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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Tiger 786

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भाग -67

सुगना अंततः कटोरी ले आई और अपनी चुचियों से दूध कटोरी में निकालने का प्रयास करने लगी.. परंतु यह कार्य अकेले संभव न था एक हाथ से वह कटोरी पकड़ती और दूसरे हाथ से अपनी मोटी मोटी चूचियों से दूध निकालने का प्रयास करती लाख जतन करने के बाद भी सुगना दूध की कुछ बूंदे ही कटोरी में निकाल पाई।

अपनी पुत्री को भूखा रखना सुगना को कतई गवारा न था जिस पुत्री का जन्म इतने मन्नतों और प्रार्थनाओं के बाद हुआ था उसे भूख से तड़पाना सुगना को कतई गवारा न था। उसने अपनी लज्जा को ताक पर रख रतन से मदद लेने की सोची…

अब आगे..


"ए जी थोड़ा मदद कर दीं देर त ना होई?"

सुगना की मधुर आवाज रतन के कानों तक पड़ी जो अब घर से बाहर निकलने के लिए लगभग तैयार था।

रतन सुगना की बात कभी टाल नहीं सकता था। दुनिया में यदि कोई रतन के लिए अहम था तो वह थी सुगना। उसकी नौकरी चाकरी इतनी अहम न थी कि वह अपनी सुगना की बात को नजरअंदाज करता। उसने सहर्ष कहा

"हां बतावा ना का करे के बा"

"हई तनी कटोरी पकड़ी और आपन आंख मत खोलब"

सुगना ने अपनी झील जैसी आंखें नचाते हुए कहा..

कुछ निषेधात्मक वाक्यों को कहने का अंदाज उनकी निषेधात्मकता को कम कर देता है।


सुगना ने राजेश को आँखें खोलने के लिए तो मना कर दिया था परंतु शायद जो उसके उद्बोधन में था वो उसके मन में नहीं।

रतन ने अपनी आंखें कुछ ज्यादा ही मीच लीं। उसने शायद सुगना को आश्वस्त करने की कोशिश की और सुगना द्वारा दी गई कटोरी को पकड़ लिया सुगना ने उसके हाथों को एक नियत जगह पर रहने का इशारा किया और अपनी एक चूँची को ब्लाउज से बाहर निकाल लिया…

नियति यह दृश्य देखकर मंत्रमुग्ध थी काश रतन अपनी आंखें खोल कर वह सुंदर दृश्य देख पाता। जिन चुचियों की कल्पना वह पिछले कई महीनों से कर रहा था वह उसकी आंखों के ठीक सामने थी परंतु उनकी मालकिन सुगना ने रतन को आंखें खोलने से रोक रखा था।

सुगना की कोमल हथेलियां उसकी चुचियों पर दबाव बढ़ाने लगी और दूध की धारा फूट पड़ी। कटोरी पर पढ़ने वाली धार सरररररर ... की मधुर आवाज पैदा कर रही थी जो रतन के कानों तक भी पहुंच रही थी।

रतन व्यग्र हो रहा था... कुछ दृश्य बंद आंखों से भी स्पष्ट दिखाई देते हैं वह अपने बंद आंखों के पीछे छुपी लालिमा में अपने हाथों में अपनी ही चूचियां पकड़े सुगना को देखने लगा।


सुगना के अथक प्रयास करने के बावजूद वह थोड़ा ही दूध बाहर निकाल पायी। जैसे-जैसे सुगना की हथेलियों का दबाव घट रहा था दूध की धारा धीमी पड़ती जा रही थी…

रतन ने हिम्मत जुटाई और बोला...

"तनी थपथपा ल ओकरा के(चुचियों को) तब दूध निकले में आसानी होगी"

रतन की बात ने सब कुछ खोल कर रख दिया था। सुगना ने उसकी आंखें बंद कर जिसे छिपाने की कोशिश की थी उसे रतन मैं बोलकर बयां कर दिया था हालांकि उसकी आंखें अब भी बंद थीं।

"ली तब आप ही करीं" सुगना अपनी चुचियों को दबाते दबाते थक चुकी थी उसने अनजाने में ही रतन को अपनी चूचियां छूने और उनसे दूध निकालने के लिए आमंत्रित कर दिया था।

रतन का दिल तेजी से धड़कने लगा आज वह पहली बार सुगना की चुचियों को छूने जा रहा था वह भी उसके आमंत्रण पर रतन के हाथ कांपने लगे और दिल की धड़कन तेज होती गई। सुगना ने उसके हाथ से कटोरी ले ली और उसके दोनों हाथों को आजाद कर दिया

"आंख अभियो मत खोलब" सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा परंतु उसकी आवाज में नटखट पन स्पष्ट महसूस हो रहा था। सुगना ने स्वयं रतन की हथेलियों को अपनी चुचियों से सटा दिया..

रतन सुगना की फूली हुई गोल-गोल सूचियों को अपने दोनों हथेलियों से महसूस करने लगा अपनी उंगलियों से उसके निप्पल को छूते हुए चुचियों के आकार और कसाव का अंदाजा लगाने लगा। धीरे-धीरे उसकी हथेलियों का दबाव बढ़ता गया और चूँचियों से दुग्ध धारा एक बार पुनः फूट पड़ी जिसे सुगना ने कटोरी में रोक लिया।

रतन मदहोश हो रहा था। उसका लण्ड खड़ा हो चुका था जो बिस्तर पर बैठी हुई सुगना की आंखों के ठीक सामने था। परंतु सुगना की निगाह अभी उस पर नहीं पड़ी थी। वह अपना ध्यान कटोरी पर लगाए हुए थी।

रतन का लण्ड अपने आकार में आकर रतन को असहज कर रहा था। उसे दिशा देने की आवश्यकता थी रतन ने अपना एक हाथ कुछ पल के लिए हटाया और लण्ड को ऊपर की तरफ किया। सुगना की निगाहों में यह देख लिया परंतु सुगना ने कुछ ना कहा।


रतन भी अब सहज हो चला था वह उसकी दोनों चूचियों को थपथपातता कभी उन्हें सहलाता और कभी अपनी हथेलियों के दबाव से उन्हें दुग्ध धारा छोड़ने पर मजबूर कर देता।

इसी क्रम में रतन की हथेलियों ने अपना दबाव कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया और सुगना करा उठी

"आह...तनी धीरे से …….दुखाता"

सुगना कि यह कराह मादक थी। रतन भाव विभोर हो गया उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपनी आंखें खोल दी वह सुगना की चूँचियों को सहलाने लगा।

रतन ने एक झलक उन दुग्ध कलशों को देख लिया परंतु अपनी निगाह वह ज्यादा देर तक उन खूबसूरत चुचियों पर ना रख पाए वह सुगना के चेहरे को देखते हुए बोला

"माफ कर द गलती से जोर से दब गइल हा"

सुगना का चेहरा लाल हो गया था यह दर्द के कारण था या उत्तेजना के रतन के लिए यह समझना मुश्किल था।

"जाए दीं कवनो बात ना। अब हो गई गईल अब आप जायीं " सुगना ने अपनी साड़ी के आंचल से दोनों चुचियों को ढक लिया।

सुगना ने रतन के आंख खोलने का बुरा न माना था। वह मुस्कुराती हुई अपनी सूचियों को अपनी ब्लाउज में अंदर करने लगी।

"आपन ख्याल रखीह" रतन में जाते हुए कहा

रतन वापस अपने होटल के लिए निकल गया आज का दिन रतन के लिए बेहद अहम था…

रतन रह रह कर अपनी हथेलियों को चूम रहा था आज पहली बार सुगना ने उसे अपनाने का संकेत दिया था वह उसका कृतज्ञ था जिसने उसे माफ कर अपने उस अंग को छूने दिया था जिस पर या तो उसके बच्चों का अधिकार होता है या पति का।

सुगना की पुत्री मधु ने उन दोनों को करीब लाने में अहम भूमिका अदा कर दी थी। अगले कुछ दिनों तक रतन सुगना की चुचियों से दूध निकालता रहा। धीरे धीरे आंखों का बंद होना भी सुगना की आवश्यक शर्त न रही थी।

जैसे-जैसे सुगना और रतन खुलते गए चुचियों से दूध निकालने के दौरान रतन उनसे अठखेलियां करने लगा सुगना उसे काम पर ध्यान देने को कहती परंतु रतन सुगना की चूँचियों को कामुक तरीके से सहला कर उसे उत्तेजित करने का प्रयास करता। इस दौरान उसका लण्ड हमेशा खड़ा रहता।

आखिरकार एक दिन सुगना ने भी उसे छेड़ दिया।

उसने रतन की जांघों की जोड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा

"दुधवा निकालत खानी इ महाराज काहे बेचैन हो जाले.."

रतन शर्मा गया परंतु उसमें अब हिम्मत आ चुकी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा..

"अइसन मक्खन मलाई जैसन चूची छुवला पर बुढ़वन के खड़ा हो जाए हम तो अभी नया बानी.".

"अच्छा चलीं बात मत बनाइ आपन काम करी"

"का करीं?"

"जवन कर तानी हां"

"साफ-साफ बोल…. ना"

" पागल मत बनी ई कुल बोलल थोड़ी जाला"

"एक बार बोल द हमरा खातिर"

"हम ना बोलब हमरा लाज लगाता"

रतन ने अपनी जगह बदल दी थी। वह सुगना के ठीक पीछे आकर खड़ा हो गया और उसकी दोनों चूचियों को दबा कर दूध निकाल रहा था। उसका खड़ा लण्ड सुनना की पीठ में सट रहा था। कभी वह नीचे झुक कर उसे सुगना के नितंबों से सटाने का प्रयास करता।


सुगना उसकी यह छेड़छाड़ समझ रही थी पर शांत थी। उसे भी अब यह अठखेलिया पसंद आने लगी थी। रतन अपना सर सुगना के कंधे पर रखकर अपने गाल सुगना के गाल से सटाने का प्रयास करता और उसकी गर्म सांसे सुगना के कोपलों से टकराती।

उत्तेजना दोनों पति पत्नी को अपने आगोश में ले रही थी। रतन ने मदहोश हो रही सुगना से एक बार फिर पूछा "बता द ना का करीं…"

"अब हमार चुंचीं मीसल छोड़ दीं और अपना होटल जाए के तैयारी करीं" सुगना ने बड़े प्यार से रतन के दोनों हाथों को अपनी चुचियों पर से हटा दिया और उन्हें ब्लाउज में बंद करते हुए कमरे से बाहर निकलने लगी। दरवाजे से निकलते समय उसने रतन को पलट कर देखा जो अभी भी सुगना के मुख से निकले चुंचीं शब्द की मधुरता में खोया हुआ उसे एकटक निहार रहा था।


नियति मुस्कुरा रही थी..रतन और सुगना करीब आ रहे थे।

उधर सोनू लाली के परिवार के साथ समय व्यतीत कर बच्चों को खुश करने का प्रयास करता और बच्चों की मां लाली अपने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देखकर स्वतः ही खुश हो जाती। सोनू का अपने परिवार के प्रति यह लगाव देखकर लाली अपने दिल और आत्मा से उसे धन्यवाद देती।

सुगना की पुत्री मधु 3 माह की होने वाली आने वाली पूर्णमासी को कुल देवता की पूजा होनी थी।

सरयू सिंह के खानदान में संतान उत्पत्ति होने पर अपने कुल देवता की पूजा करने विशेष प्रथा थी यह पूजा संतानोत्पत्ति के लगभग 3 माह पश्चात की जाती थी। पूजा की विशेष विधि थी और इसका उद्देश्य भी शायद विशेष था।

संतानोत्पत्ति के कुछ महीनों तक संतान के माता पिता का आपस में मिलना और संभोग करना अनुचित था। कुल देवता की पूजा करने के पश्चात उन्हें वापस एकाकार होने का अवसर प्राप्त होता।

सुगना मन ही मन सोचने लगी कि क्या वह इस पूजा में अपने पति रतन को शामिल करेगी? क्या पूजा के उपरांत वह अपने पति रतन को उसके साथ संभोग करने का अवसर देगी?

सुगना अपने पुराने दिनों को याद करने लगी जब सूरज के जन्म के 3 महीनों बाद उसे कुल देवता की पूजा करनी थी। उसका पति रतन उस समय उपस्थित न था। न तो सुगना के गर्भ धारण मैं रतन का योगदान था और नहीं अब सुगना की इस पूजा में उसकी उपयोगिता।


गांव के सभी मानिंद लोगों ने आपस में विचार-विमर्श कर यह निर्णय किया की यदि पति उपस्थित ना हो तो उसकी लाठी को साथ में रखकर कुल देवता की पूजा की जा सकती।

कजरी भी धर्म संकट में थी उसे पता था कुलदेवता की पूजा करने के पश्चात पति अपनी पत्नी को अपनी बाहों में उठा कर सीधा शयन कक्ष में ले जाता है और फिर अपनी पत्नी की योनि की पूजा करता और योनि को संतान प्राप्ति के लिए धन्यवाद देता और कई महीनों के अंतराल के बाद उसी दिन उसके साथ संभोग कर योनि को चरमोत्कर्ष प्रदान करता और वापस अपना गृहस्थ जीवन प्रारंभ करता।

कजरी ने तो गांव के बुजुर्ग लोगों की बात मानकर कुलदेवता की पूजन के लिए रतन की लाठी को मान्यता दे दी परंतु शयन कक्ष में होने वाली योनि पूजा कौन करेगा क्या कुंवर जी को ही यह पूजा करनी पड़ेगी? या सुगना को रतन की लाठी की मूठ से ही योनि स्खलित कर इस पूजा को पूर्ण करना होगा जैसे कि स्वयं उसने रतन के जन्म के बाद किया था।

(शायद पाठकों को याद हो रतन के पिता बिरजू जो आजकल विद्यानंद के नाम से जाने जाते थे कजरी को गर्भवती कर साधुओं की मंडली के साथ भाग गए थे उन्हें इस विशेष पूजा में बुला पाना असंभव था। कजरी ने भी अपने पति बिरजू उर्फ विद्यानंद की लाठी अपनी योनि से रगड़ कर बड़ी कठिनाई से उसे स्खलित किया था परंतु कजरी का वह अनुभव अच्छा नहीं रहा था उसने उसी दिन तय कर लिया था कि वह सरयू सिंह को अपने नजदीक आने का मौका देगी और अपनी स्वाभाविक काम इच्छा को पूरा करेगी।)

कजरी अपने मन में सुगना की पूजा का समापन सरयू सिंह से कराना चाहती थी। सच ही तो था.. जिसने सुगना को गर्भवती कर पुत्र रत्न से नवाजा था उसके द्वारा योनि पूजन कराना उचित ही था।

सरयू सिंह ने इस पूजा में उपस्थित रहने के लिए रतन से कई बार अनुरोध किया था परंतु वह मुंबई से आने को तैयार न था। अंततः परंपरा के निर्वहन के लिए सरयू सिंह ने इस पूजन की पूरी तैयारियां कर ली।


सलेमपुर गांव के सभी लोगों को पूजा के उपरांत होने वाले भोज में भारत में आमंत्रित किया गया। यह उत्सव परिवार के लिए बेहद सम्मान और मान प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला होता था।

सुगना की अपनी सहेली लाली भी ईसी विशेष पूजा के लिए सलेमपुर आई हुई थी। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसे पता चला कि यह पूजा सुगना बिना रतन भैया के करने जा रही है।

उसने रतन की लाठी की मूड को पकड़कर सुगना को छेड़ते हुए पूछा..

"त हमार रानी अपना ओखली में रतन भैया के मुसल की जगह हई लाठी डाली का"

"हट पागल कुछो बोलेले"

"रतन भैया काहे ना अइले हा आज के दिन के सब मर्द लोग इंतजार करेला"

"जाकर उनके से पूछ लीहे"

"त इनके के भेज दी का तोर बुर...के पूजाइयो हो जायी और इनको साध बता जायी?" लाली ने अपने पति राजेश की तरफ इशारा करते हुए कहा।

सुगना मुस्कुराने लगी…

तभी सरयू सिंह बाजार से वापस आए और आंगन में पहुंचते ही सुगना से बोले..

"इ ला आपन कपड़ा पूजा में पहने खातिर"

सुगना ने सरयू सिंह की आंखों की चमक देखकर अंदाजा लगा लिया। कि वह भी इस पूजा का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे उसने झोला पकड़ लिया।

"दिखाओ ना कौन कपड़ा आइल बा?" लाली ने उत्सुकता से पूछा।

सुगना ने सरयू सिंह की आंखों की चमक देखकर अंदाजा लगा लिया था कि उसके बाबूजी ने निश्चित ही कुछ न कुछ शरारत की होगी विशेषकर उसके अंतरंग वस्त्रों को लेकर।

"दिखाओ ना का सोचे लगले?"

"जब काल पहनब तब देख लीहे"


"ए सुगना सलेमपुर कब चले के बा" लाली अपने पुत्र (जो दरअसल राजेश और सुगना का पुत्र था ) को लिए हुए सचमुच सुगना के पास आ रही थी।

सुगना अपनी मीठी यादों से बाहर आ गयी। यह एक महज संयोग था या दोनों सहेलियों की जांघों के बीच जागृति प्राकृतिक भूख दोनों ही उस पूजा को याद कर रही थी।

"काहे खातिर" सुगना ने लाली के भाव को समझ कर भी अनजान बनते हुए पूछा

लाली पास आ चुकी थी वह सुगना के बगल में बैठते हुए उसकी जांघों के बीच अपनी हथेलियां लेकर आई और बोली


"एकर पूजाई करावे"

दोनों सहेलियां हंसने लगी।

"अबकी बार काठ के मुसल के बदला में असली मुसल भेटाई" लाली, सुगना कि उस संभावित रात की कल्पना कर मन ही मन खुश हो रही थी। इस बार रतन उपस्थित था और सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

सुगना ने लाली की हथेलियां अपने हाथ में ले ली और उसे प्यार से सहलाते हुए पूछा..

" एक बात कहीं "

"बोल ना"

"देख तोरा के सोनू से मिलावे वाला भी जीजा रहलन। अभी जिंदगी लंबा बा हमनी में दूसर बियाह ना हो सकेला लेकिन सोनुवा के अपनावले रहू जब तक ओकर ब्याह नईखे होत…"

सुगना ने लाली के मन की बात कह दी थी पिछले 2-3 महीनों में लाली की जिंदगी में आए दुख में भी अब ठहराव आ रहा था। दिन के 24 घंटों में खुशियां अपना अधिकार लगातार बढ़ा रही थीं और राजेश के जाने का गम धीरे-धीरे कमजोर पड़ता जा रहा था।


सोनू भी ज्यादातर समय लाली के घर पर ही देता। वह राजेश के कमरे में अपनी पढ़ाई करता और अपने खाली समय में बच्चों के साथ खेल कर उनका मन लगाए रखता। परंतु विधवा लाली से सेक्स की उम्मीद रखना सोनू को उचित प्रतीत ना होता दोनों के बीच जमी हुई बर्फ को किसी ना किसी को पिघलाना था।

"काहे चुप हो गइले कुछ बोलत नईखे?" सुगना ने लाली के कंधे को हिलाते हुए पूछा।

"उ आजकल दिनभर पढ़त रहेला जब टाइम मिलेला तब बचवन संग खेलेला"

"त तेहीं आगे बढ़ के ओकरा के खेला दे" सुगना ने हंसते हुए कहा और लाली के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई। जांघों के बीच एक अजब सी सनसनी हुई जो चुचियों के निप्पलओ तक पहुंची। तभी राजेश और सुगना के पुत्र जो इस समय लाली की गोद में था ने लाली की चूचियां पकड़ने की कोशिश की और लाली की चूचियां बाहर आ गई।


सुगना ने मधु को लाली की गोद में देते हुए कहा

"ले तनी एकरो के दूध पिला दे हमार दूध धरे में दिक्कत कर तिया"

मधु ने लाली की दूसरी चूची बड़े प्रेम से पकड़ ली और चूस चूस कर तृप्त होने लगी। अपनी माता का दूध पीने का यह सुख मधु ही जानती होगी लाली ने भी मधु के होठों और मसूड़ों का मासूम स्पर्स महसूस किया और भावविभोर हो गयी"


नियति सलेमपुर में सुगना की पूजा की तैयारियों में लग गई। काश कि दोनों सहेलियां इस पूजा में शामिल हो पाती? एक सुहागन एक विधवा परंतु दोनों में कुछ समानता अवश्य थी।

एक तरफ सुगना का वास्तविक सुहाग उजड़ चुका था। उसके बाबूजी सरयू सिंह जिसके साथ उसने अपने वैवाहिक जीवन के सुखद वर्ष बिताए थे वह अचानक ही वैराग्य धारण कर चुके थे। सुगना को यह एक विशेष प्रकार का वैधव्य ही प्रतीत हो रहा था। यह अलग बात थी कि प उस में कामेच्छा जगाने वाला उसका पति रतन आ चुका था और वह सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

कमोबेश यही स्थिति लाली की भी थी उसका पति राजेश अपना शरीर छोड़ चुका था और अपने स्थान पर सोनू को लाली से मिलाकर उसकी कामेच्छा पूरी करने के लिए छोड़ गया था।

नियति अपनी उधेड़बुन में लगी लाली को तृप्त करने का संयोग जुटाने लगी… सुगना रतन बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगे...

शेष अगले भाग में...
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Thanks to all who have considered my request. Truly speaking 10 number doesnot delight me but your presence motivates me to continue the story...


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Tiger 786

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भाग - 68

नियति सलेमपुर में सुगना की पूजा की तैयारियों में लग गई। काश कि दोनों सहेलियां इस पूजा में शामिल हो पाती? एक सुहागन एक विधवा परंतु दोनों में कुछ समानता अवश्य थी।

एक तरफ सुगना का वास्तविक सुहाग उजड़ चुका था। उसके बाबूजी सरयू सिंह जिसके साथ उसने अपने वैवाहिक जीवन के सुखद वर्ष बिताए थे वह अचानक ही वैराग्य धारण कर चुके थे। सुगना को यह एक विशेष प्रकार का वैधव्य ही प्रतीत हो रहा था। यह अलग बात थी कि प उस में कामेच्छा जगाने वाला उसका पति रतन आ चुका था और वह सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

कमोबेश यही स्थिति लाली की भी थी उसका पति राजेश अपना शरीर छोड़ चुका था और अपने स्थान पर सोनू को लाली से मिलाकर उसकी कामेच्छा पूरी करने के लिए छोड़ गया था।


नियति अपनी उधेड़बुन में लगी लाली को तृप्त करने का संयोग जुटाने लगी… सुगना रतन बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगे…

अब आगे...

रतन का इंतजार खत्म होने वाला था । विशेष पूजा के लिए रतन, सुगना और सोनी के संग चार दिन पहले ही सलेमपुर आ गया उसे इस उत्सव की तैयारियों में अपने चाचा सरयू सिंह का हाथ भी बटाना था।

सुगना की मां पदमा भी अपनी पुत्री मोनी के साथ सलेमपुर आ चुकी थी सरयू सिंह का भरा पूरा परिवार आंगन में बैठकर बातचीत कर रहा था तरह-तरह की बातें... तरह तरह के गीत गाए.. जा रहे थे। कजरी सोनी और मोनी को छेड़ रही थी और बार-बार उनके विवाह का जिक्र कर रही थी। मोनी को तो विवाह शब्द से कोई सरोकार न था परंतु विवाह का नाम सुनते ही सोनी सतर्क हो जाती। यद्यपि उसे यह बात पता थी कि बिना नर्सिंग की पढ़ाई पूरी किए उसका विवाह नहीं होना था परंतु कल्पना का क्या? उसका अल्लढ़ मन विवाह और उसकी उपयोगिता को भलीभांति समझता था। वह मन ही मन विकास से विवाह करने और जी भर कर चुदने को पूरी तरह तैयार थी।

सरयू सिंह दरवाजे पर आने वाले मेहमानों का स्वागत कर रहे थे और आने वाले मेहमानों से उपहार और न्योता ग्रहण कर रहे थे। जब जब वह अंदर आंगन में आते सारी महिलाएं सतर्क हो जाती।


कजरी जान चुकी थी कि अब सरयू सिंह और सुगना के बीच कोई कामुक संबंध नहीं है उसे इस बात की बेहद खुशी थी। परंतु सुगना ...आह ...उसके मन में सरयू सिंह को देखकर अब भी एक कसक सी उठती थी।

देखते ही देखते पूजा का दिन आ गया। सुगना और रतन दोनों ने ही इस पूजा के लिए उपवास रखा था। सरयू सिंह ने कजरी से कहा "सुगना बेटा के शरबत पिला दिया तब से भूखल होइ"

सुगना सरयू सिंह के प्रेम की हमेशा से कायल थी परंतु प्रेम का यह परिवर्तित रूप पता नहीं क्यों उसे रास नहीं आ रहा था। उसने जिस रूप में सरयू सिंह को देखा था वह उन्हें उसी रूप में चाहती थी यह नया रूप उसके लिए अटपटा था।

उसका दिलो-दिमाग और तन बदन सरयू सिंह को पिता रूप में देखने के लिए कतई तैयार न था। जिस पुरुष से सुगना तरह-तरह के आसनों में चुदी थी और वासना के अतिरेक को देखा था उसे पिता रूप में स्वीकार उसके बस में न था।

पद्मा (सुगना की मां) ने सुगना से पूछा

"सोनू ना आई का?"

" कहले तो रहे हो सकता लाली के लेकर आई "

पदमा अपने पुत्र को देखने के लिए लालायित थी।

कजरी ने आकाश की तरफ देखा । सूर्य अपना तेज खो रहा था। पूजा का समय हो रहा था।

उसने सोनी से कहा…

"ए सोनी जा अपना दीदी के तैयार करा द"

सुगना के दिमाग में अभी भी सरयू सिंह ही चल रहे थे उसने कहां

" ते रहे दे सोनी हम तैयार हो जाएब"

" सोनी के लेले जो अलता नेलपॉलिश लगा दी"

आखिरकार सोनी और सुगना अपनी कोठरी में आ गई।

रतन सुगना के लिए गुलाबी लहंगा और चोली लाया था और साथ में जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी भी थी।

वह अपनी पत्नी के साथ अपना प्रथम मिलन यादगार बनाना चाहता था।

कमरे में अपने पलंग को देखकर सुगना के दिमाग में पुरानी यादें घूमने लगी इस पलंग पर वह अपने बाबूजी सरयू सिंह से न जाने कितनी बार चुदी थी उसे खुद भी ध्यान न था। दिन में कभी दो बार कभी-कभी तीन- चार बार ... और आज इसी पलंग पर उसे रतन के सामने प्रस्तुत होना था। सुगना खोई खोई सी थी। उसके मन का द्वंद उसे कभी परेशान करता कभी उसकी बुर भावनाओं के झंझावात को भुलाकर चुदने के लिए अपने होठों पर मदन रस ले आती।

सोनी सुगना के कपड़े झोले में से निकालने लगी। गुलाबी रंग का लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत था..

"कितना सुंदर बा" सोनी विस्मित होते हुए बोली


सचमुच वह लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत था और जिसे उसे धारण करना था उसकी खूबसूरती इस लहंगा चोली से भी दोगुनी थी।

सुगना को वह लहंगा चोली देखकर उस दिन की याद आ गई जब उसके लहंगे में कीड़ा घुसा था और जिसे निकालते निकालते उसके बाबुजी सरयू सिंह ने पहली बार उसके अनछुए और कोमल मालपुए (सुगना की बुर) के प्रथम दर्शन किए थे।

"ए दीदी कितना सुंदर बा" सोनी की बात सुनकर सुगना घबरा गई। सुगना अपना हाथ अपनी जांघों के बीच ले आए और अपनी उस बुर को छुपाने लगी जो उसके दिमाग में घूम रही थी। उसने सोनी की तरफ देखा जो रतन द्वारा लाए गए जालीदार ब्रा और पेंटी को हाथ में लेकर लहलाते हुए बोली..

"सुगना शर्म से पानी पानी हो गई" रतन पहली बार में ही उसे ऐसी ब्रा और पेंटी लाकर देगा इसका अंदाजा उसे ना था ऊपर से वह सोनी के हाथों में लग गई थी। "चल रख दे हम उ ना पहनब"

"अरे वाह काहे ना पहिनबु जीजा जी अतना शौक से ले आईल बाडे" सोनी सुगना से खुलने का प्रयास कर रही थी।

सुगना मन ही मन तैयार तो थी परंतु वह सोनी के सामने उसे पहनने में असहज महसूस कर रही थी। उसने सोनी को आलता लेने भेजा और जब तक वह वापस आती रतन द्वारा लायी जालीदार पैंटी सुगना की बुर चूम रही थी….

ब्रा भी चुचियों पर फिट आ रही थी। सोनी सुगना को देखती रह गयी। कितनी खूबसूरत थी सुगना… दो बच्चों को जन्म देने के बाद भी उसके कमर के कटाव वैसे ही थे बल्कि और मादक हो गए थे। पतली कमर सपाट पेट मे थोड़ा उभार अवश्य आया था जो उसे किशोरी से वयस्क की श्रेणी में ले आया था।


यदि कोई ऋषि महर्षि सुगना को उसी अवस्था में जड़ होने का श्राप देते तो वह पाषाण मूर्ति बनी खजुराहो के मंदिरों में जड़ी हुयी काल कालांतर तक युवाओं में उत्तेजना भर रही होती।

लहंगे में छुपी उसकी खूबसूरत जाँघे ऐसे तो नजर न आती पर सुगना जैसे ही अपने पैर आगे बढ़ाते जांघो का आकार स्पष्ट नजर आने लगता। सोनी ने सुगना के पैरों में आलता लगाया पाजेब पहनायी। उसकी शादी के गहने पहनाए। रतन द्वारा विवाह के समय दिया गया मंगलसूत्र भी पहनाया पर सुगना ने सरयू सिह द्वारा दीपावली के दिन दी हुयी सोने की चैन को ना उतारा। वह उसकी पहली चुदाई की निशानी थी।

रतन द्वारा दिए गए झोले को सुगना ने हटाने की कोशिश की और उसमें एक शीशी को देख कर चौक उठी। उसने वह छोटी सी शीशी निकाली और उसमें रखे द्रव्य का अनुमान लगाने लगी। जब वह उसे अपनी आंखों से समझ न पहचान पाई उसने अपनी घ्राण शक्ति का प्रयोग किया और जैसे ही वह शीशी उसने अपने नाक के पास लायी उसकी मदमस्त खुशबू से सुगना भाव विभोर हो गयी।

सुगना ने इत्र के बारे में सुना जरूर था पर आज तक उसका प्रयोग नहीं किया था।। पर रतन मुंबई में जाकर इन सब आधुनिक साज सज्जा और रास रंग के सामग्रियों से बखूबी परिचित हो चुका था। रतन की पहली पत्नी बबीता सजने सवरने में माहिर थी।


सुगना ने इत्र की शीशी खोली और उसे अपने घाघरा और चोली पर लगाती गयी। जैसे-जैसे इत्र उसके वस्त्रों से टकराता गया कमरे में भीनी भीनी खुशबू फैलती गई। सुगना के मन में अचानक उसकी स्वभाविक कामुकता जागृत हो गई उसमें अपने हाथों में इत्र लिया और अपने घागरे में हाथ डालकर अपनी जालीदार पेंटी परमल दिया। वह रतन द्वारा लाए गए इत्र को योनि पूजा का भाग बनाना चाह रही थी हो सकता है उसने सोचा रतन ने यह इत्र उसी लिए लाया हो। सुगना आज मिलन के लिए पूरी तरह तैयार थी।

कुछ ही देर में सजी धजी सुगना आंगन में आ चुकी थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई अप्सरा सज धज कर उस मिट्टी के घर के आंगन में उतर आई हो….

सुगना की मां पदमा ने सुगना के कान के नीचे काजल से काला टीका लगाया और बोली

"हमरा फूल जैसी बेटी के नजर मत लागो"

कजरी ने सुगना को गले से लगा लिया और उसके कान में बोली

"बेटा अब रतन के अपना ला"

"हां मां" सुगना ने कजरी को आश्वस्त किया और बाहर ढोल नगाड़ों की आवाज आनी शुरू हो गई थी। कुल देवता की पूजा करने जाने का वक्त हो चुका था।

ग्रामीण परिवेश में ढोल नगाड़ों का विशेष योगदान है इनका बजना यह साबित करता है कि अब समय हो गया है और देर करना उचित नहीं। जैसे ही ढोल नगाड़े बजने लगते हैं घर के पुरुष वर्ग महिलाओं पर लगातार बाहर निकलने के लिए दबाव बनाते हैं परंतु वह अपने रास रंग में डूबी हुई बार-बार न चाहते हुए भी देर करती रहती हैं।

सुगना आंगन से बाहर निकलकर दालान में आ चुकी थी। वह सरयू सिंह की तरफ बढ़ रही थी सरयू सिंह सुगना को देखकर हक्के बक्के रह गए। सुगना बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसे गुलाबी रंग के लहंगे और चोली में देखकर उन्हें एक बार फिर वही सुगना याद आ गई जिसके लहंगे से कीड़े को निकलते समय उसकी बुर् के दर्शन किए थे.

यदि निष्ठुर नियत ने सरयू सिंह के संज्ञान में यह बात ना लाई होती कि सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है तो सुगना की मदमस्त जवानी को आज भोगने की तैयारी कर रहे होते और रतन को सुनना के आसपास भी न फटकने देते।

सुगना ने उनके चरण छुए और सरयू सिंह ने अपनी आंखें बंद कर उसे जी भर कर आशीर्वाद दिया आज आलिंगन के लिए कोई स्थान न था। आलिंगन की पहल इस बार सुगना ने भी नहीं की।

जैसे ही सुगना उठकर पीछे पलटी सोनू सामने खड़ा था "अतना देर कहां रह गईले हा"

"लाली दीदी देर कर देली हा"

सुगना लाली का नाम सुनकर चुप रह गई उस बेचारी के जीवन में दुख की घड़ी चल रही थी।

सोनू सुगना के पैर छूने के लिए झुका उसका चेहरा सुगना की कमर और जांघों के जैसे ही करीब पहुंचा रतन द्वारा लाए गए इत्र की खुशबू जो सुगना ने अपनी जांघों के बीच भी लगाया हुआ था सोनू के नथुने से जा टकराई क्या मदमस्त खुशबू थी सोनू ने सुगना के पैर छुए पर उस सुगंध के मोहपाश में घिर गया उसने उठने में कुछ देर कर दी।

सुगना ने उसके सर पर मीठी चपत लगाई और बोली..

"चल अब उठ जा देर हो गईल तो कोई बात नहीं." लाली ने अपने बेटे सूरज का हांथ सोनू को देते हुए कहा सूरज के अपना साथे रखिहे"

सुगना ने बड़ी की संजीदगी से सोनू की गलती पर पर्दा डाल दिया था। सुगना सोच रही थी कि आखिर सोनू ने उठने में इतनी देर क्यों की?। सोनू कामुक था यह बात सुगना भली-भांति जानती थी लाली से उसके रिश्ते सुगना से छिपे न थे। और लाली जब सोनू के कारनामे सुगना को बताती तो सुगना बिना उत्साह दिखाए लाली की बातें सुनती जरूरत थी उसका छोटा भाई एक युवक बन रहा था इस बात की उसे खुशी थी। पर आज वह कुछ गलत सोच पाने की स्थिति में न थी। वह उसका इंतजार कर रही महिलाओं के झुंड में आ गई।

सोनू अपनी बहन सुगना को इस तरह सोलह श्रंगार धारण किए हुए खूबसूरत लहंगा और चोली में कई दिनों बाद देख रहा था। उसे सुगना एक आदर्श बहू के रूप में दिखाई दे रही थी। वह सुगना की नाइटी में घिरी कामुक काया के दर्शन कई बार कर चुका था और एक बार लाली समझ कर उसे पीछे आकर उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे उठा भी चुका था। परंतु सुगना के आज के दिव्य रूप और वह मादक सुगंध उसके दिलो-दिमाग पर छा गई थी।


गांव की महिलाएं इकट्ठा हो चुकी थी। कुछ ही देर में उनका काफिला कुलदेवता के स्थान पर जाने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।

रतन पुरे उत्साह से लवरेज महिलाओं के समूह के पीछे पीछे चल रहा था। सुगना उसकी नजरों से ओझल हो रही थी बीच-बीच में वह उसकी झलक देखता। सरयू सिंह अपनी पुत्री सुगना के भावी जीवन को लेकर आश्वस्त हो रहे थे।


ऊपर वाले ने आखिर सुगना को उसके पति से मिला दिया था और आज की पूजा के पश्चात पति पत्नी पुराने कर्मों को बुलाकर एक होने को सहर्ष तैयार थे।

इस आयोजन से सर्वाधिक खुश रतन था या उसकी मां कजरी यह कहना कठिन था। रतन की खुशी में कामुकता का भी हम योगदान था। रतन सुगना से प्रेम तो अवश्य करने लगा था परंतु उस प्रेम के मूल में रतन की पूर्व पत्नी बबीता की बेवफाई और भोली भाली सुगना का मदमस्त यौवन था।


इसके उलट कजरी दिल से खुश थी उसकी खुशी अपने पुत्र प्रेम से प्रेरित थी सुगना को उसने अपनी बहू के रूप में पहले ही स्वीकार कर लिया था और अब रतन और सुगना को जोड़े में देखकर वह फूली नहीं समा रही थी। रतन और सुगना ने विधि विधान से कुल देवता की पूजा संपन्न की..।

पूजा के पश्चात रतन और सुगना सभी बुजुर्ग जनों का पैर छू छूकर आशीर्वाद ले रहे थे सरयू सिंह ने दिल से अपनी पुत्री और रतन को खुश रहने का आशीर्वाद दिया। यद्यपि उनके मन मे छुपी हुई वासना कोमा में थी परंतु रह रह कर अपने जीवित होने का एहसास करा रही थी उनकी आंखों में सुगना के उभारों का अंदाजा लगाने की कोशिश की। सरयू सिंह ने स्वयं पर काबू किया और अपनी पलकें बंद लीं।

सुगना की मां पदमा भी बेहद प्रसन्न थी और रतन के आने के पश्चात वह सरयू सिंह और सुगना के बीच जो कुछ भी हुआ था वह उसे भूल जाना चाहती थी।

पूजा समाप्त होने के पश्चात रतन और सुगना को आगे के कार्यक्रम की विधि की जानकारी देने के लिए कुल देवता के स्थल के पीछे बने चबूतरे पर ले जाया गया घर परिवार के सभी सदस्य दूर से ही रतन और सुगना को देख रहे थे दोनों अपनी नजरें झुकाये पीछे खड़े गुरु जिसने कुल देवता की पूजा कराई थी के निर्देश सुन रहे थे.

"आपके कुल में संतानोत्पत्ति के पश्चात की जाने वाली इस पूजा का विशेष महत्व है पुरखों ने जो विधि बताई है मैं उसे अक्षरसः आपको बताता हूं इसे ध्यान से सुनिएगा और उसके अनुसार अमल कीजिएगा यह आपके परिवार की वंशवेल और परिवार की मान प्रतिष्ठा बनाए रखेगा...

पति को अपनी पत्नी को अपनी गोद में लेकर शयन कक्ष में ले जाना है उसे अपने हाथों से भोजन कराना है और कुछ समय उसे विश्राम करने देना है ताकि पत्नी अपनी संतान को दूध आदि पिला सके।


इसके पश्चात शयन कक्ष में आकर स्वयं और पत्नी को पूरी तरह निर्वस्त्र करना है। यदि शर्म और हया अब भी कायम हो तो एकवस्त्र जैसे स्त्री लाल साड़ी और पुरुष पीली धोती का प्रयोग कर सकता है।

पूजा में चढ़ाया गया मधु (शहद) कटोरी में आपके बिस्तर के किनारे रखा हुआ मिलेगा आप दोनों को एक दूसरे के सिर्फ जननांगों पर उस मधु को अपनी मध्यमा उंगली से लगाना है। लिंग और योनि पूरी तरह से मधु से आच्छादित होनी चाहिए इसके अलावा अन्य किसी भाग पर मधु का स्पर्श नहीं होना चाहिए इसलिए मधु का लेप करते समय सावधानी बरतना आवश्यक है।

इसके पश्चात स्त्री और पुरुष एक दूसरे के जननांगों पर लगाए गए मधु को अपनी जिह्वा और होंठों के प्रयोग से चाट कर उसे मूल स्थिति में ले आएंगे याद रहे जननांगों पर मधु की मिठास शेष नहीं रहनी चाहिए।

इस दौरान दोनों पति पत्नी अपने होंठ एक दूसरे से सटाकर या चूम कर मिठास का आकलन कर सकते हैं।

जननांगों और होठों से मिठास पूरी तरह हटने के पश्चात आप दोनों संभोग कर सकते हैं याद रहे जब तक स्त्री की योनि स्खलित नहीं होती है आपको संभोग करते रहना है।

आपकी पूजा तभी सफल मानी जाएगी जब पत्नी स्खलन को प्राप्त करेगी।

पुरुष यदि चाहे तो पूजा में चढ़ाए गए विशेष प्रसाद का उपयोग अपनी इच्छानुसार कर सकता है। इस विशेष प्रसाद को खाने से पुरुष लिंग में उत्तेजना भर जाती है स्त्री को स्खलित करने में सहायक होगी। गुरु ने प्रसाद की एक पोटली रतन की गोद में डाल दी।

आप दोनों के बीच आज हुआ यह संबंध आपके आने वाले वैवाहिक जीवन के लिए एक नई ऊर्जा प्रदान करेगा।

अब आप दोनों जा सकते हैं।

जब तक सुगना और रतन गुरु ज्ञान ले रहे थे कजरी ने सोनी और मोनी को घर पर तैयारियां करने के लिए भेज दिया था।

सोनी और मोनी ने घर आकर गेंदे के फूलों कि कुछ लड़यों से सुगना के पलंग को सजाने का प्रयास किया था परंतु फूलों का अभाव सोनी के मन में सुहाग की सेज की छवि को किसी भी सूरत में पूरा नहीं कर पाया था।


सोनी अति उत्साह से सुगना के रतियुद्ध का स्थल सजाने में लगी हुई थी वही मोनी को यह सब व्यर्थ प्रतीत हो रहा था। आखिर कोई विवाह के 4 साल बाद यह सब करता है क्या? मन में जब कामुकता न हो कई क्रियाकलाप व्यर्थ प्रतीत होते हैं यही हाल मोनी का था। जाने नियति ने उसे सुंदर काया और मृदुल व्यवहार तो दिया था पर स्त्री सुलभ कामुकता और पुरुष आकर्षण क्यों हर लिया था?

सोनी और मोनी वापस पूजा स्थल की तरफ निकलने लगी तभी मोनी ने कहा

"उ शहद के कटोरी ना रखलू हा"

सोनी शहद की कटोरी उठा कर लाई और उसे बिस्तर के सिरहाने रख दिया। शहद को लेकर उसकी उत्सुकता अब भी कायम थी उसने मोनी से पूछा..

"आज के दिन ई लोग अतना शहद का करी?"

सोनी का यह प्रश्न ठीक वैसा ही था जैसे क्लास का कोई मेरिटोरियस बच्चा किसी कमजोर बच्चे से अपनी उत्सुकता मिटाने के लिए प्रश्न पूछ रहा हो..

मोनी ने कोई उत्तर न दिया। यदि सोनी सचमुच उस शहद के प्रयोग के बारे में जान जाती तो न जाने क्या करते उसका मन और तन दोनों ही कामुकता से भरा हुआ रहता और मुखमैथुन की इस अद्भुत विधि को जानकर वह निश्चित ही अधीर हो उठती। सोनी के भाग्य में सुख क्रमशः ही आने थे और शायद यह उचित भी था।


उधर सभी बुजुर्गों से आशीर्वाद लेने के पश्चात रतन और सुगना अब वापस घर जाने की तैयारी में थे रतन ने जितनी सेवा सुगना की की थी उसका फल मिलने का वक्त आ रहा था। सुगना स्वयं भी उस पल का इंतजार कर रही थी।

पड़ोस की भाभी ने रतन से कहा..

"अब का देखा तारा उठाव सुगना के गोदी में और ले जा घर…... " रतन को लगा जैसे उसकी मुराद पूरी हो रही हो। उसके शैतान मन् ने भाभी की बात में यह वाक्यांश जोड़ लिए "…..कस के चोदा..".

सुगना ने हाथ में ली हुई पूजा की थाली कजरी की तरफ बढ़ाई और रतन के हाथों ने सुगना की पीठ और नितंबों के नीचे अपनी जगह तलाश की। अगले ही पल सुगना रतन की मजबूत भुजाओं में आ चुकी थी रतन उसे उठाए हुए घर की तरफ चलने लगा।


कुछ ही पलों में रतन की हथेलियों ने सुगना की जांघो की कोमलता और कठोरता का अनुमान लगाना शुरू कर दिया। कभी लहंगे के पीछे सुगना की जाँघे उसे मांसल और कठोर प्रतीत होती कभी वह उसे रेशम जैसी मुलायम प्रतीत होती।

वह अपनी हथेलियां थोड़ा आगे पीछे करता और सुगना उसे आँखे दिखाते हुए उसे रोकने का प्रयास करती। रतन की हथेलियां रुक जाती और सुगना मुस्कुराते हुए अपनी पलके झुका लेती। रतन का बाया हाथ सुगना की पीठ से होते हुए पेट तक पहुंचा था। यदि उसकी उंगलियां ऊपर की तरफ बढ़ती तो वह निश्चित ही चुचियों से टकरा जाती।। सुगना के कोमल पेट का स्पर्श रतन के लिए अद्भुत था। सुगना की कोमल त्वचा का यह स्पर्श उसके दिलो-दिमाग मे उत्तेजना भर रहा था जिसका सीधा असर उसके लण्ड पर पढ़ रहा था जो धीरे-धीरे अपना आकार बड़ा कर रतन को असहज कर रहा था। दोनों हाथ व्यस्त होने की वजह से वह उसे दिशा देने में कामयाब नहीं हो रहा था। उसने सुगना को अपनी तरफ खींचा और सुगना के द्वारा लण्ड को सही जगह पहुंचाने की कोशिश की।


सुगना की कमर पर वह दबाव स्पष्ट रूप से महसूस हुआ। सुगना उस भाग से भलीभांति परिचित थी। उसके तने हुए लण्ड को महसूस कर सुगना रतन की असहजता समझ गयी। उसके मन में आया वह स्वयं अपने हाथों से रतन के लण्ड को ऊपर की दिशा दे दे परंतु वह ऐसा न कर पायी।

अपने लण्ड को तसल्ली देते हुए रतन सुगना को लिए लिए शयन कक्ष में आ गया किसी युवा स्त्री को कुछ पल के लिए गोद में उठाना आनंद का विषय हो सकता है पर उसे 100 - 200 मीटर लेकर चलना इतना आसान न था रतन जैसा मजबूत व्यक्ति हांफने लगा था। यह तो सुनना की मदमस्त चूत थी जिसने रतन में उत्साह भरा हुआ था….

सुगना ने रतन की हथेलियों को अपने हाथों में लिया और चुम लिया। रतन बेहद खुश था। सुगना का यह स्पर्श और चुंबन आत्मीयता से भरा हुआ था।


कुछ ही देर में सोनी थाली में कई पकवान लिए अंदर आ गई। पूजा प्रसाद का पहला भोग रतन और सुगना को की ही करना था। थाली में मालपुए को देखकर सुगना सरयू सिंह के बारे में सोचने लगी।

मालपुआ शब्द और सुगना की बुर दोनों की उपमा सरयू सिंह को बेहद पसंद थी। वह जब भी सुगना की बुर को अपने होठों से दबाते बुर पानी छोड़ देती और सरयू सिंह मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखकर कहते

" देखा ताहर मालपुआ से चाशनी बाहर आ गईल"


सुगना उनके सर को ऊपर खींचती और पेट पर सटा लेती पर उनसे नजरे ना मिलाती..

"का सोचे लगलु?"

रतन ने सुगना का ध्यान भंग करते हुए पूछा…


शेष अगले भाग में….
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भाग - 68

नियति सलेमपुर में सुगना की पूजा की तैयारियों में लग गई। काश कि दोनों सहेलियां इस पूजा में शामिल हो पाती? एक सुहागन एक विधवा परंतु दोनों में कुछ समानता अवश्य थी।

एक तरफ सुगना का वास्तविक सुहाग उजड़ चुका था। उसके बाबूजी सरयू सिंह जिसके साथ उसने अपने वैवाहिक जीवन के सुखद वर्ष बिताए थे वह अचानक ही वैराग्य धारण कर चुके थे। सुगना को यह एक विशेष प्रकार का वैधव्य ही प्रतीत हो रहा था। यह अलग बात थी कि प उस में कामेच्छा जगाने वाला उसका पति रतन आ चुका था और वह सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

कमोबेश यही स्थिति लाली की भी थी उसका पति राजेश अपना शरीर छोड़ चुका था और अपने स्थान पर सोनू को लाली से मिलाकर उसकी कामेच्छा पूरी करने के लिए छोड़ गया था।


नियति अपनी उधेड़बुन में लगी लाली को तृप्त करने का संयोग जुटाने लगी… सुगना रतन बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगे…

अब आगे...

रतन का इंतजार खत्म होने वाला था । विशेष पूजा के लिए रतन, सुगना और सोनी के संग चार दिन पहले ही सलेमपुर आ गया उसे इस उत्सव की तैयारियों में अपने चाचा सरयू सिंह का हाथ भी बटाना था।

सुगना की मां पदमा भी अपनी पुत्री मोनी के साथ सलेमपुर आ चुकी थी सरयू सिंह का भरा पूरा परिवार आंगन में बैठकर बातचीत कर रहा था तरह-तरह की बातें... तरह तरह के गीत गाए.. जा रहे थे। कजरी सोनी और मोनी को छेड़ रही थी और बार-बार उनके विवाह का जिक्र कर रही थी। मोनी को तो विवाह शब्द से कोई सरोकार न था परंतु विवाह का नाम सुनते ही सोनी सतर्क हो जाती। यद्यपि उसे यह बात पता थी कि बिना नर्सिंग की पढ़ाई पूरी किए उसका विवाह नहीं होना था परंतु कल्पना का क्या? उसका अल्लढ़ मन विवाह और उसकी उपयोगिता को भलीभांति समझता था। वह मन ही मन विकास से विवाह करने और जी भर कर चुदने को पूरी तरह तैयार थी।

सरयू सिंह दरवाजे पर आने वाले मेहमानों का स्वागत कर रहे थे और आने वाले मेहमानों से उपहार और न्योता ग्रहण कर रहे थे। जब जब वह अंदर आंगन में आते सारी महिलाएं सतर्क हो जाती।


कजरी जान चुकी थी कि अब सरयू सिंह और सुगना के बीच कोई कामुक संबंध नहीं है उसे इस बात की बेहद खुशी थी। परंतु सुगना ...आह ...उसके मन में सरयू सिंह को देखकर अब भी एक कसक सी उठती थी।

देखते ही देखते पूजा का दिन आ गया। सुगना और रतन दोनों ने ही इस पूजा के लिए उपवास रखा था। सरयू सिंह ने कजरी से कहा "सुगना बेटा के शरबत पिला दिया तब से भूखल होइ"

सुगना सरयू सिंह के प्रेम की हमेशा से कायल थी परंतु प्रेम का यह परिवर्तित रूप पता नहीं क्यों उसे रास नहीं आ रहा था। उसने जिस रूप में सरयू सिंह को देखा था वह उन्हें उसी रूप में चाहती थी यह नया रूप उसके लिए अटपटा था।

उसका दिलो-दिमाग और तन बदन सरयू सिंह को पिता रूप में देखने के लिए कतई तैयार न था। जिस पुरुष से सुगना तरह-तरह के आसनों में चुदी थी और वासना के अतिरेक को देखा था उसे पिता रूप में स्वीकार उसके बस में न था।

पद्मा (सुगना की मां) ने सुगना से पूछा

"सोनू ना आई का?"

" कहले तो रहे हो सकता लाली के लेकर आई "

पदमा अपने पुत्र को देखने के लिए लालायित थी।

कजरी ने आकाश की तरफ देखा । सूर्य अपना तेज खो रहा था। पूजा का समय हो रहा था।

उसने सोनी से कहा…

"ए सोनी जा अपना दीदी के तैयार करा द"

सुगना के दिमाग में अभी भी सरयू सिंह ही चल रहे थे उसने कहां

" ते रहे दे सोनी हम तैयार हो जाएब"

" सोनी के लेले जो अलता नेलपॉलिश लगा दी"

आखिरकार सोनी और सुगना अपनी कोठरी में आ गई।

रतन सुगना के लिए गुलाबी लहंगा और चोली लाया था और साथ में जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी भी थी।

वह अपनी पत्नी के साथ अपना प्रथम मिलन यादगार बनाना चाहता था।

कमरे में अपने पलंग को देखकर सुगना के दिमाग में पुरानी यादें घूमने लगी इस पलंग पर वह अपने बाबूजी सरयू सिंह से न जाने कितनी बार चुदी थी उसे खुद भी ध्यान न था। दिन में कभी दो बार कभी-कभी तीन- चार बार ... और आज इसी पलंग पर उसे रतन के सामने प्रस्तुत होना था। सुगना खोई खोई सी थी। उसके मन का द्वंद उसे कभी परेशान करता कभी उसकी बुर भावनाओं के झंझावात को भुलाकर चुदने के लिए अपने होठों पर मदन रस ले आती।

सोनी सुगना के कपड़े झोले में से निकालने लगी। गुलाबी रंग का लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत था..

"कितना सुंदर बा" सोनी विस्मित होते हुए बोली


सचमुच वह लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत था और जिसे उसे धारण करना था उसकी खूबसूरती इस लहंगा चोली से भी दोगुनी थी।

सुगना को वह लहंगा चोली देखकर उस दिन की याद आ गई जब उसके लहंगे में कीड़ा घुसा था और जिसे निकालते निकालते उसके बाबुजी सरयू सिंह ने पहली बार उसके अनछुए और कोमल मालपुए (सुगना की बुर) के प्रथम दर्शन किए थे।

"ए दीदी कितना सुंदर बा" सोनी की बात सुनकर सुगना घबरा गई। सुगना अपना हाथ अपनी जांघों के बीच ले आए और अपनी उस बुर को छुपाने लगी जो उसके दिमाग में घूम रही थी। उसने सोनी की तरफ देखा जो रतन द्वारा लाए गए जालीदार ब्रा और पेंटी को हाथ में लेकर लहलाते हुए बोली..

"सुगना शर्म से पानी पानी हो गई" रतन पहली बार में ही उसे ऐसी ब्रा और पेंटी लाकर देगा इसका अंदाजा उसे ना था ऊपर से वह सोनी के हाथों में लग गई थी। "चल रख दे हम उ ना पहनब"

"अरे वाह काहे ना पहिनबु जीजा जी अतना शौक से ले आईल बाडे" सोनी सुगना से खुलने का प्रयास कर रही थी।

सुगना मन ही मन तैयार तो थी परंतु वह सोनी के सामने उसे पहनने में असहज महसूस कर रही थी। उसने सोनी को आलता लेने भेजा और जब तक वह वापस आती रतन द्वारा लायी जालीदार पैंटी सुगना की बुर चूम रही थी….

ब्रा भी चुचियों पर फिट आ रही थी। सोनी सुगना को देखती रह गयी। कितनी खूबसूरत थी सुगना… दो बच्चों को जन्म देने के बाद भी उसके कमर के कटाव वैसे ही थे बल्कि और मादक हो गए थे। पतली कमर सपाट पेट मे थोड़ा उभार अवश्य आया था जो उसे किशोरी से वयस्क की श्रेणी में ले आया था।


यदि कोई ऋषि महर्षि सुगना को उसी अवस्था में जड़ होने का श्राप देते तो वह पाषाण मूर्ति बनी खजुराहो के मंदिरों में जड़ी हुयी काल कालांतर तक युवाओं में उत्तेजना भर रही होती।

लहंगे में छुपी उसकी खूबसूरत जाँघे ऐसे तो नजर न आती पर सुगना जैसे ही अपने पैर आगे बढ़ाते जांघो का आकार स्पष्ट नजर आने लगता। सोनी ने सुगना के पैरों में आलता लगाया पाजेब पहनायी। उसकी शादी के गहने पहनाए। रतन द्वारा विवाह के समय दिया गया मंगलसूत्र भी पहनाया पर सुगना ने सरयू सिह द्वारा दीपावली के दिन दी हुयी सोने की चैन को ना उतारा। वह उसकी पहली चुदाई की निशानी थी।

रतन द्वारा दिए गए झोले को सुगना ने हटाने की कोशिश की और उसमें एक शीशी को देख कर चौक उठी। उसने वह छोटी सी शीशी निकाली और उसमें रखे द्रव्य का अनुमान लगाने लगी। जब वह उसे अपनी आंखों से समझ न पहचान पाई उसने अपनी घ्राण शक्ति का प्रयोग किया और जैसे ही वह शीशी उसने अपने नाक के पास लायी उसकी मदमस्त खुशबू से सुगना भाव विभोर हो गयी।

सुगना ने इत्र के बारे में सुना जरूर था पर आज तक उसका प्रयोग नहीं किया था।। पर रतन मुंबई में जाकर इन सब आधुनिक साज सज्जा और रास रंग के सामग्रियों से बखूबी परिचित हो चुका था। रतन की पहली पत्नी बबीता सजने सवरने में माहिर थी।


सुगना ने इत्र की शीशी खोली और उसे अपने घाघरा और चोली पर लगाती गयी। जैसे-जैसे इत्र उसके वस्त्रों से टकराता गया कमरे में भीनी भीनी खुशबू फैलती गई। सुगना के मन में अचानक उसकी स्वभाविक कामुकता जागृत हो गई उसमें अपने हाथों में इत्र लिया और अपने घागरे में हाथ डालकर अपनी जालीदार पेंटी परमल दिया। वह रतन द्वारा लाए गए इत्र को योनि पूजा का भाग बनाना चाह रही थी हो सकता है उसने सोचा रतन ने यह इत्र उसी लिए लाया हो। सुगना आज मिलन के लिए पूरी तरह तैयार थी।

कुछ ही देर में सजी धजी सुगना आंगन में आ चुकी थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई अप्सरा सज धज कर उस मिट्टी के घर के आंगन में उतर आई हो….

सुगना की मां पदमा ने सुगना के कान के नीचे काजल से काला टीका लगाया और बोली

"हमरा फूल जैसी बेटी के नजर मत लागो"

कजरी ने सुगना को गले से लगा लिया और उसके कान में बोली

"बेटा अब रतन के अपना ला"

"हां मां" सुगना ने कजरी को आश्वस्त किया और बाहर ढोल नगाड़ों की आवाज आनी शुरू हो गई थी। कुल देवता की पूजा करने जाने का वक्त हो चुका था।

ग्रामीण परिवेश में ढोल नगाड़ों का विशेष योगदान है इनका बजना यह साबित करता है कि अब समय हो गया है और देर करना उचित नहीं। जैसे ही ढोल नगाड़े बजने लगते हैं घर के पुरुष वर्ग महिलाओं पर लगातार बाहर निकलने के लिए दबाव बनाते हैं परंतु वह अपने रास रंग में डूबी हुई बार-बार न चाहते हुए भी देर करती रहती हैं।

सुगना आंगन से बाहर निकलकर दालान में आ चुकी थी। वह सरयू सिंह की तरफ बढ़ रही थी सरयू सिंह सुगना को देखकर हक्के बक्के रह गए। सुगना बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसे गुलाबी रंग के लहंगे और चोली में देखकर उन्हें एक बार फिर वही सुगना याद आ गई जिसके लहंगे से कीड़े को निकलते समय उसकी बुर् के दर्शन किए थे.

यदि निष्ठुर नियत ने सरयू सिंह के संज्ञान में यह बात ना लाई होती कि सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है तो सुगना की मदमस्त जवानी को आज भोगने की तैयारी कर रहे होते और रतन को सुनना के आसपास भी न फटकने देते।

सुगना ने उनके चरण छुए और सरयू सिंह ने अपनी आंखें बंद कर उसे जी भर कर आशीर्वाद दिया आज आलिंगन के लिए कोई स्थान न था। आलिंगन की पहल इस बार सुगना ने भी नहीं की।

जैसे ही सुगना उठकर पीछे पलटी सोनू सामने खड़ा था "अतना देर कहां रह गईले हा"

"लाली दीदी देर कर देली हा"

सुगना लाली का नाम सुनकर चुप रह गई उस बेचारी के जीवन में दुख की घड़ी चल रही थी।

सोनू सुगना के पैर छूने के लिए झुका उसका चेहरा सुगना की कमर और जांघों के जैसे ही करीब पहुंचा रतन द्वारा लाए गए इत्र की खुशबू जो सुगना ने अपनी जांघों के बीच भी लगाया हुआ था सोनू के नथुने से जा टकराई क्या मदमस्त खुशबू थी सोनू ने सुगना के पैर छुए पर उस सुगंध के मोहपाश में घिर गया उसने उठने में कुछ देर कर दी।

सुगना ने उसके सर पर मीठी चपत लगाई और बोली..

"चल अब उठ जा देर हो गईल तो कोई बात नहीं." लाली ने अपने बेटे सूरज का हांथ सोनू को देते हुए कहा सूरज के अपना साथे रखिहे"

सुगना ने बड़ी की संजीदगी से सोनू की गलती पर पर्दा डाल दिया था। सुगना सोच रही थी कि आखिर सोनू ने उठने में इतनी देर क्यों की?। सोनू कामुक था यह बात सुगना भली-भांति जानती थी लाली से उसके रिश्ते सुगना से छिपे न थे। और लाली जब सोनू के कारनामे सुगना को बताती तो सुगना बिना उत्साह दिखाए लाली की बातें सुनती जरूरत थी उसका छोटा भाई एक युवक बन रहा था इस बात की उसे खुशी थी। पर आज वह कुछ गलत सोच पाने की स्थिति में न थी। वह उसका इंतजार कर रही महिलाओं के झुंड में आ गई।

सोनू अपनी बहन सुगना को इस तरह सोलह श्रंगार धारण किए हुए खूबसूरत लहंगा और चोली में कई दिनों बाद देख रहा था। उसे सुगना एक आदर्श बहू के रूप में दिखाई दे रही थी। वह सुगना की नाइटी में घिरी कामुक काया के दर्शन कई बार कर चुका था और एक बार लाली समझ कर उसे पीछे आकर उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे उठा भी चुका था। परंतु सुगना के आज के दिव्य रूप और वह मादक सुगंध उसके दिलो-दिमाग पर छा गई थी।


गांव की महिलाएं इकट्ठा हो चुकी थी। कुछ ही देर में उनका काफिला कुलदेवता के स्थान पर जाने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।

रतन पुरे उत्साह से लवरेज महिलाओं के समूह के पीछे पीछे चल रहा था। सुगना उसकी नजरों से ओझल हो रही थी बीच-बीच में वह उसकी झलक देखता। सरयू सिंह अपनी पुत्री सुगना के भावी जीवन को लेकर आश्वस्त हो रहे थे।


ऊपर वाले ने आखिर सुगना को उसके पति से मिला दिया था और आज की पूजा के पश्चात पति पत्नी पुराने कर्मों को बुलाकर एक होने को सहर्ष तैयार थे।

इस आयोजन से सर्वाधिक खुश रतन था या उसकी मां कजरी यह कहना कठिन था। रतन की खुशी में कामुकता का भी हम योगदान था। रतन सुगना से प्रेम तो अवश्य करने लगा था परंतु उस प्रेम के मूल में रतन की पूर्व पत्नी बबीता की बेवफाई और भोली भाली सुगना का मदमस्त यौवन था।


इसके उलट कजरी दिल से खुश थी उसकी खुशी अपने पुत्र प्रेम से प्रेरित थी सुगना को उसने अपनी बहू के रूप में पहले ही स्वीकार कर लिया था और अब रतन और सुगना को जोड़े में देखकर वह फूली नहीं समा रही थी। रतन और सुगना ने विधि विधान से कुल देवता की पूजा संपन्न की..।

पूजा के पश्चात रतन और सुगना सभी बुजुर्ग जनों का पैर छू छूकर आशीर्वाद ले रहे थे सरयू सिंह ने दिल से अपनी पुत्री और रतन को खुश रहने का आशीर्वाद दिया। यद्यपि उनके मन मे छुपी हुई वासना कोमा में थी परंतु रह रह कर अपने जीवित होने का एहसास करा रही थी उनकी आंखों में सुगना के उभारों का अंदाजा लगाने की कोशिश की। सरयू सिंह ने स्वयं पर काबू किया और अपनी पलकें बंद लीं।

सुगना की मां पदमा भी बेहद प्रसन्न थी और रतन के आने के पश्चात वह सरयू सिंह और सुगना के बीच जो कुछ भी हुआ था वह उसे भूल जाना चाहती थी।

पूजा समाप्त होने के पश्चात रतन और सुगना को आगे के कार्यक्रम की विधि की जानकारी देने के लिए कुल देवता के स्थल के पीछे बने चबूतरे पर ले जाया गया घर परिवार के सभी सदस्य दूर से ही रतन और सुगना को देख रहे थे दोनों अपनी नजरें झुकाये पीछे खड़े गुरु जिसने कुल देवता की पूजा कराई थी के निर्देश सुन रहे थे.

"आपके कुल में संतानोत्पत्ति के पश्चात की जाने वाली इस पूजा का विशेष महत्व है पुरखों ने जो विधि बताई है मैं उसे अक्षरसः आपको बताता हूं इसे ध्यान से सुनिएगा और उसके अनुसार अमल कीजिएगा यह आपके परिवार की वंशवेल और परिवार की मान प्रतिष्ठा बनाए रखेगा...

पति को अपनी पत्नी को अपनी गोद में लेकर शयन कक्ष में ले जाना है उसे अपने हाथों से भोजन कराना है और कुछ समय उसे विश्राम करने देना है ताकि पत्नी अपनी संतान को दूध आदि पिला सके।


इसके पश्चात शयन कक्ष में आकर स्वयं और पत्नी को पूरी तरह निर्वस्त्र करना है। यदि शर्म और हया अब भी कायम हो तो एकवस्त्र जैसे स्त्री लाल साड़ी और पुरुष पीली धोती का प्रयोग कर सकता है।

पूजा में चढ़ाया गया मधु (शहद) कटोरी में आपके बिस्तर के किनारे रखा हुआ मिलेगा आप दोनों को एक दूसरे के सिर्फ जननांगों पर उस मधु को अपनी मध्यमा उंगली से लगाना है। लिंग और योनि पूरी तरह से मधु से आच्छादित होनी चाहिए इसके अलावा अन्य किसी भाग पर मधु का स्पर्श नहीं होना चाहिए इसलिए मधु का लेप करते समय सावधानी बरतना आवश्यक है।

इसके पश्चात स्त्री और पुरुष एक दूसरे के जननांगों पर लगाए गए मधु को अपनी जिह्वा और होंठों के प्रयोग से चाट कर उसे मूल स्थिति में ले आएंगे याद रहे जननांगों पर मधु की मिठास शेष नहीं रहनी चाहिए।

इस दौरान दोनों पति पत्नी अपने होंठ एक दूसरे से सटाकर या चूम कर मिठास का आकलन कर सकते हैं।

जननांगों और होठों से मिठास पूरी तरह हटने के पश्चात आप दोनों संभोग कर सकते हैं याद रहे जब तक स्त्री की योनि स्खलित नहीं होती है आपको संभोग करते रहना है।

आपकी पूजा तभी सफल मानी जाएगी जब पत्नी स्खलन को प्राप्त करेगी।

पुरुष यदि चाहे तो पूजा में चढ़ाए गए विशेष प्रसाद का उपयोग अपनी इच्छानुसार कर सकता है। इस विशेष प्रसाद को खाने से पुरुष लिंग में उत्तेजना भर जाती है स्त्री को स्खलित करने में सहायक होगी। गुरु ने प्रसाद की एक पोटली रतन की गोद में डाल दी।

आप दोनों के बीच आज हुआ यह संबंध आपके आने वाले वैवाहिक जीवन के लिए एक नई ऊर्जा प्रदान करेगा।

अब आप दोनों जा सकते हैं।

जब तक सुगना और रतन गुरु ज्ञान ले रहे थे कजरी ने सोनी और मोनी को घर पर तैयारियां करने के लिए भेज दिया था।

सोनी और मोनी ने घर आकर गेंदे के फूलों कि कुछ लड़यों से सुगना के पलंग को सजाने का प्रयास किया था परंतु फूलों का अभाव सोनी के मन में सुहाग की सेज की छवि को किसी भी सूरत में पूरा नहीं कर पाया था।


सोनी अति उत्साह से सुगना के रतियुद्ध का स्थल सजाने में लगी हुई थी वही मोनी को यह सब व्यर्थ प्रतीत हो रहा था। आखिर कोई विवाह के 4 साल बाद यह सब करता है क्या? मन में जब कामुकता न हो कई क्रियाकलाप व्यर्थ प्रतीत होते हैं यही हाल मोनी का था। जाने नियति ने उसे सुंदर काया और मृदुल व्यवहार तो दिया था पर स्त्री सुलभ कामुकता और पुरुष आकर्षण क्यों हर लिया था?

सोनी और मोनी वापस पूजा स्थल की तरफ निकलने लगी तभी मोनी ने कहा

"उ शहद के कटोरी ना रखलू हा"

सोनी शहद की कटोरी उठा कर लाई और उसे बिस्तर के सिरहाने रख दिया। शहद को लेकर उसकी उत्सुकता अब भी कायम थी उसने मोनी से पूछा..

"आज के दिन ई लोग अतना शहद का करी?"

सोनी का यह प्रश्न ठीक वैसा ही था जैसे क्लास का कोई मेरिटोरियस बच्चा किसी कमजोर बच्चे से अपनी उत्सुकता मिटाने के लिए प्रश्न पूछ रहा हो..

मोनी ने कोई उत्तर न दिया। यदि सोनी सचमुच उस शहद के प्रयोग के बारे में जान जाती तो न जाने क्या करते उसका मन और तन दोनों ही कामुकता से भरा हुआ रहता और मुखमैथुन की इस अद्भुत विधि को जानकर वह निश्चित ही अधीर हो उठती। सोनी के भाग्य में सुख क्रमशः ही आने थे और शायद यह उचित भी था।


उधर सभी बुजुर्गों से आशीर्वाद लेने के पश्चात रतन और सुगना अब वापस घर जाने की तैयारी में थे रतन ने जितनी सेवा सुगना की की थी उसका फल मिलने का वक्त आ रहा था। सुगना स्वयं भी उस पल का इंतजार कर रही थी।

पड़ोस की भाभी ने रतन से कहा..

"अब का देखा तारा उठाव सुगना के गोदी में और ले जा घर…... " रतन को लगा जैसे उसकी मुराद पूरी हो रही हो। उसके शैतान मन् ने भाभी की बात में यह वाक्यांश जोड़ लिए "…..कस के चोदा..".

सुगना ने हाथ में ली हुई पूजा की थाली कजरी की तरफ बढ़ाई और रतन के हाथों ने सुगना की पीठ और नितंबों के नीचे अपनी जगह तलाश की। अगले ही पल सुगना रतन की मजबूत भुजाओं में आ चुकी थी रतन उसे उठाए हुए घर की तरफ चलने लगा।


कुछ ही पलों में रतन की हथेलियों ने सुगना की जांघो की कोमलता और कठोरता का अनुमान लगाना शुरू कर दिया। कभी लहंगे के पीछे सुगना की जाँघे उसे मांसल और कठोर प्रतीत होती कभी वह उसे रेशम जैसी मुलायम प्रतीत होती।

वह अपनी हथेलियां थोड़ा आगे पीछे करता और सुगना उसे आँखे दिखाते हुए उसे रोकने का प्रयास करती। रतन की हथेलियां रुक जाती और सुगना मुस्कुराते हुए अपनी पलके झुका लेती। रतन का बाया हाथ सुगना की पीठ से होते हुए पेट तक पहुंचा था। यदि उसकी उंगलियां ऊपर की तरफ बढ़ती तो वह निश्चित ही चुचियों से टकरा जाती।। सुगना के कोमल पेट का स्पर्श रतन के लिए अद्भुत था। सुगना की कोमल त्वचा का यह स्पर्श उसके दिलो-दिमाग मे उत्तेजना भर रहा था जिसका सीधा असर उसके लण्ड पर पढ़ रहा था जो धीरे-धीरे अपना आकार बड़ा कर रतन को असहज कर रहा था। दोनों हाथ व्यस्त होने की वजह से वह उसे दिशा देने में कामयाब नहीं हो रहा था। उसने सुगना को अपनी तरफ खींचा और सुगना के द्वारा लण्ड को सही जगह पहुंचाने की कोशिश की।


सुगना की कमर पर वह दबाव स्पष्ट रूप से महसूस हुआ। सुगना उस भाग से भलीभांति परिचित थी। उसके तने हुए लण्ड को महसूस कर सुगना रतन की असहजता समझ गयी। उसके मन में आया वह स्वयं अपने हाथों से रतन के लण्ड को ऊपर की दिशा दे दे परंतु वह ऐसा न कर पायी।

अपने लण्ड को तसल्ली देते हुए रतन सुगना को लिए लिए शयन कक्ष में आ गया किसी युवा स्त्री को कुछ पल के लिए गोद में उठाना आनंद का विषय हो सकता है पर उसे 100 - 200 मीटर लेकर चलना इतना आसान न था रतन जैसा मजबूत व्यक्ति हांफने लगा था। यह तो सुनना की मदमस्त चूत थी जिसने रतन में उत्साह भरा हुआ था….

सुगना ने रतन की हथेलियों को अपने हाथों में लिया और चुम लिया। रतन बेहद खुश था। सुगना का यह स्पर्श और चुंबन आत्मीयता से भरा हुआ था।


कुछ ही देर में सोनी थाली में कई पकवान लिए अंदर आ गई। पूजा प्रसाद का पहला भोग रतन और सुगना को की ही करना था। थाली में मालपुए को देखकर सुगना सरयू सिंह के बारे में सोचने लगी।

मालपुआ शब्द और सुगना की बुर दोनों की उपमा सरयू सिंह को बेहद पसंद थी। वह जब भी सुगना की बुर को अपने होठों से दबाते बुर पानी छोड़ देती और सरयू सिंह मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखकर कहते

" देखा ताहर मालपुआ से चाशनी बाहर आ गईल"


सुगना उनके सर को ऊपर खींचती और पेट पर सटा लेती पर उनसे नजरे ना मिलाती..

"का सोचे लगलु?"

रतन ने सुगना का ध्यान भंग करते हुए पूछा…


शेष अगले भाग में….
Behtreen update
भाग -69
मालपुआ शब्द और सुगना की बुर दोनों की उपमा सरयू सिंह को बेहद पसंद थी। वह जब भी सुगना की बुर को अपने होठों से दबाते बुर पानी छोड़ देती और सरयू सिंह मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखकर कहते

" देखा ताहर मालपुआ से चाशनी बाहर आ गईल"

सुगना उनके सर को ऊपर खींचती और पेट पर सटा लेती पर उनसे नजरे ना मिलाती..

"का सोचे लगलु?"


रतन ने सुगना का ध्यान भंग करते हुए पूछा…

अब आगे..

सुगना अचकचा कर अपने मीठे ख्वाबों से बाहर आ गई..

तू मधु के दूध पिला कर तैयार हो जा हम थोड़ा देर में आवा तानी रतन कमरे से बाहर चला गया और सुगना कजरी का इंतजार करने लगी।

मधु को दूध पिलाने के पश्चात कजरी कमरे से चली गई और सुगना बिस्तर पर लेट कर अपने पुराने दिनों को याद करने लगी.


जिस सुहाग की सेज पर आज वो अपने पति से एकाकार होने जा रही थी वह पलंग उसकी चुदाई और न जाने कितनी कामुक घटनाओं का गवाह था। सुगना की आंखों के सामने वह दृश्य घूमने लगे।

कैसे उसके बाबूजी पहली बार उसका चेहरा देख कर चौंक उठे थे? उनके व्यवहार में अचानक परिवर्तन क्यों आ गया था? कैसे उसे सरयू सिंह को देखना अच्छा लगने लगा था? कैसे उसके बाबूजी बछिया की चूची से दूध निकालते और वह सिहर उठती। उसे अपनी कोमल चुचियों में सिहरन महसूस होती।

जाने कब उसके हाथ अपनी चुचियों पर आ जाते उधर सरयू सिह बछिया की चूची मीस कर दूध निकालते और इधर सुगना अपनी की बुर से पानी…. आह अद्भुत था वह एहसास..

उसके बाबुजी जी का होटल में उसकी युवा चुचियों पर टॉर्च मारना …. सुगना की तड़प बढ़ती जा रही थी सुगना उस दृश्य को भी याद कर रही थी जब सरयू सिंह ने उसके शरीर पर मक्खन लपेटकर अपनी उंगलियों से उसका कौमार्य भेदन किया था सरयू सिंह के साथ बिताई गई दीपावली की रात सुगना के जहन में घूमने लगी। सरयू सिंह के साथ बिताए कामुक घड़ियों को याद करते करते सुगना अति उत्तेजित हो गई उसने अपनी बुर को सहला कर शांत करने की कोशिश की परंतु बुर गरमा चुकी थी और स्खलन को तैयार थी। सुगना की उंगलियों का स्पर्श पाते ही बुर से प्रेम धारा बह निकली।

सुगना के पैर उठने लगे और सांसे तेज होती गई बिस्तर पर पड़ी सुगना हाफ रही थी पैर के दोनों पंजे तन गए थे तथा एक दूसरे पर चढ़े हुए थे स्खलन प्रारंभ हो चुका था सुगना की बुर के अंदर मरोड़ उठ रही थी…. इसी समय रतन कमरे में आ गया।

"काहे हाफ तारु? तबीयत ठीक बानू?"

"हां.. ठीक बा" सुगना अपने उत्तेजना से लाल पड़ चुके चेहरे के भावों को संतुलित करते हुए बोली। जांघों के बीच असहजता लिए सुगना बिस्तर पर बैठ गई। अपने आलता लगे हुए पैरों को संयमित करते हुए वह अपने लहंगा और चोली को व्यवस्थित करने लगी।

मिलन की बेला आ चुकी थी रतन ने देर न की जिस तरह अति उत्साही बच्चे गिफ्ट पैकेट का रेपर पढ़ते हैं उसी प्रकार रतन ने नियति द्वारा भेजे गए सुगना रूपी उपहार के वस्त्र हरण करने शुरू कर दिए..

कमरे में सुगंध फैल रही थी यह सुगंध वैसे तो रतन द्वारा लाए गए इत्र की ही थी पर सुगना के स्खलन की खुशबू इसमें सम्मिलित हो गई थी।

जालीदार ब्रा और पेंटी में लिपटी सुगना मूर्तिवत खड़ी थी और रतन उसे एकटक घूरे जा रहा था ।

जैसे-जैसे रतन की निगाहें सुगना के चेहरे से नीचे आती गई सुगना का ध्यान रतन की निगाहों का अनुसरण करता रहा जैसे रतन का ध्यान सुखना की नाभि पर केंद्रित हुआ सुगना को अपनी पेंटी के पीलेपन का एहसास हुआ जो उसके अभी कुछ पलों पहले हुए स्खलन से भीग चुकी थी।


सुगना ने अपनी पलके झुका ली और अपने दाहिने पैर को आगे कर अपनी जाली के भीतर भीगी बिल्ली की तरह छुपी बुर को ढकने का प्रयास किया। रतन अब अधीर हो चुका था सुगना के करीब आया और उसे आलिंगन में भर लिया।

पर पुरुष से आत्मीय आलिंगन सुगना ने दूसरी बार महसूस किया था आलिंगन में तो वह एक दो मर्तबा राजेश की बाहों में भी आई थी परंतु चुचियां सीने से न टकरा पाई थीं। सुगना तुरंत ही अपना कंधा आगे कर देती थी और अपनी चुचियों को उसके सीने से न सटने देती यह अलग बात थी की होली के दौरान राजेश ने सुगना के मखमली कबूतरों को सहला जरूर लिया था।

सुगना एकाग्र ना हो पा रही थी रह रह कर उसके ख्यालों में उसके बाबूजी सरयू सिंह आ रहे थे हर स्पर्श हर आलिंगन मे वह सरयू सिंह को याद कर रही थी और राजेश की तुलना सरयू सिंह से कर रही थी। रतन के हाथ सुगना की पीठ पर घूम रहे थे और अपनी हद को जानने की कोशिश कर रहे थे रतन के मन में अब भी डर कायम था कि कहीं सुगना उसे आगे बढ़ने से रोक ना दे। परंतु सुगना तो अपने ख्यालों में खोई हुई थी रतन की उंगलियां ने साहस दिखाकर उसकी ब्रा के हुक खोल दिए।

ब्रा के अलग होते ही सुगना की चूचियां रतन की निगाहों के सामने आ गई रतन का इन चीजों से सामना पिछले कई दिनों से हो रहा था वह उसकी उत्सुकता का केंद्र न थी रतन धीरे-धीरे नीचे झुकता गया और अपने घुटने पर आ गया उसने अपना चेहरा सुगना के पेट से सटा लिया और उसे छूता हुआ बोला..

"हमरा के माफ कर दीह हम तोहरा के अतना दुख देनी"

सुगना के हाथ रतन के सिर पर आ गए और वह उसके बालों को सहलाने लगी। रतन सुगना के पेट को अपने गालों से सहलाता हुआ हुआ जालीदार बंटी के पास आ गया और अपने दांतो से उस पेंटी को नीचे खींचने का प्रयास करने लगा। रतन की कामकला में बबीता के रंग भरे हुए थे जो पाश्चात्य संस्कृति से प्रेरित थे। मुंबई शहर में रंगीन फिल्मों से रतन और बबीता दोनों लोग रूबरू हो चुके थे और उनकी कामुक क्रियाओं को यथासंभव आत्मसात कर चुके थे।

रतन के होंठों का स्पर्श अपनी जांघों के अंदरूनी भाग पर पड़ते हैं सुगना की कमर पीछे हो गई आज कई महीनों बाद जांघो के बीच पुरुष होंठ पाकर सुगना सिहर उठी।

रतन के दातों द्वारा पैंटी को उतार पाना मुश्किल था रतन ने अपनी उंगलियों को दातों की मदद के लिए उतार दिया और सुगना की छुपी हुई बुर अपने साजन के सामने अनावृत हो गयी।

स्खलित हुई सुगना की बुर पूरी तरह चिपचिपी थी ऐसा लग रहा था जैसे सफेद रसगुल्ले ने दबकर अपनी चासनी छोड़ दिया हो।

रतन सुगना की फूली और स्खलित हुई गीली बुर देखकर भ्रमित हो गया उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सुगना की पुर उसके संसर्ग से उत्तेजित होकर गीली हुई उसने अपने होंठ बुर से सटा दिए तभी सुगना बोल पड़ी..

"गुरुजी के बात भुला गईनी का?"

रतन को गुरु जी की बात याद आ गई.. मधु का प्रयोग अभी तक न किया गया था रतन उठा और सुगना को चूमते हुए बोला

" मधु दूनों और लागी नु" रतन ने स्वयं अपने ल** की तरफ देखा सुगना सुगना की निगाहों ने भी उसका अनुकरण किया और वह रतन की मंशा समझ गयी।

सुगना शरमा गई उसने अपना चेहरा नीचे कर लिया रतन ने एक ही झटके में अपना कुर्ता उतार कर नीचे फेंक दिया और धोती जाने कब खुल कर नीचे गिर पड़ी लाल लंगोट देखकर सुगना को एक बार फिर सरयू सिंह की याद आ गई।

रतन सुगना के सहयोग की अपेक्षा कर रहा था सुगना ने अपने कोमल हाथ बढ़ाएं और लाल लंगोट की रस्सी खुलने लगी और कुछ ही देर में सुगना का नया मुसल अपने भरे पूरे आकार और तनाव में सुगना के सामने था।

सुगना बरबस ही रतन के लंड को सरयू सिंह से तुलना करने लगी आकार और तनाव दोनों में कोई कमी न थी पर अपना और पराया इसका अंतर स्पष्ट था सरयू सिंह का लंड सुगना को अपने पुत्र की भांति प्रतीत होता और रतन का लंड अब सौतन पुत्र की तरह प्रतीत हो रहा था। परंतु अब जब सुगना उसे अपना चुकी थी उसने रतन के लंड को अपने हाथों से सहला दिया।


दो नग्न शरीर एक दूसरे के आलिंगन में आ गए रतन ने इस बार सुगना को याद दिलाया

"मधु कहां बा?"

सुगना को एक पल के लिए अपनी पुत्री मधु का ख्याल आया परंतु अभी उसकी यहां कोई उपयोगिता न थी सुगना पहले ही कटोरी में रखा हुआ मधु देख चुकी थी वह रतन के आलिंगन से निकली और मधु उसकी हाथ में देते हुए बोली..

" थोड़ा सा ही लगाईब"

"हम तो पूरा लगाएब" रतन शरारत से अपनी आंखें नचाते हुए बोला।

रतन ने मधु की कटोरी पकड़ ली और सुगना को पलंग पर बैठने का इशारा किया सुगना ने पलंग पर बैठ कर अपने दोनों पर दोनों तरफ उठा लिए और अपनी बुर को रतन की निगाहों के सामने परोस दिया। दीए की रोशनी में सुगना की बुर चमक रही थी। होठों पर आया मदन रस सूख रहा था। परंतु उस दिव्य गुफा से लगातार रस निकलने को तैयार था। रतन में अपनी मध्यमा उंगली शहद में ठुकाई और सुगना के बुर्के होठों को शहद से भिगोने लगा।


सुगना ने अपनी जाँघे पूरी तरह फैला दी थी ताकि रतन शहद को सिर्फ और सिर्फ उसकी बुर पर ही लगाए जैसा कि गुरु जी ने कहा था। एक कामुक और मदमस्त युवती द्वारा स्वयं फैलाई गई जांघ में देखकर रतन मदहोश हुआ जा रहा था।

उसकी उंगली बरबस ही सुगना की बुर में घुसना चाह रही थी अंदर से रिस रहा मदन रस शहद से ज्यादा मीठा होगा ऐसा रतन का अनुमान था। रतन मन ही मन गुरु जी को धन्यवाद दे रहा था और अपने पुरखों को भी जिन्होंने ऐसी विधि बनाई थी।

सुगना की बुर पर शहद का लेप लगाने के पश्चात अब बारी सुगना की थी। यदि सुगना खड़ी होती तो वापस बुर पर लगा शहद उसकी जांघों पर लग जाता। रतन ने उसकी मदद की और सुगना ने अपने पैर के दोनों पंजे रतन ने अपनी कमर के दोनों तरफ रख लिए।

रतन सुगना के कंधों को पकड़कर उसे सहारा दिए हुए थे सुगना की उंगली शहद में डूबी और रतन के लंड पर घूमने लगी लंड का आकार उसकी उंगली से 3 गुना वह शहद लगाते लगाते उसके आकार और कद का आकलन करने लगी। सुगना रतन के लंड को पूरी आत्मीयता से छू रही थी।


सरयू सिंह की बेरुखी और रतन के प्यार ने उसे रतन को अपनाने की वजह दे दी थी सुगना के मन में कोई पछतावा या अफसोस न था पर रह रह कर उसके मन में कसक अवश्य उठ रही थी काश उसके बाबूजी ने उसका साथ अंत तक दिया होता।

लंड पूरी तरह शहद से भीग चुका था और सुगना की बुर के बिल्कुल समीप था एक बार के लिए रतन के मन में आया कि वह विधि-विधान को दरकिनार कर थोड़ा आगे बढ़कर सीधा सुगना की बुर में लण्ड ठान्स दे परंतु वह चाह कर भी ऐसा न कर पाया।

उसने सुगना को अलग किया और सुगना बिस्तर पर लेट गई और विधि के आगे बढ़ने का इंतजार करने लगी।

सुगना अपनी जाँघे. फैलाए अपने पति रतन के सामने उसकी जीभ का इंतजार कर रही थी । सुगना ने शर्म से अपनी आंखें बंद कर ली और रतन की जीभ ने अमृत कलश पर दस्तक दे दिया। सुगना की जाँघे ऐंठ गयीं। एक अद्भुत प्रेम लहर उसके शरीर में दौड़ गई। सुगना का फूलता और पिचकता हुआ पेट और सीने की धड़कन इस बात की गवाही दे रही थी कि सुगना का यह मिलान नया और अद्भुत था।


रतन की जीभ सुगना की गीली बुर को फैलाते हुए अंदर प्रवेश करती। गुरुजी ने उसे शहद चाटने के लिए कहा था परंतु रतन अमृत कलश से छलक रहे प्रेम रस को पीने में ज्यादा उत्सुक था। शहद का मीठा स्वाद उस प्रेम रस से मिलकर एक अलग ही स्वाद दे रहा था।

रतन के मन में घृणा की कोई भावना न थी। वह पूरी तन्मयता और प्रेम से सुगना की अमृत कलश को गहराइयों तक छू रहा था और सुगना मदहोश हो रही थी। जैसे-जैसे सुगना को प्रेम की अनुभूति हुई वह सरयू सिंह की यादों में खो गयी...

सूरज के जन्म के पश्चात इसी पूजा में जब वह रतन की लाठी से यह विधि पूरा करने जा रही थी तभी सरयू सिंह अचानक ही उसके सामने प्रकट हो गए थे. रतन की लाठी को विधि में शरीक कर सरयू सिंह ने सुगना को वह सुख दिया था जिसकी स्त्री हकदार थी सरयू सिंह की लप-लपाती जीभ सुगना.. की बुर को इस प्रकार सहला रही थी जैसे कोई जानवर अपने छोटे बच्चे को अपनी जीभ से सहलाता है।

इधर रतन पूरी तन्मयता से सुगना की बुर चूस रहा था और सुगना अपने ख्वाबों खयालों में सरयू सिंह की जीभ को याद कर रही थी उसकी उत्तेजना परवान चढ़ रही थी परंतु उसकी उत्तेजना में रतन धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा था सरयू सिंह की यादें भारी पड़ रही थी बंद आंखों से हकीकत दूर होती जा रही थी।

जागो के बीच रतन हलचल मचाए हुए था और दिमाग में सरयू सिंह। निगोड़ी चुचियों का कोई पूछन हार न था सुगना के साथ स्वतः ही उन्हें सहला रहे थे। रतन की नाक भग्नासा पर रगड़ खा रही थी वोट निकले होठों से युद्ध लड़ रहे और उन पर लगा शहद रतन के मुंह में विलीन हो रहा था रतन के मुंह की लार सुगना की बुर का रस और शहद एक अद्भुत संगम बना रहे थे।

सुगना की बुर झड़ने को तैयार थी और अचानक..


" आह…बाबूजी"

" तनी धीरे से…….." .

"आआई….…हाँ असहीं….आह…".

सुगना की कामुक आहे गूंजने लगीं। रतन अचानक चौक उठा तब तक उसने स्त्रियों के मुख से उत्तेजना के दौरान अपनी मां का उद्बोधन तो जरूर सुना था पर "बाबूजी" उत्तेजना के अतिरेक पर यह सुगना का यह संबोधन रतन के आश्चर्य का कारण था। परंतु उसने अपनी पत्नी सुगना के स्खलन में बाधा ना डाली अपितु अपने होंठों की गति और बढ़ा दी। सुगना झड़ रही थी और अपने दोनों पैरों के पंजे से से पतन की पीठ पर मार रही थी।

सुगना के स्खलन का श्रेय एक बार फिर सरयू सिंह ही ले गए थे। जांघों के बीच मेहनत कर रही रतन की जीभ भी थक चुकी रतन उठकर सुगना के होठों की तरफ आया और प्यार से बोला

"देखा मीठा त नईखे लागत?"

सुगना ने अपने पति रतन के होठों को चूम लिया सचमुच रतन ने पूरी मेहनत और तन्मयता से सुगना के बुर को चूम चाट कर शहद विहीन कर दिया था। उसके होठों पर अब सिर्फ प्रेम रस ही बचा था जिसे सुगना भली भांति पहचानती थी और उसका स्वाद सरयू सिंह की जीभ से कई बार ले चुकी थी..

"तू ओ घरी बाबूजी के नाम काहे ले तलू हा?"

रतन ने अचानक कि अपना प्रश्न कर दिया सुगना निरुत्तर हो गई इसे कोई उत्तर न सूझ रहा था..

स्त्रियों के पास उत्तर न होने की दशा में अदाओं का ही सहारा होता है सुगना में बड़े प्रेम से कहां

" रहुआ ता हमरा मुनिया के चूस चूस के हमरा के पागल कर देनी हां अतना सुख तो आज तक ना मिलल रहे"


सुगना ने रतन को बाग बाग कर दिया। अपनी मेहनत और सफलता का यह पारितोषिक रतन के लिए सारे प्रश्नों का उत्तर भी था और आने वाले सुखद वैवाहिक जीवन का संकेत भी।

सुगना ने देर ना की इससे पहले रतन अपना प्रश्न दोबारा करता वह तुरंत ही घुटनों पर आ गई उसे पता था अभी रतन के लंड पर लगा शायद उसके होठों का इंतजार कर रहा था..

नियति के खेल भी निराले हैं रतन सुगना की बुर चूस रहा था और उस दौरान उसका लण्ड लगातार हिचकोले ले रहा था और अपने मुखड़े पर प्रेम रस छोड़ रहा था। रतन का सुपाड़ा पूरी तरह भीग चुका था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे रतन की उंगलियों ने उसको छूने की कोशिश की थी। हो सकता है की सुगना की बुर चूमते चाटते समय अकस्मात ही रतन का हाथ लण्ड पर चला गया हो ।

सुगना ने अपने होंठ गोल किये और अपने पति का लंड चूम लिया। वह रतन को अपनाने के लिए पूरी तरह तैयार थी और भाव विह्वल होकर सुगना ने रतन के सुपारे को अपने मुंह में भर लिया। बिना किसी घृणा भाग के सुगना रतन के लंड को चूस चूस कर उस पर लगा शहद हटाने लगी। रतन के पूरे लंड को मुंह में ले पाना संभव न था व सरयू सिंह जैसा बलशाली तो ना सही परंतु उससे कम भी न था।


सुगना ने लंड के सुपाडे को मुंह से निकाला और अपनी जीभ से लंड को जड़ से चाटते हुए उसके सुपारे तक आने लगी। शहद की परत उसकी जीभ पर आती और सुगना उसे चट से निगल जाती।

इतनी देर की उत्तेजना और स्खलन ने उसके उधर में भूख उत्पन्न कर दी थी। शहद का स्वाद उसे पसंद आ रहा था यह अलग बात है कि उसमें रतन के लंड की लार भी शामिल हो चुकी थी परंतु सुगना उसे भूलकर शहद का स्वाद ले रही थी और बरबस ही रतन के लंड को थिरकने पर मजबूर कर रही थी।

सुगना के होंठ लंड पर पर तेजी से चल रहे थे। लण्ड की जड़ से शहद का स्वाद हटते ही सुगना ने लंड के जड़ को अपने हाथों से पकड़ लिया और रतन के लंड को होठों से चूसने लगी। रतन ने अपनी आंखें खोली अपनी फूल जैसी पत्नी को अपना लंड चूसते हुए देख रहा था उसके लिए यह सुख स्वर्गीय सुख से कम न था।


रतन की सारी कल्पनाएं एक पल में ही साकार हो गई थी वह यदि किसी अप्सरा की कल्पना भी करता तो भी शायद सुगना से सुंदर स्त्री उसकी कल्पना में भी ना आती।

वह सुगना के रेशमी बालों को सहलाये जा रहा था और अचानक सुगना के दांतों ने लंड के निचले कोमल नसों को छू लिया.. रतन उत्तेजना से तड़प उठा और अंडकोष में उबल रहा लावा सारी सीमाएं और बंधन तोड़ते हुए बाहर आ गया.. सुगना अचानक हुए हमले से घबरा गयी उसने अपने होंठ पीछे करने की कोशिश की परंतु रतन को वह सुखद और कोमल स्पर्श को छोड़ने का मैन ना था। उसने सुगना का सर पकड़ लिया और अपनी पिचकारी का सारा लावा सुगना के मुंह में उड़ेल लिया सुगना गूं….गूं….. करती रही परंतु उसके पास अपने होंठ हटा पाने का कोई अवसर ना था। मरता क्या न करता सुगना ने ना चाहते हुए भी सारा वीर्य निगल लिया..

दोनों पति पत्नी एक दूसरे की बाहों में निढाल पड़ गए विधि के अनुसार रतन को सुगना की बुर चोदते हुए उसे स्खलित करना था परंतु सुगना और रतन दोनों ही झड़ चुके थे वासना का फूला हुआ गुब्बारा अचानक ही पिचक गया था रतन के हाथ सुगना की चुचियों पर घूमने लगे…

"ई बताव 4 साल हम तोहरा के कितना दुख देले बानी, हमरा के माफ कर द, ई बेचारी तरस गईल होइ" रतन का हाथ सुगना की बुर पर आ गया।

न सुगना बेचारी थी न हीं उसकी बुर। जिस स्त्री को सरयू सिह का प्यार और कामुकता दोनों प्राप्त हो वह स्वतः ही तृप्त होगी।

"आप ही त भाग गइल रहनी"

रतन ने सुगना को अपनी बाहों में खींच लिया और उसके हाथ सुगना के कोमल नितंबों को सहलाने लगे धीरे धीरे वासना जवान होने लगी नसों में रक्त भरने लगा और रतन का लंड खड़ा हो चुका था..

सुगना अपनी योनि पूजा को सकुशल संपन्न कराने के लिए आतुर थी पर क्या यह पूजा संपन्न होगी? क्या रतन सुगना को चोदते हुए उसे स्खलित कर पाएगा? या नियति ने इनके भाग्य में कुछ और लिखा था…

शेष अगले भाग में..
Bohot badiya update lovely bhai
 

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
लव्हली भाई की कहानी आनंद ही आनंद देती है
मेरे जैसे पाठक वक्त की कमी के कारण बहुत कम वक्त दे पाते है
मै शुरुवात से ही आनंद भाई के इस कहानी से जुडा हु और इस कहानी का कायल हु .......
कहानी ने अपना रुख बदल कर एक जबरदस्त मोड पर आगयी हैं
आगे देखते हैं क्या क्या धमाचौकडी होती है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Kadak Londa Ravi

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Thanks to all who have considered my request. Truly speaking 10 number doesnot delight me but your presence motivates me to continue the story...


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Come on readers..show your interest to that I can post next updates...


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Soni or Sonu ki chhedkhani dekhne me bahut mza aayga dono ek dusre ke ango ko mehsus krenge lekin muh se kuchh nhi khenge
 
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