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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

sunoanuj

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Haut badhiya update … Moni ka vairagya is baat ka prateek hai jab ghar main hee koi parda sharam naa rahe toh rishton se nafrat ho jaati hai… bhaut he achee trah se aapne isko ubhara … ab niyati ki ek chal or badh gayi sugna Sonu ke bache ki maan banegi… bhaut he adbhut mitr ….
 

Nony

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भाग 103

नियति मोनी को लेकर परेशान थी…जो सोनी को खोजती हुई बाहर सोनू की कोठरी के दरवाजे पर आ चुकी थी…जिसके अंदर सोनी अपने प्रेमी पति विकास के साथ……..धरती पर स्वर्ग के मजे लूट रही थी…

यदि मोनी ने हल्ला मचा दिया तब?….सरयू सिंह और सुगना के परिवार की इज्जत दांव पर लग गई थी…लाली अपराध बोध से ग्रस्त अब भी सुगना के कमरे में जाने में घबरा रही थी…सोनू पिछवाड़े में जाकर मुत्रत्याग कर रहा था और आगे होने वाले घटनाक्रम को अंदाज रहा था…


कुछ होने वाला था…अनिष्ट को आशंका से सोनू भी घबरा रहा था…

अब आगे…..

इस घटना की एकमात्र गवाह मोनी जो अपनी नंगी आंखों से देख चुकी थी कि सुगना और सोनू रिश्तो की मर्यादा को ताक पर रखकर अपनी जिस्मानी आग बुझा रहे थे फिर भी मोनी को यकीन नहीं हो रहा था।


वह एक बार फिर खुद को संतुलित कर उस छोटी सी खिड़की पर गई अंदर स्थिति और भी कामुक हो चुकी थी सोनू अब और तेजी से सुगना को चोद रहा था सुगना के पैर हवा में थे और कांप रहे थे.. पैरों में पहनी पाजेब के घुंघरू न जाने कौन सी ताल छेड़ रहे थे…

मोनी से और बर्दाश्त ना हुआ उसके शरीर में अजीब सी ऐठन हुई उसने आज पहली बार ऐसे दृश्य देखें थे उसे लगा जैसे उसका कलेजा मुंह को आ रहा था वह बेचैन हो गई.. सोनी बिस्तर पर पहले ही नहीं थी मोनी को कुछ सूझ नहीं रहा था।

अशांत मन एकांत में और भी अशांत हो जाता है.. मोनी को अब कमरे का एकांत चुभने लगा था.

अपनी बड़ी बहन सुगना और सोनू को चूदाई करते छोड़ वह सोनी की तलाश में कमरे से बाहर आ गई बाहर भी अंधेरा था…मोनी ने कमरे में जाकर अपनी टॉर्च निकाली और बाहर गलियारे में आ गई टॉर्च की रोशनी देखकर गलियारे में दूसरी तरफ खड़ी लाली सतर्क हो गई उसके मन में डर समा गया कि कहीं मोनी उसे इस अवस्था में देख ना ले।

लाली ने जो अपराध किया था उसका एहसास अब उसे हो चुका था अब वह पश्चाताप की आग में जल रही थी सुगना का प्रतिरोध उसने उसकी आवाज से महसूस कर लिया था.. निश्चित ही सुगना ने प्रतिरोध किया था..परंतु आगे के घटनाक्रम की उसे कोई जानकारी न थी सुगना और सोनू के बीच अंदर क्या घटा था यह उसकी उत्सुकता बढ़ा रहा था….

लाली कतई नहीं चाहती थी कि मोनी इस बात को लेकर कोई बतंगड़ करें.. लाली ने आंगन में बने पाए की ओट ले ली वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगी की मोनी सुगना के कमरे की तरफ न जाए। उस बेचारी को क्या पता था कि मोनी अपने सोनू भैया और सुगना दीदी की घनघोर चूदाई अपनी नंगी आंखों से देख कर आ रही है।

मोनी ने सोनी को ढूंढने की कोशिश की परंतु घर इतना बड़ा न था की मोनी को समय लगता.. मोनी ने गुसल खाने की तरफ टॉर्च मारी परंतु उसे दरवाजा खुला था, वहां कोई दिखाई न पड़ा इस मूसलाधार बारिश में वैसे भी वहां कौन जाता..

मोनी से रहा न गया वह आंगन से बाहर आकर सरयू सिंह की कोठरी के सामने आ गई जिसके अंदर सोनी और विकास अपनी रासलीला में लगे थे…मोनी के कानों में हल्के हल्के थप ..थप ….की आवाजें सुनाई देने लगी ऐसा लग रहा था जैसे कोई बच्चे की पीठ थपथपा रहा हो अंदर इतनी रात को कौन जगा हो सकता है…

अब जब मोनी के अंदर उत्सुकता जाग ही गई थी तो न जाने मोनी के मन में क्या आया उसने दरवाजे पर पहुंचकर सरयू सिंह के कमरे में टॉर्च की रोशनी मार दी।


उस जमाने में गांव में दरवाजों की गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं हुआ करती थी, लाख प्रयास करने के बावजूद बढ़ाई उनके बीच की दरार को ढक पाने में असफल रहता था। अंदर आ रही रोशनी से विकास और सोनी हक्के बक्के रह गए।

सोनी के गदराए नितंब खुली हवा में टॉर्च की रोशनी में चमकने लगे सोनी की चूचियां चौकी के ऊपर बिछी चादर को छू रही थी और सोनी की पतली कमर को पकड़े हुए विकास उससे सटा हुआ था…एकदम नंगा…। सोनी डॉगी स्टाइल में विकास से चुदवा रही थी परंतु टॉर्च की रोशनी पड़ने पर दोनों जड़ हो गए थे।

मोनी वासना के इस दोहरे आघात से विस्मित रह गई।

मोनी अपने ही घर में हो रहे तो दो व्यभिचार को देखकर विक्षिप्त सी हो गई …. उसके दिमाग ने काम करना पूरी तरह बंद कर दिया। दिन के उजाले में एक आदर्श भाई और बहन के रूप में रहने वाले सुगना और सोनू को बेहद आपत्तिजनक अवस्था में देखकर उसका मन पहले ही खट्टा हो चुका था और अब अपनी हम उम्र कुंवारी बहन सोनी को विकास जैसे अनजान मर्द से चुदवाते देख उसका विश्वास हिल गया था

क्या रात्रि का अंधेरा संबंधों को इतना काला कर देता है? क्या वासना की आग अविवाहित युवतियों को भी चुदने पर मजबूर कर देती है? क्या संभोग के लिए तथाकथित विवाह आवश्यक नहीं? क्या संभोग के लिए कोई रिश्ता कोई संबंध नहीं?

मोनी की नजरों में जहां एक तरफ विकास और सोनी दो अनजान व्यक्ति थे वहीं दूसरी तरफ सुगना और सोनू जो भाई बहन के पावन रिश्ते में बने थे और एक दूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे .. मोनी ने दोनों ही अवस्थाओं में संभोग को अपनी आंखों से देखा था उसे अब समाज द्वारा बनाए गए नियम और कानून दोहरे प्रतीत हो रहे थे एक तरफ बड़े बुजुर्गों द्वारा बताया गया ज्ञान और दूसरी तरफ रात के अंधेरे में किए जाने वाले कृत्य…

मोनी मर्माहत थी. सोनू और सूगना के बीच जो हुआ था वह कभी वह अपने सपनों में भी नहीं सोच सकती थी..सोनू और सुगना का भाई बहन प्रेम सबकी जुबां पर हमेशा रहता था.. और अब सोनू के एसडीएम बनने के बाद गांव और आसपास के लोगों की जुबां पर चढ़ एक मिसाल बन गया था।

न जाने कितने प्रश्न मोनी के दिमाग में घूमने लगे उसकी सांसे तेज होती चली गई उसने टॉर्च बंद किया और अपनी बढ़ती हुई सांसो की गति को काबू करते हुए वहां से हट गई।


लड़कियों का कौमार्य उसकी निगाहों में आज भी महत्वपूर्ण था। आज जब पहली बार उसकी बुर को पंडित के हरामी शिष्य ने देखा था तब से ही वह परेशान थी। परंतु इस रात के अंधेरे में उसने जो देखा था वह उसका दिलो-दिमाग पचा नहीं पा रहा था ..

मोनी ने तय कर लिया कि वह यह बात अपनी मां पदमा को जरूर बताएंगी बाहर अभी भी बारिश हो रही थी वह छज्जे की ओट लेकर अंधेरे में खड़ी हो गई और बारिश खत्म में होने का इंतजार करने लगी…


तभी आगन से सोनू अपनी बड़ी बहन और अपने ख्वाबों की मलिका सुगना को तृप्त कर बाहर निकल आया.. मोनी ने खुद को छिपा लिया ताकि वह सोनू की नजरों में ना आ सके ….

सोनू गुसल खाने तक जाना चाहता था परंतु बारिश की वजह से उसने वहां जाने का विचार त्याग दिया और छज्जे की ओट में खड़े होकर अपना खूंटे जैसा लैंड निकालकर पेशाब करने लगा…जो हो रही बारिश में विलीन हो धरा में समाताचला गया…

इसी दौरान सोनी और विकास का भी मिलन पूर्ण हुआ विकास ने अपनी प्रेमिका के लिए संचित श्वेत द्रव्य उसके शरीर पर छिड़ककर उसे नहलाने की कोशिश की परंतु शायद न उसके अंडकोशों में न इतना दम था और नहीं भागलपुरी केले में…

(जिन पाठकों को यह जानकारी नहीं है की भागलपुरी और भुसावल केले में क्या अंतर है वह गूगल कर सकते हैं)

परंतु सोनी उसे तो भुसावल के केले के बारे में अता पता ही नहीं था उसने भागलपुरी केले से ही संतुष्ट होना सीख लिया था…वैसे भी आज कई दिनों बाद उसकी बुर की अगन शांत हुई थी।


तृप्ति का एहसास लेकर सोनी वापस बाहर आई। वह अभी भी अगल-बगल टॉर्च जलाने वाले को देख रही थी परंतु वहां कोई न था। मोनी दीवाल के दूसरी तरफ छज्जे की ओट में छुपी हुई परंतु जैसे ही सोनी आगे बढ़ी.. उसका सामना सोनू से हो गया जो पेशाब कर वापस लौट रहा था…

तो क्या सोनू भैया ने टॉर्च मारी थी? सोनी शर्म से पानी पानी हो गई…उसे लगा जैसे वह दूसरी बार अपने सोनू भैया की निगाहों के सामने विकास से चुदवाती हुई पकड़ी गई थी।

उधर सोनी को अपने कपड़े ठीक कर देख औरअपने कमरे को खुला देख कर सोनू सारा माजरा समझ गया…

सोनी ने अपनी नजरें ना उठाई और तेज कदमों से आंगन में आकर अपनी कोठरी की तरफ चली गई.

अपने कमरे में मोनी को वहां न पाकर वह परेशान हो गई। परंतु सोनी ने खुद जो कार्य किया था उसके पकड़े जाने के डर से वह स्वयं घबराई हुई थी न जाने किसने उसे इस हाल में देखा होगा…

उधर मोनी ने जब यह देखा की सोनू और सोनी का आमना सामना हो चुका है उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि सोनू ने सोनी से कोई प्रश्न क्यों नहीं किया ? क्या विकास और सोनी के बीच बने जिस्मानी रिश्ते की जानकारी सोनू भैया को थी? कोई बड़ा भाई अपनी ही छोटी बहन को अपने दोस्त से चुदवाने के लिए कैसे भेज सकता है?

जब व्यभिचार हद पार कर जाता है उसे बता पाना बेहद कठिन और व्यर्थ होता है। मोनी को ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे कोई भी उसकी बात का विश्वास नहीं करेगा… सोनू और सुगना दोनों के बीच जो रिश्ता था उस रिश्ते पर कलंक लगाने वाले को खुद ही शक के दायरे में रख दिया जाता और उसका साथ देने विकास और सोनी भी आ जाते और खुद मोनी को ही पागल ठहरा दिया जाता….

मोनी ने अंततः कम से कम आज रात के लिए यह बात अपने सीने में दफन करने की सोच ली..

वह अपने मन में विचारों का तूफान लिए एक बार फिर अपने कमरे में आ गई बिस्तर पर करवट लेकर पड़ी हुई सोनी ने मोनी को कमरे में आते हुए महसूस किया। एक पल के लिए उसे लगा कहीं मोनी ने तो टॉर्च नहीं मारी थी। आखिर सोनू भैया ऐसा क्यों करेंगे? परंतु उसने कुछ भी बोलना उचित न समझा। सोनी और घबरा गई परन उसके मन में अब इस रिश्ते के उजागर होने को लेकर डर खत्म हो चुका था। उसे पता था सोनू भैया उसका हमेशा साथ देंगे।

अब कहने सुनने को रह कर ही क्या गया था…. यदि टॉर्च मारने वाली मोनी थी तो उसे अंदर चल रही गतिविधियों का पूरा अंदाजा हो ही गया होगा और यदि मोनी नहीं थी तो इस बारे में बात करने का कोई औचित्य भी न था।

सोनी को यह भी डर सता रहा था कहीं सरयू चाचा ने तो आकर टार्च नही जलाई थी? आखिर यह उनका कमरा था और उनके हिसाब से घर में दो युवा मर्द सो रहे थे उन्हें कमरे में आने जाने का नैतिक अधिकार था…

जब-वो यह बात सोचती उसके रोंगटे खड़े हो जाते सरयू सिंह अभी भी परिवार के मुखिया थे। सोनी को न जाने ऐसा क्यों लगता था जैसे वह उसे उतना नहीं पसंद करते हैं जितना वह सुगना दीदी को करते हैं? शायद इसमें उसे अपने आधुनिकता और आधुनिक विचारों का योगदान लगता। और अब आज यदि सरयू चाचा ने यदि उस अवस्था में देख लिया होगा तब ?

सोनी की सांसें उखड़ने लगी संभोग का आनंद काफूर हो गया था बदन टूट रहा था परंतु दिमाग में ड्रम बज रहे थे।

मोनी भी बिस्तर पर लेट जरूर गई परंतु अपने मन में चल रहे तूफान को शांत न कर पाई। अपने ही घर में हुए इस व्यभिचार को देखकर वह कुढ़ने लगी। वह किस मुंह से अपनी मां पदमा को यह बात बताएगी कि उनके कलेजे के दोनों टुकड़े सुगना और सोनू आपस में भाई बहन होने के बावजूद एक दूसरे से अपनी वासना शांत करने का पाप कर रहे है क्या उसकी मां पदमा इस घृणित पाप को सुन पाएगी…जब उसको पता चलेगा कि उसकी अविवाहित पुत्री सोनी एक अनजान मर्द से चुद रही है…वह कैसे इस बात को बचा पाएगी….. कहीं यह बात सुन वह हृदयाघात या पक्षाघात की शिकार ना हो जाए…

इस व्यभिचार को जानने के बाद उसका अपने परिवार से विश्वास हिल चुका था…उसने मन ही मन एक खतरनाक निर्णय ले लिया…

अंदर सुगना के कमरे में …वासना का तूफान खत्म हो चुका था। स्खलन के उपरांत कुछ क्षणों के लिए सुगना एक दम शांत और निर्विकार हो गई थी। परंतु कमरे से जाते समय जब सोनू ने सुगना के पैर छुए थे… सुगना के मन में अजीब सी घृणा उत्पन्न हुई थी…खुद के लिए भी और सोनू के लिए भी पर सोनू के लिए यह भाव एकदम अलग था। अपने जिस छोटे भाई को वह दिलो जान से प्यार करती थी आज उसने रिश्तो की मर्यादा को तार-तार कर दिया था। सुगना इस घटना के लिए सोनू को जिम्मेदार अवश्य मानती थी परंतु उससे भी ज्यादा वह खुद को दोष दे रही थी.. सुगना जानती थी अपने ही भाई सोनू को वासना के आगोश में अपने सपनों और दिवास्वप्नों में याद कर स्खलित होना पाप था। सुगना ने अपना गुनाह अब स्वीकार्य कर लिया था और और अपने आपको पाप के बोझ तले दबा महसूस कर रही थी…


सुगना की आंखों से ग्लानि के आंसू और करिश्माई बुर से सोनू का पाप बह रहा था…

एक तरफ सुगना सरयू सिंह के वीर्य को सप्रेम अपने शरीर और चुचियों पर स्वीकार करती थी…परंतु आज उसकी बुर से रिस रहा सोनू का वीर्य उसे असहज कर रहा था। सुगना ने अपनी बुर को निचोड़ निचोड़ कर सोनू के वीर्य को बाहर फेंकने की कोशिश की परंतु सुगना के दामन पर दाग लग चुका था और सोनू ने जिस गहराई को तक अपने वीर्य को जा कर छोड़ा था वहां से उसे निकाल पाना असंभव था…

नियति सुगना को देख रही थी यह वही सुगना थी जब उसने सरयू सिंह को अपने भीतर स्खलित होने लिए विवश किया था और अपनी दोनों जांघों को ऊंचा कर अपनी दिए रूपी चूत में सरयू सिंह के तेल रूपी वीर्य को संजोकर रखने की कोशिश की थी ताकि वह गर्भवती हो सके और आज वह सोनू के वीर्य का एक-एक कतरा अपने शरीर से अलग कर देना चाहती थी …

सुगना का ध्यान अभी सिर्फ और सिर्फ अपने किए गए पाप पर था उसे अपने आज हुए अद्भुत स्खलन के आनंद का ध्यान भी नहीं आ रहा था…

मन में आया हुआ दुख सारी खुशियों को भी अपने आगोश में ले लेता है…

आज स्खलन के अंतिम क्षणों में सुगना ने जिस आनन्द और तृप्ति की अनुभूति की थी वह दिव्य था…इतना आनंद इतनी तृप्ति शायद सुगना को आज से पहले कभी नहीं मिली थी…युवा सोनू निश्चित ही सरयू सिंह पर भारी था….

सुगना की नाइटी कमर के चारों तरफ इकट्ठी हो गई थी.. चूदाई के दौरान हवा में उठें नितंबों में नाइटी को कमर तक आकर इकट्ठा होने के लिए मजबूर कर दिया था जो अब कोमलांगी सुगना की कमर में चुभ रही थी…सुगना ने अपनी कमर उठाने की कोशिश की और कमर के नीचे इकट्ठा हो चुकी नाइटी को खींच कर अपने नितंबों के नीचे कर दिया और धीरे-धीरे.. नाइटी ने सुगना की जांघों को ढक लिया….

सुगना के वक्षस्थल अब भी खुले हुए थे सुगना ने नाइटी के ऊपरी भाग को भी एक दूसरे के पास लाकर बटन लगाने की कोशिश की परंतु वह ऐसा न कर पाई.. बटन नाइटी का साथ छोड़ चुके थे सोनू की व्यग्रता ने उन्हें नाइटी से अलग कर दिया था। सुगना ने पास पड़ी चादर अपने शरीर पर डाली और करवट लेकर लेट गई …इसी दौरान लाली सकुचाती धीरे-धीरे कमरे के अंदर आई और बिना कुछ बोले सुगना के बगल में लेट गई।

एक दूसरे को जी भर प्यार करने वाले दोनों सहेलियां एक दूसरे की तरफ पीठ कर अपने हृदय में न जाने कितने बुरे विचार लिए …अपनी सोच में डूबी हुई थी..

जब दिल और दिमाग में विचारों का झंझावात चल रहा हो आंखों के बंद होने पर यह और भी उग्र हो जाता है और आपकी बेचैनी को और भी ज्यादा बढ़ा देता है..

सुगना और लाली की पलकें कभी बंद होती कभी खुल जाती नींद आंखों से दूर थी।

उधर सोनू ने कुछ समय बाहर बिताया शायद वह विकास को वापस सामान्य अवस्था में आने का मौका दे रहा था…और फिर जाकर विकास के बगल में ही लेट गया यहां भी दोनों दोस्तों की पीठ एक दूसरे के तरफ ही थी…

सिर्फ विकास ही ऐसा शख्स था जिसके मन में सबसे कम उथल-पुथल थी उसे सिर्फ एक ही बात का डर था कि यदि उसे संभोग रत अवस्था में देखने वाले व्यक्ति ने इसे जगजाहिर कर दिया तो? परंतु वह मन ही मन इसके लिए भी तैयार था। उसने सोनी को मन से अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया था और उसे समाज के सामने अपनाने में भी उसे कोई दिक्कत न थी…

कुछ ही देर में विकास को नींद आ गई। परंतु …सुगना के परिवार के सारे युवा जाग रहे थे…

पूर्ण प्रेम और समर्पण के साथ किया गया संभोग एक सुखद नींद प्रदान करता है विकास सो रहा था परंतु अंदर सुगना के कमरे में आज जो हुआ था उसने सुगना और सोनू के आंखों की नींद हर ली थी।

रात्रि बीतने में एक और प्रहर था परंतु उसे बिता पाना कठिन हो रहा था करवट बदलना भी शायद मुमकिन न था कोई किसी का सामना नहीं करना चाह रहा था…

समय सब चीजों की धार कुंद कर देता है विचारों की भी दुखों की भी और सुख की भी…धीरे धीरे हर व्यक्ति अपने विचारों के निष्कर्ष पर पहुंचता गया रात्रि का अंधेरा बीत गया और सूर्योदय की लालिमा ने सरयू सिंह के आंगन में भी रोशनी बिखेर दी…

पदमा सोनी को झकझोर कर उठा रही थी

" अरे मोनी कहां बीया…. बताओले बिया कहां गइल बीया?"

सोनी की आंख बमुश्किल लगी थी वह हड़बड़ा कर उठ गई और लापरवाही से बोली "हमरा नइखे मालूम बाथरूम में देखलू हा? शायद नींद में होने की वजह से सोनी पदमा के चेहरे की व्यग्रता नहीं देख पाई…

पदमा परेशान हो गई…. दरअसल पदमा मोनी को उन सभी संभावित जगहों पर पहले ही देख आई थी जहां उसके होने की संभावना थी और अब सोनी से कोई उचित उत्तर न मिलने से उसकी व्यग्रता चरम पर आ चुकी थी। आवाज मैं व्यग्रता ने अब उग्रता का रूप ले लिया था वह चीखने लगी.

"अरे मोनिया कहा चल गइल" जैसे-जैसे आवाज बढ़ती गई आंगन में भीड़ बढ़ती गई । सुगना को छोड़कर घर की बाकी महिलाएं और करीबी रिश्तेदार आगन में इकट्ठा हो गए थे..

कजरी ने सोनी से कहा..

"सोनी जाकर सोनू के जगाव त"

सोनी उसी कमरे में गई जहां अब से कुछ घंटों पहले वह जम कर चुदी थी…सोनू और विकास दोनों ही वहां पर न थे…सोनी ने आकर यह खबर अंदर दी।

महिलाओं की बेचैनी चरम पर थी..। उस समय कुछ समस्याओं का निदान सिर्फ और सिर्फ पुरुष वर्ग ही कर सकता था। मोनी का इस तरह से घर से कहीं चले जाना किसी को समझ नहीं आ रहा था.. सभी संभावित स्थानों पर मोनी की तलाश हो चुकी थी…

तभी सरयू सिंह हाथ में लोटा लिए अपने खेत खलिहान घूम कर वापस आ रहे थे उन्हें आज भी खुली हवा में नित्यक्रिया पसंद था..

आंगन से ही सरयू सिंह की एक झलक देखकर कजरी भागती हुई उनके पास गई और उन्हें मोनी के न मिलने की सूचना दी…

पदमा भी अपना चेहरा घूंघट में छुपाए उनके सामने आ चुकी थी और बोली…

"सोनू भी नहीं लौकत (दिखाई पड़ना) खेत ओर दिखल रहे का?"

सरयू सिंह ने अपनी गंभीर आवाज में कहा

" सोनू और विकास बनारस गईल बाड़े लोग। कहले हा आज रात के ना ता काल सुबह आ जाएब… विकास के कोनो जरूरी काम रहल हा"

सरयू सिंह के आगमन में घर की महिलाओं को थोड़ी तसल्ली हुई सोनू और विकास के बारे में जानकर उनकी उत्सुकता भी शांत हो गई.. परंतु मिट्टी से अपने हाथ और लोटे को माज रहे सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूम रहा था।

आखिर यह मोनी कहां गई होगी? उनके दिमाग में अनिष्ट की आशंका प्रबल होती गई ऐसा तो नहीं की मोनी घर के बाहर शौच आदि के लिए गई हो और गांव के किसी मनचले ने उसे ….

सरयू सिंह फटाफट अपने कमरे में आए कमरे में आए और अपनी धोती और कुर्ता पहनने लगे…दिमाग मोनी में लगा हुआ था… अचानक उन्हें अपनी चौकी के सिरहाने एक लाल वस्त्र दिखाई दिया…जो उपेक्षित सा जमीन पर पड़ा था…

वह वस्त्र सहज ही ध्यान आकर्षित करने वाला था सरयू सिंह के दिमाग में आज भी लाल रंग की अहमियत थी उनका मन आज भी उतना ही रंगीन था यह अलग बात है कि अपने और सुगना के संबंधों को जानने के बाद उनकी कामुकता और वासना पर एक चादर सी पड़ गई थी। परंतु ऊपर दिख रही राख के नीचे अभी भी आग बाकी थी.. सरयू सिंह ने झुककर वह लाल कपड़ा उठा लिया और उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा …वह लाल रंग का वस्त्र एक खूबसूरत जालीदार पेंटी थी…

वह पेंटी निहायत ही खूबसूरत थी.. जिस रेशम के कपड़े से वह बनाई गई थी वह न तो सलेमपुर में मिल सकता था और न हीं बनारस में।


एक पल के लिए अपनी जिम्मेदारियों को भूल सरयू सिंह अपनी वासना में खो गए.. आखिर यह किसकी पेंटी थी…?

एक-एक करके सरयू सिंह ने घर में उपस्थित सभी महिलाओं का ध्यान किया…पेंटी का आकार देख वह इस में आने वाले नितंबों की कल्पना करने लगे और उनकी निगाहों ने उस युवती की कल्पना कर ली…

उन्हें पता था की इस घर में सिर्फ और सिर्फ एक ही थी जो अपनी आधुनिकता पर आज भी पैसे खर्च करती थी…वह थी सोनी…

सरयू सिंह का दिमाग ब्योमकेश बक्शी की तरह चलने लगा… कहते हैं ना .. है नाआए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास..

उन्हें ढूंढने था मोनी को परंतु वह उस खूबसूरत पेंटी में कुछ फलों के लिए खो गए। अचानक उनका ध्यान पेंटी में लगे सफेद रेशमी स्टीकर पर गया उन्होंने अपनी आंखें फाड़ कर उसे पढ़ने की कोशिश की …और कुल मिलाकर वह उसमें मेड इन यू एस ए शब्द खोज पाए।

तभी कजरी ने आवाज दी..

"जल्दी करीं सब परेशान बा." सरयू सिंह उस पेंटी को कजरी को दिखाना नहीं चाहते थे। उन्होंने वह लाल पैंटी अपने कुर्ते की जेब में रख ली और अपनी लाठी लेकर बाहर आ गए।

अब तक उनका साथी हरिया भी आ चुका था। दोनों लोग मोनी की तलाश में निकल पड़े …परंतु सरयू सिंह के दिमाग में कुछ और प्रश्न भी घूमने लगे …

तो क्या यह पेंटी विकास लाया था …पर किसके लिए … उन्होंने प्रश्न खुद से ही पूछा और उत्तर उनके मन ने तुरंत उत्तर भी हाजिर कर दिया। वह विकास और सोनी को पहले भी दीपावली की रात साथ देख चुके थे और उनके मन में सोनी को लेकर उपजी वासना अपना आकार बड़ा रही थी।

सोनी की आधुनिकता और उसका लड़कों से मिलना जुलना सरयू सिंह को कतई रास ना आता…. उन्हें संस्कारी और गुणवती लड़की ठीक सुगना जैसी ही पसंद आती…. यह अलग बात है कि कुछ वर्ष पूर्व बंद कमरे में अपने वासना की आगोश में वह सुगना में वही आधुनिकता और अलहड़ता खोजने लगते थे। सरयू सिंह अपने इस दोहरे चरित्र को न जाने कब से जी रहे थे।

सरयू सिंह और हरिया ने गांव के सभी संभावित स्थलों पर जाकर मोनी की पूछताछ की परंतु लोगों को यह एहसास न होने दिया कि मोनी गायब हो चुकी है…परंतु कोई सुराग हाथ ना लगा वह धीरे-धीरे वह गांव के बाहर आ गए …कुछ ही दूर पर रेलवे स्टेशन था न जाने सरयू सिंह के मन में क्या आया वह स्टेशन की तरफ जाने लगे हरे भरे खेतों के बीच सरयू सिंह और उनके पीछे हरिया…

तभी गांव का एक और अधेड़ जो शायद स्टेशन पर अपने किसी परिचित को छोड़कर वापस आ रहा था सरयू सिंह से सरयू सिंह के सामने आया

का भैया सवेरे सवेरे कहां जा तारा..?

"अरे तरकारी (सब्जी) लेवे जा तनी.."

सरयू सिंह ने उसके प्रश्न का सही उत्तर न दिया अपितु एक मीठा झूठ बोल कर जान छुड़ाने की कोशिश की.. हरिया आश्चर्यचकित था कि सरयू भैया ने बेवजह झूठ क्यों बोला…

सरयू सिंह यह बात बखूबी जानते थे की उस व्यक्ति का काम खबरों को इधर से उधर फैलाना था। मोनी के गायब होने की बात यदि समाज में आ जाती तो निश्चित ही उनकी इज्जत दांव पर लग जाती।

सरयू सिंह ने मोनी को हरसंभव जगह ढूंढा परंतु कोई भी सुराग हाथ ना लगा…

थके मांदे सरयू सिंह आखिरकार आखिरकार थाने पहुंचे और मोनी की गुम शुदगी की तहरीर दे दी…

पुलिस विभाग वैसे तो कुछ लोगों की निगाह में एक भ्रष्ट और निकम्मा तंत्र है परंतु आदमी मजबूर होने के बाद उसी का सहारा लेने पहुंचता है ..

दोपहर बाद सरयू सिंह अपने घर पहुंचे.. चेहरा उतरा हुआ था…आंगन में सन्नाटा पसरा हुआ था ऐसा लग रहा था जैसे घर में किसी की मृत्यु हो गई हो मोनी के न मिलने का दुख स्पष्ट था… सरयू सिंह अपनी कोठरी में गए जहां सुगना अकेले गुमसुम बैठी हुई थी…

सुगना की स्थिति देखकर सरयू सिंह सन्न्न रह गए…

चौकी पर सुगना अपने दोनों घुटने जुड़े हुए और उस पर सिर टिकाए बाहर निर्विकार भाव से देखती हुई न जाने क्या सोच रही थी… उसकी दाहिनी कलाई पर एक कपड़ा बंधा हुआ था… चेहरे पर घनघोर उदासी.. खिला खिला और सब में स्फूर्ति भर देने वाला वह सुंदर चेहरा आज उदास था.. सुगना के सुंदर और कोमल होठ थोड़े फूले हुए थे…जिस तरह मालिक अपनी बछिया को देखकर उसके दर्द का अनुमान लगा लेता है सरयू सिंह ने भी सुगना का मन पढ़ने की कोशिश की ..

"का भईल सुगना ई हाथ में का बांधले बाड़ू?

सरयू सिंह को देखकर सुगना ने उनके सम्मान में उठना चाहा परंतु सरयू सिंह ने उसे रोक लिया और कहा

" बैठल रहा..बताव ना का भईल बा?"

सुगना की आंखों के सामने एक बार फिर वह दृश्य घूम गया जब सोनू ने अपने मजबूत हाथों से उसकी कलाइयों को सर के ऊपर ले जाकर दबा रखा था…

न जाने सुगना के मन में क्या आया वह उठी और सरयू सिंह से लिपट गई…आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी सरयू सिंह पूरी तरह सुगना के दुख में डूब गए। उन्हे उसके दुख का कारण तो न पता था परंतु सुगना के सर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने सुगना से बारंबार कारण जानने की कोशिश की और आखिर सुगना ने अपने लब खोले..


शेष अगले भाग में…
बहुत ही सुंदर अपडेट
 

Nony

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भाग 105

कजरी के हटते ही एक बार फिर सोनू ने सुगना के पैर छूते हुए कहा दीदी माफ कर द..


सुगना उठ गई और जाते-जाते बोली

"जा पहले मोनी के ढूंढ कर ले आव फिर माफी मांगीह"

सोनू को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो सुगना के व्यवहार से उसने अंदाज लगा लिया की उसका और सुगना का रिश्ता पूरी तरह टूटा नहीं है..

वह सुगना का वो प्यार पा सकेगा या नहीं यह अलग बात थी.. परंतु उसे खोना सोनू को कतई गवारा न था.. सुगना अब उसकी जान थी.. अरमान थी और अब उसके बिना रहना सोनू के लिए नामुमकिन था…


अचानक घर के बाहर चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी……कुछ लोग एक व्यक्ति को पीट रहे थे वह दर्द से कराह रहा था मैंने कुछ नहीं किया…सोनू भी बाहर निकल कर आया…

अब आगे..

"बेटीचोद कहां ले गइले मोनी के?" सरयू सिंह की धाकड़ आवाज सुनाई दी…

तभी किसी ने उसकी पीठ पर दो लात और मारे और बेहद गुस्से से कहा..

" साला दिन भर लइकिन के पीछे भागत रहेला ना.. जाने पंडित जी एकरा के अपना संगे काहे राखेले?"

मार खा रहा व्यक्ति कोई और नहीं पंडित जी का वही हरामी हेल्पर था जो मोनी के पीछे पीछे बाग में आया था और जिसने मोनी की कुंवारी बुर के प्रथम दर्शन किए थे..

नियति उसके किए का दंड इतना शीघ्र देगी यह उसे भी अंदाजा न था..

दरअसल मोनी की कुंवारी बुर देखने के बाद उस व्यक्ति पर जैसे जुनून सवार हो गया था वह दिन भर मोनी के आगे पीछे इधर-उधर मंडराता रहा और उससे नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करता रहा परंतु वैरागी मोनी को उससे कोई सरोकार न था … अपनी कोमल और कमसीन बुर को जिस मोनी ने खुद भी ज्यादा न छुआ था वह उसे कैसे उसके हवाले करती। परंतु मोनी की बुर की एक झलक ने उस हेल्पर का सुख चैन छीन लिया था।

रात भर वह सरयू सिंह के दालान में पड़ा पड़ा मोनी को ही याद करता रहा…कभी सोता कभी जागता।

रात में मोनी जब बाहर आई थी तब तो वह उसे न देख पाया परंतु सुबह सुबह जब मोनी सरयू सिंह के घर से बाहर निकल रही थी वह उसके पीछे हो लिया। मोनी आगे-आगे चल रही थी और उस पर नजर रख रहा पंडित जी का शिष्य उसके पीछे पीछे।


मोनी घबरा रही थी और अपनी चाल को नियंत्रित करती तेजी से आगे चल रही थी… कुछ देर बाद रेलवे स्टेशन पर पहुंच कर पंडित के शिष्य ने मोनी को ट्रेन के प्लेटफार्म पर जाते देखा वहां और भी लोग थे…वहा जाने में वह घबरा रहा था…कदम ठिठक गए। पंडित का शिष्य घबरा गया तभी गांव के किसी व्यक्ति ने उससे पूछ लिया…

" अरे ऊ केकर लइकी ह ते ओकरा पीछे-पीछे काहे जात बाड़े?" वह निरुत्तर हो गया। संयोग से उसी समय प्लेटफार्म पर ट्रेन आई और मोनी उस ट्रेन में सवार हो गई।

पंडित के शिष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह गए उसने यह बात अपने ही सीने में दफन रखने की सोची और चुपचाप वहां से रफा-दफा हो लिया परंतु अब जब मोनी के गायब होने की बात सार्वजनिक हो चुकी थी उसका बचना नामुमकिन था।


खबर कानो कान सरयू सिंह और हरिया तक पहुंच गई फिर क्या था सरयू सिंह के हाथ इतने भी कमजोर न थे। अपने इलाके में उनका दबदबा था और कुछ ही घंटों के पश्चात पंडित का हरामी शिष्य उनकी देहरी पर खड़ा लात खा रहा था।

सोनू ने बाहर आकर बीच बचाव किया और उससे सच जानने की कोशिश की। शिष्य ने अक्षरसः सारी बातें बता दी। बस वह एक बात छुपा ले गया जो उसे छुपाना भी चाहिए था वह थी मोनी की कुंवारी बुर देखने की बात।

कुछ ही देर में लोगों ने अंदाजा लगा लिया की मोनी जिस ट्रेन में चढ़ी थी वह उत्तराखंड की तरफ जाती थी। देहरादून उसका अंतिम पड़ाव था। मोनी कहां गई होगी यह प्रश्न अभी भी सबके दिमाग में घूम रहा था।

परंतु सोनू का दिमाग तेजी से चल रहा था मनोविज्ञान सोनू भली-भांति समझता था उसने मोनी में वैराग्य के कुछ लक्षण देखे थे। वह मन ही मन सभी संभावित गंतव्य स्थलों की सूची बनाने लगा और अपने निर्णय पर पहुंचकर उसने सरयू सिंह से कहा

" चाचा इकरा के मत मारल जाओ ई साला सही में ओकरा पीछे पीछे घूमत होई लेकिन इकरा गांणी में इतना दम नईखे की मोनी अगवा कइले होखी "

सोनू की बात में दम था. । वैसे भी वह व्यक्ति अपने किए की पर्याप्त सजा पा चुका था धूलधूसरित उस व्यक्ति के कपड़े फट चुके थे होठों से खून बह रहा था वैरागी मोनी की बुर देखने की यह सजा शायद कुछ ज्यादा ही थी…

धीरे-धीरे सोनू ने आगे की रणनीति बना ली.. सोनू लाली से मिलने से कतरा रहा था उसे लाली के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं समझ आ रहा था यदि लाली दीदी ने उस रात के बारे में पूछा तो वह क्या जवाब देगा? झूठ बोलना उचित न था और सच वह तो और भी अनुचित था ।

उसकी खुद की प्रतिष्ठा न सही परंतु सुगना से मिलन को वह लाली के समक्ष नहीं लाना चाह रहा था। सुगना ने प्रतिरोध किया था और सुगना के व्यवहार से यह स्पष्ट था की सुगना को वह मिलन स्वाभाविक रूप से स्वीकार्य न था। जो उसको सुगना दीदी को स्वीकार न था उसे न तो बताना कतई उचित न था।

अगली सुबह सोनू को वापस जौनपुर जाना था शाम को खाने पर उसने लाली, सुगना और सोनी को जाते समय बनारस छोड़ने की बात कही और सभी सहर्ष तैयार हो गए। आखिर छोटे-छोटे बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी जरूरी थी। सुगना सोनू के साथ जाने में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी परंतु कोई चारा भी न था..


सुबह अगली सुबह बोलेरो में सोनू और बनारस में रहने वाले सभी सदस्य सवार होने लगे। समान ऊपर बांधा गया और छोटे बच्चे पीछे चढ़कर अपनी अपनी जगह तलाश करने लगे। पीछे वाली सीट पर सोनू की तीनो बहने बैठी एक तरफ लाली बीच में सोनी और ड्राइवर के ठीक पीछे वाली सीट पर सुगना।

सोनी बच्चों को उछलने कूदने से रोक रही थी परंतु बच्चों को क्या? मोनी मौसी के गायब होने से उन्हें कोई विशेष फर्क न था वह सब अपनी मस्ती में चूर थे। परंतु सुगना परेशान थी मोनी को लेकर भी और अपने और सोनू के संबंधों में आए बदलाव को लेकर भी ।

वह खिड़की से बाहर गेहूं की बालियों को देखते हुए कभी उनकी सुंदरता में खोती और अपने गम को भूलने का प्रयास करती …उधर सोनू बार-बार पलट कर बात तो सोनी से करता परंतु उसकी निगाहें सुगना के गोरे गालों पर टिकी रहती.


काश! सुगना दीदी कुछ बोलती और हमेशा की तरह हंसती खिलखिलाती रहती। सोनू सुगना का मुस्कुराता और खिला-खिला चेहरा देखने के लिए तरस गया था। वह कभी अपनी गलती पर पछताता कभी अपने ईश्वर से सुगना को खुश करने के लिए प्रार्थना करता।

जब वह सुगना के स्खलित होते हुए चेहरे को याद करता उसे लगता जैसे उसने कोई पाप ना किया हो …और सुगना को पूर्ण तृप्ति देखकर उसने अपना फर्ज निभाया हो..परंतु जब उसे सुगना का प्रतिरोध याद आता वह आत्मग्लानि से भर जाता..

रास्ते में गाड़ी रोककर सोनू ने सुगना की पसंद की फेंटा लाई पर सबने उसका आनन्द लिया पर सुगना ने नहीं…जब सुगना ने नहीं लिया तो सोनू ने भी नहीं…

लाली सोनू और सुगना के बीच आए बदलाव को महसूस कर रही थी पर मजबूर थी।

सोनू और सुगना को छोड़कर बाकी सब धीरे-धीरे सामान्य हो गए थे… और कुछ घंटों के सफर के पश्चात सभी बनारस पहुंच गए सोनू ने सब का सामान उतारा परंतु अपने सामान को गाड़ी में ही रहने दिया…

सोनू ने बनारस में इस वक्त रह कर वक्त बर्बाद करना उचित न समझा मोनी को ढूंढना उसके पहली प्राथमिकता थी। तुरंत ही उसने अपने जौनपुर जाने की बात कह कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया.. उस पर हक जमाने वाली सुगना तो जैसे निर्विकार और निरापद हो गई थी.।

लाली ने एक बार सोनू से कहा

"अरे खाना पीना खा ल तब जईहा" परंतु सोनू को जिसका इंतजार था उसने मुंह ना खोला सुगना अब भी अपने कोमल अंगूठे से मजबूत फर्श कुरेद रही थी… परंतु उसने मुंह ना खोला। सुगना की खनखनाती और मधुर आवाज सुनने के लिए सोनू के कान तरस गए थे।

सोनू ने हाथ जोड़कर सबसे विदा ली… परंतु सोनू की यह विदाई सोनी को कतई समझ में नहीं आ रही थी ।

सोनू एक तरफा हाथ हिलाते हुए घर से बाहर निकल गाड़ी में बैठ गया अंदर तीन बहनों में से सिर्फ सोनी के हाथ ही हवा लहरा रहे थे…सुगना अब भी नजरें झुकाए बेचैन खड़ी थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह सोनू को किस प्रकार विदा करें? दिमाग के द्वंद्व ने सुगना की स्वाभाविकता छीन थी… अपने छोटे भाई सोनू से बेहद प्यार करने वाली सुगना उसे विदा होते समय देख भी न रही थी। नियति ने जिस भवसागर में सुगना और सोनू को धकेल दिया था उससे उन दोनों का ही उस भवर से निकलना जरूरी था..

सोनू के बाहर निकलते ही सोनी ने सुगना से पूछा

" दीदी … सोनू भैया से कोनो बात पर खिसियाइल बाड़े का ? " सुगना ने कोई उत्तर नहीं किया अपितु अपना सामान लेकर अपने कमरे में रखने लगी। सोनी को यह नागवार गुजरा वह सुनना के सामने आकर खड़ी हो गई और उसके कंधे को पकड़ते हुए बोली

" दीदी साफ बताओ काहे खिसीआईल बाड़े ? अइसन त ते सोनू भैया के साथ कभी ना करेले? सुगना ने सोनी की तरफ देखा और कहा अभी हमार दिमाग ठीक नईखे मोनी के मिल जाए दे फिर बात करब"


सोनी उत्तर से संतुष्ट न हुई परंतु उसे यह अहसास अवश्य था कि मोनी के गायब होने से सुगना और उसकी मां पद्मा सबसे ज्यादा दुखी थी। यह स्वाभाविक भी था। जहां सुगना अपने परिवार के मुखिया की भूमिका अदा करती थी वही मोनी अपनी मां पदमा का एकमात्र सहारा थी दिन भर साथ रहना …साथ में घर का काम करना और एक दूसरे से बातें करते हुए वक्त बिताना। मोनी के जाने से पदमा अकेली हो गई थी।

लाली और सुगना के बीच भी एक अजब सा तनाव था। सुगना को तो यह अंदाजा भी न था कि सोनू को उकसाने में लाली का योगदान था और लाली को यह आभास न था कि अंदर वास्तव में क्या हुआ था।


इतना तो तय था कि सुगना और सोनू का मिलन यदि हुआ था तो वह सुखद वातावरण में नहीं हुआ था। अन्यथा सुगना के चेहरे पर इतना तनाव कभी नहीं आता।

परंतु क्या सोनू ने अपनी ही बड़ी बहन सुगना से जबरदस्ती की होगी? छी छी सोनू जैसा प्रेमी ऐसा कतई नहीं कर सकता? फिर आखिर क्या हुआ था? यह जानने की लाली की तीव्र इच्छा थी परंतु उसके प्रश्नों का उत्तर न तो सोनू ने दिया था और नहीं सुगना से प्रश्न पूछ पाने की उसकी हिम्मत हो रही थी।

खैर जो होना था वह हो चुका था…. सोनू तेजी से जौनपुर की तरह बढ़ रहा था अपने कार्यक्षेत्र पर पहुंचकर उसका पहला उद्देश्य मोनी को ढूंढने के लिए अपने प्रशासन तंत्र की मदद लेना था.

सोनू ने जौनपुर पहुंचकर अपने विभाग के आला अधिकारियों से मदद मांगी और देखते ही देखते पुलिस विभाग की कई टीमें तैनात कर दी गई। सोनू स्वयं अपने पुलिसिया साथियों के साथ इस सर्च अभियान की कमान संभाल रहा था…

सोनू इस बात से भलीभांति अवगत था कि मोनी का झुकाव वैराग्य की तरफ है यह बात उसने पिछले बनारस महोत्सव में कई बार महसूस की थी विद्यानंद के उद्बोधन के पश्चात जब महिला और पुरुषों की भीड़ संगीत की धुन पर थिरकने लगती तो मोनी जैसे खुश हो जाती। बाकी कलयुगी लोग अपनी आंखें खोल कर इधर-उधर देखते परंतु मोनी वह तो जैसे भाव विभोर हो जाती..और लीन हो जाती।

सोनू दिन भर कभी इससे मिलता कभी उससे मिलता कभी अपनी टीम के सदस्यों से बात करता…सोनू ने मोनी को ढूंढने के लिए एड़ी चोटी चोटी का जोर लगा दिया।

एक-एक करके दिन बीतने लगे और लाली और सुगना के बीच की दूरियां कम ना हुईं। दोनों सहेलियां जो घंटों बैठ कर बात करती थी और उनकी बातें खत्म होने का नाम न लेती थी .. अब अपने अपने कमरों में पड़े अपनी अपनी यादों और एक दूसरे के साथ बिताए वक्त को याद करते एक दम शांत हो गई थीं। सुगना और लाली का चहकता हुआ घर न जाने कब एकदम शांत हो गया था।

जब घर की ग्रहणी दुखी होती है पूरे परिवार में दुख छा जाता है सारे बच्चे और यहां तक कि सोनी भी सुगना के इस बदले हुए स्वरूप से परेशान थी और सुगना के लिए चिंतित भी। सब बार-बार सुगना के पास जाते उसे मनाने और उसे दुख का कारण पूछते परंतु सुगना क्या कहती जो दर्द उसके मन में था… न तो वह उसे किसी के सामने बयां कर सकती थी और नहीं उस दुख से निजात पा सकती थी।

घर के सभी सदस्य अपने अपने इष्ट देव से सुगना के खुश होने के लिए प्रार्थना कर रहे थे…

दुआओं में असर होता है धीरे धीरे ऊपर वाले विधाता को सोनू और सुगना पर तरस आ गया और सोनू के ऑफिस में एक फोन आया…

जैसे-जैसे फोन के रिसीवर से शब्द निकल निकल कर सोनू के कानों से टकराते गए सोनू के चेहरे पर कभी आश्चर्य कभी विस्मय और अंततः मुस्कुराहट हावी होती गई …

"मैं सदैव आपका आभारी रहूंगा……जी…. जी……ठीक है मैं कल ही वहां पहुंचता हूं" सोनू ने आभार जताते हुए फोन का रिसीवर रखा और अपने दोनों हाथ जोड़कर अपनी छत को देखते हुए अपने इष्ट देव के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की।


सोनू के मन में आया कि वह इस खुशखबरी को तुरंत ही लाली और सुगना से साझा कर दे परंतु उसने कुछ सोचकर यह विचार त्याग दिया वैसे भी रात हो चुकी थी और इस समय लाली और सुगना तक संदेश पहुंचा पाना कठिन था।

सोनू अपने कमरे में आया और सुबह अपने सफर पर निकलने के लिए अपना सामान बांधा… मन में उत्साह और सुगना की यादें लिए सोनू..अपने बिस्तर पर आया…सुगना को याद करना सोनू के लिए सबसे सुकून का काम था… सुगना के खिलखिलाते और मुस्कुराते चेहरे को याद कर न सिर्फ सोनू की वासना जवान होती अपितु उसका रोम रोम खिल उठता। परंतु पिछले कुछ दिनों से सोनू सुगना के दुखी चेहरे को देखकर परेशान था। आज इस खुशखबरी को सुनकर उसका मन प्रसन्न हो गया था और वह एक बार सुगना को फिर मुस्कुराते और खिलखिलाते हुए देखना चाहता था.

उसे याद करते ही सोनू के जैसे सारे दुख गायब हो जाते न जाने सुगना में ऐसा क्या छुपा था ….कुछ ही देर में उसके दिमाग के सामने सुगना का चेहरा घूमने लगा… क्या यह खबर सुन कर सुनना दीदी उसे माफ कर देगी? क्या सुगना को वह उसी प्रकार खिलखिलाते चहकते देख पाएगा…और क्या वह अद्भुत सुख उसे कभी दोबारा प्राप्त होगा…?

जैसे ही सोनू को उस मिलन की याद आई उसकी आंखों के सामने दृश्य घूमने लगे आज का एकांत उसे उस मिलन की बारीकियां याद दिलाने लगा… कैसे उसके मजबूत लंड के सुपाडे ने सुगना की चिपचिपी गीली बुर में डुबकी लगाई थी?... सुगना दीदी की बुर गीली क्यों थी? क्यों उन्होंने उस रात पेंटी नहीं पहनी थी? क्या वह सच में इस सुख की प्रतीक्षा कर रही थी? पर यदि ऐसा था तो उन्होंने प्रतिरोध क्यों किया?

सोनू सुगना की बुर के कसाव को याद करने लगा.. कितना जीवंत था सुगना दीदी का बुर का कसाव… ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने अपनी अनगिनत कोमल उंगलियों से उसके लंड को को अपने आलिंगन में भर लिया हो…और उगलियो के दबाव से स्वाभाविक तौर पर उसे अपने अंदर और अंदर और गहरे तक खींचे जा रहा हो..

गर्भाशय के मुख पर पहुंचकर उसके सुपाडे ने जब प्रतिरोध को महसूस किया तब उसने अपने लंड को सुगना की बुर में पूरी तरह अंदर पाया…. क्या ऊपर वाले ने सुगना की बुर और सोनू के लंड को एक दूसरे के लिए ही बनाया था..

सोनू को अच्छी तरह याद आ रहा था जब इसके बाद उसने अपने लंड को और अंदर डालने की कोशिश की और सुगना की फूली हुई बुर उसके दबाव से पूरी तरह चिपक गई….

जिस तरह आलिंगन का कसाव बढ़ाने पर दूरियां और कम हो जाती है उसी प्रकार सोनू के दबाव बढ़ाने से लंड और अन्दर गया और उसने गर्भाशय का मुख खोल दिया …


और सुगना के वह उद्गार…

"सोनू… तनी धीरे से दुखाता"

सुगना के इस उद्बोधन में सिर्फ और सिर्फ एक प्यार भरी कामुकता थी और स्खलन के लिए तैयार उसकी बहन की मिलन की पूर्णता की मांग……

अब तक सोनू का लंड उसके मनोभाव पढ़कर हरकत में आ चुका था और सोनू की हथेलियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहा था…

जैसे ही हथेलियों ने लंड को अपने आगोश में लिया सोनू की भावनाएं और कामुक होती गई।

सोनू उस रात हुए अनुभवों को याद कर रहा था और उन्हें अपने मन में उसे एक बार फिर महसूस करने की कोशिश कर रहा था। कैसे वह अपनी सुगना दीदी की बुर से जैसे ही लंड निकालने की कोशिश करता… अंदर उत्पन्न हुआ निर्वात सोनू के लंड को तुरंत ही अपनी तरफ खींचने लगता.. और सोनू का लंड एक बार फिर और गहराई तक उतर जाता…

सुगना की कोमल जांघों का स्पर्श उसकी जांघों से हो रहा था। ऐसी मखमली त्वचा शायद उसने जीवन में कभी अनुभव न की थी। मिलन के अन्तिम पलों में सुगना की पिंडलियां उसके नितंबों पर लगातार दबाव बनाए हुए उसे अपनी तरफ खींच रही थी..

वह स्खलित होती हुई बुर के कंपन ….वो अंतिम पलों में दीदी के प्रतिरोध का बिल्कुल खत्म होना और सुगना दीदी द्वारा उसकी उंगली को चुभलाए जाना….

सोनू की गतिमान हथेलियां लंड के मान मर्दन में लगी हुई थीं..

सोनू सुगना की चूचियों के स्पर्श को याद कर रहा था.. तभी वीर्य की एक मोटी धार हवा में उड़ती हुई वापस उसके चेहरे पर आ गिरी। सोनू का लंड हवा में वीर्य वर्षा कर रहा था जिसकी पहली धार स्वयं सोनू के होठों पर ही आकर गिरी..

आज जीवन में पहली बार उसने अपने ही वीर्य का स्वाद अपने होठों से चखा था…

…सोनू स्खलित हो रहा था…आज कई दिनों बाद सोनू के चेहरे पर खुशियां थी वह अति शीघ्र अपनी बहन सुगना से मिलना चाहता था।

अगले दिन सोनू अपने गंतव्य के लिए निकल चुका दिनभर की यात्रा करने के पश्चात वह सुबह सुबह विद्यानंद के आश्रम में हाजिर था। उसे उसे यह स्पष्ट जानकारी हो चुकी थी की मोनी विद्यानंद के आश्रम में ही आई थी। पुलिस और प्रशासन के सहयोग से सोनू को यह जानकारी फोन द्वारा प्राप्त हो चुकी थी। परंतु सोनू मोनी से मिलकर इस बात की तसल्ली करना चाहता था और उसके घर छोड़ने का कारण भी जानना चाहता था।

सोनू आश्रम के पंडाल में आ चुका था।श्वेत वस्त्रों में मोनी को आंखें बंद किए अपने दोनों हाथ हवा में हिलाते हुए एक विशेष धुन पर हौले हौले नृत्य करते हुए देखकर सोनू आश्चर्यचकित था । मोनी के चेहरे पर निश्चित ही एक नया नूर था। पिछले कुछ दिनों में ही मोनी को जैसे यह आश्रम रास आ गया था…सोनू कुछ देर तक नृत्य के खत्म होने का इंतजार करता रहा और जैसे ही अल्पविराम हुआ उसने आवाज लगाई

"मोनी"

मोनी ने सोनू की तरफ देखा परंतु वह उसकी तरफ आई नहीं। शायद मोनी के मन में सोनू के प्रति घृणा उत्पन्न हो चुकी थी और हो भी क्यों न जो व्यक्ति अपनी ही बहन के साथ ऐसा दुष्कर्म कर सकता है और जो अपनी छोटी बहन को अपने दोस्त की वासना शांत करने के लिए भेज सकता है ऐसा घृणित व्यक्ति भाई कहलाने योग्य कतई नहीं हो सकता।

सोनू ने आगे बढ़कर मोनी से मुलाकात करने की कोशिश की परंतु विद्यानंद के अंग रक्षकों ने उसे महिला पंडाल की तरफ जाने से रोक लिया। विशेष अनुरोध करने पर आश्रम के ही एक अन्य व्यक्ति ने मोनी तक एक बार फिर उसकी मिलने की मंशा पहुंचाई पर मोनी ने उससे मिलने से मना कर दिया…

सोनू यह बात कतई नहीं समझ पा रहा था कि मोनी ने उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया ? हो सकता है मोनी सांसारिक दुनिया को छोड़ चुकी थी और वह अपने परिवार के सदस्यों से मिलना न चाहती हो?

खैर मोनी को कुशल देखकर सोनू को तसल्ली हो गई कि वह आश्रम में सुरक्षित और सकुशल है उसके लिए इतना ही पर्याप्त था। वह अपने मन में ढेरों प्रश्न लिए वापस बनारस की तरफ चल पड़ा…

सोनू के मन में खुशियां और दुख अपना अपना आधिपत्य जमाने के लिए होड़ लगा रहे थे। मोनी के मिलने की उसके मन में जितनी खुशी थी उतना ही मोनी को अपने परिवार से हमेशा के लिए खो देने का दुख भी।


मोनी के व्यवहार से सोनू स्तब्ध भी था वैरागी मनुष्य के चेहरे पर सामान्यता घृणा के भाव नहीं होते परंतु मोनी ने जिस तरह सोनू को देख कर अपना चेहरा घूम आया था उसने सोनू को चिंतित कर दिया था। सोनू ने अपने दिमाग को झटका और इस विचार को दरकिनार कर दिया…उसके पास और कोई चारा भी न था।

सोनू सुखद पहलू की तरफ ध्यान दे रहा था. मोनी के मिलने की बात सुगना को बता कर उसके चेहरे पर मुस्कान और खुशी देखने के विचार मात्र से उसका मन गदगद हो रहा था। सोनू अपनी बहन सुगना की माफी की प्रतीक्षा और उसके खुशहाल चेहरे को देखने की कामना की अपनी ट्रेन के जल्दी बनारस पहुंचने का इंतजार करने लगा…

हर रोज की तरह बनारस की सुबह बाहरी दुनिया के लिए खुशनुमा थी परंतु सुगना और उसके परिवार के लिए वैसी ही उदास…सोनी सोनी अपने नर्सिंग कॉलेज जा चुकी थी बच्चे स्कूल और लाली घर का जरूरी सामान लेने बाहर गई हुई थी…सुगना ने स्नान ध्यान किया और अपने इष्ट देव से हमेशा की तरह मोनी के मिलने की कामना की और रसोई से जा कर दो रोटी और सब्जी लेकर नाश्ता करने बैठ गई…न जाने आज उसे सब्जी की गंध क्यों अजीब सी लग रही थी उसने कुछ ही निवाले अपनी हलक से नीचे उतारे होंगे और उसका मन मचलने लगा वह बेचैन सी होने लगी.. उसने प्लेट जमीन पर रखी और बाथरूम की तरफ भागी ।

सुगना उल्टियां करने लगी। तभी अपने मन में ढेरों अरमान लिए सोनू दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। दरवाजा खुला था अपने ही घर में आने के लिए उसे किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता न थी। बाथरूम से सुगना की उल्टियां करने की अजब सी आवाज आ रही थी….

सुगना को कष्ट हो और सोनू बेचैन ना हो यह हो नहीं सकता..

"दीदी का भईल"

सुगना की तरफ से कोई उत्तर न सुनकर सोनू बाथरूम के दरवाजे के पास पहुंच गया.. बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था और सुगना बेसिन में मुंह लटकाए अपने चेहरे को पानी से धो कर खुद को उल्टी की भावना से बचा रही थी… और खुद को तरोताजा करने का प्रयास कर रही थी।

शायद इसी उहापोह में उसने सोनू के आने पर अपनी प्रतिक्रिया भी नही दे पाई..

सोनू पास पहुंचकर उसकी मदद करना चाह रहा था परंतु सुगना बदहवास थी उसने हाथ हिलाकर सोनू को रुकने का इशारा किया और बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू कर बाहर आई।

"दीदी मोनी मिल गईल" सोनू ने चहकते हुए बताया और उसके पैरो पर गिर पड़ा।

सुगना के चेहरे पर थोड़ा मुस्कान आई जिसे झुक चुका सोनू देख भी ना पाया…सुगना पीछे हटी वह एक बार फिर बाथरूम में घुस गई शायद अपनी उल्टीओ पर उसने जो क्षणिक नियंत्रण पाया था वह छूट चुका था..

सोनू ने सुगना को पीछे हटते देख सोनू डर गया क्या सुगना दीदी ने उसे अब भी माफ नहीं किया है?

शेष अगले भाग में..





बहुत ही सुंदर अपडेट। मोनी भी मिल गई। अब सुगना का अगला रुख क्या होगा। अपडेट की प्रतीक्षा रहेगी
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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सर, बहुत ही बढीया,पर सगुना का उल्टियाँ करना कही
सगुना का सोनु के बच्चे की‌ माँ बनने की तरफ का इशारा तो नही.. वैसे सगुना का पति नही है इसलिये वो क्या कहेगी की ये किसका बच्चा है..? कुछ भी हो पर अगला अपडेट जल्दी देना.. अब इन्तजार करना मुश्किल हो रहा है।
 

politeps

Member
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हमेशा की तरह लाजवाब अपडेट था। अब देखते हैं कि आने वाला बच्चा इनकी जिंदगी में क्या बदलाव लाता है।
 
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