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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lutgaya

Well-Known Member
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भाग 82

उधर सुगना लाली की शरारत और खुले आमंत्रण को बखूबी समझ रही थी पर वो अपनी लज्जा और आज रक्षाबंधन की पवित्रता को नजरअंदाज न कर पाई और वह अपने कमरे में खड़ी रही…

"सुगना दीदी….. ऊ काहे आइहें…?" सोनू ने अपने मुंह से सुगना का नाम लिया और उधर सोनू के लंड ने लाली के गर्भाशय को चूमने की कोशिश की शायद यह सुगना के नाम का असर था…

सोनू यही न रूका उसने अपनी चूदाई की रफ्तार बढ़ा दी…और कमरे में थप थप …थपा… थप की आवाज गूंजने लगी लाली की जांघें सोनू की जांघों से टकरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू सुगना को बुलाने का पूरा प्रयास कर रहा था… पर सुगना अपनी धड़कनों को काबू में करने का प्रयास कर रही थी.. पर मन में कशमकश कायम थी…दिमाग के निर्देशों को धता बताकर चूचियां तनी हुई थीं और बुर संवेदना से भरी लार टपका रही थी…

शेष अगले भाग में…

सुगना अपनी आंखें बंद किए अंदर के दृश्य देख रही थी और उसके कानों पर पड़ रही वह सुनहरी थाप उसे और भी मदहोश किए जा रही थी। सोनू अधीर होकर लाली को चोद रहा था और अपनी बड़ी बहन को उस कामुक दृश्य देखने के लिए अनोखे अंदाज में आमंत्रित कर रहा था।


परंतु सुगना खड़ी रही…लग रहा था जैसे उसने अपनी वासना पर विजय प्राप्त कर ली हो…. उसी समय छोटा सूरज सुगना के पास आ गया…

मां… मां… कर वह सुगना के पैरों से लिपटने लगा.. सुगना ने उसे अपनी गोद में उठा लिया ।

यद्यपि अपने पुत्र का यह व्यवधान उसे रास ना आया परंतु सूरज जो उसके कलेजे का टुकड़ा था उसे वह किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं कर सकती थी।

न जाने आज सूरज को क्या हुआ था सुगना की गोद में आने पर वह सुगना की चुचियों को छूने का प्रयास करने लगा… वह बार-बार सुगना से दूधू पीने का अनुरोध करने लगा…. सुगना लाली और सोनू के प्रेम प्रसंग में इतनी खोई थी कि उसने सूरज की बात न टाली और पास पड़े बिस्तर पर लेटकर अपनी चूचियां उसे पकड़ा दी पर मन के तार सोनू और लाली के कमरे में जुड़े रहे। सुगना की चूचियां उत्तेजना से पूरी तरह सख्त हो चुकी थी… सूरज के होठों में सुगना के निप्पलों से दूध निकालने की कोशिश की परंतु असर कुछ और हो रहा था।

ऐसा लग रहा था जैसे काम रस वात्सल्य रस पर हावी था। दिमाग में नंगी लाली की चूदाई घूम रही थी। उत्तेजना ने सुगना को अपने आगोश में ले लिया था..आज सुगना अपने ही पुत्र द्वारा अपनी चुचियों के चूसे जाने से उत्तेजित हो रही थी……

सरयू सिंह का पुत्र सूरज …अनजाने में ही सरयू सिंह की अनूठी पुत्री अपनी बहन की चूचियों को रखाबंधन के पवित्र दिन चूस रहा था..

विद्यानंद की बातें मूर्त रूप ले रही थी…

दरअसल सूरज बड़ी मासूमियत से दूध निकालने का प्रयास कर रहा था….. उस अबोध को चुचियों का जादू अभी पता न था।


नियति मुस्कुरा रही थी….. रक्षाबंधन के दिन सोनू सुगना को याद कर लाली को चोद रहा था और सुगना का पुत्र जो दरअसल उसका भाई था उसकी चूचियों से से खेल रहा था….. सूरज के छोटे-छोटे पैर सुगना की जांघों के बीच टकरा रहे थे । संवेदनशील हो चुकी बुर को वह स्पर्श बेहद आनंददायक लग रहा अनजाने में ही सही आज सूरज की हरकतें उसकी उत्तेजना को और बढ़ा रही थी।

उधर लाली और सोनू का मिलन अब अंजाम तक पहुंचने वाला था। कमरे में आ रही कामुक मिलन को थाप अब मध्यम हो चली थी। सुगना अपने कान लगातार उस कमरे में लगाए हुए थी।

एकाग्रता आवाज की तीव्रता को बढ़ा देती है। मिलन की थाप तीव्र होती गई और उसका समापन सोनू की मदहोश कर देने वाली कराह से हुआ

दीईईईई ….. दीईइ………

सुगना तड़प उठी…

सोनू और लाली दोनों स्खलित हो रहे थे। उत्तेजना के बादल शांत होकर वर्षा का रूप ले चुका था…और उस बारिश में सोनू की लाली भीग रही थी।

जिन बादलों को सुगना ने आमन्त्रित किया था उनकी वर्षा का आनंद लाली ले रही थी।

सोनू के लंड से निकलने वाली धार लाली को भिगोने के बाद अब बूंद का रूप ले रही थी। सोनू के मन में निराशा थी सुगना खिड़की पर ना आई परंतु उसका लंड पूरी तरह तृप्त था आज कई महीनों बाद उसे मखमली गोद में स्खलित होने का अवसर प्राप्त हुआ था।


उसे सुगना के बुर के मखमली बुर के एहसाह का अता पता न था परंतु जहा वह था वह सोनू के कठोर हाथों से लाख दर्जे अच्छा था…

उधर कमरे में सोनू की धौंकनी जैसी चल रही सांसों से सुगना ने उसके स्खलन का अंदाजा लगा लिया… और उसके उछलते और वीर्य वर्षा करते लंड की कल्पना कर मदहोश होने लगी.. उसे पुराने दिन याद आने लगी जब वह सरयू सिंह के उछलते हुए लंड को अपने छोटे हाथों से पकड़ने का प्रयास करती परंतु असफल रहती और लंड एक जिंदा मछली की भांति सुगना के हाथों से कभी छूटता वह उसे फिर पकड़ती परंतु खुद को श्वेत धवल वीर्य से भीगने से न रोक पाती।

इन उत्तेजक यादों ने और सोनू के इस स्खलन की कामुक कल्पना ने सुगना को स्खलन की कगार पर ला दिया…

इधर सूरज सुगना की स्थिति से अनजान अभी दूध की तलाश में था उसने सुगना की चुचियों पर अचानक अपने दांतो का दबाव बढ़ा दिया और सुगना कराह उठी "बाबू……. तनी धीरे से दुखाता"

सुगना स्वयं अपनी मादक कराह से अतिउत्तेजित हो गई…


सुगना ने अपनी जांघें अपने पेट से सटाने की कोशिश की और सूरज का पैर उसकी भग्नासा पर छूने लगा। सुगना से और बर्दाश्त न हुआ उसकी जांघें ऐंठने लगी पेट में हल्की मरोड़ हुई और सुगना की बुर ने संकुचन प्रारंभ कर दिए..प्रेमरस छलकने लगा…अतृप्त सुगना तृप्त हो रही थी सूरज, सुगना की चुचियों से दूध लाने में नाकामयाब रहा पर उसने अनजाने में ही सुगना को प्रेमरस से भर दिया था जो इस समय उसकी जांघों के बीच मुस्कुराती करिश्माई बूर से रिस रहा था..

सुगना ने सूरज को खुद से अलग किया और बोला

बाबू ….अब बस हो गईल.

स्खलन का सुख अनूठा होता है …घर के तीनों युवा सोनू, सुगना और लाली यह महसूस कर रहे थे परंतु सोनू के मन में सुगना के खिड़की पर ना आने की कसक रह गई थी।


उसी दौरान सोनी और बच्चों के आने की आहट हुई

लाली घबरा गई और आनन-फानन में अपना सूट उल्टा पहन कर कमरे से बाहर निकल गई। वह सीधा बाथरूम में घुस गई। ऊपर वाले का लाख-लाख शुक्र था सोनी ने लाली को सोनू के कमरे से निकलते देखा तो जरूर परंतु वह लाली के उल्टा सूट पहनने को देख ना पाई।

सोनू ने बेमन से अपनी बनियान और लुंगी पहनी और बिस्तर पर लेट कर पंखे को देखने लगा जो बेहद तेजी से घूम रहा था सोनू को अपनी जिंदगी भी इसी तेजी से घूमती प्रतीत हो रही जितने उम्मीदें और सपने वह संजो कर आया था वह टूट रहे थे…

सोनू ने अपने मन में जितनी कल्पनाएं की थी आज कुदरत ने उसका साथ न दिया था। सुगना को दिखाकर लाली को बेहद उत्तेजक तरीके से चोदने की उसकी योजना नाकामयाब रही थी। सुगना का खिड़की पर ना आना सोनू की कल्पना पर एक कुठाराघात जैसा था।

सोनी बाजार से समोसे लेकर आई थी जैसे ही वह सोनू को समोसा देने के लिए उस कमरे में गई …कमरे में फैली काम रस की सुगंध उसके नथुनो से टकराई। अब तक सोनी इस सुगंध से भलीभांति वाकिफ हो चुकी थी परंतु सोनू भैया के कमरे से इस सुगंध का आना सोनी को आश्चर्यचकित कर रहा था क्या सोनू भैया ने हस्तमैथुन किया था?? सोनी इससे ज्यादा न सोच पाई।

सोनू ने जो किया था जो कर रहा था और जो सोच रहा था वह सोनी ख्वाबों में भी नहीं सोच सकती थी वह उस सुगंध को नजरअंदाज कर समोसे निकालने लगी। उसने वहीं से सुगना और लाली को भी आवाज दी और कुछ ही देर में सोनू अपनी तीनों बहनों के साथ समोसे खाने लगा। सब आपस में बातें कर रहे थे पर जो सबसे ज्यादा बातें करते थे वह दोनों चुप थे। सोनू सुगना एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला रहे थे।

अपने अवचेतन मन में किए गए इस कामुक अपराध से दोनों भाई बहन ग्रस्त थे खासकर सुगना।

सोनू उदास होकर बाहर घूमने चला गया और सोनू की बहने एक बार फिर सोनू के लिए शाम का खाना बनाने में लग गई।


सोनी को बच्चों के साथ खेलने में ज्यादा मजा आता था वह एक बार फिर बच्चों के बीच आ गई और लाली एवं सुगना रसोई में खाना बनाने लगी। सोनी के विकास को याद किया और एक बार फिर उसने प्यारे सूरज के अंगूठे को सहला दिया….और फिर क्या ...सूरज अपनी मौसी के बाल खींच कर …….उसके होंठो को सही जगह ले आया। सोनी खुश थी …जिस दंड को उसने स्वयं चुना था वो उसका आनंद लेने लगी..

रसोई में सुगना ने लाली को छेड़ा और बोला

" तोरा एकदम लाज ना लागेला आज राखी के दिन रहे ते आजो सोनूवा के परेशान कईले हा.."

"अरे वाह ढेर अपना भाई के पक्ष मत ले। हम परेशान कईनी हां? आज त उहे ढेरे बेचैन रहे एकदम थका देले बा"

"ई काहे…?" सुगना में मासूमियत से पूछा

सोनू के साथ संभोग के दौरान लाली ने जान लिया था सोनू के मन में सुगना के प्रति कुछ ना कुछ कामुक भावनाएं अवश्य थीं । उसे इस बात का अंदाजा न था कि पिछली बार सोनू और सुगना की नजरें उस कामुक संभोग के दौरान मिल चुकी थी।

जब जब सुगना का नाम आता सोनू का मन प्रफुल्लित हो उठता और सोनू की पकड़ में एक अद्भुत कसाव आ जाता। यह अंतर लाली स्पष्ट रूप से महसूस कर पा रही थी। उसने एक दो नहीं अपितु कई बार सुगना का नाम लेकर सोनू को उत्तेजित करने में मदद की थी और उसका असर बखूबी धक्कों की रफ्तार उसके लंड की उछाल के रूप में महसूस किया था..

"अब तू टाइट सूट में मटक मटक के ओकरा सामने घुमाबु दे त का करी?"

"हट पागल कुछो बोलेले?

"आज ते आईल रहते द बड़का सिनेमा देखे के मिलीत। आज सोनू पूरा जोश में रहे"

"इ काहे…?"

" अनजान बनत बाड़े..आज राखी बांधत खानी आपन चूची काहे देखावत रहले..हमरा लगता तबे से गरमाइल रहे"

सुगना इस बात का बखूबी एहसास था और अब लाली ने वह बात कहकर सुगना को निशब्द कर दिया था..

सुगना ने लाली की पीठ पर मुक्का मारा और शरमाते हुए बोली ..

"हम काहे करब लाली सोनुआ हमर आपन भाई ह"

"ई हे त दुख बा…. काश सोनुआ तोर भाई ना होखित"

लाली का यह वाक्य सुगना के दिमाग में अब अक्सर गूंजने लगा था हकीकत को झुठला पाना इतना आसान न था परंतु कल्पनाओं का क्या उन पर तो सिर्फ मन का नियंत्रण होता है मन अपनी इच्छा और भावनाओं के अनुसार कल्पनाए संजोता है. सुगना की कल्पनाएं भी एक नई दिशा ले रही थीं।

अजीब कशमकश थी सूचना के मन में भी और सोनू के मन में भी परंतु दोनों के बीच जमी बर्फ रक्षाबंधन के इस त्यौहार ने और जमा दिया था… जिसका टूटना इतना आसान न था.

सोनू और लाली ने रात में एक बार फिर संभोग किया और लाली ने सोनू को उत्तेजित करने के लिए सुगना के नाम का बार बार प्रयोग किया सोनू भी सुगना के बारे में बातें कर अपनी कल्पना को आकार देता उसकी नग्न छवि को मन में संजोता और लाली को चोद कर अपने मन में उपज रही इस अनोखी वासना को शांत करने का प्रयास करता.. परंतु सुगना की उपस्थिति में लाली को चोदने का जो सुख उसे उस दिन प्राप्त हुआ था वह यादगार था और सोनू उस उत्तेजना के लिए तरस रहा था..

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उधर लखनऊ में एक शासकीय बंगले में काफी गहमागहमी थी घर के बाहर पुलिस वाले इकट्ठा हो चुके थे …अंदर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रही थी.

एक पुलिस वाले ने कहा…

साहब मेम साहब पर फालतू बिगड़ते रहते हैं आज तो हद ही हो गई है क्या हम लोगों को अंदर जाना चाहिए

नौकरी से हाथ धोना है क्या? उनकी लड़ाई में दखल देना ठीक नहीं । दोनों पति पत्नी हैं जल्द ही शांत हो जाएंगे।

पुलिस वालों ने अंदर जाने की हिम्मत तो ना जुटाई परंतु दरवाजे से अपने कान सटा दिए…

"साली तू जितनी शरीफ दिखती है उतनी है नहीं न जाने कहां-कहां मुंह मारी होगी?"

वरिष्ठ अधिकारी से इस तरह की भाषा की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती परंतु मनुष्य स्वभाव से जंगली होता है और आज यह जानने के पश्चात की मनोरमा ने किसी और के साथ भी संभोग किया था सेक्रेटरी साहब पूरी तरह आग बबूला थे।

मनोरमा का भी गुस्सा आसमान पर था.

हां मैंने किया है पर मैं रंडी नहीं हूं खबरदार जो मेरे बारे में अपशब्द कहा…

"तो मुझे बता ….पिंकी का पिता कौन है"

"क्यों आपको यकीन नहीं कि आप इसके पिता हैं?"

"पहेलियां मत बुझा साली मुझे पता है यह बीज तुम्हारे पाप का है" सेक्रेटरी साहब ने दांत पीसते हुए कहा..

"तुम्हें कैसे पता" मनोरमा के संबोधन भी अब सम्मान की भाषा छोड़ चुके थे।

सेक्रेटरी साहब ने कागज मनोरमा की तरफ उछालते हुए कहा..

"ये देख लो अपनी करतूत…"

मनोरमा ने वह रिपोर्ट उठाई और उसे सारा माजरा समझ में आ गया।

उसने पिंकी को देखा और उसके पास गई तथा उसे गोद में लेकर चूम लिया। जैसे वो अपने व्यभिचार से जन्मी पुत्री को मान्यता दे रही हो।

"हा यह आपकी पुत्री नही है…और एसी सुंदर बच्ची तुम्हारे जैसे नामर्द की हो भी नहीं सकती"

पिंकी वास्तव में एक खूबसूरत बच्ची थी फूल सी कोमल और चेहरे पर ढेर सारा प्यार लिए। मनोरमा की खूबसूरती और सरयू सिंह के तेज को संजोए हुए यह बच्ची अनोखी थी सबका दिल जीतने वाली और मन मोहने वाली।


मनोरमा की बात सुनकर सेक्रेटरी साहब भड़क गए और दनदनाते हुए कमरे से बाहर निकलने लगे।

बाहर दरवाजे पर कान लगाए पुलिस वाले तुरंत ही सावधान की मुद्रा में आ गए और सेक्रेटरी साहब को बड़ी तेजी से बाहर की तरफ जाते हुए देख रहे थे। बॉडीगार्ड ने दरवाजा खोला और सेक्रेटरी साहब अपना गुस्से से लाल चेहरा लिए एंबेसडर में बैठकर आगे बढ़ चले। शायद उन्होंने मन ही मन मनोरमा के साथ न रहने का फैसला कर लिया था।

मनोरमा पिंकी को गोद में लेकर चूम रही थी आज पिंकी के प्रति उसके प्यार में दोगुनी वृद्धि हो गई। यह जानने के पश्चात कि वह सरयू सिंह का अंश थी मनोरमा बेहद भावुक हो गई । सरयू सिंह के साथ किया गया उसका अकस्मात हुआ संभोग उसके जीवन की न भूलने वाली घटना थी। उत्तेजना को चरम पर ले जाकर स्खलित करने का जो सुख सरयू सिंह ने उसे दिया था वह आज तक उसे नहीं भूल थी। वो उस दिन को याद करने लगी…


बनारस महोत्सव के उस मंगल दिन वह बनारस महोत्सव के अपने कमरे में शरीर पोछने के बाद आ चुकी थी। उसकी नग्न सुंदर और सुडौल काया चमक रही थी। उसकी कद काठी सुगना से मिलती जुलती थी, पर शरीर का कसाव अलग था। उसका शरीर बेहद कसा हुआ था। शायद उसे मर्द का सानिध्य ज्यादा दिनों तक प्राप्त ना हुआ था और जो हुआ भी था उसकी काम पिपासा बुझा पाने में सर्वथा अनुपयुक्त था।

पूर्व भाग से पुनः मनोरंजन हेतु उद्धृत


"उसने जैसे ही आगे झुक कर अपना पेटीकोट उठाने की कोशिश की सरयू सिह ने दरवाजे पर एक हल्का सा धक्का लगा और दरवाजा खुल गया जो सुगना को खोजते हुए अंदर आ गए…

जब तक मनोरमा पीछे मुड़ कर देख पाती बनारस महोत्सव के उस सेक्टर की बिजली अचानक ही गुल हो गई।

परंतु इस एक पल में सरयू सिंह ने उस दिव्य काया के दर्शन कर लिए। चमकते बदन पर पानी की बच गई बूंदे अभी भी विद्यमान थीं ।

उधर सरयू सिंह के दिमाग में सुगना घूम रही थी। सुगना ने संभोग से पहले स्नान किया यह बात सरयू सिंह को भा गई। उन्होंने मन ही मन निर्णय कर लिया कि वह वह आज उसकी बूर को चूस चूस कर इस स्खलित कर लेंगे और फिर उसके दूसरे छेद का जी भर कर आनंद लेंगे।

कमरे में घूप्प अंधेरा हो चुका था सरयू सिंह धीरे-धीरे आगे बढ़े और अपनी सुगना की जगह मनोरमा को पीछे से जाकर पकड़ लिया। क्योंकि कमरे में अंधेरा था उन्होंने अपना एक हाथ उसकी कमर में लगाया और दूसरी हथेली से सुगना के मुंह को बंद कर दिया ताकि वह चीख कर असहज स्थिति न बना दे।

मनोरमा ने सरयू सिंह की धोती देख ली थी। जब तक कि वह कुछ सोच पाती सरयू सिंह उसे अपनी आगोश में ले चुके थे। वह हतप्रभ थी और मूर्ति वत खड़ी थी। सरयू सिंह उसका मुंह दबाए हुए थे तथा उसके नंगे पेट पर हाथ लगाकर उसे अपनी ओर खींचे हुए थे।

अपने नितंबों पर सरयू सिंह के लंड को महसूस कर मनोरमा सिहर उठी। उधर सरयू सिंह को सुगना की काया आज अलग ही महसूस हो रही थी अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने अपनी हथेली को सुगना की चुचियों पर लाया और उनका शक यकीन में बदल गया यह युवती निश्चित ही सुगना नहीं थी। चुचियों का कसाव चीख चीख कर कह रहा था कि वह सुगना ना होकर कोई और स्त्री थी।

सरयू सिंह की पकड़ ढीली होने लगी उन्हें एक पल के लिए भी यह एहसास न था कि जिस नग्न स्त्री को वह अपनी आगोश में लिए हुए हैं वह उनकी एसडीएम मनोरमा थी। अपने नग्न शरीर पर चंद पलों के मर्दाना स्पर्श ने मनोरमा को वेसुध कर दिया था। इससे पहले कि सरयू सिंह उसकी चुचियों पर से हाथ हटा पाते मनोरमा की हथेलियों ने सरयू सिंह की हथेलियों को अपनी चुचियों पर वापस धकेल दिया। मनोरमा कि इस अदा से सरयू सिंह बेहद उत्तेजित हो गए। स्त्री शरीर की उत्तेजना और हाव-भाव से सरयू सिंह स्त्री की मनो स्थिति भांप लेते थे उन्होंने मनोरमा के कानों को चूम लिया और अपनी दोनों हथेलियों से उसकी चुचियों को सहलाने लगे।

प्रणय निवेदन मूक होता है परंतु शरीर के कामुक अंग इस निवेदन को सहज रूप से व्यक्त करते हैं। विपरीत लिंग उसे तुरंत महसूस कर लेता है।


मनोरमा की गर्म सांसे, तनी हुई चूचियां , और फूल चुके निप्पल मनोरमा की मनोस्थिति कह रहे थे। और मनोरमा की स्थिति जानकर सरयू सिंह का लण्ड उसके नितंबों में छेद करने को आतुर था।

सरयू सिंह एक हाथ से मनोरमा की चूँचियों को सहला रहे थे तथा दूसरे हाथ से बिना किसी विशेष प्रयास के अपने अधोभाग को नग्न कर रहे थे।

उनका लण्ड सारी बंदिशें तोड़ उछल कर बाहर आ चुका था। उन्होंने शर्म हया त्याग कर अपना लण्ड मनोरमा के नितंबों के नीचे से उसकी दोनों जांघों के बीच सटा दिया। मनोरमा उस अद्भुत लण्ड के आकार को महसूस कर आश्चर्यचकित थी। एक तो सरयू सिंह का लण्ड पहले से ही बलिष्ठ था और अब शिलाजीत के असर से वह और भी तन चुका था। लण्ड पर उभर आए नसे उसे एक अलग ही एहसास दिला रहे थे। मनोरमा ने अपनी जाँघे थोड़ी फैलायीं और वह लण्ड मनोरमा की जांघो के जोड़ से छूता हुआ बाहर की तरफ आ गया।

मनोरमा ने एक बार फिर अपनी जांघें सिकोड़ लीं। सरयू सिह के लण्ड का सुपाड़ा बिल्कुल सामने आ चुका था। मनोरमा अपनी उत्सुकता ना रोक पायी और अपने हाथ नीचे की तरफ ले गई । सरयू सिंह के लण्ड के सुपारे को अपनी उंगलियों से छूते ही मनोरमा की चिपचिपी बुर ने अपनी लार टपका दी जो ठीक लण्ड के फूले हुए सुपाड़े पर गिरी

मनोरमा की उंगलियों ने सरयू सिंह के सुपाडे से रिस रहे वीर्य और अपनी बुर से टपके प्रेम रस को एक दूसरे में मिला दिया और सरजू सिंह के लण्ड पर मल दिया मनोरमा की कोमल उंगलियों और चिपचिपे रस से लण्ड थिरक थिरक उठा। मनोरमा को महसूस हुआ जैसे उसने कोई जीवित नाग पकड़ लिया जो उसके हाथों में फड़फड़ा रहा था।

यह पहला अवसर था जब सरयू सिंह के मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। जिस सुंदर और नग्न महिला को अपनी बाहों में लिए उसे काम उत्तेजित कर रहे थे वह उनकी भाग्य विधाता एसडीएम मनोरमा थी सरयू सिंह यह बात भली-भांति जान चुके थे परंतु अब वह उनके लिए एसडीएम ना होकर एक काम आतुर युवती थी जो अपने हिस्से का सुख भोगना चाहती थी। अन्यथा वह पलट कर न सिर्फ प्रतिकार करती अपितु छिड़ककर उन्हें उनकी औकात पर ला देती।

जिस मर्यादा को भूलकर सरयू सिंह और मनोरमा करीब आ चुके अब उसका कोई अस्तित्व नहीं था। प्रकृति की बनाई दो अनुपम कलाकृतियां एक दूसरे से सटी हुई प्रेमालाप में लगी हुई थीं। धीरे धीरे मनोरमा सरयू सिंह की तरफ मुड़ती गई और सरयू सिंह का लण्ड उसकी जांघों के बीच से निकलकर मनोरमा के पेट से छूने लगा। सरयू सिंह ने इसी दौरान अपना कुर्ता भी बाहर निकाल दिया। मनोरमा अब पूरी तरह सरयु सिंह से सट चुकी थी। सरयू सिंह की बड़ी-बड़ी हथेलियों ने मनोरमा के नितंबों को अपने आगोश में ले लिया था। और वह उसे बेतहाशा सहलाए जा रहे थे।

उनकी उंगलियों ने उनके अचेतन मस्तिष्क के निर्देशों का पालन किया और सरयू सिंह ने न चाहते हुए भी मनोरमा की गांड को छू लिया। आज मनोरमा कामाग्नि से जल रही थी। उसे सरयू सिंह की उंगलियों की हर हरकत पसंद आ रही थी। बुर से रिस रहा कामरस सरयू सिंह की अंगुलियों तक पहुंच रहा था। मनोरमा अपनी चुचियों को उनके मजबूत और बालों से भरे हुए सीने पर रगड़ रही थी। सरयू सिंह उसके गालों को चुमे में जा रहे थे।


गजब विडंबना थी जब जब सरयू सिंगर का ध्यान मनोरमा के ओहदे की तरफ जाता वह घबरा जाते और अपने दिमाग में सुगना को ले आते। कभी वह मनोरमा द्वारा सुबह दिए गए पुरस्कार की प्रतिउत्तर में उसे जीवन का अद्भुत सुख देना चाहते और मनोरमा को चूमने लगते परंतु मनोरमा के होठों को छु पाने की हिम्मत वह अभी नहीं जुटा पा रहे थे। मनोरमा भी आज पुरुष संसर्ग पाकर अभिभूत थी। वह जीवन में यह अनुभव पहली बाहर कर रही थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह वशीभूत हो चुकी थी। वह अपने होठों से सरयू सिंह के होठों को खोज रही थी। मनोरमा धीरे धीरे अपने पंजों पर उठती चली गई और सरयू सिंह अपने दोनों पैरों के बीच दूरियां बढ़ाते गए और अपने कद को घटाते गए।

जैसे ही मनोरमा के ऊपरी होठों ने सरयू सिह के होठों का स्पर्श प्राप्त हुआ नीचे सरयू सिंह के लंड में उसकी पनियायी बूर् को चूम लिया। मनोरमा का पूरा शरीर सिहर उठा।

सरयू सिंह ने मनोरमा को अपनी तरफ खींचा और मनोरमा ने अपना वजन एक बार फिर अपने पैरों पर छोड़ती गई और सरयू सिह के मजबूत लण्ड को अपने बुर में समाहित करती गयी।

मनोरमा की बुर का अगला हिस्सा पिछले कई वर्षों से प्रयोग में आ रहा था उसने सरयू सिंह के सुपारे को थोड़ी मुश्किल से ही सही परंतु लील लिया। सरयू सिंह ने जैसे ही अपना दबाव बढ़ाया मनोरमा चिहुँक उठी।

सरयू सिंह मनोरमा को बिस्तर पर ले आए और उसकी जाँघे स्वतः ही फैलती गई सरयू सिंह अपने लण्ड का दबाव बढ़ाते गए और उनका मजबूत और तना हुआ लण्ड मनोरमा की बुर की अंदरूनी गहराइयों को फैलाता चला गया।

मनोरमा के लिए यह एहसास बिल्कुल नया था। बुर के अंदर गहराइयों को आज तक न तो मनोरमा की उंगलियां छु पायीं थी और न हीं उसके पति सेक्रेटरी साहब का छोटा सा लण्ड। जैसे जैसे जादुई मुसल अंदर धँसता गया मनोरमा की आंखें बाहर आती गयीं। मनोरमा ने महसूस किया अब वह दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाएगी उसने अपनी कोमल हथेलियों से सरयू सिंह को दूर करने की कोशिश की।

सरयू सिंह भी अपने लण्ड पर मनोरमा की कसी हुई बुर का दबाव महसूस कर रहे थे उन्होंने कुछ देर यथा स्थिति बनाए रखी और मनोरमा के होठों को छोड़कर अपने होंठ उसके तने हुए निप्पल से सटा दिए।

सरयू सिंह के होठों के कमाल से मनोरमा बेहद उत्तेजित हो गई उनकी हथेलियां मनोरमा की कोमल जाँघों और कमर और पेड़ू को सहला रही थी जो उनके लण्ड को समाहित कर फूल चुका था।

जैसे-जैसे मनोरमा सहज होती गयी सरयू सिह का लण्ड और अंदर प्रवेश करता गया। मनोरमा के मुख से चीख निकल गई उसने पास पड़ा तकिया अपने दांतो के बीच रखकर उसे काट लिया परंतु उस चीख को अपने गले में ही दबा दिया। उधर लण्ड के सुपारे ने गर्भाशय के मुख को फैलाने की कोशिश की इधर सरयू सिंह के पेड़ूप्रदेश ने मनोरमा की भग्नासा को छू लिया। मिलन अपनी पूर्णता पर आ चुका था भग्नासा पर हो रही रगड़ मनोरमा को तृप्ति का एहसास दिलाने लगी ।

मनोरमा की कसी हुई बुर का यह दबाव बेहद आनंददायक था। सरयू सिंह कुछ देर इसी अवस्था में रहे और फिर मनोरमा की चुदाई चालू हो गई।


जैसे-जैसे शरीर सिंह का का लण्ड मनोरमा के बुर में हवा भरता गया मनोरंम की काम भावनाओं का गुब्बारा आसमान छूता गया। बुर् के अंदरूनी भाग से प्रेम रस झरने की तरह पर रहा था और यह उस मजबूत मुसल के आवागमन को आसान बना रहा था।

सरयू सिंह पर तो शिलाजीत का असर था एक तो उनके मूसल को पहले से ही कुदरत की शक्ति प्राप्त थी और अब उन्होंने शिलाजीत गोली का सहारा लेकर अपनी ताकत दुगनी करली थी । मनोरमा जैसी काम सुख से अतृप्त नवयौवना उस जादुई मुसल का संसर्ग ज्यादा देर तक न झेल पाई और उसकी बुर् के कंपन प्रारंभ हो गए।

सरयू सिंह स्त्री उत्तेजना का चरम बखूबी पहचानते थे और उसके चरम सुख आकाश की ऊंचाइयों तक ले जाना चाहते थे उन्होंने अपने धक्कों की रफ़्तार में आशातीत वृद्धि कर दी और मनोरमा की चुचियों को चूसने लगे। वह मनोरमा की चुचियों से दूध तो नहीं निकाल पर उनकी सारी मेहनत का फल मनोरमा के बूर् ने दे दिया। मनोरमा झड़ रही थी और उसका शरीर में निढाल पढ़ रहा था।

इसी दौरान बनारस महोत्सव के आयोजन कर्ताओं ने बिजली को वापस लाने का प्रयास किया और कमरे में एक पल के लिए उजाला हुआ और फिर अंधेरा कायम हो गया। बिजली का यह आवागमन आकाशीय बिजली की तरह ही था परंतु सरयू सिंह ने स्खलित होती मनोरमा का चेहरा देख लिया। और वह तृप्त हो गए। मनोरमा ने तो अपनी आंखें बंद की हुई थी परंतु उसे भी यह एहसास हो गया की सरयू सिंह ने उसे पूर्ण नग्न अवस्था में देख लिया है। परंतु मनोरमा अब अपना सर्वस्व न्योछावर कर चुकी थी। उसके पास अब कुछ न कुछ छुपाने को था न दिखाने को।

सरयू सिंह ने अपना लण्ड बाहर निकाल दिया और मनोरमा के वापस जागृत होने का इंतजार करने लगे। मनोरमा को अपना स्त्री धर्म पता था। जिस अद्भुत लण्ड में उसे यह सुख दिया था उसका वीर्यपात कराना न सिर्फ उसका धर्म था बल्कि यह नियति की इच्छा भी थी। मनोरमा अपने कोमल हाथों से उस लण्ड से खेलने लगी। कभी वह उसे नापती कभी अपनी मुठियों में भरती। अपने ही प्रेम रस से ओतप्रोत चिपचिपे लण्ड को अपने हाथों में लिए मनोरमा सरयू सिंह के प्रति आसक्त होती जा रही थी। सरयू सिंह के लण्ड में एक बार फिर उफान आ रहा था। उन्होंने मनोरमा को एक बार फिर जकड़ लिया और उसे डॉगी स्टाइल में ले आए।

सरयू सिंह यह भूल गए थे कि वह अपने ही भाग्य विधाता को उस मादक अवस्था में आने के लिए निर्देशित कर रहे थे जिस अवस्था में पुरुष उत्तेजना स्त्री से ज्यादा प्रधान होती है। अपनी काम पिपासा को प्राप्त कर चुकी मनोरमा अपने पद और ओहदे को भूल कर उनके गुलाम की तरह बर्ताव कर रही थी। वह तुरंत ही डॉगी स्टाइल में आ गयी और अपने नितंबों को ऊंचा कर लिया । सरयू सिंह अपने लण्ड से मनोरमा की बुर का मुंह खोजने लगे। उत्तेजित लण्ड और चिपचिपी बूर में चुंबकीय आकर्षण होता है।

उनका लंड एक बार फिर मनोरमा की बूर् में प्रवेश कर गया। अब यह रास्ता उनके लण्ड के लिए जाना पहचाना था। एक मजबूत धक्के में ही उनके लण्ड ने गर्भाशय के मुख हो एक बार फिर चूम लिया और मनोरमा ने फिर तकिए को अपने मुह में भर लिया। वाह चीख कर सरयू सिंह की उत्तेजना को कम नहीं करना चाहती थी।

लाइट के जाने से बाहर शोर हो रहा था। वह शोर उन्हें मनोरमा को चोदने के लिए उत्साहित कर रहा था।

सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार बढ़ रही थी। बिस्तर पर जो फूल व सुगना के लिए लाए थे वह मनोरमा के घुटनों और हाथ द्वारा मसले जा रहे थे। फूलों की खुशबू प्रेम रस की खुशबू के साथ मिलकर एक सुखद एहसास दे रही थी।


सरयू सिंह कभी मनोरमा की नंगी पीठ को चूमते कभी अपनी दोनों हथेलियों से उसके दोनों चुचियों को मीसते हैं कभी उसके बालों को पकड़कर मन ही मन एक घुड़सवार की भांति व्यवहार करते। अपने जीवन की इस विशेष उत्तेजना का मन ही मन आनंद लेते लेते सरयू सिंह भाव विभोर हो गए।

इधर मनोरमा दोबारा स्खलन की कगार पर पहुंच चुकी थी। मनोरमा के बूर की यह कपकपाआहट बेहद तीव्र थी। सरयू सिंह मनोरमा को स्खलित कर उसकी कोमल और तनी हुई चुचियों पर वीर्यपात कर उसे मसलना चाह रहे थे। बुर् की तेज कपकपाहट से सरयू सिंह का लण्ड अत्यंत उत्तेजित हो गया और अंडकोष में भरा हुआ वीर्य अपनी सीमा तोड़कर उबलता हुआ बाहर आ गया। मनोरमा के गर्भ पर वीर्य की पिचकारिया छूटने लगीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था बरसों से प्यासी धरती को सावन की रिमझिम में बूंदे भीगों रही थी। मनोरमा की प्यासी बुर अपने गर्भाशय का मुंह खोलें उस वीर्य को आत्मसात कर तृप्त तो हो रही थी।

मनोरमा अपने मन में सरयू सिंह के छैल छबीले चेहरे और बलिष्ठ शरीर की छवि को बसाये हए अपने गर्भाशय में हो रहे वीर्य पात के अद्वितीय अनुभव को महसूस कर रही थी।"


नियति मुस्कुरा रही थी कहानी का एक प्रमुख पात्र पिंकी के रूप में सृजित हो चुका था…..

शेष अगले भाग में...
Lovely lovely very lovely
आप का लेखन नायाब है
और इस अपडेट के बारे में तो इतना ही कहूंगा कि मेरा सबसे पसन्दीदा है ये सरयू मनोरमा मिलन।
मैने एक बार पहले भी निवेदन किया. था । शायद अब वो ख्वाहिश पूरी हो सके।
फोरम पर आपका कोई सानी नही।
 

Lutgaya

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भाग 83

मनोरमा की दास्तान सुनने के बाद आइए जरा रतन का हाल चाल ले लेते है…फिर हम सब की प्यारी सुगना के पास चलेंगे…



रतन अपनी मेहनत और लगन से धीरे-धीरे विद्यानंद के आश्रम में अपनी जगह बनाता जा रहा था। परंतु रतन वैराग्य को पूरी तरह अपना नहीं पाया था। आश्रम की युवा महिलाओं को देखकर उसमें अभी भी खुशी की लहर दौड़ जाती।

सुगना के समक्ष उसका पुरुषत्व तार-तार हो चुका था परंतु वह यह बात मानने को तैयार न था। और रतन ने आखिर एक दिन अपने पुरुषत्व का परीक्षण कर लिया..

आश्रम की एक महिला से उसने कामुक संबंध बना लिए जिस की खबर विद्यानंद तक भी पहुंच गई..

विद्यानंद ने उसे मुख्य आश्रम से हटाकर एक विशेष आश्रम में स्थानांतरित कर दिया अब वह जिस आश्रम का वह निर्माण कार्य देख रहा था उसका औचित्य तो उसे पता न था परंतु वह आश्रम एक विलक्षण तरीके से बनाया जा रहा था।

एक खूबसूरत हॉल में 5 x 5 फीट के कई सारे कूपे पर बने हुए थे। इस कूपे में जाने के 2 दरवाजे थे एक आगे से और एक पीछे से।

कूपे की ऊंचाई लगभग 7 फीट की थी। पिछले दरवाजे से प्रवेश करने पर आने वाला व्यक्ति कूपे में बने लगभग 2 फीट बाई 2 फीट के चबूतरे पर आ जाता उसका सर तथा कंधा उस कूपे के बाहर आ जाता। कूपे का ऊपरी भाग कपड़े से बनाया गया था। चबूतरे पर खड़ा व्यक्ति अपने हाथ अपने कंधे के समानांतर करता और कूपे का ऊपरी भाग का कपड़ा दोनों किनारों से पास आता और उसके शरीर के ऊपरी भाग को छोड़कर उसके ऊपर की छत को पूरी तरह ढक लेता।

रतनू ने एक कूपे की जांच करनी चाहिए वह पिछले दरवाजे से कूपे के अंदर घुस 2 फीट X 2 फीट के चबूतरे पर आया और दोनों हाथ पूरी तरह फैला दी जो उस कूपे की बाहरी दीवारों पर जाकर टिक गए। कूपे की दीवाल पर बने लाल बटन को दबाते ही दोनों तरफ से कपड़े की एक परत स्लाइड करती हुई आई और उसके सीने को घेर लिया और कूपे को एक छत का रूप दे दिया। कपड़े ने रतन के शरीर को दो हिस्सों में बांट दिया थासीने से उपर और सीने से नीचे..

कूपे के ऊपर रतन का सिर्फ सर और दो मजबूत भुजाएं ही दिखाई दे रही थी उस कपड़े की छत के नीचे उसका सारा शरीर था। परंतु रतन अपने शरीर को देख पाने में अक्षम था।

उसी समय सामने के दरवाजे से रतन के असिस्टेंट ने उसी कूपे में अंदर प्रवेश किया। कूपे में आने के बाद उस असिस्टेंट ने रतन के शरीर का सीने से लेकर पैर तक के भाग को देखा उसे न तो रतन का चेहरा दिखाई पड़ रहा था और नहीं उसके गले का ऊपरी भाग।

कूपे का निर्माण दिशानिर्देशों के अनुरूप ही बनाया गया था।

असिस्टेंट ने बाहर आकर रतन से कहा…

सर बिल्कुल सही बना है.. मुझे आपका चेहरा और ऊपरी भाग नहीं दिखाई पड़ रहा है.

परंतु यह कूपा क्यों बनाया जा रहा है..?

इस प्रश्न का उत्तर रतन स्वयं नहीं जानता था वह तो विद्यानंद के करीबी अपने गुरु के आदेश अनुसार अनुसार इस विशाल कक्ष और उसके अंदर इस प्रकार के कई कूपों का निर्माण करा रहा था जो अब धीरे-धीरे समापन की तरफ बढ़ रहा था. यह कूपा रतन और उसके परिवार के लिए बेहद अहम था परंतु रतन इस बात से अनजान था।

आइए अब रतन को ( और पाठकों को भी) उसके प्रश्नों के साथ छोड़ देते हैं और वापस सुगना और लाली के पास चलते हैं जहां सोनू के हाथों से सुगना फिसलती जा रही थी…

रक्षाबंधन का अगला दिन भी यूं ही बीत गया। सोनू और लाली ने एक बार फिर उसी कमरे में संभोग किया और इस बार भी सुगना ना आई.. ।

शाम होते-होते सोनू के चेहरे पर उदासी छा गई। ऐसा लग रहा था जैसे उसने सुगना को लेकर अपनी अतृप्त इच्छाओं की जो तस्वीर बनाई थी वह सुगना के व्यक्तित्व और मर्यादा की भेंट चढ़ गई थी। सोनू सोच रहा था…

क्या.. सुगना दीदी के मन में कोई भी कामुक भाव न थे? क्या उनके जीवन में वासना का कोई स्थान न था?

पर यदि ऐसा ही था तो वह क्यों उसका और लाली का मिलन देखने खिड़की पर आई थी? जीजू के जाने के बाद वह आज भी सज धज कर क्यों रहती थी? सूट के साथ जालीदार ब्रा और पेंटी को दीदी ने क्यों स्वीकार किया था? सोनू के प्रश्न जायज थे परंतु सही उत्तर तक पहुंच पाना सोनू के लिए कठिन हो रहा था।

सोनू सुगना के साथ हुए कामुक अब तक हुए कामुक घटनाक्रमों के बारे में सोचने लगा । जब सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना को अतृप्त युवती के रूप में देखता उसे सारी घटनाएं सुगना के कामुक रूप को और उजागर करती जब वह सुगना को अपनी बड़ी और मर्यादित बहन के रूप में देखता उसे सारी घटनाएं स्वाभाविक लगती वह कंधे से दुपट्टा गिर कर उसकी चुचियों का दिख जाना उसका खिड़की पर आना और न जाने क्या क्या..

पिछले कुछ महीनों में अपनी वासना के आधीन होकर सोनू ने सुगना के अतृप्त युवती वाले रूप को जेहन में बसा लिया था परंतु सुगना का मर्यादित और संतुलित व्यवहार सोनू की सोच पर अंकुश लगा रहा था ..

शाम होते होते सोनू ने अपने कल वापस जाने की घोषणा कर दी…

सुगना ने बेहद प्यार और आत्मीयता से कहा

"अरे सोनू बाबू एक-दो दिन और रुक जा तब जईहा"

लाली सोनू का मर्म समझ रही थी अब तक वह यह भली-भांति जान चुकी थी कि सोनू सुगना के नाम से अब उत्तेजित होता था उस ने मुस्कुराते हुए कहा…

"तोहार दीदी तहार अपना ख्याल रखिए मानजा उनकर बात.."

लाली के मजाक में सोनू ने उम्मीद की किरण ढूंढ ली और सोनू अगले दिन सुबह की बजाय शाम को जाने को तैयार हो गया। नियति मुस्कुरा रही थी और सोनू की उदासी दूर करने का प्रयास कर रही थी। परंतु सुगना उसे क्या पता था की सोनू को अपेक्षाएं बदल चुकी थी। भाई बहन के जिन कामुक संबंधो को वह पाप मानती थी और अपनी आत्मग्लानि पर विजय पाने के लिए लगातार अपने दिमाग से द्वंद्व करती रहती थी सोनू की अपेक्षाएं उसी दिशा में थीं।

सोनू का शारीरिक स्वास्थ्य और मजबूत लंड उसे सरयू सिंह की याद दिलाता और सरयू सिंह के साथ बिताए गए कामुक पलों को याद कर सुगना भाव विभोर हो जाती जाने कब उस कल्पना में सोनू सरयू सिंह की जगह ले लेता और सुगना बेचैन हो उठती। वह बार-बार अपने विचारों में सरयू सिंह को याद करती परंतु जैसे सोनू उसके विचारों और दिमाग पर छाता चला जा रहा था। सुगना अचकचा कर उठ जाती और मुस्कुरा कर वापस फिर सोने का प्रयास करने लगती उसके सपनों में सोनू अपनी जगह बनाता जा रहा था।

अगली सुबह अगली सुबह सोनू के लिए बेहद अहम थी सारे बच्चे स्कूल जा चुके थे और सोनी भी कॉलेज जा चुकी थी घर के छोटे बच्चे हॉल में खेल रहे थे।

सोनू अपनी दोनों बहनों के साथ रसोई घर में खड़ा बातें कर रहा था तभी सुगना ने कहा..

" बाबूजी कहत रहले जा कि कई सारा लोग शादी ब्याह खाती आवत बा ऊ फोटो भेजले बाड़े केहू से आज लेके आई"

" हमरा अभी शादी नईखे करेके पहले ट्रेनिंग पूरा हो जाओ तब सोचब" सोनू ने स्पष्ट तौर पर अपनी बात रख दी.

" ठीक बा लड़की पसंद कर ले ब्याह बाद में करीहे …शादी ब्याह एक-दो दिन में थोड़ी होला "

सुगना ने अपनी बात को संजीदगी से रखने का प्रयास किया परंतु उसने सोनू का टेस्ट खराब कर दिया वह यहां कुछ और सोच कर आया था और हो कुछ और रहा था।

लाली ने सोनू का पक्ष लेते हुए बोला

"अरे अभी लईका बा तनी सयान होवे दे फिर ब्याह करिए काहे जल्दी आईल बाड़ू"

" हम देखले बानी कतना लईका बा …ढेरों ओकर पक्ष मत ले…." सुगना ने मुस्कुराते हुए यह बात बोल दी…दिमाग में यह बात बोलते समय उस दिन की तस्वीर आ गई जब सोनू लाली को अपने मजबूत लंड से चोद रहा था लाली ने उसकी मनोदशा तुरंत पढ़ ली और बोली..

"कहां बड़ भईल बा? अभियों त दिन भर दीदी दीदी कइले रहेला.."

सुगना ने सोनू की तरफ मुखातिब होते हुए कहा

"जो सोनू नहा ले हम नाश्ता लगावत बानी…"

"हमार कपड़ा कहां बा? "

सुगना ने लाली से कहा

"ए लाली एकर कपरवा दे दे"

लाली और सोनू दोनों रसोई घर से बाहर निकल गए.. सोनू और लाली हॉल में आते ही एक दूसरे के आलिंगन में आ गए। सुगना ने यह मिलन महसूस किया और पीछे पलट कर देखा … सुगना मुस्कुरा रही थी.. वह वापस अपना ध्यान सब्जी बनाने पर लगाने लगी उसके लिए सोनू और लाली का मिलन आम हो गया था।

देर में कुछ ही देर में सोनू आंगन में नहाने चला गया । रसोई घर की एक खिड़की आंगन में भी खुलती थी सुगना ने सोनू को आंगन में हैंडपंप से बाल्टी भरते हुए देखा और पीछे खड़ी लाली से पूछा सोनू आंगन में काहे नहाता बाथरूम त खालीए रहल हा।

"अरे कहता धूप में नहाएब हम कहनी हा … जो नहो"

सुगना को यह थोड़ा अटपटा अवश्य लगा परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया न थी । वह खाना बनाने में व्यस्त थी परंतु आंखें सोनू को देखने का लालच ना छोड़ पाईं। सोनू अपनी बनियान उतार चुका था और हैंडपंप से बाल्टी में पानी भर रहा था सोनू की मजबूत भुजाएं और मर्दाना शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। सोनू रसोई घर की तरफ नहीं देख रहा था और इसका फायदा सुगना बखूबी उठा रही थी वह कतई नहीं चाहती थी कि उसकी नजरें सोनू से मिले।

बाल्टी भरने के पश्चात सोनू सुगना की तरफ पीठ कर पालथी मारकर बैठ गया। और लोटे से अपने सर पर पानी डालने लगा।

सोनू का सुडौल और मर्दाना शरीर धूप में चमक रहा था पीठ की मांसपेशियां अपना आकार दिखा रही थी और सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर चली जाती।

वह मजबूत भुजाएं वह कसी हुई कमर सोनू का शरीर सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। उसके दिमाग में फिर सरयू सिंह घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना सोनू को देखती गई वह मंत्र मुक्त होती गई सुगना के हाथ बेकाबू होने लगे। उसका मन अब सब्जी चलाने में ना लग रहा था वह बार-बार आंगन की तरफ देख रही थी।

सोनू अपनी पीठ पर साबुन लगाने का प्रयास कर रहा था परंतु पीठ के कुछ हिस्सों पर अब भी साबुन लगा पाने में नाकामयाब था। इस प्रक्रिया में उसकी भुजाएं और भी खुलकर अपना शारीरिक सौष्ठव दिखा रही थी सुगना सोनू के शरीर पर मंत्रमुग्ध हुई जा रही थी।

सुगना के मन ने दिमाग के दिशा निर्देशों का एक बार और उल्लंघन किया और सुगना का शरीर उत्तेजना से भरता गया सूचियां एक बार फिर तन गई ..

लाली सुगना को आंगन की तरफ बार-बार ताकते हुए देख रही थी.. और मन ही मन मुस्कुरा रही थी.

सोनू के मजबूत और मर्दाना शरीर का आकर्षण स्वाभाविक था…

"कहां ध्यान बा तोर देख सब्जी जलता.."

सुगना की चोरी पकड़ी गई उसने अपनी वासना पर काबू पाया और लाली की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और बोला

"सांच में बड़ भईला पर बच्चा कितना बदल जाला, पहले सोनू छोटा बच्चा रहे तो केतना बार हम ओकरा के नहलावले बानी" सुगना यह बात बोल कर अपने बड़े होने और इस तरह देखने को न्यायोचित ठहरा रही थी लाली मजाक करने के लहजे में बोली

"तो जो अभियो नहला दे .."

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसने गरम छनौटे को लाली की तरह दिखाते हुए बोला दे

"आजकल ढेर बकबक करत बाड़े ले चलाओ सब्जी हम अब जा तानी सूरज के देखे.."

सुगना स्वयं को अब असहज महसूस कर रही थी उसने और बात करना उचित न समझा और लाली को छोड़ हाल में आ गई जहां सूरज मधु के साथ खेल रहा था..

आगन से आवाज आई…

" दीदी तनी पानी चला द खत्म हो गइल बा".

सोनू की आवाज सुगना ने भी सुनी और लाली ने भी लाली चुपचाप रसोई घर में सब्जी बनाती रही और सुगना चुप ही रही।

और सोनू को एक बार फिर पुकारना पड़ा

"दीदी पानी चला द"

सुगना से रहा न गया वह रसोई में गई उसने लाली से कहा

"जो पानी चला दे, हम सब्जी बना दे तानी,"

लाली मुस्कुरा उठी उसने अपनी हंसी पर काबू करते हुए कहा..

"सब्जी बस बने वाला बा…जो तेहि पानी चला दे… "

सुगना को अनमने ढंग से वही खड़े देखकर लाली ने फिर कहा

"काहे अपन भाई से लाज लगता का?

सुनना के पास अब कोई चारा न था। वह बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आंगन में जाने लगी..

सुगना ने आंगन में पैर रखा सोनू की मर्दाना छाती उसके सामने हो गई। पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था और सोनू को आंखे बंद थीं..

सोनू का भरा भरा सीना पतली कसी हुई कमर और मांसल जांघें सब कुछ सांचे में ढला हुआ सुगना हैंडपंप पर आकर पानी भरने लगी।

हैंडपंप का हत्था पकड़ते ही उसे सरयू सिंह के लंड की याद आ गई और सुगना का ध्यान उस जगह पर चला गया जो एक बहन के लिए निश्चित ही प्रतिबंधित था।

परंतु सुगना अपनी निगाहों को रोक न पाईं। सोनू की बड़ी सी लूंगी सिमटकर छोटी हो गई थी। और उस छोटी लूंगी को चीरकर सोनू का खड़ा खूटे जैसा लंड बाहर आ गया था जो साबुन के झाग से पूरी तरह डूबा हुआ था साबुन तो सोनू के सारे शरीर पर भी लगा था परंतु सोनू का वह खूबसूरत और तना हुआ लंड सुगना की आंखों को बरबस अपनी ओर खींचे हुए था सुगना कुछ देर यूं ही मंत्रमुग्ध होकर देखती रही और उसके हाथ हैंडपंप पर चलते रहे..

रसोई घर में खड़ी लाली सुगना को देख रही थी उसके लज्जा भरे चेहरे को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोनू आंखे बंद किए साबुन लगा रहा था अचानक उसने कहा

" ए लाली दीदी तनी पीठ में साबुन लगा द"

सुगना कुछ ना बोली और हैंड पंप चलाती रही उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? सोनू के मर्दाना शरीर पर अपने हाथ फिराने की कल्पना मात्र से उसके शरीर में एक करंट सी दौड़ गई।

सोनू यही न रूका.. उसने आंखें बंद किए परंतु मुस्कुराते हुए कहा

"अच्छा पीठ पर ना त ऐही पर लगा द" और सोनू ने उसने अपने खूटे जैसे खड़े लंड को मजबूत हथेलियों से पकड़ लिया…और अपनी हथेली से उस पर लगे साबुन के झाग को हटाकर उसे और भी नंगा कर दिया..

उसका खूबसूरत और तना हुआ लंड अपनी पूरी खूबसूरती में उसकी बड़ी बहन सुगना की आंखों के सामने था.

"दीदी आवा न,"

सोनू बेहद धीमी आवाज में बोल रहा था जो सुगना के कानों तक तो पहुंच रही थी परंतु लाली तक नहीं जो रसोई से दोनों भाई बहन को घूर रही थी..

सुगना का कलेजा धक धक करने लगा.. उसके हाथ कांप रहे थे बाल्टी भरने ही वाली थी। सोनू की आंखे बंद देखकर वह उस लंड को निहारने का लालच न रोक पाई।

मन के कोने में बैठी वासना अपना आकार बढ़ा रही थी। एक पल के लिए सुगना के मन में आया कि वह उस खूबसूरत और कापते हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खूब सहलाए , प्यार करें वही उसका दिमाग उसकी नजरों को बंद करना चाह रहा था। जो आंखे देख रही थीं वह एक बड़ी बहन के लिए उचित न था.. पर बुर का क्या? उसका हमसफर सामने खड़ा उसमे समाहित होने को बेकरार था…

उधर लाली का उत्तर ना पाकर सोनू ने अपनी आंख थोड़ी सी खोली और सामने साड़ी पहने हुए सुगना के गोरे गोरे पैरों को देखकर सन्न रह गया। लंड में भरा हुआ लहू अचानक न जानें कहां गायब हो गया…

उसने अपनी आंखे जोर से बच्चे की भांति बंद कर ली और लंड को लुंगी में छुपाने की कोशिश करने लगा.

सुगना सोनू की मासूमियत देख मुस्कुरा उठी..आज अपनी आंखे मूंदे सोनू ने सुगना को उसका बचपन याद दिला दिया..बहन का प्यार हावी हुआ और सुगना ने कहा ..

"दे पीठ में साबुन लगा दीं.."

"ना दीदी अब हो गइल" और सोनू अपने शरीर पर लोटे से पानी डालने लगा..

"रुक रुक हमारा के जाए दे"

सुगना पानी की छीटों से बचने का प्रयास करते हुए दूर हटने लगी..

सुगना और सोनू कुछ पलों के लिए वासना विहीन हो गए थे। लंड सिकुड़ कर न जाने कब अपनी अकड़ खो चुका था..सुगना की लार टपकाती बुर ने भी अपने खुले हुए होंठ बंद कर लिए पर अब तक छलक आए प्रेमरस ने सुगना की जांघें गीली कर दीं थीं..

सुगना उल्टे कदमों से चलती हुई आपने कमरे में आ गई…सोनू का कसरती शरीर सुगना में दिलो दिमाग में बस गया था…

सुगना के जाने के बाद सोनू ने रसोई घर की खिड़की की तरफ देखा उसकी और लाली की नजरें मिल गई। सोनू ने चेहरे पर झूठा गुस्सा लाया पर लाली मुस्कुरा दी..लाली ने अपनी चाल चल दी थी…

लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।

शाम को शाम को सोनू को वापस लखनऊ के लिए निकलना था।

क्या सुगना सोनू को रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट देगी…या सोनू यूं ही विदा हो जाएगा…

शेष अगले भाग में

अभी रिटर्न गिफ्ट मिलना जल्दबाजी हो जाएगी कहानी से।
पढकर मजा आ गया।
 

Lovely Anand

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Ab aayga mza ab sugna Sonu ko kya gift deti h khi Sonu lali ke lete huye sugna khajana na dikha de jisse Sonu lali ki achchhe se le
सोनू को क्या गिफ्ट देना चाहिए यह आप सुगना को सुझाव दे सकते हैं
Bahut din baad aaj fir is forum per vaapas aaya itne saare update padhkar man prasann ho gya lekin fir vahi purani samasya is upanyas aur is lekhak ki sarahna karna mere jaise aam insaan k bas ka nhi
धन्य हो आप
पुराने पाठक जब कहानी पर वापस आते हैं तो अच्छा लगता है मैं भी इस कहानी को धीरे-धीरे अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं यदि पाठकों का साथ मिलता रहा तो कहानी आगे बढ़ती रहेगी आपका फिर से स्वागत है
Lovely lovely very lovely
आप का लेखन नायाब है
और इस अपडेट के बारे में तो इतना ही कहूंगा कि मेरा सबसे पसन्दीदा है ये सरयू मनोरमा मिलन।
मैने एक बार पहले भी निवेदन किया. था । शायद अब वो ख्वाहिश पूरी हो सके।
फोरम पर आपका कोई सानी नही।
महोदय एक बार फिर धन्यवाद आप इस कहानी के शुरू से प्रशंसक रहे हैं शायद मैं इतना अच्छा लेखक न सही परंतु आपका लगातार जुड़ाव सराहनीय जुड़े रहे

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Lovely Anand

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Waiting bhai

Sonu or sugna ki chudai ka intezar

Waiting for update lovely Bro🙏🙏

Where is update
साथियों इंतजार दोनों तरफ से है मुझे कक्षा पूरी होने का और आपको पाठ्यक्रम शुरू होने का कुछ इंतजार का अपना अलग मजा है जुड़े रहे...
 

Golupatra

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भाग 83

मनोरमा की दास्तान सुनने के बाद आइए जरा रतन का हाल चाल ले लेते है…फिर हम सब की प्यारी सुगना के पास चलेंगे…



रतन अपनी मेहनत और लगन से धीरे-धीरे विद्यानंद के आश्रम में अपनी जगह बनाता जा रहा था। परंतु रतन वैराग्य को पूरी तरह अपना नहीं पाया था। आश्रम की युवा महिलाओं को देखकर उसमें अभी भी खुशी की लहर दौड़ जाती।

सुगना के समक्ष उसका पुरुषत्व तार-तार हो चुका था परंतु वह यह बात मानने को तैयार न था। और रतन ने आखिर एक दिन अपने पुरुषत्व का परीक्षण कर लिया..

आश्रम की एक महिला से उसने कामुक संबंध बना लिए जिस की खबर विद्यानंद तक भी पहुंच गई..

विद्यानंद ने उसे मुख्य आश्रम से हटाकर एक विशेष आश्रम में स्थानांतरित कर दिया अब वह जिस आश्रम का वह निर्माण कार्य देख रहा था उसका औचित्य तो उसे पता न था परंतु वह आश्रम एक विलक्षण तरीके से बनाया जा रहा था।

एक खूबसूरत हॉल में 5 x 5 फीट के कई सारे कूपे पर बने हुए थे। इस कूपे में जाने के 2 दरवाजे थे एक आगे से और एक पीछे से।

कूपे की ऊंचाई लगभग 7 फीट की थी। पिछले दरवाजे से प्रवेश करने पर आने वाला व्यक्ति कूपे में बने लगभग 2 फीट बाई 2 फीट के चबूतरे पर आ जाता उसका सर तथा कंधा उस कूपे के बाहर आ जाता। कूपे का ऊपरी भाग कपड़े से बनाया गया था। चबूतरे पर खड़ा व्यक्ति अपने हाथ अपने कंधे के समानांतर करता और कूपे का ऊपरी भाग का कपड़ा दोनों किनारों से पास आता और उसके शरीर के ऊपरी भाग को छोड़कर उसके ऊपर की छत को पूरी तरह ढक लेता।

रतनू ने एक कूपे की जांच करनी चाहिए वह पिछले दरवाजे से कूपे के अंदर घुस 2 फीट X 2 फीट के चबूतरे पर आया और दोनों हाथ पूरी तरह फैला दी जो उस कूपे की बाहरी दीवारों पर जाकर टिक गए। कूपे की दीवाल पर बने लाल बटन को दबाते ही दोनों तरफ से कपड़े की एक परत स्लाइड करती हुई आई और उसके सीने को घेर लिया और कूपे को एक छत का रूप दे दिया। कपड़े ने रतन के शरीर को दो हिस्सों में बांट दिया थासीने से उपर और सीने से नीचे..

कूपे के ऊपर रतन का सिर्फ सर और दो मजबूत भुजाएं ही दिखाई दे रही थी उस कपड़े की छत के नीचे उसका सारा शरीर था। परंतु रतन अपने शरीर को देख पाने में अक्षम था।

उसी समय सामने के दरवाजे से रतन के असिस्टेंट ने उसी कूपे में अंदर प्रवेश किया। कूपे में आने के बाद उस असिस्टेंट ने रतन के शरीर का सीने से लेकर पैर तक के भाग को देखा उसे न तो रतन का चेहरा दिखाई पड़ रहा था और नहीं उसके गले का ऊपरी भाग।

कूपे का निर्माण दिशानिर्देशों के अनुरूप ही बनाया गया था।

असिस्टेंट ने बाहर आकर रतन से कहा…

सर बिल्कुल सही बना है.. मुझे आपका चेहरा और ऊपरी भाग नहीं दिखाई पड़ रहा है.

परंतु यह कूपा क्यों बनाया जा रहा है..?

इस प्रश्न का उत्तर रतन स्वयं नहीं जानता था वह तो विद्यानंद के करीबी अपने गुरु के आदेश अनुसार अनुसार इस विशाल कक्ष और उसके अंदर इस प्रकार के कई कूपों का निर्माण करा रहा था जो अब धीरे-धीरे समापन की तरफ बढ़ रहा था. यह कूपा रतन और उसके परिवार के लिए बेहद अहम था परंतु रतन इस बात से अनजान था।

आइए अब रतन को ( और पाठकों को भी) उसके प्रश्नों के साथ छोड़ देते हैं और वापस सुगना और लाली के पास चलते हैं जहां सोनू के हाथों से सुगना फिसलती जा रही थी…

रक्षाबंधन का अगला दिन भी यूं ही बीत गया। सोनू और लाली ने एक बार फिर उसी कमरे में संभोग किया और इस बार भी सुगना ना आई.. ।

शाम होते-होते सोनू के चेहरे पर उदासी छा गई। ऐसा लग रहा था जैसे उसने सुगना को लेकर अपनी अतृप्त इच्छाओं की जो तस्वीर बनाई थी वह सुगना के व्यक्तित्व और मर्यादा की भेंट चढ़ गई थी। सोनू सोच रहा था…

क्या.. सुगना दीदी के मन में कोई भी कामुक भाव न थे? क्या उनके जीवन में वासना का कोई स्थान न था?

पर यदि ऐसा ही था तो वह क्यों उसका और लाली का मिलन देखने खिड़की पर आई थी? जीजू के जाने के बाद वह आज भी सज धज कर क्यों रहती थी? सूट के साथ जालीदार ब्रा और पेंटी को दीदी ने क्यों स्वीकार किया था? सोनू के प्रश्न जायज थे परंतु सही उत्तर तक पहुंच पाना सोनू के लिए कठिन हो रहा था।

सोनू सुगना के साथ हुए कामुक अब तक हुए कामुक घटनाक्रमों के बारे में सोचने लगा । जब सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना को अतृप्त युवती के रूप में देखता उसे सारी घटनाएं सुगना के कामुक रूप को और उजागर करती जब वह सुगना को अपनी बड़ी और मर्यादित बहन के रूप में देखता उसे सारी घटनाएं स्वाभाविक लगती वह कंधे से दुपट्टा गिर कर उसकी चुचियों का दिख जाना उसका खिड़की पर आना और न जाने क्या क्या..

पिछले कुछ महीनों में अपनी वासना के आधीन होकर सोनू ने सुगना के अतृप्त युवती वाले रूप को जेहन में बसा लिया था परंतु सुगना का मर्यादित और संतुलित व्यवहार सोनू की सोच पर अंकुश लगा रहा था ..

शाम होते होते सोनू ने अपने कल वापस जाने की घोषणा कर दी…

सुगना ने बेहद प्यार और आत्मीयता से कहा

"अरे सोनू बाबू एक-दो दिन और रुक जा तब जईहा"

लाली सोनू का मर्म समझ रही थी अब तक वह यह भली-भांति जान चुकी थी कि सोनू सुगना के नाम से अब उत्तेजित होता था उस ने मुस्कुराते हुए कहा…

"तोहार दीदी तहार अपना ख्याल रखिए मानजा उनकर बात.."

लाली के मजाक में सोनू ने उम्मीद की किरण ढूंढ ली और सोनू अगले दिन सुबह की बजाय शाम को जाने को तैयार हो गया। नियति मुस्कुरा रही थी और सोनू की उदासी दूर करने का प्रयास कर रही थी। परंतु सुगना उसे क्या पता था की सोनू को अपेक्षाएं बदल चुकी थी। भाई बहन के जिन कामुक संबंधो को वह पाप मानती थी और अपनी आत्मग्लानि पर विजय पाने के लिए लगातार अपने दिमाग से द्वंद्व करती रहती थी सोनू की अपेक्षाएं उसी दिशा में थीं।


सोनू का शारीरिक स्वास्थ्य और मजबूत लंड उसे सरयू सिंह की याद दिलाता और सरयू सिंह के साथ बिताए गए कामुक पलों को याद कर सुगना भाव विभोर हो जाती जाने कब उस कल्पना में सोनू सरयू सिंह की जगह ले लेता और सुगना बेचैन हो उठती। वह बार-बार अपने विचारों में सरयू सिंह को याद करती परंतु जैसे सोनू उसके विचारों और दिमाग पर छाता चला जा रहा था। सुगना अचकचा कर उठ जाती और मुस्कुरा कर वापस फिर सोने का प्रयास करने लगती उसके सपनों में सोनू अपनी जगह बनाता जा रहा था।

अगली सुबह अगली सुबह सोनू के लिए बेहद अहम थी सारे बच्चे स्कूल जा चुके थे और सोनी भी कॉलेज जा चुकी थी घर के छोटे बच्चे हॉल में खेल रहे थे।

सोनू अपनी दोनों बहनों के साथ रसोई घर में खड़ा बातें कर रहा था तभी सुगना ने कहा..

" बाबूजी कहत रहले जा कि कई सारा लोग शादी ब्याह खाती आवत बा ऊ फोटो भेजले बाड़े केहू से आज लेके आई"

" हमरा अभी शादी नईखे करेके पहले ट्रेनिंग पूरा हो जाओ तब सोचब" सोनू ने स्पष्ट तौर पर अपनी बात रख दी.

" ठीक बा लड़की पसंद कर ले ब्याह बाद में करीहे …शादी ब्याह एक-दो दिन में थोड़ी होला "

सुगना ने अपनी बात को संजीदगी से रखने का प्रयास किया परंतु उसने सोनू का टेस्ट खराब कर दिया वह यहां कुछ और सोच कर आया था और हो कुछ और रहा था।


लाली ने सोनू का पक्ष लेते हुए बोला

"अरे अभी लईका बा तनी सयान होवे दे फिर ब्याह करिए काहे जल्दी आईल बाड़ू"

" हम देखले बानी कतना लईका बा …ढेरों ओकर पक्ष मत ले…." सुगना ने मुस्कुराते हुए यह बात बोल दी…दिमाग में यह बात बोलते समय उस दिन की तस्वीर आ गई जब सोनू लाली को अपने मजबूत लंड से चोद रहा था लाली ने उसकी मनोदशा तुरंत पढ़ ली और बोली..

"कहां बड़ भईल बा? अभियों त दिन भर दीदी दीदी कइले रहेला.."

सुगना ने सोनू की तरफ मुखातिब होते हुए कहा

"जो सोनू नहा ले हम नाश्ता लगावत बानी…"

"हमार कपड़ा कहां बा? "

सुगना ने लाली से कहा

"ए लाली एकर कपरवा दे दे"

लाली और सोनू दोनों रसोई घर से बाहर निकल गए.. सोनू और लाली हॉल में आते ही एक दूसरे के आलिंगन में आ गए। सुगना ने यह मिलन महसूस किया और पीछे पलट कर देखा … सुगना मुस्कुरा रही थी.. वह वापस अपना ध्यान सब्जी बनाने पर लगाने लगी उसके लिए सोनू और लाली का मिलन आम हो गया था।

देर में कुछ ही देर में सोनू आंगन में नहाने चला गया । रसोई घर की एक खिड़की आंगन में भी खुलती थी सुगना ने सोनू को आंगन में हैंडपंप से बाल्टी भरते हुए देखा और पीछे खड़ी लाली से पूछा सोनू आंगन में काहे नहाता बाथरूम त खालीए रहल हा।

"अरे कहता धूप में नहाएब हम कहनी हा … जो नहो"

सुगना को यह थोड़ा अटपटा अवश्य लगा परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया न थी । वह खाना बनाने में व्यस्त थी परंतु आंखें सोनू को देखने का लालच ना छोड़ पाईं। सोनू अपनी बनियान उतार चुका था और हैंडपंप से बाल्टी में पानी भर रहा था सोनू की मजबूत भुजाएं और मर्दाना शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। सोनू रसोई घर की तरफ नहीं देख रहा था और इसका फायदा सुगना बखूबी उठा रही थी वह कतई नहीं चाहती थी कि उसकी नजरें सोनू से मिले।

बाल्टी भरने के पश्चात सोनू सुगना की तरफ पीठ कर पालथी मारकर बैठ गया। और लोटे से अपने सर पर पानी डालने लगा।


सोनू का सुडौल और मर्दाना शरीर धूप में चमक रहा था पीठ की मांसपेशियां अपना आकार दिखा रही थी और सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर चली जाती।

वह मजबूत भुजाएं वह कसी हुई कमर सोनू का शरीर सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। उसके दिमाग में फिर सरयू सिंह घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना सोनू को देखती गई वह मंत्र मुक्त होती गई सुगना के हाथ बेकाबू होने लगे। उसका मन अब सब्जी चलाने में ना लग रहा था वह बार-बार आंगन की तरफ देख रही थी।

सोनू अपनी पीठ पर साबुन लगाने का प्रयास कर रहा था परंतु पीठ के कुछ हिस्सों पर अब भी साबुन लगा पाने में नाकामयाब था। इस प्रक्रिया में उसकी भुजाएं और भी खुलकर अपना शारीरिक सौष्ठव दिखा रही थी सुगना सोनू के शरीर पर मंत्रमुग्ध हुई जा रही थी।

सुगना के मन ने दिमाग के दिशा निर्देशों का एक बार और उल्लंघन किया और सुगना का शरीर उत्तेजना से भरता गया सूचियां एक बार फिर तन गई ..


लाली सुगना को आंगन की तरफ बार-बार ताकते हुए देख रही थी.. और मन ही मन मुस्कुरा रही थी.

सोनू के मजबूत और मर्दाना शरीर का आकर्षण स्वाभाविक था…

"कहां ध्यान बा तोर देख सब्जी जलता.."

सुगना की चोरी पकड़ी गई उसने अपनी वासना पर काबू पाया और लाली की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और बोला


"सांच में बड़ भईला पर बच्चा कितना बदल जाला, पहले सोनू छोटा बच्चा रहे तो केतना बार हम ओकरा के नहलावले बानी" सुगना यह बात बोल कर अपने बड़े होने और इस तरह देखने को न्यायोचित ठहरा रही थी लाली मजाक करने के लहजे में बोली

"तो जो अभियो नहला दे .."

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसने गरम छनौटे को लाली की तरह दिखाते हुए बोला दे

"आजकल ढेर बकबक करत बाड़े ले चलाओ सब्जी हम अब जा तानी सूरज के देखे.."

सुगना स्वयं को अब असहज महसूस कर रही थी उसने और बात करना उचित न समझा और लाली को छोड़ हाल में आ गई जहां सूरज मधु के साथ खेल रहा था..

आगन से आवाज आई…

" दीदी तनी पानी चला द खत्म हो गइल बा".

सोनू की आवाज सुगना ने भी सुनी और लाली ने भी लाली चुपचाप रसोई घर में सब्जी बनाती रही और सुगना चुप ही रही।

और सोनू को एक बार फिर पुकारना पड़ा


"दीदी पानी चला द"

सुगना से रहा न गया वह रसोई में गई उसने लाली से कहा

"जो पानी चला दे, हम सब्जी बना दे तानी,"

लाली मुस्कुरा उठी उसने अपनी हंसी पर काबू करते हुए कहा..

"सब्जी बस बने वाला बा…जो तेहि पानी चला दे… "

सुगना को अनमने ढंग से वही खड़े देखकर लाली ने फिर कहा

"काहे अपन भाई से लाज लगता का?

सुनना के पास अब कोई चारा न था। वह बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आंगन में जाने लगी..

सुगना ने आंगन में पैर रखा सोनू की मर्दाना छाती उसके सामने हो गई। पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था और सोनू को आंखे बंद थीं..

सोनू का भरा भरा सीना पतली कसी हुई कमर और मांसल जांघें सब कुछ सांचे में ढला हुआ सुगना हैंडपंप पर आकर पानी भरने लगी।

हैंडपंप का हत्था पकड़ते ही उसे सरयू सिंह के लंड की याद आ गई और सुगना का ध्यान उस जगह पर चला गया जो एक बहन के लिए निश्चित ही प्रतिबंधित था।


परंतु सुगना अपनी निगाहों को रोक न पाईं। सोनू की बड़ी सी लूंगी सिमटकर छोटी हो गई थी। और उस छोटी लूंगी को चीरकर सोनू का खड़ा खूटे जैसा लंड बाहर आ गया था जो साबुन के झाग से पूरी तरह डूबा हुआ था साबुन तो सोनू के सारे शरीर पर भी लगा था परंतु सोनू का वह खूबसूरत और तना हुआ लंड सुगना की आंखों को बरबस अपनी ओर खींचे हुए था सुगना कुछ देर यूं ही मंत्रमुग्ध होकर देखती रही और उसके हाथ हैंडपंप पर चलते रहे..

रसोई घर में खड़ी लाली सुगना को देख रही थी उसके लज्जा भरे चेहरे को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोनू आंखे बंद किए साबुन लगा रहा था अचानक उसने कहा

" ए लाली दीदी तनी पीठ में साबुन लगा द"

सुगना कुछ ना बोली और हैंड पंप चलाती रही उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? सोनू के मर्दाना शरीर पर अपने हाथ फिराने की कल्पना मात्र से उसके शरीर में एक करंट सी दौड़ गई।

सोनू यही न रूका.. उसने आंखें बंद किए परंतु मुस्कुराते हुए कहा

"अच्छा पीठ पर ना त ऐही पर लगा द" और सोनू ने उसने अपने खूटे जैसे खड़े लंड को मजबूत हथेलियों से पकड़ लिया…और अपनी हथेली से उस पर लगे साबुन के झाग को हटाकर उसे और भी नंगा कर दिया..

उसका खूबसूरत और तना हुआ लंड अपनी पूरी खूबसूरती में उसकी बड़ी बहन सुगना की आंखों के सामने था.

"दीदी आवा न,"

सोनू बेहद धीमी आवाज में बोल रहा था जो सुगना के कानों तक तो पहुंच रही थी परंतु लाली तक नहीं जो रसोई से दोनों भाई बहन को घूर रही थी..

सुगना का कलेजा धक धक करने लगा.. उसके हाथ कांप रहे थे बाल्टी भरने ही वाली थी। सोनू की आंखे बंद देखकर वह उस लंड को निहारने का लालच न रोक पाई।

मन के कोने में बैठी वासना अपना आकार बढ़ा रही थी। एक पल के लिए सुगना के मन में आया कि वह उस खूबसूरत और कापते हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खूब सहलाए , प्यार करें वही उसका दिमाग उसकी नजरों को बंद करना चाह रहा था। जो आंखे देख रही थीं वह एक बड़ी बहन के लिए उचित न था.. पर बुर का क्या? उसका हमसफर सामने खड़ा उसमे समाहित होने को बेकरार था…

उधर लाली का उत्तर ना पाकर सोनू ने अपनी आंख थोड़ी सी खोली और सामने साड़ी पहने हुए सुगना के गोरे गोरे पैरों को देखकर सन्न रह गया। लंड में भरा हुआ लहू अचानक न जानें कहां गायब हो गया…

उसने अपनी आंखे जोर से बच्चे की भांति बंद कर ली और लंड को लुंगी में छुपाने की कोशिश करने लगा.

सुगना सोनू की मासूमियत देख मुस्कुरा उठी..आज अपनी आंखे मूंदे सोनू ने सुगना को उसका बचपन याद दिला दिया..बहन का प्यार हावी हुआ और सुगना ने कहा ..

"दे पीठ में साबुन लगा दीं.."

"ना दीदी अब हो गइल" और सोनू अपने शरीर पर लोटे से पानी डालने लगा..

"रुक रुक हमारा के जाए दे"

सुगना पानी की छीटों से बचने का प्रयास करते हुए दूर हटने लगी..

सुगना और सोनू कुछ पलों के लिए वासना विहीन हो गए थे। लंड सिकुड़ कर न जाने कब अपनी अकड़ खो चुका था..सुगना की लार टपकाती बुर ने भी अपने खुले हुए होंठ बंद कर लिए पर अब तक छलक आए प्रेमरस ने सुगना की जांघें गीली कर दीं थीं..

सुगना उल्टे कदमों से चलती हुई आपने कमरे में आ गई…सोनू का कसरती शरीर सुगना में दिलो दिमाग में बस गया था…


सुगना के जाने के बाद सोनू ने रसोई घर की खिड़की की तरफ देखा उसकी और लाली की नजरें मिल गई। सोनू ने चेहरे पर झूठा गुस्सा लाया पर लाली मुस्कुरा दी..लाली ने अपनी चाल चल दी थी…

लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।

शाम को शाम को सोनू को वापस लखनऊ के लिए निकलना था।

क्या सुगना सोनू को रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट देगी…या सोनू यूं ही विदा हो जाएगा…

शेष अगले भाग में
Ab sugna Sonu ko kuchh na kuchh gift to degi
Bahut badiya likh rhe ho bahut mza a rha update padne me ab bs aisa hi likhte rahiye or update jaldi dijiye
 

Londiyabaj

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भाग 83

मनोरमा की दास्तान सुनने के बाद आइए जरा रतन का हाल चाल ले लेते है…फिर हम सब की प्यारी सुगना के पास चलेंगे…



रतन अपनी मेहनत और लगन से धीरे-धीरे विद्यानंद के आश्रम में अपनी जगह बनाता जा रहा था। परंतु रतन वैराग्य को पूरी तरह अपना नहीं पाया था। आश्रम की युवा महिलाओं को देखकर उसमें अभी भी खुशी की लहर दौड़ जाती।

सुगना के समक्ष उसका पुरुषत्व तार-तार हो चुका था परंतु वह यह बात मानने को तैयार न था। और रतन ने आखिर एक दिन अपने पुरुषत्व का परीक्षण कर लिया..

आश्रम की एक महिला से उसने कामुक संबंध बना लिए जिस की खबर विद्यानंद तक भी पहुंच गई..

विद्यानंद ने उसे मुख्य आश्रम से हटाकर एक विशेष आश्रम में स्थानांतरित कर दिया अब वह जिस आश्रम का वह निर्माण कार्य देख रहा था उसका औचित्य तो उसे पता न था परंतु वह आश्रम एक विलक्षण तरीके से बनाया जा रहा था।

एक खूबसूरत हॉल में 5 x 5 फीट के कई सारे कूपे पर बने हुए थे। इस कूपे में जाने के 2 दरवाजे थे एक आगे से और एक पीछे से।

कूपे की ऊंचाई लगभग 7 फीट की थी। पिछले दरवाजे से प्रवेश करने पर आने वाला व्यक्ति कूपे में बने लगभग 2 फीट बाई 2 फीट के चबूतरे पर आ जाता उसका सर तथा कंधा उस कूपे के बाहर आ जाता। कूपे का ऊपरी भाग कपड़े से बनाया गया था। चबूतरे पर खड़ा व्यक्ति अपने हाथ अपने कंधे के समानांतर करता और कूपे का ऊपरी भाग का कपड़ा दोनों किनारों से पास आता और उसके शरीर के ऊपरी भाग को छोड़कर उसके ऊपर की छत को पूरी तरह ढक लेता।

रतनू ने एक कूपे की जांच करनी चाहिए वह पिछले दरवाजे से कूपे के अंदर घुस 2 फीट X 2 फीट के चबूतरे पर आया और दोनों हाथ पूरी तरह फैला दी जो उस कूपे की बाहरी दीवारों पर जाकर टिक गए। कूपे की दीवाल पर बने लाल बटन को दबाते ही दोनों तरफ से कपड़े की एक परत स्लाइड करती हुई आई और उसके सीने को घेर लिया और कूपे को एक छत का रूप दे दिया। कपड़े ने रतन के शरीर को दो हिस्सों में बांट दिया थासीने से उपर और सीने से नीचे..

कूपे के ऊपर रतन का सिर्फ सर और दो मजबूत भुजाएं ही दिखाई दे रही थी उस कपड़े की छत के नीचे उसका सारा शरीर था। परंतु रतन अपने शरीर को देख पाने में अक्षम था।

उसी समय सामने के दरवाजे से रतन के असिस्टेंट ने उसी कूपे में अंदर प्रवेश किया। कूपे में आने के बाद उस असिस्टेंट ने रतन के शरीर का सीने से लेकर पैर तक के भाग को देखा उसे न तो रतन का चेहरा दिखाई पड़ रहा था और नहीं उसके गले का ऊपरी भाग।

कूपे का निर्माण दिशानिर्देशों के अनुरूप ही बनाया गया था।

असिस्टेंट ने बाहर आकर रतन से कहा…

सर बिल्कुल सही बना है.. मुझे आपका चेहरा और ऊपरी भाग नहीं दिखाई पड़ रहा है.

परंतु यह कूपा क्यों बनाया जा रहा है..?

इस प्रश्न का उत्तर रतन स्वयं नहीं जानता था वह तो विद्यानंद के करीबी अपने गुरु के आदेश अनुसार अनुसार इस विशाल कक्ष और उसके अंदर इस प्रकार के कई कूपों का निर्माण करा रहा था जो अब धीरे-धीरे समापन की तरफ बढ़ रहा था. यह कूपा रतन और उसके परिवार के लिए बेहद अहम था परंतु रतन इस बात से अनजान था।

आइए अब रतन को ( और पाठकों को भी) उसके प्रश्नों के साथ छोड़ देते हैं और वापस सुगना और लाली के पास चलते हैं जहां सोनू के हाथों से सुगना फिसलती जा रही थी…

रक्षाबंधन का अगला दिन भी यूं ही बीत गया। सोनू और लाली ने एक बार फिर उसी कमरे में संभोग किया और इस बार भी सुगना ना आई.. ।

शाम होते-होते सोनू के चेहरे पर उदासी छा गई। ऐसा लग रहा था जैसे उसने सुगना को लेकर अपनी अतृप्त इच्छाओं की जो तस्वीर बनाई थी वह सुगना के व्यक्तित्व और मर्यादा की भेंट चढ़ गई थी। सोनू सोच रहा था…

क्या.. सुगना दीदी के मन में कोई भी कामुक भाव न थे? क्या उनके जीवन में वासना का कोई स्थान न था?

पर यदि ऐसा ही था तो वह क्यों उसका और लाली का मिलन देखने खिड़की पर आई थी? जीजू के जाने के बाद वह आज भी सज धज कर क्यों रहती थी? सूट के साथ जालीदार ब्रा और पेंटी को दीदी ने क्यों स्वीकार किया था? सोनू के प्रश्न जायज थे परंतु सही उत्तर तक पहुंच पाना सोनू के लिए कठिन हो रहा था।

सोनू सुगना के साथ हुए कामुक अब तक हुए कामुक घटनाक्रमों के बारे में सोचने लगा । जब सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना को अतृप्त युवती के रूप में देखता उसे सारी घटनाएं सुगना के कामुक रूप को और उजागर करती जब वह सुगना को अपनी बड़ी और मर्यादित बहन के रूप में देखता उसे सारी घटनाएं स्वाभाविक लगती वह कंधे से दुपट्टा गिर कर उसकी चुचियों का दिख जाना उसका खिड़की पर आना और न जाने क्या क्या..

पिछले कुछ महीनों में अपनी वासना के आधीन होकर सोनू ने सुगना के अतृप्त युवती वाले रूप को जेहन में बसा लिया था परंतु सुगना का मर्यादित और संतुलित व्यवहार सोनू की सोच पर अंकुश लगा रहा था ..

शाम होते होते सोनू ने अपने कल वापस जाने की घोषणा कर दी…

सुगना ने बेहद प्यार और आत्मीयता से कहा

"अरे सोनू बाबू एक-दो दिन और रुक जा तब जईहा"

लाली सोनू का मर्म समझ रही थी अब तक वह यह भली-भांति जान चुकी थी कि सोनू सुगना के नाम से अब उत्तेजित होता था उस ने मुस्कुराते हुए कहा…

"तोहार दीदी तहार अपना ख्याल रखिए मानजा उनकर बात.."

लाली के मजाक में सोनू ने उम्मीद की किरण ढूंढ ली और सोनू अगले दिन सुबह की बजाय शाम को जाने को तैयार हो गया। नियति मुस्कुरा रही थी और सोनू की उदासी दूर करने का प्रयास कर रही थी। परंतु सुगना उसे क्या पता था की सोनू को अपेक्षाएं बदल चुकी थी। भाई बहन के जिन कामुक संबंधो को वह पाप मानती थी और अपनी आत्मग्लानि पर विजय पाने के लिए लगातार अपने दिमाग से द्वंद्व करती रहती थी सोनू की अपेक्षाएं उसी दिशा में थीं।


सोनू का शारीरिक स्वास्थ्य और मजबूत लंड उसे सरयू सिंह की याद दिलाता और सरयू सिंह के साथ बिताए गए कामुक पलों को याद कर सुगना भाव विभोर हो जाती जाने कब उस कल्पना में सोनू सरयू सिंह की जगह ले लेता और सुगना बेचैन हो उठती। वह बार-बार अपने विचारों में सरयू सिंह को याद करती परंतु जैसे सोनू उसके विचारों और दिमाग पर छाता चला जा रहा था। सुगना अचकचा कर उठ जाती और मुस्कुरा कर वापस फिर सोने का प्रयास करने लगती उसके सपनों में सोनू अपनी जगह बनाता जा रहा था।

अगली सुबह अगली सुबह सोनू के लिए बेहद अहम थी सारे बच्चे स्कूल जा चुके थे और सोनी भी कॉलेज जा चुकी थी घर के छोटे बच्चे हॉल में खेल रहे थे।

सोनू अपनी दोनों बहनों के साथ रसोई घर में खड़ा बातें कर रहा था तभी सुगना ने कहा..

" बाबूजी कहत रहले जा कि कई सारा लोग शादी ब्याह खाती आवत बा ऊ फोटो भेजले बाड़े केहू से आज लेके आई"

" हमरा अभी शादी नईखे करेके पहले ट्रेनिंग पूरा हो जाओ तब सोचब" सोनू ने स्पष्ट तौर पर अपनी बात रख दी.

" ठीक बा लड़की पसंद कर ले ब्याह बाद में करीहे …शादी ब्याह एक-दो दिन में थोड़ी होला "

सुगना ने अपनी बात को संजीदगी से रखने का प्रयास किया परंतु उसने सोनू का टेस्ट खराब कर दिया वह यहां कुछ और सोच कर आया था और हो कुछ और रहा था।


लाली ने सोनू का पक्ष लेते हुए बोला

"अरे अभी लईका बा तनी सयान होवे दे फिर ब्याह करिए काहे जल्दी आईल बाड़ू"

" हम देखले बानी कतना लईका बा …ढेरों ओकर पक्ष मत ले…." सुगना ने मुस्कुराते हुए यह बात बोल दी…दिमाग में यह बात बोलते समय उस दिन की तस्वीर आ गई जब सोनू लाली को अपने मजबूत लंड से चोद रहा था लाली ने उसकी मनोदशा तुरंत पढ़ ली और बोली..

"कहां बड़ भईल बा? अभियों त दिन भर दीदी दीदी कइले रहेला.."

सुगना ने सोनू की तरफ मुखातिब होते हुए कहा

"जो सोनू नहा ले हम नाश्ता लगावत बानी…"

"हमार कपड़ा कहां बा? "

सुगना ने लाली से कहा

"ए लाली एकर कपरवा दे दे"

लाली और सोनू दोनों रसोई घर से बाहर निकल गए.. सोनू और लाली हॉल में आते ही एक दूसरे के आलिंगन में आ गए। सुगना ने यह मिलन महसूस किया और पीछे पलट कर देखा … सुगना मुस्कुरा रही थी.. वह वापस अपना ध्यान सब्जी बनाने पर लगाने लगी उसके लिए सोनू और लाली का मिलन आम हो गया था।

देर में कुछ ही देर में सोनू आंगन में नहाने चला गया । रसोई घर की एक खिड़की आंगन में भी खुलती थी सुगना ने सोनू को आंगन में हैंडपंप से बाल्टी भरते हुए देखा और पीछे खड़ी लाली से पूछा सोनू आंगन में काहे नहाता बाथरूम त खालीए रहल हा।

"अरे कहता धूप में नहाएब हम कहनी हा … जो नहो"

सुगना को यह थोड़ा अटपटा अवश्य लगा परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया न थी । वह खाना बनाने में व्यस्त थी परंतु आंखें सोनू को देखने का लालच ना छोड़ पाईं। सोनू अपनी बनियान उतार चुका था और हैंडपंप से बाल्टी में पानी भर रहा था सोनू की मजबूत भुजाएं और मर्दाना शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। सोनू रसोई घर की तरफ नहीं देख रहा था और इसका फायदा सुगना बखूबी उठा रही थी वह कतई नहीं चाहती थी कि उसकी नजरें सोनू से मिले।

बाल्टी भरने के पश्चात सोनू सुगना की तरफ पीठ कर पालथी मारकर बैठ गया। और लोटे से अपने सर पर पानी डालने लगा।


सोनू का सुडौल और मर्दाना शरीर धूप में चमक रहा था पीठ की मांसपेशियां अपना आकार दिखा रही थी और सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर चली जाती।

वह मजबूत भुजाएं वह कसी हुई कमर सोनू का शरीर सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। उसके दिमाग में फिर सरयू सिंह घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना सोनू को देखती गई वह मंत्र मुक्त होती गई सुगना के हाथ बेकाबू होने लगे। उसका मन अब सब्जी चलाने में ना लग रहा था वह बार-बार आंगन की तरफ देख रही थी।

सोनू अपनी पीठ पर साबुन लगाने का प्रयास कर रहा था परंतु पीठ के कुछ हिस्सों पर अब भी साबुन लगा पाने में नाकामयाब था। इस प्रक्रिया में उसकी भुजाएं और भी खुलकर अपना शारीरिक सौष्ठव दिखा रही थी सुगना सोनू के शरीर पर मंत्रमुग्ध हुई जा रही थी।

सुगना के मन ने दिमाग के दिशा निर्देशों का एक बार और उल्लंघन किया और सुगना का शरीर उत्तेजना से भरता गया सूचियां एक बार फिर तन गई ..


लाली सुगना को आंगन की तरफ बार-बार ताकते हुए देख रही थी.. और मन ही मन मुस्कुरा रही थी.

सोनू के मजबूत और मर्दाना शरीर का आकर्षण स्वाभाविक था…

"कहां ध्यान बा तोर देख सब्जी जलता.."

सुगना की चोरी पकड़ी गई उसने अपनी वासना पर काबू पाया और लाली की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और बोला


"सांच में बड़ भईला पर बच्चा कितना बदल जाला, पहले सोनू छोटा बच्चा रहे तो केतना बार हम ओकरा के नहलावले बानी" सुगना यह बात बोल कर अपने बड़े होने और इस तरह देखने को न्यायोचित ठहरा रही थी लाली मजाक करने के लहजे में बोली

"तो जो अभियो नहला दे .."

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसने गरम छनौटे को लाली की तरह दिखाते हुए बोला दे

"आजकल ढेर बकबक करत बाड़े ले चलाओ सब्जी हम अब जा तानी सूरज के देखे.."

सुगना स्वयं को अब असहज महसूस कर रही थी उसने और बात करना उचित न समझा और लाली को छोड़ हाल में आ गई जहां सूरज मधु के साथ खेल रहा था..

आगन से आवाज आई…

" दीदी तनी पानी चला द खत्म हो गइल बा".

सोनू की आवाज सुगना ने भी सुनी और लाली ने भी लाली चुपचाप रसोई घर में सब्जी बनाती रही और सुगना चुप ही रही।

और सोनू को एक बार फिर पुकारना पड़ा


"दीदी पानी चला द"

सुगना से रहा न गया वह रसोई में गई उसने लाली से कहा

"जो पानी चला दे, हम सब्जी बना दे तानी,"

लाली मुस्कुरा उठी उसने अपनी हंसी पर काबू करते हुए कहा..

"सब्जी बस बने वाला बा…जो तेहि पानी चला दे… "

सुगना को अनमने ढंग से वही खड़े देखकर लाली ने फिर कहा

"काहे अपन भाई से लाज लगता का?

सुनना के पास अब कोई चारा न था। वह बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आंगन में जाने लगी..

सुगना ने आंगन में पैर रखा सोनू की मर्दाना छाती उसके सामने हो गई। पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था और सोनू को आंखे बंद थीं..

सोनू का भरा भरा सीना पतली कसी हुई कमर और मांसल जांघें सब कुछ सांचे में ढला हुआ सुगना हैंडपंप पर आकर पानी भरने लगी।

हैंडपंप का हत्था पकड़ते ही उसे सरयू सिंह के लंड की याद आ गई और सुगना का ध्यान उस जगह पर चला गया जो एक बहन के लिए निश्चित ही प्रतिबंधित था।


परंतु सुगना अपनी निगाहों को रोक न पाईं। सोनू की बड़ी सी लूंगी सिमटकर छोटी हो गई थी। और उस छोटी लूंगी को चीरकर सोनू का खड़ा खूटे जैसा लंड बाहर आ गया था जो साबुन के झाग से पूरी तरह डूबा हुआ था साबुन तो सोनू के सारे शरीर पर भी लगा था परंतु सोनू का वह खूबसूरत और तना हुआ लंड सुगना की आंखों को बरबस अपनी ओर खींचे हुए था सुगना कुछ देर यूं ही मंत्रमुग्ध होकर देखती रही और उसके हाथ हैंडपंप पर चलते रहे..

रसोई घर में खड़ी लाली सुगना को देख रही थी उसके लज्जा भरे चेहरे को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोनू आंखे बंद किए साबुन लगा रहा था अचानक उसने कहा

" ए लाली दीदी तनी पीठ में साबुन लगा द"

सुगना कुछ ना बोली और हैंड पंप चलाती रही उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? सोनू के मर्दाना शरीर पर अपने हाथ फिराने की कल्पना मात्र से उसके शरीर में एक करंट सी दौड़ गई।

सोनू यही न रूका.. उसने आंखें बंद किए परंतु मुस्कुराते हुए कहा

"अच्छा पीठ पर ना त ऐही पर लगा द" और सोनू ने उसने अपने खूटे जैसे खड़े लंड को मजबूत हथेलियों से पकड़ लिया…और अपनी हथेली से उस पर लगे साबुन के झाग को हटाकर उसे और भी नंगा कर दिया..

उसका खूबसूरत और तना हुआ लंड अपनी पूरी खूबसूरती में उसकी बड़ी बहन सुगना की आंखों के सामने था.

"दीदी आवा न,"

सोनू बेहद धीमी आवाज में बोल रहा था जो सुगना के कानों तक तो पहुंच रही थी परंतु लाली तक नहीं जो रसोई से दोनों भाई बहन को घूर रही थी..

सुगना का कलेजा धक धक करने लगा.. उसके हाथ कांप रहे थे बाल्टी भरने ही वाली थी। सोनू की आंखे बंद देखकर वह उस लंड को निहारने का लालच न रोक पाई।

मन के कोने में बैठी वासना अपना आकार बढ़ा रही थी। एक पल के लिए सुगना के मन में आया कि वह उस खूबसूरत और कापते हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खूब सहलाए , प्यार करें वही उसका दिमाग उसकी नजरों को बंद करना चाह रहा था। जो आंखे देख रही थीं वह एक बड़ी बहन के लिए उचित न था.. पर बुर का क्या? उसका हमसफर सामने खड़ा उसमे समाहित होने को बेकरार था…

उधर लाली का उत्तर ना पाकर सोनू ने अपनी आंख थोड़ी सी खोली और सामने साड़ी पहने हुए सुगना के गोरे गोरे पैरों को देखकर सन्न रह गया। लंड में भरा हुआ लहू अचानक न जानें कहां गायब हो गया…

उसने अपनी आंखे जोर से बच्चे की भांति बंद कर ली और लंड को लुंगी में छुपाने की कोशिश करने लगा.

सुगना सोनू की मासूमियत देख मुस्कुरा उठी..आज अपनी आंखे मूंदे सोनू ने सुगना को उसका बचपन याद दिला दिया..बहन का प्यार हावी हुआ और सुगना ने कहा ..

"दे पीठ में साबुन लगा दीं.."

"ना दीदी अब हो गइल" और सोनू अपने शरीर पर लोटे से पानी डालने लगा..

"रुक रुक हमारा के जाए दे"

सुगना पानी की छीटों से बचने का प्रयास करते हुए दूर हटने लगी..

सुगना और सोनू कुछ पलों के लिए वासना विहीन हो गए थे। लंड सिकुड़ कर न जाने कब अपनी अकड़ खो चुका था..सुगना की लार टपकाती बुर ने भी अपने खुले हुए होंठ बंद कर लिए पर अब तक छलक आए प्रेमरस ने सुगना की जांघें गीली कर दीं थीं..

सुगना उल्टे कदमों से चलती हुई आपने कमरे में आ गई…सोनू का कसरती शरीर सुगना में दिलो दिमाग में बस गया था…


सुगना के जाने के बाद सोनू ने रसोई घर की खिड़की की तरफ देखा उसकी और लाली की नजरें मिल गई। सोनू ने चेहरे पर झूठा गुस्सा लाया पर लाली मुस्कुरा दी..लाली ने अपनी चाल चल दी थी…

लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।

शाम को शाम को सोनू को वापस लखनऊ के लिए निकलना था।

क्या सुगना सोनू को रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट देगी…या सोनू यूं ही विदा हो जाएगा…

शेष अगले भाग में
Kya likhte ho bhai jab bhi yha aata hu bs yhi story padta hu aisa hi jaldi jaldi update dete rahiye ab dekhte h ki sugna or Sonu ka kya bnta h
 
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