• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

  • yes

    Votes: 41 97.6%
  • no

    Votes: 1 2.4%

  • Total voters
    42

Lovely Anand

Love is life
1,320
6,477
144
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Sanju@

Well-Known Member
4,778
19,315
158
भाग 83

मनोरमा की दास्तान सुनने के बाद आइए जरा रतन का हाल चाल ले लेते है…फिर हम सब की प्यारी सुगना के पास चलेंगे…



रतन अपनी मेहनत और लगन से धीरे-धीरे विद्यानंद के आश्रम में अपनी जगह बनाता जा रहा था। परंतु रतन वैराग्य को पूरी तरह अपना नहीं पाया था। आश्रम की युवा महिलाओं को देखकर उसमें अभी भी खुशी की लहर दौड़ जाती।

सुगना के समक्ष उसका पुरुषत्व तार-तार हो चुका था परंतु वह यह बात मानने को तैयार न था। और रतन ने आखिर एक दिन अपने पुरुषत्व का परीक्षण कर लिया..

आश्रम की एक महिला से उसने कामुक संबंध बना लिए जिस की खबर विद्यानंद तक भी पहुंच गई..

विद्यानंद ने उसे मुख्य आश्रम से हटाकर एक विशेष आश्रम में स्थानांतरित कर दिया अब वह जिस आश्रम का वह निर्माण कार्य देख रहा था उसका औचित्य तो उसे पता न था परंतु वह आश्रम एक विलक्षण तरीके से बनाया जा रहा था।

एक खूबसूरत हॉल में 5 x 5 फीट के कई सारे कूपे पर बने हुए थे। इस कूपे में जाने के 2 दरवाजे थे एक आगे से और एक पीछे से।

कूपे की ऊंचाई लगभग 7 फीट की थी। पिछले दरवाजे से प्रवेश करने पर आने वाला व्यक्ति कूपे में बने लगभग 2 फीट बाई 2 फीट के चबूतरे पर आ जाता उसका सर तथा कंधा उस कूपे के बाहर आ जाता। कूपे का ऊपरी भाग कपड़े से बनाया गया था। चबूतरे पर खड़ा व्यक्ति अपने हाथ अपने कंधे के समानांतर करता और कूपे का ऊपरी भाग का कपड़ा दोनों किनारों से पास आता और उसके शरीर के ऊपरी भाग को छोड़कर उसके ऊपर की छत को पूरी तरह ढक लेता।

रतनू ने एक कूपे की जांच करनी चाहिए वह पिछले दरवाजे से कूपे के अंदर घुस 2 फीट X 2 फीट के चबूतरे पर आया और दोनों हाथ पूरी तरह फैला दी जो उस कूपे की बाहरी दीवारों पर जाकर टिक गए। कूपे की दीवाल पर बने लाल बटन को दबाते ही दोनों तरफ से कपड़े की एक परत स्लाइड करती हुई आई और उसके सीने को घेर लिया और कूपे को एक छत का रूप दे दिया। कपड़े ने रतन के शरीर को दो हिस्सों में बांट दिया थासीने से उपर और सीने से नीचे..

कूपे के ऊपर रतन का सिर्फ सर और दो मजबूत भुजाएं ही दिखाई दे रही थी उस कपड़े की छत के नीचे उसका सारा शरीर था। परंतु रतन अपने शरीर को देख पाने में अक्षम था।

उसी समय सामने के दरवाजे से रतन के असिस्टेंट ने उसी कूपे में अंदर प्रवेश किया। कूपे में आने के बाद उस असिस्टेंट ने रतन के शरीर का सीने से लेकर पैर तक के भाग को देखा उसे न तो रतन का चेहरा दिखाई पड़ रहा था और नहीं उसके गले का ऊपरी भाग।

कूपे का निर्माण दिशानिर्देशों के अनुरूप ही बनाया गया था।

असिस्टेंट ने बाहर आकर रतन से कहा…

सर बिल्कुल सही बना है.. मुझे आपका चेहरा और ऊपरी भाग नहीं दिखाई पड़ रहा है.

परंतु यह कूपा क्यों बनाया जा रहा है..?

इस प्रश्न का उत्तर रतन स्वयं नहीं जानता था वह तो विद्यानंद के करीबी अपने गुरु के आदेश अनुसार अनुसार इस विशाल कक्ष और उसके अंदर इस प्रकार के कई कूपों का निर्माण करा रहा था जो अब धीरे-धीरे समापन की तरफ बढ़ रहा था. यह कूपा रतन और उसके परिवार के लिए बेहद अहम था परंतु रतन इस बात से अनजान था।

आइए अब रतन को ( और पाठकों को भी) उसके प्रश्नों के साथ छोड़ देते हैं और वापस सुगना और लाली के पास चलते हैं जहां सोनू के हाथों से सुगना फिसलती जा रही थी…

रक्षाबंधन का अगला दिन भी यूं ही बीत गया। सोनू और लाली ने एक बार फिर उसी कमरे में संभोग किया और इस बार भी सुगना ना आई.. ।

शाम होते-होते सोनू के चेहरे पर उदासी छा गई। ऐसा लग रहा था जैसे उसने सुगना को लेकर अपनी अतृप्त इच्छाओं की जो तस्वीर बनाई थी वह सुगना के व्यक्तित्व और मर्यादा की भेंट चढ़ गई थी। सोनू सोच रहा था…

क्या.. सुगना दीदी के मन में कोई भी कामुक भाव न थे? क्या उनके जीवन में वासना का कोई स्थान न था?

पर यदि ऐसा ही था तो वह क्यों उसका और लाली का मिलन देखने खिड़की पर आई थी? जीजू के जाने के बाद वह आज भी सज धज कर क्यों रहती थी? सूट के साथ जालीदार ब्रा और पेंटी को दीदी ने क्यों स्वीकार किया था? सोनू के प्रश्न जायज थे परंतु सही उत्तर तक पहुंच पाना सोनू के लिए कठिन हो रहा था।

सोनू सुगना के साथ हुए कामुक अब तक हुए कामुक घटनाक्रमों के बारे में सोचने लगा । जब सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना को अतृप्त युवती के रूप में देखता उसे सारी घटनाएं सुगना के कामुक रूप को और उजागर करती जब वह सुगना को अपनी बड़ी और मर्यादित बहन के रूप में देखता उसे सारी घटनाएं स्वाभाविक लगती वह कंधे से दुपट्टा गिर कर उसकी चुचियों का दिख जाना उसका खिड़की पर आना और न जाने क्या क्या..

पिछले कुछ महीनों में अपनी वासना के आधीन होकर सोनू ने सुगना के अतृप्त युवती वाले रूप को जेहन में बसा लिया था परंतु सुगना का मर्यादित और संतुलित व्यवहार सोनू की सोच पर अंकुश लगा रहा था ..

शाम होते होते सोनू ने अपने कल वापस जाने की घोषणा कर दी…

सुगना ने बेहद प्यार और आत्मीयता से कहा

"अरे सोनू बाबू एक-दो दिन और रुक जा तब जईहा"

लाली सोनू का मर्म समझ रही थी अब तक वह यह भली-भांति जान चुकी थी कि सोनू सुगना के नाम से अब उत्तेजित होता था उस ने मुस्कुराते हुए कहा…

"तोहार दीदी तहार अपना ख्याल रखिए मानजा उनकर बात.."

लाली के मजाक में सोनू ने उम्मीद की किरण ढूंढ ली और सोनू अगले दिन सुबह की बजाय शाम को जाने को तैयार हो गया। नियति मुस्कुरा रही थी और सोनू की उदासी दूर करने का प्रयास कर रही थी। परंतु सुगना उसे क्या पता था की सोनू को अपेक्षाएं बदल चुकी थी। भाई बहन के जिन कामुक संबंधो को वह पाप मानती थी और अपनी आत्मग्लानि पर विजय पाने के लिए लगातार अपने दिमाग से द्वंद्व करती रहती थी सोनू की अपेक्षाएं उसी दिशा में थीं।


सोनू का शारीरिक स्वास्थ्य और मजबूत लंड उसे सरयू सिंह की याद दिलाता और सरयू सिंह के साथ बिताए गए कामुक पलों को याद कर सुगना भाव विभोर हो जाती जाने कब उस कल्पना में सोनू सरयू सिंह की जगह ले लेता और सुगना बेचैन हो उठती। वह बार-बार अपने विचारों में सरयू सिंह को याद करती परंतु जैसे सोनू उसके विचारों और दिमाग पर छाता चला जा रहा था। सुगना अचकचा कर उठ जाती और मुस्कुरा कर वापस फिर सोने का प्रयास करने लगती उसके सपनों में सोनू अपनी जगह बनाता जा रहा था।

अगली सुबह अगली सुबह सोनू के लिए बेहद अहम थी सारे बच्चे स्कूल जा चुके थे और सोनी भी कॉलेज जा चुकी थी घर के छोटे बच्चे हॉल में खेल रहे थे।

सोनू अपनी दोनों बहनों के साथ रसोई घर में खड़ा बातें कर रहा था तभी सुगना ने कहा..

" बाबूजी कहत रहले जा कि कई सारा लोग शादी ब्याह खाती आवत बा ऊ फोटो भेजले बाड़े केहू से आज लेके आई"

" हमरा अभी शादी नईखे करेके पहले ट्रेनिंग पूरा हो जाओ तब सोचब" सोनू ने स्पष्ट तौर पर अपनी बात रख दी.

" ठीक बा लड़की पसंद कर ले ब्याह बाद में करीहे …शादी ब्याह एक-दो दिन में थोड़ी होला "

सुगना ने अपनी बात को संजीदगी से रखने का प्रयास किया परंतु उसने सोनू का टेस्ट खराब कर दिया वह यहां कुछ और सोच कर आया था और हो कुछ और रहा था।


लाली ने सोनू का पक्ष लेते हुए बोला

"अरे अभी लईका बा तनी सयान होवे दे फिर ब्याह करिए काहे जल्दी आईल बाड़ू"

" हम देखले बानी कतना लईका बा …ढेरों ओकर पक्ष मत ले…." सुगना ने मुस्कुराते हुए यह बात बोल दी…दिमाग में यह बात बोलते समय उस दिन की तस्वीर आ गई जब सोनू लाली को अपने मजबूत लंड से चोद रहा था लाली ने उसकी मनोदशा तुरंत पढ़ ली और बोली..

"कहां बड़ भईल बा? अभियों त दिन भर दीदी दीदी कइले रहेला.."

सुगना ने सोनू की तरफ मुखातिब होते हुए कहा

"जो सोनू नहा ले हम नाश्ता लगावत बानी…"

"हमार कपड़ा कहां बा? "

सुगना ने लाली से कहा

"ए लाली एकर कपरवा दे दे"

लाली और सोनू दोनों रसोई घर से बाहर निकल गए.. सोनू और लाली हॉल में आते ही एक दूसरे के आलिंगन में आ गए। सुगना ने यह मिलन महसूस किया और पीछे पलट कर देखा … सुगना मुस्कुरा रही थी.. वह वापस अपना ध्यान सब्जी बनाने पर लगाने लगी उसके लिए सोनू और लाली का मिलन आम हो गया था।

देर में कुछ ही देर में सोनू आंगन में नहाने चला गया । रसोई घर की एक खिड़की आंगन में भी खुलती थी सुगना ने सोनू को आंगन में हैंडपंप से बाल्टी भरते हुए देखा और पीछे खड़ी लाली से पूछा सोनू आंगन में काहे नहाता बाथरूम त खालीए रहल हा।

"अरे कहता धूप में नहाएब हम कहनी हा … जो नहो"

सुगना को यह थोड़ा अटपटा अवश्य लगा परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया न थी । वह खाना बनाने में व्यस्त थी परंतु आंखें सोनू को देखने का लालच ना छोड़ पाईं। सोनू अपनी बनियान उतार चुका था और हैंडपंप से बाल्टी में पानी भर रहा था सोनू की मजबूत भुजाएं और मर्दाना शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। सोनू रसोई घर की तरफ नहीं देख रहा था और इसका फायदा सुगना बखूबी उठा रही थी वह कतई नहीं चाहती थी कि उसकी नजरें सोनू से मिले।

बाल्टी भरने के पश्चात सोनू सुगना की तरफ पीठ कर पालथी मारकर बैठ गया। और लोटे से अपने सर पर पानी डालने लगा।


सोनू का सुडौल और मर्दाना शरीर धूप में चमक रहा था पीठ की मांसपेशियां अपना आकार दिखा रही थी और सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर चली जाती।

वह मजबूत भुजाएं वह कसी हुई कमर सोनू का शरीर सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। उसके दिमाग में फिर सरयू सिंह घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना सोनू को देखती गई वह मंत्र मुक्त होती गई सुगना के हाथ बेकाबू होने लगे। उसका मन अब सब्जी चलाने में ना लग रहा था वह बार-बार आंगन की तरफ देख रही थी।

सोनू अपनी पीठ पर साबुन लगाने का प्रयास कर रहा था परंतु पीठ के कुछ हिस्सों पर अब भी साबुन लगा पाने में नाकामयाब था। इस प्रक्रिया में उसकी भुजाएं और भी खुलकर अपना शारीरिक सौष्ठव दिखा रही थी सुगना सोनू के शरीर पर मंत्रमुग्ध हुई जा रही थी।

सुगना के मन ने दिमाग के दिशा निर्देशों का एक बार और उल्लंघन किया और सुगना का शरीर उत्तेजना से भरता गया सूचियां एक बार फिर तन गई ..


लाली सुगना को आंगन की तरफ बार-बार ताकते हुए देख रही थी.. और मन ही मन मुस्कुरा रही थी.

सोनू के मजबूत और मर्दाना शरीर का आकर्षण स्वाभाविक था…

"कहां ध्यान बा तोर देख सब्जी जलता.."

सुगना की चोरी पकड़ी गई उसने अपनी वासना पर काबू पाया और लाली की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और बोला


"सांच में बड़ भईला पर बच्चा कितना बदल जाला, पहले सोनू छोटा बच्चा रहे तो केतना बार हम ओकरा के नहलावले बानी" सुगना यह बात बोल कर अपने बड़े होने और इस तरह देखने को न्यायोचित ठहरा रही थी लाली मजाक करने के लहजे में बोली

"तो जो अभियो नहला दे .."

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसने गरम छनौटे को लाली की तरह दिखाते हुए बोला दे

"आजकल ढेर बकबक करत बाड़े ले चलाओ सब्जी हम अब जा तानी सूरज के देखे.."

सुगना स्वयं को अब असहज महसूस कर रही थी उसने और बात करना उचित न समझा और लाली को छोड़ हाल में आ गई जहां सूरज मधु के साथ खेल रहा था..

आगन से आवाज आई…

" दीदी तनी पानी चला द खत्म हो गइल बा".

सोनू की आवाज सुगना ने भी सुनी और लाली ने भी लाली चुपचाप रसोई घर में सब्जी बनाती रही और सुगना चुप ही रही।

और सोनू को एक बार फिर पुकारना पड़ा


"दीदी पानी चला द"

सुगना से रहा न गया वह रसोई में गई उसने लाली से कहा

"जो पानी चला दे, हम सब्जी बना दे तानी,"

लाली मुस्कुरा उठी उसने अपनी हंसी पर काबू करते हुए कहा..

"सब्जी बस बने वाला बा…जो तेहि पानी चला दे… "

सुगना को अनमने ढंग से वही खड़े देखकर लाली ने फिर कहा

"काहे अपन भाई से लाज लगता का?

सुनना के पास अब कोई चारा न था। वह बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आंगन में जाने लगी..

सुगना ने आंगन में पैर रखा सोनू की मर्दाना छाती उसके सामने हो गई। पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था और सोनू को आंखे बंद थीं..

सोनू का भरा भरा सीना पतली कसी हुई कमर और मांसल जांघें सब कुछ सांचे में ढला हुआ सुगना हैंडपंप पर आकर पानी भरने लगी।

हैंडपंप का हत्था पकड़ते ही उसे सरयू सिंह के लंड की याद आ गई और सुगना का ध्यान उस जगह पर चला गया जो एक बहन के लिए निश्चित ही प्रतिबंधित था।


परंतु सुगना अपनी निगाहों को रोक न पाईं। सोनू की बड़ी सी लूंगी सिमटकर छोटी हो गई थी। और उस छोटी लूंगी को चीरकर सोनू का खड़ा खूटे जैसा लंड बाहर आ गया था जो साबुन के झाग से पूरी तरह डूबा हुआ था साबुन तो सोनू के सारे शरीर पर भी लगा था परंतु सोनू का वह खूबसूरत और तना हुआ लंड सुगना की आंखों को बरबस अपनी ओर खींचे हुए था सुगना कुछ देर यूं ही मंत्रमुग्ध होकर देखती रही और उसके हाथ हैंडपंप पर चलते रहे..

रसोई घर में खड़ी लाली सुगना को देख रही थी उसके लज्जा भरे चेहरे को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोनू आंखे बंद किए साबुन लगा रहा था अचानक उसने कहा

" ए लाली दीदी तनी पीठ में साबुन लगा द"

सुगना कुछ ना बोली और हैंड पंप चलाती रही उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? सोनू के मर्दाना शरीर पर अपने हाथ फिराने की कल्पना मात्र से उसके शरीर में एक करंट सी दौड़ गई।

सोनू यही न रूका.. उसने आंखें बंद किए परंतु मुस्कुराते हुए कहा

"अच्छा पीठ पर ना त ऐही पर लगा द" और सोनू ने उसने अपने खूटे जैसे खड़े लंड को मजबूत हथेलियों से पकड़ लिया…और अपनी हथेली से उस पर लगे साबुन के झाग को हटाकर उसे और भी नंगा कर दिया..

उसका खूबसूरत और तना हुआ लंड अपनी पूरी खूबसूरती में उसकी बड़ी बहन सुगना की आंखों के सामने था.

"दीदी आवा न,"

सोनू बेहद धीमी आवाज में बोल रहा था जो सुगना के कानों तक तो पहुंच रही थी परंतु लाली तक नहीं जो रसोई से दोनों भाई बहन को घूर रही थी..

सुगना का कलेजा धक धक करने लगा.. उसके हाथ कांप रहे थे बाल्टी भरने ही वाली थी। सोनू की आंखे बंद देखकर वह उस लंड को निहारने का लालच न रोक पाई।

मन के कोने में बैठी वासना अपना आकार बढ़ा रही थी। एक पल के लिए सुगना के मन में आया कि वह उस खूबसूरत और कापते हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खूब सहलाए , प्यार करें वही उसका दिमाग उसकी नजरों को बंद करना चाह रहा था। जो आंखे देख रही थीं वह एक बड़ी बहन के लिए उचित न था.. पर बुर का क्या? उसका हमसफर सामने खड़ा उसमे समाहित होने को बेकरार था…

उधर लाली का उत्तर ना पाकर सोनू ने अपनी आंख थोड़ी सी खोली और सामने साड़ी पहने हुए सुगना के गोरे गोरे पैरों को देखकर सन्न रह गया। लंड में भरा हुआ लहू अचानक न जानें कहां गायब हो गया…

उसने अपनी आंखे जोर से बच्चे की भांति बंद कर ली और लंड को लुंगी में छुपाने की कोशिश करने लगा.

सुगना सोनू की मासूमियत देख मुस्कुरा उठी..आज अपनी आंखे मूंदे सोनू ने सुगना को उसका बचपन याद दिला दिया..बहन का प्यार हावी हुआ और सुगना ने कहा ..

"दे पीठ में साबुन लगा दीं.."

"ना दीदी अब हो गइल" और सोनू अपने शरीर पर लोटे से पानी डालने लगा..

"रुक रुक हमारा के जाए दे"

सुगना पानी की छीटों से बचने का प्रयास करते हुए दूर हटने लगी..

सुगना और सोनू कुछ पलों के लिए वासना विहीन हो गए थे। लंड सिकुड़ कर न जाने कब अपनी अकड़ खो चुका था..सुगना की लार टपकाती बुर ने भी अपने खुले हुए होंठ बंद कर लिए पर अब तक छलक आए प्रेमरस ने सुगना की जांघें गीली कर दीं थीं..

सुगना उल्टे कदमों से चलती हुई आपने कमरे में आ गई…सोनू का कसरती शरीर सुगना में दिलो दिमाग में बस गया था…


सुगना के जाने के बाद सोनू ने रसोई घर की खिड़की की तरफ देखा उसकी और लाली की नजरें मिल गई। सोनू ने चेहरे पर झूठा गुस्सा लाया पर लाली मुस्कुरा दी..लाली ने अपनी चाल चल दी थी…

लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।

शाम को शाम को सोनू को वापस लखनऊ के लिए निकलना था।

क्या सुगना सोनू को रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट देगी…या सोनू यूं ही विदा हो जाएगा…

शेष अगले भाग में
बहुत ही सुंदर लाजवाब और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
विद्यानंद के आश्रम में ये जो कुपे बन रहे हैं जो उपर से निचे का कुछ भी ना दिखे ये क्या काम आते हैं
सुगना अपने छोटे भाई सोनू की तरफ खींचती चली रही है और आग में घी डालने का काम लाली कर रही है रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट क्या होता है देखते हैं
 
Top