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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Abhishek7250

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भाग 103

नियति मोनी को लेकर परेशान थी…जो सोनी को खोजती हुई बाहर सोनू की कोठरी के दरवाजे पर आ चुकी थी…जिसके अंदर सोनी अपने प्रेमी पति विकास के साथ……..धरती पर स्वर्ग के मजे लूट रही थी…

यदि मोनी ने हल्ला मचा दिया तब?….सरयू सिंह और सुगना के परिवार की इज्जत दांव पर लग गई थी…लाली अपराध बोध से ग्रस्त अब भी सुगना के कमरे में जाने में घबरा रही थी…सोनू पिछवाड़े में जाकर मुत्रत्याग कर रहा था और आगे होने वाले घटनाक्रम को अंदाज रहा था…


कुछ होने वाला था…अनिष्ट को आशंका से सोनू भी घबरा रहा था…

अब आगे…..

इस घटना की एकमात्र गवाह मोनी जो अपनी नंगी आंखों से देख चुकी थी कि सुगना और सोनू रिश्तो की मर्यादा को ताक पर रखकर अपनी जिस्मानी आग बुझा रहे थे फिर भी मोनी को यकीन नहीं हो रहा था।


वह एक बार फिर खुद को संतुलित कर उस छोटी सी खिड़की पर गई अंदर स्थिति और भी कामुक हो चुकी थी सोनू अब और तेजी से सुगना को चोद रहा था सुगना के पैर हवा में थे और कांप रहे थे.. पैरों में पहनी पाजेब के घुंघरू न जाने कौन सी ताल छेड़ रहे थे…

मोनी से और बर्दाश्त ना हुआ उसके शरीर में अजीब सी ऐठन हुई उसने आज पहली बार ऐसे दृश्य देखें थे उसे लगा जैसे उसका कलेजा मुंह को आ रहा था वह बेचैन हो गई.. सोनी बिस्तर पर पहले ही नहीं थी मोनी को कुछ सूझ नहीं रहा था।

अशांत मन एकांत में और भी अशांत हो जाता है.. मोनी को अब कमरे का एकांत चुभने लगा था.

अपनी बड़ी बहन सुगना और सोनू को चूदाई करते छोड़ वह सोनी की तलाश में कमरे से बाहर आ गई बाहर भी अंधेरा था…मोनी ने कमरे में जाकर अपनी टॉर्च निकाली और बाहर गलियारे में आ गई टॉर्च की रोशनी देखकर गलियारे में दूसरी तरफ खड़ी लाली सतर्क हो गई उसके मन में डर समा गया कि कहीं मोनी उसे इस अवस्था में देख ना ले।

लाली ने जो अपराध किया था उसका एहसास अब उसे हो चुका था अब वह पश्चाताप की आग में जल रही थी सुगना का प्रतिरोध उसने उसकी आवाज से महसूस कर लिया था.. निश्चित ही सुगना ने प्रतिरोध किया था..परंतु आगे के घटनाक्रम की उसे कोई जानकारी न थी सुगना और सोनू के बीच अंदर क्या घटा था यह उसकी उत्सुकता बढ़ा रहा था….

लाली कतई नहीं चाहती थी कि मोनी इस बात को लेकर कोई बतंगड़ करें.. लाली ने आंगन में बने पाए की ओट ले ली वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगी की मोनी सुगना के कमरे की तरफ न जाए। उस बेचारी को क्या पता था कि मोनी अपने सोनू भैया और सुगना दीदी की घनघोर चूदाई अपनी नंगी आंखों से देख कर आ रही है।

मोनी ने सोनी को ढूंढने की कोशिश की परंतु घर इतना बड़ा न था की मोनी को समय लगता.. मोनी ने गुसल खाने की तरफ टॉर्च मारी परंतु उसे दरवाजा खुला था, वहां कोई दिखाई न पड़ा इस मूसलाधार बारिश में वैसे भी वहां कौन जाता..

मोनी से रहा न गया वह आंगन से बाहर आकर सरयू सिंह की कोठरी के सामने आ गई जिसके अंदर सोनी और विकास अपनी रासलीला में लगे थे…मोनी के कानों में हल्के हल्के थप ..थप ….की आवाजें सुनाई देने लगी ऐसा लग रहा था जैसे कोई बच्चे की पीठ थपथपा रहा हो अंदर इतनी रात को कौन जगा हो सकता है…

अब जब मोनी के अंदर उत्सुकता जाग ही गई थी तो न जाने मोनी के मन में क्या आया उसने दरवाजे पर पहुंचकर सरयू सिंह के कमरे में टॉर्च की रोशनी मार दी।


उस जमाने में गांव में दरवाजों की गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं हुआ करती थी, लाख प्रयास करने के बावजूद बढ़ाई उनके बीच की दरार को ढक पाने में असफल रहता था। अंदर आ रही रोशनी से विकास और सोनी हक्के बक्के रह गए।

सोनी के गदराए नितंब खुली हवा में टॉर्च की रोशनी में चमकने लगे सोनी की चूचियां चौकी के ऊपर बिछी चादर को छू रही थी और सोनी की पतली कमर को पकड़े हुए विकास उससे सटा हुआ था…एकदम नंगा…। सोनी डॉगी स्टाइल में विकास से चुदवा रही थी परंतु टॉर्च की रोशनी पड़ने पर दोनों जड़ हो गए थे।

मोनी वासना के इस दोहरे आघात से विस्मित रह गई।

मोनी अपने ही घर में हो रहे तो दो व्यभिचार को देखकर विक्षिप्त सी हो गई …. उसके दिमाग ने काम करना पूरी तरह बंद कर दिया। दिन के उजाले में एक आदर्श भाई और बहन के रूप में रहने वाले सुगना और सोनू को बेहद आपत्तिजनक अवस्था में देखकर उसका मन पहले ही खट्टा हो चुका था और अब अपनी हम उम्र कुंवारी बहन सोनी को विकास जैसे अनजान मर्द से चुदवाते देख उसका विश्वास हिल गया था

क्या रात्रि का अंधेरा संबंधों को इतना काला कर देता है? क्या वासना की आग अविवाहित युवतियों को भी चुदने पर मजबूर कर देती है? क्या संभोग के लिए तथाकथित विवाह आवश्यक नहीं? क्या संभोग के लिए कोई रिश्ता कोई संबंध नहीं?

मोनी की नजरों में जहां एक तरफ विकास और सोनी दो अनजान व्यक्ति थे वहीं दूसरी तरफ सुगना और सोनू जो भाई बहन के पावन रिश्ते में बने थे और एक दूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे .. मोनी ने दोनों ही अवस्थाओं में संभोग को अपनी आंखों से देखा था उसे अब समाज द्वारा बनाए गए नियम और कानून दोहरे प्रतीत हो रहे थे एक तरफ बड़े बुजुर्गों द्वारा बताया गया ज्ञान और दूसरी तरफ रात के अंधेरे में किए जाने वाले कृत्य…

मोनी मर्माहत थी. सोनू और सूगना के बीच जो हुआ था वह कभी वह अपने सपनों में भी नहीं सोच सकती थी..सोनू और सुगना का भाई बहन प्रेम सबकी जुबां पर हमेशा रहता था.. और अब सोनू के एसडीएम बनने के बाद गांव और आसपास के लोगों की जुबां पर चढ़ एक मिसाल बन गया था।

न जाने कितने प्रश्न मोनी के दिमाग में घूमने लगे उसकी सांसे तेज होती चली गई उसने टॉर्च बंद किया और अपनी बढ़ती हुई सांसो की गति को काबू करते हुए वहां से हट गई।


लड़कियों का कौमार्य उसकी निगाहों में आज भी महत्वपूर्ण था। आज जब पहली बार उसकी बुर को पंडित के हरामी शिष्य ने देखा था तब से ही वह परेशान थी। परंतु इस रात के अंधेरे में उसने जो देखा था वह उसका दिलो-दिमाग पचा नहीं पा रहा था ..

मोनी ने तय कर लिया कि वह यह बात अपनी मां पदमा को जरूर बताएंगी बाहर अभी भी बारिश हो रही थी वह छज्जे की ओट लेकर अंधेरे में खड़ी हो गई और बारिश खत्म में होने का इंतजार करने लगी…


तभी आगन से सोनू अपनी बड़ी बहन और अपने ख्वाबों की मलिका सुगना को तृप्त कर बाहर निकल आया.. मोनी ने खुद को छिपा लिया ताकि वह सोनू की नजरों में ना आ सके ….

सोनू गुसल खाने तक जाना चाहता था परंतु बारिश की वजह से उसने वहां जाने का विचार त्याग दिया और छज्जे की ओट में खड़े होकर अपना खूंटे जैसा लैंड निकालकर पेशाब करने लगा…जो हो रही बारिश में विलीन हो धरा में समाताचला गया…

इसी दौरान सोनी और विकास का भी मिलन पूर्ण हुआ विकास ने अपनी प्रेमिका के लिए संचित श्वेत द्रव्य उसके शरीर पर छिड़ककर उसे नहलाने की कोशिश की परंतु शायद न उसके अंडकोशों में न इतना दम था और नहीं भागलपुरी केले में…

(जिन पाठकों को यह जानकारी नहीं है की भागलपुरी और भुसावल केले में क्या अंतर है वह गूगल कर सकते हैं)

परंतु सोनी उसे तो भुसावल के केले के बारे में अता पता ही नहीं था उसने भागलपुरी केले से ही संतुष्ट होना सीख लिया था…वैसे भी आज कई दिनों बाद उसकी बुर की अगन शांत हुई थी।


तृप्ति का एहसास लेकर सोनी वापस बाहर आई। वह अभी भी अगल-बगल टॉर्च जलाने वाले को देख रही थी परंतु वहां कोई न था। मोनी दीवाल के दूसरी तरफ छज्जे की ओट में छुपी हुई परंतु जैसे ही सोनी आगे बढ़ी.. उसका सामना सोनू से हो गया जो पेशाब कर वापस लौट रहा था…

तो क्या सोनू भैया ने टॉर्च मारी थी? सोनी शर्म से पानी पानी हो गई…उसे लगा जैसे वह दूसरी बार अपने सोनू भैया की निगाहों के सामने विकास से चुदवाती हुई पकड़ी गई थी।

उधर सोनी को अपने कपड़े ठीक कर देख औरअपने कमरे को खुला देख कर सोनू सारा माजरा समझ गया…

सोनी ने अपनी नजरें ना उठाई और तेज कदमों से आंगन में आकर अपनी कोठरी की तरफ चली गई.

अपने कमरे में मोनी को वहां न पाकर वह परेशान हो गई। परंतु सोनी ने खुद जो कार्य किया था उसके पकड़े जाने के डर से वह स्वयं घबराई हुई थी न जाने किसने उसे इस हाल में देखा होगा…

उधर मोनी ने जब यह देखा की सोनू और सोनी का आमना सामना हो चुका है उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि सोनू ने सोनी से कोई प्रश्न क्यों नहीं किया ? क्या विकास और सोनी के बीच बने जिस्मानी रिश्ते की जानकारी सोनू भैया को थी? कोई बड़ा भाई अपनी ही छोटी बहन को अपने दोस्त से चुदवाने के लिए कैसे भेज सकता है?

जब व्यभिचार हद पार कर जाता है उसे बता पाना बेहद कठिन और व्यर्थ होता है। मोनी को ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे कोई भी उसकी बात का विश्वास नहीं करेगा… सोनू और सुगना दोनों के बीच जो रिश्ता था उस रिश्ते पर कलंक लगाने वाले को खुद ही शक के दायरे में रख दिया जाता और उसका साथ देने विकास और सोनी भी आ जाते और खुद मोनी को ही पागल ठहरा दिया जाता….

मोनी ने अंततः कम से कम आज रात के लिए यह बात अपने सीने में दफन करने की सोच ली..

वह अपने मन में विचारों का तूफान लिए एक बार फिर अपने कमरे में आ गई बिस्तर पर करवट लेकर पड़ी हुई सोनी ने मोनी को कमरे में आते हुए महसूस किया। एक पल के लिए उसे लगा कहीं मोनी ने तो टॉर्च नहीं मारी थी। आखिर सोनू भैया ऐसा क्यों करेंगे? परंतु उसने कुछ भी बोलना उचित न समझा। सोनी और घबरा गई परन उसके मन में अब इस रिश्ते के उजागर होने को लेकर डर खत्म हो चुका था। उसे पता था सोनू भैया उसका हमेशा साथ देंगे।

अब कहने सुनने को रह कर ही क्या गया था…. यदि टॉर्च मारने वाली मोनी थी तो उसे अंदर चल रही गतिविधियों का पूरा अंदाजा हो ही गया होगा और यदि मोनी नहीं थी तो इस बारे में बात करने का कोई औचित्य भी न था।

सोनी को यह भी डर सता रहा था कहीं सरयू चाचा ने तो आकर टार्च नही जलाई थी? आखिर यह उनका कमरा था और उनके हिसाब से घर में दो युवा मर्द सो रहे थे उन्हें कमरे में आने जाने का नैतिक अधिकार था…

जब-वो यह बात सोचती उसके रोंगटे खड़े हो जाते सरयू सिंह अभी भी परिवार के मुखिया थे। सोनी को न जाने ऐसा क्यों लगता था जैसे वह उसे उतना नहीं पसंद करते हैं जितना वह सुगना दीदी को करते हैं? शायद इसमें उसे अपने आधुनिकता और आधुनिक विचारों का योगदान लगता। और अब आज यदि सरयू चाचा ने यदि उस अवस्था में देख लिया होगा तब ?

सोनी की सांसें उखड़ने लगी संभोग का आनंद काफूर हो गया था बदन टूट रहा था परंतु दिमाग में ड्रम बज रहे थे।

मोनी भी बिस्तर पर लेट जरूर गई परंतु अपने मन में चल रहे तूफान को शांत न कर पाई। अपने ही घर में हुए इस व्यभिचार को देखकर वह कुढ़ने लगी। वह किस मुंह से अपनी मां पदमा को यह बात बताएगी कि उनके कलेजे के दोनों टुकड़े सुगना और सोनू आपस में भाई बहन होने के बावजूद एक दूसरे से अपनी वासना शांत करने का पाप कर रहे है क्या उसकी मां पदमा इस घृणित पाप को सुन पाएगी…जब उसको पता चलेगा कि उसकी अविवाहित पुत्री सोनी एक अनजान मर्द से चुद रही है…वह कैसे इस बात को बचा पाएगी….. कहीं यह बात सुन वह हृदयाघात या पक्षाघात की शिकार ना हो जाए…

इस व्यभिचार को जानने के बाद उसका अपने परिवार से विश्वास हिल चुका था…उसने मन ही मन एक खतरनाक निर्णय ले लिया…

अंदर सुगना के कमरे में …वासना का तूफान खत्म हो चुका था। स्खलन के उपरांत कुछ क्षणों के लिए सुगना एक दम शांत और निर्विकार हो गई थी। परंतु कमरे से जाते समय जब सोनू ने सुगना के पैर छुए थे… सुगना के मन में अजीब सी घृणा उत्पन्न हुई थी…खुद के लिए भी और सोनू के लिए भी पर सोनू के लिए यह भाव एकदम अलग था। अपने जिस छोटे भाई को वह दिलो जान से प्यार करती थी आज उसने रिश्तो की मर्यादा को तार-तार कर दिया था। सुगना इस घटना के लिए सोनू को जिम्मेदार अवश्य मानती थी परंतु उससे भी ज्यादा वह खुद को दोष दे रही थी.. सुगना जानती थी अपने ही भाई सोनू को वासना के आगोश में अपने सपनों और दिवास्वप्नों में याद कर स्खलित होना पाप था। सुगना ने अपना गुनाह अब स्वीकार्य कर लिया था और और अपने आपको पाप के बोझ तले दबा महसूस कर रही थी…


सुगना की आंखों से ग्लानि के आंसू और करिश्माई बुर से सोनू का पाप बह रहा था…

एक तरफ सुगना सरयू सिंह के वीर्य को सप्रेम अपने शरीर और चुचियों पर स्वीकार करती थी…परंतु आज उसकी बुर से रिस रहा सोनू का वीर्य उसे असहज कर रहा था। सुगना ने अपनी बुर को निचोड़ निचोड़ कर सोनू के वीर्य को बाहर फेंकने की कोशिश की परंतु सुगना के दामन पर दाग लग चुका था और सोनू ने जिस गहराई को तक अपने वीर्य को जा कर छोड़ा था वहां से उसे निकाल पाना असंभव था…

नियति सुगना को देख रही थी यह वही सुगना थी जब उसने सरयू सिंह को अपने भीतर स्खलित होने लिए विवश किया था और अपनी दोनों जांघों को ऊंचा कर अपनी दिए रूपी चूत में सरयू सिंह के तेल रूपी वीर्य को संजोकर रखने की कोशिश की थी ताकि वह गर्भवती हो सके और आज वह सोनू के वीर्य का एक-एक कतरा अपने शरीर से अलग कर देना चाहती थी …

सुगना का ध्यान अभी सिर्फ और सिर्फ अपने किए गए पाप पर था उसे अपने आज हुए अद्भुत स्खलन के आनंद का ध्यान भी नहीं आ रहा था…

मन में आया हुआ दुख सारी खुशियों को भी अपने आगोश में ले लेता है…

आज स्खलन के अंतिम क्षणों में सुगना ने जिस आनन्द और तृप्ति की अनुभूति की थी वह दिव्य था…इतना आनंद इतनी तृप्ति शायद सुगना को आज से पहले कभी नहीं मिली थी…युवा सोनू निश्चित ही सरयू सिंह पर भारी था….

सुगना की नाइटी कमर के चारों तरफ इकट्ठी हो गई थी.. चूदाई के दौरान हवा में उठें नितंबों में नाइटी को कमर तक आकर इकट्ठा होने के लिए मजबूर कर दिया था जो अब कोमलांगी सुगना की कमर में चुभ रही थी…सुगना ने अपनी कमर उठाने की कोशिश की और कमर के नीचे इकट्ठा हो चुकी नाइटी को खींच कर अपने नितंबों के नीचे कर दिया और धीरे-धीरे.. नाइटी ने सुगना की जांघों को ढक लिया….

सुगना के वक्षस्थल अब भी खुले हुए थे सुगना ने नाइटी के ऊपरी भाग को भी एक दूसरे के पास लाकर बटन लगाने की कोशिश की परंतु वह ऐसा न कर पाई.. बटन नाइटी का साथ छोड़ चुके थे सोनू की व्यग्रता ने उन्हें नाइटी से अलग कर दिया था। सुगना ने पास पड़ी चादर अपने शरीर पर डाली और करवट लेकर लेट गई …इसी दौरान लाली सकुचाती धीरे-धीरे कमरे के अंदर आई और बिना कुछ बोले सुगना के बगल में लेट गई।

एक दूसरे को जी भर प्यार करने वाले दोनों सहेलियां एक दूसरे की तरफ पीठ कर अपने हृदय में न जाने कितने बुरे विचार लिए …अपनी सोच में डूबी हुई थी..

जब दिल और दिमाग में विचारों का झंझावात चल रहा हो आंखों के बंद होने पर यह और भी उग्र हो जाता है और आपकी बेचैनी को और भी ज्यादा बढ़ा देता है..

सुगना और लाली की पलकें कभी बंद होती कभी खुल जाती नींद आंखों से दूर थी।

उधर सोनू ने कुछ समय बाहर बिताया शायद वह विकास को वापस सामान्य अवस्था में आने का मौका दे रहा था…और फिर जाकर विकास के बगल में ही लेट गया यहां भी दोनों दोस्तों की पीठ एक दूसरे के तरफ ही थी…

सिर्फ विकास ही ऐसा शख्स था जिसके मन में सबसे कम उथल-पुथल थी उसे सिर्फ एक ही बात का डर था कि यदि उसे संभोग रत अवस्था में देखने वाले व्यक्ति ने इसे जगजाहिर कर दिया तो? परंतु वह मन ही मन इसके लिए भी तैयार था। उसने सोनी को मन से अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया था और उसे समाज के सामने अपनाने में भी उसे कोई दिक्कत न थी…

कुछ ही देर में विकास को नींद आ गई। परंतु …सुगना के परिवार के सारे युवा जाग रहे थे…

पूर्ण प्रेम और समर्पण के साथ किया गया संभोग एक सुखद नींद प्रदान करता है विकास सो रहा था परंतु अंदर सुगना के कमरे में आज जो हुआ था उसने सुगना और सोनू के आंखों की नींद हर ली थी।

रात्रि बीतने में एक और प्रहर था परंतु उसे बिता पाना कठिन हो रहा था करवट बदलना भी शायद मुमकिन न था कोई किसी का सामना नहीं करना चाह रहा था…

समय सब चीजों की धार कुंद कर देता है विचारों की भी दुखों की भी और सुख की भी…धीरे धीरे हर व्यक्ति अपने विचारों के निष्कर्ष पर पहुंचता गया रात्रि का अंधेरा बीत गया और सूर्योदय की लालिमा ने सरयू सिंह के आंगन में भी रोशनी बिखेर दी…

पदमा सोनी को झकझोर कर उठा रही थी

" अरे मोनी कहां बीया…. बताओले बिया कहां गइल बीया?"

सोनी की आंख बमुश्किल लगी थी वह हड़बड़ा कर उठ गई और लापरवाही से बोली "हमरा नइखे मालूम बाथरूम में देखलू हा? शायद नींद में होने की वजह से सोनी पदमा के चेहरे की व्यग्रता नहीं देख पाई…

पदमा परेशान हो गई…. दरअसल पदमा मोनी को उन सभी संभावित जगहों पर पहले ही देख आई थी जहां उसके होने की संभावना थी और अब सोनी से कोई उचित उत्तर न मिलने से उसकी व्यग्रता चरम पर आ चुकी थी। आवाज मैं व्यग्रता ने अब उग्रता का रूप ले लिया था वह चीखने लगी.

"अरे मोनिया कहा चल गइल" जैसे-जैसे आवाज बढ़ती गई आंगन में भीड़ बढ़ती गई । सुगना को छोड़कर घर की बाकी महिलाएं और करीबी रिश्तेदार आगन में इकट्ठा हो गए थे..

कजरी ने सोनी से कहा..

"सोनी जाकर सोनू के जगाव त"

सोनी उसी कमरे में गई जहां अब से कुछ घंटों पहले वह जम कर चुदी थी…सोनू और विकास दोनों ही वहां पर न थे…सोनी ने आकर यह खबर अंदर दी।

महिलाओं की बेचैनी चरम पर थी..। उस समय कुछ समस्याओं का निदान सिर्फ और सिर्फ पुरुष वर्ग ही कर सकता था। मोनी का इस तरह से घर से कहीं चले जाना किसी को समझ नहीं आ रहा था.. सभी संभावित स्थानों पर मोनी की तलाश हो चुकी थी…

तभी सरयू सिंह हाथ में लोटा लिए अपने खेत खलिहान घूम कर वापस आ रहे थे उन्हें आज भी खुली हवा में नित्यक्रिया पसंद था..

आंगन से ही सरयू सिंह की एक झलक देखकर कजरी भागती हुई उनके पास गई और उन्हें मोनी के न मिलने की सूचना दी…

पदमा भी अपना चेहरा घूंघट में छुपाए उनके सामने आ चुकी थी और बोली…

"सोनू भी नहीं लौकत (दिखाई पड़ना) खेत ओर दिखल रहे का?"

सरयू सिंह ने अपनी गंभीर आवाज में कहा

" सोनू और विकास बनारस गईल बाड़े लोग। कहले हा आज रात के ना ता काल सुबह आ जाएब… विकास के कोनो जरूरी काम रहल हा"

सरयू सिंह के आगमन में घर की महिलाओं को थोड़ी तसल्ली हुई सोनू और विकास के बारे में जानकर उनकी उत्सुकता भी शांत हो गई.. परंतु मिट्टी से अपने हाथ और लोटे को माज रहे सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूम रहा था।

आखिर यह मोनी कहां गई होगी? उनके दिमाग में अनिष्ट की आशंका प्रबल होती गई ऐसा तो नहीं की मोनी घर के बाहर शौच आदि के लिए गई हो और गांव के किसी मनचले ने उसे ….

सरयू सिंह फटाफट अपने कमरे में आए कमरे में आए और अपनी धोती और कुर्ता पहनने लगे…दिमाग मोनी में लगा हुआ था… अचानक उन्हें अपनी चौकी के सिरहाने एक लाल वस्त्र दिखाई दिया…जो उपेक्षित सा जमीन पर पड़ा था…

वह वस्त्र सहज ही ध्यान आकर्षित करने वाला था सरयू सिंह के दिमाग में आज भी लाल रंग की अहमियत थी उनका मन आज भी उतना ही रंगीन था यह अलग बात है कि अपने और सुगना के संबंधों को जानने के बाद उनकी कामुकता और वासना पर एक चादर सी पड़ गई थी। परंतु ऊपर दिख रही राख के नीचे अभी भी आग बाकी थी.. सरयू सिंह ने झुककर वह लाल कपड़ा उठा लिया और उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा …वह लाल रंग का वस्त्र एक खूबसूरत जालीदार पेंटी थी…

वह पेंटी निहायत ही खूबसूरत थी.. जिस रेशम के कपड़े से वह बनाई गई थी वह न तो सलेमपुर में मिल सकता था और न हीं बनारस में।


एक पल के लिए अपनी जिम्मेदारियों को भूल सरयू सिंह अपनी वासना में खो गए.. आखिर यह किसकी पेंटी थी…?

एक-एक करके सरयू सिंह ने घर में उपस्थित सभी महिलाओं का ध्यान किया…पेंटी का आकार देख वह इस में आने वाले नितंबों की कल्पना करने लगे और उनकी निगाहों ने उस युवती की कल्पना कर ली…

उन्हें पता था की इस घर में सिर्फ और सिर्फ एक ही थी जो अपनी आधुनिकता पर आज भी पैसे खर्च करती थी…वह थी सोनी…

सरयू सिंह का दिमाग ब्योमकेश बक्शी की तरह चलने लगा… कहते हैं ना .. है नाआए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास..

उन्हें ढूंढने था मोनी को परंतु वह उस खूबसूरत पेंटी में कुछ फलों के लिए खो गए। अचानक उनका ध्यान पेंटी में लगे सफेद रेशमी स्टीकर पर गया उन्होंने अपनी आंखें फाड़ कर उसे पढ़ने की कोशिश की …और कुल मिलाकर वह उसमें मेड इन यू एस ए शब्द खोज पाए।

तभी कजरी ने आवाज दी..

"जल्दी करीं सब परेशान बा." सरयू सिंह उस पेंटी को कजरी को दिखाना नहीं चाहते थे। उन्होंने वह लाल पैंटी अपने कुर्ते की जेब में रख ली और अपनी लाठी लेकर बाहर आ गए।

अब तक उनका साथी हरिया भी आ चुका था। दोनों लोग मोनी की तलाश में निकल पड़े …परंतु सरयू सिंह के दिमाग में कुछ और प्रश्न भी घूमने लगे …

तो क्या यह पेंटी विकास लाया था …पर किसके लिए … उन्होंने प्रश्न खुद से ही पूछा और उत्तर उनके मन ने तुरंत उत्तर भी हाजिर कर दिया। वह विकास और सोनी को पहले भी दीपावली की रात साथ देख चुके थे और उनके मन में सोनी को लेकर उपजी वासना अपना आकार बड़ा रही थी।

सोनी की आधुनिकता और उसका लड़कों से मिलना जुलना सरयू सिंह को कतई रास ना आता…. उन्हें संस्कारी और गुणवती लड़की ठीक सुगना जैसी ही पसंद आती…. यह अलग बात है कि कुछ वर्ष पूर्व बंद कमरे में अपने वासना की आगोश में वह सुगना में वही आधुनिकता और अलहड़ता खोजने लगते थे। सरयू सिंह अपने इस दोहरे चरित्र को न जाने कब से जी रहे थे।

सरयू सिंह और हरिया ने गांव के सभी संभावित स्थलों पर जाकर मोनी की पूछताछ की परंतु लोगों को यह एहसास न होने दिया कि मोनी गायब हो चुकी है…परंतु कोई सुराग हाथ ना लगा वह धीरे-धीरे वह गांव के बाहर आ गए …कुछ ही दूर पर रेलवे स्टेशन था न जाने सरयू सिंह के मन में क्या आया वह स्टेशन की तरफ जाने लगे हरे भरे खेतों के बीच सरयू सिंह और उनके पीछे हरिया…

तभी गांव का एक और अधेड़ जो शायद स्टेशन पर अपने किसी परिचित को छोड़कर वापस आ रहा था सरयू सिंह से सरयू सिंह के सामने आया

का भैया सवेरे सवेरे कहां जा तारा..?

"अरे तरकारी (सब्जी) लेवे जा तनी.."

सरयू सिंह ने उसके प्रश्न का सही उत्तर न दिया अपितु एक मीठा झूठ बोल कर जान छुड़ाने की कोशिश की.. हरिया आश्चर्यचकित था कि सरयू भैया ने बेवजह झूठ क्यों बोला…

सरयू सिंह यह बात बखूबी जानते थे की उस व्यक्ति का काम खबरों को इधर से उधर फैलाना था। मोनी के गायब होने की बात यदि समाज में आ जाती तो निश्चित ही उनकी इज्जत दांव पर लग जाती।

सरयू सिंह ने मोनी को हरसंभव जगह ढूंढा परंतु कोई भी सुराग हाथ ना लगा…

थके मांदे सरयू सिंह आखिरकार आखिरकार थाने पहुंचे और मोनी की गुम शुदगी की तहरीर दे दी…

पुलिस विभाग वैसे तो कुछ लोगों की निगाह में एक भ्रष्ट और निकम्मा तंत्र है परंतु आदमी मजबूर होने के बाद उसी का सहारा लेने पहुंचता है ..

दोपहर बाद सरयू सिंह अपने घर पहुंचे.. चेहरा उतरा हुआ था…आंगन में सन्नाटा पसरा हुआ था ऐसा लग रहा था जैसे घर में किसी की मृत्यु हो गई हो मोनी के न मिलने का दुख स्पष्ट था… सरयू सिंह अपनी कोठरी में गए जहां सुगना अकेले गुमसुम बैठी हुई थी…

सुगना की स्थिति देखकर सरयू सिंह सन्न्न रह गए…

चौकी पर सुगना अपने दोनों घुटने जुड़े हुए और उस पर सिर टिकाए बाहर निर्विकार भाव से देखती हुई न जाने क्या सोच रही थी… उसकी दाहिनी कलाई पर एक कपड़ा बंधा हुआ था… चेहरे पर घनघोर उदासी.. खिला खिला और सब में स्फूर्ति भर देने वाला वह सुंदर चेहरा आज उदास था.. सुगना के सुंदर और कोमल होठ थोड़े फूले हुए थे…जिस तरह मालिक अपनी बछिया को देखकर उसके दर्द का अनुमान लगा लेता है सरयू सिंह ने भी सुगना का मन पढ़ने की कोशिश की ..

"का भईल सुगना ई हाथ में का बांधले बाड़ू?

सरयू सिंह को देखकर सुगना ने उनके सम्मान में उठना चाहा परंतु सरयू सिंह ने उसे रोक लिया और कहा

" बैठल रहा..बताव ना का भईल बा?"

सुगना की आंखों के सामने एक बार फिर वह दृश्य घूम गया जब सोनू ने अपने मजबूत हाथों से उसकी कलाइयों को सर के ऊपर ले जाकर दबा रखा था…

न जाने सुगना के मन में क्या आया वह उठी और सरयू सिंह से लिपट गई…आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी सरयू सिंह पूरी तरह सुगना के दुख में डूब गए। उन्हे उसके दुख का कारण तो न पता था परंतु सुगना के सर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने सुगना से बारंबार कारण जानने की कोशिश की और आखिर सुगना ने अपने लब खोले..


शेष अगले भाग में…
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Abhishek7250

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भाग 103

नियति मोनी को लेकर परेशान थी…जो सोनी को खोजती हुई बाहर सोनू की कोठरी के दरवाजे पर आ चुकी थी…जिसके अंदर सोनी अपने प्रेमी पति विकास के साथ……..धरती पर स्वर्ग के मजे लूट रही थी…

यदि मोनी ने हल्ला मचा दिया तब?….सरयू सिंह और सुगना के परिवार की इज्जत दांव पर लग गई थी…लाली अपराध बोध से ग्रस्त अब भी सुगना के कमरे में जाने में घबरा रही थी…सोनू पिछवाड़े में जाकर मुत्रत्याग कर रहा था और आगे होने वाले घटनाक्रम को अंदाज रहा था…


कुछ होने वाला था…अनिष्ट को आशंका से सोनू भी घबरा रहा था…

अब आगे…..

इस घटना की एकमात्र गवाह मोनी जो अपनी नंगी आंखों से देख चुकी थी कि सुगना और सोनू रिश्तो की मर्यादा को ताक पर रखकर अपनी जिस्मानी आग बुझा रहे थे फिर भी मोनी को यकीन नहीं हो रहा था।


वह एक बार फिर खुद को संतुलित कर उस छोटी सी खिड़की पर गई अंदर स्थिति और भी कामुक हो चुकी थी सोनू अब और तेजी से सुगना को चोद रहा था सुगना के पैर हवा में थे और कांप रहे थे.. पैरों में पहनी पाजेब के घुंघरू न जाने कौन सी ताल छेड़ रहे थे…

मोनी से और बर्दाश्त ना हुआ उसके शरीर में अजीब सी ऐठन हुई उसने आज पहली बार ऐसे दृश्य देखें थे उसे लगा जैसे उसका कलेजा मुंह को आ रहा था वह बेचैन हो गई.. सोनी बिस्तर पर पहले ही नहीं थी मोनी को कुछ सूझ नहीं रहा था।

अशांत मन एकांत में और भी अशांत हो जाता है.. मोनी को अब कमरे का एकांत चुभने लगा था.

अपनी बड़ी बहन सुगना और सोनू को चूदाई करते छोड़ वह सोनी की तलाश में कमरे से बाहर आ गई बाहर भी अंधेरा था…मोनी ने कमरे में जाकर अपनी टॉर्च निकाली और बाहर गलियारे में आ गई टॉर्च की रोशनी देखकर गलियारे में दूसरी तरफ खड़ी लाली सतर्क हो गई उसके मन में डर समा गया कि कहीं मोनी उसे इस अवस्था में देख ना ले।

लाली ने जो अपराध किया था उसका एहसास अब उसे हो चुका था अब वह पश्चाताप की आग में जल रही थी सुगना का प्रतिरोध उसने उसकी आवाज से महसूस कर लिया था.. निश्चित ही सुगना ने प्रतिरोध किया था..परंतु आगे के घटनाक्रम की उसे कोई जानकारी न थी सुगना और सोनू के बीच अंदर क्या घटा था यह उसकी उत्सुकता बढ़ा रहा था….

लाली कतई नहीं चाहती थी कि मोनी इस बात को लेकर कोई बतंगड़ करें.. लाली ने आंगन में बने पाए की ओट ले ली वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगी की मोनी सुगना के कमरे की तरफ न जाए। उस बेचारी को क्या पता था कि मोनी अपने सोनू भैया और सुगना दीदी की घनघोर चूदाई अपनी नंगी आंखों से देख कर आ रही है।

मोनी ने सोनी को ढूंढने की कोशिश की परंतु घर इतना बड़ा न था की मोनी को समय लगता.. मोनी ने गुसल खाने की तरफ टॉर्च मारी परंतु उसे दरवाजा खुला था, वहां कोई दिखाई न पड़ा इस मूसलाधार बारिश में वैसे भी वहां कौन जाता..

मोनी से रहा न गया वह आंगन से बाहर आकर सरयू सिंह की कोठरी के सामने आ गई जिसके अंदर सोनी और विकास अपनी रासलीला में लगे थे…मोनी के कानों में हल्के हल्के थप ..थप ….की आवाजें सुनाई देने लगी ऐसा लग रहा था जैसे कोई बच्चे की पीठ थपथपा रहा हो अंदर इतनी रात को कौन जगा हो सकता है…

अब जब मोनी के अंदर उत्सुकता जाग ही गई थी तो न जाने मोनी के मन में क्या आया उसने दरवाजे पर पहुंचकर सरयू सिंह के कमरे में टॉर्च की रोशनी मार दी।


उस जमाने में गांव में दरवाजों की गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं हुआ करती थी, लाख प्रयास करने के बावजूद बढ़ाई उनके बीच की दरार को ढक पाने में असफल रहता था। अंदर आ रही रोशनी से विकास और सोनी हक्के बक्के रह गए।

सोनी के गदराए नितंब खुली हवा में टॉर्च की रोशनी में चमकने लगे सोनी की चूचियां चौकी के ऊपर बिछी चादर को छू रही थी और सोनी की पतली कमर को पकड़े हुए विकास उससे सटा हुआ था…एकदम नंगा…। सोनी डॉगी स्टाइल में विकास से चुदवा रही थी परंतु टॉर्च की रोशनी पड़ने पर दोनों जड़ हो गए थे।

मोनी वासना के इस दोहरे आघात से विस्मित रह गई।

मोनी अपने ही घर में हो रहे तो दो व्यभिचार को देखकर विक्षिप्त सी हो गई …. उसके दिमाग ने काम करना पूरी तरह बंद कर दिया। दिन के उजाले में एक आदर्श भाई और बहन के रूप में रहने वाले सुगना और सोनू को बेहद आपत्तिजनक अवस्था में देखकर उसका मन पहले ही खट्टा हो चुका था और अब अपनी हम उम्र कुंवारी बहन सोनी को विकास जैसे अनजान मर्द से चुदवाते देख उसका विश्वास हिल गया था

क्या रात्रि का अंधेरा संबंधों को इतना काला कर देता है? क्या वासना की आग अविवाहित युवतियों को भी चुदने पर मजबूर कर देती है? क्या संभोग के लिए तथाकथित विवाह आवश्यक नहीं? क्या संभोग के लिए कोई रिश्ता कोई संबंध नहीं?

मोनी की नजरों में जहां एक तरफ विकास और सोनी दो अनजान व्यक्ति थे वहीं दूसरी तरफ सुगना और सोनू जो भाई बहन के पावन रिश्ते में बने थे और एक दूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे .. मोनी ने दोनों ही अवस्थाओं में संभोग को अपनी आंखों से देखा था उसे अब समाज द्वारा बनाए गए नियम और कानून दोहरे प्रतीत हो रहे थे एक तरफ बड़े बुजुर्गों द्वारा बताया गया ज्ञान और दूसरी तरफ रात के अंधेरे में किए जाने वाले कृत्य…

मोनी मर्माहत थी. सोनू और सूगना के बीच जो हुआ था वह कभी वह अपने सपनों में भी नहीं सोच सकती थी..सोनू और सुगना का भाई बहन प्रेम सबकी जुबां पर हमेशा रहता था.. और अब सोनू के एसडीएम बनने के बाद गांव और आसपास के लोगों की जुबां पर चढ़ एक मिसाल बन गया था।

न जाने कितने प्रश्न मोनी के दिमाग में घूमने लगे उसकी सांसे तेज होती चली गई उसने टॉर्च बंद किया और अपनी बढ़ती हुई सांसो की गति को काबू करते हुए वहां से हट गई।


लड़कियों का कौमार्य उसकी निगाहों में आज भी महत्वपूर्ण था। आज जब पहली बार उसकी बुर को पंडित के हरामी शिष्य ने देखा था तब से ही वह परेशान थी। परंतु इस रात के अंधेरे में उसने जो देखा था वह उसका दिलो-दिमाग पचा नहीं पा रहा था ..

मोनी ने तय कर लिया कि वह यह बात अपनी मां पदमा को जरूर बताएंगी बाहर अभी भी बारिश हो रही थी वह छज्जे की ओट लेकर अंधेरे में खड़ी हो गई और बारिश खत्म में होने का इंतजार करने लगी…


तभी आगन से सोनू अपनी बड़ी बहन और अपने ख्वाबों की मलिका सुगना को तृप्त कर बाहर निकल आया.. मोनी ने खुद को छिपा लिया ताकि वह सोनू की नजरों में ना आ सके ….

सोनू गुसल खाने तक जाना चाहता था परंतु बारिश की वजह से उसने वहां जाने का विचार त्याग दिया और छज्जे की ओट में खड़े होकर अपना खूंटे जैसा लैंड निकालकर पेशाब करने लगा…जो हो रही बारिश में विलीन हो धरा में समाताचला गया…

इसी दौरान सोनी और विकास का भी मिलन पूर्ण हुआ विकास ने अपनी प्रेमिका के लिए संचित श्वेत द्रव्य उसके शरीर पर छिड़ककर उसे नहलाने की कोशिश की परंतु शायद न उसके अंडकोशों में न इतना दम था और नहीं भागलपुरी केले में…

(जिन पाठकों को यह जानकारी नहीं है की भागलपुरी और भुसावल केले में क्या अंतर है वह गूगल कर सकते हैं)

परंतु सोनी उसे तो भुसावल के केले के बारे में अता पता ही नहीं था उसने भागलपुरी केले से ही संतुष्ट होना सीख लिया था…वैसे भी आज कई दिनों बाद उसकी बुर की अगन शांत हुई थी।


तृप्ति का एहसास लेकर सोनी वापस बाहर आई। वह अभी भी अगल-बगल टॉर्च जलाने वाले को देख रही थी परंतु वहां कोई न था। मोनी दीवाल के दूसरी तरफ छज्जे की ओट में छुपी हुई परंतु जैसे ही सोनी आगे बढ़ी.. उसका सामना सोनू से हो गया जो पेशाब कर वापस लौट रहा था…

तो क्या सोनू भैया ने टॉर्च मारी थी? सोनी शर्म से पानी पानी हो गई…उसे लगा जैसे वह दूसरी बार अपने सोनू भैया की निगाहों के सामने विकास से चुदवाती हुई पकड़ी गई थी।

उधर सोनी को अपने कपड़े ठीक कर देख औरअपने कमरे को खुला देख कर सोनू सारा माजरा समझ गया…

सोनी ने अपनी नजरें ना उठाई और तेज कदमों से आंगन में आकर अपनी कोठरी की तरफ चली गई.

अपने कमरे में मोनी को वहां न पाकर वह परेशान हो गई। परंतु सोनी ने खुद जो कार्य किया था उसके पकड़े जाने के डर से वह स्वयं घबराई हुई थी न जाने किसने उसे इस हाल में देखा होगा…

उधर मोनी ने जब यह देखा की सोनू और सोनी का आमना सामना हो चुका है उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि सोनू ने सोनी से कोई प्रश्न क्यों नहीं किया ? क्या विकास और सोनी के बीच बने जिस्मानी रिश्ते की जानकारी सोनू भैया को थी? कोई बड़ा भाई अपनी ही छोटी बहन को अपने दोस्त से चुदवाने के लिए कैसे भेज सकता है?

जब व्यभिचार हद पार कर जाता है उसे बता पाना बेहद कठिन और व्यर्थ होता है। मोनी को ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे कोई भी उसकी बात का विश्वास नहीं करेगा… सोनू और सुगना दोनों के बीच जो रिश्ता था उस रिश्ते पर कलंक लगाने वाले को खुद ही शक के दायरे में रख दिया जाता और उसका साथ देने विकास और सोनी भी आ जाते और खुद मोनी को ही पागल ठहरा दिया जाता….

मोनी ने अंततः कम से कम आज रात के लिए यह बात अपने सीने में दफन करने की सोच ली..

वह अपने मन में विचारों का तूफान लिए एक बार फिर अपने कमरे में आ गई बिस्तर पर करवट लेकर पड़ी हुई सोनी ने मोनी को कमरे में आते हुए महसूस किया। एक पल के लिए उसे लगा कहीं मोनी ने तो टॉर्च नहीं मारी थी। आखिर सोनू भैया ऐसा क्यों करेंगे? परंतु उसने कुछ भी बोलना उचित न समझा। सोनी और घबरा गई परन उसके मन में अब इस रिश्ते के उजागर होने को लेकर डर खत्म हो चुका था। उसे पता था सोनू भैया उसका हमेशा साथ देंगे।

अब कहने सुनने को रह कर ही क्या गया था…. यदि टॉर्च मारने वाली मोनी थी तो उसे अंदर चल रही गतिविधियों का पूरा अंदाजा हो ही गया होगा और यदि मोनी नहीं थी तो इस बारे में बात करने का कोई औचित्य भी न था।

सोनी को यह भी डर सता रहा था कहीं सरयू चाचा ने तो आकर टार्च नही जलाई थी? आखिर यह उनका कमरा था और उनके हिसाब से घर में दो युवा मर्द सो रहे थे उन्हें कमरे में आने जाने का नैतिक अधिकार था…

जब-वो यह बात सोचती उसके रोंगटे खड़े हो जाते सरयू सिंह अभी भी परिवार के मुखिया थे। सोनी को न जाने ऐसा क्यों लगता था जैसे वह उसे उतना नहीं पसंद करते हैं जितना वह सुगना दीदी को करते हैं? शायद इसमें उसे अपने आधुनिकता और आधुनिक विचारों का योगदान लगता। और अब आज यदि सरयू चाचा ने यदि उस अवस्था में देख लिया होगा तब ?

सोनी की सांसें उखड़ने लगी संभोग का आनंद काफूर हो गया था बदन टूट रहा था परंतु दिमाग में ड्रम बज रहे थे।

मोनी भी बिस्तर पर लेट जरूर गई परंतु अपने मन में चल रहे तूफान को शांत न कर पाई। अपने ही घर में हुए इस व्यभिचार को देखकर वह कुढ़ने लगी। वह किस मुंह से अपनी मां पदमा को यह बात बताएगी कि उनके कलेजे के दोनों टुकड़े सुगना और सोनू आपस में भाई बहन होने के बावजूद एक दूसरे से अपनी वासना शांत करने का पाप कर रहे है क्या उसकी मां पदमा इस घृणित पाप को सुन पाएगी…जब उसको पता चलेगा कि उसकी अविवाहित पुत्री सोनी एक अनजान मर्द से चुद रही है…वह कैसे इस बात को बचा पाएगी….. कहीं यह बात सुन वह हृदयाघात या पक्षाघात की शिकार ना हो जाए…

इस व्यभिचार को जानने के बाद उसका अपने परिवार से विश्वास हिल चुका था…उसने मन ही मन एक खतरनाक निर्णय ले लिया…

अंदर सुगना के कमरे में …वासना का तूफान खत्म हो चुका था। स्खलन के उपरांत कुछ क्षणों के लिए सुगना एक दम शांत और निर्विकार हो गई थी। परंतु कमरे से जाते समय जब सोनू ने सुगना के पैर छुए थे… सुगना के मन में अजीब सी घृणा उत्पन्न हुई थी…खुद के लिए भी और सोनू के लिए भी पर सोनू के लिए यह भाव एकदम अलग था। अपने जिस छोटे भाई को वह दिलो जान से प्यार करती थी आज उसने रिश्तो की मर्यादा को तार-तार कर दिया था। सुगना इस घटना के लिए सोनू को जिम्मेदार अवश्य मानती थी परंतु उससे भी ज्यादा वह खुद को दोष दे रही थी.. सुगना जानती थी अपने ही भाई सोनू को वासना के आगोश में अपने सपनों और दिवास्वप्नों में याद कर स्खलित होना पाप था। सुगना ने अपना गुनाह अब स्वीकार्य कर लिया था और और अपने आपको पाप के बोझ तले दबा महसूस कर रही थी…


सुगना की आंखों से ग्लानि के आंसू और करिश्माई बुर से सोनू का पाप बह रहा था…

एक तरफ सुगना सरयू सिंह के वीर्य को सप्रेम अपने शरीर और चुचियों पर स्वीकार करती थी…परंतु आज उसकी बुर से रिस रहा सोनू का वीर्य उसे असहज कर रहा था। सुगना ने अपनी बुर को निचोड़ निचोड़ कर सोनू के वीर्य को बाहर फेंकने की कोशिश की परंतु सुगना के दामन पर दाग लग चुका था और सोनू ने जिस गहराई को तक अपने वीर्य को जा कर छोड़ा था वहां से उसे निकाल पाना असंभव था…

नियति सुगना को देख रही थी यह वही सुगना थी जब उसने सरयू सिंह को अपने भीतर स्खलित होने लिए विवश किया था और अपनी दोनों जांघों को ऊंचा कर अपनी दिए रूपी चूत में सरयू सिंह के तेल रूपी वीर्य को संजोकर रखने की कोशिश की थी ताकि वह गर्भवती हो सके और आज वह सोनू के वीर्य का एक-एक कतरा अपने शरीर से अलग कर देना चाहती थी …

सुगना का ध्यान अभी सिर्फ और सिर्फ अपने किए गए पाप पर था उसे अपने आज हुए अद्भुत स्खलन के आनंद का ध्यान भी नहीं आ रहा था…

मन में आया हुआ दुख सारी खुशियों को भी अपने आगोश में ले लेता है…

आज स्खलन के अंतिम क्षणों में सुगना ने जिस आनन्द और तृप्ति की अनुभूति की थी वह दिव्य था…इतना आनंद इतनी तृप्ति शायद सुगना को आज से पहले कभी नहीं मिली थी…युवा सोनू निश्चित ही सरयू सिंह पर भारी था….

सुगना की नाइटी कमर के चारों तरफ इकट्ठी हो गई थी.. चूदाई के दौरान हवा में उठें नितंबों में नाइटी को कमर तक आकर इकट्ठा होने के लिए मजबूर कर दिया था जो अब कोमलांगी सुगना की कमर में चुभ रही थी…सुगना ने अपनी कमर उठाने की कोशिश की और कमर के नीचे इकट्ठा हो चुकी नाइटी को खींच कर अपने नितंबों के नीचे कर दिया और धीरे-धीरे.. नाइटी ने सुगना की जांघों को ढक लिया….

सुगना के वक्षस्थल अब भी खुले हुए थे सुगना ने नाइटी के ऊपरी भाग को भी एक दूसरे के पास लाकर बटन लगाने की कोशिश की परंतु वह ऐसा न कर पाई.. बटन नाइटी का साथ छोड़ चुके थे सोनू की व्यग्रता ने उन्हें नाइटी से अलग कर दिया था। सुगना ने पास पड़ी चादर अपने शरीर पर डाली और करवट लेकर लेट गई …इसी दौरान लाली सकुचाती धीरे-धीरे कमरे के अंदर आई और बिना कुछ बोले सुगना के बगल में लेट गई।

एक दूसरे को जी भर प्यार करने वाले दोनों सहेलियां एक दूसरे की तरफ पीठ कर अपने हृदय में न जाने कितने बुरे विचार लिए …अपनी सोच में डूबी हुई थी..

जब दिल और दिमाग में विचारों का झंझावात चल रहा हो आंखों के बंद होने पर यह और भी उग्र हो जाता है और आपकी बेचैनी को और भी ज्यादा बढ़ा देता है..

सुगना और लाली की पलकें कभी बंद होती कभी खुल जाती नींद आंखों से दूर थी।

उधर सोनू ने कुछ समय बाहर बिताया शायद वह विकास को वापस सामान्य अवस्था में आने का मौका दे रहा था…और फिर जाकर विकास के बगल में ही लेट गया यहां भी दोनों दोस्तों की पीठ एक दूसरे के तरफ ही थी…

सिर्फ विकास ही ऐसा शख्स था जिसके मन में सबसे कम उथल-पुथल थी उसे सिर्फ एक ही बात का डर था कि यदि उसे संभोग रत अवस्था में देखने वाले व्यक्ति ने इसे जगजाहिर कर दिया तो? परंतु वह मन ही मन इसके लिए भी तैयार था। उसने सोनी को मन से अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया था और उसे समाज के सामने अपनाने में भी उसे कोई दिक्कत न थी…

कुछ ही देर में विकास को नींद आ गई। परंतु …सुगना के परिवार के सारे युवा जाग रहे थे…

पूर्ण प्रेम और समर्पण के साथ किया गया संभोग एक सुखद नींद प्रदान करता है विकास सो रहा था परंतु अंदर सुगना के कमरे में आज जो हुआ था उसने सुगना और सोनू के आंखों की नींद हर ली थी।

रात्रि बीतने में एक और प्रहर था परंतु उसे बिता पाना कठिन हो रहा था करवट बदलना भी शायद मुमकिन न था कोई किसी का सामना नहीं करना चाह रहा था…

समय सब चीजों की धार कुंद कर देता है विचारों की भी दुखों की भी और सुख की भी…धीरे धीरे हर व्यक्ति अपने विचारों के निष्कर्ष पर पहुंचता गया रात्रि का अंधेरा बीत गया और सूर्योदय की लालिमा ने सरयू सिंह के आंगन में भी रोशनी बिखेर दी…

पदमा सोनी को झकझोर कर उठा रही थी

" अरे मोनी कहां बीया…. बताओले बिया कहां गइल बीया?"

सोनी की आंख बमुश्किल लगी थी वह हड़बड़ा कर उठ गई और लापरवाही से बोली "हमरा नइखे मालूम बाथरूम में देखलू हा? शायद नींद में होने की वजह से सोनी पदमा के चेहरे की व्यग्रता नहीं देख पाई…

पदमा परेशान हो गई…. दरअसल पदमा मोनी को उन सभी संभावित जगहों पर पहले ही देख आई थी जहां उसके होने की संभावना थी और अब सोनी से कोई उचित उत्तर न मिलने से उसकी व्यग्रता चरम पर आ चुकी थी। आवाज मैं व्यग्रता ने अब उग्रता का रूप ले लिया था वह चीखने लगी.

"अरे मोनिया कहा चल गइल" जैसे-जैसे आवाज बढ़ती गई आंगन में भीड़ बढ़ती गई । सुगना को छोड़कर घर की बाकी महिलाएं और करीबी रिश्तेदार आगन में इकट्ठा हो गए थे..

कजरी ने सोनी से कहा..

"सोनी जाकर सोनू के जगाव त"

सोनी उसी कमरे में गई जहां अब से कुछ घंटों पहले वह जम कर चुदी थी…सोनू और विकास दोनों ही वहां पर न थे…सोनी ने आकर यह खबर अंदर दी।

महिलाओं की बेचैनी चरम पर थी..। उस समय कुछ समस्याओं का निदान सिर्फ और सिर्फ पुरुष वर्ग ही कर सकता था। मोनी का इस तरह से घर से कहीं चले जाना किसी को समझ नहीं आ रहा था.. सभी संभावित स्थानों पर मोनी की तलाश हो चुकी थी…

तभी सरयू सिंह हाथ में लोटा लिए अपने खेत खलिहान घूम कर वापस आ रहे थे उन्हें आज भी खुली हवा में नित्यक्रिया पसंद था..

आंगन से ही सरयू सिंह की एक झलक देखकर कजरी भागती हुई उनके पास गई और उन्हें मोनी के न मिलने की सूचना दी…

पदमा भी अपना चेहरा घूंघट में छुपाए उनके सामने आ चुकी थी और बोली…

"सोनू भी नहीं लौकत (दिखाई पड़ना) खेत ओर दिखल रहे का?"

सरयू सिंह ने अपनी गंभीर आवाज में कहा

" सोनू और विकास बनारस गईल बाड़े लोग। कहले हा आज रात के ना ता काल सुबह आ जाएब… विकास के कोनो जरूरी काम रहल हा"

सरयू सिंह के आगमन में घर की महिलाओं को थोड़ी तसल्ली हुई सोनू और विकास के बारे में जानकर उनकी उत्सुकता भी शांत हो गई.. परंतु मिट्टी से अपने हाथ और लोटे को माज रहे सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूम रहा था।

आखिर यह मोनी कहां गई होगी? उनके दिमाग में अनिष्ट की आशंका प्रबल होती गई ऐसा तो नहीं की मोनी घर के बाहर शौच आदि के लिए गई हो और गांव के किसी मनचले ने उसे ….

सरयू सिंह फटाफट अपने कमरे में आए कमरे में आए और अपनी धोती और कुर्ता पहनने लगे…दिमाग मोनी में लगा हुआ था… अचानक उन्हें अपनी चौकी के सिरहाने एक लाल वस्त्र दिखाई दिया…जो उपेक्षित सा जमीन पर पड़ा था…

वह वस्त्र सहज ही ध्यान आकर्षित करने वाला था सरयू सिंह के दिमाग में आज भी लाल रंग की अहमियत थी उनका मन आज भी उतना ही रंगीन था यह अलग बात है कि अपने और सुगना के संबंधों को जानने के बाद उनकी कामुकता और वासना पर एक चादर सी पड़ गई थी। परंतु ऊपर दिख रही राख के नीचे अभी भी आग बाकी थी.. सरयू सिंह ने झुककर वह लाल कपड़ा उठा लिया और उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा …वह लाल रंग का वस्त्र एक खूबसूरत जालीदार पेंटी थी…

वह पेंटी निहायत ही खूबसूरत थी.. जिस रेशम के कपड़े से वह बनाई गई थी वह न तो सलेमपुर में मिल सकता था और न हीं बनारस में।


एक पल के लिए अपनी जिम्मेदारियों को भूल सरयू सिंह अपनी वासना में खो गए.. आखिर यह किसकी पेंटी थी…?

एक-एक करके सरयू सिंह ने घर में उपस्थित सभी महिलाओं का ध्यान किया…पेंटी का आकार देख वह इस में आने वाले नितंबों की कल्पना करने लगे और उनकी निगाहों ने उस युवती की कल्पना कर ली…

उन्हें पता था की इस घर में सिर्फ और सिर्फ एक ही थी जो अपनी आधुनिकता पर आज भी पैसे खर्च करती थी…वह थी सोनी…

सरयू सिंह का दिमाग ब्योमकेश बक्शी की तरह चलने लगा… कहते हैं ना .. है नाआए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास..

उन्हें ढूंढने था मोनी को परंतु वह उस खूबसूरत पेंटी में कुछ फलों के लिए खो गए। अचानक उनका ध्यान पेंटी में लगे सफेद रेशमी स्टीकर पर गया उन्होंने अपनी आंखें फाड़ कर उसे पढ़ने की कोशिश की …और कुल मिलाकर वह उसमें मेड इन यू एस ए शब्द खोज पाए।

तभी कजरी ने आवाज दी..

"जल्दी करीं सब परेशान बा." सरयू सिंह उस पेंटी को कजरी को दिखाना नहीं चाहते थे। उन्होंने वह लाल पैंटी अपने कुर्ते की जेब में रख ली और अपनी लाठी लेकर बाहर आ गए।

अब तक उनका साथी हरिया भी आ चुका था। दोनों लोग मोनी की तलाश में निकल पड़े …परंतु सरयू सिंह के दिमाग में कुछ और प्रश्न भी घूमने लगे …

तो क्या यह पेंटी विकास लाया था …पर किसके लिए … उन्होंने प्रश्न खुद से ही पूछा और उत्तर उनके मन ने तुरंत उत्तर भी हाजिर कर दिया। वह विकास और सोनी को पहले भी दीपावली की रात साथ देख चुके थे और उनके मन में सोनी को लेकर उपजी वासना अपना आकार बड़ा रही थी।

सोनी की आधुनिकता और उसका लड़कों से मिलना जुलना सरयू सिंह को कतई रास ना आता…. उन्हें संस्कारी और गुणवती लड़की ठीक सुगना जैसी ही पसंद आती…. यह अलग बात है कि कुछ वर्ष पूर्व बंद कमरे में अपने वासना की आगोश में वह सुगना में वही आधुनिकता और अलहड़ता खोजने लगते थे। सरयू सिंह अपने इस दोहरे चरित्र को न जाने कब से जी रहे थे।

सरयू सिंह और हरिया ने गांव के सभी संभावित स्थलों पर जाकर मोनी की पूछताछ की परंतु लोगों को यह एहसास न होने दिया कि मोनी गायब हो चुकी है…परंतु कोई सुराग हाथ ना लगा वह धीरे-धीरे वह गांव के बाहर आ गए …कुछ ही दूर पर रेलवे स्टेशन था न जाने सरयू सिंह के मन में क्या आया वह स्टेशन की तरफ जाने लगे हरे भरे खेतों के बीच सरयू सिंह और उनके पीछे हरिया…

तभी गांव का एक और अधेड़ जो शायद स्टेशन पर अपने किसी परिचित को छोड़कर वापस आ रहा था सरयू सिंह से सरयू सिंह के सामने आया

का भैया सवेरे सवेरे कहां जा तारा..?

"अरे तरकारी (सब्जी) लेवे जा तनी.."

सरयू सिंह ने उसके प्रश्न का सही उत्तर न दिया अपितु एक मीठा झूठ बोल कर जान छुड़ाने की कोशिश की.. हरिया आश्चर्यचकित था कि सरयू भैया ने बेवजह झूठ क्यों बोला…

सरयू सिंह यह बात बखूबी जानते थे की उस व्यक्ति का काम खबरों को इधर से उधर फैलाना था। मोनी के गायब होने की बात यदि समाज में आ जाती तो निश्चित ही उनकी इज्जत दांव पर लग जाती।

सरयू सिंह ने मोनी को हरसंभव जगह ढूंढा परंतु कोई भी सुराग हाथ ना लगा…

थके मांदे सरयू सिंह आखिरकार आखिरकार थाने पहुंचे और मोनी की गुम शुदगी की तहरीर दे दी…

पुलिस विभाग वैसे तो कुछ लोगों की निगाह में एक भ्रष्ट और निकम्मा तंत्र है परंतु आदमी मजबूर होने के बाद उसी का सहारा लेने पहुंचता है ..

दोपहर बाद सरयू सिंह अपने घर पहुंचे.. चेहरा उतरा हुआ था…आंगन में सन्नाटा पसरा हुआ था ऐसा लग रहा था जैसे घर में किसी की मृत्यु हो गई हो मोनी के न मिलने का दुख स्पष्ट था… सरयू सिंह अपनी कोठरी में गए जहां सुगना अकेले गुमसुम बैठी हुई थी…

सुगना की स्थिति देखकर सरयू सिंह सन्न्न रह गए…

चौकी पर सुगना अपने दोनों घुटने जुड़े हुए और उस पर सिर टिकाए बाहर निर्विकार भाव से देखती हुई न जाने क्या सोच रही थी… उसकी दाहिनी कलाई पर एक कपड़ा बंधा हुआ था… चेहरे पर घनघोर उदासी.. खिला खिला और सब में स्फूर्ति भर देने वाला वह सुंदर चेहरा आज उदास था.. सुगना के सुंदर और कोमल होठ थोड़े फूले हुए थे…जिस तरह मालिक अपनी बछिया को देखकर उसके दर्द का अनुमान लगा लेता है सरयू सिंह ने भी सुगना का मन पढ़ने की कोशिश की ..

"का भईल सुगना ई हाथ में का बांधले बाड़ू?

सरयू सिंह को देखकर सुगना ने उनके सम्मान में उठना चाहा परंतु सरयू सिंह ने उसे रोक लिया और कहा

" बैठल रहा..बताव ना का भईल बा?"

सुगना की आंखों के सामने एक बार फिर वह दृश्य घूम गया जब सोनू ने अपने मजबूत हाथों से उसकी कलाइयों को सर के ऊपर ले जाकर दबा रखा था…

न जाने सुगना के मन में क्या आया वह उठी और सरयू सिंह से लिपट गई…आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी सरयू सिंह पूरी तरह सुगना के दुख में डूब गए। उन्हे उसके दुख का कारण तो न पता था परंतु सुगना के सर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने सुगना से बारंबार कारण जानने की कोशिश की और आखिर सुगना ने अपने लब खोले..


शेष अगले भाग में…
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GC Kumar

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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
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Thank you Bhai
 

raniaayush

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आपका अंतर्मन आपके विचारों को नियंत्रित करता है। सुगना के प्रति सोनू के अनोखे प्यार ने बंगले का सबसे खूबसूरत कमरा सुगना को देने पर मजबूर कर दिया था।

यद्यपि दोनों ही कमरे खूबसूरत थे परंतु जो अंतर लाली और सुगना में था वही अंतर उनके कमरों में भी स्पष्ट नजर आ रहा था।

आपको पढ़ने के बाद मैं लगता है
मनोवैज्ञानिक हो जाऊंगा। मन में चलने वाली बातों को शब्दों में उतार देने की आपकी कला बहुत अच्छी लगती है।
 
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