कुर्ता सुगना के गदराए बदन पर फिट न बैठता और सुगना चाह कर भी अपने कामुख बदन को सलवार सूट में न देख पाती।


"दीदी यह माल कल ही आया है खास लखनऊ से मंगाया है" आप जैसे सुंदर दीदी पर यह बहुत फबेगा। दुकानदार चालू था… उसने एक ही वाक्य में सुगना और लाली दोनों को प्रभावित कर लिया था..

दुकान का नौकर उस सूट की कई वैरायटी लेकर काउंटर पर फैला चुका सुगना और लाली बार-बार उन्हें छूते उनके कपड़ों की कोमलता महसूस करते और मन ही मन उस कपड़े में अपने खूबसूरत बदन को महसूस करते..

कपड़ा और डिजाइन एक बार में ही पसंद आ चुका था अब बारी थी पैसों की.

"कितना के वा सुगना के सुकुचाते हुए पूछा?"

"₹300 के दीदी"


"लाली ने आश्चर्य से कहां 300 बाप रे बाप इतना महंगा?"

दुकानदार को लाली का इस प्रकार चौकना पसंद ना आया उसने सुगना की तरफ देख कर कहा

₹दीदी यह लखनवी चिकनकारी है आप तो जानती ही होंगी? हाथ का काम है महंगा तो होगा ही? आप एक बार ले जाइए यदि जीजा जी ने पसंद न किया तो वापस पटक जाइएगा"

सुगना अपने आकर्षक त्वचा और खूबसूरत चेहरे तथा सुडोल जिस्म की वजह से एक सब सब सभ्रांत महिला लगती थी…जिस सुगना ने मनोरमा मैडम जैसी खूबसूरत एसडीएम को प्रभावित कर लिया था उसे देखकर दुकानदार का प्रभावित होना स्वभाविक था।

सुगना और लाली दोनों दुकानदार का इशारा समझ रही थी उन्हें पता था कि इन कपड़ों में लाली और सुगना बेहद सुंदर लगेंगी और शायद इसीलिए वह विश्वास जता रहा था कि कोई भी उसे वापस करने नहीं आएगा।

यह अलग बात थी कि घर पर उन्हें इन वस्त्रों में देखने वाला कोई न था। लाली का सोनू लखनऊ में था और सुगना उसका तो जीवन ही उजाड़ हो गया… सरयू सिंह सरयू जिसके साथ उसने अपनी जवानी के तीन चार वर्ष बिताए थे उन्होंने अचानक ही काम वासना से मुंह मोड़ लिया था और उसका पति रतन ……शायद सुगना रतन के लिए बनी ही न थी।


सुगना जैसी सुंदरी सिर्फ और सिर्फ प्यार की भूखी थी और जिसका बदन प्यार पाते ही मक्खन की तरह पिघल जाता है वह अपने प्रेमी के शरीर से लिपट कर उसकी सॉरी उत्तेजना और वासना को आग को अपने बदन के कोमल स्पर्श और चुम्बनो से शांत करती करती और अंदर उठ रहे तूफान को केंद्रित कर उसके लिंग में भर देती और उसे अपनी अद्भुत योनि में स्थान देकर उसके तेज को बेहद आत्मियता से सहलाते हुए इस उत्तेजना से उत्पन्न वीर्य को बाहर खींच लाती।

रतन ने भी सुगना से प्यार ही तो किया था पर क्या यह प्यार अलग था …. क्या यह प्यार सरयू सिंह और सोनू के प्यार से अलग था…लाली ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला..और कहा

"चल सोनू के फोन कर दीहल जाओ ….लखनऊ से खरीद के ले ले आई आतना पैसा काहे देवे के?"

सुगना को यह बात पसंद आई उसने महसूस किया था उसे पता था सोनू की स्त्रियों के कपड़े की पसंद बेहद अच्छी थी। वह लाली के लिए कुछ कपड़े पहले भी खरीद चुका था।

दोनों सहेलियां एकमत होकर दुकानदार से बोली

"अच्छा ठीक है इसको रखिए हम लोग और सामान लेकर आते हैं फिर इसे ले जाएंगे.."

दुकानदार समझ चुका था वह अब भी सुगना और लाली को समझने की कोशिश कर रहा था दोनों रंग-बिरंगे कपड़ों में सजी थीं पर माथे का सिंदूर गायब था।

बाहर निकल कर पीसीओ बूथ से लाली ने सोनू के हॉस्टल में फोन लगा दिया..

प्रणाम दीदी …. सोनू की मधुर आवाज सुगना के कानों में पड़ी

" खुश रहो "

सुगना ने दिल से सोनू को आशीर्वाद दिया और पूछा "सोनी बढ़िया से पहुंच गईल नू"

"हां"

सोनू ने संक्षेप में जवाब दिया। सुगना ने सोनू के स्वास्थ्य और खानपान के बारे में पूछा पता नहीं क्यों उसे आज बात करने में वह बात करने में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी। और यही हाल सोनू का था। कुछ दिनों से सोनू और सुनना दोनों की सोच में जो बदलाव आया था वह बातचीत में स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था दोनों की बातें ज्यादा औपचारिक हो रही थी वह भाई बहन की आत्मीयता न जाने कब कमजोर पड़ती जा रही थी।

जो भाई बहन पहले काफी देर बातें किया करते थे वो आज मुद्दों की तलाश में थे… ऐसा लग रहा था जैसे बातें खींच खींच कर की जा रही हो। सुगना से और बर्दाश्त न हुआ उसने फोन लाली को पकड़ा दिया और बोली

"ले लाली भी बात करी" सुगना को अचानक महसूस हुआ जैसे उसने फोन सोनू की प्रेयसी को दे दिया वह थोड़ा दूर हट कर खड़ी हो गई ..

लाली और सोनू ने कुछ देर बातें की। सुगना उनकी बातें सुनती रही आज पहली मर्तबा सुगना सोनू और लाली की बातों को ध्यान लगाकर सुन रही थी। उसे सोनू की आवाज तो सुनाई न दे रही थी परंतु वह मन ही मन अंदाज लगा रही थी । अंत में लाली ने सोनू से कहा

"वहां से लखनवी चिकनकारी के शीफान के सूट लेले अईहा हमनी खातिर…_

" दीदी पहनी…? " सोनू ने लाली से इस बात की तस्दीक करनी चाहिए कि क्या सुनना वह सूट पहनेगी उसे यह विश्वास न था।

"अरे राखी में तू गिफ्ट ले आईबा तब काहे ना पहनी"

लाली भी सुगना के साथ रहते-रहते वाकपटु हो चली थी।

"साइज त बताव"

" हमर त मलूमे बा हां बाकी दुसरका एक साइज .. कम"

सुगना को समझते देर न लगी कि लाली ने उसकी चुचियों की साइज सोनू को बता दिया है…

सोनू की बाछे खिल उठी। आज लाली ने उसे सुगना को खुश करने का एक अवसर दे दिया था।

कमरे में आकर वहीबिस्तर पर लेट कर एक बार फिर सुगना की कल्पना करने लगा वह इसे तरह-तरह के कपड़ों में देखता और मन ही मन प्रफुल्लित होता कभी-कभी वह सुगना को कपड़े बदलते हुए देखने की कल्पना करता और तड़प उठता…हवा के झोंकें से सुगना का घाघरा जैसे हवा में उड़ता और उसकी मखमली जांघों अनावृत हो जाती…..

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…


शेष अगले भाग में…
Sir beautiful update as usual from you. आपकी लेखन बहुत ही खूबसूरत है
 

Lina

addicted
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सिविल सर्विसेज की समाज में एक रेपुटेशन है। मनोरमा के माध्यम से आप पहले ही आहत कर चुके हैं। अब सोनू के दो दो बहिनों के साथ incestuous संबंध इसे और गिराएंगे। पोर्न ही सही, लेकिन पाठकों पर इसका प्रभाव पढ़ता है।
 

Lovely Anand

Love is life
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बहुत ही अच्छा चित्रण किया है साहिब

रतन सोच रहा है की उससे जब बबिता की प्यास बुझ सकती है तो सुगना की क्यों नही कही रतन को सुगना पर सक तो नही होगा

अब बाप बेटा साथ रहेंगे ये भी देखने की बात होगी की दोनो एक दूसरे को पहचानते है की नही
और विद्यानंद क्यों घर छोड़ के भागा ये भी एक मिस्ट्री है देखते है केसे सुलझाती है


सरयू सिंह भी जोरो शोरो से तेल की मालिश कर रहा है और मनोरम को डुंड रहा है देखने की बात ये है की सरयू सिंह और मनोरमा केसे मिलते है

मोनी के किस्मत मैं कही रतन सन्यासी तो नही

विकास तो विदेश चला गया है अब सोनी और सोनू एक दूसरे के जिस्म का लुत्फ केसे उठाते है एक दूसरे को मालूम होते हुए भी अनजान बन के एक दूसरे के अंगो का मजा लेते हैं


और सोनू जब लाली और सुगना के लिए लखनवी सूट लेके आएगा तो सुगना पर कितना खिलता है

सुगना और सोनू की प्रेम कहानी भी मिलेगी


अब रक्षाबंधन स्पेशल में
1.सोनू और सुगना
2.सोनू और लाली
3.लाली और सोनू
4. सरयू सिंह और मनोरमा
और सायद
5. रतन और मोनी



अब देखते हैं ये कहानी केसे बढ़ती है



बेसे सुगना और सोनू
और सोनी और सोनू

इनकी लव स्टोरी देखने में बहुत मजा आएगा
कहानी को मन लगाकर पढ़ने के लिए धन्यवाद विद्यानंद उर्फ रतन का पिता अपने घर से क्यों भागा था यह बात शुरुआती एपिसोड में बताई गई है .... बाकी घटनाक्रम कहानी को किस दिशा में ले जाते हैं यह तो वक्त ही बताएगा परंतु पाठकों की सुस्त प्रतिक्रिया निश्चित ही कहानी को धीमा कर रही है या हो सकता है पाठक अपना उत्साह खो रहे है....
Shandar update Lovely Bhai, Sugna ka bhi Sonu se milan jaldi hi hone wala he, aur Saryu Singh ka Manorma Madam se...

Waiting for next
धन्यवाद जी देखते हैं किस का मिलन कब और किससे होता है और वह इस कहानी में कितना सार्थक रहता है.
Sir beautiful update as usual from you. आपकी लेखन बहुत ही खूबसूरत है
धन्यवाद..
सिविल सर्विसेज की समाज में एक रेपुटेशन है। मनोरमा के माध्यम से आप पहले ही आहत कर चुके हैं। अब सोनू के दो दो बहिनों के साथ incestuous संबंध इसे और गिराएंगे। पोर्न ही सही, लेकिन पाठकों पर इसका प्रभाव पढ़ता है।
यह कहानी इंसेस्ट कलम में ही टैग की गईं है कहानी में मनोरमा ने एसडीएम होने के बावजूद कोई ऐसा कोई ऐसा घृणित कार्य नहीं किया है तन की प्यास सभी में समान होती है चाहे वह राजा हो या रंक और रही बात सोनू की तो उसने अभी तक जो कुछ देखा और महसूस किया उसके विचार उससे परिवर्तित हुए हैं आगे क्या होता है यह देखने लायक बात है आपकी बात बिल्कुल सही है सिविल सर्विसेज ही क्या हर पद की अपनी एक गरिमा है .. और मेरा आशय कतई धूमिल करने का नही है...

कहानी परिस्थितियों और भावनाओं पर आधारित है इसका आदमी की पद प्रतिष्ठा से कोई लेना-देना नहीं मनुष्य की भावनाएं पद की मोहताज नहीं होती.... ऐसा कतई नहीं है कि समाज में निचले वर्ग के लोग ऐसी भावनाओं पर यकीन रखते हैं और समाज के उच्च वर्ग के लोग इनसे दूर रहते हैं दूर रहते हैं...
भावनाएं व्यक्ति विशेष और उसकी कामुकता पर निर्भर करती हैं....
रहिए जब तक कहानी में आनंद आ रहा है पढ़ते रहे दिल पर न लें ऐसा मेरा आग्रह है...
 
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Kumarshiva

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सिविल सर्विसेज की समाज में एक रेपुटेशन है। मनोरमा के माध्यम से आप पहले ही आहत कर चुके हैं। अब सोनू के दो दो बहिनों के साथ incestuous संबंध इसे और गिराएंगे। पोर्न ही सही, लेकिन पाठकों पर इसका प्रभाव पढ़ता है।
aise to iss site ki puri incest story hi samaj ke liye ke galti(pap) hai
It's just for enjoyment nothing serious lollll
Yha pr satsang nhi ho rha
Kaha se aate hai aise log 😂😂😂😂😂
 
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Kumarshiva

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कहानी को मन लगाकर पढ़ने के लिए धन्यवाद विद्यानंद उर्फ रतन का पिता अपने घर से क्यों भागा था यह बात शुरुआती एपिसोड में बताई गई है .... बाकी घटनाक्रम कहानी को किस दिशा में ले जाते हैं यह तो वक्त ही बताएगा परंतु पाठकों की सुस्त प्रतिक्रिया निश्चित ही कहानी को धीमा कर रही है या हो सकता है पाठक अपना उत्साह खो रहे है....

धन्यवाद जी देखते हैं किस का मिलन कब और किससे होता है और वह इस कहानी में कितना सार्थक रहता है.

धन्यवाद..

यह कहानी इंसेस्ट कलम में ही टैग की गईं है कहानी में मनोरमा ने एसडीएम होने के बावजूद कोई ऐसा कोई ऐसा घृणित कार्य नहीं किया है तन की प्यास सभी में समान होती है चाहे वह राजा हो या रंक और रही बात सोनू की तो उसने अभी तक जो कुछ देखा और महसूस किया उसके विचार उससे परिवर्तित हुए हैं आगे क्या होता है यह देखने लायक बात है आपकी बात बिल्कुल सही है सिविल सर्विसेज ही क्या हर पद की अपनी एक गरिमा है .. और मेरा आशय कतई धूमिल करने का नही है...

कहानी परिस्थितियों और भावनाओं पर आधारित है इसका आदमी की पद प्रतिष्ठा से कोई लेना-देना नहीं मनुष्य की भावनाएं पद की मोहताज नहीं होती.... ऐसा कतई नहीं है कि समाज में निचले वर्ग के लोग ऐसी भावनाओं पर यकीन रखते हैं और समाज के उच्च वर्ग के लोग इनसे दूर रहते हैं दूर रहते हैं...
भावनाएं व्यक्ति विशेष और उसकी कामुकता पर निर्भर करती हैं....
रहिए जब तक कहानी में आनंद आ रहा है पढ़ते रहे दिल पर न लें ऐसा मेरा आग्रह है...
Bahut hi badhiya likh rhe hai aap kabiletarif👌👌👌👌👌
Sonu💖❤️💕sugna and lali
Iss rakshabandhan pr sonu,sugna aur lali ke bich romantic bond jabarjast hona chahiye
 

Kadak Londa Ravi

Roleplay Lover
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कहानी को मन लगाकर पढ़ने के लिए धन्यवाद विद्यानंद उर्फ रतन का पिता अपने घर से क्यों भागा था यह बात शुरुआती एपिसोड में बताई गई है .... बाकी घटनाक्रम कहानी को किस दिशा में ले जाते हैं यह तो वक्त ही बताएगा परंतु पाठकों की सुस्त प्रतिक्रिया निश्चित ही कहानी को धीमा कर रही है या हो सकता है पाठक अपना उत्साह खो रहे है....

धन्यवाद जी देखते हैं किस का मिलन कब और किससे होता है और वह इस कहानी में कितना सार्थक रहता है.

धन्यवाद..

यह कहानी इंसेस्ट कलम में ही टैग की गईं है कहानी में मनोरमा ने एसडीएम होने के बावजूद कोई ऐसा कोई ऐसा घृणित कार्य नहीं किया है तन की प्यास सभी में समान होती है चाहे वह राजा हो या रंक और रही बात सोनू की तो उसने अभी तक जो कुछ देखा और महसूस किया उसके विचार उससे परिवर्तित हुए हैं आगे क्या होता है यह देखने लायक बात है आपकी बात बिल्कुल सही है सिविल सर्विसेज ही क्या हर पद की अपनी एक गरिमा है .. और मेरा आशय कतई धूमिल करने का नही है...

कहानी परिस्थितियों और भावनाओं पर आधारित है इसका आदमी की पद प्रतिष्ठा से कोई लेना-देना नहीं मनुष्य की भावनाएं पद की मोहताज नहीं होती.... ऐसा कतई नहीं है कि समाज में निचले वर्ग के लोग ऐसी भावनाओं पर यकीन रखते हैं और समाज के उच्च वर्ग के लोग इनसे दूर रहते हैं दूर रहते हैं...
भावनाएं व्यक्ति विशेष और उसकी कामुकता पर निर्भर करती हैं....
रहिए जब तक कहानी में आनंद आ रहा है पढ़ते रहे दिल पर न लें ऐसा मेरा आग्रह है...
ऐसा नही है राइटर साहब सभी पसंद करते हैं लेकिन अपडेट लेट आते हैं तो कई बार पाठक देख ही नहीं पाते हैं आप तो लिखते रहिए टाइम से अपडेट मिलेगा तो रिप्लाई भी मिलेगा
 
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