भाग 105
कजरी के हटते ही एक बार फिर सोनू ने सुगना के पैर छूते हुए कहा दीदी माफ कर द..
सुगना उठ गई और जाते-जाते बोली
"जा पहले मोनी के ढूंढ कर ले आव फिर माफी मांगीह"
सोनू को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो सुगना के व्यवहार से उसने अंदाज लगा लिया की उसका और सुगना का रिश्ता पूरी तरह टूटा नहीं है..
वह सुगना का वो प्यार पा सकेगा या नहीं यह अलग बात थी.. परंतु उसे खोना सोनू को कतई गवारा न था.. सुगना अब उसकी जान थी.. अरमान थी और अब उसके बिना रहना सोनू के लिए नामुमकिन था…
अचानक घर के बाहर चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी……कुछ लोग एक व्यक्ति को पीट रहे थे वह दर्द से कराह रहा था मैंने कुछ नहीं किया…सोनू भी बाहर निकल कर आया…
अब आगे..
"बेटीचोद कहां ले गइले मोनी के?" सरयू सिंह की धाकड़ आवाज सुनाई दी…
तभी किसी ने उसकी पीठ पर दो लात और मारे और बेहद गुस्से से कहा..
" साला दिन भर लइकिन के पीछे भागत रहेला ना.. जाने पंडित जी एकरा के अपना संगे काहे राखेले?"
मार खा रहा व्यक्ति कोई और नहीं पंडित जी का वही हरामी हेल्पर था जो मोनी के पीछे पीछे बाग में आया था और जिसने मोनी की कुंवारी बुर के प्रथम दर्शन किए थे..
नियति उसके किए का दंड इतना शीघ्र देगी यह उसे भी अंदाजा न था..
दरअसल मोनी की कुंवारी बुर देखने के बाद उस व्यक्ति पर जैसे जुनून सवार हो गया था वह दिन भर मोनी के आगे पीछे इधर-उधर मंडराता रहा और उससे नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करता रहा परंतु वैरागी मोनी को उससे कोई सरोकार न था … अपनी कोमल और कमसीन बुर को जिस मोनी ने खुद भी ज्यादा न छुआ था वह उसे कैसे उसके हवाले करती। परंतु मोनी की बुर की एक झलक ने उस हेल्पर का सुख चैन छीन लिया था।
रात भर वह सरयू सिंह के दालान में पड़ा पड़ा मोनी को ही याद करता रहा…कभी सोता कभी जागता।
रात में मोनी जब बाहर आई थी तब तो वह उसे न देख पाया परंतु सुबह सुबह जब मोनी सरयू सिंह के घर से बाहर निकल रही थी वह उसके पीछे हो लिया। मोनी आगे-आगे चल रही थी और उस पर नजर रख रहा पंडित जी का शिष्य उसके पीछे पीछे।
मोनी घबरा रही थी और अपनी चाल को नियंत्रित करती तेजी से आगे चल रही थी… कुछ देर बाद रेलवे स्टेशन पर पहुंच कर पंडित के शिष्य ने मोनी को ट्रेन के प्लेटफार्म पर जाते देखा वहां और भी लोग थे…वहा जाने में वह घबरा रहा था…कदम ठिठक गए। पंडित का शिष्य घबरा गया तभी गांव के किसी व्यक्ति ने उससे पूछ लिया…
" अरे ऊ केकर लइकी ह ते ओकरा पीछे-पीछे काहे जात बाड़े?" वह निरुत्तर हो गया। संयोग से उसी समय प्लेटफार्म पर ट्रेन आई और मोनी उस ट्रेन में सवार हो गई।
पंडित के शिष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह गए उसने यह बात अपने ही सीने में दफन रखने की सोची और चुपचाप वहां से रफा-दफा हो लिया परंतु अब जब मोनी के गायब होने की बात सार्वजनिक हो चुकी थी उसका बचना नामुमकिन था।
खबर कानो कान सरयू सिंह और हरिया तक पहुंच गई फिर क्या था सरयू सिंह के हाथ इतने भी कमजोर न थे। अपने इलाके में उनका दबदबा था और कुछ ही घंटों के पश्चात पंडित का हरामी शिष्य उनकी देहरी पर खड़ा लात खा रहा था।
सोनू ने बाहर आकर बीच बचाव किया और उससे सच जानने की कोशिश की। शिष्य ने अक्षरसः सारी बातें बता दी। बस वह एक बात छुपा ले गया जो उसे छुपाना भी चाहिए था वह थी मोनी की कुंवारी बुर देखने की बात।
कुछ ही देर में लोगों ने अंदाजा लगा लिया की मोनी जिस ट्रेन में चढ़ी थी वह उत्तराखंड की तरफ जाती थी। देहरादून उसका अंतिम पड़ाव था। मोनी कहां गई होगी यह प्रश्न अभी भी सबके दिमाग में घूम रहा था।
परंतु सोनू का दिमाग तेजी से चल रहा था मनोविज्ञान सोनू भली-भांति समझता था उसने मोनी में वैराग्य के कुछ लक्षण देखे थे। वह मन ही मन सभी संभावित गंतव्य स्थलों की सूची बनाने लगा और अपने निर्णय पर पहुंचकर उसने सरयू सिंह से कहा
" चाचा इकरा के मत मारल जाओ ई साला सही में ओकरा पीछे पीछे घूमत होई लेकिन इकरा गांणी में इतना दम नईखे की मोनी अगवा कइले होखी "
सोनू की बात में दम था. । वैसे भी वह व्यक्ति अपने किए की पर्याप्त सजा पा चुका था धूलधूसरित उस व्यक्ति के कपड़े फट चुके थे होठों से खून बह रहा था वैरागी मोनी की बुर देखने की यह सजा शायद कुछ ज्यादा ही थी…
धीरे-धीरे सोनू ने आगे की रणनीति बना ली.. सोनू लाली से मिलने से कतरा रहा था उसे लाली के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं समझ आ रहा था यदि लाली दीदी ने उस रात के बारे में पूछा तो वह क्या जवाब देगा? झूठ बोलना उचित न था और सच वह तो और भी अनुचित था ।
उसकी खुद की प्रतिष्ठा न सही परंतु सुगना से मिलन को वह लाली के समक्ष नहीं लाना चाह रहा था। सुगना ने प्रतिरोध किया था और सुगना के व्यवहार से यह स्पष्ट था की सुगना को वह मिलन स्वाभाविक रूप से स्वीकार्य न था। जो उसको सुगना दीदी को स्वीकार न था उसे न तो बताना कतई उचित न था।
अगली सुबह सोनू को वापस जौनपुर जाना था शाम को खाने पर उसने लाली, सुगना और सोनी को जाते समय बनारस छोड़ने की बात कही और सभी सहर्ष तैयार हो गए। आखिर छोटे-छोटे बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी जरूरी थी। सुगना सोनू के साथ जाने में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी परंतु कोई चारा भी न था..
सुबह अगली सुबह बोलेरो में सोनू और बनारस में रहने वाले सभी सदस्य सवार होने लगे। समान ऊपर बांधा गया और छोटे बच्चे पीछे चढ़कर अपनी अपनी जगह तलाश करने लगे। पीछे वाली सीट पर सोनू की तीनो बहने बैठी एक तरफ लाली बीच में सोनी और ड्राइवर के ठीक पीछे वाली सीट पर सुगना।
सोनी बच्चों को उछलने कूदने से रोक रही थी परंतु बच्चों को क्या? मोनी मौसी के गायब होने से उन्हें कोई विशेष फर्क न था वह सब अपनी मस्ती में चूर थे। परंतु सुगना परेशान थी मोनी को लेकर भी और अपने और सोनू के संबंधों में आए बदलाव को लेकर भी ।
वह खिड़की से बाहर गेहूं की बालियों को देखते हुए कभी उनकी सुंदरता में खोती और अपने गम को भूलने का प्रयास करती …उधर सोनू बार-बार पलट कर बात तो सोनी से करता परंतु उसकी निगाहें सुगना के गोरे गालों पर टिकी रहती.
काश! सुगना दीदी कुछ बोलती और हमेशा की तरह हंसती खिलखिलाती रहती। सोनू सुगना का मुस्कुराता और खिला-खिला चेहरा देखने के लिए तरस गया था। वह कभी अपनी गलती पर पछताता कभी अपने ईश्वर से सुगना को खुश करने के लिए प्रार्थना करता।
जब वह सुगना के स्खलित होते हुए चेहरे को याद करता उसे लगता जैसे उसने कोई पाप ना किया हो …और सुगना को पूर्ण तृप्ति देखकर उसने अपना फर्ज निभाया हो..परंतु जब उसे सुगना का प्रतिरोध याद आता वह आत्मग्लानि से भर जाता..
रास्ते में गाड़ी रोककर सोनू ने सुगना की पसंद की फेंटा लाई पर सबने उसका आनन्द लिया पर सुगना ने नहीं…जब सुगना ने नहीं लिया तो सोनू ने भी नहीं…
लाली सोनू और सुगना के बीच आए बदलाव को महसूस कर रही थी पर मजबूर थी।
सोनू और सुगना को छोड़कर बाकी सब धीरे-धीरे सामान्य हो गए थे… और कुछ घंटों के सफर के पश्चात सभी बनारस पहुंच गए सोनू ने सब का सामान उतारा परंतु अपने सामान को गाड़ी में ही रहने दिया…
सोनू ने बनारस में इस वक्त रह कर वक्त बर्बाद करना उचित न समझा मोनी को ढूंढना उसके पहली प्राथमिकता थी। तुरंत ही उसने अपने जौनपुर जाने की बात कह कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया.. उस पर हक जमाने वाली सुगना तो जैसे निर्विकार और निरापद हो गई थी.।
लाली ने एक बार सोनू से कहा
"अरे खाना पीना खा ल तब जईहा" परंतु सोनू को जिसका इंतजार था उसने मुंह ना खोला सुगना अब भी अपने कोमल अंगूठे से मजबूत फर्श कुरेद रही थी… परंतु उसने मुंह ना खोला। सुगना की खनखनाती और मधुर आवाज सुनने के लिए सोनू के कान तरस गए थे।
सोनू ने हाथ जोड़कर सबसे विदा ली… परंतु सोनू की यह विदाई सोनी को कतई समझ में नहीं आ रही थी ।
सोनू एक तरफा हाथ हिलाते हुए घर से बाहर निकल गाड़ी में बैठ गया अंदर तीन बहनों में से सिर्फ सोनी के हाथ ही हवा लहरा रहे थे…सुगना अब भी नजरें झुकाए बेचैन खड़ी थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह सोनू को किस प्रकार विदा करें? दिमाग के द्वंद्व ने सुगना की स्वाभाविकता छीन थी… अपने छोटे भाई सोनू से बेहद प्यार करने वाली सुगना उसे विदा होते समय देख भी न रही थी। नियति ने जिस भवसागर में सुगना और सोनू को धकेल दिया था उससे उन दोनों का ही उस भवर से निकलना जरूरी था..
सोनू के बाहर निकलते ही सोनी ने सुगना से पूछा
" दीदी … सोनू भैया से कोनो बात पर खिसियाइल बाड़े का ? " सुगना ने कोई उत्तर नहीं किया अपितु अपना सामान लेकर अपने कमरे में रखने लगी। सोनी को यह नागवार गुजरा वह सुनना के सामने आकर खड़ी हो गई और उसके कंधे को पकड़ते हुए बोली
" दीदी साफ बताओ काहे खिसीआईल बाड़े ? अइसन त ते सोनू भैया के साथ कभी ना करेले? सुगना ने सोनी की तरफ देखा और कहा अभी हमार दिमाग ठीक नईखे मोनी के मिल जाए दे फिर बात करब"
सोनी उत्तर से संतुष्ट न हुई परंतु उसे यह अहसास अवश्य था कि मोनी के गायब होने से सुगना और उसकी मां पद्मा सबसे ज्यादा दुखी थी। यह स्वाभाविक भी था। जहां सुगना अपने परिवार के मुखिया की भूमिका अदा करती थी वही मोनी अपनी मां पदमा का एकमात्र सहारा थी दिन भर साथ रहना …साथ में घर का काम करना और एक दूसरे से बातें करते हुए वक्त बिताना। मोनी के जाने से पदमा अकेली हो गई थी।
लाली और सुगना के बीच भी एक अजब सा तनाव था। सुगना को तो यह अंदाजा भी न था कि सोनू को उकसाने में लाली का योगदान था और लाली को यह आभास न था कि अंदर वास्तव में क्या हुआ था।
इतना तो तय था कि सुगना और सोनू का मिलन यदि हुआ था तो वह सुखद वातावरण में नहीं हुआ था। अन्यथा सुगना के चेहरे पर इतना तनाव कभी नहीं आता।
परंतु क्या सोनू ने अपनी ही बड़ी बहन सुगना से जबरदस्ती की होगी? छी छी सोनू जैसा प्रेमी ऐसा कतई नहीं कर सकता? फिर आखिर क्या हुआ था? यह जानने की लाली की तीव्र इच्छा थी परंतु उसके प्रश्नों का उत्तर न तो सोनू ने दिया था और नहीं सुगना से प्रश्न पूछ पाने की उसकी हिम्मत हो रही थी।
खैर जो होना था वह हो चुका था…. सोनू तेजी से जौनपुर की तरह बढ़ रहा था अपने कार्यक्षेत्र पर पहुंचकर उसका पहला उद्देश्य मोनी को ढूंढने के लिए अपने प्रशासन तंत्र की मदद लेना था.
सोनू ने जौनपुर पहुंचकर अपने विभाग के आला अधिकारियों से मदद मांगी और देखते ही देखते पुलिस विभाग की कई टीमें तैनात कर दी गई। सोनू स्वयं अपने पुलिसिया साथियों के साथ इस सर्च अभियान की कमान संभाल रहा था…
सोनू इस बात से भलीभांति अवगत था कि मोनी का झुकाव वैराग्य की तरफ है यह बात उसने पिछले बनारस महोत्सव में कई बार महसूस की थी विद्यानंद के उद्बोधन के पश्चात जब महिला और पुरुषों की भीड़ संगीत की धुन पर थिरकने लगती तो मोनी जैसे खुश हो जाती। बाकी कलयुगी लोग अपनी आंखें खोल कर इधर-उधर देखते परंतु मोनी वह तो जैसे भाव विभोर हो जाती..और लीन हो जाती।
सोनू दिन भर कभी इससे मिलता कभी उससे मिलता कभी अपनी टीम के सदस्यों से बात करता…सोनू ने मोनी को ढूंढने के लिए एड़ी चोटी चोटी का जोर लगा दिया।
एक-एक करके दिन बीतने लगे और लाली और सुगना के बीच की दूरियां कम ना हुईं। दोनों सहेलियां जो घंटों बैठ कर बात करती थी और उनकी बातें खत्म होने का नाम न लेती थी .. अब अपने अपने कमरों में पड़े अपनी अपनी यादों और एक दूसरे के साथ बिताए वक्त को याद करते एक दम शांत हो गई थीं। सुगना और लाली का चहकता हुआ घर न जाने कब एकदम शांत हो गया था।
जब घर की ग्रहणी दुखी होती है पूरे परिवार में दुख छा जाता है सारे बच्चे और यहां तक कि सोनी भी सुगना के इस बदले हुए स्वरूप से परेशान थी और सुगना के लिए चिंतित भी। सब बार-बार सुगना के पास जाते उसे मनाने और उसे दुख का कारण पूछते परंतु सुगना क्या कहती जो दर्द उसके मन में था… न तो वह उसे किसी के सामने बयां कर सकती थी और नहीं उस दुख से निजात पा सकती थी।
घर के सभी सदस्य अपने अपने इष्ट देव से सुगना के खुश होने के लिए प्रार्थना कर रहे थे…
दुआओं में असर होता है धीरे धीरे ऊपर वाले विधाता को सोनू और सुगना पर तरस आ गया और सोनू के ऑफिस में एक फोन आया…
जैसे-जैसे फोन के रिसीवर से शब्द निकल निकल कर सोनू के कानों से टकराते गए सोनू के चेहरे पर कभी आश्चर्य कभी विस्मय और अंततः मुस्कुराहट हावी होती गई …
"मैं सदैव आपका आभारी रहूंगा……जी…. जी……ठीक है मैं कल ही वहां पहुंचता हूं" सोनू ने आभार जताते हुए फोन का रिसीवर रखा और अपने दोनों हाथ जोड़कर अपनी छत को देखते हुए अपने इष्ट देव के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की।
सोनू के मन में आया कि वह इस खुशखबरी को तुरंत ही लाली और सुगना से साझा कर दे परंतु उसने कुछ सोचकर यह विचार त्याग दिया वैसे भी रात हो चुकी थी और इस समय लाली और सुगना तक संदेश पहुंचा पाना कठिन था।
सोनू अपने कमरे में आया और सुबह अपने सफर पर निकलने के लिए अपना सामान बांधा… मन में उत्साह और सुगना की यादें लिए सोनू..अपने बिस्तर पर आया…सुगना को याद करना सोनू के लिए सबसे सुकून का काम था… सुगना के खिलखिलाते और मुस्कुराते चेहरे को याद कर न सिर्फ सोनू की वासना जवान होती अपितु उसका रोम रोम खिल उठता। परंतु पिछले कुछ दिनों से सोनू सुगना के दुखी चेहरे को देखकर परेशान था। आज इस खुशखबरी को सुनकर उसका मन प्रसन्न हो गया था और वह एक बार सुगना को फिर मुस्कुराते और खिलखिलाते हुए देखना चाहता था.
उसे याद करते ही सोनू के जैसे सारे दुख गायब हो जाते न जाने सुगना में ऐसा क्या छुपा था ….कुछ ही देर में उसके दिमाग के सामने सुगना का चेहरा घूमने लगा… क्या यह खबर सुन कर सुनना दीदी उसे माफ कर देगी? क्या सुगना को वह उसी प्रकार खिलखिलाते चहकते देख पाएगा…और क्या वह अद्भुत सुख उसे कभी दोबारा प्राप्त होगा…?
जैसे ही सोनू को उस मिलन की याद आई उसकी आंखों के सामने दृश्य घूमने लगे आज का एकांत उसे उस मिलन की बारीकियां याद दिलाने लगा… कैसे उसके मजबूत लंड के सुपाडे ने सुगना की चिपचिपी गीली बुर में डुबकी लगाई थी?... सुगना दीदी की बुर गीली क्यों थी? क्यों उन्होंने उस रात पेंटी नहीं पहनी थी? क्या वह सच में इस सुख की प्रतीक्षा कर रही थी? पर यदि ऐसा था तो उन्होंने प्रतिरोध क्यों किया?
सोनू सुगना की बुर के कसाव को याद करने लगा.. कितना जीवंत था सुगना दीदी का बुर का कसाव… ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने अपनी अनगिनत कोमल उंगलियों से उसके लंड को को अपने आलिंगन में भर लिया हो…और उगलियो के दबाव से स्वाभाविक तौर पर उसे अपने अंदर और अंदर और गहरे तक खींचे जा रहा हो..
गर्भाशय के मुख पर पहुंचकर उसके सुपाडे ने जब प्रतिरोध को महसूस किया तब उसने अपने लंड को सुगना की बुर में पूरी तरह अंदर पाया…. क्या ऊपर वाले ने सुगना की बुर और सोनू के लंड को एक दूसरे के लिए ही बनाया था..
सोनू को अच्छी तरह याद आ रहा था जब इसके बाद उसने अपने लंड को और अंदर डालने की कोशिश की और सुगना की फूली हुई बुर उसके दबाव से पूरी तरह चिपक गई….
जिस तरह आलिंगन का कसाव बढ़ाने पर दूरियां और कम हो जाती है उसी प्रकार सोनू के दबाव बढ़ाने से लंड और अन्दर गया और उसने गर्भाशय का मुख खोल दिया …
और सुगना के वह उद्गार…
"सोनू… तनी धीरे से दुखाता"
सुगना के इस उद्बोधन में सिर्फ और सिर्फ एक प्यार भरी कामुकता थी और स्खलन के लिए तैयार उसकी बहन की मिलन की पूर्णता की मांग……
अब तक सोनू का लंड उसके मनोभाव पढ़कर हरकत में आ चुका था और सोनू की हथेलियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहा था…
जैसे ही हथेलियों ने लंड को अपने आगोश में लिया सोनू की भावनाएं और कामुक होती गई।
सोनू उस रात हुए अनुभवों को याद कर रहा था और उन्हें अपने मन में उसे एक बार फिर महसूस करने की कोशिश कर रहा था। कैसे वह अपनी सुगना दीदी की बुर से जैसे ही लंड निकालने की कोशिश करता… अंदर उत्पन्न हुआ निर्वात सोनू के लंड को तुरंत ही अपनी तरफ खींचने लगता.. और सोनू का लंड एक बार फिर और गहराई तक उतर जाता…
सुगना की कोमल जांघों का स्पर्श उसकी जांघों से हो रहा था। ऐसी मखमली त्वचा शायद उसने जीवन में कभी अनुभव न की थी। मिलन के अन्तिम पलों में सुगना की पिंडलियां उसके नितंबों पर लगातार दबाव बनाए हुए उसे अपनी तरफ खींच रही थी..
वह स्खलित होती हुई बुर के कंपन ….वो अंतिम पलों में दीदी के प्रतिरोध का बिल्कुल खत्म होना और सुगना दीदी द्वारा उसकी उंगली को चुभलाए जाना….
सोनू की गतिमान हथेलियां लंड के मान मर्दन में लगी हुई थीं..
सोनू सुगना की चूचियों के स्पर्श को याद कर रहा था.. तभी वीर्य की एक मोटी धार हवा में उड़ती हुई वापस उसके चेहरे पर आ गिरी। सोनू का लंड हवा में वीर्य वर्षा कर रहा था जिसकी पहली धार स्वयं सोनू के होठों पर ही आकर गिरी..
आज जीवन में पहली बार उसने अपने ही वीर्य का स्वाद अपने होठों से चखा था…
…सोनू स्खलित हो रहा था…आज कई दिनों बाद सोनू के चेहरे पर खुशियां थी वह अति शीघ्र अपनी बहन सुगना से मिलना चाहता था।
अगले दिन सोनू अपने गंतव्य के लिए निकल चुका दिनभर की यात्रा करने के पश्चात वह सुबह सुबह विद्यानंद के आश्रम में हाजिर था। उसे उसे यह स्पष्ट जानकारी हो चुकी थी की मोनी विद्यानंद के आश्रम में ही आई थी। पुलिस और प्रशासन के सहयोग से सोनू को यह जानकारी फोन द्वारा प्राप्त हो चुकी थी। परंतु सोनू मोनी से मिलकर इस बात की तसल्ली करना चाहता था और उसके घर छोड़ने का कारण भी जानना चाहता था।
सोनू आश्रम के पंडाल में आ चुका था।श्वेत वस्त्रों में मोनी को आंखें बंद किए अपने दोनों हाथ हवा में हिलाते हुए एक विशेष धुन पर हौले हौले नृत्य करते हुए देखकर सोनू आश्चर्यचकित था । मोनी के चेहरे पर निश्चित ही एक नया नूर था। पिछले कुछ दिनों में ही मोनी को जैसे यह आश्रम रास आ गया था…सोनू कुछ देर तक नृत्य के खत्म होने का इंतजार करता रहा और जैसे ही अल्पविराम हुआ उसने आवाज लगाई
"मोनी"
मोनी ने सोनू की तरफ देखा परंतु वह उसकी तरफ आई नहीं। शायद मोनी के मन में सोनू के प्रति घृणा उत्पन्न हो चुकी थी और हो भी क्यों न जो व्यक्ति अपनी ही बहन के साथ ऐसा दुष्कर्म कर सकता है और जो अपनी छोटी बहन को अपने दोस्त की वासना शांत करने के लिए भेज सकता है ऐसा घृणित व्यक्ति भाई कहलाने योग्य कतई नहीं हो सकता।
सोनू ने आगे बढ़कर मोनी से मुलाकात करने की कोशिश की परंतु विद्यानंद के अंग रक्षकों ने उसे महिला पंडाल की तरफ जाने से रोक लिया। विशेष अनुरोध करने पर आश्रम के ही एक अन्य व्यक्ति ने मोनी तक एक बार फिर उसकी मिलने की मंशा पहुंचाई पर मोनी ने उससे मिलने से मना कर दिया…
सोनू यह बात कतई नहीं समझ पा रहा था कि मोनी ने उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया ? हो सकता है मोनी सांसारिक दुनिया को छोड़ चुकी थी और वह अपने परिवार के सदस्यों से मिलना न चाहती हो?
खैर मोनी को कुशल देखकर सोनू को तसल्ली हो गई कि वह आश्रम में सुरक्षित और सकुशल है उसके लिए इतना ही पर्याप्त था। वह अपने मन में ढेरों प्रश्न लिए वापस बनारस की तरफ चल पड़ा…
सोनू के मन में खुशियां और दुख अपना अपना आधिपत्य जमाने के लिए होड़ लगा रहे थे। मोनी के मिलने की उसके मन में जितनी खुशी थी उतना ही मोनी को अपने परिवार से हमेशा के लिए खो देने का दुख भी।
मोनी के व्यवहार से सोनू स्तब्ध भी था वैरागी मनुष्य के चेहरे पर सामान्यता घृणा के भाव नहीं होते परंतु मोनी ने जिस तरह सोनू को देख कर अपना चेहरा घूम आया था उसने सोनू को चिंतित कर दिया था। सोनू ने अपने दिमाग को झटका और इस विचार को दरकिनार कर दिया…उसके पास और कोई चारा भी न था।
सोनू सुखद पहलू की तरफ ध्यान दे रहा था. मोनी के मिलने की बात सुगना को बता कर उसके चेहरे पर मुस्कान और खुशी देखने के विचार मात्र से उसका मन गदगद हो रहा था। सोनू अपनी बहन सुगना की माफी की प्रतीक्षा और उसके खुशहाल चेहरे को देखने की कामना की अपनी ट्रेन के जल्दी बनारस पहुंचने का इंतजार करने लगा…
हर रोज की तरह बनारस की सुबह बाहरी दुनिया के लिए खुशनुमा थी परंतु सुगना और उसके परिवार के लिए वैसी ही उदास…सोनी सोनी अपने नर्सिंग कॉलेज जा चुकी थी बच्चे स्कूल और लाली घर का जरूरी सामान लेने बाहर गई हुई थी…सुगना ने स्नान ध्यान किया और अपने इष्ट देव से हमेशा की तरह मोनी के मिलने की कामना की और रसोई से जा कर दो रोटी और सब्जी लेकर नाश्ता करने बैठ गई…न जाने आज उसे सब्जी की गंध क्यों अजीब सी लग रही थी उसने कुछ ही निवाले अपनी हलक से नीचे उतारे होंगे और उसका मन मचलने लगा वह बेचैन सी होने लगी.. उसने प्लेट जमीन पर रखी और बाथरूम की तरफ भागी ।
सुगना उल्टियां करने लगी। तभी अपने मन में ढेरों अरमान लिए सोनू दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। दरवाजा खुला था अपने ही घर में आने के लिए उसे किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता न थी। बाथरूम से सुगना की उल्टियां करने की अजब सी आवाज आ रही थी….
सुगना को कष्ट हो और सोनू बेचैन ना हो यह हो नहीं सकता..
"दीदी का भईल"
सुगना की तरफ से कोई उत्तर न सुनकर सोनू बाथरूम के दरवाजे के पास पहुंच गया.. बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था और सुगना बेसिन में मुंह लटकाए अपने चेहरे को पानी से धो कर खुद को उल्टी की भावना से बचा रही थी… और खुद को तरोताजा करने का प्रयास कर रही थी।
शायद इसी उहापोह में उसने सोनू के आने पर अपनी प्रतिक्रिया भी नही दे पाई..
सोनू पास पहुंचकर उसकी मदद करना चाह रहा था परंतु सुगना बदहवास थी उसने हाथ हिलाकर सोनू को रुकने का इशारा किया और बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू कर बाहर आई।
"दीदी मोनी मिल गईल" सोनू ने चहकते हुए बताया और उसके पैरो पर गिर पड़ा।
सुगना के चेहरे पर थोड़ा मुस्कान आई जिसे झुक चुका सोनू देख भी ना पाया…सुगना पीछे हटी वह एक बार फिर बाथरूम में घुस गई शायद अपनी उल्टीओ पर उसने जो क्षणिक नियंत्रण पाया था वह छूट चुका था..
सोनू ने सुगना को पीछे हटते देख सोनू डर गया क्या सुगना दीदी ने उसे अब भी माफ नहीं किया है?
शेष अगले भाग में..