दोपहर के वक्त लाली और सुगना आंगन में बैठकर बातें कर रही थी सोनू बाहर दालान में चारपाई पर लेटा हुआ ऊंघ रहा था। सुगना अपनी बुर की संवेदनशीलता के बारे में लाली से बातें करना चाह रही उसने लाली से पूछा
"ए लाली पहला रात के तोहरो उ ( बुर की तरफ इशारा करते हुए) लाल भई रहे का.."
"हां तनी मनि ( हां थोड़ा सा)"
"हमार तो ढेर लाल भईल बा"
सुगना ने अनजाने में ही सच कह दिया था। लाली को यह बात बिल्कुल भी ना समझ आई सुगना का पति घर में न था और सुगना की सुहागरात को हुए काफी समय बीत चुका था फिर सुगना ने अकस्मात वह बात क्यों कही। उसने उस बात को नजरअंदाज करते हुए कहा
"त तहरा सुहागरात में ढेर छीला गई रहे का रतन भैया चुमले चटले ना रहन का"
लाली हंस रही थी और सुगना भी उसका साथ दे रही थी उधर सोनू उनकी बात से उत्तेजित हो रहा था वह सुगना के प्रति तो आकर्षित न था पर लाली उसके सपनों में कई बार आती थी।
लाली की कसी हुई कमसिन जवानी सोनू को लुभाती थी परंतु अभी वह यह सुख लेने लायक न था उसकी उम्र अभी सपने देखने की ही थी जिस पर लाली की चुचियों ने अधिकार जमाया हुआ था।
सरयू सिंह आज भी सुगना के आगे पीछे घूम रहे थे यह बात भूल कर कि उसका भाई घर में ही है और आज सुगना के साथ संभोग करने पर पकड़े जाने का खतरा था पर वह अपनी उत्तेजना के अधीन होकर सुगना से मिलन का मौका तलाश रहे थे।
शाम का वक्त था सुगना की बछिया जो अब गाय बन चुकी थी उसे दुहने का वक्त हो रहा था। सामान्यतः यह काम सरयू सिह स्वयं किया करते थे परंतु उन्हें यह बात पता थी कि सोनू भी इस कला में दक्ष है। उनके मन में योजना बन गई उन्होंने कजरी से कहा
" आज सोनू से दूध निकलवा ल हमरा अंगूठा में दर्द बा"
थोड़ी ही देर में सोनू और कजरी दोनों सुगना की बछिया का दूध निकालने मैं लग गए। बछिया नयी थी वह अपनी चुचियों पर आसानी से हाथ नहीं लगाने दे रही थी। सोनू के हाथ तो उसके लिए बिल्कुल नए थे। सोनू ने उसके दोनों पैर बांध दिए और कजरी बछिया के पुट्ठों पर हाथ फिराने लगी।
यह एक संयोग ही था की सुगना अपने कमरे की कोठरी से एक बार फिर वही दृश्य देख रही थी जिसे देखकर उसके मन मे उत्तेजना ने जन्म लिया था।
उसने स्वयं को बछिया की जगह रख कर सोचना शुरू कर दिया। एक पल के लिए उसे लगा कि जैसे उसकी जांघें बांध दी गई हों और उसकी सास कजरी उसके नितंबों को सहला रही हो तथा उसकी चूचियों से दूध निकालने का प्रयास किया जा रहा हो। वह अपनी चुचियों पर सोनू के हाथ की कल्पना न कर पायी वह उसका छोटा भाई था उसके ख्यालों में अभी उसके बाबूजी सरयू सिंह ही छाए हुए थे।
वह अपनी सोच पर शरमा गई। उसके मन में आई इच्छा नियति ने पढ़ ली। सुगना ने अभी-अभी संभोग सुख लेना शुरू किया था उसके मन में तरह-तरह की कल्पनाएं आना वाजिब था आखिर वह बछिया ही थी जिसने सुगना की मन में उसके बाबूजी के प्रति प्यार को वासना में बदल दिया था।
दालान में बैठे सरयू सिंह कभी सुगना को देखते कभी कजरी और सोनू को।
सुगना अपने छोटे भाई के हाथ अपनी बछिया की चुचियों पर महसूस कर गनगना रही थी। वह हमेशा अपनी चुचियों की तुलना बछिया की चुचियों से करती रही थी। जैसे-जैसे सोनू के हाथ बछिया की चुचियों को मीस रहे थे सुगना के निप्पल खड़े हो रहे थे वह अपने मन में चल रहे अंतर्द्वंद में जूझ रही थी एक पल के लिए उसने सोनू के हाथों को अपनी चुचियों पर भी महसूस कर लिया।
क्या बछिया की चुचियों पर एक नवकिशोर के हाथ भी सरयू सिंह की तरह महसूस होते होंगे? क्या उम्र का अंतर चुचियों के स्पर्श पर कोई असर डालता होगा? वह अपने ख्यालों में खोई हुई थी तभी सरयू सिंह ने सुगना को पीछे से आकर पकड़ लिया. इससे पहले कि सुगना चौक पाती सरयू सिंह की हथेलियों ने उसके होठों को ढक लिया सरयू सिंह सुगना के गालों से गाल सटाये हुए उसे चूम रहे थे और लंड सुगना के नितंबो से सट कर सुगना को उसका एहसास दिला था सुगना दोहरी उत्तेजना की शिकार हो रही थी...
सुगना स्वयं को अपने बाबूजी के आगोश में महसूस कर रही थी उसकी निगाहें अपने छोटे भाई सोनू पर थी जो उसकी बछिया की चूचियां दबा दबा कर दूध निकाल रहा था तभी सरयू सिंह की हथेलियों ने सुगना की चुचियों को धर लिया सुगना का ब्लाउज सरयू सिंह की हथेलियों को न रोक पाया वो ब्लाउज के नीचे से प्रवेश कर सुगना की नंगी चूचियां को छूने लगी.
सुगना उत्तेजित हो चली थी. सरयू सिंह का लंड उसके नितंबों के बीच चुभ रहा था। अचानक सुगना ने अपनी साड़ी को ऊपर उठता महसूस किया उसे सरयू सिंह से यह उम्मीद न थी क्या उसके बाबु जी अभी इसी अवस्था में उसे नंगा करेंगे। वह कांप उठी उसकी निगाहें अभी भी अपनी सास कजरी और सोनू पर थी। परंतु सुगना अब उत्तेजना के आधीन थी सरयू सिंह उसकी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर करते हुए कमर तक ले आए और सुगना ने इसे रोकने की कोई कोशिश न की। सरयू सिंह का लंड सुगना की गांड से छू रहा था। वह अपने लंड को बुर की तरफ ले जाना चाह रहे थे।
सुगना खड़ी थी इस अवस्था में यह संभव न था वह कामकला के आसनों से परिचित न थी। सरयू सिंह ने सुगना के पेट पर अपना हाथ लगाया और उससे आगे झुकने का इशारा किया। सुगना एक खूबसूरत गुड़िया की तरह खिड़की को पकड़कर अपने शरीर को आगे झुका लिया तथा अपनी कमर को पीछे कर दिया। उसके बाबूजी के लंड को बुर् का स्पर्श मिल चुका था। स्पर्श ही क्या बुर से छलक रही लार ने सरजू सिंह के लंड के सुपारे को गीला कर दिया।
शरीर सिंह से और बर्दाश्त न हुआ उन्होंने अपने लंड को अपनी प्यारी सुगना बहू की बुर में उतार दिया वह गर्म सलाख की भांति सुगना की मक्खन जैसी बुर में प्रवेश करता गया। सुगना की आंखें बड़ी होती चली गई। वह इस उत्तेजक माहौल मैं अपना दर्द भूल कर कर लंड लीलने को कोशिश कर रही थी।
नियति तमाशा देख रही थी सरयू सिंह अपनी बेटी समान बहू सुगना को उसके छोटे भाई की उपस्थिति में धीरे-धीरे चोद रहे थे। उधर सोनू सुगना की बछिया की सूचियां मिस रहा था और इधर सरयू सिंह उसकी बहन सुगना के।
सरयू सिंह ने कहा
"सोनू बढ़िया से दूध दूहता लागा ता जल्दी एकरो बियाह करे के परी"
सुगना शर्मा गई और अपनी बुर को सिकोड़ कर सरयू सिंह के लंड पर दबाव बढ़ा दिया।
सरयू सिंह ने सुगना की चुचियों को तेजी से दबाया और सुगना कराह उठी...
"बाबू जी तनी धीरे से …...दुखाता, इकरा में से दूध ना निकली" उसने मुस्कुराते हुए कहा।
सरयू सिंह भी मुस्कुरा रहे थे उन्होंने सुगना को छेड़ा "जायेदा आज फिर से तहरा …. ( लंड से गर्भाशय पर प्रहार करते हुए) ए में मलाई भर दे तानी कुछ दिन बाद तोहरो चूची से दूध निकली"
सुगना ने अपने हाथ पीछे किये और उनके पेट पर मुक्का मारा
"छी कइसे बोला तानी"
समय कम था। अब सरयू सिंह सुगना को पूरे आवेश और उन्माद से चोदे जा रहे थे उधर दूध की बाल्टी भर रही थी उधर सरयू सिंह के अंडकोष में वीर्य।
बाल्टी भरने के बाद कजरी बछिया के पैर में बंधी रस्सी खोल रही थी और सोनू बाल्टी लिए उठ रहा था। इससे पहले कि वह दोनों दालान तक पहुंचते सरयू सिंह और सुगना अपना काम तमाम कर चुके थे। सरयू सिंह का वीर्य सुगना की बुर में भर चुका था और लंड निकलने के बाद उसकी जांघों से रिसता हुआ नीचे आ रहा था।
सरयू सिंह ने अपनी धोती में लपेटा हुआ लड्डू निकाला और सुगना को पकड़ा दिया वह खुशी-खुशी लड्डू खाने लगी।
कजरी और सोनू दलान में आ चुके थे।
सोनू ने सुगना को लड्डू खाते हुए देख कर बोला
"अकेले अकेले ही लड्डू खा तारे हमरा के ना देबे"
सुगना अबोध थी उसे लड्डू का रहस्य पता न था उसने लड्डू का बचा हुआ छोटा टुकड़ा सोनू को दे दिया जब तक सरयू सिंह सोनू को रोक पाते सोनू की जीभ उस लड्डू के स्वाद को महसूस कर रही थी लड्डू में मिली हुई दवाई का स्वाद सोनू को रास ना आया उसने कहा
"लड्डू तनी तीत लगाता"
सरयू सिंह ने बात बदल दी
"हां ई लड्डू तनी पुरान हो गईल बा"
इन्हीं बातों के दौरान सुगना ने अपनी आंखों से बहता हुआ वीर्य अपने पेटीकोट में पोछ लिया था।
कजरी सुगना के ब्लाउज पर पड़ी सलवटे देख रही थी परंतु वह कुछ बोल पाने की स्थिति में न थी उसे यह कतई उम्मीद न थी कि सरयू सिंह इतनी जल्दी और इस तरह से सोनू की उपस्थिति में सुगना के साथ छेडख़ानी कर लेंगे।
सोनू अपने जहन में अपनी दीदी सुगना का खुशहाल चेहरा और उसकी सहेली लाली की सुनहरी यादें लेकर अपने घर लौट गया।
इधर सरयू सिंह ने सुगना के जीवन में खुशियां भर दी थी। वह कभी कभी उसके गर्भाशय में अपना वीर्य भरते, कभी अपनी वीर्य रूपी मलाई से उसकी मालिश। सुगना को सरयू सिंह का हर रूप पसंद आता वह सिर्फ और सिर्फ चुदने का आनंद लेती। बुर के अंदर लंड का फूलना पिचकना उसे अद्भुत सुख देता था इसलिए वह सरयू सिंह को अपने अंदर स्खलित होने पर अब टोकती न थी। उसने अब सब कुछ नियति के भरोसे छोड़ दिया था। और नियत उसे अभी और सुख देने पर उतारू थी। उसका गर्भाधान अब प्राथमिकता न रही थी। सरयू सिह जब जब वह अपनी बहू की बुर में अपना वीर्य भरते उसकी काट वह लड्डू के रूप में सुगना को खिला देते।
सुगना को उस लड्डू का रहस्य अभी पता न था परंतु वह अपने गर्भ में गिरे हुए वीर्य को भूलकर संभोग सुख का आनंद ले रही थी। जब जब सरयू सिंह सुगना की बुर में अपना वीर्य भरते तब तब सुगना अपने बाबुजी को घूरकर देखती और उसे लड्डू मिलता। वह इस राज को जानना चाहती थी परंतु सरयू सिंह वह बात छुपा ले जाते।
सुगना ने अब अपनी जांघें अपने बाबूजी के लिए पूरी तरह फैला दी थी यह उसकी सास कजरी की भी इच्छा थी और उसकी मां पदमा की भी। सुगना मन ही मन गर्भवती नहीं होना चाहती थी परंतु वह यह बात बार-बार सरयू सिंह से नहीं कहना चाहती थी। सरयू सिंह जब जब उसकी बुर में अपना वीर्य भरते वह एक तरफ थोड़ी दुखी होती परंतु मां बनने की खुशी सोचकर वह प्रसन्न भी होती। बुर में वीर्य भरे जाने के पश्चात उसे लड्डू खाने को मिलता उसके लिए यह एक अतिरिक्त खुशी थी।
अगले दस बारह दिन में कजरी ने सुगना और सरयू सिंह को संभोग करने के खूब अवसर दिए। सुगना की घनघोर चुदाई भी हुई इसके वावजूद सुगना का महीना आ गया।
सुगना बेहद खुश थी परंतु अपनी सास कजरी के सामने दुखी होने का नाटक कर रही थी।
सुगना का महीना आने के पश्चात सरयू सिह बेहद प्रसन्न थे। यह खुशी उनके अंतर्मन में थी परंतु जब जब वह कजरी के पास जाते वह अपनी खुशी पर काबू रखने का प्रयास करते ।
इन दस बारह दिनों में कजरी और सरयू सिंह के बीच संभोग ना हो पाया था परंतु अब सुगना का महीना आने के बाद सरयू सिंह कजरी के साथ रात बिताना चाहते थे।
सुगना समझदार थी उसे सरयू सिंह और कजरी के बीच की नजदीकियां बखूबी पता थी वह जानती थी की अब चुदने की बारी उसकी सास कजरी की थी। वैसे भी सरयू सिंह इन दिनों बेहद उत्तेजित रहा करते थे और हो भी क्यों ना अपनी बहू की कोमल बुर को चोद चोद कर उनका लंड मदहोश हो गया था। उसे एक पल के लिए भी चैन ना आता जब जब सुगना लहराती हुई दिखाई पड़ती तब तब वह लंड अपना सर उठाता। सुगना इन दिनों कजरी के कोठरी में उसकी चारपाई पर ही सो रही थी।
शाम के वक्त सुगना और कजरी आगन में नहीं मिल रही थी तभी सुगना ने कहा
"मां, हम अपना कोठरी में में सुतब"
"ई काहें?"
"राउर कुवर जी आजो मत धर लेस" सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा सुगना की बात सुनकर कजरी भी हंस पड़ी और बोली..
"हम बता देब परेशान मत हो"
" ए सुगना, एक बात पूछी?"
" का बात?"
" कुंवर जी भीतरीये गिरावत रहन नू"
"का गिरावत रहन?" सुगना ने अनजान बनते हुए कहा
"अरे आपन मलाई"
"मां साफ-साफ बोल ना का पूछा तारे"
कजरी ने अपनी जाँघे फैला दी और अपनी बुर की तरफ इशारा करते हुए बोली
"तोरा में मलाई भरले रहन की ना?"
"हा भरत रहन पर कभी कभी हमारा देह पर भी गिरावत रहन"
कजरी का चेहरा लाल हो रहा था जिसमें वासना का पुट ज्यादा था और क्रोध का कम उसने कहा
"उ तोरा देह पर ना गिरावत होइहें चूचीं पर गिरावत होइहें"
सुगना ने अपने मन की खुशी को दबाते हुए कहा
" ए मा तोहरा कैसे मालूम"
कजरी निरुत्तर हो गई उसकी चोरी उसकी बहू ने पकड़ ली थी। कजरी झेंप गयी उसने स्थिति को संभालते हुए कहा
"अरे सब मर्द लोग के दु ही चीज पसंद ह" उसने अपनी निगाहों से सुगना की चूची और बुर की तरफ इशारा कर दिया।
सुगना भी आज कजरी को छेड़ने का मन बना चुकी थी उसने कहा
"मां बाबूजी ता कई साल पहले ही चल गई रहन रउआ कैसे मालूम था मर्द लोग के लीला"
कजरी ने उसकी बात का कोई उत्तर न दिया बल्कि अपनी निगाहें गेहूं की थाली में गड़ा ली ।
सुगना ने अपनी मर्यादा को ध्यान में रखते हुए बात को वहीं पर समाप्त कर दिया परंतु जाते जाते वह मुस्कुराते हुए बोली
"आज हम अपना कोठरी में सूतब अपना कुँवर जी से बच के रहिह"
सुगना ने कजरी के मन की बात कह दी कजरी की अंतरात्मा खुश हो गई उसकी जांघों के बीच एक चिलकन सी हुई और कजरी की बुर मुस्कुरा उठी आज कई दिनों बाद सरयू सिंह का साथ उसे मिलने वाला था।
सरयू सिंह आगन में बैठकर खाना खा रहे थे कजरी के मन में आज हलचल थी। सुगना बार-बार कजरी की तरफ देख रही थी उसे पता था आज उसकी सास कजरी जरूर चुदेगी।
खाना खाने के बाद सुगना अपने कमरे में चली गई और कजरी ने अपनी बुर को धो पोछ कर तैयार कर लिया और अपनी चारपाई पर लेट कर सरयू सिंह का इंतजार करने लगी।
आगन में शांति होते ही सरयू सिंह ने अपनी लंगोट उतार ली अचानक उनका ध्यान स्टील के उस छोटे से डिब्बे पर गया जिसमें उन्होंने अपनी प्यारी बहू सुगना के लिए लड्डू बना रखे थे। आज इन लड्डुओं कि उन्हें कोई आवश्यकता न थी। कजरी की नसबंदी पहले ही हो चुकी थी।
सरयू सिंह आकर कजरी की बगल में लेट गए और उसकी चुचियों पर हाथ रख उसे सहलाने लगे कजरी ने कहा
"रउवा अपन बहू सुगना में भुला गईल बानी। हमार याद एको दिन ना आइल हा"
सरयू सिंह ने कजरी की बड़ी-बड़ी चुचियों को जोर से मसल दिया और बोले
"अरे सुगना त अभी लइका बिया। तू ही तो कह ले रहलू कि पूरा मेहनत कर ली ओकरा गोदी में लाइका खातिर"
" एहि से दोनों बेरा (टाइम) मालपुआ खात रहनी हां"
सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे। सुगना के मालपुआ को याद करके वो उत्तेजित हो रहे थे उनका लंड उनकी भाभी कजरी की गांड से छू रहा था जिसे वह पूरी तरह अंदर उतार देना चाहते थे परंतु कजरी ने उस लंड को अपनी गांड में लेने से मना कर दिया था इतने दिनों के साथ के बावजूद वह उस सुख का आनंद न ले पाए थे।
कजरी अब पलट कर पीठ के बल आ चुकी थी सरयू एक हाथ से उसकी चूची मिस रहे थे तथा अपने चेहरे को दूसरी चूची पर रगड़ रहे थे कजरी ने कहा
"राउर सारा मेहनत बेकार चल गईल.."
"मेहनत बेकार नईखे गइल देखेलू सुगना आजकल कितना खुश रहेंले"
"अब रउआ पुआ चूसब त खुश ना रही"
सुगना झरोखे पर खड़ी सरयू सिंह और अपनी सास कजरी की बातें सुन रही थी वह सतर्क हो गई थी उसे यह विश्वास ही नहीं हो रहा था की उसके बाबूजी और सास उसके ही बारे में ऐसी बातें कर रहे थे वह अपना कान लगाकर उनकी बातें सुनने का प्रयास करने लगी।
"ले आवा आज तोहरो चूस दी"
सरयू सिंह ने कजरी की साड़ी को ऊपर खींचना शुरू कर दिया उसकी मखमली और गदराई जांघें नग्न होने लगी। उधर सरयू सिंह उसकी साड़ी को उठा रहे थे और इधर कजरी अपनी चुचियों को ब्लाउज से आजाद कर रही थी।
सरयू सिंह अपना चेहरा कजरी की जांघों के बीच ले जाने लगे तभी कजरी ने रोक लिया और कहा
" रहे दी अभी ई सुख सुगना के ही दी साच में ओकर पुआ फूल जइसन कोमल बा"
"ओह त हु हूँ ओकर पुआ देखले बाड़ू"
"ओकरा खिड़किया से सब दिखाई देला"
"इकरा मतलब वह दिन तू सब देखले रहलु"
कजरी ने कोई जवाब न दिया अपितु सरयू सिंह को अपने ऊपर खींच लिया सरयू सिंह कजरी का इशारा पाते ही उसकी जांघों के बीच आ गए और उनका लंड अपनी सर्वकालिक ओखली में प्रवेश कर गया। सरयू सिंह की रफ्तार और उन्माद बिल्कुल नया था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह कजरी की बुर को पूरे उन्माद से चोद कर कजरी को प्रसन्न करना चाहते हों और उसे अपनी सुकुमार बहू को चोदने का अवसर देने के लिए उसे धन्यवाद देना चाहते हों। इस नए उन्माद को कजरी ने पहचान लिया और मुस्कुराते हुए बोली
"सुगना बहू रउआ में फुर्ती भर देले बिया"
सरयू सिंह ने कजरी की चुचियों को मसल दिया और उसकी प्यासी बुर में झड़ने लगे कजरी भी अपनी जाँघे फैला कर अपने कुँवर जी की वीर्य वर्षा का आंनद लेने लगी। उसकी बुर भी अपना पानी छोड़ रही थी। आज के इस उत्तेजक प्यार में निश्चय ही सुगना का योगदान था कजरी और शरीर सिंह दोनों ही उसके बारे में सोच रहे थे।
उधर सुगना अपने बाबू जी और अपनी सास की बातें सुन चुकी थी। उसकी रजस्वला बुर भी पनिया गई थी परंतु सुगना उसे और छेड़ना नहीं चाहती थी।
अब तीनों ही एक दूसरे का राज जानते थे।
अपनी सांसे सामान्य होने के बाद कजरी में पूछा
"सुगना के कोनो बीमारी नइखे नु अतना मेहनत पर पर त ओकरा गाभिन हो जाये के चाहीं"
सरयू सिंह ने अपनी खुशी छुपाते हुए कहा " ना अइसन लागत त नइखे, जाए द एक महीना और देख ल"
सरयू सिंह ने अगले महीने भी सुगना की चुदाई का मार्ग प्रशस्त कर लिया था।
शेष अगले भाग में।