सुगना को जी भर कर चोदने के बाद सरयू सिंह सुगना के नंगे जिस्म को अपने सीने से सटाए हुए आनंदित हो रहे थे सुगना उनसे अपने कोमल गाल रगड़ रही थी। अचानक सुगना ने अलसायी आवाज में कहा
"बाबूजी हमार बात ना मननी हा नु"
सरयू सिंह को सुगना की बात समझ ना आई। उन्होंने उसे चूमते हुए कहा
" कौन बात बाबू " सुगना ने अपना चेहरा उनसे दूर किया और अपने पेट से सटे हुए वीर्य से सने लंड को पकड़ लिया और बोली "एकर मलाई हमरा भीतरी भर देनी हा अब हमार पेट बछिया जइसन फूल जायी फेर ई सुख कैसे मिली"
सरयू सिंह सुगना का दर्द समझ चुके थे उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा
"ताहरा मां और सास दुनो के इहे ईच्छा रहे तू भी तो पहले इहे चाहत रहलु"
सुगना अपनी छोटी-छोटी मुठ्ठीयों से उनके सीने पर मरने लगी और बोली अभी
"कुछ देर पहले बतावले त रहनी"
सरयू सिंह को सुगना की एक एक बात याद थी परंतु वह उसे छेड़ने के मूड में थे। उन्होंने कहा
"एक हाली फिर से बता द"
सुगना शर्मा रही थी। शरीर सिंह उसे चुमते हुए बार-बार उससे पूछ रहे थे पर वह कोई जवाब न दे रही थी अपितु उनके सीने से अपनी चूचियाँ रगड़ रही थी तथा अपने हाथों से उनके चिपचिपा लंड को सहला रही थी। सरयू सिंह … अपना हाथ चारपाई के नीचे ले गए और अपनी धोती को अपने पास खींचा धोती में गठियाये हुए मोतीचूर के लड्डू को निकाला और उसे सुगना के होठों पर रख दिया।
सुगना को लड्डू बेहद पसंद थे। उसने अपने होठों को गोलकर उस लड्डू को पकड़ लिया और उसे अपने बाबूजी के होठों से सटाने लगी। वह उस लड्डू को अपने बाबू जी से भी साझा करना चाह रही थी। सरयू सिंह ने लड्डू को अपने होठों से सटा लिया परंतु खाया नहीं। धीरे-धीरे लड्डू का अधिकतर भाग सुगना के मुंह में विलीन होता चला गया। सरयू सिंह अपनी बहू को वह लड्डू खाते देख रहे थे तथा उसके नितंबों को लगातार सहलाते हुए आने वाले दिनों की कल्पना कर रहे थे। लड्डू के खत्म होते ही सुगना ने कहा ..
"लड्डुआ तनि तीत लाग तला हा"
"जायेदा इहे तहर सब मनोकामना पूरा करी"
सुगना को सरयू सिंह की यह बात समझ ना आयी परंतु उसकी बुर अब एक बार फिर चुदाई का सुख लेने के लिए तैयार हो चुकी थी। सुगना धीरे धीरे अपने बाबूजी के शरीर पर आ रही थी। कुछ ही देर में वह सरयू सिंह के ऊपर थी उसकी दोनों मखमली जाँघे सरयू सिंह की कमर के दोनों तरफ आ चुकी थी। लंड और बुर के बीच का फासला तेजी से कम हो रहा था।
सरयू सिंह अपनी प्यारी सुगना के कोमल और मासूम चेहरे को देखते हुए उसके भूत और भविष्य दोनों के बारे में सोच रहे थे। क्या उन्होंने वह लड्डू खिलाकर गलत किया था?
दरअसल आज सुबह से ही वह इस उधेड़बुन में थे कि यदि सुगना गर्भवती हो गई तो वह उसके साथ आगे संभोग कैसे कर पाएंगे। वह सुगना की सुंदर काया और मासूमियत से आकर्षित हो गए थे। वह उसके साथ जी भर कर और तरह-तरह से संभोग करना चाहते थे। अपने मन की इच्छा को पूरा करने का उन्हें कोई उपाय न सूझ रहा था। यदि वह अपना वीर्य बाहर गिराते तो सुगना उनकी इस कामुक इच्छा को जान जाती।
उनका दिमाग वासना के आधीन हो गया। अपनी भौजी कजरी और प्रेमिका पदमा की इच्छा को दरकिनार रखते हुए वो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर गर्भनिरोधक गोलियां ले आए उन्हें अपने हाथों से लड्डू में मिलाकर कुछ लड्डू तैयार कर लिए। वह अपनी उधेड़बुन में अब भी थे। मन में दुविधा प्रबल थी अपनी कामवासना के आधीन सरयू सिंह ने उसमें से एक लड्डू अपनी धोती में गठियाया और सुगना को उसका प्रथम मिलन का सुख देने कमरे में आ गए थे।
कजरी चुदाई का दृश्य देख चुकी थी। उन्होंने सुगना के गर्भ में अपना वीर्य भरकर कजरी और पदमा दोनों की इच्छा का मान रख लिया था और अब नियति ने सुगना के मुख से गर्भवती न होने की इच्छा जाहिर करा कर आकर उस लड्डू की उपयोगिता सिद्ध कर दी थी।
सरयू सिंह ने अपने हाथों से अपनी बहू को गर्भवती न होने के लिए उस लड्डू का सेवन करा दिया था जिसे सुगना ने अनजाने में खा लिया था।
सरयू सिंह ने वह लड्डू बनाकर जो पाप किया था उसमें सुगना की सहभागिता शामिल हो गई थी। सरयू सिंह ने सुगना के कोमल चेहरे को चूम लिया और उधर उनके लंड ने सुगना की कोमल बुर को। सुगना सिहर उठी।
लंड का सुपाड़ा बुर में प्रवेश कर चुका था। पिछली दमदार चुदाई में बूर फूलकर अपना मुख खोल चुकी थी। सरयू सिंह अपनी कमर को थोड़ा पीछे ले गए पर सुगना उस जादुई लंड को अपनी बुर से अलग करने के मूड में न थी उसने अपनी कमर पीछे करनी शुरू कर दी। सरयू सिंह सुगना की इच्छा जान चुके थे उन्होंने अचानक अपनी कमर आगे कर दी। सुगना की पीछे जाती हुई बुर में लंड घुसता चला गया। सरयू सिंह द्वारा अपनी बहू के बुर में भरा हुआ वीर्य अब एक स्नेहक (लुब्रिकेंट) की तरह काम कर रहा था।
ज्यों ज्यों लंड अंदर गया सुगुना की आंखें बाहर आने को हो रही थी। उसका चेहरा लाल हो रहा था। उसने अपने बाबुजी के कंधे पर अपने नाखून गड़ाकर उन्हें रोकने की कोशिश की परंतु सरयु सिंह के मजबूत हाथों ने सुगना की कमर को जकड़ लिया था और सुगना के प्रतिरोध के बावजूद लंड का अधिकतर भाग सुगना की बुर में प्रवेश कर गया सुगना अपने बाबुजी के सीने पर अपनी मुठ्ठीयों से मार रही थी और कराहते हुए बोल रही थी..
बाउजी तनि धीरे से…..दुखाता।
सरयू सिंह ने सुगना को अपने सीने से सटा लिया और उसे चूम लिया सुगना की इस बात पर बेहद प्यार आता था एक तरफ वह सुगना के गालों और माथे को चुने जा रहे थे दूसरी तरफ अपनी प्यारी बहू की चूत में लंड आगे पीछे करने लगे थे।
सुगना का दर्द गायब होने लगा चुदाई के आनंद के आगे दर्द कुछ फीका लग रहा था। सुगना अपने बाबूजी को लगातार चुम रही थी और चुदाई का आनंद ले रही थी। सरयू सिंह ने अपनी कमर की रफ्तार जैसे-जैसे कम की सुगना की कमर उसी अनुपात में हिलने लगी। उसने लंड और बुर के प्रेमसंघर्ष में कोई कमी नहीं आने दी। अपने बाबूजी का कार्यभार नई पीढ़ी की सुगना ने संभाल लिया था वह अपनी बुर के भगनासे को अपने बाबूजी के पेड़ू से रगड़ते हुए लंड के अधिक से अधिक भाग को अपनी बुर में समाहित करने की चेष्टा कर रही थी।
जब लंड उसके गर्भाशय के मुख में प्रवेश करता हूं वह सिहर उठती थी पर उस आनंद को वह बार-बार लेना चाह रही थी। कुछ देर तक अपने बाबू जी को अपनी कोमल बुर उसे चोदने के बाद सुगना की हिम्मत जवाब दे गयी। उसकी बुर कांपने लगी और उसने अपनी जाँघे फैलाकर लंड को पूरी तरह आत्मसात कर लिया।
सुगना झड़ रही थी। सरयू सिंह उसके चेहरे को देख रहे थे और उसके गालों और माथे को चूम रहे थे। उसने कराहते हुए कहा
"बाबूजी हमारा के हमेशा असहीं चो………….." सुगना से और आगे न कहा गया। सुगना शर्म से पानी पानी हो रही थी। वह अपना चेहरा नीचे करना चाहती थी पर झड़ती हुई सुनना को देखना सरयू सिंह को उत्तेजक लग रहा था। सुगना के चेहरे के भाव तेजी से बदल रहे थे कभी वह अपनी आंखों को भींचती, कभी दांतो से होठों को काटती कभी मुंह को गोल करती तरह-तरह की के भाव चेहरे पर लाते हुए सुगना स्खलित हो गई।
वह पराजित योद्धा की तरह अपने बाबू जी के सीने पर लेट चुकी थी। सरयू सिंह कभी उसकी पीठ को सहलाते कभी गर्दन तो कभी उसके कोमल नितंबों को दबाते। उनकी भावनाएं सुगना के प्रति प्यार और वासना में झूल रही थी। उसकी गुदांज गांड को छूते ही सुगना सिहर उठती पर वह थक चुकी थी। सरयू सिंह का लंड अब भी उसकी बुर में तना हुआ था और चीख चीख कर सरयू सिंह से अपनी कमर हिलाने के लिए कह रहा था। उसे सुगना की थकावट से कोई मतलब न था वह सिर्फ और सिर्फ सुगना की बुर में और अंदर तक प्रवेश करना चाहता था।
सरयू सिंह सुगना को प्यार कर रहे थे जैसे ही सुगना की सांसे सामान्य हुई सरयू सिंह सुगना को गोद मे लिए हुए बैठ गए। एक पल के लिए लगा जैसे उनका लंड सुगना की बुर से बाहर आ जाएगा पर सरयू सिंह ने अपने लंड को बुर के अंदर बनाए रखा।
सुगना सरयू सिंह के खूंटे पर टंगी हुई उनकी गोद में बैठ चुकी थी। शरीर सिंह उसे चूम रहे थे। सुगना भी अब उन्हें प्यार कर रही थी। उसे पता था उसकी बुर के बीच ठंसा हुआ लंड बिना इस स्खलित हुए नहीं मानेगा।
सुगना ने अपने बाबूजी के होंठों को चूसना शुरू कर दिया और अपनी नुकीली मुलायम जीभ उनके होठों पर फिराने लगी। सरयू सिंह कभी उसे अपने होठों से पकड़ पाते कभी सुगना उसे लप्प से अपनी मुंह के अंदर खींच लेती। ससुर बहु का यह खेल दोनों को उत्तेजित कर रहा था।
सरयू सिंह के हाथ सुगना के नितंबों को सहारा दिए हुए थे वह अपनी हथेलियों से उसे धीरे-धीरे ऊपर नीचे करने लगे सरयू सिंह का लंड बुर में आगे पीछे होने लगा। वह आनंद में डूबने लगे। सुगना भी अपने बाबू जी को स्खलित करने का प्रयास करने लगी।
सुगना ने मुस्कुराते हुए अपनी बुर की तरफ देखा और बोली
"बाबू जी आज एकरो इच्छा पूरा हो गईल" सरयू सिंह उसकी इस अदा पर घायल हो गए उन्होंने सुगना के कान में बोला
" केकर इच्छा हो?
सुगना जान रही थी कि सरयू सिंह इन उत्तेजक बातों का आनंद ले रहे थे। उसने सरयू सिंह के कान को अपने होठों में ले लिया और धीरे से बोली हमार बू….र के"
सरयू सिंह सुगना की इस बात से बेहद उत्तेजित हो गए. उन्होंने सुनना को चारपाई पर लिटा दिया पर अपने लंड को उसकी बुर से बाहर नहीं आने दिया। वह उसकी जांघों को फैलाकर उसे जोर जोर से चोदने लगे। सुगना इस अप्रत्याशित व्यवहार से आश्चर्यचकित थी। सरयू सिंह उसकी चूचियों को मसलते हुए उसे तेजी से चोद रहे थे। इस चुदाई में प्यार कहीं नहीं था सिर्फ और सिर्फ वासना थी।
सुगना को अब थोड़ा दर्द हो रहा था परंतु वह दर्द की पराकाष्ठा वह झेल चुकी थी। उसने अपने बाबूजी के सुख के लिए अपने दर्द को अपने भीतर संजोए रखा और अपने होठों पर मुस्कुराहट किए हुए अपने बाबुजी को उत्तेजित करती रही….
" हां….बाबू जी…. हां हां…..आईईईईईई आ आ आ….. "
सरयू सिंह ने अपने लंड को गर्भाशय में ठान्स दिया और एक बार फिर स्खलित होने लगे। उन्हें सुगना की इच्छा याद आ गई वीर्य की पहली धार गर्भ में गई परंतु उन्होंने न चाहते हुए भी अपने लंड को बाहर निकाल लिया और सुगना के शरीर पर वीर्य वर्षा करने लगे। वीर्य की धार सुगना की चेहरे, गले और चूचियों को भीगोती हुई धीमी पड़ रही थी। अंत में बारी सुगना की नाभि और उस कोमल बुर की आई जिसने लंड को झड़ने में अपनी पूरी शक्ति लगाई थी।
सुगना के शरीर पर जगह-जगह वीर्य सफेद मोतियों के रूप में चमक रहा था। सुगना के होंठों को चूमते समय सरयू सिंह ने जानबूझकर अपने वीर्य को उसके मुख के अंदर कर दिया। सुगना प्रेम रस की अहमियत जानती थी वह अपने बाबू जी के होठों को चूसने लगी प्रेम रस ससुर और बहू की लार में विलुप्त हो रहा था।
सरयू सिंह सुगना को अपने सीने से सटाए हुए नग्न अवस्था में ही सो गए सुगना ने भी कपड़े पहने की जहमत नहीं उठाई वह पूरी तरह थक चुकी थी।
दीपावली की रात बीत चुकी थी ससुर और बहू में एक नया संबंध कायम हो चुका था।
सोते समय सुगना उस लड्डू के बारे में सोच रही थी। उसे सरयू सिंह द्वारा की गई साजिश की भनक न थी हालांकि यह साजिश उसकी स्वयं की इच्छा थी।
सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे की मनो ईच्छा जान चुके थे और नियत उन दोनों की ही इच्छा को पूरा करने का मार्ग प्रशस्त कर चुकी थी। लड्डू के रूप में सरयू सिंह के पास एक विशेष अस्त्र आ चुका था।
सरयू सिंह के माथे का दाग आज अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया था। बालों के पीछे ढके होने के कारण सुगना का ध्यान उस पर न गया वैसे भी वह बेचारी आज तो वासना के आधीन थी उसका सारा ध्यान उस जादुई लंड ने खींच रखा था।
सुबह हो चुकी थी कजरी आंगन में मुंह हाथ धोकर अपनी बहू सुगना का इंतजार कर रही थी।
कजरी ने कल रात सुगना की उस अद्भुत चुदाई का दृश्य देखा था वह उसके जेहन में एक अमिट छाप छोड़ गया था। सरयू सिंह ने एक ही रात में सुगना की कामवासना को चरम पर ला दिया था। कभी-कभी कजरी यह सोचती की सुगना ने क्या पहले भी यह अनुभव लिया हुआ था? पर उसके चेहरे के भाव और उसकी मासूमियत इस बात को नकारते थे. जिस तरह सरयू सिंह उसकी बुर को सहला और चूस रहे थे एवं सुगना भी उस का आनंद ले रही थी उस दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे सुगना और सरयू सिंह के लिए वह आनंद नया न था।
बात सच थी। कजरी का अवलोकन सत्य के करीब था परंतु जब सरयू सिंह का लंड सुगना की कोमल बुर में प्रवेश कर रहा था सुगना की आंखों में दर्द और खुशी एक साथ दिखाई पड़ रही थी। निश्चय ही वह सुगना के लिए बिल्कुल नया था यह उसके चेहरे से स्पष्ट था..
वह बाबूजी... बाबूजी... पुकार रही थी। कजरी बेहद प्रसन्न थी चाहे जो भी हो उसकी प्यारी बहू सुगना ने अपना प्रथम संभोग सकुशल संपन्न कर लिया था और उसके कुंवर जी ने उसके गर्भ में अपना वीर्य भर दिया था।
धूप निकल रही थी कजरी से और बर्दाश्त ना हुआ दरवाजे पर कभी भी गांव के व्यक्ति आ सकते थे सामान्यतः सरयू सिंह सुबह सुबह उठ जाते थे परंतु आज देर हो रही थी।
कजरी ने पहले सुगना को आवाज देने की सूची परंतु उसे सुगना और सरयू सिंह को देखने का मन किया उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला। सरयू सिंह ने दरवाजे की किल्ली बंद नहीं की थी और करते भी क्यों सुगना के साथ रात बिताने के लिए कजरी स्वयं उन्हें यहां तक लाइ थी।
अंदर का दृश्य देखकर कजरी भाव विभोर हो गई उसकी बहू सुगना एकदम नग्न अपने ससुर के आलिंगन में लिपटी हुई सो रही थी उसकी दाहिनी जांग सरयू सिंह की दोनों जांघों के बीच में थी उसकी चुदी हुई बुर झांक रही थी कजरी की निगाहें रक्त के निशान खोज रही थी पर उसे वह दिखाई न पड़ा। उसे इस बात पर आश्चर्य भी हो रहा था
तभी सुगना ने अंगड़ाई ली कजरी उल्टे पांव कमरे से बाहर आ गई और आगन से सुगना का नाम पुकारा।
सुगना बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई . उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ और अपनी फूली हुयी बुर को देखकर सिहर गयी। दो बार की जमकर चुदाई से उसकी बुर का मुंह खुल गया था। तभी उसकी नजर सरयू सिंह के लटके हुए बैगन पर चली गई। जादुई लंड सो रहा था। वह एक बैगन की भांति सरयू सिंह की जांघों के बीच लटका हुआ था। सुगना को जितना आनंद उसने पिछली रात दिया था वह उसकी मुरीद हो चली थी। उसे लंड को छूने का मन हुआ। वह खुद को ना रोक पायी और सरयू सिंह के लंड को हाथ लगा दिया।
सरयू सिंह की नींद खुल गई अपनी नग्न सुगना को अपना लंड पकड़े हुए देखकर सरयू सिंह बेहद प्रसन्न और उत्तेजित हो गए। उन्होंने सुगना को अपनी तरफ खींच लिया। इससे पहले की वह अपनी प्यारी बहू को एक बार फिर चोद पाते कजरी की आवाज आई
"सुगना बेटी उठ जा देर हो जाइ"
नंगी सुगना ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए और पूरी मासूमियत से बोला
"बाबूजी अभी जाए दीं, सासू मां बुलावत बाड़ी। बाकी राती के फिर मालपुआ भेटाई"
(भेटाई मतलब मिलेगा)
यह एक संयोग ही था सुगना यह बात करते हुए अपनी पेंटी को उठा रही थी और सरयू सिंह नीचे से उसके फूले हुए मालपुआ का दर्शन कर रहे थे लंड पूरी तरह तनाव में था पर वह सुगना को शर्मसार नहीं करना चाहते थे। उन्होंने उसे छोड़ दिया पर जाते जाते उसकी बुर पर एक बार फिर हाथ फिरा दिया।
सरयू सिंह की उंगलियों पर एक बार फिर सुगना की फूली हुई बुर से रिस आया मदन रस लग चुका था। उन्होंने अपनी उंगलियां चुम लीं। आज सुबह-सुबह ही उनके होठों को उनका बहुप्रतीक्षित और पसंदीदा रस मिल चुका था।
सुगना अपने वस्त्र पहनकर आंगन में आ गयी। उसने कजरी के पैर छुए और उसके सीने से लग गई। कजरी ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और उसके गालों को चूम लिया।
कजरी ने पूछा
"हमरा सुगना बाबू के नींद आईल ह नु? कुंवर जी सुते देले हा कि रात भर जगावले रहले हा?"
सुगना ने अपना सिर शर्म से नीचे कर लिया उसे उत्तर देने में हिचकिचाहट हो रही थी। कजरी ने फिर कहा
"जा मुंह हाथ धो कर तैयार हो जा फेर…"
सुगना अब तक अपनी के कामुक दुनिया से बाहर नहीं लौटी थी उसने पूरी बात सुने हुए बोला
"मां अभी ना, अब राती के…"
दरअसल सुगना में कजरी की बात से यह अंदाज लगाया कि कजरी उसे साथ मुंह हाथ धोने के बाद एक बार फिर अपने ससुर से संभोग के लिए प्रेरित कर रही है। तभी उसने अपनी मानसिकता के अनुरूप उत्तर दिया था जिसे सुनकर अब कजरी हंस रही उसने कहा..
"हट पगली"
सुगना अपनी दीवाली मना चुकी थी. उसके जीवन और लहंगे दोनों में खुशियां भरी हुई थी।
सुगना के जाने के बाद कजरी सरयू सिंह के पास आ गई सरयू सिंह अपने लंड को लंगोट में कस रहे थे कजरी को देखकर वह थोड़ा शर्मा से गए पर उन्होंने कहा
"आवा आखिर हमरा से तू ही गलत काम करवा ही देलू"
"रहुआ त हमारा कहला से आगे बढ़ गईनी. हम तो सुगना के मालपुआ में रस भरे के कहले रहनी रउआ त पुआ चूसे लगनी हा…रहुआ लाज ना लागत रहे"
सरयू सिंह यह बात भली-भांति जानते थे कि कजरी सारा दृश्य अपनी आंखों से देख चुकी है उससे छुपाने का अब कोई औचित्य न था उन्होंने कहा..
"अइसन सुंदर पुआ रहे मन लालच गईल रहे हम सोचनी ओकरो के सुख दे दी"
एक पल के लिए सरयू सिंह को लगा कि जैसे कजरी उनके और सुगना के बीच हुए इस मिलन से उतनी प्रसन्न नहीं थी।
कल की चुदाई से सुगना की बुर पूरी तरह फूल चुकी थी और संवेदनशील हो चुकी थी जिसका एहसास सुगना को तब हुआ जब वह मूत्र विसर्जन के लिए बैठी। उसने अपनी चुदी हुई बुर को देख कर आश्चर्यचकित रह गई कि 1 दिन में ही उसका छोटा सा मालपुआ बड़ा हो गया था। आज वह सरयू सिंह के साथ पुनः मिलन की इच्छुक थी परंतु बुर की हालत उसे रोक रही थी।
उधर सरयू सिंह का लंड अपनी जबान बहु को चोद कर मदमस्त हो गया था वह रह रह कर अपना सर उठा रहा था जिसे सरयू सिंह सहला कर वापस लंगोट में कर देते परंतु सुगना की आहट सबसे पहले वह लंड ही सुन रहा था। जब भी सुगना आस पास से गुजरती सरयू सिंह के लंड में तनाव बढ़ने लगता।
सरयू सिंह दोपहर में ही सुगना से मिलन को तत्पर थे परंतु सुगना ने अपना सारा वक्त लाली के यहां बिता दिया सरयू सिंह मन मसोसकर रह गए शाम होते होते आखिर उन्होंने सुगना को रसोई में घेर लिया कजरी घर से बाहर परचून की दुकान से तेल लेने गई हुई थी सरयू सिंह ने आनन-फानन में सुगना की साड़ी उतार दी वह पेटीकोट और ब्लाउज में रसोई में खड़ी थी सरयू उसकी चुचियों को मसले जा रहे थे परंतु जब तक सुगना अपनी बुर की संवेदनशीलता भूल कर चुदाई के लिए तैयार हो पाती बाहर कजरी की आवाज आई। सरयू सिंह जल्दी बाजी में अपनी धोती समेटते हुए रसोई से बाहर आ गए सुगना ने भी अपनी साड़ी लपेटी और बैठकर सब्जी चलाने लगी।
आज सुगना में चुदने के लिए वह उत्साह नहीं था उधर सरयू सिंह के मन में निराशा जाग रही थी। रात होते-होते सुगना कजरी के बिस्तर पर ही सो गए सरयू सिंह इंतजार ही करते रह गए। उनकी हालत न माया मिली न राम जैसी हो गई थी सास और बहू एक ही बिस्तर पर एक दूसरे के आलिंगन में सो रही थी सरयू सिंह मन ही मन तरह तरह की कल्पनाएं करते हुए सो गए।
भाई दूज के दिन सुगना का भाई सोनू सुगना के घर आया हुआ था। उसे सुगना की मां पदमा ने सुगना का हाल-चाल लेने के लिए भेजा था।
पदमा सुगना को लेकर चिंतित थी परंतु पदमा से मिलने के बाद सोनू बेहद प्रसन्न था। उसकी बहन सुगना आज से पहले इतनी खुश कभी न दिखाई दी थी। उसका रोम-रोम खिला हुआ था।
सोनू अब तक स्त्री पुरुष के बीच होने वाले
क्रियाकलापों को बखूबी जान चुका था। लाली को देखकर उसके किशोर मन में हलचल होती थी वह उसका सानिध्य पाने को बेताब रहता था सोनू की मासूमियत लाली को भी आकर्षित करती थी परन्तु कामुकता वश नहीं अपितु वह सोनू की मासूमियत और सुगना के छोटे भाई होने की वजह से उसके करीब आसानी से आ जाती थी।
लाली और सुगना आगन में बातें कर रही थीं। सोनू दालान में बैठा लाली की बातों में ध्यान लगाया हुआ था। सुगना के कहा...
शेष अगले भाग में।