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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lutgaya

Well-Known Member
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भाग 85

हे भगवान क्या सोनू दूसरा टुकड़ा अपने साथ ले गया..?

क्या सोनू उस किताब को पढ़ेगा..?

क्या भाई बहन के बीच गंदे रिश्ते की कहानी पढ़कर सोनू उसके चरित्र के बारे में कुछ गलत तो नहीं सोचेगा…? आखिर वह किताब उसके कमरे से ही प्राप्त हुई थी?

सोनू को किताब के आधे टुकड़े के रूप में रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट प्राप्त हो गया था। वह किताब सुगना के कमरे से प्राप्त हुई थी और उसका आधा हिस्सा स्वयं सुगना के पास था…

सोनू भी यथाशीघ्र उस किताब को देखना चाहता था ….

वह अद्भुत गंदी किताब सोनू और सुगना के रिश्ते में नया अध्याय लिखने वाली थी…


अब आगे

बनारस स्टेशन पर खड़ा सोनू अधीर हो रहा था वह बार-बार अपने उस बैग की तरफ देख रहा था जिसमें उसने उस गंदी किताब का आधा टुकड़ा पैक किया था।

एक बार के लिए उसके मन में ख्याल आया कि कहीं सुगना दीदी ने उसके बैग से वह टुकड़ा निकाल तो नहीं लिया है इस बात की तस्दीक करने के लिए सोनू ने बैग खोला और किताब के टुकड़े को देखकर प्रसन्न हो गया।

उसका जी कर रहा था कि वह वही किताब को खोलकर उसके मजमून का अंदाजा ले परंतु किताब में छपे गंदे चित्र उसे स्टेशन पर असहज स्थिति में ला सकते थे इसलिए उसने इस विचार को त्याग दिया और अपनी ट्रेन का इंतजार करने लगा।


आखिर उसकी मुराद पूरी हुई और उसकी ट्रेन बनारस स्टेशन पर अपनी रफ्तार कम करती गई।

सोनू अपने कूपे पर आकर अपना सामान सजा कर उस अद्भुत गंदी किताब को लेकर ऊपर वाली सीट पर चढ़ गया…

उधर सोनू को विदा करने के पश्चात तीनो बहने साथ बैठकर सोनू को याद कर रही थीं। कुछ देर बाद लाली और सोनी अपने अपने कार्यों में लग गई।

आज वैसे भी घर में गहमागहमी थी सभी सोनू की तैयारियों में थक चुकी थी धीरे धीरे कमरों की बत्तियां बुझने लगी और सभी निद्रा देवी की आगोश में जाने लगे सिर्फ और सिर्फ सुगना की आंखों से नींद गायब थी।


उसे अब यकीन हो चला था की किताब का दूसरा टुकड़ा निश्चित ही सोनू अपने साथ ले गया है।

हे भगवान !!! क्या सोनू उस किताब को पढ़ेगा? सुगना ने स्वयं किताब का दूसरा टुकड़ा उठा लिया और उसे पड़ने लगी। सुगना के मन में यह कौतूहल अब भी था कि जो टुकड़ा सोनू के पास था आगे उसमें लिखा क्या था? कहीं उसे यह तो नहीं पता चलेगा कि रहीम और फातिमा दोनों सगे भाई बहन थे.


सुगना बिस्तर पर लेट गई और किताब के पन्ने पलटने लगी…

सुगना किताब के शुरुआती पृष्ठ तेजी से पलटने लगी। वह किताब के कुछ पन्ने पहले भी पढ़ चुकी थी। परंतु जब से किताब में रहीम और फातिमा के संबंधों का जिक्र आया.. सुगना न सिर्फ आश्चर्यचकित थी अपितु यह उसे यह बात उसे कतई नहीं पच रही थी…कि कोई छोटा भाई अपनी ही बड़ी बहन से ऐसे संबंध स्थापित कर सकता है। इसीलिए किताब में जब फातिमा रहीम के सामने नग्न हो रही थी सुगना ने किताब को दो टुकड़ों में फाड़ कर फेंक दिया था… परंतु आज सुगना उस किताब को आगे पढ़ने के लिए मजबूर थी…

किताब से उद्धृत…

फातिमा पूरी तरह नग्न हो चुकी थी। अपने छोटे भाई रहीम के सामने इस तरह नग्न होकर वह उससे नज़रें नहीं मिला पा रही थी। उसने अपनी आंखें बंद कर ली और रहीम जी भर कर अपनी बड़ी बहन की खूबसूरती को निहार रहा था।

अपने ही छोटे भाई के सामने नग्न होने का एहसास फातिमा को बेसुध कर रहा था उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। वह धीरे-धीरे चलते हुए बिस्तर पर आ गई और अपने भाई रहीम को अपने उन्नत नितंबों के दर्शन भी कराती गई..

उधर सोनू भी के किताब का दूसरा भाग पढ़ रहा था..

फातिमा फातिमा बिस्तर पर लेट चुकी थी उसने अपनी पलके खोली और अपने भाई छोटे रही के लंड को हसरत भरी निगाहों से देखने लगी जो रहीम के हाथों में तन रहा था…और रहीम उसे सहला कर उसमें और ताकत भरने का प्रयास कर रहा था..।

सोनू के दिमाग में आज सुबह के दृश्य घूमने लगे जब उसकी सुगना दीदी उसके लंड को देख रही थी अचानक सोनू को रहीम और फातिमा की कहानी अपनी और सुगना की कहानी लगने लगी…

एकांत में वासना परिस्थितियों और कथानक को अपने अनुसार मोड़ कर मनुष्य को और भी गलत राह पर ले जाती है..

सोनू को यह वहम हो चला था कि सुगना उसके लंड को शायद इसीलिए देख रही थी क्योंकि वह उस से चुदना चाह रही थी।

सोनू को कहानी में विशेष आनंद आने उसे लगा जैसे सुगना दीदी भी इस कहानी को पढ़ चुकी है..

सोनू को यकीन ही नहीं हो रहा था की सुगना दीदी जैसे मर्यादित व्यक्तित्व वाली सुंदर युवती अपने ही भाई से चुदवाने के लिए बेकरार थी। सोनू अपने लंड में असीम उत्तेजना लिए कहानी को आगे पढ़ने लगा।

रहीम बिस्तर पर अपनी बड़ी बहन को नग्न देखकर बेचैन हो गया वह धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ बढ़ने लगा फातिमा रहीम को अपनी तरफ आते हुए देखकर शर्मसार हो रही थी। उसे आगाज का भी पता था और अंजाम का भी..

सुगना द्वारा पढ़े जा रहे किताब के टुकड़े से..

अपने छोटे भाई को रहीम को पूरी तरह नग्न अपने हाथों में अपने भुसावली केले जैसे लंड को सह लाते हुए बिस्तर पर देखकर फातिमा एक बार फिर सोच में पड़ गई क्या अपने ही छोटे भाई से चुदवाना हराम न होगा ?

फातिमा का चेहरा शर्म से पानी पानी था और जांघों के बीच बुर भी पानी पानी थी उसे न तो रिश्तो से कोई सरोकार था और नहीं सही गलत से उसका साथी रहीम के हाथों में तना उससे मिलने के लिए उछल रहा था..

रहीम ने अपनी हथेलियों से अपनी बड़ी बहन जांघों को अलग किया और उनके बीच खूबसूरत गुलाबी बुर को देखकर मदहोश हो गया उसके होंठ सदा उन खूबसूरत होठों को अपने आगोश में लेने चल पड़े..

सुगना तड़प उठी एक छोटा भाई अपनी ही बड़ी बहन की बुर चूसने वाला था…. हे भगवान न जाने किस हरामजादे ने ऐसी किताब लिखी थी… सोनू यह पढ़कर क्या सोच रहा होगा…? कहीं सोनू यह तो नहीं सोच रहा होगा कि मैं ऐसी किताबें इसलिए पढ़ती क्योंकि मेरे मन में भी इस तरह की भावनाएं हैं…नहीं नहीं मैं तो ऐसी घटिया किताब पढ़ भी नहीं सकती मैंने इसीलिए उसे फाड़ कर फेंक दिया था सोनू को ऐसा नहीं सोचना चाहिए….

आखिरकार सुगना से वह किताब और न पढ़ी गई उसने उसे उठाकर अपने सिरहाने रख दिया.. और सोने का प्रयास करने लगी…

उधर सोनू किताब का अगला पन्ना पढ़ रहा था..

आधी किताब को पढ़कर आधे भाग का अनुमान लगाना इतना कठिन भी न था यह पढ़ाई आसान थी..

किताब से उद्धृत

अपनी बड़ी बहन की नंगी बुर और उसके फूले हुए होठों को देखकर रहीम पागल हो गया। उसने अपने होंठ फैलाए और अपनी बहन फातिमा की बुर से रस चूसने लगा।


जैसे ही रस खत्म हुआ.. उसने अपनी लंबी सी जीभ निकाली और अपनी बहन फातिमा के बुर में घुसाने की कोशिश करने लगा.. फातिमा की बुर में कसाव था। रहीम की जीभ फिर भी फातिमा की बुर से रस की खीचने का प्रयास करती रही..

अपने सगे भाई रहीम के होंठों का स्पर्श अपनी बुर पाकर फातिमा मदहोश हो गई वह रहीम के सर को अपनी बुर की तरफ खींचने लगी वह कभी अपनी कमर को उठाती और अपनी बुर को रहीम के चेहरे पर रगड़ने का प्रयास करती …

सोनू का लंड फटने को तैयार था.. पर अफसोस पन्ना पलटने का वक्त आ चुका था..


उधर सुगना किताब को अपने सिरहाने रख कर अपनी आंखें बंद किए सोने का प्रयास कर रही थी थकावट ने उसकी आंखें बंद कर दिमाग को शिथिल कर दिया था परंतु मन में आए उद्वेलन ने उसे बेचैन किया हुआ था। यूं कहिए शरीर सो चुका था पर अवचेतन मन अभी भी जागृत था और किताब तथा सोनू के मन को पढ़ने की कोशिश कर रहा था।

उधर सोनू ने पूरे मन से किताब पढ़ना जारी रखा अपनी बड़ी बहन के बुर में अपने लंड को जड़ तक ठेल कर भी रहीम नहीं रुका वह अपनी बहन फातिमा के बुर में पूरी तरह समा जाना चाहता था…


फातिमा की आंखों में आंसू थे परंतु रहीम कोई कोताही बरतने के पक्ष में न था । अब जब लंड बुर में घुस ही गया था वह वह अपनी और फातिमा की प्यास पूरी तरह बुझना चाहता था। उसने फातिमा के होठों पर अपने हाथ रखे और अपने तने हुए लंड से गचागच अपनी बड़ी बहन को चोदने लगा..

सोनू और उत्तेजना नहीं सह पाया और झड़ने लगा..

ऊपरी बर्थ पर लेटा सोनू अपने लंड से श्वेत लावा उगलता रहा और अपने ही अंडरवियर में उस लावा को समेटने का प्रयास करता रहा…. कुछ ही देर में सोनू का अंडरवियर पूरी तरह गीला हो गया परंतु उसने जो तृप्ति का एहसास किया था यह वही जानता था..

उधर सुगना किताब को तो हटा चुकी थी परंतु उसके अवचेतन मन में उस कहानी का आगे का कथानक घूम रहा था…

सुगना परिपक्व थी…नग्न युवती और नग्न युवक के बीच होने वाली प्रेम क्रीडा समझना सुगना के लिए दुरूह न था वह इस खेल की पक्की खिलाड़ी थी यह अलग बात थी कि पिछले कुछ महीनों से वह इस खेल से दूर थीं।


वासना से भरी सुगना अपने अवचेतन मन में वह खेल शुरू कर चुकी थी। एक अनजान लंड उसकी बुर में तेजी से आगे पीछे हो रहा था वह बार-बार उस व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी.. परंतु अंधेरे की वजह से पहचान पाना कठिन हो रहा था.

किसी अनजान मर्द से चुदते समय सुगना को आत्मग्लानि भी महसूस हो रही थी और वह उस व्यक्ति को बार-बार बाहर धकेलने का प्रयास कर रही थी परंतु उस व्यक्ति का मजबूत और खूबसूरत लंड सुगना की बरसों की प्यास बुझा रहा था।

वह उस लंड को अपनी बुर में पूरी तरह आत्मसात कर लेना चाहती थी…. सुगना के पैर उसकी कमर पर लिपट चुके थे और कुछ ही देर में सुगना की बुर के कंपन प्रारंभ हो गए ….सुगना झड़ रही थी और असीम तृप्ति का अनुभव कर रही थी तभी उसे गूंजती हुई आवाज सुनाई थी..

"दीदी ठीक लागल हा नू?"

यह आवाज सोनू की थी सुगना अचकचा कर उठ गई..

उसे अपनी अवस्था का एहसास हुआ जांघों के बीच एक अजब सा गीलापन था सुगना सचमुच स्खलित हो गई थी वासना से भरे उस सपने ने सुगना को स्खलित कर दिया था और निश्चित ही इसका श्रेय उस गंदी किताब को था।


परंतु सोनू की आवाज सुगना को अब डरा रही थी। नहीं ….नहीं… सोनू उसका अपना छोटा भाई है और उसके बारे में ऐसा सोचना एक अपराध है ..

हे भगवान मुझे माफ करना सुगना बार-बार अपने इष्ट से अनुरोध करती रहे और मन ही मन माफी मांगती रही..

नियति मुस्कुरा रही थी सुगना और सोनू लगभग एक साथ स्खलित हो चुके थे एक तरफ सोनू अब भी सुगना को याद कर रहा था दूसरी तरफ सुगना सोनू को भूलने का प्रयास कर रहे थी….

सुगना और सोनू …..नियति भी बेकरार थी पर सुगना और सोनू के मिलन में सुगना का हृदय परिवर्तन आवश्यक था….सुगना को अपने ही भाई से चुदवाने के लिए तैयार होना था जो सुगना जैसी संजीदा और मर्यादित युवती के लिए थोड़ा नही बहुत कठिन था..

अगले दिन की शुरुआत हो चुकी थी…

उधर लखनउ में सेक्रेटरी साहब से अलग होने के बाद मनोरमा कुछ ही दिनों में सामान्य हो गई उसे वैसे भी सेक्रेटरी साहब से कोई सरोकार न था। वह दिन भर पैसे और पद के पीछे भागते न उन्हें पिंकी का ख्याल था और नहीं मनोरमा का।


स्त्री को साथ और वक्त दोनों की जरूरत होती है पता नहीं सेक्रेटरी साहब को यह बात क्यों नहीं समझ आई। जांघों के बीच की आग शांत कर पाना उनके बस का न था परंतु मनोरमा का साथ देकर वह अपने दांपत्य को बचाए रख सकते थे। परंतु सेक्रेटरी साहब ने न मनोरमा को पहचाना न उसकी भावनाओं को।

मनोरमा ने जिस तरह सेक्रेटरी साहब के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई थी उससे वह बेहद आहत हुए और प्रतिकार स्वरूप उन्होंने मनोरमा से प्रशासनिक पद छीन कर उसे ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट का इंचार्ज बना दिया यह ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट कोई और नहीं अपितु सोनू का ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट था जहां उसे एसडीएम बनने के लिए जरूरी ट्रेनिंग दी जा रही थी और आखिरकार एक दिन मनोरमा अपने सुसज्जित कपड़ों में सोनू की क्लास रूम में उपस्थित थी..

लगभग 34- 35 वर्ष की खूबसूरत मनोरमा को देखकर क्लास के वयस्क विद्यार्थी अवाक रह गए। कमरे में एकदम शांति छा गई सभी एकटक मनोरमा को देखे जा रहे थे सोनू भी उनसे अलग न था सोनू को बार-बार यही लगता जैसे उसने उस सुंदर युवती को कहीं ना कहीं देखा जरूर है परंतु उसे यह कतई यकीन नहीं हो पा रहा था कि कक्षा में उपस्थित सुंदर महिला मनोरमा एसडीएम है जिसे उसने बनारस महोत्सव के दौरान एंबेसडर कार में बैठे देखा था…

गुड मॉर्निंग……. मनोरमा की मनोरम आवाज सोनू और अन्य विद्यार्थियों के कानों में पहुंची।


गुड मॉर्निंग मैडम….सभी विद्यार्थियों का शोर एक साथ कमरे में गूंज उठा सुंदर स्त्री के प्रति युवा विद्यार्थियों का यह अभिवादन स्वाभाविक था।

"मैं आप सब के ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट की प्रिंसिपल मनोरमा हूं मैंने कल ही कार्यभार ग्रहण किया है"

इसके पश्चात मनोरमा ने सभी विद्यार्थियों से बारी-बारी से उनका परिचय पूछा…

सोनू का नंबर आते ही..

"संग्राम सिंह… रैंक 1"सोनू की मर्दाना और गंभीर आवाज मन मोहने वाली थी।

मनोरमा संग्राम सिंह उर्फ सोनू के की खूबसूरत चेहरे और आकर्षक शरीर को देखती रह गई।


सुंदर शरीर और चेहरा सभी के आकर्षण का केंद्र होता है और सोनू ने तो अपनी रैंक बताकर मनोरमा को विशेष तवज्जो देने का अधिकार दे दिया था। स्वयं सोनू भी मनोरमा को देख रहा था

"आप किस जिले से है?"

सोनू ने अपना जिला बताया अगला प्रश्न सामने था

" किस गांव से.?

"सीतापुर…"

मनोरमा ने अपना ध्यान सोनू से हटाया और पूरी क्लास को संबोधित करते हुए बताने लगी मैं इस जिले में एसडीएम के पद पर कार्य कर चुकी हुं…

मनोरमा ने सोनू पर दिए गए विशेष ध्यान का कारण बताकर अन्य सभी विद्यार्थियों को संतुष्ट कर दिया था। कक्षा खत्म होते ही मनोरमा ने संग्राम सिंह उर्फ सोनू को अपने कक्ष में बुलाया और बातों ही बातों में मनोरमा ने सरयू सिंह का हाल-चाल पूछ लिया।

और जब जिक्र सरयू सिंह का आया तो सुगना का आना ही था मनोरमा सुगना से बेहद प्रभावित थी यह जानने के बाद की संग्राम सिंह उर्फ सोनू सुगना का अपना सगा भाई है मनोरमा उससे और खुलती गई कुछ देर की ही वार्तालाप में दोनों एक दूसरे से सहज हो गए सोनू और मनोरमा दोनों आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे और उनका साथ आना स्वाभाविक था……

परंतु सोनू इस समय पूरी तरह सुगना में खोया हुआ था.. उसे इस बात का एहसास भी न रहा कि मनोरमा के साथ रहने और विशेष कृपा पात्र बनने का अलग मतलब ही निकाला जा सकता था।


यद्यपि…मनोरमा का प्रशासनिक कद और उम्र में 10- 15 वर्ष का अंतर लोगों की सोच पर अंकुश लगाता परंतु कामुकता और ठरक से भरे लोगों को यह संबंध निश्चित ही सेक्स जनित ही प्रतीत होता।

बहरहाल सोनू और मनोरमा में एक सामंजस्य जरूर बना था परंतु इसमें वासना का कोई स्थान न था। मनोरमा जिस सम्मान और आदर की हकदार थी वह उसे सोनू से बखूबी मिल रहा था और सोनू एक आज्ञाकारी जूनियर की तरह मनोरमा के सानिध्य में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर रहा था…

सोनू की रातें रंगीन थी वह गंदी किताब सोनू के जीवन की सबसे मूल्यवान वस्तु थी…जब भी वह एकांत में होता उस किताब को निकालकर उसे अक्षरशह पढ़ता…और पन्ने के दूसरे भाग को अपनी इच्छा अनुसार संजो लेता…

कहानी में फातिमा की जगह सुगना ले चुकी थी और वह एक नहीं बारंबार सुगना की कल्पना करते हुए उस कहानी को पड़ता और अपनी बड़ी बहन की काल्पनिक बुर में झड़ कर गहरी नींद में चला जाता उसे अब न कोई आत्मग्लानि होती और नहीं कोई अफसोस।

परंतु दिन के उजाले में जब वह सुगना के बारे में सोचता उसे यह यकीन ही नहीं होता कि सुगना दीदी ऐसी किताब पढ़ सकती है उसके मन में यह प्रश्न कभी नहीं आता कि सुगना नहीं वह किताब फाड़ी थी.. और उसे इस बात का इल्म भी न होता की उसकी बहन सुगना भाई-बहन के बीच इस अनैतिक संबंधों के पक्षधर न थी…

परंतु सोनू की सोच एक तरफा हो चली थी। वो सुगना दीदी का खिड़की पर आकर उसे लाली को चोदते हुए देखना …..वह हैंडपंप पर उसके तने हुए लंड को एकटक देखना….. वह सलवार सूट के साथ कामुक ब्रा और पेंटी को स्वीकार कर लेना…. और अपनी नाराजगी न जाहिर करना…….ऐसे कई सारी घटनाएं सोनू की सोच को संबल दे रही थी और सोनू अपने मन में सुगना की कामुक छवि को स्थान देता जा रहा था …..सुगना का मर्यादित और संतुलित व्यक्तित्व सोनू की वासना के रास्ते में जब जब आता उसे नजरअंदाज कर सोनू सुगना सुगना को एक अतृप्त और प्यासी युवती के रूप में देखने लगता।

दिन तेजी से बीत रहे थे और सोनू अपने ख्वाबों में सुगना को तरह तरह से चोद रहा था…वह गंदी किताब सोनू के दिलों दिमाग पर असर कर गई थी….सोते जागते अब सोनू को सिर्फ सुगना दिखाई पड़ रही थी…

उधर सुगना ने वह गंदी किताब अलमारी के ऊपर छुपा कर रख दी…वह किताब का आधे से ज्यादा हिस्सा पढ़ चुकी थी.. उस किताब ने सुगना के दिमाग पर भी असर किया था.. और वह उस हरामजादे लेखक को जी भर भर कर गालियां देती जिसने भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को तार-तार कर दिया था परंतु अपने स्वप्न में सुगना गाहे-बगाहे चूदाई के सपने देखती और खूबसूरत लंड से जी भर कर चुद कर स्खलित होती…और कभी आत्मग्लानि कभी होंठो पर मुस्कुराहट ले सो जाती…

सोनू को गए कई महीने बीत गए थे…दीपावली आने वाली थी….दीपावली ध्यान में आते ही सुगना को सरयू सिंह याद आ गए..

सुगना चहकते हुए लाली के पास गई …और पूछा


"ए लाली अबकी दिवाली में गांव चलेके…?"

शेष अगले भाग मे
लवली जी आपकी कहानी को शुरू से पढा है और हर बार यही कमेन्ट लिखता हूं कि आपकी तारीफ के लिए शब्द नही है मेरे पास।
राखी का रिर्टन गिफ्ट अनोखा है ।
और मनोरमा का कहानी में लौटना भी।
क्या अब सरयू की सारी भूमिकाए सोनू ही निभाएगा।
इन्तजार ?
 

snidgha12

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लवली जी आपकी कहानी को शुरू से पढा है और हर बार यही कमेन्ट लिखता हूं कि आपकी तारीफ के लिए शब्द नही है मेरे पास।
राखी का रिर्टन गिफ्ट अनोखा है ।
और मनोरमा का कहानी में लौटना भी।
क्या अब सरयू की सारी भूमिकाए सोनू ही निभाएगा।
इन्तजार ?
ये बात मुझे भी अच्छी लग रही है
 

PrasadR

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Tooo good maza aa gaya , waiting for the next part
अपडेट ८५- कामुकता की ओर इशारा करते हुए आने वाले कल की मधुर झलक इस अपडेट में मिली। आशा है कि जल्द ही वह मधुर झलक पढने को भी मिलेगी।
 

Tiger 786

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भाग 85

हे भगवान क्या सोनू दूसरा टुकड़ा अपने साथ ले गया..?

क्या सोनू उस किताब को पढ़ेगा..?

क्या भाई बहन के बीच गंदे रिश्ते की कहानी पढ़कर सोनू उसके चरित्र के बारे में कुछ गलत तो नहीं सोचेगा…? आखिर वह किताब उसके कमरे से ही प्राप्त हुई थी?

सोनू को किताब के आधे टुकड़े के रूप में रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट प्राप्त हो गया था। वह किताब सुगना के कमरे से प्राप्त हुई थी और उसका आधा हिस्सा स्वयं सुगना के पास था…

सोनू भी यथाशीघ्र उस किताब को देखना चाहता था ….

वह अद्भुत गंदी किताब सोनू और सुगना के रिश्ते में नया अध्याय लिखने वाली थी…


अब आगे

बनारस स्टेशन पर खड़ा सोनू अधीर हो रहा था वह बार-बार अपने उस बैग की तरफ देख रहा था जिसमें उसने उस गंदी किताब का आधा टुकड़ा पैक किया था।

एक बार के लिए उसके मन में ख्याल आया कि कहीं सुगना दीदी ने उसके बैग से वह टुकड़ा निकाल तो नहीं लिया है इस बात की तस्दीक करने के लिए सोनू ने बैग खोला और किताब के टुकड़े को देखकर प्रसन्न हो गया।

उसका जी कर रहा था कि वह वही किताब को खोलकर उसके मजमून का अंदाजा ले परंतु किताब में छपे गंदे चित्र उसे स्टेशन पर असहज स्थिति में ला सकते थे इसलिए उसने इस विचार को त्याग दिया और अपनी ट्रेन का इंतजार करने लगा।


आखिर उसकी मुराद पूरी हुई और उसकी ट्रेन बनारस स्टेशन पर अपनी रफ्तार कम करती गई।

सोनू अपने कूपे पर आकर अपना सामान सजा कर उस अद्भुत गंदी किताब को लेकर ऊपर वाली सीट पर चढ़ गया…

उधर सोनू को विदा करने के पश्चात तीनो बहने साथ बैठकर सोनू को याद कर रही थीं। कुछ देर बाद लाली और सोनी अपने अपने कार्यों में लग गई।

आज वैसे भी घर में गहमागहमी थी सभी सोनू की तैयारियों में थक चुकी थी धीरे धीरे कमरों की बत्तियां बुझने लगी और सभी निद्रा देवी की आगोश में जाने लगे सिर्फ और सिर्फ सुगना की आंखों से नींद गायब थी।


उसे अब यकीन हो चला था की किताब का दूसरा टुकड़ा निश्चित ही सोनू अपने साथ ले गया है।

हे भगवान !!! क्या सोनू उस किताब को पढ़ेगा? सुगना ने स्वयं किताब का दूसरा टुकड़ा उठा लिया और उसे पड़ने लगी। सुगना के मन में यह कौतूहल अब भी था कि जो टुकड़ा सोनू के पास था आगे उसमें लिखा क्या था? कहीं उसे यह तो नहीं पता चलेगा कि रहीम और फातिमा दोनों सगे भाई बहन थे.


सुगना बिस्तर पर लेट गई और किताब के पन्ने पलटने लगी…

सुगना किताब के शुरुआती पृष्ठ तेजी से पलटने लगी। वह किताब के कुछ पन्ने पहले भी पढ़ चुकी थी। परंतु जब से किताब में रहीम और फातिमा के संबंधों का जिक्र आया.. सुगना न सिर्फ आश्चर्यचकित थी अपितु यह उसे यह बात उसे कतई नहीं पच रही थी…कि कोई छोटा भाई अपनी ही बड़ी बहन से ऐसे संबंध स्थापित कर सकता है। इसीलिए किताब में जब फातिमा रहीम के सामने नग्न हो रही थी सुगना ने किताब को दो टुकड़ों में फाड़ कर फेंक दिया था… परंतु आज सुगना उस किताब को आगे पढ़ने के लिए मजबूर थी…

किताब से उद्धृत…

फातिमा पूरी तरह नग्न हो चुकी थी। अपने छोटे भाई रहीम के सामने इस तरह नग्न होकर वह उससे नज़रें नहीं मिला पा रही थी। उसने अपनी आंखें बंद कर ली और रहीम जी भर कर अपनी बड़ी बहन की खूबसूरती को निहार रहा था।

अपने ही छोटे भाई के सामने नग्न होने का एहसास फातिमा को बेसुध कर रहा था उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। वह धीरे-धीरे चलते हुए बिस्तर पर आ गई और अपने भाई रहीम को अपने उन्नत नितंबों के दर्शन भी कराती गई..

उधर सोनू भी के किताब का दूसरा भाग पढ़ रहा था..

फातिमा फातिमा बिस्तर पर लेट चुकी थी उसने अपनी पलके खोली और अपने भाई छोटे रही के लंड को हसरत भरी निगाहों से देखने लगी जो रहीम के हाथों में तन रहा था…और रहीम उसे सहला कर उसमें और ताकत भरने का प्रयास कर रहा था..।

सोनू के दिमाग में आज सुबह के दृश्य घूमने लगे जब उसकी सुगना दीदी उसके लंड को देख रही थी अचानक सोनू को रहीम और फातिमा की कहानी अपनी और सुगना की कहानी लगने लगी…

एकांत में वासना परिस्थितियों और कथानक को अपने अनुसार मोड़ कर मनुष्य को और भी गलत राह पर ले जाती है..

सोनू को यह वहम हो चला था कि सुगना उसके लंड को शायद इसीलिए देख रही थी क्योंकि वह उस से चुदना चाह रही थी।

सोनू को कहानी में विशेष आनंद आने उसे लगा जैसे सुगना दीदी भी इस कहानी को पढ़ चुकी है..

सोनू को यकीन ही नहीं हो रहा था की सुगना दीदी जैसे मर्यादित व्यक्तित्व वाली सुंदर युवती अपने ही भाई से चुदवाने के लिए बेकरार थी। सोनू अपने लंड में असीम उत्तेजना लिए कहानी को आगे पढ़ने लगा।

रहीम बिस्तर पर अपनी बड़ी बहन को नग्न देखकर बेचैन हो गया वह धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ बढ़ने लगा फातिमा रहीम को अपनी तरफ आते हुए देखकर शर्मसार हो रही थी। उसे आगाज का भी पता था और अंजाम का भी..

सुगना द्वारा पढ़े जा रहे किताब के टुकड़े से..

अपने छोटे भाई को रहीम को पूरी तरह नग्न अपने हाथों में अपने भुसावली केले जैसे लंड को सह लाते हुए बिस्तर पर देखकर फातिमा एक बार फिर सोच में पड़ गई क्या अपने ही छोटे भाई से चुदवाना हराम न होगा ?

फातिमा का चेहरा शर्म से पानी पानी था और जांघों के बीच बुर भी पानी पानी थी उसे न तो रिश्तो से कोई सरोकार था और नहीं सही गलत से उसका साथी रहीम के हाथों में तना उससे मिलने के लिए उछल रहा था..

रहीम ने अपनी हथेलियों से अपनी बड़ी बहन जांघों को अलग किया और उनके बीच खूबसूरत गुलाबी बुर को देखकर मदहोश हो गया उसके होंठ सदा उन खूबसूरत होठों को अपने आगोश में लेने चल पड़े..

सुगना तड़प उठी एक छोटा भाई अपनी ही बड़ी बहन की बुर चूसने वाला था…. हे भगवान न जाने किस हरामजादे ने ऐसी किताब लिखी थी… सोनू यह पढ़कर क्या सोच रहा होगा…? कहीं सोनू यह तो नहीं सोच रहा होगा कि मैं ऐसी किताबें इसलिए पढ़ती क्योंकि मेरे मन में भी इस तरह की भावनाएं हैं…नहीं नहीं मैं तो ऐसी घटिया किताब पढ़ भी नहीं सकती मैंने इसीलिए उसे फाड़ कर फेंक दिया था सोनू को ऐसा नहीं सोचना चाहिए….

आखिरकार सुगना से वह किताब और न पढ़ी गई उसने उसे उठाकर अपने सिरहाने रख दिया.. और सोने का प्रयास करने लगी…

उधर सोनू किताब का अगला पन्ना पढ़ रहा था..

आधी किताब को पढ़कर आधे भाग का अनुमान लगाना इतना कठिन भी न था यह पढ़ाई आसान थी..

किताब से उद्धृत

अपनी बड़ी बहन की नंगी बुर और उसके फूले हुए होठों को देखकर रहीम पागल हो गया। उसने अपने होंठ फैलाए और अपनी बहन फातिमा की बुर से रस चूसने लगा।


जैसे ही रस खत्म हुआ.. उसने अपनी लंबी सी जीभ निकाली और अपनी बहन फातिमा के बुर में घुसाने की कोशिश करने लगा.. फातिमा की बुर में कसाव था। रहीम की जीभ फिर भी फातिमा की बुर से रस की खीचने का प्रयास करती रही..

अपने सगे भाई रहीम के होंठों का स्पर्श अपनी बुर पाकर फातिमा मदहोश हो गई वह रहीम के सर को अपनी बुर की तरफ खींचने लगी वह कभी अपनी कमर को उठाती और अपनी बुर को रहीम के चेहरे पर रगड़ने का प्रयास करती …

सोनू का लंड फटने को तैयार था.. पर अफसोस पन्ना पलटने का वक्त आ चुका था..


उधर सुगना किताब को अपने सिरहाने रख कर अपनी आंखें बंद किए सोने का प्रयास कर रही थी थकावट ने उसकी आंखें बंद कर दिमाग को शिथिल कर दिया था परंतु मन में आए उद्वेलन ने उसे बेचैन किया हुआ था। यूं कहिए शरीर सो चुका था पर अवचेतन मन अभी भी जागृत था और किताब तथा सोनू के मन को पढ़ने की कोशिश कर रहा था।

उधर सोनू ने पूरे मन से किताब पढ़ना जारी रखा अपनी बड़ी बहन के बुर में अपने लंड को जड़ तक ठेल कर भी रहीम नहीं रुका वह अपनी बहन फातिमा के बुर में पूरी तरह समा जाना चाहता था…


फातिमा की आंखों में आंसू थे परंतु रहीम कोई कोताही बरतने के पक्ष में न था । अब जब लंड बुर में घुस ही गया था वह वह अपनी और फातिमा की प्यास पूरी तरह बुझना चाहता था। उसने फातिमा के होठों पर अपने हाथ रखे और अपने तने हुए लंड से गचागच अपनी बड़ी बहन को चोदने लगा..

सोनू और उत्तेजना नहीं सह पाया और झड़ने लगा..

ऊपरी बर्थ पर लेटा सोनू अपने लंड से श्वेत लावा उगलता रहा और अपने ही अंडरवियर में उस लावा को समेटने का प्रयास करता रहा…. कुछ ही देर में सोनू का अंडरवियर पूरी तरह गीला हो गया परंतु उसने जो तृप्ति का एहसास किया था यह वही जानता था..

उधर सुगना किताब को तो हटा चुकी थी परंतु उसके अवचेतन मन में उस कहानी का आगे का कथानक घूम रहा था…

सुगना परिपक्व थी…नग्न युवती और नग्न युवक के बीच होने वाली प्रेम क्रीडा समझना सुगना के लिए दुरूह न था वह इस खेल की पक्की खिलाड़ी थी यह अलग बात थी कि पिछले कुछ महीनों से वह इस खेल से दूर थीं।


वासना से भरी सुगना अपने अवचेतन मन में वह खेल शुरू कर चुकी थी। एक अनजान लंड उसकी बुर में तेजी से आगे पीछे हो रहा था वह बार-बार उस व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी.. परंतु अंधेरे की वजह से पहचान पाना कठिन हो रहा था.

किसी अनजान मर्द से चुदते समय सुगना को आत्मग्लानि भी महसूस हो रही थी और वह उस व्यक्ति को बार-बार बाहर धकेलने का प्रयास कर रही थी परंतु उस व्यक्ति का मजबूत और खूबसूरत लंड सुगना की बरसों की प्यास बुझा रहा था।

वह उस लंड को अपनी बुर में पूरी तरह आत्मसात कर लेना चाहती थी…. सुगना के पैर उसकी कमर पर लिपट चुके थे और कुछ ही देर में सुगना की बुर के कंपन प्रारंभ हो गए ….सुगना झड़ रही थी और असीम तृप्ति का अनुभव कर रही थी तभी उसे गूंजती हुई आवाज सुनाई थी..

"दीदी ठीक लागल हा नू?"

यह आवाज सोनू की थी सुगना अचकचा कर उठ गई..

उसे अपनी अवस्था का एहसास हुआ जांघों के बीच एक अजब सा गीलापन था सुगना सचमुच स्खलित हो गई थी वासना से भरे उस सपने ने सुगना को स्खलित कर दिया था और निश्चित ही इसका श्रेय उस गंदी किताब को था।


परंतु सोनू की आवाज सुगना को अब डरा रही थी। नहीं ….नहीं… सोनू उसका अपना छोटा भाई है और उसके बारे में ऐसा सोचना एक अपराध है ..

हे भगवान मुझे माफ करना सुगना बार-बार अपने इष्ट से अनुरोध करती रहे और मन ही मन माफी मांगती रही..

नियति मुस्कुरा रही थी सुगना और सोनू लगभग एक साथ स्खलित हो चुके थे एक तरफ सोनू अब भी सुगना को याद कर रहा था दूसरी तरफ सुगना सोनू को भूलने का प्रयास कर रहे थी….

सुगना और सोनू …..नियति भी बेकरार थी पर सुगना और सोनू के मिलन में सुगना का हृदय परिवर्तन आवश्यक था….सुगना को अपने ही भाई से चुदवाने के लिए तैयार होना था जो सुगना जैसी संजीदा और मर्यादित युवती के लिए थोड़ा नही बहुत कठिन था..

अगले दिन की शुरुआत हो चुकी थी…

उधर लखनउ में सेक्रेटरी साहब से अलग होने के बाद मनोरमा कुछ ही दिनों में सामान्य हो गई उसे वैसे भी सेक्रेटरी साहब से कोई सरोकार न था। वह दिन भर पैसे और पद के पीछे भागते न उन्हें पिंकी का ख्याल था और नहीं मनोरमा का।


स्त्री को साथ और वक्त दोनों की जरूरत होती है पता नहीं सेक्रेटरी साहब को यह बात क्यों नहीं समझ आई। जांघों के बीच की आग शांत कर पाना उनके बस का न था परंतु मनोरमा का साथ देकर वह अपने दांपत्य को बचाए रख सकते थे। परंतु सेक्रेटरी साहब ने न मनोरमा को पहचाना न उसकी भावनाओं को।

मनोरमा ने जिस तरह सेक्रेटरी साहब के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई थी उससे वह बेहद आहत हुए और प्रतिकार स्वरूप उन्होंने मनोरमा से प्रशासनिक पद छीन कर उसे ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट का इंचार्ज बना दिया यह ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट कोई और नहीं अपितु सोनू का ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट था जहां उसे एसडीएम बनने के लिए जरूरी ट्रेनिंग दी जा रही थी और आखिरकार एक दिन मनोरमा अपने सुसज्जित कपड़ों में सोनू की क्लास रूम में उपस्थित थी..

लगभग 34- 35 वर्ष की खूबसूरत मनोरमा को देखकर क्लास के वयस्क विद्यार्थी अवाक रह गए। कमरे में एकदम शांति छा गई सभी एकटक मनोरमा को देखे जा रहे थे सोनू भी उनसे अलग न था सोनू को बार-बार यही लगता जैसे उसने उस सुंदर युवती को कहीं ना कहीं देखा जरूर है परंतु उसे यह कतई यकीन नहीं हो पा रहा था कि कक्षा में उपस्थित सुंदर महिला मनोरमा एसडीएम है जिसे उसने बनारस महोत्सव के दौरान एंबेसडर कार में बैठे देखा था…

गुड मॉर्निंग……. मनोरमा की मनोरम आवाज सोनू और अन्य विद्यार्थियों के कानों में पहुंची।


गुड मॉर्निंग मैडम….सभी विद्यार्थियों का शोर एक साथ कमरे में गूंज उठा सुंदर स्त्री के प्रति युवा विद्यार्थियों का यह अभिवादन स्वाभाविक था।

"मैं आप सब के ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट की प्रिंसिपल मनोरमा हूं मैंने कल ही कार्यभार ग्रहण किया है"

इसके पश्चात मनोरमा ने सभी विद्यार्थियों से बारी-बारी से उनका परिचय पूछा…

सोनू का नंबर आते ही..

"संग्राम सिंह… रैंक 1"सोनू की मर्दाना और गंभीर आवाज मन मोहने वाली थी।

मनोरमा संग्राम सिंह उर्फ सोनू के की खूबसूरत चेहरे और आकर्षक शरीर को देखती रह गई।


सुंदर शरीर और चेहरा सभी के आकर्षण का केंद्र होता है और सोनू ने तो अपनी रैंक बताकर मनोरमा को विशेष तवज्जो देने का अधिकार दे दिया था। स्वयं सोनू भी मनोरमा को देख रहा था

"आप किस जिले से है?"

सोनू ने अपना जिला बताया अगला प्रश्न सामने था

" किस गांव से.?

"सीतापुर…"

मनोरमा ने अपना ध्यान सोनू से हटाया और पूरी क्लास को संबोधित करते हुए बताने लगी मैं इस जिले में एसडीएम के पद पर कार्य कर चुकी हुं…

मनोरमा ने सोनू पर दिए गए विशेष ध्यान का कारण बताकर अन्य सभी विद्यार्थियों को संतुष्ट कर दिया था। कक्षा खत्म होते ही मनोरमा ने संग्राम सिंह उर्फ सोनू को अपने कक्ष में बुलाया और बातों ही बातों में मनोरमा ने सरयू सिंह का हाल-चाल पूछ लिया।

और जब जिक्र सरयू सिंह का आया तो सुगना का आना ही था मनोरमा सुगना से बेहद प्रभावित थी यह जानने के बाद की संग्राम सिंह उर्फ सोनू सुगना का अपना सगा भाई है मनोरमा उससे और खुलती गई कुछ देर की ही वार्तालाप में दोनों एक दूसरे से सहज हो गए सोनू और मनोरमा दोनों आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे और उनका साथ आना स्वाभाविक था……

परंतु सोनू इस समय पूरी तरह सुगना में खोया हुआ था.. उसे इस बात का एहसास भी न रहा कि मनोरमा के साथ रहने और विशेष कृपा पात्र बनने का अलग मतलब ही निकाला जा सकता था।


यद्यपि…मनोरमा का प्रशासनिक कद और उम्र में 10- 15 वर्ष का अंतर लोगों की सोच पर अंकुश लगाता परंतु कामुकता और ठरक से भरे लोगों को यह संबंध निश्चित ही सेक्स जनित ही प्रतीत होता।

बहरहाल सोनू और मनोरमा में एक सामंजस्य जरूर बना था परंतु इसमें वासना का कोई स्थान न था। मनोरमा जिस सम्मान और आदर की हकदार थी वह उसे सोनू से बखूबी मिल रहा था और सोनू एक आज्ञाकारी जूनियर की तरह मनोरमा के सानिध्य में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर रहा था…

सोनू की रातें रंगीन थी वह गंदी किताब सोनू के जीवन की सबसे मूल्यवान वस्तु थी…जब भी वह एकांत में होता उस किताब को निकालकर उसे अक्षरशह पढ़ता…और पन्ने के दूसरे भाग को अपनी इच्छा अनुसार संजो लेता…

कहानी में फातिमा की जगह सुगना ले चुकी थी और वह एक नहीं बारंबार सुगना की कल्पना करते हुए उस कहानी को पड़ता और अपनी बड़ी बहन की काल्पनिक बुर में झड़ कर गहरी नींद में चला जाता उसे अब न कोई आत्मग्लानि होती और नहीं कोई अफसोस।

परंतु दिन के उजाले में जब वह सुगना के बारे में सोचता उसे यह यकीन ही नहीं होता कि सुगना दीदी ऐसी किताब पढ़ सकती है उसके मन में यह प्रश्न कभी नहीं आता कि सुगना नहीं वह किताब फाड़ी थी.. और उसे इस बात का इल्म भी न होता की उसकी बहन सुगना भाई-बहन के बीच इस अनैतिक संबंधों के पक्षधर न थी…

परंतु सोनू की सोच एक तरफा हो चली थी। वो सुगना दीदी का खिड़की पर आकर उसे लाली को चोदते हुए देखना …..वह हैंडपंप पर उसके तने हुए लंड को एकटक देखना….. वह सलवार सूट के साथ कामुक ब्रा और पेंटी को स्वीकार कर लेना…. और अपनी नाराजगी न जाहिर करना…….ऐसे कई सारी घटनाएं सोनू की सोच को संबल दे रही थी और सोनू अपने मन में सुगना की कामुक छवि को स्थान देता जा रहा था …..सुगना का मर्यादित और संतुलित व्यक्तित्व सोनू की वासना के रास्ते में जब जब आता उसे नजरअंदाज कर सोनू सुगना सुगना को एक अतृप्त और प्यासी युवती के रूप में देखने लगता।

दिन तेजी से बीत रहे थे और सोनू अपने ख्वाबों में सुगना को तरह तरह से चोद रहा था…वह गंदी किताब सोनू के दिलों दिमाग पर असर कर गई थी….सोते जागते अब सोनू को सिर्फ सुगना दिखाई पड़ रही थी…

उधर सुगना ने वह गंदी किताब अलमारी के ऊपर छुपा कर रख दी…वह किताब का आधे से ज्यादा हिस्सा पढ़ चुकी थी.. उस किताब ने सुगना के दिमाग पर भी असर किया था.. और वह उस हरामजादे लेखक को जी भर भर कर गालियां देती जिसने भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को तार-तार कर दिया था परंतु अपने स्वप्न में सुगना गाहे-बगाहे चूदाई के सपने देखती और खूबसूरत लंड से जी भर कर चुद कर स्खलित होती…और कभी आत्मग्लानि कभी होंठो पर मुस्कुराहट ले सो जाती…

सोनू को गए कई महीने बीत गए थे…दीपावली आने वाली थी….दीपावली ध्यान में आते ही सुगना को सरयू सिंह याद आ गए..

सुगना चहकते हुए लाली के पास गई …और पूछा


"ए लाली अबकी दिवाली में गांव चलेके…?"

शेष अगले भाग मे
Bohot badiya update lovely bhai
Ab to diwali ka intejaar hai
 

Sanju@

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भाग 85

हे भगवान क्या सोनू दूसरा टुकड़ा अपने साथ ले गया..?

क्या सोनू उस किताब को पढ़ेगा..?

क्या भाई बहन के बीच गंदे रिश्ते की कहानी पढ़कर सोनू उसके चरित्र के बारे में कुछ गलत तो नहीं सोचेगा…? आखिर वह किताब उसके कमरे से ही प्राप्त हुई थी?

सोनू को किताब के आधे टुकड़े के रूप में रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट प्राप्त हो गया था। वह किताब सुगना के कमरे से प्राप्त हुई थी और उसका आधा हिस्सा स्वयं सुगना के पास था…

सोनू भी यथाशीघ्र उस किताब को देखना चाहता था ….

वह अद्भुत गंदी किताब सोनू और सुगना के रिश्ते में नया अध्याय लिखने वाली थी…


अब आगे

बनारस स्टेशन पर खड़ा सोनू अधीर हो रहा था वह बार-बार अपने उस बैग की तरफ देख रहा था जिसमें उसने उस गंदी किताब का आधा टुकड़ा पैक किया था।

एक बार के लिए उसके मन में ख्याल आया कि कहीं सुगना दीदी ने उसके बैग से वह टुकड़ा निकाल तो नहीं लिया है इस बात की तस्दीक करने के लिए सोनू ने बैग खोला और किताब के टुकड़े को देखकर प्रसन्न हो गया।

उसका जी कर रहा था कि वह वही किताब को खोलकर उसके मजमून का अंदाजा ले परंतु किताब में छपे गंदे चित्र उसे स्टेशन पर असहज स्थिति में ला सकते थे इसलिए उसने इस विचार को त्याग दिया और अपनी ट्रेन का इंतजार करने लगा।


आखिर उसकी मुराद पूरी हुई और उसकी ट्रेन बनारस स्टेशन पर अपनी रफ्तार कम करती गई।

सोनू अपने कूपे पर आकर अपना सामान सजा कर उस अद्भुत गंदी किताब को लेकर ऊपर वाली सीट पर चढ़ गया…

उधर सोनू को विदा करने के पश्चात तीनो बहने साथ बैठकर सोनू को याद कर रही थीं। कुछ देर बाद लाली और सोनी अपने अपने कार्यों में लग गई।

आज वैसे भी घर में गहमागहमी थी सभी सोनू की तैयारियों में थक चुकी थी धीरे धीरे कमरों की बत्तियां बुझने लगी और सभी निद्रा देवी की आगोश में जाने लगे सिर्फ और सिर्फ सुगना की आंखों से नींद गायब थी।


उसे अब यकीन हो चला था की किताब का दूसरा टुकड़ा निश्चित ही सोनू अपने साथ ले गया है।

हे भगवान !!! क्या सोनू उस किताब को पढ़ेगा? सुगना ने स्वयं किताब का दूसरा टुकड़ा उठा लिया और उसे पड़ने लगी। सुगना के मन में यह कौतूहल अब भी था कि जो टुकड़ा सोनू के पास था आगे उसमें लिखा क्या था? कहीं उसे यह तो नहीं पता चलेगा कि रहीम और फातिमा दोनों सगे भाई बहन थे.


सुगना बिस्तर पर लेट गई और किताब के पन्ने पलटने लगी…

सुगना किताब के शुरुआती पृष्ठ तेजी से पलटने लगी। वह किताब के कुछ पन्ने पहले भी पढ़ चुकी थी। परंतु जब से किताब में रहीम और फातिमा के संबंधों का जिक्र आया.. सुगना न सिर्फ आश्चर्यचकित थी अपितु यह उसे यह बात उसे कतई नहीं पच रही थी…कि कोई छोटा भाई अपनी ही बड़ी बहन से ऐसे संबंध स्थापित कर सकता है। इसीलिए किताब में जब फातिमा रहीम के सामने नग्न हो रही थी सुगना ने किताब को दो टुकड़ों में फाड़ कर फेंक दिया था… परंतु आज सुगना उस किताब को आगे पढ़ने के लिए मजबूर थी…

किताब से उद्धृत…

फातिमा पूरी तरह नग्न हो चुकी थी। अपने छोटे भाई रहीम के सामने इस तरह नग्न होकर वह उससे नज़रें नहीं मिला पा रही थी। उसने अपनी आंखें बंद कर ली और रहीम जी भर कर अपनी बड़ी बहन की खूबसूरती को निहार रहा था।

अपने ही छोटे भाई के सामने नग्न होने का एहसास फातिमा को बेसुध कर रहा था उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। वह धीरे-धीरे चलते हुए बिस्तर पर आ गई और अपने भाई रहीम को अपने उन्नत नितंबों के दर्शन भी कराती गई..

उधर सोनू भी के किताब का दूसरा भाग पढ़ रहा था..

फातिमा फातिमा बिस्तर पर लेट चुकी थी उसने अपनी पलके खोली और अपने भाई छोटे रही के लंड को हसरत भरी निगाहों से देखने लगी जो रहीम के हाथों में तन रहा था…और रहीम उसे सहला कर उसमें और ताकत भरने का प्रयास कर रहा था..।

सोनू के दिमाग में आज सुबह के दृश्य घूमने लगे जब उसकी सुगना दीदी उसके लंड को देख रही थी अचानक सोनू को रहीम और फातिमा की कहानी अपनी और सुगना की कहानी लगने लगी…

एकांत में वासना परिस्थितियों और कथानक को अपने अनुसार मोड़ कर मनुष्य को और भी गलत राह पर ले जाती है..

सोनू को यह वहम हो चला था कि सुगना उसके लंड को शायद इसीलिए देख रही थी क्योंकि वह उस से चुदना चाह रही थी।

सोनू को कहानी में विशेष आनंद आने उसे लगा जैसे सुगना दीदी भी इस कहानी को पढ़ चुकी है..

सोनू को यकीन ही नहीं हो रहा था की सुगना दीदी जैसे मर्यादित व्यक्तित्व वाली सुंदर युवती अपने ही भाई से चुदवाने के लिए बेकरार थी। सोनू अपने लंड में असीम उत्तेजना लिए कहानी को आगे पढ़ने लगा।

रहीम बिस्तर पर अपनी बड़ी बहन को नग्न देखकर बेचैन हो गया वह धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ बढ़ने लगा फातिमा रहीम को अपनी तरफ आते हुए देखकर शर्मसार हो रही थी। उसे आगाज का भी पता था और अंजाम का भी..

सुगना द्वारा पढ़े जा रहे किताब के टुकड़े से..

अपने छोटे भाई को रहीम को पूरी तरह नग्न अपने हाथों में अपने भुसावली केले जैसे लंड को सह लाते हुए बिस्तर पर देखकर फातिमा एक बार फिर सोच में पड़ गई क्या अपने ही छोटे भाई से चुदवाना हराम न होगा ?

फातिमा का चेहरा शर्म से पानी पानी था और जांघों के बीच बुर भी पानी पानी थी उसे न तो रिश्तो से कोई सरोकार था और नहीं सही गलत से उसका साथी रहीम के हाथों में तना उससे मिलने के लिए उछल रहा था..

रहीम ने अपनी हथेलियों से अपनी बड़ी बहन जांघों को अलग किया और उनके बीच खूबसूरत गुलाबी बुर को देखकर मदहोश हो गया उसके होंठ सदा उन खूबसूरत होठों को अपने आगोश में लेने चल पड़े..

सुगना तड़प उठी एक छोटा भाई अपनी ही बड़ी बहन की बुर चूसने वाला था…. हे भगवान न जाने किस हरामजादे ने ऐसी किताब लिखी थी… सोनू यह पढ़कर क्या सोच रहा होगा…? कहीं सोनू यह तो नहीं सोच रहा होगा कि मैं ऐसी किताबें इसलिए पढ़ती क्योंकि मेरे मन में भी इस तरह की भावनाएं हैं…नहीं नहीं मैं तो ऐसी घटिया किताब पढ़ भी नहीं सकती मैंने इसीलिए उसे फाड़ कर फेंक दिया था सोनू को ऐसा नहीं सोचना चाहिए….

आखिरकार सुगना से वह किताब और न पढ़ी गई उसने उसे उठाकर अपने सिरहाने रख दिया.. और सोने का प्रयास करने लगी…

उधर सोनू किताब का अगला पन्ना पढ़ रहा था..

आधी किताब को पढ़कर आधे भाग का अनुमान लगाना इतना कठिन भी न था यह पढ़ाई आसान थी..

किताब से उद्धृत

अपनी बड़ी बहन की नंगी बुर और उसके फूले हुए होठों को देखकर रहीम पागल हो गया। उसने अपने होंठ फैलाए और अपनी बहन फातिमा की बुर से रस चूसने लगा।


जैसे ही रस खत्म हुआ.. उसने अपनी लंबी सी जीभ निकाली और अपनी बहन फातिमा के बुर में घुसाने की कोशिश करने लगा.. फातिमा की बुर में कसाव था। रहीम की जीभ फिर भी फातिमा की बुर से रस की खीचने का प्रयास करती रही..

अपने सगे भाई रहीम के होंठों का स्पर्श अपनी बुर पाकर फातिमा मदहोश हो गई वह रहीम के सर को अपनी बुर की तरफ खींचने लगी वह कभी अपनी कमर को उठाती और अपनी बुर को रहीम के चेहरे पर रगड़ने का प्रयास करती …

सोनू का लंड फटने को तैयार था.. पर अफसोस पन्ना पलटने का वक्त आ चुका था..


उधर सुगना किताब को अपने सिरहाने रख कर अपनी आंखें बंद किए सोने का प्रयास कर रही थी थकावट ने उसकी आंखें बंद कर दिमाग को शिथिल कर दिया था परंतु मन में आए उद्वेलन ने उसे बेचैन किया हुआ था। यूं कहिए शरीर सो चुका था पर अवचेतन मन अभी भी जागृत था और किताब तथा सोनू के मन को पढ़ने की कोशिश कर रहा था।

उधर सोनू ने पूरे मन से किताब पढ़ना जारी रखा अपनी बड़ी बहन के बुर में अपने लंड को जड़ तक ठेल कर भी रहीम नहीं रुका वह अपनी बहन फातिमा के बुर में पूरी तरह समा जाना चाहता था…


फातिमा की आंखों में आंसू थे परंतु रहीम कोई कोताही बरतने के पक्ष में न था । अब जब लंड बुर में घुस ही गया था वह वह अपनी और फातिमा की प्यास पूरी तरह बुझना चाहता था। उसने फातिमा के होठों पर अपने हाथ रखे और अपने तने हुए लंड से गचागच अपनी बड़ी बहन को चोदने लगा..

सोनू और उत्तेजना नहीं सह पाया और झड़ने लगा..

ऊपरी बर्थ पर लेटा सोनू अपने लंड से श्वेत लावा उगलता रहा और अपने ही अंडरवियर में उस लावा को समेटने का प्रयास करता रहा…. कुछ ही देर में सोनू का अंडरवियर पूरी तरह गीला हो गया परंतु उसने जो तृप्ति का एहसास किया था यह वही जानता था..

उधर सुगना किताब को तो हटा चुकी थी परंतु उसके अवचेतन मन में उस कहानी का आगे का कथानक घूम रहा था…

सुगना परिपक्व थी…नग्न युवती और नग्न युवक के बीच होने वाली प्रेम क्रीडा समझना सुगना के लिए दुरूह न था वह इस खेल की पक्की खिलाड़ी थी यह अलग बात थी कि पिछले कुछ महीनों से वह इस खेल से दूर थीं।


वासना से भरी सुगना अपने अवचेतन मन में वह खेल शुरू कर चुकी थी। एक अनजान लंड उसकी बुर में तेजी से आगे पीछे हो रहा था वह बार-बार उस व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी.. परंतु अंधेरे की वजह से पहचान पाना कठिन हो रहा था.

किसी अनजान मर्द से चुदते समय सुगना को आत्मग्लानि भी महसूस हो रही थी और वह उस व्यक्ति को बार-बार बाहर धकेलने का प्रयास कर रही थी परंतु उस व्यक्ति का मजबूत और खूबसूरत लंड सुगना की बरसों की प्यास बुझा रहा था।

वह उस लंड को अपनी बुर में पूरी तरह आत्मसात कर लेना चाहती थी…. सुगना के पैर उसकी कमर पर लिपट चुके थे और कुछ ही देर में सुगना की बुर के कंपन प्रारंभ हो गए ….सुगना झड़ रही थी और असीम तृप्ति का अनुभव कर रही थी तभी उसे गूंजती हुई आवाज सुनाई थी..

"दीदी ठीक लागल हा नू?"

यह आवाज सोनू की थी सुगना अचकचा कर उठ गई..

उसे अपनी अवस्था का एहसास हुआ जांघों के बीच एक अजब सा गीलापन था सुगना सचमुच स्खलित हो गई थी वासना से भरे उस सपने ने सुगना को स्खलित कर दिया था और निश्चित ही इसका श्रेय उस गंदी किताब को था।


परंतु सोनू की आवाज सुगना को अब डरा रही थी। नहीं ….नहीं… सोनू उसका अपना छोटा भाई है और उसके बारे में ऐसा सोचना एक अपराध है ..

हे भगवान मुझे माफ करना सुगना बार-बार अपने इष्ट से अनुरोध करती रहे और मन ही मन माफी मांगती रही..

नियति मुस्कुरा रही थी सुगना और सोनू लगभग एक साथ स्खलित हो चुके थे एक तरफ सोनू अब भी सुगना को याद कर रहा था दूसरी तरफ सुगना सोनू को भूलने का प्रयास कर रहे थी….

सुगना और सोनू …..नियति भी बेकरार थी पर सुगना और सोनू के मिलन में सुगना का हृदय परिवर्तन आवश्यक था….सुगना को अपने ही भाई से चुदवाने के लिए तैयार होना था जो सुगना जैसी संजीदा और मर्यादित युवती के लिए थोड़ा नही बहुत कठिन था..

अगले दिन की शुरुआत हो चुकी थी…

उधर लखनउ में सेक्रेटरी साहब से अलग होने के बाद मनोरमा कुछ ही दिनों में सामान्य हो गई उसे वैसे भी सेक्रेटरी साहब से कोई सरोकार न था। वह दिन भर पैसे और पद के पीछे भागते न उन्हें पिंकी का ख्याल था और नहीं मनोरमा का।


स्त्री को साथ और वक्त दोनों की जरूरत होती है पता नहीं सेक्रेटरी साहब को यह बात क्यों नहीं समझ आई। जांघों के बीच की आग शांत कर पाना उनके बस का न था परंतु मनोरमा का साथ देकर वह अपने दांपत्य को बचाए रख सकते थे। परंतु सेक्रेटरी साहब ने न मनोरमा को पहचाना न उसकी भावनाओं को।

मनोरमा ने जिस तरह सेक्रेटरी साहब के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई थी उससे वह बेहद आहत हुए और प्रतिकार स्वरूप उन्होंने मनोरमा से प्रशासनिक पद छीन कर उसे ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट का इंचार्ज बना दिया यह ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट कोई और नहीं अपितु सोनू का ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट था जहां उसे एसडीएम बनने के लिए जरूरी ट्रेनिंग दी जा रही थी और आखिरकार एक दिन मनोरमा अपने सुसज्जित कपड़ों में सोनू की क्लास रूम में उपस्थित थी..

लगभग 34- 35 वर्ष की खूबसूरत मनोरमा को देखकर क्लास के वयस्क विद्यार्थी अवाक रह गए। कमरे में एकदम शांति छा गई सभी एकटक मनोरमा को देखे जा रहे थे सोनू भी उनसे अलग न था सोनू को बार-बार यही लगता जैसे उसने उस सुंदर युवती को कहीं ना कहीं देखा जरूर है परंतु उसे यह कतई यकीन नहीं हो पा रहा था कि कक्षा में उपस्थित सुंदर महिला मनोरमा एसडीएम है जिसे उसने बनारस महोत्सव के दौरान एंबेसडर कार में बैठे देखा था…

गुड मॉर्निंग……. मनोरमा की मनोरम आवाज सोनू और अन्य विद्यार्थियों के कानों में पहुंची।


गुड मॉर्निंग मैडम….सभी विद्यार्थियों का शोर एक साथ कमरे में गूंज उठा सुंदर स्त्री के प्रति युवा विद्यार्थियों का यह अभिवादन स्वाभाविक था।

"मैं आप सब के ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट की प्रिंसिपल मनोरमा हूं मैंने कल ही कार्यभार ग्रहण किया है"

इसके पश्चात मनोरमा ने सभी विद्यार्थियों से बारी-बारी से उनका परिचय पूछा…

सोनू का नंबर आते ही..

"संग्राम सिंह… रैंक 1"सोनू की मर्दाना और गंभीर आवाज मन मोहने वाली थी।

मनोरमा संग्राम सिंह उर्फ सोनू के की खूबसूरत चेहरे और आकर्षक शरीर को देखती रह गई।


सुंदर शरीर और चेहरा सभी के आकर्षण का केंद्र होता है और सोनू ने तो अपनी रैंक बताकर मनोरमा को विशेष तवज्जो देने का अधिकार दे दिया था। स्वयं सोनू भी मनोरमा को देख रहा था

"आप किस जिले से है?"

सोनू ने अपना जिला बताया अगला प्रश्न सामने था

" किस गांव से.?

"सीतापुर…"

मनोरमा ने अपना ध्यान सोनू से हटाया और पूरी क्लास को संबोधित करते हुए बताने लगी मैं इस जिले में एसडीएम के पद पर कार्य कर चुकी हुं…

मनोरमा ने सोनू पर दिए गए विशेष ध्यान का कारण बताकर अन्य सभी विद्यार्थियों को संतुष्ट कर दिया था। कक्षा खत्म होते ही मनोरमा ने संग्राम सिंह उर्फ सोनू को अपने कक्ष में बुलाया और बातों ही बातों में मनोरमा ने सरयू सिंह का हाल-चाल पूछ लिया।

और जब जिक्र सरयू सिंह का आया तो सुगना का आना ही था मनोरमा सुगना से बेहद प्रभावित थी यह जानने के बाद की संग्राम सिंह उर्फ सोनू सुगना का अपना सगा भाई है मनोरमा उससे और खुलती गई कुछ देर की ही वार्तालाप में दोनों एक दूसरे से सहज हो गए सोनू और मनोरमा दोनों आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे और उनका साथ आना स्वाभाविक था……

परंतु सोनू इस समय पूरी तरह सुगना में खोया हुआ था.. उसे इस बात का एहसास भी न रहा कि मनोरमा के साथ रहने और विशेष कृपा पात्र बनने का अलग मतलब ही निकाला जा सकता था।


यद्यपि…मनोरमा का प्रशासनिक कद और उम्र में 10- 15 वर्ष का अंतर लोगों की सोच पर अंकुश लगाता परंतु कामुकता और ठरक से भरे लोगों को यह संबंध निश्चित ही सेक्स जनित ही प्रतीत होता।

बहरहाल सोनू और मनोरमा में एक सामंजस्य जरूर बना था परंतु इसमें वासना का कोई स्थान न था। मनोरमा जिस सम्मान और आदर की हकदार थी वह उसे सोनू से बखूबी मिल रहा था और सोनू एक आज्ञाकारी जूनियर की तरह मनोरमा के सानिध्य में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर रहा था…

सोनू की रातें रंगीन थी वह गंदी किताब सोनू के जीवन की सबसे मूल्यवान वस्तु थी…जब भी वह एकांत में होता उस किताब को निकालकर उसे अक्षरशह पढ़ता…और पन्ने के दूसरे भाग को अपनी इच्छा अनुसार संजो लेता…

कहानी में फातिमा की जगह सुगना ले चुकी थी और वह एक नहीं बारंबार सुगना की कल्पना करते हुए उस कहानी को पड़ता और अपनी बड़ी बहन की काल्पनिक बुर में झड़ कर गहरी नींद में चला जाता उसे अब न कोई आत्मग्लानि होती और नहीं कोई अफसोस।

परंतु दिन के उजाले में जब वह सुगना के बारे में सोचता उसे यह यकीन ही नहीं होता कि सुगना दीदी ऐसी किताब पढ़ सकती है उसके मन में यह प्रश्न कभी नहीं आता कि सुगना नहीं वह किताब फाड़ी थी.. और उसे इस बात का इल्म भी न होता की उसकी बहन सुगना भाई-बहन के बीच इस अनैतिक संबंधों के पक्षधर न थी…

परंतु सोनू की सोच एक तरफा हो चली थी। वो सुगना दीदी का खिड़की पर आकर उसे लाली को चोदते हुए देखना …..वह हैंडपंप पर उसके तने हुए लंड को एकटक देखना….. वह सलवार सूट के साथ कामुक ब्रा और पेंटी को स्वीकार कर लेना…. और अपनी नाराजगी न जाहिर करना…….ऐसे कई सारी घटनाएं सोनू की सोच को संबल दे रही थी और सोनू अपने मन में सुगना की कामुक छवि को स्थान देता जा रहा था …..सुगना का मर्यादित और संतुलित व्यक्तित्व सोनू की वासना के रास्ते में जब जब आता उसे नजरअंदाज कर सोनू सुगना सुगना को एक अतृप्त और प्यासी युवती के रूप में देखने लगता।

दिन तेजी से बीत रहे थे और सोनू अपने ख्वाबों में सुगना को तरह तरह से चोद रहा था…वह गंदी किताब सोनू के दिलों दिमाग पर असर कर गई थी….सोते जागते अब सोनू को सिर्फ सुगना दिखाई पड़ रही थी…

उधर सुगना ने वह गंदी किताब अलमारी के ऊपर छुपा कर रख दी…वह किताब का आधे से ज्यादा हिस्सा पढ़ चुकी थी.. उस किताब ने सुगना के दिमाग पर भी असर किया था.. और वह उस हरामजादे लेखक को जी भर भर कर गालियां देती जिसने भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को तार-तार कर दिया था परंतु अपने स्वप्न में सुगना गाहे-बगाहे चूदाई के सपने देखती और खूबसूरत लंड से जी भर कर चुद कर स्खलित होती…और कभी आत्मग्लानि कभी होंठो पर मुस्कुराहट ले सो जाती…

सोनू को गए कई महीने बीत गए थे…दीपावली आने वाली थी….दीपावली ध्यान में आते ही सुगना को सरयू सिंह याद आ गए..

सुगना चहकते हुए लाली के पास गई …और पूछा


"ए लाली अबकी दिवाली में गांव चलेके…?"

शेष अगले भाग मे
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
सोनू और सुगना दोनो किताब के आधे आधे हिस्से को पढ़ रहे है और सोनू और सुगना अपनी वासना की तृप्ति को प्राप्त करते है मनोरमा सोनू की प्रिंसिपल है उसे पता है कि सोनू सुगना का भाई है देखते है सोनू और मनोरमा के बीच कुछ होता है या नही
 

Sanju@

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इंतजार है अगले अपडेट का
 

Lovely Anand

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Bahut sunder update सोनू और सुगना के मिलन की फूल तैयारी हो रही है, दोनों के मन विचलित है, और अमान्य सम्भोग की और अग्रसर है, अब देखना है दीवाली पर क्या दोनों का मिलन हो पायेगा या नियति अपना नया खेल दिखाएगी
कहानी को पसंद करने के लिए और लगातार जुड़े रहने के लिए धन्यवाद। दीपावली का उपहार सबको मिलेगा..
जानदार, शानदार, अद्भुत, अविश्वस्नीय प्रस्तुति लेखक महोदय।
लगता है कि सुगना को अब पता चल जाएगा कि वो सरयू सिंह की पुत्री है और सोनू और वो एक पिता की संताने नहीं हैं।
कहानी को पसंद करने के लिए और लगातार जुड़े रहने के लिए धन्यवाद
बहुत ही कामुक अपडेट सर मजा आ गया
कहानी को पसंद करने के लिए और लगातार जुड़े रहने के लिए धन्यवाद
कहानी को पसंद करने के लिए और लगातार जुड़े रहने के लिए धन्यवाद story so far... Please carry on the good work... Best wishes 🙂
कहानी को पसंद करने के लिए और लगातार जुड़े रहने के लिए धन्यवाद
Wah sir ji Kya likhte hai maza aa gaya
Ati sundar rachna hai
कहानी को पसंद करने के लिए और लगातार जुड़े रहने के लिए धन्यवाद
Update Karo Bhai pls
इस कहानी के पटल पर आपका स्वागत है ।
Shandar update Lovely Bhai, Sonu aur Sugna ka milan ab gaanv me hi hoga, aisa lagta he,
Manorma Madam aur Sonu ke beech abhi tak aisi koi ghatna nahi hui he jiske karan dono ke beech koi kamuk rishta panpe....

Waiting for the next update
कहानी को पसंद करने के लिए और लगातार जुड़े रहने के लिए धन्यवाद
लवली जी आपकी कहानी को शुरू से पढा है और हर बार यही कमेन्ट लिखता हूं कि आपकी तारीफ के लिए शब्द नही है मेरे पास।
राखी का रिर्टन गिफ्ट अनोखा है ।
और मनोरमा का कहानी में लौटना भी।
क्या अब सरयू की सारी भूमिकाए सोनू ही निभाएगा।
इन्तजार ?
कहानी को पसंद करने के लिए और लगातार जुड़े रहने के लिए धन्यवाद
रोमांच से भरपूर कहानी
धन्यवाद आजकल आपके कमेंट भी प्रोफेशनल जैसे हो गए हैं... फिर भी आप की उपस्थिति के लिए धन्यवाद
अपडेट ८५- कामुकता की ओर इशारा करते हुए आने वाले कल की मधुर झलक इस अपडेट में मिली। आशा है कि जल्द ही वह मधुर झलक पढने को भी मिलेगी।
आने वाला कल निश्चित ही मधुर और सुखद होगा इस कहानी के पटल पर आपका स्वागत है ।

SCORE 10/20
 

Lovely Anand

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Bohot badiya update lovely bhai
Ab to diwali ka intejaar hai
Thanks
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
सोनू और सुगना दोनो किताब के आधे आधे हिस्से को पढ़ रहे है और सोनू और सुगना अपनी वासना की तृप्ति को प्राप्त करते है मनोरमा सोनू की प्रिंसिपल है उसे पता है कि सोनू सुगना का भाई है देखते है सोनू और मनोरमा के बीच कुछ होता है या नही
इंतजार का फल मीठा होगा मालपूए जैसा...

स्कोर 12/20
 
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