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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Sanju@

Well-Known Member
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भाग 97
सोनू का लाल फूला हुआ सुपाड़ा लाली की हथेली में था…ऐसा लग रहा था जैसे लाली उसे खुद को छोड़ किसी और को चाहने का दंड दे रही हो पर लंड आज सुगना की चाहत लिए तैयार था…

सोनू उत्तेजना से कपने लगा…लाली ने उसे बेहद उत्तेजित कर दिया था..

और एक बार फिर लाली चुदने लगी….सुगना ने आज लाली का नया रूप देखा था…शायद उसे लाली से यह उम्मीद न थी…

सुगना से और बर्दाश्त न हुआ….वह अपने कमरे में आ गई…


सुगना ने खुद को संतुलित किया और गंदे गंदे ख्यालों को दरकिनार कर वह अपने श्रृंगारदान को खोल कर अपनी क्रीम लगाने लगी तभी उसका ध्यान उस जिल्द लगी किताब पर चला गया जिसको सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए छोड़ आया था किताब के दोनों हिस्सों को एक साथ देख कर सुगना चौक उठी आखिर यह किसने किया हे भगवान…

अब आगे…..

आइए सुगना को अपनी तड़प और सोनू को लाली के साथ उनके हाल पर छोड़ देते हैं….. और आपको लिए चलते हैं हिमालय की गोद में जहां सुगना के पति रतन की मेहनत अब रंग ला चुकी थी। विद्यानंद ने उसे जिस आश्रम का निर्माण कार्य सौंपा था वह अब पूरा हो चुका था ….आज रतन उसका मुआयना करने जा रहा था..…

कुछ ही महीनों में रतन ने विद्यानंद आश्रम में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था ऐसा नहीं था कि यह स्थान उसे विद्यानंद के पुत्र होने के कारण प्राप्त हुआ था अपितु उसने अपनी मेहनत और लगन से वह मुकाम हासिल किया था l

आश्रम सच में बेहद खूबसूरत बना था रतन अपनी जीप में बैठकर आश्रम के लिए निकल चुका था कुछ दूर की यात्रा करने के बाद बड़े-बड़े चीड़ के पेड़ दिखाई पढ़ने लगे….. जैसे जैसे वह शहर से दूर होता गया प्रकृति की गोद में आता गया।

शहर की सुंदरता कृत्रिम है और जंगल की प्राकृतिक

कृत्रिम निर्माण सदैव तनाव का कारण है और प्रकृति सहज एवं सरल..

यह वाक्यांश जीवन के हर क्षेत्र में अपनी अहमियत साबित करते हैं चाहे वह जीवन शैली हो या सेक्स…

रतन खोया हुआ था…धरती इतनी सुंदर कैसे हो सकती है ?…शहरों में भीड़ भाड़ और लगातार हो रहे विकास कार्यों की वजह से…शहर प्रदूषित हो चुके है जबकि जंगल में प्रकृति अपनी खूबसूरती को संजोए हमेशा नई नवेली दुल्हन की तरह सजी धजी रहती है …..

रतन प्रकृति की खूबसूरती में खोया हुआ धीरे-धीरे आश्रम के गेट पर आ गया। इस आश्रम तक जन सामान्य का पहुंचना बेहद कठिन था…. निजी वाहनों के अलावा यहां आने का कोई विकल्प न था शहर से दूर यह सड़क विशेषकर इस आश्रम के लिए ही बनाई गई थी…

दो सिक्यूरिटी गार्ड ने उस आश्रम का विशाल गेट खोला और रतन की गाड़ी अंदर प्रवेश कर गई।

अंदर की खूबसूरती देखने लायक थी. सड़क के किनारे सुंदर सुंदर पार्क बनाए गए थे उसमें करीने से जंगली और खूबसूरत फूल लगाए गए थे जो अब अपनी कलियां बिखेर कर रतन की मेहनत को चरितार्थ कर रहे थे…

सपाट खाली जगह सुंदर विदेशी घांस से पटी हुई थी कभी-कभी प्रकृति से की गई छेड़छाड़ उसे और भी सुंदर बना देती है इस आश्रम के चारों तरफ जो फूल पौधे लगाए गए थे वह इस आश्रम को और भी खूबसूरत बना रहे थे…

सामने तीन मंजिला भवन दिखाई पढ़ने लगा भवन की खूबसूरती दिखने लायक थी दूर से देखने पर यह होटल दिखाई पड़ता परंतु भवन के मुख्य भाग की सजावट उसे एक आलीशान आश्रम की शक्ल दे रही थी। रतन उस भवन तक पहुंच चुका था सिक्योरिटी गार्ड ने अपने पैर पटक कर रतन को सैल्यूट किया.. और रतन स्वयं अपनी ही बनाई कृति को देखकर भावविभोर हो उठा.. भवन के रंग रोगन ने उसे और भी खूबसूरत बना दिया था.

उस दौरान (90 के दशक में) इतनी सुंदर कलाकृति का निर्माण देखने लायक था…

अब तक निर्माण कार्य में लगे लोगों की फौज वहां आ चुकी थी और उनके प्रतिनिधि ने रतन को बताया..

"महाराज पुरुष आश्रम का कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है परंतु महिला हॉस्टल में कुछ ही काम बाकी है वह भी अगले हफ्ते में पूरा हो जाएगा आश्रम का उद्घाटन हम लोग दीपावली के दिन कर सकते हैं…"


रतन ने पुरुष आश्रम के कक्षों का मुआयना किया और वहां पर उपलब्ध सामग्री की गुणवत्ता की जांच की दीवारों के रंग रोगन को अपने पारखी निगाहों से देखा। निर्माण कार्य में लगे लोगों ने अच्छा कार्य किया था।

आश्रम में कमरों में जो सादगी थी वह होटल से अलग थी। यह कहना कठिन था की आश्रम के कमरे ज्यादा खूबसूरत थे या पांच सितारा होटल का सजा धजा शयनकक्ष…परंतु सादगी जितनी खूबसूरत हो सकती थी वो थी।

जिस प्रकार कहानी की नायिका सुगना ग्रामीण परिवेश में पलने बढ़ने के बाद भी बिना किसी कृत्रिम प्रयास के बेहद खूबसूरत और कोमल थी या आश्रम भी उसी प्रकार खूबसूरत था…

इस पुरुष आश्रम के ठीक पीछे वह विशेष भवन था जिसमें वह अनोखे कूपे बनाए गए थे (जिनका विवरण पहले दिया जा चुका है..) इस भवन का निर्माण विद्यानंद ने एक विशेष प्रयोजन के लिए कराया था जिसकी आधी अधूरी जानकारी रतन को थी परंतु विद्यानंद के मन में क्या था यह तो वही जाने …परंतु रतन ने इस विशेष भवन का निर्माण पूरी तन्मयता और कार्यकुशलता से किया था… अंदर बने कूपे निराले थे।

आज इस विशेष भवन में प्रवेश कर रतन खुद गौरवान्वित महसूस कर रहा था सचमुच अंदर से उस भवन की खूबसूरती देखने लायक थी.. दीवारों पर की गई नक्काशी और कृत्रिम प्रकाश से उसे बेहद खूबसूरत ढंग से सजाया था।

विधाता ने प्रकृति के माध्यम से इंसान को रंगों की पहचान थी परंतु विधाता की कृति इंसान ने उन रंगों के इतने रूप बना दिए जितने शायद विधाता की कल्पना भी न थी..

प्रकाश के विविध रंगों ने साज सज्जा को नया आयाम दे दिया था अलग-अलग रंगों के प्रकाश जब दीवार पर सजी मूर्तियों पर पढ़ते उसकी खूबसूरती निखर निखर कर बाहर आती ऐसा लगता जैसे पत्थर बोलने को आतुर थे वह इस भवन में होने वाली घटनाओं के साक्षी बनने वाले थे…


ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे विद्यानंद ने जो भी धन अर्जित किया था उसका अधिकांश भाग इसके निर्माण में लगा दिया था..

इस विशेष भवन के पीछे हुबहू पुरुष आश्रम जैसा सा ही एक और आश्रम था.. वह महिलाओं के लिए बनाया गया था.. महिलाओं के आश्रम के ठीक सामने भी वैसा ही पार्क और वैसे ही सड़क थी.. यूं कहिए कि वह विशेष भवन पुरुष आश्रम और महिला आश्रम के बीच एक कड़ी था। बाकी पुरुष आश्रम तक पहुंचने का रास्ता अलग था और महिला आश्रम तक पहुंचने का रास्ता अलग।


पुरुष आश्रम में आ रहे आगंतुकों को महिला आश्रम दिखाई नहीं पड़ता था इसी प्रकार महिला आश्रम में आ रहे लोग पुरुष आश्रम को देख नहीं सकते थे यहां तक कि वह विशेष भवन भी सामने से दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि वह पुरुष आश्रम और महिला आश्रम के बीचों-बीच स्थित था….

महिला आश्रम का मुआयना करने के पश्चात जो छुटपुट कार्य बाकी थे उसके लिए रतन ने निर्माण कार्य में लगे लोगों को दिशा निर्देशित किया।

अब तक उसकी जीप घूम कर महिला आश्रम के गेट पर आकर खड़ी हो गई थी…महिला आश्रम और पुरुष आश्रम के एक दूसरे से नजदीक होने के बावजूद वाहन को वहां पहुंचने के लिए 10 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा था…दरअसल महिला आश्रम और पुरुष आश्रम के पहुंचने के लिए जो मुख्य द्वार बनाया गया था वह पूरी तरह अलग था…

रतन आश्रम का मुआइना कर पूरी तरह संतुष्ट हो गया जो कुछ छुटपुट कार्य बाकी था वह दो तीन दिनों में पूरा हो जाना था।


आज रतन विद्यानंद से मिलकर आश्रम के की निर्माण कार्य पूरा हो जाने की सूचना देने वाला था ….और उनसे आश्रम के उद्घाटन से संबंधित दिशा निर्देश प्राप्त करने वाला था.

रतन खुशी खुशी वापस विद्यानंद के मुख्य आश्रम की ओर निकल पड़ा……महिला आश्रम के सामने बने पार्क से उसकी जीप गुजर रही थी एक पल के लिए उसे यह भ्रम हो गया कि वह पुरुष आश्रम के सामने की तरफ से जा रहा है या महिला आश्रम के? उसने पीछे पलट कर देखा और मुस्कुराते हुए उसने ड्राइवर से कहा

"यह पार्क हूबहू पुरुष आश्रम के पार्क की तरह ही है "

हां महाराज दोनों ही बिल्कुल एक जैसे दिखाई पड़ते हैं ....

जीप तेजी से सरपट विद्यानंद के मुख्य आश्रम की तरफ बढ़ती जा रही थी। रतन अपने जीवन के पन्ने पलट कर देख रहा था कैसे वह मुंबई में एक आम जीवन जीवन व्यतीत करते करते आज अचानक खास हो गया था । शायद इसमें वह सुगना का ही योगदान मानता था उसके प्यार की वजह से ही वह बबीता जैसी दुष्ट और व्यभिचारी पत्नी को छोड़ पाने की हिम्मत जुटा पाया और अपनी प्यारी मिंकी को लेकर सुगना की शरण में आ गया था …पर हाय री नियति सुगना और रतन का मिलन हुआ तो अवश्य परंतु न जाने उस प्यार की पवित्रता में क्या कमी थी सुगना की जादुई बुर ने रतन के लंड को स्वीकार न किया।

रतन ने सुगना के कुएं से अपनी प्यास खूब बुझाई पर कुआं स्वयं प्यासा रह गया…

रतन.सुगना को तृप्त न कर पाया था और यही उसके लिए विरक्ति का कारण बन गया था.. जैसे-जैसे रतन की जीप विद्यानंद के आश्रम की करीब आ रही थी रतन की धड़कनें बढ़ रही थी । आज भी वह विद्यानंद के सामने जाने में घबराता था परंतु धीरे-धीरे वह उनके करीब आ रहा था..

रतन यद्यपि विद्यानंद का पुत्र था परंतु फिर भी उसका चेहरा विद्यानंद से पूरी तरह नहीं मिलता था किसी बाहरी व्यक्ति के लिए यह बता पाना कठिन था कि रतन विद्यानंद का पुत्र है ऐसा क्यों हुआ होगा यह तो विधाता ही जाने परंतु रतन की मां कजरी और विद्यानंद का मिलन एक मधुर मिलन न था …

विद्यानंद के कक्ष के बाहर बैठा रतन अपनी बारी का इंतजार कर रहा था । अंदर विद्यानंद अपना ध्यान लगाकर अपने इष्ट को याद कर रहे थे कुछ ही देर बाद एक सेविका रतन को अंदर ले गई।


विद्यानंद ने अपनी आंखें खोली और रतन को देखकर बोले

" बताओ वत्स… तुम्हारे चेहरे की मुस्कुराहट बता रही है कि मैंने तुम्हें जो कार्य दिया था वह तुमने पूर्ण कर लिया है"

" हां महाराज .. आपके आशीर्वाद से आश्रम का निर्माण कार्य पूरा हो गया है आप जब चाहें हम लोग उसका उद्घाटन कर सकते हैं.."


विद्यानंद की चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई का चेहरा आभा से चमकने लगा उन्होंने रतन को बैठने के लिए कहा और अपनी सेविका को एकांत का इशारा किया…

विद्यानंद ने रतन को संबोधित करते हुए कहा..

" जन सामान्य की यह अवधारणा है कि जिस व्यक्ति ने संयास ले लिया है उसने भौतिक इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ली परंतु ऐसा कर पाना इतना आसान नहीं है…काम क्रोध मद लोभ यह मनुष्य के स्वाभाविक गुण हैं इन पर नियंत्रण कर और विजय पाकर वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है.


आश्रम में रहने वाले मेरे हजारों अनुयायियों में से आज भी कई लोग इन सामान्य गुणों का परित्याग कर पाने में अक्षम हैं.. मुझे यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है.."

रतन की आंखें शर्म से झुक गई उसे ऐसा लगा जैसे विद्यानंद की बातें उसकी ओर ही इंगित कर रही थी रतन सकपका गया तो क्या विद्यानंद जी को उसके आश्रम में किए गए व्यभिचार की खबर थी? वह सर झुकाए विद्यानंद की बातें सुनता रहा विद्यानंद ने आगे कहा..

" आज भी इस आश्रम के अनुयायी किसी ने किसी रूप में वासना से ग्रस्त हैं वो अपनी अपनी समस्याओं की वजह से घर त्यागकर इस आश्रम में आए हुए हैं।

ऐसी लोग आश्रम में आ तो गए हैं परंतु उनकी स्वाभाविक कामवासना अभी भी जीवित है और वह अपने उचित की साथी की तलाश में अक्सर अपना समझ जाया करते है..

जिस आश्रम का निर्माण तुमने कराया है उसका एक विशेष प्रयोजन है यह आश्रम .. मेरे अनुयायियों को कामवासना से मुक्ति दिलाने के लिए ही बनाया गया है."

रतन रतन ने आंख उठाकर विद्यानंद की तरफ देखा जो अपनी आंखें बंद किए अपने मुख से यह अप्रत्याशित शब्द कह रहे थे परंतु उनके चेहरे के भाव यह बता रहे थे कि वह जो कुछ कह रहे थे वह आवेश और उद्वेग से परे एक शांत और सहज मन की बात थी..उन्होंने फिर कहा..

"मेरी बात ध्यान से सुनना वह आश्रम स्त्री और पुरुष के मिलन के लिए बनाया गया है… समाज में आज भी कई किशोर युवक और युवतियां समागम को लेकर अलग-अलग भ्रांतियां पाले हुए है.. जिसकी वजह से किशोर और किशोरियों में एक भय जन्म ले चुका है.. किशोरियां समागम से घबराती हैं और किशोर अपनी मर्दानगी पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं समाज में धीरे धीरे यह व्याधि फैलती जा रही है और उनके माता-पिता अक्सर मेरी शरण में आकर उनके लिए सुखद गृहस्थ जीवन का आशीर्वाद मांगते हैं।


स्त्री और पुरुष का मिलन ही गृहस्थ जीवन की कुंजी है यह उतना ही पावन है जितना परमात्मा से मिलन.. परंतु किसी न किसी कारणवश सभी स्त्री और पुरुषों का मिलन उतना सुखद नहीं होता जितना उन्हें होना चाहिए इसका कारण सिर्फ और सिर्फ अज्ञानता है..न तो पुरुष स्त्री के कोमल शरीर को पूरी तरह समझ पाता है और नहीं स्त्री पुरुष की उग्र उत्तेजना को..

और जब उन दोनों का मिलन होता है तब निश्चित की परिणाम आशानुरूप नहीं रहते.. मैं चाहता हूं कि तुम गृहस्थ जीवन में रहने के इच्छुक स्त्री और पुरुषों को एक दूसरे को समझ में में मदद करो.. जिस आश्रम का निर्माण तुमने कराया है वह इस प्रयोजन को चरितार्थ करेगा

तुम्हें इस बात का विशेष प्रबंध करना होगा कि आश्रम में रह रहे इस स्त्री और पुरुष एक दूसरे को कभी भी न जान पाएं…उनकी गोपनीयता सुरक्षित रखना तुम्हारा कार्य है यदि गोपनीयता भंग होती है तो यह आश्रम अपना अस्तित्व खो बैठेगा…..


पुरुष और स्त्री दोनों का मिलन सिर्फ और सिर्फ आश्रम के मुख्य भवन में होना चाहिए इसके अलावा कहीं नहीं..

आश्रम से संबंधित दिशा निर्देश और विस्तृत नियमावली माधवी ने बनाई है वह तुम्हें और भी विस्तार से समझा देगी…

माधवी का नाम सुनकर रतन चौका.. लगभग विद्यानंद से जुड़े सभी खास स्त्री और पुरुषों को जानता था पर माधवी का नाम उसने आज से पहले कभी नहीं सुना था विद्यानंद ने…

विद्यानंद ने आगे कहा..


"इस आश्रम से कुछ स्त्रियां और कुछ पुरुष उस आश्रम में रहने के लिए भेजे जाएंगे और जब उनकी वासना समाप्त हो जाएगी तब वो इस आश्रम में वापस आ सकेंगे…"

रतन विद्यानंद की बातों को बेहद ध्यान से सुन रहा था उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि विद्यानंद जैसा महात्मा भी वासना को इतना महत्व देता था.. रतन ने भी वासना की कई रूप देखे थे अपनी पत्नी बबीता के व्यभिचार को भी और अपनी पत्नी सुगना के व्यभिचार को जिससे उसने सूरज जैसे दिव्य बालक को जन्म दिया था यह अलग बात थी की व्यभिचार के कारण अलग थे पर इन संबंधों की सामाजिक मान्यता न थी ना हो सकती थी..


विद्यानंद की गंभीर आवाज आई

" माधवी को बुलाया जाए" और थोड़ी ही देर में एक विदेशी और बेहद खूबसूरत युवती रतन के सामने खड़ी थी.. श्वेत धवल वस्त्रों में उस विदेशी युवती को देखकर रतन अवाक रह गया। माधवी….. उसकी खूबसूरती देखने लायक थी 24 - 25 वर्ष की माधवी सुडौल काया की स्वामी थी.. हल्के भूरे रेशमी बाल जो एकदम सीधे थे उसके चेहरे की खूबसूरती और भी बड़ा रहे थे… रतन उसकी खूबसूरती में खो गया और विद्यानंद ने रतन की आंखों को पढ़कर उसके मनोभावों का अंदाजा लगा लिया….. विद्यानंद ने रतन से कहा

"वत्स तुम माधवी के साथ चले जाओ यह तुम्हें उस आश्रम से संबंधित नियमावली समझा देगी और मैं चाहता हूं कि तुम भी उस आश्रम में रहकर ही वहां का कार्य भार देखो …. तुम पुरुष आश्रम का कार्यभार संभाल लेना और माधवी महिला आश्रम का…"

विद्यानंद ने अपनी आंखें बंद कर ली.. और हाथ उठाकर रतन को आशीर्वाद दिया शायद यह मुलाकात की समाप्ति का इशारा भी था रतन के मन में अब भी ढेरों प्रश्न थे उसने कुछ और कहना चाहा परंतु विद्यानंद अपनी ध्यान मुद्रा में जा चुके थे। उसने माधवी की तरफ देखा और माधवी ने मुस्कुरा कर उसका अभिवादन किया अपने रतन को अपने पीछे आने का इशारा किया और वह पलट कर वापस जाने लगी..

विद्यानंद की आंखें बंद होने के बाद रतन की आंखें पूरी तरह खुल गई सामने बलखाती हुई माधवी जा रही थी और रतन उसके पीछे-पीछे …

श्वेत चादर में लिपटी माधवी की कामुक और मदमस्त काया देखने लायक थी…श्वेत वस्त्र के आवरण के बावजूद माधवी की चौडी छाती पतली कमर और भरे-भरे नितंब अपनी खूबसूरती का एहसास बखूबी करा रहे थे…

रतन की वासना ने उसे घेर लिया और उसका लंड कुलांचे मारने लगा…उसके नेत्र वस्त्रों के पार माधवी की मदमस्त काया को देखने का प्रयास करने लगे माधवी की नग्न छवि उसके दिलो-दिमाग में बनती चली गई…

जैसे-जैसे वासना हावी होती गई दिमाग कुंद होता गया शरीर का सारा रक्त जैसे उस वह तना हुआ लंड अपनी तरफ खींच रहा था…

माधवी अपने कक्ष में आ चुकी थी और रतन दरवाजे पर खड़ा माधवी के इशारे का इंतजार कर रहा था ऐसे ही किसी युवती के कमरे में जाने में वह संकोच कर रहा था..

"अरे रतन जी अंदर आ जाइए" विदेशी युवती के मुख से शुद्ध हिंदी में संबोधन सुनकर रतन और भी आश्चर्य में पड़ गया वह यंत्र वत अंदर आ.गया.."

माधुरी का कमरा भी बेहद भव्य था शायद वह विद्यानंद की विशेष शिष्या थी… रतन को यह एहसास हो गया था कि विद्यानंद से शायद वह जितना नजदीक था माधवी उससे दो कदम आगे थी.. आप बैठिए मैं दो मिनट में आती हूं..

माधवी अपने कक्ष के भीतर बने एक छोटे से कक्ष में प्रवेश कर गई और रतन अपनी तेज धड़कनें के साथ उसका इंतजार करने लगा…

##############

इधर बनारस में सूरज चढ़ आया था …खिड़कियों के बीच फंसे शीशों से उसकी रोशनी छन छन कर सुगना के गोरे चेहरे पर पढ़ रही थी …बदन पर पड़ी हुई रजाई सुगना के मदमस्त बदन को छुपाए हुए थी..परंतु बंद पलकें, गोरे गाल और रस से लबरेज उसके होंठ सूरज की रोशनी में चमक रहे थे…

उस पर बाल की दो लड़िया निकलकर गालों को चूमने का प्रयास कर रहीं थीं …

होठों पर बेहद हल्की मुस्कान छाई हुई थी शायद सुगना कोई सुखद और मीठा स्वप्न देख रही थी..

यदि कामदेव भी सुगना को उस रूप में देख लेते तो उन्हें इस बात का अफसोस होता कि उन्होंने ऐसी सुंदर अप्सरा को धरती पर क्यों दर् दर ठोकरे खाने के लिए छोड़ दिया था…

अचानक दरवाजे पर खटखट हुई और सुगना जाग उठी ….रजाई के अंदर उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ…नाइटी चुचियों के अपर एक घेरा बनाकर पड़ी हुई थी सुगना की ब्रा और पेंटी तकिए के नीचे अपने बाहर आने की राह देख रहे थे…

न जाने क्यों दिन भर स्त्री अस्मिता के वो दोनो प्रहरी रात्रि में रति भाव के आगमन पर अपनी उपयोगिता को देते थे…

जब तक सुगना उन्हे पहन पाती दरवाजे पर खट खट के साथ मधुर आवाज आई…

"दीदी…

शेष अगले भाग में..
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
ये कहानी एक नए मोड पर आ गयी है जिसमे विद्यानन्द रतन और माधवी कुछ अलग अध्याय लिखेंगे। विद्यानंद रतन को समझाता की आश्रम कामवासना को पूर्ण करने के लिए बनाया है देखते हैं रतन की भी काम वासना पूर्ण होती हैं या नहीं और इस आश्रम में क्या क्या होता है
 

raniaayush

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लेखक महोदय कहानी बहुत सुंदर तरीके से आगे बढ़ रही है। इस बार के अपडेट में भी बहुत सी सुंदर और सारगर्भित पंक्तियां हैं। लेकिन आज मैं कुछ और कहने वाला हूँ....
मुझे क्या सभी पाठकों को पता होगा कि आगे सोनू को सुगना मिलने वाली है, लेकिन पता नहीं कईं ये मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। इसकी वजह उनका भाई बहन होना या कुछ और नहीं है। बस यूं समझ लीजिए कि कोई पाठक या दर्शक अपने नायक/नायिका से जुड़ता है तो उसके साथ होने वाली घटनाएं उसे दुखी या खुशी देतीं हैं, वैसे ही मेरा जुड़ाव सुगना नामक पात्र से कुछ ऐसा हुआ है कि मुझे सोनू सुगना का मिलन बुरा लग रहा है।

ये केवल मेरे मनोभाव हैं, अन्यथा न लीजिएगा और न हीं कहानी के प्लाट में कुछ बदलाव कीजियेगा। वस्तुतः कहानी आपकी है और अन्य पाठकों की है। इसे केवल कमेंट समझें।
 

Sanju@

Well-Known Member
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भाग 98

होठों पर बेहद हल्की मुस्कान छाई हुई थी शायद सुगना कोई सुखद और मीठा स्वप्न देख रही थी..


यदि कामदेव भी सुगना को उस रूप में देख लेते तो उन्हें इस बात का अफसोस होता कि उन्होंने ऐसी सुंदर अप्सरा को धरती पर क्यों दर् दर ठोकरे खाने के लिए छोड़ दिया था…

अचानक दरवाजे पर खटखट हुई और सुगना जाग उठी ….रजाई के अंदर उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ…नाइटी चुचियों के अपर एक घेरा बनाकर पड़ी हुई थी सुगना की ब्रा और पेंटी तकिए के नीचे अपने बाहर आने की राह देख रहे थे…

न जाने क्यों दिन भर स्त्री अस्मिता के वो दोनो प्रहरी रात्रि में रति भाव के आगमन पर अपनी उपयोगिता को देते थे…

जब तक सुगना उन्हे पहन पाती दरवाजे पर खट खट के साथ मधुर आवाज आई…


"दीदी…

अब आगे

कमरे में रोशनी देखकर सुगना परेशान हो गई… अरे आज इतना देर कैसे हो गईंल….. उसने स्वयं से पूछा और आनंद फानन में उठकर दरवाजा खोला ….बाहर सोनी खड़ी थी

" अरे दीदी दरवाजा बंद करके काहे सुतल बाड़े ?…. तु त कभी दरवाजा ना बंद करेलू"

सुगना को कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था उसमें अपने बिस्तर की तरफ देखा मधु अभी भी सो रही थी… सुगना की निगाहों ने इस भाग की तस्दीक कर ली कि वह किताब उसके बिस्तर पर न थी। उसने सोनी को आश्वस्त करते हुए अंदर आते हुए बोली…

"राते कपड़ा बदलला के बाद दरवाजा खोले भुला गइल रहनी… " चल चल तैयारी कईल जाओ…. सोनू उठल की ना?"

नियति मुस्कुरा रही थी जिस सोनू को लेकर सुगना रात भर बेचैन थी आज सुबह भी उसके होठों पर उसका ही नाम था….

उधर लाली सतर्क थी वह सोनू के कमरे से जा चुकी थी पर उसके लंड पर अपना प्रेम रस छोड़कर… सोनू तो जैसे अब भी घोडे बेचकर सो रहा था…बीती रात एक नहीं दो दो बार उसने लाली की घनघोर चूदाई की थी और अपनी भावनाओं में सुगना से बड़ी बहन का दर्जा कई मर्तबा छीन लिया था…और…ना जाने कितनी बार अपनें मन में पाप को अंजाम दिया था..

नियति सोनू को मनोदशा से अनभिज्ञ न थी…

सोनी ने कहा "जा तानी सोनू भैया के जगा देत बानी"

सुगना ने उसे रोक लिया उसे यह डर था कि कहीं सोनू आपत्तिजनक अवस्था में ना हो और इस तरह सोनी का वहां जाना कतई उचित न होगा। आजकल वैसे भी सोनू कुछ ज्यादा ही लापरवाह हो चुका था… उसने सोनी से कहा

" रुक जा चाय बन जाए दे तब उठा दीहे"

सोनी अपनी दिनचर्या में लग गई और…कुछ देर बाद सुगना स्वयं चाय लेकर सोनू के कमरे के बाहर खड़ी थी… उसने लाली को आवाज दी

" लाली उठ चाय लेले " दरअसल सुगना सोनू के कमरे में ऐसे नहीं जाना चाहती थी… इसीलिए उसने लाली को आवाज दी।

सोनू अपनी नींद से ज्यादा और न जाने किस धुन में कहा

" कम इन" हॉस्टल में रहते रहते एसडीएम साहब पर ऑफिसर होने का रंग चढ़ चुका था…उन्हें शायद यह ईल्म न था कि दरवाजे पर खड़ा व्यक्ति उनका मातहत नहीं अपितु उनकी बड़ी बहन सुगना थी।

फिर भी सुगना कमरे के अंदर आई सोनू अब भी रजाई ओढ़े लेटा हुआ था उसकी आंखें बंद थी सुगना ने पास पड़े टेबल पर चाय रखी और वापस जाने लगी तभी सोनू ने अचानक उठ कर उसकी कलाइयां पकड़ ली और धीरे से खींचकर बिस्तर पर बिठा दिया..

सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था कहीं ऐसा तो नहीं कि सोनू अब भी नग्न था वह घबरा गई दिन के उजाले में वह किसी असहज स्थिति का शिकार नहीं बनना चाहती थी..

सोनू ने अगड़ाई लेते हुए कहा…

"सुबह-सुबह तोहरा के देख लेनी त पूरा दिन मन खुश रहेला.. भगवान से मनाओ कि हमार पोस्टिंग बनारस हो जाए ….त असहि तोहार हाथ के चाय रोज मिली"

सोनू ने जो बात कही थी वह बेहद गूढ़ थी…परंतु भोली भाली सुगना अपने भाई की मीठी मीठी बातों में आ गई सुगना मुस्कुराने लगी वह बिस्तर पर बैठ गई पर अब भी उसके मन का डर काम था। रजाई का आवरण ओढ़े सोनू का लंड अभी उसकी आंखों के सामने घूमने लगा…


अचानक सोनू बिस्तर से उठ खड़ा हुआ सोनू ने अपनी वस्त्र सभ्य युवा की भांति बखूबी पहने हुए थे लूंगी के अंदर अंडरवियर भी अपनी जगह पर सोनू के अद्भुत लंड को कैद किए अपनी उपयोगिता साबित कर रहा था।

सुगना को आज अपनी ही सोच पर शर्म आई और वह एक बार फिर मुस्कुराने लगी..

आपके मन में चल रहे विचार और भावनाएं आपके चेहरे पर अपना अंश छोड़ती हैं…सुगना जो अपने मन में सोच रही थी उसने उसे मुस्कुराने पर विवश कर दिया था


सोनू अपनी बहन सुगना के सुंदर चेहरे को देखते हुए चाय पीने लगा तभी…कुछ कुछ ही देर में लाली और सोनी भी वहां आ गए गई सोनू एक बार फिर अपनी बहनों के बीच बैठा आगे आने वाली जीवन की प्लानिंग किए जा रहा था ….

सोनी ने पूछा " तब अबकी दीपावली गांव पर ही मनी पक्का बा नू "

सुगना ने सोनू को निर्देश करते हुए कहा ..

"सोनू तू भी अपना साहब से बात कर लीहे दीपावली में एक हफ्ता के छुट्टी लेके गांव चले के बा…अबकी गांव में भोज भात भी कईल जाई"


सोनू रह-रहकर सुगना के खूबसूरत चेहरे और मदमस्त बदन में पर खो जाता परंतु जब भी सुगना की आवाज उसके खानों में पढ़ती वह सचेत हो जाता। वैसे भी सुगना कहे और सोनू ना मानें ….. ऐसे आज्ञाकारी भाई या प्रेमी की तलाश युवतियों को हमेशा रहती है…

सोनू ने अपनी रजामंदी दे दी…

सोनू के लिए अगले एक-दो दिन बेहद खुशहाली भरे थे सुगना और लाली उसका जी भर ख्याल रखते सुगना के हाव भाव से यही लगता कि जैसे उसने उसे ट्रेन वाली घटना के लिए पूरी तरह माफ कर दिया था ..

परंतु सोनू अब तक यह बात नहीं जान पाया था कि उसकी सुगना दीदी ने वह रहीम फातिमा की किताब पढ़ी या नहीं। सुगना का व्यवहार संयमित था उस किताब से उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई पड़ रहा था परंतु इतना तो अवश्य था कि सुगना के मन में सोनू से शर्म पैदा हो चुकी थी। सुगना का वह अल्हड़ पन और स्वाभाविकता कुछ परिवर्तित होती प्रतीत हो रही थी।


उसका सगा भाई होने के बावजूद सोनू से वह उतनी सहज न रही थी। जब जब बही बहन की भावनाएं प्रगाढ़ होती सुगना सोनू से और सहज होती और जब उसे सोनू का काम रूप दिखाई पड़ता सुगना एक नई नवेली दुल्हन की तरह उससे दूर हो जाती।

1- 2 दिन कैसे बीत गए किसी को पता ना चला और अब बारी थी सोनू को अपनी पहली पोस्टिंग जौनपुर पर भेजने की। एक बार फिर लाली और सुगना दोनों ने सोनू के लिए ढेर सारे नाश्ते बनाए और तैयारियां पूरी की अगली सुबह सोनू जौनपुर जाने के लिए हाल में खड़ा था।

सुगना हाथों में आरती का थाल लिए उसकी आरती उतार रही थी और सोनू एक टक सुगना के खूबसूरत चेहरे को देख जा रहा था. साड़ी पहनी हुई सुगना ने अपनी साड़ी का पल्लू अपनी कमर में फंसा हुआ था उसकी दोनों भरी-भरी चूचियां पल्लू से पूरी तरह ढकी हुई थी गले में पड़ा रतन का मंगलसूत्र अब भी उसके विवाहिता होने का एहसास दिला रहा था… ..

सुगना आरती की थाल घुमा रही थी..सोनी और लाली बगल में खड़ी अपनी बारी का इंतजार कर रही थी.. तभी सोनू ने सोनी से कहा

" टेबल पर लिफाफा रखल बा तनी लेआउ त" सोनी लिफाफा लेने सोनू के कमरे की तरफ गई उसी दौरान सुगना ने अपनी आरती पूरी की और सोनू को नीचे झुकने के लिए कहा उसने सोनू के माथे पर तिलक लगाया और अपने पूर्व अंदाज में उसके माथे को चुमने के लिए आगे बढ़ी इससे पहले कि सुगना अपने होठों को गोल कर उसके माथे को चुमती सोनू ने अपना चेहरा ऊपर उठा दिया और सुगना के होंठ सोनू के होठों से छू गए…. एक करंट सुगना के शरीर में दौड़ गई ..

कोई और देखे या ना देखे पास खड़ी लाली ने चार खूबसूरत लबों को आपस में मिलते देख लिया और मुस्कुराते हुए बोली …

" लागा ता सोनुआ के कुल प्यार अभिए दे दे देबू"

सुगना झेंप गई उसके गाल शर्म से लाल हो गए उसने लाली को घूर कर देखा और आरती को थाल पकड़ाते हुए बोला..

" ते आज कल ढेर बक बक करत बाड़े "

निश्चित ही जो कुछ हुआ था वह अनजाने में हुआ था परंतु लाली ने ऐसा कह कर सुगना को सोचने पर मजबूर कर दिया और जब एक बार सोच में वह बात आ गई सुगना के गाल लाल होने थे सो हो हुए और सोनू की धड़कनें तेज हो गई..

अब बारी लाली की थी सोनू ने लाली के पैर छुए लाली ने उसके सर पर हाथ फेरा और बेहद प्यार से कहा "भगवान तोहर सब मनोकामना पूरा करस और उसने अपनी निगाहों से सुगना की तरफ देखा …" सोनू लाली की बात समझ न पाया पर नियति समझदार थी और पाठक भी..

सोनी आ चुकी थी उसने सोनू को लिफाफा पकड़ाया और सोनू के चरण छू कर उस आजकल की प्यार भरी झप्पी भी दी…जो पूरी तरह वासना विहीन थी.

सोनू विदा हो रहा था जाते-जाते उसने अपनी बड़ी बहन सुगना के चरण छुए और बोला.

"आज हमार नौकरी के पहला दिन ह हमरा खातिर प्रार्थना करिहे… हमरा से कभी कोई गलती भईल होगी तो माफ कर दीहे…"

सोनू ने ऐसी भावुक लाइन क्यों कही थी यह तो वही जाने पर भावुकता स्वाभाविक थी…सोनू आज इस प्रतिष्ठित पद को ग्रहण करने जा रहा था वह सुगना और उसके परिवार के लिए एक दिवास्वप्न से कम न था जिसे सोनू ने अपनी मेहनत से सच कर दिखाया था..।

सोनू और सुगना दोनों भावुक हो उठे सोनू और सुगना एक स्वाभाविक प्रेम की वजह से एक दूसरे के आलिंगन में आ गए यह आलिंगन बेहद पावन था.. शायद सोनू के मन भी कुछ समय के लिए वासना विहीन हो गया था और उसने भी सुगना ने भी आलिंगन की पवित्रता बरकरार थी।

सोनू और सुगना अपने अश्रुपूरित नयन लिए अपने ईस्ट देव से एक दूसरे के लिए खुशियां मांगते…एक दूसरे से अलग हो गए… सोनू ऑटो से सर निकालकर बार-बार पीछे देख रहा था जहां उसके तीनों बहने खड़ी हाथ हिला रही थी सोनू का सर ऑटो से बाहर देख कर सुगना जैसे मन ही मन सोनू से कह रही थी कि अपना सर अंदर कर ले चोट लग जाएगी उसने अपने हाथों से सोनू को अपना सर अंदर करने का इशारा भी किया सच सुगना सोनू का बेहद ख्याल रखती थी…. कुछ ही देर में ऑटो गली से मुड़ गया और तीनो बहने घर के अंदर आ गई।

दीपावली आने वाली थी इस दीपावली ने सुगना के जीवन में ढेरों खुशियां लाई थी परंतु क्या आने वाली दीपावली सोनू और सुनना के बीच कुछ की दूरियां खत्म करेगी? या सोनू को सुगना जैसी कोई जीवन संगिनी मिल जाएगी…? जिसके लिए सरयू सिंह और उनके रिश्तेदार पूरी तत्परता से लगे हुए थे…सोनू की इस सफलता ने तो आसपास के कई जिलों के मानिंद लोगों को भी अपनी बेटी सोनू से ब्याने के लिए उत्साहित कर दिया था..


नियति के लिए एक बड़ा प्रश्न था… वह विधाता द्वारा लिखे गए पन्नों को पलट कर आगे की रूपरेखा बनाने लगी… सरयू सिंह के दरवाजे पर आज भी अपनी सुकुमारी किशोरियों का रिश्ता लेकर आने वालों का तांता लगा रहता था और सोनू पढ़ी-लिखी अक्षत योवनाओं को छोड़ अपनी बड़ी बहन सुगना से तार जोड़ने पर आमादा था.

दीपावली का त्यौहार शायद हिंदुस्तान में मनाया जाने वाला सबसे प्रमुख त्यौहार है। 90 के दशक में इस त्यौहार की अहमियत और भी ज्यादा हुआ करती थी दूर-दूर से लोग अपने घरों पर वापस आ जाया करते थे सोनी का प्रेमी विकास भी अमेरिका से वापस बनारस आ रहा था सोनी को जब इसकी खबर मिली वह चहकने लगी…

विकास से मिलन की कल्पना कर उसकी वासना हिलोरे मारने लगी …उस तरुणी का तन बदन और दिमाग सब कुछ विकास का बेसब्री से इंतजार करने लगा परंतु इस बार की दीपावली सलेमपुर में मनाई जानी थी और सोनी को उसमें शरीक भी होना था तो क्या वह अपनी दीपावली विकास के साथ नहीं मना पाएगी…?

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि विकास भी उस दिन सलेमपुर चले आखिर अब वह उसका ससुराल भी था यद्यपि सोनी और विकास का विवाह एक गंधर्व विवाह की श्रेणी में रखा जा सकता है परंतु सोनी और विकास दोनों उस विवाह की पवित्रता को अपने मन में पूरी अहमियत देते थे..

सोनी ने मन ही मन ठान लिया कि वह अपने स्त्री हक और अधिकार का प्रयोग करते हुए विकास को सलेमपुर चलने के लिए मनाएगी चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े…

और आखिरकार सोनी ने पीसीओ से विकास को फोन लगा दिया…

फोन की घंटी जाते ही अमेरिका में बैठे विकास ने फोन काटा…और वापस पलट कर उसी नंबर पर अपने फोन से फोन किया विकास सोनी की आर्थिक स्थिति को भलीभांति जानता था।

सोनी और विकास ने कुछ देर बातें की और अंततः सोनी ने विकास को दीपावली की रात सलेमपुर आने के लिए मना लिया…. सोनी अपनी विजय पर मुस्कुरा रही थी उसने अपने जिस दिव्य और कोमल हथियार का प्रयोग इस विजय के लिए किया था वह थे उसके खूबसूरत होंठ…

जिन होठों का प्रयोग वह सूरज की नून्नी पर करती आई थी… दीपावली के दिन उसे उसका सही उपयोग करना था…. विकास उस अनोखे सुख की कल्पना कर सोनी के सामने पूरी तरह सरेंडर हो गया …और उसने और उसमें अपने परिवार को भूल अपनी प्रेमिका और पत्नी सोनी के घर पर दीपावली मनाने को अपनी रजामंदी दे दी…

स्त्रियों द्वारा पुरुषों को दिया जाने वाला सबसे मुख्य उपहार है मुखमैथुन… इस सुख की कल्पना शायद हर पुरुष करता है.. परंतु विरले ही वह लोग होंगे जिन्हें स्त्रियां स्वेच्छा से, हंसी खुशी और पूरी तन्मयता से उन्हें यह सुख देती है…

सलेमपुर में दीपावली की तैयारियां जोरों पर थी…दीपावली के दिन सोनू के सम्मान में विशेष पूजा रखी जानी थी. और दोपहर में ही आसपास के गांव के लोगों को सामूहिक भोज पर आमंत्रित किया गया था यह एक प्रकार की खुली मुनादी थी जो भी चाहे उस कार्यक्रम में शरीक हो सकता था। विशेष मानिंद लोगों को अलग से नियुक्ति भेजे गए थे और बाकी गांव वालों के लिए डुगडुगी बजाकर मुनादी करा दी गई थी…

सरयू सिंह ने दिल खोलकर पैसे खर्च किए थे वैसे भी यह एक प्रकार का इन्वेस्टमेंट ही था जो सम्मान और प्रतिष्ठा उनके परिवार को प्राप्त हुई थी यह आयोजन उस प्रतिष्ठा को और भी बढ़ाने वाला था..

सरयू सिंह के पुराने मकान को भी रंग रोगन कर सजा धजा दिया गया। घर के बाहर ईंटों से बने कुछ कमरे भी तैयार कर दिए गए थे जिनमें पुरुषों के रहने की व्यवस्था की गई थी…

घर के अंदर महिलाओं के रहने की व्यवस्था थी…सरयू सिंह के परिवार का यह दुर्भाग्य ही था की इसमें कोई भी जोड़े में उपलब्ध न था।


कजरी और सुगना दोनों सास बहू अकेले रहने को मजबूर थी। रतन और विद्यानंद दोनों न जाने किस विशेष आश्रम की तैयारियों में लगे हुए थे। दोनों ने ही अपने अपने परिवार को अलग-अलग कारणों से छोड़ रखा था।

सरयू सिंह जो इस परिवार के आधार स्तंभ थे वह भी अब सुगना से दूरी बना चुके थे और कजरी वह तो अब निरापद हो चुकी थी वासना और कामुकता से परे …

पूजा पाठ और गांव वालों के साथ समय व्यतीत करना उसे बेहद पसंद आता था।

सिर्फ एक विवाहित जोडी उस दिन सलेमपुर आने वाली थी वह थी विकास और सोनी की जोड़ी। परंतु यह जोड़ी जिस तरह एकांत में बनाई गई थी उन्हें वह एकांत उस दिन कतई नहीं मिलना था.. समाज और अपने परिवार की नजरों में सोनी अब भी अविवाहित थी।

खैर जो होना था वह तो दीपावली के दिन होना था नियति प्रेमियों का हमेशा मार्ग प्रशस्त करती है वह सोनी और विकास को मिलाने के लिए जुगत लगाने लगी… परंतु सुगना और सोनू दोनों की तड़प अब उससे देखी नहीं जा रही थी… एक तरफ सोनू खुलकर अपनी बड़ी बहन सुगना को अपना लेना चाहता था परंतु मर्यादा और समाज का डर अब भी उस पर हावी था।


काश कोई उससे कह देता कि सुगना उसकी अपनी सगी बड़ी बहन नहीं है तो वह सुगना के सामने नतमस्तक होकर उसके प्यार की भीख मांग लेता और उसे येन केन प्रकारेण मना लेता। और अपने छद्म गुरु रहीम की तरह अपनी बड़ी बहन सुगना को फातिमा जैसे जी भर कर प्यार करता….

दूसरी तरफ सुगना अपने मन में एक नई प्रकार की वासना को जन्म लेते हुए महसूस कर रही थी.. रहीम और फातिमा की वह किताब अब उसे इतनी बुरी नहीं लगती… सोनू ने जब से उस किताब के दोनों भागों को जोड़ दिया था वह न जाने कितनी बार उस किताब को पढ़ चुकी थी… जब जब वह एकांत में होती वासना उसे गुदगुदाती उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आती और कुछ ही देर में वह किताब उसके हाथों में आ जाती।


सुगना न जाने कब उस किताब की गिरफ्त में आ गई सोनू ने उस किताब में कई जगह सुगना का नाम लिखा हुआ था…. इतना तो अब सुगना भली-भांति समझने लगी थी कि सोनू उसके कामुक बदन का कायल है परंतु उसे सोनू से कभी कोई खतरा नहीं हो सकता था… इतना तो वह भली-भांति जानती थी कि सोनू कभी भी उसके साथ ऐसी वैसी हरकत नहीं करेगा…विशेषकर तब जब तक वह खुद ही उसे न उकसाए। परंतु वह स्वयं अपनी वासना के आधीन होकर सोनू के लंड को अपने ख्यालों में लाने में अब परहेज नहीं करती थी और गाहे-बगाहे अपनी उत्तेजना में उसे शामिल कर लेती…

आज रात सुगना की आंखों से फिर नींद गायब थी …घर के सारे सदस्य सो चुके थे और सुगना अपने बिस्तर पर हाथों में किताब लिए आ गई..

एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ से अपनी छोटी सी अबोध बुर पर हाथ फिराते हुए वह किताब पढ़ने लगी…

कुछ ही देर में किताब के शब्दों में छुपा रस उसकी जांघों के बीच रिस रिस कर उंगलियों को भिगोने लगा और उंगलियों का संसर्ग उसके बुर की फांकों से और भी आत्मीय होता गया…

किताब के कुछ अंश..


रहीम : दीदी हम दोनों के प्यार करने पर रोक क्यों है?

रहीम ने अपनी बड़ी बहन की चुचियों को सहलाते हुए पूछा….

फातिमा: तू पागल है भला कोई अपने बहन से के साथ ये सब काम करता है.

रहीम: कौन सा काम …. रहीम ने फातिमा के फूले हुए निप्पलों को मसलते हुए कहा

फातिमा: ये जो तू कर रहा है…बड़ी बहन मां समान होती है…. फातिमा ने अपनी उखड़ती सांसो पर काबू करते हुए कहा..

रहीम : सच दीदी ….बड़ी बहन सचमुच मां समान होती है…

इतना कहते हुए रहीम ने फातिमा की बड़ी बड़ी चूचियों को अपने मुंह में भरने की कोशिश की और अपनी जीभ से उसके निप्पल चुभलाने लगा..

सोनू रहीम ने अपनी आंखें उठाकर फातिमा को देखा जैसे पूछ रहा हूं अब ठीक है …

किताब में फातिमा उत्तेजना से कांपने लगी और बिस्तर पर पड़ी सुगना भी उसने किताब को एक तरफ रखा और उसकी हथेलियां जांघों के बीच अपनी करामात दिखाने लगी…

रहीम और फातिमा की किताब जितनी उत्तेजक थी उससे कहीं ज्यादा उत्तेजक सोनू के ख्वाब थे पर उसके ख्वाब अभी उसके दिल में ही दफन थे जाने कब वह सुगना को अपने दिल की बात बताएगा…

नियति का कुछ ऐसा चक्र था कि सोनू जो कुछ अपनी खुली आंखों से पूरे होशो हवास में सुगना के साथ करना चाहता था वह सुगना अपने स्वप्न में देखा करती थी.. सुगना के जीवन में रतन के जाने बाद आई नीरसता उसके सपनों ने दूर कर उसकी रातें रंगीन कर दीं थीं।

परंतु दिन के उजाले में सुगना अपनी वासनाओं को काबू कर एक सभ्य और सुसंस्कृत बड़ी बहन की तरह अपने घर की जिम्मेदारियां अब भी उठा रही थी…उसे पता था रहीम और फातिमा की कहानी एक कुत्सित मन द्वारा उपजी वासना के अलावा और कुछ भी नहीं है….हकीकत इससे इतर थी…सुगना को अपने भाई के लिए एक सुंदर दुल्हन खोजनी थी जिसमें सुगना कोई कोताही नहीं बरतना चाहती थी…

दीपावली आने वाली थी…सुगना अपने भाई सोनू और सोनी अपने प्रेमी विकास का का इंतजार करने लगी…

इंतजार सबको था सरयू सिंह को भी , सोनू की मां पद्मा को भी और नियति को भी…

शेष अगले भाग में
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
सोनू और सुगना धीरे धीरे नजदीक आ रहे हैं बस एक डोर सुगना को बांधे हुऐ हैं अब देखते हैं दिवाली क्या लेकर आती है नियति को कोन सा खेल खेलना है क्या सोनू सुगना एक होते हैं क्या सोनी विकाश को अपने घर लेकर आएगी विकाश की इच्छा पूरी होगी देखते हैं अगले अपडेट में
 

Kalpana singh

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भाग 99
दिन के उजाले में सुगना अपनी वासनाओं को काबू कर एक सभ्य और सुसंस्कृत बड़ी बहन की तरह अपने घर की जिम्मेदारियां अब भी उठा रही थी…उसे पता था रहीम और फातिमा की कहानी एक कुत्सित मन द्वारा उपजी वासना के अलावा और कुछ भी नहीं है….हकीकत इससे इतर थी…सुगना को अपने भाई के लिए एक सुंदर दुल्हन खोजनी थी जिसमें सुगना कोई कोताही नहीं बरतना चाहती थी…

दीपावली आने वाली थी…सुगना अपने भाई सोनू और सोनी अपने प्रेमी विकास का का इंतजार करने लगी…

इंतजार सबको था सरयू सिंह को भी , सोनू की मां पद्मा को भी और नियति को भी…

अब आगे…



दीपावली पर सलेमपुर में एक साथ मिलने का आनंद अनूठा होने वाला था सरयू सिंह और सुगना का परिवार बेहद प्रसन्न था…सोनू की मां पदमा एक पखवाड़े पहले ही सलेमपुर आ गई और साथ-साथ मोनी को भी ले आई …मोनी का गदराया बदन सलेमपुर के लड़कों की नजरों से बचना मुश्किल था। सरयू सिंह के घर पर लड़कों का आना जाना बढ़ गया… यद्यपि उस दौरान सरयू सिंह के घर-घर में ढेरों तैयारियां हो रही थी ..इसलिए उन लड़कों के आने जाने का कोई अन्य अर्थ नहीं निकाला जा सकता था… परंतु उनमें से कई सारे लड़के ऐसे थे जो सिर्फ और सिर्फ मोनी की गदराई काया के दर्शन करने आया करते थे।

मोनी तो जैसे अपनी मदमस्त काया की अहमियत को भूल कर भूलकर बिंदास घर से बाहर हंसती खेलती रहती। कभी बाहर खूंटे से बंधे मवेशियों को खाना खिलाती कभी उनकी पीठ सहला कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करती और मनचले लड़के उसकी हर अदा में कामुकता खोज अपना लंड खड़ा किए रहते…

मोनी खुद में लीन रहती। न उधव से लेना ना न माधव को देना वाली कहावत उस पर चरितार्थ होती..


उसे तो न जाने इस दुनिया से क्या चाहिए था…जब जब वह वैरागीयों को देखती उसे उनमें अपना भविष्य दिखाई पड़ता परंतु जब-जब मोनी स्त्रियों को सजते धजते और श्रृंगार करते हुए देखती उसे बार-बार यह व्यर्थ ही लगता। उसे बाहरी सुंदरता से ज्यादा मन की सुंदरता पसंद आती ..

शादी विवाह जैसे बड़े आयोजनों पर खर्च होने वाला पैसा उसे व्यर्थ लगता आज भी वह जिस कार्यक्रम में सम्मिलित होने आई थी उसमें भी सरयू सिंह पैसा पानी की तरह बहा रहे थे मोनी को यह कतई रास नहीं आ रहा था परंतु वह अपने परिवार के साथ सलेमपुर आ गई थी..

कजरी बार बार मोनी के विवाह का जिक्र करती। मोनी को विवाह कतई पसंद न था धीरे-धीरे उसके मन में विवाह को लेकर कई आशंकाएं आ चुकी थी.. और न जाने कब वह मन ही मन विवाह के सख्त खिलाफ हो गई थी…शायद इसमें सुगना और रतन बिखरे हुए रिश्ते ने भी भूमिका अदा की थी…

ग्रामीण किशोरियों और युवतियों मैं विवाह का आकर्षण यौन सुख को प्राप्त करने के लिए ही होता है वरना वह तो अपने पिता के घर में भी उसी तरह आनंदित और प्रफुल्लित घूमती रहती है…और इसी सुख के लिए वह अपने घर का हंसता खेलता आंगन छोड़ अपनी ससुराल में आ जाती हैं…

मोनी भी अनोखी थी और उसके विचार भी। जाने नियति ने उसके भाग्य में क्या लिखा था…

उधर बनारस में सुगना और लाली अपने अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीद कर पूरी तरह तैयार थीं। दीपावली सलेमपुर में मनाने के नाम से सभी के मन में हर्ष व्याप्त था।

गांव चलने में अब कुछ ही दिन शेष रह गए थे कल सोनू बनारस आने वाला था सुगना और लाली दोनों सोनू का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। लाली उबटन लगा रही थी…अपने सोनू को रिझाने के लिए वो कोई कसर न छोड़ती…सुगना ने उसे छेड़ा…

चिकना ने आपन देह काल आई सोनूआ त रगडी….

लाली ने सुगना से कहा


आव तनी मदद कर द

सुगना लाली के पास गई और लाली ने जान बूझ कर सुगना के हाथों पर उबटन लगा दिया…और उसे भी उस प्रक्रिया में शामिल कर लिया..

औरतों में सुंदर दिखने की चाह स्वाभाविक होती है…सुगना भी उससे अलग न थी….सुगना की सुंदर काया उबटन के काले पीले आवरण में आकर बदरंग हो गई…परंतु कुछ ही देर बाद उबटन का आवरण हटाने के बाद सुगना की कुंदन काया चमक उठी….

नियति सुगना को अपने भाई के लिए अनजाने में ही तैयार होते देख मुस्कुरा रही थी…

सोनू बनारस आ चुका था तीनों बहनों के चेहरे पर अपने अपने भाव के अनुसार खुशियां थी. सुगना हमेशा की तरह सबसे ज्यादा खुश थी न जाने उसे सोनू को देखकर क्या हो जाता ? कभी जब वह उसे अपने छोटे भाई के रूप में देखती और उसकी सफलता पर झूम उठती ।

यदि उसके परिवार में में कोई राजमुकुट होता तो वह अपने छोटे भाई के सर पर रख कर उसे घंटों निहार रही होती। और जब कभी वह सोनू के कामुक रूप को देखती उसका बदन सिहर उठता… शरीर में एक अजब सी उत्तेजना होती और उसके गाल सुर्ख हो जाते वह एक नई नवेली वधू की तरह शर्माती और उससे दूर हो जाती परंतु कभी मुड़ मुड़कर कभी ओट लेकर उसे अवश्य देखती….

सोनू ने अपनी तीनो बहनों के लिए लहंगा चोली लाया था….सब कपड़ेएक से बढ़ कर एक थे …और सुगना का कपड़ा तो उसके जैसा ही खूबसूरत था…तीनों बहनों ने तय किया को वो दीपावली के दिन वही लहंगा चोली पहनेंगी। सुगना बेहद खुश थी…

दोपहर में सोनू आराम कर रहा था और सुगना एवं लाली आपस में बैठे बात कर रही थी। तभी सोनू ने सोनी को पुकारा जो सूरज के साथ कमरे में थी। वह क्या कर रही थी यह बात भली-भांति पाठक समझ सकते हैं…. छोटा सूरज खिलखिला रहा था और अपनी मौसी के सर पर हाथ फेर रहा था..

सोनू ने दोबारा आवाज लगाई और सोनी को अचानक ही सूरज को उसी अवस्था में छोड़कर सोनू के पास जाना पड़ा ….सोनू का दोबारा आवाज देना यह साबित कर रहा था कि निश्चित ही सोनू ने सोनी को किसी आवश्यक कार्य के लिए ही बुलाया था उसने सूरज से उसी तरह खड़े रहने के लिए कहा और .. उठकर सोनू के पास आ गई ..

इधर सुगना सोनी को बुलाने के लिए उसके कमरे में आ गई और उसके बिस्तर पर खड़े सूरज को देख कर सारा माजरा समझ गई। सूरज का निक्कर नीचे था और उसकी छोटी सी नून्नी फूल कर कुप्पा हो गई थी… सुगना उसके पास आई और उसे अपने सीने से हटाते हुए उसे प्यार करने लगी उसने उसने निक्कर में उसकी फूली हुई नून्नी को बंद करने की कोशिश की परंतु सूरज तैयार न था वह अब भी अपनी मौसी का इंतजार कर रहा था..

सुगना ने उसे सीने से लगाकर खुस करने की कोशिश की परंतु वह न माना वह सुगना को दूर धकेलता रहा और न जाने कब सुगना का मंगलसूत्र सूरज के हाथों में आ गया… सूरज के छोटे छोटे हाथों में न जाने कहां से इतनी शक्ति आई कि उसने सुगना का मंगलसूत्र पर कुछ ज्यादा ही जोर लगा दिया और सुगना का मंगलसूत्र टूट गया…. सुगना के अपने ही पुत्र ने अपनी माता के गले से मंगलसूत्र छीन लिया…

सुगना दुखी हो गई परंतु उसने फिर भी सूरज को कुछ भी ना कहा… अब तक सूरज का गुस्सा भी शांत हो चुका था समय के साथ सूरज की फूली हुई नून्नी अपना आकार घटा रही थी….

सोनी वापस आ चुकी थी और सुगना उसे एक बार फिर गुस्से से देख रही थी। सुगना ने एक बार फिर सोनी को हिदायत दी और बोली

"सोनी ई आदत छोड़ दे सूरज परेशान हो जाला तोर मजाक मजाक में कभी बात बिगड़ जाए आज देख चिड़चिड़ा के हमार मंगलसूत्र खींचकर तोड़ देले बा"

अब तक सोनू और लाली भी कमरे में आ चुके थे.. मंगलसूत्र में जड़े काले मनके नीचे फर्श पर बिखर चुके थे। रतन के द्वारा लाया गया यह मंगलसूत्र सुगना के गले से जुदा हो चुका था… जिस प्रकार रतन सुगना की जिंदगी से दूर हो गया था उसी प्रकार उसका दिया मंगलसूत्र भी आज बिखर गया था…. मनकों को वापस इकट्ठा कर पाना असंभव था… मंगलसूत्र में जड़ा हुआ सोना.. अब भी मूल्यवान था सोनू ने उसे अपने हाथों में लेते हुए कहा…

"जायदे दीदी हम इकरा के बनवा देब"

सुगना को वैसे भी उस मंगलसूत्र से कोई सरोकार न था उसने उसे उठाकर सोनू को दे दिया और इस अकस्मात धन हानि से अपना ध्यान हटाने के लिए चाय बनाने रसोई में चली गई।

उसी शाम नगर निगम से सुगना के घर पर कोई नोटिस आया जिसमें म्युनिसिपल टैक्स से संबंधित कोई जानकारी मांगी गई थी…जिसके लिए पिछले वर्ष जमा की गई रसीद का होना आवश्यक था।

यदि कागजात संभाल कर न रखे जाएं तो उन्हें खोजना सबसे दुरूह कार्य होता है

सुगना को उस कागज की अहमियत का अंदाजा न था और उसे यह कतई ध्यान नहीं आ रहा था कि उसने यह कागज कहां रखा पूरे घर में कागज ढूंढा जाने लगा…

कुछ ही देर में पूरा सजा धजा घर अस्त-व्यस्त हो गया नियति अपने सामने घर को फैलते देख रही थी परंतु वह संतुष्ट थी। सरयू सिंह की खून जांच की रिपोर्ट और सुगना से उनके संबंध को उजागर करने वाली पर रिपोर्ट लाल झोले में झांक सोनू का ध्यान खींच रही थी सोनू ने उछल कर अपने हाथ बढ़ाएं और उस झोले को ऊपर छज्जे से उतार लिया..

सुगना ने उस झोले को पहचान लिया और बोली

"अरे ही बाबूजी के रिपोर्ट ह ए में ना होई"


सोनू कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था उसने रिपोर्ट निकाली और उसे सुगना और सरयू सिंह के संबंधों को उजागर करने वाली रिपोर्ट दिखाई पड़ गई… सोनू की आंखें आश्चर्य से फटी रह गए उसने उस रिपोर्ट को कई बार पढ़ा अब तक उसे इस प्रकार की जांचों के बारे में जानकारी हो चुकी थी।

एसडीएम की ट्रेनिंग करते-करते उसे खून जांच के मिलान आदि के बारे में पर्याप्त ज्ञान हो चुका था उस रिपोर्ट में दी गई बात को झुठला पाना संभव न था।


सोनू का कलेजा धक-धक कर रहा था उसे इस बात का यकीन ही नहीं हो रहा था कि सुगना सरयू सिंह की पुत्री है ……

तो क्या सुगना उसकी अपनी बहन नहीं है… सोनू का कलेजा मुंह को आ रहा था… वह इस बात पर प्रसन्न हो या दुखी वह खुद भी समझ नहीं पा रहा था… सोनू ने फटाफट उस रिपोर्ट को उसी झोले में डालकर ऊपर छज्जे पर रख दिया… उसका मन व्यग्र हो चुका था वह सुनना के कमरे से बाहर निकल आया…

सुगना ने उससे बाहर जाते देखकर बोला..

" अरे सोनू सब फैला देले बाड़े… ठीक-ठाक कर के जो"

"बस थोड़ा देर में आव तनी"

सोनू घर से बाहर आ गया.. बाहर गली में टहलते हुए उसके दिमाग में बार-बार यही बात आ रही थी कि यह कैसे हो सकता…सुगना यदि सरयू सिंह की पुत्री थी तो सुगना की मां कौन है..?

हे भगवान तो क्या उसकी मां…ने सरयू सिंह से…. छी छी ऐसा नहीं हो सकता…कौन पुत्र अपनी मां के चरित्र पर सवाल उठाएगा…

सोनू बेचैन हो गया था…एक तरफ यह जान कर की सुगना उसकी अपनी सगी बहन नहीं है सोनू उसे लाली के समकक्ष रखने लगा था…और उसके मन ने इस बात को पूरी तरह स्वीकार कर लिया था। पर इस सच को मानना इतना आसान न था। उसने जब से अपना होश संभाला था सुगना उसके साथ थी…

सोनू कुछ देर बाद वापस घर गया…सुगना अब तक कमरा साफ कर चुकी थी.. सोनू ने उसकी अलमारी एक बार फिर खोली और बचपन का पुराना एल्बम बाहर निकाल कर देखने लगा..

उस दौरान फौज में होने के कारण पदमा अपने पति के साथ शहर में रहती थी…सुगना अपने मां-बाप की पहली संतान थी उन्होंने सुगना के जन्म पर कई तस्वीरें खिंचवाई थी…….सोनू को उन फोटो को देखकर यह यकीन हो गया की सुगना ने भी उसकी मां की ही कोख से जन्म लिया है… परंतु सुगना के पिता सरयू सिंह थे यह बात पचने योग्य न थी।

एक बार के लिए उसके मन में आया कि हो सकता है डॉक्टरों ने जांच रिपोर्ट में कोई गलती कर दी हो।


परंतु इसकी संभावना न थी…. हॉस्पिटल में सुगना ने ही सरयू सिंह को बचाने के लिए अपना खून दिया था यह बात रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर थी और यही बात सोनू के सारे संशय को मिटाने के लिए काफी थी… सोनू यह बात भली-भांति जान चुका था कि सुगना सरयू सिंह की ही पुत्री थी…

सोनू के मन में अचानक यह प्रश्न आया कि क्या सुगना दीदी को यह बात पता है…? उसने सुगना और सरयू सिंह के बीच संबंधों को बड़े करीब से देखा था एक बहू और ससुर के बीच जो संबंध होना चाहिए वह इस से ज्यादा कुछ और नहीं देख पाया था…


बंद कमरे के अंदर सुगना और सरयू सिंह के बीच क्या थे यह उसकी सोच से परे था। परंतु पिता और पुत्री ? यह संबंध अविश्वसनीय था। और यदि सरयू सिंह यह बात जानते थे तो उन्होंने क्यों अपनी ही पुत्री का विवाह अपने बड़े भाई के लड़के रतन से कराया था….

सोनू का दिमाग घूम रहा था उसके प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई नहीं था….अंततः उसने अपनी सुगना दीदी से ही बात करने की सोची और पूछा…

"दीदी जब सरयू चाचा बीमार पड़ल रहल तब तू उनका के खून देले रहलु नू..?

" हा …का बात बा? काहे पूछा तारे?"

" असही…" सोनू के चेहरे को देखकर सुगना ने अंदाजा लगा लिया कि वह किसी दुविधा में है उसने स्वयं कहा

"डॉक्टर पुछत रहले सो कि परिवार के आदमी बा? खून देवे के बा…हम रहनी एही से चल गईनी…रिपोर्ट में कुछ गडबड बा का..?"

सुगना ने जिस तरह बिंदास होकर प्रश्न पूछा था सोनू ने यह अंदाज कर लिया कि शायद सुगना को यह नहीं पता की सरयू सिंह उसके पिता है…वैसे भी अभी सुगना ने अंग्रेजी पढ़ना नहीं सीखा था और वैसे भी इन पचड़ों में ज्यादा पढ़ती भी न थी…

यह सच भी था यदि सुगना को यह बात पता होती कि सरयू सिंह उसके पिता है तो यह जानकर घुट घुट कर मर गई होती अपने ही पिता के साथ एक नहीं अनवरत संभोग करने का पाप वह सह नहीं पाती…और तों और वह इस बात को उजागर करने वाली रिपोर्ट को इस तरह सबकी पहुंच में कतई न रखती…

सोनू मन ही मन यह बात सोचने लगा कि क्यों ना वह यह बात सुगना दीदी को बता दे? पर क्यों? इससे क्या फर्क पड़ता था की सुगना सरयू सिंह की पुत्री है? सुगना और सोनू का व्यवहार और संबंध एक आदर्श भाई बहन जैसे ही रहे थे फिर इस नए संबंध से क्या फर्क पड़ना था? वैसे भी सोनू का सुगना के प्रति यह वासना जनित प्यार एक तरफा ही था…सुगना सोनू के प्रति आसक्त अवश्य थी परंतु मर्यादा के दायरे में….

हां यह बात अलग थी कि अब सोनू के दिमाग में सुगना खुलकर आने लगी थी। अपनी बहन से ही व्यभिचार के विचार से उसके मन में उठ रही आत्मग्लानि अब लगभग खत्म हो रही थी … सुगना और सोनू की मां एक थी परंतु पिता अलग-अलग…. सोनू ने सुगना को सरयू सिंह की संतान मान लिया। शायद उसके दिमाग में यह निष्कर्ष उस समय के पितृ प्रधान समाज की व्यवस्था के कारण निकाला था।

वैसे भी मनुष्य परिस्थितियों और घटनाओं को अपने विवेक से देखता है, सोचता है और उनका निष्कर्ष अपने अनुकूल ही निकलता है …

आज सोनू की शाम पूरे उतार-चढ़ाव में बीती। उसके दिमाग ने संबंधों का इतना आकलन आज से पहले कभी नहीं किया था। अपनी मां और सरयू सिंह के संबंधों को जानकर वह आश्चर्यचकित भी था और अब थोड़ा प्रसन्न भी था…सुगना दीदी उसकी अपनी बहन नहीं है… यह बात उसके दिमाग में पूरी तरह आत्मसात कर ली थी…


और अब सुगना के प्रति उसकी भावनाएं तेजी से बदल रही थी। ख्वाबों की मलिका अचानक उसे अपनी जद में दिखाई पड़ने लगी वह सुगना को छूना चाहता था उसकी कोमल त्वचा को महसूस करना चाहता था और अपने ख्वाबों से निकल कर उसे हकीकत का जामा पहनाना चाहता था…

धीरे-धीरे मन का ऊहा फोह कम हुआ और रात्रि में लाली की बाहों में आकर सोनू मदहोश हो गया


उबटन ने लाली के त्वचा को और भी चिकना कर दिया था। नंगी लाली को अपने आगोश में लेने के बाद सोनू एक बार फिर अपनी सुगना दीदी के बारे में सोचने लगा। धीरे धीरे लाली सुगना बन गई और सोनू ने अपनी सारी कसर लाली पर निकाल ली… लाली के होठों कानो और गालो को चूमते हुए सोनू ने आज उसे बेहद प्यार से चोदने लगा ..…. सोनू का यह रूप लाली को कई दिनों बाद देखने मिला था…. अन्यथा पिछले कई मुलाकातों में अब वह उसे एक पति पत्नी की भांति चोदता था जिसमें प्यार कम और वासना शांति ज्यादा हुआ करती थी..

वासना शांति के उपरांत सोनू ने लाली से ढेर सारी बातें की और सरयू सिंह के बारे में और भी जानने की कोशिश की।


लाली सरयू सिंह के पड़ोसी और दोस्त हरिया की बेटी थी। बातों ही बातों में सोनू को यह पता चल चुका था कि सरयू सिंह की ननिहाल और उसकी मां का मायका एक ही गांव में है और घर भी अगल-बगल हैं…।

आज के समाज में स्त्री और पुरुष स्वभाविक रिश्ते में भाई बहन ही होते हैं परंतु उनमें से कोई एक इस रिश्ते को झुठला कर पति का रूप ले लेता है…

सरयू सिंह और सोनू की मां पदमा भी स्वाभाविक रिश्ते में भाई बहन ही थे…सोनू की निगाहों में न तो सरयू सिंह व्यभिचारी थे और ना उसकी मां पदमा परंतु यह संबंध बना तो अवश्य था… पर कैसे.? यह समझ पाना बेहद कठिन था ।

परंतु जब जब वो अपने और लाली के संबंधों के बारे में सोचता वह अपनी तुलना सरयू सिंह से करने लगता। आखिर लाली भी तो उसकी मुंह बोली बहन थी हो सकता है एक ही गांव में अगल बगल रहते सरयू सिंह और उसकी मां पदमा के बीच कभी संबंध बन गया हो परंतु विवाह के उपरांत सोनू को यह बात नहीं पच रही थी।


परंतु अब वह इस पचड़े में और नहीं पढ़ना चाहता था वह अब यह मान चुका था कि सुगना उसकी सगी बहन नहीं है शायद उसकी यह भावना इसलिए भी प्रगाढ़ हो रही थी कि अब वह सुगना को अन्य रूप में चाहने लगा था….

काश उसे इस बात इल्म होता कि उस दिन जब सरयू सिंह ने पदमा को तालाब में डूबने से बचाया था और उसके मदमस्त बदन के स्पर्श का अनुभव किया था.. उनकी उत्तेजना जाग उठी थी और उनके इस स्पर्श ने पदमा के मन में भी हलचल पैदा कर दी थी…. शाम ढलते ढलते पदमा उनकी बाहों में आ चुकी थी… और उन्होंने पदमा का हलवा कसकर खाया था और अपने दिव्य वीर्य का कुछ अंश उसके गर्भ में छोड़ आए थे जो अब सुगना के रूप में उनकी पुत्रवधू बनकर उनका ही आगन रोशन कर रही थी।

समय हर चीज का वेग कम कर देता है क्या सुख क्या दुख क्या जिज्ञासा क्या आशा क्या निराशा…

धीरे-धीरे सोनू ने इस सच को अपना लिया।


अगली सुबह सोनू ने अपनी बड़ी बहन सुगना को देखने का नजरिया बदल लिया उसकी आत्मग्लानि लगभग खत्म हो चुकी थी अब सिर्फ और सिर्फ उसे सुगना को अपने नजदीक लाना था पर कैसे यह कार्य आसमान से तारे तोड़ कर ला ने जैसा था….. परंतु ट्रेन की घटना ने सोनू के मन में उम्मीद कायम रखी थी। सोनू सुगना के और करीब जाकर उसके मन में उठ रही भावनाओं का आकलन करना चाहता था क्या सुगना दीदी की भावनाएं भी लाली दीदी के जैसे होंगी क्या अतृप्त सुगना को अपने तृप्ति के लिए अपने ही भाई से संबंध स्थापित करने में परहेज नहीं होगा..

सोनू के मन में एक बार फिर आया कि वह सुगना को यह बात बता दे कि वह उसकी सगी बहन नहीं है परंतु उसने अपनी मां को व्यभिचारी साबित करना और सुगना को यह बताना की वह अपने ही पिता के घर में उनकी पुत्र वधू के रूप में रह रही है, सोनू को यह बात रास न आई।

सोनू ने मन ही मन यह फैसला कर लिया कि वह यह बात सुगना को अभी नहीं बताएगा परंतु यदि आवश्यकता पड़ी तो वह सुगना को बिना उसके पिता का नाम लिए यह अवश्य बता देगा कि वह उसकी सगी बहन नहीं है और शायद उसके मन में भी उठ रही आत्मग्लानि को कम कर देगा…

सोनू अपने मन में कई तरीके के विचार लाता कभी उन्हें हकीकत का जामा पहनाने की कोशिश करता परंतु उसे यह सहज ना लगता फिर वह अपने विचार बदलता नए तरीके की परिस्थितियां बनाता और मन ही मन उसमे विफल होता, सुगना को अपनी बाहों में भरने की कल्पना मात्र से वह सिहर उठता पर यह क्या इतना आसान था? चंद कामुक मुलाकातों को छोड़ दिया जाए तो… जिस बड़ी बहन को वह पिछले कई वर्षों से आदर और सम्मान देता आया था उसे अपने बिस्तर पर लाना यह निश्चित ही कठिन था…पर सोनू की कामुकता ने रिश्तो पर घुन की तरह कार्य करना शुरू कर दिया था ।


दोपहर बाद सभी को सलेमपुर के लिए निकलना था एसडीएम साहब ने 2 गाड़ियां बुलवा ली थी पद का प्रभाव दिखाई पड़ने लगा था। सुगना और लाली तैयारियों में जुटे हुए थे और सोनू बाजार घूम रहा था दोपहर के वक्त सुगना स्नान कर अपने कपड़े पहन चुकी थी और अपने गोरे चेहरे पर बोरोलीन लगा रही थी उसका सूना गला श्रृंगारदान के शीशे में दिखाई पड़ रहा था…शायद विवाह के बाद यह पहला अवसर था जब उसका गला सूना था। उसे अपने किशोरावस्था के दिन याद आ रहे थे परंतु भरी-भरी चुचियों को देखकर वह मुस्कुराने लगी अब वह एक किशोरी ना होकर पूर्ण युवती थी..

उसी समय सोनू ने पीछे से आकर उसकी पलकें अपनी हथेलियों से बंद कर दी और बोला

"सुगना दीदी आंख मत खोलिह"

"सुगना ने मचलते हुए कहा अरे छोड़ पहले… ना खोलब"

सोनू का लंड अब पेंट में अपना तनाव बढ़ाने लगा था परंतु सोनू ने अपनी कमर को सुगना की पीठ से दूर रखा हुआ था वह कोई असहज स्थिति पैदा करने के मूड में नहीं था..

"सोनू ने फिर कहा दीदी पक्का मत खोलिह"

सुगना स्वयं सोनू के स्पर्श से अब असहज महसूस कर रही थी उसके कंधे पर सोनू की गर्म सांसे टकरा रही थी और सुगना अब धीरे-धीरे असहज महसूस कर रही थी सुगना ने कहा

" ठीक बा ना खोलब" और सचमुच सुगना ने अपनी आंखें बंद ली जिसे सोनू की उन्होंने बखूबी महसूस किया…

सोनू ने अपनी जेब से मलमल के कपड़े में रखे नए मंगलसूत्र को निकाला और सुगना के गोरे और चमक दार गले पर पहनाने लगा मंगलसूत्र का लॉकेट सुगना की चूचियों के बीच घाटी में पचुंच कर उन्हे चूमने का प्रयास करने लगा…सुगना को अब जाकर एहसास हुआ कि उसके गले में सोनू कोई लाकेट पहना रहा है..

सुगना ने अपनी आंख खोली और यह देखकर दंग रह गई कि सोनू ने उसके गले में मंगलसूत्र पहना दिया है…

इससे पहले की सुगना कुछ बोल पाती…लाली वहां आ गई…और बोली..

"अरे वाह भाई होखे त अइसन दीदी के मंगल सूत्र काल्हे टुटल और आज नया आ गइल…"

सुगना कुछ बोल ना पाई…अपने ही भाई के हाथों मंगलसुत्र पहनकर वह अजीब सा महसूस कर रही थी…

सोनू सारी पढ़ाई पढ़ने के बावजूद यह बात नहीं समझ पाया की बड़ी बहन के गले में मंगलसूत्र डालना किस ओर इशारा कर रहा था ..

किताबों में पढ़ा गया ज्ञान व्यवहारिकता से अलग होता है…

सोनू ने सुगना के लिए टूटे हुए मंगलसूत्र को बनवाने की बजाय नया मंगलसूत्र खरीदना उचित समझा था वह अपनी बड़ी बहन सुगना को प्रसन्न करना चाहता था उसे इस बात का इल्म न था कि किसी युवा स्त्री को मंगलसूत्र पहनाने का क्या अर्थ हो सकता था परंतु अब जो होना था वह हो चुका था …

लाली ने आकर भाई-बहन के बीच उत्पन्न हुई असहजता को खत्म कर दिया था और कुछ ही देर मे सब कुछ सामान्य हो गया परंतु सुगना के मन में एक कसक आ चुकी थी वह उस खूबसूरत मंगलसूत्र को निकालना भी नहीं चाहती थी और उसे अपने ही भाई के हाथों उसका दिया मंगलसूत्र पहनने में असहजता भी महसूस हो रही थी…उधर सोनू प्रसन्न था…पर नियति ने उसकी मेहनत का फल देने के लिए बिसात बिछा दी थी..

सारी तैयारियां हो चुकी थी पर वहां आने में अभी विलंब था। लाली और सुगना आपस में बैठे बातें कर रहे थे। और बाहर हाल में बच्चों के साथ खेल रहा सोनू अपने कान अंदर सुगना और लाली की बात सुनने के लिए लगाए हुआ था.

" सांचौ कितना सुंदर मंगलसूत्र ले आईबा सोनूवा काश कि हमरा के पहनावले रहित सेवा करी हम और मलाई तोरा के"

सुगना ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए कहा

ए लाली बिल्कुल बकबक कर बंद कर,। तोरा हर घड़ी ऐही सब सब बात करे में मन लागेला "

"अरे हम कौन गलत कहत बानी"

"उ तोरा के मंगलसूत्र पहना दे ले बा अब काहे के भाई बहन₹

"लाली ते पगला गइल बाड़े…तोरा रिश्ता के कोनो मोल नाइक सोनू के रही बिगाडले बाड़े…"

" अरे वाह छोट भाई के खेला खेलल देखेलू तब ना सोचे लू…."

सुगना को यह उम्मीद न थी कि लाली इस प्रकार से खुलकर बोल देगी…सुगना शांत हो गई

लाली ने सुगना की कोमल हथेलिया अपने हाथों में लेकर उसे सह लाते हुए कहा

"ए सुगना तोर मन ना करे ला का"

सुगना अपने मन की अवस्था कतई बताना नहीं चाहती थी। सोनू उसके ख्वाबों खयालों में आकर पिछले कई दिनों से उसे स्खलित करता आ रहा था …

"अच्छा सोनुआ तोर भाई ना होेखित तब?"

"काश कि तोर बात सच होखित"

सुगना में बात समाप्त करने के लिए यह बात कह तो दी परंतु उसके लिए यह शब्द सोनू के कानों तक पहुंच चुके थे और उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा…


सुगना की बात में छुपा हुआ सार सोनू अपने मन मुताबिक समझ चुका था…उसे यह आभास हो रहा था की सुगना के मन में भी उसको लेकर कामूक भावनाएं और ख्याल हैं परंतु वह झूठी मर्यादा के अधीन होकर इस प्रकार के संबंधों से बच रहीं है…नजरअंदाज कर रही है…. सोनू अपने मन में आगे की रणनीति बनाने लगा सुगना को पाना अब उसका लक्ष्य बन चुका था…

शेष अगले भाग में...
Nice store n update....
 

Alex Xender

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Well Done Clapping GIF
 

sunoanuj

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Bahut hi behtarin update.. niyati ka ek naya khel ab shuru ho gaya…
 
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