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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Sanju@

Well-Known Member
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भाग -76
नियति का खेल तो देखिए जिस कमरे में विकास के दोस्तों ने उसके सुहागरात की व्यवस्था की थी यह वही कमरा था जिसने मनोरमा मैडम रुकी थी और उसी कमरे में सोनी की बहन सुगना को चोदते और सुगना के अपवित्र छेद का उद्घाटन कर अपने व्यभिचार को पराकाष्ठा तक ले जाते ले जाते सरयू सिंह बेहोश हो गए थे…।

वह कमरा सुगना के परिवार के लिए शुभ है या अशुभ यह कहना कठिन था पर सोनी उसी कमरे में धड़कते हृदय के साथ प्रवेश कर रही थी।

जैसे ही सोनी बाथरूम में फ्रेश होने के लिए गई बिस्तर पर लेटे विकास में सोनू के ट्रेनिंग हॉस्टल में फोन लगा दिया…


अब आगे…


हेलो….मधुबन हॉस्टल….

जी कहिए…

जरा सोनू को बुला दीजिए….

कौन सोनू….

माफ कीजिएगा मैं संग्राम सिंह की बात कर रहा हूं…

विकास को अपनी गलती का एहसास हुआ

आप कौन?

उनका दोस्त विकास..

ठीक है लाइन पे रहिए..

छोटू जा संग्राम सर को बुला ला…कहना किसी विकास का फोन है….

विकास के कानों में यह आवाज धीमी सुनाई पड़ी शायद फोन उठाने वाले ने रिसीवर दूर कर दिया था…

कुछ देर इंतजार के बाद विकास के कानों में छी

चिरपरिचित आवाज सुनाई पड़ी…

अरे विकास …क्या हाल है …?

भाई तेरी सलाह काम आई मैंने अपनी छमिया से आज विवाह कर लिया है…..

अरे वाह क्या बात है ….अभी तू कहां है..

रेडिएंट होटल में….

विकास ने आज दिन भर के हुए घटनाक्रम को संक्षेप में सोनू को बता दिया…

अभी कहां है मेरी भाभी…सोनू ने मुस्कुराते हुए पूछा

अंदर शायद नहा रही है..

यार तू तो छुपा रुस्तम निकला मैंने तो यूं ही सलाह दी थी तू तो सच में छमिया को बिस्तर पर खींच लाया..

विकास मुस्कुरा रहा था और अपनी विजय पर प्रफुल्लित हो रहा था..

चल अब रखता हूं लगता है आने वाली है…

जी भर कर चोदना.. और हां पहली बार है जरा संभाल के…कोई ऊंच-नीच हो गई तो तेरा गंधर्व विवाह लोड़े लग जाएगा….

हां भाई हां तू तो ऐसे सलाह दे रहा है जैसे वह तेरी बहन हो…

सोनू को विकास की यह बात अच्छी ना लगी..

"जा भाई तू पटक कर चोद उसको मुझे क्या लेना देना.".

सोनू में फोन रख दिया…

सोनू विकास की किस्मत पर नाज कर रहा था अमीर बाप का लड़का अमेरिका में पढ़ने जा रहा था और उसने अपनी माशूका से विवाह कर आज उसे अपने बिस्तर पर खींच लाया था .. सोनू ने एक लंबी सांस भरी और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। बिस्तर पर लेट अपने पूरी तरह तन चुके लंड को व्यवस्थित करते हुए सोनू के मन के उस अनजान नायिका की चूदाई के दृश्य घूमने लगे.

सोनू के दिमाग में विकास द्वारा उद्धृत की गई उसकी छमिया की कामुक तस्वीर अवश्य थी परंतु आज तक वह उससे मिला न था। वह बार-बार विकास से जिद करता परंतु विकास उसे किसी न किसी बहाने से टाल देता था उसे बार-बार यह डर सताता कि कहीं उसकी छमिया सोनू के साथ नजदीकी न बढ़ाने लगे। विकास यह बात भली-भांति जानता था की सोनू हर मायने में उससे बीस था।

जैसे यह विवाह निराला था वैसे ही सुहागरात की रस्में न दूध न वो फूल मालाओं की सजावट बस चंद फूल बिस्तर पर बिखरे पड़े थे न सहेलियां न दूल्हे के साथी सब कुछ आनन-फानन में आयोजित किया प्रतीत हो रहा था।

सोनी ने भी अपनी विवाहिता साड़ी बाथरूम में उतारकर उसे सहेज कर रख दिया था साड़ी निश्चित ही महंगी थी और सोनी के लिए यादगार भी।

सोनी विकास द्वारा लाई गई पारदर्शी नाइटी में अपनी चूत पर हाथ रखे बिस्तर की तरफ आ रही थी। चेहरे पर शर्म की लाली थी या नग्नता के एहसास की कहना कठिन था परंतु सोनी आज अत्यंत मादक लग रही थी । यदि सोनी अपने हाथ अपनी कुंवारी बुर पर ना रखती तो बुर की दरार निश्चित ही विकास की आंखों के सामने आ जाती। विकास से रहा न गया वह बिस्तर से उठ कर सोनी के पास गया और उसे अपनी बाहों में भर लिया।

सोनी के लगभग नग्न शरीर को अपनी बाहों में लिए विकास बिस्तर पर आ गया और….. तभी कमरे की डोरबेल बजी…

डिंग डांग…

पहले से घबराई सोनी और डर गई उसने अपनी आंखों में कौतूहल लिए अपनी भौंहों सिकोड़ा और फुसफुसाते हुए विकास से पूछा..

*कौन है..?"

विकास का दिमाग खराब हो गया वह गुस्से में आ गया और वहीं से चिल्लाया

कुछ नहीं चाहिए बाद में आना…

परंतु बाहर खड़े व्यक्ति ने एक बार फिर कमरे की डोर बेल बजा दी।

विकास पास पड़े तौलिए को लपेटकर चेहरे पर झल्लाहट लिए …दरवाजे की तरफ गया…और बिस्तर पर लगभग नग्न पड़ी सोनी ने स्वयं को सफेद चादर से ढक लिया….

विकास ने थोड़ा सा दरवाजा खोला.. और बड़ी मुश्किल से अपना सर बाहर निकाल कर बोला

" बोला ना कुछ नहीं चाहिए…"

सामने ट्रेन में दूध लिए वेटर खड़ा था और उसके पीछे उसके तीनो दोस्त जिन्होंने इस विवाह को अंजाम तक पहुंचाने में महती भूमिका अदा की थी…

विकास ने दूध का गिलास उठा लिया और मुस्कुराने लगा। वेटर के जाते ही विकास ने अनुरोध किया भाई "अब अकेला छोड़ दो …."


विकास ने कमरे का दरवाजा बंद किया और एक बार फिर मन में उत्साह लिए सोनी की तरफ बढ़ने लगा जो दरवाजा बंद होने की आवाज से अपना चेहरा चादर से बाहर निकाल चुकी थी।

धमाचौकड़ी होने वाली थी…

आइए नवविवाहिता पति पत्नी को अकेले छोड़ देते हैं और सुगना के पास चलते हैं ..

सुगना और लाली के बच्चे स्कूल जा चुके थे घर में सिर्फ और सिर्फ सूरज तथा छोटी मधु बची हुई थी जो नीचे जमीन पर खेल रही थी।


सुगना सूरज और मधु को देखकर विद्यानंद की बातों में उलझ गई। नियति ने यह कौन सा खेल रचा था। दोनों मासूम बच्चे आने वाले समय न जाने किस पाप की सजा भुगतने वाले थे। सूरज अपनी प्यारी बहन मधु से कैसे संबंध बनाएगा? क्या भाई और बहन के बीच एसे संबंध बनना उचित होगा ? क्या विद्यानंद ने यूं ही गलत बातें कहीं थीं? परंतु विद्यानंद की बातों में सच्चाई अवश्य थी अन्यथा उन्हें कैसे पता होता कि उसका पुत्र व्यभिचार से उत्पन्न हुआ है?

सुगना कभी सूरज के मासूम चेहरे को देखती कभी मधु के। जितनी आत्मीयता से वह एक दूसरे से खेल रहे थे कालांतर में प्यार का रूप बदलना कितना कठिन होगा


भाई बहन के पावन संबंध में वासना का कोई स्थान न था परंतु आने वाले समय में सुगना को यह दुरूह कार्य भी करवाना था। भाई बहन के बीच यह सब कैसे होगा?

अचानक सुगना को लाली के घर से लाई गई किताब की याद आ गई। अपनी अलमारी से वह किताब निकाल लाई जिसे उसने बच्चों और सोनी की निगाह से छुपा कर रखा था। वह बिस्तर पर लेट कर उस किताब को पढ़ने लगी। पन्ने पलटते हुए उसके दिल की धड़कन तेज हो गई जिस कहानी को पढ़ रही थी वह यकीन योग्य न थी पर कौतूहल कायम रखती थी।

कहानी में लिखे अश्लील शब्द सुगना के शांत मन में हलचल मचा रहे थे..

कुछ वाक्यांश कहानी से…

आपा बहुत सुंदर हो एक बार….. सिर्फ एक बार मुझे अपनी चूची दिखा दो…..मैं सिर्फ देखूंगा … कुछ नहीं करूंगा?

नहीं…… यह गलत है मैं तेरी आपा हूं तू अपनी आपा से ऐसे कैसे बात कर सकता है …

आपा बस एक बार …. फिर …..कभी नहीं कहूंगा

झूठ बोलता है तू देखा तो तूने पहले भी है…

नहीं आपा वह तो बस गलती से नहाते हुए देखा था…

छी तू कितना गंदा है..


दीदी इसमें मेरी गलती नहीं ….तुम हो ही इतनी खूबसूरत. मैं तुम्हारा भाई जरूर हूं पर हूं तो एक लड़का ही बस एक बार दिखा दो ना…

ठीक है पर खबरदार जो तूने मुझे छूने की कोशिश की चल दूर हट….

फातिमा रहीम से दूर हट कर अपनी टॉप उतार देती है और रहीम के सामने जन्नत का नजारा पेश कर देती है

सुगना और आगे ना पढ़ पाई उसका कलेजा धक-धक करने लगा। यह कैसे हो सकता है यह तो पाप है उसके दिलो-दिमाग में तरह तरह के ख्याल आने लगे वह अनजाने में ही अपने जहन में सोनू के ख्याल लाने लगी।


उसने अपनी वासना पर विजय पाई और पुस्तक को तुरंत ही बंद कर दिया परंतु उसका शरीर जैसे उसका साथ छोड़ चुका था जांघों के बीच बुर न जाने कब पनिया गई थी। यह असर सोनू का था या उस कहानी के लेखक का यह कहना कठिन था पर सुगना का मन अस्थिर था वह अपने दिलोदिमाग में एक अजब सी उद्वेलना लिए हुए थी।

वासना के विविध रूप होते हैं और हर नया रूप एक अलग किस्म का आकर्षण पैदा करता है अब जब सुगना ने कहानी तक पढ़ ली थी अपनी सांसे काबू में आते ही उसने एक बार फिर पुस्तक उठा ली और कांपते हाथों से पन्ने पलटने लगी…

आगे कहानी में फातिमा रहीम के सामने पूरी तरह नग्न होती है और रहीम उसकी बुर पर अपने हाथ फिराता है। अचानक सुगना को किताब से तीव्र नफरत हो गई। सुगना का सब्र टूट गया उसने किताब दो टुकड़ों में फाड़ दी

"छी हरामजादे कैसी कैसी किताबे लिखते हैं" आज पहली बार सुगना जैसी व्यवहार कुशल मृदुभाषी सुंदरी के मुख से लेखक के प्रति अपशब्द निकले थे। परंतु उसकी पनियाई बुर उसके गुस्से को नजर अंदाज कर रही थी। शुक्र है उसने किताब के दो टुकड़े ही किए थे। नियत मुस्कुरा रही थी और सुगना अपने मन के अंतर्द्वंद से लड़ रहे थी।

सुगना अपनी सांसों पर नियंत्रण पाने का प्रयास कर रही थी और बिस्तर पर एक किनारे पड़ी हुई उस फटी पुस्तक को देख रही थी जो अब दो टुकड़ों में विभक्त तथा उपेक्षित रूप में पड़ी हुई थी.

बच्चों के आगमन की आहट से सुगना को उस वासना के भवसागर से दूर किया और वह दरवाजा खोलने के लिए बढ़ चली.

मालती अपने कंधे पर भारी झोला लटकाए हुए घर के अंदर दाखिल हुई और सीधा सुगना के कमरे में आ गई सुगना को अचानक ध्यान आया कि वह जिल्द वाली किताब अब ही बिस्तर पर ही पड़ी थी। दो टुकड़ों में विभक्त हो जाने के बावजूद भी वह वह बच्चों के हाथ में आने पर असहज स्थिति पैदा कर सकती थी।

सुगना भाग कर गई और उस किताब को उठाकर अलमारी के पीछे फेंक दिया…और चैन की सांस ली।


इधर सुगना मालती के खान पान की व्यवस्था में लग गई उधर सोनी अपनी सुहागरात मना कर घर वापस आ रही थी। आज भी विकास में उसे कॉलोनी के गेट पर छोड़ दिया था। वह थकी मांदी लड़खड़ाते कदमों से सुगना के घर में प्रवेश कर रही थी…

माथे पर लगा सिंदूर न जाने कब विलुप्त हो गया था वह सुहागन बन कर अपनी अस्मिता खोने के पश्चात एक बार फिर कुंवारी हो गई थी। परंतु जांघों के बीच जिस पवित्रता को उसने खोया था वह सोनी ही जानती थी उसका दिल अब भी रह-रहकर अपनी बड़ी हुई धड़कन का एहसास करा रहा था अपनी अस्मिता खोने का डर और मन में चल रहा भूचाल सोनी को अस्थिर किया हुआ था। सुगना एक परिपक्व युवती थी उसने तुरंत ही ताड़ लिया और सोनी से बोली

"का भईल सोनी काहे उदास बाड़े?"


सोनी क्या बोलती वह तेज कदमों से चलते हुए अपने कमरे में आ गई और बिस्तर पर पेट के बल लेट अपने जीवन में आए इस बदलाव को महसूस करने लगी उसने गलत किया था या सही …उसके मन का द्वंद कायम था.

सुगना अपनी बहन को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी वह पीछे पीछे आ गई और सोनी की पीठ को सहलाते हुए बोली

"का भईल बा अतना काहे उदास बाड़े ?"

"कुछ ना दीदी हम जा तानी नहाए तनी सा चाह पिया दे मिजाज हल्का हो जाई"

सुनना सोनी के लिए चाय बनाने चली गई और सोनी बाथरूम में जाकर अपनी अस्मिता पर लगे दाग को मिटाने का प्रयास करने लगी..


शायद ये इतना आसान न था विकास का रंग जो सोनी के दिलों दिमाग पर चढ़ा था अब वह उसकी चूत में भी अपना अंश छोड़ चुका था विकास का वीर्य कहीं उसे गर्भवती न कर दे यह सोनी की चिंता को और बढ़ा रहा था।

आज का एक और दिन बीत चुका था परंतु आज का दिन बेहद अहम था सुगना के लिए भी और सोनी के लिए भी ।

आज सुगना ने जो पढ़ा था वह यकीन योग्य न था परंतु सुगना को इस बात का विश्वास था कि पुस्तकों में लिखी बातें कहीं ना कहीं सच होती हैं।


क्या सच में कोई युवा मर्द अपनी बड़ी बहन के बारे में ऐसा सोच सकता है? जितना ही इस बारे में सोचती उतना ही उसके ख्यालों में सोनू आता कभी अपनी मासूमियत लिए और कभी अपने पूर्ण मर्दाना रूप में। सुगना के मस्तिष्क पटल पर दृश्य तेजी से घूम रहे थे दिमाग सुगना का दिमाग बार-बार उस दृश्य पर अटक जा रहा था जब सोनू लाली की कमर को पकड़े हुए अपना लंड तेजी से उसकी फूली हुई बुर में आगे पीछे कर रहा था। आंखें बंद किए हुए सोनू का चेहरा ऊपर था। सुगना बार-बार यह सोचती कि सोनू ने अपनी आंखें क्यों बंद कर ली थी।

छी छी छी सोनू ऐसा नहीं सोच सकता। पर वह अपनी कमर की रफ्तार और तेज क्यों कर गया था। जितने जटिल प्रश्न उतने ही जटिल उनके उत्तर । सुगना का दिमाग उत्तर दे पाने में असमर्थ था पर वासना अनुकूल उत्तर खोज लेती है।


सुगना रह रह कर उसी उत्तर पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही थी जो पूर्णता अमर्यादित और पाप की श्रेणी में गिना जाता था। सोनू निश्चित ही ऐसा नहीं सोचता होगा ऐसा सुगना अपने आप को समझा रही थी पर नियति कुछ और चाहती थी। वैसे भी सुगना और सोनू पूरी तरह से भाई-बहन न थे। सोनू पदमा और उसके फौजी पति का पुत्र का वही सुगना सरयू सिंह और पदमा के वासना जन्य संबंधों की देन थी.. माता एक होने के बावजूद दोनों के पिता अलग-अलग थे।

अगले 1 हफ्ते सोनी के लिए हनीमून जैसे रहे हनीमून जैसे रहे वह विकास के साथ दिन भर घूमते और मौका और एकांत देखकर अपनी सलवार उतार चुदने को तैयार हो जाती। दो-तीन बार की च**** में ही सोनी विकास के ल** की हो गई अब व्यस्त हो गई और अपने क्षेत्र वैवाहिक जीवन का आनंद उठाने लगी हनीमून पर जा पाना संभव न था परंतु नियति ने सोनी और विकास को एक मौका दे दिया विकास को लखनऊ पासपोर्ट के कार्य हेतु जाना था उसने सोनी से भी चलने के लिए कहा दोनों ने रणनीति बनाई और सोनी सुगना को मनाने चल पड़ी ।

दीदी हमरा ट्रेनिंग खातिर लखनऊ जाए के बा 2 दिन लागी

"अकेले कैसे जयबे? "

"दुगो और सहेली जाता री सो"


थोड़ी देर समझाने पर सुगना तैयार हो गई और सोनी से बोली

" सोनू के फोन करके बता दे तनी तोरा के स्टेशन पर ले लेवे आ जायी," सुगना की आवाज में अधिकार बोध था आखिर वह सोनू की बड़ी बहन थी।

सोनू का नाम सुनते ही सोनी घबरा गई वह किसी भी हाल में अपने और विकास के संबंधों की जानकारी सोनू को नहीं देना चाहती थी। उसने सुगना की बात पर हामी तो भर दी परंतु मन ही मन यह फैसला कर लिया कि वह सोनू को फोन नहीं करेगी उसे पता था सुगना सोनू से इस बात की तस्दीक नहीं करेंगी बाद में जो होगा देखा जाएगा। जैसे एक झूठ वैसे सौ।

2 दिनों बाद सोनी और विकास लखनऊ जाने के लिए ट्रेन में बैठ चुके थे। सोनी ने सोनू को फोन न किया परंतु विकास वह तो सोनू से अपनी विजय गाथा साझा करने को उतावला था उसने सोनू को अपने आने की सूचना दे दी। सोनू ने भी अपने प्रिय दोस्त के लिए गेस्ट हाउस में उसके रहने की व्यवस्था करा दी थी। और उत्सुकता से विकास और उसकी उस छमिया का इंतजार करने लगा जिसे कल्पना कर उसने भी कई बार अपने लंड का मानमर्दन किया था …..

हर एक दोस्त कमिना होता है यह बात जितनी आज सच है उतनी तब भी थी। सोनू ने विकास और उसकी माशूका के रहने की व्यवस्था तो कर दी थी परंतु अंदर के दृश्य देखने के लिए वह लालायित था उसने विकास के लिए निर्धारित कमरे के बगल में एक कमरा और बुक कर लिया। दोनों कमरों के पीछे वाला भाग कामन था।


सोनू ने अंदर झांकने की व्यवस्था कर ली उसे पता था विकास इस सुंदर कमरे में अपनी माशूका को चोदने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा

वैसे भी, खूबसूरत कमरे मिलन को आमंत्रित करते हैं

सोनू प्रफुल्लित मन से अपने दोस्त सोनू और उसकी अनजान माशूका की प्रतीक्षा करने लगा जिसके मादक बदन की कल्पना कर उसने न जाने कितनी बार मुठ मारी थी। सोनू ने अपनी जिस माशूका को अब तक सोनू से छुपा कर रखा था वह उसकी निगाहों के सामने आने वाली थी सोनू अति उत्साहित था।


पर इसे सोनू का सौभाग्य कहे या दुर्भाग्य वह और उसकी माशूका को लेने स्टेशन ना जा पाया। विकास सोनू को स्टेशन पर न पाकर दुखी हो गया। उसने बाहर निकल कर पीसीओ से एक बार फिर सोनू के ट्रेनिंग सेंटर में फोन किया परंतु रिसेप्शन ने उसे या कि अभी क्लासेस चल रही है वह बात नहीं करा सकता आप 5:00 बजे के बाद फोन करिएगा।

दोपहर के 2:00 बज रहे थे और सोनी गेस्ट हाउस के लिए चल पड़े। प्रेम में पहुंचते ही कमरे में पहुंचते ही विकास और सोनी गेस्ट हाउस की खूबसूरती में खो गए।

जैसे ही सोनी नहा कर बाहर आई विकास उस पर टूट पड़ा। कुछ ही देर में सोनी बिस्तर पर अपनी जान से फैलाए लेटी हुई थी और विकास उसकी जांघों के बीच जीभ से उसकी बुर की गहराई नाप रहा था इसलिए कुछ दिनों के संभोग में हर रोज विकास कुछ नया करने की कोशिश करता था और सोनी को खुलकर संभोग सुख का आनंद लेने के लिए प्रेरित करता था।

सोनी सोनी मुखमैथुन की उत्तेजना को झेल पाने में असमर्थ थी वह बार-बार काश कि सर को अपनी ऊपर से दूर धकेल रही थी परंतु विकास मानने को तैयार नाथ आखिर सोनी में दबी आवाज में कहां…

"अरे छोड़ दो जल्दी से कर लो नहीं तो तुम्हारा दोस्त आता ही होगा.."

"अरे वो साला गोली दे गया वो 5:00 बजे से पहले नहीं आएगा साले को आज ही पढ़ाई करनी थी….. "

नियति ने अनजाने में ही विकास के संबोधन को सच कर दिया था…

परंतु सोनू गोलीबाज न था। वह सचमुच अपरिहार्य कारणों बस स्टेशन ना पहुंच पाया परंतु जैसे ही उसे ट्रेनिंग क्लास से छुट्टी मिली वह भागता हुआ गेस्ट हाउस गया अपने दोस्त और उसकी माशूका से मिलने। कमरे के दरवाजे पर पहुंचते ही उसे सोनी की आवाज सुनाई पड़ गई जो विकास को जल्दी करने के लिए कह रही थी.

उत्तेजना धीमे बोलने की वजह से सोनी की आवाज को पहचानना सोनू के बस में ना था वैसे भी उसके दिमाग में सोनी का चेहरा नहीं आ सकता था।

सोनू अंदर कमरे में चल रही गतिविधि का अंदाज लगाने लगा वह भागते हुए अपने कमरे में गया और पीछे की लॉबी में आकर विकास के कमरे में अपनी आंख लगा दिया…


अंदर विकास ने विकास में सोनी के कहने पर उसकी बुर पर से अपने होंठ हटा लिए थे परंतु उसे अपने ऊपर आने के लिए मना लिया था..दृश्य अंदर का दृश्य बेहद उत्तेजक था...




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सोनू की आंखें सोनू की आंखें फटी रह गई..


शेष अगले भाग में..
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
विकास सोनू को अपनी सुहागरात के बारे में बता देता है सुगना लाली के यह से लाई हुई किताब को पढ़ कर फाड़ देती हैं क्यू की उसमे भाई बहिन की चूदाई स्टोरी थी वही सोनू भी होटल आ जाता है विकास और सोनी की चूदाई देखने देखते हैं आगे क्या होता है
 

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भाग 77
सोनू अंदर कमरे में चल रही गतिविधि का अंदाज लगाने लगा वह भागते हुए अपने कमरे में गया और पीछे की लॉबी में आकर विकास के कमरे में अपनी आंख लगा दिया…

अंदर विकास ने विकास में सोनी के कहने पर उसकी बुर पर से अपने होंठ हटा लिए थे परंतु उसे अपने ऊपर आने के लिए मना लिया था..दृश्य अंदर का दृश्य बेहद उत्तेजक था...

सोनू की आंखें सोनू की आंखें फटी रह गई..


अब आगे...

सोनू उस मदमस्त सुंदरी को विकास के लंड पर उछलते देख कर मदहोश हो गया। ऐसे दृश्य उसने गंदी किताबों में ही देखे थे परंतु आज अपनी खुली आंखों से देख रहा था।

लड़की बेशक माल थी। नितंब कसाव लिए हुए थे पतली कमर पर सजे नितंब और उसके बीच की वह गहरी घाटी ……सोनू की उत्तेजना अचानक चरम पर पहुंच गईं। जब वह लड़की अपनी कमर उपर करती विकास का छोटा काला लंड निकलकर बाहर आता और कुछ ही देर में वह लड़की उसे अपने भीतर स्वयं समाहित कर लेती। गुलाबी बुर में काले लंड का आना जाना सोनू को बेहद उत्तेजित कर रहा था…विकास की किस्मत से उसे अचानक जलन होने लगी।


उसके मन में उस सुंदर बुर में अपना लंड डालने की चाहत प्रबल हो उठी। इधर मन में चाहत जगी उधर लंड विद्रोह पर उतारू हो गया। यदि सोनू के हाथ लंड तक न पहुंचते तो निश्चित ही वह लगातार उछल रहा होता।

सोनू आंखें गड़ाए अंदर के दृश्य देखता रहा और अनजाने में अपनी ही छोटी बहन के नंगे मादक जिस्म का आनंद लेता रहा। अपने खुले बालों को अपनी पीठ पर लहराती सोनी लगातार विकास के लंड पर उछल रही थी और उसका भाई सोनू उसकी बुर को देख देख कर अपना लंड हिला रहा था।

जैसे-जैसे उस सोनी की उत्तेजना बढ़ती गई उसकी कमर की रफ्तार बढ़ती गई। विकास लगातार सोनी की चुचियों को मसल रहा था वह बार-बार अपना सर उठा कर उसकी चुचियों को मुंह में भरने का प्रयास करता।

सोनी कभी आगे झुक कर अपनी चूचियां विकास के मुंह में दे देती और कभी अपनी पीठ को उठा कर विकास के मुंह से अपने निप्पलों को बाहर खींच लेती। विकास अपनी दोनों हथेलियों से उसके नितंबों को पकड़ कर अपने लंड पर व्यवस्थित कर रहा था ताकि वह सोनी के उछलने का पूरा आनंद ले सकें।

विकास की मध्यमा उंगली बार-बार सोनी की गांड को छूने का प्रयास करती कभी तो सोनी उस उत्तेजक स्पर्श से अपनी कमर और हिलाती और कभी अपने हाथ पीछे कर विकास को ऐसा करने से रोकती। प्रेम रथ को नियंत्रित करने के कई कई कंट्रोल उपलब्ध थे.. विकास सोनी के कामुक अंगो को तरह तरह से छूकर सोनी को शीघ्र स्खलित करना चाहता था उसे सोनी को स्खलित और परास्त कर उसे चोदना बेहद पसंद आता था वह उसके बाद अपनी मनमर्जी के आसन लगाता और सोनी के कामुक बदन का समुचित उपयोग करते अपना वीर्य स्खलन पूर्ण करता।


सोनू अपनी ही बहन सोने के कामुक बदन का रसपान लेते हुए अपना लंड हिला रहा था ….सोनू सोच रहा था….क्या गजब माल है …. विकास तो साला बाजी मार ले गया. सोनू ने मन ही मन फैसला कर लिया हो ना हो वह भी इस छमिया को चोदेगा जरूर।

आखिर जो लड़की यूं ही गंधर्व विवाह कर इस तरह चुद रही हो वह निश्चित की वफादार और संस्कारी ना होगी। मन में बुर की कोमल गहराइयों को महसूस करते हुए लिए सोनू अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करता रहा..और उसका लंड लावा उगलने को तैयार हो गया…

इसी बीच विकास में सोनी को अपने ऊपर खींच लिया तथा तेजी से अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगा।

सोनी विकास के सीने पर सुस्त पड़ी हुई थी और अपनी गांड सिकोड़ रही थी। गांड का छोटा सा छेद कभी सिकुड़ता कभी फैलता। सिर्फ और सिर्फ नितंबों में हरकत हो रही थी और सोनी का शरीर पुरा निढाल पड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे वह चरमोत्कर्ष का आनंद ले रही थी..। विकास की हथेलियों में उसके कोमल नितंबों को पूरी तरह जकड़ा हुआ था..

उत्तेजक दृश्य को देखकर सोनू स्वयं पर और नियंत्रण न रख पाया और अपने लंड को और तेजी से हिलाने लगा। वह मन ही मन स्खलन के लिए तैयार हो चुका था।

उधर विकास ने उस लड़की को अपने सीने से उतार पीठ के बल लिटा दिया और उसकी जांघें फैला दी.. सोनी की चुदी हुई बुर विकास की निगाहों में आ गईं। बुर जैसे मुंह खोले सोनू के लंड का इंतजार कर रही थी। यह भावना इतनी प्रबल थी कि उसने सोनू के लंड को स्खलन पर मजबूर कर दिया… वीर्य की धार फूट पड़ी ठीक उसी समय विकास लड़की की जांघों के बीच से हट गया और उसका सोनू को सोनी का चेहरा दिखाई पड़ गया।


सोनी को देख सोनू हक्का-बक्का रह गया उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। सोनू के लंड से वीर्य की पिचकारी लगातार छूट रही थी। कुछ देर की चूदाई के दृश्य ने उसके लंड में इतनी उत्तेजना भर दी थी कि उसे रोकना नामुमकिन था। अपनी छोटी बहन को इस अवस्था में देखकर वह हतप्रभ था परंतु कमर के नीचे उत्तेजना अपना रंग दिखा रही थी। सोनू ने एक पल के लिए अपनी आंखें बंद कर लीं और झड़ता रहा परंतु सोनी की मदमस्त चूत ने उसे एक बार फिर आंखें खोलने पर मजबूर कर दिया।

सोनू अपनी ही छोटी बहन की बुर को देख लंड से वीर्य निचोड़ता रहा।

विकास एक बार फिर सोनी की जांघों के बीच आकर उसकी बुर को चूम रहा था। अपनी बहन को इस तरह विकास से चुदाते देखकर उसका मन क्षुब्ध हो गया उसे बार-बार यही अफसोस हो रहा था की काश ऐसा ना हुआ होता …उसकी आंखों का देखा झूठ हो जाता परंतु यह संभव न था ।

सोनू विकास के कमरे से सटे अपने कमरे में बैठकर सामान्य होने की कोशिश करने लगा। परंतु यह उतना ही कठिन था जितना जुए में सब कुछ आने के बाद सामान्य हो जाना।


रह रह कर सोनू के मन में टीस उठ रही थी की क्यों विकास और सोनी एक दूसरे के करीब आए,,? मनुष्य अपनी गलतियां और कामुक क्रियाकलाप भूल जाता उसे दूसरे द्वारा की गई कामुक गतिविधियां व्यभिचार ही लगती हैं। यही हाल सोनू का था एक तरफ वह स्वयं अपनी मुंहबोली बड़ी बहन लाली को कई महीनों से चोद रहा था पर अपनी ही छोटी बहन के समर्पित प्रेम प्रसंग से व्यथित और क्रोधित हो रहा था।

अपनी काम यात्रा की यात्रा को याद कर सोनू सोनी को माफ करता गया… आखिर उसने भी तो बेहद कम उम्र में लाली के काम अंगों से खेलना शुरू कर दिया था और राजेश जीजू से नजर बचाकर लाली को चोदना शुरू कर दिया था यह अलग बात थी कि जो सोनू लाली के साथ जो कर रहा था वह कहीं ना कहीं राजेश की ही इच्छा थी। कुछ देर के उथल-पुथल के बाद आखिर सोनू विकास से मिलने को तैयार हो गया।

डिंग डांग ….आखिरकार हिम्मत जुटाकर सोनू ने विकास के रूम की बेल बजा दी..

"अपने कपड़े ठीक कर लो लगता है लगता है मेरा दोस्त ही होगा"

सोनी ने स्वयं को व्यवस्थित किया और उठ कर खड़ी हो गई दरवाजा खुल चुका था और सोनू सामने खड़ा था। सोनू को देखकर सोनी की घिग्घी बंध गई।

उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें …परंतु इतना तो उसे अवश्य पता था कि इस परिस्थिति में कोई भी झूठ कारगर नहीं होने वाला था।


वह तुरंत ही अपने भाई के पैरों पर गिर पड़ी..झुकी हुई सोनी के मादक नितंब एक बार फिर सोनू की निगाहों में आ गए जो अब कपड़ों के भीतर कैद होकर अपनी सुंदर त्वचा को छुपाने में तो कामयाब हो गए कोमल और सुडौल गोलाईयों को छुपाना असंभव था।

सोनू ने कुछ नहीं कहा अपितु सोनी को कंधे से पकड़ कर ऊपर उठाया और विकास से बोला

"अरे वाह तेरे को मेरी ही बहन मिली थी शादी करने के लिए"

विकास हकलाने लगा…

"सो…. सोनी तेरी बहन है?"

"हां भाई ….मेरी बहन है" सोनू के लिए अभिनय उतना ही कठिन हो रहा था जितना मार खाए बच्चे के लिए हंसना। परंतु सोनू वक्त की नजाकत को समझता था। विकास स्वयं हक्का-बक्का था अपनी जिस प्रेमिका की बातें कर उसने और सोनू में न जाने कितनी बार मुठ मारी थी आज वह प्रेमिका कोई और नहीं अपितु सोनू की बहन थी। परंतु जो होना था वह हो चुका था।

विकास सोनू के गले लग गया और भावुक होते हुए बोला

"भाई तेरी बहन मेरी ब…विकास की जबान रुक गई."

दोनो दोस्त हंसने लगे …सोनी भी अपनी पीठ उन दोनों की तरफ कर मुस्कुराने से खुद को ना रोक पाई। अपने भाई से माफी पाकर उसे तो मानो सातों जहान की खुशियां मिल गई थीं। क्या सोनू ने उसे सचमुच माफ कर दिया और उसके और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर लिया था ? यह तो सोनू ही जाने पर सोनी खुश थी।


अब जब सोनू मान चुका था तो सोनी को परिवार वालों से कोई डर न था। वैसे भी सोनू अब धीरे-धीरे परिवार के मुखिया की जगह ले रहा था। सुगना दीदी का आधिपत्य साझा करने वाला यदि घर में कोई था तो वह सोनू ही था।

सोनू ने सोनी से पूछा

"सुगना दीदी के मालूम बा ई सब?"

सोनी ने एक बार फिर रोनी सूरत बना ली..


सोनू तुरंत ही समझ गया। अब जब उसने सोनी को एक बार माफ किया था तो एक बार और सही उसने अपने हाथ खोले और सोनी उसके सीने से सट गई। आज सोनी पूरी आत्मीयता से सोनू के गले लगी थी शायद इसमें उसका अपराध बोध भी था..और सोनू के प्रति कृतज्ञता भी।

जब आत्मीयता प्रगाढ़ होती है आलिंगन में निकटता बढ़ जाती है आज पहली बार सोनू ने सोनी की चुचियों को अपने सीने पर महसूस किया। निश्चित ही यह लाली से अलग थी कठोर और मुलायम .. नियति स्वयं निश्चय नहीं कर पा रही थी कि वह उन मादक सूचियों को क्या नाम दें। सोनी के मादक शरीर का स्पर्श पाकर सोनू के दिमाग में कुछ पल पहले देखे गए दृश्य घूम गये ..

उसने सोनी को स्वयं से अलग किया और बोला…तुम दोनों तैयार हो जाओ बाहर घूमने चलेंगे।

शाम हो चुकी थी सोनू ने विकास और सोनी को बाहर ले जाकर एक अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खिलाया और फिर उन्हें अकेला छोड़ दिया। जब-जब सोनू सोनी की तरफ देखता उसे एक अजब सा एहसास होता। उसके दिमाग में बार-बार वही दृश्य घूमने और उसकी निगाहें बरबस ही सोनी के शरीर का माप लेने लगती। वह एक बार फिर अपने दिमाग में चल रहे द्वंद्व में शामिल हो गया क्या वह फिर विकास के कमरे में झांकने की हिम्मत करेगा…. छी छी अपनी ही छोटी बहन को चुदवाते हुए देखना…. नहीं मैं यह नहीं करूंगा…

सोनी इस बात से अनजान थी कि सोनू उसे चूदते हुए देख चुका था। परंतु सोनी की शर्म के लिए इतना ही काफी था कि वह अपने बड़े भाई के सामने अपने प्रेमी के साथ बैठे खाना खा रही थी।

सोनू अपने मन में बार-बार एक ही बात सोचता कि काश विकास की छमिया उसकी बहन न होकर कोई और होती ….

सोनू ने गेस्ट हाउस में अपने लिए भी कमरा बुक कराया था परंतु उसकी वहां रुकने की हिम्मत ना हुई उसे वहां रुकना असहज लग रहा था। अब जब यह बात मालूम चल ही चुकी थी कि सोनी उसकी अपनी सगी बहन है उनके कमरे के ठीक बगल में रुक कर वह उन्हें और स्वयं को असहज नहीं करना चाहता था वह अपने हॉस्टल लौट आया।

सोनू अपने बिस्तर पर पड़ा नियति के दिए इस दर्द को झेलने की कोशिश कर रहा था। उसने यह कभी भी नहीं सोचा था की सोनी की शारीरिक जरूरतें इतनी प्रबल हो जाएंगी कि उसे गंधर्व विवाह स्वीकार करना पड़ेगा। परंतु जो होना था वह हो चुका था।


विकास द्वारा सोनी के बारे में बताई गई बातें सोनू के दिमाग में घूम रही थी। विकास सोनी के साथ की गई कामुक गतिविधियों का विस्तृत विवरण सोनू को अक्सर सुनाया करता था। जब जब वह विकास के उद्धरण को याद करता उसका लंड तन जाता और वह उस अनजान नायिका के नाम पर अपना वीर्य स्खलन कर लेता। परंतु आज वह इस स्थिति में नहीं था। पर जब जब उसे वह सोनी का विकास के लंड पर उछलने का दृश्य याद आता सोनू का लंड तन कर खड़ा हो जाता और सोनू की उंगलियां बरबस उसे सहलाने लगती।

सोनू ने अपना ध्यान सोनी पर से हटाने की कोशिश की वह एक बार फिर अपनी लाली दीदी के बारे में सोचने लगा। उसने अपना ध्यान लाली दीदी की आखरी चूदाई पर ध्यान लगाने की कोशिश की। सोनू का ध्यान उस आखिरी पल पर केंद्रित हो गया जब उसकी निगाहें सुगना से मिली थी और उसने आंखें बंद कर लाली की बुर में गचागच अपना लंड आगे पीछे करना शुरू कर दिया था।

अपनी आंखें बंद करके उसने जो क्षणिक रूप से सोचा था उसे वह याद आने लगा…. सुगना दीदी के साथ ……छी….वह उस बारे में दोबारा नहीं सोचना चाहता था।

परंतु क्या यह संभव था….. एक तरफ सोनू के जेहन में अपनी नंगी छोटी बहन के विकास के लंड पर उछलने के दृश्य घूम रहे थे दूसरी तरफ उसे अपनी घृणित सोच पर अफसोस हो रहा था कैसे उसने उन उत्तेजक पलों के दौरान सुगना दीदी को चोदने की सोच ली थी….

इस उहाफोह से अनजान सोनू का लंड पूरी तरह तन चुका था और उसकी मजबूत हथेलियों में आगे पीछे हो रहा था।


सोनू ने अपना ध्यान लाली पर केंद्रित करने की कोशिश की परंतु शायद वह संभव न था। सोनी और सुगना दोनों ही सोनू के विचारों में आ चुकी थीं जैसे अपना अधिकार मांग रही हों।

सोनू वैसे तो कुटुंबीय संबंधों में विश्वास नहीं करता था परंतु परिस्थितियां उसे ऐसा सोचने पर मजबूर कर रही थी। दोनों बहने जो कामुक बदन तथा मासूम चेहरे की स्वामी थीं सोनू का ध्यान बरबस अपनी तरफ आकर्षित कर रही थीं।


अब तक के ख्याली पुलाव से सोनू का लंड वीर्य उगलने को फिर तैयार हो गया।

सोनू ने एक बार फिर लाली के चूतड़ों के बीच अपने लंड को हिलते हुए याद किया तथा अपनी आंखे बंद कर एक बार फिर अपना वीर्य स्खलन पूर्ण कर लिया… सोनू के स्खलन में आनंद तो भरपूर था परंतु स्खलन के उपरांत उसे फिर आत्मग्लानि ने घेर लिया. छी… उसकी सोच गंदी क्यों होती जा रही है? क्या यह सब सोचना उचित है? कितना निकृष्ट कार्य है यह…?

सोनू अपने अंतर्मन से जंग लड़ता हुआ छत के पंखे की तरफ देख रहा था जो धीरे धीरे घूम रहा था। सोनू के दिमाग ने आत्मसंतुष्टि के लिए एक अजब सा खेल सोच लिया पंखे की पत्तियां उसे अपनी तीनों बहनों जैसी प्रतीत हुई एक सोनी दूजी लाली और तीसरी उसकी सुगना दीदी।

क्या नियति ही उन्हें उसके पास ला रही थी? क्या यह एक संयोग मात्र था की उसकी सुगना दीदी उसके और लाली के कामुक मिलन को देख रही थीं? क्या सोनी के चूत की आग इतनी प्रबल हो गई थी कि वह अपने विवाह तक का इंतजार ना कर पाई….

सोनू ने मन ही मन कुछ सोचा और सिरहाने लगे स्विच को दबाकर पंखे को बंद कर दिया वह पंखा रुकने का इंतजार कर रहा था और अपने भाग्य में आई अपनी बहन को पहचानने की कोशिश। अंततः लाली ही सोनू के भाग्य में आई..

सोनू के चेहरे पर असंतुष्ट के भाव थे वह मन ही मन मुस्कुराया और एक बार फिर पंखे का स्विच दबा दिया.. और नियति के इशारे की प्रतीक्षा करने लगा। आजाद हुआ पिछले परिणाम से संतुष्ट न था। इस बार नियति ने उसे निराश ना किया नियति ने सोनू की इच्छा पढ़ ली…

अनुकूल परिणाम आते ही सोनू का कलेजा धक-धक करने लगा क्या यह उचित होगा? क्यों नहीं? आखिर लाली दीदी और सुगना दीदी दोनों उम्र ही तो है।

वासना से घिरा हुआ सोनू.. सुगना के बारे में सोचने लगा..

जब सोच में वासना भरी हुई तो मनुष्य के जीवन में वही घटनाक्रम आते हैं जो उसकी सोच को प्रबल करते हैं सोनू उस दिन को याद कर रहा था जब हरे भरे धान के खेत में सुगना धान के पौधे रोप रही थी। वह उसके पीछे पीछे वही कार्य दोहराने की कोशिश कर रहा था।…

कुछ देर पहले हुए वीर्य स्खलन ने सोनू को कब नींद की आगोश में ले लिया पता भी न चला अवचेतन मन में चल रहे दृश्य स्वप्न का रूप ले चुके थे..


सोनू बचपन से ही शरारती था…सोनू ने धान की रोपनी कर रही सुगना के घाघरे को ऊपर उठा दिया. आज सपने में भी सोनू वही कर रहा था जो वह बचपन में किया करता था पर तब यह एक आम शरारत थी।

पर तब की और आज की सुगना में जमीन आसमान का अंतर था। पतली और निर्जीव सी दिखने वाली टांगे अब केले के तने के जैसी सुंदर और मांसल हो चुकी थी …. उनकी खूबसूरती में खोया सोनू स्वयं में भी बदलाव महसूस कर रहा था। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसके वह अब बच्चा नहीं रहा था। सोनू ने सुगना का लहंगा और उठा दिया….सुगना के नितंब सोनू की निगाहों के सामने आ गए दोनो गोलाईयों के बीच का भाग अपनी खूबसूरती का एहसास करा रहा था। परंतु बालों की कालीमां ने अमृत कलश के मुख पर आवरण बना दिया था। वह दृश्य देखकर सोनू मदहोश हो रहा था। अपने स्वप्न में भी उसे व दृश्य बेहद मादक और मनमोहक लग रहा था।

सोनू अपने बचपन की तरह सुगना की डांट की प्रतीक्षा कर रहा था। जो अक्सर उसे बचपन में मिला करती थी। परंतु आज ऐसा न था । सुगना उसी अवस्था में अब भी धान रोप रही थी। जब वह धान रोपने के लिए नीचे झुकती एक पल के लिए ऐसा प्रतीत होता जैसे बालों के बीच छुपी हुई गुलाब की कली उसे दिखाई पड़ जाएगी।

परंतु सोनू का इंतजार खत्म ही नहीं हो रहा था अधीरता बढ़ती गई और सोनू की उत्तेजना ने उसे अपने लंड को बाहर निकालने पर मजबूर कर दिया।


सोनू का ध्यान अपने लंड पर गया जो अब पूरे शबाब में था। सोनू अपनी हथेलियों में लेकर उसे आगे पीछे करने लगा… उसका ध्यान अब भी सुगना की जांघों के बीच उस गुलाब की कली को देखने की कोशिश कर रहा था। अचानक सुगना की आवाज आई

"ए सोनू का देखा तारे?"

"कुछ भी ना दीदी"

"तब एकरा के काहे उठाओले बाड़े?" सुगना अपने घागरे की तरफ देखते हुए बोली

सोनू अपने स्वप्न में भी शर्मा जाता है परंतु हिम्मत जुटा कर बोलता है

"पहले और अब में कितना अंतर बा"

"ठीक कहा तारे"

सुगना की निगाहें सोनू के लंड की तरफ थीं.. जिसे सोनू ने ताड़ लिया और उसके कहे वाक्य का अर्थ समझ कर मुस्कुराने लगा..

अचानक सोनू को सुगना के बगल में सुगना के बगल में धान रोपती लाली भी दिखाई पड़ गई। सोनू ने वही कार्य लाली के साथ भी किया…

लाली और सुगना दोनों अपने-अपने घागरे को अपनी कमर तक उठाए धान रोप रही थी नितंबों के बीच से उनकी बुर की फांके बालों के बादल काले बादल को चीर कर अपने भाई को दर्शन देने को बेताब थीं।

सोनू से और बर्दाश्त ना हुआ उसने ने हाथ आगे किए और और सुंदरी की कमर को पकड़ कर अपने लंड को उस गुफा के घर में प्रवेश कराने की कोशिश करने लगा बुर पनियायी हुई थी परंतु उसमे प्रवेश इतना आसान न था…सोनू प्रतिरोध का सामना कर रहा था..

चटाक…. गाल पर तमाचा पड़ने की आवाज स्पष्ट थी…

शेष अगले भाग में…
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
सोनू खिड़की से विकाश और सोनी की चूदाई देखकर विकाश से जलन होती हैं फिर वह अंदर जाकर देखता की वह लड़की कोई और नहीं उसकी बहन सोनी है मजबूरन विकास को बताना पड़ता है की वह उसकी बहन है देखते हैं आगे होता है
 

Lovely Anand

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Behtreen update

बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
लव्हली भाई की कहानी आनंद ही आनंद देती है
मेरे जैसे पाठक वक्त की कमी के कारण बहुत कम वक्त दे पाते है
मै शुरुवात से ही आनंद भाई के इस कहानी से जुडा हु और इस कहानी का कायल हु .......
कहानी ने अपना रुख बदल कर एक जबरदस्त मोड पर आगयी हैं
आगे देखते हैं क्या क्या धमाचौकडी होती है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

Ab dekhte h ki Sonu ko kesa mza milta h

Sahib ab 20 comment ho gyi h ab update de dijiye

बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
विकास सोनू को अपनी सुहागरात के बारे में बता देता है सुगना लाली के यह से लाई हुई किताब को पढ़ कर फाड़ देती हैं क्यू की उसमे भाई बहिन की चूदाई स्टोरी थी वही सोनू भी होटल आ जाता है विकास और सोनी की चूदाई देखने देखते हैं आगे क्या होता है


सभी साथियों को धन्यवाद अब तक कुल 16 पाठकों के कमेंट आ चुके है... मुझे यह जानकर हर्ष हो रहा है की इस कहानी के चाहने वाले कम से कम 16 व्यक्ति तो अवश्य हैं...

मुझे अब भी विश्वास है की मेरे शांत पाठक सिर्फ कहानी के पटल पर आकर अपनी उपस्थिति का एहसास करा दें और इस कहानी को आगे बढ़ाने में अपना सहयोग दे मेरे अपडेट्स तैयार हैं और पाठकों की प्रतीक्षा कर रहे हैं...

शांत पाठकों की वजह से मेरे सक्रिय पाठकों को जो इंतजार करना पड़ रहा है उसके लिए मुझे खेद है
 

Sanju@

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भाग 78

लाली और सुगना दोनों अपने-अपने घागरे को अपनी कमर तक उठाए धान रोप रही थी नितंबों के बीच से उनकी बुर की फांके बालों के बादल काले बादल को चीर कर अपने भाई को दर्शन देने को बेताब थीं।

सोनू से और बर्दाश्त ना हुआ उसने ने हाथ आगे किए और और सुंदरी की कमर को पकड़ कर अपने लंड को उस गुफा के घर में प्रवेश कराने की कोशिश करने लगा बुर पनियायी हुई थी परंतु उसमे प्रवेश इतना आसान न था…सोनू प्रतिरोध का सामना कर रहा था..

चटाक…. गाल पर तमाचा पड़ने की आवाज स्पष्ट थी…


अब आगे..

सोनू अचानक ही अपने सपने से बाहर आ गया अकस्मात पड़े सुगना के इस तमाचे ने उसकी नींद उड़ा दी। वह अचकचा कर उठ कर बैठ गया। पूरी तरह जागृत होने के पश्चात उसके होठों पर मुस्कुराहट आ गई। यह दुर्घटना एक स्वप्न थी यह जानकर वह मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

वह एक बार फिर बिस्तर पर लेट गया और अपने अधूरे सपने को आगे देखने का प्रयास करने लगा परंतु अब वह संभव नहीं था…….. पर एक बात तय थी सोनू बदल रहा था…

इधर सोनू की आंखों से नींद गायब थी और उधर बनारस में सुगना की आंखों से । आज जब से सोनी लखनऊ के लिए निकली थी तब से बार-बार घर में सोनू का ही जिक्र हो रहा था। लाली और सुगना बार-बार सोनू के बारे में बातें कर रहे थे।

यह अजीब इत्तेफाक था सोनू दोनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था दोनों का प्यार अलग था पर सुगना और सोनू का भाई बहन का प्यार अब स्त्री पुरुष के बीच होने वाले प्यार से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था।

लाली द्वारा कही गई बातें अब भी सुगना के जेहन में गूंज रही थीं।

दरअसल बच्चों के सो जाने के बाद दोनों सहेलियां अकेली हो गई थी। सोनू के जाने के बाद लाली वैसे भी अकेली थी और आज सोनी के लखनऊ जाने के बाद सुगना भी अकेलापन महसूस कर रही थी। उसने लाली को अपने पास ही बुला लिया …दोनों घरों के बीच दीवार न होने का यही सबसे बड़ा फायदा था। लाली और सुगना एक दूसरे के घर में बेबाकी से आ जाया करती थी बिना किसी औपचारिकता के।

लाली अपने बच्चों को सुला कर सुगना के पास आ गई..

*का बात बा मन नइखे लागत का?"

"सोनी के जाये के बाद सच में खालीपन लागता"

"अरे वाह तोरा सिर्फ सोनी के चिंता बा सोनू के गईला से तोरा जैसे कोनो फर्क नइखे"

"हमरा का पड़ी तोरा ज्यादा बुझात होई"

सुगना ने यह बात मुस्कुराते हुए कही। लाली उसका इशारा समझ चुकी थी उसने भी मुस्कुराते ही कहा..

"सोनुआ रहित त तोरो सेतीहा में सिनेमा देखे के मिल जाईत…"

"का कहा तारे ? कौन सिनेमा?" सुगना सचमुच लाली की बातों को नहीं समझ पाई थी..उसका प्रश्न वाजिब था..


लाली भी सुगना को शर्मसार नहीं करना चाहती थी उसने बात बदलने की कोशिश की

" चल छोड़ जाए दे "

"बताओ ना…. बोल ना का बोला तले हा" लाली के उत्तर न देने पर सुगना ने उसके उसे कंधे से हिलाते हुए कहा…

"ओ दिन जब सोनूआ जात रहे ते कमरा में काहे झांकत रहले?"

आखिरकार जिस बात पर पर्दा कई दिनों से पड़ा हुआ था उसे लाली ने उठा दिया। सुगना निरुत्तर हो गई। सुगना ने नजर चुराते हुए कहा


"जाय दे छोड़ ऊ कुल बात"

"ना ना अब तो बतावही के परी"

सुगना का चेहरा शर्म से लाल हो चुका था और नजरें झुक गई थी वह कुछ बोल पाने की स्थिति में न थी

"अच्छा ई बताओ कि केकरा के देखत रहले हमरा के की सोनुआ के?"

"पागल हो गईल बाड़े का? सोनुआ हमर भाई हा हम तो देखत रहनी की ते सोनुआ के कतना बिगाड़ देले बाड़े.."

"आंख मिला कर ई बात बोल नजर काहे छुपवले बाड़े"

नजर मिलाकर झूठ बोलना सुगना की फितरत में न था। उसने अपनी नजरें ना उठाई.

"झूठ बोला तारे नू, पूरा मर्द बन गइल बा नू....हम कहत ना रहनी की सोनुआ के पक्का मर्द बना के छोड़ब ओकर मेहरारू हमर नाम जपी "

"ठीक बा ठीक बा साल भर और मजा ले ले ओकरा बाद हम ओकर ब्याह कर देब.."

सोनू की शादी की बात सुनकर लाली थोड़ा दुखी हो गई … उसे यह तो पता था कि आने वाले समय में सोनू का विवाह होगा पर इतनी जल्दी? इस बात की कल्पना लाली ने ना की थी।

"अरे अभी ओकर उम्र ही कतना बा तनी नौकरी चाकरी में सेट हो जाए तब करिए काहे जल्दीआईल बाड़े?"

"लागा ता तोर मन भरत नईखे…" अब बारी लाली की थी वो शरमा गई और उसने बात बदलते हुए कहा


"अच्छा ई बताऊ यदि सोनू तोरा के देख लिहित तब?"

सुनना ने लाली के प्रश्न पूछने के अंदाज से उसने यह अनुमान लगा लिया कि लाली यह बात नहीं जानती थी कि सुगना और सोनू की नजरें आपस में मिल चुकी थीं उसने लाली को संतुष्ट करते हुए

"अरे एक झलक ही तो देखले रहनी ऊ कहा से देखित ऊ तोरा जांघों के बीच पुआ से रस पीयत रहे … सच सोनूवा जरूरत से पहले बड़ हो गईल बा …"

लाली के दिमाग में शरारत सूझी

" खाली सोनू ने के देखले हा की ओकर समान के भी?" लाली ने जो पूछा था सुगना उसे भली-भांति समझ चुकी थी

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई दोनों युवा स्त्रियां दूसरे की अंतरंग थी…एक दूसरे का मर्म भलीभांति समझती थी …

"जब देख लेले बाड़े तो लजात काहे बाड़े" लाली ने फिर छेड़ा।


सुगना ने कोई उत्तर न दिया उसके लब कुछ कहने को फड़फड़ा रहे थे परंतु उसकी अंतरात्मा उसे रोक रही थी जितनी आसानी से लाली कोई बात कह देती थी उतना सुगना के लिए आसान न था। उसका व्यक्तित्व उसे ओछी बात कहने से सदैव रोकता।

" आखिर भाई केकर ह?_सुगना ने समुचित उत्तर ढूंढ लिया था

" काश सोनुआ तोर आपन भाई ना होखित.."

" काहे …काहे …अइसन काहे बोलत बाड़े?"

"ई बात तेहि सोच..हमारा नींद आवता हम जा तानी सूते"


लाली सुगना के कमरे से बाहर जा रही थी और सुगना अपने दिल की बढ़ी हुई धड़कनों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही थी… लाली के जाते ही सुनना बिस्तर पर लेट गईं। और एक बार फिर उसी प्रकार छत पर देखने लगे जैसा लखनऊ में बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू देख रहा था। फर्क सिर्फ इतना था की सोनू ने अपनी कल्पना की उड़ान कुछ ज्यादा थी जबकि सुगना उस बारे में सोचना भी नहीं चाहती थी। पर परिस्थितियां और नियति ने सुगना को अपनी साजिश का हिस्सा बना लिया था क्या सुगना …सोनू के साथ….

सभ्य और आकर्षक व्यक्तिव की सुगना को इस वासना के दलदल में घसीटते हुए नियत भी सोच रही थी परंतु जो होना था शायद नियति के बस में भी नहीं था…

इसे संयोग कहें या टेलीपैथी सुगना ने भी अपने स्वप्न में वही दृश्य दखे जो कमोबेश सोनू न देखें थे और जैसे ही सोनू ने उसे पकड़ने की कोशिश की सुगना का हाथउठ गया….. और उस चटाक की गूंज से सुगना की भी नींद भी खुल चुकी थी। बिस्तर पर बड़े भाई बहन मन में एक अजब सी हलचल लिए हुए पंखे को ताक रहे थे।

लाली ने उस बात का जिक्र कर दिया था जिसे सुगना महसूस तो करती थी परंतु अपने होठों पर लाना नहीं चाहती थी उसके दिमाग में लाली के शब्द मंदिर के घंटों की तरह बज रहे थे।

जाने वह कौन सी मनहूस घड़ी थी जब उसने लाली को अपने पास बुलाया था..

सुगना की रात बेहद कशमकश में गुजरी वह बार-बार सोनू के बारे में सोचती रही। रात में उसकी पलकें तो बंद हुई पर दिमाग में तरह-तरह के ख्याल घूमते रहे। कुछ स्वप्न रूप में कुछ अनजान और अस्पष्ट रूप में । कभी उसे सपने में सरयू सिंह दिखाई पड़ते कभी उनके साथ बिताए गए अंतरंग पल ।

कभी उसके पति रतन द्वारा बिना किसी प्रेम के किया गया योनि मर्दन .. न जाने क्या क्या कभी कभी उसे अपने सपने में अजीब सी हसरत लिए लाली का पति स्वर्गीय राजेश दिखाई पड़ता…

अचानक सुगना को अपनी तरफ एक मासूम सा युवक आता हुआ प्रतीत हुआ…अपनी बाहें खोल दी और वह युवक सुगना के आलिंगन में आ गया सुगना उसके माथे को सहला रही थी और उस युवक के सर को अपने सीने से सटाए हुए थी अचानक सुगना ने महसूस किया की उस युवक के हाथ उसके नितंबों पर घूम रहे हैं स्पर्श की भाषा सुगना अच्छी तरह समझती थी उसने उस अनजान युवक को धकेल कर दूर कर दिया वह युवक सुगना के पैरों में गिर पड़ा और हाथ जोड़ते हुए बोला

"मां मुझे मुक्ति दिला दो….."

अचानक सुगना ने महसूस किया उसका शरीर भरा हुआ था। हाथ पैर उम्र के अनुसार फूल चुके थे। सुगना अपने हाथ पैरों को नहीं पहचान पा रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह एक अधेड़ महिला की तरह हो चुकी थी। सुगना समझ चुकी थी कि वह किशोर युवक कोई और नहीं उसका अपना पुत्र सूरज था जो विद्यानंद द्वारा बताए गए शॉप से अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढ रहा था। क्या सुगना अपने पुत्र को शाप से मुक्त करने के लिए उसके जन्म मार्ग को स्वयं उसके ही वीर्य द्वारा अपवित्र करने देगी..?

यह प्रश्न जितना हकीकत में कठिन था उतना स्वप्न में भी। सुगना इस प्रश्न का उत्तर न तो जागृत अवस्था में दे सकती थी न स्वप्न में । अलग बात थी कि वह अपने पुत्र प्रेम के लिए अंततः कुछ भी करने को तैयार थी।

इस बेचैनी ने सुगना की स्वप्न को तोड़ दिया और वह अचकचा कर उठ कर बैठ गई । हे भगवान यह आज क्या हो रहा है। सुगना ने उठकर बाहर खिड़की से देखा रात अभी भी बनारस शहर को अपने आगोश में लिये हए थी। घड़ी की तरफ निगाह जाते ही सुगना को तसल्ली हुई कुछ ही देर में सवेरा होने वाला था।

सुगना ने और सोने का प्रयास न किया। आज अपने स्वप्न में उसने जो कुछ भी देखा था उससे उसका मन व्यथित हो चला था।


उधर लाली ने उसके दिमाग में पहले ही हलचल मचा दी थी और आज इस अंतिम स्वप्न में उसे हिला कर रख दिया था। सुगना ने बिस्तर पर सो रही छोटी मधु और सूरज को देखा और मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया जिसमें उसे इस पाप से बचाने के लिए मधु को भेज दिया था। सुगना दृढ़ निश्चय कर चुकी थी कि वह समय आने पर एक बार के लिए ही सही मधु और सूरज का मिलन अवश्य कराएगी तथा सूरज की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी ….

लाली और सुगना की मुलाकात अगली सुबह कई बार हुई परंतु न सुगना ने लाली को छेड़ा और ना लाली ने सुगना को। पर लाली द्वारा कही गई बातें बार-बार सुगना के जहन में घूम रही थी। क्या सोनू सच में उसके बारे में ऐसा सोचता होगा? उसे याद आ रहा था कि कैसे नजरें मिलने के बाद भी सोनू लाली को बेहद तेजी से चोदने लगा था। अपनी बड़ी बहन के प्रति इस प्रकार की उत्तेजना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.. सुगना के प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई न था परंतु सुगना को अपनी जांघों के बीच चिपचिपा पन का एहसास हुआ और शायद उसे उसका उत्तर मिल गया।

दोनों अंतरंग सहेलियां ज्यादा देर तक एक दूसरे से दूर ना रह पाईं । दोपहर का एकांत उन्हें फिर करीब खींच लाया और सुगना और लाली के बीच उपजा मीठा तनाव समाप्त हो गया परंतु उसने सुगना के श्वेत धवल विचारों में कामवासना की लालिमा छोड़ दी थी..


एक-दो दिन रह कर और सोनी और विकास वापस बनारस आ गए थे। पिछले सात आठ दिनों में सोनी और विकास इतने करीब आ गए थे जैसे नवविवाहित पति पत्नी। बातचीत का अंदाज बदल चुका था। निश्चित ही वह सात आठ दिनों से हो रही सोनी की घनघोर चूदाई का परिणाम था। जब अंतरंगता बढ़ जाती है तो बातचीत का अंदाज भी उसी अनुपात में बदल जाता है। नई नवेली वधू में लाज शर्म और संभोग उपरांत शरीर में आई आभा स्पष्ट दिखाई पड़ती है। पारखी लोग इस बात का अंदाजा भली-भांति लगा सकते हैं।


सोनी के शरीर में आई चमक भी इस बात को चीख चीख कर कह रही थी कि सोनी बदल चुकी है उसके चेहरे और शरीर में एक अलग किस्म की कांति थी।

सरयू सिंह अपनी भाभी कजरी को लेकर बनारस पधारे हुए थे. सोनी चाय लेकर आ रही थी सरयू सिंह सोनी के व्यवहार और शरीर में आए बदलाव को महसूस कर रहे थे। अचानक वह एक किशोरी से एक युवती की भांति न सिर्फ दिखाई पड़ रही थी अपितु बर्ताव भी कर रही थी…

चाय देते समय अचानक ही सरयू सिंह का ध्यान सोनी की सीने में छुपी घाटी पर चला गया जो डीप गले के कुर्ते से झांक रही थी। सरयू सिंह की निगाहें दूर और दूर तक चली गई ।

दुधिया घाटी के बीच छुपे अंधेरे ने उनकी निगाहों का मार्ग अवरुद्ध किया और सोनी द्वारा दिए चाय के गर्म प्याले के स्पर्श ने उन्हें वापस हकीकत में ढकेल दिया पर इन चंद पलों ने उनके काले मूसल में एक सिहरन छोड़ थी।

वह कुर्सी पर स्वयं को व्यवस्थित करने लगे जब एक बार नजरों ने वह दृष्टि सुख ले लिया वह बार-बार उसी खूबसूरत घाटी में घूमने की कोशिश करने लगी। परंतु सरयू सिंह मर्यादित पुरुष थे उन्होंने अपनी पलकें बंद कर लीं और सर को ऊंचा किया । कजरी ने उन्हें देखा और बोली

"का भईल कोनो दिक्कत बा का?"

वो क्या जवाब देते। सरयू सिंह को कोई उत्तर न सूझ रहा था उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा…

" मिजाज थाक गईल बा.." सरयू सिंह ने बात टालने की कोशिश की।

जैसे ही सोनी चाय लेकर कजरी की तरफ बढ़ी सोनी के कमर के कटाव सरयू सिंह की निगाहों में आ गए पतले कुर्ते के भीतर से भी कमर का आकार स्पष्ट दिखाई दे रहा था. सरयू सिंह को कमर का वह कटाव बेहद पसंद आता था।

सोनी के शरीर में आया यह बदलाव अलग था जो नवविवाहिता ओं में में सामान्यतः देखा जा सकता सरयू सिंह इस कला के पारखी थे….

उन्होंने बेहद संजीदगी से कहा

"लागा ता अब सोनी के ब्याह कर देवें के चाही आजकल जमाना ठीक नईखे"

कजरी ने भी शायद वही महसूस किया था जो शरीर सिंह ने। उस ने मुस्कुराते हुए कहा

"कवनो बढ़िया लाइका देखले रखीं ट्रेनिंग पूरा होते ही ब्याह कर दीहल जाओ"

सरयू सिंह और कजरी चाय की ट्रे लेकर वापस जाती हुई सोनी को देख रहे थे। सच में कुछ ही दिनों की गचागच चूदाई का असर सोनी के पिछवाड़े पर पड़ चुका था। कमर का कटाव और नितंबों का आकार अचानक ही मर्दों का ध्यान रहे थे। सोनी के चेहरे पर नारी सुलभ लज्जा स्पष्ट दिखाई पड़ रही सोनी जो अब विवाहिता थी अपने पूरे शबाब पर थी। सोनी लहराती हुई वापस चली गई परंतु सरयू के शांत पड़ चुके वासना के अंधेरे कुएं में जुगनू की तरह रोशनी कर गई..

नियति स्वयं उधेड़बुन में थी…वासना के विविध रूप थे.. सरयू सिंह की निगाहों में जो आज देखा था उसने नियति को ताना-बाना बुनने पर मजबूर कर दिया…

तभी सुगना चहकती हुई कमरे में आई सरयू सिंह एक आदर्श पिता की भांति व्यवहार करने…

सूरज उछल कर की आवाज में " बाबा.. बाबा ..करते पिता की गोद में आ गया" …और उनकी मूछों से खेलने लगा। सरयूयो सिंह बार-बार छोटे सूरज की गालों पर चुम्बन लेने लगे। सुगना का दृश्य देख रही थी और उनके चुंबनों को अपने गालों पर महसूस कर रही थी। शरीर में एक अजब सी सिहरन हुई और वह अपना ध्यान सरयू सिंह से हटाकर …कजरी से बातें करने लगी सुगना और सरयू सिंह ने जो छोड़ आया था उसे दोहरा पाना अब लगभग असंभव था।……

"सोनू कब आई?"

सरयू सिंह ने सुगना से पूछा

"सोनुआ राखी में आई"...सुगना के संबोधन अभी भी वैसे ही थे…. पर सोनू और सुगना के बीच बहुत कुछ बदल रहा था।

सुगना अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने की सोचने लगी.. पिछले कई दिनों से उसने घर का खाना नहीं खाया होगा और उसका पसंदीदा.. मालपुआ…


सुगना…रक्षाबंधन का और अपने भाई सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…सुगना को क्या पता था कि अब उसका छोटा भाई सोनू किसी और मालपुए की फिराक में था जो शायद मीठा ना होते हुए भी बेहद आकर्षक गुलगुला और ढेरों खुशियां समेटे हुए था…. और वह भी अपनी बड़ी बहन का…जिसे उसने साथ-साथ बड़ा होते हुए देखा था…

शेष अगले भाग में..
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
 

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सभी साथियों को धन्यवाद अब तक कुल 16 पाठकों के कमेंट आ चुके है... मुझे यह जानकर हर्ष हो रहा है की इस कहानी के चाहने वाले कम से कम 16 व्यक्ति तो अवश्य हैं...

मुझे अब भी विश्वास है की मेरे शांत पाठक सिर्फ कहानी के पटल पर आकर अपनी उपस्थिति का एहसास करा दें और इस कहानी को आगे बढ़ाने में अपना सहयोग दे मेरे अपडेट्स तैयार हैं और पाठकों की प्रतीक्षा कर रहे हैं...

शांत पाठकों की वजह से मेरे सक्रिय पाठकों को जो इंतजार करना पड़ रहा है उसके लिए मुझे खेद है
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Lovely Anand

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सोनू तैयार है....पर

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सुगना इंतजार कर रही है
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