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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

  • yes

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  • no

    Votes: 1 2.4%

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    42

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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Nice pics ...
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
भाई बहन का संभोग के किताब का आधा भाग सोनू को सुगना के रुम से प्राप्त हुआ जो आगे जाकर सोनू को सुगना के मालपुवे रुपी सुंदर कमसीन और कोमल बुर से मन माफिक खेलने का जरीया बनेगा
सोनू का तगडा बलशाली शरीर और लंड देखकर सुगना की बुर वैसे भी चासनी से सराबोर हो रही है
आग दोनो तरफ लगी हैं बस अंजाम बाकी हैं
ये मोनी वैराग्य की ओर अग्रेसर होते जा रही है और विद्यानंद के आश्रम की चाह रख रही है क्या ये होता है तो रतन और मोनी क्या नये बन रहे कुपे पर मिलकर कुछ नया अध्याय लिखते हैं
देखते हैं आगे क्या होता है
लव्हली लेखनी आनंददायक अपडेट
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Thanks..
Excellent imagination of the plot!
धन्यवाद

SCORE 18/20

2 more needed.....
 

Lovely Anand

Love is life
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कोई इस कहानी को पूरा कर दो , इंटरनेट की सबसे बेहतरीन कहानी है ये
लगता है आप रास्ता भटक गए है...

वैसे आपका सुझाव आप खुद भी पूरा कर सकते है..
 

Sugna

New Member
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भाग 84

लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।


शाम को शाम को सोनू को वापस लखनऊ के लिए निकलना था।

क्या सुगना सोनू को रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट देगी…या सोनू यूं ही विदा हो जाएगा


अब आगे…..

सुगना ने आज जब से सोनू का खड़ा और खूबसूरत लंड देखा था और तब से ही सुगना एक अजीब सी कशमकश में थी उसकी आंखों से वह दृश्य हट ही न रहा था। बाथरूम में नहाते समय जैसे ही सुगना निर्वस्त्र हुई उसकी आंखों के सामने हैंड पंप पर नहाता हुआ सोनू घूमने लगा। वासना की गिरफ्त में आ चुकी सुगना अपने भाई सोनू के चेहरे को भूलकर उसके खूबसूरत शरीर तथा खड़े लंड को याद करने लगी। उसके हाथ स्वतः ही शरीर के निचले भागों पर घूमने लगे…

बुर के होठों को सहलाते हुए सुगना को सरयू सिंह की वह बातें याद आ गई जब उन्होंने सुगना की फूली हुई बुर की तुलना मालपुए से की थी और तब से पुआ और सुगना की बुर दोनों पर्याय बन चुके थे। यह उपमा कजरी सरयू सिंह और सुगना इन तीनों के बीच ही थी.

सुगना ने अपना स्नान पूरा किया और बड़ी मुश्किल से अपनी वासना से पीछा छुड़ाकर जैसे ही वह हाल में आए सोनू की आवाज उसे सुनाई पड़ी ..

"हमारा तो सुगना दीदी के पुआ ही पसंद बा"

सुगना सिहर उठी…सोनू ने यह क्या कह दिया …पुआ शब्द सुनकर सुनकर सुगना के दिमाग में उसकी नहाई धोई फूली हुई बुर दिमाग में घूम गई…किसी व्यक्ति की कही गई बात का अर्थ आप अपनी मनोदशा के अनुसार निकालते हैं…

सोनू ने सुगना के हाथों द्वारा बनाए गए मीठे मालपुए की तारीफ और मांग की थी परंतु सुगना ने अपनी मनोदशा के अनुसार उसे अपनी अतृप्त बुर से जोड़ लिया था।

तभी सोनी बोली..

"सुगना दीदी के पुआ दूर से ही गमकेला …सरयू चाचा त दीवाना हवे दीदी के पुआ के …अब तो सोनू भैया भी हमेशा दीदी के पुआ खोजेले....सबेरे से पुआ पुआ कइले बाड़े"

सुगना सोनू की पसंद जानती थी…पर सोनू अब जिस पुए की तलाश में था सुगना उससे अनभिज्ञ न थी.. पर उसे अब भी अपने भाई पर विश्वास था। भाई बहन के बीच की मर्यादा का असर वह आज सुबह देख चुकी थी जब सोनू का लंड उसे देखते ही अपनी घमंड और अकड़ छोड़ कर तुरंत ही नरम हो गया था।

सुगना दोनों के लिए मालपुआ बनाने लगी कड़ाही में गोल मालपुए को जैसे ही सुगना ने अपने छनौटे से बीच में दबाया हुआ ने बुर की दोनों मोटी मोटी फांकों का रूप ले लिया और सुगना मुस्कुरा उठी। सुगना एक बार फिर अपनी वासना के भवर में झूलने लगी। सुगना ने कड़ाही में से मालपुआ को निकालकर चासनी में डुबोया परंतु सुगना की जांघों के बीच छुपा मालपुआ खुद ब खुद रस से सराबोर होता गया…सुगना के अंग जैसे उसके दिमाग के निर्देशों को धता बताकर अपनी दुनिया में मस्त थे…

सोनू सुगना गरम-गरम मालपुआ लेकर सोनू के समक्ष उपस्थित थी…. मालपुआ गरम था । सोनू मालपुए का आनंद लेने लगा मालपुआ गर्म था सोनू की जीभ बार-बार बाहर को आ रही थी शायद यह गर्म मालपुआ को ठंडा करने के लिए था…. परंतु वासना से घिरी सुगना को मालपुए से छूती सोनू की जीभ बेहद उत्तेजक लग रही थी। उसका अंतरमन उटपटांग चीजें सोचने लगा…..

सोनू बेपरवाह होकर कभी मालपुए को अपने दोनों होठों से पकड़ता कभी जीभ से छूकर उसके मीठे पल का अंदाज करता सुगना एकटक सोनू को अपना मालपुआ खाते हुए देख रही थी…

जांघों के बीच छुपे मालपुए ने जब अपना रस जांघों पर छोड़ दिया तब सुगना को अपने गीले पन का एहसास हुआ सुगना शर्म से पानी पानी हो गई…

कुछ ही पलों में सुगना ने वासना की हद पार कर दी थी उसने जो सोचा था वह एक बड़ी बहन के लिए कहीं से उचित न था.…..

उधर सीतापुर में सुगना की मां पदमा अपनी बेटी युवा बेटी मोनी के साथ गांव की एक विवाह कार्यक्रम में गई हुई थी। वहां उपस्थित सभी महिलाएं मोनी के बारे में बात कर रही थीं। न जाने गांव की महिलाओं को कौन सा कीड़ा काट रहा था वह सब मोनी की शादी की बात लेकर चर्चा कर रही थीं। मोनी उनकी बातें सुनकर मन ही मन कुढ़ रही थी। न जाने उन महिलाओं को मोनी के विवाह से क्या लाभ होने वाला था..

मोनी के मन में विवाह शब्द सुनकर कोई उत्तेजना पैदा ना होती… अभी तो वह सिहर जाती उसे किसी मर्द के अधीन होकर रहना कतई पसंद ना था मर्द से मिलने वाला सुख न तो वह जानती थी और नहीं उसे उसकी दरकार थी। वह अपने भक्तिभाव में लीन रहती।

जब जब पदमा उससे विवाह के बारे में बात करती वह तुरंत मना कर देती… आखिर उसकी मां पदमा ने कहा "बेटी यदि तू ब्याह ना करबू तो गांव वाली आजी काकी सब तहार जीएल दूभर कर दीहे लोग। चल हम तोहार बियाह कोनो पुजारी से करा दी… तू ओकर संग पूजा पाठ में लागल रहीहे"

पद्मा ने अपनी सूझबूझ से मोनी को समझाने और मनाने की कोशिश की.. परंतु मोनी तो जैसे अपने पुट्ठे पर हाथ न रखने दे रही थी… न जाने इतने खूबसूरत युवा जिस्म की मालकिन मोनी में कामवासना कहां काफूर हो गई थी …. जब भाव न हों कामांगों का कोई औचित्य नहीं रह जाता। जांघों के बीच छुपी सुंदर बूर दाढ़ी बढ़ाए मोनी की तरह बैरागी बन चुकी थी। वह सिर्फ मूत्र त्याग के कार्य आती…..उसी प्रकार मोनी की भरी-भरी चूचियां अस्तित्व विहीन सी मोनी के ब्लाउज में कैद, जैसे सजा काट रही थीं।

मोनी के मन में समाज के प्रति विद्रोह की भावना जन्म ले रही थी उसका जी करता कि वह इन औरतों से दूर कहीं भाग जाए परंतु उसे भी पता था कि घर से भागकर जीवन व्यतीत करना बेहद दुरूह कार्य था। वह अपने इष्ट देव से अपने भविष्य के लिए दुआएं मांगती और स्वयं को अपनी शरण में लेने के लिए अनुरोध करती…..

मोनी की मां पदमा और मोनी की अपेक्षाएं और प्रार्थनाएं एक दूसरे के प्रतिकूल थी …. मोनी के भाग्य में जो लिखा था वह होना था ….

मोनी को अब भी बनारस महोत्सव में दिए गए विद्यानंद के प्रवचन याद थे शारीरिक कष्टों और संघर्ष से परे वह ख्वाबों खयालों की दुनिया निश्चित ही आनंददायक होगी। जहां एक तरफ ग्रामीण जीवन में रोजाना का संघर्ष था वही विद्यानंद के आश्रम में जैसे सब कुछ स्वत ही घटित हो रहा था। जीवन जीने के लिए आवश्यक भोजन और सामान्य वस्त्र स्वतः ही उपलब्ध थे। वहां की दिनचर्या मोनी को बेहद भाने लगी थी… काश विद्यानंद जी उसे स्वयं अपने आश्रम में शामिल कर लेते ….. . मोनी मन ही मन अपनी प्रार्थनाओं में अपने इष्ट देव से विद्यानंद जैसे किसी दार्शनिक के आश्रम में जाने दाखिला पाने की गुहार करने लगी।…..

नियति मोनी की इच्छा का मान रखने का जाल बुनने लगी आखिर विधाता ने मोनी के भाग्य में जो लिखा था उसे पूरा करना अनिवार्य था..


उधर सुगना के घर में शाम को सभी भाई-बहन एक साथ बैठे हंसी ठिठोली कर रहे थे सोनू के जाने की तैयारियां लगभग पूरी हो गई थी सिर्फ सोनू के लिए कुछ पकवान बनाए जाने बाकी थे। उसी समय दरवाजे पर दस्तक हुई और सरयू सिंह द्वारा भेजा आदमी आ गया था..

"सरयू सिंह जी का परिवार यही रहता है?"

"हां क्या बात है?" सुगना ने पूछा

आगे कुछ कहने सुनने को न रहा उस व्यक्ति ने सरयू सिंह द्वारा भेजा लिफाफा सुगना को पकड़ा दिया.. सुगना खुश हो गई… उसने उस व्यक्ति को चाय पान के लिए भी आमंत्रित किया परंतु वह कुछ जल्दी बाजी में था और तुरंत वापस जाना चाहता था .. सुगना ने फिर भी उसे खड़े-खड़े मिठाइयां खिलाकर ही विदा किया सुगना का यही व्यवहार उसे सर्वप्रिय बनाए रखता था…

सुगना चहकती हुई अंदर आई और सरयू सिंह द्वारा भेजे गए फोटो निकाल कर सभी को दिखाने लगी। सोनी और सुगना पूरे उत्साह से फोटो देख रही थी जबकि लाली अनमने मन से उन फोटो को देख रही थी।


और सोनू …. वह तो कतई इन फोटो की तरफ नहीं देखना चाहता था। सारी फोटो ठीक-ठाक थी उनमें से जो दो फोटो सुगना को पसंद आई उसने सोनू को दिखाते हुए बोला

"ए सोनू देख कितना सुंदर बिया"

"दीदी हमरा के बेवकूफ मत बनाव" हम शादी करब तो तोहरा से सुंदर लड़की से…. नाता ना करब" सोनू ने मुस्कुराते हुए अपनी बात रख दी इस बात में कोई शक न था कि सुगना उन तीनों में सबसे सुंदर थी।

लाली और सोनी मुस्कुराने लगीं…...

सोनी ने मुस्कुराते हुए कहा सोनू भैया

"देखिह कहीं कुंवारे मत रह जईह , सुगना दीदी जैसन मिलल मुश्किल बा"

अपनी तारीफ सुनकर सुगना बेहद प्रसन्न हो गई और अपनी खुशी को दबाते हुए सोनू से बोली

"ना सोनू ….हम तोरा खातिर अपना से सुंदर लड़की जरूर ले आएब" इतना कहकर सुगना ने सारी फोटो एक तरफ कर दी।


सुगना की बात सुनकर सोनू प्रसन्न हो गया और उसने खुशी में एक बार अपनी सुगना दीदी को गले लगा लिया….. सुगना बैठे-बैठे ही उसके आलिंगन में आ गई… आज सोनू की बाहों का कसाव उसने कुछ ज्यादा ही महसूस किया.

यद्यपि सामने सोनी और लाली बैठी थी फिर भी सोनू का वह मजबूत आलिंगन सुगना ने महसूस कर लिया था। उसने स्वयं को सोनू की गिरफ्त से हटाते हुए कहा

"अब ढेर दुलार मत दिखाव… हम कोशिश करब"

"और यदि ना मिलल तब?" सोनू ने प्रश्न किया….

" तब के तब देखल जाई…अच्छा चल अपन सामान ओमान पैक कर"

सुगना को कोई तात्कालिक उत्तर न सूझ रहा था सो उसने सभा विसर्जन की घोषणा कर दी और हमेशा की तरह अपने छोटे भाई के लिए कुछ नाश्ते का सामान बनाने में लग गई।


लाली और सोनी सोनू की पैकिंग करने में मदद करने लग गई। सोनू कुछ ही देर में लखनऊ जाने के लिए तैयार हो गया।

सुगना ने सोनू को रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट तो न दिया परंतु यह आश्वासन देकर कि वह सोनू के लिए खुद से खूबसूरत लड़की लेकर आएगी सुगना फस गई।

ऐसा नहीं था कि उस समय सुगना से खूबसूरत लड़कियां इस दुनिया में न थीं परंतु जिस ग्रामीण परिवेश से सुगना आई थी वह वहां लड़कियों में शारीरिक कसाव तो अवश्य था परंतु कोमल और दमकती त्वचा जो सुगना ने कुदरती रूप से पाई थी वैसी त्वचा गांव गवई में मिलना मुश्किल था। यह अद्भुत सुंदरता कुछ शहरी बालों में अवश्य थी परंतु वह सुगना और सोनू जैसे निम्न आय वर्ग के लिए पहुंच से काफी दूर थीं।

सोनू निश्चित ही गरीबी के क्रम को तोड़कर आगे बढ़ने वाला था और आने वाले समय में हो सकता था कि उसे विवाह के लिए सुगना से भी खूबसूरत लड़की मिल जाती…. परंतु आज यह उनकी कल्पना से परे था।

आने वाले समय में सोनू को क्या मिलेगा क्या नहीं यह प्रश्न गौड़ था परंतु आज जो उपलब्ध था उसमें सुगना का कोई सानी न था। सुगना जैसी सुंदर और अदब भरी कामुक युवती का मिलना बेहद कठिन था।


घर से निकलने से पहले सोनू सुगना के कमरे में अपनी अटैची में कुछ सामान रख रहा था तभी उसके भांजे सूरज की गेंद उछलती हुई अलमारी के पीछे चली गई। सूरज ने अपनी मधुर आवाज में कहा

"मामा मामा बाल निकाल द".

सोनू सूरज का आग्रह न टाल पाया और उस लोहे की अलमारी को खिसकाने लगा जिसके पीछे सुगना ने वह गंदी किताब फाड़कर फेकी थी….वही किताब जिसमें रहीम और फातिमा की चूदाई गाथा थी.


सोनू ने ताकत लगाकर न सिर्फ अलमारी खिसकाई बल्कि अपनी किस्मत का दरवाजा भी। उसने सूरज की बाल को उसके हाथों में दे दिया वह उछलता खेलता कमरे से बाहर निकल गया। तभी सोनू की निगाह उस जिल्द लगी किताब पर पड़ी जो दो टुकड़ों में पड़ी थी।

सूरज सोनू में वह किताब अपने हाथों में उठा ली और जैसे ही उसने उसके पन्ने पलटे संभोग रत विदेशी युवक और युवती की तस्वीर उसकी आंखों के सामने आ गई वह भौचक्का रह गया…

उसी समय सुगना कमरे में प्रवेश की..

दरअसल अलमारी खिसकाए जाने की आवाज रसोईघर तक भी पहुंची थी और सुगना तुरंत ही सचेत हो गई उसे याद आ गया कि वह गंदी किताब उसने क्रोध में दो टुकड़े कर उसी अलमारी के पीछे फेकी थी वह भागती हुई अपने कमरे में आ गई थी।.

सुगना के आने की आहट पाकर सोनू घबरा गया उसे समझ ना आया कि वह क्या करें। उसने किताब का एक टुकड़ा अपने कुर्ते के नीचे लूंगी में फंसाया और जब तक वह दूसरा टुकड़ा अंदर फसा पाता सुगना सामने आ चुकी थी।


उसके हाथों में उस किताब देखकर सुगना के होश फाख्ता हो गए …. कहने सुनने को कुछ भी बाकी ना था. वह कुछ बोली नहीं परंतु सोनू के हाथों से किताब का आधा टुकड़ा बिजली की फुर्ती से छीन लिया और बोली..

"जा तरह नाश्ता निकाल देले बानी ओकरा के पैक कर ल ई किताब फिताब बाद में देखीह…"

सोनू निरुत्तर था वह कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं था। सुगना ने बड़ी फुर्ती से किताब का आधा टुकड़ा छीन कर सोनू को विषम स्थिति से निकाल लिया था।


वह तुरंत ही भागता हुआ किचन की तरफ चला गया परंतु जाते समय उसने अपने पेट पर हाथ फिरा कर यह आश्वस्त किया कि किताब का दूसरा हिस्सा उसकी कमर की लूंगी में फंसा हुआ सुरक्षित है।

सोनू उस किताब को देखना चाहता था परंतु समय और वक्त इस बात की इजाजत नहीं दे रहा था… सोनू ने रसोई में सुगना द्वारा बनाए गए सामान को लाकर सुरक्षित तरीके से पैक किया और अगर उस अनोखी किताब का टुकड़ा भी अपने सामान के साथ बैग में भर लिया..

उधर सुगना थरथर कांप रही थी। सोनू के हाथ में उस किताब को देखकर वह बेचैन हो गई थी। सोनू के हाथों से किताब का वह टुकड़ा छीन कर वह कुछ हद तक आश्वस्त हो गई थी… पर दूसरा टुकड़ा ?

सुगना ने अलमारी के पीछे किताब के दूसरे भाग को खोजने की कोशिश की परंतु सफल न रही। उसकी बेचैनी देखने लायक थी। सोनू वापस कमरे में आया अपनी बहन को परेशान देखकर इतना तो समझ ही गया कि वह किताब का दूसरा भाग खोज रही है जो अब उसके बैग में बंद हो चुका था।

उसने सुगना से अनजान बनते हुए पूछा

" दीदी कुछ खोजा तारु का? हम मदद करीं।"

सुगना कुछ कह पाने की स्थिति में न थी अपने हृदय में बेचैनी समेटे वह निकल कर हॉल में आ गई..

सुगना के दिमाग में हलचल तेज हो गई..


क्या सोनू ने किताब के मजमून को पढ़ लिया था…क्या भाई बहन ( रहीम और फातिमा) की चूदाई गाथा सोनू ने पढ़ ली थी? यह सोचकर ही सुगना परेशान हो गई थी। क्या सोनू ने उस किताब का दूसरा टुकड़ा उससे छुपाकर अपने पास रख लिया था…?

सुगना के मन में प्रश्न कई थे… परंतु उस किताब के बारे में सोनू से पूछ पाने की उसकी हिम्मत न थी आखिर वह किस मुंह से उस किताब के बारे में सोनू से पूछती? सुगना परेशान थी बेचैन थी पर मजबूर थी…


सोनू एक बार फिर लखनऊ के लिए निकल रहा था… और अपनी तीनों बहनों की आंखों में आंसू छोड़े जा रहा था… सबसे ज्यादा हमेशा की तरह सुगना ही दुखी थी…सुगना और सोनू दोनों साथ रहते रहते एक दूसरे के आदी हो गए थे । और अब तो सोनू एक जिम्मेदार और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी बन चुका था ठीक वैसा ही जैसी स्वयं सुगना थी। दो आकर्षक व्यक्तित्व और बेहद खूबसूरत काया के स्वामी स्त्री और पुरुष भाई-बहन के पवित्र बंधन से बंधे एक दूसरे के पूरक बन चुके थे…

सोनू के खुद से दूर होते ही सुगना अपनी आंखों में आंसू रोक ना पाई और उसने अपना चेहरा घुमा लिया… सोनी और लाली अभी बाहर खड़े सोनू को हाथ हिला रहे थे परंतु सुगना अंदर हाल में आकर मन ही मन सिसक रही थी।

वियोग के इन पलों में वासना न जाने कहां गायब हो गई थी.. आंसुओं की भी एक सीमा होती है सजना दुखी तो थी परंतु कुछ ही देर में वह सामान्य अवस्था में आ गई और उसे उस किताब का ध्यान आया।

सुगना अपने अपने कमरे में आई और अलमारी को थोड़ा थोड़ा खिसका कर वह किताब का वह दूसरा टुकड़ा फिर ढूंढने लगी पर वह वहां न था।

हे भगवान क्या सोनू दूसरा टुकड़ा अपने साथ ले गया..?

क्या सोनू उस किताब को पढ़ेगा..?

क्या भाई बहन के बीच गंदे रिश्ते की कहानी पढ़कर सोनू उसके चरित्र के बारे में कुछ गलत तो नहीं सोचेगा…? आखिर वह किताब उसके कमरे से ही प्राप्त हुई थी?

सोनू को किताब के आधे टुकड़े के रूप में रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट प्राप्त हो गया था। वह किताब सुगना के कमरे से प्राप्त हुई थी और उसका आधा हिस्सा स्वयं सुगना के पास था…

सोनू भी यथाशीघ्र उस किताब को देखना चाहता था ….

वह अद्भुत गंदी किताब सोनू और सुगना के रिश्ते में नया अध्याय लिखने वाली थी…

शेष अगले भाग में…


Bahut hi umda update lekin subha ab sonu ke pyar me pd gyi h lekin sugna ko sukun nhi mil rha h ab aage dekhte h ki sugna or sonu ka milan kesa hoga
 
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