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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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Devil12525

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भाग 115

सोनू के दोनों हाथों में लड्डू थे…. और पेट में जबरदस्त भूख पर जिस लड्डू को वह पहले खाना चाहता था वह अभी भी उससे दूर था और दूसरा मुंह में जाने को बेताब…

नियति अपनी चाल चल रही थी… वह सोनू की इच्छा पूरी करने को आमादा थी…

जौनपुर में होने वाले प्रेमयुद्ध का अखाड़ा ट्रक पर लोड हो चुका था और धीरे धीरे सोनू के नए बंगले की तरफ कूच कर रहा था….


अब आगे..

सोनू जौनपुर पहुंच चुका था और पीछे पीछे फर्नीचर की दुकान से खरीदा गया वह सामान भी आ रहा था । सोनू का इंतजार उसके मातहत नए बंगले पर कर रहे थे जैसे ही सोनू की कार वहां पहुंची आसपास आराम कर रहे मातहत सावधान मुद्रा में खड़े हो गए।

बंगले की सुरक्षा में लगे गार्ड ने सोनू की कार का दरवाजा खोला और सोनू अपने पूरे रोआब के साथ अपनी कार से उतर गया। अपने कपड़े व्यवस्थित करते हुए वह अपने बंगले के अंदर प्रवेश कर गया। आंखे बंगले की दीवारों पर घूम रही थीं।


सचमुच रंग रोगन के बाद बंगला अपने पूरे शबाब पर था। अंदर घुसते ही एक बड़ा सा हाल और उस हाल से लगे हुए 3 खूबसूरत कमरे। बड़ी सी रसोई और उसके सामने एक छोटा सा हाल। शासकीय बंगलों की अहमियत उसे अब समझ आ रही थी। वैसे भी मनोरमा के बंगले को देखने के बाद सोनू के मन में भी हसरत जगी थी और जौनपुर के इस बंगले ने कुछ हद तक उसकी हसरतों को पूरा कर दिया था परंतु सोनू के अंतर्मन में जो हसरत पिछले कई दिनों से पनप रही थी वह अब भी तृप्ति की राह देख रही थी।

सोनू ने पूरे बंगले का मुआयना किया और उसकी साफ-सफाई देख कर खुश हो गया उसने अपने सभी मातहतों को की तारीफ की।

थोड़ी ही देर बाद बनारस से चला हुआ ट्रक भी पहुंच गया..

ट्रक से सामान उतर कर उतार कर सोनू के दिशा निर्देश में अलग-अलग कमरों में पहुंचाया जाने लगा …

ट्रक पर आए ढेर सारे सामान को देखकर सोनू के मातहत आपस में बात करने लगे

"अरे साहब तो अभी अविवाहित और अकेले हैं फिर इतना सारा सामान?"


जब प्रश्न उठा था तो उसका उत्तर मिलना भी जरूरी था। सोनू के साथ साथ रहने वाले ड्राइवर ने तपाक से कहा

"अरे साहब का परिवार बहुत बड़ा है तीन तीन बहने हैं और उनके बच्चे भी…. हो सकता है दो-तीन दिनों बाद उन लोग यहां आए भी"

ड्राइवर ने सोनू लाली और सुगना की बातें कुछ हद तक सुन ली थी और कुछ समझ भी ली थी.. पर उस रिश्ते में आई उस वासना भरी मिठास को वह समझ नहीं पाया था। यह शायद उसके लिए उचित भी था और सोनू के लिए भी..

ट्रक के साथ आए फर्नीचर के कारीगरों ने कुछ ही घंटों की मेहनत में फर्नीचर को विधिवत सजा दिया। घर की सजावट घंटों का काम नहीं दिनों का काम होता है। फर्नीचर के अलावा और भी ढेरों कार्य थे। नंगी और खुली हुई खिड़कियां अपने ऊपर आवरण खोज रही थी सोनू ने अपने मातहतों को दिशा निर्देश देकर उनकी माप करवाई और इसी प्रकार एक-एक करके अपने घर को पूरी तरह व्यवस्थित कराने लगा…

सुगना और लाली द्वारा पसंद किए गए दोनों पलंग सोनू ने खरीद लिए थे। वैसे भी सोनू की दीवानगी इस हद तक बढ़ चुकी थी की वह सुगना की मन की बातें पढ़ उसे खुश करना चाहता था और उस फर्नीचर शॉप में तो सुगना ने उस पलंग पर अपना हाथ रख दिया था।


निश्चित ही उसके मन में उस पलंग पर लेटने और सोने की बात आई होगी । सोनू उत्साहित हो गया। अपनी कल्पना में स्वयं पसंद किए पलंग पर अपनी मल्लिका सुगना को लेटे और अंगड़ाइयां लेते देख उसका लंड .. खड़ा हो गया। जितना ही वह उस पर से ध्यान हटाता उतना ही छोटा सोनू उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लाता। सुगना का श्रृंगारदान भी बेहद खूबसूरत था परंतु सूना था बिल्कुल अपनी मालकिन सुगना की तरह …जो एक बेहद खूबसूरत काया और सबका मन मोहने वाला दिल लिए सुहागन होने के बावजूद अब भी विधवाओं जैसी जिंदगी जी रही थी।

सोनू अपने दूसरे कमरे में आया जहां लाली द्वारा पसंद किया गया पलंग लगा था। लाली और सुगना की तुलना सोनू कतई नहीं करना चाहता था परंतु तुलना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है।

जब तक सुगना सिर्फ और सिर्फ उसकी बड़ी बहन थी वह देवतुल्य थी और लाली उसकी मेनका रंभा और न जाने क्या-क्या। तब न तो तुलना की आवश्यकता थी और ना ही उसका औचित्य।

परंतु जब से उसने सुगना को अपनी वासना भरी दुनिया में खींच लाया था और उसको को अपना बनाने की ठान ली थी… सुगना भी उन्ही अप्सराओं मे शामिल हो चुकी थी… और अब तुलना स्वाभाविक हो चुकी थी और सुगना निर्विवाद रूप से लाली पर भारी पड़ रही थी।


आपका अंतर्मन आपके विचारों को नियंत्रित करता है। सुगना के प्रति सोनू के अनोखे प्यार ने बंगले का सबसे खूबसूरत कमरा सुगना को देने पर मजबूर कर दिया था।

यद्यपि दोनों ही कमरे खूबसूरत थे परंतु जो अंतर लाली और सुगना में था वही अंतर उनके कमरों में भी स्पष्ट नजर आ रहा था।

बहरहाल सोनू ने अपने दोनों बहनों की पसंद का ख्याल रख उनके दोनों कमरे सजा दिए थे…और सोनू का बैठका उसके स्वयं द्वारा पसंद किए गए सोफे से जगमगा उठा था। घर की साफ सफाई की निगरानी करते करते रात हो चुकी थी परंतु अभी भी कई कार्य बाकी थे…

अगले दो-तीन दिनों तक सोनू अपना आवश्यक शासकीय कार्य निपटाने के बाद अपने बंगले पर आ जाता और कभी पर्दे कभी शीशा कभी कपड़े रखने की अलमारी और तरह-तरह की छोटी बड़ी चीजें खरीदता और घर को धीरे धीरे हर तरीके से रहने लायक बनाने की कोशिश करता। रसोई घर के सामान कि उसे विशेष जानकारी न थी फिर भी वह अत्याधुनिक और जौनपुर में उपलब्ध उत्तम कोटि के रसोई घर के सामान भी खरीद लाया था पर उन्हें यथावत छोड़ दिया था…

रसोई घर को सजा पाना उसके वश में न था एकमात्र वही काम उसने अपनी बहनों के लिए छोड़ दिया था..

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लाली को ही जौनपुर आना था सोनू को भी सुगना के साथ साथ उसका भी इंतजार था। लाली को अभी आने से रोकना और तीन-चार दिनों बाद जौनपुर भेजने की योजना सुगना ने डॉक्टर की नसीहत को ध्यान में रखते हुए ही बनाई थी।

परंतु सोनू भी कम न था उसने जानबूझकर सुगना को अभी जौनपुर आने से रोक लिया था और फर्नीचर खरीदने का प्रबंध बनारस से ही कर लिया था ताकि वह घर की सजावट पूरी होने के बाद लाली और सुगना को एक साथ ही जौनपुर ले आए। नए घर में प्रवेश की बात कर सुगना को आसानी से मना सकता था और इसके लिए जिद भी कर सकता था।

वैसे भी लाली और उसके बीच जो कुछ हो रहा था वह न सिर्फ सुगना जान रही थी अपितु अपनी खुली और नंगी आंखों से देख भी चुकी थी और अब तो सोनू और लाली के मिलन की अनिवार्यता भी थी। सुगना लाली और उसे करीब लाने में कोई कमी नहीं रखेगी यह बात सोनू बखूबी जानता था वह मन ही मन तरह-तरह की कल्पनाएं करता और सुगना की उपस्थिति में लाली को चोद चोद कर सुगना को और उत्तेजित करने का प्रयास करता उसे पता था सुगना की उस खूबसूरत और अद्भुत बुर को जीवंत बनाए रखने के लिए सुगना का भी संभोग करना अनिवार्य था चाहे कृत्रिम रूप से या स्वाभाविक रूप से…


परंतु सोनू के लिए सुगना से संभोग अब भी दुरूह कार्य था सुगना जब तक स्वयं अपनी जांघे नहीं खोलती सोनू वही गलती दोबारा दोहराने को कतई तैयार न था जो उसने दीपावली की रात की थी । सुगना का मायूस और उदास चेहरा जब जब सोनू के सामने घूमता उसके सुगना के जबरदस्ती करीब जाने के विचार पानी के बुलबुले की तरह बिखर जाते ।

सोनू पूरी जी जान से अपनी परियों के आशियाने को सजाने में जुटा हुआ था और परियों की रानी सुगना कि उस अद्भुत और रसीली बुर को जीवंत बनाए रखने की संभावनाओं पर लगातार सोच विचार कर रहा था।

ऐसा न था कि आने वाले 1 सप्ताह की तैयारियां सिर्फ सोनू कर रहा था उधर बनारस में उसकी बहन सुगना भी लाली को उस प्रेम युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार कर रही थी…

"ए लाली तोर महीना कब आई रहे"


"काहे पुछत बाड़े.." लाली में सुगना के इस अप्रत्याशित प्रश्न पर एक और प्रश्न किया

"तोरा जौनपुर भी जाए के बा..भुला गईले का?" सुगना ने लाली के पेट पर चिकोटी काटते हुए कहा

"देखत बानी तू ज्यादा बेचैन बाड़ू …..का बात बा? अभी तो सोनुआ के भीरी ठेके ना देत रहलु हा और अब जौनपुर भेजें खातिर अकुताईल बाड़ू_

सुगना जब पकड़ी जाती थी तो अपनी खूबसूरत मुस्कुराहट और अपने स्पर्श से सामने वाले को मोहित कर लेती थी। उसने लाली की हथेली को अपनी गोद में लिया और उसकी बाहों को दबाते हुए बोली..

"अब जाता रे नू जौनपुर खूब सेवा करिए और करवाईहे हम ना रोकब टोकब "

लाली भी सुगना को छेड़ने के मूड में आ चुकी थी..

"ते हु चल ना कुछ ना करबे त देख देख कर मजा लीहे पहले भी तो देखलहीं बाड़े "

सुगना ने लाली की बाहें अपनी गोद से हटाकर दूर फेंकते हुए कहा

" लाली फालतू बात मत कर तोरा कारण ही सोनूवा के दिमाग खराब हो गईल रहे और ऊ कुल कांड भईल अब हमरा बारे में सोनूवा से कोनो बात मत करिहे_"

"हम कहां करीना तोरे सोनूवा बेचैन रहेला? का जाने ते का देखावले बाड़े और का चिखावले बाड़े" लाली ने अपनी नजर सुगना की भरी भरी चुचियों पर घुमाई और फिर उन्हें उसके सपाट पेट से होटी हुई जांघों के बीच तक ले गई। सुगना बखूबी लाली की नाचती हुई आंखों को देख रही थी।

"ई सब पाप ह.." सुगना ने अपनी आंखें बंद कर ऊपर छत की तरफ देखा और अपने अंतर्मन से चिर परिचित प्रतिरोध करने की कोशिश की..

"काहे पाप ह…?"लाली में पूछा । लाली तो जैसे वाद विवाद पर उतारू थी ..

"सोनूवा हमार अपना भाई हां भाई बहन के बीच ई कुल …छी कितना गंदा बात बा.."

सुगना की स्पष्ट और उचित बात ने लाली को भी सोचने पर मजबूर कर दिया और वह कुछ पलों के लिए चुप हो गई फिर उसने सुगना की हथेली पकड़ी और बोला

"काश सोनुआ तोर आपन भाई ना रहित.."

लाली की बात सुनकर सुगना अंदर ही अंदर सिहर उठी..लाली ने उसकी दुखती रग छेड़ दी थी.. अपने एकांत में न जाने सुगना कितनी बार यह बात सोचती थी..


सुगना से अब रहा न गया उसने लाली की बात में हां में हां मिलाते हुए कहा

" हां सच कहते बाड़े काश सोनुआ हमार भाई ना होके तोर भाई रहित.."

दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ी। लाली का कोई अपना सगा भाई न था। उसे इस रिश्ते की पवित्रता और मर्यादा का बोध न था उसने तो सोनू को ही अपना मुंहबोला भाई माना था परंतु जैसे-जैसे सोनू जवान होता गया उसने लाली को दिल से बहन न माना …

संबोधन और आकर्षण दोनों साथ-साथ बढ़ते रहे लाली दीदी के प्रति सोनू की आसक्ति समय के साथ बढ़ती गई और अब लाली और सोनू के संबंध अपनी अलग ऊंचाइयों पर थे…

" ते हमार बात घुमा दे ले लेकिन बतावाले हा ना कि महिनवा कब आई रहे…?

"मत घबरो .. अभी महीना आवे में 2 सप्ताह बा। अब ठीक बानू"


सुगना निश्चिंत हो गई उसे तो सिर्फ 1 हफ्ते की दरकार थी। उसके पश्चात लाली और सोनू लगातार साथ रहे या ना रहे उससे सुगना को कोई फर्क नही पड़ना था। परंतु सोनू की वासना और उसके जननांगों को जीवंत रखना सुगना की प्राथमिकता भी थी और धर्म भी। डॉक्टर ने जो दायित्व सुगना को दिया था वह उसे वह बखूबी निभा रही थी।

अचानक सुगना के मन में आया…

"ए लाली चल ना ढेर दिन भर उबटन लगावल जाओ.."

सुगना ने लाली के मन की बात कह दी थी । लाली स्वयं भी सोनू से जी भर चुदने किसे पहले अपने बदन को और मखमली करना चाह रही थी। दोनों सहेलियां सरसों का उबटन पीसने में लग गई…

आइए जब तक सुगना और लाली अपना उबटन पीसते हैं तब तक आपको लिए चलते हैं सलेमपुर जहां सरयू सिंह आज अपनी कोठरी की साफ सफाई कर रहे थे। यही वह कोठरी थी जहां सुगना की छोटी बहन सोनी अपने प्रेमी विकास से दीपावली की रात जमकर चुदी थी और हड़बड़ाहट में अपनी जालीदार लाल पेंटी अनजाने में ही सरयू सिंह के लिए उपहार स्वरूप छोड़ गई थी।


सरयू सिंह में उस लाल पेंटी और उसमें कैद होने वाले खूबसूरत नितंबों की कल्पना कर अपनी वासना को कई दिनों तक जवान रखा था और हस्तमैथुन कर अपने लंड को उसकी शक्ति याद दिलाते रहे थे। सोनी के मोहपाश में बंधे अपने मन में तरह-तरह के विचार और ख्वाब लिए वह उसका पीछा करते हुए बनारस भी पहुंच चुके थे। परंतु अब उनके मन में एक अजब सी कसक थी सोनी और विकास के रिश्ते के बाद उसके बारे में गलत सोचना न जाने उन्हें अब क्यों खराब लग रहा था। उनकी वासना अब भी सोनी को एक व्यभिचारी औरत काम पिपासु युवती के रूप में देखने को मजबूर करती परंतु पहले और अब का अंतर स्पष्ट था। जितने कामुक खयालों के साथ वह अपने विचारों में सोनी के साथ व्यभिचार करते थे वह उसकी धार अब कुंद पड़ रही थी सरयू सिंह ने सोनी के साथ जो वासनाजन्या कल्पनाएं की थी अब उन में अब बदलाव आ रहा था। शायद सोनी के प्रति उनका गुस्सा कुछ कम हो गया था।

सोनी को चोद पाने की उनकी तमन्ना धीरे-धीरे दम तोड़ रही थी जिस सुकन्या का विवाह अगले कुछ महीनों में होने वाला था वह भी विकास जैसे युवक से वह क्यों कर भला सरयू सिंह जैसे ढलती उम्र के व्यक्ति के पास सहर्ष चुदवाने के लिए आएगी…परंतु सरयू सिंह एक बात भूल रहे थे जांघों के बीच नियति ने उन्हें जो शक्ति प्रदान की थी वह अनोखी थी…

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उधर विद्यानंद के आश्रम में…


मोनी के कौमार्य परीक्षण के पश्चात उसे आश्रम के विशेष भाग में स्थानांतरित कर दिया गया था वहां उसकी उम्र की करीब दस और लड़कियां थी मोनी को सिर्फ इतना पता था कि वह आश्रम के विशेष सदस्यों की टोली में शामिल की गई थी जहां उसे एक विशेष साधना में लगना था।

नित्य कर्म के पश्चात सभी लड़कियां एक बड़ी सी कुटिया में आ चुकी थी सभी के शरीर पर एक श्वेत धवल वस्त्र था जो उनके अंग प्रत्यंग ओं को पूरी तरह आवरण दिए हुए था सभी लड़कियां नीचे बनी बिछी आशनी पर बैठ गई सामने चबूतरे पर आसनी बिछी हुई थी पर स्थान रिक्त था..

कुछ ही पलों में कुटिया में लगे ध्वनि यंत्र से एक आवाज सुनाई दी…आप सभी को एक विशेष साधना के लिए चुना गया है जिसमें आपका स्वागत है.. आप सबकी गुरु माधवी जी अब से कुछ देर बाद मंच पर विराजमान होंगी वही आपको आने वाले एक माह तक निर्देशित करेंगी । आप सब उनके दिशा निर्देशों का पालन करते हुए इस विशेष आश्रम में रहेंगी और अपनी साधना पूर्ण करेंगी कुछ कार्य आप सब को सामूहिक रूप में करना होगा कुछ टोलियों में और कुछ अकेले। माधवी जी हमेशा आप लोगों के बीच रहेंगी। आप सब अपनी आंखें बंद कर माधवी जी का इंतजार करें और उनके कहने पर ही अपनी आंखें खोलिएगा।

सभी लड़कियां विस्मित भाव से उस ध्वनि यंत्र को खोज रही थी जो न जाने कहां छुपा हुआ था। दिशा निर्देश स्पष्ट थे सभी लड़कियों ने आंखें बंद कर लीं और वज्रासन मुद्रा में बैठ गईं सामने मंच पर किसी के आने की आहट हुई परंतु लड़कियों ने निर्देशानुसार अपनी आंखें बंद किए रखी।


कुछ ही पलों बाद माधवी की मधुर आवाज सुनाई पड़ी

"आप सब अपनी आंखें खोल सकती हैं"


सभी लड़कियों ने अपनी आंखें धीरे-धीरे खोल दीं।

मोनी सामने पहली कतार में बैठी थी मंच पर एक सुंदर और बेहद खूबसूरत महिला को नग्न देखकर वह अचंभित रह गई। उसने अपने अगल-बगल लड़कियों को देखा सब की सब विस्मित भाव से माधवी को देख रही थी माधवी पूर्ण नग्न होकर वज्रासन में बैठी हुई थी और उसकी आंखें बंद थी दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जुड़े हुए थे और उसकी भरी-भरी चूचियां दोनों हाथों के बीच से निकलकर तनी हुई थी प्रणाम की मुद्रा में दोनों पंजे सटे हुए दोनों चुचियों के बीच आ गए थे। बेहद खूबसूरत दृश्य था….

माधवी ने भी अपनी आंखें खोली और सामने बैठी लड़कियों को संबोधित करते हुए बोली

"मेरा नाम माधवी है मैं आप की आगे की यात्रा में कुछ दूर तक आपके साथ रहूंगी …आप सब मेरे शरीर पर वस्त्र न देख कर हैरान हो रहे होंगे परंतु विधाता की बनाई इस दुनिया में वस्त्रों का सृजन पुरुषों और स्त्रियों के भेद को छुपाने के लिए ही हुआ था और यहां हम सब स्त्रियां ही हैं अतः हम सबके बीच किसी पर्दे की आवश्यकता नहीं है क्या आपने कभी गायों को बछियों को वस्त्र पहने देखा है?"


सभी माधवी की बातों को मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे एक तो माधवी बेहद खूबसूरत थी ऊपर से उसका कसा हुआ बदन उसके व्यक्तित्व में चार चांद लगा रहा था। भरी-भरी गोरी गोरी चूचीया और उस पर तने हुए गुलाबी निप्पल सभी लड़कियों को खुद अपने स्तनों को उस से तुलना करने पर मजबूर कर रहा था और निश्चित ही माधवी उन सब पर भारी थी। परंतु मोनी माधवी से होड़ लगाने को तैयार थी। सुगना की बहन होने का कुछ असर मोनी पर भी था।

आइए हम सब अपने एकवस्त्र को खोल कर यही कुटिया में छोड़ देंगे और शाम सूरज ढलने के पश्चात वापस अपने वस्त्र लेकर अपने अपने कमरों में चले जाएंगे। इसी प्रकार आने वाले 1 महीने तक हम सुबह सुबह यहां एकत्रित होंगे और प्रकृति के बीच रहकर अपनी साधना को पूरा करेंगे।

एक बात ध्यान रखिएगा यह साधना आप सबके लिए है और इस साधना में हुए अनुभव और सीख किसी और से साझा मत करिएगा दीवारों के भी कान होते हैं।


एक-एक करके सभी लड़कियों ने अपने श्वेत वस्त्र को अपने शरीर से उतार दिया और नग्न होने लगी मोनी आज पहली बार किसी के समक्ष नग्न हो रही थी नियति मोनी की काया पर से आवरण हटते हुए देख रही थी न जाने ऊपर वाले ने सारी सुंदरता पदमा की बेटियों को ही क्यों दे दी थी। एक से बढ़कर एक खूबसूरत और जवानी से भरपूर तीनों बहनें…

गोरी चिट्टी मोनी गांव में अपनी मां पदमा का हाथ बटाते बटाते शारीरिक रूप से सुदृढ़ हो गई थी। खेती किसानी और घरेलू कार्य करते करते उसके शरीर में कसाव आ चुका था और स्त्री सुलभ कोमलता उस कसे हुए शरीर को और खूबसूरत बना रही थी।

मोनी का वस्त्र उसके जांघों के जोड़ तक आ गया और उसकी खूबसूरत और अनछुई बुर माधवी की निगाहों के सामने आ गई और बरबस ही माधवी का ध्यान मोनी की बुर पर अटक गया मोनी के भगनासे के पास एक बड़ा सा तिल था…यह तिल निश्चित ही सब का ध्यान खींचने वाला था माधवी मंत्रमुग्ध होकर मोनी को देखे जा रही थी।

कुछ ही देर में कुछ ही देर में सभी कुदरती अवस्था में आ चुके थे और एक दूसरे से अपनी झिझक मिटाते हुए कुछ ही पलों में सामान्य हो गए थे। लड़कियों की जांघों के बीच वह खूबसूरत बुर आज खुली हवा में सांस ले रही थी.. और तनी हुई चूचियां उछल उछल कर लड़कियों को एक अलग ही एहसास करा रही थी.

आश्रम का यह भाग प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ था । जहां पर प्रकृति ने साथ न दिया था वहां लक्ष्मी जी के वैभव से वही प्राकृतिक सुंदरता कृत्रिम रूप से बना दी गई थी….

धूप खिली हुई थी और सभी नग्न लड़कियां कृत्रिम पर विशालकाय झरने के बीच आकर एक दूसरे से अठखेलियां करने लगी। कभी अपनी अंजुली में पानी लेकर एक दूसरे पर छिड़कती और अपनी बारी आने पर उसी पानी से बचने के लिए अपने चेहरे को इधर-उधर करती कभी अपने हाथों से अपने चेहरे और आंखों को ढकती…

प्रकृति की सुंदरता उफान पर थी आज अपनी ही बनाई खूबसूरत तरुणियों को अपनी आगोश में लिए हुए प्रकृति और भी खूबसूरत हो गई थी। आश्रम का यह भाग दर्शनीय था। हरे भरे उपवन में पानी का झरना और झरने में खेलती मादक यौवन से लबरेज उन्मुक्त होकर खेलती हुई युवतियां।

परंतु उस दिव्य दर्शन की इजाजत शायद किसी को न थी पर जो इस आश्रम का रचयिता था वह बखूबी इस दृश्य को देख रहा था….

आइए तरुणियो को अपने हाल पर छोड़ देते हैं और वापस आपको लिए चलते हैं बनारस में आपकी प्यारी सुगना के पास…

दोपहर का वक्त खाली था सारे बच्चे स्कूल जा चुके थे और सोनी भी.. अपने कॉलेज के लिए निकल चुकी थी वैसे भी अब उसका मन कॉलेज में ना लगता था जो पढ़ाई वह पढ़ रही थी अब वह उसके जीविकोपार्जन का साधन ना होकर एक शौक बन चुका था फिर भी जब सोनी ने इतनी मेहनत की थी वह इस अंतिम परीक्षा में सफल हो जाना चाहती थी…


घर के एकांत में लाली और सुगना उबटन लेकर अपने कमरे में थी..सुगना लाली के हाथ पैरों में उबटन लगा रही थी। धीरे धीरे सुगना के हाथ अपनी मर्यादा को लांघते हुए लाली की जांघों तक पहुंचने लगे।

लाली ने सुगना के स्पर्श में उत्तेजना महसूस की। और वह बीती रात की बात याद करने लगी जब सुगना ने पहली बार उसकी बुर को स्खलित किया था।

कुछ ही देर में लाली सुगना के समक्ष अर्धनग्न होती गई पेटीकोट सरकता सरकता लाली के नितंबों तक आ चुका था और उसके मादक नितंबों को बड़ी मुश्किल से छुपाने की कोशिश कर रहा था । लाली को अब सुगना से कोई शर्म न थी परंतु वह खुद ही अपनी पेटीकोट को और ऊपर करना नहीं चाह रही थी थी सुगना में लाली की जांघों पर पीले उबटन का लेप लगाया और धीरे-धीरे उसकी जांघों और पैरों की मालिश करने लगी सुगना ने मुस्कुराते हुए औंधे मुंह पड़ी लाली से कहा

"जा तारे नू जौनपुर… तोरा के बरियार(ताकतवर) कर देत बानी सोनूवा से हार मत मनीहे"

लाली का चेहरा सुगना से दूर था उसने बड़ी मुश्किल से अपनी गर्दन घुमाई फिर भी वह सुगना का चेहरा ना देख पाई जो उसके पैरों पर बैठी उसकी जांघों पर मालिश कर रही थी फिर भी लाली ने कहा…

"बड़ा तैयारी करावत बाड़े कुछ बात बा जरूर ….बतावत काहे नईखे?"

सुगना सुगना एक बार फिर निरुत्तर हुई परंतु अभी तो मामला गरम था सुगना ने उबटन उसके लाली के नितंबों के बीचो बीच उस गहरी घाटी में लगाते हुए बोला..

" जो अबकी सोनू छोड़ी ना…इतना चिकना दे तानी आगे से थक जयबे तो एकरो के मैदान में उतार दीहे।"

सुगना आज सचमुच नटखट होकर लाली को उकसा रही थी उसे पता था लाली राजेश के साथ अपने अगले और पिछले दोनों गलियों का आनंद ले चुकी थी… परंतु सोनू वह तो अभी सामने की दुनिया में ही खोया हुआ था..

सुगना की उत्तेजक बातें सुनकर लाली गर्म हो रही थी। मन में उत्तेजना होने पर स्पर्श और मालिश का सुख दुगना हो जाता है । लाली सुगना के उबटन लगाए जाने से खुश थी और उसका भरपूर आनंद ले रही थी।


नियति सुगना को अपने भाई सोनू के पुरूषत्व को बचाने के लिए अपनी सहेली लाली को तैयार करते हुए देख रही थी.. सच सुगना का प्यार निराला था।

लाली के बदन पर उबटन लगाते लगाते सुगना की आंखों के सामने वही दृश्य घूमने लगे जब सोनू लाली को चोद रहा था। जितना ही सुगना सोचती उतना ही स्वयं भी वासना के घेरे में घिरती।

लाली की पीठ और जांघों के पिछले भाग पर उबटन लगाने के बाद अब बारी लाली को पीठ के बल लिटा दिया और एक बार फिर उसके पैरों पर सामने की तरफ से उबटन लगाने लगी।


जब एक बार उबटन शरीर पर लग गया तो उसे छूड़ाने के लिए उस सुगना को मेहनत करनी ही थी। उसने दिल खोलकर लाली के शरीर पर लगे उबटन से रगड़ रगड़ कर मालिश करतीं रही। लाली सुगना की मालिश से अभिभूत होती रही।

बीच-बीच में दोनों सहेलियां एक दूसरे को छेड़तीं.. उत्तेजना सिर्फ लाली में न थी अपितु लाली के बदन को मसलते मसलते सुगना स्वयं उत्तेजना के आगोश में आ चुकी थी। पूरे शरीर में जहां तहां उबटन लग चुका और जैसे ही लाली के बदन से उबटन अलग हुआ… लाली ने सुगना को उसी बिस्तर पर लिटा दिया जिस पर वह अब से कुछ देर पहले लाली की मालिश कर रही थी…

" ई का करत बाड़े " सुगना ने लाली की पकड़ से छूटने की कोशिश की और खिलखिलाते हुए बोली

लाली ने कहा

" इतना सारा उबटन बाचल बा ले आओ तोहरो के लगा दी"

सुगना ना ना करती रही..


"ना ना मत कर" लाली ने सुगना के पेट और पैरों पर उबटन लपेट दिया और एक बार फिर वही दौर चल पड़ा बस स्थितियां बदल चुकी थी. लाली सुगना के पैरों पर बैठी सुगना की जांघों की मालिश कर रही थी और सुगना इस अप्रत्याशित स्थिति से बचने का प्रयास करने कर रही थी।

परंतु अब यह संभव न था नियति लाली और सुगना के बीच का प्यार देख रही थी… सोनू की दोनों बहने जाने अनजाने एक दूसरे को सोनू के लिए तैयार कर रही थीं


नियति सोनू के भाग्य पर रश्क कर रही थी। क्या होने वाला था? सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिए जौनपुर के अखाड़े में किसे कूदना था लाली को या सुगना को या दोनों बहने एक साथ मैदान में उतरने की तैयारी में थी…

उधर सोनू अपने हथियार को अपने हाथ में लिए उसे सब्र करने को समझा रहा था…और अपने इष्ट से लगातार मिन्नते कर रहा था …सुगना को पाने के लिए उसकी उसकी मांगे कुछ उचित थी कुछ अनुचित…. ईश्वर स्वयं उसकी अधीरता से तंग आ चुके थे और आखिरकार……

शेष अगले भाग में
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Ajju Landwalia

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भाग 115

सोनू के दोनों हाथों में लड्डू थे…. और पेट में जबरदस्त भूख पर जिस लड्डू को वह पहले खाना चाहता था वह अभी भी उससे दूर था और दूसरा मुंह में जाने को बेताब…

नियति अपनी चाल चल रही थी… वह सोनू की इच्छा पूरी करने को आमादा थी…

जौनपुर में होने वाले प्रेमयुद्ध का अखाड़ा ट्रक पर लोड हो चुका था और धीरे धीरे सोनू के नए बंगले की तरफ कूच कर रहा था….


अब आगे..

सोनू जौनपुर पहुंच चुका था और पीछे पीछे फर्नीचर की दुकान से खरीदा गया वह सामान भी आ रहा था । सोनू का इंतजार उसके मातहत नए बंगले पर कर रहे थे जैसे ही सोनू की कार वहां पहुंची आसपास आराम कर रहे मातहत सावधान मुद्रा में खड़े हो गए।

बंगले की सुरक्षा में लगे गार्ड ने सोनू की कार का दरवाजा खोला और सोनू अपने पूरे रोआब के साथ अपनी कार से उतर गया। अपने कपड़े व्यवस्थित करते हुए वह अपने बंगले के अंदर प्रवेश कर गया। आंखे बंगले की दीवारों पर घूम रही थीं।


सचमुच रंग रोगन के बाद बंगला अपने पूरे शबाब पर था। अंदर घुसते ही एक बड़ा सा हाल और उस हाल से लगे हुए 3 खूबसूरत कमरे। बड़ी सी रसोई और उसके सामने एक छोटा सा हाल। शासकीय बंगलों की अहमियत उसे अब समझ आ रही थी। वैसे भी मनोरमा के बंगले को देखने के बाद सोनू के मन में भी हसरत जगी थी और जौनपुर के इस बंगले ने कुछ हद तक उसकी हसरतों को पूरा कर दिया था परंतु सोनू के अंतर्मन में जो हसरत पिछले कई दिनों से पनप रही थी वह अब भी तृप्ति की राह देख रही थी।

सोनू ने पूरे बंगले का मुआयना किया और उसकी साफ-सफाई देख कर खुश हो गया उसने अपने सभी मातहतों को की तारीफ की।

थोड़ी ही देर बाद बनारस से चला हुआ ट्रक भी पहुंच गया..

ट्रक से सामान उतर कर उतार कर सोनू के दिशा निर्देश में अलग-अलग कमरों में पहुंचाया जाने लगा …

ट्रक पर आए ढेर सारे सामान को देखकर सोनू के मातहत आपस में बात करने लगे

"अरे साहब तो अभी अविवाहित और अकेले हैं फिर इतना सारा सामान?"


जब प्रश्न उठा था तो उसका उत्तर मिलना भी जरूरी था। सोनू के साथ साथ रहने वाले ड्राइवर ने तपाक से कहा

"अरे साहब का परिवार बहुत बड़ा है तीन तीन बहने हैं और उनके बच्चे भी…. हो सकता है दो-तीन दिनों बाद उन लोग यहां आए भी"

ड्राइवर ने सोनू लाली और सुगना की बातें कुछ हद तक सुन ली थी और कुछ समझ भी ली थी.. पर उस रिश्ते में आई उस वासना भरी मिठास को वह समझ नहीं पाया था। यह शायद उसके लिए उचित भी था और सोनू के लिए भी..

ट्रक के साथ आए फर्नीचर के कारीगरों ने कुछ ही घंटों की मेहनत में फर्नीचर को विधिवत सजा दिया। घर की सजावट घंटों का काम नहीं दिनों का काम होता है। फर्नीचर के अलावा और भी ढेरों कार्य थे। नंगी और खुली हुई खिड़कियां अपने ऊपर आवरण खोज रही थी सोनू ने अपने मातहतों को दिशा निर्देश देकर उनकी माप करवाई और इसी प्रकार एक-एक करके अपने घर को पूरी तरह व्यवस्थित कराने लगा…

सुगना और लाली द्वारा पसंद किए गए दोनों पलंग सोनू ने खरीद लिए थे। वैसे भी सोनू की दीवानगी इस हद तक बढ़ चुकी थी की वह सुगना की मन की बातें पढ़ उसे खुश करना चाहता था और उस फर्नीचर शॉप में तो सुगना ने उस पलंग पर अपना हाथ रख दिया था।


निश्चित ही उसके मन में उस पलंग पर लेटने और सोने की बात आई होगी । सोनू उत्साहित हो गया। अपनी कल्पना में स्वयं पसंद किए पलंग पर अपनी मल्लिका सुगना को लेटे और अंगड़ाइयां लेते देख उसका लंड .. खड़ा हो गया। जितना ही वह उस पर से ध्यान हटाता उतना ही छोटा सोनू उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लाता। सुगना का श्रृंगारदान भी बेहद खूबसूरत था परंतु सूना था बिल्कुल अपनी मालकिन सुगना की तरह …जो एक बेहद खूबसूरत काया और सबका मन मोहने वाला दिल लिए सुहागन होने के बावजूद अब भी विधवाओं जैसी जिंदगी जी रही थी।

सोनू अपने दूसरे कमरे में आया जहां लाली द्वारा पसंद किया गया पलंग लगा था। लाली और सुगना की तुलना सोनू कतई नहीं करना चाहता था परंतु तुलना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है।

जब तक सुगना सिर्फ और सिर्फ उसकी बड़ी बहन थी वह देवतुल्य थी और लाली उसकी मेनका रंभा और न जाने क्या-क्या। तब न तो तुलना की आवश्यकता थी और ना ही उसका औचित्य।

परंतु जब से उसने सुगना को अपनी वासना भरी दुनिया में खींच लाया था और उसको को अपना बनाने की ठान ली थी… सुगना भी उन्ही अप्सराओं मे शामिल हो चुकी थी… और अब तुलना स्वाभाविक हो चुकी थी और सुगना निर्विवाद रूप से लाली पर भारी पड़ रही थी।


आपका अंतर्मन आपके विचारों को नियंत्रित करता है। सुगना के प्रति सोनू के अनोखे प्यार ने बंगले का सबसे खूबसूरत कमरा सुगना को देने पर मजबूर कर दिया था।

यद्यपि दोनों ही कमरे खूबसूरत थे परंतु जो अंतर लाली और सुगना में था वही अंतर उनके कमरों में भी स्पष्ट नजर आ रहा था।

बहरहाल सोनू ने अपने दोनों बहनों की पसंद का ख्याल रख उनके दोनों कमरे सजा दिए थे…और सोनू का बैठका उसके स्वयं द्वारा पसंद किए गए सोफे से जगमगा उठा था। घर की साफ सफाई की निगरानी करते करते रात हो चुकी थी परंतु अभी भी कई कार्य बाकी थे…

अगले दो-तीन दिनों तक सोनू अपना आवश्यक शासकीय कार्य निपटाने के बाद अपने बंगले पर आ जाता और कभी पर्दे कभी शीशा कभी कपड़े रखने की अलमारी और तरह-तरह की छोटी बड़ी चीजें खरीदता और घर को धीरे धीरे हर तरीके से रहने लायक बनाने की कोशिश करता। रसोई घर के सामान कि उसे विशेष जानकारी न थी फिर भी वह अत्याधुनिक और जौनपुर में उपलब्ध उत्तम कोटि के रसोई घर के सामान भी खरीद लाया था पर उन्हें यथावत छोड़ दिया था…

रसोई घर को सजा पाना उसके वश में न था एकमात्र वही काम उसने अपनी बहनों के लिए छोड़ दिया था..

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लाली को ही जौनपुर आना था सोनू को भी सुगना के साथ साथ उसका भी इंतजार था। लाली को अभी आने से रोकना और तीन-चार दिनों बाद जौनपुर भेजने की योजना सुगना ने डॉक्टर की नसीहत को ध्यान में रखते हुए ही बनाई थी।

परंतु सोनू भी कम न था उसने जानबूझकर सुगना को अभी जौनपुर आने से रोक लिया था और फर्नीचर खरीदने का प्रबंध बनारस से ही कर लिया था ताकि वह घर की सजावट पूरी होने के बाद लाली और सुगना को एक साथ ही जौनपुर ले आए। नए घर में प्रवेश की बात कर सुगना को आसानी से मना सकता था और इसके लिए जिद भी कर सकता था।

वैसे भी लाली और उसके बीच जो कुछ हो रहा था वह न सिर्फ सुगना जान रही थी अपितु अपनी खुली और नंगी आंखों से देख भी चुकी थी और अब तो सोनू और लाली के मिलन की अनिवार्यता भी थी। सुगना लाली और उसे करीब लाने में कोई कमी नहीं रखेगी यह बात सोनू बखूबी जानता था वह मन ही मन तरह-तरह की कल्पनाएं करता और सुगना की उपस्थिति में लाली को चोद चोद कर सुगना को और उत्तेजित करने का प्रयास करता उसे पता था सुगना की उस खूबसूरत और अद्भुत बुर को जीवंत बनाए रखने के लिए सुगना का भी संभोग करना अनिवार्य था चाहे कृत्रिम रूप से या स्वाभाविक रूप से…


परंतु सोनू के लिए सुगना से संभोग अब भी दुरूह कार्य था सुगना जब तक स्वयं अपनी जांघे नहीं खोलती सोनू वही गलती दोबारा दोहराने को कतई तैयार न था जो उसने दीपावली की रात की थी । सुगना का मायूस और उदास चेहरा जब जब सोनू के सामने घूमता उसके सुगना के जबरदस्ती करीब जाने के विचार पानी के बुलबुले की तरह बिखर जाते ।

सोनू पूरी जी जान से अपनी परियों के आशियाने को सजाने में जुटा हुआ था और परियों की रानी सुगना कि उस अद्भुत और रसीली बुर को जीवंत बनाए रखने की संभावनाओं पर लगातार सोच विचार कर रहा था।

ऐसा न था कि आने वाले 1 सप्ताह की तैयारियां सिर्फ सोनू कर रहा था उधर बनारस में उसकी बहन सुगना भी लाली को उस प्रेम युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार कर रही थी…

"ए लाली तोर महीना कब आई रहे"


"काहे पुछत बाड़े.." लाली में सुगना के इस अप्रत्याशित प्रश्न पर एक और प्रश्न किया

"तोरा जौनपुर भी जाए के बा..भुला गईले का?" सुगना ने लाली के पेट पर चिकोटी काटते हुए कहा

"देखत बानी तू ज्यादा बेचैन बाड़ू …..का बात बा? अभी तो सोनुआ के भीरी ठेके ना देत रहलु हा और अब जौनपुर भेजें खातिर अकुताईल बाड़ू_

सुगना जब पकड़ी जाती थी तो अपनी खूबसूरत मुस्कुराहट और अपने स्पर्श से सामने वाले को मोहित कर लेती थी। उसने लाली की हथेली को अपनी गोद में लिया और उसकी बाहों को दबाते हुए बोली..

"अब जाता रे नू जौनपुर खूब सेवा करिए और करवाईहे हम ना रोकब टोकब "

लाली भी सुगना को छेड़ने के मूड में आ चुकी थी..

"ते हु चल ना कुछ ना करबे त देख देख कर मजा लीहे पहले भी तो देखलहीं बाड़े "

सुगना ने लाली की बाहें अपनी गोद से हटाकर दूर फेंकते हुए कहा

" लाली फालतू बात मत कर तोरा कारण ही सोनूवा के दिमाग खराब हो गईल रहे और ऊ कुल कांड भईल अब हमरा बारे में सोनूवा से कोनो बात मत करिहे_"

"हम कहां करीना तोरे सोनूवा बेचैन रहेला? का जाने ते का देखावले बाड़े और का चिखावले बाड़े" लाली ने अपनी नजर सुगना की भरी भरी चुचियों पर घुमाई और फिर उन्हें उसके सपाट पेट से होटी हुई जांघों के बीच तक ले गई। सुगना बखूबी लाली की नाचती हुई आंखों को देख रही थी।

"ई सब पाप ह.." सुगना ने अपनी आंखें बंद कर ऊपर छत की तरफ देखा और अपने अंतर्मन से चिर परिचित प्रतिरोध करने की कोशिश की..

"काहे पाप ह…?"लाली में पूछा । लाली तो जैसे वाद विवाद पर उतारू थी ..

"सोनूवा हमार अपना भाई हां भाई बहन के बीच ई कुल …छी कितना गंदा बात बा.."

सुगना की स्पष्ट और उचित बात ने लाली को भी सोचने पर मजबूर कर दिया और वह कुछ पलों के लिए चुप हो गई फिर उसने सुगना की हथेली पकड़ी और बोला

"काश सोनुआ तोर आपन भाई ना रहित.."

लाली की बात सुनकर सुगना अंदर ही अंदर सिहर उठी..लाली ने उसकी दुखती रग छेड़ दी थी.. अपने एकांत में न जाने सुगना कितनी बार यह बात सोचती थी..


सुगना से अब रहा न गया उसने लाली की बात में हां में हां मिलाते हुए कहा

" हां सच कहते बाड़े काश सोनुआ हमार भाई ना होके तोर भाई रहित.."

दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ी। लाली का कोई अपना सगा भाई न था। उसे इस रिश्ते की पवित्रता और मर्यादा का बोध न था उसने तो सोनू को ही अपना मुंहबोला भाई माना था परंतु जैसे-जैसे सोनू जवान होता गया उसने लाली को दिल से बहन न माना …

संबोधन और आकर्षण दोनों साथ-साथ बढ़ते रहे लाली दीदी के प्रति सोनू की आसक्ति समय के साथ बढ़ती गई और अब लाली और सोनू के संबंध अपनी अलग ऊंचाइयों पर थे…

" ते हमार बात घुमा दे ले लेकिन बतावाले हा ना कि महिनवा कब आई रहे…?

"मत घबरो .. अभी महीना आवे में 2 सप्ताह बा। अब ठीक बानू"


सुगना निश्चिंत हो गई उसे तो सिर्फ 1 हफ्ते की दरकार थी। उसके पश्चात लाली और सोनू लगातार साथ रहे या ना रहे उससे सुगना को कोई फर्क नही पड़ना था। परंतु सोनू की वासना और उसके जननांगों को जीवंत रखना सुगना की प्राथमिकता भी थी और धर्म भी। डॉक्टर ने जो दायित्व सुगना को दिया था वह उसे वह बखूबी निभा रही थी।

अचानक सुगना के मन में आया…

"ए लाली चल ना ढेर दिन भर उबटन लगावल जाओ.."

सुगना ने लाली के मन की बात कह दी थी । लाली स्वयं भी सोनू से जी भर चुदने किसे पहले अपने बदन को और मखमली करना चाह रही थी। दोनों सहेलियां सरसों का उबटन पीसने में लग गई…

आइए जब तक सुगना और लाली अपना उबटन पीसते हैं तब तक आपको लिए चलते हैं सलेमपुर जहां सरयू सिंह आज अपनी कोठरी की साफ सफाई कर रहे थे। यही वह कोठरी थी जहां सुगना की छोटी बहन सोनी अपने प्रेमी विकास से दीपावली की रात जमकर चुदी थी और हड़बड़ाहट में अपनी जालीदार लाल पेंटी अनजाने में ही सरयू सिंह के लिए उपहार स्वरूप छोड़ गई थी।


सरयू सिंह में उस लाल पेंटी और उसमें कैद होने वाले खूबसूरत नितंबों की कल्पना कर अपनी वासना को कई दिनों तक जवान रखा था और हस्तमैथुन कर अपने लंड को उसकी शक्ति याद दिलाते रहे थे। सोनी के मोहपाश में बंधे अपने मन में तरह-तरह के विचार और ख्वाब लिए वह उसका पीछा करते हुए बनारस भी पहुंच चुके थे। परंतु अब उनके मन में एक अजब सी कसक थी सोनी और विकास के रिश्ते के बाद उसके बारे में गलत सोचना न जाने उन्हें अब क्यों खराब लग रहा था। उनकी वासना अब भी सोनी को एक व्यभिचारी औरत काम पिपासु युवती के रूप में देखने को मजबूर करती परंतु पहले और अब का अंतर स्पष्ट था। जितने कामुक खयालों के साथ वह अपने विचारों में सोनी के साथ व्यभिचार करते थे वह उसकी धार अब कुंद पड़ रही थी सरयू सिंह ने सोनी के साथ जो वासनाजन्या कल्पनाएं की थी अब उन में अब बदलाव आ रहा था। शायद सोनी के प्रति उनका गुस्सा कुछ कम हो गया था।

सोनी को चोद पाने की उनकी तमन्ना धीरे-धीरे दम तोड़ रही थी जिस सुकन्या का विवाह अगले कुछ महीनों में होने वाला था वह भी विकास जैसे युवक से वह क्यों कर भला सरयू सिंह जैसे ढलती उम्र के व्यक्ति के पास सहर्ष चुदवाने के लिए आएगी…परंतु सरयू सिंह एक बात भूल रहे थे जांघों के बीच नियति ने उन्हें जो शक्ति प्रदान की थी वह अनोखी थी…

*************************

उधर विद्यानंद के आश्रम में…


मोनी के कौमार्य परीक्षण के पश्चात उसे आश्रम के विशेष भाग में स्थानांतरित कर दिया गया था वहां उसकी उम्र की करीब दस और लड़कियां थी मोनी को सिर्फ इतना पता था कि वह आश्रम के विशेष सदस्यों की टोली में शामिल की गई थी जहां उसे एक विशेष साधना में लगना था।

नित्य कर्म के पश्चात सभी लड़कियां एक बड़ी सी कुटिया में आ चुकी थी सभी के शरीर पर एक श्वेत धवल वस्त्र था जो उनके अंग प्रत्यंग ओं को पूरी तरह आवरण दिए हुए था सभी लड़कियां नीचे बनी बिछी आशनी पर बैठ गई सामने चबूतरे पर आसनी बिछी हुई थी पर स्थान रिक्त था..

कुछ ही पलों में कुटिया में लगे ध्वनि यंत्र से एक आवाज सुनाई दी…आप सभी को एक विशेष साधना के लिए चुना गया है जिसमें आपका स्वागत है.. आप सबकी गुरु माधवी जी अब से कुछ देर बाद मंच पर विराजमान होंगी वही आपको आने वाले एक माह तक निर्देशित करेंगी । आप सब उनके दिशा निर्देशों का पालन करते हुए इस विशेष आश्रम में रहेंगी और अपनी साधना पूर्ण करेंगी कुछ कार्य आप सब को सामूहिक रूप में करना होगा कुछ टोलियों में और कुछ अकेले। माधवी जी हमेशा आप लोगों के बीच रहेंगी। आप सब अपनी आंखें बंद कर माधवी जी का इंतजार करें और उनके कहने पर ही अपनी आंखें खोलिएगा।

सभी लड़कियां विस्मित भाव से उस ध्वनि यंत्र को खोज रही थी जो न जाने कहां छुपा हुआ था। दिशा निर्देश स्पष्ट थे सभी लड़कियों ने आंखें बंद कर लीं और वज्रासन मुद्रा में बैठ गईं सामने मंच पर किसी के आने की आहट हुई परंतु लड़कियों ने निर्देशानुसार अपनी आंखें बंद किए रखी।


कुछ ही पलों बाद माधवी की मधुर आवाज सुनाई पड़ी

"आप सब अपनी आंखें खोल सकती हैं"


सभी लड़कियों ने अपनी आंखें धीरे-धीरे खोल दीं।

मोनी सामने पहली कतार में बैठी थी मंच पर एक सुंदर और बेहद खूबसूरत महिला को नग्न देखकर वह अचंभित रह गई। उसने अपने अगल-बगल लड़कियों को देखा सब की सब विस्मित भाव से माधवी को देख रही थी माधवी पूर्ण नग्न होकर वज्रासन में बैठी हुई थी और उसकी आंखें बंद थी दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जुड़े हुए थे और उसकी भरी-भरी चूचियां दोनों हाथों के बीच से निकलकर तनी हुई थी प्रणाम की मुद्रा में दोनों पंजे सटे हुए दोनों चुचियों के बीच आ गए थे। बेहद खूबसूरत दृश्य था….

माधवी ने भी अपनी आंखें खोली और सामने बैठी लड़कियों को संबोधित करते हुए बोली

"मेरा नाम माधवी है मैं आप की आगे की यात्रा में कुछ दूर तक आपके साथ रहूंगी …आप सब मेरे शरीर पर वस्त्र न देख कर हैरान हो रहे होंगे परंतु विधाता की बनाई इस दुनिया में वस्त्रों का सृजन पुरुषों और स्त्रियों के भेद को छुपाने के लिए ही हुआ था और यहां हम सब स्त्रियां ही हैं अतः हम सबके बीच किसी पर्दे की आवश्यकता नहीं है क्या आपने कभी गायों को बछियों को वस्त्र पहने देखा है?"


सभी माधवी की बातों को मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे एक तो माधवी बेहद खूबसूरत थी ऊपर से उसका कसा हुआ बदन उसके व्यक्तित्व में चार चांद लगा रहा था। भरी-भरी गोरी गोरी चूचीया और उस पर तने हुए गुलाबी निप्पल सभी लड़कियों को खुद अपने स्तनों को उस से तुलना करने पर मजबूर कर रहा था और निश्चित ही माधवी उन सब पर भारी थी। परंतु मोनी माधवी से होड़ लगाने को तैयार थी। सुगना की बहन होने का कुछ असर मोनी पर भी था।

आइए हम सब अपने एकवस्त्र को खोल कर यही कुटिया में छोड़ देंगे और शाम सूरज ढलने के पश्चात वापस अपने वस्त्र लेकर अपने अपने कमरों में चले जाएंगे। इसी प्रकार आने वाले 1 महीने तक हम सुबह सुबह यहां एकत्रित होंगे और प्रकृति के बीच रहकर अपनी साधना को पूरा करेंगे।

एक बात ध्यान रखिएगा यह साधना आप सबके लिए है और इस साधना में हुए अनुभव और सीख किसी और से साझा मत करिएगा दीवारों के भी कान होते हैं।


एक-एक करके सभी लड़कियों ने अपने श्वेत वस्त्र को अपने शरीर से उतार दिया और नग्न होने लगी मोनी आज पहली बार किसी के समक्ष नग्न हो रही थी नियति मोनी की काया पर से आवरण हटते हुए देख रही थी न जाने ऊपर वाले ने सारी सुंदरता पदमा की बेटियों को ही क्यों दे दी थी। एक से बढ़कर एक खूबसूरत और जवानी से भरपूर तीनों बहनें…

गोरी चिट्टी मोनी गांव में अपनी मां पदमा का हाथ बटाते बटाते शारीरिक रूप से सुदृढ़ हो गई थी। खेती किसानी और घरेलू कार्य करते करते उसके शरीर में कसाव आ चुका था और स्त्री सुलभ कोमलता उस कसे हुए शरीर को और खूबसूरत बना रही थी।

मोनी का वस्त्र उसके जांघों के जोड़ तक आ गया और उसकी खूबसूरत और अनछुई बुर माधवी की निगाहों के सामने आ गई और बरबस ही माधवी का ध्यान मोनी की बुर पर अटक गया मोनी के भगनासे के पास एक बड़ा सा तिल था…यह तिल निश्चित ही सब का ध्यान खींचने वाला था माधवी मंत्रमुग्ध होकर मोनी को देखे जा रही थी।

कुछ ही देर में कुछ ही देर में सभी कुदरती अवस्था में आ चुके थे और एक दूसरे से अपनी झिझक मिटाते हुए कुछ ही पलों में सामान्य हो गए थे। लड़कियों की जांघों के बीच वह खूबसूरत बुर आज खुली हवा में सांस ले रही थी.. और तनी हुई चूचियां उछल उछल कर लड़कियों को एक अलग ही एहसास करा रही थी.

आश्रम का यह भाग प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ था । जहां पर प्रकृति ने साथ न दिया था वहां लक्ष्मी जी के वैभव से वही प्राकृतिक सुंदरता कृत्रिम रूप से बना दी गई थी….

धूप खिली हुई थी और सभी नग्न लड़कियां कृत्रिम पर विशालकाय झरने के बीच आकर एक दूसरे से अठखेलियां करने लगी। कभी अपनी अंजुली में पानी लेकर एक दूसरे पर छिड़कती और अपनी बारी आने पर उसी पानी से बचने के लिए अपने चेहरे को इधर-उधर करती कभी अपने हाथों से अपने चेहरे और आंखों को ढकती…

प्रकृति की सुंदरता उफान पर थी आज अपनी ही बनाई खूबसूरत तरुणियों को अपनी आगोश में लिए हुए प्रकृति और भी खूबसूरत हो गई थी। आश्रम का यह भाग दर्शनीय था। हरे भरे उपवन में पानी का झरना और झरने में खेलती मादक यौवन से लबरेज उन्मुक्त होकर खेलती हुई युवतियां।

परंतु उस दिव्य दर्शन की इजाजत शायद किसी को न थी पर जो इस आश्रम का रचयिता था वह बखूबी इस दृश्य को देख रहा था….

आइए तरुणियो को अपने हाल पर छोड़ देते हैं और वापस आपको लिए चलते हैं बनारस में आपकी प्यारी सुगना के पास…

दोपहर का वक्त खाली था सारे बच्चे स्कूल जा चुके थे और सोनी भी.. अपने कॉलेज के लिए निकल चुकी थी वैसे भी अब उसका मन कॉलेज में ना लगता था जो पढ़ाई वह पढ़ रही थी अब वह उसके जीविकोपार्जन का साधन ना होकर एक शौक बन चुका था फिर भी जब सोनी ने इतनी मेहनत की थी वह इस अंतिम परीक्षा में सफल हो जाना चाहती थी…


घर के एकांत में लाली और सुगना उबटन लेकर अपने कमरे में थी..सुगना लाली के हाथ पैरों में उबटन लगा रही थी। धीरे धीरे सुगना के हाथ अपनी मर्यादा को लांघते हुए लाली की जांघों तक पहुंचने लगे।

लाली ने सुगना के स्पर्श में उत्तेजना महसूस की। और वह बीती रात की बात याद करने लगी जब सुगना ने पहली बार उसकी बुर को स्खलित किया था।

कुछ ही देर में लाली सुगना के समक्ष अर्धनग्न होती गई पेटीकोट सरकता सरकता लाली के नितंबों तक आ चुका था और उसके मादक नितंबों को बड़ी मुश्किल से छुपाने की कोशिश कर रहा था । लाली को अब सुगना से कोई शर्म न थी परंतु वह खुद ही अपनी पेटीकोट को और ऊपर करना नहीं चाह रही थी थी सुगना में लाली की जांघों पर पीले उबटन का लेप लगाया और धीरे-धीरे उसकी जांघों और पैरों की मालिश करने लगी सुगना ने मुस्कुराते हुए औंधे मुंह पड़ी लाली से कहा

"जा तारे नू जौनपुर… तोरा के बरियार(ताकतवर) कर देत बानी सोनूवा से हार मत मनीहे"

लाली का चेहरा सुगना से दूर था उसने बड़ी मुश्किल से अपनी गर्दन घुमाई फिर भी वह सुगना का चेहरा ना देख पाई जो उसके पैरों पर बैठी उसकी जांघों पर मालिश कर रही थी फिर भी लाली ने कहा…

"बड़ा तैयारी करावत बाड़े कुछ बात बा जरूर ….बतावत काहे नईखे?"

सुगना सुगना एक बार फिर निरुत्तर हुई परंतु अभी तो मामला गरम था सुगना ने उबटन उसके लाली के नितंबों के बीचो बीच उस गहरी घाटी में लगाते हुए बोला..

" जो अबकी सोनू छोड़ी ना…इतना चिकना दे तानी आगे से थक जयबे तो एकरो के मैदान में उतार दीहे।"

सुगना आज सचमुच नटखट होकर लाली को उकसा रही थी उसे पता था लाली राजेश के साथ अपने अगले और पिछले दोनों गलियों का आनंद ले चुकी थी… परंतु सोनू वह तो अभी सामने की दुनिया में ही खोया हुआ था..

सुगना की उत्तेजक बातें सुनकर लाली गर्म हो रही थी। मन में उत्तेजना होने पर स्पर्श और मालिश का सुख दुगना हो जाता है । लाली सुगना के उबटन लगाए जाने से खुश थी और उसका भरपूर आनंद ले रही थी।


नियति सुगना को अपने भाई सोनू के पुरूषत्व को बचाने के लिए अपनी सहेली लाली को तैयार करते हुए देख रही थी.. सच सुगना का प्यार निराला था।

लाली के बदन पर उबटन लगाते लगाते सुगना की आंखों के सामने वही दृश्य घूमने लगे जब सोनू लाली को चोद रहा था। जितना ही सुगना सोचती उतना ही स्वयं भी वासना के घेरे में घिरती।

लाली की पीठ और जांघों के पिछले भाग पर उबटन लगाने के बाद अब बारी लाली को पीठ के बल लिटा दिया और एक बार फिर उसके पैरों पर सामने की तरफ से उबटन लगाने लगी।


जब एक बार उबटन शरीर पर लग गया तो उसे छूड़ाने के लिए उस सुगना को मेहनत करनी ही थी। उसने दिल खोलकर लाली के शरीर पर लगे उबटन से रगड़ रगड़ कर मालिश करतीं रही। लाली सुगना की मालिश से अभिभूत होती रही।

बीच-बीच में दोनों सहेलियां एक दूसरे को छेड़तीं.. उत्तेजना सिर्फ लाली में न थी अपितु लाली के बदन को मसलते मसलते सुगना स्वयं उत्तेजना के आगोश में आ चुकी थी। पूरे शरीर में जहां तहां उबटन लग चुका और जैसे ही लाली के बदन से उबटन अलग हुआ… लाली ने सुगना को उसी बिस्तर पर लिटा दिया जिस पर वह अब से कुछ देर पहले लाली की मालिश कर रही थी…

" ई का करत बाड़े " सुगना ने लाली की पकड़ से छूटने की कोशिश की और खिलखिलाते हुए बोली

लाली ने कहा

" इतना सारा उबटन बाचल बा ले आओ तोहरो के लगा दी"

सुगना ना ना करती रही..


"ना ना मत कर" लाली ने सुगना के पेट और पैरों पर उबटन लपेट दिया और एक बार फिर वही दौर चल पड़ा बस स्थितियां बदल चुकी थी. लाली सुगना के पैरों पर बैठी सुगना की जांघों की मालिश कर रही थी और सुगना इस अप्रत्याशित स्थिति से बचने का प्रयास करने कर रही थी।

परंतु अब यह संभव न था नियति लाली और सुगना के बीच का प्यार देख रही थी… सोनू की दोनों बहने जाने अनजाने एक दूसरे को सोनू के लिए तैयार कर रही थीं


नियति सोनू के भाग्य पर रश्क कर रही थी। क्या होने वाला था? सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिए जौनपुर के अखाड़े में किसे कूदना था लाली को या सुगना को या दोनों बहने एक साथ मैदान में उतरने की तैयारी में थी…

उधर सोनू अपने हथियार को अपने हाथ में लिए उसे सब्र करने को समझा रहा था…और अपने इष्ट से लगातार मिन्नते कर रहा था …सुगना को पाने के लिए उसकी उसकी मांगे कुछ उचित थी कुछ अनुचित…. ईश्वर स्वयं उसकी अधीरता से तंग आ चुके थे और आखिरकार……

शेष अगले भाग में


Gazab ki update Lovely Bhai,

Kabhi kabhi Sonu ki kismat se jalan hoti he.........lekin fir apni dekhte he to lagta he itni bhi buri nahi he......... darjan se jyada sambandh to apne bhi rahe he.....

Intezar rahega agle part ka............
 

GC Kumar

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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
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Tarahb

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Gazab ki update Lovely Bhai,

Kabhi kabhi Sonu ki kismat se jalan hoti he.........lekin fir apni dekhte he to lagta he itni bhi buri nahi he......... darjan se jyada sambandh to apne bhi rahe he.....

Intezar rahega agle part ka............
Apki post likhne ke andaz se lgta h apka ek bhi sambandh nahi rah h ..yahi hath hilate hilate maje lo mere yr....man ko hlka rkhna chahiye...jalan Matt kro ... kismat achi hogi to koi n koi mil jaygi nhi to hath se hilate rho
 

Vinita

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20220921-063004 20220923-201731

सोनू के दोनों हाथों में लड्डू थे…. और पेट में जबरदस्त भूख पर जिस लड्डू को वह पहले खाना चाहता था वह अभी भी उससे दूर था और दूसरा मुंह में जाने को बेताब…
बहुत ही सार्थक फोटो
 

William

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भाग 115

सोनू के दोनों हाथों में लड्डू थे…. और पेट में जबरदस्त भूख पर जिस लड्डू को वह पहले खाना चाहता था वह अभी भी उससे दूर था और दूसरा मुंह में जाने को बेताब…

नियति अपनी चाल चल रही थी… वह सोनू की इच्छा पूरी करने को आमादा थी…

जौनपुर में होने वाले प्रेमयुद्ध का अखाड़ा ट्रक पर लोड हो चुका था और धीरे धीरे सोनू के नए बंगले की तरफ कूच कर रहा था….


अब आगे..

सोनू जौनपुर पहुंच चुका था और पीछे पीछे फर्नीचर की दुकान से खरीदा गया वह सामान भी आ रहा था । सोनू का इंतजार उसके मातहत नए बंगले पर कर रहे थे जैसे ही सोनू की कार वहां पहुंची आसपास आराम कर रहे मातहत सावधान मुद्रा में खड़े हो गए।

बंगले की सुरक्षा में लगे गार्ड ने सोनू की कार का दरवाजा खोला और सोनू अपने पूरे रोआब के साथ अपनी कार से उतर गया। अपने कपड़े व्यवस्थित करते हुए वह अपने बंगले के अंदर प्रवेश कर गया। आंखे बंगले की दीवारों पर घूम रही थीं।


सचमुच रंग रोगन के बाद बंगला अपने पूरे शबाब पर था। अंदर घुसते ही एक बड़ा सा हाल और उस हाल से लगे हुए 3 खूबसूरत कमरे। बड़ी सी रसोई और उसके सामने एक छोटा सा हाल। शासकीय बंगलों की अहमियत उसे अब समझ आ रही थी। वैसे भी मनोरमा के बंगले को देखने के बाद सोनू के मन में भी हसरत जगी थी और जौनपुर के इस बंगले ने कुछ हद तक उसकी हसरतों को पूरा कर दिया था परंतु सोनू के अंतर्मन में जो हसरत पिछले कई दिनों से पनप रही थी वह अब भी तृप्ति की राह देख रही थी।

सोनू ने पूरे बंगले का मुआयना किया और उसकी साफ-सफाई देख कर खुश हो गया उसने अपने सभी मातहतों को की तारीफ की।

थोड़ी ही देर बाद बनारस से चला हुआ ट्रक भी पहुंच गया..

ट्रक से सामान उतर कर उतार कर सोनू के दिशा निर्देश में अलग-अलग कमरों में पहुंचाया जाने लगा …

ट्रक पर आए ढेर सारे सामान को देखकर सोनू के मातहत आपस में बात करने लगे

"अरे साहब तो अभी अविवाहित और अकेले हैं फिर इतना सारा सामान?"


जब प्रश्न उठा था तो उसका उत्तर मिलना भी जरूरी था। सोनू के साथ साथ रहने वाले ड्राइवर ने तपाक से कहा

"अरे साहब का परिवार बहुत बड़ा है तीन तीन बहने हैं और उनके बच्चे भी…. हो सकता है दो-तीन दिनों बाद उन लोग यहां आए भी"

ड्राइवर ने सोनू लाली और सुगना की बातें कुछ हद तक सुन ली थी और कुछ समझ भी ली थी.. पर उस रिश्ते में आई उस वासना भरी मिठास को वह समझ नहीं पाया था। यह शायद उसके लिए उचित भी था और सोनू के लिए भी..

ट्रक के साथ आए फर्नीचर के कारीगरों ने कुछ ही घंटों की मेहनत में फर्नीचर को विधिवत सजा दिया। घर की सजावट घंटों का काम नहीं दिनों का काम होता है। फर्नीचर के अलावा और भी ढेरों कार्य थे। नंगी और खुली हुई खिड़कियां अपने ऊपर आवरण खोज रही थी सोनू ने अपने मातहतों को दिशा निर्देश देकर उनकी माप करवाई और इसी प्रकार एक-एक करके अपने घर को पूरी तरह व्यवस्थित कराने लगा…

सुगना और लाली द्वारा पसंद किए गए दोनों पलंग सोनू ने खरीद लिए थे। वैसे भी सोनू की दीवानगी इस हद तक बढ़ चुकी थी की वह सुगना की मन की बातें पढ़ उसे खुश करना चाहता था और उस फर्नीचर शॉप में तो सुगना ने उस पलंग पर अपना हाथ रख दिया था।


निश्चित ही उसके मन में उस पलंग पर लेटने और सोने की बात आई होगी । सोनू उत्साहित हो गया। अपनी कल्पना में स्वयं पसंद किए पलंग पर अपनी मल्लिका सुगना को लेटे और अंगड़ाइयां लेते देख उसका लंड .. खड़ा हो गया। जितना ही वह उस पर से ध्यान हटाता उतना ही छोटा सोनू उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लाता। सुगना का श्रृंगारदान भी बेहद खूबसूरत था परंतु सूना था बिल्कुल अपनी मालकिन सुगना की तरह …जो एक बेहद खूबसूरत काया और सबका मन मोहने वाला दिल लिए सुहागन होने के बावजूद अब भी विधवाओं जैसी जिंदगी जी रही थी।

सोनू अपने दूसरे कमरे में आया जहां लाली द्वारा पसंद किया गया पलंग लगा था। लाली और सुगना की तुलना सोनू कतई नहीं करना चाहता था परंतु तुलना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है।

जब तक सुगना सिर्फ और सिर्फ उसकी बड़ी बहन थी वह देवतुल्य थी और लाली उसकी मेनका रंभा और न जाने क्या-क्या। तब न तो तुलना की आवश्यकता थी और ना ही उसका औचित्य।

परंतु जब से उसने सुगना को अपनी वासना भरी दुनिया में खींच लाया था और उसको को अपना बनाने की ठान ली थी… सुगना भी उन्ही अप्सराओं मे शामिल हो चुकी थी… और अब तुलना स्वाभाविक हो चुकी थी और सुगना निर्विवाद रूप से लाली पर भारी पड़ रही थी।


आपका अंतर्मन आपके विचारों को नियंत्रित करता है। सुगना के प्रति सोनू के अनोखे प्यार ने बंगले का सबसे खूबसूरत कमरा सुगना को देने पर मजबूर कर दिया था।

यद्यपि दोनों ही कमरे खूबसूरत थे परंतु जो अंतर लाली और सुगना में था वही अंतर उनके कमरों में भी स्पष्ट नजर आ रहा था।

बहरहाल सोनू ने अपने दोनों बहनों की पसंद का ख्याल रख उनके दोनों कमरे सजा दिए थे…और सोनू का बैठका उसके स्वयं द्वारा पसंद किए गए सोफे से जगमगा उठा था। घर की साफ सफाई की निगरानी करते करते रात हो चुकी थी परंतु अभी भी कई कार्य बाकी थे…

अगले दो-तीन दिनों तक सोनू अपना आवश्यक शासकीय कार्य निपटाने के बाद अपने बंगले पर आ जाता और कभी पर्दे कभी शीशा कभी कपड़े रखने की अलमारी और तरह-तरह की छोटी बड़ी चीजें खरीदता और घर को धीरे धीरे हर तरीके से रहने लायक बनाने की कोशिश करता। रसोई घर के सामान कि उसे विशेष जानकारी न थी फिर भी वह अत्याधुनिक और जौनपुर में उपलब्ध उत्तम कोटि के रसोई घर के सामान भी खरीद लाया था पर उन्हें यथावत छोड़ दिया था…

रसोई घर को सजा पाना उसके वश में न था एकमात्र वही काम उसने अपनी बहनों के लिए छोड़ दिया था..

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लाली को ही जौनपुर आना था सोनू को भी सुगना के साथ साथ उसका भी इंतजार था। लाली को अभी आने से रोकना और तीन-चार दिनों बाद जौनपुर भेजने की योजना सुगना ने डॉक्टर की नसीहत को ध्यान में रखते हुए ही बनाई थी।

परंतु सोनू भी कम न था उसने जानबूझकर सुगना को अभी जौनपुर आने से रोक लिया था और फर्नीचर खरीदने का प्रबंध बनारस से ही कर लिया था ताकि वह घर की सजावट पूरी होने के बाद लाली और सुगना को एक साथ ही जौनपुर ले आए। नए घर में प्रवेश की बात कर सुगना को आसानी से मना सकता था और इसके लिए जिद भी कर सकता था।

वैसे भी लाली और उसके बीच जो कुछ हो रहा था वह न सिर्फ सुगना जान रही थी अपितु अपनी खुली और नंगी आंखों से देख भी चुकी थी और अब तो सोनू और लाली के मिलन की अनिवार्यता भी थी। सुगना लाली और उसे करीब लाने में कोई कमी नहीं रखेगी यह बात सोनू बखूबी जानता था वह मन ही मन तरह-तरह की कल्पनाएं करता और सुगना की उपस्थिति में लाली को चोद चोद कर सुगना को और उत्तेजित करने का प्रयास करता उसे पता था सुगना की उस खूबसूरत और अद्भुत बुर को जीवंत बनाए रखने के लिए सुगना का भी संभोग करना अनिवार्य था चाहे कृत्रिम रूप से या स्वाभाविक रूप से…


परंतु सोनू के लिए सुगना से संभोग अब भी दुरूह कार्य था सुगना जब तक स्वयं अपनी जांघे नहीं खोलती सोनू वही गलती दोबारा दोहराने को कतई तैयार न था जो उसने दीपावली की रात की थी । सुगना का मायूस और उदास चेहरा जब जब सोनू के सामने घूमता उसके सुगना के जबरदस्ती करीब जाने के विचार पानी के बुलबुले की तरह बिखर जाते ।

सोनू पूरी जी जान से अपनी परियों के आशियाने को सजाने में जुटा हुआ था और परियों की रानी सुगना कि उस अद्भुत और रसीली बुर को जीवंत बनाए रखने की संभावनाओं पर लगातार सोच विचार कर रहा था।

ऐसा न था कि आने वाले 1 सप्ताह की तैयारियां सिर्फ सोनू कर रहा था उधर बनारस में उसकी बहन सुगना भी लाली को उस प्रेम युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार कर रही थी…

"ए लाली तोर महीना कब आई रहे"


"काहे पुछत बाड़े.." लाली में सुगना के इस अप्रत्याशित प्रश्न पर एक और प्रश्न किया

"तोरा जौनपुर भी जाए के बा..भुला गईले का?" सुगना ने लाली के पेट पर चिकोटी काटते हुए कहा

"देखत बानी तू ज्यादा बेचैन बाड़ू …..का बात बा? अभी तो सोनुआ के भीरी ठेके ना देत रहलु हा और अब जौनपुर भेजें खातिर अकुताईल बाड़ू_

सुगना जब पकड़ी जाती थी तो अपनी खूबसूरत मुस्कुराहट और अपने स्पर्श से सामने वाले को मोहित कर लेती थी। उसने लाली की हथेली को अपनी गोद में लिया और उसकी बाहों को दबाते हुए बोली..

"अब जाता रे नू जौनपुर खूब सेवा करिए और करवाईहे हम ना रोकब टोकब "

लाली भी सुगना को छेड़ने के मूड में आ चुकी थी..

"ते हु चल ना कुछ ना करबे त देख देख कर मजा लीहे पहले भी तो देखलहीं बाड़े "

सुगना ने लाली की बाहें अपनी गोद से हटाकर दूर फेंकते हुए कहा

" लाली फालतू बात मत कर तोरा कारण ही सोनूवा के दिमाग खराब हो गईल रहे और ऊ कुल कांड भईल अब हमरा बारे में सोनूवा से कोनो बात मत करिहे_"

"हम कहां करीना तोरे सोनूवा बेचैन रहेला? का जाने ते का देखावले बाड़े और का चिखावले बाड़े" लाली ने अपनी नजर सुगना की भरी भरी चुचियों पर घुमाई और फिर उन्हें उसके सपाट पेट से होटी हुई जांघों के बीच तक ले गई। सुगना बखूबी लाली की नाचती हुई आंखों को देख रही थी।

"ई सब पाप ह.." सुगना ने अपनी आंखें बंद कर ऊपर छत की तरफ देखा और अपने अंतर्मन से चिर परिचित प्रतिरोध करने की कोशिश की..

"काहे पाप ह…?"लाली में पूछा । लाली तो जैसे वाद विवाद पर उतारू थी ..

"सोनूवा हमार अपना भाई हां भाई बहन के बीच ई कुल …छी कितना गंदा बात बा.."

सुगना की स्पष्ट और उचित बात ने लाली को भी सोचने पर मजबूर कर दिया और वह कुछ पलों के लिए चुप हो गई फिर उसने सुगना की हथेली पकड़ी और बोला

"काश सोनुआ तोर आपन भाई ना रहित.."

लाली की बात सुनकर सुगना अंदर ही अंदर सिहर उठी..लाली ने उसकी दुखती रग छेड़ दी थी.. अपने एकांत में न जाने सुगना कितनी बार यह बात सोचती थी..


सुगना से अब रहा न गया उसने लाली की बात में हां में हां मिलाते हुए कहा

" हां सच कहते बाड़े काश सोनुआ हमार भाई ना होके तोर भाई रहित.."

दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ी। लाली का कोई अपना सगा भाई न था। उसे इस रिश्ते की पवित्रता और मर्यादा का बोध न था उसने तो सोनू को ही अपना मुंहबोला भाई माना था परंतु जैसे-जैसे सोनू जवान होता गया उसने लाली को दिल से बहन न माना …

संबोधन और आकर्षण दोनों साथ-साथ बढ़ते रहे लाली दीदी के प्रति सोनू की आसक्ति समय के साथ बढ़ती गई और अब लाली और सोनू के संबंध अपनी अलग ऊंचाइयों पर थे…

" ते हमार बात घुमा दे ले लेकिन बतावाले हा ना कि महिनवा कब आई रहे…?

"मत घबरो .. अभी महीना आवे में 2 सप्ताह बा। अब ठीक बानू"


सुगना निश्चिंत हो गई उसे तो सिर्फ 1 हफ्ते की दरकार थी। उसके पश्चात लाली और सोनू लगातार साथ रहे या ना रहे उससे सुगना को कोई फर्क नही पड़ना था। परंतु सोनू की वासना और उसके जननांगों को जीवंत रखना सुगना की प्राथमिकता भी थी और धर्म भी। डॉक्टर ने जो दायित्व सुगना को दिया था वह उसे वह बखूबी निभा रही थी।

अचानक सुगना के मन में आया…

"ए लाली चल ना ढेर दिन भर उबटन लगावल जाओ.."

सुगना ने लाली के मन की बात कह दी थी । लाली स्वयं भी सोनू से जी भर चुदने किसे पहले अपने बदन को और मखमली करना चाह रही थी। दोनों सहेलियां सरसों का उबटन पीसने में लग गई…

आइए जब तक सुगना और लाली अपना उबटन पीसते हैं तब तक आपको लिए चलते हैं सलेमपुर जहां सरयू सिंह आज अपनी कोठरी की साफ सफाई कर रहे थे। यही वह कोठरी थी जहां सुगना की छोटी बहन सोनी अपने प्रेमी विकास से दीपावली की रात जमकर चुदी थी और हड़बड़ाहट में अपनी जालीदार लाल पेंटी अनजाने में ही सरयू सिंह के लिए उपहार स्वरूप छोड़ गई थी।


सरयू सिंह में उस लाल पेंटी और उसमें कैद होने वाले खूबसूरत नितंबों की कल्पना कर अपनी वासना को कई दिनों तक जवान रखा था और हस्तमैथुन कर अपने लंड को उसकी शक्ति याद दिलाते रहे थे। सोनी के मोहपाश में बंधे अपने मन में तरह-तरह के विचार और ख्वाब लिए वह उसका पीछा करते हुए बनारस भी पहुंच चुके थे। परंतु अब उनके मन में एक अजब सी कसक थी सोनी और विकास के रिश्ते के बाद उसके बारे में गलत सोचना न जाने उन्हें अब क्यों खराब लग रहा था। उनकी वासना अब भी सोनी को एक व्यभिचारी औरत काम पिपासु युवती के रूप में देखने को मजबूर करती परंतु पहले और अब का अंतर स्पष्ट था। जितने कामुक खयालों के साथ वह अपने विचारों में सोनी के साथ व्यभिचार करते थे वह उसकी धार अब कुंद पड़ रही थी सरयू सिंह ने सोनी के साथ जो वासनाजन्या कल्पनाएं की थी अब उन में अब बदलाव आ रहा था। शायद सोनी के प्रति उनका गुस्सा कुछ कम हो गया था।

सोनी को चोद पाने की उनकी तमन्ना धीरे-धीरे दम तोड़ रही थी जिस सुकन्या का विवाह अगले कुछ महीनों में होने वाला था वह भी विकास जैसे युवक से वह क्यों कर भला सरयू सिंह जैसे ढलती उम्र के व्यक्ति के पास सहर्ष चुदवाने के लिए आएगी…परंतु सरयू सिंह एक बात भूल रहे थे जांघों के बीच नियति ने उन्हें जो शक्ति प्रदान की थी वह अनोखी थी…

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उधर विद्यानंद के आश्रम में…


मोनी के कौमार्य परीक्षण के पश्चात उसे आश्रम के विशेष भाग में स्थानांतरित कर दिया गया था वहां उसकी उम्र की करीब दस और लड़कियां थी मोनी को सिर्फ इतना पता था कि वह आश्रम के विशेष सदस्यों की टोली में शामिल की गई थी जहां उसे एक विशेष साधना में लगना था।

नित्य कर्म के पश्चात सभी लड़कियां एक बड़ी सी कुटिया में आ चुकी थी सभी के शरीर पर एक श्वेत धवल वस्त्र था जो उनके अंग प्रत्यंग ओं को पूरी तरह आवरण दिए हुए था सभी लड़कियां नीचे बनी बिछी आशनी पर बैठ गई सामने चबूतरे पर आसनी बिछी हुई थी पर स्थान रिक्त था..

कुछ ही पलों में कुटिया में लगे ध्वनि यंत्र से एक आवाज सुनाई दी…आप सभी को एक विशेष साधना के लिए चुना गया है जिसमें आपका स्वागत है.. आप सबकी गुरु माधवी जी अब से कुछ देर बाद मंच पर विराजमान होंगी वही आपको आने वाले एक माह तक निर्देशित करेंगी । आप सब उनके दिशा निर्देशों का पालन करते हुए इस विशेष आश्रम में रहेंगी और अपनी साधना पूर्ण करेंगी कुछ कार्य आप सब को सामूहिक रूप में करना होगा कुछ टोलियों में और कुछ अकेले। माधवी जी हमेशा आप लोगों के बीच रहेंगी। आप सब अपनी आंखें बंद कर माधवी जी का इंतजार करें और उनके कहने पर ही अपनी आंखें खोलिएगा।

सभी लड़कियां विस्मित भाव से उस ध्वनि यंत्र को खोज रही थी जो न जाने कहां छुपा हुआ था। दिशा निर्देश स्पष्ट थे सभी लड़कियों ने आंखें बंद कर लीं और वज्रासन मुद्रा में बैठ गईं सामने मंच पर किसी के आने की आहट हुई परंतु लड़कियों ने निर्देशानुसार अपनी आंखें बंद किए रखी।


कुछ ही पलों बाद माधवी की मधुर आवाज सुनाई पड़ी

"आप सब अपनी आंखें खोल सकती हैं"


सभी लड़कियों ने अपनी आंखें धीरे-धीरे खोल दीं।

मोनी सामने पहली कतार में बैठी थी मंच पर एक सुंदर और बेहद खूबसूरत महिला को नग्न देखकर वह अचंभित रह गई। उसने अपने अगल-बगल लड़कियों को देखा सब की सब विस्मित भाव से माधवी को देख रही थी माधवी पूर्ण नग्न होकर वज्रासन में बैठी हुई थी और उसकी आंखें बंद थी दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जुड़े हुए थे और उसकी भरी-भरी चूचियां दोनों हाथों के बीच से निकलकर तनी हुई थी प्रणाम की मुद्रा में दोनों पंजे सटे हुए दोनों चुचियों के बीच आ गए थे। बेहद खूबसूरत दृश्य था….

माधवी ने भी अपनी आंखें खोली और सामने बैठी लड़कियों को संबोधित करते हुए बोली

"मेरा नाम माधवी है मैं आप की आगे की यात्रा में कुछ दूर तक आपके साथ रहूंगी …आप सब मेरे शरीर पर वस्त्र न देख कर हैरान हो रहे होंगे परंतु विधाता की बनाई इस दुनिया में वस्त्रों का सृजन पुरुषों और स्त्रियों के भेद को छुपाने के लिए ही हुआ था और यहां हम सब स्त्रियां ही हैं अतः हम सबके बीच किसी पर्दे की आवश्यकता नहीं है क्या आपने कभी गायों को बछियों को वस्त्र पहने देखा है?"


सभी माधवी की बातों को मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे एक तो माधवी बेहद खूबसूरत थी ऊपर से उसका कसा हुआ बदन उसके व्यक्तित्व में चार चांद लगा रहा था। भरी-भरी गोरी गोरी चूचीया और उस पर तने हुए गुलाबी निप्पल सभी लड़कियों को खुद अपने स्तनों को उस से तुलना करने पर मजबूर कर रहा था और निश्चित ही माधवी उन सब पर भारी थी। परंतु मोनी माधवी से होड़ लगाने को तैयार थी। सुगना की बहन होने का कुछ असर मोनी पर भी था।

आइए हम सब अपने एकवस्त्र को खोल कर यही कुटिया में छोड़ देंगे और शाम सूरज ढलने के पश्चात वापस अपने वस्त्र लेकर अपने अपने कमरों में चले जाएंगे। इसी प्रकार आने वाले 1 महीने तक हम सुबह सुबह यहां एकत्रित होंगे और प्रकृति के बीच रहकर अपनी साधना को पूरा करेंगे।

एक बात ध्यान रखिएगा यह साधना आप सबके लिए है और इस साधना में हुए अनुभव और सीख किसी और से साझा मत करिएगा दीवारों के भी कान होते हैं।


एक-एक करके सभी लड़कियों ने अपने श्वेत वस्त्र को अपने शरीर से उतार दिया और नग्न होने लगी मोनी आज पहली बार किसी के समक्ष नग्न हो रही थी नियति मोनी की काया पर से आवरण हटते हुए देख रही थी न जाने ऊपर वाले ने सारी सुंदरता पदमा की बेटियों को ही क्यों दे दी थी। एक से बढ़कर एक खूबसूरत और जवानी से भरपूर तीनों बहनें…

गोरी चिट्टी मोनी गांव में अपनी मां पदमा का हाथ बटाते बटाते शारीरिक रूप से सुदृढ़ हो गई थी। खेती किसानी और घरेलू कार्य करते करते उसके शरीर में कसाव आ चुका था और स्त्री सुलभ कोमलता उस कसे हुए शरीर को और खूबसूरत बना रही थी।

मोनी का वस्त्र उसके जांघों के जोड़ तक आ गया और उसकी खूबसूरत और अनछुई बुर माधवी की निगाहों के सामने आ गई और बरबस ही माधवी का ध्यान मोनी की बुर पर अटक गया मोनी के भगनासे के पास एक बड़ा सा तिल था…यह तिल निश्चित ही सब का ध्यान खींचने वाला था माधवी मंत्रमुग्ध होकर मोनी को देखे जा रही थी।

कुछ ही देर में कुछ ही देर में सभी कुदरती अवस्था में आ चुके थे और एक दूसरे से अपनी झिझक मिटाते हुए कुछ ही पलों में सामान्य हो गए थे। लड़कियों की जांघों के बीच वह खूबसूरत बुर आज खुली हवा में सांस ले रही थी.. और तनी हुई चूचियां उछल उछल कर लड़कियों को एक अलग ही एहसास करा रही थी.

आश्रम का यह भाग प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ था । जहां पर प्रकृति ने साथ न दिया था वहां लक्ष्मी जी के वैभव से वही प्राकृतिक सुंदरता कृत्रिम रूप से बना दी गई थी….

धूप खिली हुई थी और सभी नग्न लड़कियां कृत्रिम पर विशालकाय झरने के बीच आकर एक दूसरे से अठखेलियां करने लगी। कभी अपनी अंजुली में पानी लेकर एक दूसरे पर छिड़कती और अपनी बारी आने पर उसी पानी से बचने के लिए अपने चेहरे को इधर-उधर करती कभी अपने हाथों से अपने चेहरे और आंखों को ढकती…

प्रकृति की सुंदरता उफान पर थी आज अपनी ही बनाई खूबसूरत तरुणियों को अपनी आगोश में लिए हुए प्रकृति और भी खूबसूरत हो गई थी। आश्रम का यह भाग दर्शनीय था। हरे भरे उपवन में पानी का झरना और झरने में खेलती मादक यौवन से लबरेज उन्मुक्त होकर खेलती हुई युवतियां।

परंतु उस दिव्य दर्शन की इजाजत शायद किसी को न थी पर जो इस आश्रम का रचयिता था वह बखूबी इस दृश्य को देख रहा था….

आइए तरुणियो को अपने हाल पर छोड़ देते हैं और वापस आपको लिए चलते हैं बनारस में आपकी प्यारी सुगना के पास…

दोपहर का वक्त खाली था सारे बच्चे स्कूल जा चुके थे और सोनी भी.. अपने कॉलेज के लिए निकल चुकी थी वैसे भी अब उसका मन कॉलेज में ना लगता था जो पढ़ाई वह पढ़ रही थी अब वह उसके जीविकोपार्जन का साधन ना होकर एक शौक बन चुका था फिर भी जब सोनी ने इतनी मेहनत की थी वह इस अंतिम परीक्षा में सफल हो जाना चाहती थी…


घर के एकांत में लाली और सुगना उबटन लेकर अपने कमरे में थी..सुगना लाली के हाथ पैरों में उबटन लगा रही थी। धीरे धीरे सुगना के हाथ अपनी मर्यादा को लांघते हुए लाली की जांघों तक पहुंचने लगे।

लाली ने सुगना के स्पर्श में उत्तेजना महसूस की। और वह बीती रात की बात याद करने लगी जब सुगना ने पहली बार उसकी बुर को स्खलित किया था।

कुछ ही देर में लाली सुगना के समक्ष अर्धनग्न होती गई पेटीकोट सरकता सरकता लाली के नितंबों तक आ चुका था और उसके मादक नितंबों को बड़ी मुश्किल से छुपाने की कोशिश कर रहा था । लाली को अब सुगना से कोई शर्म न थी परंतु वह खुद ही अपनी पेटीकोट को और ऊपर करना नहीं चाह रही थी थी सुगना में लाली की जांघों पर पीले उबटन का लेप लगाया और धीरे-धीरे उसकी जांघों और पैरों की मालिश करने लगी सुगना ने मुस्कुराते हुए औंधे मुंह पड़ी लाली से कहा

"जा तारे नू जौनपुर… तोरा के बरियार(ताकतवर) कर देत बानी सोनूवा से हार मत मनीहे"

लाली का चेहरा सुगना से दूर था उसने बड़ी मुश्किल से अपनी गर्दन घुमाई फिर भी वह सुगना का चेहरा ना देख पाई जो उसके पैरों पर बैठी उसकी जांघों पर मालिश कर रही थी फिर भी लाली ने कहा…

"बड़ा तैयारी करावत बाड़े कुछ बात बा जरूर ….बतावत काहे नईखे?"

सुगना सुगना एक बार फिर निरुत्तर हुई परंतु अभी तो मामला गरम था सुगना ने उबटन उसके लाली के नितंबों के बीचो बीच उस गहरी घाटी में लगाते हुए बोला..

" जो अबकी सोनू छोड़ी ना…इतना चिकना दे तानी आगे से थक जयबे तो एकरो के मैदान में उतार दीहे।"

सुगना आज सचमुच नटखट होकर लाली को उकसा रही थी उसे पता था लाली राजेश के साथ अपने अगले और पिछले दोनों गलियों का आनंद ले चुकी थी… परंतु सोनू वह तो अभी सामने की दुनिया में ही खोया हुआ था..

सुगना की उत्तेजक बातें सुनकर लाली गर्म हो रही थी। मन में उत्तेजना होने पर स्पर्श और मालिश का सुख दुगना हो जाता है । लाली सुगना के उबटन लगाए जाने से खुश थी और उसका भरपूर आनंद ले रही थी।


नियति सुगना को अपने भाई सोनू के पुरूषत्व को बचाने के लिए अपनी सहेली लाली को तैयार करते हुए देख रही थी.. सच सुगना का प्यार निराला था।

लाली के बदन पर उबटन लगाते लगाते सुगना की आंखों के सामने वही दृश्य घूमने लगे जब सोनू लाली को चोद रहा था। जितना ही सुगना सोचती उतना ही स्वयं भी वासना के घेरे में घिरती।

लाली की पीठ और जांघों के पिछले भाग पर उबटन लगाने के बाद अब बारी लाली को पीठ के बल लिटा दिया और एक बार फिर उसके पैरों पर सामने की तरफ से उबटन लगाने लगी।


जब एक बार उबटन शरीर पर लग गया तो उसे छूड़ाने के लिए उस सुगना को मेहनत करनी ही थी। उसने दिल खोलकर लाली के शरीर पर लगे उबटन से रगड़ रगड़ कर मालिश करतीं रही। लाली सुगना की मालिश से अभिभूत होती रही।

बीच-बीच में दोनों सहेलियां एक दूसरे को छेड़तीं.. उत्तेजना सिर्फ लाली में न थी अपितु लाली के बदन को मसलते मसलते सुगना स्वयं उत्तेजना के आगोश में आ चुकी थी। पूरे शरीर में जहां तहां उबटन लग चुका और जैसे ही लाली के बदन से उबटन अलग हुआ… लाली ने सुगना को उसी बिस्तर पर लिटा दिया जिस पर वह अब से कुछ देर पहले लाली की मालिश कर रही थी…

" ई का करत बाड़े " सुगना ने लाली की पकड़ से छूटने की कोशिश की और खिलखिलाते हुए बोली

लाली ने कहा

" इतना सारा उबटन बाचल बा ले आओ तोहरो के लगा दी"

सुगना ना ना करती रही..


"ना ना मत कर" लाली ने सुगना के पेट और पैरों पर उबटन लपेट दिया और एक बार फिर वही दौर चल पड़ा बस स्थितियां बदल चुकी थी. लाली सुगना के पैरों पर बैठी सुगना की जांघों की मालिश कर रही थी और सुगना इस अप्रत्याशित स्थिति से बचने का प्रयास करने कर रही थी।

परंतु अब यह संभव न था नियति लाली और सुगना के बीच का प्यार देख रही थी… सोनू की दोनों बहने जाने अनजाने एक दूसरे को सोनू के लिए तैयार कर रही थीं


नियति सोनू के भाग्य पर रश्क कर रही थी। क्या होने वाला था? सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिए जौनपुर के अखाड़े में किसे कूदना था लाली को या सुगना को या दोनों बहने एक साथ मैदान में उतरने की तैयारी में थी…

उधर सोनू अपने हथियार को अपने हाथ में लिए उसे सब्र करने को समझा रहा था…और अपने इष्ट से लगातार मिन्नते कर रहा था …सुगना को पाने के लिए उसकी उसकी मांगे कुछ उचित थी कुछ अनुचित…. ईश्वर स्वयं उसकी अधीरता से तंग आ चुके थे और आखिरकार……

शेष अगले भाग में
Jabardast Lovely Bhai👌
 
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