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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

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Lovely Anand

Love is life
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144
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Shailesh

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धन्यवाद यूं ही जुड़े रहे और कुछ न कुछ लिखते रहें मुझे पाठकों के कमेंट पढ़ना बेहद पसंद है।

Tku

भेज दिया है.धन्यबाद

सब्र का फल मीठा होता है और होगा भी पर फल तो फल है चीनी नहीं मीठेपन के साथ कुछ खटास की भी संभावना है

धन्यवाद

आपको बहुत-बहुत धन्यवाद वैसे भी अभी पिछले 5 - 6 एपिसोड मैंने बड़ी जल्दी जल्दी पोस्ट कर दिए हैं संयोग से कुछ तो पहले लिखे हुए थे और कुछ आप सब के उत्साह को देखकर लिख दिए थे.. मैं स्वयं भी यह उम्मीद नहीं करता कि पाठक अपने काम धाम छोड़कर इस चितियापे की कहानी में अपना समय व्यर्थ करें ...बस यह तो दिन के समय में से कुछ घंटे या कुछ समय बिताने का तरीका जुड़े रहे और समय मिलने पर अपने तरीके से इस कहानी का आनंद लेते रहे

Nice GIF thank u

Biklul nahi
Update 90 and 91 Please.
 

Yamanadu

Member
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भाग 98

होठों पर बेहद हल्की मुस्कान छाई हुई थी शायद सुगना कोई सुखद और मीठा स्वप्न देख रही थी..


यदि कामदेव भी सुगना को उस रूप में देख लेते तो उन्हें इस बात का अफसोस होता कि उन्होंने ऐसी सुंदर अप्सरा को धरती पर क्यों दर् दर ठोकरे खाने के लिए छोड़ दिया था…

अचानक दरवाजे पर खटखट हुई और सुगना जाग उठी ….रजाई के अंदर उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ…नाइटी चुचियों के अपर एक घेरा बनाकर पड़ी हुई थी सुगना की ब्रा और पेंटी तकिए के नीचे अपने बाहर आने की राह देख रहे थे…

न जाने क्यों दिन भर स्त्री अस्मिता के वो दोनो प्रहरी रात्रि में रति भाव के आगमन पर अपनी उपयोगिता को देते थे…

जब तक सुगना उन्हे पहन पाती दरवाजे पर खट खट के साथ मधुर आवाज आई…


"दीदी…

अब आगे

कमरे में रोशनी देखकर सुगना परेशान हो गई… अरे आज इतना देर कैसे हो गईंल….. उसने स्वयं से पूछा और आनंद फानन में उठकर दरवाजा खोला ….बाहर सोनी खड़ी थी

" अरे दीदी दरवाजा बंद करके काहे सुतल बाड़े ?…. तु त कभी दरवाजा ना बंद करेलू"

सुगना को कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था उसमें अपने बिस्तर की तरफ देखा मधु अभी भी सो रही थी… सुगना की निगाहों ने इस भाग की तस्दीक कर ली कि वह किताब उसके बिस्तर पर न थी। उसने सोनी को आश्वस्त करते हुए अंदर आते हुए बोली…

"राते कपड़ा बदलला के बाद दरवाजा खोले भुला गइल रहनी… " चल चल तैयारी कईल जाओ…. सोनू उठल की ना?"

नियति मुस्कुरा रही थी जिस सोनू को लेकर सुगना रात भर बेचैन थी आज सुबह भी उसके होठों पर उसका ही नाम था….

उधर लाली सतर्क थी वह सोनू के कमरे से जा चुकी थी पर उसके लंड पर अपना प्रेम रस छोड़कर… सोनू तो जैसे अब भी घोडे बेचकर सो रहा था…बीती रात एक नहीं दो दो बार उसने लाली की घनघोर चूदाई की थी और अपनी भावनाओं में सुगना से बड़ी बहन का दर्जा कई मर्तबा छीन लिया था…और…ना जाने कितनी बार अपनें मन में पाप को अंजाम दिया था..

नियति सोनू को मनोदशा से अनभिज्ञ न थी…

सोनी ने कहा "जा तानी सोनू भैया के जगा देत बानी"

सुगना ने उसे रोक लिया उसे यह डर था कि कहीं सोनू आपत्तिजनक अवस्था में ना हो और इस तरह सोनी का वहां जाना कतई उचित न होगा। आजकल वैसे भी सोनू कुछ ज्यादा ही लापरवाह हो चुका था… उसने सोनी से कहा

" रुक जा चाय बन जाए दे तब उठा दीहे"

सोनी अपनी दिनचर्या में लग गई और…कुछ देर बाद सुगना स्वयं चाय लेकर सोनू के कमरे के बाहर खड़ी थी… उसने लाली को आवाज दी

" लाली उठ चाय लेले " दरअसल सुगना सोनू के कमरे में ऐसे नहीं जाना चाहती थी… इसीलिए उसने लाली को आवाज दी।

सोनू अपनी नींद से ज्यादा और न जाने किस धुन में कहा

" कम इन" हॉस्टल में रहते रहते एसडीएम साहब पर ऑफिसर होने का रंग चढ़ चुका था…उन्हें शायद यह ईल्म न था कि दरवाजे पर खड़ा व्यक्ति उनका मातहत नहीं अपितु उनकी बड़ी बहन सुगना थी।

फिर भी सुगना कमरे के अंदर आई सोनू अब भी रजाई ओढ़े लेटा हुआ था उसकी आंखें बंद थी सुगना ने पास पड़े टेबल पर चाय रखी और वापस जाने लगी तभी सोनू ने अचानक उठ कर उसकी कलाइयां पकड़ ली और धीरे से खींचकर बिस्तर पर बिठा दिया..

सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था कहीं ऐसा तो नहीं कि सोनू अब भी नग्न था वह घबरा गई दिन के उजाले में वह किसी असहज स्थिति का शिकार नहीं बनना चाहती थी..

सोनू ने अगड़ाई लेते हुए कहा…

"सुबह-सुबह तोहरा के देख लेनी त पूरा दिन मन खुश रहेला.. भगवान से मनाओ कि हमार पोस्टिंग बनारस हो जाए ….त असहि तोहार हाथ के चाय रोज मिली"

सोनू ने जो बात कही थी वह बेहद गूढ़ थी…परंतु भोली भाली सुगना अपने भाई की मीठी मीठी बातों में आ गई सुगना मुस्कुराने लगी वह बिस्तर पर बैठ गई पर अब भी उसके मन का डर काम था। रजाई का आवरण ओढ़े सोनू का लंड अभी उसकी आंखों के सामने घूमने लगा…


अचानक सोनू बिस्तर से उठ खड़ा हुआ सोनू ने अपनी वस्त्र सभ्य युवा की भांति बखूबी पहने हुए थे लूंगी के अंदर अंडरवियर भी अपनी जगह पर सोनू के अद्भुत लंड को कैद किए अपनी उपयोगिता साबित कर रहा था।

सुगना को आज अपनी ही सोच पर शर्म आई और वह एक बार फिर मुस्कुराने लगी..

आपके मन में चल रहे विचार और भावनाएं आपके चेहरे पर अपना अंश छोड़ती हैं…सुगना जो अपने मन में सोच रही थी उसने उसे मुस्कुराने पर विवश कर दिया था


सोनू अपनी बहन सुगना के सुंदर चेहरे को देखते हुए चाय पीने लगा तभी…कुछ कुछ ही देर में लाली और सोनी भी वहां आ गए गई सोनू एक बार फिर अपनी बहनों के बीच बैठा आगे आने वाली जीवन की प्लानिंग किए जा रहा था ….

सोनी ने पूछा " तब अबकी दीपावली गांव पर ही मनी पक्का बा नू "

सुगना ने सोनू को निर्देश करते हुए कहा ..

"सोनू तू भी अपना साहब से बात कर लीहे दीपावली में एक हफ्ता के छुट्टी लेके गांव चले के बा…अबकी गांव में भोज भात भी कईल जाई"


सोनू रह-रहकर सुगना के खूबसूरत चेहरे और मदमस्त बदन में पर खो जाता परंतु जब भी सुगना की आवाज उसके खानों में पढ़ती वह सचेत हो जाता। वैसे भी सुगना कहे और सोनू ना मानें ….. ऐसे आज्ञाकारी भाई या प्रेमी की तलाश युवतियों को हमेशा रहती है…

सोनू ने अपनी रजामंदी दे दी…

सोनू के लिए अगले एक-दो दिन बेहद खुशहाली भरे थे सुगना और लाली उसका जी भर ख्याल रखते सुगना के हाव भाव से यही लगता कि जैसे उसने उसे ट्रेन वाली घटना के लिए पूरी तरह माफ कर दिया था ..

परंतु सोनू अब तक यह बात नहीं जान पाया था कि उसकी सुगना दीदी ने वह रहीम फातिमा की किताब पढ़ी या नहीं। सुगना का व्यवहार संयमित था उस किताब से उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई पड़ रहा था परंतु इतना तो अवश्य था कि सुगना के मन में सोनू से शर्म पैदा हो चुकी थी। सुगना का वह अल्हड़ पन और स्वाभाविकता कुछ परिवर्तित होती प्रतीत हो रही थी।


उसका सगा भाई होने के बावजूद सोनू से वह उतनी सहज न रही थी। जब जब बही बहन की भावनाएं प्रगाढ़ होती सुगना सोनू से और सहज होती और जब उसे सोनू का काम रूप दिखाई पड़ता सुगना एक नई नवेली दुल्हन की तरह उससे दूर हो जाती।

1- 2 दिन कैसे बीत गए किसी को पता ना चला और अब बारी थी सोनू को अपनी पहली पोस्टिंग जौनपुर पर भेजने की। एक बार फिर लाली और सुगना दोनों ने सोनू के लिए ढेर सारे नाश्ते बनाए और तैयारियां पूरी की अगली सुबह सोनू जौनपुर जाने के लिए हाल में खड़ा था।

सुगना हाथों में आरती का थाल लिए उसकी आरती उतार रही थी और सोनू एक टक सुगना के खूबसूरत चेहरे को देख जा रहा था. साड़ी पहनी हुई सुगना ने अपनी साड़ी का पल्लू अपनी कमर में फंसा हुआ था उसकी दोनों भरी-भरी चूचियां पल्लू से पूरी तरह ढकी हुई थी गले में पड़ा रतन का मंगलसूत्र अब भी उसके विवाहिता होने का एहसास दिला रहा था… ..

सुगना आरती की थाल घुमा रही थी..सोनी और लाली बगल में खड़ी अपनी बारी का इंतजार कर रही थी.. तभी सोनू ने सोनी से कहा

" टेबल पर लिफाफा रखल बा तनी लेआउ त" सोनी लिफाफा लेने सोनू के कमरे की तरफ गई उसी दौरान सुगना ने अपनी आरती पूरी की और सोनू को नीचे झुकने के लिए कहा उसने सोनू के माथे पर तिलक लगाया और अपने पूर्व अंदाज में उसके माथे को चुमने के लिए आगे बढ़ी इससे पहले कि सुगना अपने होठों को गोल कर उसके माथे को चुमती सोनू ने अपना चेहरा ऊपर उठा दिया और सुगना के होंठ सोनू के होठों से छू गए…. एक करंट सुगना के शरीर में दौड़ गई ..

कोई और देखे या ना देखे पास खड़ी लाली ने चार खूबसूरत लबों को आपस में मिलते देख लिया और मुस्कुराते हुए बोली …

" लागा ता सोनुआ के कुल प्यार अभिए दे दे देबू"

सुगना झेंप गई उसके गाल शर्म से लाल हो गए उसने लाली को घूर कर देखा और आरती को थाल पकड़ाते हुए बोला..

" ते आज कल ढेर बक बक करत बाड़े "

निश्चित ही जो कुछ हुआ था वह अनजाने में हुआ था परंतु लाली ने ऐसा कह कर सुगना को सोचने पर मजबूर कर दिया और जब एक बार सोच में वह बात आ गई सुगना के गाल लाल होने थे सो हो हुए और सोनू की धड़कनें तेज हो गई..

अब बारी लाली की थी सोनू ने लाली के पैर छुए लाली ने उसके सर पर हाथ फेरा और बेहद प्यार से कहा "भगवान तोहर सब मनोकामना पूरा करस और उसने अपनी निगाहों से सुगना की तरफ देखा …" सोनू लाली की बात समझ न पाया पर नियति समझदार थी और पाठक भी..

सोनी आ चुकी थी उसने सोनू को लिफाफा पकड़ाया और सोनू के चरण छू कर उस आजकल की प्यार भरी झप्पी भी दी…जो पूरी तरह वासना विहीन थी.

सोनू विदा हो रहा था जाते-जाते उसने अपनी बड़ी बहन सुगना के चरण छुए और बोला.

"आज हमार नौकरी के पहला दिन ह हमरा खातिर प्रार्थना करिहे… हमरा से कभी कोई गलती भईल होगी तो माफ कर दीहे…"

सोनू ने ऐसी भावुक लाइन क्यों कही थी यह तो वही जाने पर भावुकता स्वाभाविक थी…सोनू आज इस प्रतिष्ठित पद को ग्रहण करने जा रहा था वह सुगना और उसके परिवार के लिए एक दिवास्वप्न से कम न था जिसे सोनू ने अपनी मेहनत से सच कर दिखाया था..।

सोनू और सुगना दोनों भावुक हो उठे सोनू और सुगना एक स्वाभाविक प्रेम की वजह से एक दूसरे के आलिंगन में आ गए यह आलिंगन बेहद पावन था.. शायद सोनू के मन भी कुछ समय के लिए वासना विहीन हो गया था और उसने भी सुगना ने भी आलिंगन की पवित्रता बरकरार थी।

सोनू और सुगना अपने अश्रुपूरित नयन लिए अपने ईस्ट देव से एक दूसरे के लिए खुशियां मांगते…एक दूसरे से अलग हो गए… सोनू ऑटो से सर निकालकर बार-बार पीछे देख रहा था जहां उसके तीनों बहने खड़ी हाथ हिला रही थी सोनू का सर ऑटो से बाहर देख कर सुगना जैसे मन ही मन सोनू से कह रही थी कि अपना सर अंदर कर ले चोट लग जाएगी उसने अपने हाथों से सोनू को अपना सर अंदर करने का इशारा भी किया सच सुगना सोनू का बेहद ख्याल रखती थी…. कुछ ही देर में ऑटो गली से मुड़ गया और तीनो बहने घर के अंदर आ गई।

दीपावली आने वाली थी इस दीपावली ने सुगना के जीवन में ढेरों खुशियां लाई थी परंतु क्या आने वाली दीपावली सोनू और सुनना के बीच कुछ की दूरियां खत्म करेगी? या सोनू को सुगना जैसी कोई जीवन संगिनी मिल जाएगी…? जिसके लिए सरयू सिंह और उनके रिश्तेदार पूरी तत्परता से लगे हुए थे…सोनू की इस सफलता ने तो आसपास के कई जिलों के मानिंद लोगों को भी अपनी बेटी सोनू से ब्याने के लिए उत्साहित कर दिया था..


नियति के लिए एक बड़ा प्रश्न था… वह विधाता द्वारा लिखे गए पन्नों को पलट कर आगे की रूपरेखा बनाने लगी… सरयू सिंह के दरवाजे पर आज भी अपनी सुकुमारी किशोरियों का रिश्ता लेकर आने वालों का तांता लगा रहता था और सोनू पढ़ी-लिखी अक्षत योवनाओं को छोड़ अपनी बड़ी बहन सुगना से तार जोड़ने पर आमादा था.

दीपावली का त्यौहार शायद हिंदुस्तान में मनाया जाने वाला सबसे प्रमुख त्यौहार है। 90 के दशक में इस त्यौहार की अहमियत और भी ज्यादा हुआ करती थी दूर-दूर से लोग अपने घरों पर वापस आ जाया करते थे सोनी का प्रेमी विकास भी अमेरिका से वापस बनारस आ रहा था सोनी को जब इसकी खबर मिली वह चहकने लगी…

विकास से मिलन की कल्पना कर उसकी वासना हिलोरे मारने लगी …उस तरुणी का तन बदन और दिमाग सब कुछ विकास का बेसब्री से इंतजार करने लगा परंतु इस बार की दीपावली सलेमपुर में मनाई जानी थी और सोनी को उसमें शरीक भी होना था तो क्या वह अपनी दीपावली विकास के साथ नहीं मना पाएगी…?

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि विकास भी उस दिन सलेमपुर चले आखिर अब वह उसका ससुराल भी था यद्यपि सोनी और विकास का विवाह एक गंधर्व विवाह की श्रेणी में रखा जा सकता है परंतु सोनी और विकास दोनों उस विवाह की पवित्रता को अपने मन में पूरी अहमियत देते थे..

सोनी ने मन ही मन ठान लिया कि वह अपने स्त्री हक और अधिकार का प्रयोग करते हुए विकास को सलेमपुर चलने के लिए मनाएगी चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े…

और आखिरकार सोनी ने पीसीओ से विकास को फोन लगा दिया…

फोन की घंटी जाते ही अमेरिका में बैठे विकास ने फोन काटा…और वापस पलट कर उसी नंबर पर अपने फोन से फोन किया विकास सोनी की आर्थिक स्थिति को भलीभांति जानता था।

सोनी और विकास ने कुछ देर बातें की और अंततः सोनी ने विकास को दीपावली की रात सलेमपुर आने के लिए मना लिया…. सोनी अपनी विजय पर मुस्कुरा रही थी उसने अपने जिस दिव्य और कोमल हथियार का प्रयोग इस विजय के लिए किया था वह थे उसके खूबसूरत होंठ…

जिन होठों का प्रयोग वह सूरज की नून्नी पर करती आई थी… दीपावली के दिन उसे उसका सही उपयोग करना था…. विकास उस अनोखे सुख की कल्पना कर सोनी के सामने पूरी तरह सरेंडर हो गया …और उसने और उसमें अपने परिवार को भूल अपनी प्रेमिका और पत्नी सोनी के घर पर दीपावली मनाने को अपनी रजामंदी दे दी…

स्त्रियों द्वारा पुरुषों को दिया जाने वाला सबसे मुख्य उपहार है मुखमैथुन… इस सुख की कल्पना शायद हर पुरुष करता है.. परंतु विरले ही वह लोग होंगे जिन्हें स्त्रियां स्वेच्छा से, हंसी खुशी और पूरी तन्मयता से उन्हें यह सुख देती है…

सलेमपुर में दीपावली की तैयारियां जोरों पर थी…दीपावली के दिन सोनू के सम्मान में विशेष पूजा रखी जानी थी. और दोपहर में ही आसपास के गांव के लोगों को सामूहिक भोज पर आमंत्रित किया गया था यह एक प्रकार की खुली मुनादी थी जो भी चाहे उस कार्यक्रम में शरीक हो सकता था। विशेष मानिंद लोगों को अलग से नियुक्ति भेजे गए थे और बाकी गांव वालों के लिए डुगडुगी बजाकर मुनादी करा दी गई थी…

सरयू सिंह ने दिल खोलकर पैसे खर्च किए थे वैसे भी यह एक प्रकार का इन्वेस्टमेंट ही था जो सम्मान और प्रतिष्ठा उनके परिवार को प्राप्त हुई थी यह आयोजन उस प्रतिष्ठा को और भी बढ़ाने वाला था..

सरयू सिंह के पुराने मकान को भी रंग रोगन कर सजा धजा दिया गया। घर के बाहर ईंटों से बने कुछ कमरे भी तैयार कर दिए गए थे जिनमें पुरुषों के रहने की व्यवस्था की गई थी…

घर के अंदर महिलाओं के रहने की व्यवस्था थी…सरयू सिंह के परिवार का यह दुर्भाग्य ही था की इसमें कोई भी जोड़े में उपलब्ध न था।


कजरी और सुगना दोनों सास बहू अकेले रहने को मजबूर थी। रतन और विद्यानंद दोनों न जाने किस विशेष आश्रम की तैयारियों में लगे हुए थे। दोनों ने ही अपने अपने परिवार को अलग-अलग कारणों से छोड़ रखा था।

सरयू सिंह जो इस परिवार के आधार स्तंभ थे वह भी अब सुगना से दूरी बना चुके थे और कजरी वह तो अब निरापद हो चुकी थी वासना और कामुकता से परे …

पूजा पाठ और गांव वालों के साथ समय व्यतीत करना उसे बेहद पसंद आता था।

सिर्फ एक विवाहित जोडी उस दिन सलेमपुर आने वाली थी वह थी विकास और सोनी की जोड़ी। परंतु यह जोड़ी जिस तरह एकांत में बनाई गई थी उन्हें वह एकांत उस दिन कतई नहीं मिलना था.. समाज और अपने परिवार की नजरों में सोनी अब भी अविवाहित थी।

खैर जो होना था वह तो दीपावली के दिन होना था नियति प्रेमियों का हमेशा मार्ग प्रशस्त करती है वह सोनी और विकास को मिलाने के लिए जुगत लगाने लगी… परंतु सुगना और सोनू दोनों की तड़प अब उससे देखी नहीं जा रही थी… एक तरफ सोनू खुलकर अपनी बड़ी बहन सुगना को अपना लेना चाहता था परंतु मर्यादा और समाज का डर अब भी उस पर हावी था।


काश कोई उससे कह देता कि सुगना उसकी अपनी सगी बड़ी बहन नहीं है तो वह सुगना के सामने नतमस्तक होकर उसके प्यार की भीख मांग लेता और उसे येन केन प्रकारेण मना लेता। और अपने छद्म गुरु रहीम की तरह अपनी बड़ी बहन सुगना को फातिमा जैसे जी भर कर प्यार करता….

दूसरी तरफ सुगना अपने मन में एक नई प्रकार की वासना को जन्म लेते हुए महसूस कर रही थी.. रहीम और फातिमा की वह किताब अब उसे इतनी बुरी नहीं लगती… सोनू ने जब से उस किताब के दोनों भागों को जोड़ दिया था वह न जाने कितनी बार उस किताब को पढ़ चुकी थी… जब जब वह एकांत में होती वासना उसे गुदगुदाती उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आती और कुछ ही देर में वह किताब उसके हाथों में आ जाती।


सुगना न जाने कब उस किताब की गिरफ्त में आ गई सोनू ने उस किताब में कई जगह सुगना का नाम लिखा हुआ था…. इतना तो अब सुगना भली-भांति समझने लगी थी कि सोनू उसके कामुक बदन का कायल है परंतु उसे सोनू से कभी कोई खतरा नहीं हो सकता था… इतना तो वह भली-भांति जानती थी कि सोनू कभी भी उसके साथ ऐसी वैसी हरकत नहीं करेगा…विशेषकर तब जब तक वह खुद ही उसे न उकसाए। परंतु वह स्वयं अपनी वासना के आधीन होकर सोनू के लंड को अपने ख्यालों में लाने में अब परहेज नहीं करती थी और गाहे-बगाहे अपनी उत्तेजना में उसे शामिल कर लेती…

आज रात सुगना की आंखों से फिर नींद गायब थी …घर के सारे सदस्य सो चुके थे और सुगना अपने बिस्तर पर हाथों में किताब लिए आ गई..

एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ से अपनी छोटी सी अबोध बुर पर हाथ फिराते हुए वह किताब पढ़ने लगी…

कुछ ही देर में किताब के शब्दों में छुपा रस उसकी जांघों के बीच रिस रिस कर उंगलियों को भिगोने लगा और उंगलियों का संसर्ग उसके बुर की फांकों से और भी आत्मीय होता गया…

किताब के कुछ अंश..


रहीम : दीदी हम दोनों के प्यार करने पर रोक क्यों है?

रहीम ने अपनी बड़ी बहन की चुचियों को सहलाते हुए पूछा….

फातिमा: तू पागल है भला कोई अपने बहन से के साथ ये सब काम करता है.

रहीम: कौन सा काम …. रहीम ने फातिमा के फूले हुए निप्पलों को मसलते हुए कहा

फातिमा: ये जो तू कर रहा है…बड़ी बहन मां समान होती है…. फातिमा ने अपनी उखड़ती सांसो पर काबू करते हुए कहा..

रहीम : सच दीदी ….बड़ी बहन सचमुच मां समान होती है…

इतना कहते हुए रहीम ने फातिमा की बड़ी बड़ी चूचियों को अपने मुंह में भरने की कोशिश की और अपनी जीभ से उसके निप्पल चुभलाने लगा..

सोनू रहीम ने अपनी आंखें उठाकर फातिमा को देखा जैसे पूछ रहा हूं अब ठीक है …

किताब में फातिमा उत्तेजना से कांपने लगी और बिस्तर पर पड़ी सुगना भी उसने किताब को एक तरफ रखा और उसकी हथेलियां जांघों के बीच अपनी करामात दिखाने लगी…

रहीम और फातिमा की किताब जितनी उत्तेजक थी उससे कहीं ज्यादा उत्तेजक सोनू के ख्वाब थे पर उसके ख्वाब अभी उसके दिल में ही दफन थे जाने कब वह सुगना को अपने दिल की बात बताएगा…

नियति का कुछ ऐसा चक्र था कि सोनू जो कुछ अपनी खुली आंखों से पूरे होशो हवास में सुगना के साथ करना चाहता था वह सुगना अपने स्वप्न में देखा करती थी.. सुगना के जीवन में रतन के जाने बाद आई नीरसता उसके सपनों ने दूर कर उसकी रातें रंगीन कर दीं थीं।

परंतु दिन के उजाले में सुगना अपनी वासनाओं को काबू कर एक सभ्य और सुसंस्कृत बड़ी बहन की तरह अपने घर की जिम्मेदारियां अब भी उठा रही थी…उसे पता था रहीम और फातिमा की कहानी एक कुत्सित मन द्वारा उपजी वासना के अलावा और कुछ भी नहीं है….हकीकत इससे इतर थी…सुगना को अपने भाई के लिए एक सुंदर दुल्हन खोजनी थी जिसमें सुगना कोई कोताही नहीं बरतना चाहती थी…

दीपावली आने वाली थी…सुगना अपने भाई सोनू और सोनी अपने प्रेमी विकास का का इंतजार करने लगी…

इंतजार सबको था सरयू सिंह को भी , सोनू की मां पद्मा को भी और नियति को भी…

शेष अगले भाग में
Mukhmaithun wala pdh k ... mood bn gya.. sahab
 

Sanju@

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भाग 95

सोनू ने पतले लहंगे के पीछे छुपे सुगना के मादक नितंबों को अपनी जांघों और पेडू प्रदेश पर महसूस करना शुरू कर दिया जैसे-जैसे सोनू का ध्यान केंद्रित होता गया उसके लंड में तनाव आने लगा.. सोनू के लंड का सुपाड़ा सुगना की कमर से सट रहा था शायद यह लंबाई में अंतर होने की वजह से था।


सोनू पूरी तरह सुगना से सटा हुआ था.. उसके मजबूत खूंटे जैसे लंड में तनाव आए और सुगना को पता ना चले यह संभव न था। सोनू के लंड में आ रहे तनाव को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी.. और अब वह स्वयं को असहज महसूस कर रही थी…. उसके दिमाग में सोनू के लंड की तस्वीर घूमने लगी…

अब आगे

सोनू का लंड सुगना पहले भी देख चुकी थी..लाली की बुर में तेजी से आगे पीछे होते हुए सोनू के मजबूत लंड की तस्वीर उसके दिलो-दिमाग पर छप चुकी थी और न जाने कितनी बार वह अपने स्वप्न में वह उस लंड को देख चुकी थी। उस दिन हैंडपंप के नीचे सोनू नहाते समय जिस तरह अपने लंड को और उसके सुपाड़े को सहला रहा था वह बेहद उत्तेजक था … सुगना के दिमाग में वही दृश्य घूमने लगे..

सुगना सोच रही थी… क्या सोनू के लंड में आया हुआ तनाव उसकी वजह से था? उसे अपने भाई से ऐसी उम्मीद नहीं थी। सुगना ने अगल-बगल नजर दौड़ाई और सोनू के लंड में आए इस तनाव का कारण जानने की कोशिश की।


एक और युवती सुगना से कुछ ही दूर पर खड़ी थी परंतु उसके शरीर की बनावट देखकर सुगना समझ गई निश्चित ही यह तनाव उस युवती की वजह से न था… तो क्या उसके भाई सोनू का लंड उसके लिए ही खड़ा हुआ था?.

हे भगवान अब वह क्या करें? सुगना अब असहज महसूस कर रही थी। उसका रोम-रोम सिहर उठा। ह्रदय की धड़कन तेज हो गई। जिस अवस्था में वह थी कुछ कर पाना संभव न था। वह इस बारे में सोनू से कुछ भी बोल पाने की स्थिति में न थी।

फिर भी सुगना ने अपने शरीर को थोड़ा अगल-बगल कर सोनू को यह एहसास दिलाने की कोशिश की कि वह उससे दूर हो जाए। परंतु यह सोनू के लिए भी संभव न था। सोनू के पीछे भी एक दो व्यक्ति खड़े थे और पीछे जाना संभव न था। सुगना के हिलने डुलने की वजह से सोनू को भी हिलना पड़ा और गाहे-बगाहे सोनू का लंड सुगना के नितंबों के बीच आ गया।

लंड का सुपाड़ा सुगना की पीठ पर था परंतु लंड का निचला भाग सुगना की नितंबों के बीच की घाटी में आ चुका था।

ट्रेन और वासना धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहीं थी..

ट्रेन के आउटर स्टेशन और मुख्य स्टेशन के बीच ट्रेन न जाने कितनी बार पटरियां बदलती है और पटरियां बदलते समय ट्रेन की हिलने डुलने की गति और बढ़ जाती है।

आज यह गति सोनू को बेहद प्यारी लग रही थी जब भी ट्रेन हिलती सुगना और उसके बीच में एक घर्षण होता और वह सोनू के लंड एक बेहद सुखद एहसास देता..


सोनू अपनी कमर हिला कर अपने आनंद को और बढ़ाना चाह रहा था परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना की नजरों में गिरना नहीं चाह रहा था। जिस सुखद पल को नियति ने उसे स्वाभाविक रूप से प्रदान किया था उस अहसास को अपने हाथों से गवाना नही चाहता था।

लाली के साथ भरपूर कामुक क्रियाकलाप करते करते सोनू में अब धैर्य आ चुका था…


उसने यथासंभव अपने आप को संतुलित रखते हुए ट्रेन के हिलने से अपने लंड में हो रहे कोमल घर्षण और हलचल को महसूस करने लगा…

ट्रेन के हिलने से सुगना और सोनू के बीच का दबाव कभी कम होता कभी ज्यादा परंतु सोनू के लंड और सुगना के नितंबों का साथ कभी ना छूटता.. और कभी इसकी नौबत भी आती तो सोनू स्वतः ही उस दबाव को बढ़ा देता… यह मीठा और उत्तेजक एहसास सोनू को बेहद पसंद आ रहा था..

जिस तरह सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना को खुद से दूर नहीं करना चाहता था ठीक उसी प्रकार सोनू का लंड सुगना के नितंबों के कोमल और मादक के स्पर्श से दूर नहीं होना चाहता था..

ट्रेन के पटरी या बदलने से खटखट की आवाजें ट्रेन में आ रही परंतु न तो यह सुगना को सुनाई दे रही थी और नहीं सोनू को ….सुगना और सोनू के दिमाग में इस समय कुछ और ही चल रहा सोनू अपने सपने में देखी गई बातों को याद कर रहा था और अपने मन में सुगना के कोमल और मादक बदन को अनावृत कर रहा था.. और उधर सुगना सोनू के लंड के स्पर्श को महसूस कर रही थी और सोनू के लंड के आकार का अनुमान लगा रही थी..

एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह दरवाजे के सपोर्ट को छोड़कर अपने दोनों हाथ सुगना की चुचियों पर ले आए और उसे मसलते हुए अपने लंड को उसके नितंबों के बीच पूरी तरह घुसा दे..


परंतु यह सोच सिर्फ और सिर्फ उसके उत्तेजक खयालों की देन थी.. हकीकत में ऐसा कर पाना संभव न था। सुगना के साथ ऐसी ओछी हरकत करने का परिणाम भयावह हो सकता था…

कामुक सोच और उत्तेजना में चोली दामन का संबंध है..

सोनू अपनी सोच में सुगना को और नग्न करता गया और …. उसका लंड और भी संवेदनशील होता गया..

सरयू सिंह अब भी सूरज के साथ बातें कर रहे और मधु अपनी मां सुगना के कंधे पर सर रखकर सो रही थी।

सोनू की उत्तेजना अब परवान चढ़ चुकी थी। लाली को घंटों चोद चोद कर थका देने वाला सोनू का वह मजबूत लंड आज सुगना के नितंबों के सानिध्य में आकर जैसे अपना तनाव खोने को तत्पर था।

सुगना स्वयं अपने मन में चल रहे गंदे संदे खयालों से जूझ रही थी.. और उसकी बुर हमेशा की तरह उसकी बातों को नजरअंदाज करते हुए अपने होठों से लार टपक आने लगी थी। न जाने वह निगोडी क्यों सोनू के लंड के ख्याल मात्र से सुगना से विद्रोह पर उतारू हो जाती ऐसा लगता जैसे उसके लिए रिश्तो की मर्यादा का कोई मोल ना हो।


सुगना असहज हो रही थी उसने सोनू को खुद से दूर करने की सूची और अपने नितंबों को पीछे की तरफ हल्का धकेल कर सोनू को दूर करने की कोशिश की।

यही वह वक्त था जब सुगना के नितंबों ने सोनू के लंड पर एक बेहद मखमली दबाव बना दिया… सोनू के सब्र का बांध टूट गया।

सोनू का अपनी बड़ी बहन के प्रति भावनाओं का सैलाब फूट पड़ा.. अंडकोशो ने वीर्य उगलना शुरू कर दिया सोनू स्खलित होने लगा उसका लंड उछल उछल कर वीर्य वर्षा करने लगा….

परंतु हाय री किस्मत सोनू की सारी भावनाएं सोनू की पजामी को न भेद सकीं और उसका ढेर सारा वीर्य उसकी पजामी को गीला करता रहा।

स्खलित होता हुआ लंड एक अलग ही कंपन पैदा करता है जिन स्त्रियों में इस कलित होते हुए लंड को अपने हाथों में पकड़ा होगा वह वीर्य के बाहर निकलते वक्त उसके कंपन को अपनी उंगलियों पर अवश्य महसूस किया होगा…

सुगना को तो जैसे इसमें महारत हासिल थी वैसे भी नियति ने अब तक उसके भाग्य में जो दो पुरुष दिए थे वह दोनों अपनी जांघों के बीच विधाता की अनुपम धरोहर के लिए घूमते थे…

सरयू सिंह और सुगना के धर्मपति रतन दोनो एक मज़बूत लंड के स्वामी थे …


सुगना अपने नितंबों पर लंड की वह थिरकन महसूस कर रहीं थी।.दिल में भूचाल लिए वह एकदम शांत थी…हे भगवान सोनू स्खलित हो रहा था…. और वह अनजाने में अपने ही छोटे भाई सोनू को स्खलित होने में मदद कर रही थी..

सोनू का स्खलन पूर्ण होते ही…. वासना न जाने कहां फुर्र हो गई सिर्फ और सिर्फ आत्मग्लानि थी …आज सोनू ने अपनी बड़ी और सम्मानित बहन सुगना के नितंबों पर अपना लंड रगड़ते हुए खुद को स्खलित कर लिया था ..पर अब शर्मिंदगी महसूस कर रहा था..

वासना के अधीन होकर की गई बातें और कृत्य वासना का उफान खत्म होने के बाद हमेशा अफसोस का कारण बनते हैं जिह्वा और हरकतों पर लगाम न लगाने वाले अपने अंतर्मन में चल रहे अति उत्तेजना और अपने अपेक्षाकृत घृणित विचारों को अपने साथी को बता जाते हैं। यह उनके चरित्र को उजागर करता है।

जब तक सोनू कुछ और सोचता ट्रेन में एक बार फिर गहमागहमी चालू हो गई थी ट्रेन लखनऊ स्टेशन के प्लेटफार्म पर आ रही थी अंदर फसे यात्री अब उग्र हो रहे थे परंतु सोनू शांत था और सुगना भी।


सरयू सिंह ने सुगना के लिए रास्ता बनाया और सोनू से कहा

"संभाल के उतर जाईह"

सुगना इस स्थिति में न थी कि वह सोनू से कुछ कह पाती और न सोनू इस स्थिति में था कि वह सुगना से प्यार से विदा ले पाता… अब से कुछ देर पहले उसने जो किया था या जो हुआ था उसका गुनाहगार सिर्फ और सिर्फ सोनू था परंतु नियति सुगना को भी उतना ही कसूरवार मान रही थी..

खैर जो होना था वह हो चुका था सोनू को सुगना का लखनऊ आगमन रास आ गया था.. शायद उसने अपने विधाता से आज इतना मांगा भी न था जितना नियत ने उसे प्रदान कर दिया था..

सोनू प्लेटफार्म पर उतर कर कुछ देर और खड़ा रहा सुगना ट्रेन के अंदर आ चुकी थी दोनों बच्चे सोनू की तरफ देख रहे थे सोनू ट्रेन की खिड़की से अपने हाथ अंदर डाल कर सूरज के साथ खेल रहा था परंतु सुगना अपनी नजर झुकाए हुए थी.. सोनू से हंसी ठिठोली करने वाली सुगना आज शांत थी… न जाने जिस अपराध का गुनाहगार सोनू था उस अपराध के लिए सुगना क्यों अपनी नजर झुका रही थी..

कुछ देर बाद ट्रेन चल पड़ी सोनू ने अपने हाथ हवा में लहरा कर अपने परिवार के सदस्यों को विदा करने लगा ट्रेन के अंदर से सब ने हाथ हिलाए परंतु सुगना अब भी शांत थी पर जैसे ही सुगना को लगा कि अब वह सोनू को और नहीं देख पाएगी उसका धैर्य टूट गया..


उसने सोनू की तरफ देखा और अपने हाथ हिला कर उसका अभिवादन किया सुगना की आंखों में आंसू स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते थे यह आंसू क्यों थे यह तो हमारे संवेदनशील पाठक ही जाने परंतु सुगना असमंजस में थी।

आज अपने ही भाई के साथ वह जिस अनोखी घटना की भागीदार और साक्षी बनी थी वह निश्चित ही पाप था एक घोर पाप पर सोनू का परित्याग करना या उसके साथ कुछ भी गलत करना सुगना को कतई गवारा ना था सोनू अब भी सुगना को उतना ही प्यारा था शायद इसी वजह से सुगना सोनू को विदा करते समय अपने हाथ हिलाने से खुद को ना रोक पाई…

सुगना और सोनू का प्यार निराला था ..

ट्रेन पटरीओं पर दौड़ लगाती ओझल हो गई परंतु सुगना अब भी सोनू के दिमाग में घूम रही थी …सुगना के हाथी लाए जाने से सोनू प्रसन्न हो गया था और अब उसके होठों पर मुस्कान थी…सोनू हर्षित मन से स्टेशन के बाहर आया और ऑटो रिक्शा कर अपने हॉस्टल की तरफ निकल गया…


अगली सुबह सरयू सिंह सुगना के साथ बनारस आ चुके थे। मदमस्त सोनी नहा कर बाहर आई थी। आधुनिकता के इस दौर में सोनी भी नहा कर नाइटी पहन कर बाहर आ जाया करती थी जैसे ही सोनी ने दरवाजा खोला सरयू सिंह सामने खड़े थे…अब भी सरयू सिंह ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनके सामने घर की स्त्रियां अब भी कुछ पर्दा कर लिया करती थी परंतु आज जिस अवस्था में उन्होंने सोनी को देखा था वह बेहद उत्तेजक और निगाहों में अभद्र थी। सोनी उनके चेहरे के भाव देख कर घबरा गई। उसने न तो सरयू सिंह के चरण छुए और न सुगना के अपितु उल्टे पैर भागते हुए सुगना के कमरे में आ गए….

सरयू सिंह सोनी को अंदर जाते हुए देख रहे थे। सोनी की काया में आया बदलाव सरयू सिंह बखूबी महसूस कर रहे थे। शायद सोनी अपनी उम्र से कुछ ज्यादा बड़ी दिखाई पड़ने लगी थी और हो भी क्यों न विकास से कई दिनों तक जी भर कर चुदवाने के बाद सोनी में निश्चित ही शारीरिक बदलाव आया गया था…आज भी जब कभी उसे मौका मिलता वह अपने कामुक खयालों में खो जाया करती थी और अपनी छोटी सी बुर को मसल मसल कर स्खलित होने पर मजबूर कर देती थी…

शायद उसे भी अपनी कामुक अवस्था का ध्यान आ गया था .. इसीलिए वह सर्विसिंग के सामने ज्यादा देर खड़ी ना हो पाई …सोनी ने अपने वस्त्र पहने और फिर आकर सरयू सिंह और सुगना के चरण छुए। सरयू सिंह ने सोनी को आशीर्वाद दीया परंतु उसकी कामुकता या उनके दिमाग में अभी घूम रही थी…

सरयू सिंह का लंड तो न जाने लंगोट की अंधेरी कैद में भी न जाने कैसे सुंदर और कामुक युवतियों को अंदाज लेता था..

सूरज तो जैसे अपनी सोनी मौसी से मिलने के लिए बेचैन था.. वह झटपट सोनी की गोद में आ गया और फिर क्या था उसने सोनी के कोमल होठों को चूम लिया… सरयू सिंह की निगाह सूरज पर पड़ गई। उन्होंने कुछ कहा नहीं परंतु वह यह देखकर आश्चर्य में थे कि सोनी ने उसे रोका तक नहीं अपितु वह उसका साथ दे रही थी। सूरज की यह क्रिया बाल सुलभ थी या आने वाले समय की झांकी यह कहना कठिन था पर जो कुछ हो रहा था वह असामान्य था छोटे बच्चों को भी कामुक महिलाओं के होंठ चूमने का कोई अधिकार नहीं है ऐसा सरयू सिंह का मानना था..

लाली अब तक चाय लेकर आ चुकी थी सरयू सिंह चाय पी रहे थे और लाली सोनू के बारे में ढेर सारी बातें पूछ रही थी.. लाली का सोनू के बारे में जानने की इतनी इच्छा …..लाली का यह व्यवहार बुद्धिमान सरयू सिंह की बुद्धि के परे था… उधर सोनी सूरज को लेकर कमरे में आ गई थी ….

सूरज अभी भी सोनी की गोद में था और कभी उसके गाल कभी होठों को चूम रहा था… सोनी ने सूरज को बिस्तर पर खड़ा कर दिया और हमेशा की तरह एक बार फिर उसके जादुई अंगूठे को सहला दिया …आगे क्या होना था यह सबको पता था सूरज में अपनी सोनी मौसी के बाल पकड़े और उसे खींचकर नीचे झुका दिया सोनी ने जी भर कर उस अद्भुत मुन्नी के दर्शन किए जो अब विकास के लंड के बराबर अपना आकार बढ़ा चुकी थी सोनी को निदान पता था… उसने अपने होंठ अपने कार्य पर लगा दिए कुछ ही देर में सूरज खिलखिलाते हुआ सोनी के बाल सहलाने लगा…सोनी की जांघों के बीच गर्माहट बढ़ गई थी…

"सोनी सूरज के भेज बिस्कुट खा ली" सुगना ने आवाज लगाई..


सुगना यह बात भली-भांति जानती थी कि अब भी सोनी एकांत पाकर अपनी हरकत करने से बाज नहीं आएगी परंतु सुगना को सोनी की आदत से कोई विशेष तकलीफ न थी…. सूरज भी खुश था और सोनी भी….

घर में सब के चेहरों पर खुशियां व्याप्त थी परंतु सुगना असहज थी जब जब उसे ट्रेन की वह घटना याद आती वह खुद को उस घटना के लिए जिम्मेदार मानती जिसमें शायद उसका सक्रिय योगदान न था वह तो सोनू ही था जो अपनी बहन की सुंदरता और मादक शरीर पर फिदा हुआ जा रहा था…


यदि सुगना अपना सुखद वैवाहिक जीवन जी रही होती तो शायद सोनू इस गलत विचारधारा में न पड़ता परंतु इसे परिस्थितियों का दोष कहें या स्त्री पुरुष के बीच स्वाभाविक आकर्षण परंतु सोनू अब बेचैन हो उठा था।…

सुगना नहाने जा चुकी थी…सोनू द्वारा दी गई लहंगा और चोली उतारते समय उसे एक बार फिर सोनू की याद आ गई दिमाग में ट्रेन के दृश्य घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना नग्न होती गई वासना उसे अपनी आगोश में लेती गई।

सुगना ने अपनी कोमल और उदास बुर को सर झुका कर देखना चाहा..

ट्रेन में छाई उत्तेजना ने सुगना की जांघों पर भी प्रेमरस के अंश छोड़ दिए थे…दिमाग में सोनू की मजबूत लंड की कल्पना और नितंबों की बीच उसे प्रभावशाली घर्षण ने सुगना की बुर को लार टपकाने के लिए विवश कर दिया था…

जैसे जैसे सुगना उस सुख चुकी लार को साफ करने लगी..उसकी बुर ने और उत्सर्जन प्रारंभ कर दिया..

सुगना ने अपनी अभागन बुर को थपकियां देकर धीरज रखने को कहा पर न उसकी उंगलियों ने उसकी बात मानी और न बुर ने…सोनू ….आ ….ई………सुगना के होंठ न जाने क्या क्या बुदबुदा रहे थे सुगना की मनोस्थिति पढ़ पाना नियति के लिए भी एक दुरूह कार्य था…

कुछ ही देर में सुगना ने अपना अधूरा स्खलन पूर्ण कर लिया….

सोनू ने अगले दो-तीन दिनों में अपना सामान बांधा और बनारस आने की तैयारी करने लगा।

सोनू की पोस्टिंग बनारस से कुछ ही दूर जौनपुर में हुई थी। सोनू बेहद प्रसन्न था। जौनपुर से बनारस आना बेहद आसान था सोनू मन ही मन अपने ख्वाब बुनने लगा …

सोनू के मन में सिर्फ एक ही चिंता थी कि अब जब वह सुगना के सामने आएगा तो वह उससे कैसा व्यवहार करें कि क्या उसने उसे ट्रेन में हुई घटना के लिए माफ कर दिया होगा?

सोनू के पास सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे उसे सुगना का सामना करना ही था। उसने अपने इष्ट से सब कुछ सामान्य और अनुकूल रहने की कामना की और अपना सामान बांध कर बनारस विस्तृत सुगना के घर आ गया..सामन पैक करते वक्त उसे रहीम और फातिमा की चूदाई गाथा की वह फटी किताब भी दिखाई पड़ गई और सोनू मुस्कुराने लगा.. उसने न जाने क्या सोच कर उस अधूरी किताब को भी रख लिया…

अगली सुबह सोनू अपना ढेर सारा सामान आटो में लाद कर सुगना के घर के सामने खड़ा था..

उसका कलेजा धक धक कर रहा था..

शेष अगले भाग में..
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है
बहन भाई को नियति एक दूसरे के पास ला रही है सोनू और सुगना धीरे धीरे आगे बढ़ रहे है, बिना सोच समझ के, देखते है दोनो किस मोड़ तक जाते हैं, उधर सरयू सिंह सोनी की तरह आशक्त है, देखें नियति ने इनके लिए क्या सोचा है
 

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भाग 96

सोनू के मन में सिर्फ एक ही चिंता थी कि अब जब वह सुगना के सामने आएगा तो वह उससे कैसा व्यवहार करें कि क्या उसने उसे ट्रेन में हुई घटना के लिए माफ कर दिया होगा?

सोनू के पास सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे उसे सुगना का सामना करना ही था। उसने अपने इष्ट से सब कुछ सामान्य और अनुकूल रहने की कामना की और अपना सामान बांध कर बनारस विस्तृत सुगना के घर आ गया..सामन पैक करते वक्त उसे रहीम और फातिमा की चूदाई गाथा की वह फटी किताब भी दिखाई पड़ गई और सोनू मुस्कुराने लगा.. उसने न जाने क्या सोच कर उस अधूरी किताब को भी रख लिया…

अगली सुबह सोनू अपना ढेर सारा सामान आटो में लाद कर सुगना के घर के सामने खड़ा था..


उसका कलेजा धक धक कर रहा था..

अब आगे…

दरवाजा सुगना ने ही खोला…सुगना के चेहरे पर स्वागत करने वाली मुस्कान थी एक पल के लिए वह यह बात भूल गई थी कि सामने खड़ा सोनू वही सोनू है जिसने अपने तने हुए लंड को उसके नितंबों से रगड़ते हुए एक कुत्सित स्खलन को अंजाम दिया था… सुगना ने उस घटना को नजरअंदाज कर अपनी डेहरी पर खड़े सोनू का स्वागत किया और बोला..

"अरे तोर ट्रेन तो जल्दी आ गईल आज"

अंदर आने के पश्चात सोनू ने सुगना के चरण छुए परंतु सुगना को अपने आलिंगन में लेने की हिम्मत न जुटा पाया… शायद सुगना भी सतर्क थी..


मन में जब पाप उत्पन्न हो जाता है तो प्रतिक्रिया स्वाभाविक रूप से बदल जाती है।

यही हाल सोनू का था…

सुगना का व्यवहार क्यों बदला यह कहना कठिन था शायद इसमें कुछ अंश उस ट्रेन में हुई घटना का था और उसके मन के किसी कोने में उपज रहे पाप का भी..

इसके उलट सोनी खुलकर अपने भाई सोनू के गले लग गई सोनू और सोनी का यह मिलन पूरी तरह वासना विहीन था यद्यपि सोनू ने सोनी को अपने दोस्त विकास के साथ अपने पूरे यौवन और कामुकता के साथ संभोग करते देखा था… परंतु न जाने क्यों उसने उस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था।


सोनी उसे अपनी छोटी बहन ही दिखाई देती थी जिसके बारे में उसके मन में गलत ख्याल शायद ही कभी आते हों… वर्तमान में सोनू के दिलो-दिमाग सब पर सुगना छाई हुई थी…और एक तरह से राज कर रही थी।

जिस प्रकार पूर्णिमा का चांद आकाश में छाए छुटपुट सितारों की रोशनी धूमिल कर देता है उसी प्रकार सुगना इस समय सोनू की वासना पर एकाधिकार जमाए हुए थी …सोनू के लिए जैसे बाकी युवतियां गौड़ हो चुकी थीं।

थोड़ी ही देर में सोनू लाली और सुगना के बच्चों में घुलमिल कर बच्चों की तरह खेलने लगा। एक प्रतिष्ठित और युवा एसडीएम अपनी उम्र को आधा कर बच्चों के साथ वैसे ही खेल रहा था जैसे वह खुद एक बच्चा हो…. सुगना बार-बार उसके इस स्वरूप को देखती और मन ही मन उसे क्षमा कर देती….

आखिरकार सुगना ने सोनू से कहा

"ए सोनू जो जल्दी नहा ले हम खाना लगा दे तानी.."

पता नहीं सोनू के मन में कहां से हिम्मत आई उसने अकस्मात ही कहा

"ठीक बा हम जा तानी आंगन में नहाए तनी पानी चला दिहे "

सोनू ने जो कहा था वह सुगना को उस दिन की याद दिला गया जब वह लाली के कहने पर हैंडपंप चलाने गई थी और सोनू ने उसे लाली समझकर उसके सामने ही अपने तने हुए लंड पर साबुन लगा रहा था… सुगना के जेहन में वह दृश्य पूरी तरह घूम गया…वैसे भी वह पिछले दो-तीन दिनों से न जाने कितनी बार उसके उस तने हुए लंड के बारे में सोच चुकी थी…. उसने बचते हुए कहा..

"ते जो नहाए लाली पानी चला दी."

शायद सोनू ने बिना सोचे समझे वह बात कही थी परंतु सुगना अब फूंक-फूंक कर कदम रख रही थी..

अब तक के हुए घटनाक्रमों में लाली एक बात तो जान गई थी कि सुगना की कामुक काया सोनू को आकर्षक लगती थी। सुगना भी उसे और सोनू को लेकर कई मजाक किया करती थी परंतु जब कभी सोनू का नाम उसके साथ जोड़कर लाली मजाक करती तो वह एक हद के बाद उसे रोक देती देती…

बातों ही बातों में सुगना ने उसे उसे उसके और सोनू के बीच हुए संभोग को देखे जाने की घटना घटना बता दी थी ….लाली के लिए सुगना को समझ पाना कठिन हो रहा था वह कभी तो हंसते खिलखिलाते लाली से सोनू के बारे में ढेरों बातें करती जिसमें कभी कभी कामुक अंश भी होते परंतु कभी-कभी न जाने क्यों सोनू को लेकर छोटी सी बात पर नाराज हो जाती।


लाली ने कई बार ऐसा महसूस किया था कि संभोग के दौरान सुगना का नाम लेने पर सोनू और भी उत्तेजित हुआ करता था तथा सुगना के बारे में और बातें करना चाहता था।

यह लाली पर ही निर्भर करता था कि वह वासना और कामुकता से भरी हुई बातों में सुगना को कितना खींचे और कितना छोड़े…पर सोनू इस पर कोई आपत्ति नहीं जताता था।

लाली ने आज सोनू को खुश करने की ठान ली..

घर में दिनभर घर में चहल पहल रही … सोनू की तीनों बहनें सोनू का जी भर कर ख्याल रख रही थी…

शाम जब सुगना और लाली सब्जी भाजी लेने बाजार गईं सोनू घर में अकेला था…. वह सुगना के कमरे में किताब का दूसरा हिस्सा खोजने लगा रहीम और फातिमा की अधूरी कहानी को पूरा पढ़ने की उसकी तमन्ना जाग उठी थी।

सोनू ने सुगना के कमरे का कोना-कोना छान मारा और आखिरकार वह आधी किताब उसके हाथ आ गई..

सोनू ने उस किताब के पन्नों के बिछड़े हुए भाग को आपस में पूरी तन्मयता और मेहनत से जोड़ा और किताब को मन लगाकर पढ़ने लगा …जैसे-जैसे रहीम और फातिमा की कहानी आगे बढ़ती गई न जाने कब कहानी में रहीम सोनू बन गया और सुगना फातिमा ….कहानी को पढ़ते समय सोनू के जेहन में सिर्फ और सिर्फ सुगना की तस्वीर घूम रही थी..

सोनू का लंड तो जैसे सुगना का नाम लेते ही उछल कर खड़ा हो जाता था सोनू ने उसे थपकी या देकर शांत करने की कोशिश की …. जिस तरह अभी तक सोनू ने अपना धैर्य कायम किया हुआ था उसी प्रकार सोनू के लंड को भी अभी धैर्य रखना था…

आखिर सोनू ने हिम्मत जुटाई और उस किताब को सुगना के शृंगारदान के पास रख दिया…उसे पता था सुगना रात को सोने से पहले श्रृंगारदान खोलकर अपने चेहरे पर क्रीम लगती थी.. वह उस किताब को देखेगी जरूर ….. सोनू ने किताब के अपने वाले हिस्से पर कुछ कलाकारी भी की थी वह भी उस दौरान जब वह लखनऊ में अकेले था…. एक बार के लिए सोनू का मन हुआ कि वह उसके द्वारा की गई कलाकारी को मिटा दे परंतु शायद यह इतना आसान न था…

सोनू ने सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया

आखिरकार आखिरकार रात हुई जिसका इंतजार सबसे ज्यादा लाली को था…

रात के 10:00 बज चुके थे सारे बच्चे अपने दिनभर की थकावट को दूर करने निद्रा देवी के आगोश में आ चुके थे। बच्चे घर की शान होते हैं और जब वह सो जाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे घर में सन्नाटा पसर गया हो।।

परंतु युवा प्रेमियों को यह सन्नाटा बेहद सुहाना लगता है सोनू और लाली आज रंगरलिया मनाने के लिए पूरी तरह तैयार थे। परंतु लाली आज दूसरे ही मूड में थी..

वो सोनू के कमरे में बैठी उससे बातें कर रही थी ..

तभी सोनू ने लाली को अपने पास खींच लिया और उसके गालों को चुमते हुए उसकी चूंची सहलाने लगा सोनू का हाथ धीरे-धीरे लाली की नाइटी में प्रवेश करता गया तभी लाली ने कहा..

अरे सोनू थोड़ा सब्र कर ले सुगना के सूत जाए दे…

"अब बर्दाश्त नईखे होत… देखा तब से खड़ा बा सोनू ने अपनी लूंगी हटाकर अपने खड़े ल** को लाली की निगाहों के ठीक सामने ला दिया..

सोनू का लंड दिन पर दिन और युवा होता जा रहा था.. ऐसा लग रहा था लाली की बुर ने उसे मालिश कर और बलवान बना दिया था.

लाली ने सुगना की लूंगी खींचकर खूंटी पर टांग दी और उसके लंड को अपने हाथों में लेकर उसके आकार में और इजाफा करने लगी तभी रसोई से सुगना की आवाज आई…

"ए लाली सोनू के दूध ले जो"

लाली ने सोनू से 5 मिनट का समय मांगा और सोनू ने अपने नंगे बदन पर लिहाफ डाल लिया… लाली बलखाती हुई कमरे से चली गई…परंतु जाते जाते उसने कमरे की बत्तियां बुझा दी…कमरे में चल रही टीवी से पर्याप्त रोशनी आ रही थी और सोनू बिस्तर के सिरहाने अपनी पीठ टिकाए टीवी देख रहा था और मन ही मन आज लाली के साथ जी भर कर रंगरलिया मनाने की तैयारी कर रहा था।

सोनू अपने हाथों से अपने लंड को सहलाते हुए लाली का इंतजार कर रहा था…. परंतु यह क्या कमरे में दूध लिए सुगना आ चुकी थी… सोनू के होश फाख्ता हो गए पतली रजाई के नीचे सोनू पूरी तरह नग्न था.. यह तो ऊपर वाले का शुक्र था कि उसने अपनी बनियान न उतारी थी अन्यथा सुगना उसकी नग्न अवस्था को तुरंत ही पकड़ लेती… सुगना सोनू के बिल्कुल करीब आ चुकी थी सोनू ने अपने दोनों घुटनों को उठाकर अपने खड़े लंड को रजाई के नीचे छुपा लिया

सोनू ने अपना दाहिना हाथ अपने लंड पर से हटाया और हाथ बढ़ाकर सुगना के हाथों से दूध ले लिया..

सुगना से नजरें मिला पाने की सोनू की हिम्मत न थी.. परंतु वह सुगना की भरी भरी चूचियों को अवश्य देख रहा था। दोनों दुग्ध कलश उसकी आंखों के ठीक सामने थे परंतु उसकी अप्सरा उसे ग्लास में दूध पकड़ा रही थी.. सुगना जैसे ही जाने के लिए पलटी लाली आ चुकी थी..

लाली नेआते ही कहा…

"रसोई के सब काम हो गईल अब बैठ सोनू अपन पहला पोस्टिंग के बात बतावता"

सुगना भली-भांति यह बात जानती थी की सोनू और लाली अब से कुछ देर बाद घनघोर चूदाई करने वाले थे इसकी पूर्व तैयारियां लाली आज सुबह से ही कर रही थी.. वह दाल भात में मूसर चंद नहीं बनना चाहती थी परंतु लाली में उसे हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा दिया और सोनू से कहा..


अरे बीच में खिसक अपना दीदी के बैठे थे सोनू पलंग के ठीक बीच में बैठ गया और सुगना अनमने मन से बिस्तर पर बैठ गई… उसके दोनों पैर अब भी बिस्तर के नीचे लटक रहे थे। लाली सुगना के करीब आई और बोली..

"अरे पैरवा ऊपर कर ले आज बहुत ठंडा बा ए सोनू अपना दीदी के रजाई ओढ़ा दे"

सोनू खुद असहज महसूस कर रहा था उसे लाली का यह व्यवहार कतई समझ ना आ रहा था वह पूरी तरह लाली को चोदने के मूड में था.. परंतु लाली ऐसा क्यों कर रही थी यह उसकी समझ के परे था…

अंततः सुगना ने अपने दोनों पैर ऊपर कर लिए और सोनू ने अनमने ढंग से रजाई का कुछ हिस्सा सुगना के पैरों पर डाल दिया परंतु उससे सुरक्षित दूरी बनाते हुए अलग हो गया रजाई के अंदर सोनू पूरी तरह नग्न था और यही उसकी असहजता का मुख्य कारण भी था।

सोनू का लंड अपना तनाव खो रहा था। उसे अब लाली पर गुस्सा आ रहा परंतु सुगना साथ हो और सोनू उसे खुद से दूर करें यह संभव न था।


उसने बातें शुरू कर दी… लाली अब सोनू के दूसरे तरफ आकर बैठ चुकी थी और उसने भी रजाई में अपने पैर डाल लिए थे…सोनू अपनी दोनों बहनों के बीच बिस्तर के सिरहाने अपनी पीठ टिकाए अपने अनुभव को साझा कर रहा था…

सुगना और लाली दोनों पूरी उत्सुकता और तन्मयता से सोनू के अनुभवों को सुन रही थी और समझने का प्रयास कर रहीं थी। अचानक लाली की हथेलियों ने सोनू के लंड को अपने हाथों में पकड़ लिया सोनू को यह अटपटा भी लगा और आनंददायक भी ।

उसने कोई प्रतिक्रिया न दी और उसी तरह अपनी बहन सुगना से बातें करता रहा… लाली के साथ अब अपनी कार्यकुशलता दिखाने लगे सोनू के लंड का सुपाड़ा आगे पीछे हो रहा था.. सुपाड़े के ऊपर सूख चुकी लंड की लार एक बार फिर छलकने लगी।


कुछ ही पलों में लंड एक बार फिर पूरी तरह तन चुका था। सुगना लाली की हरकतों से अनजान अपने भाई के प्रशासनिक अनुभव को सुन रही थी कमरे में …वासना अपना रंग दिखाने लगी थी….

अचानक सुगना का ध्यान लाली की हरकतों पर चला गया सोनू की जांघों के बीच हिलती हुई रजाई ने उसके मन में शक पैदा कर दिया। निश्चित ही लाली सोनू के लंड को छू रही थी। सुगना असहज होने लगी सोनू अपनी उत्तेजना को काबू में रखते हुए सुगना से बातें किया जा रहा था परंतु लाली की उंगलियों और हथेलियों के जादू को अपने लंड पर बखूबी महसूस कर रहा था।

एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह अपने ठीक बगल में बैठी सुगना जांघों पर हाथ रख दे परंतु…सोनू अभी इतनी हिम्मत न जुटा पाया सुगना ने अचानक बिस्तर से उठते हुए कहा

"तोहान लोग टीवी देख हम जा तानी सूते "

सुगना कमरे से निकल गई परंतु वह कमरे से ज्यादा दूर ना जा पाईं…उसे सोनू की आवाज सुनाई पड़ी..

"दीदी तू काहे हिलावत रहलु हा सुगना दीदी देख लिहित तब"

"अइसन कह तारा जैसे उ जानत नईखे" लाली ने हल्का गुस्सा दिखाते ही बोला..

"अरे सुगना दीदी जानत बीया ऊ ठीक बा लेकिन हाईसन हालत में देख लीहित तब" सोनू ने लिहाफ हटा दिया और अपने खूंटे से जैसे तने हुए लंड को हाथ में लेते हुए बोला"

अब तक सोनू के मुंह से अपना नाम सुनकर सुगना खिड़की पर आ चुकी थी उसमें अंदर झांका लिहाफ हटा हुआ था और सोनू अपना खूबसूरत लंड अपने हाथों में लिए लाली को दिखा रहा था..

"ज्यादा सयान मत बन…. हैंड पंप पर अपना बहिनी के आपन हथियार देखावले रहला तब …ना लाज लागत रहे"

लाली अपने बालों को बांधते हुए बोली… ऐसा लग रहा था जैसे लाली प्रेम युद्ध के लिए स्वयं को तैयार कर रही हो…

सोनू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई तो क्या सुगना दीदी ने लाली से सब कुछ बता दिया था क्या ट्रेन की घटना भी…

सोनू ने झेपते हुए कहा..

"हम जानत रहनी की पानी चलावे तू अइबू एहि से सुगना दीदी रहती तब थोड़ी ना करतीं"


सुगना मन ही मन खुश हो गई… शायद उसका भाई सोनू इतना भी बदमाश ना था कि वह अपनी बड़ी बहन को अपना लंड खोल कर दिखा रहा हो…

"चल मान लेनी लेकिन सांच कह.. इ सुगना खातिर तनेला की ना?….लाली ने सोनू की दुखती रग को छेड़ दिया…

"लाली दीदी तू ई का बोला तारू"

"देख अभिये से उछलता …..नामे लेला प " लाली ने सोनू के उछलते हुए लंड को सहलाते हुए बोला….

सुगना के बारे में बातें कर सोनू बेहद उत्तेजित हो गया। वह बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और उसमें एक ही झटके में लाली की नाइटी उतार के लाली को पूरी तरह नंगा कर सामने चल रही टीवी के प्रकाश में उसका दूधिया बदन चमकने लगा सुगना बाहर लॉबी में खड़े खिड़की से अंदर झांक रही थी.


सोनू ने लाली को पीछे से पकड़ कर दबोच लिया.. लाली की पीठ सोनू के नंगे सीने से सटी हुई थी सोनू के मजबूत हाथ लाली की नाभि और कमर पर लिपटे हुए थे. सोनू लाली को ऊपर उठा रहा था..और लाली खिलखिला कर हंस रही थी लाली के दोनों पर हवा में थे और सोनू का खूंटे जैसा तना हुआ लंड नितंबों के बीच जगह ढूंढ रहा था…

"आराम से सोनू चोट लग जायी"

परंतु सोनू सुनने के मूड में न था.. सुगना आज अपनी आंखों से वही दृश्य देख रही थी जो स्वयं उसके साथ बनारस महोत्सव में घटा था उस दिन भी सोनू ने ठीक इसी प्रकार उसे उठा लिया था और उसने भी अपने नितंबों के बीच सोनू के तने हुए लंड को महसूस किया था यद्यपि उस दिन सोनू ने अपने कपड़े पहने हुए थे फिर भी सोनू के मजबूत लंड का तनाव छपने लायक न था।

सुगना की आंखें एक बार फिर जड़ हो गई.. कदम फिर रुक गए और सांसे तेज होने लगी सोनू ने लाली को बिस्तर पर पीठ के बल लिटा कर उसकी जांघों के बीच आ गया परंतु आज सोनू किसी और मूड में था..

ई बतावा लाली दीदी सुगना दीदी तोहरा से सब बात करेले का?

"कौन बात?"

"इहे कुल"

"अरे साफ-साफ बोल ना कौन बात?"

"सोनू ने लाली की चूचियों को मसलते हुए कहा"

"इहे कुल..अब बुझाइल "

"हां ऊ हमार सहेली ह त करी ना"

"वो दिन का सुगना दीदी साच में देख ले ले रहे"

"हां देखले रहे और कह तो रहे"

"का कहत रहे?"

"कि हमार भाई अब मर्द बन गईल बा.".

"अवरू का कहत रहे"

"खाली बकबक करब की कामों होई…"

"बतावाना? दीदी का कहत रहे…

"काश सोनू हमर भाई न होखित"

सुगना लाली की बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गई उसने ऐसा कुछ न कहा था…. जब भी यह वाक्यांश शब्दों के रूप में आए थे लाली के मुख से ही आए थे। उसे लाली पर गुस्सा आया..पर अभी वह कुछ कहने की स्थिति में न थी।

"तू पागल हउ सुगना दीदी अइसन कभी ना बोली…"

"अरे वाह हम तहर दीदी ना हई "

"सुगना दीदी और तहरा में बहुत अंतर बा ऊ ई कुल के चक्कर में ना रहेली"

"हाई देखतार नू…. एकर कोई जात धर्म रिश्ता नाता ना होला…"लाली ने सोनू को अपनी जांघों के बीच अपनी फूली हुई बुर को दिखाते हुए कहा।

"एकर साथी एके ह…".इतना कहकर लाली ने सोनू के लंड को अपनी हथेलियों में पकड़ लिया…लंड पर रिस आयी लार लाली की हथेलियों में लग गई..

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

"देख बुझाता इहो आपन सुगना दीदी खातिर लार टपकावता…"

सोनू का लाल फूला हुआ सुपाड़ा लाली की हथेली में था…ऐसा लग रहा था जैसे लाली उसे खुद को छोड़ किसी और को चाहने का दंड दे रही हो पर लंड आज सुगना की चाहत लिए तैयार था…

सोनू उत्तेजना से कपने लगा…लाली ने उसे बेहद उत्तेजित कर दिया था..

और एक बार फिर लाली चुदने लगी….सुगना ने आज लाली का नया रूप देखा था…शायद उसे लाली से यह उम्मीद न थी…

सुगना से और बर्दाश्त न हुआ….वह अपने कमरे में आ गई…

सुगना ने खुद को संतुलित किया और गंदे गंदे ख्यालों को दरकिनार कर वह अपने श्रृंगारदान को खोल कर अपनी क्रीम लगाने लगी तभी उसका ध्यान उस जिंदगी किताब तक चला गया जिसको सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए छोड़ आया था किताब के दोनों हिस्सों को एक साथ देख कर सुगना चौक उठी आखिर यह किसने किया हे भगवान…

शेष अगले भाग में…
बहुत ही कामुक गरमागरम और उतेजनापूर्ण अपडेट है
नियति ने फिर लाली और सोनू को एक कर दिया है दोनो आज फिर रंगरेलिया मना रहे हैं और सुगना उस दृश्य को आज फिर खिड़की से देख रही है यह सुगना के साथ दूसरी बार हो रहा है लगता है अब ये वासना दोनो को जल्दी ही एक करने का कारण बनेगी सोनू ने रखी किताब को सुगना ने देख लिया है
 

Lovely Anand

Love is life
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भाग 99
दिन के उजाले में सुगना अपनी वासनाओं को काबू कर एक सभ्य और सुसंस्कृत बड़ी बहन की तरह अपने घर की जिम्मेदारियां अब भी उठा रही थी…उसे पता था रहीम और फातिमा की कहानी एक कुत्सित मन द्वारा उपजी वासना के अलावा और कुछ भी नहीं है….हकीकत इससे इतर थी…सुगना को अपने भाई के लिए एक सुंदर दुल्हन खोजनी थी जिसमें सुगना कोई कोताही नहीं बरतना चाहती थी…

दीपावली आने वाली थी…सुगना अपने भाई सोनू और सोनी अपने प्रेमी विकास का का इंतजार करने लगी…

इंतजार सबको था सरयू सिंह को भी , सोनू की मां पद्मा को भी और नियति को भी…

अब आगे…



दीपावली पर सलेमपुर में एक साथ मिलने का आनंद अनूठा होने वाला था सरयू सिंह और सुगना का परिवार बेहद प्रसन्न था…सोनू की मां पदमा एक पखवाड़े पहले ही सलेमपुर आ गई और साथ-साथ मोनी को भी ले आई …मोनी का गदराया बदन सलेमपुर के लड़कों की नजरों से बचना मुश्किल था। सरयू सिंह के घर पर लड़कों का आना जाना बढ़ गया… यद्यपि उस दौरान सरयू सिंह के घर-घर में ढेरों तैयारियां हो रही थी ..इसलिए उन लड़कों के आने जाने का कोई अन्य अर्थ नहीं निकाला जा सकता था… परंतु उनमें से कई सारे लड़के ऐसे थे जो सिर्फ और सिर्फ मोनी की गदराई काया के दर्शन करने आया करते थे।

मोनी तो जैसे अपनी मदमस्त काया की अहमियत को भूल कर भूलकर बिंदास घर से बाहर हंसती खेलती रहती। कभी बाहर खूंटे से बंधे मवेशियों को खाना खिलाती कभी उनकी पीठ सहला कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करती और मनचले लड़के उसकी हर अदा में कामुकता खोज अपना लंड खड़ा किए रहते…

मोनी खुद में लीन रहती। न उधव से लेना ना न माधव को देना वाली कहावत उस पर चरितार्थ होती..


उसे तो न जाने इस दुनिया से क्या चाहिए था…जब जब वह वैरागीयों को देखती उसे उनमें अपना भविष्य दिखाई पड़ता परंतु जब-जब मोनी स्त्रियों को सजते धजते और श्रृंगार करते हुए देखती उसे बार-बार यह व्यर्थ ही लगता। उसे बाहरी सुंदरता से ज्यादा मन की सुंदरता पसंद आती ..

शादी विवाह जैसे बड़े आयोजनों पर खर्च होने वाला पैसा उसे व्यर्थ लगता आज भी वह जिस कार्यक्रम में सम्मिलित होने आई थी उसमें भी सरयू सिंह पैसा पानी की तरह बहा रहे थे मोनी को यह कतई रास नहीं आ रहा था परंतु वह अपने परिवार के साथ सलेमपुर आ गई थी..

कजरी बार बार मोनी के विवाह का जिक्र करती। मोनी को विवाह कतई पसंद न था धीरे-धीरे उसके मन में विवाह को लेकर कई आशंकाएं आ चुकी थी.. और न जाने कब वह मन ही मन विवाह के सख्त खिलाफ हो गई थी…शायद इसमें सुगना और रतन बिखरे हुए रिश्ते ने भी भूमिका अदा की थी…

ग्रामीण किशोरियों और युवतियों मैं विवाह का आकर्षण यौन सुख को प्राप्त करने के लिए ही होता है वरना वह तो अपने पिता के घर में भी उसी तरह आनंदित और प्रफुल्लित घूमती रहती है…और इसी सुख के लिए वह अपने घर का हंसता खेलता आंगन छोड़ अपनी ससुराल में आ जाती हैं…

मोनी भी अनोखी थी और उसके विचार भी। जाने नियति ने उसके भाग्य में क्या लिखा था…

उधर बनारस में सुगना और लाली अपने अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीद कर पूरी तरह तैयार थीं। दीपावली सलेमपुर में मनाने के नाम से सभी के मन में हर्ष व्याप्त था।

गांव चलने में अब कुछ ही दिन शेष रह गए थे कल सोनू बनारस आने वाला था सुगना और लाली दोनों सोनू का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। लाली उबटन लगा रही थी…अपने सोनू को रिझाने के लिए वो कोई कसर न छोड़ती…सुगना ने उसे छेड़ा…

चिकना ने आपन देह काल आई सोनूआ त रगडी….

लाली ने सुगना से कहा


आव तनी मदद कर द

सुगना लाली के पास गई और लाली ने जान बूझ कर सुगना के हाथों पर उबटन लगा दिया…और उसे भी उस प्रक्रिया में शामिल कर लिया..

औरतों में सुंदर दिखने की चाह स्वाभाविक होती है…सुगना भी उससे अलग न थी….सुगना की सुंदर काया उबटन के काले पीले आवरण में आकर बदरंग हो गई…परंतु कुछ ही देर बाद उबटन का आवरण हटाने के बाद सुगना की कुंदन काया चमक उठी….

नियति सुगना को अपने भाई के लिए अनजाने में ही तैयार होते देख मुस्कुरा रही थी…

सोनू बनारस आ चुका था तीनों बहनों के चेहरे पर अपने अपने भाव के अनुसार खुशियां थी. सुगना हमेशा की तरह सबसे ज्यादा खुश थी न जाने उसे सोनू को देखकर क्या हो जाता ? कभी जब वह उसे अपने छोटे भाई के रूप में देखती और उसकी सफलता पर झूम उठती ।

यदि उसके परिवार में में कोई राजमुकुट होता तो वह अपने छोटे भाई के सर पर रख कर उसे घंटों निहार रही होती। और जब कभी वह सोनू के कामुक रूप को देखती उसका बदन सिहर उठता… शरीर में एक अजब सी उत्तेजना होती और उसके गाल सुर्ख हो जाते वह एक नई नवेली वधू की तरह शर्माती और उससे दूर हो जाती परंतु कभी मुड़ मुड़कर कभी ओट लेकर उसे अवश्य देखती….

सोनू ने अपनी तीनो बहनों के लिए लहंगा चोली लाया था….सब कपड़ेएक से बढ़ कर एक थे …और सुगना का कपड़ा तो उसके जैसा ही खूबसूरत था…तीनों बहनों ने तय किया को वो दीपावली के दिन वही लहंगा चोली पहनेंगी। सुगना बेहद खुश थी…

दोपहर में सोनू आराम कर रहा था और सुगना एवं लाली आपस में बैठे बात कर रही थी। तभी सोनू ने सोनी को पुकारा जो सूरज के साथ कमरे में थी। वह क्या कर रही थी यह बात भली-भांति पाठक समझ सकते हैं…. छोटा सूरज खिलखिला रहा था और अपनी मौसी के सर पर हाथ फेर रहा था..

सोनू ने दोबारा आवाज लगाई और सोनी को अचानक ही सूरज को उसी अवस्था में छोड़कर सोनू के पास जाना पड़ा ….सोनू का दोबारा आवाज देना यह साबित कर रहा था कि निश्चित ही सोनू ने सोनी को किसी आवश्यक कार्य के लिए ही बुलाया था उसने सूरज से उसी तरह खड़े रहने के लिए कहा और .. उठकर सोनू के पास आ गई ..

इधर सुगना सोनी को बुलाने के लिए उसके कमरे में आ गई और उसके बिस्तर पर खड़े सूरज को देख कर सारा माजरा समझ गई। सूरज का निक्कर नीचे था और उसकी नून्नी फूल कर कुप्पा हो गई थी… सुगना उसके पास आई और उसे अपने सीने से हटाते हुए उसे प्यार करने लगी उसने उसने निक्कर में उसकी फूली हुई नून्नी को बंद करने की कोशिश की परंतु सूरज तैयार न था वह अब भी अपनी मौसी का इंतजार कर रहा था..

सुगना ने उसे सीने से लगाकर खुस करने की कोशिश की परंतु वह न माना वह सुगना को दूर धकेलता रहा और न जाने कब सुगना का मंगलसूत्र सूरज के हाथों में आ गया… सूरज के छोटे छोटे हाथों में न जाने कहां से इतनी शक्ति आई कि उसने सुगना का मंगलसूत्र पर कुछ ज्यादा ही जोर लगा दिया और सुगना का मंगलसूत्र टूट गया…. सुगना के अपने ही पुत्र ने अपनी माता के गले से मंगलसूत्र छीन लिया…

सुगना दुखी हो गई परंतु उसने फिर भी सूरज को कुछ भी ना कहा… अब तक सूरज का गुस्सा भी शांत हो चुका था समय के साथ सूरज की फूली हुई नून्नी अपना आकार घटा रही थी….

सोनी वापस आ चुकी थी और सुगना उसे एक बार फिर गुस्से से देख रही थी। सुगना ने एक बार फिर सोनी को हिदायत दी और बोली

"सोनी ई आदत छोड़ दे सूरज परेशान हो जाला तोर मजाक मजाक में कभी बात बिगड़ जाए आज देख चिड़चिड़ा के हमार मंगलसूत्र खींचकर तोड़ देले बा"

अब तक सोनू और लाली भी कमरे में आ चुके थे.. मंगलसूत्र में जड़े काले मनके नीचे फर्श पर बिखर चुके थे। रतन के द्वारा लाया गया यह मंगलसूत्र सुगना के गले से जुदा हो चुका था… जिस प्रकार रतन सुगना की जिंदगी से दूर हो गया था उसी प्रकार उसका दिया मंगलसूत्र भी आज बिखर गया था…. मनकों को वापस इकट्ठा कर पाना असंभव था… मंगलसूत्र में जड़ा हुआ सोना.. अब भी मूल्यवान था सोनू ने उसे अपने हाथों में लेते हुए कहा…

"जायदे दीदी हम इकरा के बनवा देब"

सुगना को वैसे भी उस मंगलसूत्र से कोई सरोकार न था उसने उसे उठाकर सोनू को दे दिया और इस अकस्मात धन हानि से अपना ध्यान हटाने के लिए चाय बनाने रसोई में चली गई।

उसी शाम नगर निगम से सुगना के घर पर कोई नोटिस आया जिसमें म्युनिसिपल टैक्स से संबंधित कोई जानकारी मांगी गई थी…जिसके लिए पिछले वर्ष जमा की गई रसीद का होना आवश्यक था।

यदि कागजात संभाल कर न रखे जाएं तो उन्हें खोजना सबसे दुरूह कार्य होता है

सुगना को उस कागज की अहमियत का अंदाजा न था और उसे यह कतई ध्यान नहीं आ रहा था कि उसने यह कागज कहां रखा पूरे घर में कागज ढूंढा जाने लगा…

कुछ ही देर में पूरा सजा धजा घर अस्त-व्यस्त हो गया नियति अपने सामने घर को फैलते देख रही थी परंतु वह संतुष्ट थी। सरयू सिंह की खून जांच की रिपोर्ट और सुगना से उनके संबंध को उजागर करने वाली पर रिपोर्ट लाल झोले में झांक सोनू का ध्यान खींच रही थी सोनू ने उछल कर अपने हाथ बढ़ाएं और उस झोले को ऊपर छज्जे से उतार लिया..

सुगना ने उस झोले को पहचान लिया और बोली

"अरे ही बाबूजी के रिपोर्ट ह ए में ना होई"


सोनू कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था उसने रिपोर्ट निकाली और उसे सुगना और सरयू सिंह के संबंधों को उजागर करने वाली रिपोर्ट दिखाई पड़ गई… सोनू की आंखें आश्चर्य से फटी रह गए उसने उस रिपोर्ट को कई बार पढ़ा अब तक उसे इस प्रकार की जांचों के बारे में जानकारी हो चुकी थी।

एसडीएम की ट्रेनिंग करते-करते उसे खून जांच के मिलान आदि के बारे में पर्याप्त ज्ञान हो चुका था उस रिपोर्ट में दी गई बात को झुठला पाना संभव न था।


सोनू का कलेजा धक-धक कर रहा था उसे इस बात का यकीन ही नहीं हो रहा था कि सुगना सरयू सिंह की पुत्री है ……

तो क्या सुगना उसकी अपनी बहन नहीं है… सोनू का कलेजा मुंह को आ रहा था… वह इस बात पर प्रसन्न हो या दुखी वह खुद भी समझ नहीं पा रहा था… सोनू ने फटाफट उस रिपोर्ट को उसी झोले में डालकर ऊपर छज्जे पर रख दिया… उसका मन व्यग्र हो चुका था वह सुनना के कमरे से बाहर निकल आया…

सुगना ने उससे बाहर जाते देखकर बोला..

" अरे सोनू सब फैला देले बाड़े… ठीक-ठाक कर के जो"

"बस थोड़ा देर में आव तनी"

सोनू घर से बाहर आ गया.. बाहर गली में टहलते हुए उसके दिमाग में बार-बार यही बात आ रही थी कि यह कैसे हो सकता…सुगना यदि सरयू सिंह की पुत्री थी तो सुगना की मां कौन है..?

हे भगवान तो क्या उसकी मां…ने सरयू सिंह से…. छी छी ऐसा नहीं हो सकता…कौन पुत्र अपनी मां के चरित्र पर सवाल उठाएगा…

सोनू बेचैन हो गया था…एक तरफ यह जान कर की सुगना उसकी अपनी सगी बहन नहीं है सोनू उसे लाली के समकक्ष रखने लगा था…और उसके मन ने इस बात को पूरी तरह स्वीकार कर लिया था। पर इस सच को मानना इतना आसान न था। उसने जब से अपना होश संभाला था सुगना उसके साथ थी…

सोनू कुछ देर बाद वापस घर गया…सुगना अब तक कमरा साफ कर चुकी थी.. सोनू ने उसकी अलमारी एक बार फिर खोली और बचपन का पुराना एल्बम बाहर निकाल कर देखने लगा..

उस दौरान फौज में होने के कारण पदमा अपने पति के साथ शहर में रहती थी…सुगना अपने मां-बाप की पहली संतान थी उन्होंने सुगना के जन्म पर कई तस्वीरें खिंचवाई थी…….सोनू को उन फोटो को देखकर यह यकीन हो गया की सुगना ने भी उसकी मां की ही कोख से जन्म लिया है… परंतु सुगना के पिता सरयू सिंह थे यह बात पचने योग्य न थी।

एक बार के लिए उसके मन में आया कि हो सकता है डॉक्टरों ने जांच रिपोर्ट में कोई गलती कर दी हो।


परंतु इसकी संभावना न थी…. हॉस्पिटल में सुगना ने ही सरयू सिंह को बचाने के लिए अपना खून दिया था यह बात रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर थी और यही बात सोनू के सारे संशय को मिटाने के लिए काफी थी… सोनू यह बात भली-भांति जान चुका था कि सुगना सरयू सिंह की ही पुत्री थी…

सोनू के मन में अचानक यह प्रश्न आया कि क्या सुगना दीदी को यह बात पता है…? उसने सुगना और सरयू सिंह के बीच संबंधों को बड़े करीब से देखा था एक बहू और ससुर के बीच जो संबंध होना चाहिए वह इस से ज्यादा कुछ और नहीं देख पाया था…


बंद कमरे के अंदर सुगना और सरयू सिंह के बीच क्या थे यह उसकी सोच से परे था। परंतु पिता और पुत्री ? यह संबंध अविश्वसनीय था। और यदि सरयू सिंह यह बात जानते थे तो उन्होंने क्यों अपनी ही पुत्री का विवाह अपने बड़े भाई के लड़के रतन से कराया था….

सोनू का दिमाग घूम रहा था उसके प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई नहीं था….अंततः उसने अपनी सुगना दीदी से ही बात करने की सोची और पूछा…

"दीदी जब सरयू चाचा बीमार पड़ल रहल तब तू उनका के खून देले रहलु नू..?

" हा …का बात बा? काहे पूछा तारे?"

" असही…" सोनू के चेहरे को देखकर सुगना ने अंदाजा लगा लिया कि वह किसी दुविधा में है उसने स्वयं कहा

"डॉक्टर पुछत रहले सो कि परिवार के आदमी बा? खून देवे के बा…हम रहनी एही से चल गईनी…रिपोर्ट में कुछ गडबड बा का..?"

सुगना ने जिस तरह बिंदास होकर प्रश्न पूछा था सोनू ने यह अंदाज कर लिया कि शायद सुगना को यह नहीं पता की सरयू सिंह उसके पिता है…वैसे भी अभी सुगना ने अंग्रेजी पढ़ना नहीं सीखा था और वैसे भी इन पचड़ों में ज्यादा पढ़ती भी न थी…

यह सच भी था यदि सुगना को यह बात पता होती कि सरयू सिंह उसके पिता है तो यह जानकर घुट घुट कर मर गई होती अपने ही पिता के साथ एक नहीं अनवरत संभोग करने का पाप वह सह नहीं पाती…और तों और वह इस बात को उजागर करने वाली रिपोर्ट को इस तरह सबकी पहुंच में कतई न रखती…

सोनू मन ही मन यह बात सोचने लगा कि क्यों ना वह यह बात सुगना दीदी को बता दे? पर क्यों? इससे क्या फर्क पड़ता था की सुगना सरयू सिंह की पुत्री है? सुगना और सोनू का व्यवहार और संबंध एक आदर्श भाई बहन जैसे ही रहे थे फिर इस नए संबंध से क्या फर्क पड़ना था? वैसे भी सोनू का सुगना के प्रति यह वासना जनित प्यार एक तरफा ही था…सुगना सोनू के प्रति आसक्त अवश्य थी परंतु मर्यादा के दायरे में….

हां यह बात अलग थी कि अब सोनू के दिमाग में सुगना खुलकर आने लगी थी। अपनी बहन से ही व्यभिचार के विचार से उसके मन में उठ रही आत्मग्लानि अब लगभग खत्म हो रही थी … सुगना और सोनू की मां एक थी परंतु पिता अलग-अलग…. सोनू ने सुगना को सरयू सिंह की संतान मान लिया। शायद उसके दिमाग में यह निष्कर्ष उस समय के पितृ प्रधान समाज की व्यवस्था के कारण निकाला था।

वैसे भी मनुष्य परिस्थितियों और घटनाओं को अपने विवेक से देखता है, सोचता है और उनका निष्कर्ष अपने अनुकूल ही निकलता है …

आज सोनू की शाम पूरे उतार-चढ़ाव में बीती। उसके दिमाग ने संबंधों का इतना आकलन आज से पहले कभी नहीं किया था। अपनी मां और सरयू सिंह के संबंधों को जानकर वह आश्चर्यचकित भी था और अब थोड़ा प्रसन्न भी था…सुगना दीदी उसकी अपनी बहन नहीं है… यह बात उसके दिमाग में पूरी तरह आत्मसात कर ली थी…


और अब सुगना के प्रति उसकी भावनाएं तेजी से बदल रही थी। ख्वाबों की मलिका अचानक उसे अपनी जद में दिखाई पड़ने लगी वह सुगना को छूना चाहता था उसकी कोमल त्वचा को महसूस करना चाहता था और अपने ख्वाबों से निकल कर उसे हकीकत का जामा पहनाना चाहता था…

धीरे-धीरे मन का ऊहा फोह कम हुआ और रात्रि में लाली की बाहों में आकर सोनू मदहोश हो गया


उबटन ने लाली के त्वचा को और भी चिकना कर दिया था। नंगी लाली को अपने आगोश में लेने के बाद सोनू एक बार फिर अपनी सुगना दीदी के बारे में सोचने लगा। धीरे धीरे लाली सुगना बन गई और सोनू ने अपनी सारी कसर लाली पर निकाल ली… लाली के होठों कानो और गालो को चूमते हुए सोनू ने आज उसे बेहद प्यार से चोदने लगा ..…. सोनू का यह रूप लाली को कई दिनों बाद देखने मिला था…. अन्यथा पिछले कई मुलाकातों में अब वह उसे एक पति पत्नी की भांति चोदता था जिसमें प्यार कम और वासना शांति ज्यादा हुआ करती थी..

वासना शांति के उपरांत सोनू ने लाली से ढेर सारी बातें की और सरयू सिंह के बारे में और भी जानने की कोशिश की।


लाली सरयू सिंह के पड़ोसी और दोस्त हरिया की बेटी थी। बातों ही बातों में सोनू को यह पता चल चुका था कि सरयू सिंह की ननिहाल और उसकी मां का मायका एक ही गांव में है और घर भी अगल-बगल हैं…।

आज के समाज में स्त्री और पुरुष स्वभाविक रिश्ते में भाई बहन ही होते हैं परंतु उनमें से कोई एक इस रिश्ते को झुठला कर पति का रूप ले लेता है…

सरयू सिंह और सोनू की मां पदमा भी स्वाभाविक रिश्ते में भाई बहन ही थे…सोनू की निगाहों में न तो सरयू सिंह व्यभिचारी थे और ना उसकी मां पदमा परंतु यह संबंध बना तो अवश्य था… पर कैसे.? यह समझ पाना बेहद कठिन था ।

परंतु जब जब वो अपने और लाली के संबंधों के बारे में सोचता वह अपनी तुलना सरयू सिंह से करने लगता। आखिर लाली भी तो उसकी मुंह बोली बहन थी हो सकता है एक ही गांव में अगल बगल रहते सरयू सिंह और उसकी मां पदमा के बीच कभी संबंध बन गया हो परंतु विवाह के उपरांत सोनू को यह बात नहीं पच रही थी।


परंतु अब वह इस पचड़े में और नहीं पढ़ना चाहता था वह अब यह मान चुका था कि सुगना उसकी सगी बहन नहीं है शायद उसकी यह भावना इसलिए भी प्रगाढ़ हो रही थी कि अब वह सुगना को अन्य रूप में चाहने लगा था….

काश उसे इस बात इल्म होता कि उस दिन जब सरयू सिंह ने पदमा को तालाब में डूबने से बचाया था और उसके मदमस्त बदन के स्पर्श का अनुभव किया था.. उनकी उत्तेजना जाग उठी थी और उनके इस स्पर्श ने पदमा के मन में भी हलचल पैदा कर दी थी…. शाम ढलते ढलते पदमा उनकी बाहों में आ चुकी थी… और उन्होंने पदमा का हलवा कसकर खाया था और अपने दिव्य वीर्य का कुछ अंश उसके गर्भ में छोड़ आए थे जो अब सुगना के रूप में उनकी पुत्रवधू बनकर उनका ही आगन रोशन कर रही थी।

समय हर चीज का वेग कम कर देता है क्या सुख क्या दुख क्या जिज्ञासा क्या आशा क्या निराशा…

धीरे-धीरे सोनू ने इस सच को अपना लिया।


अगली सुबह सोनू ने अपनी बड़ी बहन सुगना को देखने का नजरिया बदल लिया उसकी आत्मग्लानि लगभग खत्म हो चुकी थी अब सिर्फ और सिर्फ उसे सुगना को अपने नजदीक लाना था पर कैसे यह कार्य आसमान से तारे तोड़ कर ला ने जैसा था….. परंतु ट्रेन की घटना ने सोनू के मन में उम्मीद कायम रखी थी। सोनू सुगना के और करीब जाकर उसके मन में उठ रही भावनाओं का आकलन करना चाहता था क्या सुगना दीदी की भावनाएं भी लाली दीदी के जैसे होंगी क्या अतृप्त सुगना को अपने तृप्ति के लिए अपने ही भाई से संबंध स्थापित करने में परहेज नहीं होगा..

सोनू के मन में एक बार फिर आया कि वह सुगना को यह बात बता दे कि वह उसकी सगी बहन नहीं है परंतु उसने अपनी मां को व्यभिचारी साबित करना और सुगना को यह बताना की वह अपने ही पिता के घर में उनकी पुत्र वधू के रूप में रह रही है, सोनू को यह बात रास न आई।

सोनू ने मन ही मन यह फैसला कर लिया कि वह यह बात सुगना को अभी नहीं बताएगा परंतु यदि आवश्यकता पड़ी तो वह सुगना को बिना उसके पिता का नाम लिए यह अवश्य बता देगा कि वह उसकी सगी बहन नहीं है और शायद उसके मन में भी उठ रही आत्मग्लानि को कम कर देगा…

सोनू अपने मन में कई तरीके के विचार लाता कभी उन्हें हकीकत का जामा पहनाने की कोशिश करता परंतु उसे यह सहज ना लगता फिर वह अपने विचार बदलता नए तरीके की परिस्थितियां बनाता और मन ही मन उसमे विफल होता, सुगना को अपनी बाहों में भरने की कल्पना मात्र से वह सिहर उठता पर यह क्या इतना आसान था? चंद कामुक मुलाकातों को छोड़ दिया जाए तो… जिस बड़ी बहन को वह पिछले कई वर्षों से आदर और सम्मान देता आया था उसे अपने बिस्तर पर लाना यह निश्चित ही कठिन था…पर सोनू की कामुकता ने रिश्तो पर घुन की तरह कार्य करना शुरू कर दिया था ।


दोपहर बाद सभी को सलेमपुर के लिए निकलना था एसडीएम साहब ने 2 गाड़ियां बुलवा ली थी पद का प्रभाव दिखाई पड़ने लगा था। सुगना और लाली तैयारियों में जुटे हुए थे और सोनू बाजार घूम रहा था दोपहर के वक्त सुगना स्नान कर अपने कपड़े पहन चुकी थी और अपने गोरे चेहरे पर बोरोलीन लगा रही थी उसका सूना गला श्रृंगारदान के शीशे में दिखाई पड़ रहा था…शायद विवाह के बाद यह पहला अवसर था जब उसका गला सूना था। उसे अपने किशोरावस्था के दिन याद आ रहे थे परंतु भरी-भरी चुचियों को देखकर वह मुस्कुराने लगी अब वह एक किशोरी ना होकर पूर्ण युवती थी..

उसी समय सोनू ने पीछे से आकर उसकी पलकें अपनी हथेलियों से बंद कर दी और बोला

"सुगना दीदी आंख मत खोलिह"

"सुगना ने मचलते हुए कहा अरे छोड़ पहले… ना खोलब"

सोनू का लंड अब पेंट में अपना तनाव बढ़ाने लगा था परंतु सोनू ने अपनी कमर को सुगना की पीठ से दूर रखा हुआ था वह कोई असहज स्थिति पैदा करने के मूड में नहीं था..

"सोनू ने फिर कहा दीदी पक्का मत खोलिह"

सुगना स्वयं सोनू के स्पर्श से अब असहज महसूस कर रही थी उसके कंधे पर सोनू की गर्म सांसे टकरा रही थी और सुगना अब धीरे-धीरे असहज महसूस कर रही थी सुगना ने कहा

" ठीक बा ना खोलब" और सचमुच सुगना ने अपनी आंखें बंद ली जिसे सोनू की उन्होंने बखूबी महसूस किया…

सोनू ने अपनी जेब से मलमल के कपड़े में रखे नए मंगलसूत्र को निकाला और सुगना के गोरे और चमक दार गले पर पहनाने लगा मंगलसूत्र का लॉकेट सुगना की चूचियों के बीच घाटी में पचुंच कर उन्हे चूमने का प्रयास करने लगा…सुगना को अब जाकर एहसास हुआ कि उसके गले में सोनू कोई लाकेट पहना रहा है..

सुगना ने अपनी आंख खोली और यह देखकर दंग रह गई कि सोनू ने उसके गले में मंगलसूत्र पहना दिया है…

इससे पहले की सुगना कुछ बोल पाती…लाली वहां आ गई…और बोली..

"अरे वाह भाई होखे त अइसन दीदी के मंगल सूत्र काल्हे टुटल और आज नया आ गइल…"

सुगना कुछ बोल ना पाई…अपने ही भाई के हाथों मंगलसुत्र पहनकर वह अजीब सा महसूस कर रही थी…

सोनू सारी पढ़ाई पढ़ने के बावजूद यह बात नहीं समझ पाया की बड़ी बहन के गले में मंगलसूत्र डालना किस ओर इशारा कर रहा था ..

किताबों में पढ़ा गया ज्ञान व्यवहारिकता से अलग होता है…

सोनू ने सुगना के लिए टूटे हुए मंगलसूत्र को बनवाने की बजाय नया मंगलसूत्र खरीदना उचित समझा था वह अपनी बड़ी बहन सुगना को प्रसन्न करना चाहता था उसे इस बात का इल्म न था कि किसी युवा स्त्री को मंगलसूत्र पहनाने का क्या अर्थ हो सकता था परंतु अब जो होना था वह हो चुका था …

लाली ने आकर भाई-बहन के बीच उत्पन्न हुई असहजता को खत्म कर दिया था और कुछ ही देर मे सब कुछ सामान्य हो गया परंतु सुगना के मन में एक कसक आ चुकी थी वह उस खूबसूरत मंगलसूत्र को निकालना भी नहीं चाहती थी और उसे अपने ही भाई के हाथों उसका दिया मंगलसूत्र पहनने में असहजता भी महसूस हो रही थी…उधर सोनू प्रसन्न था…पर नियति ने उसकी मेहनत का फल देने के लिए बिसात बिछा दी थी..

सारी तैयारियां हो चुकी थी पर वहां आने में अभी विलंब था। लाली और सुगना आपस में बैठे बातें कर रहे थे। और बाहर हाल में बच्चों के साथ खेल रहा सोनू अपने कान अंदर सुगना और लाली की बात सुनने के लिए लगाए हुआ था.

" सांचौ कितना सुंदर मंगलसूत्र ले आईबा सोनूवा काश कि हमरा के पहनावले रहित सेवा करी हम और मलाई तोरा के"

सुगना ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए कहा

ए लाली बिल्कुल बकबक कर बंद कर,। तोरा हर घड़ी ऐही सब सब बात करे में मन लागेला "

"अरे हम कौन गलत कहत बानी"

"उ तोरा के मंगलसूत्र पहना दे ले बा अब काहे के भाई बहन₹

"लाली ते पगला गइल बाड़े…तोरा रिश्ता के कोनो मोल नाइक सोनू के रही बिगाडले बाड़े…"

" अरे वाह छोट भाई के खेला खेलल देखेलू तब ना सोचे लू…."

सुगना को यह उम्मीद न थी कि लाली इस प्रकार से खुलकर बोल देगी…सुगना शांत हो गई

लाली ने सुगना की कोमल हथेलिया अपने हाथों में लेकर उसे सह लाते हुए कहा

"ए सुगना तोर मन ना करे ला का"

सुगना अपने मन की अवस्था कतई बताना नहीं चाहती थी। सोनू उसके ख्वाबों खयालों में आकर पिछले कई दिनों से उसे स्खलित करता आ रहा था …

"अच्छा सोनुआ तोर भाई ना होेखित तब?"

"काश कि तोर बात सच होखित"

सुगना में बात समाप्त करने के लिए यह बात कह तो दी परंतु उसके लिए यह शब्द सोनू के कानों तक पहुंच चुके थे और उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा…


सुगना की बात में छुपा हुआ सार सोनू अपने मन मुताबिक समझ चुका था…उसे यह आभास हो रहा था की सुगना के मन में भी उसको लेकर कामूक भावनाएं और ख्याल हैं परंतु वह झूठी मर्यादा के अधीन होकर इस प्रकार के संबंधों से बच रहीं है…नजरअंदाज कर रही है…. सोनू अपने मन में आगे की रणनीति बनाने लगा सुगना को पाना अब उसका लक्ष्य बन चुका था…

शेष अगले भाग में...
 

Lovely Anand

Love is life
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Superb story really love it
Thanks
Bahut hi sunder update
Thanks bade dino bad idhar aana hua।
Update 91 send me
Sent
300 पेज पूरे होने की बहुत बहुत बधाई. अब तो 100वें अपडेट का इन्तजार है.
थैंक्स
Dipawali ka intjaar to hame bhee hai lavli anand bhai
Mujhe bhi hai
पात्रों की इतनी संख्या होने के बावजूद जिस तरह आप तारतम्य बनाये हुए हैं वो प्रशंसनीय है. सरयू और मनोरमा वाला सूत्र भी बढाते रहें क्योंकि उस से सुगना को ईर्ष्या होगी और यह ईर्ष्या ही उसे सोनू के समीप लाएगी. Her insecurity due to saryus rejection and leaning towards manorama will lead to her seeking revenge in sonu's arms.
Thanks आपकी सराहना के लिए
last update bawal he ek number
Thanks
Update 90 and 91 Please.
Sent
Bhai ko 300 pages hone ki bafhai🥳🥳
Thanks
Mukhmaithun wala pdh k ... mood bn gya.. sahab
Oh..
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है
बहन भाई को नियति एक दूसरे के पास ला रही है सोनू और सुगना धीरे धीरे आगे बढ़ रहे है, बिना सोच समझ के, देखते है दोनो किस मोड़ तक जाते हैं, उधर सरयू सिंह सोनी की तरह आशक्त है, देखें नियति ने इनके लिए क्या सोचा है
वेलकम आफ्टर a gap
Best lusty story
Thanks welcome to story
nice update padh ke maja aagaya
Thanks
बहुत ही कामुक गरमागरम और उतेजनापूर्ण अपडेट है
नियति ने फिर लाली और सोनू को एक कर दिया है दोनो आज फिर रंगरेलिया मना रहे हैं और सुगना उस दृश्य को आज फिर खिड़की से देख रही है यह सुगना के साथ दूसरी बार हो रहा है लगता है अब ये वासना दोनो को जल्दी ही एक करने का कारण बनेगी सोनू ने रखी किताब को सुगना ने देख लिया है
थैंक्स
 
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