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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

iwillknock1

New Member
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प्रिय पाठको जैसा कि मैंने वादा किया था आज रात्रि 10:00 बजे तक उन सभी पाठकों को 101 वां एपिसोड डायरेक्ट मैसेज से भेज दिया जाएगा जिन्हें यह अपडेट नहीं मिलता है वह मुझे इसी कहानी के पटल पर मैसेज कर बता सकते वैसे मैं पूरी कोशिश करूंगा कि किसी का नाम न छूटे परंतु यदि छूट जाता है तो कृपया मुझे अवश्य बताएं..

एक बात और 102 वां एपिसोड भी इसी कहानी का दूसरा महत्वपूर्ण अपडेट है जिन पाठकों की प्रतिक्रिया 101 में अपडेट पर आ जाएगी उन्हें तुरंत ही दूसरा अपडेट (102 वा )कल सुबह भेज दिया जाएगा।
Nice story..

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Lovely Anand

Love is life
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Ho sakta h sugna is update mein sonu ko sikh de ki sex karo lekin virya bahar girao
Saryu singh aur soni ke bich kya hoga kab hoga kaise hoga ye जानने ki tivra इच्छा है
Jald se jald update dijiye prabhu
सुगना जो सीख देगी या सोनू जो सबक सीखे गा यह शायद अगले अपडेट में आपको दिखाई पड़े रचना जारी है
Thank you🙏.

I just read update 90 and 91.

I like your sence of eroticism. This blend of sex and sensuality is wonderful.
बस यूं ही अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहें और अपने जुड़ाव का प्रदर्शन करते रहे
Nice story..

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महोदय भेज दिया गया है
please update 102
wating
आपको भी भेज दिया गया है
 

sunoanuj

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Niyati ka khel fir se shuru hota dikha raha hai…

Bhaut hee jabardast update mitr ….
 

Sanju@

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भाग 107
जैसे ही लाली करीब आए सोनू ने पीछे से आकर उसकी चूचियां अपनी हथेलियों में भर ली और बोला..

"दीदी इतना दिन से कहां भागल भागल फिरत बाडु "

"अब हमरा से का चाहीँ कूल प्यार त सुगना में भर देला" लाली ने बिना नजरे मिलाए सटीक प्रहार किया..


सोनू को कुछ समझ में न आया अब तक उसका खड़ा लंड लाली के नितंबों में धसने लगा था वह चुप ही रहा । लाली की पीठ और सोनू के सीने के बीच दूरियां कम हो रही थी परंतु लाली सोनू को छोड़ने वाली न थी। अपनी सहेली सुगना को उसकी समस्या से निजात दिलाना उसकी पहली प्राथमिकता थी लाली ने कहा

अब आगे….

"अच्छा सोनू ई बतावा ओ दिन का भएल रहे?"

सोनू ने लाली के कानों और गालों को चुमते हुए उसका ध्यान भटकाने की कोशिश की और बेहद चतुराई से एक हाथ से उसकी चूचियां और दूसरी हथेली से उसकी बुर को घेर कर सहलाने की कोशिश की परंतु लाली मानने वाली न थी वह उसकी पकड़ से बाहर आ गई और सीधा सोनू के दोनों कानों को पकड़ कर उसकी आंखों में आंखें डाल ते हुए फिर से पूछा..

"ओह दिन हमरा सहेली सुगना के साथ का कईले रहला?"

लाली ने सोनू की शर्म और झिझक को कम करने की कोशिश की सुगना को अपनी सहेली बता कर उसने सोनू की शर्म पर पर्दा डालने की कोशिश की आखिर कैसे कोई भाई अपनी ही बहन को चोदने की बात खुले तौर पर स्वीकार करेगा..

सोनू ने बात टालते हुए कहा…

"अच्छा पहले डुबकी मार लेवे द फिर बताएंब "

सोनू ने यह बात कहते हुए लाली को अपनी गोद में लगभग उठा सा लिया और उसे बिस्तर पर लाकर पटक दिया कुछ ही देर में सोनू और लाली एक हो गए सोनू का मदमस्त लंड एक बार फिर मखमली म्यान में गोते लगाने लगा परंतु .. जिसने एक बार रसमलाई खाई हो उसे सामान्य रसगुल्ला कैसे पसंद आता..

सोनू के दिमाग में सुगना एक बार फिर घूमने लगी सुगना की जांघों की मखमली त्वचा का वह एहसास सोनू गुदगुदाने लगा। और सुगना की बुर का कहना ही क्या …वह कसाव वह रस से लबरेज बुर के गुलाबी होंठ और वह आमंत्रित करती सुगना को आत्मीयता अतुलनीय थी..

सोनू का लंड गचागच लाली की बुर में आगे पीछे होने लगा परंतु सोनू का मन पूरी तरह सुगना में खोया हुआ था। कुछ कमी थी … भावनावो और क्रियाओं में तालमेल न था। सुगना और लाली के मदमस्त बदन का अंतर स्पष्ट था और प्यार का भी… परंतु सोनू अपने अंडकोष में उबल रहे वीर्य को बाहर निकालना चाहता था.. उसने लाली को चोदना चारी रखा परंतु मन ही मन वह यह सोचता रहा कि काश यदि सुगना दीदी उसे स्वीकार कर लेती तो उसे जीवन में उसे सब कुछ मिल जाता जिसकी वह हमेशा से तलाश करता रहा है …

सच ही तो था सुगना हर रूप में सोनू को प्यारी थी एक मार्गदर्शिका के रूप में एक सखा के रूप में …. इतने दिनों तक साथ रहने के बाद भी सोनू और भी बिना किसी खटपट के एक दूसरे को बेहद प्यार करते थे उनके प्यार में कोई नीरसता न थी। परंतु सोनू ने धीरे-धीरे सुगना में प्यार का जो रूप खोजना शुरू कर दिया था सुगना उसके लिए मानसिक रूप से तैयार न थी।


यह तो लाली की वजह से घर में ऐसी परिस्थितियां बन गई थी की सोनू के कामुक रूप के दर्शन सुगना ने कई बार कर लिए थे और उसकी अतृप्त वासना सर उठाने लगी थी। जिसका आभास न जाने सोनू ने कैसे कर लिया था और सोनू और सुगना के बीच वह हो गया था जो एक भाई और बहन के बीच में कतई प्रतिबंधित है ।

बिस्तर पर हलचल जारी थी ऐसा लग रहा था जैसे सोनू जी तोड़ मेहनत कर रहा था परंतु सोनू का तन मन जैसे सुगना को ढूंढ रहा था.. सोनू को अपना ध्यान लाली पर केंद्रित करने के लिए आज मेहनत करनी पड़ रही थी…

इसके इतर लाली सोनू के बदले हुए रूप से आनंद में थी आज कई दिनों बाद उसकी कसकर चूदाई हो रही थी..

"अब त बता द अपना दीदी के साध कैसे बुताईला"

वासना के आगोश में डूबी लाली अब भी सुगना के बारे में बात करते समय सचेत थी। सोनू और सुगना के बीच चोदा चोदी जैसे शब्दों का प्रयोग कतई नहीं करना चाहती थी। उसे पता था सोनू इस बात से आहत हो सकता था वह सुगना को बेहद प्यार करता था और उसकी बेहद इज्जत करता था ऐसी अवस्था में उससे यह पूछना कि तुमने अपनी ही बहन को कैसे चोदा यह सर्वथा अनुचित होता।

सोनू ने लाली की कमर में हाथ डाल कर उसे पलट दिया और उसी घोड़ी बन जाने के लिए इशारा किया। फिर क्या लाली के बड़े बड़े नितंब हवा में लहराने लगे और लाली जानबूझकर अपने नितंबों को आगे पीछे कर सोनू को लुभाने लगी सोनू की मजबूत हथेलियों में लाली की कमर को पकड़ा और सोने का खूंटा अंदर धसता चला गया..

अब सोनू की वासना भी उफान पर थी उसने लंड को बुर की जड़ तक धासते हुए लाली की चिपचिपी बुर को पूरा भरने की कोशिश की और एक बार लाली चिहुंक उठी.." सोनू बाबू …..तनी धीरे से…"

लाली की इस उत्तेजक कराह ने सोनू को एक बार फिर सुगना की याद दिला दी और सोनू से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने अपने कमर की गति को बढ़ा दिया और लाली को गचागच चोदने लगा…

कुछ ही देर में लाली स्खलित होने लगी परंतु सुगना के बुर के कंपन और लाली के कंपन में अंतर स्पष्ट था सोनू हर गतिविधि में लाली की तुलना सुगना से कर रहा था।

सोनू के लंड को फूलते पिचकते महसूस कर लाली ने अपने नितंबों आगे खींचकर उसके लंड को बाहर निकालने की कोशिश की परंतु सोनू ने उसकी कमर को पकड़ कर अपनी तरफ खींच रखा..

अंततः सोनू ने.. अपनी सारी श्वेत मलाई लाली की ओखली में भर दी….

सोनू अब पूरी तरह हांफ रहा था उसने अपना लंड लाली की बुर से निकाला और बिस्तर पर चित्त लेट गया। लंड धीरे-धीरे अपना तनाव त्याग कर एक तरफ झुकता चला गया लाली सोनू के पसीने से लथपथ चेहरे को देख रही थी और अपनी नाइटी से उसके गालों पर छलक आए पसीने की बूंदों को पोंछ रही थी। उसने सोनू से प्यार से कहा..

"सोनू बाबू भीतरी गिरावे के आदत छोड़ द तोहार यही आदत से सुगना मुसीबत में आ गईल बिया"

सुगना और मुसीबत लाली द्वारा कहे गए यह शब्द सोनू के कानों में गूंज उठे। सुगना पर मुसीबत आए और सोनू ऐसा होने दे यह संभव न था। वह तुरंत ही सचेत हुआ और उसने लाली से पूछा


"का बात बा दीदी के कोनो दिक्कत बा का?"

"ओ दिन जो तू सुगना के साथ कईले रहला ओह से सुगना पेट से बीया"


लाली की बात सुनकर सोनू सन्न रह गया कान में जैसे सीटी बजने लगी आंखें फैल गईं और होंठ जैसे सिल से गए… हलक सूखने लगा लाली ने जो कहा था सोनू को उस पर यकीन करना भारी पड़ रहा था। आंखों में विस्मय भाव बड़ी मुश्किल से वह हकलाते हुए बमुश्किल बोल पाया..

क…..का?

दोबारा प्रश्न पूछना आपके अविश्वास को दर्शाता है सोनू निश्चित ही इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था परंतु सच तो सच था… लाली ने अपनी बात फिर से दोहरा दी और सोनू उठ कर बैठ गया। उधर उसका लंड एकदम सिकुड़ कर छोटा हो गया ऐसा लग रहा था जैसे उसे एहसास हो गया था कि इस पाप का भागी और अहम अपराधी वह स्वयं था…

"अब का होई ? " धीमी आवाज में सोनू ने कहा।ऐसा लग रहा था जैसे उसने अपना अपराध कबूल कर लिया हो…और लाली से मदद मांग रहा हो।

लाली और सोनू ने विभिन्न मुद्दों पर विचार विमर्श किया परंतु हर बार शिवाय गर्भपात के दूसरा विकल्प दिखाई नहीं पड़ रहा था। सोनू सुगना से विवाह करने को भी तैयार था परंतु लाली भली-भांति यह बात जानती थी की सोनू और सुगना का विवाह एक असंभव जैसी बात थी इस समाज से दूर जंगल में जाकर वह दोनों साथ तो रह सकते थे परंतु समाज के बीच सुगना और सोनू का पति पत्नी के रूप में मिलन असंभव था।

अंततः सोनू को लाली ने सुगना की विचारधारा से सहमत करा लिया… और जी भर कर चुद चुकी लाली नींद की आगोश में चली गई उधर सुगना अब भी जाग रही थी …इधर सोनू भी अपनी आंखें खोलें सुगना के गर्भपात के बारे में सोच रहा था…आखिर… क्यों उसने उस दिन उसने सुगना के गर्भ में ही अपना वीर्य पात कर दिया था…

अगली सुबह घर में अचानक गहमागहमी का माहौल हो गया सोनी परेशान थी कि अचानक सुगना दीदी सोनू के साथ जौनपुर क्यों जा रही थी?

सोनू चाहता तो यही था कि सुगना उसके साथ अकेली चले। परंतु यह संभव न था मधु अभी भी उम्र में छोटी थी और उसे अकेले छोड़ना संभव न था और जब मधु साथ चलने को हुई तो सूरज स्वतः ही साथ आ गया वैसे भी वह सुगना के कलेजे का टुकड़ा था।

सुगना थोड़ा घबराई हुई सी थी। उसे कृत्रिम गर्भपात का कोई अनुभव न था और नहीं उसने इसके बारे में किसी से सुन रखा था। वह काल्पनिक घटनाक्रम और उससे होने वाली संभावित तकलीफ से घबराई हुई थी।

लाली ने सुगना का सामान पैक करने में मदद की और सुगना कुछ ही देर में अपने दोनों छोटे बच्चों मधु और सूरज के साथ घर की दहलीज पर खड़े सोनू का इंतजार करने लगी…. जो अपने किसी साथी से फोन पर बात करने का हुआ था।

उधर सलेमपुर में सरयू सिंह सोनी की पेंटी के साथ अपना वक्त बिता रहे थे और अपने बूढ़े शेर (लंड ) को रगड़ रगड़ कर बार-बार उल्टियां करने को मजबूर करते। धीरे धीरे सोनी उन्हें एक काम पिपासु युवती दिखाई पड़ने लगी थी…अपने और सोनी के बीच उम्र का अंतर भूल कर वह उसे चोदने को आतुर हो गए थे।


जब वासना अपना रूप विकृत करती है उसमें प्यार विलुप्त हो जाता है। सरयू सिंह की मन में सोनी के प्रति प्यार कतई ना था वह सिर्फ और सिर्फ उसे एक छिनाल की तरह देख रहे थे जो अपनी युवा अवस्था में बिना विवाह के किए शर्म लिहाज छोड़ कर किसी पर पुरुष से अपने ही घर में चुद रही थी।

जब सरयू सिंह की बेचैनी बढ़ी उनसे रहा न गया वह सोनी के देखने एक बार फिर बनारस की तरफ चल पड़े। अपने पटवारी पद का उपयोग करते हुए उन्होंने कोई शासकीय कार्य निकाल लिया था जिससे वह बनारस में अलग से दो-चार दिन रह सकते थे। उन्होंने मन ही मन सोच लिया था कि वह विकास और सोनी को रंगे हाथ अवश्य पकड़ेंगे।

बनारस पहुंचकर उन्होंने विकास और उसके पिता के बारे में कई सारी जानकारी प्राप्त की.. विकास के पिता व्यवसाई थे सरयू सिंह की निगाहों में व्यवसाय की ज्यादा अहमियत न थी वह शासकीय पद और प्रतिष्ठा को ज्यादा अहमियत देते थे। विकास के पिता की दुकान और दुकान के रंग रूप को देखकर उन्हें उनकी हैसियत का अंदाजा ना हुआ परंतु जब वह रेकी करते हुए विकास के घर तक पहुंचे तो उसके घर को देखकर उनकी घिग्घी बंध गई।

सच में विकास एक धनाढ्य परिवार का लड़का था उसके महलनुमा घर को देखकर सरयू सिंह को कुछ सूचना रहा था वह उन पर दबाव बना पाने की स्थिति में न थे। सरयू सिंह को अचानक ऐसा महसूस हुआ जैसे वह विकास और सोनी के रिश्ते को रोक नहीं पाएंगे और सोनी उस अनजान धनाढ्य लड़के से लगातार चुदती रहेगी…

फिर भी सरयू सिंह ने हार न मानी वह गार्ड के पास गए और बोले विकास घर पर हैं…

"हां…आप कौन…?"


सरयू सिंह यह जान चुके थे कि विकास अभी बनारस में है उन्होंने सोनी पर नजर रखने की सोची और अपने बल, विद्या और बुद्धि का प्रयोग कर सोनी और विकास को रंगे हाथ पकड़ने की योजना बनाने लगे।

सोनू उधर सुगना और सोनू का सामान गाड़ी में रखा जा चुका था सुगना कार की पिछली सीट पर बैठ चुकी थी। मधु उसकी गोद में थी। सूरज भी अपनी मां के साथ पिछली सीट पर आ चुका था जैसे ही सोनू ने आगे वाली सीट पर जाने के लिए दरवाजा खोला सूरज ने बड़ी मासूमियत से कहा

"मामा पीछे हतना जगह खाली बा एहिजे आजा"

इससे पहले कि सोनू कुछ सोचता लाली ने भी सोनू से कहा

"पीछे ईतना जगह खाली बा पीछे बैठ जा सूरज के भी मन लागी… सुगना अकेले तो दू दू बच्चा कैसे संभाली।

अंततः सोनू कार की पिछली सीट पर आ गया सबसे किनारे सुगना बैठी हुई थी उसकी गोद में मधु थी बीच में सूरज और दूसरी तरफ सोनू ।

कार धीरे धीरे घर से दूर हो रही थी सुगना और सोनू के व्यवहार से सोनी आश्चर्यचकित थी न तो दोनों के चेहरे पर कोई खुशी न थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सुगना और सोनू जौनपुर बिना किसी इच्छा के जा रहे थे।

रतन और बबीता के पेट से जन्मी मालती आज पहली बार सुगना से अलग हो रही थी उसकी आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे। सुगना सबकी प्यारी थी मासूम मालती को क्या पता था की सुगना वहां घूमने फिरने नहीं अपितु एक अनजान कष्ट सहने जा रही थी। वहां पूरे परिवार को लेकर जाना संभव न था सोनी ने मालती के आंसू पूछे और न जाने अपने मन में क्या-क्या सोचते हुए घर के अंदर आ गई।

जैसे ही कार सड़क पर आई वह सरपट दौड़ने लगी छोटा सूरज खिड़की के पास आने के लिए बेचैन हो गया और उसकी मनोदशा जानकर सोनू ने उसे खिड़की की तरफ आ जाने दिया पिछली सीट पर अब सोनू सुगना के ठीक बगल में था।

सुगना और सोनू दोनों बात कर पाने की स्थिति मे न थे। सुगना मधु के साथ एक खिड़की से बाहर देख रही थी और सूरज के साथ सोनू दूसरी खिड़की की तरफ।

जैसे ही कार गति पकड़ती गई बच्चे बाहरी दृश्यों से बोर होने लगे… परंतु कार की हल्की-हल्की उछाल ने उन्हें झूले का आनंद लिया और धीरे-धीरे दोनों ही बच्चे सो गए ।

तभी कार एक सिग्नल पर रुकी. दीवाल पर हम दो हमारे दो नारा लिखा हुआ था साथ में पति पत्नी और दो बच्चों की तस्वीर भी बनाई गई थी और नीचे परिवार नियोजन अपनाएं का चिर परिचित संदेश भी दिया हुआ था संयोग से सुगना बाहर की तरफ देख रही थी और निश्चित ही उस विज्ञापन को पढ़ रही थी।

उसी दौरान सोनू की निगाह भी उसी विज्ञापन पर गई और उसे वह विज्ञापन ठीक अपने ऊपर बनाया प्रतीत होने लगा ऐसा लग रहा था जैसे विज्ञापन में बने हुए पति पत्नी वह स्वयं और पास बैठी सुगना थे तथा दोनों छोटे बच्चे सूरज और मधु थे।

नियति का एक यह अजीब संयोग था। सुगना अपने पुत्र सूरज के साथ थी और सोनू अपनी पुत्री मधु के साथ। सुगना और सोनू को कोई भी व्यक्ति वह विज्ञापन ध्यान से पढ़ते हुए देखता तो निश्चित ही अपने मन में यह यकीन कर लेता कि सुगना और सोनू पति-पत्नी है और निश्चित ही परिवार नियोजन की तैयारी कर रहे हैं।

सुगना को परिवार नियोजन की कोई जानकारी न थी। अब तक वह सरयू सिंह से जी भर कर चुदी थी परंतु सरयू सिंह तो जैसे कामकला के ज्ञानी थे। स्त्रियों की माहवारी से गर्भधारण के संभावित दिनों का आकलन कर पाना और उसी अनुसार संभोग के दौरान अपने वीर्य को गर्भ में छोड़ना या बाहर निकालना किया उन्हें बखूबी आता था। और कभी गलती हो भी जाए तो उनका वाह मोतीचूर का लड्डू अपना काम कर देता था परंतु सोनू को ज्ञान मिलने में अभी समय था उसकी पहली गलती ही सुगना को गर्भवती कर गई थी।

रेलवे का सिग्नल उठ चुका था और ड्राइवर ने कार अचानक ही बढ़ा दी सुगना असंतुलित हो उठी उसने सीट पर अपने हाथ रख स्वयं को संतुलित करने की कोशिश की परंतु सुगना का हाथ सीट की बजाय सोनू की हथेली पर आ गया इससे पहले की सुगना अपना हाथ हटा पाती सोनू ने सुगना की हथेली को अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले लिया।

सुगना के मन में आया कि वह अपना हाथ खींच ले परंतु वह रुक गई सामने ड्राइवर था और किसी तरीके का प्रतिरोध एक गलत संदेश दे सकता था।

सोनू सुगना की हथेली को सहलाने लगा कभी व उसकी उंगलियों के बीच अपनी उंगली फसाता कभी हाथ की ऊपरी त्वचा को अपनी हथेली से धीरे-धीरे सहलाता कभी सुगना की हथेली के बीच रेखाओं को अपनी उंगलियों से पढ़ने की कोशिश करता।


सुगना को यह स्पर्श अच्छा लग रहा था ऐसा लग रहा था जैसे सोनू उसकी व्यथा समझ पा रहा हो। परंतु सुगना और सोनू बात कर पाने की स्थिति में न थे।

सोनू और सुगना की कार बनारस शहर छोड़कर लखनऊ का रुख कर चुकी थी। जौनपुर जाने का कोई औचित्य न था लखनऊ में मेडिकल सुविधाएं बनारस और जौनपुर से कई गुना अच्छी थी बनारस में गर्भपात करा पाना कठिन था वहां लोगों से मिलना जुलना हो सकता था और सोनू और सुगना की स्थिति असहज हो सकती थी इसी कारण सोनू लाली और सोनी ने मिलकर गर्भपात के लिए लखनऊ शहर के हॉस्पिटल को चुना था।

सोनू अपराध बोध से ग्रसित था फिर भी सुगना का वह जी भरकर ख्याल रखता रास्ते में गाड़ी रोककर कभी खीरा कभी ककड़ी कभी झालमुड़ी और न जाने क्या-क्या…. अपनी बड़ी बहन को खुश रखने का सोनू पर जतन कर रहा था परंतु सुगना घबराई हुई थी। अपने गर्भ में पल रहे शिशु का परित्याग आसान कार्य न था शारीरिक पीड़ा उसे झेलना था।


आखिरकार लखनऊ पहुंचकर सुगना और सोनू दोनों उसी गेस्ट हाउस में आ गए जिसमें सोनी और विकास का मिलन सोनू ने अपनी आंखों से देखा था। सुगना को गेस्ट हाउस में बैठा कर सोनू हॉस्पिटल जाकर कल के लिए अपॉइंटमेंट ले आया और आते समय सुगना और उसके बच्चों के लिए ढेर सारी चॉकलेट और मिठाईयां लेता आया आखिर जो हो रहा था उसमें बच्चों का कोई कसूर न था।

सुगना और सोनू आखिर कब तक बात ना करते। दैनिक जरूरतों ने सुगना और सोनू को बात करने पर मजबूर कर दिया…कभी बच्चो के लिए दूध लाना कभी खाना, कभी अटैची उठाना कभी बाथरूम में नल खोलने में …मदद..

इसी क्रम में सुगना ने एक बार फिर बाथरूम में उल्टी करने की कोशिश की…सोनू पानी की बोतल लिए सुगना के पीछे ही खड़ा था..

सुगना ने पलटते ही कहा..

"देख तोहरा चलते आज का हो गइल " सोनू पास आ गया और सुगना को अपने आलिंगन में लेते हुए बोला

" दीदी हमरा ना मालूम रहे हम ही एकर कसूरवार बानी… हमरा के माफ कर द" सुगना ने अपने दोनो हाथ अपने सीने के सामने रखकर आलिंगन में आने पर अपना विरोध दिखाया। सोनू सुगना की मनोस्थिति समझ उससे अलग हुआ और धीरे धीरे अपने दोनों घुटनों पर आ गया।

उसका सर सुनना के पेट से सट रहा था… सोनू की आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे वह बार-बार एक ही बात दोहरा रहा था.

" दीदी हम तोहरा के कभी कष्ट ना देवल चाहीं.. हमरा से गलती हो गइल…दोबारा की गलती ना होई"


कान पकड़कर सुगना से मिन्नते करता सोनू नियति को बेहद मासूम लग रहा था। सुगना को ऐसा लगा जैसे शायद सोनू और उसका यह मिलन एक संयोग था और उन दोनो के लिए एक सबक था। परंतु सोनू के मन में कुछ और ही चल रहा था नियति सोनू के दिमाग से खेल रही थी।

सुगना ने सोनू के सर पर हाथ रखते हुए कहा

"अब जा सुत रहा देर हो गइल बा काल सुबह अस्पताल जाए के भी बा"

सुगना और सोनू एक बार बिस्तर पर पड़े छत को निहार रहे थे…नियति सोनू और सुगना के मिलन की पटकथा लिख रही थी…


शेष अगले भाग में
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है
सोनू और लाली का चुदाई कार्यक्रम चल रहा था परंतु उसे सुगना जैसा मजा नही आ रहा था
चुदाई के पश्चात जब लाली ने सोनू को उसकी करतूत की वजह से सुगना पेट से हो गयी तो सोनू के पैर के नीचे से जमीन खिसक गयी
सरयुसिंग सोनी के लिये मन में व्यभिचार पाल रहा है काम के बहाने वो बनारस पहुंच कर विकास के बारे में जानकारी लेते हुए उसके आलिशान घर पहुंच गये है क्या विकास कि सच्चाई जान पायेगे ???
लाली और सोनू ने काफी सोच विचार के बाद सुगना का गर्भपात कराने का फैसला कर वे लखनऊ पहुंच गये और हास्पिटल से दुसरे दिन का अपाईमेंट ले लिया
गेस्ट हाऊस पहुंच कर देखा सुगना का जी मचल रहा है तो पानी की बाॅटल ले खडा हो गया सुगना ने उसकी करतूत के बारे में बोलने पर सोनू रोते हुए माफी मांगते उसे आलिंगन मे लेना चाहा लेकीन सुगना ने वो होने नहीं दिया तो पैरों के पास बैठ कर माफी मांग रहा था सुगना ने उसके सर पर हाथ फेर कर उसे शांत किया अब देखते है उनमें कुछ होता है या नही
 

nagendra5575

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भाग 107
जैसे ही लाली करीब आए सोनू ने पीछे से आकर उसकी चूचियां अपनी हथेलियों में भर ली और बोला..

"दीदी इतना दिन से कहां भागल भागल फिरत बाडु "

"अब हमरा से का चाहीँ कूल प्यार त सुगना में भर देला" लाली ने बिना नजरे मिलाए सटीक प्रहार किया..


सोनू को कुछ समझ में न आया अब तक उसका खड़ा लंड लाली के नितंबों में धसने लगा था वह चुप ही रहा । लाली की पीठ और सोनू के सीने के बीच दूरियां कम हो रही थी परंतु लाली सोनू को छोड़ने वाली न थी। अपनी सहेली सुगना को उसकी समस्या से निजात दिलाना उसकी पहली प्राथमिकता थी लाली ने कहा

अब आगे….

"अच्छा सोनू ई बतावा ओ दिन का भएल रहे?"

सोनू ने लाली के कानों और गालों को चुमते हुए उसका ध्यान भटकाने की कोशिश की और बेहद चतुराई से एक हाथ से उसकी चूचियां और दूसरी हथेली से उसकी बुर को घेर कर सहलाने की कोशिश की परंतु लाली मानने वाली न थी वह उसकी पकड़ से बाहर आ गई और सीधा सोनू के दोनों कानों को पकड़ कर उसकी आंखों में आंखें डाल ते हुए फिर से पूछा..

"ओह दिन हमरा सहेली सुगना के साथ का कईले रहला?"

लाली ने सोनू की शर्म और झिझक को कम करने की कोशिश की सुगना को अपनी सहेली बता कर उसने सोनू की शर्म पर पर्दा डालने की कोशिश की आखिर कैसे कोई भाई अपनी ही बहन को चोदने की बात खुले तौर पर स्वीकार करेगा..

सोनू ने बात टालते हुए कहा…

"अच्छा पहले डुबकी मार लेवे द फिर बताएंब "

सोनू ने यह बात कहते हुए लाली को अपनी गोद में लगभग उठा सा लिया और उसे बिस्तर पर लाकर पटक दिया कुछ ही देर में सोनू और लाली एक हो गए सोनू का मदमस्त लंड एक बार फिर मखमली म्यान में गोते लगाने लगा परंतु .. जिसने एक बार रसमलाई खाई हो उसे सामान्य रसगुल्ला कैसे पसंद आता..

सोनू के दिमाग में सुगना एक बार फिर घूमने लगी सुगना की जांघों की मखमली त्वचा का वह एहसास सोनू गुदगुदाने लगा। और सुगना की बुर का कहना ही क्या …वह कसाव वह रस से लबरेज बुर के गुलाबी होंठ और वह आमंत्रित करती सुगना को आत्मीयता अतुलनीय थी..

सोनू का लंड गचागच लाली की बुर में आगे पीछे होने लगा परंतु सोनू का मन पूरी तरह सुगना में खोया हुआ था। कुछ कमी थी … भावनावो और क्रियाओं में तालमेल न था। सुगना और लाली के मदमस्त बदन का अंतर स्पष्ट था और प्यार का भी… परंतु सोनू अपने अंडकोष में उबल रहे वीर्य को बाहर निकालना चाहता था.. उसने लाली को चोदना चारी रखा परंतु मन ही मन वह यह सोचता रहा कि काश यदि सुगना दीदी उसे स्वीकार कर लेती तो उसे जीवन में उसे सब कुछ मिल जाता जिसकी वह हमेशा से तलाश करता रहा है …

सच ही तो था सुगना हर रूप में सोनू को प्यारी थी एक मार्गदर्शिका के रूप में एक सखा के रूप में …. इतने दिनों तक साथ रहने के बाद भी सोनू और भी बिना किसी खटपट के एक दूसरे को बेहद प्यार करते थे उनके प्यार में कोई नीरसता न थी। परंतु सोनू ने धीरे-धीरे सुगना में प्यार का जो रूप खोजना शुरू कर दिया था सुगना उसके लिए मानसिक रूप से तैयार न थी।


यह तो लाली की वजह से घर में ऐसी परिस्थितियां बन गई थी की सोनू के कामुक रूप के दर्शन सुगना ने कई बार कर लिए थे और उसकी अतृप्त वासना सर उठाने लगी थी। जिसका आभास न जाने सोनू ने कैसे कर लिया था और सोनू और सुगना के बीच वह हो गया था जो एक भाई और बहन के बीच में कतई प्रतिबंधित है ।

बिस्तर पर हलचल जारी थी ऐसा लग रहा था जैसे सोनू जी तोड़ मेहनत कर रहा था परंतु सोनू का तन मन जैसे सुगना को ढूंढ रहा था.. सोनू को अपना ध्यान लाली पर केंद्रित करने के लिए आज मेहनत करनी पड़ रही थी…

इसके इतर लाली सोनू के बदले हुए रूप से आनंद में थी आज कई दिनों बाद उसकी कसकर चूदाई हो रही थी..

"अब त बता द अपना दीदी के साध कैसे बुताईला"

वासना के आगोश में डूबी लाली अब भी सुगना के बारे में बात करते समय सचेत थी। सोनू और सुगना के बीच चोदा चोदी जैसे शब्दों का प्रयोग कतई नहीं करना चाहती थी। उसे पता था सोनू इस बात से आहत हो सकता था वह सुगना को बेहद प्यार करता था और उसकी बेहद इज्जत करता था ऐसी अवस्था में उससे यह पूछना कि तुमने अपनी ही बहन को कैसे चोदा यह सर्वथा अनुचित होता।

सोनू ने लाली की कमर में हाथ डाल कर उसे पलट दिया और उसी घोड़ी बन जाने के लिए इशारा किया। फिर क्या लाली के बड़े बड़े नितंब हवा में लहराने लगे और लाली जानबूझकर अपने नितंबों को आगे पीछे कर सोनू को लुभाने लगी सोनू की मजबूत हथेलियों में लाली की कमर को पकड़ा और सोने का खूंटा अंदर धसता चला गया..

अब सोनू की वासना भी उफान पर थी उसने लंड को बुर की जड़ तक धासते हुए लाली की चिपचिपी बुर को पूरा भरने की कोशिश की और एक बार लाली चिहुंक उठी.." सोनू बाबू …..तनी धीरे से…"

लाली की इस उत्तेजक कराह ने सोनू को एक बार फिर सुगना की याद दिला दी और सोनू से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने अपने कमर की गति को बढ़ा दिया और लाली को गचागच चोदने लगा…

कुछ ही देर में लाली स्खलित होने लगी परंतु सुगना के बुर के कंपन और लाली के कंपन में अंतर स्पष्ट था सोनू हर गतिविधि में लाली की तुलना सुगना से कर रहा था।

सोनू के लंड को फूलते पिचकते महसूस कर लाली ने अपने नितंबों आगे खींचकर उसके लंड को बाहर निकालने की कोशिश की परंतु सोनू ने उसकी कमर को पकड़ कर अपनी तरफ खींच रखा..

अंततः सोनू ने.. अपनी सारी श्वेत मलाई लाली की ओखली में भर दी….

सोनू अब पूरी तरह हांफ रहा था उसने अपना लंड लाली की बुर से निकाला और बिस्तर पर चित्त लेट गया। लंड धीरे-धीरे अपना तनाव त्याग कर एक तरफ झुकता चला गया लाली सोनू के पसीने से लथपथ चेहरे को देख रही थी और अपनी नाइटी से उसके गालों पर छलक आए पसीने की बूंदों को पोंछ रही थी। उसने सोनू से प्यार से कहा..

"सोनू बाबू भीतरी गिरावे के आदत छोड़ द तोहार यही आदत से सुगना मुसीबत में आ गईल बिया"

सुगना और मुसीबत लाली द्वारा कहे गए यह शब्द सोनू के कानों में गूंज उठे। सुगना पर मुसीबत आए और सोनू ऐसा होने दे यह संभव न था। वह तुरंत ही सचेत हुआ और उसने लाली से पूछा


"का बात बा दीदी के कोनो दिक्कत बा का?"

"ओ दिन जो तू सुगना के साथ कईले रहला ओह से सुगना पेट से बीया"


लाली की बात सुनकर सोनू सन्न रह गया कान में जैसे सीटी बजने लगी आंखें फैल गईं और होंठ जैसे सिल से गए… हलक सूखने लगा लाली ने जो कहा था सोनू को उस पर यकीन करना भारी पड़ रहा था। आंखों में विस्मय भाव बड़ी मुश्किल से वह हकलाते हुए बमुश्किल बोल पाया..

क…..का?

दोबारा प्रश्न पूछना आपके अविश्वास को दर्शाता है सोनू निश्चित ही इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था परंतु सच तो सच था… लाली ने अपनी बात फिर से दोहरा दी और सोनू उठ कर बैठ गया। उधर उसका लंड एकदम सिकुड़ कर छोटा हो गया ऐसा लग रहा था जैसे उसे एहसास हो गया था कि इस पाप का भागी और अहम अपराधी वह स्वयं था…

"अब का होई ? " धीमी आवाज में सोनू ने कहा।ऐसा लग रहा था जैसे उसने अपना अपराध कबूल कर लिया हो…और लाली से मदद मांग रहा हो।

लाली और सोनू ने विभिन्न मुद्दों पर विचार विमर्श किया परंतु हर बार शिवाय गर्भपात के दूसरा विकल्प दिखाई नहीं पड़ रहा था। सोनू सुगना से विवाह करने को भी तैयार था परंतु लाली भली-भांति यह बात जानती थी की सोनू और सुगना का विवाह एक असंभव जैसी बात थी इस समाज से दूर जंगल में जाकर वह दोनों साथ तो रह सकते थे परंतु समाज के बीच सुगना और सोनू का पति पत्नी के रूप में मिलन असंभव था।

अंततः सोनू को लाली ने सुगना की विचारधारा से सहमत करा लिया… और जी भर कर चुद चुकी लाली नींद की आगोश में चली गई उधर सुगना अब भी जाग रही थी …इधर सोनू भी अपनी आंखें खोलें सुगना के गर्भपात के बारे में सोच रहा था…आखिर… क्यों उसने उस दिन उसने सुगना के गर्भ में ही अपना वीर्य पात कर दिया था…

अगली सुबह घर में अचानक गहमागहमी का माहौल हो गया सोनी परेशान थी कि अचानक सुगना दीदी सोनू के साथ जौनपुर क्यों जा रही थी?

सोनू चाहता तो यही था कि सुगना उसके साथ अकेली चले। परंतु यह संभव न था मधु अभी भी उम्र में छोटी थी और उसे अकेले छोड़ना संभव न था और जब मधु साथ चलने को हुई तो सूरज स्वतः ही साथ आ गया वैसे भी वह सुगना के कलेजे का टुकड़ा था।

सुगना थोड़ा घबराई हुई सी थी। उसे कृत्रिम गर्भपात का कोई अनुभव न था और नहीं उसने इसके बारे में किसी से सुन रखा था। वह काल्पनिक घटनाक्रम और उससे होने वाली संभावित तकलीफ से घबराई हुई थी।

लाली ने सुगना का सामान पैक करने में मदद की और सुगना कुछ ही देर में अपने दोनों छोटे बच्चों मधु और सूरज के साथ घर की दहलीज पर खड़े सोनू का इंतजार करने लगी…. जो अपने किसी साथी से फोन पर बात करने का हुआ था।

उधर सलेमपुर में सरयू सिंह सोनी की पेंटी के साथ अपना वक्त बिता रहे थे और अपने बूढ़े शेर (लंड ) को रगड़ रगड़ कर बार-बार उल्टियां करने को मजबूर करते। धीरे धीरे सोनी उन्हें एक काम पिपासु युवती दिखाई पड़ने लगी थी…अपने और सोनी के बीच उम्र का अंतर भूल कर वह उसे चोदने को आतुर हो गए थे।


जब वासना अपना रूप विकृत करती है उसमें प्यार विलुप्त हो जाता है। सरयू सिंह की मन में सोनी के प्रति प्यार कतई ना था वह सिर्फ और सिर्फ उसे एक छिनाल की तरह देख रहे थे जो अपनी युवा अवस्था में बिना विवाह के किए शर्म लिहाज छोड़ कर किसी पर पुरुष से अपने ही घर में चुद रही थी।

जब सरयू सिंह की बेचैनी बढ़ी उनसे रहा न गया वह सोनी के देखने एक बार फिर बनारस की तरफ चल पड़े। अपने पटवारी पद का उपयोग करते हुए उन्होंने कोई शासकीय कार्य निकाल लिया था जिससे वह बनारस में अलग से दो-चार दिन रह सकते थे। उन्होंने मन ही मन सोच लिया था कि वह विकास और सोनी को रंगे हाथ अवश्य पकड़ेंगे।

बनारस पहुंचकर उन्होंने विकास और उसके पिता के बारे में कई सारी जानकारी प्राप्त की.. विकास के पिता व्यवसाई थे सरयू सिंह की निगाहों में व्यवसाय की ज्यादा अहमियत न थी वह शासकीय पद और प्रतिष्ठा को ज्यादा अहमियत देते थे। विकास के पिता की दुकान और दुकान के रंग रूप को देखकर उन्हें उनकी हैसियत का अंदाजा ना हुआ परंतु जब वह रेकी करते हुए विकास के घर तक पहुंचे तो उसके घर को देखकर उनकी घिग्घी बंध गई।

सच में विकास एक धनाढ्य परिवार का लड़का था उसके महलनुमा घर को देखकर सरयू सिंह को कुछ सूचना रहा था वह उन पर दबाव बना पाने की स्थिति में न थे। सरयू सिंह को अचानक ऐसा महसूस हुआ जैसे वह विकास और सोनी के रिश्ते को रोक नहीं पाएंगे और सोनी उस अनजान धनाढ्य लड़के से लगातार चुदती रहेगी…

फिर भी सरयू सिंह ने हार न मानी वह गार्ड के पास गए और बोले विकास घर पर हैं…

"हां…आप कौन…?"


सरयू सिंह यह जान चुके थे कि विकास अभी बनारस में है उन्होंने सोनी पर नजर रखने की सोची और अपने बल, विद्या और बुद्धि का प्रयोग कर सोनी और विकास को रंगे हाथ पकड़ने की योजना बनाने लगे।

सोनू उधर सुगना और सोनू का सामान गाड़ी में रखा जा चुका था सुगना कार की पिछली सीट पर बैठ चुकी थी। मधु उसकी गोद में थी। सूरज भी अपनी मां के साथ पिछली सीट पर आ चुका था जैसे ही सोनू ने आगे वाली सीट पर जाने के लिए दरवाजा खोला सूरज ने बड़ी मासूमियत से कहा

"मामा पीछे हतना जगह खाली बा एहिजे आजा"

इससे पहले कि सोनू कुछ सोचता लाली ने भी सोनू से कहा

"पीछे ईतना जगह खाली बा पीछे बैठ जा सूरज के भी मन लागी… सुगना अकेले तो दू दू बच्चा कैसे संभाली।

अंततः सोनू कार की पिछली सीट पर आ गया सबसे किनारे सुगना बैठी हुई थी उसकी गोद में मधु थी बीच में सूरज और दूसरी तरफ सोनू ।

कार धीरे धीरे घर से दूर हो रही थी सुगना और सोनू के व्यवहार से सोनी आश्चर्यचकित थी न तो दोनों के चेहरे पर कोई खुशी न थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सुगना और सोनू जौनपुर बिना किसी इच्छा के जा रहे थे।

रतन और बबीता के पेट से जन्मी मालती आज पहली बार सुगना से अलग हो रही थी उसकी आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे। सुगना सबकी प्यारी थी मासूम मालती को क्या पता था की सुगना वहां घूमने फिरने नहीं अपितु एक अनजान कष्ट सहने जा रही थी। वहां पूरे परिवार को लेकर जाना संभव न था सोनी ने मालती के आंसू पूछे और न जाने अपने मन में क्या-क्या सोचते हुए घर के अंदर आ गई।

जैसे ही कार सड़क पर आई वह सरपट दौड़ने लगी छोटा सूरज खिड़की के पास आने के लिए बेचैन हो गया और उसकी मनोदशा जानकर सोनू ने उसे खिड़की की तरफ आ जाने दिया पिछली सीट पर अब सोनू सुगना के ठीक बगल में था।

सुगना और सोनू दोनों बात कर पाने की स्थिति मे न थे। सुगना मधु के साथ एक खिड़की से बाहर देख रही थी और सूरज के साथ सोनू दूसरी खिड़की की तरफ।

जैसे ही कार गति पकड़ती गई बच्चे बाहरी दृश्यों से बोर होने लगे… परंतु कार की हल्की-हल्की उछाल ने उन्हें झूले का आनंद लिया और धीरे-धीरे दोनों ही बच्चे सो गए ।

तभी कार एक सिग्नल पर रुकी. दीवाल पर हम दो हमारे दो नारा लिखा हुआ था साथ में पति पत्नी और दो बच्चों की तस्वीर भी बनाई गई थी और नीचे परिवार नियोजन अपनाएं का चिर परिचित संदेश भी दिया हुआ था संयोग से सुगना बाहर की तरफ देख रही थी और निश्चित ही उस विज्ञापन को पढ़ रही थी।

उसी दौरान सोनू की निगाह भी उसी विज्ञापन पर गई और उसे वह विज्ञापन ठीक अपने ऊपर बनाया प्रतीत होने लगा ऐसा लग रहा था जैसे विज्ञापन में बने हुए पति पत्नी वह स्वयं और पास बैठी सुगना थे तथा दोनों छोटे बच्चे सूरज और मधु थे।

नियति का एक यह अजीब संयोग था। सुगना अपने पुत्र सूरज के साथ थी और सोनू अपनी पुत्री मधु के साथ। सुगना और सोनू को कोई भी व्यक्ति वह विज्ञापन ध्यान से पढ़ते हुए देखता तो निश्चित ही अपने मन में यह यकीन कर लेता कि सुगना और सोनू पति-पत्नी है और निश्चित ही परिवार नियोजन की तैयारी कर रहे हैं।

सुगना को परिवार नियोजन की कोई जानकारी न थी। अब तक वह सरयू सिंह से जी भर कर चुदी थी परंतु सरयू सिंह तो जैसे कामकला के ज्ञानी थे। स्त्रियों की माहवारी से गर्भधारण के संभावित दिनों का आकलन कर पाना और उसी अनुसार संभोग के दौरान अपने वीर्य को गर्भ में छोड़ना या बाहर निकालना किया उन्हें बखूबी आता था। और कभी गलती हो भी जाए तो उनका वाह मोतीचूर का लड्डू अपना काम कर देता था परंतु सोनू को ज्ञान मिलने में अभी समय था उसकी पहली गलती ही सुगना को गर्भवती कर गई थी।

रेलवे का सिग्नल उठ चुका था और ड्राइवर ने कार अचानक ही बढ़ा दी सुगना असंतुलित हो उठी उसने सीट पर अपने हाथ रख स्वयं को संतुलित करने की कोशिश की परंतु सुगना का हाथ सीट की बजाय सोनू की हथेली पर आ गया इससे पहले की सुगना अपना हाथ हटा पाती सोनू ने सुगना की हथेली को अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले लिया।

सुगना के मन में आया कि वह अपना हाथ खींच ले परंतु वह रुक गई सामने ड्राइवर था और किसी तरीके का प्रतिरोध एक गलत संदेश दे सकता था।

सोनू सुगना की हथेली को सहलाने लगा कभी व उसकी उंगलियों के बीच अपनी उंगली फसाता कभी हाथ की ऊपरी त्वचा को अपनी हथेली से धीरे-धीरे सहलाता कभी सुगना की हथेली के बीच रेखाओं को अपनी उंगलियों से पढ़ने की कोशिश करता।


सुगना को यह स्पर्श अच्छा लग रहा था ऐसा लग रहा था जैसे सोनू उसकी व्यथा समझ पा रहा हो। परंतु सुगना और सोनू बात कर पाने की स्थिति में न थे।

सोनू और सुगना की कार बनारस शहर छोड़कर लखनऊ का रुख कर चुकी थी। जौनपुर जाने का कोई औचित्य न था लखनऊ में मेडिकल सुविधाएं बनारस और जौनपुर से कई गुना अच्छी थी बनारस में गर्भपात करा पाना कठिन था वहां लोगों से मिलना जुलना हो सकता था और सोनू और सुगना की स्थिति असहज हो सकती थी इसी कारण सोनू लाली और सोनी ने मिलकर गर्भपात के लिए लखनऊ शहर के हॉस्पिटल को चुना था।

सोनू अपराध बोध से ग्रसित था फिर भी सुगना का वह जी भरकर ख्याल रखता रास्ते में गाड़ी रोककर कभी खीरा कभी ककड़ी कभी झालमुड़ी और न जाने क्या-क्या…. अपनी बड़ी बहन को खुश रखने का सोनू पर जतन कर रहा था परंतु सुगना घबराई हुई थी। अपने गर्भ में पल रहे शिशु का परित्याग आसान कार्य न था शारीरिक पीड़ा उसे झेलना था।


आखिरकार लखनऊ पहुंचकर सुगना और सोनू दोनों उसी गेस्ट हाउस में आ गए जिसमें सोनी और विकास का मिलन सोनू ने अपनी आंखों से देखा था। सुगना को गेस्ट हाउस में बैठा कर सोनू हॉस्पिटल जाकर कल के लिए अपॉइंटमेंट ले आया और आते समय सुगना और उसके बच्चों के लिए ढेर सारी चॉकलेट और मिठाईयां लेता आया आखिर जो हो रहा था उसमें बच्चों का कोई कसूर न था।

सुगना और सोनू आखिर कब तक बात ना करते। दैनिक जरूरतों ने सुगना और सोनू को बात करने पर मजबूर कर दिया…कभी बच्चो के लिए दूध लाना कभी खाना, कभी अटैची उठाना कभी बाथरूम में नल खोलने में …मदद..

इसी क्रम में सुगना ने एक बार फिर बाथरूम में उल्टी करने की कोशिश की…सोनू पानी की बोतल लिए सुगना के पीछे ही खड़ा था..

सुगना ने पलटते ही कहा..

"देख तोहरा चलते आज का हो गइल " सोनू पास आ गया और सुगना को अपने आलिंगन में लेते हुए बोला

" दीदी हमरा ना मालूम रहे हम ही एकर कसूरवार बानी… हमरा के माफ कर द" सुगना ने अपने दोनो हाथ अपने सीने के सामने रखकर आलिंगन में आने पर अपना विरोध दिखाया। सोनू सुगना की मनोस्थिति समझ उससे अलग हुआ और धीरे धीरे अपने दोनों घुटनों पर आ गया।

उसका सर सुनना के पेट से सट रहा था… सोनू की आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे वह बार-बार एक ही बात दोहरा रहा था.

" दीदी हम तोहरा के कभी कष्ट ना देवल चाहीं.. हमरा से गलती हो गइल…दोबारा की गलती ना होई"


कान पकड़कर सुगना से मिन्नते करता सोनू नियति को बेहद मासूम लग रहा था। सुगना को ऐसा लगा जैसे शायद सोनू और उसका यह मिलन एक संयोग था और उन दोनो के लिए एक सबक था। परंतु सोनू के मन में कुछ और ही चल रहा था नियति सोनू के दिमाग से खेल रही थी।

सुगना ने सोनू के सर पर हाथ रखते हुए कहा

"अब जा सुत रहा देर हो गइल बा काल सुबह अस्पताल जाए के भी बा"

सुगना और सोनू एक बार बिस्तर पर पड़े छत को निहार रहे थे…नियति सोनू और सुगना के मिलन की पटकथा लिख रही थी…


शेष अगले भाग में



बहुत ही लाजवाब
 

Lovely Anand

Love is life
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Tanik dheere se

Good title
Welcome to story board
Niyati ka khel fir se shuru hota dikha raha hai…

Bhaut hee jabardast update mitr ….
धन्यवाद
धमाकेदार अपडेट का इन्तजार। Lovely भाई,
धन्यवाद।
शीघ्र
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है
सोनू और लाली का चुदाई कार्यक्रम चल रहा था परंतु उसे सुगना जैसा मजा नही आ रहा था
चुदाई के पश्चात जब लाली ने सोनू को उसकी करतूत की वजह से सुगना पेट से हो गयी तो सोनू के पैर के नीचे से जमीन खिसक गयी
सरयुसिंग सोनी के लिये मन में व्यभिचार पाल रहा है काम के बहाने वो बनारस पहुंच कर विकास के बारे में जानकारी लेते हुए उसके आलिशान घर पहुंच गये है क्या विकास कि सच्चाई जान पायेगे ???
लाली और सोनू ने काफी सोच विचार के बाद सुगना का गर्भपात कराने का फैसला कर वे लखनऊ पहुंच गये और हास्पिटल से दुसरे दिन का अपाईमेंट ले लिया
गेस्ट हाऊस पहुंच कर देखा सुगना का जी मचल रहा है तो पानी की बाॅटल ले खडा हो गया सुगना ने उसकी करतूत के बारे में बोलने पर सोनू रोते हुए माफी मांगते उसे आलिंगन मे लेना चाहा लेकीन सुगना ने वो होने नहीं दिया तो पैरों के पास बैठ कर माफी मांग रहा था सुगना ने उसके सर पर हाथ फेर कर उसे शांत किया अब देखते है उनमें कुछ होता है या नही
आप की विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद मुझे भी प्रतिक्रिया पढ़ना अच्छा लगता है..
Waiting for next update
Sure it will come tommorow
 
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