भाग 121
सोनू की आखों में वासना के लाल डोरे देख सुगना शर्म से पानी पानी हो गई और अपने स्वभाव बस उसकी आंखें बंद हो गईं। सोनू कुछ देर सुगना के खूबसूरत चेहरे को देखता रहा सुगना शर्म से पानी पानी होती रही।
सुगना से और बर्दाश्त ना हुआ उसने अपनी बाहें सोनू के गर्दन में डाल दी और उसे अपनी तरफ खींच लिया इशारा स्पष्ट था योद्धा सोनू को अपनी बड़ी बहन द्वारा दुर्ग भेदन का आदेश प्राप्त हो चुका था…
अब आगे….
जैसे ही लंड के सुपाड़े ने सुगना की बुर् के होठों को फैलाकर उस में डुबकी लगाई सुगना के शरीर में 440 वोल्ट का करंट दौड़ गया उसका अंग प्रत्यंग एक अलग किस्म की संवेदना से भर गये।
सुगना सोनू से वह बेतहाशा प्यार करती थी पर आज जो हो रहा था प्यार का वह रूप अनूठा था अलग था।
जितनी आसानी से सुगना के बुर के होठों ने सोनू के लंड का स्वागत किया था आगे का रास्ता उतना आसान न था। एबॉर्शन के दौरान सुगना की योनि निश्चित ही घायल हुई थी और पिछले कुछ दिनों में दवाइयों के प्रयोग से वह स्वस्थ अवश्य हुई थी परंतु उसमें संकुचन भी हुआ था।
शायद इसी वजह से डॉक्टर ने उसे भरपूर संभोग करने की सलाह दी थी जिससे योनि के आकार और आचरण को सामान्य किया जा सके।
इन सब बातों से अनजान सोनू अपने सपनों की गहरी और पवित्र गुफा में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। अद्भुत अहसास था….अपनी दीदी को भरपूर शारीरिक सुख देने का पावन विचार लिए सोनू सुगना से एकाकार हो रहा था।
पुरुषों का लंड संवेदना शून्य होता है जहां वह प्रवेश कर रहा होता है उसकी स्वामिनी की दशा दिशा सुख दुख से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे सिर्फ और सिर्फ चिकनी संकरी और तंग कोमल गलियों में उसे घूमने में आनंद आता है।
सोनू के लंड को निश्चित ही सुगना की बुर का कसाव भा रहा था। सुगना की मांसल और कोमल बुर से रिस रही लार सोनू के लंड को रास्ता दिखा रही थी परंतु जैसे ही सुगना की योनि ने थोड़ा अवरोध देने की कोशिश की लंड बेचैन हो गया..
सोनू ने अपने लंड से दबाव बढ़ाना शुरू किया और सुगना की मुट्ठियां भीचतीं चली गई पर उससे भी राहत न मिली। सुगना को सोनू का वह मासूम सा लंड अचानक की लोहे की मोटी गर्म सलाख जैसा महसूस हुआ। वह कभी बिस्तर पर पड़ी सपाट चादर को अपनी उंगलियों से पकड़ने की कोशिश करती कभी अपनी पैर की उंगलियों को फैलाकर उस दर्द को सहने की कोशिश करती जो अब सोनू के लंड के भीतर जाने से वह महसूस कर रही थी।
सोनू अपनी बहन को कभी भी यह कष्ट नहीं देना चाहता था। परंतु वासना से भरा हुआ सोनू का लंड अपनी उत्तेजना रोक ना पाया और सुगना की बुर के प्रतिरोध को दरकिनार करते हुए गहराई तक उतर गया। सुगना कराह उठी…
"सोनू बाबू ….. आह……तनी धीरे से …..दुखाता…"
सुगना की कराह में प्यार भी था दर्द भी था पर उत्तेजना का अंश शायद कुछ कम था। अपनी बड़ी बहन की उस पवित्र ओखली में उतरने का जो आनंद सोनू ने प्राप्त किया था वह बेहद अहम था सोनू का रोम-रोम प्रफुल्लित हो उठा था और लंड उस गहरे दबाव के बावजूद उछल रहा था। परंतु अपनी बहन सुगना की उस कराह ने सोनू को कुछ पलों के लिए रुकने पर मजबूर कर दिया और सोनू ने अपने लंड को ना सिर्फ रोक लिया अपितु उसे धीरे-धीरे बाहर करने लगा।
सुगना ने सोनू की प्रतिक्रिया को बखूबी महसूस किया और अपने भाई की इस संवेदनशीलता को देखकर वह उस पर मोहित हो गई उसने अपना सर उठा कर एक बार फिर सोनू के होठों को चूम लिया..
सोनू यह बात भली-भांति जानता था की कुदरत ने उसे एक अनूठे और ताकतवर लंड से नवाजा है जो युवतियों की उत्तेजना को चरम पर ले जाने तथा संभोग के दौरान मीठा मीठा दर्द देने में काबिल था।
सुगना की कराह से उसे यकीन हो गया की सुगना दीदी को निश्चित ही कुदरत का यह सुख पूरी तरह प्राप्त नहीं हुआ है। वैसे भी उसके जीजा साल में दो मर्तबा ही गांव आया करते थे सोनू की निगाह में सुगना की अतृप्त युवती वाली छवि घूमती चली गई। उसे यह कतई आभास न था कि सुगना सरयू सिंह के दिव्य लंड का स्वाद कई दिनों तक ले चुकी है जो सोनू से कतई कमतर ना था। और तो और वह प्यार की इस विधा की मास्टरनी बन चुकी है। सोनू अपनी भोली बहन को हर सुख देना चाह रहा था पर ..धीरे.. धीरे .
सोनू ने एक बार फिर अपने लंड के सुपाड़े को सुगना की बुर में थोड़ा थोड़ा आगे पीछे करने लगा।
जितनी उत्तेजना सोनू को थी सुगना की उत्तेजना उससे कम न थी। सोनू को बुर के बाहरी हिस्से पर खेलते देख सुगना मैं एक बार फिर हिम्मत जुटाई और सोनू के गाल को प्यार से सहलाने लगी। सोनू ने सुगना के गालों को चूमते हुए अपने होठों को उसके कानों तक ले जाकर बोला
" दीदी एक बार फिर से…. दुखाई त बता दीहा.. अबकी बार धीरे-धीरे…"
सुगना ने सोनू के गालों पर चुंबन लेकर उसे आगे बढ़ने का मूक संदेश दे दिया..
सोनू ने अपने लंड से सुगना की बुर की संकुचित दीवारों को फैलाना शुरू किया और धीरे-धीरे लंड सुगना की बुर में प्रवेश करता चला गया। सुगना सोनू के होठों को चूमते हुए अपने दर्द को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी और उसका भाई कभी उसके कंधों को सहलाता कभी अपने हाथ नीचे ले जाकर उसकी पीठ को सहलाता।
सुगना के वस्ति प्रदेश में भूचाल मचा हुआ था। सोनू के लंड ने बुर में प्रवेश कर एक आक्रांता की तरह हलचल मचा दी थी। सुगना की बुर और उसके होठों से रिस रही लार जयचंद की भांति सोनू के लंड को अंदर आने और दुर्गभेदन का मार्ग दिखा रही थी और अंदर सुगना की बुर की दीवारें सोनू के लंड का मार्ग रोकने की कोशिश कर रही थीं। परंतु विजय सोनू और सुगना के प्यार की होनी थी सो हुई।
सोनू के लंड ने सुगना के गर्भाशय को चूम लिया और सुगना के गर्भ ग्रह पर एक दमदार दस्तक दी सुगना चिहुंक उठी। सोनू का पूरा लंड सुगना दीदी की प्यारी बुर में जड़ तक धंस चुका था अब और अब न आगे जाने का रास्ता ना था न ही सोनू के लंड में और दम।
अपनी बुर् के ठीक ऊपर सोनू के लंड के पस की हड्डी का दबाव महसूस कर सुगना संतुष्ट हो गई की वह सोनू का पूरा लंड आत्मसात कर चुकी है और आगे किसी और दर्द की संभावना नहीं है…
नियति प्रकृति के इस निर्माण को देख अचंभित थी। दो अलग अलग पुरुषों के अंश से जन्मी दो खुबसूरत कलाकृतियां एक दूसरे की पूरक थी। दोनों के कामांग जैसे एक दूसरे के लिए ही बने थे।
निश्चित ही पद्मा ने इन दोनों को जन्म देकर अद्भुत कार्य किया था। अन्यथा उन दोनों इस प्रकार मिलन और प्यार का यह अनूठा रूप शायद ही देखने को मिलता।
दोनों भाई बहन इस दुर्ग भेदन की खुशी मनाने लगे। सुगना की आंखों में छलक आया दर्द अब धीरे-धीरे गायब होने लगा। कुछ पलों के लिए तनाव में आया सुगना का चेहरा अब सामान्य हो रहा था। सोनू उसी अवस्था में कुछ देर अपने लंड से सुगना की बुर की हलचल को महसूस करता रहा।
जब सुगना सामान्य हुई एक बार सोनू ने फिर कहा "दीदी अब ठीक लागत बा नू_
सोनू बार-बार सुगना को दीदी संबोधित कर रहा था। सुगना स्वयं आज असमंजस में थी। इस अवस्था में दीदी शब्द का संबोधन कभी उसे असहज करता कभी उत्तेजित।
सुगना ने सुगना ने अपने मन में उपजे प्रश्न का उत्तर स्वयं अपनी अंतरात्मा से पूछा और उसने महसूस किया की इन आत्मीय संबोधन से उसे निश्चित ही उत्तेजना मिलती थी। पहले भी संभोग के दौरान सरयू सिंह जब भी उसे सुगना बाबू और कभी-कभी सुगना बेटा पुकारते पता नहीं क्यों उसके तन बदन में एक अजीब सी लहर दौड़ जाया करती थी और आज भी जब सोनू उसे दीदी बोल रहा था उसके बदन में एक अजब सी हलचल होती यह अनुभव उसे अपने पति रतन के साथ कभी भी ना महसूस होता था। शायद यही वह वजह थी की सुगना को अपने पति रतन के साथ कई मर्तबा संभोग करने के बाद भी उसे चरम सुख कभी भी प्राप्त ना हुआ था। फिर भी वर्तमान में शारीरिक रूप से नग्न सुगना अपने छोटे भाई सोनू के सामने वैचारिक रूप से नग्न नहीं होना चाहती थी।
सोनू के प्रश्न का सुगना ने कोई जवाब न दिया…पर स्वयं अपनी बुर को थोड़ा आगे पीछे संकुचित कर सोनू के धंसे हुए लंड को और आरामदायक स्थिति में लाने का प्रयास करने लगी…
"दीदी बताउ ना?"
"का बताई…" नटखट सुगना ने अपने मन के भाव को दबाते हुए अपनी आंखें खोली और सोनू की आंखों में देखते हुए बोली…सुगना सोनू की बड़ी बहन थी वह उसकी आंखों की भाषा भी समझता था.
सोनू अपनी बड़ी बहन से जो पूछना चाह रहा था शायद वह वासना का अतिरेक था। संभोग के दौरान कामुक वार्तालाप संभोग को और अधिक उत्तेजक बना देते हैं परंतु सुगना अभी कामुक वार्तालाप के लिए तैयार न थी।
बरहाल सोनू ने अपने लंड में हलचल की और उसे थोड़ा सा बाहर खींच लिया.. सुगना की आंखों में विस्मय भाव आए उसने अपनी आंखें खोल कर सोनू की आंखों में झांकने की कोशिश की जैसे पूछना चाह रही हो क्या हुआ सोनू..
भाई बहन दोनों एक दूसरे को बखूबी समझते थे.. सुगना के प्रश्न का सोनू में उत्तर दिया और वापस अपने लंड को सुगना की बुर में जड़ तक ठांस दिया।
सुगना के होठ खुल गए और नशीली पलकें बंद हो गई.. और जब एक बार पलकों का खुलना और बंद होना शुरू हुआ…यह बढ़ता ही गया ….आनंद अपने चरम की तरफ बढ़ रहा था।
धीरे-धीरे सोनू सुगना की बुर में अपने लंड को आगे पीछे करने लगा पहले कुछ इंच फिर कुछ और इंच फिर कुछ और ….जैसे-जैसे सुगना सहज होती जा रही थी वैसे वैसे सोनू का लंड सुगना की बुर की गहराई नाप रहा था …एक बार नहीं बार-बार.. बारंबार …कभी धीमे कभी तेज…
सुगना का चेहरा आनंद से भर चुका था…. सोनू कभी सुगना के बाल सहलाता कभी उसे माथे पर चूमता कभी गालों पर और धीरे-धीरे उसके होठों को अपने होंठों में भर लेता सुगना भी अब पूरी तरह सोनू का साथ दे रही थी वो अपने पैर सोनू की जांघों से लिपटाकर कभी सोनू की गति को नियंत्रित करती कभी सोनू को अपनी गति बढ़ाने के लिए उकसाती।
जैसे-जैसे सोनू की चोदने की रफ्तार बढ़ती गई सुगना की उत्तेजना चरम की तरफ बढ़ने लगी…सुगना पूरे तन मन से अपने भाई के प्यार का आनंद लेने लगी ..
उत्तेजना धीरे-धीरे मनुष्य को एकाग्रता की तरफ ले जाती जैसे-जैसे स्त्री या पुरुष चरम की तरफ बढ़ते हैं उनका मन एकाग्र होता जाता है। सोनू की बेहद प्यार भरी चुदाई ने सुगना को धीरे-धीरे चरम के करीब पहुंचा दिया। वैध जी की पत्नी द्वारा दी गई दवा सुगना की खुमारी को पहले ही बढ़ाई हुई थी ऊपर से सोनू के नशीले प्यार और दमदार चूदाई ने सुगना को स्खलन के लिए तैयार कर दिया...
अभी तो सोनू ने अपनी बड़ी बहन को जी भर कर प्यार भी न किया था तभी सुगना के पैर सीधे होने लगे। सुगना का चेहरा वासना से पूरी तरह लाल हो गया था.. अपनी हथेलियों से सोनू के मजबूत कंधों को पकड़ सुगना अपनी उत्तेजना को अंतिम रूप देने में लगी हुई थी। सोनू को कतई यकीन न था की उसकी सुगना दीदी इतनी जल्दी स्खलित होने के लिए तैयार हो जाएगी परंतु सोनू यह भूल रहा था की सुगना को एक मर्द का प्यार कई महीनों बाद मिल रहा था …अपनी उत्तेजना को कई महीनों तक दबाए रखने के बाद सुगना के सब्र का बांध अब टूटने की कगार पर था..….
सुगना के हावभाव देखकर सोनू समझ चुका था कि उसकी सुगना दीदी अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच रही है…यद्यपि सोनू का मन अभी और चोदने का था परंतु उसने अपनी बड़ी बहन के सुख में व्यवधान डालने की कोशिश न की। …सोनू को अपनी पहली परीक्षा में पास होना था। सोनू में अब तक जो कला कौशल सीखा था उसने सुगना के बदन पर उसका प्रयोग शुरु कर दिया सुगना की दोनों हथेलियों को अपने पंजों से पकड़ उसने सुगना के हाथों को सर के दोनों तरफ फैला दिया और अपनी कोहनी के बल अपने भार को संतुलित करते हुए सुगना को अपने आगोश में ले लिया इधर सोनू ने सुगना के कोमल बदन को अपने शरीर का आवरण दिया उधर सोनू के लंड ने सुगना की बुर में अपना आवागमन बेहद तेज कर दिया.. सुगना को आज ठीक वही एहसास हो रहा था जो उसे सरयू सिंह के साथ चूदाई में होता था …
सोनू के बदन की गर्माहट और प्यार करने का ढंग सुगना को सरयू सिंह की याद दिला रहा था सुगना सातवें आसमान पर थी…. अचानक सोनू ने अपना चेहरा नीचे किया और सुगना की उपेक्षित पड़ी दोनों चूचियों को बारी बारी अपने होंठों के बीच लेकर उन्हें चुभलाने लगा सुगना से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने स्वयं अपनी चूचियां अपने हाथों में पकड़ ली और अपने चेहरे पर एक अजब से भाव लाते हुए झड़ने की कगार पर आ गई..
सोनू के लंड ने सुगना की बुर् के वह अद्भुत कंपन महसूस किए जो सोनू के लिए कतई नए थे…उस कप कपाती बुर के आलिंगन में सोनू का लंड थिरक उठा स्खलित होती बुर को और उत्तेजित करने की कोशिश में लंड जी तोड़ मेहनत…करने लगा..
सोनू बार-बार तेज चल रही सांसों के बीच दीदी…दी.दी…...दी शब्द का संबोधन कर रहा था जो एक मधुर ध्वनि की भांति सुगना के कानों में बजकर उसे और भी उत्तेजित कर रहा था. सोनू सुगना से आंखें मिलाकर उसकी आंखों में देखते हुए उसे चोदना चाह रहा था परंतु सुगना इसके लिए तैयार न थी। सोनू ने हिम्मत न हारी और अपनी पूरी ताकत से और पूरी तेजी से सुगना को चोदने लगा लंड की थाप जब गर्भाशय के मुख को खोलने का प्रयास करने लगी सुगना और बर्दाश्त न कर पाई वह स्वयं आनंद के अतिरेक पर थी और आखिरकार सुगना की भावनाओं ने लबों की बंदिश तोड़ दी और सुगना की वह मादक कराह सोनू के कानों तक आ पहुंची.
"सोनू बाबू ….तनी ..धीरे….. से"
सुगना के संबोधन कुछ और कह रहे थे और शरीर की मांग कुछ और। सुगना के शब्दों के विरोधाभास को दरकिनार कर सोनू ने वही किया जो उसे अपनी बड़ी बहन के लिए उचित लगा। सोनू ने अपनी गति को और बढ़ाया और सुगना बुदबुदाने लगी..सोनू …बाबू…आ…. हां… आ….. अपनी मेहनत को सफल होते हुए देख सोनू का उत्साह दुगना हो गया उत्तेजना के आखिरी पलों में अपनी बहन के मुख से अपना नाम सुन सोनू अभिभूत था….
आखिरकार सुगना स्खलित होने लगी उसकी बुर की दीवारों में अजब सा संकुचन होने लगा सोनू को एक बार फिर वही एहसास हुआ जैसे कई सारी छोटी-छोटी उंगलियां मिलकर उसके लंड को निचोड़ रही हों। वह अद्भुत एहसास सोनू ज्यादा देर तक बर्दाश्त न कर पाया और सोनू का लावा फूट पड़ा..
सुगना के गर्भ द्वार पर वीर्य वर्षा हो रही थी.. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू के दुर्ग भेदन की खुशी आक्रांता और आहत दोनों ही मना रहे थे। सोनू का फूलता पिचकता लंड सुगना की बुर के संकुचन के साथ ताल से ताल मिला रहा था।
एक सुखद एहसास लिए दोनों भाई बहन साथ-साथ स्खलित हो रहे थे। एक दूसरे के आगोश में लिपटे सुगना और सोनू एकाकार हो चुके थे के शरीर शिथिल पड़ रहा थी परंतु तृप्ति का भाव चरम पर था…
उधर सलेमपुर में सरयू सिंह की आंखों से नींद गायब थी आज अचानक ही उनके स्वप्न ने उन्हें न सिर्फ जगा दिया था अपितु उन्हें बेचैन कर दिया था। दरअसल उन्होंने अपने स्वप्न में सुगना को किसी और मर्द के साथ देख खुशी खुशी संभोग करते हुए देख लिया था…वह उस मर्द का चेहरा तो नहीं देख पाए शायद इसी बात का मलाल उन्हें हो रहा था। सुगना को हंसी खुशी उस मर्द से संभोग करते हुए देख सरयू सिंह यही बात सोच रहे थे कि क्या उनकी पुत्री अब जीवन भर यूं ही एकांकी जीवन व्यतीत करेगी। कहीं यह स्वप्न भगवान का कोई इशारा तो नहीं कि उन्हें अपनी पुत्री सुगना के लिए दूसरे विवाह के बारे में सोचना चाहिए…
सरयू सिंह जी अब यह बात भली-भांति जानते थे कि ग्रामीण परिवेश में स्त्रियों का दूसरा विवाह संभव नहीं है परंतु बनारस जैसे बड़े शहर में अब इसका चलन धीरे-धीरे शुरू हो चुका था। अपनी पुत्री के भविष्य को लेकर सरयू सिंह के मन में जब यह विचार आया तो उनके दिमाग में सुगना और उसके भावी परिवार की काल्पनिक तस्वीर घूमने लगी उन्हें लगा…. काश कि ऐसा हो पाता तो सुगना का आने वाला जीवन निश्चित ही खुशहाल हो जाता…
विचारों का क्या वह तो स्वतंत्र होते हैं उनका दायरा असीमित होता है वह सामाजिक बंदिशों लोक लाज और परिस्थितियों को नजरअंदाज कर अपना ताना-बाना बुनते हैं और मनुष्य के मन में उम्मीदें भर उनके बारे में सोचने पर मजबूर करते हैं।
जब एक बार मन में विचार आ गया सरयू सिंह ने इसकी संभावनाओं पर आगे सोचने का मन बना लिया उन्हें क्या पता था कि उनकी पुत्री सुगना का ख्याल रखने वाला सोनू अपनी बहन सुगना को तृप्त करने के बाद उसे अपनी मजबूत बाहों में लेकर चैन की नींद सो रहा था…
नियति संतुष्ट थी। सोनू और सुगना शायद एक दूसरे के लिए ही बने थे विधाता ने उनका मिलन भी एक विशेष प्रयोजन के लिए ही कराया था…
जैसे ही नियति ने विधाता के लिखे को आगे पढ़ने की कोशिश की उसका माथा चकरा गया हे प्रभु सुगना को और क्या क्या दिन देखने थे?
शेष अगले भाग में…
हमेशा की तरह प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में…