भाग 99
दिन के उजाले में सुगना अपनी वासनाओं को काबू कर एक सभ्य और सुसंस्कृत बड़ी बहन की तरह अपने घर की जिम्मेदारियां अब भी उठा रही थी…उसे पता था रहीम और फातिमा की कहानी एक कुत्सित मन द्वारा उपजी वासना के अलावा और कुछ भी नहीं है….हकीकत इससे इतर थी…सुगना को अपने भाई के लिए एक सुंदर दुल्हन खोजनी थी जिसमें सुगना कोई कोताही नहीं बरतना चाहती थी…
दीपावली आने वाली थी…सुगना अपने भाई सोनू और सोनी अपने प्रेमी विकास का का इंतजार करने लगी…
इंतजार सबको था सरयू सिंह को भी , सोनू की मां पद्मा को भी और नियति को भी…
अब आगे…
दीपावली पर सलेमपुर में एक साथ मिलने का आनंद अनूठा होने वाला था सरयू सिंह और सुगना का परिवार बेहद प्रसन्न था…सोनू की मां पदमा एक पखवाड़े पहले ही सलेमपुर आ गई और साथ-साथ मोनी को भी ले आई …मोनी का गदराया बदन सलेमपुर के लड़कों की नजरों से बचना मुश्किल था। सरयू सिंह के घर पर लड़कों का आना जाना बढ़ गया… यद्यपि उस दौरान सरयू सिंह के घर-घर में ढेरों तैयारियां हो रही थी ..इसलिए उन लड़कों के आने जाने का कोई अन्य अर्थ नहीं निकाला जा सकता था… परंतु उनमें से कई सारे लड़के ऐसे थे जो सिर्फ और सिर्फ मोनी की गदराई काया के दर्शन करने आया करते थे।
मोनी तो जैसे अपनी मदमस्त काया की अहमियत को भूल कर भूलकर बिंदास घर से बाहर हंसती खेलती रहती। कभी बाहर खूंटे से बंधे मवेशियों को खाना खिलाती कभी उनकी पीठ सहला कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करती और मनचले लड़के उसकी हर अदा में कामुकता खोज अपना लंड खड़ा किए रहते…
मोनी खुद में लीन रहती। न उधव से लेना ना न माधव को देना वाली कहावत उस पर चरितार्थ होती..
उसे तो न जाने इस दुनिया से क्या चाहिए था…जब जब वह वैरागीयों को देखती उसे उनमें अपना भविष्य दिखाई पड़ता परंतु जब-जब मोनी स्त्रियों को सजते धजते और श्रृंगार करते हुए देखती उसे बार-बार यह व्यर्थ ही लगता। उसे बाहरी सुंदरता से ज्यादा मन की सुंदरता पसंद आती ..
शादी विवाह जैसे बड़े आयोजनों पर खर्च होने वाला पैसा उसे व्यर्थ लगता आज भी वह जिस कार्यक्रम में सम्मिलित होने आई थी उसमें भी सरयू सिंह पैसा पानी की तरह बहा रहे थे मोनी को यह कतई रास नहीं आ रहा था परंतु वह अपने परिवार के साथ सलेमपुर आ गई थी..
कजरी बार बार मोनी के विवाह का जिक्र करती। मोनी को विवाह कतई पसंद न था धीरे-धीरे उसके मन में विवाह को लेकर कई आशंकाएं आ चुकी थी.. और न जाने कब वह मन ही मन विवाह के सख्त खिलाफ हो गई थी…शायद इसमें सुगना और रतन बिखरे हुए रिश्ते ने भी भूमिका अदा की थी…
ग्रामीण किशोरियों और युवतियों मैं विवाह का आकर्षण यौन सुख को प्राप्त करने के लिए ही होता है वरना वह तो अपने पिता के घर में भी उसी तरह आनंदित और प्रफुल्लित घूमती रहती है…और इसी सुख के लिए वह अपने घर का हंसता खेलता आंगन छोड़ अपनी ससुराल में आ जाती हैं…
मोनी भी अनोखी थी और उसके विचार भी। जाने नियति ने उसके भाग्य में क्या लिखा था…
उधर बनारस में सुगना और लाली अपने अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीद कर पूरी तरह तैयार थीं। दीपावली सलेमपुर में मनाने के नाम से सभी के मन में हर्ष व्याप्त था।
गांव चलने में अब कुछ ही दिन शेष रह गए थे कल सोनू बनारस आने वाला था सुगना और लाली दोनों सोनू का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। लाली उबटन लगा रही थी…अपने सोनू को रिझाने के लिए वो कोई कसर न छोड़ती…सुगना ने उसे छेड़ा…
चिकना ने आपन देह काल आई सोनूआ त रगडी….
लाली ने सुगना से कहा
आव तनी मदद कर द
सुगना लाली के पास गई और लाली ने जान बूझ कर सुगना के हाथों पर उबटन लगा दिया…और उसे भी उस प्रक्रिया में शामिल कर लिया..
औरतों में सुंदर दिखने की चाह स्वाभाविक होती है…सुगना भी उससे अलग न थी….सुगना की सुंदर काया उबटन के काले पीले आवरण में आकर बदरंग हो गई…परंतु कुछ ही देर बाद उबटन का आवरण हटाने के बाद सुगना की कुंदन काया चमक उठी….
नियति सुगना को अपने भाई के लिए अनजाने में ही तैयार होते देख मुस्कुरा रही थी…
सोनू बनारस आ चुका था तीनों बहनों के चेहरे पर अपने अपने भाव के अनुसार खुशियां थी. सुगना हमेशा की तरह सबसे ज्यादा खुश थी न जाने उसे सोनू को देखकर क्या हो जाता ? कभी जब वह उसे अपने छोटे भाई के रूप में देखती और उसकी सफलता पर झूम उठती ।
यदि उसके परिवार में में कोई राजमुकुट होता तो वह अपने छोटे भाई के सर पर रख कर उसे घंटों निहार रही होती। और जब कभी वह सोनू के कामुक रूप को देखती उसका बदन सिहर उठता… शरीर में एक अजब सी उत्तेजना होती और उसके गाल सुर्ख हो जाते वह एक नई नवेली वधू की तरह शर्माती और उससे दूर हो जाती परंतु कभी मुड़ मुड़कर कभी ओट लेकर उसे अवश्य देखती….
सोनू ने अपनी तीनो बहनों के लिए लहंगा चोली लाया था….सब कपड़ेएक से बढ़ कर एक थे …और सुगना का कपड़ा तो उसके जैसा ही खूबसूरत था…तीनों बहनों ने तय किया को वो दीपावली के दिन वही लहंगा चोली पहनेंगी। सुगना बेहद खुश थी…
दोपहर में सोनू आराम कर रहा था और सुगना एवं लाली आपस में बैठे बात कर रही थी। तभी सोनू ने सोनी को पुकारा जो सूरज के साथ कमरे में थी। वह क्या कर रही थी यह बात भली-भांति पाठक समझ सकते हैं…. छोटा सूरज खिलखिला रहा था और अपनी मौसी के सर पर हाथ फेर रहा था..
सोनू ने दोबारा आवाज लगाई और सोनी को अचानक ही सूरज को उसी अवस्था में छोड़कर सोनू के पास जाना पड़ा ….सोनू का दोबारा आवाज देना यह साबित कर रहा था कि निश्चित ही सोनू ने सोनी को किसी आवश्यक कार्य के लिए ही बुलाया था उसने सूरज से उसी तरह खड़े रहने के लिए कहा और .. उठकर सोनू के पास आ गई ..
इधर सुगना सोनी को बुलाने के लिए उसके कमरे में आ गई और उसके बिस्तर पर खड़े सूरज को देख कर सारा माजरा समझ गई। सूरज का निक्कर नीचे था और उसकी नून्नी फूल कर कुप्पा हो गई थी… सुगना उसके पास आई और उसे अपने सीने से हटाते हुए उसे प्यार करने लगी उसने उसने निक्कर में उसकी फूली हुई नून्नी को बंद करने की कोशिश की परंतु सूरज तैयार न था वह अब भी अपनी मौसी का इंतजार कर रहा था..
सुगना ने उसे सीने से लगाकर खुस करने की कोशिश की परंतु वह न माना वह सुगना को दूर धकेलता रहा और न जाने कब सुगना का मंगलसूत्र सूरज के हाथों में आ गया… सूरज के छोटे छोटे हाथों में न जाने कहां से इतनी शक्ति आई कि उसने सुगना का मंगलसूत्र पर कुछ ज्यादा ही जोर लगा दिया और सुगना का मंगलसूत्र टूट गया…. सुगना के अपने ही पुत्र ने अपनी माता के गले से मंगलसूत्र छीन लिया…
सुगना दुखी हो गई परंतु उसने फिर भी सूरज को कुछ भी ना कहा… अब तक सूरज का गुस्सा भी शांत हो चुका था समय के साथ सूरज की फूली हुई नून्नी अपना आकार घटा रही थी….
सोनी वापस आ चुकी थी और सुगना उसे एक बार फिर गुस्से से देख रही थी। सुगना ने एक बार फिर सोनी को हिदायत दी और बोली
"सोनी ई आदत छोड़ दे सूरज परेशान हो जाला तोर मजाक मजाक में कभी बात बिगड़ जाए आज देख चिड़चिड़ा के हमार मंगलसूत्र खींचकर तोड़ देले बा"
अब तक सोनू और लाली भी कमरे में आ चुके थे.. मंगलसूत्र में जड़े काले मनके नीचे फर्श पर बिखर चुके थे। रतन के द्वारा लाया गया यह मंगलसूत्र सुगना के गले से जुदा हो चुका था… जिस प्रकार रतन सुगना की जिंदगी से दूर हो गया था उसी प्रकार उसका दिया मंगलसूत्र भी आज बिखर गया था…. मनकों को वापस इकट्ठा कर पाना असंभव था… मंगलसूत्र में जड़ा हुआ सोना.. अब भी मूल्यवान था सोनू ने उसे अपने हाथों में लेते हुए कहा…
"जायदे दीदी हम इकरा के बनवा देब"
सुगना को वैसे भी उस मंगलसूत्र से कोई सरोकार न था उसने उसे उठाकर सोनू को दे दिया और इस अकस्मात धन हानि से अपना ध्यान हटाने के लिए चाय बनाने रसोई में चली गई।
उसी शाम नगर निगम से सुगना के घर पर कोई नोटिस आया जिसमें म्युनिसिपल टैक्स से संबंधित कोई जानकारी मांगी गई थी…जिसके लिए पिछले वर्ष जमा की गई रसीद का होना आवश्यक था।
यदि कागजात संभाल कर न रखे जाएं तो उन्हें खोजना सबसे दुरूह कार्य होता है
सुगना को उस कागज की अहमियत का अंदाजा न था और उसे यह कतई ध्यान नहीं आ रहा था कि उसने यह कागज कहां रखा पूरे घर में कागज ढूंढा जाने लगा…
कुछ ही देर में पूरा सजा धजा घर अस्त-व्यस्त हो गया नियति अपने सामने घर को फैलते देख रही थी परंतु वह संतुष्ट थी। सरयू सिंह की खून जांच की रिपोर्ट और सुगना से उनके संबंध को उजागर करने वाली पर रिपोर्ट लाल झोले में झांक सोनू का ध्यान खींच रही थी सोनू ने उछल कर अपने हाथ बढ़ाएं और उस झोले को ऊपर छज्जे से उतार लिया..
सुगना ने उस झोले को पहचान लिया और बोली
"अरे ही बाबूजी के रिपोर्ट ह ए में ना होई"
सोनू कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था उसने रिपोर्ट निकाली और उसे सुगना और सरयू सिंह के संबंधों को उजागर करने वाली रिपोर्ट दिखाई पड़ गई… सोनू की आंखें आश्चर्य से फटी रह गए उसने उस रिपोर्ट को कई बार पढ़ा अब तक उसे इस प्रकार की जांचों के बारे में जानकारी हो चुकी थी।
एसडीएम की ट्रेनिंग करते-करते उसे खून जांच के मिलान आदि के बारे में पर्याप्त ज्ञान हो चुका था उस रिपोर्ट में दी गई बात को झुठला पाना संभव न था।
सोनू का कलेजा धक-धक कर रहा था उसे इस बात का यकीन ही नहीं हो रहा था कि सुगना सरयू सिंह की पुत्री है ……
तो क्या सुगना उसकी अपनी बहन नहीं है… सोनू का कलेजा मुंह को आ रहा था… वह इस बात पर प्रसन्न हो या दुखी वह खुद भी समझ नहीं पा रहा था… सोनू ने फटाफट उस रिपोर्ट को उसी झोले में डालकर ऊपर छज्जे पर रख दिया… उसका मन व्यग्र हो चुका था वह सुनना के कमरे से बाहर निकल आया…
सुगना ने उससे बाहर जाते देखकर बोला..
" अरे सोनू सब फैला देले बाड़े… ठीक-ठाक कर के जो"
"बस थोड़ा देर में आव तनी"
सोनू घर से बाहर आ गया.. बाहर गली में टहलते हुए उसके दिमाग में बार-बार यही बात आ रही थी कि यह कैसे हो सकता…सुगना यदि सरयू सिंह की पुत्री थी तो सुगना की मां कौन है..?
हे भगवान तो क्या उसकी मां…ने सरयू सिंह से…. छी छी ऐसा नहीं हो सकता…कौन पुत्र अपनी मां के चरित्र पर सवाल उठाएगा…
सोनू बेचैन हो गया था…एक तरफ यह जान कर की सुगना उसकी अपनी सगी बहन नहीं है सोनू उसे लाली के समकक्ष रखने लगा था…और उसके मन ने इस बात को पूरी तरह स्वीकार कर लिया था। पर इस सच को मानना इतना आसान न था। उसने जब से अपना होश संभाला था सुगना उसके साथ थी…
सोनू कुछ देर बाद वापस घर गया…सुगना अब तक कमरा साफ कर चुकी थी.. सोनू ने उसकी अलमारी एक बार फिर खोली और बचपन का पुराना एल्बम बाहर निकाल कर देखने लगा..
उस दौरान फौज में होने के कारण पदमा अपने पति के साथ शहर में रहती थी…सुगना अपने मां-बाप की पहली संतान थी उन्होंने सुगना के जन्म पर कई तस्वीरें खिंचवाई थी…….सोनू को उन फोटो को देखकर यह यकीन हो गया की सुगना ने भी उसकी मां की ही कोख से जन्म लिया है… परंतु सुगना के पिता सरयू सिंह थे यह बात पचने योग्य न थी।
एक बार के लिए उसके मन में आया कि हो सकता है डॉक्टरों ने जांच रिपोर्ट में कोई गलती कर दी हो।
परंतु इसकी संभावना न थी…. हॉस्पिटल में सुगना ने ही सरयू सिंह को बचाने के लिए अपना खून दिया था यह बात रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर थी और यही बात सोनू के सारे संशय को मिटाने के लिए काफी थी… सोनू यह बात भली-भांति जान चुका था कि सुगना सरयू सिंह की ही पुत्री थी…
सोनू के मन में अचानक यह प्रश्न आया कि क्या सुगना दीदी को यह बात पता है…? उसने सुगना और सरयू सिंह के बीच संबंधों को बड़े करीब से देखा था एक बहू और ससुर के बीच जो संबंध होना चाहिए वह इस से ज्यादा कुछ और नहीं देख पाया था…
बंद कमरे के अंदर सुगना और सरयू सिंह के बीच क्या थे यह उसकी सोच से परे था। परंतु पिता और पुत्री ? यह संबंध अविश्वसनीय था। और यदि सरयू सिंह यह बात जानते थे तो उन्होंने क्यों अपनी ही पुत्री का विवाह अपने बड़े भाई के लड़के रतन से कराया था….
सोनू का दिमाग घूम रहा था उसके प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई नहीं था….अंततः उसने अपनी सुगना दीदी से ही बात करने की सोची और पूछा…
"दीदी जब सरयू चाचा बीमार पड़ल रहल तब तू उनका के खून देले रहलु नू..?
" हा …का बात बा? काहे पूछा तारे?"
" असही…" सोनू के चेहरे को देखकर सुगना ने अंदाजा लगा लिया कि वह किसी दुविधा में है उसने स्वयं कहा
"डॉक्टर पुछत रहले सो कि परिवार के आदमी बा? खून देवे के बा…हम रहनी एही से चल गईनी…रिपोर्ट में कुछ गडबड बा का..?"
सुगना ने जिस तरह बिंदास होकर प्रश्न पूछा था सोनू ने यह अंदाज कर लिया कि शायद सुगना को यह नहीं पता की सरयू सिंह उसके पिता है…वैसे भी अभी सुगना ने अंग्रेजी पढ़ना नहीं सीखा था और वैसे भी इन पचड़ों में ज्यादा पढ़ती भी न थी…
यह सच भी था यदि सुगना को यह बात पता होती कि सरयू सिंह उसके पिता है तो यह जानकर घुट घुट कर मर गई होती अपने ही पिता के साथ एक नहीं अनवरत संभोग करने का पाप वह सह नहीं पाती…और तों और वह इस बात को उजागर करने वाली रिपोर्ट को इस तरह सबकी पहुंच में कतई न रखती…
सोनू मन ही मन यह बात सोचने लगा कि क्यों ना वह यह बात सुगना दीदी को बता दे? पर क्यों? इससे क्या फर्क पड़ता था की सुगना सरयू सिंह की पुत्री है? सुगना और सोनू का व्यवहार और संबंध एक आदर्श भाई बहन जैसे ही रहे थे फिर इस नए संबंध से क्या फर्क पड़ना था? वैसे भी सोनू का सुगना के प्रति यह वासना जनित प्यार एक तरफा ही था…सुगना सोनू के प्रति आसक्त अवश्य थी परंतु मर्यादा के दायरे में….
हां यह बात अलग थी कि अब सोनू के दिमाग में सुगना खुलकर आने लगी थी। अपनी बहन से ही व्यभिचार के विचार से उसके मन में उठ रही आत्मग्लानि अब लगभग खत्म हो रही थी … सुगना और सोनू की मां एक थी परंतु पिता अलग-अलग…. सोनू ने सुगना को सरयू सिंह की संतान मान लिया। शायद उसके दिमाग में यह निष्कर्ष उस समय के पितृ प्रधान समाज की व्यवस्था के कारण निकाला था।
वैसे भी मनुष्य परिस्थितियों और घटनाओं को अपने विवेक से देखता है, सोचता है और उनका निष्कर्ष अपने अनुकूल ही निकलता है …
आज सोनू की शाम पूरे उतार-चढ़ाव में बीती। उसके दिमाग ने संबंधों का इतना आकलन आज से पहले कभी नहीं किया था। अपनी मां और सरयू सिंह के संबंधों को जानकर वह आश्चर्यचकित भी था और अब थोड़ा प्रसन्न भी था…सुगना दीदी उसकी अपनी बहन नहीं है… यह बात उसके दिमाग में पूरी तरह आत्मसात कर ली थी…
और अब सुगना के प्रति उसकी भावनाएं तेजी से बदल रही थी। ख्वाबों की मलिका अचानक उसे अपनी जद में दिखाई पड़ने लगी वह सुगना को छूना चाहता था उसकी कोमल त्वचा को महसूस करना चाहता था और अपने ख्वाबों से निकल कर उसे हकीकत का जामा पहनाना चाहता था…
धीरे-धीरे मन का ऊहा फोह कम हुआ और रात्रि में लाली की बाहों में आकर सोनू मदहोश हो गया
उबटन ने लाली के त्वचा को और भी चिकना कर दिया था। नंगी लाली को अपने आगोश में लेने के बाद सोनू एक बार फिर अपनी सुगना दीदी के बारे में सोचने लगा। धीरे धीरे लाली सुगना बन गई और सोनू ने अपनी सारी कसर लाली पर निकाल ली… लाली के होठों कानो और गालो को चूमते हुए सोनू ने आज उसे बेहद प्यार से चोदने लगा ..…. सोनू का यह रूप लाली को कई दिनों बाद देखने मिला था…. अन्यथा पिछले कई मुलाकातों में अब वह उसे एक पति पत्नी की भांति चोदता था जिसमें प्यार कम और वासना शांति ज्यादा हुआ करती थी..
वासना शांति के उपरांत सोनू ने लाली से ढेर सारी बातें की और सरयू सिंह के बारे में और भी जानने की कोशिश की।
लाली सरयू सिंह के पड़ोसी और दोस्त हरिया की बेटी थी। बातों ही बातों में सोनू को यह पता चल चुका था कि सरयू सिंह की ननिहाल और उसकी मां का मायका एक ही गांव में है और घर भी अगल-बगल हैं…।
आज के समाज में स्त्री और पुरुष स्वभाविक रिश्ते में भाई बहन ही होते हैं परंतु उनमें से कोई एक इस रिश्ते को झुठला कर पति का रूप ले लेता है…
सरयू सिंह और सोनू की मां पदमा भी स्वाभाविक रिश्ते में भाई बहन ही थे…सोनू की निगाहों में न तो सरयू सिंह व्यभिचारी थे और ना उसकी मां पदमा परंतु यह संबंध बना तो अवश्य था… पर कैसे.? यह समझ पाना बेहद कठिन था ।
परंतु जब जब वो अपने और लाली के संबंधों के बारे में सोचता वह अपनी तुलना सरयू सिंह से करने लगता। आखिर लाली भी तो उसकी मुंह बोली बहन थी हो सकता है एक ही गांव में अगल बगल रहते सरयू सिंह और उसकी मां पदमा के बीच कभी संबंध बन गया हो परंतु विवाह के उपरांत सोनू को यह बात नहीं पच रही थी।
परंतु अब वह इस पचड़े में और नहीं पढ़ना चाहता था वह अब यह मान चुका था कि सुगना उसकी सगी बहन नहीं है शायद उसकी यह भावना इसलिए भी प्रगाढ़ हो रही थी कि अब वह सुगना को अन्य रूप में चाहने लगा था….
काश उसे इस बात इल्म होता कि उस दिन जब सरयू सिंह ने पदमा को तालाब में डूबने से बचाया था और उसके मदमस्त बदन के स्पर्श का अनुभव किया था.. उनकी उत्तेजना जाग उठी थी और उनके इस स्पर्श ने पदमा के मन में भी हलचल पैदा कर दी थी…. शाम ढलते ढलते पदमा उनकी बाहों में आ चुकी थी… और उन्होंने पदमा का हलवा कसकर खाया था और अपने दिव्य वीर्य का कुछ अंश उसके गर्भ में छोड़ आए थे जो अब सुगना के रूप में उनकी पुत्रवधू बनकर उनका ही आगन रोशन कर रही थी।
समय हर चीज का वेग कम कर देता है क्या सुख क्या दुख क्या जिज्ञासा क्या आशा क्या निराशा…
धीरे-धीरे सोनू ने इस सच को अपना लिया।
अगली सुबह सोनू ने अपनी बड़ी बहन सुगना को देखने का नजरिया बदल लिया उसकी आत्मग्लानि लगभग खत्म हो चुकी थी अब सिर्फ और सिर्फ उसे सुगना को अपने नजदीक लाना था पर कैसे यह कार्य आसमान से तारे तोड़ कर ला ने जैसा था….. परंतु ट्रेन की घटना ने सोनू के मन में उम्मीद कायम रखी थी। सोनू सुगना के और करीब जाकर उसके मन में उठ रही भावनाओं का आकलन करना चाहता था क्या सुगना दीदी की भावनाएं भी लाली दीदी के जैसे होंगी क्या अतृप्त सुगना को अपने तृप्ति के लिए अपने ही भाई से संबंध स्थापित करने में परहेज नहीं होगा..
सोनू के मन में एक बार फिर आया कि वह सुगना को यह बात बता दे कि वह उसकी सगी बहन नहीं है परंतु उसने अपनी मां को व्यभिचारी साबित करना और सुगना को यह बताना की वह अपने ही पिता के घर में उनकी पुत्र वधू के रूप में रह रही है, सोनू को यह बात रास न आई।
सोनू ने मन ही मन यह फैसला कर लिया कि वह यह बात सुगना को अभी नहीं बताएगा परंतु यदि आवश्यकता पड़ी तो वह सुगना को बिना उसके पिता का नाम लिए यह अवश्य बता देगा कि वह उसकी सगी बहन नहीं है और शायद उसके मन में भी उठ रही आत्मग्लानि को कम कर देगा…
सोनू अपने मन में कई तरीके के विचार लाता कभी उन्हें हकीकत का जामा पहनाने की कोशिश करता परंतु उसे यह सहज ना लगता फिर वह अपने विचार बदलता नए तरीके की परिस्थितियां बनाता और मन ही मन उसमे विफल होता, सुगना को अपनी बाहों में भरने की कल्पना मात्र से वह सिहर उठता पर यह क्या इतना आसान था? चंद कामुक मुलाकातों को छोड़ दिया जाए तो… जिस बड़ी बहन को वह पिछले कई वर्षों से आदर और सम्मान देता आया था उसे अपने बिस्तर पर लाना यह निश्चित ही कठिन था…पर सोनू की कामुकता ने रिश्तो पर घुन की तरह कार्य करना शुरू कर दिया था ।
दोपहर बाद सभी को सलेमपुर के लिए निकलना था एसडीएम साहब ने 2 गाड़ियां बुलवा ली थी पद का प्रभाव दिखाई पड़ने लगा था। सुगना और लाली तैयारियों में जुटे हुए थे और सोनू बाजार घूम रहा था दोपहर के वक्त सुगना स्नान कर अपने कपड़े पहन चुकी थी और अपने गोरे चेहरे पर बोरोलीन लगा रही थी उसका सूना गला श्रृंगारदान के शीशे में दिखाई पड़ रहा था…शायद विवाह के बाद यह पहला अवसर था जब उसका गला सूना था। उसे अपने किशोरावस्था के दिन याद आ रहे थे परंतु भरी-भरी चुचियों को देखकर वह मुस्कुराने लगी अब वह एक किशोरी ना होकर पूर्ण युवती थी..
उसी समय सोनू ने पीछे से आकर उसकी पलकें अपनी हथेलियों से बंद कर दी और बोला
"सुगना दीदी आंख मत खोलिह"
"सुगना ने मचलते हुए कहा अरे छोड़ पहले… ना खोलब"
सोनू का लंड अब पेंट में अपना तनाव बढ़ाने लगा था परंतु सोनू ने अपनी कमर को सुगना की पीठ से दूर रखा हुआ था वह कोई असहज स्थिति पैदा करने के मूड में नहीं था..
"सोनू ने फिर कहा दीदी पक्का मत खोलिह"
सुगना स्वयं सोनू के स्पर्श से अब असहज महसूस कर रही थी उसके कंधे पर सोनू की गर्म सांसे टकरा रही थी और सुगना अब धीरे-धीरे असहज महसूस कर रही थी सुगना ने कहा
" ठीक बा ना खोलब" और सचमुच सुगना ने अपनी आंखें बंद ली जिसे सोनू की उन्होंने बखूबी महसूस किया…
सोनू ने अपनी जेब से मलमल के कपड़े में रखे नए मंगलसूत्र को निकाला और सुगना के गोरे और चमक दार गले पर पहनाने लगा मंगलसूत्र का लॉकेट सुगना की चूचियों के बीच घाटी में पचुंच कर उन्हे चूमने का प्रयास करने लगा…सुगना को अब जाकर एहसास हुआ कि उसके गले में सोनू कोई लाकेट पहना रहा है..
सुगना ने अपनी आंख खोली और यह देखकर दंग रह गई कि सोनू ने उसके गले में मंगलसूत्र पहना दिया है…
इससे पहले की सुगना कुछ बोल पाती…लाली वहां आ गई…और बोली..
"अरे वाह भाई होखे त अइसन दीदी के मंगल सूत्र काल्हे टुटल और आज नया आ गइल…"
सुगना कुछ बोल ना पाई…अपने ही भाई के हाथों मंगलसुत्र पहनकर वह अजीब सा महसूस कर रही थी…
सोनू सारी पढ़ाई पढ़ने के बावजूद यह बात नहीं समझ पाया की बड़ी बहन के गले में मंगलसूत्र डालना किस ओर इशारा कर रहा था ..
किताबों में पढ़ा गया ज्ञान व्यवहारिकता से अलग होता है…
सोनू ने सुगना के लिए टूटे हुए मंगलसूत्र को बनवाने की बजाय नया मंगलसूत्र खरीदना उचित समझा था वह अपनी बड़ी बहन सुगना को प्रसन्न करना चाहता था उसे इस बात का इल्म न था कि किसी युवा स्त्री को मंगलसूत्र पहनाने का क्या अर्थ हो सकता था परंतु अब जो होना था वह हो चुका था …
लाली ने आकर भाई-बहन के बीच उत्पन्न हुई असहजता को खत्म कर दिया था और कुछ ही देर मे सब कुछ सामान्य हो गया परंतु सुगना के मन में एक कसक आ चुकी थी वह उस खूबसूरत मंगलसूत्र को निकालना भी नहीं चाहती थी और उसे अपने ही भाई के हाथों उसका दिया मंगलसूत्र पहनने में असहजता भी महसूस हो रही थी…उधर सोनू प्रसन्न था…पर नियति ने उसकी मेहनत का फल देने के लिए बिसात बिछा दी थी..
सारी तैयारियां हो चुकी थी पर वहां आने में अभी विलंब था। लाली और सुगना आपस में बैठे बातें कर रहे थे। और बाहर हाल में बच्चों के साथ खेल रहा सोनू अपने कान अंदर सुगना और लाली की बात सुनने के लिए लगाए हुआ था.
" सांचौ कितना सुंदर मंगलसूत्र ले आईबा सोनूवा काश कि हमरा के पहनावले रहित सेवा करी हम और मलाई तोरा के"
सुगना ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए कहा
ए लाली बिल्कुल बकबक कर बंद कर,। तोरा हर घड़ी ऐही सब सब बात करे में मन लागेला "
"अरे हम कौन गलत कहत बानी"
"उ तोरा के मंगलसूत्र पहना दे ले बा अब काहे के भाई बहन₹
"लाली ते पगला गइल बाड़े…तोरा रिश्ता के कोनो मोल नाइक सोनू के रही बिगाडले बाड़े…"
" अरे वाह छोट भाई के खेला खेलल देखेलू तब ना सोचे लू…."
सुगना को यह उम्मीद न थी कि लाली इस प्रकार से खुलकर बोल देगी…सुगना शांत हो गई
लाली ने सुगना की कोमल हथेलिया अपने हाथों में लेकर उसे सह लाते हुए कहा
"ए सुगना तोर मन ना करे ला का"
सुगना अपने मन की अवस्था कतई बताना नहीं चाहती थी। सोनू उसके ख्वाबों खयालों में आकर पिछले कई दिनों से उसे स्खलित करता आ रहा था …
"अच्छा सोनुआ तोर भाई ना होेखित तब?"
"काश कि तोर बात सच होखित"
सुगना में बात समाप्त करने के लिए यह बात कह तो दी परंतु उसके लिए यह शब्द सोनू के कानों तक पहुंच चुके थे और उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा…
सुगना की बात में छुपा हुआ सार सोनू अपने मन मुताबिक समझ चुका था…उसे यह आभास हो रहा था की सुगना के मन में भी उसको लेकर कामूक भावनाएं और ख्याल हैं परंतु वह झूठी मर्यादा के अधीन होकर इस प्रकार के संबंधों से बच रहीं है…नजरअंदाज कर रही है…. सोनू अपने मन में आगे की रणनीति बनाने लगा सुगना को पाना अब उसका लक्ष्य बन चुका था…
शेष अगले भाग में...